रामकुमार वर्मा Ramkumar Verma

रामकुमार वर्मा Ramkumar Verma जीवन परिचय

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जन्म- 15 सितंबर, 1905
जन्म भूमि- सागर ज़िला, मध्यप्रदेश
मृत्यु-1990 ई.
अभिभावक – श्री लक्ष्मी प्रसाद वर्मा, श्रीमती राजरानी देवी
प्रसिद्धि- एकांकीकार, आलोचक और कवि
पुरस्कार-उपाधि-
देव पुरस्कार, (चित्ररेखा रचना पर)
पद्म भूषण(1963)
डी लिट् की उपाधि

रामकुमार वर्मा की साहित्यिक जानकारी

रामकुमार वर्मा की रचनाएं

एंकाकी

बादल की मृत्यु -1930

पृथ्वीराज की आंखें -1937

रेशमी टाई- 1939

चारूमित्रा- 1943

विभूति 1943

सप्तकिरण- 1947

रूपरंग -1948

कौमुदी महोत्सव -1949

ध्रुव तारिका -1950

ऋतुराज- 1952

रजत रश्मि -1952

दीपदान- 1954

कामकंदला -1955

बापू -1956

इंद्रधनुष -1957

रिमझिम -1957

परीक्षा

एक्टर्स

दस मिनट

पाञ्चजन्य

मयूरपंख

जूही के फूल

18 जुलाई की शाम

आलोचनाएं

साहित्य समालोचना ,1929

हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास ,1938

कबीर का रहस्यवाद, 1939

रामकुमार वर्मा की कविताएं

‘वीर हमीर’ (सन 1922 ई.)

‘चित्तौड़ की चिंता’ ( सन् 1929 ई.)

‘अंजलि’ (सन 1930 ई.)

‘अभिशाप’ (सन 1931 ई.)

‘हिन्दी गीतिकाव्य’ (सन 1931 ई.)

‘निशीथ’ (कविता-सन 1935 ई.)

‘हिमहास’

‘आकाश गंगा’

‘रूपराशि’

‘चित्ररेखा’ (कविता-सन 1936 ई.)

‘जौहर’ (कविता संग्रह- 1941 ई.)

रामकुमार वर्मा जीवन परिचय
रामकुमार वर्मा जीवन परिचय

नाटक

औरंगजेब की आखिरी रात

विजय पर्व

कला और कृपाण

अशोक का शोक

अग्निशिखा

जय वर्द्धमान

जय बंगला

‘एकलव्य’

‘उत्तरायण’

ओ अहल्या

संस्मरण

संस्मरणों के सुमन-1982

रामकुमार वर्मा का काल विभाजन

इनके द्वारा भी थोड़े से परिवर्तन के साथ शुक्ल के वर्गीकरण के आधार पर ही हिंदी साहित्य का काल विभाजन किया गया-

1 संधिकाल एवं चारण काल

(I) संधिकाल- वि.स. 750 से वि.स. 1000 तक
(II) चारणकाल- वि.स. 1000 से वि.स. 1375 तक

2 भक्तिकाल- वि.स. 1375 से वि.स. 1700 तक
3 रीतिकाल- वि.स. 1700 से वि.स.1900 तक
4 आधुनिककाल- वि.स.1900 से अब तक।

विशेष तथ्य

इनकी ‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ रचना में 693 ईस्वी से 1693 इसवी तक की काल अवधि का ही वर्णन किया गया है अर्थात यह एक अधूरी रचना है जिसमें केवल आदिकाल एवं भक्ति काल का ही उल्लेख किया गया है।

इन्होंने शुक्ल के वीर गाथा काल को ‘चारण काल’ एवं उससे पूर्व के काल को ‘संधिकाल’ कहकर पुकारा है संधि काल में ‘अपभ्रश’ की रचनाओं का समावेश किया गया है।

अपभ्रंस की बहुत सारी सामग्री समेट लेने के कारण ये अपभ्रंस के पहले कवि ‘स्वयंभू’ को ही हिंदी का पहला कवि मानने की भूल कर बैठे हैं।

इन्होंने भक्तिकाल के निर्गुण ‘ज्ञानाश्रयी’ काव्यधारा को ‘संत काव्य’ एवं ‘प्रेमाश्रयी’ काव्यधारा को ‘सूफी काव्य’ कहकर पुकारा।

इन्होंने अपनी पहली कविता मात्र 17 वर्ष की अल्प आयु में ‘देशसेवा’ शीर्षक से लिखी जिस पर इन्हें 51 रूपय का पुरस्कार भी मिला था।

’बादल की मृत्यु’ उनका पहला एकांकी है, जो फेंटेसी के रूप में अत्यंत लोकप्रिय हुआ।

डॉ. नगेंद्र रामकुमार वर्मा को आधुनिक ढंग का सर्व प्रथम एकांकीकार मानते हैं।

डा. सत्येंद्र ने इनके द्वारा रचित ‘बादल की मृत्यु’ एकांकी को हिंदी का आधुनिक ढंग का दूसरा एकांकी माना है।

नगेंद्र ने इनके द्वारा रचित ‘बादल की मृत्यु’ एकांकी को पश्चिमी ढंग के आधार पर रचित हिंदी का प्रथम एकांकी माना है।

15 सितंबर, 1905 को जन्मे डॉ. रामकुमार वर्मा की कविता, संगीत और कलाओं में गहरी रुचि थी।

1921 तक आते-आते युवक रामकुमार गाँधी जी के उनके असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए।

डॉ. रामकुमार वर्मा ने देश ही नहीं विदेशों में भी हिंदी का परचम लहराया।

1957 में वे मास्को विश्वविद्यालय के अध्यक्ष के रूप में सोवियत संघ की यात्रा पर गए।

1963 में उन्हें नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय ने शिक्षा सहायक के रूप में आमंत्रित किया।

1967 में वे श्रीलंका में भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष के रूप में भेजे गए।

उनके कृतित्व से प्रभावित होकर स्विट्जरलैंड के मूर विश्वविद्यालय ने उन्हें डीलिट की उपाधि से सम्मानित किया।

भगवतीचरण वर्मा ने कहा था, ‘‘ डॉ. रामकुमार वर्मा रहस्यवाद के पंडित हैं।

उन्होंने रहस्यवाद के हर पहलू का अध्ययन किया है। उस पर मनन किया है। उसको समझना हो और उसका वास्तविक और वैज्ञानिक रूप देखना हो तो उसके लिए श्री वर्मा की ‘चित्ररेखा’ सर्वश्रेष्ठ काव्य ग्रंथ होगा’’

“डॉ वर्मा ने एकांकी विधा का सृजन करके साहित्य में प्रयोगवाद को बढ़ावा दिया. डॉ धर्मवीर भारती, अजित कुमार, जगदीश गुप्त, मार्कण्डेय, दुष्यंत, राजनारायण, कन्हैयालाल नंदन, रमानाथ अवस्थी, ओंकारनाथ श्रीवास्तव, उमाकांत मालवीय और स्वयं मैं उनका छात्र रहा हूं”-कमलेश्वर

रामकुमार वर्मा की प्रसिद्ध पंक्तियां

-‘जिस देश के पास हिंदी जैसी मधुर भाषा है वह देश अंग्रेज़ी के पीछे दीवाना क्यों है? स्वतंत्र देश के नागरिकों को अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए। हमारी भावभूमि भारतीय होनी चाहिए। हमें जूठन की ओर नहीं ताकना चाहिए’’

-” कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। “- डॉ. रामकुमार वर्मा

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार