पाठ्य पुस्तकों का महत्त्व
पाठ्य पुस्तकों का महत्त्व | पाठ्य पुस्तकों का अर्थ | पाठ्य पुस्तकों की उपयोगिता | पाठ्य पुस्तकों के प्रकार | पाठ्य पुस्तकों के गुण दोष आदि
पाठ्य पुस्तकों का अर्थ
प्राचीन भारत में पाठ्य पुस्तक के लिए ‘ग्रंथ’ शब्द का प्रचलन था ।
ग्रंथ का अर्थ है- ‘गूंथना’ , ‘बांधना’, क्रम से रखना, नियमित ढंग से जोड़ना आदि।
पाठ्य पुस्तकों की उपयोगिता
पुस्तकों की निम्नलिखित आवश्यकताएं निम्नलिखित हैं :
पाठ्य पुस्तकें शिक्षा का मार्गदर्शन करती हैं।
पुस्तकें ज्ञान प्राप्ति का सशक्त साधन है।
पुस्तकों के सहारे व्यक्ति बिना गुरु के भी अपना ज्ञान अर्जित कर सकता है।
पुस्तके अनेक सूचनाओं का संग्रह हैं, ज्ञान प्राप्ति के लिए पुस्तक सर्व सुलभ एवं मितव्ययी साधन है।
पुस्तकें अर्जित ज्ञान का स्थायीकरण हैं।
पुस्तक मौलिक चिंतन की सशक्त पृष्ठभूमि तैयार करती है।
पुस्तकों से छात्रों में स्वाध्याय की भावना जागृत होती है, उच्च कक्षाओं के लिए पुस्तकें अनिवार्य हैं।
छात्र और शिक्षक दोनों को ही पुस्तकों के माध्यम से पाठ का ज्ञान रहता है।
पुस्तकें ज्ञान के साथ-साथ मनोरंजन करती हैं ।
मूल्याङ्कन में सहायक
शैक्षणिक नियोजन में सहायक
शिक्षण की पूरक के रूप में पाठ्यपुस्तकें
मूल्यांकन के आधार के रूप में
पाठ्य पुस्तकों के प्रकार
पाठ्यपुस्तक
पूरक पुस्तक
अभ्यास-पुस्तिका
व्याकरण पुस्तक
संदर्भ पुस्तक
एक अन्य विवेचन के अनुसार पुस्तकें दो प्रकार की होती हैं-
(I) सूक्ष्म अध्ययनार्थ पुस्तकें
(II) विस्तृत अध्ययनार्थ पुस्तकें
पाठ्य पुस्तकों के गुण
पाठ्य पुस्तक का बाह्य- पक्ष शरीर है तो आंतरिक पक्ष उसकी आत्मा है।
बाह्य पक्ष कितना भी सुंदर, मोहक और सुनियोजित हो किंतु अंतर्पक्ष के सार्थक,सार्थक,सशक्त और उपयोगी न होने तक पुस्तक निष्प्राण ही रहती है। इसलिए पुस्तक में संकलित सामग्री, उसकी भाषा, प्रस्तुतिकरण, शुद्धता और मूलांकन विधियों का सम्यक अन्वीक्षण किया जाना चाहिए।
1. आभ्यांतरिक गुण
2. बाह्य गुण
1. आवरण पृष्ठ – आवरण पृष्ठ आवरण पृष्ठ किसी भी पाठ्य पुस्तक का विज्ञापन होता है आवरण पृष्ठ में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:
I. गुणवत्ता –
II. चित्रांकन
III. पृष्ठों का रंग – प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थी चटकीले रंगों को पसंद करते हैं जबकि वरिष्ठ कक्षाओं के विद्यार्थियों को संजीदा रंग ज्यादा भाते हैं।
IV. सूचनात्मक पक्ष -आवरण पृष्ठ पर पुस्तक का नाम, लेखक का नाम और उद्देश्य -कथन अवश्य मुद्रित होना चाहिए
2. नाम
3. आकार
4. कागज की गुणवत्ता
5. मुद्रण
6. चित्र
7. जिल्द
8. मूल्य
आंतरिक गुण
आभ्यांतरिक गुण पुस्तक के वे भीतरी गुण है जो उसकी भाषा, शैली, पाठ्य विषय, आदि की दृष्टि से होते हैं।
पुस्तक के आंतरिक पक्ष का क्रम से विवेचन यहां प्रस्तुत है
1. विषय सामग्री- उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, भाषा -व्यवहार को ध्यान में रखते हुए, भाषा की पुस्तकों को सांविधानिक मूल्यों को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।
2. क्रमबद्धता/पाठ्य सामग्री का प्रस्तुतीकरण – पाठों को सरल से कठिन की ओर’ के सिद्धांत पर होना चाहिये।
3. पाठ्य सामग्री की भाषा
4. सोद्देश्यता
5. उपयुक्तता
6. रोचकता
7. जीवन से सम्बद्धता
8. आदर्शवादिता
9. व्यवहारिक
पाठ्य पुस्तकों के दोष
जीवन से असम्बद्धता
प्रयोजनहीनता
अनुपयुक्तता
नीरसता
आदर्शहीनता
अव्यावहारिकता और राजनीतिक विचारधाराओं का प्रभाव
अशुद्धता
कुसंपादन
शैलीगत अरोचकता
कविता
जब हम रो नही पाते
सुख से सो नही पाते
जब हम खो नही पाते
तब बचपन याद आता है
जब चिंता सताती है
हमारे तन को खाती है
जब भी मन नही मिलता
तब बचपन याद आता है
जब हम टूट जाते है
जब अपने रूठ जाते है
जब सपने सताते है
तब बचपन याद आता है
बच्चे हम रह नही पाते
बड़े हम हो नही पाते
खड़े भी रह नही पाते
तब बचपन याद आता है
किसी को सह नही पाते
अकेले रह नही पाते
किसी को कह नही पाते
तब बचपन याद आता है
खूबसूरत अभिव्यक्ति