कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन हिन्दी-शिक्षण-विधियाँ

कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन हिन्दी-शिक्षण-विधियाँ (Computer Assisted Instruction – CAI)

हिन्दी-शिक्षण-विधियाँ कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन का अर्थ, आधारभूत मान्यताएं, प्रकार, विशेषताएं, शिक्षण प्रक्रिया, आवश्यक विशेषज्ञ, प्रणाली की उपयोगिता एवं सीमाएं आदि की जानकारी

कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन का अर्थ (Meaning of Computer Assisted Instruction)

संगणक द्वारा अनुदेशन के अन्तर्गत, अधिगम करने वाले शिक्षार्थी के लिए विभिन्न प्रकार की अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न किया जाता। इन परिस्थितियों को अनुदेशन के आधार पर उत्पन्न किया जाता है। जब इन अधिगम परिस्थितियों को नियन्त्रित अनुदेशन के माध्यम से संगणक द्वारा उत्पन्न किया जाता है तो इस प्रक्रिया को संगणक के द्वारा अनुदेशन के नाम से संबोधित किया जाता है। इस प्रकार संगणक द्वारा नियंत्रित अनुदेशन पर अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न करने की प्रक्रिया को संगणक आधारित अधिगम, संगणक अनुसूचित शिक्षा, संगणक समर्पित अधिगम तथा संगणक से अनुदेशन के नाम से भी संबोधित किया जाता है।

संगणक से अनुदेशन की प्रक्रिया में शिक्षार्थी को व्यक्तिगत रूप से स्वयं ही सीखने का अवसर प्राप्त होता है अतः यह एक व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन अथवा स्वतः अनुदेशन की प्रक्रिया के अंतर्गत सम्मिलित की जाने वाली प्रक्रिया है, इसके अतिरिक्त संगणक की यह एक विलक्षण विशेषता है कि इनमें किसी अध्यापक की आवश्यकता नहीं होती है, वरन अधिगम के लिए शिक्षार्थी व संगणक के मध्य जिस अन्तःक्रिया की आवश्यकता होती है, यह अन्तःक्रिया, इस प्रक्रिया के अन्तर्गत, शिक्षार्थी व संगणक के मध्य होती है।

कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन हिन्दी-शिक्षण-विधियाँ
कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन हिन्दी-शिक्षण-विधियाँ

एक अध्यापक किस प्रकार भाषा के आधार पर पाठ्यवस्तु की प्रस्तुति करते हुए, शिक्षार्थियों को अधिगम कराता है, उसी प्रकार संगणक द्वार भी, विशिष्ट उद्देश्यों, अनुदेशों तथा पुनर्बलन के आधार पर शिक्षार्थियों को अधिगम कराया जाता है। अध्यापक द्वारा किये जाने वाले शिक्षण में अनियमितता अथवा अनिष्पक्षता की संभावना भी होती है। परंतु संगणक द्वारा अनुदेशन की प्रणाली व्यक्तिनिष्ठ प्रभावों से पूर्णतया मुक्त तथा निष्पक्ष होती है। इसके अतिरिक्त अध्यापक के समान इस पर का द्वारा शिक्षार्थिया का समुचित मूल्यांकन भी किया जा सकता है।

कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन की आधारभूत मान्यताएं (Basic Assumptions CAI)

कुछ आधारभूत मान्यताओं के आधार पर संगणक सह-अनुदेशन का विकारा किया गया है। यही कारण है कि इसकी लोकप्रियता शिक्षण प्रशिक्षण के विभिन्न स्तरों एवं क्षेत्रों में बढ़ती जा रही हैं:

(1) बहुसंख्य शिक्षार्थियों के लिए उपयुक्त

संगणक सह-अनुदेशन की प्रथम मान्यता यह है कि इस मॉडल का प्रयोग एक समय में एक साथ हजारों शिक्षार्थियों पर किया जा सकता है। इस प्रकार शिक्षा में संख्यात्मक प्रसार करने एवं गुणात्मक स्तर को बनाये रखने के लिए यह अनुदेशन उपयोगी है। इस अनुदेशन प्रविधि में शिक्षार्थियों की वैयक्तिक भिन्नताओं के अनुरूप अनेक शाखात्मक अनुक्रम संगणक में रखे जा सकते है। शिक्षार्थी की आवश्यकता, योग्यता और व्यवहार के स्तर को समझते हुए संगणक शिक्षार्थी के लिए अभिक्रम का चयन कर सकता है। इस प्रकार अधिगमकर्ता अपनी योग्यता के अनुरूप तुरन्त अभिक्रम प्राप्त कर अपनी गति से अधिगम कर सकता है, तथा तत्काल व्यक्तिगत प्रतिपुष्टि भी प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार संगणक सह-अनुदेशन पूरी तरह से वैयक्तिक अनुदेशन पद्धति है ।

(2) तत्काल मूल्यांकन एवं सुधार

संगणक सह-अनुदेशन से सम्बन्धित दूसरी मान्यता किसी भी विषय या विषयवस्तु में यह है कि अधिगमकर्ता द्वारा अधिगम और परीक्षण के समय किये गये उसके व्यवहार को स्वतः रिकॉर्ड किया जा सकता है। इस प्रकार इस रिकॉर्ड के आधार पर शिक्षक उसके व्यवहार का तत्काल मूल्यांकन कर सकता है और मूल्यांकन के उपरान्त अधिगमकर्ता के लिए भावी शिक्षण एवं अधिगम की रूपरेखा तैयार की जा सकती है।

(3) माध्यम से विषयवस्तु को प्रस्तुत करने की क्षमता

संगणक सह-अनुदेशन से सम्बन्धित तीसरी मान्यता किसी भी विषय या विषयवस्तु को विभिन्न विधियों के माध्यम से प्रस्तुत करने की क्षमता से सम्बन्धित है। विषयवस्तु को आवश्यकतानुसार शब्द, चित्रों या प्रयोगों के माध्यम से अधिगमकर्ता के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। संगणक सह अनुदेशन एक प्रभावशाली शैक्षिक उपकरण की भाँति, शिक्षार्थियों की विभिन्न समस्याओं का शैक्षिक समाधान प्रस्तुत कर सकता है।

कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन के प्रकार (Types of CAI)

संगणक सह-अनुदेशन कार्यक्रम कई तरह का होता है। कुछ मुख्य प्रकारों का विवरण निम्नलिखित है-

(1) लोगो प्रणाली

इस प्रणाली का अविष्कार पापर्ट तथा फरजीग ने किया।

यह बच्चों के लिए भाषा में तैयार किया गया प्रोग्राम है।

(2) अनुकरण या खेल विधि

संगणक सह-अनुदेशन दूसरे प्रकार के प्रोग्राम अनुकरण विधि पर आधारित होता है।

इस विधि के अन्तर्गत खेल द्वारा अधिगम को सम्मिलित किया जाता है।

यथा, उत्पत्ति प्रकरण के अध्ययन के अन्तर्गत पुष्पों के उत्पादन संबंधी प्रयोग में पंक्तियों को प्रयुक्त किया जाता है।

विज्ञान संबंधी प्रयोग के विविध विषयों में यह विध विशेष रूप से सहायक सिद्ध होती है।

(3) नियंत्रित अधिगम

यह अभ्यास पर आधारित है।

अध्यापक द्वारा कराये जाने वाला यह अभ्यास अनुपूरक का कार्य करता है।

नियंत्रित अधिगम कुछ सीमा तक शाखीय प्रोग्राम से अधिक कुछ नहीं है।

इसमें रुचिप्रद स्वीकार्य सोपानों का उपयोग किया जा सकता है।

संगणक अभिक्रमित अनुदेशन की प्रस्तुति ही नहीं करता वरन् शिक्षार्थियों के व्यवहारों को नियन्त्रित भी करता है।

कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन की विशेषताएं-

इस प्रक्रिया में सूचनाओं का व्यापक स्तर पर संचित एवं व्यवस्थित किया जा सकता है।

इसके द्वारा वैयक्तिक विभिन्नताओं के आधार पर अनुदेशन प्रदान किया जा सकता है।

यह स्वतः अनुदेशन प्रदान करने में सहायक है।

संगणक सह-अनुदेशन की प्रक्रिया में संगणक द्वारा अनुदेशन पर आधारित परिस्थितियों को अभिकल्पित किया जाता है।

इसे प्रायः समस्त शैक्षिक स्तरों पर तथा समस्त विषयों के अनुदेशकों हेतु प्रयोग किया जा सकता है।

एक ही समय में अनेक प्रकार के अनुक्रम प्रस्तुत किये जा सकते हैं और एक ही समय में 30 शिक्षार्थियों को अनुदेशन दिया जा सकता है।

इसके द्वारा अधिगम परिस्थितियों को रुचिकर बनाया जाता है तथा यह नियंत्रित परिस्थितियों में अधिगम की प्रकिया को संचालित करने में सहायक है।

यह अभिक्रमित अध्ययन पर आधारित एक नवीन एवं मौलिक प्रणाली है।

इसमें विभिन्न अधिगम स्वरूपों के आधार पर कई प्रकार के अभिक्रम प्रस्तुत किये जाते है।

यह व्यक्तिनिष्ठ अध्ययन का ही एक रूप है किन्तु व्यक्तिनिष्ठ प्रभावों से पूर्णतः मुक्त है।

इसमें अनुदेशन और अधिगम की प्रक्रिया के बाद शिक्षार्थियों को निरंतर पुनर्बलन प्राप्त होता है।

इस प्रणाली के अन्तर्गत शिक्षार्थियों को पूर्ण योग्यताओं के आधार पर तथा उनके प्रविष्ट व्यवहारों या पूर्ण ज्ञान के आधार पर उनको (प्रविष्ट) अनुदेशन प्रदान किया जाता है।

इसके द्वारा शिक्षार्थियों को उनके उत्तर की तत्काल जानकारी हो जाती है तथा उत्तर गलत होने की स्थिति में उन्हें अपनी त्रुटि का कारण भी ज्ञात हो जाता है।

इस प्रणाली में शिक्षार्थियों की उपलब्धि का समस्त प्रलेख रखा जाता है।

इसमें संचयन, विश्लेषण और संश्लेषण की विशिष्ट क्षमता होती है। इसी कारण इससे मानव मस्तिष्क के समान, संगणक मस्तिष्क के नाम से संबोधित किया।

संगणक प्रदत्त शिक्षण प्रक्रिया  (Computerized Teaching Process)

संगणक प्रदत्त शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक के स्थान पर संगणक का अनुदेशन के लिए प्रयोग किया जाता है। संगणक द्वारा शिक्षण की प्रक्रिया दो भागों में विभक्त होती है :

(1) पूर्व अनुवर्ग शिक्षण चरण (Pre-tutorial Phase)

पूर्व अनुवर्ग शिक्षण चरण में विशिष्ट उदेश्यों को प्राप्त करने के लिए विशिष्ट विद्यार्थी को उसके पूर्व व्यवहार के आधार पर संगणक द्वारा सह-अनुदेशन दिया जाता है।

(2) अनुवर्ग शिक्षण चरण (Tutorial Phase)

अनुवर्ण शिक्षण चरण के अन्तर्गत शिक्षार्थी के अनुरूप संगणक द्वारा अनुदेशन सामग्री को प्रस्तुत किया जाता है। अनुदेशन को प्रस्तुत करने के बाद संगणक उसका नियंत्रण भी करता है और अधिगम को पुनरावर्तन भी प्रदान करता है।

उपर्युक्त दोनों शिक्षण चरणों के कार्य को संगणक दो सोपानों के अन्तर्गत करता है-

(1) अपेक्षित जनसंख्या का चयन (Selection of Target Population)

विद्यार्थी को शैक्षणिक योग्यता, शैक्षिक उपलब्धि एवं पूर्व व्यवहार जो कार्ड पर अंकित रहते हैं. संगणक उसे पढ़कर विद्यार्थी के पूर्व व्यवहार के स्तर की परख करनेकरन तथा पुष्टि के लिए उसको पूर्व परीक्षा (pre – test) लेता है। इस परीक्षण के परिणाम के आधार पर संगणक शिक्षार्थी के शैक्षिक स्तर अथया पूर्व व्यवहार के स्तर को निर्धारित कर लेता है।
इसके उपरान्त संगणक पुनः एक पूर्व (व्यवहार) परीक्षण करता है और इसके आधार पर विद्यार्थी के व्यवहार का विश्लेषण और मूल्यांकन करता है। इस प्रकार संगणक यह पता लगा लेता है कि विद्यार्थी को पाठ्यवस्तु का पूर्व ज्ञान कितना है, इस प्रकार संगणक विद्यार्थी के स्तर के अनुसार अभिक्रम का चयन करता है। यदि संगणक के अन्दर उस शिक्षार्थी के स्तर का अनुक्रम संग्रहीत नहीं होता तो संगणक शिक्षार्थी को अयोग्य घोषित कर देता है।

(2) अनुक्रम का प्रस्तुतिकरण तथा अधिगम नियंत्रण

संगणक एक समय में 30 शिक्षार्थियों के लिये एक ही पाठ्यवस्तु से सम्बन्धित 30 अभिक्रमों को प्रस्तुत करता है। संगणक शिक्षार्थी को जब अपने योग्य पाता है तो उसके पूर्व व्यवहार के अनुकूल शिक्षार्थी को अनुदेशन दिये जाते है। संगणक के अन्तर्गत विद्युत टंकण मशीन के टेप द्वारा सूचनाओं को संप्रेषित किया जाता है। यदि शिक्षार्थी गलत अनुक्रिया करता है तो त्रुटि के अनुरूप ही संगणक अनुदेशन को बदल सकता है।
संगणक केवल अभिक्रमित अनुदेशन को ही प्रस्तुत नहीं करता बल्कि वह शिक्षार्थियों के व्यवहारों को भी नियंत्रित करता है।

कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन के लिए आवश्यक विशेषज्ञ (Experts Needed in CAI) : हिन्दी-शिक्षण-विधियाँ

संगणक सह-अनुदेशन की प्रविधि के प्रयोग के लिए किसी भी संख्या को निम्नांकित प्रकार के विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ती है-

(1) अनुक्रम लेखक (Programmer)

अनुक्रम का लेखन कठिन कार्य होता है।

इसके लिए कुशल लेखकों की आवश्यकता पड़ती है।

क्योंकि लेखक को अधिगम के सिद्धांतों को समझना पड़ता है बाल मनोविज्ञान का ज्ञाता तथा आयु के अनुसार विकास प्रक्रिया को जानने वाला शिक्षक ही अभिक्रमा का निर्माण कर सकता है।

(2) संगणक अभियंता (Computer Engineer)

संगणक अभियंता एक विशेषज्ञ होता है।

वह अनुक्रम के मूल सिद्धांतों और शैलियां को समझता है।

संगणक के विभिन्न अंगों, उनकी रचना एवं कार्यप्रणाली तथा उसके सिद्धांतों को भलीभाँती समझता है।

अभिक्रमित पाठ को संगणक अपनी भाषा द्वारा अनुदित कर सकता है।

संगणक के लिए निर्देशों की रूपरेखा इसके द्वारा सुनिश्चित की जाती है।

(3) प्रणाली प्रचालक (System Operator)

संगणक सह- अनुदेशन को प्रणाली में प्रचालक संगणक और अधिगमकर्ता के मध्य की कड़ी होता है।

प्रणाली-प्रचालक संगणक की संपूर्ण कार्य प्रणाली से अवगत रहते हैं तथा संगणक के डाटा-बेस के उपयोग में सहायक होते है।

अभिक्रम से सम्बन्धित त्रुटियों को सुधारने का कार्य प्रणाली-प्रचालक ही करता है।

कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन प्रणाली की उपयोगिता (Utility of CAI) : हिन्दी-शिक्षण-विधियाँ

कई प्रकार के विषयों के अनुदेशन हेतु इसका उपयोग किया जा सकता है।

संगणक को सहायता से शिक्षार्थियों को व्यक्तिनिष्ठ पाठ उपलब्ध कराये जा सकते है।

संगठन के द्वारा विचार तथा सूचनाओं के भण्डार को संचित एवं व्यवस्थित किया जा सकता है।

संगणक के द्वारा शिक्षार्थियों की आवश्यकता के अनुरूप प्रदत्त कार्यों का चयन किया जा सकता है।

शिक्षार्थियों को अपनी अनुक्रियाएं करने का अवसर प्राप्त होता है

शिक्षार्थियों के उत्तर की तत्काल पुष्टि हो जाती है।

अनुदेशन के प्रातः शिक्षार्थियों में रुचि, सजगता, तत्परता एवं तल्लीनता का विकास होता है।

अभिक्रमित रूप से गठित सामग्री को अधिक रोचक ढंग के साथ प्रस्तुत किया जाना सम्भव है।

एक पाठ्यवस्तु के कई अनुदेशों का वैयक्तिक अनुदेशन के आधार पर, विभिन्न योग्यताओं वाले शिक्षार्थियों को, अध्ययन का अवसर प्राप्त होता है।

यह कक्षा अध्यापन में अध्यापक के लिए प्रभावी रूप से सहायक है।

प्रस्तुति के साथ-साथ, शिक्षार्थियों को अनुक्रियाओं का अवलोकन भी किया जाता है।

इसके द्वारा शिक्षार्थियों के पूर्ण ज्ञान के सम्बन्ध में निर्णय लिया जा सकता है।

शैक्षिक निर्देशन के क्षेत्र में यह शिक्षार्थियों की कमजोरी ज्ञात करके उनका उपचारात्मक रूप से निदान करता है।

यह शोध कार्य में प्रदत्तों के संकलन एवं विश्लेषण में सहायक है।

शिक्षार्थियों के उत्तरों का अंकन व उनकी उपलब्धि का आलेख तैयार करने में सहायक है।

शिक्षार्थियों को उनकी अनुक्रिया के उपरान्त, निरन्तर पुनर्बलन देने में भी संगणक सह-अनुदेशन प्रणाली सहायक है।

कंप्यूटर-आधारित संगणक सह-अनुदेशन की सीमाएं (Limitation of CAI) : हिन्दी-शिक्षण-विधियाँ

अभिक्रमित अनुदेशन के क्षेत्र में अनुसंधानकर्ताओं ने संगणक सह अनुदेशन को कई सीमाओं की ओर संकेत किया है जो इस प्रकार है-

(1) अनुक्रिया का अप्राप्त अवसर-

इस प्रणाली के अन्तर्गत टेलीटाइप पर उत्तरों को टाइप करना होता है अथवा स्क्रीन पर पेन से उपयुक्त उत्तर को स्पर्श करना होता है।

ध्वनि अथवा लेखन के आधार पर नये शिक्षार्थियों को अनुक्रिया का अवसर नहीं प्राप्त होता है

और न ही संगणक के द्वारा इस आधार पर उनकी अनुक्रियाओं को विश्लेषित करने की क्षमता प्राप्त होते हैं।

(2) संज्ञानात्मक विकास की संभावना

शिक्षा में शिक्षार्थियों को संवेगात्मक एवं कार्यात्मक शक्तियों का विकास करना भी प्रमुख स्थान रखता है।

परंतु इस प्रणाली के द्वारा शिक्षार्थियों का केवल ज्ञानात्मक स्तर पर ही विकास संभव है।

इस प्रकार कक्षा में शिक्षार्थी और अध्यापक की अन्तःक्रिया के आधार पर तथा परंपरागत विधि द्वारा ही शिक्षार्थियों का संवेगात्मक विकास किया जा सकता है।

संगणक द्वारा इस दिशा में कोई योगदान प्राप्त नहीं होता है।

(3) शैक्षिक व मनोवैज्ञानिक समस्या

संगणक द्वारा बहुविकल्पीय प्रश्नों के आधार पर सूचनाएँ प्रेषित की जाती है।

किन्तु केवल बहुविकल्प वाले प्रश्नों के आधार पर न तो शिक्षार्थियों को समस्त सूचनाएं दी जा सकती हैं और न ही उनके मन में उत्पन्न समस्त कठिनाइयों को समझा जा सकता है।

शिक्षार्थियों की अनेक शैक्षिक या मनोवैज्ञानिक समस्याओं का केवल संगणक के द्वारा ही हल नहीं किया जा सकता ह बल्कि इसके लिए अध्यापक और निर्देशन विभाग को सेवाएं नितान्त ही आवश्यक होती है।

(4) भाषा संबंधी योग्यताओं के विकास में कठिनाई

भाषा संबंधी योग्यताओं का विकास प्रत्येक शिक्षार्थी के लिए परम आवश्यक है परंतु संगणक द्वारा समस्त भाषा संबंधी योग्यताओं का विकास किया जाना अत्यंत कठिन काम है।

तर्कपूर्ण क्रम तथा अपेक्षित शैली के अनुसार प्रस्तुति करने की क्षमता का विकास, संक्षिप्त वाक्यों के अथवा व्याख्याओं विस्तार के साथ अभिव्यक्त करने जैसी योग्यताओं का विकास कक्षा में अध्यापक के सानिध्य में रहकर ही किया जा सकता है।

(5) अधिक थकान का अनुभव

संगणक प्रणाली द्वारा अधिगम में शिक्षार्थियों को अधिक थकान का अनुभव होता है।

इसका कारण यह है कि यह विधि रुचिकर होते हुए भी शिक्षार्थियों से अधिक तल्लीनता के साथ सक्रियता की अपेक्षा करती है।

अनुसंधान के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि इसमें कम समय में ही शिक्षार्थी थक जाते हैं।

(6) कार्यप्रणाली में असमानता

इस प्रणाली में शिक्षार्थियों को एक नियंत्रित अधिगम परिस्थिति लम्बे समय तक रह कर अधिगम करना होता है

तथा प्रत्येक स्थिति में यंत्र की कार्य प्रणाली के अनुकूल तत्पर रहना होता है।

कुछ क्षणों के लिए यदि शिक्षार्थी अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं तो उन्हें सम्बन्धित सूचनाओं का अधिगम नहीं हो पाता है।

परंन्तु यह सम्भव नहीं है कि प्रत्येक शिक्षार्थी सम्पूर्ण समय तक तल्लीन रहकर अधिगम कर सके।

मनुष्य और मशीन को कार्यप्रणाली में विशेषकर गति की दृष्टि से समानता नहीं हो सकती।

(7) व्यवसाय प्रणाली

संगणक द्वारा सरल व जटिल दोनों प्रकार के अनुदेशनों को प्रस्तुत किया जा सकता है

परंतु इस प्रकार की प्रणाली का प्रयोग अत्यन्त व्ययसाध्य है।

यही कारण हैं कि उसका प्रयोग चयनित सेवाओं उच्च संस्थाओं में हो किया जाता है।

शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रणाली का प्रयोग केवल समृद्ध देश ही कर सकते है।

(8) कार्यपूर्णता कठिन

भारत में इसके प्रयोग से पूर्व इसकी समस्त योजना तैयार करना, अध्यापकों को इसके संचालन हेतु प्रशिक्षित करना, कक्षाओं में आवश्यक रूप से संशोधन करना, सम्बन्धित शोध कार्य को पूर्ण करना व इन यंत्रों को व्यापक स्तर पर उपलब्ध कराना भी एक जटिल कार्य है।

उपर्युक्त सीमाओं के होते हुए भी शिक्षा व्यवस्था परन्तु जैसे-जैसे ज्ञान का विस्तार हो जायेगा, वैसे-वैसे शिक्षा जगत में संगणकों की माँग बढ़ेगी।

भविष्य मैं संगणक शिक्षा और संगणक तकनीकी पाठ्यक्रम के प्रमुख विषय होंगे।

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स्रोत- NCERT शिक्षा में सूचना एवं संचार तकनीकी

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