उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय
कलम का सिपाही, कलम का जादूगर एवं उपन्यास सम्राट कहलाने वाले मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कहानियाँ और उपन्यास, महत्त्वपूर्ण तथ्य, एवं मान सरोवर आदि के बारे संपूर्ण जानकारी।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
जन्म- 31 जुलाई 1880 लमही, वाराणसी, उत्तरप्रदेश
मृत्यु- 8 अक्टूबर 1936 (56 वर्ष की आयु में ) वाराणसी, उत्तरप्रदेश
व्यवसाय- अध्यापक, लेखक, पत्रकार राष्ट्रीयता― भारतीय
अवधि/काल- आधुनिक काल
विधा- कहानी और उपन्यास
विषय- सामाजिक और कृषक-जीवन साहित्यिक आन्दोलन-आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी
अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ
मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक परिचय
उपन्यास
सेवा सदन― 1918
प्रेमाश्रय― 1922
रंगभूमि― 1925
कायाकल्प― 1926
निर्मला― 1927
गबन― 1931
कर्मभूमि― 1933
गोदान― 1935

उपन्यासों को कालक्रम अनुसार याद करने के लिए अचूक सूत्र
प्रेमचंद की सेवा और प्रेम का लोगों पर ऐसा रंग चढ़ा कि उनकी काया निर्मल हो गई और उन्होंने गबन का कर्म छोड़कर गोदान करके पूरा न सही पर अधूरा मंगल अवश्य किया।
सेवा- सेवा सदन-1918
प्रेम-प्रेमाश्रय-1922
रंग-रंगभूमि-1925
काया-कायाकल्प-1926
निर्मल-निर्मला-1927
गबन-गबन-1931
कर्म-कर्मभूमि-1933
गो दान- गोदान-1935
मंगल-मंगलसूत्र (यह इनका अधूरा उपन्यास है जिसे इनके पुत्र ‘अमृतराय’ ने पूरा कर 1948 मे प्रकाशित करवाया)
उपन्यास संबंधी विशेष तथ्य : मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय
सेवा सदन
यह उपन्यास पहले ‘बाज़ारे- हुस्न’ नाम से उर्दू में लिखा गया।
इसमें विवाह से जुड़ी समस्याएं दहेज प्रथा, कुलीनता, विवाह के बाद पत्नी का स्थान, समाज में वेश्याओं की स्थिति का चित्रण किया गया है।
प्रेमचंद ने स्वयं इसे ‘हिंदी का बेहतरीन नावेल’ कहा है।
प्रेमाश्रय
यह पहले गोशए-आफ़ियत नाम से उर्दू मे लिखा गया।
यह हिन्दी का पहला राजनीतिक उपन्यास माना जाता है।
रंगभूमि
यह पहले चौगाने हस्ती नाम से उर्दू मे लिखा गया।
इसमें शासक व अधिकारी वर्ग के अत्याचारों का चित्रण किया गया है इसका नायक एक अंधा सूरदास है।
यह उपन्यास महात्मा गांधी की व्यक्तिगत सत्याग्रह नीति से प्रभावित माना जाता है।
कायाकल्प
प्रेमचंद जी का मूल रूप से हिंदी में लिखित पहला उपन्यास माना जाता है।
इसमें ढोंगी बाबाओं के चमत्कार, पूर्व जन्म की स्मृतियां, वृद्धा को तरुणी में बदलना आदि संप्रदायिक समस्याओं का चित्रण किया गया है।
यह योग संबंधी कल्पना से मंडित उपन्यास है इसमें कई जन्मों की कहानियां कही गई है।
निर्मला
इस उपन्यास में दहेज व अनमेल विवाह की समस्या को उभारा आ गया है।
गबन- इसमें भारतीय मध्यम आय वर्ग की आभूषण लालसा एवं आर्थिक विषमता की समस्या को उभारा गया है।
कर्मभूमि- इसमें हरिजन की स्थिति एवं उनकी समस्याओं का चित्रण किया गया है।
गोदान
यह प्रेमचंद जी का अंतिम प्रकाशित उपन्यास है।
इसमें किसान व मजदूर वर्ग की समस्याओं को निरूपित किया गया है।
मालती-मेहता, धनिया-होरी,गोबर आदि इसके प्रमुख पात्र है।
डॉक्टर नगेंद्र ने इस उपन्यास को ‘ग्रामीण जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य’ माना है।
मंगलसूत्र
इनका अपूर्ण उपन्यास।
प्रेमचंद के प्रथम उपन्यास संबंधी मत : मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय
इसरारे मोहब्बत (1898 ई.) प्रेमचंद का पहला उपन्यास था जो जो 19वीं सदी के अन्य उपन्यासों की तरह बनारस के एक साप्ताहिक पत्र में प्रकाशित हुआ था। कदाचित् प्रतापचंद’ (1901 ई) उपन्यास भी उर्दू की रचना थी। -कथाकार प्रेमचंद : डॉ. रामरतन भटनागर
इसरारे मोहब्बत (सन् 1898) एक संक्षिप्त उपन्यास जो बनारस के साप्ताहिक ‘आवाजें खल्क’ में क्रमशः प्रकाशित हुआ। प्रतापचंद (1901ई) जो अपने असली रूप में प्रकाशित नहीं हुआ।
प्रेमचंद एक विवेचन. डॉ. इंद्रनाथ मदान
“प्रेमचंद का पहला नॉवेल ‘हम खुर्मा ओ हम शबाब’ था।” ‘जमाना’ (प्रेमचंद नवंबर)― सं. -दयानारायण निगम
“’प्रतापचंद प्रेमचंद का पहला उपन्यास है।”― आजकल (दिल्ली, 1953) -मो. उमर खान
“हिंदी में प्रेमचंद का पहला नॉवेल ‘प्रेमा और उर्दू में ‘प्रतापचंद’ धनपत राय के नाम से छपे हुए हैं।”― जमाना (प्रेमचंद, नवंबर), जोगेश्वर नाथ वर्मा
“असरारे मआबिद ही प्रेमचंद की पहली प्रकाशित औपन्यासिक रचना प्रसिद्ध है।”― पत्रिका (बिहार राष्ट्रभाषा)― डॉ. जाफर रजा
“‘असरा रेमआबिद’ धारावाहिक रूप में बनारस के साप्ताहिक ‘आवाज ए खल्क’ में 8 अक्टूबर 1903 से 1 जनवरी 1904 तक प्रकाशित हुआ था।”― डॉ. जाफर रजा
“असरारे-मआबिद (उर्फ देवस्थान रहस्य) प्रेमचंद का प्रथम प्रकाशित उपन्यास है।”― डॉ. गोपाल राय, प्रेमचंद मेरठ वि. वि. शोध पत्रिका, 1981
“‘हम खुरमा वा हम सबाब’ प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास है। इसका हिंदी रूपान्तरण प्रेमा अर्थात् ‘दो सखियों का विवाह शीर्षक से 1907 में प्रकाशित हुआ। ‘किसना’ संभवतः प्रेमचंद का उर्दू में रचित तीसरा उपन्यास है।”― डॉ. गोपाल राय, प्रेमचंद मेरठ वि. वि. शोध पत्रिका, 1981
प्रेमचंद का पहला उपन्यास प्रतापचंद ही है।― शिवरानी देवी : प्रेमचंद घर में
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
असरारे मुआविद उर्फ देवस्थान रहस्य’ का नाम डॉ. राजेश्वर गुरु एवं इद्रनाथ मदान ने ‘असररारे मुहब्बत’ दिया है जबकि मदन गोपाल ने ‘असरारे मुआविद’ नाम दिया है।
‘वरदान’ मूल रूप से ‘जलवाए-ईसार’ शीर्षक से लिखा गया था वर्षो बाद प्रेमचंद ने स्वयं इसका हिंदी में रूपान्तरण ‘वरदान’ शीर्षक से किया।
‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास मूल रूप से ‘हमखुर्मा-वा-हमसबाब’ के नाम से उर्दू में लिखा गया और हिंदी में ‘प्रेमा’ नाम से प्रकाशित हुआ। उर्दू में इसका एक अन्य नाम ‘बेवा’ था।
‘किशना’ उपन्यास का उल्लेख अमृतराय और मदनगोपाल ने किया है यह उपन्यास उपलब्ध नहीं है।
‘सेवासदन’ की रचना पहले उर्दू में ‘बाजारे हुस्न’ शीर्षक से हुई थी। यह पहले हिंदी में छपा और इसका रूपान्तरण स्वयं प्रेमचंद ने किया था।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
‘प्रेमाश्रम’ (1922 ई.) पहले उर्दू में ‘गोश-ए-आफियत’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
‘रंगभूमि’ (1925 ई.) ‘चौगाने हस्ती’ शीर्षक से छपा।
रंगभूमि के संबंध में अमृतराय ने लिखा है कि रंगभूमि (चौगाने हस्ती) पहले मूल रूप में उर्दू में लिखा गया था पर छपा पहले हिंदी में।
रंगभूमि का मराठी में भी रूपान्तर ‘जगाचार’ शीर्षक से हुआ था।
‘प्रेमाश्रम’ के उर्दू में ‘नाकाम’, ‘नेकनाम’, ‘गोशाए-आफियत’ विभिन्न नाम रखे गये।
‘कायाकल्प’ मूल रूप से हिंदी में लिखित प्रेमचंद की पहली रचना है। प्रेमचंद ने इस उपन्यास के अन्य नाम आर्तनाद, असाध्य साधना, माया इत्यादि रखे थे। उर्दू में इसका रूपांतर ‘पर्दा ए मजाज’ शीर्षक से हुआ।
‘गबन’ उपन्यास मूल में प्रेमचंद ने हिंदी में ही लिखा था और उर्दू में भी यही नामकरण रहा।
निर्मला उपन्यास ‘चाँद’ में धारावाहिक रूप में छपा। यह हिंदी में ही लिखा गया था।
कर्मभूमि मूल रूप से हिंदी में लिखित उपन्यास है, जिसका उर्दू में रूपान्तर ‘मैदाने अमल’ था।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
गोदान का उर्दू में नाम गऊदान रखा गया था।
शरच्चंद्र चटर्जी ने प्रेमचंद के ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी।
‘रंगभूमि’ उपन्यास को ‘भारतीय जनजीवन का रंगमंच’ कहा गया है।
डॉ. बच्चन सिंह ने ‘रंगभूमि’ को गांधीवादी जीवन दर्शन का ‘महाकाव्यात्मक उपन्यास’ (एपिक नावेल) कहा है।
प्रेमचंद ने ‘प्रेमा अर्थात दो सखियों का विवाह’ नामक उपन्यास को संशोधित कर ‘प्रतिज्ञा’ शीर्षक से 1929 में प्रकाशित करवाया।
अमृत राय ने इन पर ‘कलम का सिपाही’ तथा मदन गोपाल ने ‘कलम का जादूगर’ नामक जीवनियाँ लिखी।
डॉ. रामविलास शर्मा ने इन्हें कबीर के बाद दूसरा सबसे बड़ा व्यंग्यकार कहा है।
प्रेमचंद ने आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी उपन्यास लेखन परंपरा का प्रवर्तन किया।
गोदान संबंधी प्रसिद्ध मत अथवा कथन : मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय
कमल किशोर गोयनका, प्रेमचंद के उपन्यासों का शिल्पविधान- “गोदान की महाकाव्यात्मकता महाकाव्य के समान निर्मित नहीं हुई है बल्कि यह उपन्यास यथार्थवादी नींव पर अवस्थित है। कृषक जीवन और कृषक संस्कृति के पतन की एपिक कहानी के कारण गोदान एक महाकाव्यात्मक उपन्यास है।”
बच्चन सिंह आधुनिक हिंदी उपन्यास सं. नरेन्द्र मोहन- “गोदान महाकाव्यात्मक उपन्यास है। दुनिया में केवल दो ही महाकाव्यात्मक उपन्यास हैं एक तालस्ताय का ‘युद्ध और शांति’ और दूसरा प्रेमचंद का ‘गोदान’।”
डॉ. गोपाल राय, गोदान एक नया परिप्रेक्ष्य- “गोदान कृषि संस्कृति एवं ग्रामीण जीवन का महाकाव्य है।”
गोपालकृष्ण कौल, आलोचना, अक्टूबर, 1952, अंक 5- “गोदान उपन्यास की शैली में भारतीय जीवन का महाकाव्य है।”
नलिन विलोचन शर्मा, आलोचना, अक्टूबर, 1952- “गोदान कृषि संस्कृति का शोकगीत न होकर करुण महाकाव्य है।”
शांति स्वरूप गुप्त, हिंदी उपन्यास : महाकाव्य के स्वर- “गोदान गद्यशैली में लिखा गया भारतीय जीवन विशेषतः ग्राम जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य है।”
नलिन विलोचन शर्मा, आलोचना 1952, अंक 5- “गोदान का स्थापत्य पूर्णतः समानान्तर स्थापत्य शैली है। गोदान के स्थापत्य की यही वह विशेषता है, जिसके कारण उसमें महाकाव्यात्मक गरिमा आ जाती है। नदी के दो तट असंबद्ध दिखते हैं पर ये वस्तुतः असंबद्ध नहीं रहते-उन्हीं के बीच से भारतीय जीवन की विशाल धारा बहती चली जाती है। भारतीय जनजीवन का इतना यथार्थ चित्रण किसी उपन्यास में नहीं हुआ है।”
आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी, प्रेमचंद साहित्यिक विवेचन- “गोदान को इसलिए एपिकल नॉवेल नहीं माना जा सकता क्योंकि वह राष्ट्रीय प्रतिनिधि उपन्यास की उन शर्तों को पूरा नहीं करता, जिन्हें टॉलस्टाय का वार एंड पीस उपन्यास करता है।”
गोदान का उद्देश्य
डॉ. रामविलास शर्मा, प्रेमचंद और उनका युग- गोदान की मूल समस्या ऋण की समस्या है।
कमल किशोर गोयनका, प्रेमचंद के उपन्यासों का शिल्प विधान- गोदान का उद्देश्य कृषि संस्कृति के ध्वंस की यथार्थ कहानी है।
नलिन विलोचन शर्मा, हिंदी उपन्यास विशेषतः प्रेमचंद- भारतीय जीवन का विराट चित्र।
गोदान जीवन के विविध प्रश्नों को उपस्थित कर ग्रामीण जीवन की स्थिति का उद्घाटन― नंद दुलारे वाजपेयी, प्रेमचंद साहित्यिक विवेचन
प्रेमचंद की साहित्यिक जीवन का श्रीगणेश― उर्दू उपन्यास से (सोजेवतन से पूर्व उर्दू में इनके 4 उपन्यास प्रकाशित हो चुके थे―
असरारे मुआबिद
हमखुर्मा व हम सवाब
किशना
रूठी रानी (हिंदी उपन्यास) मूल लेखक― मुंशी देवीप्रसाद जोधपुरी। इसी शीर्षक से उर्दू अनुवाद― प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ : मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय
कहानी-यात्रा― 1908-1936 ई.
प्रेमचंद जी की पहली कहानी, पहली हिंदी कहानी, पहली प्रकाशित कहानी, अंतिम कहानी इत्यादि बिंदुओं पर पर्याप्त मतभेद हैं इन मतभेदों से संबंधित प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं―
प्रेमचंद के अनुसार उनकी पहली कहानी― ‘संसार का अनमोल रतन’ (1907 में जमाना में प्रकाशित) उनके लेख जीवन-सार के अनुसार। कमलकिशोर गोयनका ने इसे गलत मानते हुए ‘इश्के दुनिया’ और ‘हुब्बे वतन’ को उनकी पहली कहानी माना है।
प्रथम उर्दू कहानी― ‘इश्के दुनिया और हुब्बे वतन’ (हिंदी में सांसारिक प्रेम और देश प्रेम), जमाना, अप्रैल 1908 अंक में प्रकाशित
प्रथम उर्दू कहानी-संग्रह― सोजेवतन (जमाना प्रेस, कानपुर से जून 1908 में प्रकाशित)
प्रेमचंद की पहली हिंदी कहानी― परीक्षा (कानपुर के साप्ताहिक प्रताप के विजयादशमी अंक अक्टूबर 1914 में प्रकाशित)
प्रेमचंद की हिंदी कहानियों का प्रथम संग्रह― सप्तसरोज (1917 ई.)। भूमिका लेखक मन्नन द्विवेदी गजपुरी थे, जिन्होंने प्रेमचंद को टैगोर के समकक्ष स्थान दिया था।
मानसरोवर में संगृहीत कुल कहानियाँ
मानसरोवर भाग 1 से 8 तक में संगृहीत कहानियों की संख्या― 203
प्रेमचंद की कुल कहानियों की संख्या― प्रेमचंद के अनुसार― 250
श्रीपति शर्मा― 280 + 178 उर्दू कहानियाँ
रामरतन भटनागर― 250 से 300
नंददुलारे वाजपेयी― 380 के लगभग + 100 के ऊपर उर्दू
इंद्रनाथ मदान― 250
लक्ष्मीनारायण लाल― 400 जिनमें 178 उर्दू कहानियाँ
देवराज उपाध्याय― 400
अमृतराय कलम का सिपाही में― 224
कमल किशोर गोयनका के अनुसार― 301
हिंदी―उर्दू कहानियों से संबंधित मत― प्रेमचंद के जीवन काल में 25 कहानी-संग्रह प्रकाशित जिनमें 208 कहानियाँ संगृहीत थीं।
कमल किशोर गोयनका ने इनकी संख्या 289 बताया है।
प्रेमचंद की अंतिम कहानी
क्रिकेट मैच―जमाना नामक पत्रिका जुलाई, 1937 में यह उर्दू में प्रकाशित हुई थी। (कमल किशोर गोयनका के अनुसार)
यह भी नशा वह भी नशा मार्च 1987 में यह हिंदी में प्रकाशित हुई थी।
‘सोजे वतन’ (कहानी-संग्रह) ‘सोजे वतन’ की देशभक्तिपूर्ण कहानियों को तात्कालिक अंग्रेजी सरकार ने राजद्रोह मानते हुए इसकी 700 प्रतियाँ जलवा दी थीं।
प्रेमचंद जी की पहली कहानी- ‘संसार का अनमोल रत्न’ यह 1907 ईस्वी में ‘जमाना’ पत्र में प्रकाशित यह उर्दू में ‘नवाब राय’ नाम से लिखी गई।
प्रेमचंद नाम से रचित पहली कहानी
डॉ. नगेंद्र के अनुसार हिंदी में रचित सर्वप्रथम कहानी- ‘सौत’ 1915
गणपति चंद्र गुप्त के अनुसार प्रेमचंद की प्रथम हिंदी कहानी- पंच परमेश्वर 1916
नगेंद्र के अनुसार प्रेमचंद की हिंदी में रचित अंतिम कहानी- कफन 1936
तात्कालिक अंग्रेजी सरकार द्वारा ‘सोजे वतन’ (कहानी संग्रह) जप्त कर लिए जाने के बाद ‘जमाना’ के सं. मुंशी दयाराम निगम ने प्रेमचद को प्रेमचंद नाम दिया और वे नवाबराय नाम छोड़कर प्रेमचंद नाम से लिखने लगे।
‘सेवासदन’ उपन्यास के संबंध में प्रेमचंद के शब्द “नक्कादों ने हिंदी जबान का बेहतरीन नाविल घोषित किया।”
पंडित नेहरू की पुस्तक ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम’ (इंदिरा गांधी को लिखे गए पत्रों का संग्रह) का हिंदी अनुवाद प्रेमचंद ने किया।
प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘कफन’, ‘चांद’ के अप्रैल 1936 अंक में प्रकाशित हुई थी। यह कहानी प्रेमचंद की उर्दू कहानी ‘कफन’ (जामिया उर्दू पत्रिका, दिसंबर 1935) का हिंदी रूपांतरण है।
प्रेमचंद की मृत्यूपरांत मानसरोवर भाग 3 से लेकर भाग 8 तक की कहानी-संग्रह का प्रकाशन हुआ।
गुप्तधन I, II का प्रकाशन 1962 ई. में हुआ (अमृतराय द्वारा दो खंडों में 56 अप्राप्य कहानियों का संकलन)
सोजेवतन में 5 उर्दू कहानियां थीं-
सोजेवतन (हिंदी में यही शीर्षक)
दुनिया का सबसे अनमोल रतन (हिंदी में यही शीर्षक)
शेख मखमूर (हिंदी में यही शीर्षक)
यही मेरा वतन है (हिंदी में यही मेरी मातृभूमि है)
सिला-ए-मात (हिंदी में शोक का पुरस्कार शीर्षक)
प्रेमचंद की कहानियों का उर्दू संग्रह
संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से प्रेमचंद का समग्र उर्दू साहित्य 24 खंडों में प्रकाशित है।
डॉ. कमल किशोर गोयनका कृत ‘प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन’ के अनुसार
सोजेवतन (1908)
प्रेमपचीसी (1914)
सैरे दरवेश (1914)
प्रेमपचीसी भाग-2 (1918)
प्रेम बत्तीसी (1920)
प्रेम बत्तीसी भाग-2 (1920)
ख्वाबो ख्याल (1928)
खाके परवाना (1929)
फिरदौसे ख्याल (1929)
प्रेम चालीसा भाग 1-2 (1930)
निजात (1931)
मेरे बेहतरीन अफसाने (1933)
आखिरी तोहफा (1934)
जादे राह (1936)
दूध की कीमत (1937)
वारदात (f1938)
देहात के अफसाने (1993)
जेल (अज्ञात)
वफा की देवी (अज्ञात)
प्रेमचंद : अफसाने (1993)
प्रेमचंद : मजीद अफसाने
कुल्लियाते प्रेमचंद (संपादक-मदन गोपाल)
प्रेमचंद की कहानियों को तीन सोपानों मे विभाजित किया जाता है-
प्रथम सोपान -1915-1920 ई.
इस सोपान में आदर्शवादी कहानियों को सम्मिलित किया गया है।
सौत 1915
पंच परमेश्वर 1916
सज्जनता का दंड 1916
ईश्वरीय न्याय 1917
दुर्गा का मंदिर 1917
बलिदान 1918
आत्माराम 1920
द्वितीय सोपान-1920 से 1930
इस सोपान में प्रेमचंद जी की यथार्थवादी कहानियों को सम्मिलित किया गया है।
बूढ़ी काकी 1921
विचित्र होली 1921
गृहदाह 1922
हार की जीत 1922
परीक्षा 1923
आपबीती 1923
उद्धार 1924
सवा सेर गेहूं 1924
शतरंज के खिलाड़ी 1925
माता का हृदय 1925
कजाकी 1926
सुजान भगत 1927
इस्तीफा 1928
अलग्योझा 1929
पूस की रात 1930
तृतीय सोपान-1930 से 1936 तक
इस सोपान की कहानियों में मानवीय अंतर्द्वंद्वों एवं मानव मनोविज्ञान का सूक्ष्म चित्रण किया गया है।
होली का उपहार 1931
तावान 1931
ठाकुर का कुआं 1932
बेटों वाली विधवा 1932
ईदगाह 1933
नशा 1934
बडे भाईसाहब 1934
कफन 1936
अन्य प्रसिद्ध कहानियां
मंत्र
शांति
पंडित मोटेराम
मिस पद्मा
लाटरी
व्रजपात
रानी सारंधा
नमक का दरोगा
दो बैलों की कथा
विशेष- प्रेमचंद्र जी द्वारा रचित कहानियों की कुल संख्या लगभग 301 मानी जाती है।
- प्रेमचंद की कहानियों का संग्रह ‘मानसरोवर’ नाम से ‘आठ’ भागों में सरस्वती प्रेस बनारस द्वारा प्रकाशित करवाया गया।
मुंशी प्रेमचंद के विभिन्न कहानी संग्रह एवं उनमें संगृहीत कहानियाँ
सप्त सरोज (1917) प्रेमचंद का प्रथम हिंदी कहानी संग्रह
बडे घर की बेटी
सौत
सज्जनता का दंड
पंच परमेश्वर
नमक का दरोगा
उपदेश
परीक्षा
नवनिधि (1917) प्रेमचंद का द्वितीय हिंदी कहानी-संग्रह
राजा हरदौल
रानी सारघा
मर्यादा की वेदी
पाप का अग्नि कुंड
जुगुनू की चमक
धोखा
अमावस्या की रात्रि
ममता
पछतावा
प्रेम-पूर्णिमा (1919)
ईश्वरी न्याय
शंखनाद
खून सफेद
गरीब की हाय
दो भाई
बेटी का धन
धर्म-संकट
दुर्गा का मन्दिर
सेवा-मार्ग
शिकारी राजकुमार
बलिदान
बोध
सच्चाई का उपहार
ज्वालामुखी
महातीर्थ
प्रेम-पचीसी (1923)
आत्माराम
पशु से मनुष्य
मूंठ
ब्रह्म का स्वाग
सुहाग की साड़ी
विमाता
विस्मृति
बूढ़ी काकी
हार की जीत
लोकमत का सम्मान
दफ्तरी
विध्वंस
प्रारब्ध
बैर का अंत
नागपूजा
स्वत्व रक्षा
पूर्व संस्कार
दुस्साहस
बौड़म
गुप्त धन
आदर्श विरोधी
विषम समस्या
अनिष्ट शंका
नैराश्य-लीला
परीक्षा। (प्रेमचंद का एकमात्र कहानी-संग्रह जो हिंदी और उर्दू में एक नाम से प्रकाशित है।)
प्रेम-प्रसून (1924)
शाप
त्यागी का प्रेम
मृत्यु के पीछे
यही मेरी मातृभूमि है
लाग-डाट
चकमा
आप-बीती
आभूषण
राजभक्त
अधिकार चिंता
दुरासा
गृहदाह
प्रेम-प्रमोद (1926)
विश्वास
नरक का मार्ग
स्त्री और पुरुष
उद्धार
निर्वासन
कौशल
स्वर्ग की देवी
आभूषण
आधार
एक आंच की कसर
माता का हृदय
परीक्षा
तेंतर
नैराश्य लीला
दंड
धिक्कार
प्रेम-प्रतिमा (1926)
मुक्ति धन
दीक्षा
क्षमा
मनुष्य का परम धर्म
गुरु मंत्र
सौभाग्य के कोड़े
विचित्र होली
मुक्ति मार्ग
बिक्री के रुपये
शतरंज के खिलाडी
वज्रपात
भाड़े का टट्टू
बाबाजी का भोग
विनोद
भूत
सवा सेर गेहूँ
सभ्यता का रहस्य
लैला
प्रेम-द्वादशी (1928)
शान्ति
बैंक का दीवाला
आत्माराम
दुर्गा का मन्दिर
बड़े घर की बेटी
सत्याग्रह
गृहदाह
बिक्री के रुपये
मुक्ति का मार्ग
शतरंज के खिलाड़ी
पंच परमेश्वर
शखनाद
प्रेम-तीर्थ (1928)
मन्दिर
निमंत्रण
राम लीला
मंत्र
कामना-तरु
सती
हिंसा परमोधर्मः
बहिष्कार
चोरी
लांछन
कजाकी
आँसुओं की होली
प्रेम-चतुर्थी (1928)
बैंक का दीवाला
शान्ति
लालफीता
लाग-डाट
पंच प्रसून
बैंक का दीवाला
शान्ति
शंखनाद
आत्माराम
बूढी काकी
नव-जीवन
महातीर्थ
सुहाग की साड़ी
दो भाई
ब्रह्म का स्वांग
आभूषण
रानी सारंधा
बूढी काकी
जुगुनू की चमक
माँ दुर्गा का मन्दिर
पाँच फूल (1929)
कप्तान साहब
इस्तीफा
जिहाद
मंत्र
फातहा
सप्त सुमन (1930)
बैर का अंत
मन्दिर
ईश्वरीय न्याय
सुजान भगत
ममता
सती
गृहदाह (इसका प्रकाशन हाई स्कूल के छात्रों के लिए किया गया था।)
प्रेम-पंचमी (1930)
मृत्यु के पीछे
आभूषण
राज्य भक्त
अधिकार-चिंता
गृहदाह
प्रेम-पीयूष
प्रेरणा
डिमांस्ट्रेंशन
मंत्र
सती
मन्दिर
कजाकी
क्षमा
मुक्ति-मार्ग
बिक्री के रुपये
सवा सेर गेहूँ
सुजान भगत
गुप्त धन, भाग 1 (1962)
दुनिया का सबसे अनमोल रतन
शेख मखमूर
शोक का पुरस्कार
सांसारिक प्रेम और देश प्रेम
विक्रमादित्य का तेगा
आखिरी मंजिल
आल्हा
नसीहतों का दफ्तर
राजहट
त्रिया चरित्र
मिलाप
मनोबन
अंधेर
सिर्फ एक आवाज
नेकी
बांका जमींदार
अनाथ लड़की
कर्मों का फल
अमृत
अपनी करनी
गैरत की कटार
घमंड का पुतला
विजय
वफा का खंजर
मुबारक बीमारी
वासना की कड़ियाँ
गुप्त धन, भाग 2 (1962)
पुत्र प्रेम
इज्जत का खून
होली की छुट्टी
नादान दोस्त
प्रतिशोध
देवी
खुदी
बड़े बाबू
राष्ट्र का सेवक
आखिरी तोहफा
कातिल
बोहनी
बन्द दरवाजा
तिरसूल
स्वांग
शैलानी बन्दर
नदी का नीति-निर्वाह
मन्दिर और मस्जिद
प्रेम-सूत्र
तांगे वाले की बड़
शादी की वजह
मोटेराम जी शास्त्री
पर्वत-यात्रा
कवच
दूसरी शादी
स्त्रोत
देवी
पैपुजी
क्रिकेट मैच
कोई दुःख न हो तो बकरी खरीद लो
मुंशी प्रेमचंद के नाटक : मुंशी प्रेमचंद जीवन परिचय
संग्राम (1923)
कर्बला (1924)
प्रेम की वेदी (1933)
कथेतर साहित्य
प्रेमचंद : विविध प्रसंग- सं. अमृतराय (इसमें प्रेमचंद के निबंध, संपादकीय तथा पत्रों का संग्रह है।)
प्रेमचंद के विचार- तीन खण्ड (यह संग्रह भी प्रेमचंद के विभिन्न निबंधों, संपादकीय, टिप्पणियों आदि का संग्रह है।)
साहित्य का उद्देश्य― इसी नाम से उनका एक निबन्ध-संकलन भी प्रकाशित हुआ है जिसमें 40 लेख हैं।
चिट्ठी-पत्री- (दो खण्ड) संपादक― पहला भाग अमृतराय और मदनगोपाल, दूसरा भाग अमृतराय ने संपादित किया है।यह प्रेमचंद के पत्रों का संग्रह है।
मुंशी प्रेमचंद के निबन्ध
पुराना जमाना नया जमाना
स्वराज के फायदे
कहानी कला (1, 2, 3)
कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार
हिन्दी-उर्दू की एकता
महाजनी सभ्यता
उपन्यास
जीवन में साहित्य का स्थान
अनुवाद
‘टॉलस्टॉय की कहानियाँ’ (1923)
गाल्सवर्दी के तीन नाटकों का अनुवाद― (I) हड़ताल (1930), (II) चाँदी की डिबिया (1931), (III) न्याय (1931) नाम से अनुवाद किया।
रतननाथ सरशार के उर्दू उपन्यास फसान-ए-आजाद का अनुवाद
मुंशी प्रेमचंद का बाल साहित्य
रामकथा
कुत्ते की कहानी
दुर्गादास
संपादन
‘जागरण’ (समाचार पत्र)
‘हंस’ (मासिक पत्रिका)
उन्होंने ‘सरस्वती प्रेस’ भी चलाया था।
मुंशी प्रेमचंद पर लिखी गई जीवनियाँ
प्रेमचंद घर में – 1944 ई. प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी द्वारा लिखी गई है।
प्रेमचंद कलम का सिपाही – 1962 ई.प्रेमचंद के पुत्र अमृतराय द्वारा लिखी गई।
कलम का मज़दूर : प्रेमचन्द- 1964 ई. इस कृति की भूमिका रामविलास शर्मा ने लिखी। प्रेमचंद पर प्रेमचंद की परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति द्वारा लिखी गई पहली जीवनी है। यह मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई रचना है।
प्रेमचंद पर लिखी गई आलोचनात्मक पुस्तकें
रामविलास शर्मा – ‘प्रेमचंद और उनका युग’
संपादन– कमलकिशोर गोयनका – ‘प्रेमचंद विश्वकोश’ (दो भाग) (प्रेमचंद का अप्राप्य साहित्य (दो भाग) का प्रकाशन भी किया है।)
‘प्रेमचंद : सामंत का मुंशी’ ‘प्रेमचंद की नीली आँखें’ (डॉ. धर्मवीर ने दलित दृष्टि से प्रेमचंद साहित्य का मूल्यांकन किया है)
प्रेमचंद और सिनेमा
शतरंज के खिलाड़ी (1977) और सद्गति (1981)― निर्देशक- सत्यजीत रे
1938 में सेवासदन उपन्यास पर सुब्रमण्यम ने फ़िल्म बनाई।
1977 में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित ‘ओका ऊरी कथा’ नाम से एक तेलुगू फ़िल्म बनाई, जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
1963 में गोदान और 1966 में गबन उपन्यास पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं।
1970 में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक ‘निर्मला’ भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।
“साहित्य के प्रति और साहित्य के हर दृष्टि के प्रति यानी चाहे राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक सभी को उन्होंने जिस तरह अपनी रचनाओं में समेटा और खास करके एक आम आदमी को, एक किसान को, एक आम दलित वर्ग के लोगों को वह अपने आप में एक उदाहरण था। साहित्य में दलित विमर्श की शुरुआत शायद प्रेमचंद की रचनाओं से हुई थी।”― मन्नू भंडारी द्वारा बीबीसी को दिए गए एक साक्षात्कार से।
कलम का सिपाही, कलम का जादूगर एवं उपन्यास सम्राट कहलाने वाले मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कहानियाँ और उपन्यास, महत्त्वपूर्ण तथ्य, एवं मान सरोवर आदि के बारे संपूर्ण जानकारी।