लेखिका चित्रा मुद्गल-Chitra Mudgal – जीवन परिचय – साहित्य – रचनाएं – कहानी संग्रह – कहानियाँ – व्यक्तित्व – बालकथा – पुरस्कार एवं सम्मान
जीवन परिचय
जन्म- 10 सितंबर 1944 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था।
शिक्षा- प्रारंभिक शिक्षा पैतृक गांव उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में स्थित निहाली खेड़ा और उच्च शिक्षा मुंबई विश्वविद्यालय में हुई।
काल-आधुनिक काल
विधा- गद्य
विवाह:- 17 फरवरी 1965 को प्रखर कथाकार-कवि-पत्रकार श्री अवधनारायण मुद्गल से।
चित्रा मुद्गल का साहित्य
चित्रा जी पहली कहानी स्त्री-पुरुष संबंधों पर थी।
पहली कहानी सफेद सेनारा (1964) में प्रकाशित हुई।
उनके अब तक तेरह कहानी संग्रह, तीन उपन्यास, तीन बाल उपन्यास, चार बाल कथा संग्रह, पांच संपादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
रचनाएं : लेखिका चित्रा मुद्गल-Chitra Mudgal
उपन्यास
एक जमीन अपनी
आवां
गिलिगडु
कहानी संग्रह
भूख
जहर ठहरा हुआ
लाक्षागृह
अपनी वापसी
इस हमाम में
ग्यारह लंबी कहानियाँ
जिनावर
लपटें
जगदंबा बाबू गाँव आ रहे हैं
मामला आगे बढ़ेगा अभी
केंचुल
आदि-अनादि
लघुकला संकलन
बयान
कथात्मक रिपोर्ताज
तहकानों मे बंद
लेख
बयार उनकी मुठ्ठी में
बाल उपन्यास
जीवक
माधवी कन्नगी
मणिमेख
नवसाक्षरों के लिए – जंगल
बालकथा संग्रह
दूर के ढोल
सूझ बूझ
देश-देश की लोक कथाएँ
नाट्य रूपांतर
पंच परमेश्वर तथा अन्य नाटक, सद्गगति तथा अन्य नाटक, बूढ़ी काकी तथा अन्य नाटक
पुरस्कार एवं सम्मान : लेखिका चित्रा मुद्गल-Chitra Mudgal
व्यास सम्मान
इंदु शर्मा कथा सम्मान
साहित्य भूषण
वीर सिंह देव सम्मान
चित्रा मुद्गल संबंधी विशेष तथ्य : लेखिका चित्रा मुद्गल-Chitra Mudgal
2003 में तेरहवां व्यास सम्मान पाने वाली देश की प्रथम लेखिका हैं। उन्हें ये सम्मान उपन्यास ‘आवां’ के लिए दिया गया।
उपन्यास ‘आवां’ आठ भाषाओं में अनूदित तथा देश के 6 प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत है।
चित्रा मुद्गल को उदयराज सिंह स्मृति पुरस्कार से सन् 2010 में सम्मानित किया गया।
बहुचर्चित उपन्यास ‘एक ज़मीन अपनी’ के लिए सहकारी विकास संगठन मुंबई द्वारा फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ सम्मान से सम्मानित।
गरीब, पीड़ित और शोषित महिलाओं के हितों की रक्षा करने वाली संस्था ‘जागरण’ की 1965 से 1972 तक सक्रिय सदस्य रहीं।
मुंबई की एक मजदूर यूनियन, कामगार आघाही की भी सक्रिय कार्यकर्ता रहीं।
सन् 1979 से 1983 तक महिलाओं को स्वावलंबन का पाठ पढ़ानेवाली संस्था ‘स्वाधार’ की सक्रिय कार्यकर्ता रहीं।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की ‘वूमेन स्टडीज़ यूनिट’ की कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तक योजनाओं जैसे दहेज-दावानल, बेगम हज़रत महल, स्त्री समता आदि में 1986 से 1990 तक
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक CL हल ने थॉर्नडाइक के प्रयोग व सिद्धान्त को पढ़ा और उसमें कुछ कमियां महसूस करते हुए उन्होंने 1915 ई. में अपना प्रयोग करने हुए, अपनी प्रसिद्ध पुस्तक प्रिसिंपल ऑफ बिहेवियर्स में अपना सिद्धान प्रस्तुत किया । इन्होने अपने सिहान्त को 1930 और 1951 में एक बार फिर से संशोधित किया।
चूहे पर प्रयोग
हल ने चूहे पर भी प्रयोग किया परन्तु सिद्धांत देते समम इन्होने थार्नडाइक के समान परिस्थितियों में बिल्ली पर प्रयोग किया और अपना सिद्धान्त प्रस्तुत किया । इन्होने प्रयोग करते समय प्रयोग की परिस्थितियों को बदला-
पहली बार बिल्ली को भूखी अवस्था में puzzle box में बंद किया और बाहर की तरफ मछली का टुकड़ा उद्दीपक के रूप में रखा, तब बिल्ली ने प्रयास करते हुए दरवाजा खोलना सीखा।
दूसरी परिस्थिति में बिल्ली को पहले भरपेट भोजन दिया और puzzle box में बन्द किया तथा बाहर की तरफ मछली का टुकड़ा उद्दीपक के रूप में रखा, इस बार बिल्ली ने बाहर आने का अधिक प्रयास नहीं किया।
तीसरी परिस्थिति में बिल्ली को puzzle box में भूखी अवस्था में बंद किया और बाहर आभासी भोजन रखा, तब बिल्ली ने शुरूआत में बाहर आने का प्रयास किया, परन्तु बार-बार आभासी भोजन देने से बिल्ली ने बाहर आना बन्द कर दिया।
सिद्धांत का निष्कर्ष : Reinforcement Theory by Hull
इन अलग-अलग परिस्थितियों में प्रयोग करने के बाद C.L. हल ने सिद्ध किया कि जब बिल्ली भूखी थी और उसे भोजन की आवश्यकता थी तब वह बाहर आने का प्रयास कर रही थी, बाहर रखा भोजन उसके लिए पुनर्बलन का काम कर रहा था।
जब बिल्ली ने भरपेट भोजन कर लिया था और उसे भोजन की आवश्यकता नहीं थी तब बिल्ली ने बाहर आने का प्रयास नहीं किया।
तीसरी परिस्थिति में जब बाहर आने पर पुनर्बलन नहीं मिला तब भी बिल्ली ने बाहर आना बन्द कर दिया अर्थात कोई भी प्राणी उसी कार्म को बार-बार करता है, जिस कार्य को करने से उसकी आवश्यकता पूर्ति होती हैं और आवश्यकता पूर्ति उस प्राणी के लिए पुनर्बलन होता है।
कथन
स्किनर- “अधिगम के साहचर्य से संबधित सिद्धान्तों में हल का सिद्धान्त सर्वश्रेष्ठ है।”
स्टोन्स’- “सीखने का आधार, आवश्यकता कि पूर्ति की प्रक्रिया है। यदि कोई कार्य पशु या मानव की किसी आवश्यकता को पूरा करता है तो वह उसको सीख लेता हैं ।”
हल ने एक सूत्र का प्रतिपादन
B = D x H
B = व्यवहार
D = चालक
H = आदत
S.O.R. सूत्र को स्वीकार किया है ।
सिद्धान्त की उपयोगिता : Reinforcement Theory by Hull
इस सिद्धान्त के आधार पर ही विभिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम की विषम वस्तु का निर्माण किया जाता है।
यह सिद्धान्त प्रोत्साहन पर बल देता है।
यह चालक के महत्त्व को स्पष्ट करता है।
सकारात्मक पुनर्बलन पर बल देता हैं।
यह सिद्धान्त आवश्यकता के महत्त्व को स्पष्ट करता है।
बालक को सीखने की अभिप्रेरणा देता है।
यह सिद्धान्त उच्च स्तर के लिए अधिक उपयोगी है।
यह सिद्धान्त वास्तविक जीवन से जोड़ने पर बल देता हैं।
अभ्यास पर बल, कृत्रिम प्रोत्साहन व पुरस्कार के प्रयोग पर बल देता है।
विशेष- पाठयक्रम की विषय वस्तु का निर्माण हल के सिद्धान्त के आधार पर किया जाता है, जबकि पाठमक्रम का निर्माण गेस्टाल्ट थ्योरी पर आधारित है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Aachrya Ramchandra Shukla जीवन-परिचय साहित्य परिचय निबंध संग्रह आलोचना ग्रंथ भाषा शैली हिंदी साहित्य काल विभाजन
जीवन-परिचय
जन्म- 4 अक्टूबर, 1884
जन्म भूमि – अगोना, बस्ती ज़िला, उत्तर प्रदेश
मृत्यु -1941 ई.
अभिभावक- पं. चंद्रबली शुक्ल
कर्म भूमि- वाराणसी
कर्म क्षेत्र- साहित्यकार, निबंध सम्राट, आलोचक, लेखक
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
साहित्य परिचय
रचनाएं
कहानी
ग्याहर वर्ष का समय,1903 ई (सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित)
आलोचना ग्रंथ
जायसी ग्रंथावली 1925
भ्रमरगीतसार 1926
हिंदी साहित्य का इतिहास,1929
काव्य में रहस्यवाद-1929
रस मीमांसा (सैद्धान्तिक समीक्षा)
महाकवि सूरदास (व्यावहारिक समीक्षा)
विश्व प्रपंच (दर्शन)
गोस्वामी तुलसीदास,1933
साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद
रसात्मक बोध के विविध रूप
निबंध
चिंतामणि (चार खण्ड)
इनके समस्त निबंधों को चिंतामणि के दो भागों में संकलित किया गया था चिंतामणि का प्रथम भाग 1939 वह द्वितीय भाग 1945 ईसवी में प्रकाशित हुआ था। वर्तमान में इसके चार खंड उपलब्ध हैं।
चिंतामणि के प्रथम भाग में संकलित निबंध (सत्रह)
भाव या मनोविकार
उत्साह
श्रद्धा- भक्ति
करुणा
लज्जा और ग्लानि
लोभ और प्रीति
घृणा
ईर्ष्या
भय
क्रोध
कविता क्या है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
तुलसी का भक्ति मार्ग
‘मानस’ की धर्म भूमि
काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था
साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद (आलोचना विद्या)
रसात्मक बोध के विविध रूप (आलोचना विद्या)
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के 400 से अधिक महत्त्वपूर्ण कथनों के लिएयहाँ क्लिक कीजिए
भाग दो में
प्राकृतिक दृश्य
काव्य में रहस्यवाद
काव्य में अभिव्यंजनावाद
चिंतामणि को पहले ‘विचार-विथि’ नाम से प्रकाशित करवाया गया था।
चिंतामणि रचना के लिए इनको ‘देव पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था।
ये हिंदी में ‘कलात्मक निबंधों’ के जनम दाता माने जाते हैं।
इनको ‘निबंध सम्राट’ के नाम से जाना जाता है।
चिंतामणि भाग-3 (1983 ई.)
इसके संपादक डॉ. नामवरसिंह हैं। इस कृति में कुल 21 निबंध है।
चिंतामणि भाग-4 (2002 ई.)
इसके संपादक डॉ. कुसुम चतुर्वेदी और डॉ. ओमप्रकाश सिंह है। इस रचना में कुल 47 निबंध है।
इतिहास ग्रंथ
हिंदी साहित्य का इतिहास
(सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य का सर्वप्रथम परंपरागत इतिहास)
रचनाकाल- 1929 ई.
प्रकाशक- नागरी प्रचारणी सभा, काशी
जनवरी, 1929 में यह पुस्तक ‘नागरी प्रचारणी सभा, काशी’ द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘हिंदी शब्दसागर की भूमिका’ (‘हिंदी साहित्य का विकास’ नाम से) के रूप में प्रकाशित हुई थी।
इसी वर्ष के मध्य में उस भूमिका के आरंभ एवं अंत में बहुत सी बातें बढ़ाकर आचार्य शुक्ल ने इसे स्वतंत्र पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया।
1940 ईस्वी में इसका परिवर्तित एवं संशोधित संस्करण प्रकाशित करवाया गया।
(हिंदी शब्द सागर के निर्माण में निम्न तीन विद्वानों का योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है- बाबू श्यामसुंदर दास, रामचंद्र शुक्ल, रामचंद्र वर्मा)
‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ ग्रंथ की प्रमुख विशेषताएं : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीवन-परिचय
सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन की परंपरा का विकास आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा ही किया गया।
इस पुस्तक में लगभग 1000 कवियों के जीवन चरित्र का विवेचन किया गया है|
कवियों की संख्या की अपेक्षा उनके साहित्यिक मूल्यांकन को महत्व प्रदान किया गया है अर्थात हिंदी साहित्य के विकास में विशेष योगदान देने वाले कवियों को ही इसमें शामिल किया गया है कम महत्व वाले कवियों को इसमें जगह नहीं मिली है।
इसमें प्रत्येक काल या शाखा की सामान्य प्रवृत्तियों का वर्णन कर लेने के बाद उससे संबंध प्रमुख कवियों का वर्णन किया गया है।
कवियों के काव्य निरुपण में आधुनिक समालोचनात्मक दृष्टिकोण को अपनाया गया है।
कवियों एवं लेखकों की रचना शैली का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है।
उस युग में आने वाले अन्य कवियों का विवरण उसके बाद फुटकल खाते में दिया गया है।
केदारनाथ पाठक ने इस रचना के लेखन में शुक्ल जी को अपूर्व सहयोग प्रदान किया था।
इस रचना के लेखन में शुक्ल जी ने निम्न रचनाओं से विशेष साहित्य सामग्री ग्रहण की थी-
मिश्रबंधु विनोद- मिश्रबंधु
हिंदी कोविद् रत्नमाला- श्यामसुंदरदास
कविता कौमुदी- रामनरेश त्रिपाठी
ब्रजमाधुरी सार- वियोगी हरी
काल विभाजन : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीवन-परिचय
आचार्य शुक्ल ने हिंदी साहित्य के 900 वर्षों के इतिहास को निम्न चार सुस्पष्ट काल खंडों में वर्गीकृत किया है, जो आज तक भी लगभग सभी इतिहासकारों द्वारा मान्य किया जा रहा है, यथा-
वीरगाथाकाल (आदिकाल)- वि.स. 1050 से वि.स. 1375 तक ( 993-1318 ई.) वीरगाथाकाल के दो भाग-
(I) अपभ्रंस काल या प्राकृताभाषा हिंदी काल (1050-1200 वि.) (II) वीरगाथाकाल (1200-1375 वि.)
पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल)- वि.स. 1375 से वि.स. 1700 (1318-1643 ई)
उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल)- वि.स. 1700 से वि.स. 1900 तक (1643-1843 ई.)
गद्य काल (आधुनिक काल)-वि.स. 1900 सें वि.स 1984 (1843-1927 ई.)
रामचंद्र शुक्ल ने वीरगाथा काल के नामकरण के लिए निम्न 12 ग्रंथों का आधार लिया था-
सन् 1909 से 1910 ई. के लगभग वे ‘हिन्दी शब्द सागर’ के सम्पादन में सहायक के रूप में काशी आ गये, यहीं पर काशी नागरी प्रचारिणी सभा के विभिन्न कार्यों को करते हुए उनकी प्रतिभा चमकी।
‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का सम्पादन भी उन्होंने कुछ दिनों तक किया था।
सन् 1937 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए एवं इस पद पर रहते हुए ही सन् 1941 ई. में उनकी श्वास के दौरे में हृदय गति बन्द हो जाने से मृत्यु हो गई।
शुक्ल जी ने हिंदी साहित्य का पहला क्रमबद्ध इतिहास तैयार किया और साहित्यक आलोचना की पद्धति विकसित की।
चिंतन और विश्लेषण परक निबंधकार के रूप में भी उनका स्थान शीर्ष पर है।
कविता, नाटक, कहानी आदि सर्जनात्मक विद्याओं में भी उनका उल्लेखनीय योगदान है।
गोस्वामी तुलसीदास, जायसी ग्रंथावली एवं भ्रमरगीत सार इन तीनों ग्रंथों की भूमिका त्रिवेणी में संकलित है।
त्रिवेणी में तीन महाकवियों सूरदास तुलसीदास और जायसी की समीक्षाएँ प्रस्तुत की हैं।
‘काव्य में रहस्यवाद’ इनकी सर्वप्रथम सैद्धांतिक आलोचना मानी जाती है।
‘रस मीमांसा’ रचना में इन्होंने सिद्धांत के विभिन्न पक्षों की नई व्याख्या प्रस्तुत की है।
जिन्होंने आलोचना के तीनों रूपों सैद्धांतिक, व्यावहारिक एवं ऐतिहासिक पर अपनी लेखनी चलाई है।
शुक्ल ने भूषण की भाषा की आलोचना की है।
“काव्य में रहस्यवाद” निबंध पर इन्हें हिंदुस्तानी एकेडमी से 500 रुपये का पुरस्कार।
‘चिंतामणि’ पर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा 1200 रुपये का मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।
“काव्य में रहस्यवाद” निबंध पर इन्हें हिन्दुस्तानी अकादमी से 500 रुपये का तथा चिंतामणि पर हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग द्वारा 1200 रुपये का मंगला प्रशाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।
शुक्ल ने जोसेफ़ एडिसन के ‘प्लेजर्स ऑफ़ इमेजिनेशन’ का ‘कल्पना का आनन्द’ नाम से एवं राखलदास वन्द्योपाध्याय के ‘शशांक’ उपन्यास का भी हिन्दी में रोचक अनुवाद किया।
विशेष तथ्य
रामचन्द्र शुक्ल ने ‘जायसी ग्रन्थावली’ तथा ‘बुद्धचरित’ की भूमिका में क्रमश: अवधी तथा ब्रजभाषा का भाषा-शास्त्रीय विवेचन करते हुए उनका स्वरूप भी स्पष्ट किया है।
उन्होंने सैद्धान्तिक समीक्षा पर लिखा, जो उनकी मृत्यु के पश्चात् संकलित होकर ‘रस मीमांसा’ नाम की पुस्तक में विद्यमान है तथा तुलसी, जायसी की ग्रन्थावलियों एवं ‘भ्रमर गीतसार’ की भूमिका में लम्बी व्यावहारिक समीक्षाएँ लिखीं, जिनमें से दो ‘गोस्वामी तुलसीदास ‘ तथा ‘महाकवि सूरदास ‘ अलग से पुस्तक रूप में भी प्रकाशित हैं।
दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी ‘विश्व प्रपंच’ पुस्तक उपलब्ध है। यह पुस्तक ‘रिडल ऑफ़ दि युनिवर्स’ का अनुवाद है, पर उसकी लम्बी भूमिका शुक्ल जी के द्वारा किया गया मौलिक प्रयास है।
उन्होंने ‘आलम्बनत्व धर्म का साधारणीकरण’ माना।
काव्य शैली के क्षेत्र में उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थापना ‘बिम्ब ग्रहण’ को श्रेष्ठ मानने सम्बन्धी है।
शुक्ल ने काव्य को कर्मयोग एवं ज्ञानयोग के समकक्ष रखते हुए ‘भावयोग’ कहा, जो मनुष्य के हृदय को मुक्तावस्था में पहुँचाता है।
वे कविताएँ भी लिखते थे। उनका एक काव्य संग्रह ‘मधुस्रोत’ है।
शुक्ल जी ‘हिंदी शब्दसागर’ के सहायक संपादक नियुक्त किए गए। ‘हिंदी शब्दसागर’ के प्रधान संपादक श्यामसुंदर दास थे। ‘हिंदी शब्दसागर’ का प्रकाशन 11 खंडों में हुआ।
शुक्ल जी ने ‘शब्दसागर की भूमिका’ के लिए ‘हिंदी साहित्य का विकास’ लिखा उसी तरह श्यामसुंदर दास ने ‘हिंदी भाषा का विकास’ लिखा। श्यामसुंदर दास की यह इच्छा थी कि दोनों भूमिकाएँ संयुक्त रूप से प्रकाशित हों और लेखक के रूप में दोनों का नाम छपे। शुक्ल जी ने इसका घोर विरोध किया। यह कहा जाता है कि सभा में लाठी के बल पर रात में अयोध्यासिंह उपाध्याय ने जाकर इतिहास पर शुक्ल जी का नाम छपवाया।
हँसो हँसो जल्दी हँसो (आपातकाल सें संबंधित कविताओं का संग्रह)
कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ, 1989
एक समय था
कहानी संग्रह
रास्ता इधर से है
जो आदमी हम बना रहे है
नाटक
बरनन वन (शेक्सपियर द्वारा रचित’मैकबेथ’ नाटक का अनुवाद)
निबंध संग्रह
दिल्ली मेरा परदेस
लिखने का कारण
ऊबे हुए सुखी
वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे
भँवर लहरें और तरंग
पत्र-पत्रिकाओं में लेखन और संपादन
रघुवीर सहाय ‘नवभारत टाइम्स’, दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। ‘दिनमान’ पत्रिका के 1969 से 1982 तक प्रधान संपादक रहे।
उन्होंने 1982 से 1990 तक स्वतंत्र लेखन किया।
पुरस्कार एवं सम्मान : रघुवीर सहाय जीवन परिचय
साहित्य अकादमी पुरस्कार,1984 (लोग भूल गए हैं)
प्रसिद्ध पंक्तियां : रघुवीर सहाय जीवन परिचय
“तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्थर ये चट्टानें
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती का हम जानें
सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने”
“राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है.”
“पतझर के बिखरे पत्तों पर चल आया मधुमास,
बहुत दूर से आया साजन दौड़ा-दौड़ा
थकी हुई छोटी-छोटी साँसों की कम्पित
पास चली आती हैं ध्वनियाँ
आती उड़कर गन्ध बोझ से थकती हुई सुवास”
“निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे”
विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar जीवन परिचय – साहित्यिक परिचय – रचनाएं – कहानियाँ – एकांकी – नाटक – बाल साहित्य – भाषा शैली – पुरस्कार एवं सम्मान
जीवन परिचय
अन्य नाम – विष्णु दयाल
जन्म -21 जून, 1912
जन्म भूमि- मीरापुर, ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु -11 अप्रैल, 2009
मृत्यु स्थान -नई दिल्ली (प्रभाकर जी ने अपनी वसीयत में मृत्यूपरांत अपने संपूर्ण अंगदान करने की इच्छा व्यक्त की थी। इसीलिए उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया, बल्कि उनकी पार्थिव देह को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया।)
अभिभावक -दुर्गा प्रसाद (पिता), महादेवी (माता)
पत्नी – सुशीला
काल: -आधुनिक काल
विधा: -गद्य
विषय:- कहानी, उपन्यास, नाटक
साहित्यिक परिचय
रचनाएं : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar
कविता संग्रह
चलता चला जाऊँगा
कहानी संग्रह
‘संघर्ष के बाद’
‘धरती अब भी धूम रही है’
‘मेरा वतन’,
‘खिलौने’, 1981
‘एक और कुंती’,1985
‘जिन्दगी: एक रिहर्सल’ 1986
‘आदि और अन्त’,
‘एक आसमान के नीचे’,
‘अधूरी कहानी’,
‘कौन जीता कौन हारा’,
‘तपोवन की कहानियाँ’,
‘पाप का घड़ा’,
‘मोती किसके’
एक कहानी का जन्म
रहमान का बेटा
जिंदगी के थपेड़े
सफर के साथी
खंडित पूजा
साँचे और कला
पुल टूटने से पहले
आपकी कृपा
उपन्यास
(ऐतिहासिक/व्यक्तिवादी उपन्यासकार)
‘ढलती रात’,
‘स्वप्नमयी’,
‘अर्द्धनारीश्वर’, 1992 (इस उपन्यास पर 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला)
‘होरी’,
‘कोई तो’,
‘निशिकान्त’, 1955
‘तट के बंधन’,
‘स्वराज्य की कहानी’
‘संकल्प-1993
तट के बंधन
दर्पण का व्यक्ति
परछाई
कोई तो
आत्मकथा
‘क्षमादान’ और ‘पंखहीन’ नाम से उनकी आत्मकथा 3 भागों में राजकमल प्रकाशन से 2004 में प्रकाशित हो चुकी है।
‘पंछी उड़ गया’, 2004
‘मुक्त गगन में’ 2004
नाटक : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar
‘समाधि’,
‘सत्ता के आर-पार’, 1981
‘नवप्रभात’,
‘डॉक्टर’,
‘लिपस्टिक की मुस्कान’,
अब और नही,
टूट्ते परिवेश,
गान्धार की भिक्षुणी और
‘रक्तचंदन’,
‘युगे युगे क्रान्ति’,
‘बंदिनी’
‘श्वेत कमल’
– ‘डॉक्टर’ एक मनोवैज्ञानिक सामाजिक नाटक है,जिसमें डॉ. अनीला के संदर्भ में भावना और नैतिक कर्तव्य का संघर्ष दिखाया गया है |
-‘बंदिनी’ प्रभात कुमार मुखोपाध्याय द्वारा रचित कहानी ‘देवी’ का नाट्य रूपान्तरण है|
एकांकी
प्रकाश और परछाई,
इंसान,
बारह एंकाकी,
क्या वह दोषी था,
दस बजे रात,
ये रेखाएँ ये दायरे,
ऊँचा पर्वत गहरा सागर
जीवनी : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar
आवारा मसीहा (नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने से शरच्चंद्र पर आवारा मसीहा नामक जीवनी लिखी। इसे लिखने में 14 वर्ष का समय लगा। यह जीवनी 1974 में प्रकाशित हुई। इसके 3 भाग है-
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कविताएं, कहानियाँ, काव्य विशेषताएं, भाषा शैली, पुरस्कार एवं सम्मान
जीवन परिचय
जन्म- 7 मार्च 1911 कुशीनगर, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु- 4 अप्रैल 1987 दिल्ली, भारत
उपनाम- अज्ञेय
बचपन का नाम- सच्चा
ललित निबंधकार नाम- कुट्टिचातन
रचनाकार नाम- अज्ञेय (जैनेन्द्र-प्रेमचंद द्वारा दिया गया)
पिता- पंडित हीरानन्द शास्त्री
माता- कांति देवी
कार्यक्षेत्र- कवि, लेखक
भाषा- हिन्दी
काल- आधुनिक काल
विधा- कहानी, कविता, उपन्यास, निबंध
विषय- सामाजिक, यथार्थवादी
आन्दोलन- नई कविता, प्रयोगवाद
1930 से 1936 तक इनका जीवन विभिन्न जेलों में कटा।
1943 से 1946 ईसवी तक सेना में नौकरी की।
आपने क्रांतिकारियों के लिए बम बनाने का कार्य भी किया और बम बनाने के अपराध में जेल गए।
इसके बाद उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी की।
सन् 1971-72 में जोधपुर विश्वविद्यालय में ‘तुलनात्मक साहित्य’ के प्रोफेसर।
1976 में छह माह के लिए हइडेलबर्ग जर्मनी के विश्वविद्यालय में अतिथि प्रोफेसर।
इनका जीवन यायावरी एवं क्रांतिकारी रहा जिसके कारण वह किसी एक व्यवस्था में बंद कर नहीं रह सके।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय
साहित्यिक परिचय
कलिष्ट शब्दों का प्रयोग करने के कारण आचार्य शुक्ल ने इन्हें ‘कठिन गद्य का प्रेत’कहा है।
इनको व्यष्टि चेतना का कवि भी कहा जाता है।
‘हरी घास पर क्षणभर’ इनकी प्रौढ़ रचना मानी जाती है इसमें बुलबुल श्यामा, फुदकी, दंहगल, कौआ जैसे विषयों को लेकर कवि ने अपनी अनुभूति का परिचय दिया है।
इंद्रधनुष रौंदे हुए रचना में नए कवियों की भावनाओं को अभिव्यक्त किया गया है।
उनका लगभग समग्र काव्य सदानीरा (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है।
इन्होंने गधे जैसे जानवर को भी काव्य का विषय बनाया।
इनके काव्य की मूल प्रवृतियां आत्म-स्थापन या अपने आपको को थोपने की रही है अर्थात इन्होंने स्वयं का गुणगान करके दूसरों को तुच्छ सिद्ध करने का प्रयास किया है।
इनकी कविताओं में प्रकृति, नारी, कामवासना आदि विभिन्न विषयों का निरूपण हुआ है किंतु वहां भी यह अपनी ‘अहं और दंभ ‘को छोड़ नहीं पाए हैं।
असाध्य वीणा कविता चीनी (जापानी) लोक कथा पर आधारित है, जो ‘ओकाकुरा’ की पुस्तक ‘दी बुक ऑफ़ टी’ में ‘टेमिंग ऑफ द हार्प’ शीर्षक से संग्रहित है। यह एक लम्बी रहस्यवादी कविता है जिस पर जापान में प्रचलित बौद्धों की एक शाखा जेन संप्रदाय के ‘ध्यानवाद’ या ‘अशब्दवाद’ का प्रभाव परिलक्षित होता है। यह कविता अज्ञेय के काव्य संग्रह ’आँगन के पार द्वार’ (1961) में संकलित है। आँगन के पार द्वार कविता के तीन खण्ड है –
1. अंतः सलिला
2. चक्रान्त शिला
3. असाध्य वीणा
कहानियाँ
विपथगा 1937,
परम्परा 1944,
कोठरीकी बात 1945,
शरणार्थी 1948,
जयदोल 1951
उपन्यास
शेखर एक जीवनी- प्रथम भाग 1941, द्वितीय भाग 1944
नदी के द्वीप 1951
अपने – अपने अजनबी 1961
यात्रा वृतान्त
अरे यायावर रहेगा याद? 1943
एक बूँद सहसा उछली 1960
निबंध संग्रह
सबरंग,
त्रिशंकु, 1945
आत्मनेपद, 1960
आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य,
आलवाल,
भवन्ती 1971 (आलोचना)
अद्यतन 1971 (आलोचना)
संस्मरण
स्मृति लेखा
डायरियां
भवंती
अंतरा
शाश्वती
नाटक
उत्तरप्रियदर्शी
संपादित ग्रंथ
आधुनिक हिन्दी साहित्य (निबन्ध संग्रह) 1942
तार सप्तक (कविता संग्रह) 1943
दूसरा सप्तक (कविता संग्रह)1951
नये एकांकी 1952
तीसरा सप्तक (कविता संग्रह), सम्पूर्ण 1959
रूपांबरा 1960
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : पत्र पत्रिकाओं का संपादन
विशाल भारत (कोलकता से)
सैनिक (आगरा से)
दिनमान (दिल्ली)
प्रतीक (पत्रिका) (इलाहाबाद)
नवभारत टाईम्स
1973-74 में जयप्रकाश नारायण के अनुरोध पर ‘एवरी मेंस वीकली’ का संपादन।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा कहे गए प्रमुख कथन
‘‘प्रयोगवादी कवि किसी एक स्कूल के कवि नहीं हैं, सभी राही हैं, राही नहीं, राह के अन्वेषी हैं।’’ -तार सप्तक की भूमिका में
‘‘प्रयोगवाद का कोई वाद नहीं है, हम वादी नहीं रहे, नहीं हैं। न प्रयोग अपने आप में इष्ट या साध्य है। इस प्रकार कविता का कोई वाद नहीं।’’ -दूसरा सप्तक की भूमिका में
‘‘प्रयोग दोहरा साधन है।’’
‘‘प्रयोगशील कवि मोती खोजने वाले गोताखोर हैं।’’
‘‘हमें प्रयोगवादी कहना उतना ही गलत है, जितना कहना कवितावादी।’’
‘‘काव्य के प्रति एक अन्वेषी का दृष्टिकोण ही उन्हें (तार सप्तक के कवियों को) समानता के सूत्र में बांधता है।’’
‘‘प्रयोगशील कविता में नये सत्यों, कई यथार्थताओं का जीवित बोध भी है, उन सत्यों के साथ नये रागात्मक संबंध भी और उनको पाठक या सहृदय तक पहुँचाने यानी साधारणीकरण की शक्ति है।’’
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : पुरस्कार एवं सम्मान
आंगन के पार द्वार रचना के लिए इनको 1964 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।
‘कितनी नावों में कितनी बार’ रचना के लिए इनको 1978 ईस्वी में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
1979 में ज्ञानपीठ पुरस्कार राशि के साथ अपनी राशि जोड़कर ‘वत्सल निधि’ की स्थापना।
1983 में यूगोस्लाविया के कविता-सम्मान गोल्डन रीथ से सम्मानित।
1987 में ‘भारत-भारती’ सम्मान की घोषणा।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय संबंधी विशेष तथ्य
प्रयोगवाद के प्रवर्तन का श्रेय अज्ञेय को है।
अज्ञेय अस्तित्ववाद में आस्था रखने वाले कवि हैं।
अज्ञेय को प्रयोगवाद तथा नयी कविता का शलाका पुरुष भी कहा जाता है।
असाध्य वीणा एक लंबी कविता है। इसका मूल भाव अहं का विसर्जन है।
असाध्य वीणा चीनी लोक कथा ‘टेमिंग आफ द हाॅर्प’ की भारतीय परिवेश में प्रस्तुति है।
‘एक चीड़ का खाका’ जापानी छंद हायकू में लिखा हुआ है।
‘बावरा अहेरी’ की प्रारंभिक पंक्तियों पर फारसी के प्रसिद्ध कवि उमर खैय्याम की रूबाइयों का प्रभाव माना जाता है।
‘बावरा अहेरी’ इनके जीवन दर्शन को प्रतिबिंबित करने वाली रचना है।
‘असाध्य वीणा’ कविता में मौन भी है अद्वैत भी है यह इनकी प्रतिनिधि कविता मानी जाती है यह कविता जैन बुद्धिज्म पर आधारित मानी जाती है।
प्रयोगवाद का सबसे ज्यादा विरोध करने वाले अज्ञेय ही थे।
डाॅ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इनको ‘‘बीसवीं सदी का बाणभट्ट’’ कहा है।
जैनेंद्र के उपन्यास ‘त्यागपत्र’ का ‘दि रिजिग्नेशन’ नाम से अंग्रेजी अनुवाद किया।
महादेवी वर्मा Mahadevi Verma का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, महादेवी वर्मा की रचनाएं, कविताएं, काव्य संग्रह, भाषा शैली, निबंध, बाल साहित्य
जन्म- 26 मार्च, 1907, फ़र्रुख़ाबाद
पिता- गोविंद प्रसाद
निधन- 11 सितम्बर, 1987, प्रयागराज
आधुनिक साहित्य की मीरा
महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय
महादेवी वर्मा की रचनाएं
रेखाचित्र
अतीत के चलचित्र (1941)
स्मृति की रेखाएँ (1943)
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
संस्मरण
पथ के साथी (1956, अपने अग्रज समकालीन साहित्यकारों पर)
मेरी परिवार (1972, पशु-पक्षियों पर)
संस्मरण (1983)
ललित निबंध
क्षणदा (1956)
चुने हुए भाषणों का संग्रह
संभाषण (1974)
कहानियाँ
गिल्लू
निबन्ध
विवेचनात्मक गद्य (1942)
श्रृंखला की कड़ियाँ (1942, भारतीय नारी की विषम परिस्थितियों पर)
साहित्यकार की आस्था और अन्य निबन्ध (1962, सं. गंगा प्रसाद पांडेय, महादेवी का काव्य-चिन्तन)
संकल्पिता (1969)
भारतीय संस्कृति के स्वर (1984)।
चिन्तन के क्षण
युद्ध और नारी
नारीत्व का अभिशाप
सन्धिनी
आधुनिक नारी
स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न
सामाज और व्यक्ति
संस्कृति का प्रश्न
हमारा देश और राष्ट्रभाषा
कविता संग्रह : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
नीहार (1930)
रश्मि (1932)
नीरजा (1934)
सांध्यगीत (1935)
यामा (1940)
दीपशिखा (1942)
सप्तपर्णा (1960, अनूदित)
संधिनी (1965)
नीलाम्बरा (1983)
आत्मिका (1983)
दीपगीत (1983)
प्रथम आयाम (1984)
अग्निरेखा (1990)
पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)
परिक्रमा
गीतपर्व
पुनर्मुद्रित संकलन
(निम्नलिखित संकलनों में महादेवी वर्मा की नयी कवितायें नहीं हैं, बल्कि पुराने संकलनों को ही नयी भूमिकाओं के साथ पुनर्मुद्रित किया गया है।)
यामा (1940)
हिमालय (1960)
दीपगीत (1983)
नीलाम्बरा (1983)
आत्मिका (1983)
गीतपर्व
परिक्रमा
संधिनी
स्मारिका
पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)
बाल साहित्य
ठाकुर जी भोले हैं
आज खरीदेंगे हम ज्वाला
बंगाल के अकाल के समय 1943 में इन्होंने एक काव्य संकलन प्रकाशित किया था और बंगाल से सम्बंधित “बंग भू शत वंदना” नामक कविता भी लिखी थी। इसी प्रकार चीन के आक्रमण के प्रतिवाद में हिमालय (1960) नामक काव्य संग्रह का संपादन किया था।
पुरस्कार और सम्मान : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
1934 ‘नीरजा’ पर ‘सेक्सरिया पुरस्कार
1942 ‘ द्विवेदी पदक’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)
1943 ‘मंगला प्रसाद पुरस्कार’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)
1943 ‘ भारत भारती पुरस्कार’, (‘स्मृति की रेखाओं’ के लिये)
1944 ‘यामा’ कविता संग्रह के लिए
1952 उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत
1956 ‘पद्म भूषण’
1979 साहित्य अकादमी फैलोशिप (पहली महिला)
1982 काव्य संग्रह ‘यामा’ (1940) के लिये ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’
1988 ‘पद्म विभूषण’ (मरणोपरांत)
विशेष तथ्य : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
सन् 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना की और पं. इलाचंद्र जोशी के सहयोग से ‘साहित्यकार’ का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ मासिक की भी संपादक रहीं।
हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘ रंगवाणी नाट्य संस्था’ की भी स्थापना की।
इन्हे ‘वेदना की कवयित्री’ एवं ‘आधुनिक युग की मीरां‘ नाम से भी पुकारा जाता है|
ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रचार्य रही हैं।
रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा- “छायावाद कहे जाने वाले कवियों मे महादेवी जी ही रहस्यवाद के भीतर रही है।”
इनको छायावाद साहित्य की ‘शक्ति (दुर्गा)’ कहा जाता है।
कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।
महादेवी वर्मा कवयित्री और गद्य लेखिका, साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं।
महादेवी वर्मा कृत ‘सप्तपर्णा’ में ऋग्वेद के मंत्रों का हिन्दी काव्यानुवाद संकलित है।
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने महादेवी वर्मा के काव्य संकलन ‘नीहार’ की भूमिका सन् 1930 ई. में लिखी थी।
महादेवी वर्मा की ब्रजभाषा और आरंभिक खड़ी बोली की कविताओं का संकलन 1984 ई. में ‘प्रथम आयाम’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
कवयित्री महादेवी वर्मा को बौद्ध दर्शन से प्रभावित रहस्यवादी कवयित्री के रूप में स्वीकार किया जाता है।
इनके सबसे प्रिय प्रतीक बादल और दीपक हैं।
महादेवी वर्मा द्वारा रचित प्रमुख पंक्तियाँ
सौन्दर्य परिचय -स्निग्ध खंड है और सत्य विस्मय भरा अखण्ड।
कवि का दर्शन जीवन के प्रति उसकी आस्था का दूसरा नाम है।
आस्था मानव के युगान्तर से प्राप्त दार्शनिक लक्ष्य पर केन्द्रित रागात्मक दृष्टि है।
काव्य या कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है।
‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुडी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।’’
छायावाद तो करुणा की छाया में सौन्दर्य के माध्यम से व्यक्त होने वाला भावात्मक सर्ववाद ही रहा है और उसी रूप में उसकी उपयागिता है।
“मां से पूजा और आरती के समय सुने सूर, तुलसी तथा मीरा आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। मां से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पडौस की एक विधवा वधू के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र् लिखे थे जो उस समय की पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए थे। व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है।”
मन्नू भंडारी Mannu Bhandari जीवन परिचय, मन्नू भंडारी का साहित्य, मन्नू भंडारी की कहानियाँ, कहानियों में यथार्थ चित्रण, साहित्य में स्थान, साहित्यिक परिचय
जन्म -3 अप्रेल, 1931
जन्म भूमि – भानपुरा नगर, मध्य प्रदेश
बचपन का नाम- महेंद्र कुमारी (लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम को चुना)
पिता- सुखसम्पत राय भंडारी
पति- राजेन्द्र यादव
काल- आधुनिक काल
युग- प्रयोगवादी या आधुनिकताबोधवादी युग
नई कहानी-नगरबोध के कहानीकार
मन्नू भंडारी Mannu Bhandari का साहित्य
रचनाएं
कहानी संग्रह
मैं हार गई (1957)
एक प्लेट सैलाब (1968)
तीन निगाहों की एक तस्वीर (1968)
यही सच है (1966)
त्रिशंकु
रेत की दीवार
श्रेष्ठ कहानियाँ
कहानियां : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari
रेत की दीवार
मैं हार गई 1957
तीन निगाहों की एक तस्वीर 1968
यही सच है 1966
त्रिशंकु
बंद दरवाजों का साथ
रानी मां का चबूतरा
अलगाव
अकेली
एक प्लेट का सैलाब-1968
कृषक
आँखों देखा झूठ
नायक खलनायक विदूषक
इन की कहानियां मुख्यतः प्रेम त्रिकोण पर आधारित है
उपन्यास : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari
आपका बंटी-1971
महाभोज
स्वामी
एक इंच मुस्कान (राजेंद्र यादव के साथ सह लेखन)
कलवा
फ़िल्म पटकथाए
रजनीगंधा
निर्मला
स्वामी
दर्पण
नाटक
बिना दीवारों का घर (1965)
रजनी दर्पण
महाभोज का नाट्य रूपान्तरण (1982)
आत्मकथा
एक कहानी यह भी (2007)
प्रौढ़ शिक्षा के लिए- सवा सेर गेहूं (1993) (प्रेमचन्द की कहानी का रूपान्तरण)
पुरस्कार एवं सम्मान : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari
हिंदी अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान (बिहार सरकार)
भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता सम्मान
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी सम्मान
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार
भारतीय भाषा परिषद (भारतीय भाषा परिषद), कोलकाता, 1982
काला-कुंज सन्मान (पुरस्कार), नई दिल्ली, 1982
भारतीय संस्कृत संसद कथा समरोह (भारतीय संस्कृत कथा कथा), कोलकाता, 1983
बिहार राज्य भाषा परिषद (बिहार राज्य भाषा परिषद), 1991
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, 2001- 02
महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी (महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी), 2004
हिंदी अकादमी, दिलीली शालका सन्मैन, 2006- 07
मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन (मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन), भवभूति अलंकरण, 2006- 07
के.के. बिड़ला फाउंडेशन ने उन्हें अपने काम के लिए 18 वें व्यास सम्मान के साथ प्रस्तुत किया, एह कहानी यहे भी, एक आत्मकथात्मक उपन्यास
व्यास सम्मान (2008)
विशेष तथ्य : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari
राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया उनका उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ पढ़े-लिखे और आधुनिकता पसंद लोगों की दुखभरी प्रेमगाथा है।
इनकी ‘यही सच है’ कृति पर आधारित ‘रजनीगंधा फ़िल्म’ ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई थी।
आम आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को उकेरने वाले उनके उपन्यास ‘महाभोज’ पर आधारित नाटक खूब लोकप्रिय हुआ था।
“मैनें उन चीजों पर लिखा है जो या तो मेरे साथ हुईं हैं या किसी भी तरह से मेरे अनुभव का हिस्सा रहीं हैं एक कथाकार को नई चीजों के बारे में भी लिखना चाहिए लेकिन मैं अपने ही अनुभवों को कहानी में ढालकर तसल्ली कर लेती थी| फिर भी मैं यही कहूंगी कि एक अच्छा कथाकार एक परिचित यथार्थ को भी नए सिरे से, नए कोण से पेश कर सकता है|” – मन्नू भंडारी
निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय, निर्मल वर्मा का साहित्यिक परिचय, निर्मल वर्मा की रचनाएं, कविताएं, डायरी, भाषा शैली, निबंध, कहानी संग्रह, विशेष तथ्य
जन्म -3 अप्रॅल, 1929, शिमला
मृत्यु -25 अक्तूबर, 2005, दिल्ली
पिता- नंद कुमार वर्मा
कर्म-क्षेत्र – साहित्य
भाषा -हिन्दी
विद्यालय – सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली
शिक्षा -एम.ए. (इतिहास)
काल-आधुनिक काल
अकहानी आन्दोलन के प्रवर्तक-1960
प्रयोगवादी या आधुनिकताबोधवादी उपन्यासकार
साहित्यिक परिचय
रचनाएं
उपन्यास
वे दिन (1964)
लाल टीन की छत (1974)
एक चिथड़ा सुख (1979)
रात का रिपोर्टर (1989)
अंतिम अरण्य (2000)
कहानी संग्रह
परिंदे (1959)
जलती झाड़ी (1965)
पिछली गर्मियों में (1968)
बीच बहस में (1973)
मेरी प्रिय कहानियाँ (1973)
कव्वे और काला पानी (1983)
सूखा तथा अन्य कहानियाँ (1995)
ग्यारह लंबी कहानियां-2000 (प्रतिनिधि कहनी संग्रह)
एक दिन का मेहमान
संपूर्ण कहानियाँ (2005)
कहानियाँ : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय
परिंदे
लंदन की एक रात
कुत्ते की मौत
लवर्स
बुख़ार
सुबह की सैर
कव्वे और काला पानी
सूखा
डायरी व यात्रा-संस्मरण
चीड़ों पर चाँदनी (1963)
हर बारिश में (1970)
धुँध से उठती धुन (1977)
रिपोर्ताज
प्राग: एक स्वप्न
निबंध : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय
शब्द और स्मृति (1976)
संस्कृति, समय और भारतीय उपन्यास
कला, मिथक और यथार्थ
परंपरा और इतिहास बोध
रचना की जरूरत
साहित्य में प्रसंगिकता का प्रश्न
रेणु :समग्र मानवीय दृष्टि
अज्ञेय: आधुनिकता की पीड़ा
हमारे समय का नायक
हर बारिश में-1970
कला का जोखिम (1981)
ढलान से उतरते हुए (1985)
भारत और यूरोप : प्रतिश्रुति के क्षेत्र (1991)
इतिहास स्मृति आकांक्षा (1991)
शताब्दी के ढलते वर्षों में (1995)
दूसरे शब्दों में (1995)
अन्त और आरम्भ (2001)
साहित्य का आत्मकथ्य-(2005)
सर्जनापथ के सहयात्री-(2006)
नाटक
तीन एकान्त (1976)
वीक एण्ड
धूप का एक टुकड़ा
डेढ़ इंच ऊपर
अनुवाद
कुप्रिन की कहानियाँ (1955)
रोमियो जूलियट और अँधेरा (1962)
झोंपड़ीवाले (1966)
बाहर और परे (1967)
बचपन (1970)
आर यू आर (1972)
पुरस्कार और सम्मान : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय
1999 में साहित्य में सम्पूर्ण योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
2002 में भारत सरकार की ओर से साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण दिया गया।
निर्मल वर्मा को मूर्तिदेवी पुरस्कार (1995)
साहित्य अकादमी पुरस्कार (1985) (कौवे और काला पानी कहानी पर)
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
विशेष तथ्य : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय
निर्मल वर्मा की कहानी ‘माया दर्पण’ पर 1973 में फ़िल्म बनी जिसे सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म का पुरस्कार मिला।
बीबीसी द्वार इनपर डाक्यूमेंट्री फिल्म प्रसारित हुई थी |
हैडिलबर्ग विश्वविद्यालय दक्षिण एशिया के निमंत्रण पर ‘भारत और यूरोप प्रतिश्रुति के क्षेत्र’ व्याख्यानमाला में निर्मल ने एक नई स्थापना रखी थी। कहा कि भारत और यूरोप दो ध्रुवों का नाम है। एक दूसरे से जुड़ कर भी ये दो अलग वास्तविकताएं हैं जिनको खींच कर या सिकोड़ कर मिलाया नहीं जा सकता।
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का जीवन परिचय, साहित्य परिचय, रचनाएं, उपन्यास, आत्मकथा, भाषा शैली, तात्विक समीक्षा, कहानियाँ, नाटक, एकांकी, आलोचना, निबंध, विशेष तथ्य
Pandeya Bechan Sharma Ugra
जीवन परिचय
जन्म- 1900
जन्म भूमि- मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु- 1967
मृत्यु स्थान- दिल्ली
युग- प्रेमचंदयुगीन उपन्यासकार
साहित्य परिचय
रचनाएं
उपन्यास
घंटा,1924
चंद हसीनों के खतूत,1927
दिल्ली का दलाल,1927
बुधुआ की बेटी,1928
शराबी,1930
सरकार तुम्हारी आँखों में,1931
जीजीजी,1943
मनुष्यानंद,1955
कला का पुरस्कार,1955
कढ़ी में कोयला,1955
फागुन के दिन चार,1960
कहानियां
चिनगारियाँ,1923
शैतान मंडली,1924
इन्द्रधनुष,1927
बलात्कार,1927
चॉकलेट,1928
दोजख की आग,1929
निर्लज्जा,1929
सनकी अमीर
रेशमी
व्यक्तिगत
पंजाब की महारानी
उग्र का हास्य
नाटक
महात्मा ईसा,1922
उजबक
चुंबन,1937
डिक्टेटर,1937
गंगा का बेटा,1940
आवास,
अन्नदाता माधव महाराज महान्
एकांकी
अफजल वद्य
भाई मियां
चार बेचारे
आत्मकथा
अपनी खबर,1960 ( इस आतमकथा में इन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक 21 वर्षों की घटनाओं का वर्णन किया है)
आलोचना
तुलसीदास आदि अनेक आलोचनातमक निबंध।
निबंध
बुढापा
गाली
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : विशेष तथ्य
इन्होंने ‘दलित या पतित वर्ग’ को अपने उपन्यास का विषय बनाया है |
ये ‘प्रेमचंद युग’ के सबसे बदनाम उपन्यासकार हुए। इन्होंने अपने उपन्यासों में समाज की बुराइयो को, उसकी नंगी सच्चाई को बिना लाग-लपट के बड़े साहस के साथ, किंतु सपाट बयानबाज़ी से प्रस्तुत किया।
बनारसी दास चतुर्वेदी ने इनके उपन्यासों को ‘घासलेटी साहित्य’ कहा है|
उन्होंने अयोध्या में रामलीला मंडली में ‘सीता’ का अभिनय अनेक बार किया था|
इन्होंने गोरखपुर से ‘स्वदेश’ नामक पत्रिका निकाली थी जिसके कारण इनको जेल भी जाना पड़ा था|
उग्र ने मतवाला, वीणा, स्वराज, विक्रम, संग्राम आदि पत्र/पत्रिकाओं का संपादन किया था|
इनकी प्रारंभिक कहानियां 1921 ईस्वी में ‘अष्टावक्र’ नाम से प्रकाशित हुई थी|
इनकी ‘उग्रता’ के प्रभाव को आलोचकों ने ‘उल्कापात’, ‘धूमकेतु’, ‘तूफान’ या ‘बवंडर’ की उपमा दी थी|
इन्हें प्रकृतिवादी कहानीकार कहा जाता है|
‘चिंगारियां’ कहानी संग्रह में इन्होंने अपनी विद्रोह है पूर्ण राष्ट्रीय चेतना को वाणी देने का प्रयास किया, जिसके फलस्वरूप यह कहानी संग्रह अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था|
ये बचपन से ही काव्यरचना करने लगे थे। अपनी किशोर वय में ही इन्होंने प्रियप्रवास की शैली में “ध्रुवचरित्” नामक प्रबंध काव्य की रचना कर डाली थी।
ये काशी के दैनिक “आज” में “ऊटपटाँग” शीर्षक से व्यंग्यात्मक लेख लिखा करते थे और अपना नाम रखा था “अष्टावक्र”।
उग्र जी की मित्रमंडली में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, जयशंकर प्रसाद, शिवपूजन सहाय, विनोदशंकर व्यास आदि प्रसिद्ध साहित्यकार थे।
उग्र शैली– व्यंजनाओं, लक्षणाओं और वक्रोक्तियों से समृद्ध भाषा के धनी ‘उग्र’ ने अरसा पहले कहानी को एक नई शैली दी थी, जिसे आदरपूर्वक ‘उग्र शैली’ कहा जाता है।