पर्यायवाची शब्द थ से

थ अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द

थ अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द  Paryayvachi Shabd | समानार्थी शब्द | All Hindi Synonyms | Paryayvachi shabd kise kahte hai | Paryayvachi shabd ka arth | | पर्यायवाची शब्द का अर्थ |

पर्यायवाची शब्द थ से

थंभ – खंभ, खंभा, स्तम्भ।

थकान – क्लांति, थकन, थकावट, परिश्रांति, श्रांति।

थका माँदा – उकताया हुआ, क्लान्त, थका हुआ, निढाल, परिश्रान्त, प्रयासी, शिथिल, श्रमित, श्रमी, श्रान्त, हारा।

थप्पड़ – आघात, चपत, चपेड़, चपेट, चमाटा, चाँटा, झापड़, टक्कर, तमाचा, थप्पर, थपेड़, थपेड़ा, थपेटा, धक्का, धौल, प्रतल, प्रहस्त।

थल – जगह, ठिकाना, थल मार्ग, थली, भूड़, माँद, रेगिस्तान, सूखी धरती, स्थान।

थाप – आघात, कसम, चोट, छाप, थप्पड़, धाक।

थाली – टाठी, थारी, थाल, भोजनपात्र, स्थाली।

थाह – अंत, अंदाज, गहराई का अंत, जानकारी, पता, परिचय, परिमिति, सीमा, हद।

थूक – कफ, खखार, लार, श्लेष्मा, सृणिका, स्यन्दिनी।

थोक – अटाला, चक, जत्था, झुण्ड, ढेर, राशि, समूह।

थोड़ा – अणु, अल्प, कछु, कछुक, कण, कम, किंचित, कुछ, क्षीण, क्षुद्र, घट, चंद, जरा, तनिक, तनु, थोर, थोरा, थोरिक, दभ्र, न्यून, परिमित, प्रमित, मर्यादित, मात्र, मित, रंच, रचिक, लघु, लेश, स्वल्प।

थोथा – कुंठित, खाली, खोखला, गुठला, छूछा, निकम्मा, निःसार, पोला, बाँडा, बेढंगा, भद्दा, रिक्त, व्यर्थ।

थोबड़ा – चेहरा, थूथन, मुँह, मुखड़ा।

Paryayvachi shabd

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‘आ’ के पर्यायवाची शब्द (भाग-3)

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पर्यायवाची शब्द त से

त अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द

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पर्यायवाची शब्द त से

तंग – कसा, संकरा, संकीर्ण, संकुचित।

तंगहाल – गरीब, तंगदस्त, निर्धन, फटेहाल।

तंद्रा – अर्द्धनिद्रा, आलस्य, झपकी, थकावट।

तंतु – डोर, डोरा, जेवरी, ताँत, तागा, धागा, धार, धारी, सूत, सूता, सूत्र, रस्सी।

तकरार – कहासुनी, झगड़ा, तू-तू मैं-मैं, रार, लड़ाई, विवाद, हुज्जत।

तकलीफ – कष्ट, क्लेश, दर्द, दुःख, पीड़ा, बीमारी, मुसीबत, रोग, विपत्ति, संकट।

तकिया – उपघान, उपबर्ह, गलसुआ, गलसुई, सिरहाना।

तड़ित – गाज, दामिनी, बिजली, विद्युत, सौदामिनी।

तट – किनारा, कूल।

तटस्थ – उदासीन, बेलाग, निरपेक्ष, निष्पक्ष।

तत्पर – उद्यत, उत्सुक, उन्मुख, उपस्थित, कटिबद्ध, तैयार, प्रस्तुत, मुस्तैद, सन्नद्ध, होशियार।

तत्त्व – सार, सारांश।

तथागत – गौतम, बुद्ध, बोधिसत्व, सिद्धार्थ।

तनिक – किंचित, चुटकी भर, जरा, जरा सा, तिल भर, थोड़ा, थोड़ा सा, रत्ती भर, रंचमात्र, लेशमात्र।

तनु – अल्प, कम, कृश, थोड़ा, दुबला, पतला।

तन्मयता – एकाग्रता, लगन, लीनता, लिप्तता।

तप – अनुष्ठान, तपस्या, ध्यानोपासना, योग, योगाभ्यास, योगसाधना, व्रत।

तपस्वी – तपी, तापस, पारिकांक्षी, मुनि, बैरागी, योगी, व्रती, संन्यासी, साधू।

तपेदिक – क्षय, टी.बी., दिक, यक्ष्मा, राजयक्ष्मा।

तबला – ठेका, डुग्गी, दुक्कड़।

तमारि – अंबरमणि, अंशुमाली, अग, अर्क, अयमा, अवि, आदित्य, आद्रि, उष्णरश्मि, कमलबंधु, कर्मसाक्षी, कुतप, खग, खगपति, खद्योत, गभस्तिमान्, ग्रहपति, चक्रबंधु, चित्रथ्य, छायानाथ, जगतचक्षु, तरणि, तमिस्रहा, तिमिरहर, तेजोराशि, दिनकर, दिनेश, दिनपति, दिनमणि, दिनमाली, दिवसाधिप, दिवाकर, द्वादशात्मा, नक्षत्राधिपति, पतंग, पद्माक्ष, पूषण, पूषा, प्रद्योतन, प्रभाकर, भानु, भास्कर, मरीचि, महातेज, मार्त्तण्ड, मित्र मिहिर, रवि, वरनि, विकर्तन, विभाकर, विभावसु, विरोचन, विवस्वान्, सप्ताश्व, सविता, सहस्रांशु, सारंग, सुनूर, सूर, सूरज, सूर्य, हंस, हरि, हिरण्यगर्भ।

तमाल – अमृतद्रुम, कालस्कन्ध, तम, तमा, तापिंज, तापित्थ, नीलताम, नीलध्वज, महाबल, लोकस्कन्ध, श्यामतमाल।

तमोली – ताम्बूलकार, ताम्बूलिक, ताम्बूली, बरई।

तरंग – उल्लोल, ऊर्मि, ऊर्मिका, कंपन, कल्लोल, ढेह, परिवाह, बीचि, भंग, मौज, लहर, विलास, हलफ, हिलोर।

तरकश – इषुधि, उपासंग, चोंगा, तरकस, तर्कस, तूण, तूणी, तूणीर, निषंग।

तरकारी – भाजी, शाक, सब्जी, सालन।

तरणी – किश्ती, नाव, नैया, नौका।

त अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द

तरबूज – कालिंग, कालिंद, कृष्णबीज, गोडुम्ब, घृणाफल, चित्रवल्लिका, चेलान, नाटाम्र, मतीरी, मधुरफल, मांसफल, मांसल, मूत्रल, मेट, रक्तबीज, राजनीतिष, लतापनस, वृत्तफल, वृहद्रोल, शीर्णवृन्त, सुखाश, सुवर्त्तुल, सेट।

तरल – द्रव।

तरसना – उत्कण्ठित होना, ललकना, ललचना, लालायित होना, लोभ करना।

तरसाना – ललकाना, ललचाना, प्रलोभन देना, लुभाना, लोभाना, व्यर्थ लालच देना।

तराजू – काँटा, तुला, तौली, धर्मकाँटा।

तराजू का पलड़ा – डल्ला, डलिया, डाल, तुलापाट, पल्ला।

तरी – आर्द्रता, कछार, गीलापन, ठंडक, तराई, तलछट, नमी, शीतलता।

तरीका – उपाय, ढंग, ढब, युक्ति, रीति, विधि, व्यवहार।

तरु – अंध्रिप, अग, अगछ, अगम, अद्रि, अर्नुत, अनोकह, इकपद, कुज, कुट, गाछ, छदी, दली, द्रु, द्रुम, द्वीप, पटल, पत्री, पलाशी, पर्णी, पादप, पीढ़ा, पेड़, फली, बर्हि, बिरवा, भूरुह, मधु, महीरुह, रूँख, विटप, विनद, वृक्ष, शाखी, शाल, सरोरुह, सुखआल।

तरुण – जवान, युवक, युवा।

तरेरना – आँख भौं चढाना, आँखें दिखाना, आँखें लाल करना, घूरना, तीक्ष्ण दृष्टि से देखना, त्योरी बदलना।

तल – आधार, पेंदा।

तलवार – असि, करपाल, करवाल, कृपाण, कौक्षेयक, खंग, खंजर, खंडा, खड्ग, खांडा, चन्द्रहास, मण्डलाग्र, रिष्टि, शमशीर, सायक।

तवा – ऋचीष, ऋजीष, तपा, तष, तावा, पिष्टपचन, पृष्टिपच।

तसल्ली – ढाढ़स, दिलासा, सांत्वना।

तहजीब – तमद्दुन, शिष्टता, सभ्यता, संस्कृति।

ताँबा – अम्बक, उडुम्बर, उदुम्बर, कनीपस, तपनेष्ट, ताम्र, ताम्रक, तामा, द्वय्ष्ट, द्विष्ट, नैपालिक, पवित्र, ब्रह्मवर्चस्, मुनिपित्तल, सूर्य्याह्व, म्लेच्छमुख, रक्तधातु, रविप्रिय, रविलोह, रविसंज्ञक, लोहिताप, लोहितायस्, वरिष्ट, शुल्ब, शुल्ल, सर्वलोह, सुल्प।

ताकना – घूरना, देखना, निहारना।

ताड़ – आशवद्रुम, गुच्छपत्र, तंतुगर्भा, तरकुल, तृणकेतु, तृणराज, तरुध्वज, तलतरुराज, ताल, तालद्रुम, दीर्घपत्रक, दीर्घपादप, दीर्घस्कंध, द्रुमेश्वरा, दुरारोह, ध्वजद्रुम, पत्रीताल, मधुरस, महावृक्ष, महीपिशाच, लेख्यपत्र।

ताड़न – उत्पीड़न, कष्ट, डपट, डाँट, दण्ड, धमकी, प्रहार, मार।

ताड़ना – डाँटना, दण्ड देना, भाँपना, मारना।

ताड़ीफल – आसवद्रुम, गुच्छपत्र, चिरायु, तरुराज, ताड़ी, ताल, तालफल, तृणद्रुम, तृणराज, दीर्घतरु, दीर्घपादप, द्रुमेश्वर, तंतुगर्भ, ध्वजद्रुम, पत्रला, पत्री, फलपाकान्त, भूमिपिशाच, मदाढ्य, मधुरस, लेख्यपत्र, शतपर्वा।

त अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द

तागा – डोर, डोरा, जेवरी, तन्तु, ताँत, तागा, धागा, धार, धारी, सूत, सूता, सूत्र, रस्सी।

तात्पर्य – अभिप्राय, अर्थ, आशय, मतलब, मायने।

तादाम्य – अभिन्नता, एकात्म्य, एकात्मता, ऐक्य, तल्लीनता।

तान – खींच, तरंग, फैलाव, विस्तार।

तान – लय, सुर, स्वर।

ताना – आक्षेप, चुभती बात, व्यंग्य, व्यंग।

ताप – आँच, उष्णता, गर्मी।

ताप – ज्वर, बुखार।

तामरस – अब्ज, अंबुज, अंबोज, अंभोज, अज, अरविंद, अरभोरूह, इंदीवर, इंदुकमल, उत्पल, कंज, कमल, किंजल, कुंज, कुंद, कुई, कुटप, कुमुद, कुबलय, कुवलय, कुशेशय, कैरव, कोकनद, जलज, जलजात, ताम्ररस, नलिन, नीरज, पंकज, पंकजन्य, पंकरुह, पद्म, पाथोज, पुंडरीक, पुष्कर, राजीव, वनज, वारिज, वारिजात, शतदल, शतपत्र, श्रीपर्ण, सरसिज, सरसीरुह, सरोज, सहस्रदल, सारंग, सुजल।

तारा – उडु, उडुगन, तारक, तारिका, सितारा।

तारीख – तिथि, दिनांक, दिन-मान, मिति।

ताल – करतल, करतलध्वनि, ताली, हथेली, हरताल।

तालमखाना – इक्षुबालिका, इक्षुर, काकेक्षु, कांडेक्ष, कुहालक, कैलया, कोकिलाक्ष, क्षुर, क्षुरक, त्रिक्षुर, पद्मवीजाभ, पानीयफल, पिच्छिला, मखान्न, शुक्लपुष्प, शूरक।

तालमेल – संगति, समन्वय, सामंजस्य, सामरस्य, सुस्वरता, स्वरैक्य, स्वरसंगति।

ताला – तलक, रक्षक, सुरक्षक।

तालाब – आहट, कासार, जलवान, जलाशय, तड़ाग, तलैया, ताल, पद्माकर, पल्लव, पुष्कर, पुष्पकरण, पुष्करिणी, पोखर, पोखरा, सत्र, सर, सरक, सरस, सरस्वत, सरसी, सरोवर, सारंग, हृद।

तालिका – फहरिस्त, सूची।

ताली – कुंजिका, कुंजी, चाबी, तालमूली, तालिका।

तालु – काकुद, तारू, तालू।

तिजारत – सौदागरी, व्यवसाय, व्यापार।

तितलौकी (जिससे सितार का तुम्बा बनता है) – इक्ष्वाकु, कटुकालाबु, कटुतिक्तका, कटुतुम्बिका, कटुतुम्बी, कटुफला, कडुवीतोंबी, क्षत्रियवरा, तिक्तका, तिक्ततुम्बी, तुम्बिका, तुम्बी, दंतफला, नृपात्मजा, पिण्डफला, फलिनी, महाफला, राजपुत्री।

तिमिर – अंध, अंधार, अंध्यार, अंधियारी, अंधेरा, अंधेरी, कालिमा, कुहा, कृष्ण, घटा, छाया, झाँई, तम, तमता, तमर, तमस, तमिस्र, तामस, तारीक, तारीकी, दिनकेशर, दिनांत, दिनांतक, धुन्धाकार, धुमलाई, नभोरज, निद्रावृक्ष, नीलपंक, निशाचर्म, ध्वांत।

तिरस्कार – अनादर, अपमान, अवमानना, उपेक्षा, निरादर, फटकार, बेइज्जती, भर्त्सना।

Paryayvachi Shabd

तिरिया – अंगना, अबला, औरत, कलत्र, कांता, कामिनी, गृहिणी, घरनी, जनाना, जनियां, जोरू, तिय, त्रिया, दारा, नारी, महिला, मानवी, मादा, बनिता, भामा, भामिनी, भार्या, लुगाई, स्त्री, सुतनु।

तिल – तेलफल, पवित्र, पापघ्न, पूतधान्य, पूरफल, वनोद्भव, स्नेहफल, होमधान्य।

तिलक – टीका, राज्याभिषेक।

तीक्ष्ण – उग्र, तीखा, तीव्र, तेज, प्रखर, प्रचण्ड।

तीखुर – गवयोद्भव, गोधूमज, तंडुलोद्भव, तवक्षीर, तवाखीर, तालक्षीर, तालसम्भूत, पयःक्षीर, पिष्टिका, यवज।

तीता – तिक्त, तीक्ष्ण, तीत।

तीतर – कुक्कुम, तित्तिरी, तीतल, तीतुर, तैतिर, यादुषोदर।

तीनी (एक प्रकार की घास) – अरण्य धान्य, अरण्यषाली, असाधिका, तिन्नी, तिली, तीली, तृणान्न, तृणोद्भव, तृणधान्य, देवधान, देवभात, नीवार, मुनिधान्य।

तीर – अनी, नाराच, पत्री, बाण, विशिख, शर, शायक, शिलीमुख, सायक।

तीर्थ – घाट, धाम, पवित्र स्थान, पुण्यस्थल, मुक्तिधाम, स्थल।

तीव्र – तेज, वेगयुक्त।

तुंग – उग्र, उन्नत, ऊँचा, प्रचण्ड।

तुच्छ – अल्प, ओछा, क्षुद्र, खोटा, घटिया, दो कौड़ी का, नाचीज, निःसार, सारहीन, हीन।

तुरही – मुँहचंग, मुरचंग, विषाण, शृंगी, सिघा।

तुलसी – अप्रेतराक्षसी, अमृता, कठिजर, कायस्था, कुठेरक, कृष्णवल्लभा, गंधहारिणी, गौरा, गौरी, ग्राम्या, तीव्रा, त्रिदशमंजरी, देवदुन्दुभी, पर्णास, पत्रपुष्पा, पवित्रा, पावनी, पुष्पा, पुष्पसारा, पूण्या, प्रेतराक्षसी, बहुपत्री, बहुमंजरी, भूतघ्नी, भूतपत्री, मंजरी, मंजरीपावनी, माधवी, मालाश्रेष्ठा, लक्ष्मी, विष्णुकांता, विष्णुपत्नी, विष्णुप्रिया, विष्णुवल्लभा, वृंदा, वैष्णवी, श्यामा, श्री, श्रीमंजरी, सुगंधा, सुबहा, सुभगा, सुरदुन्दुभी, सुरेज्या, सुरभि, सुरभी, सुरसा, सुलभा, सुलभामंजरी, सुरवल्लरी, सुरवल्ली, हरिप्रिया।

तुला – काँटा, तराजू, तौली, धर्मकाँटा।

तुषार – अवश्याय, ओला, कुहरा, कोहरा, ठंडक, तुहिन, नीहार, पाला, प्रालेय, बर्फ, मिहिका, शीतलता, हिम।

तूतिया (नीला थोथा) – अमृतोद्भव, कांस्यनील, ताम्रगर्भ, तामोपधातु, तुत्थ, तुत्थक, तुत्थांजन, थोथा, नील, नीलांगज, नीलाथोथा, बितुन्नक, भृतक, मयूरक, मयूर ग्रीवक, मयूर तुत्थय, मूषा तुत्थ, मृतामिद, शिखिकंटक, शिखिकंठ, शिखिग्रीव, हरिताश्म, हेमसार।

तूफान – अंधड़, आंधी, चक्रवात, झंझा, झंझावात।

तृष्णा – उदन्या, उपलासिका, तर्ष, तास, तृषा, पानेच्छा, पिपासा, पियास, प्यास।

तेज – तीक्ष्ण, तीता, तीव्र, प्रखर, फुर्तीला।

तेजपत्ता – अंकुश, इष्टगंध, गंधजात, गोमेद, छदन, तज, तमालक, तापस, तेजपत्र, तेजपात, दल, दलाह्वय, पत्र, पत्रक, पत्रज, पाकरंजन, पालाश, राम, रोमश, वसनाह्वय, वास।

तेल – अभ्यंजन, तैल, म्रक्षण, सनेह, स्नेह।

Paryayvachi Shabd

तेल का बाजार – तेलहट्टा, तेलियाना।

तेल की कुप्पी – कुतुप, कुतू, स्नेहपात्र।

तेली – चाक्रिक, तैलकार, धूसर।

तेलमर्दन – अभ्यंग, तैलमर्दन, स्नेहन।

तेजस्वी – कांतिमय, तेजवान, तेजोमय, तेजयुक्त, प्रतापी, प्रभावशाली, वर्चस्वी।

तेवर – चितवन।

तैयार – उद्यत, उत्सुक, उन्मुख, उपस्थित, कटिबद्ध, तत्पर, प्रस्तुत, मुस्तैद, मौजूद, सन्नद्ध।

तोता – आत्माराम, कीर, दाड़िमप्रिय, प्रियदर्शन, फलाशन, मियाँमिट्ठु, रक्ततुण्ड, वक्रतुण्ड, शुक, सुआ, सुग्गा, सुवना, सूआ, हरि।

तोप – गोला, तुपक, शतघ्नी।

तोरई – कर्कोटकी, कृतवेधना, कोशातकी, जालिनी, तुरई, तोरी, दीर्घफला, धामार्गव, धाराफला, पीतपुष्पा, राजकोशातकी, राजिमत्फला, सुकोषा, सुपुष्पा, स्वादुफला।

तोल – तौल, परिमाण, पाय्य, मान, यौतव।

तोशक – गद्दा, तल्प, तुराई, तूलिका, बिछौना।

तोष – आनन्द, तुष्टि, तृप्ति, प्रसन्नता, संतुष्टि, संतोष।

त्याग – अस्पृहा, निर्वेद, निस्पृहा, वर्जन, विराग, वैराग।

त्यागी – निर्लेप, निस्पृह, विरक्त, विरागी, वैरागी।

त्यागना – अलग करना, छोड़ना, तजना, त्याग देना।

त्वचा – खाल, चर्म, चमड़ा, चमड़ी।

त्राण – कवच, बख्तर, बचाव, रक्षक।

त्रुटि – अपराध, अशुद्धि, कमी, चूक, गलती, न्यूनता, भूल।

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पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd

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पर्यायवाची शब्द ढ से

ढ अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द

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पर्यायवाची शब्द ढ से

ढंग – अवस्था, आचरण, आसार, उपाय, क्रिया, चाल-ढाल, ढब, ढर्रा, ढाँचा, तदबीर, तरह, तरीका, दशा, पद्धति, प्रकार, प्रणाली, बनावट, बहाना, भाँति, युक्ति, रचना, रीति, लक्षण, विधि, व्यवहार, शैली, स्थिति, हीला।

ढकेलना – आगे बढना, ठेलना, धक्का देना, रेलना।

ढलना – गुजरना, ढरकना, प्रवृत्त होना, बीतना, रीझना, लहराना, वहना।

ढहाना – उद्ध्वस्त करना, खंडकरण करना, गिरवाना, गिराना, तोड़-फोड़ देना।

ढाँचा – अस्थिपंजर, कंकाल, ठटरी, ठठरी, पंजर।

ढाकना – अव्यक्त करना, झाँरना, तोपना, मूंदना, बंद करना।

ढाढस – आश्वासन, इतमीनान, तसल्ली, दिलासा, धीरज, सांत्वना।

ढाल – एक प्रकार का शस्त्र, उगाही, चंदा, चर्म, ढंग, तरीका, प्रकार, फर, फल, फलक, रोक।

ढिंढोरा – डुगडुगी, डोंगी, ढँढोरा, मुनादी, शोर।

ढिग – आसन्न, निकट, पास, समीप।

ढिठाई – अविनय, अशिष्टता, धृष्टता, प्रगल्भता, बेशरमी।

ढिबरी – चिराग, डिबिया, दीया, लैंप।

ढिलाई – आलस्य, ढीलापन, सुस्ती।

ढीला-ढाला – अतत्परता, आलसी, शिथिलता, सुस्ती।

ढूँढ – खोज, तलाश।

ढेंडसा – डिडिश, ढेंढश, मुनिनिर्मित, रोमशफल।

ढेर – अंबार, अधिक, ज्यादा, पिंड, पुंज, बहुत, बहुत ज्यादा, राशि।

ढोल – ढक्का, ढोलक, ढोलकी, पटह, पणव, प्रणव।

ढोला – देह, पति, पिंड, प्रीतम, मूर्ख व्यक्ति, शरीर।

ढोर – चौपाया, मवेशी।

पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd

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ड के पर्यायवाची शब्द | समानार्थी | Hindi Synonym | भाग-19

पर्यायवाची शब्द ड से

ड अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द

ड अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द  Paryayvachi Shabd | समानार्थी शब्द | All Hindi Synonyms | Paryayvachi shabd kise kahte hai | Paryayvachi shabd ka arth | | पर्यायवाची शब्द का अर्थ |

पर्यायवाची शब्द ड से

डंडा – चारदीवारी, छड़ी, डाँड, दंड, लठिया, लाठी, सोंटा, सोटा।

डकारना – गरजना, डकार लेना, दहाड़ना।

डगमगाना – इधर-उधर होना, काँपना, चंचल होना, डवाँडोल होना, डोलना, लड़खड़ाना, विचलित होना, हिलना।

डब्बा – मंजूषा, संपुटक, संपुटी, समुद्गक।

डमरू – डिंडिम।

डर – आतंक, खौफ, त्रास, दहशत, धाक, भय, भीति, रौब।

डराना – आतंकित करना, भयभीत करना, थर्रा देना, भयातुर करना, हतोत्साहित करना।

डरावना – आतंकपूर्ण, खतरनाक, खौफनाक, भयंकर, भयप्रद, भयानक, भयावह, विकट, विकराल।

डरा हुआ – आतंकित, आशंकित, त्रस्त, भयग्रस्त, भयभीत।

डहकना – छल करना, छिटकाना, छितराना, ठगना, दहाड़ना, धोखा देना, फैलना, बिलखना, विलाप करना, हुँकारना।

डाँड़ – अर्थदंड, आड़, गदका, चप्पू, डंडा, बाड़, मेड़, रोक, सीधी लकीर, सीमा, हद, हरजाना।

डाँडी – काँटा, डाँड, दंडा, बेंट।

डाँवाडोल – अदृढ, अस्थिर, गतिशील, डगमगाता हुआ, ढीला, ढुलमुल, परिवर्तनशील, विचलित।

डाका डालना – अपहरण, डाकाजनी, लूटना, लूटमार करना।

डाकू – कजाक, गनीम, छापामार, डकैत, डिंगर, दस्यु, धाड़ायत, धाड़ैत, पाटच्चर, बटमार, बागी, मोषक, राहजन, लूटेरा, लूंठक, सार्थहा, साहसिक, स्तेन, हर्ता।

डायन – कुटनी, कुरूपा, डाकिनी, पिषाचिनी, भूतनी, स्त्री।

डायरी – दिनचर्या, दैनंदिनी, दैनिकी, रोजनामचा।

डाल – एक तरह की खूंटी, चगेरी, डलिया, डंडी, डाँडी, शाख, शाखा।

डाली – उपहार, भेंट।

डाह – असूया, ईर्ष्या, कुढ़न, जलन, द्वेष, मात्सर्य, राग।

डिम्ब – अंडा, डिंब, दंगा, प्लीहा, पुकार, फेफड़ा, लड़ाई, हलचल।

डील-डौल – आकार, आकृति, कदकाठी, ढाँचा, देह, बनावट, रूप, लम्बाई-चौड़ाई, विन्यास, शरीर रचना, शारीरिक गठन, स्वरूप।

डेरा – खेमा, छावनी, ठहराव, ठिकाना, तम्बू, निवास, निवास-स्थान, शिविर।

डोमकौआ – काकोल, कालकंटक, द्रोण, द्रोणकाक।

डोरा – डोर, तन्तु, ताँत, तागा, धागा, धार, धारी, प्रेमबंधन, सूत, सूता, सूत्र, रस्सी, लकीर, सुराग।

डोरी – डोर, जेवरी, ताँत, सुतली, रस्सी।

डोली – दोला, प्रेंखा, हिंडोल।

पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd

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‘आ’ के पर्यायवाची शब्द (भाग-3)

‘इ, ई’ के पर्यायवाची शब्द (भाग-4)

‘उ एवं ऊ’ के पर्यायवाची शब्द (भाग-5)

‘ऋ, ए तथा ऐ’ के पर्यायवाची शब्द (भाग-6)

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पर्यायवाची शब्द ठ से

ठ अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द

ठ अक्षर से शुरू होने वाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द  Paryayvachi Shabd | समानार्थी शब्द | All Hindi Synonyms | Paryayvachi shabd kise kahte hai | Paryayvachi shabd ka arth | | पर्यायवाची शब्द का अर्थ |

पर्यायवाची शब्द ठ से

ठंड – शीत, सर्दी।

ठंडा – उदासीन, गम्भीर, ठंढा, धीमा, धीर, भावहीन, मंद, शांत, शीत, शीतल, सर्द, सीर, सुस्त।

ठग – कज्जाक, कपटी, चक्राट, चकमेबाज, चालबाज, छलिया, छली, डिंगर, ढोंगी, धूर्त, धोखेबाज, पाखंडी, फरेबी, फरफंडिया, भँडरिया, मक्कार, मदार, मायावी, वंचक, शठ।

ठगना – प्रतारण करना, भुलाना, भुलावा देना, लूटना, लूट लेना।

ठटरी – अस्थिपंजर, कंकाल, ठठरी, पंजर।

ठठना – रचना, सजधन करना, सजना, संवरना।

ठसक – अभिमान, दर्प, नखरा, शान।

ठहरना – अड़ना, इंतजार करना, घिराना, टिकना, थमना, प्रतीक्षा करना, रुकना, विराम, स्थित होना।

ठहाका – अट्टहास, कहकहा, खिलखिलाना।

ठाकुरद्वारा – देवालय, मंदिर, देवस्थान, शिवाला।

ठाट – अनुष्ठान, आडम्बर, आयोजन, आराम, उपाय, झुंड, ढंग, ढाँचा, तड़क-भड़क, तैयारी, दल, मजा, माल, पिंजर, प्रबंध, बनावट, युक्ति, रचना, व्यवस्था, शैली, शोभा, सजावट, समूह, सामग्री, सामान।

ठिकाना – अंत, आयोजन, जगह, ठौर, पारावार, प्रबंध, प्रमाण, स्थान।

ठिठुरना – काँपना, जकड़ना, जमना, जम जाना, थरथराना, शीत लगना, सदियाना, सिकुड़ना।

ठिठोली – उपहास, चुहल, दिल्लगी, फबती, मजाक, व्यंग्य।

ठीक – अच्छा, उचित, उपयुक्त, ठहराव, ठिकाना, दुरुस्त, निश्चय, पक्का, प्रामाणिक, भला, यथार्थ, योग्य, शुद्ध, सम्यक्, सही, समीचीन, स्थिर।

ठुड्डी – चिबुक, ठोड़ी, हनु।

ठेका – इजारा, जिम्मा, टेण्डर, निविदा, पट्टा, प्रस्ताव, संविदा।

ठेठ – आरंभ, खालिस, निपट, निरा, निर्मल, बिल्कुल, शुद्ध, शुरू।

ठेलना – खिसकाना, ढकेलना, धकियाना, बढ़ाना, सरकाना।

ठेस – आघात, चोट, धक्का।

ठौर – अवसर, घात, जगह, ठिकाना, मौका, स्थान।

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ट के पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd भाग-17

ट के पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd

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ट के पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd

शेष सभी | पर्यायवाची शब्द | समानार्थी | Hindi Synonym | जानें

टंकार – कीर्ति, झनकार, टनटन का शब्द, ध्वनि, नाम, प्रसिद्धि, शब्द।

टंटा – आडंबर, उपद्रव, झंझट, झगड़ा, तकरार, दंगा, पचड़ा, प्रपंच, फसाद, लफड़ा।

टँगारी – कुल्हाड़ी, गैंटा, टँगारा, बाँक, वृक्षादन, वृक्षभेदी।

टकराना – चोट खाना, टक्कर खाना, टक्कर मारना, ठोकर खाना, धक्का खाना, भिड़ना, लड़ जाना।

टका – अघन्ना, द्रव्य, धन, रुपया, सिक्का।

टक्कर – घाटा, ठोकर, धक्का, नुकसान, भिड़ंत, मुठभेड़, मुकाबला, लड़ाई, संघात, समाघात, हानि।

टघलना – गलना, टघरना, द्रवीभूत होना, पिघलना।

टसुआ – अश्क, अश्रु, आँसू।

टहलुआ – खिदमतगार, नौकर, सेवक।

टाँकना – अटकाना, जोड़ना, नत्थी करना, लगाना, सिलाई करना।

टाँका – कुंडी, चिप्पी, छेनी, जोड़, सिलाई, सीवन, हौज।

टाँकी – टंक, पाषाणदारण।

टाँग – टंक, पाँव, पैर।

टालमटोल – आनाकानी, बहाना, हीला-हवाला।

टिकट – अधिकार पत्र, प्रमाणपत्र, प्रवेशपत्र।

टिका हुआ – अवलंबित, सहारा लिए हुए।

टिकना – अड़कना, अड़ना, ठहरना, थमना, बसना, रहना, रुकना।

टिटिहरी – कोयष्टी, टिट्टिमी, टिटिही।

टिमटिमाना – चमचमाना, जगमगाना, झिलमिलाना।

टीका – तिलक, दाग, धब्बा, माये का गहना, युवराज, राजतिलक, व्याख्या, शिरोमणि, श्रेष्ठ पुरुष।

टीस – ऐंठन, कष्ट, कसक, चुटकी, चुभन, तकलीफ, दर्द, पीड़ा, शूल, वेदना।

टुकड़ा – अंश, अवयव, कौर, खंड, ग्रास, भाग, विभाग, हिस्सा।

टूटा – कमजोर, त्रुटित, दीन, दुबला, निर्धन, भग्न, शिथिल, हीन।

टेक – अड़, अवलम्ब, आदत, आश्रय, गीत का पुनरुक्त भाग, चबूतरा, जिद्द, टीला, ढासना, थम, थूनी, दृढ संकल्प, संस्कार, सहारा, हठ।

टेकना – आड़ लगाना, आश्रय लेना, ओट लगाना, टेक लगाना, थामना, सहारा लेना।

टेढ़ा – अटपटा, उग्र, उज्जड, उद्धत, ऐंडा, कठिन, कुटिल, खल, घुमावदार, जटिल, टेढ़ा-मेढ़ा, तिरछा, तिर्यक्, पेचीदा, बंक, बलदार, बाँका, मुश्किल, वक्र, विषम।

टेर – आह्वान, गुहार, पुकार, बुलावा।

टेवना – तीखा करना, तेज करना, धार देना, पैना करना, सान चढाना।

टोकरी – खाँची, चँगेरी, झाँपी, झपोली, डलिया, देगची, बटलोई।

टोप – कुंडी, शीर्षण्य, शीर्षक, शिरस्त्राण।

टोहना – अनुसंधान करना, अन्वेषण करना, खोजना, टोह लेना, ढूंढना, पता लगाना या लेना।

झ के पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd भाग-16

झ के पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd

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झ के पर्यायवाची शब्द Paryayvachi Shabd

शेष सभी | पर्यायवाची शब्द | समानार्थी | Hindi Synonym | जानें

झंझा – अंधड़, आँधी, झंझावत, तूफान, बवंडर।

झंडा – केतन, केतु, केतुक, चिह्न, चीन, ध्वज, ध्वजा, निशान, पताका, फरहरा, वैजयन्ती।

झकोरना – कँपाना, झकझोरना, झोरना, हिलाना, हिलोड़ना।

झखना – अनुताप करना, झींखना, पछताना, पश्चाताप करना, रोना।

झगड़ना – कलह करना, झगड़ा करना, बकझक करना, भिड़ना, मुँहजोरी करना, मुँहा मुहीं करना, लड़ाई करना, लड़ना, वाद-विवाद करना, विवाद करना, सरबर करना।

झड़ना – गिरना, चूना, झरना, टपकना, टूटकर गिरना, पतन होना, विचलना, विचलित होना, स्खलित होना।

झड़प – झंझट, झगड़ा, तकरार, तू-तू-मैं-मैं, बखेड़ा, हाथापायी।

झझकारना – अनादर करना, अवज्ञा करना, अवहेलना करना, अश्रद्धा करना, उपटना, डाँटना, झटकना, झिड़कना, तिरस्कार करना, दुत्कारना, फटकारना, हटाना,

झटकना – उचक लेना, ऐंठना, छीनना, मार लेना, लूट लेना, हथिया लेना।

झटपट – जल्दी से, तीव्रता से, तुरंत, तेजी से, वेगपूर्ण।

झरना – उत्स, जलमाला, झर, निर्झर, प्रपात, प्रस्त्रवण, वारिवाह, सरण, सोता, स्रोत।

झरोखा – अंतर द्वार, खिड़की, गवाक्ष, जालमार्ग, जालरन्ध्र, झँझरी, पक्षक, प्रच्छन्न, रोशनदान, वातायन, वारी।

झल्लाना – किटकिटाना, कुढ़ना, खीजना, चिड़चिड़ाना, चिढ़ना।

झाँई – अंधकार, अँधेरा, आभा, छल, छाया, झलक, धोखा, परछाई, प्रतिच्छाया, प्रतिध्वनि, प्रतिबिंब, बिंब।

झाँझ – झल्लरी, झाल।

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झाँपी – कट, करंडा, किलिंजक, पेटारी, मोना, मोनियाँ।

झाँसना – झटक लेना, झाँसा पट्टी देना, ठगना, धोखा देना, फुसलाना, बहकाना, भुलावा देना।

झाँसा – ठगी, दगा, धोखा, फरेब।

झाड़ना – उतारना, गिराना, चुआना, झाड़-फूंक करना, झाड़ू देना, झारना, टपकना, टोना टोटका करना, निचोलना, फूंक डालना, बटोरना, बुहारना, मंत्र फूंकना, साफ करना।

झिझक – अनिर्णय, असमंजस, आगा-पीछा, दुविधा, संकोच, हिचकिचाहट।

झींगुर – घुरघुरा, चिल्लिका, चीरी, चीलिका, जंजीरा, झिल्लरी, झिल्लिका, झिल्ली, झीरिका, भीरुका, भृंगारी,।

झींसी – अम्बुकण, जलकण, फुहार, सीकर।

झील – ताल, सर, सरोवर।

झुंड – कुटुम्ब, कुल, गण, गिरोह, जत्था, जमघट, जाल, टुकड़ी, टोल, दल, पक्ष, पुंज, भीड़, मंडली, माला, वरुथ, वृन्द, समाहार, समुदाय, समूह, श्रेणी।

झुराना – झुलसना, मुरझाना, सुखाना, सूखना, शुष्क होना।

झूठ – अनृत, असत्य, मिथ्या, मृष।

झूठा – अतथ्य, अन्यथा, अप्रकृत, अमूलक, अयथार्थ, अयुक्तिक, अवास्तव, असत्, असत्यवादी, कल्पित, कूट, गलत, दिखावटी, नकली, पंचदशानर्थ, बनावटी, मिथ्या, मिथ्यावादी, मृषा।

झूमना – काँपना, झोंका खाना, डोलना, झूलना, झोंका, लहराना, हिलना।

झूला – झोंका, स्त्रियों का ढीला कुर्ता, हिंडोला।

झोंकना – गिराना, घुसेड़ना, डालना, ढकेलना, फेंकना।

झोंपड़ी – उटज, कुंज, कुटिया, कुटी, कुटीर, कुल्ली, गह्वर, छानी, झुग्गी, झूँपा, पर्णकुटी, पर्णशाला, पल्ली, मुनिवास, शाला।

विभिन्न प्रकार ki ichcha

विभिन्न प्रकार ki ichcha

हिंदी व्याकरण में यदि हम स्थानापन्न शब्दों (शब्द समूह के लिए एक शब्द) की बात करें तो इसमें विभिन्न प्रकार ki ichcha (Desires) भी होती हैं। विभिन्न प्रकार की इच्छाएं जैसे- जिज्ञासा, जिघांसा, जिघत्सा, जिघृक्षा, मुमुक्षु, मुमूर्षू, मुमूर्षा आदि। इन शब्दों के अर्थ में कम अथवा बहुत अधिक अंतर होता है। इसके लिए पहले हम ‘वाक्यांश के लिए एक शब्द’ के बारे में जान लेते हैं-

वाक्यांश के लिए एक शब्द

कम से कम शब्दों में अधिकाधिक अर्थ को प्रकट करने के लिए ‘वाक्यांश या शब्द-समूह के लिए एक शब्द’ का विस्तृत ज्ञान होना आवश्यक है। ऐसे शब्दों के प्रयोग से वाक्य-रचना में संक्षिप्तता, सुंदरता तथा गंभीरता आ जाती है।

हिंदी के सभी शब्द समूह के लिए एक शब्द (स्थानापन्न शब्द) जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए

विभिन्न प्रकार की इच्छाएँ
विभिन्न प्रकार की इच्छाएँ

विभिन्न प्रकार ki ichcha

अभीप्सा- किसी वस्तु को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा

एषणा- सांसारिक वस्तुओं को प्राप्त करने की इच्छा

चिकीर्षा- कार्य करने की इच्छा

जिज्ञासा- जानने की इच्छा

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जिगीषा- जीतने, दमन करने की इच्छा

जिगीषु- किसी को जीत लेने की इच्छा रखने वाला

जिघांसा- किसी को मारने की इच्छा

जिघत्सा- भोजन करने की इच्छा

जिघृक्षा- ग्रहण करने, पकड़ने की इच्छा

जिजीविषा- जिंदा रहने की इच्छा

ज्ञानपिपासा- ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा

तितीर्षा- तैर कर पार जाने की इच्छा

धनेच्छु- धन की इच्छा रखने वाला

पिपासु- पीने की इच्छा रखने वाला

फलेच्छु- फल की इच्छा रखने वाला

बुभुक्षा- खाने की इच्छा

बुभुक्षु- खाने का इच्छुक

बुभुक्षित- जो अत्यधिक भूखा हो

मुमुक्षु- मोक्ष की इच्छा रखने वाला

मुमुर्षा- मरने की इच्छा

मुमूर्षू- मरणासन्न अवस्था वाला/मरने को इच्छुक

युयुत्सु- युद्ध की इच्छा रखने वाला

युयुत्सा- युद्ध करने की इच्छा

शुभेच्छु- शुभ चाहने वाला

हितैषी- हित चाहने वाला

इच्छा के पर्यायवाची शब्द

अरमान, अभिरुचि, अभिलाषा, आकांक्षा, आरजू, इष्टि, ईप्सा, ईहा, उत्कंठा, एषणा, कामना, चाह, मनोकामना, मनोरथ, रुचि, लालसा, लिप्सा, वांछा, स्पृहा।

इच्छा की परिभाषा जानने के लिए विकिपीडिया के इस लिंक पर क्लिक कीजिए- इच्छा की परिभाषा।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

रासो साहित्य की रचनाएँ एवं रचनाकार

रासो साहित्य की रचनाएँ एवं रचनाकार

हिंदी रासो साहित्य या रासक काव्य परंपरा की रचनाएँ एवं रचनाकार 

रासो, रासक या रास साहित्य नाम से हिंदी में अनेक रचनाएँ मिलती है। ये सभी रासो काव्य परंपरा के अंतर्गत ही रखी गई है। तो जानते हैं रासो साहित्य की रचनाएँ एवं उनके रचनाकार के बारे में। विद्वानों ने इन्हें मोटे रूप में दो भागों में बांटा है―

प्रथम गीत नृत्यपरक धारा के रासो-ग्रंथ तथा

द्वितीय छंद वैविध्यपरक धारा के रासो-ग्रंथ। इन दोनों धाराओं का विस्तृत वर्णन इस प्रकार से है―

raso sahitya ki rachnaye - रासो साहित्य की रचनाएँ
raso sahitya ki rachnaye – रासो साहित्य की रचनाएँ

गीत नृत्यपरक धारा के रासो-ग्रंथ : रासो साहित्य की रचनाएँ एवं रचनाकार

1. उपदेशरसायन : रचयिता ― जिनदत्त सूरि।

अपभ्रंश में रचित यह रासो- काव्य-परंपरा का प्राचीनतम ग्रंथ माना जाता है।

इसका रचनाकाल 1134 ई. है।

इसमें 32 छंदों में जैन धर्म के उपदेश रचित है।

2. भरतेश्वरबाहुबलीरास : रचयिता शालिभद्र सूरि।

यह रचना 1184 ई. में रचित है।

इसमें भगवान् ऋषभदेव के दो पुत्रों भरतेश्वर और बाहुबली के मध्य राज्यसत्ता के संघर्ष की कथा का वर्णन है।

इसमें वीररस का प्राधान्य है।

‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति, अर्थ, रासो साहित्य, विभिन्न प्रमुख मत, क्या है रासो साहित्य?, रासो शब्द का अर्थ एवं पूरी जानकारी।

3. बुद्धिरास : रचयिता शालिभद्र सूरि – रासो साहित्य की रचनाएँ एवं रचनाकार

इसका रचनाकाल 1184 ई. है।

यह भी धर्मोपदेशक ग्रंथ है।

पथभ्रष्ट व्यक्तियों का मार्गनिर्देशन इसका उद्देश्य है।

4. जीवदयारास : यह आसगु कवि की रचना है।

जिसकी रचना 1200 ई. में जालोर में हुई।

इस काव्य का लक्ष्य जीवदया का उपदेश देना है।

5. चंदनबालारास : आसगु द्वारा रचित।

यह रचना 1200 ई. की है।

चंदनबाला के धार्मिक चरित्र का उल्लेख इस ग्रंथ में हुआ है।

इसमें करुण रस की प्रधानता है।

6. जंबूस्वामीरास :  धर्मसूरि द्वारा रचित

यह रचना 1209 ई. की है।

इसमें जैन साधु जंबूस्वामी के चरित्र का वर्णन हुआ है।

7. रेवतगिरिरास : विजयसेन सूरि

यह ग्रंथ 1291 ई. में रचित है।

इस रासो ग्रंथ में गिरनार के जैनमंदिरों के जीर्णोद्धार की कथा है।

8. नेमिजिणंदरासो : पाल्हण

1232 ई. में रचित कृति है।

इसमें नेमिनाथ की कथा का वर्णन है।

9. गायसुकुमाररासो : कवि देल्हणि

1243 ई. में रचित।

इस रचना में  गायसुकुमार का चरित्र चित्रण हुआ है।

10. सप्तक्षेत्रिरासु― अज्ञात कवि

इस रचना का रचना काल 1270 ई. है।

इसमें जिनमंदिर, जिनप्रतिमा, ज्ञान, साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका नामक सप्तक्षेत्रों की उपासना का वर्णन है।

11. पेथडरास : रचयिता मंडलिक

इसका रचनाकाल 1303 ई. है।

प्रस्तुत ग्रंथ में संघपति पेथड के चरित्र का वर्णन है।

12. कच्छूलिरास : अज्ञात

1306 ई. की रचना।

इसमें एक जैन तीर्थ का वर्णन हुआ है।

13. समरारासु : अंबदेव सूरि

1314 ई. में रचित रचना है।

रचना में संघपति समरा का चरित्र चित्रण हुआ है।

14. बीसलदेवरासो : नरपति नाल्ह

4 खंडों में विभक्त यह रचना 1155 ई. की है।

इसमें अजमेर के चौहान राजा बीसलदेव तृतीय के पत्नी से रूठकर उड़ीसा जाने का वर्णन हुआ है।

श्रृगार प्रधान इस रचना में वियोग-श्रृगार का चरमोत्कर्ष देखते ही बनता है।

छंद वैविध्यपरक धारा के रासो-ग्रंथ : रासो साहित्य की रचनाएँ एवं रचनाकार

1. मुंजरास : रचयिता अज्ञात

प्रामाणिक प्रति अनुपलब्ध है।

इसका रचना काल 1140 ई. है।

इसमें महाराज मुंज की कथा का वर्णन है।

2. संदेशरासक : अब्दुर्रहमान

इस रचना का काल 1143 ई. है।

यह प्रथम प्रामाणिक रासो-ग्रंथ है। जिसकी भाषा अवहट्ट है।

3. पृथ्वीराजरासो : चंदबरदायी – रासो साहित्य की रचनाएँ एवं रचनाकार

यह हिंदी का प्रथम महाकाव्य है।

रामचंद्र शुक्ल के अनुसार संवत् 1225-1249 है।

इसमें महाराज पृथ्वीराज चौहान तृतीय की कथा वर्णित है।

4. हम्मीररासो : अज्ञात

सं. 1450 के आसपास रचित  है।

इसमें राणा हम्मीरदेव का चरित्र चित्रण है।

यह रचना अप्राप्य है।

5. बुद्धिरासो : जल्ह

14वीं सदी की रचना है।

इसमें चपावती नगर के राजकुमार और जलधि तरंगिनी की प्रणयकथा वर्णित की गई है।

6. परमालरासो : जगनिक

16वीं सदी की इस रचना को आल्हा-खंड भी कहते हैं।

जगनिक परमार्दिदेव (परमाल) के राजाश्रित कवि थे।

7. राव जैतसी रो रासो : अज्ञात

1543 ई. की रचना है।

इस ग्रंथ में बीकानेर के शासक जैतसी तथा हुमायूँ के भाई कामरान के युद्ध का वर्णन है।

8. विजयपालरासो : नल्हसिंह

1543 ई. में रचित इस वीररस पूर्ण रासो-काव्य में करौली के राजा विजयपाल की दिग्विजय एवं विजयपाल का पंग राजा से युद्ध का वर्णन है।

9. रामरासो : माघवदास

1618 ई. में रचित ग्रंथ है।

इसमें रामकथा का वर्णन है।

10. राणारासो : दयाल कवि – रासो साहित्य की रचनाएँ एवं रचनाकार

1618 ई. की इस रचना हैं।

इसमें राणा कुम्भा, उदयसिंह, प्रताप, अमरसिंह इत्यादि का जीवन चरित्र वर्णित है।

11. रतनरासो : कवि कुंभकर्ण

रतलाम के महाराज राणा रतन सिंह का चरित्रचित्रण किया है।

इसका रचनाकाल 1623 ई. है।

12. कायमरासो : न्यामत खाँ जान

इसकी रचना 1634-56 ई. के बीच की गई।

इसमें कायमखानी वंश का महत्त्व एवं आलमखां का चरित्र वर्णित हुआ है ।

13. शत्रुसालरासो : राव डूंगरसी

1653 ई. में रचित इस वीररसात्मक काव्य में बूंदी के शासक राव शत्रुसाल का जीवनचरित्र है।

14. माँकणरासो : कीर्ति सुंदर

इस विनोदात्मक रचना में माँकण अर्थात् खटमल का चरित्र वर्णित किया गया है।

15. संगतसिंह रासो : कवि गिरिधर चारण

इस वीररसात्मक कृति में राणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह तथा उनके वंशज की महत्ता का वर्णन किया है।

16. हम्मीररासो : जोधराज कवि

यह रचना 1728 ई. में रचित है।

इसमें राजा हम्मीर का चरित्राचित्रण वर्णित है।

17. खुमाणरासो : दलपति विजय – रासो साहित्य की रचनाएँ एवं रचनाकार

9 वीं सदी में रचित 5000 छंदों का एक विशाल ग्रंथ है।

इसमें चित्तौड़ के शासक खुमाण द्वितीय तथा खलीफा अलमामू के युद्ध का वर्णन है।

18. भगवंतसिंह को रासो : इस वीररसात्मक ग्रंथ में भगवंत सिंह का चरित्रांकन हुआ है।

19. करहिया कौ रासो : इसमें करहिया के परमार तथा राव जवाहरसिंह के मध्य युद्ध वर्णित है ।

20. कलियुगरासो : इस रचना में कलियुग के कुप्रभाव का वर्णन है। यह अन्य रासो-काव्य से भाषा और छंद की दृष्टि से सर्वथा पृथक है।

जगदीश चंद्र बोस की जीवनी – Jagdish Chandra Bose Biography in Hindi

जगदीश चंद्र बोस की जीवनी – Jagdish Chandra Bose Biography in Hindi

सामान्य परिचय एवं जन्म

जगदीश चंद्र बसु का जन्म 30 नवंबर 1818 में मोमिन से नमक स्थान पर हुआ यह जगह वर्तमान बांग्लादेश में है इनकी पिता भगवान चंद्र बसु उप मजिस्ट्रेट इसके साथ साथ ही वे ब्रह्म समाज से भी जुड़े हुए थे। मूलतः इनका परिवार रारीखाल गांव विक्रमपुर से आया था। तो अब जानते हैं जगदीश चंद्र बोस की जीवनी – Jagdish Chandra Bose Biography in Hindi

 

जगदीश चंद्र बोस की जीवनी - Jagdish Chandra Bose Biography in Hindi
जगदीश चंद्र बोस की जीवनी – Jagdish Chandra Bose Biography in Hindi

शिक्षा दीक्षा

बालक जगदीश चंद्र की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही एक बंगाली विद्यालय में हुई।

इनके पिता चाहते थे कि उनका बेटा अंग्रेजी जानने से पहले अपनी मातृभाषा सीखे।

एक जगह स्वयं जगदीश चंद्र बसु ने कहा है कि

”अंग्रेजी स्कूल में भेजना हैसिहत की निशानी माना जाता था। मैं जिस बंग्ला विद्यालय में जाता था, वहां पर मेरे दाएं तरफ मेरे पिता के मुस्लिम नौकर का बेटा बैठता था, मेरी बाई तरफ एक मछुआरे का बेटा। उनकी पक्षियों, जानवरों और जलीय जीवो की कहानियों को मैं कान लगाकर सुनता था शायद इन्हीं कहानियों ने मेरे मस्तिष्क में प्रकृति की संरचना पर अनुसंधान करने की गहरी रुचि जगाई।”

महा विद्यालय शिक्षा एवं विदेश गमन

विद्यालय स्तर की पढ़ाई के बाद बसु ने कोलकाता के प्रसिद्ध सेंट जेवियर महाविद्यालय से 1880 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की अब जगदीश चंद्र बसु चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई करना चाहते थे, इसके लिए उन्हें लंदन जाना था।

सन् 1880 में ही उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय में चिकित्सा के पाठ्यक्रम में प्रवेश ले लिया,

परंतु कुछ ही समय में वहां बसु का स्वास्थ्य खराब रहने लगा जिसके कारण उन्हें चिकित्सा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी और 1881 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के क्राइस्ट कॉलेज में विज्ञान के पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया

इसी कॉलेज में बसु प्रोफेसर लाफोंट से मिले जिन्होने उन्हें भौतिक शास्त्र के अध्ययन के लिए प्रेरित किया।

1884 में बोस इंग्लैंड से बीएससी की उपाधि प्राप्त कर भारत लौट आये।

भारतीयों के साथ होने वाले भेदभाव के विरुद्ध सत्याग्रह

1885 में बसु की नियुक्ति कोलकाता के प्रतिष्ठित प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक के रूप में हुई।

लेकिन यहां अंग्रेजों की भेदभाव की नीति काम कर रही थी। अंग्रेजी अधिकारियों ने पहले तो बसु की नियुक्ति में ही कई अड़ँगे लगाए।

जब श्री बसु ने बंगाल के शिक्षा संचालक को उनके नाम लिखा वाइसराय का पत्र दिखाया तो शिक्षा संचालक एल्फ्रेड क्राफ्ट ने बसु का अपमान करते हुए कहा कि

“एक काला आदमी विज्ञान सिखाने लायक नहीं होता।”

जब वायसराय को बसु की नियुक्ति की सूचना नहीं मिली तो उन्होंने क्राफ्ट से पूछताछ की इस तरह वायसराय द्वारा पूछताछ करने पर डर के कारण क्राफ्ट ने तत्काल बसु की नियुक्ति प्रेसिडेंसी कॉलेज में की।

बसु के साथ दूसरा भेदभाव यह किया गया जो कि प्रत्येक भारतीय के साथ किया जाता था भारतीयों को अंग्रेज अधिकारियों की तुलना में आधा वेतन दिया जाता था क्योंकि बसु की नियुक्ति तत्काल हुई थी इसलिए उन्हें अंग्रेज प्राध्यापकों की तुलना में एक तिहाई ही वेतन दिया जाता था।

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जिसके विरोधस्वरूप बसु ने वेतन लेने से मना कर दिया।

बसु ने सत्याग्रह के मार्ग को अपनाया, उन्होंने अपना अध्यापन कार्य जारी रखा किंतु वेतन स्वीकार नहीं किया।

बसु अब बिना वेतन के ही कॉलेज में काम करते रहे।

यह सिलसिला तीन साल तक चलता रहा। इस दौरान उनके परिवार पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई और इसी अवधि में बसु का विवाह भी हो गया।

ऐसी परिस्थितियों में भी परिवार और पत्नी ने उनका भरपूर सहयोग किया।

बसु अपना काम पूरी मेहनत और लगन से करते रहे और तीन साल बाद प्राचार्य टॉने तथा शिक्षा संचालक क्रॉफ्ट को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने बसु को अंग्रेज प्राध्यापकों के समान नियुक्ति तिथि से ही पूरा वेतन देना स्वीकार किया।

इसी वेतन से उन्होंने अपने परिवार का ऋण चुकाया।

विवाह

जगदीश चंद्र बसु का विवाह उनके पिता के एक सहयोगी दुर्गा मोहन दास की द्वितीय पुत्री अबला से 1887 ईस्वी में हुआ।

जगदीश चंद्र बसु और अबला का जिस समय विवाह हुआ उस समय अब अबला मद्रास में चिकित्सा शास्त्र के तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी।

विज्ञान की पृष्ठभूमि से आने के कारण अबला जी अपने पति को उनके क्षेत्र में अत्यधिक सहयोग कर पाई। यह सहयोग आजीवन चलता रहा।

अध्यापन और अनुसंधान

अध्यापन की तरह ही अनुसंधान कार्य भी बसु के लिए आसान नहीं रहा। महाविद्यालय में उन्हें ऐसी कोई सुविधा प्राप्त नहीं थी जिससे अनुसंधान में सहायता मिल सके।

इस समय की प्रसिद्ध रॉयल सोसाइटी का मानना था कि “विज्ञान के क्षेत्र में मौलिक अनुसंधान ब्रिटिशों के ऊपर छोड़ दिया जाए और भारतीय वैज्ञानिक प्रायोगिक विषयों पर अनुसंधान करें।”

ऐसी विकट परिस्थिति में भी बसु ने हार नहीं मानी और महाविद्यालय के मात्र 20 वर्ग फीट के कमरे में उन्होंने एक प्रयोगशाला बनाई।

बसु के साथी प्राध्यापक भी उन पर तंज कसते उन्हें हतोत्साहित करने का पूरा प्रयास करते। उनकी बातें सुनकर बसु दुगने उत्साह से अपने काम में लग जाते।

छत्तीसवां जन्मदिन और संकल्प

अपने छत्तीसवें जन्मदिन पर जगदीश चंद्र बसु ने यह दृढ़ संकल्प लिया कि “इससे आगे की अपनी आयु अनुसंधान कार्य में ही बताऊंगा” और इस संकल्प का उन्होंने जीवन भर पालन किया।

बसु का आकर्षण अब विद्युत चुंबकीय तरंगों की तरफ हुआ बसु उसे पहले 1863 में मैक्सवेल नामक ब्रितानी वैज्ञानिक ने विद्युत चुंबकीय तरंग के अस्तित्व को गणितीय आधार पर सिद्ध किया।

मैक्सवेल के बाद ओलिवर लॉग नामक ब्रिटिश वैज्ञानिक ने मैक्सवेल के अनुसंधान को आगे बढ़ाया।

जर्मन वैज्ञानिक हॉट्स ने यह सिद्ध किया की तरंग को बिना तार के भी भेजा जा सकता है।

1894 में हॉट्स की मृत्यु के बाद लॉज ने उनके अनुसंधान कार्य पर एक भाषण दिया।

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यह भाषण ‘वर्क ऑफ हार्ट्स एंड सम ऑफ हिस सक्सेस’ नाम से प्रकाशित हुआ।

लॉज के इसी भाषण रूपी पुस्तक को पढ़कर बसु भी इस विषय की ओर आकृष्ट हुए और उसे अनुसंधान के विषय के रूप में चुना।

बसु दा का अनुसंधान कार्य सतत् चलता रहा। इस दौरान उन्होंने कई उपकरण भी बनाए।

जब उन्होंने अपने प्रयोग पाश्चात्य देशों में प्रस्तुत किए तो पश्चिमी वैज्ञानिकों ने इनकी खोज और उपकरण देखकर आश्चर्य से दांतो तले उंगली दबा ली।

1894 में बसु ने सूक्ष्म तरंगों की सहायता से दूर स्थित गन पाउडर को प्रज्वलित किया और एक घंटी भी बजाई।

बसु ने अपने किसी भी आविष्कार का कभी भी पेटेंट नहीं करवाया एक अमेरिकी मित्र के आग्रह पर 1901 में उन्होंने अपना पहला पेटेंट करवाया जो किसी भी भारतीय का पहला पेटेंट था जो उन्हें 1904 में प्राप्त हुआ।

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बसु ने तरंगों पर अनुसंधान करते हुए कई अभिनव प्रयोग किए।

1895 में उन्होंने कोलकाता के टाउन हॉल में सबके सामने एक प्रयोग किया इस संबंध में स्वयं बसु लिखते हैं

“इस प्रयोग के समय लेफ्टिनेंट गवर्नर विलियम मैकेंजी मुख्य अतिथि थे। सभागृह में निर्माण किए गए तरंग उनके मोटे शरीर तथा तीन दीवारों से गुजरकर 75 फीट की दूरी पर स्थित एक कक्ष में पहुंचे और वहां उन्होंने तीन प्रकार के कार्य किए एक पिस्तौल से गोली उड़ी दूसरा तोप से गोला फेंका गया और तीसरा बारूद के ढेर में चिंगारी को स्पर्श कर उसमें विस्फोट हुआ।”

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दुनिया के संभवत इस पहले प्रयोग को देखकर लेफ्टिनेंट मैकेंजी बहुत खुश हुए और बसों के लिए ₹1000 का पारितोषिक घोषित किया

1896 में बसु इंग्लैंड गये जहां लिवरपूल में ब्रिटिश एसोसिएशन की परिषद् में बसु ने अपने अनुसंधान निबंध पढ़े।

उनकी प्रस्तुति और प्रयोग इतने प्रभावशाली थे कि सभी ने उनकी प्रशंसा की।

ब्रिटिश समाचारपत्र जो उस समय भारतीयों के लिए दोयम दर्जे की भाषा का प्रयोग करते थे, उन्होंने भी बसु के लिए गौरवपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया।

ब्रिटेन में दिए गए अपनी इन्हीं व्याख्यानो के कारण महान वैज्ञानिक लॉर्ड केल्विन ने भारत मंत्री लॉर्ड हेमिल्टन को एक पत्र लिखा जिसमें भारत में अनुसंधान के लिए प्रयोगशाला स्थापित करने का सुझाव और मांग थी।

इसी तरह का एक पत्र रॉयल इंस्टीट्यूशन ने भी भारत मंत्री के लिए लिखा, भारत मंत्री ने भारत सरकार को पत्र लिखकर भारत में प्रयोगशाला स्थापित करने हेतु आगे की कार्रवाई करने के लिए कहा।

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भारत सरकार ने तत्कालिक बंगाल की प्रांतीय सरकार को पत्र लिखा लेकिन यह कार्रवाई कागजों में ही दब कर रह गयी अंततः केंद्र सरकार ने बसु को वार्षिक ₹2000 अनुदान अनुसंधान कार्य के लिए मंजूर किया।

सन 1900 में जिन दिनों बसु इंग्लैंड में थे उनके प्रयोगों और व्याख्यान की चारों ओर धूम मची हुई थी। चारों तरफ से उन्हें बधाई मिल रही थी।

तभी प्रोफेसर लॉज तथा प्रोफेसर बैरट ने बसु के सामने एक प्रस्ताव रखा कि वे भारत छोड़कर इंग्लैंड में आ जाएं यहां एक विश्वविद्यालय में एक प्राध्यापक का स्थान खाली है लेकिन राष्ट्रभक्त बसु ने वह स्वर्णिम प्रस्ताव ठुकरा दिया।

इस संबंध में उन्होंने अपने परम मित्र रवींद्र नाथ टैगोर से भी विचार विमर्श किया।

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बसु द्वारा इंग्लैंड में प्राध्यापक पद ठुकरा देने के बाद घटनाक्रम कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें काफी समय तक इंग्लैंड में ही रहना पड़ा।

इसी प्रवास में बसु रवींद्रनाथ टैगोर की कथाओं का अंग्रेजी अनुवाद करते तथा अपने अनुसंधान में भी लगे रहते हैं।

लेकिन मित्रों एक बात बार-बार उन्हें कचोट रही थी कि वह क्या करें?

क्या अभी इंग्लैंड में ही रही?

क्या वे भारत लौट जाएं?

नौकरी जारी रखें या

अवकाश ले ले यदि नौकरी छोड़ दें तो पैसे कहां से आएंगे?

ऐसी गंभीर विषय पर वह किससे बात करें किससे अपने मन की बात बताएं यह भी एक उलझन थी

अंततः उन्होंने अपने अंतरंग मित्र रवींद्र नाथ ठाकुर से बात की रवींद्र नाथ ठाकुर यह चाहते थे कि बसु इंग्लैंड में रहकर ही अनुसंधान कार्य करें और उनको वेतन नहीं मिलने की स्थिति में रवींद्र नाथ ठाकुर स्वयं धन की व्यवस्था कर देंगे।

बसु अपनी आर्थिक तंगी को मिटाने के लिए अपने अनुसंधान एवं लेखों के कॉपीराइट भी बेच सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

जीव-अजीव पर अनुसंधान और विवाद

बसु ने जीव और अजीव दोनों चीजों पर अनुसंधान किया।

उन्होंने सिद्ध किया कि जीव-अजीव सभी में वेदना का अनुभव होता है।

सभी वस्तुएँ जहर के प्रति प्रतिक्रिया देती है, चाहे वे जीव हो या अजीव।

उनके बनाए उपकरण से अजीव पदार्थों की धड़कन भी समझी जा सकती थी।

इन प्रयोगों और व्याख्यानो पर उन्हें पाश्चात्य वैज्ञानिकों से प्रतिकार भी झेलना पड़ा। लेकिन भी अडिग रहें और अपना काम करते रहे।

पश्चिमी वैज्ञानिक यह मानने को तैयार ही नहीं थे की वनस्पतियों से विद्युतीय प्रतिसाद प्राप्त हो सकता है या अधातु भी प्रतिक्रिया दे सकते लेकिन जगदीश चंद्र बसु इसे सिद्ध करने पर अडिग थे।

ऐसी परिस्थितियों में पश्चिमी वैज्ञानिक चाह रहे थे कि बसु भारत लौट जाए।

उसी समय त्रिपुरा के राजा ने उन्हें दस हजार रुपए आर्थिक सहायता देना स्वीकार कर लिया और यह भी वचन दिया कि वह इसी वर्ष में दस हजार रुपए की और उन्हें सहायतार्थ दे सकते हैं। अब बसु के लिए 1 वर्ष और इंग्लैंड में रहने की व्यवस्था हो गई थी।

जगदीश चंद्र बोस की जीवनी – Jagdish Chandra Bose Biography in Hindi

21 मार्च 1902 को वह दिन भी आया जब बसु ने शरीर विज्ञान, जीव विज्ञान तथा अन्य शास्त्रों के विद्वानों के सामने रॉयल सोसाइटी के समक्ष किए गए प्रयोग पुनः प्रस्तुत किए और सब लोगों ने उनकी प्रशंसा की 1 जनवरी 1903 में जगदीश चंद्र बसु ने CIE (कमांडर ऑफ द इंडियन एंपायर) की उपाधि से सम्मानित किया गया।

इसके बाद जगदीश चंद्र बसु उत्तरोत्तर अनुसंधान करते रहे उन्हें अपार सफलताएं मिली।

पुस्तकें

(क) अंग्रेजी पुस्तकें

1. रिस्पॉन्स इन द लिविंग एंड नॉन-लिविंग। (1902)

2. फॉर रिस्पॉन्स इज अ मीन्स ऑफ फिजियोलॉजिकल इन्वेस्टिगेशन। (1906)

3. कॉपरेटिव इलेक्ट्रो फिजियोलॉजी (1907)

4. रिसर्चेस ऑन इरिटॉबिलिटी ऑफ प्लांट्स (1912)

5. द फिजियोलॉजी ऑफ फोटोसिंथेसिस (1924)

6. नर्वस मेकेनिज्म ऑफ प्लांट्स (1926)

7. कलेक्टेड फिजिकल पेपर्स (1927)

8. फॉर ऑटोग्राफ्स एंड देअर रिवीलेशंस (1927)

9. द मोटर मेकेनिज्म ऑफ प्लांट्स (1928)

10. ग्रोथ एंड ट्रॉपिक मूवमेंट्स ऑफ प्लांट्स। (1929)

(ख) संपादित पुस्तकें

1. खंड 1 : 1918

2. खंड 2 : 1919

3. खंड 3 : 1920 ‘लाइफ मूवमेंट्स इन प्लांट्स’ शीर्षक से

4. खंड 4 : 1921 एक साथ प्रकाशित

5. खंड 5: 1923; ‘द फिजियोलॉजी ऑफ दि एसेंट ऑफ सैप शीर्षक से।

6. खंड 6 : 1932; ‘लाइफ मूवमेंट्स इन प्लांट्स’ शीर्षक से।

7. खंड 7 : 1933

8. खंड 8 : 1934

9. खंड 9 : 1935

10. खंड 10 : 1936

11. खंड 11 : 1937

(ग) बंग्ला ग्रंथ

अव्यक्त (1921) बँगला लेखों एवं भाषणों का संग्रह।

जगदीश चंद्र बसु की जीवन यात्रा कालक्रम अनुसार

1858 ― 30 नवंबर को मैमनसिंह (वर्तमान बांग्लादेश में) में जन्म

1863 ― बांग्ला विद्यालय में प्रवेश।

1869 ― कोलकाता के प्रसिद्ध सेंट जेवियर स्कूल में प्रवेश।

1875 ― मैट्रिक की परीक्षा पास।

1880 ― बी.ए. उत्तीर्ण।
चिकित्सा स्वास्थ्य की पढ़ाई के लिए लंदन विश्वविद्यालय में प्रवेश।

1881 ― चिकित्सा शास्त्र में काम आने वाले रसायनों से एलर्जी के कारण पाठ्यक्रम बीच में छोड़कर लंदन विश्वविद्यालय के क्राइस्ट कॉलेज में विज्ञान पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया।

1884 ― बी.एस-सी. उपाधि प्राप्त और भारत वापसी।

1885: कलकत्ता के प्रसिद्ध ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’ में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक के रूप में नियुक्ती कम वेतन के विरोध में वेतन न स्वीकारने का सत्याग्रह किया।

1887: अबला दास के साथ विवाह ।

1888 ― तीन वर्ष तक सत्याग्रह किया और विजय प्राप्त की। पिता के ऋण को चुकाया।

1890 ― पिता का निधन।

1891― माता भामासुंदरी का निधन ।

1894 ― 36वीं वर्षगांठ जीवन भर अनुसंधान कार्य करने का संकल्प लिया ‘विद्युत्-चुंबकीय तरंग एवं बेतार संदेशों का आदान-प्रदान’ विषय में अनुसंधान आरंभ। अनेक नवीनता-युक्त उपकरणों का निर्माण।

1895 ― कलकत्ता के टाउन हॉल में आम लोगों के सामने बेतार संदेश का अभिनव प्रयोग।

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1896 ― वैज्ञानिकों से चर्चा हेतु पहले विदेशी दौरे हेतु प्रस्थान।

1897 ― ब्रिटेन से फ्रांस और जर्मनी का दौरा। भारत सरकार द्वारा अनुसंधान कार्य के लिए वार्षिक ₹2000 का अनुदान स्वीकृत।

1900 ― पेरिस में हुई पदार्थ-वैज्ञानिकों की परिषद् में भारत का प्रतिनिधित्व।

1901: रॉयल इंस्टीट्यूशन में व्याख्यान पाश्चात्य वैज्ञानिकों द्वारा इसका विरोध किया गया तथा उस निबंध को प्रकाशित न करने का सोसाइटी का निर्णय लिया।

1902 ― ‘लिनियन सोसायटी में व्याख्यान दिया।

प्रतिपादित सिद्धांत का बिना किसी विरोध के स्वीकृत।

वनस्पतियों पर अनुसंधान तेज कर दिया।

इसी वर्ष पहली पुस्तक प्रकाशित तथा भारत वापसी भी इसी वर्ष हुई।

1906 ― दूसरी पुस्तक प्रकाशित।

1907 ― तीसरी पुस्तक प्रकाशित।
इसी वर्ष यूरोप के दौरे पर तीसरी बार प्रस्थान

1908 ― अमेरिका यात्रा।
सुखद अनुभव।

1909 ― भारत वापसी।

1911 ― 14 अप्रैल से मैमनसिंह में ‘बंगीय साहित्य सम्मेलन’ की अध्यक्षता।

1912 ― कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा सम्माननीय डी.एस-सी. की उपाधि।

1913 ― चौथी पुस्तक प्रकाशित। अवकाश ग्रहण से पूर्व दो वर्ष का सेवाकाल बढ़ाया गया।

1914 ― ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, अमेरिका तथा जापान में व्याख्यान के लिए चौथी बार विदेश यात्रा।

1915 ― अवकाश ग्रहण पर एमिरेटस प्रोफेसर का सम्मान।

1916 ― ‘बंगीय साहित्य परिषद्’ के निर्विरोध अध्यक्ष।

1917 ― सर की उपाधि से सम्मानित।

बोस इंस्टिट्यूशन का उद्घाटन दोनों (30 नवंबर को)।

1919 ― नवंबर में पांचवी बार यूरोप यात्रा पर।

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1920 ― रॉयल सोसाइटी द्वारा फेलो स्वीकृत (पहले भारतीय) फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन तथा ऑस्ट्रिया की यात्रा।

1921― कोलकात्ता में नागरिक सम्मान।

1923 छठी यूरोपीय यात्रा पर।

1924 ― पाँचवी पुस्तक प्रकाशित।

1925 ― एक-एक ग्रंथ का फ्रेंच तथा जर्मन में अनुवाद प्रकाशित।

1926 ― ‘लीग ऑफ नेशंस’ का ‘कमेटी ऑन इंटेलेक्चुअल को-ऑपरेशन के सदस्य मनोनयन। छठी पुस्तक प्रकाशित।

1927 ― लाहौर में आयोजित ‘इंडियन साइंस कांग्रेस’ के अध्यक्ष बनाये गये। यूरोप की आठवीं यात्रा।

कुछ निबंधों का संकलन सातवें ग्रंथ में प्रकाशित।

आठवाँ ग्रंथ भी प्रकाशित ‘बोस इंस्टीट्यूट’ की दसवीं वर्षगाँठ।

1928 ― नौवीं विदेश यात्रा।

ऑस्ट्रिया आठवें ग्रंथ का जर्मन अनुवाद। 30 नवंबर को सप्ततिपूर्ति के उपलक्ष्य में सम्मान

नौवीं पुस्तक प्रकाशित।

1929 ― दसवीं विदेश यात्रा
दसवी पुस्तक प्रकाशित।

1931 ― श्री सयाजीराव गायकवाड़ पुरस्कार’ से सम्मानित।

14 अप्रैल को कलकत्ता महानगर पालिका की ओर से प्रकट सम्मान।

रवींद्रनाथ के सप्ततिपूर्ति समारोह समिति के अध्यक्ष।

1934 ― अखिल भारतीय ग्रामोद्योग समिति’ की परामर्श समिति में चयन।

1935 ― ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’ से संबंधों के 50 वर्ष के उपलक्ष्य में छात्रों की ओर से सम्मानित।

1937 ― 23 नवंबर को गिरिडीह में अंतिम सांस। कलकत्ता में अंतिम संस्कार।

अटल बिहारी वाजपेयी

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या-आधुनिक भारत के निर्माता

सरदार वल्लभ भाई पटेल : भारतीय लौहपुरूष

सुंदर पिचई – सफलताओं के पर्याय

डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

मेजर ध्यानचंद

जगदीश चंद्र बोस

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