वायुमण्डल – संघटन, संरचना और परतें

वायुमण्डल – संघटन, संरचना और परतें

वायुमण्डल का संघटन, वायुमण्डल की संरचना, वायुमण्डल की परतें, वायुमण्डल की गैसें एवं वायुमण्डल का रासायनिक संगठन आदि की पूरी जानकारी

वायु अनेक गैसों का मिश्रण है। वायु पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है। वायु के इस घेरे को ही वायुमण्डल कहते हैं। वायुमण्डल हमारी पृथ्वी का अभिन्न अंग है जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी से जुड़ा हुआ है।

 

वायुमण्डल का संघटन (वायुमण्डल – संघटन, संरचना और परतें)

वायुमण्डल विभिन्न प्रकार की गैसों, जलवाष्प और धूलकणों से बना है। वायुमण्डल का संघटन स्थिर नहीं है यह समय और स्थान के अनुसार बदलता रहता है।

(क) वायुमण्डल की गैसें

जलवाष्प एवं धूलकण सहित वायुमण्डल विभिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण है। नाइट्रोजन और ऑक्सीजन वायुमण्डल की दो प्रमुख गैसें हैं। 99% भाग इन्हीं दो गैसों से मिलकर बना है। 120 किमी की ऊँचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है। इसी प्रकार, कार्बन डाईऑक्साइड एवम् जलवाष्प पृथ्वी को सतह से 90 किमी की ऊँचाई तक ही पाये जाते हैं।

कार्बन डाईऑक्साइड मौसम विज्ञान की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण गैस है, क्योंकि यह सौर विकिरण के लिए पारदर्शी है, लेकिन पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी है। यह सौर विकिरण के एक अंश को सोख लेती है तथा इसके कुछ भाग को पृथ्वी की सतह की ओर प्रतिबिबित कर देती  हैं।

वायुमण्डल की शुष्क और शुद्ध वायु में गैसों की मात्रा

गैसें                                       मात्रा (प्रतिशत में)

नाइट्रोजन                                78.1

आक्सीजन                               20.9

आर्गन                                      0.9

कार्बन-डाई-आक्साइड             0.03

हाइड्रोजन                                0.01

नियॉन                                     0.0018

हीलियम                                  0.0005

ओजोन                                    0.00006

(ख) जलवाष्प

वायुमंडल में जलवाष्प की औसत मात्रा 2% है। ऊंचाई के साथ-साथ जलवाष्प की मात्रा में कमी आती है यह अधिकतम 4% तक हो सकती है। वायुमंडल के संपूर्ण जलवाष्प का 90% भाग 8 किलोमीटर की ऊंचाई तक सीमित है। जलवाष्प की सबसे अधिक मात्रा उष्ण-आर्द्र क्षेत्रों में पाई जाती है तथा शुष्क क्षेत्रों में यह सबसे कम मिलती है। सामान्यतः निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर इसकी मात्रा कम होती जाती है इसी प्रकार ऊँचाई के बढ़ने के साथ इसकी मात्रा कम होती जाती है।

वायुमण्डल संघटन संरचना परतें
वायुमण्डल संघटन संरचना परतें

(ग) धूल कण

धूलकण अधिकतर वायुमण्डल के निचले स्तर में मिलते हैं। ये कण धूल, धुआँ, समुद्री लवण, उल्काओं के कण आदि के रूप में पाये जाते हैं। धूलकणों का वायुमण्डल में विशेष महत्त्व है। ये धूलकण जलवाष्प के संघनन में सहायता करते हैं संघनन के समय जलवाष्प जलकणों के रूप में इन्हीं धूल कणों के चारों ओर संघनित हो जाती है, जिससे बादल बनते हैं | और वर्षण सम्भव हो पाता है।

वायुमण्डल की परतें- (वायुमण्डल – संघटन, संरचना और परतें)

क्षोभ मंडल या परिवर्तन मंडल या ट्रापास्फेयर –

इस परत की धरातल से औसत ऊंचाई पर 13 किलोमीटर है।

क्षोभमंडल की मोटाई भूमध्य रेखा/ विषुवत रेखा पर सबसे अधिक 18 किलोमीटर है, क्योंकि तेज वायुप्रवाह के कारण ताप का अधिक ऊँचाई तक संवहन किया जाता है।

ध्रुवों पर 8 से 10 किलोमीटर है।

इस मंडल में ऊंचाई निश्चित नहीं है।

तापमान कम हो तो नीचे आ जाती है और अधिक हो तो ऊपर चली जाती है।

ध्रुवों पर 8 किलोमीटर रहती है।

मौसम संबंधी परिवर्तन तथा सजीवों के निवास स्थान के रूप में यह परत विख्यात है।

इसी मंडल को परिवर्तन मंडल एवं संवहन मंडल भी कहते हैं।

बादलों का बनना, गर्जना, तडित चमकना, वर्षा होना, आंधी तूफान आना आदि सभी इसी मंडल अथवा परत में होते हैं।

इस संस्तर में प्रत्येक 165 मीटर की ऊंचाई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान घटता है जिससे ताप की सामान्य ह्रास दर कहा जाता है।

*क्षोभ सीमा/ट्रांकोपास-

क्षोभमंडल और समतापमंडल को अलग करने वाले भाग को क्षोभसीमा कहते हैं। विषुवत् वृत्त के ऊपर क्षोभ सीमा में हवा का तापमान -80° से. और ध्रुव के ऊपर -45° से होता है। इसकी ऊंचाई डेढ़ से दो किलोमीटर तक होती है।

इस सीमांत पर तथा इसके ऊपर तापमान गिरना बंद हो जाता है।

इस सीमांत में संवहनीक धाराएं नहीं चलती है।

यहां पर तापमान स्थिर होने के कारण इसे क्षोभ सीमा कहते हैं।

समताप मंडल/स्ट्रेटोस्फयर –

इस परत में तापमान के परिवर्तन समाप्त हो जाते हैं तथा संपूर्ण परत की मोटाई में तापमान लगभग समान पाया जाता है।

क्षोभ सीमा से ऊपर 50 किलोमीटर तक फैले समताप मंडल में मौसम एकदम शांत रहता है अतः वायुयान उड़ाने के लिए उपयुक्त परत है।

समतापमंडल का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण यह है कि इसमें ओजोन परत पायी जाती है। इस मंडल में 20 किलोमीटर से 35 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर बनने वाली ओजोन परत हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है।

समताप मंडल की ऊपरी सीमा पर औसत तापमान 0 डिग्री सेल्सियस हो जाता है।

मध्य मंडल/ मैसोस्फेयर-

मध्यमंडल, समतापमंडल के ठीक ऊपर 80 कि मी. की ऊँचाई तक फैला होता है।

इस संस्तर में भी ऊँचाई के साथ-साथ तापमान कमी होने लगती है और 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँचकर यह माइनस 100° से. हो जाता है।

जो पृथ्वी का न्यूनतम तापमान है इसके आगे तापमान पुनः बढ़ने लगता है।

आयन मंडल/आयनॉस्फेयर (वायुमण्डल – संघटन, संरचना और परतें)

यहां गैंसें आयनिक अर्थात बिखराव की अवस्था में पाई जाती है।

मध्य सीमा के ऊपर 80 से 400 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैले आयन मंडल में विद्युत आवेशित कण पाए जाते हैं, जिन्हें आयन कहते हैं इसीलिए इस मंडल को आयनमंडल कहतज हैं।

इस मंडल द्वारा रेडियो तरंगे परावर्तित की जाती है।

इसी मंडल के कारण उत्तरी ध्रुवीय ज्योति तथा दक्षिणी ध्रुव या ज्योति निर्मित होती है।

रेडियो की लघु तरंगे आयन मंडल की F परत से मध्य तिरंगे E परत से तथा दीर्घ तरंगें D परत से परावर्तित होकर आती है।

इस परत के अस्तित्व का आभास सर्वप्रथम रेडियो तरंगों द्वारा हुआ।

इसकी ऊपरी सीमा का तापमान 1100 डिग्री सेंटीग्रेड हो जाता है।

इस मंडल को थर्मोस्फीयर फिर भी कहते हैं।

बहिर्मंडल/एसोस्फेयर/आयतन मंडल –

इस की ऊपरी सीमा नहीं है फिर भी कुछ वैज्ञानिकों ने इसकी ऊंचाई एक हजार किलोमीटर तक मानी है।

इस परत में कृत्रिम उपग्रह स्थापित किए जाते हैं।

वायुमण्डल का रासायनिक संगठन (वायुमण्डल – संघटन, संरचना और परतें)

इस आधार पर वायुमंडल को दो मंडलों में बांटा गया है।

सममंडल (होमोस्फेयर)

विषम मंडल (थर्मोस्फेयर)

क्षोभमंडल, समतापमंडल तथा मध्यमंडल को संयुक्त रूप से सममंडल या होमोस्फेयर कहते हैं।

आयन मंडल तथा बहिर्मंडल को संयुक्त रूप से विषममंडल या तापमंडल या थर्मोस्फेयर कहा जाता है।

क्षोभसीमा (ट्रोफोस्फेयर)

समताप सीमा (स्ट्रेटोपास)

मध्य सीमा (मेसोपास)

सीमा क्रमशः क्षोभ मंडल, समताप मंडल और मध्य मंडल की ऊपरी सीमा पर डेढ़ से ढाई किलोमीटर मोटा संक्रमण क्षेत्र है।

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