यशपाल

यशपाल जीवन परिचय

यशपाल के जीवन परिचय और साहित्य की संपूर्ण जानकारी-

जन्म -3 दिसम्बर, 1903 ई.

जन्म भूमि – फ़िरोजपुर छावनी, पंजाब, भारत

मृत्यु -26 दिसंबर, 1976 ई.

अभिभावक- हीरालाल, प्रेमदेवी

कर्म-क्षेत्र -उपन्यासकार, लेखक, निबंधकार

नोट:- ये साम्यवादी या प्रगतिवादी उपन्यासकार है|

यशपाल साहित्य परिचय

यशपाल के जीवन परिचय और साहित्य की संपूर्ण जानकारी निम्न प्रकार है-

कहानी संग्रह

ज्ञानदान 1944 ई.

अभिशप्त 1944 ई.

तर्क का तूफ़ान 1943 ई.

भस्मावृत

चिनगारी 1946 ई.

वो दुनिया 1941 ई.

फूलों का कुर्ता 1949 ई.

धर्मयुद्ध 1950 ई.

उत्तराधिकारी 1951 ई.

चित्र का शीर्षक 1952 ई.

पिंजरे की उडान

उत्तमी की माँ

सच बोलने की भूल

तुमने क्यों कहा कि मैं सुन्दर हूँ

यशपाल की कहानियां : जीवन परिचय और साहित्य

चक्कर क्लब

परदा

आदमी और खच्चर

कुत्ते की पूँछ

यशपाल के उपन्यास : जीवन परिचय और साहित्य

दादा कामरेड 1941 ई.

देशद्रोही 1943 ई.

पार्टी कामरेड 1947 ई.

दिव्या 1945 ई.

मनुष्य के रूप 1949 ई.

अमिता 1956 ई.

झूठा सच-1960. (दो भाग प्रथम-1958, वतन और देश, द्वितीय-1960- देश का भविष्य)

मेरी तेरी उसकी बात-1974 (1942 की क्रांति पर आधारित)

अप्सरा का शाप 2010 ई.

यशपाल के निबंध संग्रह

न्याय का संघर्ष 1940 ई.

गाँधीवाद की शव परीक्षा-1941 ई.

चक्कर क्लब 1942 ई.

बात-बात में बात 1950 ई.

देखा, सोचा, समझा 1951 ई.

मार्क्सवाद

सिंहावलोकन -1951 (तीन खंड) आत्मकथा

संस्मरण – कुछ संस्मरण-1990

यशपाल के पुरस्कार व सम्मान

इनकी साहित्य सेवा तथा प्रतिभा से प्रभावित होकर रीवा सरकार ने ‘देव पुरस्कार’ (1955)

सोवियत लैंड सूचना विभाग ने ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ (1970)

हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ (1971)

भारत सरकार ने ‘पद्म भूषण’ की उपाधि प्रदान कर इनको सम्मानित किया है।

यशपाल संबंधी विशेष तथ्य

यह प्रगतिवादी उपन्यास परंपरा के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार माने जाते हैं।

झूठा सच देश विभाजन की त्रासदी पर आधारित इनका सर्वश्रेष्ट चर्चित उपन्यास है।

अपने उपन्यासों में इन्होंने नारी की समस्या को भी पूरी सहानुभूति से प्रस्तुत किया है।

इन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लिया ये सुखदेव और भगत सिंह के सहयोगी थे।क्रांतिकारी आंदोलन के कारण इन्हे जेल भी जाना पड़ा|

जेल से मुक्त होने के बाद इन्होंने ‘विप्लव’ मासिक पत्र निकाला।

इन्होने ‘पिंजरे की उड़ान’ और ‘वो दुनियाँ’ की कहानियाँ जेल में ही लिखी थी।

अंततः आशा है कि आपके लिए यशपाल का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय उपयोगी सिद्ध हुआ होगा।

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार

भारतेंदु हरिश्चंद्र

इसमें हम भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी और संपूर्ण साहित्य की जानकारी प्राप्त करेंगे जो प्रतियोगी परीक्षाओं एवं हिंदी साहित्य प्रेमियों हेतु ज्ञानवर्धक सिद्ध होने की आशा है।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी

पूरा नाम- बाबू भारतेन्दु हरिश्चंद्र

जन्म- 9 सितम्बर सन् 1850

जन्म भूमि- वाराणसी, उत्तर प्रदेश

मृत्यु- 6 जनवरी, सन् 1885

Note:- मात्र 35 वर्ष की अल्प आयु में ही इनका देहावसान हो गया था|

मृत्यु स्थान- वाराणसी, उत्तर प्रदेश

अभिभावक – बाबू गोपाल चन्द्र

कर्म भूमि वाराणसी

कर्म-क्षेत्र- पत्रकार, रचनाकार, साहित्यकार

उपाधी:- भारतेंदु

नोट:- डॉक्टर नगेंद्र के अनुसार उस समय के पत्रकारों एवं साहित्यकारों ने 1880 ईस्वी में इन्हें ‘भारतेंदु’ की उपाधि से सम्मानित किया|

Bhartendu Harishchandra
Bhartendu Harishchandra

भारतेंदु हरिश्चंद्र के सम्पादन कार्य

इनके द्वारा निम्नलिखित तीन पत्रिकाओं का संपादन किया गया:-

कवि वचन सुधा-1868 ई.– काशी से प्रकाशीत (मासिक,पाक्षिक,साप्ताहिक)

हरिश्चन्द्र चन्द्रिका- 1873 ई. (मासिक)- काशी से प्रकाशीत

आठ अंक तक यह ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ नाम से तथा ‘नवें’ अंक से इसका नाम ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ रखा गया|

हिंदी गद्य का ठीक परिष्कृत रूप इसी ‘चंद्रिका’ में प्रकट हुआ|

3. बाला-बोधिनी- 1874 ई. (मासिक)- काशी से प्रकाशीत – यह स्त्री शिक्षा सें संबंधित पत्रिका मानी जाती है|

भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएं

इनकी कुल रचनाओ की संख्या 175 के लगभग है-

नाट्य रचनाएं:-कुल 17 है जिनमे ‘आठ’ अनूदित एवं ‘नौ’ मौलिक नाटक है-

भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनूदित नाटक

विद्यासुंदर- 1868 ई.- यह संस्कृत नाटक “चौर पंचाशिका” के बंगला संस्करण का हिन्दी अनुवाद है|

रत्नावली- 1868 ई.- यह संस्कृत नाटिका ‘रत्नावली’ का हिंदी अनुवाद है|

पाखंड-विडंबन- 1872 ई.- यह संस्कृत में ‘कृष्णमिश्र’ द्वारा रचित ‘प्रबोधचन्द्रोदय’ नाटक के तीसरे अंक का हिंदी अनुवाद है|

धनंजय विजय- 1873 ई.- यह संस्कृत के ‘कांचन’ कवि द्वारा रचित ‘धनंजय विजय’ नाटक का हिंदी अनुवाद है

कर्पुरमंजरी- 1875 ई.- यह ‘सट्टक’ श्रेणी का नाटक संस्कृत के ‘काचन’ कवि के नाटक का अनुवाद|

भारत जननी- 1877 ई.- इनका गीतिनाट्य है जो संस्कृत से हिंदी में अनुवादित

मुद्राराक्षस- 1878 ई.- विशाखादत्त के संस्कृत नाटक का अनुवाद है|

दुर्लभबंधु-1880 ई.- यह अग्रेजी नाटककार ‘शेक्सपियर’ के ‘मर्चेट ऑव् वेनिस’ का हिंदी अनुवाद है|

Trik :- विद्या रत्न पाकर धनंजय कपुर ने भारत मुद्रा दुर्लभ की|

मौलिक नाटक- नौ

वैदिक हिंसा हिंसा न भवति- 1873 ई.- प्रहसन – इसमे पशुबलि प्रथा का विरोध किया गया है|

सत्य हरिश्चन्द्र- 1875 ई.- असत्य पर सत्य की विजय का वर्णन|

श्री चन्द्रावली नाटिका- 1876 ई. – प्रेम भक्ति का आदर्श प्रस्तुत किया गया है|

विषस्य विषमौषधम्- 1876 ई.- भाण- यह देशी राजाओं की कुचक्रपूर्ण परिस्थिति दिखाने के लिए रचा गया था|

भारतदुर्दशा- 1880 ई.- नाट्यरासक

नीलदेवी- 1881 ई.- गीतिरूपक

अंधेर नगरी- 1881 ई.- प्रहसन (छ: दृश्य) भ्रष्ट शासन तंत्र पर व्यंग्य किया गया है|

प्रेम जोगिनी- 1875 ई.– तीर्थ स्थानों पर होनें वाले कुकृत्यों का चित्रण किया गया है|

सती प्रताप- 1883 ई.यह इनका अधुरा नाटक है बाद में ‘ राधाकृष्णदास’ ने पुरा किया|

भारतेंदु हरिश्चंद्र की काव्यात्मक रचनाएं

इनकी कुल काव्य रचना 70 मानी जाती है जिनमे कुछ प्रसिद्ध रचनाएं:-

प्रेममालिका- 1871

प्रेमसरोवर-1873

प्रेमपचासा

प्रेमफुलवारी-1875

प्रेममाधुरी-1875

प्रेमतरंग

प्रेम प्रलाप

विनय प्रेम पचासा

वर्षा- विनोद-1880

गीत गोविंदानंद

वेणु गीत -1884

मधु मुकुल

बकरी विलाप

दशरथ विलाप

फूलों का गुच्छा- 1882

प्रबोधिनी

सतसई सिंगार

उत्तरार्द्ध भक्तमाल-1877

रामलीला

दानलीला

तन्मय लीला

कार्तिक स्नान

वैशाख महात्म्य

प्रेमाश्रुवर्षण

होली

देवी छद्म लीला

रानी छद्म लीला

संस्कृत लावनी

मुंह में दिखावनी

उर्दू का स्यापा

श्री सर्वोतम स्तोत्र

नये जमाने की मुकरी

बंदरसभा

विजय-वल्लरी- 1881

रिपनाष्टक

भारत-भिक्षा- 1881

विजयिनी विजय वैजयंति- 1882

नोट- इनकी ‘प्रबोधनी’ रचना विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की प्रत्यक्ष प्रेरणा देने वाली रचना है|

‘दशरथ विलाप’ एवं ‘फूलों का गुच्छा’ रचनाओं में ब्रजभाषा के स्थान पर ‘खड़ी बोली हिंदी’ का प्रयोग हुआ है|

इनकी सभी काव्य रचनाओं को ‘भारतेंदु ग्रंथावली’ के प्रथम भाग में संकलित किया गया है|

‘देवी छद्म लीला’, ‘तन्मय लीला’ आदि में कृष्ण के विभिन्न रूपों को प्रस्तुत किया गया है|

भारतेंदु हरिश्चंद्र के उपन्यास

हम्मीर हठ

सुलोचना

रामलीला

सीलावती

सावित्री चरित्र

भारतेंदु हरिश्चंद्र के निबंध

कुछ आप बीती कुछ जग बीती

सबै जाति गोपाल की

मित्रता

सूर्योदय

जयदेव

बंग भाषा की कविता

भारतेंदु हरिश्चंद्र के इतिहास ग्रंथ

कश्मीर कुसुम

बादशाह

विकिपीडिया लिंक- भारतेंदु हरिश्चंद्र

अंततः हम आशा करते हैं कि यह भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी और संपूर्ण साहित्य की जानकारी प्रतियोगी परीक्षाओं एवं हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए ज्ञानवर्धक होगी।

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार

सरदार वल्लभ भाई पटेल

भारतीय लौहपुरूष : सरदार वल्लभ भाई पटेल

सरदार वल्लभ भाई पटेल, जीवनी, योगदान, शिक्षा, स्टेच्यू आॅफ यूनिटी, भारत का एकीकरण एवं स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी आदि पूरी जानकारी।

सरदार सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 गुजरात के नाडियाद जिले के करमसद गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था।

उनके पिता का नाम झवेर भाई और माता का नाम लाडबा देवी था।

सरदार पटेल अपने तीन भाई बहनों में सबसे छोटे और चौथे नंबर पर थे।

सरदार वल्लभ भाई पटेल | जीवनी | योगदान | स्टेच्यू आॅफ यूनिटी | Statue of Unity | भारत का एकीकरण | स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी |
Sardar Vallabh Bhai Patel

सरदार वल्लभ भाई पटेल : शिक्षा

पटेल जी की प्रारंभिक शिक्षा नादियाड में हुई।

प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के बाद आप बड़ौदा के हाई स्कूल में अध्ययन करने के लिए आये।

विद्यालय में सरदार पटेल पढ़ाई-लिखाई में एक औसत दर्जे के छात्र थे।

मैट्रिक में वह बिल्कुल साधारण छात्रों की तरह ही पास हुए।

इससे आगे की शिक्षा दिला पाना उनके पिता के लिए संभव नहीं था इसलिए मैट्रिक पास कर लेने के बाद वल्लभभाई ने अपने बूते पर कुछ करने का सोचा और गोधरा में मुख्तारी का काम शुरू कर दिया।

वह बैरिस्टर बनना चाहते थे।

किन्तु जब तक समय और परिस्थितियाँ अनुकूल न हों, तब तक के लिए उन्होंने प्रतीक्षा करना उचित समझा।

नोबेल पुरस्कार-2020 एवं नोबेल पुरस्कार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

कुछ दिनों तक गोधरा में मुख्तारी करने के बाद वल्लभभाई बोरसद चले आए और फ़ौजदारी मुकदमों में वकालत करने लगे जहां उन्हें अत्यधिक सफलता मिली।

उन्होंने इतना धन एकत्र कर लिया कि विलायत जा सकते थे।

उन्होंने पहले अपने बड़े भाई को विलायत भेजा।

उनके लौटने के बाद यह स्वयं विलायत गये और उस समय पर अपनी बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी कर भारत लौट आए।

सरदार वल्लभ भाई पटेल : स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी

पहले पहल सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की अहिंसा की नीति को बेकार की बातें मानते थे,

परंतु गांधी जी से मिलने के बाद उनसे प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था।

पहले पहल गोधरा में एक राजनीतिक सम्मेलन में बेगार प्रथा को हटाने के सम्बन्ध में गाँधीजी और पटेल का साथ हुआ था।

बेगार प्रथा को हटाने के लिए एक समिति बनाई गयी थी।

उस कमेटी के मंत्री वल्लभभाई चुने गये थे पटेल ने कुछ दिनों में बेगार प्रथा को समाप्त करवा दिया।

खेड़ा आन्दोलन

1918 में खेड़ा क्षेत्र सूखे की चपेट में था और वहां के किसानों ने अंग्रेजी सरकार से कर में राहत देने की मांग की।

पर अंग्रेज सरकार ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया, तो सरदार पटेल, महात्मा गांधी और अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें कर न देने के लिए प्ररित किया।

अंत में सरकार को झुकना पड़ा और किसानों को कर में राहत दे दी गई।

सरदार की उपाधि

सरदार पटेल को सरदार नाम, बारडोली सत्याग्रह के दौरान मिला, एक बार वल्लभभाई ने अपनी ओर संकेत करते हुए कहा था “बारडोली में केवल एक ही सरदार है, उसकी आज्ञा का पालन सब लोग करते हैं।”

बात सच थी, फिर भी कहीं मजाक में कही गयी थी।

तब से ही वह सरदार कहलाने लगे। यह उपनाम उनके नाम के साथ सदा के लिए जुड़ गया।

योगदान

असहयोग आंदोलन के समय उन्होंने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल से निकाल लिया।

उन्होंने गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की और इसके लिए दस लाख रुपये भी एकत्रित किए।

1922 में गांधी जी को 6 साल की जेल हो गयी। गांधीजी की अनुपस्थिति में गुजरात में पटेल जी ने ही राजनीतिक आंदोलन का संचालन किया। 930 में राजनीतिक कारणों से सरदार पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें तीस महीने की सजा हुई।

कांग्रेस के अध्यक्ष

जेल से बाहर आते ही, 1931 में, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कराची अधिवेशन में, पटेल अध्यक्ष चुने गए।

बोरसद के सत्याग्रह और नागपुर के झंडा सत्याग्रह में उन्हें अपार सफलता प्राप्त हुई।

भारत का एकीकरण

स्वतंत्रता के समय भारत में लगभग 600 (562) देसी रियासतें थीं।

इनका क्षेत्रफल भारत का 40 प्रतिशत था।

देश की आजादी के साथ ही ये रियासतें भी अंग्रेजों से आजाद हो गई और अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखना चाहती थी।

सरदार पटेल और वीपी मेनन के समझाने बुझाने के परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा।

जूनागढ सौराष्ट्र के पास एक छोटी रियासत थी और चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी।

वह पाकिस्तान के समीप नहीं थी।

वहाँ के नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी।

राज्य की अधिकांश जनता हिंदू थी और भारत विलय चाहती थी।

नवाब के विरुद्ध बहुत विरोध हुआ तो भारतीय सेना जूनागढ़ में प्रवेश कर गयी।

नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया और 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ भारत में मिल गया।

फरवरी 1948 में वहाँ जनमत संग्रह कराया गया, जो भारत में विलय के पक्ष में रहा।

हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी, जो चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी।

वहाँ के निजाम ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना बढ़ाने लगा।

वह ढेर सारे हथियार आयात करता रहा। पटेल चिंतित हो उठे।

अन्ततः भारतीय सेना 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद में प्रवेश कर गयी।

तीन दिनों के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और नवंबर 1948 में भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

अनुच्छेद 370 और 35(अ) समाप्त

नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तरराष्ट्रीय समस्या है।

कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गये और अलगाववादी ताकतों के कारण कश्मीर की समस्या दिनोदिन बढ़ती गयी।

अंततोगत्वा 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री मोदी जी और गृहमंत्री अमित शाह जी के प्रयास से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 और 35(अ) समाप्त हुआ।

कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया और सरदार पटेल का भारत को अखण्ड बनाने का स्वप्न साकार हुआ।

31 अक्टूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केन्द्र शासित प्रेदश अस्तित्व में आये।

अब जम्मू-कश्मीर केन्द्र के अधीन रहेगा और भारत के सभी कानून वहाँ लागू होंगे।

पटेल जी को कृतज्ञ राष्ट्र की यह सच्ची श्रद्धांजलि है।

आजादी के बाद ज्यादातर प्रांतीय समितियां सरदार पटेल के पक्ष में थीं।

गांधी जी की इच्छा थी, इसलिए सरदार पटेल ने खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से दूर रखा और जवाहर लाल नेहरू को समर्थन दिया।

दो अगस्त 1946 को पहली बार केंद्र में बनी लोकप्रिय सरकार में उन्हें गृहमंत्री और सूचना विभाग के मंत्री बनाया गया।

स्वतंत्रता के बाद उन्हें पहले की भांति गृह और सूचना विभाग में मंत्री बनाया गया तथा उपप्रधानमंत्री का पद सौंपा गया, जिसके बाद उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों तो भारत में शामिल करना था।

सरदार वल्लभ भाई पटेल : भारत का लौह पुरूष, भारत का बिस्मार्क और बर्फ से ढका हुआ ज्वालामुखी

आजादी के समय ऐसी लगभग 600 रियासतें थी इस कार्य को उन्होंने बगैर किसी बड़े लड़ाई झगड़े के किया।

परंतु हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए सेना भेजनी पड़ी।

चूंकि भारत के एकीकरण में सरदार पटेल का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण था, इसलिए उन्हें भारत का लौह पुरूष और भारत का बिस्मार्क कहा गया।

सरदार पटेल शक्ति के पुंज थे। विपत्ति के सामने उनके इरादे चट्टान की भांति अजय हो जाते थे।

मौलाना शौकत अली ने उन्हें बर्फ से ढका हुआ ज्वालामुखी कहा है।

उनके लिए इससे अच्छी दूसरी उपमा ढूंढ पाना कठिन है।

15 दिसंबर 1950 को लौहपुरुष सदा के लिए चिरनिद्रा में सो गये।

सरदार वल्लभ भाई पटेल का सम्मान

अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र रखा गया है।

गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय

सन 1991 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित

भारत के राजनीतिक एकीकरण के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए उनके जनमतिथि 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस में मनाया जाता है।

इसका आरम्भ भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने सन 2014 में किया।

इसी दिन को राष्ट्रीय अखंडता दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

इस दिन राष्ट्रीय एकता के लिए ‘रन फॉर यूनिटी’ का संपूर्ण देश में आयोजन किया जाता है।

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

240 मीटर ऊँची इस प्रतिमा का आधार 58 मीटर का है।

मूर्ति की ऊँचाई 182 मीटर है, जो स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुनी ऊँची है।

31 अक्टूबर 2013 को सरदार पटेल की 137वीं जयंती के अवसर पर गुजरात के तात्कालिक मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार पटेल के एक नए स्मारक का शिलान्यास किया।

यहाँ लौहे से निर्मित सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक विशाल प्रतिमा लगाने का निश्चय किया गया, अतः इस स्मारक का नाम ‘एकता की मूर्ति’ (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है।

यह प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप ‘साधू बेट’ पर स्थापित किया गया है जो केवाडिया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है।

2018 में तैयार इस प्रतिमा को प्रधानमंत्री मोदी जी ने 31 अक्टूबर 2018 को राष्ट्र को समर्पित किया।

यह प्रतिमा 5 वर्षों में लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई है।

ऐसे थे अपने देश के लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल।

सरदार वल्लभ भाई पटेल, जीवनी, योगदान, शिक्षा, स्टेच्यू आॅफ यूनिटी, भारत का एकीकरण एवं स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी आदि पूरी जानकारी।

Nobel Prize 2020

Nobel Prize-2020

Nobel Prize की ऐतिहासिक पृष्ठभूभि एवं Nobel Prize-2020 की पूरी सूची।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

नोबेल फाउण्डेशन द्वारा स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में वर्ष 1901 में शुरू किया गया। यह शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार है। इस पुरस्कार के रूप में 10 लाख डालर की राशि के साथ 23 कैरेट सोने का पदक, तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।

व्यापक मानव हित की आकांक्षा से प्रेरित होकर अल्फ्रेड नोबेल अपनी संपत्ति का उपयोग एक न्यास (trust) स्थापित करने में किया, जिससे प्रति वर्ष (1) भौतिकी, (2) रसायन, (3) शरीर-क्रिया-विज्ञान वा चिकित्सा, (4) आदर्शवादी साहित्य तथा (5) विश्वशांति के क्षेत्रों में सर्वोत्तम कार्य करने वालों व्यक्ति, व्यक्तियों या संस्थाओं को पुरस्कृत किया जाता है।

ये पुरस्कार नोबेल पुरस्कार कहलाते हैं। सन् 1901 से नोबेल पुरस्कार का देना आरंभ हुआ है। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार 1960 में दिए गए जाने शुरू हुए। शांति के लिए नोबेल पुरस्कार नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में दिया जाता है। शेष सभी नोबेल पुरस्कार स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में स्वीडन के राजा के हाथों से दिए जाते हैं।

कौन है अलफ्रेड बर्नार्ड नोबेल

अल्फ्रेड बर्नार्ड नोबेल का जन्म बाल्टिक सागर के किनारे बसे स्वीडन के स्टॉकहोम नामक शहर में हुआ था।

इनके पिता सन् 1842 से सेंट पीटर्सबर्ग (रूस) में परिवार सहित रहने लगे। यहाँ वे रूस की सरकार के लिए खेती के औजारों के सिवाय आग्नेयास्त्र, सुरंगें (mines) और तारपीडो के निर्माण में लगे रहे।

अल्फ्रेड नोबेल ने कुल 355 आविष्कार किए जिनमें 1867 में किया गया डायनामाइट का आविष्कार भी शामिल है।

 

Nobel Prize-2020 पूरी सूची
Nobel Prize-2020 पूरी सूची

पूरी सूची Nobel Prize-2020

हम पढ रहे हैं Nobel Prize की ऐतिहासिक पृष्ठभूभि एवं Nobel Prize-2020 की पूरी सूची।

1. चिकित्सा के क्षेत्र में :

खोज – “हेपेटाइटिस-सी वायरस की खोज”

हार्वे अल्‍टर (Harvey Alter) – अमेरिका

माइकल हॉफटन (Michael Houghton) – ब्रिटेन

चार्ल्‍स राइस ( Charles Rice) – अमेरिका

2. भौतिकी के क्षेत्र में :

खोज – “ब्लैक होल से संबंधित खोज के लिए”

रोजर पेनरोज (Roger Penrose) – ब्रिटेन

रेइनहार्ड गेंजेल (Reinhard Genzel) – जर्मनी

एंड्रिया घेज (Andrea Ghez) – अमेरिका

3. रसायन के क्षेत्र में :

खोज – “जीनोम एडिटिंग नई पद्धति खोजने के लिए”

इम्मैन्युअल शार्पेंची (Emmanuelle Charpentier) – फ्रांस

जेनफिर डाउडना (Jennifer A. Doudna) – अमेरिका

4.शांति के क्षेत्र में :

उपलब्धि – “विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme) को दुनिया भर मे भूखे लोगों की मदद करने के लिये दिया जाएगा

इसका मुख्यालय इटली की राजधानी रोम स्थित है।

विश्व खाद्य कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय संगठन है जो भूखे लोगों को भोजन उपलब्ध कराता है |

5. साहित्य के क्षेत्र में :

अमेरिकी कवयित्री लुइज ग्लुक को

ग्लुक ने 1968 में ‘फर्स्टबोर्न’ शीर्षक से अपने काव्य संग्रह की शुरुआत की |

यह साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतने वाली 16 वीं महिला हैं और पिछले दशक में ऑलगा टोकाचुर्क, गैलेक्सी विच (2015) और एलिस मुनरो (2013) के बाद साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतने वाली चौथी महिला है।

6. अर्थशास्त्र के क्षेत्र में :-

उपलब्धि – “ऑक्शन थ्योरी (नीलामी सिद्धान्त) में सुधार और नीलामी के नये तरीकों की खोज करने के कारण”

पॉल आर. मिलग्रोम Paul Milgrom – अमेरिका

रोबर्ट बी. विल्सन Robert Wilson – अमेरिका

वर्ष 2020 में कुल ग्यारह व्यक्तियों तथा एक संस्था को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसमें सर्वाधिक सात अमेरिकी नागरिक हैं।

ब्रिटेन के दो फ्रांस के एक और जर्मनी के एक नागरिक को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

हमने जाना Nobel Prize की ऐतिहासिक पृष्ठभूभि एवं Nobel Prize-2020 की पूरी सूची।

संपूर्ण उपर्युक्त मैटर की पीडीएफ प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए

संस्मरण और रेखाचित्र- https://thehindipage.com/sansmaran-aur-rekhachitra/sansmaran-aur-rekhachitra/

डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम APJ Abdul Kalam

डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जीवन परिचय

डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम APJ Abdul Kalaam | जीवन परिचय | Biography | चर्चित पुस्तकें | Books | मिसाइल मैन | World Student Day |

मिसाइल मैन, भारत रत्न, भारत के प्रथम नागरिक (राष्ट्रपति), परमाणु वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, विद्यार्थी, आदि कई विरुदों से विभूषित डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम APJ Abdul Kalam (डॉ अवुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम) भारतीय गणतंत्र के 11वें राष्ट्रपति थे। इन सबके बावूजद भी कलाम ने स्वयं को हमेशा एक ‘लर्नर’ ही माना।

डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम APJ Abdul Kalaam | जीवन परिचय | Biography | चर्चित पुस्तकें | Books | मिसाइल मैन | World Student Day |
डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जीवन परिचय शिक्षा वैज्ञानिक जीवन राष्ट्रपति जीवन चर्चित पुस्तकें युवाओं के लिए संदेश

प्रारंभिक जीवन : डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

राष्ट्रपति बनने तक के सफर में इन्होंने खूब परिश्रम किया। बचपन में पढ़ाई करने के लिए अखबार भी बांटे और अन्य काम भी किये।

अबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के धनुषकोडी (रामेश्वरम) शहर में 15 अक्टूबर 1931 को हुआ।

उनके पिता जैनुलाब्दीन संयुक्त परिवार में रहते थे।

इनके पाँच बटे पाँच बेटियां थी। जिस घर में इनका परिवार रहता था उसमें तीन परिवार रहते थे।

कलाम के पिता की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी।

वे मछुआरों को नाव किराए पर देते थे और उसी से अपना गुजर-बसर चलाते थे।

कलाम भी बचपन से ही परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए छोटे-मोटे काम करते थे, जिससे अखबार वितरण का काम प्रमुख है।

इनके पिता अधिक पढ़े लिखे नहीं पढ़ाई के महत्त्व को बहुत अच्छी तरह से जानते थे इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को संस्कारित किया।

पिता के संस्कारों अब्दुल कलाम पर गहरा प्रभाव पड़ा जो उनके चरित्र में नजर आता है।

इनकी माता एक साधारण गृहणी थी परंतु मानवता में उनकी गहरी आस्था थी जिसके साफ झलक अब्दुल कलाम के व्यक्तित्व मैं झलकती है।

शिक्षा दीक्षा

अब्दुल कलाम ने अपनी प्राथमिक शिक्षा की शुरुआत रामेश्वरम के प्राथमिक विद्यालय शुरु की।

पढ़ाई के दिनों में वे सामान्य विद्यार्थी थे, लेकिन उनमें सीखने की तीव्र भूख थी।

रामनाथपुरम स्वार्ट्ज मैट्रिकुलेशन स्कूल से स्कूल की पढ़ाई पूरी कर अब्दुल कलाम ने तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज में प्रवेश किया और 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

1955 उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग ब्रांच में प्रवेश लिया तथा 1960 में अपनी पढ़ाई पूरी की।

वैज्ञानिक जीवन

एक वैज्ञानिक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने पर स्वयं श्री कलाम ने अपनी पुस्तक में लिखा कि – “यह मेरा पहला चरण था; जिसमें मैंने तीन महान शिक्षकों- विक्रम साराभाई, प्रोफेसर सतीश धवन और ब्रह्म प्रकाश से नेतृत्व सीखा।

मेरे लिए यह सीखने और ज्ञान के अधिग्रहण के समय था।”

मद्रास से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद से कलाम रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में वैज्ञानिकों के पद पर कार्य करना शुरू किया।

DRDO में कलाम ने एक छोटा होवरक्राफ्ट डिजाइन किया था तथा भारतीय सेना के लिए एक छोटा हेलीकॉप्टर बनाया।

DRDO में वे अपने काम से पूर्णतया संतुष्ट नहीं थे।

1969 में उनका स्थानांतरण हो गया और वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में आ गए।

यहां उनकी टीम ने देश का पहला स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित उपग्रह प्रक्षेपण यान तैयार किया और रोहिणी नामक उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में सफलता प्राप्त की।

IGMDP का शुभारंभ और मिसाइलमैन

1980 में भारतीय रक्षा मंत्रालय ने डीआरडीओ के नेतृत्व में अन्य मंत्रालयों के साथ मिलकर इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) का शुभारंभ किया।

इस परियोजना की जिम्मेदारी कलाम को दी गई।

उन्हीं के नेतृत्व में देश ने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों का सफल परीक्षण किया।

इसी के साथ डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम “मिसाइल मैन” बन गये।

श्री कलाम 1992 से 1999 तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के सचिव तथा प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे।

भारत गौरव पोकरण परमाणु परीक्षण

2000 वर्षों के इतिहास में भारत पर 600 वर्षों तक अन्य लोगों ने शासन किया है।

यदि आप विकास चाहते हैं तो देश में शांति की स्थिति होना आवश्यक है और शांति की स्थापना शक्ति से होती है।

इसी कारण प्रक्षेपास्त्रों को विकसित किया गया ताकि देश शक्ति सम्पन्न हो।

अपनी सोच के कारण डॉ कलाम भारत को हमेशा परमाणु शक्ति संपन्न करने में प्रयासरत रहे।

2 मई 1998 में राजस्थान के पोकरण में भारत द्वारा किए गए दूसरे सफल परमाणु परीक्षण करने वाली टीम के नायक भी श्री कलाम ही थे।

बहुत ही गुप्त रूप से किए गए इस परीक्षण में भारत को एकाएक परमाणु संपन्न राष्ट्र घोषित कर दिया।

एक बार पुनः भारत को विश्व शक्ति बनाने की ओर यह पहला कदम था।

देश को परमाणु शक्ति बनाने में कलाम की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही।

कलाम राजू स्टेंट

वर्ष 1998 मैं कलाम ने जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट डॉ सोमा राजू के साथ मिलकर बहुत कम खर्च में कोरोनरी स्टेंट विकसित किया, जिसका नाम कलाम राजू स्टेंट रखा गया।

इसी प्रकार उक्त दोनों महानुभावों ने ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य देखभाल के लिए टेबलेट पीसी भी डिजाइन किया इसका नाम भी इन्हीं दोनों के नाम पर कलाम राजू टेबलेट रखा गया।

राष्ट्रपति

25 जुलाई 2002 में भारतीय गणतंत्र के दसवें राष्ट्रपति के रूप में डॉ के आर नारायणन का कार्यकाल समाप्त होने वाला था।

देश के नये राष्ट्रपति के चुनाव की तैयारियां शुरू हुई।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली तात्कालिक एन डी ए सरकार ने कलाम को अपना उम्मीदवार घोषित किया

कांग्रेस का भी समर्थन मिला।

18 जुलाई 2002 को वे भारत के 11 राष्ट्रपति चुने गए तथा इनका पाँच वर्षीय गरिमामयी कार्यकाल 25 जुलाई 2007 को समाप्त हुआ।

राष्ट्रपति पद से मुक्ति के बाद

25 जुलाई 2007 को राष्ट्रपति के दायित्व से मुक्त होने के बाद आप सार्वजनिक जीवन में लौट आए।

कलाम ने भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलांग, भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद, भारतीय प्रबंध संस्थान इंदौर, भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु के मानद फेलो तथा विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।

इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान तिरुवंतपुरम के कुलाधिपति, अन्ना विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर बने।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, अन्ना विश्वविद्यालय तथा अंतरराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान हैदराबाद में सूचना प्रौद्योगिकी विषय पढा़या।

अन्य अनेक विश्वविद्यालय तथा संस्थाओं में सैकड़ों व्याख्यान दिए।

कलाम की युवाओं के लिए दस बिंदुओं की शपथ : डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम APJ Abdul Kalaam

मैं अपनी शिक्षा पूरी करूगा व कार्य समर्पण के साथ करूंगा और मैं इनमें श्रेष्ठ (अग्रणी) बनूंगा।

अब से आगे बढ़कर, मैं कल से कम से कम दस लोगों को पढ़ना और लिखना सिखाउंगा. जो पढ़ लिख नहीं सकते।

कम से कम दस पौधे लगाऊंगा और पूरी जिम्मेदारी से वृद्धि करूँगा।

मैं निश्चित रूप से अपने मुसीबत में पड़े साथियों के दु:ख कम करने की कोशिश करूंगा।

ग्रामीण या शहरी क्षेत्रों की यात्रा करूंगा तथा कम से कम पांच लोगों को नशा तथा जुए से पूर्णतः मुक्ति दिलाऊंगा।

मैं ईमानदार रहूंगा और भ्रष्टाचार से मुक्त समाज बनाने की पूरी कोशिश करूंगा।

एक सजग नागरिक बनने का कार्य करूंगा तथा अपने परिवार को कर्मठ बनाऊंगा।

मैं किसी धर्म, जाति या भाषा में अंतर का समर्थन नहीं करूगा।

हमेशा ही मानसिक और शारीरिक चुनौती प्राप्त विकलांगों से मित्रवत् रहूंगा तथा वे हमारी तरह सामान्य महसूस कर सके ऐसा बनाने के लिए कठिन परिश्रम करूँगा।

मैं अपने देश तथा अपने देश के लोगों की सफलता पर गर्वोत्सव मनाऊंगा।

डॉ. कलाम की उपलब्धियां : डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

वर्ष 1962 में स्वदेशी मिसाईल एस एलवी-3 का निर्माण

जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी के समीप स्थापित करना

वर्ष 1998 में पोखरण में न्यूक्लियर बम को परमाणु ऊर्जा के साथ मिलाकर विस्फोट किया

और इसके साथ ही भारत ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अपना स्थान हासिल किया।

चर्चित पुस्तकें : डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम APJ Abdul Kalaam

1997-2007

इंडिया 2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम (India 2020: A Vision for the New Millennium) प्रकाशन वर्ष: 1998

विंग्स ऑफ फायर: एन ऑटोबायोग्राफी (Wings of Fire: An Autobiography) प्रकाशन वर्ष: 1999

इगनाइटेड माइंड्स: अनलीजिंग द पॉवर विदिन इंडिया (Ignited Minds: Unleasing the Power Within India) प्रकाशन वर्ष: 2002

द ल्यूमिनस स्पार्क्स: ए बायोग्राफी इन वर्स एंड कलर्स (The Luminous Sparks: A Biography in Verse and Colours) प्रकाशन वर्ष: 2004

गाइडिंग सोल्स: डायलॉग्स ऑन द पर्पस ऑफ लाइफ (Guiding Souls: Dialogues on the Purpose of Life) प्रकाशन वर्ष: 2005 सह-लेखक: अरूण तिवारी

मिशन ऑफ इंडिया: ए विजन ऑफ इंडियन यूथ (Mission of India: A Vision of Indian Youth) प्रकाशन वर्ष: 2005

इन्स्पायरिंग थॉट्स: कोटेशन सीरिज (Inspiring Thoughts: Quotation Series) प्रकाशन वर्ष: 2007

2011-2012

यू आर बोर्न टू ब्लॉसम: टेक माई जर्नी बियोंड (You Are Born to Blossom: Take My Journey Beyond) प्रकाशन वर्ष: 2011
सह-लेखक: अरूण तिवारी

द साइंटिफिक इंडियन: ए ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी गाइड टू द वर्ल्ड अराउंड अस (The Scientific India: A Twenty First Century Guide to the World Around Us) प्रकाशन वर्ष: 2011 सह-लेखक: वाई. एस. राजन

फेलियर टू सक्सेस: लीजेंडरी लाइव्स (Failure to Success: Legendry Lives) प्रकाशन वर्ष: 2011 सह-लेखक: अरूण तिवारी

टारगेट 3 बिलियन (Target 3 Billion) प्रकाशन वर्ष: 2011 सह-लेखक: श्रीजन पाल सिंह

यू आर यूनिक: स्केल न्यू हाइट्स बाई थॉट्स एंड एक्शंस (You Are Unique: Scale New Heights by Thoughts and Actions)
प्रकाशन वर्ष: 2012 सह-लेखक: एस. कोहली पूनम

टर्निंग पॉइंट्स: ए जर्नी थ्रू चैलेंजेस (Turning Points: A Journey Through Challenges) प्रकाशन वर्ष: 2012

2013-2015

इन्डोमिटेबल स्प्रिट (Indomitable Spirit) प्रकाशन वर्ष: 2013

स्प्रिट ऑफ इंडिया (Spirit of India) प्रकाशन वर्ष: 2013 भारतीय पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्तकर्ताओं की सूची

थॉट्स फॉर चेंज: वी कैन डू इट (Thoughts for Change: We Can Do It) प्रकाशन वर्ष: 2013 सह-लेखक: ए. सिवाथानु पिल्लई

माई जर्नी: ट्रांसफॉर्मिंग ड्रीम्स इन्टू एक्शंस (My Journey: Transforming Dreams into Actions) प्रकाशन वर्ष: 2013

गवर्नेंस फॉर ग्रोथ इन इंडिया (Governance for Growth in India) प्रकाशन वर्ष: 2014

मैनीफेस्टो फॉर चेंज (Manifesto For Change) प्रकाशन वर्ष: 2014 सह-लेखक: वी. पोनराज

फोर्ज योर फ्यूचर: केन्डिड, फोर्थराइट, इन्स्पायरिंग (Forge Your Future: Candid, Forthright, Inspiring) प्रकाशन वर्ष: 2014

बियॉन्ड 2020: ए विजन फॉर टुमोरोज इंडिया (Beyond 2020: A Vision for Tomorrow’s India) प्रकाशन वर्ष: 2014

द गायडिंग लाइट: ए सेलेक्शन ऑफ कोटेशन फ्रॉम माई फेवरेट बुक्स (The Guiding Light: A Selection of Quotations from My Favourite Books) प्रकाशन वर्ष: 2015

रिग्नाइटेड: साइंटिफिक पाथवेज टू ए ब्राइटर फ्यूचर (Reignited: Scientific Pathways to a Brighter Future) प्रकाशन वर्ष: 2015 सह-लेखक: श्रीजन पाल सिंह

द फैमिली एंड द नेशन (The Family and the Nation) प्रकाशन वर्ष: 2015 सह-लेखक: आचार्य महाप्रज्ञा

ट्रांसेडेंस माई स्प्रिचुअल एक्सपीरिएंसेज (Transcendence My Spiritual Experiences) प्रकाशन वर्ष: 2015 सह-लेखक: अरूण तिवारी

पुरस्कार, सम्मान एवं उपलब्धियां : डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम APJ Abdul Kalaam

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के 79 में जन्म दिवस पर संयुक्त राष्ट्र संघ विद्यार्थी ने दिवस मना कर उन्हें सम्मानित किया तथा उनके जन्मदिवस को विश्व विद्यार्थी दिवस घोषित किया। इसी दिन विश्व हाथ धुलाई दिवस भी मनाया जाता है।

1981 में, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया.

1990 में, पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.

1997 में, भारत रत्न जैसे सर्वाेच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया. भारत के सर्वाेच्च पद पर नियुक्ति से पहले भारत रत्न पाने वाले कलाम देश के केवल तीसरे राष्ट्रपति हैं. इससे पहले यह सर्वपल्ली राधाकृष्णन और जाकिर हुसैन के नाम है।

1997 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार

1998 में, वीर सावरकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

2000 में, अलवरस रिसर्च सेंटर, चेन्नई ने उन्हें रामानुजन पुरस्कार प्रदान किया.

2007 में, ब्रिटेन रॉयल सोसाइटी द्वारा किंग चार्ल्स द्वितीय मेडल से सम्मानित किया गया.

2008 में, उन्हें सिंगापुर के नान्यांग तकनीकी विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ इंजीनियरिंग (ऑनोरिस कौसा) की उपाधि प्रदान की गई थी.

2009 में, अमेरिका एएसएमई फाउंडेशन (ASME Foundation) द्वारा हूवर मेडल से सम्मानित किया गया

2010 में, वाटरलू विश्वविद्यालय ने डॉ. कलाम को डॉक्टर ऑफ इंजीनियरिंग के साथ सम्मानित किया.

2011 में, वह आईईईई (IEEE) के मानद सदस्य बने.

2013 में, उन्हें राष्ट्रीय अंतरिक्ष सोसाइटी द्वारा वॉन ब्रौन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

2014 में, एडिनबर्ग विश्वविद्यालय, ब्रिटेन द्वारा डॉक्टर ऑफ साइंस उपाधि से नवाजा गया था.

डॉ. कलाम लगभग 40 विश्वविद्यालयों के मानद डॉक्टरेट के प्राप्तकर्ता थे.

विश्व छात्र दिवस,  युवा पुनर्जागरण दिवस एवं डाकटिकट

2015 में, संयुक्त राष्ट्र ने डॉ. कलाम के जन्मदिन को “विश्व छात्र दिवस” ​​के रूप में मान्यता दी

डॉ. कलाम की मृत्यु के बाद, तमिलनाडु सरकार द्वारा 15 अक्टूबर जो कि उनका जन्म दिवस है को राज्य भर में युवा पुनर्जागरण दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई.

इसके अलावा, राज्य सरकार ने उनके नाम पर “डॉ एपीजे अब्दुल कलाम पुरस्कार” की स्थापना की.

इस पुरस्कार के तहत 8 ग्राम का स्वर्ण पदक और 5 लाख रुपये नगद दिया जाता है.

यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है, जो वैज्ञानिक विकास, मानविकी और छात्रों के कल्याण को बढ़ावा देने का काम करते हैं.

यही नहीं, 15 अक्टूबर, 2015 को डॉ. कलाम  के जन्म की 84वीं वर्षगांठ पर, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नई दिल्ली में डीआरडीओ भवन में डॉ. कलाम की याद में डाक टिकट जारी किया.

निधन : डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम APJ Abdul Kalaam

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जीवन पर्यंत क्रियाशील रहे। उनके जीवन में रुकना बेमानी था।

वे हमेशा तेज कदमों से चलते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके अंगरक्षकों को भी कई बार परेशानी का सामना करना पड़ता था।

27 जुलाई 2015 को जिस समय उनकी मृत्यु हुई उस समय भी वे आईआईएम शिलांग में व्याख्यान दे रहे थे।

वे वहीं मंच पर अचानक से गिर पड़े और गोलोक गमन किया।

अंत में हृदय से उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उन्हीं की कविता के साथ इस आलेख को संपन्न करता हूं –

ज्ञान का दीप जलाए रहूंगा,
हे भारतीय युवक, ज्ञानी-विज्ञानी,
मानवता के प्रेमी.
संकीर्ण तुच्छ लक्ष्य की लालसा पाप है, बड़े है, जिन्हें पूरा करने
के लिए, मैं बड़ी मेहनत करेगा,
मेरा भारत महान हो,
यह प्रेरणा का
भाव अमूल्य है.
इसी धरती दीप जलाऊंगा,
ज्ञान का दीप जलाए रखना,
जिससे मेरा भारत महान हो,
मेरा भारत महान हो।

डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जीवन परिचय, शिक्षा, वैज्ञानिक जीवन, राष्ट्रपति जीवन, चर्चित पुस्तकें, युवाओं के लिए संदेश, विश्व विद्यार्थी दिवस, विश्व हाथ धुलाई दिवस।

डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या – आधुनिक भारत के निर्माता

भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

सुंदर पिचई का जीनव परिचय (Biography of Sundar Pichai)

मेजर ध्यानचंद (हॉकी के जादूगर)

सिद्ध सरहपा

गोरखनाथ 

स्वयम्भू

महाकवि पुष्पदंत

महाकवि चंदबरदाई

मैथिल कोकिल विद्यापति

हिन्दी दिवस – 14 सितंबर

हिन्दी दिवस का इतिहास एवं उपलब्धियां

इस आलेख में हम हिन्दी दिवस का इतिहास एवं उपलब्धियां आदि के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करेंगे।

क्यों मनाया जाता है हिन्दी दिवस?

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिट्य न हिय को सूल।

अब जानते हैं हिन्दी दिवस का इतिहास-

इतिहास

1 मई 1910 में नागरी प्रचारिणी सभा काशी के तत्वावधान में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना प्रयाग में हुयी।

हिंदी साहित्य सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि का व्यापक प्रचार प्रसार करना।

हिंदी भाषा एवं देवनागरी लिपि का विकास राष्ट्रव्यापी संपर्क भाषा और लिपि के रूप में करना था।

सम्मेलन का अधिवेशन प्रतिवर्ष होता था।

वर्ष 1918 के अधिवेशन में महात्मा गांधी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में हिंदी को जन भाषा स्वीकार किया।

इसे राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की तथा कहा कि “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।”

स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी का व्यापक योगदान रहा।

उत्तर से दक्षिण को जोड़ने का काम हिंदी ने किया।

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अहिंदी भाषी स्वतंत्रता सेनानियों ने हिंदी सीखी तथा दूसरों को भी हिंदी सीखने के लिए प्रेरित किया।

हिन्दी दिवस - 14 सितंबर
हिन्दी दिवस – 14 सितंबर

स्वतंत्र्योत्तर स्थिति

स्वतंत्रता के पश्चात देश के सामने अनेक कठिनाइयां आयी जिनमें से भाषा और लिपि की भी एक समस्या थी।

14 सितंबर 1949 को गहन विचार-विमर्श एवं वाद-विवाद के बाद यह निर्णय लिया गया कि “संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतरराष्ट्रीय रूप होगा।”

उक्त निर्णय को भारत के संविधान के भाग 17 में अनुच्छेद 343 (1) में वर्णित किया गया है।

अन्य सांविधानिक प्रावधान

26 जनवरी 1950 को संविधान के लागू होने के साथ ही उक्त प्रावधान लागू हो गया।

किंतु अनुच्छेद 343 (2) में यह व्यवस्था भी थी कि संविधान के लागू होने के 15 वर्ष की अवधि तक अर्थात् सन् 1965 ईस्वी तक संघ के सभी सरकारी कार्यों के लिए अंग्रेजी का भी प्रयोग होता रहेगा।

वर्ष 1965 में 15 वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद भी अंग्रेजी में कामकाज जारी रहा।

1965 के बाद की स्थिति

26 जनवरी 1965 को भारतीय संसद में एक प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें यह कहा गया कि-

“हिंदी का सभी कार्यालयों में प्रयोग किया जाएगा लेकिन उसके साथ साथ अंग्रेजी का भी सह राजभाषा के रूप में उपयोग किया जाएगा।”

1967 के ‘भाषा संशोधन विधेयक’ में अंग्रेजी को अनिवार्य किया और हिंदी का कहीं जिक्र तक नहीं किया गया।

राजभाषा की स्थिति पर श्री शंकर दयाल सिंह ने लिखा है कि

“आजादी मिलने के बाद यह नहीं कहा गया कि अभी राष्ट्रध्वज तैयार नहीं है।

इसलिए ‘यूनियन जैक कुछ दिन तक फहराता रहे या अपने राष्ट्रगान का स्वर अभी परिचित नहीं है इसलिए ‘लांग लिव द किंग कुछ दिनों तक चलना चाहिए।

जब ऐसी बातें राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान के संबंध में नहीं हुई तो फिर राष्ट्रभाषा के संबंध में यह पक्षपातपूर्ण नीति क्यों लागू की गयी ?

इससे एक बात तो स्पष्ट दिखती है कि अपने संविधान निर्माताओं और उसे लागू करने वालों की नीयत हिन्दी के संबंध में साफ नहीं थी।

हिन्दी के संबंध में इस आश्वासन और समझौते का औचित्य क्या है ?

कोई भी प्रधानमंत्री संविधान से बड़ा नहीं होता, संविधान के तहत ही होता है ।

जब संविधान में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दे दिया गया तब फिर इस आश्वासन की जरूरत क्या है कि जब तक देश के सभी राज्य हिन्दी को न अपनाएँ तब तक वह राजभाषा नहीं होगी या अंग्रेजी इसके साथ-साथ चलेगी।”

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त श्री टी.एन. शेषन ने संसदीय राजभाषा समिति के पूर्व अध्यक्ष स्व. शंकर दयाल सिंह को लिखे एक पत्र में कहा था

“राष्ट्रभाषा हिन्दी की प्रतिष्ठा सर्वोपरि है और राष्ट्रीय एकता के प्रति सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बांधने वाली इस भाषा के प्रति हमें जाग्रत चिंतन से कार्य करना चाहिए।”

उपलब्धियां

अब जानते हैं उपलब्धियां-

बांग्ला भाषी केशव चंद्र सेन की प्रेरणा से गुजराती भाषी दयानंद सरस्वती ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना हिंदी में की, जबकि वे स्वयं संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे।

हिंदी साहित्य के विकास में अहिंदीभाषी क्षेत्र के विद्वानों, कवियों और लेखकों का अविस्मरणीय योगदान रहा है।

तेलुगु वल्लभाचार्य, तमिल रांगेय राघव, गुजराती अमृतलाल नागर, मराठी मुक्तिबोध, पंजाबी मोहन राकेश आदि कुछ उल्लेखनीय नाम है जिन्होंने हिंदी की विशेष सेवा की है, एक सकारात्मक संदेश दिया है।

आज के कंप्यूटर के युग में हिन्दी चहूँ ओर अपने पंख फैला रही है।

इंटरनेट के माध्यम से यह सर्वसुलभ हो रही है। संपूर्ण देश ही नहीं विदेश में भी इसकी पहचान बनी है।

विश्व के सौ से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन अध्यापन किया जा रहा है।

आज सभी विदेशी मोबाइल कंपनियां अपने मोबाइल में हिंदी भाषा अवश्य देती है।

गूगल ने भी हिंदी में अपने एप्लीकेशन तैयार किये है।

गूगल कीबोर्ड से आसानी से हिंदी टाइपिंग की जा सकती है।

ऑनलाइन शॉपिंग एप्लीकेशन ने अब हिंदी में शॉपिंग ऑप्शन देने शुरू कर दिए हैं।

विश्व में बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा हिंदी है।

हिंदी दिवस

हिंदी दुनिया की एकमात्र ऐसी भाषा है जिसकी सुरक्षा एवं देश के प्रति जागरूकता के दिवस मनाए जाने की आवश्यकता अनुभूति रही है।

हिंदीदिवस हिंदी को राजभाषा घोषित करने के साथ ही शुरू नहीं हुआ, बल्कि जब हिंदी प्रेमियों ने यह अनुभव किया कि हिंदी के लिए जो सांविधानिक प्रावधान किए गए हैं, उनको निष्ठापूर्वक लागू नहीं किया जा रहा है।

लोगों को जागरूक करने तथा हिंदी को अपना खोया गौरव लौटाने के लिए प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है चूंकि इसी दिन हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ था अतः इसी दिन हिंदी दिवस मनाया जाता है।

जब तक हिंदी को उसका सही अधिकार नहीं मिल जाता तब तक हिंदी दिवस की आवश्यकता रहेगी।

यह दिवस सत्ता लोलुप नेताओं के गालों पर करारा तमाचा है।

जिसकी गूंज प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हमें सुनाई देती है और हमसे प्रश्न करती है कि क्यों मुझे अपने ही घर में कोई अधिकार नहीं है?

हिंदी को उसका अधिकार और खोया हुआ सम्मान दिलाने के लिए अनेक प्रयास अभी तक हुए हैं लेकिन सत्ता लोलुप नेताओं ने मुट्ठी भर कोटे की मानसिकता के लोगों के साथ मिलकर 120 करोड़ भारतीयों की भावनाओं पर कुठाराघात किया है।

इस आलेख में हम जैसा पहले हिन्दी दिवस का इतिहास एवं उपलब्धियां जान चुके हैं। अब जानते हैं इससे संबंधित कथन-

हिंदी दिवस पर विचाराभिव्यक्ति करते हुए डॉ विनोद अग्निहोत्री लिखते हैं

“आजादी की लड़ाई में हिन्दी भारत में अंग्रेजी साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के खिलाफ स्वाधीनता संघर्ष की भाषा बन गयी थी।

आजादी के बाद हिन्दी भाषी एक ऐसी हीन ग्रंथि का शिकार होते चले गये।

हिन्दी उनके लिए एक ऐसी बूढ़ी मां की तरह है जो अपने ही घर के कोने में पड़ी है।”

डॉ अब्दुल बिस्मिल्लाह का कथन

“एक खास तरह का वर्ग है जो सभी महत्त्वपूर्ण जगहों को अपने हाथ में समेटे हुए हैं।

वह नहीं चाहता कि हिन्दी को सम्मानजनक स्थान मिले। फिर भी हिन्दी का विकास वे रोक नहीं पायेंगे।

हिन्दी का विकास विश्वविद्यालयों से नहीं, जनता के बीच से हो रहा है।

दुनिया में वही भाषा समृद्ध है जिसमें अधिक से अधिक दूसरी भाषाओं के शब्दों को खपा लेने की क्षमता है।

हिन्दी का विकास समितियों या कानून से संभव नहीं है, इसे जनता ही आगे बढ़ाएगी ।

यह सुखद बात है कि अब अहिन्दी प्रदेशों में भी हिन्दी खूब पढ़ी जा रही है।”

आशा है कि आपको यह आलेख हिन्दी दिवस का इतिहास एवं उपलब्धियां आदि के बारे में पूरी जानकारी मिली होगी।

विकिपीडिया लिंक हिन्दी दिवस- https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B8

सितम्बर माह के महत्त्वपूर्ण दिवस (Important Days of September)

अभिक्रमित अनुदेशन-हिन्दी शिक्षण विधियाँ

रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन-हिन्दी शिक्षण विधियाँ

हिन्दी शिक्षण विधियाँ-शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन (Branching Programmed Instruction)

हिन्दी शिक्षण विधियाँ-संगणक सह-अनुदेशन / कंप्यूटर आधारित अनुदेशन (Computer Assisted Instruction – CAI)

विसर्ग सन्धि Visarg Sandhi

विसर्ग संधि Visarg Sandhi

विसर्ग सन्धि Visarg Sandhi परिभाषा नियम प्रकार | सन्धि परिभाषा नियम प्रकार स्वर सन्धि व्यंजन सन्धि विसर्ग सन्धि उदाहरण एवं अपवाद | परीक्षोपयोगी जानकारी

सन्धि

परिभाषा- दो ध्वनियों (वर्णों) के परस्पर मेल को सन्धि कहते हैं। अर्थात् जब दो शब्द मिलते हैं तो प्रथम शब्द की अन्तिम ध्वनि (वर्ण) तथा मिलने वाले शब्द की प्रथम ध्वनि के मेल से जो विकार होता है उसे सन्धि कहते हैं।
ध्वनियों के मेल में स्वर के साथ स्वर (परम+ अर्थ)
स्वर के साथ व्यंजन (स्व+छंद)
व्यंजन के साथ व्यंजन (जगत्+विनोद), व्यंजन के साथ स्वर (जगत्+अम्बा)
विसर्ग के साथ स्वर (मनः+अनुकूल) तथा विसर्ग के साथ व्यंजन ( मनः+रंजन) का मेल हो सकता है।

विसर्ग सन्धि Visarg Sandhi के प्रकार

सन्धि तीन प्रकार की होती है

1. स्वर सन्धि

2. व्यंजन संधि

3. विसर्ग सन्धि

Visarg Sandhi विसर्ग सन्धि

विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन के मेल को विसर्ग संधि कहते हैं|

मनः + विनोद = मनोविनोद

अंतः + चेतना = अंतश्चेतना

sandhi in hindi, संधि किसे कहते हैं, sandhi vichchhed, sandhi ki paribhasha, संधि का अर्थ, संधि का उदाहरण, संधि का क्या अर्थ है, sandhi ke bhed, sandhi ke udaharan, sandhi ke example, sandhi ke niyam, sandhi ke bare mein bataiye, sandhi ke apvad, sandhi for competitive exam, visarg sandhi, विसर्ग संधि उदाहरण, visarg sandhi ke bhed, विसर्ग संधि किसे कहते हैं, विसर्ग संधि के सूत्र, visarg sandhi example, विसर्ग संधि की ट्रिक, विसर्ग संधि के 10 उदाहरण, visarg sandhi ke udaharan, visarg sandhi ke bhed, विसर्ग संधि की पहचान, visarg sandhi ke niyam, विसर्ग संधि की ट्रिक, विसर्ग संधि की परिभाषा उदाहरण सहित, visarg sandhi ke 10 udaharan, visarg sandhi ke apvad, visarg sandhi ki paribhasha, visarg sandhi kise kahate hain, visarg sandhi ki trick
विसर्ग सन्धि परिभाषा नियम प्रकार

1. विसर्ग से पहले यदि अ तथा बाद में किसी वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा व्यंजन अथवा अ, आ, य, र, ल, व, ह में से कोई आए तो विसर्ग का ओ हो जाता है तथा अ/आ का लोप हो जाता है-

अंततः + गत्वा = अंततोगत्वा

अधः+भाग = अधोभाग

अधः+मुख = अधोमुख

अधः+गति = अधोगति

अधः+लिखित = अधोलिखित

अधः+वस्त्र = अधोवस्त्र

अधः+भाग = अधोभाग

अधः+हस्ताक्षरकर्ता = अधोहस्ताक्षरकर्ता

अधः+गमन = अधोगमन

तिरः + हित = तिरोहित

उर: + ज = उरोज (स्तन)

तमः + गुण = तमोगुण

उरः + ज्वाला = उरोज्वाला

तपः + धन = तपोधन

तिरः + भाव = तिरोभाव

तिरः + हित = तिरोहित

तपः + भूमि = तपोभूमि

तेजः + मय = तेजोमय

पुरः + हित = पुरोहित

मनः + हर = मनोहर

मन: + रम = मनोरम

मनः + हर = मनोहर

मनः + वृत्ति – मनोवृत्ति

मन: + मालिन्य = मनोमालिन्य

यशः + मती = यशोमती

यशः + दा = यशोदा

यश: + गान = यशोगान

यश: + वर्धन = यशोवर्धन

रज: + दर्शन = रजोदर्शन

रजः + मय – रजोमय

सरः + रुह = सरोरुह (कमल)

शिरः + धार्य = शिरोधार्य

विशेष-

प्रातः का मूल रूप प्रातर् , पुनः का मूल रूप पुनर् तथा अंतः का मूलभूत अंतर् होता है। प्रातः, पुनः, अंतः आदि शब्दों के विसर्ग के मूल में र है तथा र से ही इनके विसर्ग बने हैं अतः ऐसे शब्दों में उक्त नियम नहीं लागू होता बल्कि र ही रहता है।

(अंत्य र् के बदले भी विसर्ग होता है । यदि र के आगे अघोष-वर्ण आवे तो विसर्ग का कोई विकार नहीं होता; और उसके आगे घोष-वर्ण आवे तो र ज्यों का त्यों रहता है- उद्धृत- हिन्दी व्याकरण – पंडित कामताप्रसाद गुरु पृष्ठ सं. 60) जैसे-

अंत: (अंतर्) + आत्मा = अंतर्रात्मा

अंतः (अंतर्) + निहित = अंतर्निहित

अंत: (अंतर्) + हित = अंतर्हित

अंतः(अंतर्) + धान = अंतर्धान

अंत: (अंतर्)+भाव = अंतर्भाव

अंतः (अंतर्) + यात्रा = अंतर्यात्रा

अंतः(अंतर्)+द्वंद्व = अतर्द्वंद्व

अंतः(अंतर्)+अग्नि = अंतरग्नि

अंतः(अंतर्)+गत = अंतर्गत

अंतः(अंतर्)+मुखी = अंतर्मुखी

अंतः(अंतर्)+धान = अंतर्धान

प्रातः(प्रातर्)+उदय = प्रातरुदय

प्रातः(प्रातर्)+अर्चना = प्रांतरचना

पुनः(पुनर्)+आगमन = पुनरागमन

पुनः(पुनर्)+गठन = पुनर्गठन

पुनः(पुनर्)+अपि = पुनर्गठन

पुनः(पुनर्)+अपि = पुनरपि

पुनः(पुनर्)+जन्म = पुनर्जन्म

पुनः(पुनर्)+मिलन = पुनर्मिलन

अंतः (अंतर्) + पुर = अंतःपुर

अंतः (अंतर्) + करण = अंतःकरण

प्रातः (प्रातर्) + काल = प्रातःकाल

2. विसर्ग से पहले यदि इ/ई, उ/ऊ तथा बाद में किसी वर्ग का तीसरा चौथा पांचवा व्यंजन, य, ल, व, ह अथवा कोई स्वर में से कोई आए तो विसर्ग का र् हो जाता है-

आशी: + वचन = आशीर्वचन

आशी: +वाद = आशीर्वाद

आवि: + भाव =आविर्भाव

आविः + भूत = आविर्भूत

आयु: + वेद = आयुर्वेद

आयुः + विज्ञान = आयुर्विज्ञान

आयुः + गणना = आयुर्गणना

चतुः + दिक = चतुर्दशी

चतुः + दिशा = चतुर्दिश (आ का लोप)

चतु: + युग = चतुर्युग

ज्योतिः + विद = ज्योतिर्विद

ज्योतिः + मय = ज्योतिर्मय

दुः+लभ = दुर्लभ

दुः+जय = दुर्जय

दुः+अवस्था = दुरावस्था

नि:+उपम = निरुपम

नि:+लिप्त = निर्लिप्त

निः+रक्षण = निरीक्षण

प्रादुः+भूत = प्रादुर्भूत

प्रादुः+भाव = प्रादुर्भाव

बहिः+रंग = बहिरंग

बहिः-गमन = बहिर्गमन

बहिः+मंडल = बहिर्मंडल

यजुः + र्वेद = यजुर्वेद

श्री: + ईश = श्रीरीश

3. विसर्ग से पहले यदि अ/इ/उ (हृस्व स्वर) तथा दूसरे पद का प्रथम वर्ण र हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है तथा हृस्व स्वर दीर्घ हो जाता है-

पुनः + रचना = पुनारचना

निः+रव = नीरव

नि:+रंध्र = नीरंध्र

निः+रोध = निरोध

नि:+रस = नीरस

निः+रोग = निरोग

निः+रुज = नीरुज

दुः + राज = दूराज

दुः + रम्य = दूरम्य

चक्षुः + रोग = चक्षूरोग

4. यदि विसर्ग के साथ च/छ/श का मेल हो तो विसर्ग के स्थान पर श् हो जाता है-

अंत:- चेतना = अंतश्चेतना/ अंत:चेतना

आः + श्चर्य = आश्चर्य

क: + चित = कश्चित

तपः + चर्या = तश्चर्या

दुः + चरित्र = दुश्चरित्र

निः + चय = निश्चय

निः + छल = निश्छल

मनः + चिंतन = मनश्चिंतन

प्रायः + चित = प्रायश्चित

बहिः + चक्र = बहिश्चक्र

मनः+चेतना = मनश्चेतना

मनः+चिकित्सक = मनश्चिकित्सक

मनः+चिकित्सा = मनश्चिकित्सा

हरिः + चंद्र = हरिश्चंद्र

यशः + शरीर = यशश्शरीर

यशः + शेष = यशश्शेष

5. यदि विसर्ग के साथ ट/ठ/ष का मेल हो तो विसर्ग के स्थान पर ष् हो जाता है-

धनुः + टंकार = धनुष्टंकार

चतुः + टीका = चतुष्टीका

चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि

6. यदि विसर्ग के साथ त/थ/स का मेल हो तो विसर्ग के स्थान पर स् हो जाता है-

अंतः + ताप = अंतस्ताप

अंत: + तल = अंत:स्तल

चतुः + सीमा = चतुस्सीमा

प्रातः + स्मरण = प्रातस्स्मरण/प्रात:स्मरण

दुः + साहस = दुस्साहस

नमः + ते = नमस्ते

नि: + संदेह = निस्संदेह/निःसंदेह

निः + तार = निस्तार

निः + सहाय = निस्सहाय

नि: + संकोच = निस्संकोच/नि:संकोच

बहि: + थल = बहिस्थल

पुरः + सर = पुरस्सर

मनः + ताप = मनस्ताप

मनः + ताप =मनस्ताप/मन:ताप

पुनः + स्मरण = पुनस्स्मरण

वि: + स्थापित = विस्स्थापित

विः + तीर्ण = विस्तीर्ण

ज्योतिः + तरंग = ज्योतिस्तरंग

निः + तेज़ = निस्तेज

7. विसर्ग से पहले यदि इ/उ (हृस्व स्वर) तथा दूसरे पद का प्रथम वर्ण क/प/फ हो तो विसर्ग का ष् हो जाता है

आविः + कार = आविष्कार

चतुः+पद = चतुष्पाद

चतुः+पाद = चतुष्पाद

चतुः+पथ = चतुष्पथ

चतुः+काष्ठ = चतुष्काष्ठ

ज्योतिः + पिंड – ज्योतिष्पिंड

चतुः + कोण = चतुष्कोण

ज्योतिः + पति = ज्योतिष्पति

नि:+कर्मण = निष्कर्मण

नि:+काम = निष्काम

नि:+फल = निष्फल

बहिः + कृत = बहिष्कृत

बहि: + क्रमण – बहिष्क्रमण

8. विसर्ग से पहले यदि अ/आ हो तथा दूसरे पद का प्रथम वर्ण क/प/ हो तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता है-

अंतः + पुर = अंत:पुर

अंत: + करण = अंतःकरण

अध: पतन = अध:पत (अधोपतन अशुद्ध है)

पय + पान = पय:पान (पयोपान अशुद्ध है)

प्रातः + काल = प्रातःकाल

मनः + कल्पित = मन:कल्पित

मनः + कामना = मन:कामना (मनोकामना अशुद्ध है)

विसर्ग सन्धि Visarg Sandhi के अपवाद

घृणा: + पद = घृणास्पद

पुरः + कृत = पुरस्कृत

पुरः + कार = पुरस्कार

श्रेयः + कर = श्रेयस्कर

घृणा: + पद = घृणास्पद

यशः + कर = यशस्कर

नमः + कार = नमस्कार

परः + पर = परस्पर

भाः + कर = भास्कर

भाः + पति = भास्पति

वनः + पति = वनस्पति

बृहः + पति – बृहस्पति

वाचः + पति = वाचस्पति

मनः + क = मनस्क

9. विसर्ग से पहले यदि अ हो तथा दूसरे पद का प्रथम वर्ण अ से भिन्न कोई स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है-

अतः -एव = अतएव

तपः + उत्तम = तपउत्तम

मनः + उच्छेद = मनउच्छेद

यश: + इच्छा = यशइच्छा

हरिः + इच्छा = हरिइच्छा

विशेष-

निः और दुः संस्कृत व्याकरण में उपसर्ग नहीं माने गए हैं बल्कि निर् , निस् , दुर् और दुस् उपसर्ग माने गए हैं परंतु देशभर में जो प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित हुई है उनमें अभी तक विसर्ग संधि के संदर्भ में जो प्रश्न किए गए हैं

उन सभी प्रश्नों में निः और दुः वाले विकल्प ही सही माने गए हैं

पंडित कामता प्रसाद गुरु, डॉ. हरदेव बाहरी एवं अन्य विद्वानों ने भी निः और दुः का सन्धि रूप ही स्वीकार किया है।

अतः हमें यही रूप स्वीकार करना चाहिए परंतु यदि निः और दुः से बने शब्दों पर उपसर्ग से संबंधित प्रश्न पूछा जाए तो उनमें आवश्यकतानुसार निर् , निस् , दुर् और दुस् उपसर्ग बताना चाहिए।

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

1. स्वर सन्धि

2. व्यंजन संधि

3. विसर्ग सन्धि

स्वर सन्धि Swar Sandhi

स्वर सन्धि Swar Sandhi

स्वर संधि Swar Sandhi | व्यंजन सन्धि | विसर्ग सन्धि | परिभाषा | उदाहरण | अपवाद | दीर्घ सन्धि | गुण सन्धि की परिभाषा, उदाहरण एवं अपवाद परीक्षोपयोगी दृष्टि से-

परिभाषा- दो ध्वनियों (वर्णों) के परस्पर मेल को सन्धि कहते हैं।

अर्थात् जब दो शब्द मिलते हैं तो प्रथम शब्द की अन्तिम ध्वनि (वर्ण) तथा मिलने वाले शब्द की प्रथम ध्वनि के मेल से जो विकार होता है उसे सन्धि कहते हैं।

ध्वनियों के मेल में स्वर के साथ स्वर (परम+ अर्थ)

स्वर के साथ व्यंजन (स्व+छंद)

व्यंजन के साथ व्यंजन (जगत्+विनोद), व्यंजन के साथ स्वर (जगत्+अम्बा)

विसर्ग के साथ स्वर (मनः+अनुकूल) तथा विसर्ग के साथ व्यंजन ( मनः+रंजन) का मेल हो सकता है।

प्रकार : सन्धि तीन प्रकार की होती है

1. स्वर सन्धि

2. व्यंजन संधि

3. विसर्ग सन्धि

1. स्वर संधि Swar Sandhi : परिभाषा, उदाहरण एवं अपवाद

स्वर के साथ स्वर के मेल को स्वर सन्धि कहते हैं।

(हिन्दी में स्वर ग्यारह होते हैं। यथा-अ. आ. इ. ई. उ, ऊ. ऋ. ए. ऐ. ओ. औं तथा व्यंजन प्रायः स्वर की सहायता से बोले जाते हैं।

जैसे ‘परम’ में ‘म’ में “अ स्वर निहित है। ‘परम’ में ‘म’ का ‘अ – तथा ‘अर्थ’ के ‘अ’ स्वर का मिलन होकर सन्धि होगी।)

sandhi in hindi, संधि किसे कहते हैं, sandhi vichchhed, sandhi ki paribhasha, संधि का अर्थ, संधि का उदाहरण, संधि का क्या अर्थ है, sandhi ke bhed, sandhi ke udaharan, sandhi ke example, sandhi ke niyam, sandhi ke bare mein bataiye, sandhi ke apvad, swar sandhi ke bhed, स्वर संधि, स्वर संधि के उदाहरण, swar sandhi ke udaharan, स्वर संधि किसे कहते हैं, स्वर संधि के कितने भेद हैं, स्वर संधि के अपवाद, swar sandhi ke example, swar sandhi kise kahate hain, swar sandhi ki paribhasha, swar sandhi ki paribhasha udaharan sahit, swar sandhi ko samjhaie, स्वर संधि को समझाइए, swar sandhi ki trick, swar sandhi kitne prakar ki hoti, swar sandhi ke example, swar sandhi ke prakar, swar sandhi ke prakar in hindi, swar sandhi ke panch bhed, swar sandhi ke panch panch udaharan likhiye
स्वर-संधि परिभाषा उदाहरण अपवाद

स्वर सन्धि पाँच प्रकार की होती है-

1 दीर्घ सन्धि

2 गुण सन्धि

3 वृद्धि सन्धि

4 यण सन्धि

5 अयादि सन्धि

(I) दीर्घ सन्धि-

दो समान हृस्व या दीर्घ स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं, इसे दीर्घ संधि कहते हैं-

1 अ + अ = आ

2 अ + आ = आ

3 आ + अ = आ

4 आ + आ = आ

5 इ + इ = ई

6 इ + ई = ई

7 ई + इ = ई

8 ई + ई = ई

9 उ + उ = ऊ

10 उ + ऊ = ऊ

11 ऊ + उ = ऊ

12 ऊ + ऊ = ऊ

उदाहरण-

1. अ + अ = आ

दाव + अनल = दावानल

नयन + अभिराम = नयनाभिराम

रत्न + अवली = रत्नावली

मध्य + अवधि = मध्यावधि

नील + अम्बर = नीलाम्बर

दीप + अवली = दीपावली

अभय + अरण्य = अभयारण्य

जठर + अग्नि = जठराग्नि

पुण्डरीक + अक्ष = पुण्डरीकाक्ष

2. अ + आ = आ

कृष्ण + आनंद = कृष्णानंद

प्राण+ आयाम = प्राणायाम

छात्र + आवास = छात्रावास

रत्न + आकर = रत्नाकर

घन + आनंद = घनानंद

अल्प + आयु = अल्पायु

कार्य + आलय = कार्यालय

धर्म + आत्मा = धर्मात्मा

भोजन + आलय = भोजनालय

पुण्य + आत्मा = पुण्यात्मा

पुस्तक + आलय = पुस्तकालय

हास्य + आस्पद = हास्यास्पद

लोक + आयुक्त = लोकायुक्त

पद + आक्रान्त = पदाक्रान्त

गज + आनन = गजानन

भय + आनक = भयानक

3. आ + अ = आ

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी

तथा + अपि = तथापि

कक्षा + अध्यापक = कक्षाध्यापक

रचना + अवली = रचनावली

द्वारका + अधीश = द्वारकाधीश

व्यवस्था + अनुसार = व्यवस्थानुसार

कविता + अवली = कवितावली

करुणा + अमृत = करुणामृत

रेखा + अंकित = रेखांकित

मुक्ता + अवली = मुक्तावली

विद्या + अध्ययन = विद्याध्ययन

4. आ + आ = आ

आत्मा + आनंद = आत्मानंद

विद्या + आलय = विद्यालय

क्रिया + आत्मक = क्रियात्मक

प्रतीक्षा + आलय = प्रतीक्षालय

द्राक्षा + आसव = द्राक्षासव

दया +आनन्द = दयानन्द

महा + आत्मा = महात्मा

क्रिया + आत्मक = क्रियात्मक

रचना + आत्मक = रचनात्मक

कारा + आवास = कारावास

कारा + आगार = कारागार

महा + आशय = महाशय

प्रेरणा + आस्पद = प्रेरणास्पद

5. इ+ इ = ई

अति + इव = अतीव

रवि + इन्द्र = रवीन्द्र

मुनि + इन्द्र = मुनींद्र

प्रति + इक = प्रतीक

अभि + इष्ट = अभीष्ट

प्राप्ति + इच्छा = प्राप्तीच्छा

सुधि + इन्द्र = सुधीन्द्र

हरि + इच्छा = हरीच्छा

अधि + इन = अधीन

प्रति + इत = प्रतीत

अति + इव = अतीव

कवि + इन्द्र = कवीन्द्र

गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र

मणि + इन्द्र = मणीन्द्र

अति + इत = अतीत

अति + इन्द्रिय = अतीन्द्रिय

6. इ + ई = ई

हरि + ईश = हरीश

अधी + ईक्षक = अधीक्षक

परि + ईक्षा = परीक्षक

परि + ईक्षा = परीक्षा

अभि + ईप्सा = अभीप्सा

मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर

वि + ईक्षण = वीक्षण

कपि + ईश = कपीश

अधि + ईक्षण = अधीक्षण

परि + ईक्षण = परीक्षण

प्रति + ईक्षा = प्रतीक्षा

वारि + ईश = वारीश

क्षिति + ईश = क्षितीश

अधि + ईश = अधीश

7. ई + इ = ई

मही + इन्द्र = महीन्द्र

लक्ष्मी + इच्छा = लक्ष्मीच्छा

यती + इन्द्र = यतीन्द्र

फणी + इन्द्र = फणीन्द्र

महती + इच्छा = महतीच्छा

शची + इन्द्र = शचीन्द्र

8. ई + ई = ई

रजनी + ईश = रजनीश

नारी + ईश्वर = नारीश्वर

नदी + ईश = नदीश

गौरी + ईश = गिरीश

फणी + ईश्वर = फणीश्वर

सती + ईश = सतीश

श्री + ईश = श्रीश

जानकी + ईश = जानकीश

भारती + ईश्वर = भारतीश्वर

नदी + ईश्वर = नदीश्वर

9. उ + उ = ऊ

भानु + उदय = भानूदय

सु + उक्ति = सूक्ति

कटु + उक्ति = कटूक्ति

बहु + उद्देश्यीय = बहूद्देश्यीय

लघु + उत्तर = लघूत्तर

मधु + उत्सव = मधूत्सव

गुरु + उपदेश = गुरूपदेश

मंजु + उषा = मंजूषा

अनु + उदित = अनूदित

10. उ + ऊ = ऊ

लघु + ऊर्मि = लघूर्मि

धातु + ऊष्मा = धातूष्मा

सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि

बहु + ऊर्जा = बहूर्जा

मधु + ऊर्मि = मधूर्मि

भानु + ऊर्ध्व = भानूर्ध्व

11. ऊ + उ = ऊ

वधू + उत्सव = वधूत्सव

भू + उपरि = भूपरि

चमू + उत्तम = चमूत्तम

वधू + उल्लास = वधूल्लास

वधू + उक्ति = वधूक्ति

चमू + उत्साह = चमूत्साह

भू + उद्धार = भूद्धार

12. ऊ + ऊ = ऊ

चमू + ऊर्जा = चमूर्जा

सरयू + ऊर्मि – सरयूर्मि

भू + ऊष्मा = भूष्मा

स्वर-संधि की परिभाषा, उदाहरण एवं अपवाद परीक्षोपयोगी दृष्टि से-

(II) गुण सन्धि-

अथवा आ के साथ इ/ई, उ/ऊ तथा ऋ के आने से वे क्रमश ए, ओ तथा अर् में बदल जाते हैं इसे गुण संधि कहते हैं-

1. अ + इ = ए

अल्प + इच्छा = अल्पेच्छा

इतर + इतर = इतरेतर

कर्म + इंद्री = कर्मेद्री

खग + इंद्र = खगेंद्र

गोप + इंद्र = गोपेन्द्र

जीत + इंद्रिय = जीतेंद्रिय

देव + इंद्र = देवेंद्र

न + इति = नेति

नर + इंद्र = नरेंद्र

पूर्ण + इंदु = पूर्णेन्दु

भारत + इंदु = भारतेंदु

सुर + इंद्र = सुरेन्द्र

विवाह + इतर = विवाहेतर

मानव + इतर = मानवेतर

स्व + इच्छा = स्वेच्छा

शब्द + इतर = शब्देतर

2. अ + ई = ए

अप + ईक्षा = अपेक्षा

आनंद + ईश्वर = आनंदेश्वर

एक + ईश्वर = एकेश्वर

खग + ईश = खगेश

गोप + ईश = गोपेश

ज्ञान + ईश – ज्ञानेश

लोक + ईश = लोकेश

अखिल + ईश = अखिलेश

प्र + ईक्षक = प्रेक्षक

सिद्ध + ईश्वर = सिद्धेश्वर

3. आ + इ = ए

महा + इंद्र = महेंद्र

रसना + इंद्रिय = रसनेंद्रिय

रमा + इंद्र = रमेंद्र

राका + इंदु = राकेंदु

सुधा + इंदु = सुधेंदु

4. आ + ई = ए

अलका + ईश = अलकेश

ऋषिका + ईश = ऋषिकेश

महा + ईश = महेश

रमा + ईश = रमेश

कमला + ईश = कमलेश

उमा + ईश = उमेश

गुडाका + ईश = गुडाकेश (शिव)

(गुडाका – नींद)

महा + ईश्वर = महेश्वर

5. अ + उ = ओ

अतिशय + उक्ति = अतिशयोक्ति

पर + उपकार = परोपकार

सर्व + उपरि = सर्वोपरि

उत्तर + उत्तर = उत्तरोत्तर

रोग + उपचार = रोगोपचार

हित + उपदेश = हितोपदेश

स + उदाहरण = सोदाहरण

प्रवेश + उत्सव = प्रवेशोत्सव

स + उत्साह = सोत्साह

स + उद्देश्य = सोद्देश्य

6. आ + उ = ओ

आत्मा + उत्सर्ग = आत्मोत्सर्ग

करुणा + उत्पादक= करुणोत्पादक

गंगा + उदक = गंगोदक (गंगाजल)

महा + उरु = महोरु

यथा + उचित = यथोचित

सेवा + उपरांत = सेवोपरांत

होलिका + उत्सव = होलिकोत्सव

7. अ + ऊ = ओ

जल + ऊर्मि = जलोर्मि

जल + ऊष्मा = जलोष्मा

नव + ऊढ़ = नवोढ़ा

सूर्य + ऊष्मा = सूर्योष्मा

समुद्र + ऊर्मि = समुद्रोर्मि

नव + ऊर्जा = नवोर्जा

8. आ + ऊ = ओ

महा + ऊर्जा = महोर्जा

महा + ऊर्मि = महोर्मि

गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि

यमुना + ऊर्मि = यमुनोर्मि

सरिता + ऊर्मि = सरितोर्मि

9. अ + ऋ = अर्

उत्तम + ऋण = उत्तमर्ण (ऋण देने वाला)

अधम + ऋण = अधमर्ण (ऋण लेने वाला)

कण्व + ऋषि = कण्वर्षि

देव + ऋषि = देवर्षि

देव + ऋण = देवर्ण

वसंत + ऋतु = वसंतर्तु

सप्त + ऋषि = सप्तर्षि

10. आ + ऋ = अर्

वर्षा + ऋतु = वर्षर्तु

महा + ऋषि = महर्षि

महा + ऋण = महर्ण

(III) वृद्धि संधि-

अ अथवा आ के साथ ए अथवा ऐ या ओ अथवा औ के आने से दोनों मिलकर क्रमशः ऐ तथा औ में बदल जाते हैं इसे वृद्धि संधि कहते हैं-

1. अ + ए = ऐ

एक + एक = एकैक

हित + एषी = हितैषी

धन + एषी = धनैषी

शुभ + एषी = शुभैषी

वित्त + एषणा = वित्तैषणा

पुत्र + एषणा = पुत्रैषणा

धन + एषणा = धनैषणा

विश्व + एकता = विश्वैकता

2. आ + ए = ऐ

तथा + एव = तथैव

वसुधा + एव = वसुधैव

सदा + एव = सदैव

महा + एषणा = महैषणा

3. अ + ऐ = ऐ

विश्व + ऐक्य – वैश्विक

मत + ऐक्य – मतैक्य

धर्म + ऐक्य = धर्मैक्य

विचार + ऐक्य = विचारैक्य

धन + ऐश्वर्य = धनैश्वर्य

स्व + ऐच्छिक = स्वैच्छिक

4. आ + ऐ = ऐ

महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

गंगा + ऐश्वर्य = गंगैश्वर्य

5. अ + ओ = औ

जल + ओक = जलौक

जल + ओघ = जलौघ

परम + ओजस्वी = परमौजस्वी

6. अ + औ = औ

भाव + औचित्य = भावौचित्य

भाव + औदार्य = भावौदार्य

परम + औदार्य = परमौदार्य

मिलन + औचित्य = मिलनौचित्य

मंत्र + औषधि = मंत्रौषधि

जल + औषधि = जलौषधि

7. आ + ओ = औ

गंगा + ओक = गंगौक

महा + ओज = महौज

महा + ओजस्वी = महौजस्वी

8. आ + औ = औ

महा + औषधि = महौषधि

महा + औदार्य = महौदार्य

वृथा + औदार्य = वृथौदार्य

मृदा + औषधि = मृदौषधि

(IV) यण् संधि-

इ/ई, उ/ऊ अथवा ऋ के साथ कोई असमान स्वर आए तो इ/ई का य् , उ/ऊ का व् तथा ऋ का र् हो जाता है तथा असमान स्वर य् , व् , र् में मिल जाता है इसे यण् संधि कहते हैं-

(असमान स्वर से तात्पर्य है कि इ/ई के साथ इ/ई को छोड़कर अन्य कोई भी स्वर इसी प्रकार उ/ऊ के साथ उ/ऊ को छोड़कर अन्य कोई भी स्वर तथा ऋ के साथ ऋ को छोड़कर अन्य कोई भी स्वर)

1. इ/ई + असमान स्वर = य्

अति + अधिक = अत्यधिक

अति + अंत = अत्यंत

अभि + अर्थी – अभ्यर्थी

इति + अलम् = इत्यलम्

परि + अवसान = पर्यवसान

परि + अंक = पर्यंक (पलंग)

प्रति + अर्पण = प्रत्यर्पण

वि + अवहार = व्यवहार

वि+अंजन = व्यंजन

वि + अष्टि = व्यष्टि

वि + अय = व्यय

अति + आवश्यक = अत्यावश्यक

अधि + आदेश = अध्यादेश

इति + आदि = इत्यादि

अधि + आपक = अध्यापक

उपरि + उक्त = उपर्युक्त

अभि + उदय = अभ्युदय

वि + उत्पत्ति = व्युत्पत्ति

प्रति + उपकार = प्रत्युपकार

नि + ऊन = न्यून

वि + ऊह = व्यूह

प्रति + एक = प्रत्येक

देवी + अर्पण = देव्यर्पण

नारी + उचित = नर्युचित

सखी + आगमन = सख्यागमन

2. उ/ऊ + असमान स्वर = व्

अनु + अय = अन्वय

तनु + अंगी = तन्वंगी

मनु + अंतर = मन्वंतर

सु + अच्छ = स्वच्छ

गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा

मधु + आचार्य = मध्वाचार्य

साधु + आचरण = साध्वाचरण

अनु + इति = अन्विति

धातु + इक = धात्विक

लघु + ओष्ठ = लघ्वोष्ठ

शिशु + ऐक्य = शिश्वैक्य

गुरु + औदार्य = गुर्वौदार्य

चमू + अंग = चम्वंग

वधू + आगमन = वध्वागमन

3. ऋ + असमान स्वर = र्

(यहां यण् संधि में एक विशेष नियम काम करता है जिसके अंतर्गत ऋ के साथ असमान स्वर मिलने से ऋ का र् हो जाता है तथा पितृ शब्द में आया अंतिम त हलंत रह जाता है ऐसी स्थिति में हलंत त और र् का मेल होने से दोनों मिलकर त्र् हो जाते हैं और त्र् में असमान स्वर मिल जाता है)
जैसे-

पितृ + अनुमति = पित्रनुमति

मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा

भ्रातृ + आनंद = भ्रात्रानंद

पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा

मातृ + उपदेश = मात्रुपदेश

भ्रातृ + उत्कंठा = भ्रात्रुत्कंठा

वक्तृ + उद्बोधन = वक्त्रुद्बोधन

दातृ + उदारता = दात्रुदारता

स्वर-संधि की परिभाषा, उदाहरण एवं अपवाद परीक्षोपयोगी दृष्टि से-

(V) अयादि सन्धि-

  • ए, ऐ, ओ, औ के साथ कोई असमान स्वर आए तो ए का अय् , ऐ का आय् , ओ का अव् तथा औ का आव् हो जाता है तथा असमान स्वर अय् ,आय् ,अव् ,आव् में मिल जाता है इसे अयादि संधि कहते हैं-

(असमान स्वर से तात्पर्य है कि ए, ऐ, ओ, औ के साथ ए, ऐ, ओ, औ को छोड़कर अन्य कोई भी स्वर)

1. ए + असमान स्वर = अय्

चे + अन = चयन

ने + अन = नयन

प्रले + अ= प्रलय

विजे + व = विजय

जे + अ = जय

ने + अ = नय

ले + अ = लय

विजे + ई = विजयी

2. ऐ + असमान स्वर = आय्

गै + अक = गायक

गै + अन = गायन

नै + अक = नायक

विधै + अक = विधायक

गै + इका = गायिका

नै + इका = नायिका

विधै + इका = विधायिका

दै + अनी = दायिनी

दै + इका = दायिका

3. ओ + असमान स्वर = अव्

पो + अन = पवन

भो + अन = भवन

श्रो + अन = श्रवण

हो + अन = हवन

भो + अति = भवति

पो + इत्र = पवित्र

भो + इष्य = भविष्य

4. औ + असमान स्वर = आव्

धौ + अन = धावन

पौ + अक = पावक

भौ + अक = भावक

शौ + अक = शावक

श्रौ + अक = श्रावक

पौ + अन = पावन

श्रौ + अन = श्रावण

भौ + अना = भावना

नौ + इक = नाविक

धौ + इका = धाविका

भौ + उक = भावुक

स्वर सन्धि के अपवाद

प्र + ऊढ़़ = प्रौढ़

अक्ष + ऊहिणी = अक्षौहिणी

स्व + ईरिणी = स्वैरिणी

स्व + ईर = स्वैर

दश + ऋण = दशार्ण

सुख + ऋत = सुखार्त

अधर + ओष्ठ = अधरोष्ठ/अधरौष्ठ

बिम्ब + ओष्ठ = बिम्बोष्ठ/बिम्बौष्ठ

दन्त + ओष्ठ = दन्तोष्ठ/दन्तौष्ठ

शुद्ध + ओदन = शुद्धोदन/शुद्धौदन

मिष्ट + ओदन = मिष्टोदन/मिष्टौदन

दुग्ध + ओदन = दुग्धोदन/दुग्धौदन

शुक + ओदन = शकोदन/शुकौदन

घृत + ओदन = घृतोदन/घृतौदन

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

1. स्वर सन्धि

2. व्यंजन संधि

3. विसर्ग सन्धि

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या – Mokshagundam Visvesvaraya

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या Mokshagundam Visvesvaraya – आधुनिक भारत के निर्माता

भारतीय इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या – Mokshagundam Visvesvaraya के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ-साथ अभियंता दिवस, उनकी शिक्षा, कार्य, पुरस्कार एवं सम्मान के बारे में पूरी जानकारी जानेंगे।

एक 6 वर्षीय बालक अपने घर के बरामदे में खड़ा बारिश का दृश्य देख रहा था बालक के घर के पास बहने वाली नाली का पानी उमड़ घुमड़ रहा था।

उसमें छोटे-छोटे भंवर उठ रहे थे और कहीं कहीं और सोनाली ने प्रपात का रूप ले रखा था बहाव अपने साथ कई छोटे-बड़े कंकड़ मित्रों को भी बधाई ले जा रहा था।

अचानक कुछ अवश्य मालिक ने देखा कि ताड़ पत्र की छतरी हाथ में लिए एक आकृति खड़ी है बालक उस आकृति को भलीभांति पहचानता था उसके कपड़े फटे हुए थे वह एक झोपड़ी में रहती थी उसके बच्चे कभी स्कूल नहीं जाते थे।

वह गरीब थी मैं छोटा सा बालक बड़ी गंभीरता से प्रकृति और गरीबी के कारणों को जानने का प्रयास करता।

अपने अध्यापकों से वाद-विवाद करता परिवार वालों से जानने का प्रयास करता यह बालक था आधुनिक भारत का निर्माता सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया हम भारत के औद्योगिक विकास में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी।

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या जीवन परिचय

आइए अब जानते हैं भारतीय इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ-साथ अभियंता दिवस, उनकी शिक्षा, कार्य, पुरस्कार एवं सम्मान के बारे में पूरी जानकारी-

विश्वेश्वरैया के पूर्वज आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के मोक्षगुंडम गांव के निवासी थे।

सैकड़ों वर्ष पूर्व इनका परिवार तात्कालिक मैसूर राज्य (वर्तमान कर्नाटक) के कोलार जिले के मुद्देनाहल्ली गांव में आ बसे।

यह गांव वर्तमान बेंगलुरु शहर से 60 किलोमीटर दूर है।

इसी गांव में मोक्षगुंडम श्रीनिवास शास्त्री और वेंकटलक्ष्म्मा के घर 15 सितंबर 1860 को विश्वेश्वर्या का जन्म हुआ।

यह दशक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दशक में रवींद्र नाथ टैगोर (1861), प्रफुल्ल चंद्र राय (1861), मोतीलाल नेहरू 1861, मदनमोहन मालवीय (1861), स्वामी विवेकानंद (1863), आशुतोष मुखर्जी (1864), लाला लाजपत राय (1865), गोपाल कृष्ण गोखले (1866) और महात्मा गांधी (1869) जैसे महापुरुषों का जन्म हुआ।

दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार यहां के लोग अपने बच्चों के नाम के साथ अपने पैतृक गांव का नाम भी जोड़ते हैं, अतः विश्वेश्वरिया के नाम के साथ भी उनका पैतृक गांव मोक्षगुंडम का नाम उनके माता-पिता ने जोड़ दिया और उनका नामकरण हुआ मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया आगे चलकर सर एम वी के नाम से विख्यात हुए।

शिक्षा

आइए अब जानते हैं भारतीय इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ-साथ अभियंता दिवस, उनकी शिक्षा, कार्य, पुरस्कार एवं सम्मान के बारे में पूरी जानकारी-

विश्वेश्वर्या जो 5 वर्ष के थे तभी उनका परिवार चिकबल्लापुर आ गया चिकबल्लापुर में ही इनकी आरंभिक शिक्षा हुई हाईस्कूल तक की शिक्षा उन्होंने इसी गांव के विद्यालय से प्राप्त की पिता की मृत्यु के बाद यह बेंगलुरु अपने मामा के पास चले आए उस समय इनकी आयु 12 वर्ष थी।

यहां आकर विश्वेश्वर्या ने सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया और 1880 में बीए की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की इसके बाद विश्वेश्वर्या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन घरेलू परिस्थितियों इस बात की आज्ञा नहीं देती थी कि यह इंजीनियरिंग कॉलेज में जा सके सौभाग्य से ने मैसूर राज्य से छात्रवृत्ति मिल गई और उन्होंने पुणे के साइंस कॉलेज में प्रवेश ले लिया।

यहां उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की 1883 में मुंबई विश्वविद्यालय के समस्त कॉलेजों में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर विश्वेश्वरैया ने इंजीनियरिंग की डिग्री भी प्राप्त कर ली। इस सफलता पर उन्हें उस समय का प्रतिष्ठित जेम्स बोर्कले मेडल भी प्राप्त हुआ।

प्रथम नियुक्ति

1884 में विश्वेश्वरय्या की नियुक्ति मुंबई प्रेसिडेंसी सरकार के लोक निर्माण विभाग में नासिक में हुई।

मुंबई प्रेसिडेंसी में आप 1908 ईस्वी तक रहे।

इस समयावधि में विश्वेश्वरैया ने पूना (पुणे), कोल्हापुर, धारवाड़, बेलगाम बीजापुर आदि कई शहरों की जलापूर्ति योजना तैयार की।

नियमित कार्यों के साथ-साथ विश्वेश्वरैया बाढ़ नियंत्रण, बांध सुदृढ़ीकरण, जलापूर्ति, नगरीय विकास, सार्वजनिक निर्माण, सड़क, भवन इत्यादि के निर्माण की महत्वाकांक्षी योजनाओं से जुड़े रहे।

सक्खर में स्वच्छ जल

1892 में जब सक्खर (सिंध) नगर परिषद सक्खर शहर की जलापूर्ति योजना में असमर्थ हो गयी थी।

तो विश्वेश्वरैया ने ही सक्खर शहर को स्वच्छ जलापूर्ति करवायी।

यह उनकी ही बुद्धि का परिणाम था कि सिंधु नदी के पास ही एक कुआं खोदकर उसमें रेत की कई परतें बिछाई गई और उसे एक सुरंग द्वारा नदी से जोड़ दिया गया।

सुरंग से कुएं में आने वाला पानी स्वतः ही रेत से रिस-रिस कर फिल्टर हो जाता।

जिसे पंप द्वारा पहाड़ की चोटी पर ले जाया गया और वहां से शहर में जलापूर्ति की गयी।

पुणे में विश्वेश्वरैया

पुणे में विश्वेश्वरैया ने सिंचाई की नई पद्धति जिसे सिंचाई की ब्लॉक पद्धति कहा जाता है प्रारंभ की।

जिससे नहर के पानी की बर्बादी को रोका जा सके।

1901 में विश्वेश्वरैया ने बांधों की जल भंडारण क्षमता में वृद्धि के लिए विशेष प्रकार के जलद्वारों का निर्माण किया।

इन विशेष जलद्वारों से बांध में 25 प्रतिशत अधिक पानी भंडारण किया जा सकता था।

आज इन्हें विश्वेश्वरय्या फाटक कहते हैं। विश्वेश्वरैया ने इनका पेटेंट अपने नाम से करवाया।

इन फाटकों का पहला प्रयोग मुथा नदी की बाढ़ पर नियंत्रण के लिए खडकवासला में किया गया।

इस सफल प्रयोग के बाद तिजारा बांध ग्वालियर, कृष्णसागर बांध मैसूर और अन्य बड़े बांधों में इन जलद्वारों का सफल प्रयोग किया गया।

अदन बंदरगाह की छावनी में पानी की समस्या

1906 अदन बंदरगाह के सैनिक छावनी पीने के पानी की भारी कमी थी।

इस समस्या के निवारण के लिए विश्वेश्वरिया को वहां भेजा गया।

विश्वेश्वरैया ने अदन से 97 किलोमीटर दूर उत्तर की ओर पहाड़ी क्षेत्र की खोज की जहां पर्याप्त वर्षा होती थी।

क्षेत्र में बहने वाली नदी के तल में बंद मुंह वाले कुएँ बनाए गए और वर्षा जल को एकत्र कर पम्पों द्वारा अदन बंदरगाह तक पहुंचाया गया।

हैदराबाद में सेवाएं

1907-08 तक मुंबई प्रेसिडेंसी में सेवाएं देने के बाद 1909 में हैदराबाद के निजाम का एक अनुरोध विश्वेश्वरय्या को प्राप्त हुआ।

इस अनुरोध पर उन्होंने बाढ़ से नष्ट हुए हैदराबाद शहर का पुनर्निर्माण तथा भविष्य में बाढ़ से बचने की विशेष योजना तैयार की।

मैसूर राज्य के चीफ इंजीनियर और दीवान

मुंबई प्रेसिडेंसी के सेवा में रहते हुए 1907 में कुछ समय के लिए विश्वेश्वरिया तीन सुपरीटेंडेंट इंजीनियरों का उत्तर दायित्व संभाल रहे थे

परंतु वे जानते थे कि यहां रहते हुए वे चीफ इंजीनियर के पद पर कभी नहीं पहुंच सकते।

क्योंकि यह पद केवल अंग्रेजों के लिए ही सुरक्षित था।

1907 में उन्होंने राजकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया और विदेश भ्रमण के लिए चले गए।

1909 में विश्वेश्वरैया को मैसूर राज्य से चीफ इंजीनियर पद के लिए आमंत्रित किया गया।

उन्होंने सरकार से पहले यह आश्वासन लिया कि उनकी योजनाएं पूरी करने में कोई उच्चाधिकारी अकारण ही बाधा नहीं डालेगा।

सरकार द्वारा आश्वस्त किए जाने के बाद 1909 में विश्वेश्वरैया ने चीफ इंजीनियर का कार्यभार संभाल लिया।

इसके साथ ही उन्हें रेल सचिव भी नियुक्त किया गया।

कार्यभार संभालते ही विश्वेश्वरैया ने राज्य में सिंचाई और बिजली की तरफ ध्यान दिया

और रेलों का जाल बिछाने के लिए एक महत्वकांक्षी योजना तैयार की।

1912 में विश्वेश्वर्या को मैसूर राज्य का दीवान बना दिया गया किसी इंजीनियर का इस पद पर पहुंचना पहली बार हुआ था।

इसलिए यह लोगों में एक आश्चर्य का विषय भी था।

मैसूर राज्य में शिक्षा

मैसूर राज्य के दीवान पद पर रहते हुए विश्वेश्वरैया ने अनेक योजनाएं पूरी की।

इसके साथ ही उन्होंने राज्य की शिक्षा की तरफ भी पर्याप्त ध्यान दिया।

उन्हीं के प्रयासों से मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई जो देसी रियासतों में पहला विश्वविद्यालय था।

मैसूर में औद्योगिकरण

विश्वेश्वरैया के अथक प्रयासों से मैसूर राज्य में रेशम, चंदन के तेल, साबुन, धातु, चमड़ा रंगने आदि के कारखाने लगे।

भद्रावती में लौह इस्पात कारखाने की योजना भी विश्वेश्वरिया की ही देन है।

उन्हीं के प्रयासों से अक्टूबर 1913 में बैंक ऑफ मैसूर की स्थापना हुयी।

दीवान का पद त्याग

1917-18 में जब विश्वेश्वरैया की ख्याति अपने चरमोत्कर्ष पर थी तब उनके विरोधी राज्य में तरह-तरह की अफवाहें उड़ा रहे थे।

उन्होंने राजा तथा दीवान के बीच अविश्वास का वातावरण उत्पन्न कर दिया था।

जिसके कारण 1918 में विश्वेश्वरैया ने दीवान का पद छोड़ दिया।

दीवान का पद छोड़ने के बाद विश्वेश्वरैया स्वतंत्र रहकर कार्य करने लगे।

1923 में उन्होंने भद्रावती के लोहे के कारखाने का अध्यक्ष बनना स्वीकार किया, बेंगलुरु के लिए पेयजल योजना तैयार की।

1927 में कृष्णराजा सागर बांध से संबंधित नहरों व सुरंगों का काम पूरा किया।

हीराकुंड बांध और विश्वेश्वरैया

1937 में उड़ीसा में आई विनाशकारी बाढ़ से दुखी होकर महात्मा गांधी ने विश्वेश्वरैया से अनुरोध किया कि वे उड़ीसा जाकर बाढ़ से रोकथाम संबंधी कार्य करें।

1938 में विशेष औरैया में महा नदी के डेल्टा का गहन अध्ययन किया।

और अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी इसी रिपोर्ट के आधार पर हीराकुंड बांध का निर्माण हुआ।

भारत की प्रथम बहुउद्देश्यीय परियोजना

1902 में शिवसमुद्रम झरने पर बिजली घर लगाया गया। लेकिन योजना लगभग असफल रही।

मैसूर सरकार के सामने कोलार की खानों को पर्याप्त बिजली देने की चुनौती आ गयी।

इस समय मैसूर राज्य के चीफ इंजीनियर विश्वेश्वरैया थै जो बिजली विभाग के सचिव भी थे।

उन्होंने एक महत्वकांक्षी योजना तैयार की। इसके अंतर्गत कावेरी नदी पर एक बहुत बड़ा जलाशय बनाने की योजना थी।

यह परियोजना लगभग 253 करोड रुपए की थी।

सबसे बड़ी समस्या इसे वित्त विभाग से मंजूरी दिलवाने की थी।

उसके बाद भी अनेक समस्याएं आ रही, लेकिन सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त कर 1911 में बांध की नींव डाली गयी।

केवल नींव डालना ही काफी नही था, बहुत सी मानवीय और प्राकृतिक आपदाएं इस परियोजना में आती रही।

लेकिन फिर भी विश्वेश्वरैया जी ने समय पर परियोजना को पूरा कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।

कावेरी नदी पर कृष्णा राजा सागर बांध बन जाने से कर्नाटक कि एक लाख एकड़ भूमि पर सिंचाई होने लगी चीनी के मिलें, रुई की मिलें, सूती कपड़े की मिलें लगाई गयी।

बिजली बनाने के लिए विशाल बिजलीघर लगाया गया, जिससे कोलार की खानों की बिजली आवश्यकता पूरी करने के बाद भी अनेक उद्योगों को बिजली दी गयी।

अनेक शहरों में पेयजल योजनाओं को पूरा इसी जलाशय के माध्यम से किया गया।

अन्य कार्य

देश में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विश्वेश्वरैया ने अखिल भारतीय निर्माता संघ की स्थापना की सन 1941 से 1956 तक वहीं संघ के अध्यक्ष रहे।

अनेक सरकारी व गैर सरकारी समितियों से जुड़े रहे 1922 में वे नई दिल्ली नगर निर्माण कमेटी के सदस्य बने उसी वर्ष उन्हे सर्वदलीय प्रतिनिधि राजनीतिक कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता करने का मौका मिला।

विश्वेश्वरैया जी ने लगभग 70 वर्षों तक देश की सेवा की।

1960 में उनका जन्म शताब्दी वर्ष पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाया गया।

पुरस्कार एवं सम्मान

आइए अब जानते हैं भारतीय इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ-साथ अभियंता दिवस, उनकी शिक्षा, कार्य, पुरस्कार एवं सम्मान के बारे में पूरी जानकारी-

7 सितंबर 1955 के दिन विश्वेश्वरैया को देश के सर्वोच्च नागरिक से भारत रत्न से अलंकृत किया गया।

इससे पूर्व भी इन्हे अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके थे परंतु भारत रत्न के साथ-साथ जो सबसे महत्वपूर्ण सम्मान भारत सरकार द्वारा प्रदान किया गया वह था।

इनके जन्म दिवस 15 सितंबर को राष्ट्रीय अभियंता दिवस के रूप में बनाए जाने की घोषणा करना।

अन्य पुरस्कार

सन् 1911 में दिल्ली दरबार में उन्हें कम्पैनियन ऑफ इंडियन इम्पायर (सी० आई० ई०) के खिताब से सम्मानित किया गया था।

मैसूर राज्य में वाइसराय की यात्रा के बाद सन् 1915 में वे नाइट कमांडर ऑफ दी आर्डर ऑफ दी इंडियन इम्पायर (के० सी० आई० ई०) से सम्मानित किए गए थे।

इस प्रकार वे सर विश्वेश्वरैया बने।

विश्वेश्वरैया को आठ विश्वविद्यालयों से मानद उपाधियाँ प्राप्त हुईं।

बम्बई और मैसूर विश्वविद्यालयों से एल-एल० डी०
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और आंध विश्वविद्यालय से डी० लिट्०
कोलकाता, पटना, इलाहाबाद और जादवपुर विश्वविद्यालयों द्वारा उन्हें डी० एस० की मानद उपाधियाँ दी गईं।

उन्होंने समय-समय पर अनेक विश्वविद्यालयों के दीक्षांत-भाषण भी दिए

रायल एशियाटिक सोसायटी, काउंसिल ऑफ बंगाल, कलकत्ता द्वारा फरवरी 1958 में विश्वेश्वरैया को दुर्गा प्रसाद खेतान स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ।

वे सन् 1887 में ही इंस्टीट्यूट ऑफ सिविल इंजीनियर्स के सह सदस्य बन गए थे। सन् 1904 में सदस्य।

सन् 1952 में उनका नाम इंस्टीट्यूट की सूची में बगैर शुल्क के रखना तय हुआ।

इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स (भारत) के तो वे सन् 1943 से सम्मानित आजीवन सदस्य थे।

इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन के सम्मानित सदस्य

इंस्टीट्यूट ऑफ टाउन प्लानिंग (भारत) के सम्मानित फैलो भी रहे।

भारत के विश्व प्रसिद्ध संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बंगलौर की कोर्ट के लगातार 9 वर्षों तक अध्यक्ष रहे।

टाटा आयरन और स्टील कम्पनी के लगभग 28 वर्षों तक डायरेक्टर रहे।

उन्होंने जनवरी 1923 में लखनऊ में हुए इंडियन कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता की।

विश्वेश्वरैया के जन्म शताब्दी पर भारत सरकार ने एक विशेष डाक टिकट जारी किया।

मृत्यु

अपने 102 वर्ष के लंबे जीवन काल में इन्होंने छोटे-बड़े अनेक कार्य किए और 1962 में उन्होंने अपनी भौतिक दे को त्याग कर परलोक गमन किया।

आशा है कि आपको भारतीय इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ-साथ अभियंता दिवस, उनकी शिक्षा, कार्य, पुरस्कार एवं सम्मान के बारे में पूरी जानकारी पसंद आयी होगी।

विकिपीडिया लिंक- मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या – आधुनिक भारत के निर्माता

भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

सुंदर पिचई का जीनव परिचय (Biography of Sundar Pichai)

मेजर ध्यानचंद (हॉकी के जादूगर)

सिद्ध सरहपा

गोरखनाथ 

स्वयम्भू

महाकवि पुष्पदंत

महाकवि चंदबरदाई

मैथिल कोकिल विद्यापति

व्यंजन संधि Vyanjan Sandhi

व्यंजन संधि Vyanjan Sandhi

व्यंजन संधि Vyanjan Sandhi | परिभाषा | नियम | प्रकार | स्वर सन्धि व्यंजन सन्धि विसर्ग सन्धि अपवाद के बारे में विस्तृत जानकारी

Vyanjan Sandhi व्यंजन का व्यंजन अथवा स्वर के साथ मेल होने से जो विकार उत्पन्न होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
ऋक् + वेद = ऋग्वेद
शरद् + चंद्र = शरच्चन्द्र

सन्धि

परिभाषा- दो ध्वनियों (वर्णों) के परस्पर मेल को सन्धि कहते हैं। अर्थात् जब दो शब्द मिलते हैं तो प्रथम शब्द की अन्तिम ध्वनि (वर्ण) तथा मिलने वाले शब्द की प्रथम ध्वनि के मेल से जो विकार होता है उसे सन्धि कहते हैं।
ध्वनियों के मेल में स्वर के साथ स्वर (परम+ अर्थ)
स्वर के साथ व्यंजन (स्व+छंद)
व्यंजन के साथ व्यंजन (जगत्+विनोद), व्यंजन के साथ स्वर (जगत्+अम्बा)
विसर्ग के साथ स्वर (मनः+अनुकूल) तथा विसर्ग के साथ व्यंजन ( मनः+रंजन) का मेल हो सकता है।

सन्धि की परिभाषा, नियम, प्रकार एवं स्वर सन्धि, व्यंजन सन्धि तथा विसर्ग सन्धि के बारे में विस्तृत जानकारी

प्रकार

सन्धि तीन प्रकार की होती है

1. स्वर सन्धि

2. व्यंजन संधि

3. विसर्ग सन्धि

1. किसी भी वर्ग के पहले व्यंजन के बाद किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा व्यंजन अथवा य, र, ल, व, ह या कोई स्वर में से कोई आए तो पहला व्यंजन अपने वर्ग का तीसरा व्यंजन हो जाता है।
यदि व्यंजन से स्वर का मेल होता है तो जो स्वर की मात्रा होगी वो हलन्त वर्ण में जुड़ जाएगी।
यदि व्यंजन से व्यंजन का मिलन होगा तो वे हलन्त ही रहेंगे।

(व्यंजनों का वर्गीकरण जानने के लिए यहाँ स्पर्श करें)

व्यंजन संधि Vyanjan Sandhi | परिभाषा | नियम | प्रकार | स्वर सन्धि व्यंजन सन्धि विसर्ग सन्धि अपवाद | Vyanjan Sandhi | Swar Sandhi | Visarga
व्यंजन संधि Vyanjan Sandhi

1. क् का ग् में परिवर्तन

ऋक् + वेद = ऋग्वेद

दिक्+दिगंत = दिग्दिगंत

दिक्+वधू = दिग्वधू

दिक्+हस्ती – दिग्हस्ती

दृक् + अंचल – दृगंचल

दिक्+अंबर = दिगम्बर

दिक्+अंचल = दिगंचल

दिक्+गयंद = दिग्गयंद (दिशाओं के हाथी)

दिक्+दर्शन = दिग्दर्शन

दिक्+वारण = दिग्वारण

दिक्+विजय = दिग्विजय

दृक्+विकार = दृग्विकार

प्राक् + ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक

दिक्+गज – दिग्गज

दिक्+अंत = दिगंत

दिक्+ज्ञान = दिग्ज्ञान

वाक्+ईश = वागीश

वाक्+ईश्वरी = वागीश्वरी

वाक्+देवी = वाग्देवी

वाक्+दुष्ट = वाग्दुष्ट

वाक्+विलास = वाग्विलास

वाक्+वैभव = वाग्वैभव

वाक्+वज्र = वाग्वज्र

वाक्+अवयव = वागवयव

वाक्+व्यापार = वाग्व्यापार

वाक्+जड़ता = वाग्जड़ता

वाक्+दत्ता = वाग्दत्ता

वाक्+वितंड = वाग्वितंड

वाक्+हरि = वाग्हरि/वाघरि

वाक्+दंड = वाग्दंड

वाक्+दान = वाग्दान

वाक्+जाल = वाग्जाल

2. च् का ज् में परिवर्तन

अच् + आदि = अजादि

अच् + अंत = अजंत

3. ट् का ड् में परिवर्तन

षट्+गुण = षड्गुण

षट्+यंत्र = षड्यंत्र

षट्+आनन – षडानन

षट्+दर्शन – षड्दर्शन

षट्+अंग – षडंग

षट्+रस – षड्रस

षट्+अक्षर = षडक्षर

षट्+अभिज्ञ = षडभिज्ञ

षट्+भुजा = षड्भुज

सन्धि की परिभाषा, नियम, प्रकार एवं स्वर सन्धि, व्यंजन सन्धि तथा विसर्ग सन्धि के बारे में विस्तृत जानकारी

4. त् का द् में परिवर्तन

वृहत्+आकाश = वृहदाकाश

वृहत्+आकार = वृहदाकार

जगत्+ईश = जगदीश

जगत्+अम्बा = जगदम्बा

जगत्+विनोद = जगद्विनोद

उत्+वेग = उद्वेग

उत्+यान = उद्यान

उत्+भव = उद्भव

उत्+योग = उद्योग

सत् + आनंद = सदानंद

5. प् का ब् में परिवर्तन

अप्+ज = अब्ज

अप्+द = अब्द

सुप् + अंत = सुबंत


2. किसी भी वर्ग के पहले अथवा तीसरे व्यंजन के बाद किसी भी वर्ग का पाँचवाँ व्यंजन आए तो पहला/तीसरा व्यंजन अपने वर्ग का पाँचवाँ व्यंजन हो जाता है

1. क् का ङ में परिवर्तन

दिक्+नाग = दिङ्नाग (दिशा का हाथी)

दिक्+मय = दिङ्मय

दिक्+मुख = दिङ्मुख

दिक्+मूढ़ = दिङ्मूढ

वाक्+मय = वाङ्मय

वाक्+मुख = वाङ्मुख

वणिक् + माता =  वणिङ्माता

वाक्+मूर्ति = वाङ्मूर्ति

सम्यक्+नीति = सम्यङ्नीति

सम्यक्+मात्रा = सम्यङ्मात्रा

2. ट् का ण् में परिवर्तन

षट्+मुख = षण्मुख

षट्+मूर्ति – षण्मूर्ति

षट्+मातुर = षण्मातुर

षट्+नियमावली = षण्नियमावली

षट्+नाम = षण्णाम

षट्+मास = षण्मास

सम्राट् + माता = सम्राण्माता

3. त् का न में परिवर्तन

उत्+मुख = उन्मुख

उत्+मूलन = उन्मूलन

उत्+नति = उन्नति

उत्+मार्ग = उन्मार्ग

उत्+मेष = उन्मेष

उत्+निद्रा = उन्निद्रा

उत्+मूलित = उन्मूलित

उत्+नयन = उन्नयन

उत्+मोचन = उन्मोचन

एतत् + मुरारि = एतन्मुरारी

जगत्+नायक = जगन्नायक

जगत्+मिथ्या = जगन्मिथ्या

जगत्+नियंता = जगन्नियंता

जगत्+मोहिनी = जगन्मोहिनी

तत् + मात्र = तन्मात्रा

उत्+नायक = उन्नायक

उत्+मीलित – उन्मीलित

उत्+मान = उन्मान

चित् + मय = चिन्मय

जगत्+नाथ = जगन्नाथ

जगत्+माता = जगतन्माता

जगत्+निवास = जगन्निवास

जगत्+नियम = जगन्नियम

सत्+ मार्ग = सन्मार्ग

सत्+नारी = सन्नारी

सत्+मति = सन्मति

सत्+निधि = सन्निधि

सत्+नियम = सन्नियम

4. द् का न में परिवर्तन

उपनिषद्+मीमांसा = उपनिषन्मीमांसा

उपनिषद्+मर्म = उपनिषन्मर्म

शरद्+महोत्सव = शरन्महोत्सव

शरद्+मास = शरन्मास


3. यदि म् के बाद क से म तक का कोई भी व्यंजन आए तो म् आए हुए व्यंजन के वर्ग का पाँचवाँ व्यंजन हो जाता है

1. म् का ङ् में परिवर्तन

अलम्+कृति = अलङ्कृति/अलंकृति

अलम्+कृत = अलङ्कृत/अलंकृत

अलम्+करण = अलङ्करण/अलंकरण

अलम्+कार = अलङ्कार/अलंकार

अहम्+कार = अहङ्कार/अहंकार

दीपम्+ कर = दीपङ्कर/दीपंकर

तीर्थम् + कर = तीर्थङ्कर/तीर्थंकर

भयम् + कर = भयङ्कर/भयंकर

शुभम् + कर = शुभङ्कर/शुभंकर

सम्+कलन = सङ्कलन/संकलन

सम्+कीर्तन = सङ्कीर्तन/संकीर्तन

सम्+कोच = सङ्कोच/संकोच

सम्+क्षेप = सङ्क्षेप/संक्षेप

सम्+गति = सङ्गति/संगति

सम्+गठन = सङ्गठन/संगठन

सम्+गीत = सङ्गीत/संगीत

अस्तम् + गत = अस्तङ्गत/अस्तंगत

सम्+गम = सङ्गम/संगम

सम्+घटन = सङ्घटन/संघटन

सम्+घर्ष = सङ्घर्ष/संघर्ष

सम्+घनन = सङ्नन/संघनन

2. म् का ञ् में परिवर्तन

अकिम् + चन = अकिञ्चन/अकिंचन

पम्+चम -पञ्चम/पंचम

सम् + चार = सञ्चार/संचार

चम् + चल = चञ्चल/चंचल

सम्+चय = सञ्चय/संचय

सम्+चित् = सञ्चित/संचित

अम् + जन = अञ्जन/अंजन

चिरम्+जीव = चिरञ्जीवी/चिरंजीव

चिरम्+जीत = चिरञ्जीत/चिरंजीत

धनम् + जय = धनञ्जय/धनंजय

सम्+जय = सञ्जय/संजय

सम्+ज्ञा = सञ्ज्ञा/संज्ञा

सम्+संजीवनी = सञ्जीवनी/संजीवनी

3. म् का ण् में परिवर्तन

दम् + ड = दण्ड/दंड

4. म् का न् में परिवर्तन

चिरम् + तन = चिरन्तन/चिरंतन

परम् + तु = परन्तु/परंतु

सम्+ताप = सन्ताप/संताप

सम्+तति = सन्तति/संतति

सम्+त्रास = सन्त्रास/संत्रास

सम्+तुलन = सन्तुलन/संतुलन

सम्+तुष्ट = सन्तुष्ट/संतुष्ट

सम्+तोष = सन्तोष/संतोष

सम्+देह = सन्देह/संदेह

सम्+देश = सन्देश/संदेश

सम्+धि = सन्धि/संधि

धुरम् + धर = धुरन्धर/धुरंधर

सम् + न्यासी = सन्न्यासी/संन्यासी**

किम् + नर = किन्नर*

सम्+निकट = सन्निकट*

सम्+निहित = सन्निहित*

5. म् का म् में परिवर्तन

सम्+पादक = सम्पादक/संपादक

सम्+प्रदान = सम्प्रदान/संप्रदान

सम्+प्रदाय =सम्प्रदाय/संप्रदाय

सम्+पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण)

सम्+बोधक = सम्बोधक/संबोधक

सम्+बोधन = सम्बोधन/संबोधन

सम्+भाव = सम्भाव/संभाव

सम्+भावना = सम्भावना/संभावना

विश्वम् + भर = विश्वम्भर/विश्वंभर

अवश्यम् + भावी = अवश्यम्भावी/अवश्यंभावी

सम्+मत = सम्मत*

सम्+मान = सम्मान*

सम्+मेलन = सम्मेलन*

सम्+मुख = सम्मुख*

सम्+मोहन = सम्मोहन*
( * दो पंचम वर्ण एक साथ आने पर अनुस्वार नहीं किया जाता
** सन्न्यासी शब्द में भी उक्त नियम लागू होता है परंतु सन्न्यासी शब्द को अभी तक परीक्षाओं में संन्यासी रूप में ही पूछा गया है और इसे ही सही माना गया है व्याकरण की दृष्टि से सन्न्यासी रूप सही है)

4. यदि म् के बाद य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से कोई भी व्यंजन आए तो म् का अनुस्वार हो जाता है

किम् + वदंती = किंवदंती

प्रियम् + वदा – प्रियंवदा

सम्+वाद = संवाद

सम्+वेदना = संवेदना

स्वयम् + वर = स्वयंवर

सम्+ विधान = संविधान

सम्+वाहक = संवाहक

सम्+शय = संशय

सम्+श्लेषण = संश्लेषण

सम्+सर्ग = संसर्ग

सम्+सार = संसार

सम्+सृति = संसृति

किम् + वा = किंवा

सम्+क्षेप = संक्षेप

सम्+त्राण = संत्राण

सम्+लाप = संलाप

सम्+योग = संयोग

सम्+यम = संयम

सम्+लग्न = संलग्न

सम्+वर्धन = संवर्धन

सम्+हार = संहार

सम्+वेदना = संवेदना

सम्+शोधन = संशोधन

सम्+स्मरण = संस्मरण

5. यदि द् के बाद क, ख, क्ष, त, थ, प, स (ट्रिक- तक्षक, सपथ, ख) में से कोई भी व्यंजन आए तो द् का त् हो जाता है

उद्+कट = उत्कट

उद्+क्षिप्त = उत्क्षिप्त

उद्+कीर्ण = उत्कीर्ण

उपनिषद् + कथा = उपनिषत्कथा

तद् + काल = तत्काल

विपद् + काल = विपत्काल

उद् + खनन = उत्खनन

आपद् + ति = आपत्ति

उद्+तर = उत्तर

उद्+तम = उत्तम

उद्+कोच = उत्कोच

उपनिषद् + काल = उपनिषत्काल

तद् + क्षण = तत्क्षण

शरद्+काल = शरत्काल

शरद्+समारोह = शरत्समारोह

शरद्+सुषमा = शरत्सुषमा

उद्+ताप = उत्ताप

उद्+तप्त = उत्तप्त

उद्+तीर्ण = उत्तीर्ण

उद्+तेजक = उत्तेजक

सम्पद् + ति = सम्पत्ति

उद्+पाद = उत्पाद

तद्+पुरुष = तत्पुरुष

उद्+फुल्ल = उत्फुल्ल

सद्+संग = सत्संग

उद्+संग = सत्संग

उद्+सर्ग = उत्सर्ग

उद्+साह = उत्साह

उपनिषद् + समीक्षा = उपनिषत्समीक्षा

संसद् + सत्र = संसत्सत्र

तद्+सम = तत्सम

संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य

व्यंजन संधि Vyanjan Sandhi की परिभाषा, नियम, प्रकार एवं स्वर सन्धि, व्यंजन सन्धि तथा विसर्ग सन्धि के बारे में विस्तृत जानकारी

6. यदि त् अथवा द् के बाद च/छ, ज/झ, ट/ठ, ड/ढ, ल में से कोई भी व्यंजन आए तो त्/द् का क्रमशः च् , ज् ,ट् , ड् , ल् हो जाता है

1. त्/द् का च् में परिवर्तन

उत्+चारण – उच्चारण

उत्+चाटन – उच्चाटन

जगत्+चिंतन = जगच्चिंतन

भगवत् + चरण – भगवच्चरण

वृहत् + चयन् = वृहच्चयन

भगवत् + चिंतन = भगवच्चिंतन

विद्युत + चालक = विद्युच्चालक

सत्+चरित्र = सच्चरित्र

सत्+चित् + आनंद = सच्चिदानंद

शरद् + चंद्र = शरच्चंद्र

उद्+छादन = उच्छादन

उद्+छिन्न = उच्छिन्न

उद्+छेद = उच्छेद

2. त्/द् का ज् में परिवर्तन

उत् + ज्वल = उज्ज्वल

तत् + जन्य = तज्जन्य

तड़ित् + ज्योति = तड़िज्ज्योति

जगत् + जीवन = जगज्जीवन

बृहत् + जन = बृहज्जन

यावत् + जीवन – यावज्जीवन

उत् + जयिनी = उज्जयिनी

जगत् + जननी = जगज्जननी

भगवत् + ज्योति – भगज्ज्योति

बृहत् + ज्योति – बृहज्ज्योति

विपद् + जाल – विपज्जाल

विपद् + ज्वाला = विपज्ज्वाला

3. त्/द् का ट् में परिवर्तन

तत् + टीका = तट्टीका

बृहत् + टीका = बृहट्टीका

मित् + टी = मिट्टी

4. त्/द् का ड् में परिवर्तन

उत् + डयन = उड्डयन

भवत् + डमरू = भवड्डमरू

5. त्/द् का ल् में परिवर्तन

उत्+लेख = उल्लेख

उत्+लंघन = उल्लंघन

तत् + लीन – तल्लीन

तड़ित् + लेखा = तड़िल्लेखा

विपद् + लीन = विपल्लीन

शरद् + लास = शरल्लास

उत् + लिखित + उल्लिखित

विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा

7. यदि त् अथवा द् के बाद श आए तो त्/द् का च् तथा श का छ हो जाता है

उत्+श्वास = उच्छ्वास

उत्+शासन = उच्छासन

उत्+शृंखल = उच्छृंखल

उत्+शिष्ट = उच्छिष्ट

उत्+शास्त्र = उच्छास्त्र

उत्+श्वास = उच्छवास

मृद् + शकटिक = मृच्छकटिक

जगत् + शान्ति = जगच्छांति

शरद् + शवि = शरच्छवि

सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

सत् + शासन- सच्छासन

श्रीमत् + शरत् + चंद्र = श्रीमच्छरच्चंद्र

8. यदि त् अथवा द् के बाद ह आए तो त्/द् का द् तथा ह का ध हो जाता है

उत् + हार = उद्धार

तत् + हित = तद्धित

उत् + हरण = उद्धरण

पत् + हति = पद्धति

मरुत् + हारिणी = मरुद्धारिणी

उत् + हृत = उद्धृत

9. किसी भी स्वर के बाद यदि छ आए तो छ से पहले च् का आगमन हो जाता है

वि + छेद = विच्छेद

तरु + छाया = तरुच्छाया

छत्र + छाया = छत्रच्छाया

प्रति + छाया = प्रतिच्छाया

अनु + छेद = अनुच्छेद

प्र + छन्न = प्रच्छन

स्व + छंद = स्वच्छंद

आ + छादन = आच्छादन

आ + छन्न = आच्छन्न

मातृ + छाया = मातृच्छाया

10. सम् के बाद यदि कृ धातु से बनने वाले शब्द आए तो सम् वाले म् का अनुस्वार तथा अनुस्वार के बाद स् का आगमन हो जाता है
(कृ धातु वाले प्रमुख शब्द- करण, कार, कृत, कृति, कर्ता, कार्य)

सम्+कृत = संस्कृत

सम्+कर्ता = संस्कर्ता

सम्+कृति = संस्कृति

सम्+करण = संस्करण

सम्+कार = संस्कार

सम्+कार्य = संस्कार्य

11. परि के बाद यदि कृ धातु से बनने वाले शब्द आए तो दोनों पदों के बीच ष् का आगमन हो जाता है
(कृ धातु वाले प्रमुख शब्द- करण, कार, कृत, कृति, कर्ता, कार्य)

परि+कृत = परिष्कृत

परि+करण = परिष्करण

परि+कारक = परिष्कारक

परि+कृति = परिष्कृति

परि+कार = परिष्कार

परि+कर्ता = परिष्कर्ता

परि+कार्य = परिष्कार्य

व्यंजन संधि Vyanjan Sandhi की परिभाषा, नियम, प्रकार एवं स्वर सन्धि, व्यंजन सन्धि तथा विसर्ग सन्धि के बारे में विस्तृत जानकारी

12. किसी शब्द में कहीं पर भी इ, ऋ, र, ष में से कोई आए तथा दूसरे शब्द में कहीं पर भी न आए तो न का ण हो जाता है
(विशेष- र और ष हलंत और सस्वर किसी भी रूप में हो सकते हैं)

ऋ + न = ऋण

तर + अन = तरण

दूष् + अन = दूषण

प्र+नेता = प्रणेता

प्रा + आन = प्राण

प्र+मान = प्रमाण

प्र+आंगन = प्रांगण

प्र+नाम = प्रणाम

परि + नय = परिणय

पुरा + न = पुराण

भर + अन = भरण

पोष् + अन = पोषण

मर् + अन = मरण

भूष् + अन = भूषण

परि + नति = परिणति

राम + अयन = रामायण (दीर्घ संधि-अपवाद)

शिक्ष् + अन = शिक्षण

वर्ष् + अन = वर्षण

शूर्प + नखा = शूर्पणखा

विष् + नु = विष्णु

हर् + अन = हरण

13. किसी भी स्वर के बाद यदि स आए तो स का ष हो जाता है यदि उसी पद में स के बाद में कहीं भी थ या न आये तो थ का ठ तथा न का ण क हो जाता है

अभि + सेक =अभिषेक

अभि + सिक्त =अभिषिक्त

उपनि + सद् = उपनिषद्

नि + सेध = निषेध

नि + साद = निषाद

प्रति + शोध + प्रतिषेध

वि+सम + विषम

परि + षद् = परिषद्

वि+साद = विषाद

अनु + संगी = अनुषंगी

सु+सुप्त = सुषुष्त

सु+षमा = सुषमा

सु+सुष्टि = सुषुप्ति

सु+स्मिता = सुष्मिता

जिस संस्कृत धातु में पहले स हो और बाद में ऋ या र या उससे बने शब्द के स उक्त नियम के अनुसार ष में नही बदलते जैसे-

अनु + सार = अनुसार

वि+स्मरण = विस्मरण

वि+सर्ग = विसर्ग

वि+सर्जन = विसर्जन

वि+स्मृति = विस्मृति

सन्धि की परिभाषा, नियम, प्रकार एवं स्वर सन्धि, व्यंजन सन्धि तथा विसर्ग सन्धि के बारे में विस्तृत जानकारी

14. अहन् के बाद यदि र आए तो अहन् पद में आये न् का उ हो जाता है तथा अहन् पद में आए ह व्यंजन के अंतिम स्वर अ का उ से मेल होने से गुण संधि के नियमानुसार दोनों मिलकर ओ हो जाते हैं

अहन्+रात्रि = अहोरात्र

अहन्+रूप – अहोरूप

परन्तु यदि अहन् के बाद र के अतिरिक्त कोई और वर्ण आए तो न् का र् हो जाता है

अहन्+पति = अहर्पति

अहन्+मुख = अहर्मुख

अहन्+अहन् = अहरह

अहन्+निशा = अहर्निश

15. किसी पद में यदि अंतिम व्यंजन द् हो तथा उससे पहले ऋ आए तो द् का ण् हो जाता है

मृद्+मय = मृण्मय

मृद्+मयी = मृण्मयी

मृद्+मूर्ति = मृण्मूर्ति

16. यदि ष् के बाद त/थ है हो तो त/थ का ट/ठ हो जाता है

सृष् + ति = सृष्टि

वृष + ति = वृष्टि

दृष् + ती = दृष्टि

षष् + ति = षष्टि

षष् + थ = षष्ठ

उत्कृष्ट + त = उत्कृष्ट

आकृष् + त = आकृष्ट

पुष् + त = पुष्ट

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

1. स्वर सन्धि

2. व्यंजन संधि

3. विसर्ग सन्धि