पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad ऋ, ए तथा ऐ (भाग-6)

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad

अं से ज्ञ तक हिंदी वर्णक्रमानुसार ‘ऋ, ए तथा ऐ’ वर्ण के शब्दों के पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad एवं पर्यायवाची शब्द किसे कहते हैं? पर्यायवाची शब्द का अर्थ।

‘ऋ, ए तथा ऐ’ वर्ण के शब्दों के पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad

पर्यायवाची शब्द

ऋक्ष- भल्लाट, भल्लूक, भालू, भीलूक, रीछ।

ऋक्षेश- कलाधर, चंद्रमा, चंदा, चाँद, निशानाथ, राकेश, शशि।

ऋण- उधार, उधारी, कर्ज, कर्जा।

ऋणी- उपकृत, ऋणिया, कर्जदार, देनदार।

ऋतु- ऋतुकाल, ऋते, कालविशेष, मासिक धर्म, मौसम, रजःस्राव, रुत।

ऋद्धि- ऋद्धि-सिद्धि, बढ़ती, सफलता, समृद्धि, सम्पन्नता, वृद्धि।

ऋष्यकेतु– कामदेव, मकरकेतु, मकरध्वज, मदन, मनोज, मन्मथ।

ऋषभ- गोनाथ, पुंगव, बलीवर्द, बैल, वृष, वृषभ।

ऋषि- तपस्वी, महात्मा, मन्त्र द्रष्टा, मनीषी, मुनि, योगी, साधु, सूक्तद्रष्टा।

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एक करना- एकीकरण करना, संगठन बनाना, संघटित करना, सम्मिलित करना।

एकतंत्र- अधिनायकतंत्र, एकछत्र, तानाशाही, राजतंत्र।

एकता- अभिन्नता, अभेद, एकत्व, एकरूपता, एकसूत्रता, ऐक्य, बराबरी, मेल, मेलजोल, मेलमिलाप, संगठन, संश्रय, सद्भाव, समन्वय, समानता, सांमजस्य, सुमति।

एकदंत- गजानन, गणेश, लंबोदर, वक्रतुंड, विघ्नेश, विनायक।

एकान्त- अकेला, इकन्त, एकाकी, तन्हा, निर्जन, निराला, विथावान, विरान, शान्त, शून्य, सुनसान, सूना।

एकान्तवास- गुप्तवास, निर्जनवास, विजनवास।

एकरूप- अनुरूप, अभिन्न, अभेद, तुल्यरूप, समरूप, समानता, सादृश्य।

एवं- इसी प्रकार, और, ऐसा ही।

एषणा- अभिलाषा, आकांक्षा, इच्छा, कामना, हसरत।

एहसान- अनुग्रह, उपकार, कृपा।

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ऐंठन- अकड़, ऐंठ, कड़, कुटिल भाव, गर्व, घमण्ड, ठसक, तनाव, दंभ, द्वेष, बल, मरोड़, विरोध, हेकड़ी।

ऐंठना- अकड़ना, इतराना, उमेठना, तनाव, मरोड़ना, मरोरना, मुर्री देना, शेखी बघारना।

ऐंद्रिक- इन्द्रियगत, इंद्रियजनित, इंद्रियजन्य, इंद्रिय विषयक, ऐंद्रिय।

ऐक्य- एकत्व, एकता, एका, मेल।

ऐच्छिक- इच्छानुसारी, वैकल्पिक, स्वैच्छिक।

ऐबी- अंगहीन, खोटा, दूषण-युक्त, दुष्ट, नटखट, बुरा।

ऐयार- चालाक, धूर्त, मक्कार।

ऐयाश- कामाचारी, कामी, कामुक, भोगनिरत, भोगी, लम्पट, विलासी, विषयी, विषयासक्त, व्यभिचारी।

ऐयाशी- इंद्रियलोलुपता, काम, कामचरिता, भोग, विलासता, विषयासक्ति।

ऐश- आराम, ऐयाशी, चैन, भोग-विलास, विलास, व्यभिचार, सुख।

ऐश्वर्य- आधिपत्य, ठाठ-बाट, धन-सम्पत्ति, प्रभुत्व, विभूति, वैभव, समृद्धि।

ऐहिक- दुनियावी, भौतिक लौकिक, सांसारिक।

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पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad ‘उ एवं ऊ’ वर्ण के शब्द (भाग-5)

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad | Hindi Synonyms

अं से ज्ञ तक हिंदी वर्णक्रमानुसार ‘उ एवं ऊ’ वर्ण के शब्दों के पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad एवं पर्यायवाची शब्द किसे कहते हैं? पर्यायवाची शब्द का अर्थ।

‘उ एवं ऊ’ वर्ण के शब्दों के पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad

पर्यायवाची शब्द | Hindi Synonym | Hindi Synonyms

उकटना- ओटना, नंगई करना, बात खोलना, बारबार कहना।

उकताना- उबाना, ऊबना, खिझाना, खीजना, चिढ़ना, चिढ़ाना।

उकसना- उचकना, उझकना, ऊपर आना, उठना, उभड़ना, उमड़ना, चढ़ना, तनना, कूदना।

उकेलना- उकिलाना, उतारना, उतितना, उलटना, उसिलना, उधेड़ना, खोलना, नीचे लाना।

उखड़ना- उकसना, उभड़ना, उमड़ना, निकलना।

उग्र- उत्कट, घोर, तीव्र, प्रचण्ड, प्रबल, रौद्र।

उग्रता- उग्रत्व, चण्डता, प्रचण्डता।

उगना- अँकुराना, अँखुआना, उत्पन्न होना, उभड़ना, उरोहना, निकलना, बढ़ना।

उगलना- आगे रखना, उलटना, उलटी करना, ओकलाना, ओकाना, कै, कय करना, छाँट करना, थूकना, निकालना, प्रकट करना, बाहर करना, वमन करना।

उगाहना- इकट्ठा करना, उतारना, एकत्र करना, तहसीलना, वसूल करना, वसूलना।

उघारना- उद्धाटित करना, खोलना, जाहिर करना, नंगा करना, परदा खोलना, प्रकट करना, व्यक्त करना।

उड़द- उर्द, उरदी, कलाय, कुरुविन्द, धान्यवीर, पुरीषम, बलाढ्य, मांसल, पित्र्य, पितृभोजन, बली, बीजरत्न, माख, माष, माषक, माह, वृषांकुर।

उचटना- उखड़ना, उच्चाट होना, खिन्न होना, टूटना, बिखरना, बिचलना, बिछलना, विचलित होना।

उचाड़ना- अलगियाना, उधेड़ना, खसोटना, नकोटना, निकालना, नोंचना।

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उचित- ग्राह्य, परिमित, योग्य, युक्त, श्रेयस्कर।

उछलना- उछाल मारना, कूदना, फुदकना।

उजड़ना- उखड़ना, नष्ट होना, बिलटना, विनाश होना।

उजाला- आतप, आलोक, ओज, त्विषा, तेज, दीप्ति, द्योत, प्रकाश, प्रभा, विभा।

उझिलना- उँडेलना, उछिलना, उदहना, उलटना, उलिचना, ढालना, निकालना।

उत्कण्ठित- अभिलषित, अभीच्छित, इच्छित, उत्क, उन्मन, औत्सुक्य, प्रेच्छित, प्रलुब्ध, वांछित।

उतरना- अवतरित होना, आजाना, घटना, धँसना, नीचे आना।

उतराना- ऊपर आना, तैरना, थिराना, पैरना, पौड़ना।

उत्पत्ति- आरंभ, आविर्भाव, उद्गम, उद्भव, उदय, जनन, जन्म, पैदाइश, शुरू, सृष्टि।

उत्पात– अमंगल, अषुभ, उपद्रव, ऊधम, झगड़ा, टंटा, बखेड़ा, विघ्न।

उत्तम- उत्कृष्ट, कल, कलित, कान्त, चारु, छबीला, नीक, पवित्र, प्रकृष्ट, प्रधान, प्रमुख, प्रवर्ह, प्राग्रय्, भद्र, मंजु, मंजुल, मनोरम, मुख्य, रुचिकर, रुचिर, रूर, ललाम, ललित, वर, वर्य्य, श्रेयस्कर, श्रेष्ठ, शोभायुक्त, शोभित, सरस, सुघर, सुठि, सुन्दर, सुदेश, सुभग, सुष्ठि, सुष्ठु, सुहाई, सुहावन। अन्य पर्यायवाची जानें

उत्तर- एक दिशा, जवाब, प्रतिउत्तर, प्रतिकार, प्रतिभाषण, प्रत्युक्ति, प्रतिवचन, प्रतिवाक्य, पिछला, पीछे, बाद का, श्रेष्ठ।

उत्सव- उछाह, उद्धव, त्योहार, धूमधाम, पर्व।

उत्साह- उछाह, उमंग, जोश, साहस, हिम्मत, हौसला।

उथलना- उलटना, औंधाना, नीचे-ऊपर करना।

उद्गार- उफान, उबाल, उल्टी, कफ, थूक, वमन, विचार।

उदार- अनुकूल, दाता, बड़ा, श्रेष्ठ, सरल, सीधा।

पर्यायवाची शब्द | Paryayvachi Shabad | Hindi Synonyms

उदाहरण- कथा-प्रसंग, दृष्टान्त, मिसाल।

उद्धार- छुटकारा, दुरुस्ती, निस्तार, मुक्ति, सुधार।

उद्धारना- छुटकारा देना, तारना, पार लगाना, बचाना, मुक्त करना, बचाना।

उद्देश्य- इष्ट, तात्पर्य, मतलब, लक्ष्य।

उन्नति- अभ्युदय, उत्कर्ष, उत्थान, उदय, चढ़ाव, प्रगति, प्रवर्द्धन, प्रसार, बढोतरी, बरकत, विकास, वृद्धि, समृद्धि।

उन्माद – उन्मना, चित्तविभ्रम, चित्तविप्लव, पागलपन, मतिभ्रंश, मदातिरेक, लहर, विक्षिप्ति, सनक।

उपकार- उद्धार, उपकृति, नेकी, भलाई, लाभ, हित, हितसाधन।

उपचार- इलाज, खुशामद, घूस, चिकित्सा, प्रतिकार, प्रयोग, रिश्वत, व्यवहार, विधान, सेवा।

उपटना- उपट आना, उभर आना, दाग पड़ना, निशान पड़ना।

उपदंश- अवदंश, आतशक, गर्मी, गरमी, फिरंग रोग।

उपदेश- गुरुमंत्र, दीक्षा, नसीहत, प्रवचन, शिक्षा, सीख।

उपद्रव- उत्पात, ऊधम, दंगा, फसाद, हलचल।

उपमा- तुलना, मिलाना, समानता, सादृश्य।

उपला- उपरी, कण्डा, करीष, गोइँठा, गोहरा, गोहरी, चिपरी।

उपवन- आक्रीड़, आराम, उद्यान, कृतारण्य, कृत्रिमवन, चित्रविपिन, निष्कुट, पुष्पवाटिका, पुष्पोद्यान, फुलवारी, बगीचा, बाग, बाटिका।

उपवास- अनशन, अनाहार, औपवस्त, निराहार, भोजनाभाव, लंघन।

उपहार- उपग्राह्य, उपढौकन, उपदा, उपायन, प्रदेशन, प्राभृत, पुरस्कार, भेंट।

उपासना- परिचर्य्या, वरिवस्या, शुश्रूषा, सेवा।

उपाय- अध्यवसाय, आयोजन, उद्यम, उद्योग, क्रिया, कोशिश, चेष्टा, तरकीब, तरीका, यत्न, युक्ति, विधान, विधि, साधन।

उपेक्षा- अनादर, उदासीनता, घृणा, तिरस्कार, लापरवाही, विरक्ति।

उफनना- उथलना, उबलना, खौलना, गरम होना, गरमा जाना, जोश में आना।

उबटन- उच्छादन, उत्सादन, उद्वर्त्तन, चिक्कस, चीकस, बुकवा।

उबालना- औटना, औटाना, खौलाना, गरमाना, जोश लाना, पकाना।

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अन्य पर्यायवाची जानें

उमर- अवस्था, आयु, उम्र, जीवनकाल, वयस, वै।

उर्वरा- उपजाऊ, उर्वरी, सस्याढ्या।

उल्का- ज्वाला, तेज, दीया, दीपक, प्रकाश, मशाल।

उल्लंघन- अतिक्रमण, अवमानना, विरोध, व्यत्पयन, व्युतिक्रमण।

उल्लू- अंध, उलूक, कवि, काकारि, कुशि, कौशिक, घुग्घू, घूक, घोरदर्शन, तामस, दिनौंधी, दिवाकीर्ति, दिवान्ध, दिवाभीत, दिवास्पान, नक्तचंर, निशार, पिंगल, बेवकूफ, मूर्ख, लक्ष्मीवाहन, हरिलोचन।

उस्तरा- अस्तूरा, क्षुरा, क्षुरिका, छूरा।

उँजाली रात- कौमुदी, चन्द्रिकयान्वित, ज्योत्स्नी, विभावरी, हस्द्रिा।

ऊपर- अतिरिक्त, अधिक, ज्यादा, पर, परे, पहले, प्रतिकूल।

ऊषाकाल- अमृतवेला, अरुणोदय, उदयकाल, उषाकाल, तड़का, प्रत्यूष, प्रभात, प्रातः, प्रातःकाल, पूर्वसंध्या, वासर, सवेरा, सुबह, सूर्योदय।

ऊष्मा- आवेश, उग्रता, उष्मा, उष्णता, क्रोध, गरमी, ग्रीष्मकाल, जलन, ताप, तापु, तेजी, भाप।

ऊसर- अनुर्वरा, ऊषर, वन्ध्याभूमि, सस्यहीना।

ऊँघ- अलसाई, आलस्य, उँघाई, उपनिद्रा, तन्द्रा।

ऊँघना- अलसाना, झपकी लेना, झेंपना, तन्द्रित होना, पलक मारना, सुस्त पड़ना, सुस्ताना।

ऊँट- अघ्वग, उष्ट्र, कंटकाशन, कण्टकाशक, क्रमेल, क्रमेलक, करभ, कुलनाश, केलिकीर्ण, ग्रीवी, जवी, जांघिक, जांघिका, दासेर, दासेरक, दीर्घ, दीर्घग्रीव, दीर्घगति, दीर्घजंग, दुर्गलंघन, द्विककुद, धूम्रक, धूम्रषूक, धूसर, बलिष्ठ, बली, बहुकर, भीली, भूतघ्न, भूमिगम, मय, मरुद्विप, मरुप्रिय, महांग, महाजंग, महाग्रीव, महाध्वज, महानाद, महापृष्ठ, लंबग्रीव, लम्बग्रीव, लम्बोष्ठ, वक्रग्रीव, वक्रगुल्फ, वासन्त, शृंखलक, शरभ, शिशुनामा, शुतुर।

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पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad ‘इ, ई’ वर्ण के शब्द (भाग-4)

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad

अं से ज्ञ तक हिंदी वर्णक्रमानुसार ‘इ, ई’ वर्ण के शब्दों के पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad एवं पर्यायवाची शब्द किसे कहते हैं? पर्यायवाची शब्द का अर्थ।

‘इ, ई’ वर्ण के शब्दों के पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad

पर्यायवाची शब्द

इंद्र- अमरेश, अमरपति, अर्ह, आखण्डल, उग्रधन्वा, उर्वशीनाथ, ऋजुरोहित, ऋभुक्षा, ऐश्वर्यवान्, कौशिक, गोत्रभित्, जम्भभेदी, जिष्णु, तपस्तक्ष, तुषाराट्, दिशिराज, दुश्च्यवन, देवताघिप, देवपति, देवराज, देवेन्द्र, देवेश, नमुचिसूदन, नाकनाथ, नाकपति, पर्वतारि, पाकरिपु, पाकशासन, पुरदंशा, पुरन्दर, पुरहूत, पुरुहूत, पुलोमारि, पूतक्रतु, पूर्वदिक्पति, प्राचीनबर्हि, प्राचीपति, बृत्रहा, बृहद्रथ, बलाराति, बिडौजा, मघवा, मरुत्वान, महेन्द्र, मालिक, मेघपति, मेघराज, मेघवाहन, यासव, लेखर्षभ, वृत्रहा, वृद्धश्रवा, वृषा, वज्री, वज्रधर, वज्रपाणि, वसव, वासव, वास्तोस्पति, विश्वम्भर, शक्र, शचीपति, शचीश, शतऋतु, शतक्रतु, शतधृति, शतमन्यु, संक्रन्दन, सलस्राक्ष, सहस्राक्ष, सुत्रामा, सुनासीर, सुरपति, सुरपाल, सुरेन्द्र, सुरेश, सुरवर, सुरश्रेष्ठ, सोमपति, स्वामी, स्वाराट्, हरि, हरिहय।

इंद्रजौ- इन्द्रयव, कलिंग, कालिंगक, कुटज, भद्रज, भद्रयव, यव, वत्सक, शक्रबीज।

इंद्र का हाथी- अभ्रमातंग, अभ्रमुवल्लभ, ऐराबत, ऐरावण, गजाग्रणी, चतुर्दन्त, मल्लनाग, राजेन्द्र, श्वेतहस्ती, सदादान, सुदामा।

अन्य पर्यायवाची जानें

इंद्राणी- इन्द्रवधु, ऐन्द्री, जयवाहिनी, पुलोमजा, पूतक्रतायी, पौलोभी, मधवानी, माहेश्वरी, शची, शतावरी।

इंद्रधनुष- इन्द्रायुद्ध, ऋतुरोहित, शक्रचाप, शक्रधनु, सप्तवर्ण, सुरचाप, सुरधनु।

इंद्रपुरी अमरावती, इंद्रलोक, देवपुरी, देवलोक।

इंद्रिय- अक्ष, इंद्री, कृषि, करण, ग्रहण, गुणकरण, विषयी, हृषीक।

पर्यायवाची शब्द | Paryayvachi Shabad | Hindi Synonyms

इंसान- आदमी, जन, नर, पुरुष, मनुष्य, मानव, मानुष।

इच्छा- अरमान, अभिरुचि, अभिलाषा, आकांक्षा, आरजू, इष्टि, ईप्सा, ईहा, उत्कंठा, एषणा, कामना, चाह, मनोकामना, मनोरथ, रुचि, लालसा, लिप्सा, वांछा, स्पृहा।

इतिहास- अतीत, इतिवृत, प्राचीनकथा, पुराण, पुरावृत्त, पूर्वकथा, पूर्ववृत, पूर्ववृत्तांत।

इमली- अत्यम्ला, अम्ला, अम्लिका, अम्लीका, आब्दिका, आम्लिका, आम्री, गुरुपत्रा, चरित्रा, चारित्रा, चुक्रा, चुक्रिका, चुक्रू, चिंचका, चिंचा, तितिण्ड, तित्तिडी, तिंतिडिका, तिंतिड़ीक, तिंतिका, तितिली, दन्तषठा, पंक्तिपत्रा, पिच्छिला, भुक्तिका, यमदूतिका, वृक्षाम्ल, शाकचुक्रिका, सर्वाम्ला, सुचुक्किका, सुतिंतिडी।

अन्य पर्यायवाची जानें

इलायची (छोटी) – उपकुंजिका, कपोतवर्णी, कुनटी, कोरंगी, गंधफलिका, गर्भारा, गुजराती, गौरांगी, चन्द्रबाला, चन्द्रसम्भवा, चन्द्रिका, छंद्दिकारिपु, तीक्ष्णगन्धा, त्रिपुटा, त्रुटि, द्राविड़ी, निष्कुटी, पुटिका, पुत्था, बहुला, भृगपर्णिका, वयःस्था, श्वेतैला, सफेद इलायची, सूक्ष्मैला।

इलायची (बड़ी) – इन्द्राणी, एला, एलीका, ऐन्द्री, कन्याकुमारी, कांता, कायस्था, कुमारिका, गंधालीगर्भ, गर्भसम्भवा, गोपुटा, त्रिदिवोद्भवा, त्रिपुटा, धृताची, निष्कुटी, पूर्वी इलायची, पृथ्वी, बहुला मलेया, बृहदेला, बाला, भद्रैला, महिला, लाल इलायची, सुरभित्वक्, स्थूलएला।

Paryayvachi Shabad – पर्यायवाची शब्द

ईख- अधिपत्र, असितपत्र, असिपत्रक, इक्षु, इक्षुर, ऊख, कर्कोटक, कान्तार, कोषकार, गुड़दारू, गुड़मूल, गन्ना, दीर्घच्छद, पयोधर, पौंडा, मधुतृण, मधुयष्टि, मृत्युपुष्प, भूमिरस, रसाल, वँष, विपुलरस, वृष्य, सुकुमारक।

ईमानदार- ऋजु, दयानतदार, निश्छल, निष्कपट, नेकनीयत, शुद्धमति, सच्चा, सत्यनिष्ठ, सत्यपरायण, सदाशय।

ईश्वर- अक्षय, अक्षर, अगोचर, अच्युत, अज, अद्वैत, अनन्तर, अन्नदाता, अनादि, अलख, अविनाशी, ईश, कर्त्ता, चिन्मय, गुणातीत, गोविन्द, जगत्पति, जगदीश, जगदीश्वर, जगन्नाथ, जगन्नियंता, दामोदर, दीनदयाल, दीनबन्धु, दीनानाथ, देवाधिप, देवातिदेव, देवेष, नारायण, निर्गुण, निरंजन, निराकार, प्रभु, पति, परमपिता, परमात्मा, परमेश्वर, परब्रह्म, पुरुषोत्तम, ब्रह्म, ब्रह्मा, भगवान, भुवनेश, महेश्वर, महाप्रभु, राम, विधाता, विश्वकर्मा, विश्वनाथ, विश्वम्भर, व्यापक, शंकर, शर्व, शिव, सच्चिदानंद, सर्वव्यापी, सर्वेश्वर, सांई, साजन, साहिब, स्वामी, हरि, हिरण्यगर्भ।

अन्य पर्यायवाची जानें

ईर्ष्या- कुढ़न, खार, जलन, डाह, द्वेष, रश्क, विद्वेष।

ईर्ष्यालु- ईर्ष्यायुक्त, डाहीद्वेषी, विद्वेषी, स्पृहाशील, स्पृहालु।

अन्य पर्यायवाची जानें

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad आ – के पर्यायवाची शब्द (भाग-3)

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad | Hindi Synonym

अं से ज्ञ तक हिंदी वर्णक्रमानुसार ‘आ’ वर्ण के शब्दों के पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabad एवं पर्यायवाची शब्द किसे कहते हैं? पर्यायवाची शब्द का अर्थ।

आ – के पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad

आँकना- अन्दाजना, अनुमान करना, निरखना, समझना।

आँख- अँखड़ी, अँखिया, आँखड़ी, अंबक, अखिया, अक्ष, अक्षि, ईक्षण, ऐन, गो, गोलक, चख, चक्षु, चक्षुसू, चर्मचक्षु, चश्म, ज्योति, मजीठ, दर्पण, दर्शन, दीठ, दीदा, दृक्, दृग्, दृश्, दृशा, दृष्टि, देवदीप, नज़र, नयन, नयना, नीथ, नेत्र, नैन, नैना, प्रेक्षण, रक्षिणी, लोचन, लोयन, विलोचन, वीक्षण, विश्वंकर, वीदा।

आँगन – अँगना, आंगण, अजिर, गृहांगण, चत्वर, चतुःशाल, चैक, चैगान, चैसार, प्रांगण, बगर, बाड़ा, बाखर, सहन, संजवन।

आँधी – अंधड़, प्रकम्पन, प्रभंजन, बवण्डर, महावात।

आँवला – अकरा, अमृता, अमृतफल, अमृतफला, आमलक, आमलकी, आमला, औंरा, कर्षफला, कायस्था, जातीफल, तिष्या, तिष्यफला, धात्रिका, धात्री, धात्रीफल, पंचरसा, बहुफली, रोचनी, वयस्था, वृत्तफला, वृष्पा, शान्ता, श्रीफल, श्रीफली, शिवा।

आँसूृ- अँसुआ, अँसुवा, अश्क, अस्र, अश्रु, टसुआ, दृगम्बु, दृगजल, नयनाम्बु, नयनजल, नयननीर, नयनवारि, नयनसलिल, नेत्राम्बु, नेत्रजल, नेत्रनीर, नेत्रवारि, नैत्रज, बाष्प, रोदन।

आक- अर्क, अकौआ, अर्यमा, अहर्यपि, अहर्मणि, अहर्बान्धक, आस्फोत, उष्णरष्मि, क्षीरकाण्डक, क्षीरदल, क्षीरपर्णी, क्षीरांग, क्षीरी, खर्जूघ्न, गणरूप, जम्भल, तूलफल, दिबाकर, प्रताप, प्रभाकर, पुच्छी, बसुक, भानु, भास्कर, मंदार, मदार, विकर्तन, विकोरण, विक्षीर, विभाकर, विवस्वान, शीतपुष्पक, शुकफल, सदापुष्य, सदासुम, सूनु, सूर्याह्ण, हरिदख, हिमराति।

अन्य पर्यायवाची जानें

पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad | Hindi Synonyms

आकर्षक- दिलकश, मनोहर, मनोहारी, मोहक।

आकाश- अंतरिक्ष, अंतरीक्ष, अंबर, अंभ, औंधा घड़ा, अक्षर, अनंग, अनंत, अब्ज, अभ्र, अर्श, आसमान, उडुपथ, ख, खगोल, गगन, घनाश्रय, चर्ख, तारापथ, त्रिपिष्टप, द्यावा, द्यु, द्यो, द्यौ, दिव, नभ, नभस्थल, नाक, नील, नीलनिलय, नीलाकाश, पुष्कर, फलक, बुलन्द, भुवन, मरुत्पथ, मरुद्वत्र्म, महाबिल, महाशून्य, मेघपथ, मेघवत्र्म, मेघवेश्म, मेरूपृष्ठ, लोकलाश, व्योम, वायुमण्डल, वितान, वियतू, विष्णुपद, विहाय, शून्य, शून्यसर्वतोमुख, सुरवत्र्म, सोमधारा, स्वर्गपथ।

आकाश गंगा- आकाश जनेऊ, आकाश नदी, किराती, नभगंगा, मंदाकिनी, स्वर्णनदी, सुरदीर्घिका।

आकुल- अधीर, अस्वस्थ, अकल, आत्र्त, आतुर, उद्विग्न, कातर, क्षुब्ध, दुखित, बिहाल, बेकरार, बेकल, बेचैन, बेताब, बेसब्र, बेहाल, व्यग्र, व्यस्त, व्याप्त, विकल, विह्वल, संकुल।

आकृति- अवयव, आकार, गठन, गढ़न, चेष्टा, चेहरा-मोहरा, ढाँचा, डील-डौल, नैन-नक्श, मुख, बनावट, मूर्ति, रूप।

आक्रमण- चढाई, घेरना, छेंकना, धावा, हमला।

आक्षेप- अभियोग, इल्ज़ाम, आरोप, दोषारोपण।

आखिर- अंत, अंतिम, खतम, पिछला, समाप्त।

आखिरकार- अंततः, अंततोगत्वा, परिणामतः, फलतः।

आख्यान- इतिवृत्त, कथा, कहानी, किस्सा, बयान, वर्णन, वृत्त, वृत्तान्त।

आख्यायिका- उपन्यास, प्रसिद्ध कथा।

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पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad

आग- अंगार, अग्नि, अनल, अपित्त, अरुण, आत्मा, आशुशुक्षणि, ईर्ष्या, उल्का, उषर्बुध, ऊष्मा, और्वि, कामाग्नि, कुन्त, कुतप, कृपीटयोनि, कृशानु, कील, गरमी, घृतकेश, चिनगारी, चित्रभानु, जलन, जातवेद, ज्योति, ज्वलन, ज्वाला, डाह, तनूनपात्, तपन, ताप, त्रिधाम, दग्धद्रुम, दमुन, दमुना, दव, दवारी, दहन, द्रुतासन, देवपात्र, देववाहन, द्यु, धनंजय, धनद, धूम्रकेतु, धूमध्वज, पवनवाहन, पांचजन्य, पाचन, पाथ, पावक, पावन, पिंगल, पुण्डरीक, पृथु, प्राण, बड़वाग्नि, बहनी, बर्हि, बसुन्दर, बहुल, बाड़व, बृहद्, बृहद्भानु, ब्राह्मण, भारत, भास्कर, भुव, भूरितेेजस्, मनु, रोहिताश्व, लपट, लवर, लौ, वह्नि, वायुसख, वासदेव, वीतिहोत्र, विभावसु, वृक, वैश्वानर, शिखा, शिखी, शिखीधनंज, शुक्र, शुचि, शुष्भ, सप्तार्चि, सप्तजिह्व, हर, हरि, हव, हवन, हव्यवाहन, हिरण्यरेत, हुतभुक, हुताशन।

आगे- अग्गल, अग्र, अग्रे, पहले, पूर्व, प्रथम।

आज्ञा- अनुज्ञा, अनुमति, अववाद, आदेश, इजाज़त, निदेश, निर्देश, फरमान, शासन, शिष्टि, हुक्म।

आड़- आश्रय, ओझल, ओट, टेक, डंक, धूनी, पर्दा, रक्षा, रोक, शरण।

आड़ी (पक्षी)- आटी, आठी, शराटी, शराडी, शराती, शराली।

आचमन- आचम, उपस्पर्श, शुचिप्रणी।

आचरण- चाल-चलन, बरताव, व्यवहार, सदाचार, शिष्टाचार।

आचार- अनुष्ठान, आचरण, चरित्र, चारित्र, चालढाल, वृत्त, व्यवहार, बर्ताव, शील, शुद्धि, सफाई।

आडंबर- आच्छादन, आवाज़, ऊपरी, ढकोसला, ढोंग, तम्बू, दर्प, दिखावा, प्रपंच, पटह, पाखण्ड, बनावटी, मटामटी, साँग।

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Paryayvachi Shabad

आत्मा- अर्क, अग्नि, अन्तःकरण, अन्तरपुरुष, अन्तर्भूत, अन्तरात्मा, अमूर्त, अव्यक्त, अहंकार, क्षेत्रज्ञ, गोरथ, चित्त, चेतन, चेतनतत्त्व, चैतन्य, जन्मी, जन्य, जात, जीव, जीवात्मा, दिव्यस्वरूप, देव, देह, धर्म, प्राण, पुत्र, मन, ब्रह्म, ब्रह्मांश, ब्रह्मरूप, बुद्धि, बेटा, वायु, विभु, शरीर, सर्वज्ञ, सर्वव्याप्त, सूक्ष्म देह, सूक्ष्म शरीर, सूर्य, स्वभाव, हुताशन।

आदर्श- नमूना, प्रतिमान, प्रतिरूप, मानक।

आदरणीय- मान्य, सम्मान्य, सम्मानीय, समादरणीय।

आदि- आदिम, आरंभ, आरंभिक, इत्यादि, ईश्वर, पहला, प्रथम, प्रारंभ, बिल्कुल, बुनियाद, मूल कारण, शुरू का, सम्भारभ।

आदमी- जन, नर, मनुज, मनुष्य, मानव, व्यक्ति।

आधार- अवलंब, आलबाल, आश्रय, जड़, थाला, नींव, पात्र, मूल, सहारा।

आनन्द – आमोद, आह्लाद, उल्लास, खुशी, प्रमोद, प्रसन्नता, प्रहर्ष, मजा, मोद, हर्ष, लुत्फ़, सुख।

आना- आगमन होना, उपस्थित होना, उपविष्ट होना, हाजिर होना।

आपत्ति- आपदा, आफत, उज्र, क्लेश, कष्ट, दुःख, दोषारोपण, मुसीबत, विघ्न, विपत्ति, विपदा।

आभूषण – अलंकार, आभरण, गहना, जेवर, मंडन, भूषण।

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पर्यायवाची शब्द – Paryayvachi Shabad

आम- अंब, अतिसौरभ, अमृत, अमृतफल, अम्र, अलिप्रिय, आम्र, कामवल्लभ, कामषर, कालांग, कीरेष्ट, केशवायुध, कोषी, गन्धबन्धु, च्युतफल, नूत, पिकबंधु, पिकप्रिय, पिकवल्लभ, प्रियम्बु, फलराज, फलश्रेष्ठ, भृंगाभीष्ट, मदाढ्य, मदिरासख, मधुदूत, मन्मथावास, माकन्द, मादक, माधव, माधुली, मारक, मृषालक, मोदाख्य, रसाल, वसन्तद्रु, शरेष्ट, शुकप्रिय, षड्पदातिथि, सहकार, सुमदन, स्त्रीप्रिय।

आमा हलदी- अम्बाहलदी, आम्रगन्ध, आमिया हलदी, कपूर हलदी, दार्वीमेद, पद्मपत्रा, सुरभि, सुरभिदारु, सुरनायिका।

आरंभ- उपक्रम, बिस्मिल्ला, सूत्रपात, शुरूआत, श्रीगणेश।

आर्यावर्त- आर्यभूमि, पुण्यभूमि, भरतखण्ड, भारत, भारतभूमि, भारतवर्ष, हिन्द, हिन्दुस्तान।

आयु- अवस्था, उम्र, ज़िन्दगी, जीवनकाल, वय, वयस्।

आयुष्मान- चिरंजीवी, चिरायु, दीर्घायु, दीर्घजीवी, शतायु।

आराम- करार, चैन, विश्राम, विश्रांति, सुख।

आरोग्य- दृढ़, निरोग, पुष्ट, रोगहीन, स्वस्थ।

आलसी- अनुष्ण, अलस, परिमृज, बुद, मंद, शीतक, सालस।

आलस्य- अनुष्ण, अलस, अलसता, आलस, कार्यप्रद्वेष, कौसीद्य, तन्द्रा, मन्दता, मान्द्य, शीतक।

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Paryayvachi Shabad | Hindi Synonym

आलोचना- गुण-दोष-निरूपण, टीका-टिप्पणी, नुक्ताचीनी, समीक्षा।

आलिंगन- अँकवार भरना, अंगपालि, उपगूहन, गले लगाना, दबोचना, परिरंभन, परिष्वंग, लिपटना, श्लिषा, संश्लेष, हिये लगाना।

आलू- नीलकन्द, महिषकन्द, लुलायकन्द, वनवासी, विषकन्द, शुक्लकन्द, शुभ्रालु, सर्पाख्य।

आलूबोखारा- आरुक, आलूक, मल्ल, मल्लूक, भल्ल, रक्त फल, वीर, वीरसेन, वीरारुक।

आवाज- ध्वनि, रव, स्वर, शब्द।

आवेग- अचिरता, आतुरता, चपलता, जल्दी, त्वरा, तेजी, लघुता, लाघव, पटुता, प्रवाह, वेग, शीघ्रता, स्फूर्ति।

आशय- अभिप्राय, इच्छा, उद्देश्य, तात्पर्य, निमित्त, नियत, प्रयोजन, भाव, भावार्थ, मतलब, लक्ष्य, वासना, सार, सारांश।

आशा- आकांक्षा, आस, उम्मीद, कामना, लालसा।

आशीर्वाद- आशी, आशीर्वचन, शुभवचन।

आश्चर्य- अचंभा, अचरज, कुतूहल, कौतुक, कौतुहल, ताज्जुब, विस्मय, हैरत, हैरानी।

आश्रम- कुटि, तपोवन, मठ, विश्राम-स्थल।

आश्रय- अवलंब, आधार, प्रश्रय, भरोसा, सहारा।

आसन- पाटा, पिढ़ई, पीड़ा, पीठ, पीढ़ा।

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रीतिकाल की पूरी जानकारी – कवि, रचनाएं, प्रकार, वर्गीकरण, विशेषताएं

रीतिकाल की पूरी जानकारी

इस आलेख में रीतिकाल की पूरी जानकारी एवं कवि तथा रचनाएं, प्रमुख काव्य धाराएं, रीतिकाल का वर्गीकरण तथा विशेषताएं पढेंगे।

रीतिकाल का नामकरण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल को रीतिकाल क्यों कहा जाता है?

हिंदी साहित्य का उत्तर मध्यकाल (1643 ई. – 1842ई. तक लगभग) जिसमें सामान्य रूप से श्रृंगार परक लक्षण ग्रंथों की रचना हुई है रीतिकाल कहलाता है।

नामकरण की दृष्टि से रीतिकाल के संबंध में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है–

अलंकृत काल— मिश्र बंधु

रीतिकाल— आचार्य शुक्ल

कलाकाल— डॉ रामकुमार वर्मा

कलाकाल— डॉ रमाशंकर शुक्ल प्रसाद

श्रृंगारकाल— पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र

रीतिकाल की पूरी जानकारी
रीतिकाल की पूरी जानकारी

सर्वमान्य मान्यता के अनुसार रीतिकाल नाम उपयुक्त है।

सामान्य के संस्कृत के लक्षण ग्रंथों का अनुसरण करके हिंदी में भी रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्ति, रीति, गुण, दोष, ध्वनि, वक्रोक्ति आदि का वर्णन किया गया इसे ही रीतिकाल कहा जाता है।

रीतिकाल के प्रवर्तक कवि एवं काव्य धाराएं

रीतिकाल का वर्गीकरण

रीतिकाल को कितने भागों में बांटा गया है?

रीतिकाल कितने प्रकार के होते हैं?

रीतिकाल के उदय के कारण

अपने आश्रय दाताओं की रुचि के कारण रीतिकालीन साहित्य का उदय हुआ— आचार्य शुक्ल

संस्कृत साहित्य के लक्षण ग्रंथों से प्रेरित होकर विधि साहित्य लिखा गया था— आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

दरबारी संस्कृति होने के कारण कभी हताश और निराश हो गए थे अतः अपनी निराशा को दूर करने के लिए रीति साहित्य का उदय हुआ— डॉ. नगेंद्र

रीतिकाल के पतन के कारण

मंगल की भावना का भाव।

चमत्कार की अतिशयता।

श्रृंगार की अतिशयता।

रीतिकालीन काव्य की प्रवृत्तियां : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीति निरूपण की प्रवृत्ति

काव्य में साहित्य के विविध अंगों पर (रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्ति, गुण, दोष, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति, काव्य लक्षण, काव्य हेतु, काव्य प्रयोजन प्रकाश डाला जाता है वह रीति निरूपण प्रवृत्ति होती है। इसके दो प्रकार हैं—

सर्वांग निरूपण प्रवृत्ति– उपर्युक्त सभी अंगों की विवेचना करना।

विशिष्टांग निरूपण प्रवृत्ति― रस, छंद, अलंकार इन तीनों अथवा किसी एक अंग की विवेचना करना।

श्रृंगार निरुपण― श्रृंगारिक रीतिकाव्य का प्राण है

वीर काव्य तथा राज प्रशस्ति

भक्ति की प्रवृत्ति

नीति

लक्षण ग्रंथों की प्रधानता

कवि तथा आचार्य बनाने की प्रवृत्ति

आलंकारिकता

नारी के प्रति भोगवती दृष्टिकोण

आश्रय दाताओं की प्रशंसा

ब्रजभाषा की प्रधानता

मुक्तक काव्य शैली का प्रधान्य

रीतिकालीन कवियों का वर्गीकरण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल के प्रमुख लक्षण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा रीतिकालीन कवियों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है―

रीतिबद्ध कवि।

रीतिसिद्ध कवि।

रीतिमुक्त कवि।

रीतिबद्ध कवि

इस वर्ग में वे कवि आते हैं जो रीति के बंधन में बंधे हुए थे और जिन्होंने रीति परंपरा का अनुसरण कर लक्षण ग्रंथों की रचना की।

इस वर्ग के प्रमुख कवियों में चिंतामणि त्रिपाठी, केशवदास, देव, मंडन मिश्र, मतिराम, सुरति मिश्र, कुलपति मिश्र, पद्माकर, भिखारी दास ग्वाल आदि कवि आते हैं।

डॉ नगेंद्र ने इन्हें रीतिकार या आचार्य कवि कहा है।

रीतिबद्ध काव्य की प्रमुख विशेषताएं

रस, छंद, अलंकार आदि तीन आधारों पर लक्षण ग्रंथों की रचना।

कवियों में कवित्व और आचार्यत्व दोनों गुण।

शास्त्र प्रधान काव्य।

पांडित्य के पूर्ण काव्य।

श्रृंगार रस की प्रधानता मांसल श्रृंगार वर्णन।

ब्रजभाषा का प्राधान्य।

मुक्तक शैली।

अलंकारों की प्रधानता।

अंगीरस― श्रृंगार।

रीतिसिद्ध कवि

इस वर्ग में भी कभी आते हैं जिन्होंने रीति ग्रंथों की रचना न करके उसके अनुसार उत्कृष्ट काव्य की रचना की है।

इस वर्ग के प्रमुख कवियों में बिहारी हैं, अन्य कवि पजनेश, रसनिधि, बेनी प्रवीण, निवाज, हटी जी, कृष्ण कवि आदि हैं।

डॉ. नगेंद्र ने इन्हें रीतिबद्ध कवि कहा है

रीतिसिद्ध काव्य की प्रमुख विशेषताएं

श्रृंगार रस की प्रधानता।

भक्ति एवं नीति।

प्रकृति वर्णन।

ब्रजभाषा का माधुर्य।

मुक्तक शैली।

अलंकारों की प्रधानता।

अंगीरस― श्रृंगार।

रीतिमुक्त कवि : रीतिकाल की पूरी जानकारी

वे कवि जिन्होंने न ही तो लक्षण ग्रंथ रखें और न ही उनके नियमों के अनुसार काव्य रचना की, अपितु वे अपनी स्वतंत्र मनोवृति के अनुसार काव्य सृजन करते थे, रीतिमुक्त कवि कहलाए। घनानंद, आलम, बोधा, ठाकुर, द्विज देव आदि प्रमुख रीतिमुक्त कवि है।

रीतिमुक्त काव्य की प्रमुख विशेषताएं

रीतिमुक्त काव्य अनुभूतिप्रवण आत्मप्रधान एवं व्यक्तिपरक काव्य है।

इन कवियों का प्रेम एकांतिक, अनन्यता, तन्मयता आदि संपूर्ण भावों से ओतप्रोत है।

इस काव्य की मूल संवेदना प्रेम है जो वासनात्मक, मांसल और पंकिल न होकर हृदय की अनुभूति और उदात्त भावना पर आधारित है।

रीतिमुक्त कवियों का प्रेम व्यथा प्रधान है, संयोग में भी वियोग की कसक है।

प्रेम की पीर और विरहानुभूति रीतिमुक्त काव्यधारा की आत्मा है।

रीतिमुक्त कवियों ने नारी सौंदर्य का चित्रण स्वस्थ मानसिकता और परिष्कृत रुचि के साथ किया है।

ब्रजभाषा का प्रयोग ।

आत्मपरक मुक्तक शैली।

लोकोक्ति-मुहावरों का प्रयोग।

कवित्त, सवैया, दोहा आदि छंद।

श्रृंगार रस की प्रधानता― श्रृंगार का उदात्त रूप।

प्रेम की पीर का चित्रण।

कृष्ण लीला का प्रभाव।

अलंकारों की प्रधानता।

रीति काव्य का प्रवर्तक : रीतिकाल की पूरी जानकारी

इस संबंध में दो मत प्रचलित है―

डॉ श्याम सुंदर दास और डॉ नगेंद्र केशवदास को रीतिकाल का प्रवर्तक मानते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ला चिंतामणि त्रिपाठी को रीतिकाल का प्रवर्तक कवि स्वीकार करते हैं।

“इसमें संदेह नहीं है कि रीति काव्य का सम्यक समावेश पहले पहल आचार्य केशव ने ही किया………….. पर केशव के 50 वर्षों के पश्चात रीति ग्रंथों की अखंड परंपरा चिंतामणि त्रिपाठी से चली और वह भी एक भिन्न आदर्श के साथ अतः रीतिकाल का आरंभ चिंतामणि त्रिपाठी से मारना चाहिए।” आ. शुक्ल

सर्वमान्य मत के अनुसार केशव ही रीतिकाल के प्रवर्तक कवि हैं।

“हिंदी रीति निरूपण परंपरा का आरंभ कृपाराम की ‘हित तरंगिणी’ से ही माना जाना चाहिए।”― डॉ नगेंद्र

पर्यायवाची शब्द (महा भण्डार)

रीतिकाल के राष्ट्रकवि भूषण का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय

अरस्तु और अनुकरण

कल्पना अर्थ एवं स्वरूप

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

संस्मरण और रेखाचित्र

कामायनी के विषय में कथन

कामायनी महाकाव्य की जानकारी

अ के पर्यायवाची शब्द (भाग-2) Hindi Synonyms

अ के पर्यायवाची शब्द (भाग-2)

अं से ज्ञ तक हिंदी वर्णक्रमानुसार अ के पर्यायवाची शब्द (Paryayvachi Shabad) एवं पर्यायवाची शब्द किसे कहते हैं? पर्यायवाची शब्द का अर्थ।

अ के पर्यायवाची

अकरकरा- अकल्लक, आकल्लक, आकरकरा, आकारकरभ।

अकस्मात्- अकारण, अचानक, अनायास, औचक, तत्क्षण, दैवयोग, दैवात्, यकायक, सहसा, संयोगवश, हठात्।

अकाल- अयोगकाल, कहत, कुकाल, कुसमय, ठोहर, महंगी, दुर्भिक्ष, दुष्काल, दुःसमय, विपदकाल।

अक्ष- आँख, आँवला, गरुड़ आत्मा, गाड़ी, चैसर, छकड़ा, जन्मांध, तूतिया, धुरी, पासा, बहेड़ा, मामला, मुकदमा, रुद्राक्ष, व्यवहार, साँप, सुहागा।

अक्षर- अविनाशी, नित्य, ब्रह्म, वर्ण, स्विर।

अखाड़ा- कुश्ती का स्थान, दरबार, मैदान, रंगशाला, संतमंडली, सभा।

अखरोट- अक्षोट, अक्षोटक, अखोट, आखोट, आक्षोट, आक्षोड, आखोट, आस्फोटक, कंदराल, कर्पराल, कीरेष्ट, गुड़ाशय, पार्वतीय, पृथक्छद, फलस्नेह, मदनामफल, रेखाफल, वृत्तफल, स्वादुमज्ज।

अगम- अगम्य, अज्ञेय, अत्यंत, अथाह, अपार, कठिन, गहन, गहरा, मुश्किल, दुर्गम, दुर्बोध, दुर्लभ, बहुत, विकट।

अगर- गर, जद, जो, जो पै, यद्पि, यदि, यद्यपि।

अगर (पेड़)- अग्निकाष्ठ, अगरू, अनायक, असार, क्रिमिज, कृष्ण, पातका, प्रवर, भृंगज, योगज, राजार्ह, लघु, लोह, वंशिका, वर्णप्रसादन।

अगुआ- अग्रगामी, अग्रणी, अग्रवृत्ति, अग्रसर, अधान, नायक, नेता, पुरस्सर, पुरोगम, पुरोगा, प्रष्ठ, मार्गदर्शक, मुखिया, सरदार।

अगोचर- अप्रकट, अप्रत्यक्ष, अप्रकाशित, अव्यक्त, इन्द्रियातीत, गुप्त।

Hindi Synonyms

अग्र- अगला, अवलम्बन, आगा, उत्तम, प्रथम, नोक, श्रेष्ठ, समूह, सिरा।

अग्रज- अगुआ, नायक, नेता, बड़ा भाई, ब्राह्मण, भ्राता।

अग्नि- अंगार, अनल, अपित्त, अरुण, आग, आत्मा, आशुशुक्षणि, ईर्ष्या, उल्का, उषर्बुध, ऊष्मा, और्वि, कामाग्नि, कुन्त, कुतप, कृपीटयोनि, कृशानु, कील, गरमी, घृतकेश, चिनगारी, चित्रभानु, जलन, जातवेद, ज्योति, ज्वलन, ज्वाला, डाह, तनूनपात्, तपन, ताप, त्रिधाम, दग्धद्रुम, दमुन, दमुना, दव, दवारी, दहन, द्रुतासन, देवपात्र, देववाहन, द्यु, धनंजय, धनद, धूम्रकेतु, धूमध्वज, पवनवाहन, पांचजन्य, पाचन, पाथ, पावक, पावन, पिंगल, पुण्डरीक, पृथु, प्राण, बड़वाग्नि, बहनी, बर्हि, बसुन्दर, बहुल, बाड़व, बृहद्, बृहद्भानु, ब्राह्मण, भारत, भास्कर, भुव, भूरितेजस्, मनु, रोहिताश्व, लपट, लवर, लौ, वह्नि, वायुसख, वासदेव, वीतिहोत्र, विभावसु, वृक, वैश्वानर, शिखा, शिखी, शिखीधनंज, शुक्र, शुचि, शुष्भ, सप्तार्चि, सप्तजिह्व, हर, हरि, हव, हवन, हव्यवाहन, हिरण्यरेत, हुतभुक, हुताशन।

अग्निकण – अनल-कण, चिंगारी, चिनगारी, चिनगी, स्फुल्लिग।

अग्निज्वाला – अग्नि कुक्कुट, अग्निशिखा, उल्का, कील, क्षार, ज्वाला, भस्म, भूति, लपट, लवर, लुकारी, लूक, लौ, वर्चिस्, शिखा, हेति।

अग्नि सन्ताप – जलन, झुलस, डाढ़ा, दाह, भस्मीभूत, संज्वर, सन्ताप।

अगस्त्य (ऋषि)- कुम्भज, घटज, घटोद्भव, घटनंभव, घटयोनि, पीताब्धि, मैत्रावरुण, विन्ध्यकूट, समुद्रचुलुक, सिन्धुशासनि, और्वशेय।

अगस्त्य (पेड़)- अगस्तिया, अगस्ती, कनली, खरध्वंसी, दीर्घफलक, पवित्र, बंगपुष्प, ब्रणारि, बोड़ी का फूल, मुनिपुष्प, वंगसेनक, वक्रपुष्प, शीघ्रपुष्प, शुक्लपुष्प, सुरप्रिय, हथिया, हदगा।

पर्यायवाची शब्द किसे कहते हैं?
पर्यायवाची शब्द का अर्थ?

अचेत- अज्ञान, अनजान, असावधान, जड़, नासमझ, बेखबर, बेसुध, माया, मूर्ख, विकल, विह्वल।

अच्छा- अतुल, अस्तु, उत्तम, उद्भट, कल्याण, कुशल, खरा, खैर, चोखा, पुण्य, बढ़िया, भव्य, भला, वर, शुभ, साधु, हित।

अचम्भा- अचरज, आश्यर्च, कुतूहल, कौतुक, विस्मय।

अजनबी- अज्ञात, अनजान, अपरिचित, अविदित।

अजमोद- अजमोदा, खराश्वा, कारवी, मयूर, दीप्यक, मर्कटी, मोदा, मोदिनी, ब्रह्मकुषा, ब्रह्मकोषी, लोचमस्तक, वस्तमोदा, विशल्या।

अजवायन- अजमान, अजमोदा, अजमोदिका, उग्रगंधा, उग्रा, दीप्य, दीप्यक, दीपनी, ब्रह्मदर्भा, भूतिका, यमानिका, यवनिका, यवानी, यवाग्रज, यवसाह्व, यवाह्वा, वातारि।

अटल- अचल, अडिग, अपरिवर्तनीय, अवश्यम्भावी, अविचल, चिरस्थायी, ध्रुव, नित्य, निश्चित, पक्का, स्थिर।

अटूट- अखंड, अजेय, अपरिमित, निरंतर, मजबूत।

अडूसा- अटरुट, अरूसा, आटरूष, आमलक, कण्ठीरवी, कसनोत्पाटन, नासा, पंचमुखी, मातृसिंही, मृगेन्द्राणी, रसादनी, रामरूपक, सिंहपर्णी, सिंहपत्री, सिंहमुखी, सिंहानन, सिंहास्य, सिंहिका, सिंही, वाजिदन्तक, वाजिदन्ती, वाजी, वाषा, वाषिका, वासक, वासा, वासिका, विसोंटा, वृष, वैद्यमाता, वैद्यसिंही।

अणु- कण, क्षुद्र, छोटा टुकड़ा, रज, रजकण।

अति- अतिशय, अतीव, अत्यंत, अधिक, अधिकता, अनेक, अपरिमित, अपार, असंख्य, ज्यादा, ज्यादती, निपट, परम, बहु, बहुत, विपुल।

अतिथि- अभ्यागत, आगंतु, आगंतुक, आवेषिक, गृहागत, पाहुन, पाहुना, प्राघुण, प्राघुणिक, प्राघूर्ण, प्राघूर्णिक, बटाऊ, मेहमान, शुभागत, समागत।

अतीस- अतिविष, अतिविषा, अरुणा, घुणवल्लभा, भृंगी, भांगुरा, माद्री, मृद्वी, शृंगी, शृंगीका, विरूपा, विश्वा, विषरूपा, विषा, शिशुभैषज्य, श्वेतकन्दा, श्वेतमचा।

Paryayvachi Shabad | Hindi Synonyms

अदरक- अपाकृष्णक, आर्द्रक, आर्दिका, आदी, कन्कर, कटुभद्र, कटूत्कट, मच्छाक, राहुच्छन्न, वर, शार्गं, शृंगवेर, सैकतेष्ठ।

अद्भुत- आश्चर्यित, चित्र, विचित्र, विस्मित।

अधम- नीच, नष्ट, निकृष्ट, पतित, पोच, भ्रष्ट, हेय।

अधिक- अकुण्ठ, अगणित, अत्यन्त, अत्यर्थ, अति, अतिशय, अतीव, अदभ्र, अधिक, अनेक, अपरिमित, अपार, अमर्य्यादित, अमित, असंख्य, असीम, उद्गाढ, गाढ़, घन, ढेर, तीव्र, दृढ़, नाना, नितान्त, निपट, निबिड़, निस्सीम, प्रगाढ़, प्रचण्ड, प्रचुर, प्रभूत, प्राज्य, बहुत, बहुल, भूय, भूयिष्ट, भूरि, भृष, विपुल, विशेष।

अधीन- अस्वछन्द, आयत्त, गृह्यक, निघ्न, निघिन, निरघिन, परतन्त्र, परवश, पराधीन।

अध्यापिका- आचार्या, उपाध्याया, उपाध्यायी, गुरुआनी, शिक्षिका।

अनंत- अगणित, अतिशय, अधित, अपार, अभ्रक, अविनाशी, असंख्य, असीम, आकाश, नित्य, बलराम, बेहद, लक्ष्मण, विष्णु, शेषनाग।

अनजान- अजनबी, अनचीन्हा, अनभिज्ञ, अपरिचित, ग़ैर, बेगाना।

अनाज- अन्न, अमृत, आद्य, एकदल, कशिपु, खाद्यान्न, गल्ला, जीवनधन, जीवनसाधन, तंडुल, दाना, धान्य, धान, नाज, बीज, ब्रीहय, ब्रीहि, भात, भोग्य, भोगार्ह, लवेटिका, वरेणुक, वीज्य, शस्य, शाली, स्तम्भकरि, स्तम्भकारि।

अनाथ- नाथहीन, निराश्रित, दीन, बेसहारा।

अन्नानास- अनन्ताक्ष, आम, कौतुकसंज्ञक, पारवती।

अनार- करक, कुट्टिम, कुचफल, डालिम, दंतबीजक, दाड़िम, दाड़िम्म, दाड़िमी, दाड़िमीसार, नीलपत्र, नीलापत्रक, पर्वरुट, पिण्डपुष्प, पिण्डीर, फलषाडव, फलाषाडव, बीदाना, मणिबीज, मधुबीज, मुखवल्लभ, रक्तपुष्प, रक्तबीज, रामबीज, लोहितपुष्पक, वल्कफल, वृत्तफल, शुकप्रिय, शुकवल्लभ, शुकोदन, सुनील, सुफल, स्वाद्वम्ल।

अनुकूल- अनुसार, ओर, तक, पक्षपाती, प्रसन्न, हितकर।

वर्णक्रमानुसार पर्यायवाची शब्द | Hindi Synonyms

अनुपम- अतुल, अद्भुत, अद्वितीय, अनूठा, अनूप, अनोखा, अभूतपूर्व, निराला, विलक्षण।

अनुपस्थित- अनुद्यत, अप्रस्तुत, अभाव, बिना, रहित, शून्य।

अनुयायी- अनुगामी, अनुचर, चाकर, दास, नौकर, मतावलम्बी, सेवक।

अनुवाद- उल्या, दोहराना, पुनरुक्ति, पुनर्लेख, भाषान्तर।

अपकार- अत्याचार, अनुपकार, अपकर्म, अपकृति, असद्व्यवहार, खुटाई, दुष्क्रिया, द्वेष, द्रोह, मन्दकर्म, बुराई।

अपकारी- अनिष्टसाधक, अनुदार, कुकर्मी, कृतघ्न, दुर्वृत्त, पीड़क।

अपमान- अतिपात, अनादर, अप्रतिष्ठा, अपयश, अमर्यादा, अमान, अवज्ञा, अवमान, अवमानना, अवहेला, अवहेलना, क्षेप, गौरवहीनता, तिरस्कार, निरादर, धिक्कार, पराभय, परिहार, परीहार, बेइज्जती।

अपार- अनंत, असीम, निस्सीम, बेशुमार, बेहद।

अपराध- अकार्य, अवकर्म, आग, कसूर, जुर्म, दुष्कर्म, दोष, मन्तु।

अपवाद- अवर्ण, आक्षेप, उपक्रोश, कुत्सा, गर्हण, जुगुप्सा, निन्दा, निर्वाद, परीवाद, बाधक।

अपवित्र- अपावन, अशुचि, अशुद्ध, अषौच, अस्वच्छ, कच्चर, गंदा, पाप, भली, मलिन, मलीन, मैला, दूषित।

अप्सरा- अरुणप्रिया, परी, देवकन्या, देवांगना, सुखनिता, सुरांगना, स्वर्गवेश्या, स्वर्वेश्या, हूर।

अफीम- अफ्यून, अफेन, अहिफेन, आफू, आफूक, खसफलक्षीर, खसखस रस, नागफेन, निफेन, पोस्तोद्भव, पोस्तरस, भुजंगफेन।

अभाग्य- अदिष्ट, कुदिन, कुसमय, दुर्दैव, दुर्भाग्य, विधिवास।

अभ्रक- अब्द, अबरक, अबरख, अभ्र, अमल, आभ, ख, गरजध्वज, गिरिज, गिरिजाबीज, गिरिजामल, गौर्य्यामल, गौरीज, गौरीजय, घन, घनाह्वक, तबक, निर्मल, बाहुपत्र, भुरवल, भृंग, भोडर, भोडल, व्योम, शुभ।

Paryayvachi Shabad

अभिजात- कुलीन, योग्य, विशिष्ट, श्रेष्ठ, संभ्रांत।

अभिप्राय- अभिलाषा, आकांक्षा, आशय, इच्छा, उद्देश्य, कांक्षा, कामना, तात्पर्य, मंशा, मतलब, सम्मति।

अभिमन्यु- पाण्डुपौत्र, पार्थनन्दन, सौभद्र।

अमरबेल- अकासबौर, आकाशबेल, आकाशबौंर, दुःस्पर्शा।

अमरूद- अमृतफल, अमरूत, तुवर, पृथक्कत्वच, पियरा, पियारा, प्रिया, पीतफल, पेरूक, मधुराम्लक, मांसल, मृदुफल, वीह, सफरी-लाल, सफरी-सफेद।

अमृत- अगदकार, अन्न, अनाज, अमिय, अमी, इन्द्र, उड़द, घी, जीवनोदक, जल, जीवित, दिव्य-पदार्थ, दूध, देवता, धन, धवन्तरि, पानी, पारा, पीयूष, भोजन, मधु, मुक्ति, विष, शशिरस, शहद, षिव, सार, सुधा, सुरभांग, सुरभोग, सूर्य, सोना, सोम, सोमरस, स्वर्ग।

अमलतास- अरुज, आरग्वध, आमहा, आरेवत, आरोग्यशिम्बी, कण्डूघ्न, कर्णाभरणक, कुष्टसूदन, कृतमाल, केदारकटुका, चक्रपरिव्याध, चतुरंगुल, ज्वरांतक, दीर्घफल, नक्तमाल, प्रमेह, मन्थान, महाकणिकार, राजवृक्ष, रोचन, व्याधिघात, शम्याक, सम्यक्, सुवर्णांक, स्बर्णांक, स्वर्णपुष्प, शेफलिका, हिमपुष्प।

अयोध्या- अवध, अवधपुरी, आदिपुरी, आद्या, विमला, साकेत।

अरण्ड- अंडी, अमण्ड, अमंगल, आमण्ड, उरुबुक, इष्ट, एरण्ड, एरण्डक, कांत, गंधर्वहस्तक, चंचुक, चित्रक, चित्रवीज, तरुण, तुच्छद्रु, त्रिपुटाफल, त्रिपुटी, दीर्घदन्तक, दीर्घपत्रक, पंचांगुल, मण्ड, रुव, रूचक, रुबूक, रेंड, रेंडी, वर्धमान, वातारि, वुक, व्रहणा, व्याघ्रदल, व्याघ्रपुच्छ, व्यडम्बन, शूलशत्रु, शुक्ल, स्नेहप्रद।

अरण्य- अटवी, कानन, कान्तार, गहन, जंगल, दावा, बीहड़, वन, विटप, विपिन।

वर्णक्रमानुसार पर्यायवाची शब्द : अ के पर्यायवाची शब्द

अर्जुन (पांडव)- अनघ, ऐंद्र, कपिध्वज, कर्णारि, किरीटी, कुन्तीसुत, कौन्तेय, गांडीवी, गांडीवधन्वा, गाण्डीवधर, गाण्डीवधारी, गुडाकेश, जिष्णु, धन्वी, धनंजय, धनुर्धर, नर, पाण्डुनंदन, पार्थ, फलगुन, फाल्गुन, बृहन्नला, भारत, विजय, विजयरथ, वीभत्सु, श्वेतवाहन, शक्रात्मज, शक्रनंदन, शब्दभेदी, सव्यसाची।

अर्जुन (पेड़)- अंजन, इन्द्रतरु, इंद्रद, इंद्रद्रुम, ककुम, ककुभ, कहू, काहु, कोह, नदीसर्ज, वीरवृक्ष, शंबर, शिवभल्ल, होलेमट्ट।

अरबी- आल, आलुक, आलुकी, गजकर्ण, गजकर्णालु, घुइयाँ, घुय्याँ, तीक्ष्णकन्द, दीर्घनाल, महापत्रालुक, हस्तिकर्ण।

अरहर- आढकी, तूअर, तूर, तोमरिका, पीतपुष्पा, बलपूर, मृतालिका, रहड़, वृतबीजा।

अलसी- अतसी, अतिसी, अतीसी, उमा, क्षुमा, क्षौम, क्षौमी, चणका, तीसी, तैलोत्तमा, देवी, नीलपुष्पी, नीलपुष्पिका, पार्वती, पिच्छिला, मदगंधा, मदोत्कटा, मसीना, रुद्रपत्नी, सुनीला, सुवर्चला, हेमवती।

अलि- छपद, द्विरेफ, भंवरा, भ्रमर, भृंग, भौंरा, मधुकर, मधुप, मिलिंद, षट्पद, सारंग।

अल्प- अपर्याप्त, कम, थोड़ा, न्यून।

Paryayvachi Shabad

अवज्ञा- अनादर, अपमान, अवमानना, तिरस्कार।

अवनति- अपकर्ष, उतार, गिराव, घटाव, हृास।

अवस्था- दशा, स्थिति, हालत, हालात।

अशुद्ध- अपवित्र, अशुचि, गंदा, दूषित, मलिन।

अशोक- अंगनप्रिय, अंगनाप्रिय, अपशोक, अशोग, कंकेली, कर्णपूर, कर्णपूरक, कांताचरणदोहद, केलिक, चक्रगुच्छ, चित्र, ताम्रपर्ण, ताम्रपल्लव, दोहली, दोषहारी, नट, पल्लवक, पल्लवद्रुम, पिंडपुष्पक, प्रपल्लव, बंजुल, बेलिक, मधुपुष्प, मौलिविशोक, रक्तपल्लव, राजपल्लव, रामा, रोगितरु, वंजुलद्रुम, वामांकपातन, वामाघ्रिघातक, विचित्र, विशोक, शोकघ्न, शोकनाशक, शोकनाषन, शोकहर्ता, सुभग, स्मराधिवास, हेमपुष्पक।

अश्व- आशुविमानक, कलील, घोड़ा, घोटक, चगर, तुरंग, तुरंगम, वाजि, सैंधव, हय।

अश्वगंधा- अश्वावरोहक, अश्वारोहा, असगंध, कटुका, काम्बुका, काला, गंधपत्री, तुरगी, पलाशपर्णी, पुण्या, बलजा, बल्या, बाजिनी, बाजीकरी, वरगात्रकरी, वातघ्नी, वाराहकर्णी, श्यामला, हया।

असभ्य- अभद्र, अशिष्ट, दुश्शील, गँवार।

असुर- अगिर, अदेव, अयोमुख, अस्रप, आशर, इन्द्रारि, कटप्रू, कर्बुर, कीलाप, कीलालय, कौणप, क्रव्याद, क्षपाट, तमचर, तमिचर, दनुज, दमुल, दानव, दितिसुत, दुर्जय, दैत्य, दैतेय, धूम्रकेशी, नरधिष्मण, निकषात्मज, निशाचर, निशिचर, नृचश, नैऋत, पलाशपलाशी, पुण्यजन, पूर्वदेव, भूत, मनुजाद, मायावी, यातु, यातुधान, रक्ष, रजनीचर, राक्षस, शुक्रशिष्य, सन्ध्याबल, सुरद्विट, सुरारि।

अस्त- अदृश्य, ओझल, गायब, तिरोहित, लुप्त।

अहंकार- अंहकृति, अभिमान, अवलेप, उद्धत-मनस्कत्व, गर्व, गुमान, गुरूर, घमण्ड, चित्त-समुन्नति, मान, दर्प, दम्भ, मद, स्मय, हम।

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अं-अँ के पर्यायवाची शब्द (भाग-1)

अ के पर्यायवाची शब्द (भाग-2)

पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabad (भाग-1) – अं अँ

अं अँ के पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabad

अ से ज्ञ तक तक हिंदी वर्णक्रमानुसार पर्यायवाची शब्द | Paryayvachi Shabad | Hindi Synonyms एवं पर्यायवाची-शब्द किसे कहते हैं? पर्यायवाची शब्द का अर्थ।

अं – के | पर्यायवाची शब्द | Paryayvachi Shabad | Hindi Synonyms

अंक- अक्षर, अनखा, आँकड़ा, गोद, चिह्न, डिठौना, दफ़ा, दाग, धब्बा, निशान, परिच्छेद, पाप, भाग्य, संख्या।

अंकुर- अंगूर, अँखुवा, आँख, कलिका, कल्ला, गाभ, जल, नोक, प्ररोह, भराव, रक्त, लोम।

अंग- अंश, अपघन, अवयव, उपाय, खंड, गात, गात्र, जन्मलग्न, टुकड़ा, तन, देह, प्रकृति, प्रतीक, भाग, भेद, विभाग, शरीर, सहायक, सुहृद, हिस्सा।

अंगद- तारेय, बालिकुमार, बालितनय, बालिपुत्र, भुजबन्द।

अंगार- अँगारा, चिनगारी।

अंगीठी- अंगारधानी, अँगारधानिका, अँगारशकटी, अँगेठी, आतिशदान, जलते कोयलों का समूह रखने को एक पात्र, बोरसी, सिगड़ी, हसन्ती, हसनी।

अंचल- आँचल, किनारा, छोर, तट, पल्ला, प्रान्त।

अंजन- एक सर्प, काजल, छिपकली, माया, लेप, सुरमा।

अंजीर- काकोदुम्बरिका फल, मंजुल।

अंड- अंडकोश, अंडा, कामदेव, कोष, डिम्ब, पेशी, पेषीकोष, ब्रह्माण्ड, माया, विश्व, वीर्य।

अंडकोष- भण्ड, मुष्क, वृष्ण।

अंत- अंतिम भाग, अवसान, आखिर, इति, इतिश्री, छोर, परिणाम, परे, पार, पूर्ण, प्रलय, फल, मृत्यु, समाप्त, समाप्ति, समापन, समीप।

अंतःपुर- ज़नानखाना, भागपुर, रनिवास, हरम।

अंतर- असमानता, आड़, दूरी, परदा, फासला, फर्क, भिन्नता, भेद।

अंतरंग- अभ्यतंर, आंतरिक, घनिष्ठ, दोस्ताना, भीतरी, मैत्रीपूर्ण, हार्दिक।

अंतर्दृष्टि- आत्मचिंतन, ज्ञानचक्षु।

अंतर्धान- अंतर्हित, अदृश्य, ओझल, गायब, गुप्त, छिपा, तिरोभूत, तिरोहित, लुप्त।

अंतरिक्ष- अंतरीक, अंबर, अंभ, अक्षर, अनंग, अनन्त, अभ्र, अभ्रक, अर्श, आकाश, आसमान, उडुपथ, औंधा घड़ा, खग, खगोल, गगन, गुप्त, गो, घनाश्रय, चर्ख, ज्योतिष्पथ, तारापथ, तारायण, द्यु, द्यावा, दिव, नभ, नभस्थल, नाक, नील, नीलनिलय, नीलाकाश, पुष्कर, फलक, बुलन्द, भुवन, मरुत्पथ, महाशून्य, मेघपथ, मेरूपृष्ठ, लोककाश, व्योम, वायुमण्डल, वितान, शून्य, शून्यसर्वतोमुख, सिद्धपथ, सुरपथ, सोमधारा, स्वर्गपथ।

अंदाज- अटकल, अनुमान, कूत, ढंग, ढब, तख़मीना, तर्ज।

अंधा- अंध, अंधियारा, अदृक्, अनेत्री, चक्षुहीन, दृष्टिहीन, नेत्रहीन, सूर।

अंधकार- अंध, अंधार, अंध्यार, अंधियारी, अंधेरा, अंधेरी, कालिमा, कुहा, कृष्ण, घटा, छाया, झाँई, तम, तमता, तमर, तमस्, तमिस्र, तामस, तारीक, तारीकी, तिमिर, दिनकेशर, दिनांत, दिनांतक, धुन्धाकार, धुमलाई, नभोरज, निद्रावृक्ष, नीलपंक, निशाचर्म, ध्वांत।

अंश- अंग, अवयव, पक्ष, भाग, शरीर, सहायक, हिस्सा।

अँ – के | पर्यायवाची शब्द | Paryayvachi Shabad | Hindi Synonyms

अँकाई- अंदाजा, आँकने की क्रिया, मूल्यांकन।

अँगना- कामिनी, वामा, सुंदरी, सुमुखी।

अँगूठी- अँगुश्तरी, अंगुलीमुद्रा, अंगुलीयक, अंगुष्ठिका, ऊर्मिका, गोल, छल्ला, मुँदरी, मुद्रा, मुद्रिका।

अँगूर- अमृतफला, अमृतरसा, कृष्णा, गुच्छफला, गोस्तनी, चारुफला, तापसप्रिया, दाख, द्राक्षा, मधुरसा, प्रियाला, फलोत्तमा, मृद्वीका, यक्ष्मघ्नी, रसा, रसाला, सुफला, स्वादी, स्वादुपला, हारहूरा।

अँगोछा- उपरना, उपवस्त्र, गमछा, तौलिया।

अँतड़ी- अँतड़ी, अन्त्र, आँत, आँती, पुरीत।

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अं-अँ के पर्यायवाची शब्द (भाग-1)

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प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत – Imitation Theory of Plato

प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत – Imitation Theory of Plato

यह आलेख प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत, प्लेटो का काव्य सिद्धांत, काव्य अनुकरण सिद्धांत, अरस्तु एवं प्लेटो के अनुकरण सिद्धांत में अंतर के बारे जानकारी देगा।

अनुकरण शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘इमिटेशन’ (IMITATION) का हिंदी रूपांतरण है।

‘इमिटेशन’ शब्द यूनानी (ग्रीक) भाषा के ‘मिमेसिस’ (MIMESIS) का अंग्रेजी रूपांतरण है।

प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत
प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत

अनुकरण का सामान्य अर्थ एवं परिभाषा

इसका सामान्य अर्थ– नकल, प्रतिलिपि या प्रतिच्छाया है।

इसका मान्य अर्थ– “अभ्यास के लिए लेखकों और कवियों को उपलब्ध उत्कृष्ट रचनाओं का अध्ययन अनुसरण करना है।”

ग्रीक दार्शनिक एवं विचारक प्लेटो ने अपनी पुस्तक ‘रिपब्लिक’ में काव्य को मूल प्रत्यय के अनुकरण का अनुकरण कहा है।

प्लेटो ने अनुकरण को अलग-अलग अर्थों में प्रयोग किया है। प्लेटो ने इसका प्रयोग सस्ती, घटिया और त्रुटिपूर्ण अनुकृति (नकल) के रूप में किया है।

कहीं अनुकरण को सभी कलाओं की मौलिक विशेषता बताया है तो कहीं कल्पना तथा रचनात्मक शक्ति के अर्थ में प्रयोग किया है।

प्लेटो ने संसार को ईश्वर की अनुकृति (नकल) बताया है तथा काव्य को संसार की अनुकृति (नकल) कहा है।

प्लेटो की मान्यता है कि कवि अनुकृति (नकल) की अनुकृति (नकल) करता है।

डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त- ‘‘प्लेटो ने कविता को अनुकृति बताकर काव्य-मीमांसा के क्षेत्र में एक ऐसे सिद्धांत की प्रतिष्ठा की जो परवर्ती युग में विकसित होकर काव्य-समीक्षा का आधार बना।’’

अनुकरण संबंधी प्लेटो की मान्यताएं

ईश्वर सृष्टा है उसके द्वारा रचित प्रत्यय जगत् ही सत्य है।

वस्तु जगत्, प्रत्यय जगत् की अनुकृति/नकल या छाया है अतः मिथ्या या असत्य है अर्थात सांसारिक वस्तुएं ईश्वरी संसार की नकल करके बनाई गई हैं अतः यह असत्य है।

संसार का सत्य केवल ईश्वरीय या प्रत्यय जगत है।

कला जगत् वस्तु जगत् का अनुकरण है, अतः यह अनुकरण का भी अनुकरण है।

अतः और भी मिथ्या है/असत्य हैं। कलाकार अनुकर्ता (नकल करने वाला) है।

प्लेटो द्वारा काव्य पर लगाए गए आरोप : प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत

काव्य अनुकृति (नकल) की अनुकृति (नकल) है।

कवि अज्ञानी तथा अज्ञान का प्रसारक भी है।

काव्य क्षुद्र (हीन) मानवीय भावों और कल्पना पर आधारित होता है।

कलात्मक रचनाएं समाज के लिए अनुपयोगी है।

काव्य है वासनामय भावों को जगाता है।

कवि समाज में अनाचार एवं दुर्बलता का पोषण करने का अपराधी है।

प्लेटो ऐसी कविताओं को महत्त्वपूर्ण, उचित एवं प्रभावोत्पादक मानता है जिसमें वीर पुरुषों की गाथा हो या देवताओं के श्लोक हों।

अरस्तु और अनुकरण

अरस्तु का विरेचन सिद्धांत

निबंध लेखन की कला (The art of writing essays)

निबंध लेखन की कला

मुझे इतनी तो उम्मीद है कि मेरे इस लेख को पढ़ने के बाद आप निबंध लेखन की कला, शीर्षक, शैली एवं शब्दावली, निबंध लिखने के प्रकार, निबंध लिखने से लाभ समझ जाएंगे। मुझे इतना तो विश्वास है कि आपको निबंध की अविश्वसनीय दुनिया से भी प्यार हो जाएगा।

मुझे लेख पसंद हैं और पढ़ने, लिखने एवं उनकी जाँच करने तथा छात्रों को यह सिखाने में बहुत आनंद मिलता है कि उन्हें कैसे उत्पन्न किया जाए, लेकिन सबसे ज्यादा मुझे निबंध लिखने में मजा आता है।

आप पूछना चाहते हैं क्यों? क्या आप भी निबंध लेखन की कला के बारे में जानना चाहते हैं?

निबंध लेखन की कला
निबंध लेखन की कला

निबंध का अर्थ

आप एक छोटी पृष्ठभूमि से हमारी यह यात्रा शुरू करें।

‘निबंध’ शब्द फ्रेंच भाषा के शब्द ‘essay’ से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ होता है ‘प्रयास, स्केच’।

यह अनुवाद आपके कॉलेज में असाइन किए गए कार्य का सार दर्शाता है।

वास्तव में, यह आपका व्यक्तिगत प्रयास है कि आप किसी बड़े विषय पर चुनौतीपूर्ण स्केच दें।

अन्य अकादमिक असाइनमेंट के विपरीत, निबंध आपके रचनात्मक कार्य की स्वतंत्रता का सुझाव देता है।

इसका मुख्य लाभ यह है कि आप इसे किसी भी विषय पर, किसी भी शैली में लिख सकते हैं।

निबंध क्या है?

लेख आपके द्वारा सुनी-सुनाई बातों पर आपका अपना दृष्टिकोण होता है, पढ़ा हुआ, देखा हुआ आदि।

निबंध का सबसे आगे का हिस्सा आपका व्यक्तित्व, आपके विचार, भावनाएँ और आपकी जीवन स्थिति है।

आपके पास अन्य लेखकों के साथ एक उचित विवाद में प्रवेश करने का एक अनूठा मौका है, क्योंकि शिक्षक आपसे यह उम्मीद करते हैं कि आप इस विषय में अपना व्यवहार दिखाएं।

हालांकि, आपको याद रखना चाहिए कि लेखन प्रक्रिया की स्वतंत्रता के बावजूद, यह इतना आसान नहीं है।

क्योंकि आपको एक मूल और कैप्चरिंग विचार (पारंपरिक संदर्भ में भी) और कुछ समस्या पर असाधारण राय मिलने की उम्मीद है।

निबंध का शीर्षक : निबंध लेखन की कला

निबंध का शीर्षक निबंध विषय पर कड़ाई से निर्भर नहीं करता है।

इसका शीर्षक आपके प्रतिबिंब में शुरुआती बिंदु के रूप में भी काम कर सकता है।

यह लेख के पूरे और भागों के संबंध को व्यक्त कर सकता है।

लेख की एक स्वतंत्र रचना इसके आंतरिक तर्क के अधीन है, यह लेखक की एक जोरदार स्थिति होती है।

निबंध कैसे लिखें?

निबंध की शैली को इसके कामोद्दीपक, विरोधाभासी और आलंकारिक चरित्र द्वारा चिह्नित किया जाता है।

दुनिया की अपनी व्यक्तिगत धारणा को व्यक्त करने के लिए आपको चाहिए, बहुत सारे कैप्चरिंग उदाहरणों को नियोजित करें, समानताएं बनाएं, उपमाएं चुनें, विभिन्न संघों का उपयोग करें।

निबंध की चारित्रिक विशेषताओं में से एक है, कई अर्थपूर्ण साधनों का विस्तृत उपयोग, जैसे रूपक, दृष्टान्त और उपमान चित्र, प्रतीक और तुलना।

यदि आप इसमें शामिल हैं, तो आप अपने निबंध को और अधिक रोचक बन सकता है।

अप्रत्याशित निष्कर्ष, अप्रत्याशित मोड़, घटनाओं के दिलचस्प चंगुल। इस तथ्य को लेखक के तर्कों का एक गतिशील इंटरचेंज, साक्ष्य और सवालों का समर्थन करता है।

निबंध की शैली एवं शब्दावली : निबंध लेखन की कला

निबंध को संक्षिप्त रखें, किंतु एक ही समय में पूर्ण सादगी से भी बचें।

कोई भी एक नीरस कथन पढ़ना पसंद नहीं करेगा।

अपने निबंध के मसौदे को पूरा करते हुए, इसे जोर से पढ़ें।

आप अपने निबंध में किसी न किसी विवरण की संख्या से प्रभावित होंगे।

आपको बिना किसी अफसोस के उनसे छुटकारा पाना चाहिए।

यदि आपको कुछ नया, मूल और अनन्य कहना है, तो निबंध की शैली आपकी शैली होनी चाहिए।

निबंध लिखते समय रचनात्मक रहें, अपने दिमाग को मुक्त करें और हो सकता है कि आप में छिपा एक महान निबंधकार प्रकट हो जाए।

अरस्तु और अनुकरण

कल्पना अर्थ एवं स्वरूप

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

संस्मरण और रेखाचित्र

कामायनी के विषय में कथन

कामायनी महाकाव्य की जानकारी

Munshi Premchand जीवन परिचय

उपन्यास सम्राट Munshi Premchand जीवन परिचय

कलम का सिपाही, कलम का जादूगर एवं उपन्यास सम्राट कहलाने वाले Munshi Premchand के जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कहानियाँ और उपन्यास, महत्त्वपूर्ण तथ्य, एवं मान सरोवर आदि के बारे संपूर्ण जानकारी।

Munshi Premchand का जीवन परिचय

जन्म- 31 जुलाई 1880 लमही, वाराणसी, उत्तरप्रदेश

मृत्यु- 8 अक्टूबर 1936 (56 वर्ष की आयु में ) वाराणसी, उत्तरप्रदेश

व्यवसाय- अध्यापक, लेखक, पत्रकार राष्ट्रीयता― भारतीय

अवधि/काल- आधुनिक काल

विधा- कहानी और उपन्यास

विषय- सामाजिक और कृषक-जीवन साहित्यिक आन्दोलन-आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी

अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ

Munshi Premchand का साहित्यिक परिचय

उपन्यास

सेवा सदन― 1918

प्रेमाश्रय― 1922

रंगभूमि― 1925

कायाकल्प― 1926

निर्मला― 1927

गबन― 1931

कर्मभूमि― 1933

गोदान― 1935

मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय
मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय

उपन्यासों को कालक्रम अनुसार याद करने के लिए अचूक सूत्र

प्रेमचंद की सेवा और प्रेम का लोगों पर ऐसा रंग चढ़ा कि उनकी काया निर्मल हो गई और उन्होंने गबन का कर्म छोड़कर गोदान करके पूरा न सही पर अधूरा मंगल अवश्य किया।

सेवा- सेवा सदन-1918

प्रेम-प्रेमाश्रय-1922

रंग-रंगभूमि-1925

काया-कायाकल्प-1926

निर्मल-निर्मला-1927

गबन-गबन-1931

कर्म-कर्मभूमि-1933

गो दान- गोदान-1935

मंगल-मंगलसूत्र (यह इनका अधूरा उपन्यास है जिसे इनके पुत्र ‘अमृतराय’ ने पूरा कर 1948 मे प्रकाशित करवाया)

उपन्यास संबंधी विशेष तथ्य : मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय

सेवा सदन

यह उपन्यास पहले ‘बाज़ारे- हुस्न’ नाम से उर्दू में लिखा गया।

इसमें विवाह से जुड़ी समस्याएं दहेज प्रथा, कुलीनता, विवाह के बाद पत्नी का स्थान, समाज में वेश्याओं की स्थिति का चित्रण किया गया है।

प्रेमचंद ने स्वयं इसे ‘हिंदी का बेहतरीन नावेल’ कहा है।

प्रेमाश्रय

यह पहले गोशए-आफ़ियत नाम से उर्दू मे लिखा गया।

यह हिन्दी का पहला राजनीतिक उपन्यास माना जाता है।

रंगभूमि

यह पहले चौगाने हस्ती नाम से उर्दू मे लिखा गया।

इसमें शासक व अधिकारी वर्ग के अत्याचारों का चित्रण किया गया है इसका नायक एक अंधा सूरदास है।

यह उपन्यास महात्मा गांधी की व्यक्तिगत सत्याग्रह नीति से प्रभावित माना जाता है।

कायाकल्प

प्रेमचंद जी का मूल रूप से हिंदी में लिखित पहला उपन्यास माना जाता है।

इसमें ढोंगी बाबाओं के चमत्कार, पूर्व जन्म की स्मृतियां, वृद्धा को तरुणी में बदलना आदि संप्रदायिक समस्याओं का चित्रण किया गया है।

यह योग संबंधी कल्पना से मंडित उपन्यास है इसमें कई जन्मों की कहानियां कही गई है।

निर्मला

इस उपन्यास में दहेज व अनमेल विवाह की समस्या को उभारा आ गया है।

गबन- इसमें भारतीय मध्यम आय वर्ग की आभूषण लालसा एवं आर्थिक विषमता की समस्या को उभारा गया है।

कर्मभूमि- इसमें हरिजन की स्थिति एवं उनकी समस्याओं का चित्रण किया गया है।

गोदान

यह प्रेमचंद जी का अंतिम प्रकाशित उपन्यास है।

इसमें किसान व मजदूर वर्ग की समस्याओं को निरूपित किया गया है।

मालती-मेहता, धनिया-होरी,गोबर आदि इसके प्रमुख पात्र है।

डॉक्टर नगेंद्र ने इस उपन्यास को ‘ग्रामीण जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य’ माना है।

मंगलसूत्र

इनका अपूर्ण उपन्यास।

प्रेमचंद के प्रथम उपन्यास संबंधी मत : Munshi Premchand जीवन परिचय

इसरारे मोहब्बत (1898 ई.) प्रेमचंद का पहला उपन्यास था जो जो 19वीं सदी के अन्य उपन्यासों की तरह बनारस के एक साप्ताहिक पत्र में प्रकाशित हुआ था। कदाचित् प्रतापचंद’ (1901 ई) उपन्यास भी उर्दू की रचना थी। -कथाकार प्रेमचंद : डॉ. रामरतन भटनागर

इसरारे मोहब्बत (सन् 1898) एक संक्षिप्त उपन्यास जो बनारस के साप्ताहिक ‘आवाजें खल्क’ में क्रमशः प्रकाशित हुआ। प्रतापचंद (1901ई) जो अपने असली रूप में प्रकाशित नहीं हुआ।

प्रेमचंद एक विवेचन. डॉ. इंद्रनाथ मदान

“प्रेमचंद का पहला नॉवेल ‘हम खुर्मा ओ हम शबाब’ था।” ‘जमाना’ (प्रेमचंद नवंबर)― सं. -दयानारायण निगम

“’प्रतापचंद प्रेमचंद का पहला उपन्यास है।”― आजकल (दिल्ली, 1953) -मो. उमर खान

“हिंदी में प्रेमचंद का पहला नॉवेल ‘प्रेमा और उर्दू में ‘प्रतापचंद’ धनपत राय के नाम से छपे हुए हैं।”― जमाना (प्रेमचंद, नवंबर), जोगेश्वर नाथ वर्मा

“असरारे मआबिद ही प्रेमचंद की पहली प्रकाशित औपन्यासिक रचना प्रसिद्ध है।”― पत्रिका (बिहार राष्ट्रभाषा)― डॉ. जाफर रजा

“‘असरा रेमआबिद’ धारावाहिक रूप में बनारस के साप्ताहिक ‘आवाज ए खल्क’ में 8 अक्टूबर 1903 से 1 जनवरी 1904 तक प्रकाशित हुआ था।”― डॉ. जाफर रजा

“असरारे-मआबिद (उर्फ देवस्थान रहस्य) प्रेमचंद का प्रथम प्रकाशित उपन्यास है।”― डॉ. गोपाल राय, प्रेमचंद मेरठ वि. वि. शोध पत्रिका, 1981

“‘हम खुरमा वा हम सबाब’ प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास है। इसका हिंदी रूपान्तरण प्रेमा अर्थात् ‘दो सखियों का विवाह शीर्षक से 1907 में प्रकाशित हुआ। ‘किसना’ संभवतः प्रेमचंद का उर्दू में रचित तीसरा उपन्यास है।”― डॉ. गोपाल राय, प्रेमचंद मेरठ वि. वि. शोध पत्रिका, 1981

प्रेमचंद का पहला उपन्यास प्रतापचंद ही है।― शिवरानी देवी : प्रेमचंद घर में

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

असरारे मुआविद उर्फ देवस्थान रहस्य’ का नाम डॉ. राजेश्वर गुरु एवं इद्रनाथ मदान ने ‘असररारे मुहब्बत’ दिया है जबकि मदन गोपाल ने ‘असरारे मुआविद’ नाम दिया है।

‘वरदान’ मूल रूप से ‘जलवाए-ईसार’ शीर्षक से लिखा गया था वर्षो बाद प्रेमचंद ने स्वयं इसका हिंदी में रूपान्तरण ‘वरदान’ शीर्षक से किया।

‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास मूल रूप से ‘हमखुर्मा-वा-हमसबाब’ के नाम से उर्दू में लिखा गया और हिंदी में ‘प्रेमा’ नाम से प्रकाशित हुआ। उर्दू में इसका एक अन्य नाम ‘बेवा’ था।

‘किशना’ उपन्यास का उल्लेख अमृतराय और मदनगोपाल ने किया है यह उपन्यास उपलब्ध नहीं है।

‘सेवासदन’ की रचना पहले उर्दू में ‘बाजारे हुस्न’ शीर्षक से हुई थी। यह पहले हिंदी में छपा और इसका रूपान्तरण स्वयं प्रेमचंद ने किया था।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

‘प्रेमाश्रम’ (1922 ई.) पहले उर्दू में ‘गोश-ए-आफियत’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

‘रंगभूमि’ (1925 ई.) ‘चौगाने हस्ती’ शीर्षक से छपा।

रंगभूमि के संबंध में अमृतराय ने लिखा है कि रंगभूमि (चौगाने हस्ती) पहले मूल रूप में उर्दू में लिखा गया था पर छपा पहले हिंदी में।

रंगभूमि का मराठी में भी रूपान्तर ‘जगाचार’ शीर्षक से हुआ था।

‘प्रेमाश्रम’ के उर्दू में ‘नाकाम’, ‘नेकनाम’, ‘गोशाए-आफियत’ विभिन्न नाम रखे गये।

‘कायाकल्प’ मूल रूप से हिंदी में लिखित प्रेमचंद की पहली रचना है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास के अन्य नाम आर्तनाद, असाध्य साधना, माया इत्यादि रखे थे। उर्दू में इसका रूपांतर ‘पर्दा ए मजाज’ शीर्षक से हुआ।

‘गबन’ उपन्यास मूल में प्रेमचंद ने हिंदी में ही लिखा था और उर्दू में भी यही नामकरण रहा।

निर्मला उपन्यास ‘चाँद’ में धारावाहिक रूप में छपा। यह हिंदी में ही लिखा गया था।

कर्मभूमि मूल रूप से हिंदी में लिखित उपन्यास है, जिसका उर्दू में रूपान्तर ‘मैदाने अमल’ था।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

गोदान का उर्दू में नाम गऊदान रखा गया था।

शरच्चंद्र चटर्जी ने प्रेमचंद के ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी।

‘रंगभूमि’ उपन्यास को ‘भारतीय जनजीवन का रंगमंच’ कहा गया है।

डॉ. बच्चन सिंह ने ‘रंगभूमि’ को गांधीवादी जीवन दर्शन का ‘महाकाव्यात्मक उपन्यास’ (एपिक नावेल) कहा है।

प्रेमचंद ने ‘प्रेमा अर्थात दो सखियों का विवाह’ नामक उपन्यास को संशोधित कर ‘प्रतिज्ञा’ शीर्षक से 1929 में प्रकाशित करवाया।

अमृत राय ने इन पर ‘कलम का सिपाही’ तथा मदन गोपाल ने ‘कलम का जादूगर’ नामक जीवनियाँ लिखी।

डॉ. रामविलास शर्मा ने इन्हें कबीर के बाद दूसरा सबसे बड़ा व्यंग्यकार कहा है।

प्रेमचंद ने आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी उपन्यास लेखन परंपरा का प्रवर्तन किया।

गोदान संबंधी प्रसिद्ध मत अथवा कथन : Munshi Premchand जीवन परिचय

कमल किशोर गोयनका, प्रेमचंद के उपन्यासों का शिल्पविधान- “गोदान की महाकाव्यात्मकता महाकाव्य के समान निर्मित नहीं हुई है बल्कि यह उपन्यास यथार्थवादी नींव पर अवस्थित है। कृषक जीवन और कृषक संस्कृति के पतन की एपिक कहानी के कारण गोदान एक महाकाव्यात्मक उपन्यास है।”

बच्चन सिंह आधुनिक हिंदी उपन्यास सं. नरेन्द्र मोहन- “गोदान महाकाव्यात्मक उपन्यास है। दुनिया में केवल दो ही महाकाव्यात्मक उपन्यास हैं एक तालस्ताय का ‘युद्ध और शांति’ और दूसरा प्रेमचंद का ‘गोदान’।”

डॉ. गोपाल राय, गोदान एक नया परिप्रेक्ष्य- “गोदान कृषि संस्कृति एवं ग्रामीण जीवन का महाकाव्य है।”

गोपालकृष्ण कौल, आलोचना, अक्टूबर, 1952, अंक 5- “गोदान उपन्यास की शैली में भारतीय जीवन का महाकाव्य है।”

नलिन विलोचन शर्मा, आलोचना, अक्टूबर, 1952- “गोदान कृषि संस्कृति का शोकगीत न होकर करुण महाकाव्य है।”

शांति स्वरूप गुप्त, हिंदी उपन्यास : महाकाव्य के स्वर- “गोदान गद्यशैली में लिखा गया भारतीय जीवन विशेषतः ग्राम जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य है।”

नलिन विलोचन शर्मा, आलोचना 1952, अंक 5- “गोदान का स्थापत्य पूर्णतः समानान्तर स्थापत्य शैली है। गोदान के स्थापत्य की यही वह विशेषता है, जिसके कारण उसमें महाकाव्यात्मक गरिमा आ जाती है। नदी के दो तट असंबद्ध दिखते हैं पर ये वस्तुतः असंबद्ध नहीं रहते-उन्हीं के बीच से भारतीय जीवन की विशाल धारा बहती चली जाती है। भारतीय जनजीवन का इतना यथार्थ चित्रण किसी उपन्यास में नहीं हुआ है।”

आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी, प्रेमचंद साहित्यिक विवेचन- “गोदान को इसलिए एपिकल नॉवेल नहीं माना जा सकता क्योंकि वह राष्ट्रीय प्रतिनिधि उपन्यास की उन शर्तों को पूरा नहीं करता, जिन्हें टॉलस्टाय का वार एंड पीस उपन्यास करता है।”

गोदान का उद्देश्य

डॉ. रामविलास शर्मा, प्रेमचंद और उनका युग- गोदान की मूल समस्या ऋण की समस्या है।

कमल किशोर गोयनका, प्रेमचंद के उपन्यासों का शिल्प विधान- गोदान का उद्देश्य कृषि संस्कृति के ध्वंस की यथार्थ कहानी है।

नलिन विलोचन शर्मा, हिंदी उपन्यास विशेषतः प्रेमचंद- भारतीय जीवन का विराट चित्र।

गोदान जीवन के विविध प्रश्नों को उपस्थित कर ग्रामीण जीवन की स्थिति का उद्घाटन― नंद दुलारे वाजपेयी, प्रेमचंद साहित्यिक विवेचन

प्रेमचंद की साहित्यिक जीवन का श्रीगणेश― उर्दू उपन्यास से (सोजेवतन से पूर्व उर्दू में इनके 4 उपन्यास प्रकाशित हो चुके थे―

असरारे मुआबिद

हमखुर्मा व हम सवाब

किशना

रूठी रानी (हिंदी उपन्यास) मूल लेखक― मुंशी देवीप्रसाद जोधपुरी। इसी शीर्षक से उर्दू अनुवाद― प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ : Munshi Premchand जीवन परिचय

कहानी-यात्रा― 1908-1936 ई.

प्रेमचंद जी की पहली कहानी, पहली हिंदी कहानी, पहली प्रकाशित कहानी, अंतिम कहानी इत्यादि बिंदुओं पर पर्याप्त मतभेद हैं इन मतभेदों से संबंधित प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं―

प्रेमचंद के अनुसार उनकी पहली कहानी― ‘संसार का अनमोल रतन’ (1907 में जमाना में प्रकाशित) उनके लेख जीवन-सार के अनुसार। कमलकिशोर गोयनका ने इसे गलत मानते हुए ‘इश्के दुनिया’ और ‘हुब्बे वतन’ को उनकी पहली कहानी माना है।

प्रथम उर्दू कहानी― ‘इश्के दुनिया और हुब्बे वतन’ (हिंदी में सांसारिक प्रेम और देश प्रेम), जमाना, अप्रैल 1908 अंक में प्रकाशित

प्रथम उर्दू कहानी-संग्रह― सोजेवतन (जमाना प्रेस, कानपुर से जून 1908 में प्रकाशित)

प्रेमचंद की पहली हिंदी कहानी― परीक्षा (कानपुर के साप्ताहिक प्रताप के विजयादशमी अंक अक्टूबर 1914 में प्रकाशित)

प्रेमचंद की हिंदी कहानियों का प्रथम संग्रह― सप्तसरोज (1917 ई.)। भूमिका लेखक मन्नन द्विवेदी गजपुरी थे, जिन्होंने प्रेमचंद को टैगोर के समकक्ष स्थान दिया था।

मानसरोवर में संगृहीत कुल कहानियाँ

मानसरोवर भाग 1 से 8 तक में संगृहीत कहानियों की संख्या― 203

प्रेमचंद की कुल कहानियों की संख्या― प्रेमचंद के अनुसार― 250

श्रीपति शर्मा― 280 + 178 उर्दू कहानियाँ

रामरतन भटनागर― 250 से 300

नंददुलारे वाजपेयी― 380 के लगभग + 100 के ऊपर उर्दू

इंद्रनाथ मदान― 250

लक्ष्मीनारायण लाल― 400 जिनमें 178 उर्दू कहानियाँ

देवराज उपाध्याय― 400

अमृतराय कलम का सिपाही में― 224

कमल किशोर गोयनका के अनुसार― 301

हिंदी―उर्दू कहानियों से संबंधित मत― प्रेमचंद के जीवन काल में 25 कहानी-संग्रह प्रकाशित जिनमें 208 कहानियाँ संगृहीत थीं।
कमल किशोर गोयनका ने इनकी संख्या 289 बताया है।

प्रेमचंद की अंतिम कहानी

क्रिकेट मैच―जमाना नामक पत्रिका जुलाई, 1937 में यह उर्दू में प्रकाशित हुई थी। (कमल किशोर गोयनका के अनुसार)

यह भी नशा वह भी नशा मार्च 1987 में यह हिंदी में प्रकाशित हुई थी।

‘सोजे वतन’ (कहानी-संग्रह) ‘सोजे वतन’ की देशभक्तिपूर्ण कहानियों को तात्कालिक अंग्रेजी सरकार ने राजद्रोह मानते हुए इसकी 700 प्रतियाँ जलवा दी थीं।

प्रेमचंद जी की पहली कहानी- ‘संसार का अनमोल रत्न’ यह 1907 ईस्वी में ‘जमाना’ पत्र में प्रकाशित यह उर्दू में ‘नवाब राय’ नाम से लिखी गई।

प्रेमचंद नाम से रचित पहली कहानी

डॉ. नगेंद्र के अनुसार हिंदी में रचित सर्वप्रथम कहानी- ‘सौत’ 1915

गणपति चंद्र गुप्त के अनुसार प्रेमचंद की प्रथम हिंदी कहानी- पंच परमेश्वर 1916

नगेंद्र के अनुसार प्रेमचंद की हिंदी में रचित अंतिम कहानी- कफन 1936

तात्कालिक अंग्रेजी सरकार द्वारा ‘सोजे वतन’ (कहानी संग्रह) जप्त कर लिए जाने के बाद ‘जमाना’ के सं. मुंशी दयाराम निगम ने प्रेमचद को प्रेमचंद नाम दिया और वे नवाबराय नाम छोड़कर प्रेमचंद नाम से लिखने लगे।

‘सेवासदन’ उपन्यास के संबंध में प्रेमचंद के शब्द “नक्कादों ने हिंदी जबान का बेहतरीन नाविल घोषित किया।”

पंडित नेहरू की पुस्तक ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ (इंदिरा गांधी को लिखे गए पत्रों का संग्रह) का हिंदी अनुवाद प्रेमचंद ने किया।

प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘कफन’, ‘चांद’ के अप्रैल 1936 अंक में प्रकाशित हुई थी। यह कहानी प्रेमचंद की उर्दू कहानी ‘कफन’ (जामिया उर्दू पत्रिका, दिसंबर 1935) का हिंदी रूपांतरण है।

प्रेमचंद की मृत्यूपरांत मानसरोवर भाग 3 से लेकर भाग 8 तक की कहानी-संग्रह का प्रकाशन हुआ।

गुप्तधन I, II का प्रकाशन 1962 ई. में हुआ (अमृतराय द्वारा दो खंडों में 56 अप्राप्य कहानियों का संकलन)

सोजेवतन में 5 उर्दू कहानियां थीं-

सोजेवतन (हिंदी में यही शीर्षक)

दुनिया का सबसे अनमोल रतन (हिंदी में यही शीर्षक)

शेख मखमूर (हिंदी में यही शीर्षक)

यही मेरा वतन है (हिंदी में यही मेरी मातृभूमि है)

सिला-ए-मात (हिंदी में शोक का पुरस्कार शीर्षक)

प्रेमचंद की कहानियों का उर्दू संग्रह

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से प्रेमचंद का समग्र उर्दू साहित्य 24 खंडों में प्रकाशित है।

डॉ. कमल किशोर गोयनका कृत ‘प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन’ के अनुसार

सोजेवतन (1908)

प्रेमपचीसी (1914)

सैरे दरवेश (1914)

प्रेमपचीसी भाग-2 (1918)

प्रेम बत्तीसी (1920)

प्रेम बत्तीसी भाग-2 (1920)

ख्वाबो ख्याल (1928)

खाके परवाना (1929)

फिरदौसे ख्याल (1929)

प्रेम चालीसा भाग 1-2 (1930)

निजात (1931)

मेरे बेहतरीन अफसाने (1933)

आखिरी तोहफा (1934)

जादे राह (1936)

दूध की कीमत (1937)

वारदात (f1938)

देहात के अफसाने (1993)

जेल (अज्ञात)

वफा की देवी (अज्ञात)

प्रेमचंद : अफसाने (1993)

प्रेमचंद : मजीद अफसाने

कुल्लियाते प्रेमचंद (संपादक-मदन गोपाल)

प्रेमचंद की कहानियों को तीन सोपानों मे विभाजित किया जाता है-

प्रथम सोपान -1915-1920 ई.

इस सोपान में आदर्शवादी कहानियों को सम्मिलित किया गया है।

सौत 1915

पंच परमेश्वर 1916

सज्जनता का दंड 1916

ईश्वरीय न्याय 1917

दुर्गा का मंदिर 1917

बलिदान 1918

आत्माराम 1920

द्वितीय सोपान-1920 से 1930

इस सोपान में प्रेमचंद जी की यथार्थवादी कहानियों को सम्मिलित किया गया है।

बूढ़ी काकी 1921

विचित्र होली 1921

गृहदाह 1922

हार की जीत 1922

परीक्षा 1923

आपबीती 1923

उद्धार 1924

सवा सेर गेहूं 1924

शतरंज के खिलाड़ी 1925

माता का हृदय 1925

कजाकी 1926

सुजान भगत 1927

इस्तीफा 1928

अलग्योझा 1929

पूस की रात 1930

तृतीय सोपान-1930 से 1936 तक

इस सोपान की कहानियों में मानवीय अंतर्द्वंद्वों एवं मानव मनोविज्ञान का सूक्ष्म चित्रण किया गया है।

होली का उपहार 1931

तावान 1931

ठाकुर का कुआं 1932

बेटों वाली विधवा 1932

ईदगाह 1933

नशा 1934

बडे भाईसाहब 1934

कफन 1936

अन्य प्रसिद्ध कहानियां

मंत्र

शांति

पंडित मोटेराम

मिस पद्मा

लाटरी

व्रजपात

रानी सारंधा

नमक का दरोगा

दो बैलों की कथा

विशेष- प्रेमचंद्र जी द्वारा रचित कहानियों की कुल संख्या लगभग 301 मानी जाती है।

  • प्रेमचंद की कहानियों का संग्रह ‘मानसरोवर’ नाम से ‘आठ’ भागों में सरस्वती प्रेस बनारस द्वारा प्रकाशित करवाया गया।

Munshi Premchand के विभिन्न कहानी संग्रह एवं उनमें संगृहीत कहानियाँ

सप्त सरोज (1917) प्रेमचंद का प्रथम हिंदी कहानी संग्रह

बडे घर की बेटी

सौत

सज्जनता का दंड

पंच परमेश्वर

नमक का दरोगा

उपदेश

परीक्षा

नवनिधि (1917) प्रेमचंद का द्वितीय हिंदी कहानी-संग्रह

राजा हरदौल

रानी सारघा

मर्यादा की वेदी

पाप का अग्नि कुंड

जुगुनू की चमक

धोखा

अमावस्या की रात्रि

ममता

पछतावा

प्रेम-पूर्णिमा (1919)

ईश्वरी न्याय

शंखनाद

खून सफेद

गरीब की हाय

दो भाई

बेटी का धन

धर्म-संकट

दुर्गा का मन्दिर

सेवा-मार्ग

शिकारी राजकुमार

बलिदान

बोध

सच्चाई का उपहार

ज्वालामुखी

महातीर्थ

प्रेम-पचीसी (1923)

आत्माराम

पशु से मनुष्य

मूंठ

ब्रह्म का स्वाग

सुहाग की साड़ी

विमाता

विस्मृति

बूढ़ी काकी

हार की जीत

लोकमत का सम्मान

दफ्तरी

विध्वंस

प्रारब्ध

बैर का अंत

नागपूजा

स्वत्व रक्षा

पूर्व संस्कार

दुस्साहस

बौड़म

गुप्त धन

आदर्श विरोधी

विषम समस्या

अनिष्ट शंका

नैराश्य-लीला

परीक्षा। (प्रेमचंद का एकमात्र कहानी-संग्रह जो हिंदी और उर्दू में एक नाम से प्रकाशित है।)

प्रेम-प्रसून (1924)

शाप

त्यागी का प्रेम

मृत्यु के पीछे

यही मेरी मातृभूमि है

लाग-डाट

चकमा

आप-बीती

आभूषण

राजभक्त

अधिकार चिंता

दुरासा

गृहदाह

प्रेम-प्रमोद (1926)

विश्वास

नरक का मार्ग

स्त्री और पुरुष

उद्धार

निर्वासन

कौशल

स्वर्ग की देवी

आभूषण

आधार

एक आंच की कसर

माता का हृदय

परीक्षा

तेंतर

नैराश्य लीला

दंड

धिक्कार

प्रेम-प्रतिमा (1926)

मुक्ति धन

दीक्षा

क्षमा

मनुष्य का परम धर्म

गुरु मंत्र

सौभाग्य के कोड़े

विचित्र होली

मुक्ति मार्ग

बिक्री के रुपये

शतरंज के खिलाडी

वज्रपात

भाड़े का टट्टू

बाबाजी का भोग

विनोद

भूत

सवा सेर गेहूँ

सभ्यता का रहस्य

लैला

प्रेम-द्वादशी (1928)

शान्ति

बैंक का दीवाला

आत्माराम

दुर्गा का मन्दिर

बड़े घर की बेटी

सत्याग्रह

गृहदाह

बिक्री के रुपये

मुक्ति का मार्ग

शतरंज के खिलाड़ी

पंच परमेश्वर

शखनाद

प्रेम-तीर्थ (1928)

मन्दिर

निमंत्रण

राम लीला

मंत्र

कामना-तरु

सती

हिंसा परमोधर्मः

बहिष्कार

चोरी

लांछन

कजाकी

आँसुओं की होली

प्रेम-चतुर्थी (1928)

बैंक का दीवाला

शान्ति

लालफीता

लाग-डाट

पंच प्रसून

बैंक का दीवाला

शान्ति

शंखनाद

आत्माराम

बूढी काकी

नव-जीवन

महातीर्थ

सुहाग की साड़ी

दो भाई

ब्रह्म का स्वांग

आभूषण

रानी सारंधा

बूढी काकी

जुगुनू की चमक

माँ दुर्गा का मन्दिर

पाँच फूल (1929)

कप्तान साहब

इस्तीफा

जिहाद

मंत्र

फातहा

सप्त सुमन (1930)

बैर का अंत

मन्दिर

ईश्वरीय न्याय

सुजान भगत

ममता

सती

गृहदाह (इसका प्रकाशन हाई स्कूल के छात्रों के लिए किया गया था।)

प्रेम-पंचमी (1930)

मृत्यु के पीछे

आभूषण

राज्य भक्त

अधिकार-चिंता

गृहदाह

प्रेम-पीयूष

प्रेरणा

डिमांस्ट्रेंशन

मंत्र

सती

मन्दिर

कजाकी

क्षमा

मुक्ति-मार्ग

बिक्री के रुपये

सवा सेर गेहूँ

सुजान भगत

गुप्त धन, भाग 1 (1962)

दुनिया का सबसे अनमोल रतन

शेख मखमूर

शोक का पुरस्कार

सांसारिक प्रेम और देश प्रेम

विक्रमादित्य का तेगा

आखिरी मंजिल

आल्हा

नसीहतों का दफ्तर

राजहट

त्रिया चरित्र

मिलाप

मनोबन

अंधेर

सिर्फ एक आवाज

नेकी

बांका जमींदार

अनाथ लड़की

कर्मों का फल

अमृत

अपनी करनी

गैरत की कटार

घमंड का पुतला

विजय

वफा का खंजर

मुबारक बीमारी

वासना की कड़ियाँ

गुप्त धन, भाग 2 (1962)

पुत्र प्रेम

इज्जत का खून

होली की छुट्टी

नादान दोस्त

प्रतिशोध

देवी

खुदी

बड़े बाबू

राष्ट्र का सेवक

आखिरी तोहफा

कातिल

बोहनी

बन्द दरवाजा

तिरसूल

स्वांग

शैलानी बन्दर

नदी का नीति-निर्वाह

मन्दिर और मस्जिद

प्रेम-सूत्र

तांगे वाले की बड़

शादी की वजह

मोटेराम जी शास्त्री

पर्वत-यात्रा

कवच

दूसरी शादी

स्त्रोत

देवी

पैपुजी

क्रिकेट मैच

कोई दुःख न हो तो बकरी खरीद लो

मुंशी प्रेमचंद के नाटक : Munshi Premchand जीवन परिचय

संग्राम (1923)

कर्बला (1924)

प्रेम की वेदी (1933)

कथेतर साहित्य

प्रेमचंद : विविध प्रसंग- सं. अमृतराय (इसमें प्रेमचंद के निबंध, संपादकीय तथा पत्रों का संग्रह है।)

प्रेमचंद के विचार- तीन खण्ड (यह संग्रह भी प्रेमचंद के विभिन्न निबंधों, संपादकीय, टिप्पणियों आदि का संग्रह है।)

साहित्य का उद्देश्य― इसी नाम से उनका एक निबन्ध-संकलन भी प्रकाशित हुआ है जिसमें 40 लेख हैं।

चिट्ठी-पत्री- (दो खण्ड) संपादक― पहला भाग अमृतराय और मदनगोपाल, दूसरा भाग अमृतराय ने संपादित किया है।यह प्रेमचंद के पत्रों का संग्रह है।

Munshi Premchand के निबन्ध

पुराना जमाना नया जमाना

स्‍वराज के फायदे

कहानी कला (1, 2, 3)

कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार

हिन्दी-उर्दू की एकता

महाजनी सभ्‍यता

उपन्‍यास

जीवन में साहित्‍य का स्‍थान

अनुवाद

‘टॉलस्‍टॉय की कहानियाँ’ (1923)

गाल्‍सवर्दी के तीन नाटकों का अनुवाद― (I) हड़ताल (1930), (II) चाँदी की डिबिया (1931), (III) न्‍याय (1931) नाम से अनुवाद किया।

रतननाथ सरशार के उर्दू उपन्‍यास फसान-ए-आजाद का अनुवाद

Munshi Premchand का बाल साहित्य

रामकथा

कुत्ते की कहानी

दुर्गादास

संपादन

‘जागरण’ (समाचार पत्र)

‘हंस’ (मासिक पत्रिका)

उन्होंने ‘सरस्वती प्रेस’ भी चलाया था।

Munshi Premchand पर लिखी गई जीवनियाँ

प्रेमचंद घर में – 1944 ई. प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी द्वारा लिखी गई है।

प्रेमचंद कलम का सिपाही – 1962 ई.प्रेमचंद के पुत्र अमृतराय द्वारा लिखी गई।

कलम का मज़दूर : प्रेमचन्द- 1964 ई. इस कृति की भूमिका रामविलास शर्मा ने लिखी। प्रेमचंद पर प्रेमचंद की परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति द्वारा लिखी गई पहली जीवनी है। यह मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई रचना है।

प्रेमचंद पर लिखी गई आलोचनात्मक पुस्तकें

रामविलास शर्मा – ‘प्रेमचंद और उनका युग’

संपादन– कमलकिशोर गोयनका – ‘प्रेमचंद विश्‍वकोश’ (दो भाग) (प्रेमचंद का अप्राप्‍य साहित्‍य (दो भाग) का प्रकाशन भी किया है।)

‘प्रेमचंद : सामंत का मुंशी’ ‘प्रेमचंद की नीली आँखें’ (डॉ. धर्मवीर ने दलित दृष्टि से प्रेमचंद साहित्‍य का मूल्यांकन किया है)

प्रेमचंद और सिनेमा

शतरंज के खिलाड़ी (1977) और सद्गति (1981)― निर्देशक- सत्यजीत रे

1938 में सेवासदन उपन्यास पर सुब्रमण्यम ने फ़िल्म बनाई।

1977 में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित ‘ओका ऊरी कथा’ नाम से एक तेलुगू फ़िल्म बनाई, जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।

1963 में गोदान और 1966 में गबन उपन्यास पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं।

1970 में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक ‘निर्मला’ भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।

“साहित्य के प्रति और साहित्य के हर दृष्टि के प्रति यानी चाहे राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक सभी को उन्होंने जिस तरह अपनी रचनाओं में समेटा और खास करके एक आम आदमी को, एक किसान को, एक आम दलित वर्ग के लोगों को वह अपने आप में एक उदाहरण था। साहित्य में दलित विमर्श की शुरुआत शायद प्रेमचंद की रचनाओं से हुई थी।”― मन्नू भंडारी द्वारा बीबीसी को दिए गए एक साक्षात्कार से।

कलम का सिपाही, कलम का जादूगर एवं उपन्यास सम्राट कहलाने वाले मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कहानियाँ और उपन्यास, महत्त्वपूर्ण तथ्य, एवं मान सरोवर आदि के बारे संपूर्ण जानकारी।

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