राजस्थान का एकीकरण Rajasthan ka Ekikaran

राजस्थान का एकीकरण Rajasthan ka Ekikaran

राजस्थान का एकीकरण, राजस्थान का इतिहास, राजस्थान का निर्माण, राजस्थान की प्रमुख रियासतें, Rajasthan ka Ekikaran, एकीकरण के सात चरण। इन सातों चरणों का विवरण इस प्रकार है-

Raj Ka Ekikaran
Raj Ka Ekikaran

प्रथम चरण : राजस्थान का एकीकरण Rajasthan ka Ekikaran

मत्स्य संघ 18 मार्च, 1948 ई.

मत्स्य संघ – अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली व नीमराणा ठिकाना (4+1)

सिफारिश – के. एम. मुन्शी की सिफारिश पर प्रथम चरण का नाम मत्स्य संघ रखा गया ।

राजधानी – अलवर

राजप्रमुख – उदयभान सिंह ( धोलपुर)।

उपराजप्रमुख – गणेशपाल देव (करौली)।

प्रधानमंत्री – शोभाराम कुमावत (अलवर)।

उप-प्रधानमंत्री – युगल किशोर चतुर्वेदी व गोपीलाल यादव ।

द्वितीय चरण : राजस्थान का एकीकरण Rajasthan ka Ekikaran

राजस्थान संघ – 25 मार्च, 1948 ई.

राजस्थान संघ/पूर्व राजस्थान – डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, शाहपुरा, किशनगढ़, टोंक, बूंदी, कोटा, झालावाड़ व कुशलगढ़ ठिकाना (9+1)

राजधानी – कोटा

राजप्रमुख – भीमसिंह (कोटा)

उप राजप्रमुख – लक्ष्मण सिंह (डूंगरपुर)

प्रधानमंत्री – गोकुल लाल असावा (शाहपुरा)

उद्घाटनकर्ता – एन.वी. गाॅडगिल

उद्घाटन – दूसरे चरण का उद्घाटन कोटा दुर्ग में किया गया

तृतीय चरण

संयुक्त राजस्थान – 18 अप्रैल, 1948 ई.

संयुक्त राजस्थान = राजस्थान संघ + उदयपुर (10+1)

राजधानी – उदयपुर

राजप्रमुख – भूपालसिंह (मेवाड)

उप-राजप्रमुख – भीमसिंह (कोटा)

प्रधानमंत्री – माणिक्यलाल वर्मा (मेवाड)

सिफारिश – पंडित जवाहरलाल नेहरू की सिफारिश पर माणिक्यलाल वर्मा को संयुक्त राजस्थान का प्रधानमंत्री बनाया गया ।

उद्घाटनकर्ता – पण्डित जवाहरलाल नेहरू

उद्घाटन – तीसरे चरण का उद्घाटन कोटा दुर्ग में किया गया

चतुर्थ चरण

वृहत् राजस्थान – 30 मार्च, 1949 ई.

वृहत् राजस्थान = संयुक्त राजस्थान + जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर व बीकानेर + लावा ठिकाना (11+5)

राजधानी – जयपुर

सिफारिश – श्री पी. सत्यनारायण राव समिति की सिफारिश पर जयपुर को राजधानी बनाया गया राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया के दोरान राज्य की राजधानी के मुद्दे को सुलझाने के लिए बी आर. पटेल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था।

महाराज प्रमुख – भूपाल सिंह (मेवाड)

राजप्रमुख – मानसिंह द्वितीय (जयपुर)

उपराजप्रमुख – भीमसिंह (कोटा)

प्रधानमंत्री – हीरालाल शास्त्री( जयपुर)

उद्घाटनकर्ता – सरदार वल्लभ भाई पटेल

न्याय का विभाग – जोधपुर

शिक्षा का विभाग – बीकानेर

वन विभाग – कोटा

कृषि विभाग – भरतपुर

खनिज विभाग – उदयपुर

पंचम चरण

वृहत्तर राजस्थान ( संयुक्त वृहत्त राजस्थान) 15 मई, 1949 ई.

वृहत्तर राजस्थान = वृहत् राजस्थान + मत्स्य संघ ( 16+4 )

सिफारिश – शंकरराव देव समिति की सिफारिश पर मत्स्य संघ को वृहत्तर राजस्थान में मिलाया गया।

राजधानी – जयपुर

महाराज प्रमुख – भूपालसिंह (मेवाड)।

राज प्रमुख – मानसिंह द्वितीय (जयपुर)।

प्रधानमंत्री – हीरालाल शास्त्री (जयपुर)।

उद्घाटनकर्ता – सरदार वल्लभ भाई पटेल।

षष्ठ चरण

राजस्थान संघ 26 जनवरी, 1950 ई.

राजस्थान संघ = वृहत्तर राजस्थान + सिरोही, आबू दिलवाडा (20+3)

राजधानी – जयपुर

महाराज प्रमुख – भूपालसिंह

राजप्रमुख – मानसिंह द्वितीय

प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री – हीरालाल शास्त्री

26 जनवरी 1950 ई. को राजस्थान को बी श्रेणी में शामिल किया गया

26 जनवरी 1950 ई. को राजपूताना का नाम बदलकर राजस्थान रख दिया गया।

सप्तम चरण

वर्तमान राजस्थान 1 नवम्बर, 1956 ई.

वर्तमान राजस्थान = राजस्थान संघ + आबू दिलवाड़ा + अजमेर मेरवाड़ा + सुनेल टप्पा – सिरोंज क्षेत्र

राजधानी – जयपुर

सिफारिश – राज्य पुनर्गठन आयोग (अध्यक्ष-फजल अली) की सिफारिश पर अजमेर मेरवाड़ा, आबू दिलवाडा व सुनेल टप्पा को वर्तमान राजस्थान में मिलाया गया।

राजस्थान के झालावाड़ का सिरोंज क्षेत्र मध्यप्रदेश में मिला दिया गया।

राज्यपाल – गुरूमुख निहालसिंह

मुख्यमंत्री – मोहनलाल सुखाडिया

राजस्थान के भौतिक प्रदेश

राजस्थान अवस्थिति एवं विस्तार

भारत और राजस्थान में कृषि

सूरदास का जीवन परिचय

सूरदास का जीवन परिचय

सूरदास का जीवन परिचय, सूरदास की रचनाएं, सूरदास का साहित्यिक परिचय, सूरदास की भाषा शैली, सूरदास का काव्य सौंदर्य, सूरदास का वात्सल्य

"<yoastmark

जन्मकाल- 1478 ई. (1535 वि.)

जन्मस्थान- सीही ग्राम ( नगेन्द्र के अनुसार) आधुनिक शौधों के अनुसार इनका जन्म स्थान मथुरा के निकट ‘रुनकता’ नामक ग्राम माना गया है।

मृत्युकाल- 1583 ई. (1640 वि.) पारसोली गाँव में

सूरदास के जन्म स्थान के संबंध में विद्वानों में मतभेद है आचार्य शुक्ल, डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी, बाबू श्यामसुंदर दास के अनुसार इनका जन्म और रुनकता का गऊघाट है, जबकि डॉ नगेंद्र, गणपति चंद्रगुप्त तथा वार्ता साहित्य के अनुसार सूरदास जी का जन्म स्थान सीही है।

सूरदास जी के बारे में जानकारी का प्रमुख स्रोत चौरासी वैष्णवन की वार्ता है।

गुरु का नाम- वल्लभाचार्य

गुरु से भेंट- 1509-10 ई. में (पारसोली नामक गाँव में)

काव्य भाषा- ब्रज

सूरदास का साहित्यिक परिचय

सूरदास की रचनाएं

डॉक्टर दीन दयालु गुप्त के अनुसार सूरदास जी की 25 रचनाएं हैं।

नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के 16 ग्रंथों का उल्लेख है।

सूरसागर

यह सूरदास की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है।

इसका मुख्य उपजीव्य (आधार स्रोत) श्रीमद् भागवतपुराण के दशम स्कंद का 46 वां व 47 वां अध्याय माना जाता है।

भागवत पुराण की तरह इस का विभाजन भी ‘बारह स्कंधो’ में किया गया है।

इसके दसवें स्कंद में सर्वाधिक पद रचे गए है।

सूरसागर के 400 पदों का संपादन आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘भ्रमरगीत सार’ नाम से किया है

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है-” सूरसागर किसी चली आती हुई गीती काव्य परंपरा का, चाहे वह मौखिक ही रही हो, पूर्ण विकास सा प्रतीत होता है।”

नगेन्द्र ने इस रचना को ‘अन्योक्ति’ एवं ‘उपालम्भ काव्य’ कहकर पुकारा है।

साहित्यलहरी

यह नायिका भेद और अलंकार से संबंधित 118 दृष्ट कूट पदों (लक्ष्मण के साथ उदाहरण देना) का ग्रंथ है।

यह इनका रीतिपरक यह माना जाता है|

इसमें दृष्टकूट पदों में राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है।

अलंकार निरुपण दृष्टि से भी इस ग्रंथ का अत्यधिक महत्त्व माना जाता है।

साहित्य लहरी की रचना सूर्य नंद दास को नायिका भेद की शिक्षा देने के लिए की थी यह ग्रंथ अनुपलब्ध है।

सूरसारावली

यह इनकी विवादित या अप्रमाणिक रचना मानी जाती है।

इसमें ज्ञान वैराग्य में भक्ति से संबंधित वर्णन मिलता है 1107 संतों की इस रचना में संसार को होली का रूपक माना गया है।

विशेष तथ्य

सूरदास जी को ‘ खंजननयन, भावाधिपति, वात्सल्य रस सम्राट, जीवनोत्सव का कवि, पुष्टिमार्ग का जहाज’ आदि नामों से भी जाना जाता है।

आचार्य रामचंद्र शुकल ने इनको-‘वात्सल्य रस सम्राट’ व ‘जीवनोत्सव का कवि’ कहा है।

गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने इनकी मृत्यु पर ‘ पुष्टिमार्ग का जहाज’ कहकर पुकारा था।

इनकी मृत्यु पर उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था- ” पुष्टिमार्ग को जहाज जात है सो जाको कछु लेना होय सो लेउ।”

हिंदी साहित्य जगत में ‘भ्रमरगीत’ परंपरा का समावेश सूरदास द्वारा ही किया हुआ माना जाता है।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह चंदबरदाई के वंशज कवि माने गए हैं।

आचार्य शुक्ल ने कहा है- “सूरदास की भक्ति पद्धति का मेरुदंड पुष्टीमार्ग ही है।”

सूर साहित्य गीतिकाव्य है।

सूरदास जी ने भक्ति पद्धति के 11 रूपों का वर्णन किया है।

हिंदी साहित्य जगत में सूरदास जी सूर्य के समान, तुलसीदास जी चंद्रमा के समान, केशव दास जी तारे के समान तथा अन्य सभी कवि जुगनुओं (खद्योत) के समान यहां-वहां प्रकाश फैलाने वाले माने जाते हैं| यथा:-
“सूर सूर तुलसी ससि, उडूगन केशवदास|
और कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करत प्रकाश।”

सूर के भाव चित्रण में वात्सल्य भाव को श्रेष्ठ कहा जाता है।

विद्वानों के कथन-

“सूर्य अपनी आंखोंसे वात्सल्य का कोना कोना छान आए हैं।”- आचार्य शुक्ल

“जब दूर अपने विषय का वर्णन करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे दौड़ा करता है, अपमाओं की बाढ़ आ जाती है, रूपकों की वर्षा होने लगती है, संगीत के प्रवाह में कवि स्वयं बह जाता है।” आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

“वात्सल्य और श्रंगार के क्षेत्र का जितना अधिक उद्घाटन सूर ने बंद आंखों से किया है उतना किसी कवि ने नहीं किया।” आचार्य शुक्ल

‘महाकवि सूरदास’ नामक आलोचना – आ. नंददुलारे वाजपेयी

‘सूर साहित्य’ – आ. हजारीप्रसाद द्विवेदी

‘त्रिवेणी’ (जायसी तुलसी सूर पर आलोचनात्मक ग्रंथ) – आचार्य रामचंद्र शुक्ल

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद, काव्य गुण क्या हैं?, काव्य-गुणों की संख्या, गुण किसे कहते हैं? प्रसाद गुण, ओज गुण, माधुर्य गुण

काव्य के सौंदर्य की वृद्धि करने वाले और उसमें अनिवार्य रूप से विद्यमान रहने वाले धर्म को गुण कहते हैं।

आचार्य वामन द्वारा

प्रवर्तित रीति सम्प्रदाय को ही गुण सम्प्रदाय भी कहा नाता है आचार्य वामन ने गुण को स्पष्ट करते हुए स्वरचित ‘काव्यालंकार सूत्रवृत्ति’ ग्रंथ में लिखा है-
“काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा: गुणाः।
तदतिशयहेतवस्त्वलंकाराः ॥”
अर्थात् शब्द और अर्थ के शोभाकारक धर्म को गुण कहा जाता है वामन के अनुसार गुण’ का इनको अनुपस्थिति में काव्य का अस्तित्व असंभव है।

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद
काव्य गुण परिभाषा एवं भेद

डॉ नगेन्द्र के अनुसार–

“गुण काव्य के उन उत्कर्ष साधक तत्वों को कहते हैं जो मुख्य रूप से रस के और गौण रूप से शब्दार्थ के नित्य धर्म हैं|”

गुण के भेद

भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में निम्नलिखित दस गुण स्वीकार किये है-

“श्लेष: प्रसाद: समता समधि
माधुर्यमोजः पदसौकुमार्यम्।।
अर्थस्य च व्यक्तिरुदारता च,
कान्तिश्च काव्यस्य गुणाः दशैते।”

अर्थात् काव्य में निम्न दस गुण होते हैं-

श्लेष

प्रसाद

समता

समाधि

माधुर्य

ओज

पदसौकुमार्य

अर्थव्यक्ति

उदारता

कांति

भरत के पश्चात भामह ने भी दस को स्वीकार किए हैं तथा प्रसाद और माधुर्य की सर्वाधिक प्रशंसा की है।

भामह के पश्चात दंडी ने भी भारत के अनुसार ही दस गुण स्वीकार की है।

दंडी के बाद वामन ने मुख्य दो प्रकार के गुण माने हैं- शब्द गुण एवं अर्थ गुण।

वामन ने दोनों गुणों में प्रत्येक के दस-दस भेद किए हैं।

वामन के पश्चात आचार्य भोजराज ने अपने सरस्वती कंठाभरण में सर्वाधिक 48 गुण, 24 शब्द गुण तथा 24 अर्थ गुण स्वीकार किए हैं।

उन्होंने शब्द गुणों को बाह्यगुण तथा अर्थ गुणों को अभ्यंतर गुण कहा था।

अग्नि पुराण में 19 काव्य गुण स्वीकार किए गए हैं।

इसके पश्चात आचार्य मम्मट ने अपने काव्यप्रकाश में तीन गुण स्वीकार की है- 1. प्रसाद 2. ओज 3. माधुर्य।

आचार्य विश्वनाथ ने ‘साहित्य दर्पण’ में तथा पंडितराज जगन्नाथ ने ‘रसगंगाधर’ में उक्त तीन गुणों को स्वीकार किया है।

प्रसाद गुण

ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है।

वह प्रसाद गुणों से युक्त मानी जाती है अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते हैं।

स्वच्छता एवं स्पष्टता प्रसाद गुण की विशेषता मानी जाती है।

यह समस्त रचनाओं और रसों में रहता है।

इसमें आए शब्द सुनते ही अर्थ के द्योतक होते हैं।

आचार्य भिखारीदास ने प्रसाद गुण का लक्षण इस प्रकार प्रकट किया है:-

“मन रोचक अक्षर परै, सोहे सिथिल शरीर।
गुण प्रसाद जल सूक्ति ज्यों, प्रगट अरथ गंभीर।॥” जैसे:-

“हे प्रभु आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिए,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए,

लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें,
ब्रह्मचारी धर्म रक्षक वीर व्रत धारी बने।”

“जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।”

“जिसकी रज में लोट लोट कर बड़े हुए हैं।

घुटनों के बल सरक सरक कर खड़े हुए हैं।

परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये।

जिसके कारण ‘धूल भरे हीरे’ कहलाये।

हम खेले कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में।
हे मातृभूमि तुझको निरख मग्न क्यों न हो मोद में।।”

“चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है, अवनि और अम्बर तल में ।”

“वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठीभर दाने को, भूख मिटाने को
मुँह फटी-पुरानी झोली को फैलाता।।”
– “जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।”
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।”

“विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना।
परिचय इतना इतिहास यही ,
उमड़ी कल थी मिट आज चली।।”

ओज गुण

ऐसी कवि रचना जिसको पढ़ने उसे चित्त में जोश वीरता उल्लास आदि के भाव उत्पन्न हो जाए वह ओज गुण युक्त काव्य रचना मानी जाती है।

गौड़ी रीति की तरह इसमें संयुक्ताक्षरों ‘ट’ वर्गीय वर्णों लंबे-लंबे सामासिक पदों एवं रेफ युक्त वर्णों का प्रयोग अधिक किया जाता है।

वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स आदि रसो की रचना में ओज गुण ही पाया जाता है।

आचार्य भिखारीदास ने इसका लक्षण इस प्रकार प्रकट किया है-
‘उद्धत अच्छर जहँ भरै, स, क, ट युत मिलिआइ।
ताहि ओज गुण कहत हैं, जे प्रवीन कविराइ ।।”

“किस ने धनुष तोड़ा शशि शेखर का।
मेरे नेत्र देखो राघव सवंश डूब जाओगे इनमें।”
– ” मैं सत्य कहता हूँ सखे ! सुकुमार मत जानी मुझे।
यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा जानो मुझे।

हे सारथे ! हैं द्रोण क्या? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।
वे भी न जीतेंगे समर में, आज क्या मुझसे कभी।।”

“देशभक्त वीरों मरने से नेक नहीं डरना होगा।
प्राणों का बलिदान देश की वेदी पर करना होगा।।”

“भये क्रुद्ध जुद्ध विरुद्ध रघुपति, त्रोय सायक कसमसे।
कोदण्ड धुनि अति चण्ड सुनि, मनुजाद सब मारुत ग्रसे।।”

“दिल्लिय दहन दबाय करि सिप सरजा निरसंक।
लूटि लियो सूरति सहर बंकक्करि अति डंक।।”

“बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।”

“हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुध्द शुध्द भारती।
स्वयं प्रभा, समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।”

“हाय रुण्ड गिरे, गज झुण्ड गिरे, फट-फट अवनि पर शुण्ड गिरे।
भू पर हय विकल वितुण्ड गिरे, लड़ते-लड़ते अरि झुण्ड गिरे।”

माधुर्य गुण

हृदय को आनंद उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण संपन्न होती है।

अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ कर चित में श्रृंगार, करुण, शांति के भाव उत्पन्न होते हैं।

वह माधुर्य गुण युक्त रचना मानी जाती है।
वैदर्भी रीति की तरह इसमें संयुक्ताक्षर ‘ट’ वर्गीय वर्णों एवं सामासिक पदों का पूर्ण अभाव पाया जाता है अथवा अल्प प्रयोग किया जाता है।

श्रृंगार, हास्य, करुण, शांतादि रसों से युक्त रचनाओं में माधुर्य गुण पाया जाता है।

आचार्य भिखारीदास ने इसका लक्षण इस प्रकार प्रस्तुत किया है:-

अनुस्वार और वर्गयुत, सबै वरन अटवर्ग। अच्छा मैं मृदु परै, सौ माधुर्य निसर्ग।।

“अमि हलाहल मद भरे, श्वेत श्याम रतनार ।
जियत मिरत झुकि-झुकि परत, जे चितवत इक बार ।।”

“कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि, कहत लखन सम राम हृदय गुनि मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्हि, मनसा विश्व विजय कर लीन्हि ।।”

“बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनि हसै, देन कहि नटि जाय।।”

“कहत नटत रीझत खीझत, मिलत खिलत लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैनन ही सौं बात।।”

“मेरे हृदय के हर्ष हा! अभिमन्यु अब तू है कहाँ।
दृग खोलकर बेटा तनिक तो देख हम सबको यहाँ।

मामा खड़े हैं पास तेरे तू यहीं पर है पड़ा। निज गुरुजनों के मान का तो ध्यान था तुझको बड़ा।।”

“बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं |
तब ये लता लगती अति सीतल,
अब भई विषम ज्वाल की पुंजैं | |”

“फटा हुआ है नील वसन क्या, ओ यौवन की मतवाली ।
देख अकिंचन जगत लूटता, छवि तेरी भोली भाली ।।”

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद, काव्य गुण क्या हैं?, काव्य-गुणों की संख्या, गुण किसे कहते हैं? प्रसाद गुण, ओज गुण, माधुर्य गुण

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ

कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं

पाठ्य पुस्तकों का महत्त्व

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत

कामायनी के विषय में कथन

हिन्दी साहित्य विभिन्न कालखंडों के नामकरण

हाइकु (Haiku) कविता

संख्यात्मक गूढार्थक शब्द

मुसलिम कवियों का कृष्णानुराग

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ, रीतिकाल के प्रमुख कवि, रीतिकाल की प्रमुख धाराओं के नाम, काव्यविवेक किसकी रचना है?, रीतिकाल का वर्गीकरण आदि

रीति-काल में रचे गये विभिन्न रीति ग्रंथों की सूची

काव्यविवेक चिंतामणि की रचना है।

रीतिकाल: रस, श्रृंगार एवं नायिका भेद ग्रंथ

•हिततरंगिणी(1541):- कृपाराम
•साहित्यलहरी:- सूरदास
•रसमंजरी(1550):- नंददास
•रसिकप्रिया(1591):- केशवदास
•नखशिख:- केशवदास
•नायिकाभेद:- रहीम
•नगरशोभा:- रहीम
•सुंदर श्रृंगार(1631):- सुंदर कविराय
•रसकोश(1619):- न्यामत खां जान
•शिखनख:- बलभद्र
•श्रृंगारसागर(1589):- मोहनलाल मिश्रा

•रसविलास(1633):- चिंतामणि

•रसरहस्य(1670):- कुलपति मिश्र
•भावविलास(1689):- देव
•अष्टयाम:- देव
•शब्दरसायन/काव्यरसायन:- देव
•सुखसागरतरंग:- देव
•जातिविलास:- देव
•प्रेमतरंग:- देव
•रसपीयूषनिधि(1737):- सोमनाथ
•श्रृंगारविलास:- सोमनाथ
•रससारांश:- भिखारीदास
•श्रृंगारनिर्णय:- भिखारीदास
•रसिकानंद:-ग्वाल
•रसतरंग:-ग्वाल
•बलवीर विनोद:- ग्वाल
•सुधानिधि(1634):- तोष

•रसप्रबोध(1742):- रसलीन
•अंगदर्णप(1737):- रसलीन
•नवरसतरंग(1817):- बेनी प्रवीण
•रसभूषण:- याकूब

•जुगलरसविलास:- उजियारे कवि

•रसचंद्रिका:- उजियारे कवि
•रसशिरोमणि(1773):- महाराज रामसिंह
•जुगलविलास(1779):- महाराज रामसिंह
•रसनिवास(1782):-महाराज रामसिंह
•रसिकविनोद(1846):-चंद्रशेखर वाजपेयी
•जगद्विनोद(1803):- पद्माकर
•रसरत्नाक:- सुखदेव मिश्र
•रसार्णव:- सुखदेव मिश्र
•रसराज(1643-53):-मतिराम
•श्रृंगाररसमाधुरी(1712):- कृष्णभट्टदेव
•वरवधुविनोद:- कालिदास त्रिवेदी
•काव्यकलाधर(1745):- रघुनाथ बंदीजन
•भावपंचाशिका(1686):- वृंद
•यमकसतसई(1706):- वृंद
•नायिकाभेद:- नृपशंभु

बरवै नायिकाभेद-रहीम
भाषा भूषण-महाराजा जसवंत सिंह
•श्रीराधासुधाशतक:- हठी जी
•नखशिख:-पजनेस

रीतिकाल : काव्यांग निरूपक ग्रंथ

•कविवल्लभ(1647):- न्यामत खां जान
•कविकुलकल्पतरू:- चिंतामणि
•रसिकरसाल(1719):- कुमारमण
•काव्यनिर्णय:- भिखारीदास
•रसिकगोविंदानंदघन(1801):- रसिक गोविंद
•व्यंग्यार्थकौमुदी(1825):- प्रतापसाहि
•काव्यविनोद(1829):-प्रतापसाहि
सभामंडन(1827):- अमीरदास
•श्रीकृष्णसाहित्यसिंधु(1833):- अमीरदास
•साहित्यानंद:- ग्वाल
•कविदर्पण:- ग्वाल

रीतिकाल: अलंकार ग्रंथ

रीतिकाल के बारे में

•कविप्रिया(1601):- केशवदास
•शेरसिंह प्रकाश(1840):- अमीरदास
•अलंकार दर्पण(1778):- महाराज रामसिंह
•पद्माभरण(1810):-पद्माकर
•ललितललाम(1661-64):- मतिराम
•अलंकार पंचाशिका(1690):- मतिराम
•अलंकार कलानिधि:- कृष्णभट्टदेव
•भाषाभूषण:- जसवंतसिंह
•अलंकार रत्नाकर:- दलपतिराय बंशीधर
•शिवराजभूषण(1673):- भूषण
•रामालंकार:- गोप
•अलंकार चंद्रोदय(1729):- रसिकसुमति
•रसिकमोहन(1739):- रघुनाथ बंदीजन
•कविकुलकंठाभरण:- दूलह
•तुलसीभूषण(1754):- रसरूप
•अलंकार प्रकाश(1648):- मुरलीधर भूषण
•वाणीभूषण:- रामसहाय
•वधुभूषण(संस्कृत):- नृपशंभु

रीतिकाल: छंद निरूपक ग्रंथ

•छंदमाला:- केशवदास
•छंद विचार पिंगल:- चिंतामणि
•छंदोर्णव पिंगल:- भिखारीदास
•वृत्त चंद्रोदय(1830):- अमीरदास
•प्रस्तार प्रकाश:- ग्वाल
•वृत्त विचार(1671):- सुखदेव मिश्र
•छंदोहृदयप्रकाश(1666):- मुरलीधर भूषण
•वृत्त तरंगिणी:- रामसहाय
•श्री नाग पिंगल(छंदविलास,1702):- माखन
•वृत्तविचार (1799):- दशरथ
•छंद सार :- मतिराम
•छंद सार :- नारायण दास
•पिंगल प्रकाश :- नंदकिशोर
•छंद पयोनिधि :- हरिदेव
•छंदानंद पिंगल :- अयोध्या प्रसाद वाजपेयी

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ

कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं

पाठ्य पुस्तकों का महत्त्व

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत

कामायनी के विषय में कथन

हिन्दी साहित्य विभिन्न कालखंडों के नामकरण

हाइकु (Haiku) कविता

संख्यात्मक गूढार्थक शब्द

मुसलिम कवियों का कृष्णानुराग

विश्व के सात महाद्वीप

विश्व के सात महाद्वीप Vishva Ke Mahadveep

विश्व के सात महाद्वीप | Vishv ke Mahadveep | Asia Mahadveep | Europe Mahadveep | America Mahadveep | Africa Mahadveep | Australia Mahadveep

एशिया महाद्वीप – Asia

एशिया सबसे बड़ा महाद्वीप है।

इस महाद्वीप का कुल क्षेत्रफल 29.50% है।

एशिया का सबसे बड़ा देश चीन है।

इस महाद्वीप का सबसे छोटा देश मालद्वीप है।

महाद्वीप की सबसे लम्बी नदी यांगटिसीक्यांग है।

महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत माउंट एवरेस्ट (8848 मी) है।

इस महाद्वीप पर कुल 48 देश हैं।

एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी झील कैस्पियसन सागर है।

एशिया महाद्वीप का सबसे गहरा बिन्दु मृतसागर (395 मी) है।

यह विश्व के कुल स्थल क्षेत्र के 1/3 भाग पर स्थित है।

यहां की 3/4 जनसख्या अपने भरण-पोषण के लिए कृषि पर निर्भर है।

एशिया चावल, मक्का, जूट, कपास, सिल्क इत्यादि के उत्पादन के मामले में पहले स्थान पर है।

अफ्रीका महाद्वीप – Africa

अफ्रीका दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है।

इस महाद्वीप का कुल क्षेत्रफल 20.20% है।

अफ्रीका का सबसे बड़ा देश अल्जीरिया है।

इस महाद्वीप का सबसे छोटा देश मेओटी है।

इस महाद्वीप की सबसे लम्बी नदी नील है।

अफ्रीका महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत माउंट किलीमंजारो (5895 मी) है।

अफ्रीका महाद्वीप की सबसे बड़ी झील विक्टोरिया है। इस महाद्वीप पर कुल 54 देश हैं।

इस महाद्वीप का सबसे गहरा बिन्दु असाई झील (156 मी) है।

अफ्रीका का 1/3 हिस्सा मरुस्थल है।

यहां की मात्र 10% भूमि ही कृषि योग्य है।

हीरे व सोने के उत्पादन में अफ्रीका सबसे ऊपर है।

उत्तरी अमेरिका महाद्वीप – North America

यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है।

इस महाद्वीप का कुल क्षेत्रफल 16.05% है।

उत्तरी अमेरिका का सबसे बड़ा देश कनाडा है।

इस महाद्वीप का सबसे छोटा देश सेण्ट पीरे है।

इस महाद्वीप की सबसे लम्बी नदी मिसीसिपी मिसौ है।

उत्तरी अमेरिका महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत माउंट माउंट मैकिल्ले (6194 मी) है।

इस महाद्वीप की सबसे बड़ी झील सुपीरियर है।

उत्तरी अमेरिका महाद्वीप का सबसे गहरा बिन्दु डैथ वैली (86 मी) है।

यह दुनिया के 16% भाग पर स्थित है।

इस महाद्वीप पर कुल 23 देश हैं।

कषीय संसाधनों की दृष्टिकोण से यह काफ़ी धनी क्षेत्र है।

विश्व के कुल मक्का उत्पादन का आधा उत्पादन यहीं होता है।

वन, खनिज व ऊर्जा संसाधनों के दृष्टिकोण से यह काफ़ी समृद्ध क्षेत्र है।

दक्षिण अमेरिका महाद्वीप – South America

यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा महाद्वीप है।

इस महाद्वीप का कुल क्षेत्रफल 11.80% है।

दक्षिण अमेरिका का सबसे बड़ा देश ब्राजील है।

इस महाद्वीप का सबसे छोटा देश फॉकलैंड द्वीप है।

महाद्वीप की सबसे लम्बी नदी अमेजन है।

इस महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत माउंट एन्काकागुआ (6906 मी) है।

दक्षिण अमेरिका महाद्वीप का सबसे गहरा बिन्दु बाल्डस प्रायद्वीप (40 मी) है।

इस महाद्वीप का 2/3 हिस्सा विषुवत रेखा के दक्षिण में स्थित है।

इसके बहुत बड़े हिस्से में वन हैं

अटार्कटिका महाद्वीप – Antarctica

यह विश्व का पांचवा सबसे बड़ा महाद्वीप है।

इस महाद्वीप का कुल क्षेत्रफल 9.60% है

महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत विंसन मौसिफ़ है।

इस महाद्वीप का सबसे गहरा बिन्दु बेन्द्रल बैंच (2853 मी) है।

यह पूरी तरह दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है और दक्षिण ध्रुव इसके मध्य में स्थित है।

इस महाद्वीप का 99% हिस्सा वर्षपर्यन्त बर्फ़ से ढंका रहता है।

यहां की भूमि पूरी तरह बंजर है।

यूरोप महाद्वीप – Europe

यूरोप एकमात्र ऐसा महाद्वीप है जहां जनसंख्या घनत्व अधिक होने के साथ-साथ समृद्धता भी है।

इस महाद्वीप का कुल क्षेत्रफल 6.50% है।

इस महाद्वीप पर कुल 50 देश हैं।

यूरोप का सबसे बड़ा देश रूस है।

इस महाद्वीप का सबसे छोटा देश वेटिकन सिटी है। इस महाद्वीप की सबसे लम्बी नदी वोल्गा है।

यूरोप महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत माउंट एल्ब्रुस है। इस महाद्वीप की सबसे बड़ी झील लैडोगा है।

यहां वन, खनिज, उपजाऊ मिट्टी व जल बहुतायत में है।

यूरोप के महत्त्वपूर्ण खनिज संसाधन कोयला, लौह अयस्क, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस है।

ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप – Australia

ऑस्ट्रेलिया एकमात्र देश है जो सम्पूर्ण महाद्वीप पर स्थित है।

इस महाद्वीप का कुल क्षेत्रफल 5.03% है।

ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा देश ऑस्ट्रेलिया है।

इस महाद्वीप का सबसे छोटा देश नौरु है।

इस महाद्वीप की सबसे लम्बी नदी मर्रे-डार्लिंग है।

ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप का सबसे ऊँचा पर्वत माउंट कोस्यूूस्को है।

इस महाद्वीप की सबसे बड़ी झील आयर है।

ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप का सबसे गहरा बिन्दु आयर झील (16 मी) है।

यह देश पादपों, वन्यजीवों व खनिजों के मामल में समृद्ध है लेकिन जल की यहां काफ़ी कमी है।

विश्व के सात महाद्वीप

वायुदाब

पवनें

वायुमण्डल

चट्टानें अथवा शैल

जलवायु

चक्रवात-प्रतिचक्रवात

भौतिक प्रदेश

अपवाह तंत्र

पारिस्थितिकी

जैवमंडल Biosphere

सूर्य ग्रहण

भारत में परिवहन

भारत और राजस्थान में कृषि

मृदुला गर्ग

मृदुला गर्ग जीवन परिचय

मृदुला गर्ग जीवन परिचय, मृदुला गर्ग की रचनाएं, मृदुला गर्ग का कथा साहित्य, मृदुला गर्ग की भाषा शैली, मृदुला गर्ग की आत्मकथा

जन्म -25 अक्तूबर, 1938

जन्म भूमि- कोलकाता, पश्चिम बंगाल

शिक्षा – एम.ए. (अर्थशास्त्र)

मृदुला गर्ग की रचनाएं

उपन्यास

‘उसके हिस्से की धूप’1975 (पहला उपन्यास)

‘वंशज’

‘चितकोबरा'( मृदुला गर्ग का उपन्यास ’चित्रकोबरा’ बहुत विवादास्पद है और लोकप्रिय भी। उसमें भी नायिका के विवाहेत्तर संबंध होते है। उस उपन्यास के कारण मृदुला गर्ग पर मुकदमा भी चला था।)

‘अनित्या’

‘मैं और मैं’1984

‘कठगुलाब’1996

मिलजुल मन

मृदुला गर्ग जीवन परिचय
मृदुला गर्ग जीवन परिचय

निबंध संग्रह

‘रंग ढंग’

‘चुकते नहीं सवाल’

कविता संग्रह

‘कितनी कैदें’

‘टुकड़ा टुकड़ा आदमी’

‘डैफोडिल जल रहे हैं’

‘ग्लेशियर से’

‘शहर के नाम’

यात्रा संस्मरण

कुछ अटके कुछ भटके

व्यंग्य संग्रह

‘कर लेंगे सब हजम’

कहानियां

‘रूकावट’1972 ( सारिका पत्रिका में, इनकी पहली कहानी)

‘दुनिया का कायदा’

‘उसका विद्रोह’

‘उर्फ सेम’1986

‘शहर के नाम’ 1990

‘समागम’1996

‘मेरे देश की मिट्टी अहा’2001

‘संगति विसंगति’2004 (दो खण्ड)

‘जूते का जोड़ गोभी का तोड़’

‘कितनी कैदें’

‘टुकड़ा-टुकड़ा आदमी’

‘डेफोडिल जल रहें हैं’

नाटक

‘एक और अजनबी’1978

‘जादू का कालीन’1993

‘तीन कैदें’1996 ( इस नाट्य संग्रह में तीन नाटक संगृहीत है- कितनी कैदें, दूसरा संस्करण, दुलहिन एक पहाड़ की)

‘साम दाम दंड भेद’

सम्मान और पुरस्कार

मृदुला गर्ग को हिंदी अकादमी द्वारा 1988 में साहित्यकार सम्मान|

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान|

2003 में सूरीनाम में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में आजीवन साहित्य सेवा सम्मान|

2004 में ‘कठगुलाब’ के लिए व्यास सम्मान|

2003 में ‘कठगुलाब’ के लिए ही ज्ञानपीठ का वाग्देवी पुरस्कार

वर्ष 2013 का साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी उनकी कृति ‘मिलजुल मन’ उपन्यास के लिए प्रदान किया गया है।

‘उसके हिस्से की धूप’ उपन्यास को 1975 में तथा ‘जादू का कालीन’ को 1993 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया है।

विशेष तथ्य

इन्होंने इंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में लगभग तीन साल तक कटाक्ष नामक स्तंभ लिखा है जो अपने तीखे व्यंग्य के कारण खूब चर्चा में रहा।

ये संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में 1990 में आयोजित एक सम्मेलन में हिंदी साहित्य में महिलाओं के प्रति भेदभाव विषय पर व्याख्यान भी दे चुकी हैं।

इनकी रचनाओं के अनुवाद जर्मन, चेक, जापानी और अँग्रेज़ी सहित अनेक भारतीय भाषाओं में हो चुके हैं।

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार

रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर जीवन-परिचय

रामधारी सिंह दिनकर जीवन-परिचय, रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय, कविताएं, भाषा शैली, प्रमुख कृतियाँ, Ramdhari Singh Dinkar Biography

उपनाम- दिनकर

जन्म- 23 सितंबर, 1908

जन्म भूमि- सिमरिया, मुंगेर, बिहार

मृत्यु- 24 अप्रैल, 1974

मृत्यु स्थान- चेन्नई, तमिलनाडु

अभिभावक – श्री रवि सिंह और श्रीमती मनरूप देवी

पत्नी-श्यामवती

संतान- एक पुत्र

कर्म भूमि- पटना

कर्म-क्षेत्र – कवि, लेखक

प्रसिद्धि- द्वितीय राष्ट्रकवि

काल- आधुनिक काल (राष्ट्रीय चेतना प्रधान काव्य धारा के कवि)

पुरस्कार-उपाधि-
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1972
साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1959
पद्म भूषण-1959 (भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा प्रदान)

रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय

रचनाएं

रेणुका-1935

हुँकार- 1938

रसवंती-1940

द्वन्द्व गीत-1940

कुरुक्षेत्र-1946 (महाकाव्य/प्रबंधकाव्य)

सामधेनी-1947

धूप और धुआँ- 1951

नीम के पत्ते

हारे को हरिनाम

इतिहास के आँसू-1951

नील-कुसुम-1954

रश्मिरथी-1952 (प्रबंधकाव्य)

उर्वशी-1961 (खण्डकाव्य)

हाहाकार

परशुराम की प्रतिक्षा-1963

आत्मा की आंखें-1964

दिल्ली

सीपी और शंख

वट पीपल-1961

संसकृति के चार अध्याय (गद्य काव्य)

मगध महिमा (काव्यात्मक एकांकी)

व्यंग्य एवं लघु कविताओं का संग्रह – नाम के पत्ते।

अनूदित और मुक्त कविताओं का संग्रह – मृत्ति तिलक।

बाल-काव्य विषयक उनकी दो पुस्तिकाएँ प्रकाशित हुई हैं —‘मिर्च का मजा’ और ‘सूरज का ब्याह’।

रामधारी सिंह दिनकर जीवन-परिचय
रामधारी सिंह दिनकर जीवन-परिचय

आलोचना

काव्य की भूमिका-1957

पंत-प्रसाद-मैथलीशरण गुप्त-1958

शुद्ध कविता की खोज-1966

निबंध

मिट्टी की ओर-1946

अर्धनारीश्वर-1952

रेत के फूल-1954

हमारी सांस्कृतिक एकता-1954

उजली आग-1956

राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय साहित्य-1958

वेणुवन-1958

नैतिकता और विज्ञान-1959

साहित्यमुखी-1968

संस्मरण एवं रेखाचित्र विधा

लोकदेव नेहरु-1965

संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ- 1969

यात्रा विधा

देश-विदेश-1957

मेरी यात्राएँ- 1970

डायरी विधा

दिनकर की डायरी-1972

विशेष तथ्य

दिनकर को ‘द्वितीय राष्ट्रकवि’ भी कहा जाता है|

राष्ट्र कवि की पदवी से विभूषित दिनकर ने मैथिलीशरण गुप्त के समक्ष स्वयं को महज डिप्टी राष्ट्रकवि ही स्वीकार किया है|

हिंदी साहित्य जगत में दिनकर को ‘अनल कवि व अधैर्य का कवि’ उपनाम से भी जाना जाता है|

इनको ‘उर्वशी’ काव्य रचना के लिए 1972 ईस्वी में ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था|

‘संस्कृति के चार अध्याय’ रचना के लिए इनको 1959 ईस्वी में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था|

इन्हें राष्ट्रीय जागरण तथा भारतीय संस्कृति का कवि माना जाता है|

रेणुका की कविता ” तांडव” में शंकर से प्रलय की याचना की।

रेणुका की कविता “पुकार” में किसान की विवशता का चित्रण।

वट पीपल इनका प्रमुख रेखाचित्र है।

“संस्कृति के चार अध्याय” की भूमिका पं० जवाहर लाल नेहरू ने लिखी थी।

इनका ‘कुरुक्षेत्र’ महाकाव्य द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका से प्रेरित होकर रचा गया था यह काव्य मूलतः महाभारत के भीष्म युधिष्ठिर संवाद पर आधारित है|

बोस्टल जेल के शहीद को श्रद्धांजलि के रूप में लिखा कविता – बागी।

सामधेनी की कविता ‘हे मेरे स्वदेश’ में हिन्दी मुस्लिम दंगों की भर्त्सना की।

सामधेनी की कविता’अंतिम मनुष्य’ में युद्ध प्रलय का चित्रण है।

कुरूक्षेत्र में मिथकीय पद्धति है।

परशुराम की प्रतीक्षा में भारती पर चीनी आक्रमण के बारे में प्रतिक्रिया है।

दीपदान के अंग्रेजी पत्र ‘orient West’s में दिनकर की कलिंग विजय का अनुवाद किसी गया था।

संस्कृति के चार अध्याय के प्राचीन खण्ड का जापानी भाषा में अनुवाद किया गया था।

1955 में दिनकर ने वारसा (पोलैंड) के अन्तर्राष्ट्रीय काव्य समारोह में भारतीय शिखर मंडल के नेता के रूप में भाग लिया।

विद्यार्थी जीवन में आर्थिक तंगी होते हुए भी दिनकर ने मैट्रिक की परीक्षा में हिंदी विषय में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर ‘भूदेव’ सवर्ण पदक प्राप्त किया था|

दिनकर भागलपुर वि.वि., बिहार के कुलपति भी रहे थे|(1964-65 में)

दिनकर को भारतीय संसद में ‘राज्यसभा’ का सदस्य भी मनोनीत किया गया था| (1952 प्रथम संसद के सदस्या, 12 वर्षो तक रहे)

1999 में उनके नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया।

दिनकर के बारे में अन्य लेखकों के कथन

“वे अहिन्दीभाषी जनता में भी बहुत लोकप्रिय थे क्योंकि उनका हिन्दी प्रेम दूसरों की अपनी मातृभाषा के प्रति श्रद्धा और प्रेम का विरोधी नहीं, बल्कि प्रेरक था।” -हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

-“दिनकर जी ने श्रमसाध्य जीवन जिया। उनकी साहित्य साधना अपूर्व थी। कुछ समय पहले मुझे एक सज्जन ने कलकत्ता से पत्र लिखा कि दिनकर को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना कितना उपयुक्त है ? मैंने उन्हें उत्तर में लिखा था कि यदि चार ज्ञानपीठ पुरस्कार उन्हें मिलते, तो उनका सम्मान होता- गद्य, पद्य, भाषणों और हिन्दी प्रचार के लिए।” -हरिवंशराय बच्चन

“उनकी राष्ट्रीयता चेतना और व्यापकता सांस्कृतिक दृष्टि, उनकी वाणी का ओज और काव्यभाषा के तत्त्वों पर बल, उनका सात्त्विक मूल्यों का आग्रह उन्हें पारम्परिक रीति से जोड़े रखता है।” -अज्ञेय

“हमारे क्रान्ति-युग का सम्पूर्ण प्रतिनिधित्व कविता में इस समय दिनकर कर रहा है। क्रान्तिवादी को जिन-जिन हृदय-मंथनों से गुजरना होता है, दिनकर की कविता उनकी सच्ची तस्वीर रखती है।” -रामवृक्ष बेनीपुरी

“दिनकर जी सचमुच ही अपने समय के सूर्य की तरह तपे। मैंने स्वयं उस सूर्य का मध्याह्न भी देखा है और अस्ताचल भी। वे सौन्दर्य के उपासक और प्रेम के पुजारी भी थे। उन्होंने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ नामक विशाल ग्रन्थ लिखा है, जिसे पं. जवाहर लाल नेहरू ने उसकी भूमिका लिखकर गौरवन्वित किया था। दिनकर बीसवीं शताब्दी के मध्य की एक तेजस्वी विभूति थे।” -नामवर सिंह

दिनकर की प्रसिद्ध पंक्तियां

-रोक युधिष्ठर को न यहाँ,
जाने दे उनको स्वर्ग धीर पर फिरा हमें गांडीव गदा,
लौटा दे अर्जुन भीम वीर – (हिमालय से)

-क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो – (कुरुक्षेत्र से)

-मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। – (रश्मिरथी से)

– धन है तन का मैल, पसीने का जैसे हो पानी,
एक आन को ही जीते हैं इज्जत के अभिमानी।

रामधारी सिंह दिनकर जीवन-परिचय, रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय, कविताएं, भाषा शैली, प्रमुख कृतियाँ, Ramdhari Singh Dinkar Biography

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार

Geography Quiz-08 Lesson-04 Class-12

Geography Quiz-08 Lesson-04 Class-12

Geography Quiz-08 Lesson-04 Class-12 विश्व जनसंख्या- वितरण, घनत्व एवं वृद्धि कक्षा-12 भूगोल का आनलाईन टेस्ट Class 12 Geography free Online test

विश्व-जनसंख्या संरचना

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen – कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं

कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen | कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं | हिन्दी भाषा की आत्मकथाएं | Hindi me Aatmakathayen

1641-अर्द्धकथानक (ब्रजभाषा पद्य में रचित, बनारसीदास जैन)

1641-कुछ आप बीती कुछ जग बीती (भारतेंदु हरिश्चन्द्र)

1641-निज वृत्तान्त (अम्बिकादत्त व्यास)

1641-आत्मचरित्र राधाचरण गोस्वामी ( राधाचरण गोस्वामी)

1641-कल्याण मार्ग का पथिक (स्वामी श्रद्धानंद)

1910 मुझमें देव जीवन का विकास (स्‍वामी सत्‍यानन्‍द अग्निहोत्री)

1917 जीवन-चरित्र (स्‍वामी दयानन्‍द )

1921 आपबीती (भाई परमानन्द)

1923 आत्मकथा/सत्य के प्रयोग (महात्मा गांधी, अनुवाद हरिभाऊ उपाध्याय)

1933 मैं क्रान्तिकारी कैसे बना (श्री रामविलास शुक्ल)

1933- राख की लपटें (पुरुषोत्तम दास टंडन)

1935 तरुण के स्‍वप्‍न (सुभाष चन्‍द्र बोस, अनुवाद गिरिशचन्द्र जोशी)

1939 प्रवासी की कहानी (आत्‍मकथा, भवानी दयाल संन्यासी),

1939 आत्म चरित्र (प्रो. अक्षय मिश्र)

1941 मेरी आत्मकहानी (श्यामसुन्दरदास),

1942 आधे रास्ते (कन्हैयालाल माणिक्यलाल मुंशी)

1942- मेरी असफलताएं (गुलाब राय)

1944 एक पत्रकार की आत्मकथा (मूलचन्द अग्रवाल, दैनिक विश्वामित्र के सम्पादक)

1946 साधना के पथ पर (हरिभाऊ उपाध्याय),

1946 मेरी जीवन-यात्रा (राहुल सांकृत्‍यायन, पांच खंडों में, प्रथम खंड 1946, द्वितीय खंड 1947 और शेष खंड 1967 में)

1947 आत्मकथा (राजेन्द्र प्रसाद)

1947 प्रवासी की आतमकथा (भवानी दयाल संन्यासी)

1948 मेरा जीवन प्रवाह (वियोगी हरि)

1949 मेरी जीवन-गाथा (गणेशप्रसाद वर्णी)

1951 स्‍वतन्‍त्रता की खोज में (सत्‍यदेव परिव्राजक),

सिंहावलोकन (तीन खंडों में क्रमशः 1951,1952 और 1955, यशपाल),

1951- अज्ञात जीवन (अजितप्रसाद जैन),

1951- मेरा जीवन (अलगूराय शास्त्री)

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen

1952-परिव्राजक की आत्‍मकथा (शान्तिप्रिय द्विवेदी),

1952-चांद सूरज के बीरन (प्रथम भाग, देवेन्‍द्र सत्‍यार्थी)

1952-नीलयक्षिणी (देवेन्द्र सत्यार्थी)

1953 मुदर्रिस की आत्मकथा (कालिदास कपूर)

1954 जीवन-चक्र (गोगाप्रसाद उपाध्याय)

1956 यादों की परछाइयां (चतुरसेन शास्त्री)

1956 मेरी जीवन-यात्रा (जानकीदेवी बजाज, हिन्दी में किसी महिला द्वारा लिखित प्रथम आत्मकथा),

1957 आत्म-निरीक्षण (सेठ गोविन्ददास),

1957 आपबीती जगबीती (नरदेव शास्त्री)

1958 मेरी अपनी कथा (पदमुलाल पुन्नालाल बख्शी),

1958-अपनी बात (पदुमलाल पन्नालाल बख्शी)

1958 बचपन के वो दिन (देवराज उपाध्याय)

1960 अपनी खबर (पाण्‍डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’),

1960-मेरा जीवन वृतांत (तीन भाग) (मोरारजी देसाई)

1960-हिंदी सेवा के पचास वर्ष (प्रभाकर माचवे)

1960-पत्रकारिता के अनुभव (इन्द्र विद्यावाचस्पति),

1960-मानसिक चित्रावली (प्रिंसिपल दीवानचन्द)

1963-साठ वर्ष : एक रेखांकन (सुमित्रानन्‍दन पन्‍त),

1963-मेरी आत्मकहानी (प्रथम भाग, चतुरसेन शास्त्री),

1963-मेरे जीवन के अनुभव (14 अध्याय) (सन्तराम बी॰ ए॰),

1964 क्रान्तिपथ का पथिक (पृथ्वीसिंह आज़ाद),

1964-मेरा वकालती जीवन (गणेश वासुदेव मावलंकर)

1967 जीवन के चार अध्याय (भुवनेश्वर मिश्र माथव),

आत्मकथा और संस्मरण (पं. गिरधर शर्मा चतुर्वेदी)

1968 मज़दूर से मिनिस्टर (आबिद अली)

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen

1969 क्‍या भूलूँ क्‍या याद (हरिवंश राय बच्‍चन)

1970 नीड़ का निर्माण फिर (हरिवंश राय बच्‍चन),

1970-अपनी कहानी (वृन्दालाल वर्मा),

1970-निराला की आत्मकथा (सूर्यप्रसाद दीक्षित),

1970 यौवन के द्वार पर (देवराज उपाध्याय),

1970-विद्रोही की आत्मकथा (स्वाधीनता आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में, चतुर्भुज शर्मा)

1971 जब ज्योति जगी (स्वाधीनता आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में) – सुखदेवराज

1972-मेरा जीवन-वृत्तान्त (प्रथम भाग-1972, द्वितीय भाग-1974) – मोरार जी देसाई

1972-सैनिक परिवेश में (विजया नरवणे)

1972-अपनी कहानी (वृंदावनलाल वर्मा)

1974 अरुणायन (रामावतार अरुण),

1974-एक पुलिस अधिकारी की आत्मकथा (विश्वनाथ लाहिरी),

1974-मेरी फ़िल्मी आत्मकथा (बलराज साहनी)

1976 रसीदी टिकट (अमृता प्रीतम)

1976- कारागार (उर्मिला देवी)

1978 बसेरे से दूर (हरिवंशराय बच्‍चन)

1979 आधे सफ़र की पूरी कहानी (कृष्णचन्द्र)

1980 गर्दिश के दिन (भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों के आत्मकथ्य)- कमलेशवर

1983 घर का बात (रामविलास शर्मा)

1983 यादों के झरोखों से (बलराज साहनी)

1984-जहां मैं खड़ा हूं (रामदरश मिश्र),

1984-सत्यमेव जयते (देवकीनंदन प्रसाद)

1984-अपना अतीत (यादवेन्द्र शर्मा ‘चंद्र’)

1984-जहाँ मैं खड़ा हूँ (तीन भाग)(रामदरश मिश्र)

1984-जब युग बदला: एक सवतंत्रता सेनानी की आपबीती (शांति चरण पिड़ारा)

1984-एक पुलिस अधिकारी की आतमकथा (विशवनाथ लाहड़ी)

1984-मुक्तिबोध की आत्मकथा (विष्णुचन्द्र शर्मा)

1985-मेरा जीवन (शिवपूजन सहाय),

1985-दशद्वार से सोपान तक (हरिवंश राय बच्‍चन),

1985-मेरे सात जन्म (चार भाग)( हंसराज ‘रहबर’)

1986 टुकड़े-टुकड़े दास्तान (अमृतलाल नागर), मे

1986-रे सात जनम (हंसराज रहबर),

1986-ज़िन्दगी का सफ़र (बलराज मधोक)

1987 मेरी जीवनधारा (यशपाल जैन)

1988 अर्धकथा (डॉ॰ नगेन्द्र)

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen

1988 आत्म-परिचय (रेणु)

1988-जीवन क्या जिया (नामावर सिंह)

1988-सदाचार का ताबीज (हरिशंकर परसाई)

1988- टुकड़े-टुकड़े दास्तान (अमृतलाल नागर)

1989 तपती पगडंडियों पर पद-यात्रा (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1989 देख सत्तर शरद वंसत (राकेश गुप्त)

1990 दस्तक ज़िन्दगी की (प्रतिभा अग्रवाल)

1991 सहचर है समय (रामदरश मिश्र)

1992 जो मैंने जिया (कमलेश्वर)

1994 कहो व्‍यास कैसी कटी (गोपाल प्रसाद व्‍यास)

1995 मेरा कच्चा चिट्ठा (ब्रजमोहन व्यास)

1995-हम अनिकेतन ( नरेश मेहता)

1995- पाँचवा खंड ( उपेंद्रनाथ अश्क)

1995- चेहरे अनेक (उपेंद्रनाथ अश्क)

1996 मोड़ ज़िन्दगी का (प्रतिभा अग्रवाल)

1996 अपनी धरती अपने लोग (डॉ॰ रामविलास शर्मा)

1997 जूठन (ओमप्रकाश वाल्मीकि)

1997 अक्षरों के साये (अमृता प्रीतम),

1997-तिरस्कृत (सूरजपाल चौहान)

1997-यादों के चिराग़ (कमलेश्वर),

1997 लगता नहीं है दिल मेरा (कृष्णा अग्निहोत्री)

1998 क्रम और व्युत्क्रम (वीरेन्द्र सक्सेना)

1999 जलती हुई नदी (कमलेश्वर)

1999 बूँद बाबड़ी ( पद्मा सचदेव)

2000 ग़ालिब घुटी शराब (रवीन्द्र कालिया)

2001 मुड़-मुड़ कर देखता हूं (राजेन्द्र यादव),

2001-कहि न जाए का कहिए (भगवतीचरण वर्मा),

2001 वह जो यथार्थ था (अखिलेश)

2002 कस्तुरी कुंडल बसै (मैत्रेयी पुष्पा)

2002-कुछ कुछ अनकही ( शीला झुनझुनवाला)

2002-दोहरा अभिशाप (कौशल्या वैसन्ती)

2003 आज के अतीत (भीष्म साहनी),

2003-पावभर जीरे में ब्रह्मभोज (अशोक वाजपेयी),

2003 मैंने मांडू नहीं देखा (स्वदेश दीपक)

2004-और पंछी उड़ गया (विष्णु प्रभाकर),

2004-पंखहीन (विष्णु प्रभाकर),

2004-मुक्त गगन में (विष्णु प्रभाकर)

2005-हादसे (रमणिका गुप्ता)

2005-देहरी भई विदेश (20 लेखिकाओं के आत्मकथ्यों का संकलन, राजेन्द्र यादव)

2005-वसन्त से पतझड़ तक (रवीन्द त्यागी)

2005-शब्दकाया (सुनीता जैन)

2005-वनफूल (रमानाथ अवस्थी)

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen

2005-पीर पर्वत (बलराम)

2005-अपने-अपने पिंजरे (मोहनदास नैषिमारण्य)

2005-यादो की बरात ( जोश मलिहाबादी)

2007-गुज़रा कहां-कहां से (कन्हैयालाल नन्दन),

2007-एक अन्तहीन की तलाश (रामकमल राय),

2007-भूली नहीं जो यादें (दीनानाथ मलहोत्रा),

2007-यों ही जिया (डॉ॰ देवेश ठाकुर)

2008 राजपथ से लोकपथ पर (मृदुला गर्ग)

2008 सागर के इस पार से उस पार तक (कृष्ण बिहारी)

2009 कहना ज़रूरी था (कन्हैयालाल नन्दन),

2009-जोखिम (हृदयेश),

2009-मेरे दिन मेरे वर्ष (एकान्त श्रीवास्तव)

2010 और….और औरत (कृष्णा अग्निहोत्री),

2010-पानी बीच मीन प्यासी (मिथिलेश्वर)

2011 मैं था और मेरा आकाश (कन्हैयालाल नन्दन)

2012 और कहां तक कहें युगों की बात (मिथिलेश्वर),

2012-माटी पंख और आकाश (ज्ञानेश्वर फूले),

2013 कमबख़्त निन्दर – डॉ॰ नरेन्द्र मोहन।

दलित आत्मकथा

1927 अबलाओं का इंसाफ स्फुरना देवी सं. नैया (इसे आधुनिक हिंदी की प्रथम स्त्री-आत्मकथा माना जाता है परंतु 1882 में एक अज्ञात हिन्दू औरत द्वारा लीखी आत्मकथा ‘सीमंतनी उपदेश’ मिलती है, जिसका सम्पादन दलित चिंतक डॉ. धर्मवीर ने किया है।)

दर्द जो सहा मैंने… : आशा आपाराद

दोहरा अभिशाप (आत्मकथा) – कौशल्या वैसन्त्री

1995 अपने-अपने पिंजरे (भाग-1, मोहन नैमिशायराण)

1997 जूठन (ओमप्रकाश वाल्‍मीकि)

2000 अपने-अपने पिंजरे (भाग-2, मोहन नैमिशाययण)

2002 तिरस्कृत (डॉ॰ सूरजपाल चौहान)

2006 संतप्त (डॉ॰ सूरजपाल चौहान)

2007 नागफनी (रूपनारायण सोनकर)

2009 मेरा बचपन मेरे कंधों पर (श्‍योराज सिंह बेचैन)

2010 मेरी पत्नी और भेड़िया (डॉ॰ धर्मवीर), मुर्दहिया (भाग-1, प्रो॰ तुलसी राम)

2012 शिकंजे का दर्द (सुशीला टाकभोरे)

2013 मुर्दहिया (भाग-2, प्रो॰ तुलसी राम), खसम खुशी क्यों होय? (डॉ धर्मवीर)

महिला आत्मकथाएं

1927 अबलाओं का इंसाफ स्फुरना देवी सं. नैया (इसे आधुनिक हिंदी की प्रथम स्त्री-आत्मकथा माना जाता है परंतु 1882 में एक अज्ञात हिन्दू औरत द्वारा लीखी आत्मकथा ‘सीमंतनी उपदेश’ मिलती है, जिसका सम्पादन दलित चिंतक डॉ. धर्मवीर ने किया है। )

दर्द जो सहा मैंने… : आशा आपाराद

दोहरा अभिशाप (आत्मकथा) – कौशल्या वैसन्त्री

1956 मेरी जीवन-यात्रा (जानकीदेवी बजाज, हिन्दी में किसी महिला द्वारा लिखित पहली आत्मकथा)

1976 रसीदी टिकट (अमृता प्रीतम)

1990 दस्तक ज़िन्दगी की (प्रतिभा अग्रवाल)

1996 मोड़ ज़िन्दगी का (प्रतिभा अग्रवाल), जो कहा नहीं गया (कुसुम अंसल)

1997 लगता नहीं है दिल मेरा (कृष्णा अग्निहोत्री)

1999 बूंद बावरी (पदमा सचदेवा)

1999 सुनहु तात यह अमर कहानी (शिवानी)

सोने दे (शिवानी)

2000 कुछ कही कुछ अनकही (शीला झुनझुनवाला)

2002 कस्तूरी कुंडल बसै (मैत्रेयी पुष्पा)

2005 हादसे (रमणिका गुप्त)

शब्दकाया (सुनीता जैन)

2007 एक कहानी यह भी (मन्नू भंडारी), अन्या से अनन्या (प्रभा खेतान)

2008-राजपथ से लोकपथ पर (मृदुला गर्ग, राजमाता वसुन्धरा राजे सिंधिया)

2008-गुड़िया भीतर गुड़िया (मैत्रेयी पुष्पा)

2008-पिंजरे की मैना (चन्द्रकिरण सौनरेक्सा)

2010 और…..और औरत (कृष्णा अग्निहोत्री)

2012 शिकंजे का दर्द (सुशीला टाकभोरे)

‘लता ऐसा कहां से लाऊं’ (पद्मा सचदेवा)

‘एक थी रामरती’ (शिवानी)

‘कागजी है पैरहन’ (इस्मत चुगताई)

2015 ‘आपहुदरी’ (रमणिका गुप्त) (‘हादसे’ तथा ‘आपहुदरी’ दोनो आत्मकथा रमणिका गुप्त की हैं।)

कामायनी के विषय में कथन- https://thehindipage.com/kamayani-mahakavya/kamayani-ke-vishay-me-kathan/

संस्मरण और रेखाचित्र- https://thehindipage.com/sansmaran-aur-rekhachitra/sansmaran-aur-rekhachitra/

रामकुमार वर्मा Ramkumar Verma

रामकुमार वर्मा Ramkumar Verma जीवन परिचय

रामकुमार वर्मा Ramkumar Verma जीवन परिचय, रामकुमार वर्मा की साहित्यिक जानकारी, रामकुमार वर्मा की रचनाएं कविताएं, रामकुमार वर्मा का काल विभाजन

जन्म- 15 सितंबर, 1905
जन्म भूमि- सागर ज़िला, मध्यप्रदेश
मृत्यु-1990 ई.
अभिभावक – श्री लक्ष्मी प्रसाद वर्मा, श्रीमती राजरानी देवी
प्रसिद्धि- एकांकीकार, आलोचक और कवि
पुरस्कार-उपाधि-
देव पुरस्कार, (चित्ररेखा रचना पर)
पद्म भूषण(1963)
डी लिट् की उपाधि

रामकुमार वर्मा की साहित्यिक जानकारी

रामकुमार वर्मा की रचनाएं

एंकाकी

बादल की मृत्यु -1930

पृथ्वीराज की आंखें -1937

रेशमी टाई- 1939

चारूमित्रा- 1943

विभूति 1943

सप्तकिरण- 1947

रूपरंग -1948

कौमुदी महोत्सव -1949

ध्रुव तारिका -1950

ऋतुराज- 1952

रजत रश्मि -1952

दीपदान- 1954

कामकंदला -1955

बापू -1956

इंद्रधनुष -1957

रिमझिम -1957

परीक्षा

एक्टर्स

दस मिनट

पाञ्चजन्य

मयूरपंख

जूही के फूल

18 जुलाई की शाम

आलोचनाएं

साहित्य समालोचना ,1929

हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास ,1938

कबीर का रहस्यवाद, 1939

रामकुमार वर्मा की कविताएं

‘वीर हमीर’ (सन 1922 ई.)

‘चित्तौड़ की चिंता’ ( सन् 1929 ई.)

‘अंजलि’ (सन 1930 ई.)

‘अभिशाप’ (सन 1931 ई.)

‘हिन्दी गीतिकाव्य’ (सन 1931 ई.)

‘निशीथ’ (कविता-सन 1935 ई.)

‘हिमहास’

‘आकाश गंगा’

‘रूपराशि’

‘चित्ररेखा’ (कविता-सन 1936 ई.)

‘जौहर’ (कविता संग्रह- 1941 ई.)

रामकुमार वर्मा जीवन परिचय
रामकुमार वर्मा जीवन परिचय

नाटक

औरंगजेब की आखिरी रात

विजय पर्व

कला और कृपाण

अशोक का शोक

अग्निशिखा

जय वर्द्धमान

जय बंगला

‘एकलव्य’

‘उत्तरायण’

ओ अहल्या

संस्मरण

संस्मरणों के सुमन-1982

रामकुमार वर्मा का काल विभाजन

इनके द्वारा भी थोड़े से परिवर्तन के साथ शुक्ल के वर्गीकरण के आधार पर ही हिंदी साहित्य का काल विभाजन किया गया-

1 संधिकाल एवं चारण काल

(I) संधिकाल- वि.स. 750 से वि.स. 1000 तक
(II) चारणकाल- वि.स. 1000 से वि.स. 1375 तक

2 भक्तिकाल- वि.स. 1375 से वि.स. 1700 तक
3 रीतिकाल- वि.स. 1700 से वि.स.1900 तक
4 आधुनिककाल- वि.स.1900 से अब तक।

विशेष तथ्य

इनकी ‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ रचना में 693 ईस्वी से 1693 इसवी तक की काल अवधि का ही वर्णन किया गया है अर्थात यह एक अधूरी रचना है जिसमें केवल आदिकाल एवं भक्ति काल का ही उल्लेख किया गया है।

इन्होंने शुक्ल के वीर गाथा काल को ‘चारण काल’ एवं उससे पूर्व के काल को ‘संधिकाल’ कहकर पुकारा है संधि काल में ‘अपभ्रश’ की रचनाओं का समावेश किया गया है।

अपभ्रंस की बहुत सारी सामग्री समेट लेने के कारण ये अपभ्रंस के पहले कवि ‘स्वयंभू’ को ही हिंदी का पहला कवि मानने की भूल कर बैठे हैं।

इन्होंने भक्तिकाल के निर्गुण ‘ज्ञानाश्रयी’ काव्यधारा को ‘संत काव्य’ एवं ‘प्रेमाश्रयी’ काव्यधारा को ‘सूफी काव्य’ कहकर पुकारा।

इन्होंने अपनी पहली कविता मात्र 17 वर्ष की अल्प आयु में ‘देशसेवा’ शीर्षक से लिखी जिस पर इन्हें 51 रूपय का पुरस्कार भी मिला था।

’बादल की मृत्यु’ उनका पहला एकांकी है, जो फेंटेसी के रूप में अत्यंत लोकप्रिय हुआ।

डॉ. नगेंद्र रामकुमार वर्मा को आधुनिक ढंग का सर्व प्रथम एकांकीकार मानते हैं।

डा. सत्येंद्र ने इनके द्वारा रचित ‘बादल की मृत्यु’ एकांकी को हिंदी का आधुनिक ढंग का दूसरा एकांकी माना है।

नगेंद्र ने इनके द्वारा रचित ‘बादल की मृत्यु’ एकांकी को पश्चिमी ढंग के आधार पर रचित हिंदी का प्रथम एकांकी माना है।

15 सितंबर, 1905 को जन्मे डॉ. रामकुमार वर्मा की कविता, संगीत और कलाओं में गहरी रुचि थी।

1921 तक आते-आते युवक रामकुमार गाँधी जी के उनके असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए।

डॉ. रामकुमार वर्मा ने देश ही नहीं विदेशों में भी हिंदी का परचम लहराया।

1957 में वे मास्को विश्वविद्यालय के अध्यक्ष के रूप में सोवियत संघ की यात्रा पर गए।

1963 में उन्हें नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय ने शिक्षा सहायक के रूप में आमंत्रित किया।

1967 में वे श्रीलंका में भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष के रूप में भेजे गए।

उनके कृतित्व से प्रभावित होकर स्विट्जरलैंड के मूर विश्वविद्यालय ने उन्हें डीलिट की उपाधि से सम्मानित किया।

भगवतीचरण वर्मा ने कहा था, ‘‘ डॉ. रामकुमार वर्मा रहस्यवाद के पंडित हैं।

उन्होंने रहस्यवाद के हर पहलू का अध्ययन किया है। उस पर मनन किया है। उसको समझना हो और उसका वास्तविक और वैज्ञानिक रूप देखना हो तो उसके लिए श्री वर्मा की ‘चित्ररेखा’ सर्वश्रेष्ठ काव्य ग्रंथ होगा’’

“डॉ वर्मा ने एकांकी विधा का सृजन करके साहित्य में प्रयोगवाद को बढ़ावा दिया. डॉ धर्मवीर भारती, अजित कुमार, जगदीश गुप्त, मार्कण्डेय, दुष्यंत, राजनारायण, कन्हैयालाल नंदन, रमानाथ अवस्थी, ओंकारनाथ श्रीवास्तव, उमाकांत मालवीय और स्वयं मैं उनका छात्र रहा हूं”-कमलेश्वर

रामकुमार वर्मा की प्रसिद्ध पंक्तियां

-‘जिस देश के पास हिंदी जैसी मधुर भाषा है वह देश अंग्रेज़ी के पीछे दीवाना क्यों है? स्वतंत्र देश के नागरिकों को अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए। हमारी भावभूमि भारतीय होनी चाहिए। हमें जूठन की ओर नहीं ताकना चाहिए’’

-” कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। “- डॉ. रामकुमार वर्मा

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार