अमीर खुसरो Amir Khusro

अमीर खुसरो Amir Khusro जीवन-परिचय

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Amir Khusro
Amir Khusro

जन्मकाल- 1255 ई. (1312 वि.)

मृत्युकाल – 1324 ई. (1381 वि.)

जन्मस्थान – गांव- पटियाली, जिला-एटा, उत्तर प्रदेश

मूलनाम- अबुल हसन

उपाधि- खुसरो सुखन (यह उपाधि मात्र 12 वर्ष की अल्प आयु में बुजर्ग विद्वान ख्वाजा इजुद्दीन द्वारा प्रदान की गई थी)

उपनाम-
1. तुर्क-ए-अल्लाह
2. तोता-ए-हिन्द ( हिंदुस्तान की तूती)

गुरु का नाम- निजामुद्दीन ओलिया

अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु पर कहे-
गोरी सोवे सेज पर मुख पर डारे केस
चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देस

अमीर खुसरो Amir Khusro की रचनाएं

खालिकबारी

पहेलियां

मुकरियाँ

ग़जल

दो सुखने

नुहसिपहर

नजरान-ए-हिन्द

हालात-ए-कन्हैया

अमीर खुसरो जीवन-परिचय एवं रचनाएं

विशेष तथ्य

इनकी खालिकबारी रचना एक शब्दकोश है यह रचना गयासुद्दीन तुगलक के पुत्र को भाषा ज्ञान देने के उद्देश्य से लिखी गई थी।

इनकी ‘नूहसिपहर’ है रचना में भारतीय बोलियों के संबंध में विस्तार से वर्णन किया गया है।

इनको हिंदू-मुस्लिम समन्वित संस्कृति का प्रथम प्रतिनिधि कवि माना जाता है।

यह खड़ी बोली हिंदी के प्रथम कवि माने जाते हैं।

खुसरो की हिंदी रचनाओं का प्रथम संकलन ‘जवाहरे खुसरवी’ नाम से सन 1918 ईस्वी में मौलाना रशीद अहमद सलाम ने अलीगढ़ से प्रकाशित करवाया था।

इसी प्रकार का द्वितीय संकलन 1922 ईसवी में ‘ब्रजरत्नदास’ में नागरी प्रचारिणी सभा काशी के माध्यम से ‘खुसरो की हिंदी कविता’ नाम से करवाया।

रामकुमार वर्मा ने इनको ‘अवधी’ का प्रथम कवि कहा है|

यह अपनी पहेलियों की रचना के कारण सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए हैं|

इन्होंने गयासुद्दीन बलबन से लेकर अलाउद्दीन और कुतुबुद्दीन मुबारक शाह तक कई पठान बादशाहों का जमाना देखा था।

यह आदि काल में मनोरंजन पूर्ण साहित्य लिखने वाले प्रमुख कवि माने जाते हैं।

इनका प्रसिद्ध कथन- “मैं हिंदुस्तान की तूती हूं, अगर तुम भारत के बारे में वास्तव में कुछ पूछना चाहते हो तो मुझसे पूछो”

खुसरो की पहेलियां

“एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।
चारों और वह थाली फिरे। मोती उससे एक ना गिरे।” (आकाश)

“एक नार ने अचरज किया। सांप मारी पिंजडे़ में दिया।
जों जों सांप ताल को खाए। सूखे ताल सांप मर जाए|| (दिया-बत्ती)

“अरथ तो इसका बूझेगा। मुँह देखो तो सुझेगा।” (दर्पण)

अमीर खुसरो Amir Khusro की मुकरियां

1.
खा गया पी गया
दे गया बुत्ता
ऐ सखि साजन?
ना सखि कुत्ता!

2.
लिपट लिपट के वा के सोई
छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत बजे तो ताड़ा
ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!

3.
रात समय वह मेरे आवे
भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा
ऐ सखि साजन? ना सखि तारा!

4.
नंगे पाँव फिरन नहिं देत
पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत
पाँव का चूमा लेत निपूता
ऐ सखि साजन? ना सखि जूता!

5.

ऊंची अटारी पलंग बिछायो
मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां भयी आनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि चांद!

6.
जब माँगू तब जल भरि लावे
मेरे मन की तपन बुझावे
मन का भारी तन का छोटा
ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा!

7.
वो आवै तो शादी होय
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल
ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल!

8.
बेर-बेर सोवतहिं जगावे
ना जागूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की
ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी!

9.
अति सुरंग है रंग रंगीले
है गुणवंत बहुत चटकीलो
राम भजन बिन कभी न सोता
ऐ सखि साजन? ना सखि तोता!

10.

आप हिले और मोहे हिलाए
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा
ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा!

11.
अर्ध निशा वह आया भौन
सुंदरता बरने कवि कौन
निरखत ही मन भयो अनंद
ऐ सखि साजन? ना सखि चंद!

12.
शोभा सदा बढ़ावन हारा
आँखिन से छिन होत न न्यारा
आठ पहर मेरो मनरंजन
ऐ सखि साजन? ना सखि अंजन!

13.
जीवन सब जग जासों कहै
वा बिनु नेक न धीरज रहै
हरै छिनक में हिय की पीर
ऐ सखि साजन? ना सखि नीर!

14.
बिन आये सबहीं सुख भूले
आये ते अँग-अँग सब फूले
सीरी भई लगावत छाती
ऐ सखि साजन? ना सखि पाती!

15.

सगरी रैन छतियां पर राख
रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार
ऐ सखि साजन? ना सखि हार!

16.
पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो
जब उतरयो तो पसीनो आयो
सहम गई नहीं सकी पुकार
ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार!

17.
सेज पड़ी मोरे आंखों आए
डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा में अपना
ऐ सखि साजन? ना सखि सपना!

18.
बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम
ऐ सखि साजन? ना सखि राम!

19.
सरब सलोना सब गुन नीका
वा बिन सब जग लागे फीका
वा के सर पर होवे कोन
ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! लोन(नमक)

20.

सगरी रैन मिही संग जागा
भोर भई तब बिछुड़न लागा
उसके बिछुड़त फाटे हिया’
ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक)

21.
राह चलत मोरा अंचरा गहे।
मेरी सुने न अपनी कहे
ना कुछ मोसे झगडा-टंटा
ऐ सखि साजन ना सखि कांटा!

22.
बरसा-बरस वह देस में आवे,
मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।
वा खातिर मैं खरचे दाम,
ऐ सखि साजन न सखि! आम।।

23.
नित मेरे घर आवत है,
रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा,
ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।।

24.
आठ प्रहर मेरे संग रहे,
मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना,
ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।।

25.
घर आवे मुख घेरे-फेरे,
दें दुहाई मन को हरें,
कभू करत है मीठे बैन,
कभी करत है रुखे नैंन।
ऐसा जग में कोऊ होता,
ऐ सखि साजन न सखि! तोता।।

अमीर खुसरो Amir Khusro की पहेलियां

अमीर खुसरो जीवन-परिचय एवं रचनाएं

1.
गोश्त क्यों न खाया?
डोम क्यों न गाया?
उत्तर—गला न था

2.
जूता पहना नहीं
समोसा खाया नहीं
उत्तर— तला न था

3.
अनार क्यों न चखा?
वज़ीर क्यों न रखा?
उत्तर— दाना न था (अनार का दाना औरदाना=बुद्धिमान)

4.
सौदागर चे मे बायद? (सौदागर कोक्या चाहिए )
बूचे (बहरे) को क्या चाहिए?
उत्तर (दो कान भी, दुकान भी)

5.
तिश्नारा चे मे बायद? (प्यासे को क्याचाहिए)
मिलाप को क्या चाहिए
उत्तर—चाह (कुआँ भी और प्यार भी)

6.

शिकार ब चे मे बायद करद? ( शिकारकिस चीज़ से करना चाहिए)
क़ुव्वते मग़्ज़ को क्या चाहिए? (दिमाग़ीताक़त को बढ़ाने के लिए क्या चाहिए)
उत्तर— बा दाम (जाल के साथ)और बादाम

7.
रोटी जली क्यों? घोडा अडा क्यों? पानसडा क्यों ?
उत्तर— फेरा न था

8.
पंडित प्यासा क्यों? गधा उदास क्यों ?
उत्तर— लोटा न था

9.
उज्जवल बरन अधीन तन, एक चित्तदो ध्यान।
देखत मैं तो साधु है, पर निपट पार कीखान।।

उत्तर – बगुला (पक्षी)

10.
एक नारी के हैं दो बालक, दोनों एकहिरंग।
एक फिर एक ठाढ़ा रहे, फिर भी दोनोंसंग।

उत्तर – चक्की।

11.

आगे-आगे बहिना आई, पीछे-पीछेभइया।
दाँत निकाले बाबा आए, बुरका ओढ़ेमइया।।

उत्तर – भुट्टा

12.
चार अंगुल का पेड़, सवा मन का फ्ता।
फल लागे अलग अलग, पक जाएइकट्ठा।

उत्तर – कुम्हार की चाक

13.
अचरज बंगला एक बनाया, बाँस नबल्ला बंधन धने।
ऊपर नींव तरे घर छाया, कहे खुसरोघर कैसे बने।।

उत्तर – बयाँ पंछी का घोंसला

14.

माटी रौदूँ चक धर्रूँ, फेर्रूँ बारम्बर।
चातुर हो तो जान ले मेरी जात गँवार।।

उत्तर – कुम्हार

15.

गोरी सुन्दर पातली, केहर काले रंग।
ग्यारह देवर छोड़ कर चली जेठ केसंग।।

उत्तर – अहरह की दाल।

16.
ऊपर से एक रंग हो और भीतरचित्तीदार।
सो प्यारी बातें करे फिकर अनोखीनार।।

उत्तर – सुपारी

17.
बाल नुचे कपड़े फटे मोती उतार।
यह बिपदा कैसी बनी जो नंगी कर दईनार।।

उत्तर – भुट्टा (छल्ली)

18.
एक नार कुँए में रहे,
वाका नीर खेत में बहे।
जो कोई वाके नीर को चाखे,
फिर जीवन की आस न राखे।।

उत्तर – तलवार

19.
एक जानवर रंग रंगीला,
बिना मारे वह रोवे।
उस के सिर पर तीन तिलाके,
बिन बताए सोवे।।

उत्तर – मोर।

20.
चाम मांस वाके नहीं नेक,
हाड़ मास में वाके छेद।
मोहि अचंभो आवत ऐसे,
वामे जीव बसत है कैसे।।

उत्तर – पिंजड़ा।

21.

स्याम बरन की है एक नारी,
माथे ऊपर लागै प्यारी।
जो मानुस इस अरथ को खोले,
कुत्ते की वह बोली बोले।।

उत्तर – भौं (भौंए आँख के ऊपर होतीहैं।)

22.
एक गुनी ने यह गुन कीना,
हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखा जादूगर का हाल,
डाले हरा निकाले लाल।

उत्तर – पान।

23.
एक थाल मोतियों से भरा,
सबके सर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे,
मोती उससे एक न गिरे।

उत्तर – आसमान

24.
गोल मटोल और छोटा-मोटा,
हर दम वह तो जमीं पर लोटा।
खुसरो कहे नहीं है झूठा,
जो न बूझे अकिल का खोटा।।

उत्तर – लोटा।

25.

श्याम बरन और दाँत अनेक,
लचकत जैसे नारी।
दोनों हाथ से खुसरो खींचे
और कहे तू आ री।।

उत्तर – आरी।

26.
हाड़ की देही उज् रंग,
लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना खून किया
वाका सर क्यों काट लिया।

उत्तर – नाखून।

26.
बाला था जब सबको भाया,
बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाव,
अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव।।

उत्तर – दिया।

27.
नारी से तू नर भई
और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे
कोइलो-कोइलो लोय।।

उत्तर – कोयल।

28.
एक नार तरवर से उतरी,
सर पर वाके पांव
ऐसी नार कुनार को,
मैं ना देखन जाँव।।

उत्तर – मैंना।

29.
सावन भादों बहुत चलत है
माघ पूस में थोरी।
अमीर खुसरो यूँ कहें
तू बुझ पहेली मोरी।।

उत्तर – मोरी (नाली)

30.
तरवर से इक तिरिया उतरी उसने बहुतरिझाया
बाप का उससे नाम जो पूछा आधानाम बताया
आधा नाम पिता पर प्यारा बूझ पहेलीमोरी
अमीर ख़ुसरो यूँ कहें अपना नामनबोली

अमीर खुसरो की उलटबांसियां

भार भुजावन हम गए, पल्ले बाँधी ऊन।
कुत्ता चरखा लै गयो, काएते फटकूँगी चून।।

काकी फूफा घर में हैं कि नायं, नायं तो नन्देऊ
पांवरो होय तो ला दे, ला कथूरा में डोराई डारि लाऊँ।।

खीर पकाई जतन से और चरखा दिया जलाय।
आयो कुत्तो खा गयो, तू बैठी ढोल बजाय, ला पानी पिलाय।

भैंस चढ़ी बबूल पर और लपलप गूलर खाय।
दुम उठा के देखा तो पूरनमासी के तीन दिन।।

पीपल पकी पपेलियाँ, झड़ झड़ पड़े हैं बेर।
सर में लगा खटाक से, वाह रे तेरी मिठास।।

लखु आवे लखु जावे, बड़ो कर धम्मकला।
पीपर तन की न मानूँ बरतन धधरया, बड़ो कर धम्मकला।।

भैंस चढ़ी बबूल पर और लप लप गूलर खाए।
उतर उतर परमेश्वरी तेरा मठा सिरानों जाए।।

भैंस चढ़ी बिटोरी और लप लप गूलर खाए।
उतर आ मेरे साँड की, कहीं हिफ्ज न फट जाए।।

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार

अवधी भाषा Avadhi Bhasha का विकास व रचनाएं

अवधी भाषा Avadhi Bhasha का विकास व रचनाएं

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काव्य भाषा के रूप में अवधी का उदय और विकास

अवधी अर्धमगधी अपभ्रंश से विकसित है।

यह पूर्वी हिंदी बोली की यह प्रतिनिधि बोली है। इसके अन्य नाम – कोसली, पूरबिया, बैंसवाड़ी है।

भाषा के रूप में अवधी भाषा का प्रथम स्पष्ट उल्लेख सर्वप्रथम ‘खालिकबारि’ (अमीर खुसरो) तथा दूसरा प्रयोग ‘उक्तिव्यक्तिप्रकरण’ (दामोदर शर्मा) में मिलता है।

अवधी भाषा का विकास व रचनाएं
अवधी भाषा का विकास व रचनाएं

‘उक्तिव्यक्तिप्रकरण’ में 9-13वीं सदी की बोलियों के नमूने को कोसली तथा अपभ्रष्ट कहा गया है।

कोसली का उल्लेख ‘कुवलयमाला’ (9वी सदी) ग्रंथ में मिलता है

कोसल प्रदेश (लखीमपुरी, खेरी, बहराइच, गोडा. बाराबंकी लखनक, सीतापुर, उन्नाव, फैजाबाद, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली ) की बोली होने कारण कोसली नामकरण हुआ है।

बैंसवाड़ा अवध का एक भाग मात्र होने के कारण इसका नामकरण बैसवाड़ी हुआ।

अवधी का प्रथम ज्ञात काव्य ‘लोरकहा’ या ‘चंदायन’ (मुल्ला दाऊद,1979 ई) है।

जायसी अवधी के प्रथम कवि हैं, जिनके ग्रंथ ‘पद्मावत’ में अवधी अपने ठेठ रूप में प्रयुक्त होने के उपरांत भी अभिव्यंजना की दृष्टि से अत्यन्त सशक्त है।

तुलसीदास हिंदी के एकमात्र कवि हैं, जिन्होंने ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं में साधिकार लिखा है।

सूफी काव्य की भाषा प्रायः अवधी है। शुक्लजी के अनुसार अनुराग बासुरी की भाषा सभी सूफी रचनाओं में बहुत अधिक संस्कृत गर्भित है।

शुक्लजी नूर मुहम्मद को सूफी काव्य-परंपरा का अंतिम कवि मानते हैं।

अवधी की प्रसिद्ध रचनाएँ

चंदायन (1370)- मुल्ला दाऊद

हरिचरित (1400 ई. के बाद) -लालदास

रामजन्म (15वीं सदी का अंतिम चरण) सूरजदास

सत्यवती कथा (1501) – ईश्वरदास

मृगावती (1503) – कुतुबन

पद्मावत (1527-1540), अखरावट, आखिरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा (चित्रावत) मसलानामा – जायसी

मधुमालती (1545-) मंझन

बरवै रामायण, रामललानहछू (पूर्वी अवधी) – तुलसी

जानकी मंगल, पार्वती मंगल (पश्चिमी अवधी)- तुलसी

रामचरितमानस (1576 ) (बैसवाड़ी अवधी)- तुलसीदास

अवध विलास- लालदास

सीतायन – रामप्रियाशरण

अवध सागर – जानकी रसिकशरण

रामाश्वमेघ – मधुसूदनदास

कवितावली, रामायण, रामचरित – रामचरणदास

भावनापचीसी, समय प्रबंच, माधुरी प्रकाश – कृपाराम प्रेमप्रधान

सियाराम रसमंजरी- जानकी चरण

बरवै नायिका भेद (1600 ई.) रहीम

चित्रावली (1613 ई.) – उसमान

रसरतन (1618 ई.) – पुहकर

ज्ञानदीप (1619 ई.) – शेखनबी

कनकावती, कामलता, मधुकर, मालती, रतनावती छीता- न्यामत खाँ (जानकवि) (1659-1707) (21 प्रेमाख्यानक काव्य, कुल रचनाएँ 70)

पुहुपावती (1669 ई.)- दुखहरन दास

पुहुपावती (1725)- हुसैन अली

हंस जवाहिर (1736 ई.) – कासिमशाह

इंद्रावती- (1744)- नूर मुहम्मद

अनुराम बांसुरी (1764), नल दमन (1764-65)- नूर मुहम्मद

युसूफ जुलेखा- (1790) शेख निसार

अखरावटी, प्रेमचिनगारी (19वीं सदी का पूर्वाद्ध) शाह नजफ सलोनी

नूरजहाँ (1905)- ख्वाजा अहमद

माया प्रेम रस (1915)- शेख रहीम

प्रेम दर्पण (1917)- कवि नसीर

रामध्यान मंजरी- अग्रदास

अष्टयाम- नाभादास

हनुमन्नाटक- हृदयराम

अवधी भाषा का विकास व रचनाएं

ब्रजभाषा साहित्य का विकास

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ

कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत

हालावाद विशेष

संस्मरण और रेखाचित्र

कामायनी के विषय में कथन

भारत का स्वर्णिम अतीत : तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय

हिन्दी साहित्य विभिन्न कालखंडों के नामकरण

हिन्दी साहित्य काल विभाजन

भारतीय शिक्षा अतीत और वर्तमान

मुसलिम कवियों का कृष्ण प्रेम

हाइकु कविता (Haiku)

संख्यात्मक गूढार्थक शब्द

ब्रजभाषा साहित्य Brajbhasha Sahitya का विकास

ब्रजभाषा साहित्य Brajbhasha Sahitya का विकास

ब्रजभाषा साहित्य Brajbhasha Sahitya का विकास, ब्रजभाषा का व्याकरण, ब्रजभाषा के प्रमुख ग्रंथ, ब्रजभाषा के प्रसिद्ध लेखक

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Brajbhasha sahitya ka vikas

काव्यभाषा के रूप में ब्रजभाषा का विकास : ब्रजभाषा साहित्य Brajbhasha Sahitya

पश्चिमी हिंदी बोलियों की प्रतिनिधि बोली ब्रजभाषा है। जिसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है।

18वीं सदी से पूर्व यह पिंगल तथा भाखा नाम से प्रसिद्ध थी।

शूरसेन (मथुरा, अलीगढ़ और आगरा) का दूसरा नाम ब्रजमडल है अतः यहाँ की भाषा ब्रजभाषा है।

विकास- ब्रजभाषा का विकास 1000 ई के आसपास हुआ।

ब्रजभाषा ओकार बहुला भाषा है। जैसे – पहिलो, दूजो। बुंदेली और ब्रजभाषा में घनिष्ठ संबंध है।

ब्रजभाषा की सबसे प्राचीन ज्ञात कृति अग्रवाल कवि विरचित ‘प्रद्युम्न चरित’ (1354 ई.) है

सूरदास जी से पूर्व ब्रजभाषा के कवियों में विष्णुदास सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हुए हैं।

काव्यभाषा के रूप में शुद्ध ब्रजभाषा के प्रथम कवि अमीर खुसरो (1253-1325 ई) माने जाते हैं।

ब्रजभाषा को साहित्यिक रूप देने और साहित्य के चर्मोत्कर्ष पर पहुंचाने में सूर एवं नंददास ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ब्रजभाषा के प्रथम महान् कवि सूरदास माने जाते हैं तो काव्य-भाषा के माधुर्य की दृष्टि से नंददास सर्वोपरि हैं।

भाषा विकास की दृष्टि से रीतिकाल ब्रजभाषा का ‘स्वर्णकाल’ कहलाता है।

आधुनिक युग में भारतेंदु हरिश्चंद्र, जगन्नाथ दास रत्नाकर, सत्यनारायण कविरत्न ने ब्रजभाषा के पुनरुद्धार का प्रयास किया। ये तीनों आधुनिक ब्रजभाषा काव्य के बृहत्त्रयी है।

ब्रजभाषा के संबंध में प्रसिद्ध कथन

ब्रजभाषा का जो माधुर्य हम सूरसागर में पाते हैं, वहीं माधुर्य हम गीतावली और श्रीकृष्ण गीतावली में भी पाते है।- रामचंद्र शुक्ल

सूरदास की रचना में संस्कृत की कोमलकांत पदावली और अनुप्रासों की वह विचित्र योजना नहीं है, जो गोस्वामीजी की रचना में है।- रामचंद्र शुक्ल

सूरसागर रचना इतनी प्रगल्भ और कलापूर्ण है कि आगे आने वाले कवियों की श्रृंगार और वात्सल्य की उक्तियाँ सूर की जूठी-सी जान पडती हैं।- रामचंद्र शुक्ल

घनानंद की सी विशुद्ध सरस और शक्तिशाली ब्रजभाषा लिखने में और कोई कवि समर्थ नहीं हुआ। प्रेममार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबांदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ।- रामचन्द्र शुक्ल

लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग-वैचित्र्य की जो छटा घनानंद में दिखाई पड़ी. वह फिर आधुनिक काल में ही देखी गई। -रामचन्द्र शुक्ल

पद्माकर की भाषा बहुत ही चलती, स्वाभाविक और साफ सुथरी है।- रामचन्द्र शुक्ल

सुंदरदास की ब्रजभाषा साहित्यिक, सरस और काव्य की मँजी हुई ब्रजभाषा है।- रामचन्द्र शुक्ल

लोकोक्तियों के मधुर उपयोग के लिए शुक्लजी ने ठाकुर की भाषा की प्रशंसा की है।

ब्रजनाथ ने घनानंद को ब्रजभाषा प्रवीण कहा है।

कल्पना की समाहार शक्ति एवं भाषा की समाहार शक्ति की दृष्टि से बिहारी ब्रजभाषा का सामर्थ्य आचार्य शुक्ल ने भी स्वीकार किया है।

ब्रजभाषा की प्रसिद्ध रचनाएँ

प्रद्युम्नचरित (1354 ई.) -अग्रवाल कवि

स्वर्गारोहण (1435 ई.) रुक्मिणी मंगल, महाभारत, स्नेह लीला (भ्रमरगीत)- विष्णुदास

वैताल पचीसी (1489 ई.)- मानिक कवि

छिताईवार्ता (1590 ई.)- नारायण दास

गीताभाषा (1500 ई)- मेघनाथ

लखमन सेन पद्मावती कथा (1459 ई)- दामों

मधुमालती- चतुर्भुजदास (प्रेमाख्यानक हिंदू कवि)

सूरसागर सूरसारावली, साहित्यलहरी – सूरदास

विनयपत्रिका (1653 संवत) कविताबली, गीतावली, कृष्णगीतावली- तुलसीदास

सुजान रसखान, प्रेमवारिका (रचना 1614 ई., दामलीला, अष्टयाम- रसखान

सुदामाचरित (1601) नरोत्तमदास

रामचंद्रिका (1601 है)- केशवदारा 13. रसकलश (1931 ई.)- हरिऔध

उद्धवशतक (1931 ई.), हरिश्चंद्र, गंगावतरण (1927 ई)- जगन्नाथदास रत्नाकर

हृदयतरंग (संपादक-बनारसी दास चतुर्वेदी) सत्यनारायण कविरत्न

अवधी भाषा का विकास व रचनाएं

ब्रजभाषा साहित्य का विकास

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ

कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत

हालावाद विशेष

संस्मरण और रेखाचित्र

कामायनी के विषय में कथन

भारत का स्वर्णिम अतीत : तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय

हिन्दी साहित्य विभिन्न कालखंडों के नामकरण

हिन्दी साहित्य काल विभाजन

भारतीय शिक्षा अतीत और वर्तमान

मुसलिम कवियों का कृष्ण प्रेम

हाइकु कविता (Haiku)

संख्यात्मक गूढार्थक शब्द

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद, काव्य गुण क्या हैं?, काव्य-गुणों की संख्या, गुण किसे कहते हैं? प्रसाद गुण, ओज गुण, माधुर्य गुण

काव्य के सौंदर्य की वृद्धि करने वाले और उसमें अनिवार्य रूप से विद्यमान रहने वाले धर्म को गुण कहते हैं।

आचार्य वामन द्वारा

प्रवर्तित रीति सम्प्रदाय को ही गुण सम्प्रदाय भी कहा नाता है आचार्य वामन ने गुण को स्पष्ट करते हुए स्वरचित ‘काव्यालंकार सूत्रवृत्ति’ ग्रंथ में लिखा है-
“काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा: गुणाः।
तदतिशयहेतवस्त्वलंकाराः ॥”
अर्थात् शब्द और अर्थ के शोभाकारक धर्म को गुण कहा जाता है वामन के अनुसार गुण’ का इनको अनुपस्थिति में काव्य का अस्तित्व असंभव है।

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद
काव्य गुण परिभाषा एवं भेद

डॉ नगेन्द्र के अनुसार–

“गुण काव्य के उन उत्कर्ष साधक तत्वों को कहते हैं जो मुख्य रूप से रस के और गौण रूप से शब्दार्थ के नित्य धर्म हैं|”

गुण के भेद

भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में निम्नलिखित दस गुण स्वीकार किये है-

“श्लेष: प्रसाद: समता समधि
माधुर्यमोजः पदसौकुमार्यम्।।
अर्थस्य च व्यक्तिरुदारता च,
कान्तिश्च काव्यस्य गुणाः दशैते।”

अर्थात् काव्य में निम्न दस गुण होते हैं-

श्लेष

प्रसाद

समता

समाधि

माधुर्य

ओज

पदसौकुमार्य

अर्थव्यक्ति

उदारता

कांति

भरत के पश्चात भामह ने भी दस को स्वीकार किए हैं तथा प्रसाद और माधुर्य की सर्वाधिक प्रशंसा की है।

भामह के पश्चात दंडी ने भी भारत के अनुसार ही दस गुण स्वीकार की है।

दंडी के बाद वामन ने मुख्य दो प्रकार के गुण माने हैं- शब्द गुण एवं अर्थ गुण।

वामन ने दोनों गुणों में प्रत्येक के दस-दस भेद किए हैं।

वामन के पश्चात आचार्य भोजराज ने अपने सरस्वती कंठाभरण में सर्वाधिक 48 गुण, 24 शब्द गुण तथा 24 अर्थ गुण स्वीकार किए हैं।

उन्होंने शब्द गुणों को बाह्यगुण तथा अर्थ गुणों को अभ्यंतर गुण कहा था।

अग्नि पुराण में 19 काव्य गुण स्वीकार किए गए हैं।

इसके पश्चात आचार्य मम्मट ने अपने काव्यप्रकाश में तीन गुण स्वीकार की है- 1. प्रसाद 2. ओज 3. माधुर्य।

आचार्य विश्वनाथ ने ‘साहित्य दर्पण’ में तथा पंडितराज जगन्नाथ ने ‘रसगंगाधर’ में उक्त तीन गुणों को स्वीकार किया है।

प्रसाद गुण

ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ते ही अर्थ ग्रहण हो जाता है।

वह प्रसाद गुणों से युक्त मानी जाती है अर्थात् जब बिना किसी विशेष प्रयास के काव्य का अर्थ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है उसे प्रसाद गुण युक्त काव्य कहते हैं।

स्वच्छता एवं स्पष्टता प्रसाद गुण की विशेषता मानी जाती है।

यह समस्त रचनाओं और रसों में रहता है।

इसमें आए शब्द सुनते ही अर्थ के द्योतक होते हैं।

आचार्य भिखारीदास ने प्रसाद गुण का लक्षण इस प्रकार प्रकट किया है:-

“मन रोचक अक्षर परै, सोहे सिथिल शरीर।
गुण प्रसाद जल सूक्ति ज्यों, प्रगट अरथ गंभीर।॥” जैसे:-

“हे प्रभु आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिए,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए,

लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें,
ब्रह्मचारी धर्म रक्षक वीर व्रत धारी बने।”

“जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।”

“जिसकी रज में लोट लोट कर बड़े हुए हैं।

घुटनों के बल सरक सरक कर खड़े हुए हैं।

परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये।

जिसके कारण ‘धूल भरे हीरे’ कहलाये।

हम खेले कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में।
हे मातृभूमि तुझको निरख मग्न क्यों न हो मोद में।।”

“चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है, अवनि और अम्बर तल में ।”

“वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुट्ठीभर दाने को, भूख मिटाने को
मुँह फटी-पुरानी झोली को फैलाता।।”
– “जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।”
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।”

“विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना।
परिचय इतना इतिहास यही ,
उमड़ी कल थी मिट आज चली।।”

ओज गुण

ऐसी कवि रचना जिसको पढ़ने उसे चित्त में जोश वीरता उल्लास आदि के भाव उत्पन्न हो जाए वह ओज गुण युक्त काव्य रचना मानी जाती है।

गौड़ी रीति की तरह इसमें संयुक्ताक्षरों ‘ट’ वर्गीय वर्णों लंबे-लंबे सामासिक पदों एवं रेफ युक्त वर्णों का प्रयोग अधिक किया जाता है।

वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स आदि रसो की रचना में ओज गुण ही पाया जाता है।

आचार्य भिखारीदास ने इसका लक्षण इस प्रकार प्रकट किया है-
‘उद्धत अच्छर जहँ भरै, स, क, ट युत मिलिआइ।
ताहि ओज गुण कहत हैं, जे प्रवीन कविराइ ।।”

“किस ने धनुष तोड़ा शशि शेखर का।
मेरे नेत्र देखो राघव सवंश डूब जाओगे इनमें।”
– ” मैं सत्य कहता हूँ सखे ! सुकुमार मत जानी मुझे।
यमराज से भी युद्ध में, प्रस्तुत सदा जानो मुझे।

हे सारथे ! हैं द्रोण क्या? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।
वे भी न जीतेंगे समर में, आज क्या मुझसे कभी।।”

“देशभक्त वीरों मरने से नेक नहीं डरना होगा।
प्राणों का बलिदान देश की वेदी पर करना होगा।।”

“भये क्रुद्ध जुद्ध विरुद्ध रघुपति, त्रोय सायक कसमसे।
कोदण्ड धुनि अति चण्ड सुनि, मनुजाद सब मारुत ग्रसे।।”

“दिल्लिय दहन दबाय करि सिप सरजा निरसंक।
लूटि लियो सूरति सहर बंकक्करि अति डंक।।”

“बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।”

“हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुध्द शुध्द भारती।
स्वयं प्रभा, समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।”

“हाय रुण्ड गिरे, गज झुण्ड गिरे, फट-फट अवनि पर शुण्ड गिरे।
भू पर हय विकल वितुण्ड गिरे, लड़ते-लड़ते अरि झुण्ड गिरे।”

माधुर्य गुण

हृदय को आनंद उल्लास से द्रवित करने वाली कोमल कांत पदावली से युक्त रचना माधुर्य गुण संपन्न होती है।

अर्थात् ऐसी काव्य रचना जिसको पढ़ कर चित में श्रृंगार, करुण, शांति के भाव उत्पन्न होते हैं।

वह माधुर्य गुण युक्त रचना मानी जाती है।
वैदर्भी रीति की तरह इसमें संयुक्ताक्षर ‘ट’ वर्गीय वर्णों एवं सामासिक पदों का पूर्ण अभाव पाया जाता है अथवा अल्प प्रयोग किया जाता है।

श्रृंगार, हास्य, करुण, शांतादि रसों से युक्त रचनाओं में माधुर्य गुण पाया जाता है।

आचार्य भिखारीदास ने इसका लक्षण इस प्रकार प्रस्तुत किया है:-

अनुस्वार और वर्गयुत, सबै वरन अटवर्ग। अच्छा मैं मृदु परै, सौ माधुर्य निसर्ग।।

“अमि हलाहल मद भरे, श्वेत श्याम रतनार ।
जियत मिरत झुकि-झुकि परत, जे चितवत इक बार ।।”

“कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि, कहत लखन सम राम हृदय गुनि मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्हि, मनसा विश्व विजय कर लीन्हि ।।”

“बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनि हसै, देन कहि नटि जाय।।”

“कहत नटत रीझत खीझत, मिलत खिलत लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैनन ही सौं बात।।”

“मेरे हृदय के हर्ष हा! अभिमन्यु अब तू है कहाँ।
दृग खोलकर बेटा तनिक तो देख हम सबको यहाँ।

मामा खड़े हैं पास तेरे तू यहीं पर है पड़ा। निज गुरुजनों के मान का तो ध्यान था तुझको बड़ा।।”

“बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं |
तब ये लता लगती अति सीतल,
अब भई विषम ज्वाल की पुंजैं | |”

“फटा हुआ है नील वसन क्या, ओ यौवन की मतवाली ।
देख अकिंचन जगत लूटता, छवि तेरी भोली भाली ।।”

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काव्य गुण परिभाषा एवं भेद

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ

कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं

पाठ्य पुस्तकों का महत्त्व

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत

कामायनी के विषय में कथन

हिन्दी साहित्य विभिन्न कालखंडों के नामकरण

हाइकु (Haiku) कविता

संख्यात्मक गूढार्थक शब्द

मुसलिम कवियों का कृष्णानुराग

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ, रीतिकाल के प्रमुख कवि, रीतिकाल की प्रमुख धाराओं के नाम, काव्यविवेक किसकी रचना है?, रीतिकाल का वर्गीकरण आदि

रीति-काल में रचे गये विभिन्न रीति ग्रंथों की सूची

काव्यविवेक चिंतामणि की रचना है।

रीतिकाल: रस, श्रृंगार एवं नायिका भेद ग्रंथ

•हिततरंगिणी(1541):- कृपाराम
•साहित्यलहरी:- सूरदास
•रसमंजरी(1550):- नंददास
•रसिकप्रिया(1591):- केशवदास
•नखशिख:- केशवदास
•नायिकाभेद:- रहीम
•नगरशोभा:- रहीम
•सुंदर श्रृंगार(1631):- सुंदर कविराय
•रसकोश(1619):- न्यामत खां जान
•शिखनख:- बलभद्र
•श्रृंगारसागर(1589):- मोहनलाल मिश्रा

•रसविलास(1633):- चिंतामणि

•रसरहस्य(1670):- कुलपति मिश्र
•भावविलास(1689):- देव
•अष्टयाम:- देव
•शब्दरसायन/काव्यरसायन:- देव
•सुखसागरतरंग:- देव
•जातिविलास:- देव
•प्रेमतरंग:- देव
•रसपीयूषनिधि(1737):- सोमनाथ
•श्रृंगारविलास:- सोमनाथ
•रससारांश:- भिखारीदास
•श्रृंगारनिर्णय:- भिखारीदास
•रसिकानंद:-ग्वाल
•रसतरंग:-ग्वाल
•बलवीर विनोद:- ग्वाल
•सुधानिधि(1634):- तोष

•रसप्रबोध(1742):- रसलीन
•अंगदर्णप(1737):- रसलीन
•नवरसतरंग(1817):- बेनी प्रवीण
•रसभूषण:- याकूब

•जुगलरसविलास:- उजियारे कवि

•रसचंद्रिका:- उजियारे कवि
•रसशिरोमणि(1773):- महाराज रामसिंह
•जुगलविलास(1779):- महाराज रामसिंह
•रसनिवास(1782):-महाराज रामसिंह
•रसिकविनोद(1846):-चंद्रशेखर वाजपेयी
•जगद्विनोद(1803):- पद्माकर
•रसरत्नाक:- सुखदेव मिश्र
•रसार्णव:- सुखदेव मिश्र
•रसराज(1643-53):-मतिराम
•श्रृंगाररसमाधुरी(1712):- कृष्णभट्टदेव
•वरवधुविनोद:- कालिदास त्रिवेदी
•काव्यकलाधर(1745):- रघुनाथ बंदीजन
•भावपंचाशिका(1686):- वृंद
•यमकसतसई(1706):- वृंद
•नायिकाभेद:- नृपशंभु

बरवै नायिकाभेद-रहीम
भाषा भूषण-महाराजा जसवंत सिंह
•श्रीराधासुधाशतक:- हठी जी
•नखशिख:-पजनेस

रीतिकाल : काव्यांग निरूपक ग्रंथ

•कविवल्लभ(1647):- न्यामत खां जान
•कविकुलकल्पतरू:- चिंतामणि
•रसिकरसाल(1719):- कुमारमण
•काव्यनिर्णय:- भिखारीदास
•रसिकगोविंदानंदघन(1801):- रसिक गोविंद
•व्यंग्यार्थकौमुदी(1825):- प्रतापसाहि
•काव्यविनोद(1829):-प्रतापसाहि
सभामंडन(1827):- अमीरदास
•श्रीकृष्णसाहित्यसिंधु(1833):- अमीरदास
•साहित्यानंद:- ग्वाल
•कविदर्पण:- ग्वाल

रीतिकाल: अलंकार ग्रंथ

रीतिकाल के बारे में

•कविप्रिया(1601):- केशवदास
•शेरसिंह प्रकाश(1840):- अमीरदास
•अलंकार दर्पण(1778):- महाराज रामसिंह
•पद्माभरण(1810):-पद्माकर
•ललितललाम(1661-64):- मतिराम
•अलंकार पंचाशिका(1690):- मतिराम
•अलंकार कलानिधि:- कृष्णभट्टदेव
•भाषाभूषण:- जसवंतसिंह
•अलंकार रत्नाकर:- दलपतिराय बंशीधर
•शिवराजभूषण(1673):- भूषण
•रामालंकार:- गोप
•अलंकार चंद्रोदय(1729):- रसिकसुमति
•रसिकमोहन(1739):- रघुनाथ बंदीजन
•कविकुलकंठाभरण:- दूलह
•तुलसीभूषण(1754):- रसरूप
•अलंकार प्रकाश(1648):- मुरलीधर भूषण
•वाणीभूषण:- रामसहाय
•वधुभूषण(संस्कृत):- नृपशंभु

रीतिकाल: छंद निरूपक ग्रंथ

•छंदमाला:- केशवदास
•छंद विचार पिंगल:- चिंतामणि
•छंदोर्णव पिंगल:- भिखारीदास
•वृत्त चंद्रोदय(1830):- अमीरदास
•प्रस्तार प्रकाश:- ग्वाल
•वृत्त विचार(1671):- सुखदेव मिश्र
•छंदोहृदयप्रकाश(1666):- मुरलीधर भूषण
•वृत्त तरंगिणी:- रामसहाय
•श्री नाग पिंगल(छंदविलास,1702):- माखन
•वृत्तविचार (1799):- दशरथ
•छंद सार :- मतिराम
•छंद सार :- नारायण दास
•पिंगल प्रकाश :- नंदकिशोर
•छंद पयोनिधि :- हरिदेव
•छंदानंद पिंगल :- अयोध्या प्रसाद वाजपेयी

काव्य गुण परिभाषा एवं भेद

रीतिकाल के प्रमुख ग्रंथ

कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं

पाठ्य पुस्तकों का महत्त्व

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत

कामायनी के विषय में कथन

हिन्दी साहित्य विभिन्न कालखंडों के नामकरण

हाइकु (Haiku) कविता

संख्यात्मक गूढार्थक शब्द

मुसलिम कवियों का कृष्णानुराग

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen – कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं

कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen | कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं | हिन्दी भाषा की आत्मकथाएं | Hindi me Aatmakathayen

1641-अर्द्धकथानक (ब्रजभाषा पद्य में रचित, बनारसीदास जैन)

1641-कुछ आप बीती कुछ जग बीती (भारतेंदु हरिश्चन्द्र)

1641-निज वृत्तान्त (अम्बिकादत्त व्यास)

1641-आत्मचरित्र राधाचरण गोस्वामी ( राधाचरण गोस्वामी)

1641-कल्याण मार्ग का पथिक (स्वामी श्रद्धानंद)

1910 मुझमें देव जीवन का विकास (स्‍वामी सत्‍यानन्‍द अग्निहोत्री)

1917 जीवन-चरित्र (स्‍वामी दयानन्‍द )

1921 आपबीती (भाई परमानन्द)

1923 आत्मकथा/सत्य के प्रयोग (महात्मा गांधी, अनुवाद हरिभाऊ उपाध्याय)

1933 मैं क्रान्तिकारी कैसे बना (श्री रामविलास शुक्ल)

1933- राख की लपटें (पुरुषोत्तम दास टंडन)

1935 तरुण के स्‍वप्‍न (सुभाष चन्‍द्र बोस, अनुवाद गिरिशचन्द्र जोशी)

1939 प्रवासी की कहानी (आत्‍मकथा, भवानी दयाल संन्यासी),

1939 आत्म चरित्र (प्रो. अक्षय मिश्र)

1941 मेरी आत्मकहानी (श्यामसुन्दरदास),

1942 आधे रास्ते (कन्हैयालाल माणिक्यलाल मुंशी)

1942- मेरी असफलताएं (गुलाब राय)

1944 एक पत्रकार की आत्मकथा (मूलचन्द अग्रवाल, दैनिक विश्वामित्र के सम्पादक)

1946 साधना के पथ पर (हरिभाऊ उपाध्याय),

1946 मेरी जीवन-यात्रा (राहुल सांकृत्‍यायन, पांच खंडों में, प्रथम खंड 1946, द्वितीय खंड 1947 और शेष खंड 1967 में)

1947 आत्मकथा (राजेन्द्र प्रसाद)

1947 प्रवासी की आतमकथा (भवानी दयाल संन्यासी)

1948 मेरा जीवन प्रवाह (वियोगी हरि)

1949 मेरी जीवन-गाथा (गणेशप्रसाद वर्णी)

1951 स्‍वतन्‍त्रता की खोज में (सत्‍यदेव परिव्राजक),

सिंहावलोकन (तीन खंडों में क्रमशः 1951,1952 और 1955, यशपाल),

1951- अज्ञात जीवन (अजितप्रसाद जैन),

1951- मेरा जीवन (अलगूराय शास्त्री)

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen

1952-परिव्राजक की आत्‍मकथा (शान्तिप्रिय द्विवेदी),

1952-चांद सूरज के बीरन (प्रथम भाग, देवेन्‍द्र सत्‍यार्थी)

1952-नीलयक्षिणी (देवेन्द्र सत्यार्थी)

1953 मुदर्रिस की आत्मकथा (कालिदास कपूर)

1954 जीवन-चक्र (गोगाप्रसाद उपाध्याय)

1956 यादों की परछाइयां (चतुरसेन शास्त्री)

1956 मेरी जीवन-यात्रा (जानकीदेवी बजाज, हिन्दी में किसी महिला द्वारा लिखित प्रथम आत्मकथा),

1957 आत्म-निरीक्षण (सेठ गोविन्ददास),

1957 आपबीती जगबीती (नरदेव शास्त्री)

1958 मेरी अपनी कथा (पदमुलाल पुन्नालाल बख्शी),

1958-अपनी बात (पदुमलाल पन्नालाल बख्शी)

1958 बचपन के वो दिन (देवराज उपाध्याय)

1960 अपनी खबर (पाण्‍डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’),

1960-मेरा जीवन वृतांत (तीन भाग) (मोरारजी देसाई)

1960-हिंदी सेवा के पचास वर्ष (प्रभाकर माचवे)

1960-पत्रकारिता के अनुभव (इन्द्र विद्यावाचस्पति),

1960-मानसिक चित्रावली (प्रिंसिपल दीवानचन्द)

1963-साठ वर्ष : एक रेखांकन (सुमित्रानन्‍दन पन्‍त),

1963-मेरी आत्मकहानी (प्रथम भाग, चतुरसेन शास्त्री),

1963-मेरे जीवन के अनुभव (14 अध्याय) (सन्तराम बी॰ ए॰),

1964 क्रान्तिपथ का पथिक (पृथ्वीसिंह आज़ाद),

1964-मेरा वकालती जीवन (गणेश वासुदेव मावलंकर)

1967 जीवन के चार अध्याय (भुवनेश्वर मिश्र माथव),

आत्मकथा और संस्मरण (पं. गिरधर शर्मा चतुर्वेदी)

1968 मज़दूर से मिनिस्टर (आबिद अली)

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen

1969 क्‍या भूलूँ क्‍या याद (हरिवंश राय बच्‍चन)

1970 नीड़ का निर्माण फिर (हरिवंश राय बच्‍चन),

1970-अपनी कहानी (वृन्दालाल वर्मा),

1970-निराला की आत्मकथा (सूर्यप्रसाद दीक्षित),

1970 यौवन के द्वार पर (देवराज उपाध्याय),

1970-विद्रोही की आत्मकथा (स्वाधीनता आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में, चतुर्भुज शर्मा)

1971 जब ज्योति जगी (स्वाधीनता आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में) – सुखदेवराज

1972-मेरा जीवन-वृत्तान्त (प्रथम भाग-1972, द्वितीय भाग-1974) – मोरार जी देसाई

1972-सैनिक परिवेश में (विजया नरवणे)

1972-अपनी कहानी (वृंदावनलाल वर्मा)

1974 अरुणायन (रामावतार अरुण),

1974-एक पुलिस अधिकारी की आत्मकथा (विश्वनाथ लाहिरी),

1974-मेरी फ़िल्मी आत्मकथा (बलराज साहनी)

1976 रसीदी टिकट (अमृता प्रीतम)

1976- कारागार (उर्मिला देवी)

1978 बसेरे से दूर (हरिवंशराय बच्‍चन)

1979 आधे सफ़र की पूरी कहानी (कृष्णचन्द्र)

1980 गर्दिश के दिन (भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों के आत्मकथ्य)- कमलेशवर

1983 घर का बात (रामविलास शर्मा)

1983 यादों के झरोखों से (बलराज साहनी)

1984-जहां मैं खड़ा हूं (रामदरश मिश्र),

1984-सत्यमेव जयते (देवकीनंदन प्रसाद)

1984-अपना अतीत (यादवेन्द्र शर्मा ‘चंद्र’)

1984-जहाँ मैं खड़ा हूँ (तीन भाग)(रामदरश मिश्र)

1984-जब युग बदला: एक सवतंत्रता सेनानी की आपबीती (शांति चरण पिड़ारा)

1984-एक पुलिस अधिकारी की आतमकथा (विशवनाथ लाहड़ी)

1984-मुक्तिबोध की आत्मकथा (विष्णुचन्द्र शर्मा)

1985-मेरा जीवन (शिवपूजन सहाय),

1985-दशद्वार से सोपान तक (हरिवंश राय बच्‍चन),

1985-मेरे सात जन्म (चार भाग)( हंसराज ‘रहबर’)

1986 टुकड़े-टुकड़े दास्तान (अमृतलाल नागर), मे

1986-रे सात जनम (हंसराज रहबर),

1986-ज़िन्दगी का सफ़र (बलराज मधोक)

1987 मेरी जीवनधारा (यशपाल जैन)

1988 अर्धकथा (डॉ॰ नगेन्द्र)

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen

1988 आत्म-परिचय (रेणु)

1988-जीवन क्या जिया (नामावर सिंह)

1988-सदाचार का ताबीज (हरिशंकर परसाई)

1988- टुकड़े-टुकड़े दास्तान (अमृतलाल नागर)

1989 तपती पगडंडियों पर पद-यात्रा (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1989 देख सत्तर शरद वंसत (राकेश गुप्त)

1990 दस्तक ज़िन्दगी की (प्रतिभा अग्रवाल)

1991 सहचर है समय (रामदरश मिश्र)

1992 जो मैंने जिया (कमलेश्वर)

1994 कहो व्‍यास कैसी कटी (गोपाल प्रसाद व्‍यास)

1995 मेरा कच्चा चिट्ठा (ब्रजमोहन व्यास)

1995-हम अनिकेतन ( नरेश मेहता)

1995- पाँचवा खंड ( उपेंद्रनाथ अश्क)

1995- चेहरे अनेक (उपेंद्रनाथ अश्क)

1996 मोड़ ज़िन्दगी का (प्रतिभा अग्रवाल)

1996 अपनी धरती अपने लोग (डॉ॰ रामविलास शर्मा)

1997 जूठन (ओमप्रकाश वाल्मीकि)

1997 अक्षरों के साये (अमृता प्रीतम),

1997-तिरस्कृत (सूरजपाल चौहान)

1997-यादों के चिराग़ (कमलेश्वर),

1997 लगता नहीं है दिल मेरा (कृष्णा अग्निहोत्री)

1998 क्रम और व्युत्क्रम (वीरेन्द्र सक्सेना)

1999 जलती हुई नदी (कमलेश्वर)

1999 बूँद बाबड़ी ( पद्मा सचदेव)

2000 ग़ालिब घुटी शराब (रवीन्द्र कालिया)

2001 मुड़-मुड़ कर देखता हूं (राजेन्द्र यादव),

2001-कहि न जाए का कहिए (भगवतीचरण वर्मा),

2001 वह जो यथार्थ था (अखिलेश)

2002 कस्तुरी कुंडल बसै (मैत्रेयी पुष्पा)

2002-कुछ कुछ अनकही ( शीला झुनझुनवाला)

2002-दोहरा अभिशाप (कौशल्या वैसन्ती)

2003 आज के अतीत (भीष्म साहनी),

2003-पावभर जीरे में ब्रह्मभोज (अशोक वाजपेयी),

2003 मैंने मांडू नहीं देखा (स्वदेश दीपक)

2004-और पंछी उड़ गया (विष्णु प्रभाकर),

2004-पंखहीन (विष्णु प्रभाकर),

2004-मुक्त गगन में (विष्णु प्रभाकर)

2005-हादसे (रमणिका गुप्ता)

2005-देहरी भई विदेश (20 लेखिकाओं के आत्मकथ्यों का संकलन, राजेन्द्र यादव)

2005-वसन्त से पतझड़ तक (रवीन्द त्यागी)

2005-शब्दकाया (सुनीता जैन)

2005-वनफूल (रमानाथ अवस्थी)

हिन्दी आत्मकथाएं Hindi Aatmakathayen

2005-पीर पर्वत (बलराम)

2005-अपने-अपने पिंजरे (मोहनदास नैषिमारण्य)

2005-यादो की बरात ( जोश मलिहाबादी)

2007-गुज़रा कहां-कहां से (कन्हैयालाल नन्दन),

2007-एक अन्तहीन की तलाश (रामकमल राय),

2007-भूली नहीं जो यादें (दीनानाथ मलहोत्रा),

2007-यों ही जिया (डॉ॰ देवेश ठाकुर)

2008 राजपथ से लोकपथ पर (मृदुला गर्ग)

2008 सागर के इस पार से उस पार तक (कृष्ण बिहारी)

2009 कहना ज़रूरी था (कन्हैयालाल नन्दन),

2009-जोखिम (हृदयेश),

2009-मेरे दिन मेरे वर्ष (एकान्त श्रीवास्तव)

2010 और….और औरत (कृष्णा अग्निहोत्री),

2010-पानी बीच मीन प्यासी (मिथिलेश्वर)

2011 मैं था और मेरा आकाश (कन्हैयालाल नन्दन)

2012 और कहां तक कहें युगों की बात (मिथिलेश्वर),

2012-माटी पंख और आकाश (ज्ञानेश्वर फूले),

2013 कमबख़्त निन्दर – डॉ॰ नरेन्द्र मोहन।

दलित आत्मकथा

1927 अबलाओं का इंसाफ स्फुरना देवी सं. नैया (इसे आधुनिक हिंदी की प्रथम स्त्री-आत्मकथा माना जाता है परंतु 1882 में एक अज्ञात हिन्दू औरत द्वारा लीखी आत्मकथा ‘सीमंतनी उपदेश’ मिलती है, जिसका सम्पादन दलित चिंतक डॉ. धर्मवीर ने किया है।)

दर्द जो सहा मैंने… : आशा आपाराद

दोहरा अभिशाप (आत्मकथा) – कौशल्या वैसन्त्री

1995 अपने-अपने पिंजरे (भाग-1, मोहन नैमिशायराण)

1997 जूठन (ओमप्रकाश वाल्‍मीकि)

2000 अपने-अपने पिंजरे (भाग-2, मोहन नैमिशाययण)

2002 तिरस्कृत (डॉ॰ सूरजपाल चौहान)

2006 संतप्त (डॉ॰ सूरजपाल चौहान)

2007 नागफनी (रूपनारायण सोनकर)

2009 मेरा बचपन मेरे कंधों पर (श्‍योराज सिंह बेचैन)

2010 मेरी पत्नी और भेड़िया (डॉ॰ धर्मवीर), मुर्दहिया (भाग-1, प्रो॰ तुलसी राम)

2012 शिकंजे का दर्द (सुशीला टाकभोरे)

2013 मुर्दहिया (भाग-2, प्रो॰ तुलसी राम), खसम खुशी क्यों होय? (डॉ धर्मवीर)

महिला आत्मकथाएं

1927 अबलाओं का इंसाफ स्फुरना देवी सं. नैया (इसे आधुनिक हिंदी की प्रथम स्त्री-आत्मकथा माना जाता है परंतु 1882 में एक अज्ञात हिन्दू औरत द्वारा लीखी आत्मकथा ‘सीमंतनी उपदेश’ मिलती है, जिसका सम्पादन दलित चिंतक डॉ. धर्मवीर ने किया है। )

दर्द जो सहा मैंने… : आशा आपाराद

दोहरा अभिशाप (आत्मकथा) – कौशल्या वैसन्त्री

1956 मेरी जीवन-यात्रा (जानकीदेवी बजाज, हिन्दी में किसी महिला द्वारा लिखित पहली आत्मकथा)

1976 रसीदी टिकट (अमृता प्रीतम)

1990 दस्तक ज़िन्दगी की (प्रतिभा अग्रवाल)

1996 मोड़ ज़िन्दगी का (प्रतिभा अग्रवाल), जो कहा नहीं गया (कुसुम अंसल)

1997 लगता नहीं है दिल मेरा (कृष्णा अग्निहोत्री)

1999 बूंद बावरी (पदमा सचदेवा)

1999 सुनहु तात यह अमर कहानी (शिवानी)

सोने दे (शिवानी)

2000 कुछ कही कुछ अनकही (शीला झुनझुनवाला)

2002 कस्तूरी कुंडल बसै (मैत्रेयी पुष्पा)

2005 हादसे (रमणिका गुप्त)

शब्दकाया (सुनीता जैन)

2007 एक कहानी यह भी (मन्नू भंडारी), अन्या से अनन्या (प्रभा खेतान)

2008-राजपथ से लोकपथ पर (मृदुला गर्ग, राजमाता वसुन्धरा राजे सिंधिया)

2008-गुड़िया भीतर गुड़िया (मैत्रेयी पुष्पा)

2008-पिंजरे की मैना (चन्द्रकिरण सौनरेक्सा)

2010 और…..और औरत (कृष्णा अग्निहोत्री)

2012 शिकंजे का दर्द (सुशीला टाकभोरे)

‘लता ऐसा कहां से लाऊं’ (पद्मा सचदेवा)

‘एक थी रामरती’ (शिवानी)

‘कागजी है पैरहन’ (इस्मत चुगताई)

2015 ‘आपहुदरी’ (रमणिका गुप्त) (‘हादसे’ तथा ‘आपहुदरी’ दोनो आत्मकथा रमणिका गुप्त की हैं।)

कामायनी के विषय में कथन- https://thehindipage.com/kamayani-mahakavya/kamayani-ke-vishay-me-kathan/

संस्मरण और रेखाचित्र- https://thehindipage.com/sansmaran-aur-rekhachitra/sansmaran-aur-rekhachitra/

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

राघवयादवीयम् ग्रन्थ जिसे अनुलोम-विलोम काव्य भी कहा जाता है। 17वीं शताब्दी में कवि वेंकटाध्वरि की रचना एवं अति दुर्लभ ग्रन्थ। राघवयादवीयम् ग्रन्थ अनुलोम-विलोम-काव्य वेंकटाध्वरि

*अति दुर्लभ एक ग्रंथ ऐसा भी है हमारे सनातन धर्म मे*

इसे तो सात आश्चर्यों में से पहला आश्चर्य माना जाना चाहिए

यह है दक्षिण भारत का एक ग्रन्थ – राघवयादवीयम्

क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो राम कथा के रूप में पढ़ी जाती है

और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण कथा के रूप में होती है ।

जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ “राघवयादवीयम्” ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है।

‘अनुलोम-विलोम काव्य’

इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है।

पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं।

इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा।

इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा (उल्टे यानी विलोम) के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक।

पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ “राघवयादवीयम।”

उदाहरण

उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो
जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।

अब इस श्लोक का विलोमम्: इस प्रकार है

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

अर्थातः
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के
चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ
विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।

राघवयादवीयम” के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं

राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

विलोमम्:

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ २॥

विलोमम्:

वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ २॥

राघवयादवीयम् ग्रन्थ अनुलोम-विलोम-काव्य वेंकटाध्वरि

कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिका ।
सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥

विलोमम्:

भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।
कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥

 

रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।
नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥

विलोमम्:

यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।
तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥

 

यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥

विलोमम्:

तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।
सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥ ५॥

 

मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।
काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥

विलोमम्:

तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।
तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥

 

रामनामा सदा खेदभावे दया-वानतापीनतेजारिपावनते ।
कादिमोदासहातास्वभासारसा-मेसुगोरेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥

विलोमम्:

मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सारसा भास्वताहासदामोदिका ।
तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥

 

सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।
साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसारहा ॥ ८॥

विलोमम्:

हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्वसा ।
यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससारसा ॥ ८॥

 

सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।
सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥

विलोमम्:

सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।
यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥

राघवयादवीयम् ग्रन्थ अनुलोम-विलोम-काव्य वेंकटाध्वरि
राघवयादवीयम् ग्रन्थ अनुलोम-विलोम-काव्य वेंकटाध्वरि

तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।
यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥

विलोमम्:

हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।
सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥

 

वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।
भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्यसौ ॥ ११॥

विलोमम्:

सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्वभाः ।
होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥

 

यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।
सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा ॥ १२॥

विलोमम्:

भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा ।
वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥

 

रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।
यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥

विलोमम्:

नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।
हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥

 

यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।
सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥

विलोमम्:

यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।
गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥

 

दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।
ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥

विलोमम्:

नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥

सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।
तं द्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥ १६॥

विलोमम्:

हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रुतम् ।
जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥

 

सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।
न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७ ॥

विलोमम्:

तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।
सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥

 

तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।
वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥

विलोमम्:

केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।
ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥

 

गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।
सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥

विलोमम्:

हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।
यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥

 

हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।
राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥

विलोमम्:

घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिराः ।
धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥

 

ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।

हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि ॥ २१॥

विलोमम्:

विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।
ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥

 

भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।
चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥ २२॥

विलोमम्:

ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधीरुचा ।
हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥

 

हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।
तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥

विलोमम्:

योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारुतम् ।
जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥

 

भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।
तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥

विलोमम्:

विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।
तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥

 

हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।
राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥

विलोमम्:

यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।
निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥

 

सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।
तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतोगजम् ॥ २६॥

विलोमम्:

जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमासतं ।
हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥ २६॥

राघवयादवीयम् ग्रन्थ अनुलोम-विलोम-काव्य वेंकटाध्वरि

वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।
तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥

विलोमम्

नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।
सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥

 

हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।
चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥

विलोमम्

हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।
सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥

 

नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।
रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥

विलोमम्:

नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणावरा ।
कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥ २९॥

 

साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः ॥
निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥

विलोमम्:

जरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।स
गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्यसा ॥ ३०॥

॥ इति श्रीवेङ्कटाध्वरि कृतं श्री ।।

*कृपया अपना थोड़ा सा कीमती वक्त निकाले और उपरोक्त श्लोको को गौर से अवलोकन करें कि यह दुनिया में कहीं भी ऐसा न पाया जाने वाला ग्रंथ है ।*

जय श्री राम

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

हालावाद विशेष

हिन्दी शब्दकोश में हालावाद

हम पढ रहे हैं हालावाद, अर्थ, परिभाषा, प्रमुख हालावादी कवि, हालावाद का समय, विशेषताएं, हालावाद पर कथन, हालावादी काव्य पर विद्वानों के कथन।

गणपतिचन्द्र गुप्त ने उत्तर छायावाद/छायावादोत्तर काव्य को तीन काव्यधाराओं में व्यक्त किया है-

राष्ट्रीय चेतना प्रधान

व्यक्ति चेतना प्रधान

समष्टि चेतना प्रधान में बांटा है। इनमें से व्यक्ति चेतना प्रधान काव्य को ही हालवादी काव्य कहा गया है।

हालावाद का अर्थ/हालावाद की परिभाषा

हाला का शाब्दिक अर्थ है- ‘मदिरा’, ‘सोम’ शराब’ आदि। बच्चन जी ने अपनी हालावादी कविताओं में इसे गंगाजल, हिमजल, प्रियतम, सुख का अभिराम स्थल, जीवन के कठोर सत्य, क्षणभंगुरता आदि अनेक प्रतीकों के रूप में प्रयोग किया है।

हालावाद हिन्दी शब्दकोश के अनुसार— साहित्य, विशेषतः काव्य की वह प्रवृत्ति या धारा, जिसमें हाला या मदिरा को वर्ण्य विषय मानकर काव्यरचना हुई हो। साहित्य की इस धारा का आधार उमर खैयाम की रुबाइयाँ रही हैं।

हालावादी काव्य का संबंध ईरानी साहित्य से है जिस का भारत में आगमन अनूदित साहित्य के माध्यम से हुआ।

जब छायावादी काव्य की एक धारा स्वच्छंदत होकर व्यक्तिवादी-काव्य में विकसित हुआ। इस नवीन काव्य धारा में पूर्णतया वैयक्तिक चेतनाओं को ही काव्यमय स्वरों और भाषा में संजोया-संवारा गया है।

Halawad

डॉ.नगेन्द्र ने छायावाद के बाद और प्रगतिवाद के पूर्व की कविता को ‘वैयक्तिक कविता’ कहा है। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “वैयक्तिक कविता छायावाद की अनुजा और प्रगतिवाद की अग्रजा है, जिसने प्रगतिवाद के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया। यह वैयक्तिक कविता आदर्शवादी और भौतिकवादी,दक्षिण और वामपक्षीय विचारधाराओं के बीच का एक क्षेत्र है।”

इस नवीन काव्य धारा को ‘वैयक्तिक कविता’ या ‘हालावाद’ या ‘नव्य-स्वछंदतावाद’ या ‘उन्मुक्त प्रेमकाव्य’ या ‘प्रेम व मस्ती के काव्य’ आदि उपमाओं से अभिहित किया गया है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उत्तर छायावाद को छायावाद का दूसरा उन्मेष कहा है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने उत्तर छायावाद/छायावादोत्तर काव्य को “स्वछन्द काव्य धारा” कहा है।

हालावाद परिभाषा कवि विशेषताएं
हालावाद परिभाषा कवि विशेषताएं

हालावाद के जनक

हरिवंश राय बच्चन हालावाद के प्रवर्तक माने जाते है। हिन्दी साहित्य में हालावाद का प्रचलन बच्चन की मधुशाला से माना जाता है। हालावाद नामकरण करने का श्रेय रामेश्वर शुक्ल अंचल को प्राप्त है।

हालावाद के प्रमुख कवि

हरिवंशराय बच्चन

भगवतीचरण वर्मा

रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

नरेन्द्र शर्मा आदि।

हालावादी कवि और उनकी रचनाएं

हरिवंश राय बच्चन (1907-2003):

काव्य रचनाएं:

1.निशा निमंत्रण 2.एकांत-संगीत 3.आकुल-अंतर 4.दो चट्टाने 5.हलाहल 6.मधुबाला 7.मधुशाला 8.मधुकलश 9.मिलन-यामिनी 10.प्रणय-पत्रिका 11.आरती और अंगारे 12.धार के इधर-उधर 13.विकल विश्व 14.सतरंगिणी 15.बंगाल का अकाल 16.बुद्ध और नाचघर.17.कटती प्रतिमाओं की आवाज।

भगवती चरण वर्मा(1903-1980 )

काव्य रचनाएं:

1. मधुवन 2. प्रेम-संगीत 3.मानव 4.त्रिपथगा 5. विस्मृति के फूल।

रामेश्वर शुक्ल अंचल(1915-1996)

काव्य-रचनाएं

1.मधुकर 2.मधूलिका 3. अपराजिता 4.किरणबेला 5.लाल-चूनर 6. करील 7. वर्षान्त के बादल 8.इन आवाजों को ठहरा लो।

नरेंद्र शर्मा(1913-1989):

काव्य रचनाएं

1.प्रभातफेरी 2.प्रवासी के गीत 3.पलाश वन 4.मिट्टी और फूल 5.शूलफूल 6.कर्णफूल 7.कामिनी 8.हंसमाला 9.अग्निशस्य 10.रक्तचंदन 11.द्रोपदी 12.उत्तरजय।

हालावाद का समय

हालावाद का समय 1933 से 1936 तक माना जाता है।

छायावाद और हालावाद/छायावादोत्तर काव्य में अंतर

छायावादी तथा छायावादोत्तर काव्य की मूल प्रवृत्ति व्यक्ति निश्ड है फिर भी दोनों में अंतर है डॉ तारकनाथ बाली के अनुसार- “छायावादी व्यक्ति-चेतना शरीर से ऊपर उठकर मन और फिर आत्मा का स्पर्श करने लगती है जबकि इन कवियों में व्यक्तिनिष्ठ चेतना प्रधानरूप से शरीर और मन के धरातल पर ही व्यक्त होती रही है। इन्होंने प्रणय को ही साध्य के रूप में स्वीकार करने का प्रयास किया है । छायावादी काव्य जहाँ प्रणय को जीवन की यथार्थ-विषम व्यापकता से संजोने का प्रयास करता है वहाँ प्रेम और मस्ती का यह काव्य या तो यथार्थ से विमुख होकर प्रणय में तल्लीन दिखायी देता है, या फिर जीवन की व्यापकता को प्रणय की सीमाओं में ही खींच लाता है।” (हिंदी साहित्य का इतिहास सं. डॉ. नगेन्द्र)

छायावादी काव्य की प्रणयानुभूतियां आत्मा को स्पर्श करने वाली हैं। छायावादियों का प्रेम शनैः -शनैः सूक्ष्म से स्थूल की ओर, शरीर से अशरीर की ओर तथा लौकिक से अलौकिकता की ओर अग्रसर होता है, जबकि छायावादोत्तर (हालवादी) काल के कवियों के यहां प्रेम केंद्रीय शक्ति की तरह है।

हालावाद/छायावादोत्तर काव्य की प्रमुख विशेषताएं

जीवन के प्रति व्यापक दृष्टि का अभाव

आध्यात्मिक अमूर्तता तथा लौकिक संकीर्णता का विरोध

धर्मनिरपेक्षता

जीवन सापेक्ष दृष्टिकोण

द्विवेदी युगीन नैतिकता और छायावादी रहस्यात्मकता का परित्याग

स्वानुभूति और तीव्र भावावेग

उल्लास और उत्साह

जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण

जीवन का लक्ष्य स्पष्ट

भाषा एवं शिल्प

काव्य भाषा- छायावाद की भाषा में जो सूक्ष्मता और वक्रता है वह छायावादोत्तर काव्य में नहीं है।इसका कारण यह है कि इस काव्य में भावनाओं की वैसी जटिलता और गहनता नहीं है, जैसी छायावाद में थीं। लेकिन छायावाद की तरह यह काव्य भी मूलतः स्वच्छंदतावादी काव्य है, इसलिए इसकी भाषा में बौद्धिकता का अभाव है तथा मुख्य बल भाषा की सुकुमारता, माधुर्य और लालित्य पर है। छायावादोत्तर काव्य सीधी-सरल पदावली द्वारा जीवन की अनुभूतियों को व्यक्त करने का प्रयास करता है। छायावादोत्तर काल के कवियों का भाषा के क्षेत्र में सबसे बड़ा योगदान था- काव्य भाषा को बोलचाल की भाषा के नजदीक लाना। यह काम न तो द्विवेदी युग में हुआ था और न ही छायावाद में। यद्यपि इन कवियों ने भी आमतौर पर तत्सम प्रधान शब्दावली का ही प्रयोग किया परन्तु समास बहुलता, संस्कृतनिष्ठता से उन्होंने छुटकारा पा लिया। साथ ही जहाँ आवश्यक हुआ, वहाँ तद्भव, देशज और उर्दू शब्दों का भी प्रयोग किया।

Halawad

काव्य शिल्प – इस काव्यधारा ने भी मुख्यत: मुक्तक रचना की ओर ही अपना ध्यान केन्द्रित किया मुक्तक रचना में भी इन कवियों की प्रवृत्ति गीत रचना की और अधिक थी। इसका एक कारण तो इनका रोमानी प्रवृत्ति का होना था, दूसरा कारण संभवत: यह था कि इनमें से अधिकांश कवि अपनी रचनाओं को सभाओं, गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में पेश करते थे। इस काव्यधारा के गीतों में छायावाद जैसी रहस्यात्मकता और संकोच नहीं है बल्कि अपनी हृदयगत भावनाओं को कवियों ने बेबाक ढंग से प्रस्तुत किया है। यहाँ भी कवि का “मैं” उपस्थित है। इस दौर के गीतिकाव्य की विशेषता का उल्लेख करते हुए डॉ रामदरश मिश्र कहते हैं, “वैयक्तिक गीतिकविता की अभिव्यक्तिमूलक सादगी उसकी एक बहुत बड़ी देन है कवि सीधे-सादे शब्दों, परिचिंत चित्रों और सहज कथन भंगिमा के द्वारा अपनी बात बड़ी सफाई से कह देता है।” डॉ. रामदरश मिश्र

हालावादी काव्य पर विद्वानों के कथन

“व्यक्तिवादी कविता का प्रमुख स्वर निराशा का है, अवसाद का है, थकान का है, टूटन का है, चाहे किसी भी परिप्रेक्ष्य में हो।” -डॉ. रामदरश मिश्र

डॉ. हेतु भारद्वाज ने हालावादी काव्य को “क्षयी रोमांस और कुण्ठा का काव्य” कहा है।

डॉ. बच्चन सिंह ने हालावाद को “प्रगति प्रयोग का पूर्वाभास” कहा है।

“मधुशाला की मादकता अक्षय है”-सुमित्रानंदन पंत

” मधुशाला में हाला, प्याला, मधुबाला और मधुशाला के चार प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अनेक क्रांतिकारी, मर्मस्पर्शी, रागात्मक एवं रहस्यपूर्ण भावों को वाणी दी है।” -सुमित्रानंदन पंत

हालावादी काव्य को हजारी प्रसाद द्विवेदी ने “मस्ती, उमंग और उल्लास की कविता” कहा है।

हालावादी कवियों ने “अशरीरी प्रेम के स्थान पर शरीरी प्रेम को तरजीह दी है।”

संदर्भ-

हिन्दी साहित्य का इतिहास – डॉ नगेन्द्र
हिन्दी साहित्य का इतिहास – आ. शुक्ल
इग्नू पाठ्यसामग्री

हालावाद | अर्थ | परिभाषा | प्रमुख हालावादी कवि | हालावाद का समय | विशेषताएं | हालावाद पर कथन | हालावादी काव्य पर विद्वानों के कथन |

हालावाद विशेष- https://thehindipage.com/halawad-hallucination/halawad/

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत- https://thehindipage.com/raaso-sahitya/raaso-shabad-ki-jankari/

कामायनी के विषय में कथन- https://thehindipage.com/kamayani-mahakavya/kamayani-ke-vishay-me-kathan/

संस्मरण और रेखाचित्र- https://thehindipage.com/sansmaran-aur-rekhachitra/sansmaran-aur-rekhachitra/

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत

‘रासो’ शब्द की जानकारी

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति, अर्थ, रासो साहित्य, विभिन्न प्रमुख मत, क्या है रासो साहित्य?, रासो शब्द का अर्थ एवं पूरी जानकारी।

‘रासो’ शब्द की व्युत्पति तथा ‘रासो-काव्य‘ के रचना-स्वरूप के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार की धाराणाओं को व्यक्त किया है।

डॉ० गोवर्द्धन शर्मा ने अपने शोध- प्रबन्ध ‘डिंगल साहित्य में निम्नलिखित धारणाओं का उल्लेख किया है।

रास काव्य मूलतः रासक छंद का समुच्चय है।

रासो साहित्य की रचनाएँ एवं रचनाकार

अपभ्रंश में 29 मात्रओं का एक रासा या रास छंद प्रचलित था।

विद्वानों ने दो प्रकार के ‘रास’ काव्यों का उल्लेख किया है- कोमल और उद्धृत।

प्रेम के कोमल रूप और वीर के उद्धत रुप का सम्मिश्रण पृथ्वीराज रासो में है।

‘रासो’ साहित्य हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है।

शब्द ‘रासो’ की व्युत्पत्ति के संबंध में विद्वानों में मतैक्य का अभाव है।

क्या है रासो साहित्य?

रासो शब्द का अर्थ बताइए?

‘रासो’ साहित्य अर्थ मत
‘रासो’ साहित्य अर्थ मत

विभिन्न विद्वानों ने इस संबंध में अनेक मत दिए हैं जिनमें से प्रमुख मत इस प्रकार से हैं-

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार बीसलदेव रासो में प्रयुक्त ‘रसायन’ शब्द ही कालान्तर में ‘रासो’ बना।

गार्सा द तासी के अनुसार ‘रासो’ की उत्पत्ति ‘राजसूय’ शब्द से है।

रामचन्द्र वर्मा के अनुसार इसकी उत्पत्ति ‘रहस्य’ से हुई है।

मुंशी देवीप्रसाद के अनुसार ‘रासो’ का अर्थ है कथा और उसका एकवचन ‘रासो’ तथा बहुवचन ‘रासा’ है।

ग्रियर्सन के अनुसार ‘रायसो’ की उत्पत्ति राजादेश से हुई है।

गौरीशंकर ओझा के अनुसार ‘रासा’ की उत्पत्ति संस्कत ‘रास’ से हुई है।

पं० मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या के अनुसार ‘रासो’ की उत्पत्ति संस्कत ‘रास’ अथवा ‘रासक’ से हुई है।

मोतीलाल मेनारिया के अनुसार जिस ग्रंथ में राजा की कीर्ति, विजय, युद्ध तथा तीरता आदि का विस्तत वर्णन हो, उसे ‘रासो’ कहते हैं।

विश्वनाथप्रसाद मिश्र के अनुसार ‘रासो’ की व्युत्पत्ति का आधार ‘रासक’ शब्द है।

कुछ विद्वानों के अनुसार राजयशपरक रचना को ‘रासो’ कहते हैं।

विभिन्न विद्वानों ने इस संबंध में अनेक मत दिए हैं जिनमें से प्रमुख मत इस प्रकार से हैं-

बैजनाथ खेतान के अनुसार ‘रासो या ‘रायसों’ का अर्थ है झगड़ा, पचड़ा या उद्यम और उसी ‘रासो’ की उत्पत्ति है।

के० का० शास्त्री तथा डोलरराय माकंड के अनुसार ‘रास’ या ‘रासक मूलतः नत्य के साथ गाई जाने वाली रचनाविशेष है।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार ‘रासो’ तथा ‘रासक’ पर्याय हैं और वह मिश्रित गेय-रूपक हैं।

कुछ विद्वानों के अनुसार गुजराती लोक-गीत-नत्य ‘गरबा’, ‘रास’ का ही उत्तराधिकारी है।

डॉ० माताप्रसाद गुप्त के अनुसार विविध प्रकार के रास, रासावलय, रासा और रासक छन्दों, रासक और नाट्य-रासक, उपनाटकों, रासक, रास तथा रासो-नृत्यों से भी रासो प्रबन्ध-परम्परा का सम्बन्ध रहा है. यह निश्चय रूप से नहीं कहा जा सकता। कदाचित् नहीं ही रहा है।

मं० र० मजूमदार के अनुसार रासाओं का मुख्य हेतु पहले धर्मोपदेश था और बाद में उनमें कथा-तत्त्व तथा चरित्र-संकीर्तन आदि का समावेश हुआ।

विजयराम वैद्य के अनुसार ‘रास’ या ‘रासो’ में छन्द, राग तथा धार्मिक कथा आदि विविध तत्व रहते हैं।

डॉ० दशरथ शर्मा के अनुसार रास के नृत्य, अभिनय तथा गेय-वस्तु-तीन अंगों से तीन प्रकार के रासो (रास, रासक-उपरूपक तथा श्रव्य-रास) की उत्पत्ति हुई।

विभिन्न विद्वानों ने इस संबंध में अनेक मत दिए हैं जिनमें से प्रमुख मत इस प्रकार से हैं-

हरिबल्लभ भायाणी ने सन्देश रासक में और विपिनबिहारी त्रिवेदी ने पृथ्वीराज रासो में ‘रासा’ या ‘रासो’ छन्द के प्रयुक्त होने की सूचना दी है।

कुछ विद्वानों के अनुसार रसपूर्ण होने के कारण ही रचनाएँ, ‘रास’ कहलाई।

‘भागवत’ में ‘रास’ शब्द का प्रयोग गीत नृत्य के लिए हुआ है।

‘रास’ अभिनीत होते थे, इसका उल्लेख अनेक स्थान पर हुआ है। (जैसे-भावप्रकाश, काव्यानुशासन तथा साहितय-दर्पण आदि।)

हिन्दी साहित्य कोश में ‘रासो’ के दो रूप की ओर संकेत किया गया है गीत-नत्यपरक (पश्चिमी राजस्थान तथा गुजरात में समद्ध होने वाला) और छंद-वैविध्यपरक (पूर्वी राजस्थान तथा शेष हिन्दी में प्रचलित रूप।)

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति, अर्थ, रासो साहित्य, विभिन्न प्रमुख मत, क्या है रासो साहित्य?, रासो शब्द का अर्थ एवं पूरी जानकारी।

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कामायनी के विषय में कथन- https://thehindipage.com/kamayani-mahakavya/kamayani-ke-vishay-me-kathan/

संस्मरण और रेखाचित्र- https://thehindipage.com/sansmaran-aur-rekhachitra/sansmaran-aur-rekhachitra/

आदिकाल के साहित्यकार
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संस्मरण और रेखाचित्र

संस्मरण की परिभाषा अथवा संस्मरण किसे कहते हैं?

संस्मरण | रेखाचित्र | परिभाषा | प्रवर्तक | संस्मरण साहित्य के प्रवर्तक | हिन्दी संस्मरण एवं रेखाचित्र : कालक्रमानुसार | पूरी जानकारी |

स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है।

रेखाचित्र की परिभाषा अथवा रेखाचित्र किसे कहा जाता है?

जिस विधा में क्रमबद्धता का ध्यान न रखकर किसी व्यक्ति की आकृति उसकी चाल-ढाल या स्वभाव का, किन्हीं विशेषताएंओं का शब्दों द्वारा सजीव चित्रण किया है, रेखाचित्र कहलाती है।

संस्मरण रेखाचित्र परिभाषा प्रवर्तक
संस्मरण रेखाचित्र परिभाषा प्रवर्तक

हिंदी में संस्मरण एवं रेखाचित्र साहित्य विपुल मात्रा में रचा गया है।

संस्मरण साहित्य के प्रवर्तक

संस्मरण | रेखाचित्र | परिभाषा | प्रवर्तक | संस्मरण साहित्य के प्रवर्तक | हिन्दी संस्मरण एवं रेखाचित्र : कालक्रमानुसार | पूरी जानकारी |

इस कोश में प्रारम्भ से लेकर सन् 2013 तक प्रकाशित हुए मुख्य संस्मरण और रेखाचित्र कालक्रम के अनुसार दिए गए हैं।

संस्मरण साहित्य के प्रवर्तक पदम सिंह शर्मा को माना जाता है उससे पहले भी कुछ संस्मरण साहित्य प्रकाशित हुआ था। उन्हें भी इस सूची में शामिल किया गया है-

हिन्दी संस्मरण एवं रेखाचित्र : कालक्रमानुसार

1905-1909

1905 अनुमोदन का अन्त (महावीरप्रसाद द्विवेदी)

1907 इंग्लैंड के देहात में महाराज बनारस का कुआं (काशीप्रसाद जायसवाल)

1907 सभा की सभ्यता (महावीरप्रसाद द्विवेदी)

1908 लन्दन का फाग या कुहरा (प्यारेलाल मिश्र)

1909 मेरी नई दुनिया सम्बन्धिनी रामकहानी (भोलदत्त पांडेय)

1911-1930

1911 अमेरिका में आनेवाले विद्यार्थियों की सूचना (जगन्नाथ खन्ना)

1913 मेरी छुट्टियों का प्रथम सप्ताह (जगदीश बिहारी सेठ)

1913 वाशिंगटन महाविद्यालय का संस्थापन दिनोत्सव (पांडुरंग खानखोजे)

1918 इधर-उधर की बातें (रामकुमार खेमका)

1921 कुछ संस्मरण (वृन्दालाल वर्मा, सुधा 1921 में प्रकाशित)

1921 मेरे प्राथमिक जीवन की स्मृतियां (इलाचन्द्र जोशी, सुधा 1921 में प्रकाशित)

1929 पदम पराग (पदमसिंह शर्मा)

1930 रामा (महादेवी वर्मा)

1931-1940

1932 मदन मोहन के सम्बन्ध की कुछ पुरानी स्मृतियां (शिवराम पांडेय)

1934 बिन्दा (महादेवी वर्मा)

1935 घीसा (महादेवी वर्मा)

  ”  ”  बिट्टो (महादेवी वर्मा)

1935 सबिया (महादेवी वर्मा)

1936 शिकार (श्रीराम शर्मा)

1937 बोलती प्रतिमा (श्रीराम शर्मा, भाई जगन्नाथ इस संकलन का सर्वश्रेष्ठ संस्मरण)

  ”  ”  साहित्यिकों के संस्मरण (ज्योतिलाल भार्गव, हंस के प्रेमचन्द स्मृति अंक 1937 सं. पराड़कर)

1937 क्रान्तियुग के संस्मरण (मन्मथनाथ गुप्त)

1938 झलक (शिवनारायण टंडन)

1938 लाल तारा (रामवृक्ष बेनीपुरी)

1939 प्राणों का सौदा (श्रीराम शर्मा)

1940 रेखाचित्र (प्रकाशचन्द्र गुप्त)

1940 टूटा तारा (संस्मरण : मौलवी साहब, देवी बाबा, राजा राधिकारमण प्र. सिंह)

1941-1950

1941 अतीत के चलचित्र (महादेवी वर्मा)

1942 तीस दिन मालवीय जी के साथ (रामनरेश त्रिपाठी)

1942 गोर्की के संस्मरण (इलाचन्द्र जोशी)

1943 स्मृति की रेखाएं (महादेवी वर्मा)

1943 चरित्र रेखा (जनार्दन प्रसाद द्विज)

1946 माटी की मूरतें (रामवृक्ष बेनीपुरी)

  ”  ”  वे दिन वे लोग (शिवपूजन सहाय)

1946 पंच चिह्न (शांतिप्रसाद द्विवेदी)

1947 मिट्टी के पुतले (प्रकाशचन्द्र गुप्त)

  ”  ”  पुरानी स्मृतियां और नए स्केच (प्रकाशचन्द्र गुप्त)

1947 स्मृति की रेखाएं (महादेवी वर्मा)

1948 सन् बयालीस के संस्मरण (श्रीराम शर्मा)

1949 माटी हो गई सोना (कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’)

  ”  ”  एलबम (सत्यजीवन वर्मा ‘भारतीय’)

  ”  ”  रेखाएं बोल उठीं (देवेन्द्र सत्यार्थी)

  ”  ”  दीप जले शंख बजे (कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’)

  ”  ”  ज़्यादा अपनी, कम पराई (‘अश्क’)

1949 जंगल के जीव (श्रीराम शर्मा)

1950 गेहूं और गुलाब (रामवृक्ष बेनीपुरी)

  ”  ”  क्या गोरी क्या सांवरी (देवेन्द्र सत्यार्थी)

1950 लंका महाराजिन (ओंकार शरद)

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1951-1960

1951 अमिट रेखाएं (सत्यवती मल्लिक)

1952 हमारे आराध्य (बनारसीदास चतुर्वेदी)

  ”  ”  संस्मरण (बनारसीदास चतुर्वेदी)

  ”  ”  रेखाचित्र (बनारसीदास चतुर्वेदी)

1952 सेतुबन्ध (बनारसीदास चतुर्वेदी)

1953 संस्मरण (बनारसीदास चतुर्वेदी)

1954 ज़िन्दगी मुस्कायी (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

  ”  ”  गांधी कुछ स्मृतियां (जैनेन्द्र)

1954 ये और वे (जैनेन्द्र)

1955 बचपन की स्मृतियां (राहुल सांकृत्यायन)

  ”  ”  मैं भूल नहीं सकता (कैलाशनाथ काटजू)

  ”  ”  रेखाएं और चित्र (उपेन्द्रनाथ अश्क)

1955 रेखा और रंग (विनय मोहन शर्मा)

1956 मंटो मेरा दुश्मन या मेरा दोस्त मेरा दुश्मन (उपेन्द्रनाथ अश्क)

1956 पथ के साथी (महादेवी)

1957 जिनका मैं कृतज्ञ (राहुल सांकृत्यायन)

  ”  ”  वे जीते कैसे हैं (श्रीराम शर्मा)

1957 माटी हो गई सोना (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1958 दीप जले, शंख बजे (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1958 बाजे पायलिया के घुंघरू (कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर)

1959 रेखाचित्र (प्रेमनारायण टंडन)

  ”  ”  स्मृति-कण (सेठ गोविन्ददास)

  ”  ”  ज़्यादा अपनी कम परायी (अश्क)

1959 मैं इनका ऋणी हूं (इन्द्र विद्यावाचस्पती)

1960 प्रसाद और उनके समकालीन (विनोद शंकर व्यास)

1961-1970

1962 जाने-अनजाने (विष्णु प्रभाकर)

  ”  ”  कुछ स्मृतियां और स्फुट विचार (डॉ॰ सम्पूर्णानन्द)

  ”  ”  समय के पांव (माखनलाल चतुर्वेदी)

  ”  ”  नए-पुराने झरोखे (हरिवंशराय बच्चन)

1962 अतीत की परछाइयां (अमृता प्रीतम)

1963 दस तस्वीरें (जगदीशचन्द्र माथुर)

  ”  ”  साठ वर्ष : एक रेखांकन (सुमित्रानन्दन पन्त)

1963 जैसा हमने देखा (क्षेमचन्द्र सुमन)

1965 कुछ शब्द : कुछ रेखाएं (विष्णु प्रभाकर)

  ”  ”  मेरे हृदय देव (हरिभाऊ उपाध्याय)

  ”  ”  वे दिन वे लोग (शिवपूजन सहाय)

  ”  ”  जवाहर भाई : उनकी आत्मीयता और सहृदयता (रायकृष्ण दास)

1965 लोकदेव नेहरू (रामधारीसिंह दिनकर)

1966 विकृत रेखाएं : धुंधले चित्र (महेन्द्र भटनागर)

  ”  ”  स्मृतियां और कृतियां (शान्तिप्रय द्विवेदी)

1966 चेहरे जाने-पहचाने (सेठ गोविन्ददास)

1967 कुछ रेखाएं : कुछ चित्र (कुन्तल गोयल)

1967 चेतना के बिम्ब (डॉ॰ नगेन्द्र)

1968 बच्चन निकट से (अजित कुमार एवं ओंकारनाथ श्रीवास्तव)

  ”  ”  संस्मरण और विचार (काका साहेब कालेलकर)

  ”  ”  स्मृति के वातायन (जानकीवल्लभ शास्त्री)

1968 घेरे के भीतर और बाहर (डाॅ॰ हरगुलाल)

1969 संस्मरण और श्रद्धांजलियां (रामधारी सिंह दिनकर)

1969 चांद (पद्मिनी मेनन)

1970 व्यक्तित्व की झांकियां (लक्ष्मीनारायण सुधांशु)

1971-1980

1971 जिन्होंने जीना जाना (जगदीशचन्द्र माथुर)

1971 स्मारिका (महादेवी वर्मा)

1972 मेरा परिवार (महादेवी वर्मा)

1972 अन्तिम अध्याय (पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी)

1973 जिनके साथ जिया (अमृतलाल नागर)

1974 स्मृति की त्रिवेणिका (लक्ष्मी शंकर व्यास)

1975 चन्द सतरें और (अनीता राकेश)

  ”  ”  मेरा हमदम मेरा दोस्त (कमलेश्वर)

1975 रेखाएं और संस्मरण (क्षेमचन्द्र सुमन)

1976 बीती बातें (परिपूर्णानन्द)

1976 मैंने स्मृति के दीप जलाए (रामनाथ सुमन)

1977 मेरे क्रान्तिकारी साथी (भगतसिंह)

1977 हम हशमत (कृष्णा सोबती)

1978 संस्मरण को पाथेय बनने दो (विष्णुकान्त शास्त्री)

1978 कुछ ख़्वाबों में कुछ ख़यालों में (शंकर दयाल सिंह)

1979 अतीत के गर्त से (भगवतीचरण वर्मा)

  ”  ”  श्रद्धांजलि संस्मरण (मैथिलीशरण गुप्त)

1979 पुनः (सुलोचना रांगेय राघव)

1980 यादों के झरोखे (कुंवर सुरेश सिंह)

1980 लीक-अलीक (भारतभूषण अग्रवाल)

1981-1990

1981 यादों की तीर्थयात्रा (विष्णु प्रभाकर)

  ”  ” औरों के बहाने (राजेन्द्र यादव)

  ”  ” जिनके साथ जिया (अमृतलाल नागर)

1981 सृजन का सुख-दुख (प्रतिभा अग्रवाल)

1982 संस्मरणों के सुमन (रामकुमार वर्मा)

  ”  ”  स्मृति-लेखा (अज्ञेय)

1082 आदमी से आदमी तक (भीमसेन त्यागी)

1983 मेरे अग्रज : मेरे मीत (विष्णु प्रभाकर)

  ”  ”  युगपुरुष (रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’)

1983 निराला जीवन और संघर्ष के मूर्तिमान रूप (डॉ॰ ये॰ पे॰ चेलीशेव)

1984 बन तुलसी की गन्ध (रेणु)

1984 दीवान ख़ाना (पद्मा सचदेव)

1986 रस गगन गुफा में (भगवतीशरण उपाध्याय)

1988 हज़ारीप्रसाद द्विवेदी : कुछ संस्मरण (कमल किशोर गोयनका)

1989 भारत भूषण अग्रवाल : कुछ यादें, कुछ चर्चाएं (बिन्दु अग्रवाल)

1990 सृजन के सेतु (विष्णु प्रभाकर)

1991-2000

1992 याद हो कि न याद हो (काशीनाथ सिंह)

  ”  ”  निकट मन में (अजित कुमार)

  ”  ”  जिनकी याद हमेशा रहेगी (अमृत राय)

1992 सुधियां उस चन्दन के वन की (विष्णुकान्त शास्त्री)

1994 लाहौर से लखनऊ तक (प्रकाशवती पाल)

1994 सप्तवर्णी (गिरिराज किशोर)

1995 लौट आ ओ धार (दूधनाथ सिंह)

  ”  ”  स्मृतियों के छंद (रामदरश मिश्र)

  ”  ”  मितवा घर (पदमा सचदेव)

1995 अग्निजीवी (प्रफुल्लचन्द्र ओझा)

  ”  ”  सृजन के सहयात्री (रवीन्द्र कालिया)

1996 अभिन्न (विष्णुचन्द्र शर्मा)

1998 यादें और बातें (बिन्दु अग्रवाल)

1998 हम हशमत (भाग-2, कृष्णा सोबती)

2000 अमराई (पदमा सचदेव)

  ”  ”  वे देवता नहीं हैं (राजेन्द्र यादव)

  ”  ”  यादों के काफिले (देवेन्द्र सत्यार्थी)

  ”  ”  नेपथ्य नायक लक्ष्मीचन्द्र जैन (मोहनकिशोर दीवान)

2000 याद आते हैं (रमानाथ अवस्थी)

2001

अपने-अपने रास्ते (रामदरश मिश्र)

अंतरंग संस्मरणों में प्रसाद (सं॰ पुरुषोंत्तमदास मोदी)

एक नाव के यात्री (विश्वनाथप्रसाद तिवारी)

प्रदक्षिणा अपने समय की (नरेश मेहता)

2002

चिडि़या रैन बसेरा (विद्यानिवास मिश्र)

लखनऊ मेरा लखनऊ (मनोहर श्याम जोशी)

काशी का अस्सी (काशीनाथ सिंह)

लौट कर आना नहीं होगा (कान्तिकुमार जैन)

नेह के नाते अनेक (कृष्णविहारी मिश्र)

स्मृतियों का शुक्ल पक्ष (डॉ॰ रामकमल राय)

2003

आंगन के वंदनवार (विवेकी राय)

रघुवीर सहाय : रचनाओं के बहाने एक संस्मरण (मनोहर श्याम जोशी)

2004

तुम्हारा परसाई (कान्तिकुमार जैन)

पर साथ-साथ चली रही याद विष्णुकान्त शास्त्री)

नंगा तलाई का गांव (डॉ॰ विश्वनाथ त्रिपाठी)

लाई हयात आए (लक्ष्मीधर मालवीय)

आछे दिन पाछे गए (काशीनाथ सिंह)

2005

सुमिरन को बहानो (केशवचन्द्र वर्मा)

मेरे सुहृद : मेरे श्रद्धेय (विवेकी राय)

2006

ये जो आईना है (मधुरेश)

जो कहूंगा सच कहूंगा (डाॅ॰ कान्ति कुमार जैन)

घर का जोगी जोगड़ा (काशीनाथ सिंह)

2007

एक दुनिया अपनी (डॉ॰ रामदरश मिश्र)

अब तो बात फैल गई (कान्तिकुमार जैन)

2009

कुछ यादें : कुछ बातें (अमरकान्त)

दिल्ली शहर दर शहर (डॉ॰ निर्मला जैन)

कालातीत (मुद्राराक्षस)

कितने शहरों में कितनी बार (ममता कालिया)

हाशिए की इबारतें (चन्द्रकान्ता)

मेरे भोजपत्र (चन्द्रकान्ता)

कविवर बच्चन के साथ (अजीत कुमार)

2010

जे॰ एन॰ यू॰ में नामवर सिंह (सं॰ सुमन केशरी)

अंधेरे में जुगनू (अजीत कुमार)

बैकुंठ में बचपन (कान्तिकुमार जैन)

अ से लेकर ह तक (यानी अज्ञेय से लेकर हृदयेश तक, डॉ॰ वीरेन्द्र सक्सेना)

2011

कल परसों बरसों (ममता कालिया)

स्मृति में रहेंगे वे (शेखर जोशी)

अतीत राग (नन्द चतुर्वेदी)

2012

स्मृतियों के गलियारे से (नरेन्द्र कोहली)

गंगा स्नान करने चलोगे (डॉ॰ विश्वनाथ त्रिपाठी)

आलोचक का आकाश (मधुरेश)

माफ़ करना यार (बलराम)

अपने-अपने अज्ञेय (दो खंड, ओम थानवी)

यादों का सफ़र (प्रकाश मनु)

हम हशमत (भाग-3, कृष्णा सोबती)

2013

मेरी यादों का पहाड़ (देवेंद्र मेवाड़ी)

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कामायनी के विषय में कथन- https://thehindipage.com/kamayani-mahakavya/kamayani-ke-vishay-me-kathan/

संस्मरण और रेखाचित्र- https://thehindipage.com/sansmaran-aur-rekhachitra/sansmaran-aur-rekhachitra/

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार

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