अलंकार निरूपक रीतिकालीन ग्रंथ

अलंकार निरूपक रीतिकालीन ग्रंथ

रीतिकाल में काव्यशास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथों की रचना हुई। यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के विभिन्न अंगों को लेकर लिखे गए। इनमें से कुछ ग्रंथ सर्वांग निरूपक ग्रंथ थे जबकि कुछ विशेषांग निरूपक थे। इस आलेख में अलंकार निरूपक रीतिकालीन ग्रंथ की पूरी जानकारी प्राप्त करेंगे।

विशेषांग निरूपक ग्रंथों में ध्वनि संबंधी ग्रंथ, रस संबंधी ग्रंथ, अलंकार संबंधी ग्रंथ, छंद शास्त्र संबंधी ग्रंथ, इत्यादि ग्रंथों का प्रणयन हुआ।

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अलंकार निरूपक रीतिकालीन ग्रंथ

1. कविप्रिया और रसिकप्रिया ― केशवदास ―

‘कविप्रिया’ में अलंकारों का वर्गीकरण प्रमुख रूप से हुआ है। इसका उद्देश्य काव्य-संबंधी ज्ञान प्रदान करना था अलंकारवादी कवि केशव ने अलंकार का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कहा था कि भूषण बिनु न विराजई कविता, वनिता मित्त।

2. भाषाभूषण ― जसवंत सिंह ―

इसमें अलंकारों का लक्षण और उदाहरण 212 दोहों में वर्णित हुआ है। भाषाभूषण की शैली चंद्रालोक की शैली है।

3. अलंकार पंचाशिका (1690 ई.), ललितललाम ― मतिराम ―

अलंकार पंचाशिका कुमायूँ-नरेश उदोतचंद्र के पुत्र ज्ञानचंद्र के लिए लिखी गई थी जबकि ललितललाम बूँदी नरेश भावसिंह की प्रशंसा में सं. 1716 से 45 के बीच लिखा गया। जिसके क्रम व लक्षण को शिवराज भूषण में अक्षरश: अपनाया गया है।

अलंकार निरूपक रीतिकालीन ग्रंथ

4. शिवराज-भूषण ―

भूषण आलंकारिक कवि कहे जाते हैं। इसके पीछे ‘शिवराज-भूषण’ (1653 ई.) रचना है, जो आलंकारिक है।

5. रामालंकार, रामचंद्रभूषण, रामचंद्रामरण (1716 ई. के आसपास) ― गोप ―

गोप विरचित तीनों रचनाएँ चंद्रालोक की पद्धति पर विरचित हैं।

6. अलंकार चंद्रोदय (1729 ई. रचनाकाल) रसिक सुमति ―

इसका आधार ग्रंथ कुवलयानंद है।

7. कर्णाभरण (1740 ई. रचनाकाल) ― गोविन्द ―

इसकी रचना भाषाभूषण की शैली पर हुई है।

8. कविकुलकण्ठाभरण ― दुलह ―

‘कविकुलकण्ठाभरण’ का आधार ग्रंथ चंद्रलोक एवं कुवलयानंद है।

9. भाषाभरण (रचनाकाल 1768 ई) ― बैरीसाल ―

इस ग्रंथ का आधार कुवलयानंद एवं इसकी वर्णन-पद्धति भाषाभूषण के समान है।

10. चेतचंद्रिका (स. 1840-1870 शुक्लजी के अनुसार) ― गोकुलनाथ

11. पद्माभरण ― पद्माकर ―

पद्माकर द्वारा रचित ‘पद्माभरण’ के आधार चंद्रालोक, भाषाभूषण, कविकुलकण्ठाभरण और भाषाभरण इत्यादि रचनाएँ है।

12. याकूब खां का रसभूषण 1718 ई. एवं शिवप्रसाद का रसभूषण 1822 ई ―

अलंकार और रस दोनों के लक्षण और उदाहरण प्रस्तुत किये गए हैं।

13. काव्यरसायन ― देव का ‘काव्यरसायन’ ग्रंथ एक प्रसिद्ध आलंकारिक ग्रंथ है।

14. अन्य ग्रंथ ― अलंकार गंगा (श्रीपति)

कंठाभूषण (भूपति)

अलंकार रत्नाकर (बंशीधर)

अलंकार दीपक (शंभुनाथ)

अलंकार दर्पण (गुमान मिश्र, हरिनाथ रतन, रामसिंह)

अलंकार मणिमंजरी (ऋषिनाथ)

काव्याभरण (चंदन)

नरेंद्र भूषण (भाण)

फतेहभूषण (रतन)

अलंकार चिंतामणि (प्रतापसाहि)

अलंकार आभा (चतुर्भुज)

अलंकार प्रकाश (जगदीश) इत्यादि।

आधुनिक युग के आलंकारिक-ग्रंथ

1. रामचंद्र भूषण (1890 ई.) लछिराम

2. जसोभूषण / जसवंत भूषण (1950 ई.) ― कविराजा मुरारिदान

3. काव्य प्रभाकर – जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’

4. भारती भूषण-अर्जुनदास केडिया

5. अलंकार मंजरी / मंजूषा – कन्हैयालाल पोद्दार

6. साहित्य परिजात (1940) – पं. शुकदेव बिहारी मिश्र और भतीजे प्रतापनारायण

7. काव्य दर्पण ― रामदहिन मिश्र ― पाश्चात्य अलंकारों – मानवीकरण, ध्वन्यर्थ व्यंजना, विशेषण-विपर्यय को स्वीकार किया।

रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ

पर्यायवाची शब्द (महा भण्डार)

रीतिकाल के राष्ट्रकवि भूषण का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय

अरस्तु और अनुकरण

कल्पना अर्थ एवं स्वरूप

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

संस्मरण और रेखाचित्र

कामायनी के विषय में कथन

कामायनी महाकाव्य की जानकारी

रीतिकाल के रस ग्रंथ

रीतिकाल के रस ग्रंथ

रीतिकाल में काव्यशास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथों की रचना हुई। यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के विभिन्न अंगों को लेकर लिखे गए। इनमें से कुछ ग्रंथ सर्वांग निरूपक ग्रंथ थे जबकि कुछ विशेषांग निरूपक थे। इस आलेख में जानेंगे रीतिकाल के रस ग्रंथ की पूरी जानकारी।

विशेषांग निरूपक ग्रंथों में ध्वनि संबंधी ग्रंथ, रस संबंधी ग्रंथ, अलंकार संबंधी ग्रंथ, छंद शास्त्र संबंधी ग्रंथ, इत्यादि ग्रंथों का प्रणयन हुआ।

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रीतिकाल के रस ग्रंथ

1. रसिकप्रिया ― केशवदास प्रथम रसवादी आचार्य है

इनकी ‘रसिकप्रिया’ एक प्रसिद्ध रस ग्रंथ है।

2. सुंदर श्रृंगार , 1631 ई. ― सुंदर कवि ―

शाहजहाँ के दरबारी कवि सुंदर ने श्रृंगार रस और नायिका भेद का वर्णन इसमें किया है।

3. श्रृंगार मंजरी ― चिंतामणि ―

हिंदी नायिका-भेद के ग्रंथों में ‘श्रृंगार मंजरी’ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। ‘कविकुलकल्पतरु’ इनकी रसविषयक रचना है। इस ग्रंथ में उन्होंने अपना उपनाम मनि (श्रीमनि) का प्रयोग 60 बार किया है।

4. सुधानिधि 1634 ई. ― तोष ―

रसवादी आचार्य तोष निधि ने 560 छंदों में रस का निरूपण (सुधानिधि 1634 ई.) सरस उदाहरणों के साथ किया है।

5. रसराज ― मतिराम ―

इस ग्रंथ में नायक-नायिका भेद रूप में श्रृंगार का बड़ा सुंदर वर्णन हुआ है।

6. भावविलास, भवानीविलास, काव्यरसायन― देव ―

देव ने केवल श्रृंगार रस को सब रसों का मूल माना है, जो सबका मूल है। इन्होंने सुख का रस शृंगार को माना। काव्य रसायन में 9 रसों का विवेचन भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर हुआ है।

7. रसिक रसाल 1719 ई. ― कुमारमणि भट्ट

8. रस प्रबोध 1798 सं. (1741 ई.) रसलीन ―

इनकी रसनिरूपण संबंधित रचना ‘रसप्रबोध’ में 1115 दोहो में रस का वर्णन है। रसलीन का मूल नाम सैयद गुलाब नबी था।

रीतिकालीन रस ग्रंथ

9. रसचंद्रोदय (विनोद चंदोद्रय दूसरा नाम) ― उदयनाथ कवीन्द्र

10. रस सारांश, श्रृंगार निर्णय ― दास

11. रूप विलास ― रूपसाहि

12. रसिक विलास (1770 ई.) ― समनेस

13. श्रृंगार शिरोमणि (1800 ई.) ― यशवंत सिंह

14. रसनिवास (1782 ई.) ― रामसिंह

15. पद्माकर – ‘जगद्विनोद’ काव्यरसिकों और अभ्यासियों के लिए कंठहार है।

इसकी रचना इन्होंने महाराज प्रतापसिंह के पुत्र जगतसिंह के नाम पर की थी।

16. रसिकगोविन्दानन्दघन ― रसिक गोविंद – काव्यशास्त्र विषयक इनका एकमात्र ग्रंथ है।

17. नवरस तरंग ― बेनी प्रवीन ―

इनका ‘नवरस तरंग’ सबसे प्रसिद्ध श्रृंगार-ग्रंथ है, जिसे शुक्ल ने मनोहर ग्रंथ कहा है। श्रृंगारभूषण, नानाराव प्रकाश-बेनी की अन्य कृतियाँ है।

18. रसिकनंद, रसरंग ― ग्वाल ―

शुक्लर्जी ने लिखा है कि – ‘रीतिकाल की सनक इनमें इतनी अधिक थी कि इन्हे ‘यमुनालहरी’ नामक देवस्तुति में भी नवरस और षड्ऋतु सुझाई पड़ी है।’

19. महेश्वरविलास ― लछिराम ―

महेश्वरविलास नवरस और नायिका-भेद पर आधारित रचना है।

20. रसकुसुमाकर (1894 ई.) ― प्रतापनारायण सिंह –

अयोध्या के महाराज प्रतापनारायण सिंह की ‘रसकुसुमाकर में श्रृंगार रस का सुंदर विवेचन मिलता है।

21. रसकलस (1931 ई.) ― अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ―

हरिऔध की ‘रसकलस’ रचना रीति-परंपरा पर रस-संबंधी एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। हरिऔधजी ने अदभुत रस के अंतर्गत रहस्यवाद की गणना की है। यह इस ग्रंथ की नवीनता है।

रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ

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