भारत और राजस्थान में कृषि

भारत और राजस्थान में कृषि

भारत और राजस्थान में कृषि | कृषि जलवायु क्षेत्र | भारत तथा राजस्थान की प्रमुख फसलें | भारत और राजस्थान में फसल उत्पादन | खेती के प्रकार |

‘कृषि’ शब्द लेटिन भाषा से लिया गया है।

भारत में कुल श्रमशक्ति का 56% कृषि क्षेत्र में कार्यरत है।

कृषि जलवायु क्षेत्र

जलवायु के आधार पर भारत को 15 कृषि जलवायु क्षेत्र में विभाजित किया गया है-

  1. पश्चिमी हिमालयी भाग
  2. पूर्वी हिमालयी भाग
  3. निचला गांगेय मैदानी क्षेत्र
  4. मध्य गांगेय मैदानी क्षेत्र
  5. उच्च गांगेय मैदानी क्षेत्र
  6. गांगेय-पार मैदानी क्षेत्र
  7. पूर्वी पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र
  8. केन्द्रीय पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र
  9. पश्चिमी पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र
  10. दक्षिणी पठार तथा पर्वतीय क्षेत्र
  11. पूर्वी तटीय मैदानी क्षेत्र और पर्वतीय क्षेत्र
  12. पश्चिमी तटीय मैदानी क्षेत्र और पर्वतीय क्षेत्र
  13. गुजरात मैदानी क्षेत्र और पर्वतीय क्षेत्र 14. पश्चिमी मैदानी क्षेत्र और पर्वतीय क्षेत्र
  14. द्वीप क्षेत्र

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर

राज्य कृषि मंत्री लालचंद कटारिया

कृषि गणना भारत सरकार के कृषि व सहकारिता विभाग द्वारा 5 वर्ष के अंतराल से कराई जाती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का जीडीपी में योगदान 17.90% है।

कृषि सबसे डूबा हुआ सेक्टर है।

भारत का औसत जोत आकार 1.5 हैक्टेयर।

भारत में सर्वाधिक औसत जोत आकार नागालैंड 6.02% है

राजस्थान का औसत जोत आकार 3.07 हेक्टेयर है।

भारत के कुल क्षेत्र के 51 से 52% भाग पर कृषि की जाती है।

एशिया का सबसे बड़ा कृषि फार्म सूरतगढ़ श्री गंगानगर रूस के सहयोग से 15 अगस्त 1956 में शुरू किया गया।

भारतीय कृषि/राजस्थान की कृषि मानसून पर आधारित होने के कारण इसे मानसून का जुआ कहा जाता है।

‘मानसून’ शब्द अरबी भाषा का शब्द है।

राजस्थान में शीत ऋतु में भूमध्य सागर से उत्पन्न पश्चिमी विक्षोभ के द्वारा होने वाली वर्षा मावठ कहलाती है।

इसे गोल्डन ड्रॉप्स के नाम से भी जाना जाता है।

क्योंकि यह वर्षा रवि फसल हेतु अच्छी मानी जाती है।

राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर परियोजना तथा अन्य सिंचाई परियोजनाओं के अलावा शुष्क खेती (ड्राई फार्मिंग) की जाती है।

मिश्रित खेती = फसल उत्पादन + पशु पालन + मधुमक्खी पालन।

जैविक खेती

भारत का प्रथम जैविक खेती करने वाला राज्य – उत्तराखंड

भारत का पूर्णता जैविक खेती करने वाला राज्य – सिक्किम

राजस्थान का जैविक खेती करने वाला जिला – डूंगरपुर

भारत तथा राजस्थान की प्रमुख फसलें

ऋतु के आधार पर फसलों को 3 भागों में विभाजित किया जाता है।

खरीफ/वर्षा/स्यालू/सावनी

जून से जुलाई में बोई जाती है। मक्का, कपास, गन्ना, बाजरा, सोयाबीन, ग्वार, तिल, धान, अरंडी, मूंग, मूंगफली, अरहर, उड़द, आदि।

रबी/शरद/उनालू – (अक्टूबर-नवंबर)

गेहूं, सरसों, चना, जौ तारामीरा, मसूर, मटर, आलू, जीरा, मेथी, धनिया, जूट आदि।

बसंत/जायद (मार्च से जून)

प्रमुख फसलें – खरबूजा, ककड़ी, खीरा, ग्वार चंवला मुख्यतः सब्जियां।

दलहनी फसलें – चना, मूंग, मोठ, उड़द, चंवला, अरहर, मसूर, सोयाबीन सर्वाधिक प्रोटीन)

खाद्यान्न फसले

गेहूं, धान, बाजरा, ज्वार, मक्का, जौ आदि।

रेशे वाली फसलें

कपास, जूट, पटसन, अलसी।

नगदी या व्यापारिक फसलें

कपास, गन्ना, ग्वार, चुकंदर, जूट, चाय, तंबाकू, आलू।

तिलहनी फसलें- सोयाबीन, सरसों, तारामीरा, अलसी, मूंगफली, तिल, अरंडी, सूरजमुखी।

चारे वाली फसलें- बरसीम, रिजका, जई

प्रमुख फसलों का उत्पादन (विश्व में)

धान – भारत > चीन > यूएसए

गेहूं – चीन > भारत > इंडोनेशिया

कपास – चीन > भारत > यूएसए

चाय – चीन > भारत

तंबाकू – भारत का दूसरा स्थान

विश्व में भारत हल्दी, नारियल, काली मिर्च, आम, केला, अदरक, चीकू अधिक उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है।

फल व सब्जियों में द्वितीय स्थान रखता है।

भारत और राजस्थान में फसल उत्पादन

धान पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश पंजाब बूंदी हनुमानगढ़

गेहूं उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश पंजाब श्री गंगानगर हनुमानगढ़

कपास महाराष्ट्र गुजरात हनुमानगढ़

गन्ना उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र कर्नाटक श्रीगंगानगर

चाय असम पश्चिम बंगाल

बाजरा राजस्थान अलवर जयपुर सर्वाधिक क्षेत्रफल बाड़मेर

कुल खाद्यान्न– उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश पंजाब राजस्थान श्री गंगानगर

कुल तिलहन मध्य प्रदेश राजस्थान

दलहन मध्य प्रदेश महाराष्ट्र राजस्थान राजस्थान में जीरा का उत्पादन जोधपुर, बाड़मेर।

धनिया का उत्पादन- झालावाड़, कोटा, बारा

इसबगोल का विश्व में प्रथम स्थान – भारत इसबगोल का भारत में सर्वाधिक उत्पादन – राजस्थान (लगभग 40%)

राजस्थान में सर्वाधिक उत्पादन – बाड़मेर जालौर

प्रमुख संस्थान

कटक (उड़ीसा) – राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान

सेवर भरतपुर (1992) – राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान संस्थान

केरल राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान संस्थान – तबीजी (अजमेर) – राष्ट्रीय मसाला अनुसंधान संस्थान

केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान CAZRI (काजरी) – जोधपुर

उपनाम

भारत में मसालों का घर – केरल

सोया स्टेट के नाम से प्रसिद्ध- मध्यप्रदेश

भारत-का अन्न भंडार – पंजाब

भारत:का चावल का कटोरा – कृष्णा गोदावरी डेल्टा

भारत में सर्वाधिक खेती धान की होती है

भारत में सर्वाधिक उपज देने वाली फसल – चावल

सर्वाधिक दाल उत्पादक राज्य – मध्य प्रदेश

सर्वाधिक जूट उत्पादक राज्य – पश्चिम बंगाल

भारत में सर्वोत्तम चाय – दार्जिलिंग

सर्वाधिक प्राकृतिक रबड़ उत्पादक – केरल

 

गन्ने में मुख्यतः लाल सड़न रोग लगता है।

विश्व की प्रथम ट्रांसजेनिक फसल – तंबाकू

भारतीय प्रथम ट्रांसजेनिक फसल – कपास

कृषि संबंधी क्रांतियाँ

हरित क्रांति 1966 दूसरी पंचवर्षीय योजना में।

उद्देश्य – अनाज उत्पादन बढ़ाना

हरित क्रांति के जनक भारत में डॉ. एम एस स्वामीनाथन

विदेश में बोरलॉग

हरित क्रांति शब्द विलियम गॉड ने दिया।

सुनहरी क्रांति/गोल्ड क्रांति – बागवानी उत्पादन (फल)

यलो/पीली क्रांति – तिलहन उत्पादन

सफेद क्रांति – दुग्ध उत्पादन (1977 वर्गीज कुरियन द्वारा उत्तर प्रदेश से शुरुआत)

काली या कृष्ण क्रांति – जेट्रोफा उत्पादन पेट्रोल में बुद्धि

नीली क्रांति – मछली या पीसी कल्चर।

भूरी क्रांति- खाद्य प्रसंस्करण, पेस्टिसाइड

लाल क्रांति – टमाटर/मास उत्पादन

गोल क्रांति – आलू उत्पादन में वृद्धि

गुलाबी क्रांति – झींगा मछली से संबंधित रजत क्रांति कपास उत्पादन से संबंधित

बादामी क्रांति – मसालों के उत्पादन में वृद्धि

सनराइज क्रांति – बिजली उपकरणों से संबंधित

अमृत क्रांति – नदियों को आपस में जोड़ने वाली क्रांति

इंद्रधनुष क्रांति – सभी क्रांतियों पर निगरानी रखने वाली क्रांति

कल्चर अथवा पालन

लेक कल्चर – लाख कीट पालन

सेरीकल्चर – रेशम कीट पालन

वर्मी कल्चर – केंचुआ पालन

एपीकल्चर – मधुमक्खी पालन

विटीकल्चर – अंगूर की खेती करना

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हाइड्रोपोनिक्स – बिना मृदा के जल में पौधे उगाना

हॉर्टिकल्चर – उद्यान विज्ञान

पीसी कल्चर – मछली पालन

ऑलिवो कल्चर- जमीन पर फैलने वाली सब्जियां

फ्लोरीकल्चर – फूलों की खेती

एक्वाकल्चर – जलीय जीव पादप

आईबरीकल्चर – सब्जियों की खेती

पोमोलॉजी – फलों की खेती

कृषि संबंधी प्रमुख दिवस

15 मार्च – विश्व उपभोक्ता दिवस

16 अक्टूबर – विश्व खाद्य दिवस

3 दिसंबर – राष्ट्रीय कृषि शिक्षा दिवस

5 दिसंबर – विश्व मृदा दिवस

23 दिसंबर – विश्व किसान दिवस

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना 19 फरवरी 2015 सूरतगढ़ श्री गंगानगर से शुरुआत।

ICAR भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र – नई दिल्ली स्थापना 16 जून 1929

खेती के प्रकार

शुष्क खेती

भारत में मुख्यतः पश्चिमी क्षेत्र में की जाती है।

झूमिंग/स्थानांतरण/शिफ्टिंग खेती – यह मुख्यतः आदिवासियों द्वारा की जाती है। उत्तर प्रदेश व उड़ीसा – पेंडा/पेडा के नाम से

असम झूम कृषि

मणिपुर पामलू

राजस्थान वालरा

जैविक खेती

मिक्सड क्रोपिंग/मिश्रित शस्यन – दो फसलें एकसाथ उगाना जैसे सरसों + चना

राजस्थान का अन्न भंडार-श्रीगंगानगर

राजस्थान का नागपुर – झालावाड़

मेहंदी- सोजत (पाली), गिलुंड (राजसमंद)

चेती गुलाब – खमनोर

हरी मेथी – ताऊसर (नागौर)

राजस्थान का सर्वाधिक सिंचित जिला – श्रीगंगानगर

न्यूनतम सिंचित जिला – चूरू

किन्नु/माल्टा – श्रीगंगानगर

राजस्थान का बाजरा, ग्वार, जीरा, मेथी, मोठ उत्पादन में भारत में प्रथम स्थान सुनहरा रेशा – पटसन

भारतीय सब्जी शोध संस्थान- वाराणसी

भौतिक प्रदेश

अपवाह तंत्र

पारिस्थितिकी

जैवमंडल Biosphere

सूर्य ग्रहण

भारत में परिवहन

भारत और राजस्थान में कृषि

भारत में परिवहन

भारत में परिवहन

भारत में परिवहन सड़क परिवहन रेल परिवहन वायु परिवहन जल परिवहन पाइपलाइन परिवहन राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजनाएँ

यातायात एवं परिवहन साधनों की दृष्टि से भारतीय संसाधन निम्न भागों में वर्गीकृत किए गए हैं-

  1. सड़क परिवहन
  2. रेल परिवहन
  3. वायु परिवहन
  4. जल परिवहन
  5. पाइपलाइन परिवहन

सड़क परिवहन

राजकीय राजमार्गों का प्रबंधन केंद्र सरकार द्वारा होता है।

इनका नियंत्रण केंद्रीय लोक निर्माण विभाग द्वारा किया जाता है।

डलहौजी के काल में 1856 में इस विभाग की स्थापना की गई थी।

भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का गठन 15 जून 1989 को किया गया। प्राधिकरण ने 1995 से कार्य शुरू किया।

भारत में सड़कों का जाल विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क जाल है।

इसकी कुल लंबाई 56 लाख किमी है।

सड़क निर्माण का पहला गंभीर प्रयास 1943 में नागपुर योजना बनाकर किया गया। (असफल प्रयास)

देश में प्रबंधन के आधार पर सड़कों को विभिन्न भागों में विभक्त किया गया है-

  1. राष्ट्रीय राजमार्ग
  2. राज्य राजमार्ग – देश की कुल सड़कों की लंबाई का 4% है।
  3. जिला सड़के – देश की कुल सड़कों की लंबाई का 14% है।
  4. ग्राम सड़के – देश की कुल सड़कों की लंबाई का 80% है।
  5. सीमावर्ती सड़के

सीमावर्ती सड़कों का प्रबंधन और निर्धारण सीमा सड़क संगठन द्वारा किया जाता है।

सीमा सड़क विकास बोर्ड की स्थापना 1960 में की गई।

राष्ट्रीय राजमार्गों की सर्वाधिक लंबाई वाले राज्य

  1. उत्तर प्रदेश
  2. राजस्थान
  3. मध्य प्रदेश

राज्य राजमार्गों की सर्वाधिक लंबाई वाले राज्य

  1. महाराष्ट्र
  2. गुजरात

3.मध्य प्रदेश

ये सड़कें राज्य के सभी जिला मुख्यालयों को राज्य की राजधानी से जोड़ते हैं।

सड़कों का सर्वाधिक घनत्व-केरल में

सड़कों का न्यू. घनत्व-जम्मूकश्मीर में

केंद्र शासित प्रदेशों में सर्वाधिक सड़क घनत्व – 1. दिल्ली 2. चंडीगढ़ में है।

भारत में कुल सड़कों की सर्वाधिक लंबाई महाराष्ट्र में है।

राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजनाएँ : भारत में परिवहन

स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना- स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना देश के चार महानगरों दिल्ली- मुम्बई- चेन्नई-कोलकाता को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने वाली परियोजना है। इसकी कुल लम्बाई 5846 कि०मी० है।

दिल्ली – मुंबई =  1419 किमी

मुंबई – चेन्नई =  1290 किमी

चेन्नई – कोलकाता = 1684 किमी

कोलकाता – दिल्ली = 1453 किमी

यह परियोजना कुल 13 राज्यों से होकर गुजराती है।

 

पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण गलियारा पूर्व

  1. पश्चिम गलियारा – सिलचर (असम) से पोरबंदर (गुजरात) तक
  2. उत्तर दक्षिण गलियारा – श्रीनगर से कन्याकुमारी तक।

भारतमाला एक प्रस्तावित वृहद् योजना है

(i) तटवर्ती भागों से लगे हुए राज्यों की सड़कों का विकास/सीमावर्ती भागों तथा छोटे बंदरगाहों को जोड़ना।

(ii) पिछड़े इलाकों, धार्मिक, पर्यटन स्थलों को जोड़ने की योजना।

(iii) सेतू भारतम् परियोजना के अंतर्गत 1500 बड़े पुलों तथा 200 रेल ओवर ब्रिज/रेल अंडर ब्रिज का निर्माण।

(iv) लगभग 900 कि.मी. के नए घोषित किए गए राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास के लिए जिला मुख्यालय जोड़ने की योजना।

यह कार्यक्रम 2022 तक पूरा किया जाना है।

भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग  NH 7 (44)

NH 1D लेह से श्रीनगर (काराकोरम दर्रा) यह विश्व का सबसे ऊंचा सड़क मार्ग है।

NH 1 जालंधर से श्रीनगर (बनिहाल दर्रा) यह सुरंग हेतु प्रसिद्ध है।

ग्रांड ट्रक रोड (जीटी रोड) – प्रारंभ में इसका निर्माण शेर शाह सूरी द्वारा सिंधु घाटी (पाकिस्तान) से सोनार घाटी (बंगाल) तक करवाया गया।

ब्रिटिश काल में इसे ग्रांड ट्रक रोड के नाम से नामित किया गया।

वर्तमान में राष्ट्रीय राजमार्ग 1 व 2 को सम्मिलित रूप से ग्रांड ट्रक रोड कहा जाता है।

यह वर्तमान में अमृतसर से कोलकाता तक विस्तृत विस्तृत है।

रेल परिवहन

महात्मा गांधी ने कहा था- “भारतीय रेलवे ने विविध संस्कृति के लोगों को एक साथ लाकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया है।”

भारतीय रेल की स्थापना 1853 में हुई तथा मुंबई (बंबई) से थाणे के बीच 34 कि.मी. लंबी रेल लाइन निर्मित की गई।

भारतीय रेल जाल की कुल लंबाई 66030 कि.मी. है (31 मार्च, 2015 तक) ।

रेलवे पटरी की चौड़ाई के आधार पर भारतीय रेल के तीन वर्ग बनाए गए हैं-

  1. बड़ी लाइन (Broad Guage) ब्रॉड गेज में रेल पटरियों के बीच की दूरी 1.616 मीटर होती है। ब्रॉड गेज लाइन की कुल लंबाई सन् 2016 में 60510 कि.मी. थी।
  2. मीटर लाइन (Meter Guage) – इसमें दो रेल पटरियों के बीच की दूरी एक मीटर होती है। इसकी कुल लंबाई 2016 में 3880 कि.मी. थी।
  3. छोटी लाइन (Narrow Guage) इसमें दो रेल पटरियों के बीच की दूरी 0.762 मीटर या 0.610 मीटर होती है। इसकी कुल लंबाई 2016 में 2297 कि.मी. थी। यह प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों तक सीमित है।

कोंकण रेलवे

1998 में कोंकण रेलवे का निर्माण भारतीय रेल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

यह 760 कि.मी. लंबा रेलमार्ग महाराष्ट्र में रोहा को कर्नाटक के मंगलौर से जोड़ता है।

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वायु परिवहन : भारत में परिवहन

भारत में वायु परिवहन की शुरुआत 1911 में हुई, जब इलाहाबाद से नैनी तक की 10 कि.मी. की दूरी हेतु वायु डाक प्रचालन संपन्न किया गया था।

भारत में वायु परिवहन का प्रबंधन एयर इंडिया द्वारा किया जाता है।

पवन हंस एक हेलीकॉप्टर सेवा है जो पर्वतीय क्षेत्रों में सेवारत है।

पाइपलाइन परिवहन : भारत में परिवहन

आयल इंडिया लिमिटेड (ओ.आई.एल.) कच्चे तेल एवं प्राकृतिक गैस के अन्वेषण, उत्पादन और परिवहन में संलग्न है।

देश की प्रमुख पाइपलाइन

  1. एशिया की पहली 1157 कि.मी. लंबी देशपारीय पाइपलाइन असम के नहरकरिटया तेल क्षेत्र से बरौनी के तेल शोधन कारखाने तक।
  2. अंकलेश्वर-कोयली, मुंबई – हाई – कोयली तथा हजीरा – विजयपुर -जगदीशपुर (HVJ) का निर्माण किया गया।
  3. सलाया (गुजरात) से मथुरा (उ.प्र.) तक 1256 किमी बनाई गई है।
  4. नुमालीगढ़ से सिलीगुड़ी तक 660 कि.मी. लंबी पाइपलाइन प्रक्रियाधीन है।

पुराना नाम नया नाम

हबीबगंज रेलवे स्टेशन अटल बिहारी वाजपेयी रेलवे स्टेशन

बोगीबील पुल अटल सेतु

नया रायपुर अटल नगर

रोहतांग सुरंग (हिमाचल प्रदेश) अटल सुरंग

बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे अटल पथ हजरतगंज चौराहा अटल चौक

देवघर हवाई अड्डा (प्रस्तावित) अटल बिहारी वाजपेयी हवाई अड्डा

अलीगढ़ हरिगढ़

अहमदाबाद कर्णावती

शिमला श्यामला

साहिबगंज हार्बर अटल बिहारी वाजपेयी हार्बर

अगरतला हवाई अड्डा महाराजा बीर बिक्रम हवाई अड्डा

छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट

कांडला बंदरगाह दीनदयाल बंदरगाह

साबरमती घाट अटल घाट

भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना भामाशाह सुरक्षा कवच

मुगलसराय रेलवे स्टेशन पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन

बल्लभगढ़ मेट्रो स्टेशन अमर शहीद राजा नाहर सिंह मेट्रो स्टेशन

गोरखपुर हवाई अड्डा महायोगी गोरखनाथ हवाई अड्डा

मियों का बड़ा गांव (बाड़मेर राजस्थान) महेश नगर

इलाहाबाद प्रयागराज

फैजाबाद अयोध्या

गुड़गांव गुरुग्राम

झारसुगुडा हवाई अड्डा (उड़ीसा) वीर सुरेंद्र साई हवाई अड्डा

व्हीलर द्वीप एपीजे अब्दुल कलाम  द्वीप

एकाना इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम अटल बिहारी वाजपेयी स्टेडियम

हैवलॉक द्वीप स्वराज द्वीप

नील द्वीप शहीद द्वीप

रॉस द्वीप नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप

दूरसंचार आयोग डिजिटल संचार आयोग चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन  पुरैच्ची तलैवर डॉ. एम. जी. रामचंद्रन सेंट्रल रेलवे स्टेशन

वायुदाब

पवनें

वायुमण्डल

चट्टानें अथवा शैल

जलवायु

चक्रवात-प्रतिचक्रवात

भौतिक प्रदेश

अपवाह तंत्र

पारिस्थितिकी

जैवमंडल Biosphere

सूर्य ग्रहण

भारत में परिवहन

भारत और राजस्थान में कृषि

सूर्य ग्रहण Surya Grahan

सूर्य ग्रहण Surya Grahan

सूर्य ग्रहण Surya Grahan का अर्थ, सूर्य ग्रहण का महत्त्व, सूर्य ग्रहण के दौरान सावधानियाँ, आंशिक वलयाकार एवं पूर्ण सूर्य ग्रहण, छाया व उपच्छाया आदि की जानकारी

ग्रहण का अर्थ

ग्रहण एक प्रकार की महत्त्वपूर्ण खगोलीय घटना है,

यह मुख्यतः तब घटित होती है जब एक खगोल-काय जैसे चंद्रमा अथवा ग्रह किसी अन्य खगोल-काय की छाया के बीच में आ जाता है।

पृथ्वी पर मुख्यतः दो प्रकार के ग्रहण होते हैं-

पहला सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) और दूसरा चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse)

सूर्य ग्रहण Surya Grahan का अर्थ

चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक कक्षा में घूमता है और उसी समय पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।

इस परिक्रमा के दौरान कभी-कभी चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है।

खगोलशास्त्र में इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।

इस दौरान सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता और पृथ्वी की सतह के कुछ हिस्से पर दिन में अँधेरा छा जाता है।

सूर्य ग्रहण तभी होता है जब चंद्रमा अमावस्या को पृथ्वी के कक्षीय समतल के निकट होता है।

चंद्र ग्रहण सदैव पूर्णिमा की रात को होता है, जबकि सूर्य ग्रहण अमावस्या की रात को होता है।

सूर्य ग्रहण मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-

  1. आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse)
  2. वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular Solar Eclipse)
  3. पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse)।

आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse)

जब चंद्रमा की परछाई सूर्य के पूरे भाग को ढकने की बजाय किसी एक हिस्से को ही ढके तब आंशिक सूर्य ग्रहण होता है।

इस दौरान सूर्य के केवल एक छोटे हिस्से पर अंधेरा छा जाता है।

वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular Solar Eclipse)

वलयाकार सूर्य ग्रहण की यह स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता है तथा इसका आकार छोटा दिखाई देता है।

इस दौरान चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह से ढक नहीं पाता है, और सूर्य एक अग्नि वलय (Ring of Fire) की भाँति प्रतीत होता है।

पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse)

पूर्ण सूर्य ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं,

इसके कारण पृथ्वी के एक भाग पर पूरी तरह से अँधेरा छा जाता है।

यह स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा, पृथ्वी के निकट होता है।

सूर्य ग्रहण Surya Grahan का अर्थ, सूर्य ग्रहण का महत्त्व, सूर्य ग्रहण के दौरान सावधानियाँ, सूर्य ग्रहण कैसे होता है?, सूर्य ग्रहण कब होता है?
सूर्य ग्रहण अर्थ महत्त्व

सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के एक सीधी रेखा में होने के कारण, जो लोग पूर्ण सूर्य ग्रहण को देख रहे होते हैं वे इस चंद्रमा की छाया क्षेत्र के केंद्र में होते हैं।

छाया और उपच्छाया : सूर्य ग्रहण Surya Grahan

सूर्य ग्रहण की स्थिति में पृथ्वी पर चंद्रमा की दो परछाइयाँ बनती हैं

जिसमें से पहली को छाया (Umbra) और दूसरी को उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं।

छाया (Umbra):

इसका आकार पृथ्वी पर पहुँचते हुए काफी छोटा हो जाता है और इसके क्षेत्र में खड़े लोगों को ही पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।

उपच्छाया (Penumbra):

इसका आकार पृथ्वी पर पहुँचते हुए बड़ा होता जाता है और इसके क्षेत्र में खड़े लोगों को आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।

सूर्य ग्रहण का महत्त्व : सूर्य ग्रहण Surya Grahan

सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) सूर्य (Sun) की शीर्ष परत अर्थात कोरोना का अध्ययन करने हेतु काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं ।

इस प्रकार की खगोलीय घटनाओं को समझना काफी महत्त्वपूर्ण है,

क्योंकि ये पृथ्वी समेत सौर प्रणाली के शेष सभी हिस्सों को प्रभावित करते हैं।

सदियों पूर्व ग्रहण के दौरान चंद्रमा का अध्ययन कर वैज्ञानिकों ने यह पाया था कि पृथ्वी का आकार गोल है।

वैज्ञानिकों द्वारा चंद्रमा की सतह का विस्तार से अध्ययन करने के लिये ग्रहण का उपयोग किया जा रहा है।

सूर्य ग्रहण के दौरान सावधानियाँ : सूर्य ग्रहण Surya Grahan

पूर्ण सूर्य ग्रहण की अल्पावधि के दौरान जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है तो इस घटना के दौरान सूर्य को प्रत्यक्ष रूप से देखना हानिकारक नहीं होता है, हालाँकि यह अवधि इतनी अल्प होती है कि यह जानना कि कब सुरक्षा उपकरण का प्रयोग करना है और कब नहीं, यह काफी महत्त्वपूर्ण होता है।

इसके विपरीत आंशिक सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण को बिना उपयुक्त तकनीक तथा यंत्रों के नहीं देखा जाना चाहिये,

यह हमारी आँखों के लिये काफी नुकसानदायक होता है।

सूर्य ग्रहण को आँखों में बिना कोई उपकरण लगाए देखना खतरनाक साबित हो सकता है

जिससे स्थायी अंधापन या रेटिना में जलन हो सकती है जिसे सोलर रेटिनोपैथी (Solar Retinopathy) कहते हैं।

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वायुदाब

पवनें

वायुमण्डल

चट्टानें अथवा शैल

जलवायु

चक्रवात-प्रतिचक्रवात

भौतिक प्रदेश

अपवाह तंत्र

पारिस्थितिकी

जैवमंडल Biosphere

सूर्य ग्रहण

ज्वालामुखी Jwalamukhi – Volcano

ज्वालामुखी Jwalamukhi – Volcano

ज्वालामुखी Jwalamukhi-Volcano क्या है? Jwalamukhi क्यों आता है? कैसे फटता है? प्रकार सुषुप्त ज्वालामुखी ज्वालामुखी का जन्म कैसे होता है?

ज्वालामुखी क्या है?

भूपर्पटी में वह छिद्र जिससे पिघले शैल पदार्थ, शैल के टुकड़े, राख, जलवाष्प तथा अन्य गर्म गैसें मन्द अथवा तीव्र गति से बाहर निकलते हैं,  ज्वालामुखी  कहलाते हैं। पदार्थों के बाहर निकलने की गति उद्गार की गति पर निर्भर करती है।

ज्वालामुखी उद्गार का मुख्य कारण मैग्मा और गर्म गैसों द्वारा भूपर्पटी पर डाला गया अत्याधिक दबाव है।

वह प्रक्रिया जिसके द्वारा ठोस, पिघले शैल व गैसे पृथ्वी के आंतरिक भागों से मुक्त होकर उसके धरातल पर आती हैं, ज्वालामुखी प्रक्रिया कहते हैं।

ज्वालामुखी पदार्थ यथा- शैल पदार्थ, शैल के टुकड़े, राख, जलवाष्प तथा अन्य गर्म गैसें छिद्र या द्वार के बाहर होकर प्रायः शंकु का आकार ग्रहण करते हैं। शंकु के ऊपर कीप के आकार का एक गड्ढा होता है जिसे क्रेटर कहते हैं।

ज्वालामुखी Jwalamukhi - Volcano क्या है? ज्वालामुखी क्यों आता है? कैसे फटता है? प्रकार सुषुप्त ज्वालामुखी ज्वालामुखी का जन्म कैसे होता है?
ज्वालामुखी क्या है?

उद्गार की बारम्बारता के आधार पर ज्वालामुखी तीन प्रकार के हैं-

जागृत या सक्रिय ज्वालामुखी

सुषुप्त या प्रसुप्त ज्वालामुखी

मृत या निष्क्रिय या शांत या विलुप्त ज्वालामुखी।

जागृत या सक्रिय ज्वालामुखी

सक्रिय ज्वालामुखी वे हैं जिनमें वर्तमान में क्या हाल वर्षों में उद्गार हो रहे हैं या हुए है।

प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी-

कोटोपैक्सी इक्वाडोर, ऑजस-डेल-सलादो- अर्जेंटीना व चिली की सीमा पर, माउंट एटना इटली में, माउंट अरेबस रोस द्वीप अंटार्कटिका में इंडोनेशिया में क्राकाटोआ, फिलीपाइन्स में मेयोन, हवाई द्वीप समूह में मोनालोआ भारत में बैरन द्वीप (भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है) तथा भूमध्य सागर (इटली) में स्ट्रॉमबोली (भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ) हैं।

सुषुप्त या प्रसुप्त ज्वालामुखी

प्रसुप्त ज्वालामुखी वे हैं जिनमें मानव इतिहास काल में कम से कम एक बार उद्गार हुआ है और जो वर्तमान में सक्रिय नहीं है।

जापान का फ्यूजियामा, अंडमान निकोबार द्वीप समूह का नारकोंडम द्वीप, इटली का विसुवियस तथा दक्षिण अमेरिका का कोटोपेक्सी प्रमुख प्रसुप्त ज्वालामुखी हैं।

मृत या निष्क्रिय या शांत या विलुप्त ज्वालामुखी:

विलुप्त ज्वालामुखी वे हैं जिनमें लंबे मानव इतिहास काल में उद्गार नहीं हुए हैं।

दक्षिण अमेरिका का एंकाकागुआ, म्यमार का माउंट पोपा, तंजानिया का किलिमंजारो, ईरान का देव मंद और कोह सुल्तान तथा इक्वेडोर का चिम्बारोजा।

ज्वालामुखी के उद्गार और धरातल पर विकसित आकृतियों के आधार पर ज्वालामुखी को निम्नलिखित प्रकारों में बांटा जा सकता है

शील्ड ज्वालामुखी (Shield volcanoes)

इसका लावा बहुत तरल होता है। ज्वालामुखियों से लावा फव्वारे के रूप में बाहर आता है और निकास पर एक शंकु (Cone) बनाता है, जो सिंडर शंकु (Cindar Cone) के रूप में विकसित होता है।

मिश्रित ज्वालामुखी

यह अत्यंत गाढ़ा लावा उगलते हैं। प्रायः ज्वालामुखी भीषण विस्फोट होते हैं।

ज्वालामुखी कुंड

यह पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विस्फोटक Volcano विस्फोट से यह स्वयं ही नीचे धंस जाते हैं और कुंड का निर्माण करते हैं अतः ज्वालामुखी कुंड कहलाते हैं।

बेसाल्ट प्रभाव क्षेत्र

यह वाॅल्केनो अत्यंत तरल लावा उगलते हैं। भारत का दक्कन ट्रैप वृहत बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र है।

मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी

इनका उद्गार महासागरों में होता है। यह श्रृंखला सत्तर हजार किलोमीटर से भी अधिक लंबी है।

विश्व में लगभग 500 वाॅल्केनो हैं।

ये तीन निश्चित पेटियों – प्रशांत महासागर को घेरनेवाली पेटी, मध्यवर्ती पर्वतीय पेटी तथा पूर्वी अफ्रीकी दरार घाटी में स्थित हैं।

विश्व में सर्वाधिक ज्वालामुखी इंडोनेशिया में है।

विश्व में अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी प्रशांत महासागरीय पेटी में स्थित है। इसे प्रशांत अग्नि वलय (फायर ऑफ रिंग पेसिफिक ओसियन) कहते हैं।

सर्वाधिक विनाशकारी ज्वालामुखी पीलियन प्रकार का वाॅल्केनो होता है। जैसे क्राकाटाओ ज्वालामुखी पीलियन प्रकार का ज्वालामुखी है जो जावा तथा सुमात्रा के मध्य स्थित है।

भूगर्भ में मेग्मा के जमाव से बनने वाली स्थल आकृतिया

लैकोलिथ (Lacoliths) या उत्तल

मेग्मा के गुंबदाकार जमाव को लेकोलिथ कहते हैं।
कर्नाटक के पठार में ग्रेनाइट चट्टानों की बनी ये चट्टाने लैकोलिथ व बैथोलिथ के अच्छे उदाहरण हैं।

लैपोलिथ (Lapolith) या अवतल

मैग्मा के प्याली/तश्तरीनुमा जमाव को लैपोलिथ कहते हैं।

फैकोलिथ (phacolith) या लहरदार

मैग्मा के लहरदार जमाव को फैकोलिथ कहते हैं।

बैथोलिथ (Batholiths)-

यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है।

ये ग्रेनाइट के बने पिंड हैं।

इन्हें बैथोलिथ कहा जाता है जो मैग्मा भंडारों के जमे हुए भाग हैं।

मैग्मा का वृहद लेकिन अनियमित जमाव बेथोलिथ कहलाता है।

डाइक-

जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर यह इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की भाँति संरचना बनाता है।

यही श्चित संरचना डाइक कहलाती है।

मैग्मा के स्तंभनुमा जमाव को डाइक कहते हैं।

पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र तथा ज्वालामुखी उद्गार से बने दक्कन ट्रेप के विकास में डाइक उद्गार की वाहक समझी जाती हैं।

सिल (sills)-

मैग्मा का क्षेतिजीय परतनुमा मोटा जमाव सिल कहलाता है।

स्टॉक-

यह आंतरिक प्रकार है।

शीट-

सिल से पतला जमाव शीट कहलाता है।

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वायुदाब

पवनें

वायुमण्डल

चट्टानें अथवा शैल

जलवायु

चक्रवात-प्रतिचक्रवात

भौतिक प्रदेश

अपवाह तंत्र

पारिस्थितिकी

जैवमंडल Biosphere

सूर्य ग्रहण

ज्वालामुखी

जैवमंडल Biosphere – Jaiv Mandal

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जैवमंडलबायोस्फीयर Biosphere” शब्द

बायोस्फीयर (Biosphere) शब्द दो शब्दों ‘बायो’ (Bio) तथा ‘स्फीयर’ (Sphere) से मिलकर बना है जिसमें ‘बायो’ का अर्थ है ‘जीव’ अथवा ‘प्राणी’ और ‘स्फीयर’ से तात्पर्य है परिमंडल।

‘बायोस्फीयर’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग रूसी वैज्ञानिक वर्नांडस्की ने किया। ‘बायोलॉजी’ शब्द लैमार्क (फ़्रांस) ट्रेवेरेनस (जर्मनी) ने 1801 में दिया।

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जैवमंडल Biosphere परिभाषा घटक

जैवमंडल की परिभाषा अथवा अर्थ : जैवमंडल Biosphere परिभाषा घटक

मॉकहाउस उसके अनुसार- “पृथ्वी के समस्त जीवधारी प्राणी और वह पर्यावरण जिसमें इन जीवो की पारस्परिक की क्रिया होती है जैवमंडल कहलाता है। अथवा पृथ्वी का वह समस्त भाग जहां पर जीवन पाया जाता है, वह जैवमंडल कहलाता है।”

जीव की सर्वप्रथम उत्पत्ति सागरों में एक कोशिकीय जीव अमीबा से मानी जाती है। पृथ्वी सौरमंडल का अकेला ग्रह है, जहां जीवन पाया जाता है, अतः इसे जीवित ग्रह भी कहा जाता है।

जैवमंडल वायुमंडल के उर्ध्वाकार रूप से लगभग 10 किमी तक विस्तृत है।

समुद्र में यह 10.4 किमी की गहराई तक उपस्थित है।

पृथ्वी की सतह से लगभग 8.2 किमी की गहराई तक विद्यमान है।

शैवाल बर्फीले अंटार्कटिका की विपरीत जलवायु में भी जीवित रह सकता है।

थर्मोफीलिक जीवाणु गहरे समुद्र में ज्वालामुखी रन्ध्रों के 300 डिग्री तापमान के बीच भी जीवित रह सकता है।

भूगर्भ में पाए जाने वाले कोयले और खनिज तेल के भंडार वनस्पति और जीवो के अवशेष हैं।

जैवमंडल के घटक

जैविक घटक :

वनस्पति जगत् : प्राथमिक उत्पादक

पशु जगत् : मुख्य उपभोक्ता

सूक्ष्म जीव जगत् : अपघटक

मानव जगत्

अजैविक घटक :

स्थलमंडल (लिथोस्फेयर)- सबसे भारी मंडल

जलमंडल (हाइड्रोस्फेयर) – 3/4 भाग पर

वायुमंडल – सबसे हल्का मंडल 0.03%

ऊर्जा घटक

सौर ऊर्जा – ऊर्जा का यह घटक सबसे प्रमुख और सबसे आवश्यक है। इसके बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है।

ताप ऊर्जा

खनिज ऊर्जा

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पारिस्थितिकी Ecology

पारिस्थितिकी Ecology

पारिस्थितिकी Ecology एवं पारिस्थितिकी तंत्र (Ecology System) का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, स्तूप या पिरामिड, घटक अथवा अवयव, जनक आदि की जानकारी

‘इकोलोजी’ (ecology) शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों (Oikos) ‘ ओइकोस’ और (logy) ‘लोजी’ से मिलकर बना है। ओइकोस का शाब्दिक अर्थ ‘घर तथा ‘लोजी’ का अर्थ विज्ञान या अध्ययन से है।

शाब्दिक अर्थानुसार इकोलोजी-पृथ्वी पर पौधों, मनुष्यों, जतुओं व सूक्ष्म जीवाणुओं के घर- के रूप में अध्ययन है।

जर्मन प्राणीशास्त्री अर्नस्ट हैक्कल (Ernst Haeckel), ने सर्वप्रथम सन् 1869 में ओइकोलोजी (Oekologie) शब्द का प्रयोग किया।

जैविक व अजैविक घटकों के पारस्परिक संपर्क के अध्ययन को ही पारिस्थितिकी विज्ञान कहते हैं, अतः जीवधारियों का आपस में व उनका भौतिक पर्यावरण से अंतर्संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन ही पारिस्थितिकी है।

परिस्थितिकी विज्ञान का जनक के रीटर को माना जाता है।

भारतीय पारिस्थितिकी विज्ञान का जनक आर. मिश्रा को माना जाता है।

पारिस्थितिकी Ecology एवं पारिस्थितिकी तंत्र (Ecology System) का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, स्तूप या पिरामिड, घटक अथवा अवयव, जनक आदि की जानकारी
घटक पिरामिड पारिस्थितिकी तंत्र

पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) :

पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) का संक्षिप्त रूप पारितंत्र है।

Ecosystem शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1935 में टॉसले/टेनस्ले द्वारा किया गया।

परिस्थितिकी तंत्र वह तंत्र है जो पर्यावरण के संपूर्ण सजीव एवं निर्जीव कारकों के पारस्परिक संबंधों तथा प्रक्रियाओं द्वारा प्रकट होता है।

ओडम के अनुसार : “परिस्थितिकी तंत्र ऐसे जीवो और उनके पर्यावरण की आधारभूत क्रियात्मक इकाई है जो दूसरे पारिस्थितिकी तंत्र ओर से तथा अपने अवयवों के मध्य निरंतर अंतर क्रिया करते हैं।”

टॉसले/टेनस्ले के अनुसार : “वातावरण के सभी जैविक तथा अजैविक कारकों के एकीकरण के फलस्वरूप निर्मित तंत्र को पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं।”

पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार (types of ecosystem)

पारितंत्र को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है :

प्राकृतिक पारितंत्र

कृत्रिम या मनुष्य द्वारा निर्मित पारितंत्र- खेत, बांध, उद्यान।

प्राकृतिक पारितंत्र को पुनः दो भागों में बांटा जाता है : पारिस्थितिकी तंत्र घटक पिरामिड

स्थलीय पारितंत्र- वन, पर्वत, मरुस्थल, मैदान, पठार।

जलीय पारितंत्र

जलीय पारितंत्र के पुनः दो भाग होते हैं :

ताजा जल-

लवणीय जल- महासागर समुद्र इत्यादि

ताजा जल के पुनः दो भेद हैं:

प्रवाहित जल जैसे नदी

स्थिर जल जैसे तालाब

पारिस्थितिकी तंत्र के अवयव या घटक

जैविक घटक

उत्पादक : यह अपना भोजन स्वयं बनाते हैं, अतः स्वपोषी कहलाते हैं। जैसे पेड़ पौधे।

उपभोक्ता : इन्हें परपोषी भी कहा जाता है। यह तीन प्रकार के होते हैं- प्राथमिक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ता और तृतीयक उपभोक्ता।

प्राथमिक उपभोक्ता : यह शाकाहारी होते हैं जो प्रत्यक्ष रुप से पादपों पर निर्भर होते हैं। पादपों से ही अपना भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे- बकरी, चूहा, गाय, हिरण, खरगोश, तोता इत्यादि।

द्वितीयक उपभोक्ता : यह प्राथमिक उपभोक्ताओं को अपना भोजन बनाते हैं। जैसे- मेंढक, छिपकली, लोमड़ी, भेड़िया आदि।

iii. तृतीयक उपभोक्ता : ये प्राथमिक तथा द्वितीयक उपभोक्ताओं को अपना भोजन बनाते हैं। जैसे- बाज, नेवला, चीता, मगरमच्छ, शेर, मानव आदि।

मगरमच्छ और शेर को गुरु उपभोक्ता की संज्ञा दी जाती है।

* सर्वाहारी : जो जीव शाकाहारी या मांसाहारी दोनों श्रेणियों में रखा जाता है, उसे सर्वाहारी कहते हैं।

अपघटक : वह सजीव जो उत्पादक एवं उपभोक्ताओं के मृत शरीर को जटिल कार्बनिक पदार्थों से सरल कार्बनिक पदार्थों में तोड़ देते हैं, अपघटक या लघु उपभोक्ता या सूक्ष्म उपभोक्ता कहलाते हैं।

जैसे- बैक्टीरिया, कौवा, गिद्ध एवं कवक (फंगस)।

अपघटकों को परिस्थितिकी तंत्र का मित्र भी कहा जाता है।

इन्हें सफाई कर्मचारी की संज्ञा दी जाती है, तथा मृतजीवी भी कहा जाता है।

अजैविक घटक –

वायु

जल

खनिज

चारण/ग्रेजिंग श्रृंखला :

खाद्य श्रृंखला हरे पौधों से प्रारंभ होकर शाकाहारी या मांसाहारी तक जाती है। इसे ही ग्रेजिंग श्रृंखला कहते हैं।

चारण/ग्रेजिंग खाद्य श्रृंखला :

इसमें उत्पादक शीर्ष की ओर जाने पर जीवो की संख्या में कमी हो जाती है, लेकिन पोषण स्तर के आकार में वृद्धि होती है। जैसे पादप – कीट – छोटी मछली – बड़ी मछली

परजीवी खाद्य श्रृंखला :

इस प्रकार के खाद्य श्रृंखला में उत्पादक से शीर्ष की ओर जाने पर संख्या में वृद्धि होती है, जबकि जीव के आकार में कमी होती है। जैसे- पेड़ – चिड़िया – जूं/पिसू – बैक्टीरिया

अपघटक खाद्य श्रृंखला-

यह सबसे छोटी खाद्य श्रृंखला होती है, क्योंकि यह सड़ी गली एवं मृत्त पदार्थों से प्रारंभ होकर अपघटकों पर समाप्त होती है। जैसे – मृत कार्बन पदार्थ – अपघटक।

खाद्य श्रृंखला (फूड चैन) :

वह श्रृंखला जिसमें खाने व खाए जाने का क्रम चलता है। जिसमें ऊर्जा का प्रवाह होता है। जैसे:  हरे पादप – टिड्डा – पक्षी – सांप – बाज।

पोषण स्तर या ऊर्जा स्तर : खाद्य श्रृंखला के प्रत्येक स्तर को पोषण स्तर कहा जाता है। पोषण स्तर में ऊर्जा का प्रवाह एक दिशीय होता है, अतः ऊर्जा अपने निचले स्तर में नहीं आती है।

एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में 10% शुद्ध ऊर्जा जाती है। 90% ऊर्जा का ह्रास हो जाता है।

खाद्य जाल :

किसी भी परिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न खाद्य श्रृंखलाएं किसी एक पोषण स्तर से जुड़ कर जटिल जाल बना देती हैं, जिसे खाद्य जाल कहा जाता है।

पारिस्थितिकी स्तूप या पिरामिड

सर्वप्रथम परिस्थितिकी स्तूप की अवधारणा ब्रिटेन के वैज्ञानिक चार्ल्स एल्टन ने दी इसलिए इसे अल्टोनियम पिरामिड भी कहते हैं।

यदि उत्पादक में उपभोक्ताओं को खाद्य श्रृंखला में उनके क्रमानुसार आलेखी रूप में निरूपित किया जाए तो बनने वाली संरचना पारिस्थितिकी पिरामिड या स्तूप कहलाती है।

यह पिरामिड तीन प्रकार के होते हैं-

संख्या के आधार पर पिरामिड :

न, घास स्थल, तालाब के पिरामिड सीधे बनते हैं।

एक वृक्ष का पिरामिड संख्या के आधार पर उल्टा बनता है।

जैव भार के आधार पर पिरामिड :

वृक्ष घास स्थल के पिरामिड सीधा

तालाब का पिरामिड उल्टा

ऊर्जा के पिरामिड :

ऊर्जा के पिरामिड सदैव सीधे बनते हैं।

यह उत्पादक उपभोक्ता में संचित ऊर्जा को दर्शाने वाले होते हैं।

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भारत के भौतिक प्रदेश Bharat ke Bhautik Pradesh

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भूगर्भिक संरचना की विविधता ने भारत देश के उच्चावच तथा भौतिक लक्षणों की विविधता को जन्म दिया है।

देश के धरातल के संपूर्ण क्षेत्रफल का 10.7% भाग पर्वतीय।

18.6% भाग पहाड़ीयाँ।

27.7% भाग पठारी।

46% भाग मैदानी है।

उच्चावच के आधार पर भारत को चार स्थल आकृति प्रदेशों में बांटा  गया है-

उत्तर का पर्वतीय प्रदेश या हिमालय पर्वत माला।

मैदानी प्रदेश/उत्तर पूर्वी मैदानी प्रदेश/जलोढ़ मैदान।

दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार।

तटीय मैदानी प्रदेश एवं द्वीप समूह।

उत्तर का पर्वतीय प्रदेश या हिमालय पर्वत माला : भारत के भौतिक प्रदेश Bharat ke Bhautik Pradesh

करोड़ों वर्ष पूर्व टेर्शियरी काल में संपूर्ण पृथ्वी एक ही महाद्वीप पैंजिया व एक ही महासागर पेंथालासा के रूप में विस्तृत था।

जिसके मध्य में टेथिस सागर विस्तृत था जो कि इस पैंजिया को दो भागों में उत्तरी भाग अंगारालैंड दक्षिण भाग गोंडवाना लैंड में बांटता था।

हिमालय की पर्वत श्रेणियां उत्तर पश्चिम दिशा से दक्षिण पूर्व दिशा की ओर फैली हैं।

उत्तरी पर्वतीय प्रदेश को तीन समूह में विभाजित किया जाता है –

हिमालय

ट्रांस हिमालय

III. पूर्वांचल हिमालय

हिमालय – हिमालय को पुनः तीन उप भागों में विभाजित किया जाता है-

महान हिमालय/हिमाद्री/ग्रेट हिमालय/वृहत हिमालय-

वृहत हिमालय श्रृंखला जिसे केंद्रीय अक्षीय श्रेणी भी कहा जाता है, वृहत हिमालय कि पूर्व पश्चिम लंबाई लगभग 2500 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण इसकी चौड़ाई 160 से 400 किलोमीटर है। इसकी ऊंचाई 6100 मीटर है।

यह विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत है।

विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर) नेपाल में स्थित है।

इसी पर्वत श्रृंखला में मकालू (8481 मीटर) व धौलागिरी (8172 मीटर) पर्वत शिखर नेपाल में स्थित है।

बद्रीनाथ, केदारनाथ, नंदा देवी उत्तराखंड भारत में स्थित है।

अमरनाथ व नंगा पर्वत जम्मू और कश्मीर भारत में स्थित है।

उत्तराखंड को ‘देवभूमि के नाम’ से भी जाना जाता है

विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी तथा भारत की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा (8598 मीटर) सिक्किम में स्थित है।

मध्य हिमालय/लघु हिमालय/ हिमाचल हिमालय-

औसत ऊंचाई 3700 मीटर से 4500 मीटर है।

इस हिमालय प्रदेश में निर्मित घास के मैदान को मृग (कश्मीर) बुग्याल (उत्तराखंड) कहते हैं।

हिल स्टेशन – कुल्लू, मनाली, शिमला, कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) कुल्लू घाटी श्रेणियों में स्थित है।

इसे देवताओं की घाटी कहा जाता है। नैनीताल, रानीखेत (उत्तराखंड) क्षेत्र को हिमाचल प्रदेश में धोलाधार कहते हैं।

iii. शिवालिक हिमालय-

औसत ऊंचाई 900 मीटर से 1200 मीटर है।

हिमालय पर्वतमाला की नवीनतम पर्वत श्रृंखला है।

शिवालिक श्रेणी में नदियां निकलती है हिमालय हिमालय के बीच की घाटी में बसे नगरों को दून या द्वार कहते हैं। जैसे – देहरादून, कोटलीदून, पाटलीदून, हरिद्वार

ट्रांस हिमालय –

इस हिमालय से निकलकर सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदी भारत में आती है।

लद्दाख श्रेणी और कैलास पर्वत इसी से संबंधित है।

ट्रांस हिमालय के अन्तर्गत शामिल तीन श्रेणियां निम्न प्रकार हैं- (i) काराकोरम पर्वत श्रेणी (ii) लद्दाख पर्वत श्रेणी (iii) जास्कर पर्वत श्रेणी

विश्व की दूसरी सबसे ऊंची चोटी K2 स्थित है। (पाक अधिकृत कश्मीर में)

ट्रांस हिमालय को एशिया की रीड कहा जाता है।

भारत का सबसे ठंडा स्थान द्रास लद्दाख में स्थित है।

काराकोरम पर्वत श्रेणी पर चार प्रमुख ग्लेशियर पाये जाते हैं –

(i) सियाचिन (ii) हिस्पर

(iii) वियाफो(iv) बाल्टोरा

विश्व में सर्वाधिक तीव्र ढाल वाली चोटी राकापोशी लद्दाख में है।

III.  पूर्वांचल  हिमालय –

ब्रह्मपुत्र महाखड्ड के पार भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में फैली पहाड़ियों का सम्मिलित नाम पूर्वाचल है।

इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई समुद्रतल से 500 से 3000 मी. तक है।

मिश्मी, पटकाई बुम, नागा, मणिपुर और मिजो (लुशाई) तथा त्रिपुरा इस क्षेत्र की प्रमुख पहाड़ियाँ हैं।

उच्चावच, पर्वत श्रेणियों के सरेखण और दूसरी भू आकृतियों के आधार पर हिमालय को निम्नलिखित खंडों में विभाजित किया जा सकता है-

कश्मीर हिमालय या उत्तरी पश्चिमी हिमालय-

कश्मीर हिमालय में अनेक पर्वत श्रेणियां हैं, जैसे काराकोरम, लद्दाख, जास्कर और पीर पंजाल।

यह एक ठंडा मरुस्थल है। वृहद् हिमालय और पीरपंजाल के बीच विश्व प्रसिद्ध कश्मीर घाटी और डल झील है।

कश्मीर हिमालय करेवा (एक पदार्थ विशेष) के लिए प्रसिद्ध है। यहां जाफरान की खेती की जाती है।

हिमालय में जोजीला, पीर पंजाल में बनिहाल, जास्कर श्रेणी में फोटुला और लद्दाख श्रेणी में खर्दूगला जैसे महत्वपूर्ण दर्रे स्थित है।

यहां अलवणीय झीलें डल और वूलर तथा लवणीय झीले पाँगाँग सो और सोमुरीरी इसी क्षेत्र में है।

वैष्णोदेवी, अमरनाथगुफा और चरार ए शरीफ जैसे धार्मिक स्थल भी यहीं पर है।

कश्मीर घाटी में झेलम नदी युवावस्था में बहती है।

इस प्रदेश के दक्षिणी भाग में अनुदैर्ध्य घाटियां पाई जाती हैं, जिन्हें दून कहा जाता है इनमें जम्मू दून और पठानकोट दून प्रमुख हैं।

हिमाचल और उत्तराखंड हिमालय-

हिमालय की तीनों मुख्य पर्वत श्रंखला वृहद हिमालय, लघु हिमालय (जिन्हें हिमाचल में धौलाधार और उत्तराखंड में नागतीभा कहा जाता है) और शिवालिक श्रेणी इस हिमालय खंड में स्थित है।

इस क्षेत्र के प्रमुख नगर धर्मशाला, मसूरी, कसौली, अल्मोड़ा, लैंसडाउन और रानीखेत है।

इस क्षेत्र के दो महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ शिवालिक और दून है।

कुछ महत्वपूर्ण दून चंडीगढ़ कालका दून, नालागढ़ दून, देहरादून, हरिके दून तथा कोटा दून प्रमुख हैं।

वृहत हिमालय की घाटियों में भोटिया प्रजाति के लोग रहते हैं।

यह खानाबदोश लोग हैं जो ग्रीष्म ऋतु में बुग्याल में चले जाते हैं और शरद ऋतु में घाटियों में लौट आते हैं।

प्रसिद्ध फूलों की घाटी भी इसी पर्वत श्रेणी में स्थित है।

गंगोत्री यमुनोत्री केदारनाथ बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब भी इसी क्षेत्र में स्थित है। इसी क्षेत्र में पांच प्रयाग (नदी संगम) हैं।

दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय –

यहां तेज बहाव वाली तीस्ता नदी बहती है। इन पर्वतों के ऊंचे शिखरों पर लेपचा जनजाति और दक्षिणी भाग में मिश्रित जनसंख्या पाई जाती है।

यहां मध्यम ढाल वाली गहरी जीवाश्म युक्त मिट्टी, संपूर्ण वर्ष वर्षा तथा मंद शीत ऋतु का लाभ उठाकर अंग्रेजों ने चाय के बागान लगाये।

अरुणाचल हिमालय-

यह पर्वत क्षेत्र भूटान हिमालय से लेकर पूर्व में डीफू दर्रे तक फैला है।

इस क्षेत्र की प्रमुख चोटियों में कांगतु और नेमचा बरवा शामिल हैं।

इस क्षेत्र पश्चिम से पूर्व में बसी मुख्य जनजातियां मोनपा, डफ्फला, अबोर, मिसमी, निशि और नागा है।

यह जनजातियां अधिकतर झूम खेती करती हैं। जिसे स्थानांतरित कृषि या स्लैश और बर्न कृषि भी कहा जाता है

पूर्वी पहाड़ियां और पर्वत-

उत्तर में यह पटकाई बूम, नागा पहाड़िया, मणिपुर पहाड़िया और दक्षिण में मिजो या लुसाई पहाड़ियों के नाम से जानी जाती है।

मणिपुर घाटी के मध्य स्थित झील को लोकताक झील कहा जाता है, यह चारों ओर से पहाड़ियों से घिरी है। मिजोरम जिसे ‘मोलेसिस बेसिन’ भी कहा जाता है मृदुल और असंगठित चट्टानों से बना है।

पश्चिम से पूर्व तक हिमालय का वर्गीकरण नदी घाटी की सीमाओं के आधार पर है किया गया है-

(क) सिंधु-सतलज= पंजाब हिमालय, पश्चिम से पूर्व तक क्रमशः इसे कश्मीर हिमालय, और हिमाचल हिमालय  कहा जाता है।

(ख) सतलुज-शारदा (काली)= कुमायूं हिमालय

(ग)  शारदा (काली)-तीस्ता = नेपाल हिमालय

(घ) तीस्ता – ब्रह्मपुत्र (देहांग) = असम हिमालय

मैदानी प्रदेश/उत्तर पूर्वी मैदानी प्रदेश/जलोढ़ मैदान : भारत और राजस्थान के भौतिक प्रदेश

उत्तरी मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों सिंधु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक नदियों से बना है, जो कि जलोढ़ मृदा से निर्मित है।

इस मैदान की पूर्व से पश्चिम लंबाई लगभग 3200 किलोमीटर तथा औसत चौड़ाई 150 से 300 किलोमीटर है

इस मैदान के तीन उपवर्ग हैं –

पश्चिमी भाग – पंजाब का मैदान कहलाता है।

इस क्षेत्र में दोआब की संख्या बहुत है।

(दोआब = दो नदियों के बीच का भाग)

इस मैदान का बड़ा भाग पाकिस्तान में है।

II. उत्तर भारत में गंगा का मैदान।

III. पश्चिम में ब्रह्मपुत्र का मैदान।

आकृति भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदान को चार भागों में बांट सकते हैं-

भाबर- पर्वतों से नीचे उतरने वाली नदियों शिवालिक की ढाल पर 8 से 16 किलोमीटर चौड़ी पट्टी में गुटिका बनाती है इसे भाबर कहते हैं। सभी सरिताएं भाबर में लुप्त हो जाती है।

तराई- उक्त पट्टी के दक्षिण में यह सरिता एवं नदियां पुनः निकल आती हैं, एवं नम तथा दलदली क्षेत्र का निर्माण करती है जिसे तराई कहा जाता है।

III. भांगर- उत्तरी मैदान का सबसे विशाल भाग पुरानी जलोढ़ का बना है।

यह नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित है तथा वैदिका जैसी आकृति प्रदर्शित करता है, जिसे भांगर कहा जाता है।

इस क्षेत्र की मृदा में चुनेदार निक्षेप होते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में कंकड़ कहते हैं।

खादर- बाढ़ वाले मैदानों के नए तथा युवा निक्षेपों को खादर कहा जाता है। लगभग प्रत्येक वर्ष इसका पुनर्निर्माण होता है। इसलिए यह उपजाऊ और गहन खेती के लिए आदर्श होते हैं।

तटीय मैदान : भारत और राजस्थान के भौतिक प्रदेश

स्थिति और सक्रिय भू-आकृति प्रक्रियाओं के आधार पर तटीय मैदान को दो भागों में बांटा जा सकता है-

पश्चिमी तटीय मैदान 2. पूर्वी तटीय मैदान

पश्चिमी तटीय मैदान-

दीव से दमन तक का क्षेत्र गुजरात तट, दमन से गोवा तक का क्षेत्र कोंकण तट, गोवा से कर्नाटक के मंगलूरू तक का क्षेत्र कन्नड़ तट तथा मंगलूरू से कन्याकुमारी तक का क्षेत्र मालाबार तट कहलाता है, यद्यपि कन्नड़ तक को यदा कदा मालाबार तट में शामिल किया जाता हैं।

इस तटीय मैदान में बहने वाली नदियां डेल्टा नहीं बनाती है।

इस तट को मुख्यतः तीन भागों में विभक्त किया गया-

कच्छ या गुजरात का तट – कांडला (कच्छ) से सूरत तक विस्तृत है।

इस तट का महत्त्वपूर्ण बंदरगाह कांडला बंदरगाह है, जो कि एक ज्वारीय बंदरगाह है।

इसे दीनदयाल उपाध्याय बंदरगाह भी कहते हैं।

गुजरात का तट दो उपभागों में  विभक्त है-

काठियावाड़ का तट

सौराष्ट्र का तट

 

कोंकण तट – दमन से गोवा तक विस्तृत है।

इस तट में यंत्रीकृत बंदरगाह न्हावाशेवा बंदरगाह या जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट बंदरगाह है।

 

मालाबार तट – गोवा से कन्याकुमारी तक विस्तृत है।

भारत में सर्वाधिक लैगुन झीलों हेतु प्रसिद्ध है।

यहां इसे स्थानीय भाषा में क्याल कहा जाता है। जिसे मछली पकड़ने और अंतरराष्ट्रीय नौकायन के लिए प्रयोग किया जाता है केरल में हर्ष वर्ष प्रसिद्ध नेहरू ट्रॉफी वलामकाली (नौका दौड़) का आयोजन पुन्नामदा कयाल में किया जाता है

केरल की सबसे बड़ी लैगून झील (कयाल) वेंबनाड है।

भारत का सबसे छोटा राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच 47A (वेलिंगटन से कोचीन) इसी क्षेत्र में विस्तृत है।

पूर्वी तटीय मैदान-

पूर्वी तटीय मैदान में गोदावरी, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी नदियां विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं।

चिल्का झील भी इसी मैदान में स्थित है।

उभरा हुआ तट होने के कारण यहां पत्तन और पोताश्रय कम है।

इस मैदानी प्रदेश को दो भागों में विभक्त किया गया है-

कोरोमंडल तट-

तमिलनाडु से आंध्र प्रदेश तक विस्तृत है।

तमिलनाडु का चेन्नई बंदरगाह (कृत्रिम बंदरगाह) स्थित है।

विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) भारत का सबसे गहरा बंदरगाह है।

उत्तरी सरकार तट या गोलकुंडा तट-

पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश तक विस्तृत है।

पारादीप बंदरगाह (उड़ीसा)

कोलकाता बंदरगाह कोलकाता

प्रायद्वीपीय पठार

इसका प्राचीन नाम गोंडवाना लैंड है।

खनिजों की दृष्टि से यह समृद्ध क्षेत्र है।

यह एक त्रिकोणीय उच्च भूमि है।

प्रायद्वीपीय पठार की एक विशेषता यहां की काली मिट्टी है जिसे ‘दक्कन ट्रैप’ कहा जाता है।

यह गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश तक विस्तृत है।

नर्मदा नदी प्रायद्वीपीय पठार को दो भागों- मध्य उच्च भूमि और दक्कन का पठार में बांटती है-

मध्य उच्च भूमि-

इसका विस्तार नर्मदा नदी से उत्तरी मैदान के मध्य है।

नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम में बहती हुई अरब सागर में मिलती है।

मालवा पठार तथा छोटा नागपुर पठार मध्य उच्च भूमि का हिस्सा है।

अरावली क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण पर्वत है।

अरावली पर्वतमाला-

इसकी उत्पत्ति प्रीकैंब्रियन काल में हुई।

अरावली का विस्तार खेड़ा ब्रह्म पालनपुर गुजरात से रायसीना की पहाड़ी दिल्ली तक माना जाता है।

कुल लंबाई 692 किलोमीटर और ऊंचाई 930 मीटर है।

सर्वाधिक विस्तार – राजस्थान में (550 किमी)

अरावली पर्वतमाला उत्पत्ति के आधार पर वलित पर्वतमाला है, जबकि वर्तमान में यह एक अपशिष्ट पर्वतमाला है।

अरावली पर्वतमाला का सबसे ऊंचा शिखर गुरु शिखर (1722 मीटर) है।

विंध्याचल पर्वतमाला-

चित्तौड़ से बिहार (सासारामगढ़) तथा उत्तरप्रदेश एवं मध्य प्रदेश में विस्तृत है।

यह उत्तर भारत को दक्षिण भारत से पृथक करती है।

III. सतपुड़ा पर्वतमाला

इसे मुख्यतः तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है –

मूल सतपुड़ा

इस पहाड़ी क्षेत्र में विस्तृत अमरकंटक पहाड़ी से ताप्ती नदी का उद्गम होता है।

ताप्ती नदी- यह नदी भृंश घाटी में प्रवाहित होती है।

इस पर गुजरात राज्य में उकाई परियोजना का निर्माण हुआ है।

महादेव की पहाड़ी-

धूपगढ़ पहाड़ी पर पंचमढ़ी हिलस्टेशन है (मध्यप्रदेश)

iii. मैकाल पहाड़ी-

इस पहाड़ी से नर्मदा नदी (अमरकंटक की पहाड़ी) का उद्गम होता है।

यह एक भ्रंश घाटी में प्रवाहित होती है। ताप्ती और नर्मदा नदी दोनों ज्वारनदमुख (estuary एश्चुरी) का निर्माण करते हुए खंभात की खाड़ी (अरब सागर) में जाकर गिर जाती है।

सोन नदी जो गंगा की सहायक नदी है उसका उदगम अमरकंटक की पहाड़ी अर्थात नर्मदा की विपरीत दिशा से होता है।

धुआंधार जलप्रपात – जबलपुर (मध्य प्रदेश) के निकट है।

सरदार सरोवर बांध – गुजरात

इसे गुजरात की जीवन रेखा भी कहा जाता है।

इंदिरा गांधी बांध व ओंकारेश्वर बांध – नर्मदा नदी पर (मध्य प्रदेश)

सतपुड़ा पर्वत माला एक ब्लॉक पर्वत माला है।

दक्कन का पठार-

यह ज्वालामुखी विस्फोट से बना है।

मिट्टी कपास और गन्ना की खेती के लिए उपयुक्त है।

यह नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।

इस पठार को दो भागों में विभाजित किया जाता है-

पश्चिमी घाट पर्वत या सह्याद्री पर्वत माला-

पश्चिमी घाट को अनेक नामों से जाना जाता है, जैसे – महाराष्ट्र में सह्याद्री, कर्नाटक और तमिलनाडु में नीलगिरी और केरल में अन्नामलाई और इलायची (कार्डामम) पहाड़ियां।

यह सूरत से कन्याकुमारी तक विस्तृत है।

थाल घाट – मुंबई से नासिक

भौरघाट – मुंबई से पुणे

पालघाट – कोची (केरल) से कोयंबटूर (तमिलनाडु)

सिमकोर – तिरुवंतपुरम (केरल) से मदुरई (तमिलनाडु)

पश्चिमी घाट पर्वत या सह्याद्री पर्वत माला की प्रमुख पहाड़िया निम्नलिखित हैं-

नीलगिरी पर्वत –

पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट को जोड़ने वाली पर्वत श्रृंखला है।

यह पर्वत श्रृंखला मुख्यतः कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु क्षेत्र में विस्तृत है।

इस क्षेत्र में पायकारा जलप्रपात (तमिलनाडु) में स्थित है।

प्रायद्वीपीय पठार की दूसरी तथा इस पहाड़ी समूह की सर्वोच्च चोटी डोडा बेटा है।

पूर्वी और पश्चिमी घाट नीलगिरी की पहाड़ियों में आपस में मिलते हैं।

अन्नामलाई पर्वत माला-

प्रायद्वीपीय पठार तथा इस पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊंची चोटी अनाईमुडी (2195 मी) तमिलनाडु है।

यह दक्षिण भारत की सर्वोच्च चोटी है।

iii. कार्डोम्म पहाड़ी या इलायची पहाड़ी-

यह पहाड़ी तमिलनाडु व केरल में विस्तृत है।

II.पूर्वी घाट पर्वत –

यह पर्वत समूह पश्चिम बंगाल से तमिलनाडु तक विस्तृत है।

इसके प्रमुख  पहाड़िया निम्नलिखित है-

नल्लामलाई पहाड़ी (आंध्र प्रदेश) –

पूर्वी घाट पर्वत की सबसे ऊंची चोटी महेंद्रगिरी पहाड़ी (उड़ीसा) है।

दक्कन का पठार – ज्वालामुखी लावा से निर्मित भाग है।

इसी पठार पर बेंगलुरु स्थित है, जिसे सिलीकान वैली के नाम से जाना जाता है। मैसूर का पठार – कर्नाटक

तेलंगाना का पठार – तेलंगाना

काठियावाड़ का पठार – गुजरात

मालवा का पठार – राजस्थान व मध्य प्रदेश

हाड़ौती का पठार – राजस्थान

छोटा नागपुर का पठार – यह पठारी क्षेत्र मुख्यता झारखंड क्षेत्र में विस्तृत है, जिसे मुख्यतः दामोदर में स्वर्ण रेखा नदी काटती है।

शिलांग के पठार में गारो, खासी, जयंतिया पहाड़ी (मेघालय)

कार्विंग पहाड़ी (असम)

बुंदेलखंड की पहाड़ी – उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश

दंडकारण्य का पठार- उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र में विस्तृत विस्तृत है।

महानदी इसी पठार में प्रवाहित होती है।

भारतीय रेगिस्तान : भारत के भौतिक प्रदेश Bharat ke Bhautik Pradesh

यह अरावली पहाड़ियों के पश्चिम किनारे की ओर स्थित है।

यह माना जाता है कि मेसोजोइक काल में यह क्षेत्र समुद्र का हिस्सा था।

लूणी यहां की सबसे महत्वपूर्ण और बड़ी नदी है।

इसी मरुस्थल में अकल वुड फॉसिल पार्क स्थित है।

इसे थार का मरुस्थल भी कहा जाता है।

यह विश्व का नौवा सबसे बड़ा रेगिस्तान है।

यहां वार्षिक वर्षा 150 मिमी से कम होती है।

इसका विस्तार गुजरात तथा राजस्थान में है।

द्वीप समूह : भारत के भौतिक प्रदेश Bharat ke Bhautik Pradesh

भारत में दो द्वीप समूह है-

बंगाल की खाड़ी में 204 देशों का समूह अंडमान निकोबार द्वीप समूह

अरब सागर में 43 देशों का समूह लक्षद्वीप समूह

अंडमान निकोबार द्वीप समूह-

यह अंडमान तथा निकोबार दो अलग-अलग द्वीपों का समूह है।

राजधानी – पोर्ट ब्लेयर

अंडमान द्वीपों समूह को चार भागों में बांटा गया है-

उत्तर अंडमान

मध्य अंडमान

दक्षिण अंडमान

लिटिल अंडमान

दक्षिण अंडमान तथा लिटिल अंडमान के बीच के भाग को ‘डंकन पैसेज’ कहा जाता है।

निकोबार द्वीप समूह को तीन भागों में बांटा गया है-

कार निकोबार

लिटिल निकोबार

ग्रेट निकोबार

बैरन आईलैंड नामक भारत का एकमात्र जीवंत ज्वालामुखी भी निकोबार द्वीपसमूह में स्थित है।

निकोबार द्वीप समूह का सबसे दक्षिणी बिंदु भारत का दक्षिणतम बिंदु इंदिरा प्वाइंट ग्रेट निकोबार में है।

लक्षदीप-

राजधानी – कारावती

क्षेत्रफल – 32 वर्ग किमी

मानव आवास – ग्यारह द्वीपों पर

सबसे छोटा केंद्र शासित प्रदेश है।

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द्वीपों का यह समूह छोटे प्रवाल द्वीपों  (प्रवाल – प्रवाल पॉलिप्स कम समय तक जीवित रहने वाले सूक्ष्म प्राणी हैं, जो कि समूह में रहते हैं। इनका विकास छिछले तथा गर्म जल में होता है। इनसे कैल्शियम कार्बोनेट का स्राव होता है। प्रवाल स्राव एवं प्रवाल अस्थियाँ टीले के रूप में निक्षेपित होती हैं। ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 1. प्रवाल रोधिका, 2. तटीय प्रवाल भित्ति तथा 3. प्रवाल वलय द्वीप आस्ट्रेलिया का ‘ग्रेट बैरियर रीफ” प्रवाल रोधिका का अच्छा उदाहरण है। प्रवाल वलय द्वीप गोलाकार या हार्स शू आकार वाले रोधिका होते हैं।) से बना है।

पहले इनको लकादीव, मीनीकाय तथा एमीनदीव के नाम से जाना जाता था। 1973 में इनका नाम लक्षद्वीप रखा गया।

इसके पिटली द्वीप पर पक्षी अभयारण्य है।

खंभात की खाड़ी में आलियाबेट दीप स्थित है जिस पर एलिफेंटा की गुफाएं हैं।

भारत और राजस्थान के भौतिक प्रदेश, भौतिक प्रदेश के क्वेश्चन, भौगोलिक प्रदेश, भौतिक प्रदेश के प्रश्न एवं अन्य परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण जानकारी

वायुदाब

पवनें

वायुमण्डल

चट्टानें अथवा शैल

जलवायु

चक्रवात-प्रतिचक्रवात

भौतिक प्रदेश

अपवाह तंत्र

पारिस्थितिकी

अपवाह तंत्र Drainage System

अपवाह तंत्र Drainage System

अपवाह तंत्र Drainage System की परिभाषा, आशय, प्रतिरूप, अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियाँ, अपवाह तंत्र किसे कहते हैं?, राजस्थान एवं भारत का अपवाह तंत्र, हिमालय अपवाह तंत्र आदि की पूर्ण जानकारी

निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को “अपवाह” कहते हैं।

उक्त वाहिकाओं के जाल को “अपवाह तंत्र” कहते हैं।

जल ग्रहण क्षेत्र– एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहा कर लाती है जिसे “जल ग्रहण क्षेत्र” कहते हैं।

अपवाह द्रोणी– एक नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को “अपवाह द्रोणी” कहते हैं।

एक अपवाह द्रोणी को दूसरे से अलग करने वाली सीमा को “जल विभाजक” या “जल संभर” कहते हैं।

बड़ी नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी तथा छोटी नदियों व नालों द्वारा अपवाहित जल को जल संभर कहा जाता है।

हिमालय से निकलने वाली मुख्य सभी नदियां सदा वाहिनी है, जबकि दक्कन के पठार में बहने वाली सभी नदियां मोसमी नदियां हैं।

अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियाँ : अपवाह तंत्र का आशय एवं प्रतिरूप

सिंधु नदी तंत्र

सिन्धु नदी

सिंधु नदी तिब्बत के मानसरोवर के निकट कैलास पर्वत श्रेणी में बोखर चू के निकट एक ग्लेशियर से निकलती है।

तिब्बत में इसे सिंगी खंबान या शेर मुख कहते हैं।

भारत में सिंधु नदी के बल्ले जिले में बहती है। फिर पाकिस्तान में तथा वहां से अरब सागर में गिर जाती है।

अपवाह तंत्र Drainage System किसे कहते हैं? परिभाषा आशय, प्रतिरूप प्रमुख नदियाँ राजस्थान भारत का अपवाह तंत्र, हिमालय अपवाह तंत्र
अपवाह तंत्र आशय प्रतिरूप

सिंधु नदी की पाँच महत्त्वपूर्ण सहायक नदियां हैं-

सिंधु नदी की सहायक नदियों का उत्तर से दक्षिण की तरफ का क्रम-

झेलम

चिनाब

रावी

व्यास

सतलुज

पाकिस्तान के पठानकोट में पाँचों नदियां जाकर सिंधु नदी में मिल जाती है।

जिसे पंचनंद कहा जाता है।

पाकिस्तान की वाणिज्यिक राजधानी कराची सिंधु के किनारे स्थित है।

सिन्धु नदी तंत्र में 2 नदियां तिब्बत से आती है –

सिंधु नदी

सतलुज नदी

सिंधु व सतलुज दोनों ही नदियां मानसरोवर के निकट से निकलती है, परन्तु ग्लेशियर अलग-अलग है।

सिन्धु नदी-सानोख्याबाब (सिन-का-बाब) हिमनद

सतलुज नदी- राक्षसताल हिमनद

मिथुनकोट- पाँचों सहायक नदियों का मिलन स्थल है। (व्यास नदी को छोड़कर)

सिंधु नदी की कुल लंबाई 2880 किलोमीटर है, जबकि भारत में इसकी लंबाई 1114 किलोमीटर है।

यह हिमालय की सबसे पश्चिमी नदी है।

झेलम नदी-

यह नदी पीर पंजाल पर्वत में स्थित वेरीनाग झरने से निकलती है।

कश्मीर की राजधानी श्रीनगर इस नदी के किनारे है।

डल तथा वूलर झील में बहती हुई है।

यह नदी पाकिस्तान में झंग के निकट चेनाब में मिल जाती है।

परियोजना- किशनगंगा (20 दिसंबर 2013 विवाद)।

तुलबुल परियोजना और उरी परियोजना।

इसी नदी को श्रीनगर की लाइफ लाइन कहते हैं।

चिनाब नदी-

यह नदी चंद्र तथा भागा दो नदियों के मेल से बनती है।

इनका मेल हिमाचल प्रदेश में केलांग के निकटतम तांडी में होता है।

यह भारत में 1180 किलोमीटर तक बहती है।

परियोजना-

बगलिहार परियोजना – जम्मू कश्मीर 2. दुलहस्ती परियोजना – जम्मू कश्मीर

सलाल परियोजना

पाकुलदुल परियोजना – जम्मू कश्मीर (मारू संदर नदी जम्मू कश्मीर पर बनाई गई है।)

रावी नदी-

यह हिमाचल प्रदेश की कुल्लू पहाड़ियों में रोहतांग दर्रे के पश्चिम से निकलती है।

पाकिस्तान में प्रवेश कर यह चेनाब में मिल जाती है।

इस नदी के तट पर पाकिस्तान का लाहौर नगर बसा हुआ है।

परियोजना- थीन परियोजना – हिमाचल प्रदेश व पंजाब

व्यास नदी-

यह रोहतांग दर्रे के निकट व्यास कुंड से निकलती है।

पंजाब में यह हरिके के पास सतलुज नदी में जा मिलती है।

सिंधु अपवाह की एकमात्र बड़ी सहायक नदी जो अपना जल पाकिस्तान नहीं ले जाती है।

परियोजना- पोंग बांध परियोजना -हिमाचल प्रदेश

सतलुज नदी-

यह तिब्बत में मानसरोवर के निकट राक्षस ताल से निकलती है।

जहां इसे लॉगचेन खंबाब के नाम से जाना जाता है।

यह नदी शिपकिला दर्रे से होकर भारत में प्रवेश करती है।

परियोजना- भाखड़ा बांध का निर्माण (गुरदासपुर पंजाब)

इंदिरा गांधी नहर परियोजना (राजस्थान)

गंग नहर परियोजना (राजस्थान)

नाथपा झाकरीपरियोजना – हिमाचल प्रदेश

भाखड़ा नांगल बांध परियोजना (कंक्रीट का बना हुआ है)

कोलडैम परियोजना – मंडी हिमाचल प्रदेश

गोविंद सागर जलाशय – हिमाचल प्रदेश (सबसे बड़ी कृत्रिम झील है।)

यह भाखड़ा नंगल परियोजना के  नहर तंत्र का पोषण करती है।

दोआब के क्षेत्र

सिंधु झेलम दोआब क्षेत्र सिंधु दोआब/सिंधु सरोवर।

झेलम चिनाब – चेज दोआब

चिनाब रावी – रचना दोआब

रावी व्यास – बारी दोआब

व्यास सतलुज – बिस्त दोआब

गंगा जमुना का अपवाह तंत्र : अपवाह तंत्र का आशय एवं प्रतिरूप

गंगा नदी

भागीरथी नदी गंगोत्री हिमनद से गोमुख नामक स्थान से निकलती है ।

अलकनंदा नदी बद्रीनाथ के पास सतोपंथ ग्लेशियर से निकलती है ।

देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी नदी मिलती है और वहां से गंगा नदी के नाम से जानी जाती है।

देव प्रयाग से पहले अलकनंदा नदी में पंचप्रयागों (सभी उत्तराखण्ड में) में अलग-अलग नदियां मिलती हैं-

विष्णु प्रयाग (जोशीमठ) में – अलकनंदा + धौलीगंगा

नन्द प्रयाग में – अलकनंदा + नंदाकिनी

कर्ण प्रयाग में – अलकनंदा + पिण्डर

रूद्रप्रयाग में – अलकनंदा + मंदाकिनी

देव प्रयाग में – अलकनंदा + भागीरथी

गंगा भारत की सबसे लम्बी नदी है।

इसकी लंबाई 2525 किलोमीटर है।

यह भारत का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है।

कानपुर, बनारस, पटना तथा हरिद्वार गंगा नदी के किनारे बसे हैं ।

गंगा नदी सबसे पहले हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में आती है।

पश्चिम बंगाल में गंगा नदी 2 भागों में बट जाती है। एक भाग हुगली नदी कहलाता है, जिसके किनारे कलकत्ता शहर बसा है।

दुसरा भाग बांग्लादेश में प्रवेश कर जाता है और वहां इसे पद्मा के नाम से पुकारा जाता है।

अंततः ये बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। यहीं पर ये विश्व का सबसे बड़ा नदी डेल्टा बनाती है जिसे सुंदरवन डेल्टा कहा जाता है।

गंगा नदी भारत में 5 राज्यों से होकर गुजरती है –

उत्तराखण्ड (उद्गम स्थल)

उत्तर प्रदेश (सबसे अधिक लम्बाई)

बिहार

झारखण्ड (सबसे कम लम्बाई)

पश्चिम बंगाल

टिहरी बांध भागीरथी भीलांगाना नदी (उत्तराखंड) में निर्मित भारत का सबसे ऊंचा बांध है।

इस नदी पर पश्चिम बंगाल में फ़रक्का बांध का निर्माण किया गया है।

गंगा नदी में बांई ओर से मिलने वाली अंतिम नदी महानंदा नदी (दार्जिलिंग) है।

प्रथम नदी जहान्वी नदी है।

गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया है।

इसमें निवास करने वाले जीवो में गंगेय डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलचर जीव घोषित किया गया है।

गंगा की सहायक नदियां

सरयू नदी- अयोध्या नगरी इस नदी के तट पर स्थित है।

यमुना नदी- उद्गम यमुनोत्री ग्लेशियर (बंदरपूंछ ग्लेशियर)

इस नदी पर वर्तमान में रेणुका जी बांध परियोजना का निर्माण सिरमौर हिमाचल प्रदेश में किया जा रहा है।

यह भारत के 6 राज्यों राजस्थान उत्तराखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और मध्य प्रदेश की परियोजना है।

नदी के तट पर आगरा, दिल्ली व मथुरा नगर बसे हैं।

दिल्ली और आगरा के बीच  अत्यधिक प्रदूषण और के कारण इस नदी को हरा सूप कहा जाता है।

टोंस नदी- उद्गम स्थल पर यमुना नदी में मिलती है।

गोमती नदी- इस नदी के तट पर लखनऊ नगर बसा है।

सोन नदी- उद्गम अमरकंटक पहाड़ी छत्तीसगढ़ से।

सबसे लंबा पुल – महात्मा गांधी सेतु (बिहार)

सोन की एक सहायता रिहद नदी पर रिहंद परियोजना का निर्माण किया गया है- (उत्तर प्रदेश)

लाभ- उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार।

कोसी नदी – इस नदी को बिहार का शोक कहा जाता है।

इस नदी पर काशनु बांध बना है। (हनुमान बराज – नेपाल)

दामोदर नदी – इसको बंगाल का शोक कहा जाता है।

दामोदर घाटी परियोजना – 1948

देश के प्रथम बहुत देश है।

लाभ- झारखंड, पश्चिम बंगाल।

औद्योगिक प्रदूषण के कारण इस नदी को जैविक रेगिस्तान कहा जाता है।

ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र : अपवाह तंत्र का आशय एवं प्रतिरूप

ब्रह्मपुत्र नदी-

उद्गम- विश्व की सबसे बड़ी नदियों में से एक ब्रह्मपुत्र का उद्गम कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के निकट चेमायुँगडुंग (Chemayungdung) हिमनद में है।

तिब्बत में इसे सांग्पो (Tsangpo) के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ‘शोधक’।

भारत में प्रवेश- थानयाक दर्रा (अरुणाचल प्रदेश)

तिब्बत में किस नदी का नाम यारलंग साग्पो।

अरुणाचल प्रदेश में – देहांग नदी।

असम में- ब्रह्मपुत्र।

बांग्लादेश में- जमुना नदी है।

विश्व का सबसे बड़ा नदीय माजोली द्वीप (असम) जिस पर लोग निवास करते हैं।

अन्य प्रमुख नदियां

स्वर्णरेखा नदी-

इस नदी पर जमशेदपुर नगर झारखंड में अवस्थित है।

इस नदी के निकट टाटा स्टील प्लांट की स्थापना की गई है।

यह नदी मुख्यतः झारखंड और पश्चिम बंगाल में प्रवाहित होती है।

ब्राह्मणी नदी-

इस नदी के किनारे राउरकेला स्टील प्लांट की स्थापना उड़ीसा में की गई है।

महानदी-

इस नदी को उड़ीसा का शोक कहा जाता है।

इस नदी पर हीराकुंड बांध (उड़ीसा) का निर्माण किया गया है, जो कि विश्व का सबसे लंबा बांध है।

नदी कृत विवाद – छत्तीसगढ़-उड़ीसा के बीच है।

महानदी का उद्गम सिहावा की पहाड़ियों छत्तीसगढ़ से होता है।

महानदी डेल्टा के दक्षिण में (उड़ीसा) चिल्का झील स्थित है, जो भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील है।

गोदावरी नदी-

इसे दक्षिण भारत की गंगा/वृद्ध गंगा भी कहा जाता है।
उद्गम स्थल- नासिक की पहाड़ी (महाराष्ट्र)
प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है।

कृष्णा नदी-

तुंगभद्रा परियोजना कर्नाटक में।
नागार्जुन सागर परियोजना आंध्र प्रदेश में।

कावेरी नदी-

शिवसमुद्रम जलप्रपात (कर्नाटक) भारत का दूसरा सबसे बड़ा जलप्रपात है।
भारत की प्रथम सफल विद्युत परियोजना।
विवाद- कर्नाटक व तमिलनाडु के मध्य।

श्रावती नदी-

जोग जलप्रपात/गरसोपा जलप्रपात/महात्मा गांधी जलप्रपात (कर्नाटक)
यह भारत का सबसे ऊंचा जलप्रपात है।

प्रमुख झीलें : अपवाह तंत्र का आशय एवं प्रतिरूप

बेरीनाग झील – जम्मू कश्मीर

राक्षसताल झील, नैनीताल झील – उत्तराखंड

हुसैन सागर झील – आंध्र प्रदेश

लोकटक झील – मणिपुर

शेषनाग झील – जम्मू कश्मीर

देवताल झील – उत्तराखंड

अष्टमुदी झील – केरल

चौलामु झील – सिक्किम

भारत की सबसे ऊंची झील है।

इसी झील से ताप्ती नदी का उद्गम।

चिल्का झील – खारे पानी की भारत में सबसे बड़ी झील

विश्व की सबसे बड़ी झील – कैस्पियन सागर

बैकाल झील – विश्व की सबसे गहरी झील

विश्व का सबसे निचला स्थल – मृत सागर विश्व की सबसे ऊंची झील – टिटिकाका झील

सबसे बड़ी काल्डेरा झील – टोबा झील (इंडोनेशिया)

नर्मदा नदी भ्रंश घाटी में बहती है

नर्मदा नदी को बचाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा “नमामि देवि नर्मदे – एक यात्रा” योजना प्रारंभ की गई है।

नमामी गंगे परियोजना

यह एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘प्रमुख कार्यक्रम’ के रूप में अनुमोदित किया गया। इसमें राष्ट्रीय नदी गंगा से संबंधित दो उद्देश्य हैं- प्रदूषण के प्रभाव को कम करना तथा उसके संरक्षण और कायाकल्प को पूरा करना।

नमामी गंगे कार्यक्रम के मुख्य स्तंभ हैं-

सीवेज ट्रीटमेंट व्यवस्था

नदी-किनारे का विकास नदी सतह

सफ़ाई

जैव विविधता

वनीकरण

जन जागरूकता

औद्योगिक अपशिष्ट निगरानी

गंगा ग्राम।

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कोसी नदी अपना मार्ग बदलने के लिए कुख्यात रही है।

राष्ट्रीय जलमार्ग II – यह राजमार्ग ब्रह्मपुत्र नदी में 891 किलोमीटर की दूरी तक विस्तृत है।

जो सतिया से डिब्रूगढ़ (असम) 123 किलोमीटर

डिब्रूगढ़ से गुवाहाटी 508 किलोमीटर

गुवाहाटी से धुबरी 260 किलोमीटर है।

राष्ट्रीय जलमार्ग I – गंगा नदी पर है। हल्दिया से इलाहाबाद 1620 किमी

विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा – सुंदरवन डेल्टा।

वायुदाब

पवनें

वायुमण्डल

चट्टानें अथवा शैल

जलवायु

चक्रवात-प्रतिचक्रवात

भौतिक प्रदेश

अपवाह तंत्र

चक्रवात प्रतिचक्रवात Cyclone Anticyclone

चक्रवात प्रतिचक्रवात Cyclone Anticyclone

चक्रवात-प्रतिचक्रवात कैसे बनता है? चक्रवात प्रतिचक्रवात-Cyclone Anticyclone परिभाषा, प्रभाव, प्रबंधन, विशेषताएँ, प्रकार, क्षेत्र, अंतर

चक्रवात Cyclone

हवाओं का परिवर्तनशील और अस्थिर चक्र, जिसके केंद्र में निम्न वायुदाब तथा बाहर उच्च वायुदाब होता है, ‘चक्रवात’ कहलाता है।

चक्रवात सामान्यत: निम्न वायुदाब का केंद्र होता है, इसके चारों ओर समवायुदाब रेखाएँ संकेंद्रित रहती हैं तथा परिधि या बाहर की ओर उच्च वायुदाब रहता है, जिसके कारण हवाएँ चक्रीय गति से परिधि से केंद्र की ओर चलने लगती हैं।

चक्रवात (साइक्लोन) घूमती हुई वायुराशि का नाम है।

उत्पत्ति के क्षेत्र के आधार पर चक्रवात के दो प्रकार हैं :

(1) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात या वलकियक चक्रवात (Tropical cyclone)

(2) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात या बाह्योष्णकटिबंधीय चक्रवात या उष्णवलयपार चक्रवात या वाताग्री चक्रवात (Extra tropical cyclone या Temperate cyclones)

(1) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात या वलकियक चक्रवात (Tropical cyclone) –

उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में उत्पन्न तथा विकसित होने वाले चक्रवातों को ‘उष्ण कटिबंधीय चक्रवात’ कहते हैं।

ये वायुसंगठन या तूफान हैं, जो उष्ण कटिबंध में तीव्र और अन्य स्थानों पर साधारण होते हैं। इनसे प्रचुर वर्षा होती है।

इनका व्यास 50 से लेकर 1000 मील तक का तथा अपेक्षाकृत निम्न वायुदाब वाला क्षेत्र होता है।

ये 20 से लेकर 30 मील प्रति घंटा तक के वेग से चलते हैं। इनमें वायुघूर्णन 90 से लेकर 130 मील प्रति घंटे तक का होता है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात को अलग-अलग देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है :

ऑस्ट्रेलिया व मेडागास्कर – विलीविली

हिंद महासागर – साइक्लोन

पश्चिमी द्वीप समूह के निकट (कैरेबियन सागर – वेस्टइंडीज) – हरिकेन

चीन जापान फिलिपींस – टायफून

दक्षिणी एवं पूर्वी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका – टोरनैडो

ये 5° से 30° उत्तर तथा 5° से 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। ध्यातव्य है कि भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5° से 8° अक्षांशों वाले क्षेत्रों में न्यूनतम कोरिऑलिस बल के कारण इन चक्रवातों का प्राय: अभाव रहता है।

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी वायुमंडलीय तूफान होते हैं, जिनकी उत्पत्ति कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य महासागरीय क्षेत्र में होती है, तत्पश्चात् इनका प्रवाह स्थलीय क्षेत्र की तरफ होता है।

ITCZ (इंटरट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन, या ITCZ, वह क्षेत्र है जो भूमध्य रेखा के पास पृथ्वी को घेरता है, जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक हवाएँ एक साथ आती हैं।) के प्रभाव से निम्न वायुदाब के केंद्र में विभिन्न क्षेत्रों से पवनें अभिसरित होती हैं तथा कोरिऑलिस बल के प्रभाव से वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करती हुई ऊपर उठती हैं। फलत: वृत्ताकार समदाब रेखाओं के सहारे उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति होती है।

व्यापारिक पूर्वी पवन की पेटी का अधिक प्रभाव होने के कारण सामान्यत: इनकी गति की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर रहती है। (ये चक्रवात सदैव गतिशील नहीं होते हैं। कभी-कभी ये एक ही स्थान पर कई दिनों तक स्थायी हो जाते हैं तथा तीव्र वर्षा करते हैं।)

उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के प्रमुख क्षेत्र-

कैरेबियन

चीन सागर

हिंद महासागर

ऑस्ट्रेलिया

(ध्यान दें – उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के मध्य/केंद्र में शांत क्षेत्र पाया जाता है, जिसे ‘चक्रवात की आँख’कहते हैं, जबकि शीतोष्ण चक्रवात में इसका अभाव रहता है।)

(2) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात या बाह्योष्णकटिबंधीय चक्रवात या  उष्णवलयपार चक्रवात या वाताग्री चक्रवात (Extra tropical cyclone या Temperate cyclones)-

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति तथा प्रभाव क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध अर्थात् मध्य अक्षांशों में होता है।

ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में केवल शीत ऋतु में उत्पन्न होते हैं,

जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में जलीय भाग के अधिक होने के कारण ये वर्ष भर उत्पन्न होते रहते हैं।

ये चक्रवात अंडाकार, गोलाकार, अर्द्ध-गोलाकार तथा ‘V’ आकार के होते हैं, जिस कारण इन्हें ‘निम्न गर्त’या ‘ट्रफ’कहते हैं।

ये चक्रवात दोनों गोलार्द्धों में 35° से 65° अक्षांशों के मध्य पाए जाते हैं, जिनकी गति पछुआ पवनों के कारण प्राय: पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर रहती है। ये शीत ऋतु में अधिक विकसित होते हैं।

इनकी उत्पत्ति ठंडी एवं गर्म, दो विपरीत गुणों वाली वायुराशियों के मिलने से होती है।

यह मध्य एवं उच्च अक्षांशों का निम्न वायुदाब वाला तूफान है।

इसका वेग 20 से लेकर 30 मील प्रति घंटे के वेग से सर्पिल रूप से चलती है। प्राय:   इससे हिमपात एवं वर्षा होती है।

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के मुख्य क्षेत्र : चक्रवात प्रतिचक्रवात Cyclone Anticyclone

उत्तरी अटलांटिक महासागर

भूमध्य सागर

उत्तरी प्रशांत महासागर

चीन सागर

वायुमंडलीय विक्षोभ

दोनों प्रकार के चक्रवात दिशा पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत (वामावर्त) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (दक्षिणावर्त) में होती है। चक्रवात प्राय: गोलाकार, अंडाकार या ‘V’ आकार के होते हैं। चक्रवात को ‘वायुमंडलीय विक्षोभ’(Atmospheric Disturbance) के अंतर्गत शामिल किया जाता है।

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में साधरणतया वायु-विचनल-रेखा होती है, जो विषुवत की ओर निम्नवायुकेंद्र में सैकड़ों मील तक बढ़ी रहती है तथा गरम एवं नम वायु को ठंडी और शुष्क वायु से पृथक् करती है।

प्रति-चक्रवात (anticyclone) की प्रकृति तथा विशेषताएं

प्रति-चक्रवात (anticyclone) की प्रकृति तथा विशेषताएं चक्रवात से पूर्णतः विपरीत होती हैं।

इसके केन्द्र में उच्च वायुदाब का क्षेत्र होता है जबकि परिधि की ओर निम्न वायुदाब पाया जाता है|

इसके कारण हवाएं केन्द्र से परिधि की ओर प्रवाहित होती हैं।

इनमें दाब प्रवणता कम (10 – 15 मिलीबार) ही होती है।

प्रतिचक्रवातों की उत्पत्ति अधिकांशतः उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब क्षेत्रों में होती है।

भू-मध्यरेखीय निम्न दाब वाले क्षेत्र में ये नहीं पाये जाते ।

प्रति चक्रवातों में मौसम स्वच्छ रहता है तथा हवाएँ मंद गति से चलती हैं।

इनमें हवाओं की गति की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुईयों के अनुकुल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में प्रतिकुल होती है।

इनमें वाताग्र (दो भिन्न स्वभाव वाली वायु राशियां (तापमान गति, दिशा, आर्द्रता, घनत्व आदि के संदर्भ में) के मिलने से निर्मित ढलुआ सतह को ‘वाताग्र’ कहते हैं।) नहीं बनते इसलिए वर्षा की संभावना भी लगभग नहीं जैसी होती है ।

प्रतिचक्रवातों से शीतकाल में बर्फ की आँधियाँ चलती है, जिसे ‘शीत-लहर’ कहते हैं,

इसलिए जब ये शीत प्रति चक्रवात गर्मी के मौसम में आते हैं, तो मौसम सुहावना हो जाता है।

शीतोष्ण कटिबंधी चक्रवातों के विपरीत प्रति चक्रवातों में मौसम साफ़ होता है।

प्रतिचक्रवातों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत हैं : चक्रवात प्रतिचक्रवात Cyclone Anticyclone

इनका आकर प्रायः गोलाकार होता है परन्तु कभी-कभी U आकर में भी मिलते हैं।

केंद्र में वायुदाब अधिकतम होता है और केंद्र तथा परिधि के वायुदाबों के अंतर 10-20 मी. तथा कभी-कभी 35 मीटर होता है.

दाब प्रवणता कम होती है।

आकर में प्रतिचक्रवात, चक्रवातों के अपेक्षा काफी विस्तृत होते हैं.

इनका व्यास चक्रवातों की अपेक्षा 75% अधिक बड़ी होती है।

प्रतिचक्रवात 30-35 किमी. प्रतिघंटा की चाल से चक्रवातों के पीछे चलते हैं।

इनका मार्ग व दिशा निश्चित नहीं होता है।

प्रतिचक्रवात के केंद्र में उच्चदाब अधिक होने के कारण हवाएँ केंद्र से बाहर की ओर चलती है।

उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा घड़ी की सुई के अनुकूल (clockwise) एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के प्रतिकूल (anti clockwise) होती है।
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प्रतिचक्रवात के केंद्र में हवाएँ ऊपर से नीचे उतरती है

अतः केंद्र का मौसम साफ़ होता है और वर्षा की संभावना नहीं होती है।

वायुदाब

पवनें

वायुमण्डल

चट्टानें अथवा शैल

जलवायु

चक्रवात-प्रतिचक्रवात

भौतिक प्रदेश

अपवाह तंत्र

जलवायु Jalvayu – Climate

जलवायु की परिभाषा, अर्थ एवं वर्गीकरण

जलवायु Jalvayu – Climate की परिभाषा, अर्थ, वर्गीकरण, प्रकार सहित जलवायु प्रदेश एवं कोपेन का जलवायु वर्गीकरण की संपूर्ण जानकारी

परिभाषा एवं अर्थ

किसी स्थान विशेष के मौसम की औसत दशा को जलवायु कहते हैं। मोंकहाऊस (Monkhouse) के अनुसार “जलवायु वस्तुतः किसी स्थान विशेष की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं के विवरण को सम्मिलित करती है। जलवायु में एक विस्तृत क्षेत्र में दीर्घकाल की वायुमण्डलीय अवस्थाओं का विवरण होता है अतः मौसम की तुलना में जलवायु शब्द का अर्थ व्यापक होता है।

जलवायु का वर्गीकरण

विश्व की जलवायु के वर्गीकरण का पहला प्रयास प्राचीन यूनानियों ने किया था उन्होंने तापमान के आधार पर विश्व को तीन कटिबंधों 1. उष्ण कटिबंध, 2 शीतोष्ण कटिबंध व 3. शीत कटिबंध में विभाजित किया था।

जलवायु Jalvayu - Climate की परिभाषा, अर्थ, वर्गीकरण, प्रकार सहित जलवायु प्रदेश एवं कोपेन का जलवायु वर्गीकरण की संपूर्ण जानकारी
जलवायु अर्थ वर्गीकरण प्रकार

कोपेन का जलवायु वर्गीकरण

कोपेन का वर्गीकरण तापमान, वर्षण तथा उनकी ऋतुवत् विशेषताओं पर आधारित है। इसमें उन्होंने जलवायु और प्राकृतिक वनस्पति के बीच संबंधों को भी जोड़ा है। कोपेन ने अपने वर्गीकरण में विश्व को पाँच विस्तृत जलवायु वर्गों में विभाजित किया है।
संसार की जलवायु को कोपेन ने पाँच मुख्य भागों में बाँटने के लिए अंग्रेजी के बड़े अक्षरों A, B, C, D तथा E का प्रयोग करते हुए उपविभाग किये गये हैं, जिनके लिए बड़े अक्षरों के साथ छोटे अक्षरों का प्रयोग किया गया है। ये जलवायु वर्ग व उपवर्ग इस प्रकार हैं-

1. A ऊष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु-

यहाँ पर वर्ष के प्रत्येक महीने में औसत तापमान 18°C से अधिक रहता है इस जलवायु में शीत ऋतु का अभाव होता है। यहाँ वर्षभर वाष्पीकरण की अपेक्षा वर्षा अधिक होती है। वर्षा, ताप तथा शुष्कता के आधार पर इसके तीन उप भाग किये गये हैं।
(i) Af- ऊष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु- जहाँ पर वर्ष भर वर्षा हो, वार्षिक तापान्तर बिल्कुल नहीं होता तथा शुष्कता का अभाव हो।
(ii) Am- ऊष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु- वर्षा की अधिकता के कारण वन भी अधिक मिलते हैं। यहाँ एक लघु शुष्क ऋतु पाई जाती है
(iii) Aw- ऊष्ण कटिबंधीय आर्द्र एवं शुष्क जलवायु – इसे ऊष्ण कटिबंधीय सवाना जलवायु भी कहते हैं। यहाँ पर वर्ष भर उच्च तापमान रहता है। यहाँ पर ग्रीष्मकाल में वर्षा तथा शीतकाल शुष्क रहता है।

2. B शुष्क जलवायु-

इसमें वर्षा की अपेक्षा वाष्पीकरण अधिक होता है अतः यहाँ जल की कमी रहती है।
तापमान तथा वर्षा के आधार पर इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(i) BS- स्टैपी प्रदेश- यहाँ वर्षा की मात्रा शुष्क घास के लिए पर्याप्त रहती है।
(ii) BW- मरुस्थलीय प्रदेश- यहाँ वर्षा की मात्रा कम होती है।
स्टैपी तथा मरूस्थलीय जलवायु को तापमान के आधार पर दो-दो उप भागों में बाँटा गया है-
(i) BSh- ऊष्ण कटिबंधीय स्टैपी जलवायु (ii) BSk- शीत स्टैपी जलवायु
(iii) BWh- ऊष्ण कटिबंधीय मरूस्थलीय जलवायु
(iv) BWk- शीत कटिबंधीय मरूस्थलीय जलवायु

3 C ऊष्ण शीतोष्ण आर्द्र जलवायु-

इसे सम शीतोष्ण आर्द्र जलवायु भी कहते हैं। यहाँ पर सबसे ठण्डे महीने का औसत तापमान 18°C से कम तथा तथा 30 से अधिक होता है। यहाँ पर ग्रीष्म व शीत दोनों ऋतु पाई जाती है। इसमें शीत ऋतु कठोर नहीं होती। वर्षा के मौसमी वितरण के आधार पर निम्नलिखित तीन भाग किये गये है-

(i) CF- वर्ष पर्यन्त वर्षा
(ii)Cw- ग्रीष्मकाल में अत्यधिक वर्षा
(iii) Cs- शीतकाल में अधिक वर्षा

इसके अन्य उप विभाग-

a- गर्म ग्रीष्म काल
b- शीत ग्रीष्म काल
c- अल्पकालिक ग्रीष्म काल।

4. D शीत शीतोष्ण जलवायु-

इस जलवायु में सर्वाधिक ठण्डे महिने का तापमान – 3°C कम होता है तथा सबसे गर्म महिने का औसत तापमान 10°C से अधिक होता है। यहाँ पर कोणधारी बन पाये जाते हैं। इसके दो मुख्य उप विभाग है-
(i) Dr- वर्ष पर्यन्त वर्षा
(ii) Dw- ग्रीष्मकाल में वर्षा, शीत ऋतु शुष्क

5. E ध्रुवीय जलवायु-

(i) ET- टुण्ड्रा तुल्य जलवायु- इसमें ग्रीष्मकालीन तापमान 0°C से 10°C के मध्य रहता है।
(ii) EF- हिमाच्छादित जलवायु- यहाँ ग्रीष्मकालीन तापमान 0°C से कम रहता है। यहाँ पर वर्ष भर बर्फ जमीं रहती है।

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जलवायु की परिभाषा, अर्थ, वर्गीकरण, प्रकार सहित जलवायु प्रदेश एवं कोपेन का जलवायु वर्गीकरण की संपूर्ण जानकारी

वायुदाब

पवनें

वायुमण्डल

चट्टानें अथवा शैल

जलवायु

चक्रवात-प्रतिचक्रवात

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