प्रथम महाकवि चंदबरदाई | Mahakavi Chandbardai

चंदबरदाई का जीवन परिचय

प्रथम महाकवि चंदबरदाई | Mahakavi Chandbardai का जीवन परिचय, Chandbardai के अन्य नाम, पृथ्वीराज रासो के संस्करण, प्रमुख पंक्तियाँ, तथ्य, कथन

आचार्य शुक्ल के अनुसार उनका जन्म लाहोर में हुआ था। कहा जाता है कि पृथ्वीराज और चंदवरदाई का जन्म एक दिन हुआ था। परंतु मिश्र बंधुओं के अनुसार पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई की आयु में अंतर था। इनकी जन्म तिथि एक ही थी या नहीं थी इस संबंध में मिश्र बंधु कुछ नहीं लिखते हैं लेकिन आयु गणना उन्होंने अवश्य की है जिसके आधार पर उनका अनुमान है कि चंद पृथ्वीराज से कुछ बड़े थे। चंद ने अपने जन्म के बारे में रासों में कोई वर्णन नहीं किया है, परंतु उन्होंने पृथ्वीराज का जन्म संवत् 1205 विक्रमी में बताया है।

प्रथम महाकवि चंदबरदाई | Mahakavi Chandbardai : अन्य नाम

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के मतानुसार कवि चंदवरदाई हिंदी साहित्य के प्रथम महाकवि है, उनका महान ग्रंथ पृथ्वीराजरासोहिंदी का प्रथम महाकाव्य है। आदिकाल के उल्लेखनीय कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो में अपना जीवन दिया है, रासो अनुसार चंद भट्ट जाति के जगात नामक गोत्र के थे। मुनि जिनविजय द्वारा खोज निकाले गए जैन प्रबंधों में उनका नाम चंदवरदिया दिया है और उन्हें खारभट्ट कहा गया है।

चंद, पृथ्वीराज चौहान के न केवल राजकवि थे, वरन् उनके सखा और सामंत भी थे और जीवन भर दोनों साथ रहे। चंद षड्भाषा, व्याकरण, काव्य, साहित्य, छंद शास्त्र, ज्योतिष, पुराण आदि अनेक विधाओं के जानकार विद्वान थे। उन पर जालंधरी देवी का इष्ट था। चंदवरदाई की जीवनी के संबंध में सूर की “साहित्यलहरी” में सुरक्षित सामग्री है।

सूर की वंशावली

‘सूरदास’ की साहित्य लहरी की टीका मे एक पद ऐसा आया है जिसमे सूर की वंशावली दी है। वह पद यह है-

प्रथम ही प्रथु यज्ञ ते भे प्रगट अद्भुत रूप।

ब्रह्म राव विचारि ब्रह्मा राखु नाम अनूप॥

पान पय देवी दियो सिव आदि सुर सुखपाय।

कह्यो दुर्गा पुत्र तेरो भयो अति अधिकाय॥

पारि पायॅन सुरन के सुर सहित अस्तुति कीन।

तासु बंस प्रसंस में भौ चंद चारु नवीन॥

भूप पृथ्वीराज दीन्हों तिन्हें ज्वाला देस।

तनय ताके चार, कीनो प्रथम आप नरेस॥

दूसरे गुनचंद ता सुत सीलचंद सरूप।

वीरचंद प्रताप पूरन भयो अद्भुत रूप॥

रंथभौर हमीर भूपति सँगत खेलत जाय।

तासु बंस अनूप भो हरिचंद अति विख्याय॥

आगरे रहि गोपचल में रह्यो ता सुत वीर।

पुत्र जनमे सात ताके महा भट गंभीर॥

कृष्णचंद उदारचंद जु रूपचंद सुभाइ।

बुद्धिचंद प्रकाश चौथे चंद भै सुखदाइ॥

देवचंद प्रबोध संसृतचंद ताको नाम।

भयो सप्तो दाम सूरज चंद मंद निकाम॥

महामहोपाध्याय पंडित हरप्रसाद शास्त्री के अनुसार नागौर राजस्थान में अब भी चंद के वंशज रहते हैं। अपनी राजस्थान यात्रा के दौरान नागौर से चंद के वंशज श्री नानूराम भाट से शास्त्री जी को एक वंश वृक्ष प्राप्त हुआ है जिसका उल्लेख आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी अपने हिंदी साहित्य का इतिहास नामक ग्रंथ में किया है जो इस प्रकार है-

इन दोनो वंशावलियो के मिलाने पर मुख्य भेद यह प्रकट होता है कि नानूगम ने जिनको जल्लचंद की वंश-परंपरा मे बताया है, उक्त पद मे उन्हे गुणचंद की परंपरा में कहा है। बाकी नाम प्रायः मिलते हैं। (उद्धृत-हिंदी साहित्य का – आचार्य रामचंद्र शुक्ल)

प्रथम महाकवि चंदबरदाई | Mahakavi Chandbardai : पृथ्वीराज रासो के संस्करण

प्रथम संस्करण-वृहत् संस्करण– 69 समय 16306 छंद (नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित तथा हस्तलिखित प्रतियां उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित हैं)

द्वितीय संस्करण– मध्य संस्करण7000 छंद (अबोहर और बीकानेर में प्रतियाँ सुरक्षित है।)

तृतीय संस्करण-लघु संस्करण– 19 समय 3500 छंद (हस्तलिखित प्रतियाँ बीकानेर में सुरक्षित है।)

चतुर्थ संस्करणलघूत्तम संस्करण – 1300 छंद (डॉ. माता प्रसाद गुप्ता तथा डॉ दशरथ ओझा इसे ही मूल रासो ग्रंथ मानते हैं।)

‘पृथ्वीराज रासो’ की प्रामाणिकता-अप्रामाणिकता में विद्वानों के बीच मतभेद है जो निम्नलिखित है-

1- प्रामाणिक मानने वाले विद्वान- जेम्सटॉड, मिश्रबंधु, श्यामसुन्दर दास, मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या , डॉ दशरथ शर्मा

2- अप्रामाणिक मानने वाले विद्वान- आचार्य रामचंद्र शुक्ल, मुंशी देवी प्रसाद, कविराज श्यामल दास, गौरीशंकर हीराचंद ओझा, डॉ वूल्लर, कविवर मुरारिदान

3- अर्द्ध-प्रामाणिक मानने वाले विद्वान- मुनि जिनविजय, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ सुनीति कुमार चटर्जी, डॉ दशरथ ओझा

4- चौथा मत डॉ. नरोत्तम दास स्वामी का है। उन्होंने सबसे अलग यह बात कही है कि चंद ने पृथ्वीराज के दरबार में रहकर मुक्तक रूप में रासो की रचना की थी। उनके इस मत से कोई विद्वान सहमत नहीं है।

प्रमुख पंक्तियाँ

(1) “राजनीति पाइये। ज्ञान पाइये सुजानिए॥

उकति जुगति पाइयै। अरथ घटि बढ़ि उन मानिया॥”

(2) “उक्ति धर्म विशालस्य। राजनीति नवरसं॥

खट भाषा पुराणं च। कुरानं कथितं मया॥”

(3) “कुट्टिल केस सुदेस पोह परिचिटात पिक्क सद।

कामगंध बटासंध हंसगति चलति मंद मंद॥”

(4) “रघुनाथ चरित हनुमंत कृत, भूप भोज उद्धरिय जिमि।

पृथ्वीराज सुजस कवि चंद कृत, चंद नंद उद्धरिय तिमि॥”

(5) “मनहुँ कला ससिमान कला सोलह सो बनिय”

(6) “पुस्तक जल्हण हत्थ दे, चलि गज्जन नृप काज।”

चंदबरदाई का जीवन परिचय : चंदबरदाई के लिए महत्त्वपूर्ण कथन

“चन्दबरदाई हिन्दी के प्रथम महाकवि माने जाते हैं और इनका ‘पृथ्वीराज रासो’ हिन्दी का प्रथम महाकाव्य है।” -आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

“हिन्दी का वास्तविक प्रथम महाकवि चन्दबरदाई को ही कहा जा सकता है।” –मिश्रबंधु

“यह ग्रन्थ मानो वर्तमान काल का ऋग्वेद है। जैसे ऋग्वेद अपने समय का बड़ा मनोहर ऐसा इतिहास बताता है जो अन्यत्र अप्राप्य है उसी प्रकार रासो भी अपने समय का परम दुष्प्राप्य इतिहास विस्तार-पूर्वक बताता है।” –मिश्रबंधु

“यह (पृथ्वीराज रासो) एक राजनीतिक महाकाव्य है, दूसरे शब्दों में राजनीति की महाकाव्यात्मक त्रासदी है।” –डॉ. बच्चन सिंह

‘पृथ्वीराज रासो’ की रचना शुक-शकी संवाद के रूप में हुई है। –हजारी प्रसाद द्विवेदी

चंदबरदाई से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

1. रासो’ में 68 प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया गया है। मुख्य छंद -कवित्त, छप्पय, दूहा, तोमर, त्रोटक, गाहा और आर्या हैं। (राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के अनुसार 72 प्रकार के छंदों का प्रयोग हुआ है)

2. चन्दबरदाई को ‘छप्पय छंद‘ का विशेषज्ञ माना जाता है।

3. डॉ. वूलर ने सर्वप्रथम कश्मीरी कवि जयानक कृत ‘पृथ्वीराजविजय’ (संस्कृत) के आधार पर सन् 1875 में ‘पृथ्वीराज रासो’ को अप्रामाणिक घोषित किया।

4. पृथ्वीराज रासो’ को चंदबरदाई के पुत्र जल्हण ने पूर्ण किया।

5. मोहनलाल विष्णु लाल पंड्या ने अनंद संवत की कल्पना के आधार पर हर पृथ्वीराज रासो को प्रामाणिक माना है।

6. रासो की तिथियों में इतिहास से लगभग 90 से 100 वर्षों का अंतर है।

7. इसका प्रकाशन नागरी प्रचारिणी सभा काशी तथा रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल से हुआ।

8. कयमास वध पृथ्वीराज रासो का एक महत्वपूर्ण समय है।

9. कनवज्ज युद्ध सबसे बड़ा समय है।

10. पृथ्वीराज रासो की शैली पिंगल है।

11. कर्नल जेम्स टॉड ने इसके लगभग 30,000 छंदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया था।

12. इस ग्रंथ में चौहानों को अग्निवंशी बताया गया है।

13. इस ग्रंथ में पृथ्वीराज चौहान के 14 विवाहों का उल्लेख है।

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स्रोत

पृथ्वीराज रासो, हिन्दी नवरत्न –मिश्रबंधु, हिन्दी साहित्य का इतिहास – आ. शुक्ल, हिन्दी साहित्य का इतिहास –डॉ नगेन्द्र

अतः हमें आशा है कि आपको यह जानकारी बहुत अच्छी लगी होगी। इस प्रकार जी जानकारी प्राप्त करने के लिए आप https://thehindipage.com पर Visit करते रहें।

महाकवि पुष्पदंत Mahakavi Pushpdant

महाकवि पुष्पदंत

महाकवि पुष्पदंत Mahakavi Pushpdant का परिचय, पुष्पदंत की रचनाएँ, पुष्पदंत के उपनाम और उपाधियाँ, महाकवि पुष्पदंत | Mahakavi Pushpdant | के लिए प्रमुख कथन आदि की जानकारी

परिचय

अपभ्रंश भाषा में अनेक नामचीन कवि हुए हैं; जिनमें से पुष्पदंत एक प्रमुख नाम है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने पुष्पदंत को अपभ्रंश के श्रेष्ठ कवियों में स्वयम्भू के बाद दूसरे स्थान पर रखा है।

पुष्पदंत ने स्वयं अपने विषय में अपनी रचनाओं में जानकारी दी है। उनके ग्रंथों में उनके माता-पिता, आश्रयदाता, वास-स्थान, स्वभाव, कुल-गोत्र आदि की जानकारी प्राप्त हो जाती है। इनके परवर्ती कवियों ने भी इनका नाम बड़े आदर और सम्मान से लिया है। आधुनिक शोध एवं खोजों से भी पुष्पदंत के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।

महाकवि पुष्पदंत का परिचय एवं रचनाएँ
महाकवि पुष्पदंत का परिचय एवं रचनाएँ

मातापिता एवं कुलगोत्र

पुष्पदंत के पिता का नाम केशव भट्ट और माता का नाम मुग्धादेवी था।आप काश्यप गोत्र के ब्राह्मण थे और पहले शैव मतावलम्बी थे तथा किसी भैरव नामक राजा (शैव मतावलम्बी) की प्रशंसा में काव्य का प्रणयन भी किया था।अंतः साक्ष्य के आधार पर कह सकते हैं कि पुष्पदंत 10 वीं शताब्दी में वर्तमान थे।

निवास स्थान

कवि पुष्पदंत का निवास मान्यखेट (दक्षिण भारत) में राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय के प्रधानमंत्री भरत तथा उसके पश्चात गृह मंत्री नन्न के आश्रय में था। भरत के अनुरोध पर ही पुष्पदंत जिन भक्ति की ओर प्रवृत्त हो काव्य सृजन में रत हुए। पुष्पदंत ने संन्यास विधि से शरीर त्यागा।

महाकवि पुष्पदंत के उपनाम और उपाधियां (महाकवि पुष्पदंत का परिचय एवं रचनाएँ)

पुष्पदंत का घरेलू नाम खंडू अथवा खंड था। इनकी अनेक उपाधियाँ थी जो उनके ग्रंथों उसे हमें प्राप्त होती –

महापुराण में प्राप्त उपाधियां

महाकवि, कविवर, सकल कलाकार, सर्वजीव निष्कारण मित्र, सिद्धि विलासिनी, मनहरदूत, काव्य पिंड, गुण-मणि निधान, काव्य रत्नरत्नाकर, शशि लिखित नाम, वर-वाच विलास, काव्यकार,सरस्वती निलय, तिमिरौन्सारण।

ण्यकुमार चरिउ से-

विशाल चित्त, गुण गण महंत, वागेश्वरी देवानिकेत, भवय जीव-पंकरुह भानु।

जसहर चरिउ से- सरस्वती निलय।

महाकवि पुष्पदंत की रचनाएँ (महाकवि पुष्पदंत का परिचय एवं रचनाएँ)

निम्नलिखित तीन ग्रंथों को पुष्पदंत की प्रामाणिक रचनाएं माना जाता है-

तिसट्ठि महापुरिस गुणालंकार (महापुराण)

ण्यकुमार चरिउ (नागकुमार चरित्र)

जसहर चरिउ (यशोधर चरित्र)

महापुराण

यह पुष्पदंत की प्रथम रचना मानी जाती है, जिसे उन्होंने राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीया के मंत्री भरत के आश्रय में उन्हीं की प्रेरणा से मान्य खेत में लिखा था। अंतः साक्ष्यों के अनुसार पुष्पदंत ने 959 ईस्वी में इसे लिखना आरंभ किया तथा 965 ईस्वी में यह ग्रंथ पूर्ण हुआ। संपूर्ण ग्रंथ में 102 संधियाँ 1960 कड़वक तथा 27107 पद हैं। महापुराण में तिरसठ महापुरुषों का जीवन चरित्र वर्णित है।

ण्यकुमार चरिउ

यह नौ संधियों का खंडकाव्य है, जिसकी रचना महापुराण के बाद हुई है। अंतः साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि पुष्पदंत ने इसकी रचना मंत्री नन्न के आश्रय में की थी। इस ग्रंथ में नाग कुमार के चरित्र द्वारा श्री पंचमी के उपवास का फल बताया गया है।

जसहर चरिउ

जसहरचरिउ पुष्पदंत की अंतिम रचना मानी जाती है। जिसे उन्होंने नन्न के आश्रय में लिखा था। यह चार संधियों की लघु रचना है, जिसमें यशोधर का चरित्र वर्णित किया गया है।

महाकवि पुष्पदंत के लिए प्रमुख कथन (महाकवि पुष्पदंत का परिचय एवं रचनाएँ)

पुष्पदंत मनुष्य थोड़े ही है, सरस्वती उनका पीछा नहीं छोड़ती” –हरिषेण।

“अपभ्रंश का भवभूति”- डॉ हरिवल्लभ चुन्नीलाल भयाणी।

“बाण के बाद राजनीति का इतना उग्र आलोचक दूसरा लेखक नहीं हुआ। सचमुच मेलपाटी के उस उद्यान में हुई अमात्य भरत और पुष्पदन्त की भेंट भारतीय साहित्य की बहुत बड़ी घटना है। यह अनुभूति और कल्पना की अक्षय धारा है, जिससे अपभ्रंश साहित्य का उपवन हरा-भरा हो उठा। मंत्री भरत माली थे और कृष्ण वर्ण कुरूप पुष्पदन्त कवि-मनीषी, के स्नेह के आलवाल में कवि श्री का काव्य-कुसुम मुकुलित हुआ।” –डॉ. देवेंद्र कुमार जैन।

स्रोत

1 महापुराण

2 ण्यकुमार चरिउ

3 जसहर चरित

4 महाकवि पुष्पदन्त–राजनारायण पाण्डेय

5 जैन साहित्य और इतिहास – नाथूराम प्रेमी

6 अपभ्रंशभाषा और साहित्य – डॉ. देवेंद्र कुमार जैन

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कंप्यूटर वायरस Computer virus

कंप्यूटर वायरस क्या है? What is computer virus?

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आज के समय में शायद ही कोई ऐसा युवा होगा जो कम्प्यूटर या लैपटाॅप से अछूता हो? कम्प्यूटर या लैपटाॅप हार्डवेयर के अतिरिक्त यदि कोई समस्या आती है तो वह अधिकतर वायरस के कारण ही आती है।

VIRUS का पूरा नाम

सर्वप्रथम VIRUS का पूरा नाम जानते हैं- Vital Information Resources Under Siege है, जिसका हिन्दी रूपान्तरण ‘घेराबंदी के तहत महत्वपूर्ण सूचना संसाधन’ है।

वायरस एक प्रकार के कम्प्यूटर प्रोग्राम ही होते हैं जो कि कम्प्यूटर को अलग-अलग तरीकों से नुकसान पहुँचाने के लिए बनाये जाते हैं। ये किसी भी प्रकार से कम्प्यूटर प्रोग्राम में घुसकर उसे नुकसान पहुँचाकर कम्प्यूटर की कार्यविधि को प्रभावित करते हैं, वायरस कहलाते हैं। ये एक प्रकार के Electronic code होते हैं। वायरस स्वचलित प्रोग्राम (Auto Execute Program) होते हैं अर्थात् वायरस तुरंत या समय आने पर अपने को क्रियान्वित (Activate) कर लेते हैं।

कंप्यूटर वायरस Computer virus
कंप्यूटर वायरस Computer virus

वायरस का इतिहास एवं दुनिया का पहला वायरस

VIRUS शब्द का प्रयोग सबसे पहले कैलिफाॅर्निया विश्वविद्यालय में पढने वाले विद्यार्थी फ्रेडरिक बी. कोहेन ने अपने एक शोध पत्र में किया था, जिसमें बताया गया था कि एक ऐसा प्रोग्राम कैसे तैयार किया जाए जो कम्प्यूटर में घुसकर उसे नुकसान पहुँचाए तथा कम्प्यूटर पर आक्रमण करके उसकी कार्यप्रणाली को बुरी तरह प्रभावित करे। हालाँकि लोगों ने इस बात को सहजता से स्वीकार नहीं किया कि ऐसा कोई कम्प्यूटर प्रोग्राम हो सकता है। फ्रेडरिक बी. कोहेन ने एक छोटे कार्यक्रम को एक प्रयोग के रूप में लिखा, जो कंप्यूटरों को संक्रमित कर सकता था, खुद की प्रतियां बना सकता था और एक मशीन से दूसरी मशीन में फैल सकता था। यह एक बड़े, वैध कार्यक्रम के अंदर छिपा हुआ था, जिसे एक फ्लॉपी डिस्क पर कंप्यूटर में लोड किया गया था।

Search engine क्या है?

कम्प्यूटर वायरस की शुरूआत हुई तो गणितज्ञ जाॅन वाॅन न्यूमैन ने 1949 में एक सेल्फ रीप्लीकेटिंग प्रोग्राम बनाया, जिसे पहला वायरस माना जाता है। यह कम्प्यूटर में अपने आप बढता चला जाता था।

क्रीपर

1970 में इसी सेल्फ रीप्लीकेटिंग प्रोग्राम का उपयोग करके बाॅब थाॅमस ने सबसे पहला वायरस क्रीपर बनाया था जो अरपानेट (ARPANET) पर खोजा गया, जो 1970 के दशक की शुरुआत में इंटरनेट से पहले आया था। यह टेनेक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा फैला और यह कंप्यूटर को नियंत्रित और संक्रमित करने के लिए किसी भी जुड़े मॉडम का उपयोग कर सकता था। यह संदेश प्रदर्शित कर सकता है कि ‘मैं क्रीपर हूँ, यदि पकड़ सकते हो तो मुझे पकडो’ (I Am The Creeper, Catch Me If You Can)

इस मैसेज को डिलीट करने के लिए रीपर प्रोग्राम बनाया गया। शुरू-शुरू में वायरस को खोजना इतना आसान नहीं था, क्योंकि लोगों को 1980 के दशक तक तो इसके बारे में पता ही नहीं था।

1982 में नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले Richard Skrenta ने elk cloner वायरस अपने दोस्तों के साथ मजाक करने के लिए बनाया था। Richard Skrenta ने अपने Apple टू कंप्यूटर में कंप्यूटर पर कोड लिखा और गेम के फ्लॉपी डिस्क के जरिए वायरस को फैलाया जब कोई Richard Skrenta का दोस्त इस को 85 बार ओपन करता तो यह वायरस एक्टिवेट हो जाता था।

C Brain

आधुनिक वायरस में C Brain नाम का पहला वायरस माना जाता है, जो पूरी दुनिया में व्यापक स्तर पर फैला था। इस Virus को एक समाचार का रूप मिला था, क्योंकि इस Virus में वायरस बनाने वाले का नाम, पता तथा इसका विशेषाधिकार वर्ष (1986) मौजूद था। इस वायरस को पाकिस्तान के लाहौर में बनाया गया था। इस वायरस को दो भाइयों ने मिलकर IBM के लि बनाया था। जिनके नाम अमजद फारूक अल्वी और बासित फारूक अल्वी थे।

बाद में लोगों से पता चला कि उन्होंने यह वायरस अपने मेडिकल सॉफ्टवेयर को पायरेसी से बचाने के लिए बनाया था। जब कोई भी अवैध तरीके से इस सॉफ्टवेयर को इस्तेमाल करता था तो उनको एक चेतावनी दिखाई देती थी और वह मैसेज के साथ दिखाई देती थी। उस मैसेज में उसका फोन नंबर भी दिखाई देता था। फिर लोग जब भी इस Virus का शिकार होते थे तो उस स्क्रीन के ऊपर दिखाए गए फोन नंबर के ऊपर फोन करके बात करते थे और अपनी दिक्कत के बारे में बताते थे और इस समस्या का समाधान पाते थे।

फोन कॉल से बासित और अमजद को पता चल जाता कि इस सॉफ्टवेयर का उपयोग दुनिया में कहां पर हो रहा है यह वायरस कंप्यूटर के बूट सेक्टर प्रभावित करता कंप्यूटर को स्लो भी कर देता। यह वायरस कंप्यूटर के फ्लॉपी बूट सेक्टर को एक वायरस कॉपी से रिप्लेस कर देता था। Actual boot sector को किसी गलत जगह पर रख देता था। इस वायरस से प्रभावित डिस्क में लगभग 5 किलोबाइट्स बाद सेक्टर होता था। इस वायरस के कारण डिस्क का लेबल C Brain हो जाता था और कुछ अनचाहे मैसेज आने लगते थे। यह वायरस फ्लॉपी डिस्क को काफी धीमा कर देता था और DOS का लगभग सात किलोबाइट्स मेमोरी को हटा देता था।

शांति वायरस

1988 के प्रारम्भ में मैकिन्टोश शांति वायरस आया। यह वायरस एक पत्रिका मैकमैग (MacMag) के प्रकाशक रिचर्ड ब्रेनड्रा (Richard Brando) की ओर से था। इस वायरस को मैकिन्टोश आपरेटिंग सिस्टम को बाधित करने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया था। 2 मार्च 1988 को एक सन्देश स्क्रीन पर आया, वह संदेश था- ‘‘रिचर्ड ब्रेनडा मैकमैग के प्रकाशक तथा इसके कर्मचारी दुनिया के लिए समस्त मैकिन्टोश प्रयोक्ताओ को विश्व शांति का सन्देश देना चाहते है।’’

 

वायरस फैलने के कारण या वायरस कैसे फैलता है?

वर्तमान में इंटरनेट के बढते प्रभाव के कारण जहाँ पर हमें अकल्पनीय लाभ हो रहें हैं वहीं इंटरनेट के कारण बहुत से वायरस भी पनप रहें हैं। अनजान ई-मेल लिंक से अटैच फाइलों के कारण वायरस फैलते जाते हैं। virus कुछ websites के link, advertisement, image placement, video के साथ attached रहते है। वेबसाइट की इन सामग्री पर click करने से malicious code आपके computer या मोबाइल पर automatically download हो जाता है, इसके अलावा यह आपको किसी malicious website पर भी भेज सकता है। वायरस फैलने के कई कारण हैं, जैसे-

  • Internet चलाते समय असावधानी के कारण।
  • सिस्टम में Antivirus का न होना या एंटीवायरस का आउटडेटेड हो जाना।
  • अप्रमाणित लिंक या पोर्न वेबसाइट चलाने से।
  • फ्री में लाभ देने वाले लिंक पर क्लिक करने से।
  • कोई भी पैन ड्राइव को बिना स्कैन किये उपयोग करने से।
  • अनजान E-mail Open करने से, खासतौर पर स्पैम।
  • फ्री में गेम या मूवी Download करने या देखने वाले लिंक पर क्लिक करने से।
  • कोई भी ऐसी फाइल डाउनलोड करने से जिसमें वायरस मौजूद हो, हालांकि इसका पता नहीं चलता है।
  • मोबाइल या अन्य स्टोरेज डिवाइस को बिना स्कैन किये System में Open करने से।

 

वायरस के लक्षण अथवा कम्प्यूटर पर पड़ने वाले प्रभाव : कंप्यूटर वायरस Computer virus

वायरस के कारण Computer System बुरी तरह प्रभावित होता है। इससे बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है। कम्प्यूटर सिस्टम को हानि पहुंचाने वाला वायरस Malware होता है, जो सिस्टम में आ जाये तो इसे Delete करना फाफी मुश्किल हो जाता है। नीचे बताई गई बातों में से यदि एक-दो या अधिक बातें आपको लगती है कि सिस्टम में हो गई हैं तो आपको समझ जाना चाहिए कि ये सब वायरस के कारण हो रहा है। वायरस किस प्रकार सिस्टम को प्रभावित करता है? ये लक्षण निम्नलिखित है-

  • कम्प्यूटर को Hang कर देना।
  • कम्प्यूटर की Speed कम कर देना।
  • सिस्टम का Crash हो जाना।
  • कम्प्यूटर की सूचनाएं Delete कर देना।
  • सिस्टम को Shutdown करते समय समस्या आना।
  • हार्ड डिस्क या अन्य अटैच होने वाले Storage Device को Format कर देना।
  • Booting System अर्थात् कम्प्यूटर के स्टार्ट होने की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर देना।
  • अनचाहे विज्ञापन (Advertisement) दिखाना।
  • अनचाहे फाइल अथवा फोल्डर बनाना।
  • फाइलों को क्रियान्वित (Execute) न होने देना।
  • फाइलों के आकार में परिवर्तन कर देना।
  • स्क्रीन पर बेकार की सूचनाएं देना।
  • फाइलों के Data को नष्ट करना या बदल देना।
  • फाइल के Path में परिवर्तन कर देना।
  • की-बोर्ड के Keys का कार्य बदल देना।

 

वायरस के प्रकार (Types of Virus) : कंप्यूटर वायरस Computer virus

  1. Web scripting virus-

    इस प्रकार के वायरस सबसे प्रचलित है। यह virus कुछ websites के link, advertisement, image placement, video के साथ attached रहते है। वेबसाइट की इन सामग्री पर click करने से malicious code आपके computer या मोबाइल पर automatically download हो जाता है। इसके अलावा यह आपको किसी malicious website पर भी भेज सकता है। इस प्रकार के computer virus उन वेबसाइटों पर पाये जाते है, जिनका उपयोग social networking उद्देश्यों के लिए किया जा रहा हो।

  2. Network virus-

    नेटवर्क वायरस internet और स्थानीय नेटवर्क क्षेत्र (LAN) के माध्यम से फैलता है. इस प्रकार के वायरस network की performance को कम करने की क्षमता रखते है।

  3. Encrypted virus-

    encrypted malicious code का उपयोग करने के कारण इसे Detect करना एंटीवायरस के लिए भी कठिन होता है।

  4. Browser Hijacker Virus–

    वर्तमान समय में यह बहुत तेज गति से फैलने वाला वायरस है। यह गेम, वेबसाइट या फाइल आदि के माध्यम से सिस्टम में प्रवेश करके फाइलों की गति को अपने नियंत्रण में कर लेता है और उनकी गति कम कर देता है। फलस्वरूप फाइलें धीरे-धीरे नष्ट भी हो जाती है।

  5. Maltipartite virus-

    यह computer virus सबसे तेजी से फैलने वाला वायरस माना जाता है। अधिकांश virus या तो boot sector, system या program files को infect करते है, परन्तु यह वायरस एक ही समय मे बूट सेक्टर और प्रोग्राम फाइलों दोनों को प्रभावित कर सकता है।

  6. Resident Virus–

    यह वायरस कम्प्यूटर को अपडेट नहीं होने देता तथा सिस्टम को शटडाउन करने में समस्या पैदा करता है। काॅपी-पेस्ट करने में भी समस्या उत्पन्न करता है।

  7. Overwrite Virus-

    यह वायरस असली डेटा को नष्ट करके एक इन्फेक्टेड फाइल बना देता है।

  8. Direct Action Virus–

    यह वायरस कम्प्यूटर में उपस्थित सभी फाइल एवं फोल्डर को डिलीट कर देता है।

  9. File Infectors–

    यह वायरस रनिंग फाइल को प्रभावित करता है और उसे नष्ट कर देता है। इसे बहुत ही खतरनाक वायरस माना जाता है।

  10. Boot Virus–

    यह वायरस हार्ड डिस्क तथा फ्लाॅपी को क्षतिग्रस्त करता है एवं इनको चलने नहीं देता है।

  11. Directory Virus–

    यह वायरस फाइलों के की लोकेशन या पाथ को उल्टफेर कर देता है जिससे कोई भी फाइल या फोल्डर किसी भी फाइल या फोल्डर में चले जाते हैं।

वायरस से कैसे बचें?

आपने जाना कि वायरस क्या है और इसके लक्षण एवं कारण क्या हैं? इससे यह स्पष्ट हो गया कि वायरस हानि पहुंचाते ही हैं तो जो यूजर है उसे यह भी पता होना चाहिए कि वायरस से कैसे बचें?
निम्नलिखित तरीकों से हम वायरस से बच सकते हैं-

  1. सिस्टम में Antivirus रखना चाहिए। उसे भी प्रोग्राम के निर्देशानुसार Update करना चाहिए।
  2. Operating System को समयानुसार अपडेट करना चाहिए।
  3. पैन ड्राईव या अन्य स्टोरेज डिवाइस से डेटा लेने से पहले उन्हें स्कैन अवश्य कर लें।
  4. संदिग्ध (Suspicious) वेबसाइट पर कभी न जाएं।
  5. Malware स्कैनर का हमेशा प्रयोग करना चाहिए।
  6. विण्डोज का Firewall हमेशा On रखें।
  7. मैलीसियस प्रोग्राम को जानकारी रखनी चाहिए।
  8. Free या Offer देने वाली वेबसाइटों से कभी भी कुछ भी न डाउनलोड करें।
  9. महत्त्वपूर्ण डेटा का Backup लेते रहें ताकि डेटा सुरक्षित रहे।
  10. अनचाहे ई-मेल के अटैचमेंट पर कभी क्लिक न करें।
  11. किसी फाइल में वायरस हो तो ऐसी फाइल को शेयर करने से पहले स्कैन अवश्य करें।

 

कुछ प्रकार के एंटीवायरस : कंप्यूटर वायरस Computer virus

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  • Quick Heal
  • Avast
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सुंदर पिचई Sundar Pichai

सुंदर पिचई का जीवन परिचय (Biography)

Google के CEO सुंदर पिचई Sundar Pichai का जीवन परिचय, परिवार, शिक्षा, व्यक्तिगत जीवन तथा संघर्षशील जीवन से सफलता की पूरी प्रेरणाप्रद कहानी

Google के CEO सुंदर पिचई Sundar Pichai

आईटी और तकनीक के सार्वभौमिक पटल पर पहुंचने वाले सुंदर पिचई को कौन नहीं जानता।

सुंदर पिचई को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है।

उनकी अथाह एवं अपार सफलता ही उनकी वास्‍तिवक पहचान है।

सुंदर पिचई की सफलता की कहानी सभी के लिए एक प्रेरणा है।

चेन्नई में साधारण सा जीवन जीने वाले सुंदर आज सफलता की सभी पराकाष्‍ठाएं भी लांघ चुके हैं या फिर ये कहना भी कोई अतिश्‍योक्‍ति नहीं होगी कि सफलता का पर्याय हैं ‘सुंदर पिचई’।

सुंदर पिचई जीवन परिचय
सुंदर पिचई जीवन परिचय

सुंदर पिचई जीवन परिचय : परिवार तथा व्यक्तिगत जीवन

चेन्नई में 10 जून 1972 में जन्मे सुंदर पिचई का मूल नाम पिचई सुंदराजन है, किंतु उन्हें सुंदर पिचई के नाम से जाना जाता है।

सुंदर  पिचई का जन्म मदुरै, तमिलनाडु, भारत के  तमिल परिवार में हुआ।

उनकी मां का नाम लक्ष्मी था, जो कि एक स्टेनोग्राफर थीं।

इनके पिता का नाम रघुनाथ पिचई था।

वे ब्रिटिशसमूह के जीईसी में एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे।

सुंदर पिचई के पिता कामैन्युफैक्चरिंग प्लांट था, जहां इलेक्ट्रिक कॉम्पोनेंट बनाए जाते थे।

सुंदर की पत्‍नी का नाम अंजलि तथा बच्‍चों के नाम काव्‍या एवं किरण है।

शिक्षा

सुंदर पिचई चेन्नईमें रहते थे और एक सामान्‍य जीवन जीते थे।

सुन्दर ने जवाहर नवोदय विद्यालय, अशोक नगर, चेन्नई में अपनी दसवीं तथा वना वाणी स्कूल, चेन्नई से बारहवीं कक्षा पूरी की।

सुंदर पिचई इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफटेक्नोलॉजी (IIT), खड़कपुर से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग (धातुकर्मइंजीनियरिंग) की पढ़ाई की।

इन्‍होंने एम.एस. (कम्‍प्‍यूटर साइंस) में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से की।

पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के व्हार्टन स्कूल से एमबीएकिया, जहां उन्हे एक विद्वान साइबेल स्‍कॉलर के लिए नामित किया गया।

सुंदर पिचई जीवन परिचय : संघर्षशील जीवन से सफलता तक

मैक्किंतॉश्‍ में कंसल्टेंट

कमजोर आर्थिक परिस्‍थितयों के कारण सुंदर पिचई 1995 में स्टैनफोर्ड में बतौर पेइंग गेस्ट रहते थे।

कम पैसे के कारण सुंदर पिचई पुरानी चीजें इस्तेमाल कर लेते थे, लेकिन पढ़ाई के प्रति कभी लापरवाही नहीं दिखाई।

परिस्थितियों के कारण इन्‍होंने पीएचडी का सपना त्‍याग कर इन्‍हें  अप्लायड मटीरियल्स इंक में प्रोडक्ट मैनेजर के पद पर नौकरी की।

प्रसिद्ध कंपनी मैक्किंतॉश्‍ में कंसल्टेंट का काम भी किया।

गूगल क्रोम में भूमिका

1 अप्रैल 2004 को वे गूगल में आए।

सुंदर कापहला प्रोजेक्ट प्रोडक्ट मैनेजमेंट और इनोवेशन शाखा में गूगल के सर्चटूलबार को बेहतर बनाकर दूसरे ब्रॉउजर के ट्रैफिक को गूगल पर लाना था।

इसी दौरान उन्होंने सुझाव दिया कि गूगल को अपना ब्राउजर लांच करना चाहिए।

सुंदर पिचई ने 2004 में गूगल ज्वाइन किया था। उस समय वे प्रोडक्ट और  इनोवेशनऑफिसर थे।

सुंदर सीनियर वाइस प्रेसीडेंट (एंड्रॉइड, क्रोम और ऐप्स डिविजन)रह चुके हैं।

पिछले साल अक्टूबर में उन्हें गूगल का सीनियर वीपी (प्रोडक्टचीफ) बनाया गया था।

एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के डेवलपमेंट और 2008 में लांच हुए गूगल क्रोम में उनकी बड़ी  भूमिका रही है।

सीनियर वाइसप्रेसीडेंट

प्रोडक्ट मैनेजर के पद पर रहते हुए सुंदर पिचई नेगूगल ज्वाइन किया था, तो इंटरनेट यूजर्स के लिए शोध कियाकि यूजर्सजो इन्स्टॉल करना चाहते हैं, वे जल्दी इन्स्टॉल हो जाए।

हालांकि यह काम ज्यादा मजेदार नहीं था, फिर भी उन्होंने खुद को साबित करने के लिए अन्य कंपनियों से बेहतर संबंध बनाएं, ताकि टूलबार को बेहतर बनाया जाए।

उन्हें प्रोडक्ट मैनेजमेंट का डायरेक्टर बना दिया गया।  2011 में जब लैरी पेज गूगल के सीईओ बने, तो उन्होंने तुरंत पिचई को प्रमोट करते हुए सीनियर वाइसप्रेसीडेंट बना दिया गया था।

क्रोम ऑपरेटिंग सिस्टम

इसी एक आइडिया से वे गूगल के संस्थापक लैरीपेज की नजरों में आ गए।

इसी आइडिया से उन्हें असली पहचान मिलनी शुरू हुई।

2008 से लेकर 2013 के दौरान सुंदर पिचई के नेतृत्व में क्रोम ऑपरेटिंग सिस्टम की सफल लांचिंग हुई और उसके बाद एंड्रॉइड मार्केट प्लेस से उनका नाम दुनिया भर में हो गया।

सुंदर ने ही गूगल ड्राइव, जीमेल ऐप और गूगल वीडियो कोडेक बनाए हैं।

सुंदर द्वारा बनाए गए क्रोम ओएस और एंड्रॉइड एप ने उन्हें गूगल के शीर्ष पर पहुंचा दिया।

पिछले साल एंड्रॉइड डिविजन उनके पास आया और उन्होंने गूगल के अन्य व्यवसाय को आगे बढ़ाने में भी अपना योगदान दिया।

अन्य

वह 2004 में गूगल में आए।

जहाँ वे गूगल के उत्पाद जिसमें गूगल क्रोम, क्रोमओएस शामिल है।

शुरुआत में वह गूगल के सर्च बार पर छोटी टीम के साथ काम करते रहे।

इसके बाद उन्होंने गूगल के कई और प्रोडक्ट पर भी काम किया है।

उन्होंने जीमेल और गूगल मैप्स जैसे अन्य अनुप्रयोगों के विकास की देखरेख की।

इसके बाद वह गूगल ड्राइव परियोजना का हिस्सा बने।

फिर इसके बाद वह अन्य उत्पाद जैसे जीमेल और गूगल मानचित्र, आदि का हिस्सा बने।

इसके बाद वह 19 नवम्बर 2009 में क्रोम ओएस और क्रोमबूक आदि के जाँच कर दिखाये। वह इसे 2011 में सार्वजनिक किया।

यह 13 मार्च 2013 को एंडरोइड के परियोजना से जुड़े। अप्रैल 2011 से 30 जुलाई 2013 तक जीवा सॉफ्टवेयर के निर्देशक बने थे।

अंतत: – सुंदर पिचई जीवन परिचय

गूगल ने अपनी कंपनी का नाम अल्फ़ाबेट में बदल दिया।

सुंदर पिचई वर्तमान में अमेरिकी व्यवसायी हैं, जो अल्फाबेट कंपनीके सीईओ तथा उसकी सहायक कंपनी गूगल एलएलसी के सीईओ हैं।

इसके बाद लेरी पेज ने गूगल खोज नामक कंपनी का सीईओ सुंदर पिचई को बना दिया और स्वयंअल्फाबेट कंपनी के सीईओ बन गए।

सुन्दर पिचई  ने गूगल सीईओ का पद ग्रहण 2 अक्टूबर, 2015 को किया। 3 दिसंबर, 2019 को वह अल्फाबेट के सीईओ बन गए।

गूगल के सीईओ सुंदर पिचई का जीवन परिचय, परिवार, शिक्षा, व्यक्तिगत जीवन तथा संघर्षशील जीवन से सफलता तक की पूरी कहानी

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कवि स्वयम्भू | Kavi Svayambhu

अपभ्रंश का कवि स्वयम्भू | Kavi Svayambhu

कवि स्वयम्भू | Kavi Svayambhu अपभ्रंश के प्रथम कवि का जीवन-परिचय, रचनाएं, उपाधियाँ, स्वयंभू का काल निर्धारण, स्वयम्भू का अर्थ आदि

स्वयम्भू : काल निर्धारण – अपभ्रंश के प्रथम कवि स्वयम्भू का जीवन-परिचय एवं रचनाएं

कवि स्वयंभू की जन्मतिथि के विषय में निश्चित ज्ञान नहीं है और नही अभी तक उनके जन्म स्थान, कुल परंपरा, कार्यस्थान, कार्य विधि तथा अन्य घटनाओं के बारे में कोई विशेष जानकारी प्राप्त हो पायी है।

स्वयंभू कृत पउमचरिउ में एक स्थान पर तथा रिट्ठणेमिचरिउ में दो स्थानों पर कुछ तिथियों, महीनों, नक्षत्रों का उल्लेख अवश्य मिलता है, परंतु कहीं भी वर्ष का उल्लेख नहीं होता है, अतः काल निर्णय करना अत्यंत कठिन है। पउमचरिउ तथा रिट्ठणेमिचरिउ में स्वयंभू ने भरत, व्यास, पिंगलाचार्य, इंद्राचार्य, भामह, दंडी, श्रीहर्ष, बाण, चतुर्मुख, रविषेण आदि पूर्वगामी कवियों की प्रशंसा की है, जिनमें से रविषेण सबसे अंतिम थे। रविषेण की कृति पद्म चरित्र का रचनाकाल ईस्वी सन् 676 से 677 में माना जाता है और स्वयम्भू ने स्वीकार किया है कि उन्होंने रविसेणारिय पसाएँ  अर्थात रविषेणाचार्य के प्रसाद से रामकथा रूपी नदी का अवगाहन किया है। इससे स्वयम्भू का समय 676 से 677 के बाद का ही निश्चित होता है। यह स्वयम्भू के काल की पूर्व सीमा ठहरती है।

इस तरह स्वयंभू के परवर्ती कवियों ने स्वयंभू के प्रति कृतज्ञता प्रकट की है। ऐसे कवियों में पुष्पदंत कालक्रम में सबसे पहले हैं। उन्होंने अपने महापुराण में दो स्थानों पर स्वयंभू को बड़े आदर के साथ स्मरण किया है। पुष्पदंत के महापुराण की रचना 959- 60 ईसवी में प्रारंभ हुई, अतः स्वयंभू इस समय से पूर्व हो चुके थे, इसलिए स्वयंभू की उत्तर सीमा 959- 60 के आसपास ठहरती है। स्वयम्भू की पूर्व सीमा 676- 77 तथा उत्तर सीमा 959- 60 तक के 300 वर्षों के सुदीर्घ कालखंड में एक निश्चित समय निर्धारित करना अत्यंत दुष्कर कार्य है। एक अन्य मत के अनुसार स्वयंभू 783 ईसवी के आसपास वर्तमान थे।

कवि स्वयम्भू | Kavi Svayambhu का जीवन-परिचय

स्वयम्भू जैन मतावलम्बी थे।

इनके पिता का नाम मारुतदेव तथा माता का नाम पद्मिनी था

काव्य कला का ज्ञान इन्होंने अपने पिता से ही लिया था।

स्वयम्भू ने अपने किसी पुत्र का उल्लेख नहीं किया है, किंतु त्रिभुवन को निर्विवाद रूप से उनका पुत्र माना जाता है।

जन्म स्थान के संबंध में कोई पुष्ट प्रमाण तो नहीं मिलता परंतु अंतः साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है, कि स्वयंभू कर्नाटक प्रदेश के निवासी रहे होंगे। लेकिन उनकी भाषा से यह अनुमान लगाया जाता है, कि स्वयंभू का जन्म उत्तर भारत या मध्य भारत में हुआ होगा और बाद में वे दक्षिण गए होंगे। यह अनुमान महापंडित राहुल सांकृत्यायन के मत पर आधारित है।

कवि स्वयम्भू | Kavi Svayambhu की उपाधियाँ

त्रिभुवन ने उन्हें स्वयंभूदेव, कविराज, कविराज चक्रवर्तिन विद्वान और छंदस् चूड़ामणि आदि उपाधियों से अलंकृत किया है।

पउमचरिउ में स्वयंभू ने अपने आप को कविराज कहकर संबोधित किया है।

डॉ हरिवल्लभ चुन्नीलाल भयाणी ने इन्हें अपभ्रंश का कालिदास और डॉ राहुल सांकृत्यायन ने इन्हें अपभ्रंश का वाल्मीकि कहा है।

स्वयम्भू कवि की रचनाएं – अपभ्रंश के प्रथम कवि स्वयम्भू का जीवन-परिचय एवं रचनाएं

स्वयंभू की तीन कृतियां निर्विवाद रूप से स्वीकार की जाती हैं- पउमचरिउ (पद्मचरित्र), रिट्ठणेमिचरिउ तथा स्वयम्भू छंद।

पउमचरिउ

पउमचरिउ में राम कथा है।

राम का एक पर्याय पद्म भी है, अतः स्वयंभू ने पद्मचरित्र नाम दिया।

कथा के अंत में राम को मुनींद्र से उपदेश ग्रहण कर निर्वाण प्राप्त करते हुए दिखाया गया है।

ऐसा करके कवि ने जैन धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध करनी चाही है।

पउमचरिउ पांच कांड और 90 संधियों में विभाजित महाकाव्य है-

(1) विद्याधर कांड में 20,

(2) अयोध्या कांड में 22,

(3) सुंदरकांड में 14,

(4) युद्ध कांड में 21,

(5) उत्तरकांड में 13 संधियाँ हैं।

संधियाँ कडवकों में विभाजित है।

ग्रंथ में कुल 1269 कडवक है।

पउमचरिउ की 23वी और 46 वी में संधि के प्रारंभ में कवि ने पुनः मंगलाचरण लिखे हैं।

पउमचरिउ को स्वयंभू के पुत्र त्रिभुवनस्वयंभू ने पूर्णता प्रदान की। इसकी 84 से 90 संधियाँ त्रिभुवन की रचना है।

रिट्ठणेमिचरिउ

आकार की दृष्टि से यह ग्रंथ स्वयंभू के अन्य सभी ग्रंथों से विशाल है इसमें 18000 श्लोक तथा चार कांड और 120 संधियाँ हैं।

इसमें आयी कृष्ण तथा कौरव पांडव की कथा के कारण इसके रिट्ठणेमिचरिउ, हरिवंश पुराण, भारत पुराण आदि कई नाम मिलते हैं।

रिट्ठणेमिचरिउ को भी स्वयंभू के पुत्र त्रिभुवन ने पूर्ण किया।

स्वयंभू छंद

इसमें 8 अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय के अंत में स्वयंभू छंद शब्द मिलता है।

ग्रंथ के प्रथम तीन अध्याय में प्राकृत छंदों तथा अंतिम पांच अध्यायों में अपभ्रंश के छंदों का विवेचन किया गया है।

इसके अतिरिक्त कुछ प्रमाणों के आधार पर सिरिपंचमी चरिउ तथा सुद्धयचरिय इनकी दो अन्य रचनाएं स्वीकार की जाती है।

दो अलग-अलग मतों के अनुसार स्वयंभू को एक व्याकरण ग्रंथ तथा एक अलंकार और कोश ग्रंथ का रचयिता भी कहा जाता है।

स्वयंभू के लिए प्रमुख कथन

“हमारे इसी युग में नहीं, हिन्दी कविता के पांचो युगों (1-सिद्ध-सामन्त युग, 2-सूफी-युग, 3-भक्त-युग, 4-दरबारी-युग, 5-नव जागरण-युग) के जितने कवियों को हमने यहाँ संग्रहीत किया है, उनमें यह निस्संकोच कहा जा सकता है कि स्वयंभू सबसे बड़ा कवि था। वस्तुतः वह भारत के एक दर्जन अमर कवियों में से एक था।” –डॉ. राहुल सांकृत्यायन

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य – अपभ्रंश के प्रथम कवि स्वयम्भू का जीवन-परिचय एवं रचनाएं

डॉ रामकुमार वर्मा ने स्वयंभू को हिंदी का प्रथम कवि माना है।

स्वयम्भू ने अपनी भाषा को देसी भाषा कहां है।

स्वयम्भू ने चतुर्मुख को पद्धड़िया बंध का प्रवर्तक तथा श्रेष्ठ कवि कहा है।

पद्धरी 16 मात्रा का मात्रिक छंद है। इस छंद के नाम पर इस पद्धति पर लिखे जाने वाले काव्यों को पद्धड़िया बंध कहा गया है।

स्रोत

महाकवि स्वयंभू- डॉ संकटा प्रसाद उपाध्याय

हिंदी काव्य धारा –डॉ राहुल सांकृत्यायन

पउमचरिउ (प्रस्तावना)- डॉ हरिवल्लभ चुन्नीलाल भयाणी

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गोरखनाथ Gorakhnath

गोरखनाथ Gorakhnath जीवन परिचय एवं रचनाएं

गोरखनाथ Gorakhnath का जीवन परिचय, रचनाएं, जन्म के बारे में विभिन्न मत, गोरखनाथ के बारे में साहित्यकारों के विभिन्न मत एवं गोरखनाथ जी की उक्तियाँ आदि की जानकारी।

परिचय

सिद्ध संप्रदाय का विकसित और परिवर्तित रूप ही नाथ संप्रदाय है। ‘नाथ’  शब्द के अनेक अर्थ है, शैव मत के विकास के बाद ‘नाथ’ शब्द शिव के लिए प्रयुक्त होने लगा। नाथ संप्रदाय में इस शब्द की जो व्याख्या की गई है उसके अनुसार ‘ना’ का अर्थ है ‘अनादिरूप’ तथा ‘थ’ का अर्थ है ‘स्थापित होना’। एक अन्य मत के अनुसार नाथ शब्द की व्याख्या की गई है, जिसमें ‘नाथ’ शब्द ‘मुक्तिदान’ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।

गोरखनाथ जीवन परिचय रचनाएं
गोरखनाथ जीवन परिचय रचनाएं

ना- नाथ ब्रह्म (जो मोक्ष देता है)

थ – स्थापित करना (अज्ञान के सामर्थ्य को स्थापित करना)

नाथ – जो ज्ञान को दूर कर मुक्त दिलाता है।

नाथपंथी शिवोपासक हैं, और अपनी साधना में तंत्र मंत्र एवं योग को महत्त्व देते हैं, इसलिए इन्हें योगी भी कहा जाता है। माना जाता है कि नाथ पंथ सहजयान का विकसित रूप है। विकास परंपरा में भी नाथों का स्थान सिद्धों के बाद ही आता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार नाथों का समय नौवीं शताब्दी का मध्य है। उनके मत से अधिकतर विद्वान सहमत भी हैं।

नाथ साहित्य के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए – नाथ साहित्य एक परिचय

गोरखनाथ का समय

विद्वानों ने मत्स्येंद्रनाथ का काल नौवीं शती का अंतिम चरण तथा गोरखनाथ का समय है।

दसवीं शती स्वीकार किया है, जबकि अन्य नाथों की प्रवृत्ति सीमा 12वीं 13वीं शताब्दी मानी जाती है।

नाथों की संख्या नौ मानी जाती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार अभी लोग नवनाथ और चौरासी सिद्ध कहते सुने जाते हैं।

नौ नाथो में आदिनाथ (शिव), मत्स्येंद्रनाथ (मच्छिंद्रनाथ), गोरखनाथ, चर्पटनाथ, चौरंगीनाथ आदि प्रमुख है।

नाथ एक विशेष वेशभूषा धारण करते थे जिसमें मेखला, शृंगी, गूदड़ी, खप्पर, कर्णमुद्रा, झोला आदि होते थे।

यह कान चीरकर कुंडल पहनते थे, इसलिए कनफटा योगी कहलाते थे।

नाथ पंथ के प्रवर्तक आदिनाथ या स्वयं शिव माने जाते हैं।

उनके शिष्य मत्स्येंद्रनाथ और इनके शिष्य गोरखनाथ थे।

यह पहले बौद्ध थे, बाद में नाथपंथी हो गए और योग मार्ग चलाया।जिसे हठयोग के नाम से जाना जाता है।

हठयोगियों के सिद्ध सिद्धांत पद्धति ग्रंथ के अनुसार-

ह- सूर्य

ठ – चंद्रमा

हठयोग – सूर्य और चंद्रमा का संयोग।

हठयोग की साधना शरीर पर आधारित है। कुंडलिनी को जगाने के लिए आसन, मुद्रा, प्राणायाम और समाधि का सहारा लिया जाता है।

गोरखनाथ का जीवन परिचय (गोरखनाथ जीवन परिचय एवं रचनाएं)

व्यक्तित्व एवं कृतित्व

जन्म एवं जन्म स्थान

गोरक्षनाथ की उत्पत्ति के दो रुप में मिलते हैं। व्यक्तित्व के रुप में गोरक्षनाथ शिवावतार है।

महाकाल योग शास्त्र में शिव ने स्वयं स्वीकार किया है कि मै ‘योगमार्ग का प्रचारक गोरक्ष हूँ।

हठयोग प्रदीपिका में उल्लेख है कि स्वयं आदिनाथ शिव ने योग-मार्ग के प्रचार हेतु गोरक्ष का रुप लिया था।

‘गोरक्ष सिद्धान्त संग्रह मे गोरखनाथ को ईश्वर की संतान के रूप में संबोधित किया गया है।

बंगीय काव्य ‘गोरक्ष-विजय’ के अनुसार गोरखनाथ आदिनाथ शिव की जटाओं से प्रकट हुए थे।

नेपाल दरबार ग्रंथालय से प्राप्त गोरक्ष सहस्रनाम के अनुसार गोरखनाथ दक्षिण मे बड़ब नामक देश में महामन्त्र के प्रसाद से उत्पन्न हुए थे।

तहकीकाक चिश्ती नामक पुस्तक से प्राप्त वर्णन के अनुसार शिव के एक भक्त ने सन्तानोत्पत्ति की इच्छा से शिव-धूनी से भस्म प्राप्त कर अपनी पत्नी को ग्रहण करने के लिए दिया पर लोक-लज्जा के भय से उस स्त्री ने उस भस्म को फेंक दिया। चामत्कारिक रूप से उसी स्थान पर एक हष्ट-पुष्ट बालक उत्पन्न हुआ। शिव ने उसका नाम गोरक्ष रखा। वर्तमान समय में भी गोरक्षनाथ को नाथ योगी लोग शिव-गोरक्ष के रुप में ही मान्यता देते है।

‘योग सम्प्रदाय विष्कृति’ के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ ने एक सच्चरित्र धर्मनिष्ट निस्संतान ब्राह्मण दंपत्ति को पुत्र प्राप्ति की इच्छा से भस्म प्रदान की, इसी भस्म से गोरखनाथ उत्पन्न हुए। गोरखनाथ के जन्म स्थान के सम्बन्ध में पर्याप्त मतभेद है।

महार्थमंजरी के त्रिवेन्द्रम संस्करण से ज्ञात होता है कि वे चोल देश के निवासी थे उनके पिता का नाम माधव और गुरु का नाम महाप्रकाश था।

अवध की परम्परा में गोरक्षनाथ जायस नगर के एक पवित्र ब्राह्मण कुल में उत्पन्न माने जाते हैं।

विभिन्न मतानुसार

ब्रिग्स ने गोरक्ष को पंजाब का मूल निवासी बताया है।

ग्रियर्सन ने उनका पश्चिमी हिमालय का निवासी होना स्वीकार किया है

डॉ० मोहन सिंह पेशावर के निकट रावलपिंडी जिले के एक ग्राम ‘गोरखपुर’ को उनकी मातृभूमि बताते है।

डा० रांगेय राघव का मत है कि गोरखनाथ का जन्मस्थान पेशावर का उत्तर-पश्चिमी पंजाब है।

पं० परशुराम चतुर्वेदी का अनुमान है कि गोरख का जन्म पश्चिमी भारत अथवा पंजाब प्रांत के किसी स्थान में हुआ था और उनका कार्य-क्षेत्र नेपाल, उत्तरी भारत आसाम, महाराष्ट्र एवं सिन्ध तक फैला हुआ था।

नेपाल पुस्तकालय से उपलब्ध ग्रन्थ योग सम्प्रदाय विष्कृति के अनुसार गोरक्ष की जन्मभूमि गोदावरी नदी के तट पर स्थित ‘चन्द्रगिरि’ नामक स्थान है।

डॉ० अशोक प्रभाकर का मत है कि महाराष्ट्र मे त्रियादेश की स्थापना बताकर तथा नाथ पंथ की कुछ गुफाओं व प्रतीकों को आधार बनाकर गोरखनाथ की जन्मभूमि महाराष्ट्र में स्थित ‘चन्द्रगिरि’ को बताते है।

अक्षय कुमार बनर्जी का मत है कि मत्स्येन्द्र गोरक्ष आदि ने सर्वप्रथम हिमालय प्रदेश-नेपाल, तिब्बत आदि देशों में अपनी योग साधना आरम्भ की और सम्भवतः इन्हीं स्थानो में वे प्रथम देव सदृश पूजे गये उनका स्थान देवाधिदेव पशुपतिनाथ शिव को छोड़कर अन्य सभी देवताओं से ऊँचा था।

तिब्बत व नेपाल के क्षेत्र से ही योग साधना का आन्दोलन पूर्व में कामरूप (आसाम) बंगाल, मनीपुर तथा निकटवर्ती क्षेत्रों में फैला। पश्चिम में कश्मीर, पंजाब पश्चिमोत्तर प्रदेश, यहाँ तक कि काबुल और फारस तक पहुँचा उत्तर प्रदेश हिमालय के समीप होने के कारण अधिक प्रभावित हुआ। दक्षिण पश्चिम और दक्षिण पूर्व में भी गोरखनाथ तथा अन्यान्न नाथ योगियों की शिक्षाएं तथा उनके चमत्कार की कथाएँ पुष्प की सुगंध की तरह चहूँ ओर बिखर गयीं।

गोरखनाथ के जन्म के समय के बारे में निश्चित नहीं कहा जा सकता है-

गोरखनाथ का समय डॉ राहुल सांकृत्यायन ने 845 ईस्वी माना है।

डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी उन्हें नवी शताब्दी का मानते हैं।

डॉ पीतांबरदत्त बड़थ्वाल ने 11वीं शताब्दी का स्वीकार करते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा डॉ रामकुमार वर्मा इन्हें 13वीं शताब्दी का मानते हैं।

आधुनिक खोजों के अनुसार गोरखनाथ ने ईसा की तेरहवीं सदी के आरंभ में अपना साहित्य लिखा था।

गोरखनाथ की रचनाएं (गोरखनाथ जीवन परिचय एवं रचनाएं)

इनके ग्रंथों की संख्या 40 मानी जाती है, परंतु डॉ पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने इनकी 14 रचनाओं को प्रमाणिक मानकर गोरखवाणी नाम से उनका संपादन किया है। डॉ बड़थ्वाल द्वारा संपादित पुस्तकों की सूची इस प्रकार है– (1) शब्द, (2) पद, (3) शिष्या दर्शन. (4) प्राणसंकली. (5) नरवैबोध, (6) आत्मबोध, (7) अभयमुद्रा योग, (8) पंद्रह तिथि, (9) सप्तवार, (10) मछिन्द्र गोरखबोध, (11) रोमावली, (12) ज्ञान तिलक, (13) ज्ञान चौतीसा, (14) पंचमात्रा।

मिश्र बंधु

डॉ बड़थ्वाल के अतिरिक्त मिश्र बंधुओं ने गोरखनाथ के 9 संस्कृत ग्रंथों का परिचय दिया है– (1) गोरक्षशतक, (2) चतुरशीत्यासन, (3) ज्ञानामृत, (4) योगचिन्तामणि, (5) योग महिला, (6) योग मार्तण्ड, (7) योग सिद्धांत पद्धति, (8) विवेक मार्तण्ड (9) सिद्ध-सिद्धान्त पद्धति

योगनाथ स्वामी

ने गोरखनाथ की 20 संस्कृत ग्रन्थों की सूची दी है- (1) अमनस्क योग (2) अमरौधा शासनम्, (3)सिद्ध-सिद्धान्त पद्धति,(4) गोरक्षसिद्धान्त संग्रह, (5) सिद्ध-सिद्धान्त संग्रह, (6) महार्थ मंजरी, (7) विवेक मार्तण्ड, (8) गोरक्ष पद्धति, (9) गोरक्ष संहिता, (10) योगबीज, (11) योग चिन्तामणि, (12) हठयोग संहिता, (13) श्रीनाथ-सूत्र, (14) योगशास्त्र (15)चतुश्षीत्यासन, (16) गोरक्ष चिकित्सा, (17) गोरक्ष पंच, (18)गोरक्ष गीता, (19) गोरक्ष कौमुदी, (20) गोरक्ष कल्प।

डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी

ने गोरखनाथ 28 ग्रंथों की का उल्लेख किया है, द्विवेदी जी ने लिखा है कि उन पुस्तकों में अधिकांश के रचयिता गोरखनाथ नहीं थे–1.अमनस्कयोग 2. अमरौधशासनम् 3. अवधूत गीता 4. गोरक्ष कल्प 5. गोरक्षकौमुदी 6. गोरक्ष गीता 7. गोरक्ष चिकित्सा 8. गोरक्षपंचय 9. गोरक्षपद्धति 10. गोरक्षशतक 11. गोरक्ष शास्त्र 12.गोरक्ष संहिता 13. चतुरशीत्यासन 14. ज्ञान प्रकाश 15. ज्ञान शतक  16. ज्ञानामृत योग 17. नाड़ीज्ञान प्रदीपिका 18. महार्थ मंजरी 19. योगचिन्तामणि 20. योग मार्तण्ड 21.योगबीज 22. योगशास्त्र 23. योगसिद्धांत पद्धति 24. विवेक मार्तण्ड 25. श्रीनाथ-सूत्र 26. सिद्ध-सिद्धान्तपद्धति 27. हठयोग 28. हठ संहिता।

डॉ० नागेन्द्रनाथ उपाध्याय

ने गोरखनाथ के 15 ग्रंथो की सूची प्रस्तुत की है लेकिन इनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है- 1. अमरौधशासनम् 2. अवधूत गीता 3. गोरक्ष गीता 4.गोरक्षशतक 5. विवेक मार्तण्ड 6. महार्थमंजरी 7. सिद्ध-सिद्धान्त पद्धति 8.  चतुरशीत्यासन्  9. ज्ञानामृत 10. योग महिमा 11. योग-सिद्धान्त पद्धति 12. गोरक्ष कथा 13. गोरक्ष सहस्रनाम 14. गोरक्षपिष्टिका 15. योगबीज

गोरखनाथ मंदिर की जानकारी के लिए क्लिक कीजिए- https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5_%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0

गोरखनाथ की प्रसिद्ध उक्तियाँ

(1) “नौ लख पातरि आगे नाचें, पीछे सहज अखाड़ा।

ऐसे मन लौ जोगी खेले, तब अंतरि बसै भंडारा ॥”

(2) “अंजन माहि निरंजन भेट्या, तिल मुख भेट्या तेल।

मूरति मांहि अमूरति परस्या भया निरंतरि खेल ॥”

(3) “नाथ बोल अमृतवाणी । बरसेगी कवाली पाणी॥

गाड़ी पडरवा बांधिले खूँटा। चलै दमामा वजिले काँटा॥”

(4) “गुर कोमहिला निगुरा न रहिला, गुरु बिन ज्ञान न पायला रे भाईला।”

(5) “अवधू रहिया हाटे बाटे रूप विरस की छाया।

तजिवा काम क्रोध लोभ मोह संसार की माया॥”

(6) “स्वामी तुम्हई गुरु गोसाई। अम्हे जो सिव सबद एक बुझिबा।।

निरारंवे चेला कूण विधि रहै। सतगुरु होइ स पुछया कहै ॥”

(7) “अभि-अन्तर को त्याग माया”

(8) “दुबध्या मेटि सहज में रहैं”

(9) “जोइ-जोइ पिण्डे सोई-ब्रह्माण्डे”

प्रमुख कथन (गोरखनाथ जीवन परिचय एवं रचनाएं)

शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ। भारतवर्ष के कोने-कोने में उनके अनुयायो आज भी पाये जाते हैं। भक्ति आन्दोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आन्दोलन गोरखनाथ का भक्ति मार्ग हो था। गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता थेआचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

“गोरख जगायो जोग भक्ति भगाए लोग” – तुलसीदास

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

1 नाथ साहित्य के प्रारंभ करता गोरखनाथ थे।

2 गोरखनाथ के गुरु का नाम मत्स्येंद्रनाथ था।

3 हिंदी साहित्य में षट्चक्र वाला योग मार्ग गोरखनाथ ने चलाया।

4 मिश्रबंधुओं ने गोरखनाथ को हिंदी का प्रथम गद्य लेखक माना है।

स्रोत

  • इग्नू स्नातकोत्तर (हिंदी) पाठ्य सामग्री
  • हिंदी साहित्य का इतिहास – डॉ नगेंद्र
  • नाथ संप्रदाय – डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • गोरक्षनाथ और उनका युग – डॉ रांगेय राघव
  • अमनस्क योग –  श्री योगीनाथ स्वामी
  • नाथ संप्रदाय का इतिहास दर्शन एवं साधना प्रणाली – डॉ कल्याणी मलिक
  • गोरक्षनाथ एंड कनफटा योगीज –  ब्रिग्स
  • योगवाणी फरवरी 1977
  • नाथ और संत साहित्य तुलनात्मक अध्ययन – डॉ नागेंद्रनाथ उपाध्याय

गोरखनाथ का जीवन परिचय, रचनाएं, जन्म के बारे में विभिन्न मत, गोरखनाथ के बारे में साहित्यकारों के विभिन्न मत एवं गोरखनाथ जी की उक्तियाँ आदि की जानकारी।

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सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa – प्रथम हिन्दी कवि

सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa : व्यक्तित्व एवं कृतित्व

सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa प्रथम हिन्दी कवि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व, जीवन परिचय, रचनाएं, भाषा शैली, 84 सिद्धों के नाम एवं प्रमुख कथन

हिंदी साहित्य का आरंभिक कवि सरहपा को माना जाता है।

यह 84 सिद्धों में प्रथम माने जाते हैं।

सरहपा के बारे में चर्चा करने से पहले सिद्ध संप्रदाय की संक्षिप्त जानकारी आवश्यक है।

सामान्य रूप से जब कोई साधक साधना में प्रवीण हो जाता है और विलक्षण सिद्धियां प्राप्त कर लेता है तथा उन सिद्धियों से चमत्कार दिखाता है, उसे सिद्ध कहते हैं।

प्रथम हिन्दी कवि-सिद्ध सरहपा
प्रथम हिन्दी कवि-सिद्ध सरहपा

लगभग आठवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म से सिद्ध संप्रदाय का विकास हुआ था।

बहुत संप्रदाय विघटित होकर दो शाखाओं- हीनयान तथा महायान में बँट गया।

कालांतर में महायान पुनः दो उपशाखाओं में विभाजित हुआ-

(क) वज्रयान

(ख) सहजयान

इन्हीं शाखाओं के अनुयाई साधकों को सिद्ध कहा गया है।

वज्रयानियों का केंद्र श्री पर्वत रहा है।

सिद्धों के समय को लेकर विद्वानों में मतभेद है।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने सिद्धों का समय सातवीं शताब्दी स्वीकार किया है।

डॉ रामकुमार वर्मा ने इनका समय संवत् 797 से 1257 तक माना है।

जबकि आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनका समय दसवीं शताब्दी स्वीकार किया है।

सिद्धों की संख्या

संख्या 84 मानी जाती है।

तंत्र साधना में 84 का गूढ़ तांत्रिक अर्थ तथा विशेष महत्व होता है।

योग तथा तंत्र में आसन भी 84 माने गए हैं।

84 सिद्धों का संबंध 84 लाख योनियों से भी माना जाता है।

काम शास्त्र में 84 आसन भी स्वीकार किए गए हैं।

हिंदी साहित्य कोश के अनुसार 12 राशियों तथा 7 नक्षत्रों का गुणनफल भी 84 होता है।

उस समय प्रत्येक संप्रदाय 84 की संख्या को महत्व देता था।

सिद्धों का 84 ही होने का कोई पुष्ट प्रमाण नहीं मिलता है।

डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा उपलब्ध करवाई गई 84 सिद्धों की सूची इस प्रकार है-

संख्या

(1) लुइपा – कायस्थ, (2) लीलापा, (3) विरूपा, (4) डोम्बिपा – क्षत्रिय, (5) शबरपा- क्षत्रिय, (6) सरहपा – ब्राह्मण, (7) कंकालीपा – शूद्र, (8) मीनपा- मछुआ, (9) गोरक्षपा, (10) चोरंगिपा – राजकुमार, (11) वीणापा – राजकुमार, (12) शान्तिपा – ब्राह्मण, (13) तंतिपा तँतवा, (14) चमारिपा – चर्मकार, (15) खड्गपा – शूद्र, (16) नागार्जुन – ब्राह्मण, (17) कण्हपा – कायस्थ, (18) कर्णरिपा, (19) थगनपा – शूद्र, (20) नारोपा – ब्राह्मण,

(21) शलिपा – शूद्र, (22) तिलोपा-ब्राह्मण, (23) छत्रपा-शूद्र, (24) भद्रपा- ब्राह्मण, (25) दोखंधिपा, (26) अजोगिपा – गृहपति, (27) कालपा, (28) धम्मिपा –  धोबी, (29) कंकणपा –  राजकुमार, (30) कमरिपा, (31) डेंगिपा – ब्राह्मण, (32) भदेपा, (33) तंधेपा – शूद्र, (34) कुक्कुरिपा – ब्राह्मण, (35) कुचिपा – शूद्र, (36) धर्मपा – ब्राह्मण, (37) महीपा – शूद्र, (38) अचितपा – लकड़हारा, (39) भलहपा क्षत्रिय, (40) नलिनपा, (41) भुसुकिपा – राजकुमार,

(42) इन्द्रभूति – राजा, (43) मेकोपा – वणिक्, (44) कुठालिपा, (45) कमरिपा – लोहार, (46) जालंधरपा – ब्राह्मण, (47) राहुलपा- शूद्र(48) मेदनीपा(49) धर्वरिपा, (50) धोकरिपा – शूद्र, (51) पंकजपा – ब्राह्मण, (52) घंटापा – क्षत्रिय, (53) जोगीपा डोम, (54) चेकुलपा-  शूद्र, (55) गुंडरिपा – चिड़मार, (56) लुचिकपा – ब्राह्मण, (57) निर्गुणपा – शूद्र, (58) जयानन्त – ब्राह्मण, (59) चर्पटीपा – कहार, (60) चम्पकपा, (61) भिखनपा – शूद्र, (62) भलिपा – कृष्ण घृत वणिक्, (63) कुमरिपा, (64) चवरिपा, (65) मणिभद्रा – (योगिनी) गृहदासी, (66) मेखलापा (योगिनी) गृहपति कन्या, (67) कनपलापा (योगिनी) गृहपति कन्या, (68) कलकलपा – शूद्र, (69) कंतालीपा – दर्जी, (70) धहुलिपा – शूद्र, (71) उधलिपा – वैश्य, (72) कपालपा – शूद्र, (73) किलपा – राजकुमार,(74) सागरपा–राजा(75) सर्वभक्षपा – शूद्र, (76) नागबोधिपा- ब्राह्मण,(77) दारिकपा- राजा, (78) पुतुलिपा- शूद्र, (79) पनहपा- चमार, (80) कोकालिपा – राजकुमार, (81) अनंगपा -शूद्र, (82) लक्ष्मीकरा – (योगिनी) राजकुमारी, (83) समुदपा, (84) भलिपा – ब्राह्मण । सिद्धों के नाम के साथ आदर सूचक शब्द ‘पा’ जुड़ता है।

डॉ रामकुमार वर्मा सरहपा को हिंदी का प्रथम कवि स्वीकार करते हुए, उनकी कविता में हिंदी कविता के आदि रूप का अस्तित्व स्वीकार किया है। उनके मत से अन्य प्रमुख साहित्यकार भी सहमत नजर आते हैं।

प्रथम हिन्दी कवि-सिद्ध सरहपा व्यक्तित्व एवं कृतित्व

सरहपा सिद्धों में प्रथम सिद्ध माने जाते हैं। इन्होंने ही सिद्ध संप्रदाय का प्रवर्तन किया।

कतिपय विद्वान मानते हैं कि सरहपा ने ही महामुद्रा साधना का प्रथम अभ्यास किया तथा इसमें सिद्धि प्राप्त की।

सरहपा के जन्म तथा मृत्यु के विषय में पर्याप्त जानकारी का अभाव है लेकिन कुछ साक्ष्यों के आधार पर उनके समय का अनुमान लगाया जाता है।

डॉ राहुल सांकृत्यायन के मतानुसार सरहपा आठवीं शताब्दी (769) के लगभग वर्तमान थे।

डॉ ग्रियर्सन, शिव सिंह सेंगर, मिश्र बंधु,चंद्रधर शर्मा गुलेरी, हजारी प्रसाद द्विवेदी तथा डॉ रामकुमार वर्मा राहुल जी से दूर तक सहमत हैं।

सरहपा के कई नाम सरोरुह, वज्र, सरोवज्र, पद्म, पद्मवज्र तथा राहुलभद्र आदि मिलते हैं।

सिद्धि प्राप्त करने से पूर्व इनका नाम राहुल भद्रथा, बाद में सरहपा हुआ।

तिब्बत में प्रचलित के किंवदंती के अनुसार सरहपा का जन्म उड़ीसा में हुआ था।

डॉ राहुल सांकृत्यायन ‘दोहाकोश’ की भूमिका में सरहपा का जन्म स्थान राज्ञी नामक गांव को माना है, परंतु वर्तमान में इस नाम का कोई गांव नहीं है।

विद्वानों का मत है कि यह गांव शायद बिहार के भागलपुर के आस-पास रहा होगा।

इन्हे वेद वेदांगों में बचपन से ही विशेष रुचि थी।

मध्यप्रदेश में इन्होंने  त्रिपिटकों का अध्ययन किया और बौद्ध धर्म में दीक्षित होकर नालंदा आ गए, वहां से महाराष्ट्र पहुंचे और महामुद्रा योग में सिद्धि प्राप्त कर सिद्ध कहलाए।

सरहपा  और उनके  समकालीन साहित्य पर अनेक विद्वानों ने शोध कार्य किया है जिनमें मिशेल, हरमन याकोबी, चन्द्रमोहन घोष, महामहोपाध्याय पण्डित विधुशेखर शास्त्री, महामहोपाध्याय पं. हरप्रसाद शास्त्री, डॉ. प्रबोधचन्द्र बागची, मुनि जिनविजय, डॉ शहीदुल्ला, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन आदि मुख्य हैं।

इनके प्रयासों से ही आज इस काल का साहित्य थोड़ा बहुत हमें उपलब्ध है।

सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa की रचनाएं

सरहपा ने लगभग 32 ग्रंथों की रचना कीजिनमें से दोहाकोश इनकी श्रेष्ठ रचना मानी जाती है।

दोहाकोश की भूमिका में राहुल सांकृत्यायन ने 7 कृतियों की एक सूची दी है, जिन्हें सरहपा की रचनाएं कहा जा सकता है।

इसके अतिरिक्त दोहाकोश की भूमिका में ही राहुल जी ने सरहपा की संभावित 16 अन्य कविताओं की सूची भी दी है।

सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa के लिए प्रमुख कथन

“आज की भाषा में अबनार्मल प्रतिभा के धनी थे मूड आने पर वह कुछ गुनगुनाने लगते। शायद उन्होंने स्वयं इन पदों को लेखबद्ध नहीं किया। यह काम उनके साथ रहने वाले सरह के भक्तों ने किया। यही कारण है, जो ‘दोहा-कोश के छन्दों के क्रम और संख्या में इतना अन्तर मिलता है। सरह जैसे पुरुष से यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि वह अपनी धर्म की दूकान चलाएगा, पर, आगे वह चली और खूब चली, इसे कहने की आवश्यकता नहीं।”महापंडित राहुल सांकृत्यायन

“जब उन्हें वहाँ का जीवन दमघोंटू लगने लगा, तो उन्होंने सब कुछ को लात मारी, भिक्षुओं का बाना छोड़ा, अपनी नहीं, किसी दूसरी छोटी जाति की तरुणी को लेकर खुल्लमखुल्ला सहजयान का रास्ता पकड़ा।”महापंडित राहुल सांकृत्यायन

“सिद्ध-सामंत युग की कविताओं की सृष्टि आकाश में नहीं हुई है वे हमारे देश की ठोस धरती की उपज हैं। इन कवियों ने जो खास-खास शैली भाव को लेकर कविताएँ की, वे देश की तत्कालीन परिस्थितियों के कारण ही।”  –महापंडित राहुल सांकृत्यायन

“आक्रोश की भाषा का पहला प्रयोग सरहपा में ही दिखाई देता है।“डॉ. बच्चन सिंह

सरहपा की प्रमुख पंक्तियाँ

  1. पंडिअ सअल सत्त बक्खाणइ। देहहि रुद्ध बसंत न जाणइ।

अमणागमण ण तेन विखंडिअ। तो विणिलज्जइ भणइ हउँ पंडिय।।

  1. जहि मन पवन संचरइ, रवि ससि नाहि पवेश।

तहि वत चित्त विसाम करु, सरेहे कहिअ उवेश।।

  1. घोर अधारे चंदमणि जिमि उज्जोअ करेइ।

परम महासुह एषु कणे दुरिअ अशेष हरेइ।।

प्रथम हिन्दी कवि-सिद्ध सरहपा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व, जीवन परिचय, रचनाएं, भाषा शैली, 84 सिद्धों के नाम एवं प्रमुख कथन के बारे में जानकारी

स्रोत पुस्तकें

दोहकोश

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर (हिंदी)की पाठ्य सामग्री

हिंदी साहित्य का इतिहास- डॉ नगेंद्र

हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास – डॉ बच्चन सिंह

हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली (खंड 3)

इन्हें भी अवश्य पढें-

महाकवि पुष्पदंत

स्वयम्भू

गोरखनाथ

सिद्ध सरहपा

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आदिकाल के प्रमुख कवि

आदिकाल के प्रमुख लेखक, कवि एवं साहित्यकार

आदिकाल लेखक कवि साहित्यकार : आदिकाल के प्रमुख लेखक, आदिकाल के प्रमुख कवि एवं आदिकाल के प्रमुख साहित्यकारों की सूचीबद्ध संपूर्ण जानकारी-

सिद्ध सरहपा

गोरखनाथ 

स्वयम्भू

महाकवि पुष्पदंत

महाकवि चंदबरदाई

विद्यापति

अमीर खुसरो

 

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार

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आदिकाल लेखक कवि साहित्यकार

इन्हें भी अवश्य पढ़िए- भाषा और व्याकरण         संज्ञा     सर्वनाम     विशेषण     क्रिया        क्रियाविशेषण       सम्बन्धबोधक अव्यय        समुच्चय बोधक अव्यय        विस्मयादिबोधक अव्यय       व्यंजन संधि

राष्ट्रीय महिला आयोग

राष्ट्रीय महिला आयोग (National Women Commission)

राष्ट्रीय महिला आयोग का इतिहास, गठन, अध्यक्ष, सदस्य, पदावधि, सेवा की शर्तें, वेतन-भत्ते, रिक्तियां, समितियां, कृत्य एवं नियम बनाने की शक्तियां आदि का विस्तृत विवरण

यत्रनार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।

मनुस्मृति ३/५६ ।।

  • जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ नारी की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है, वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
  • नारी के प्रति सम्मान की भावना युगो युगो से भारतीय संस्कृति में विद्यमान है परंतु आधुनिकता की चकाचौंध में नारी के सम्मान को भूल गए महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं वैश्विक प्रस्थिति को उचित दिशा एवं दशा देने हेतु संसद 1990 में महिलाओं का राष्ट्रीय आयोग अधिनियम पारित किया ।
  • इस अधिनियम को राष्ट्र की सम्मति 30 अगस्त को प्राप्त हुयी थी।
  • अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार 31 जनवरी 1992 को राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना हुई।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग का प्रमुख उद्देश्य महिलाओं के सांविधानिक एवं कानूनी संरक्षण में सुधार, कानूनी उपचार का प्रबन्ध, कल्याणकारी सुविधाएँ प्रदान करना तथा महिलाओं को प्रभावित करने वाली सभी सरकारी नीतियों में सरकार को सुझाव देना है ।

राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के अध्याय 2 की धारा 3 के अनुसार राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन-

  • (I) केन्द्रीय सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग के नाम में बात एक निकाय का गठन करेगी जो इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और समनुदिष्ट कृत्या का पालन करेगा।
  • (2) यह आयोग निम्नलिखित से मिलकर बनेगा-

(क) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट एक अध्यक्ष, जो महिलाओं के हित के लिए समर्पित हो;

(ख) केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसे योग्य, सत्यनिष्ठ और प्रतिनिष्ठित व्यक्तियों में से नामनिर्दिष्ट पाँच सदस्य जिन्हें विधि या विधान, व्यवसाय संघ आंदोलन, महिलाओं की नियोजन सम्भाव्यताओं की वृद्धि के लिए समर्पित उद्योग या संगठन के प्रबंध, स्वैच्छिक महिला संगठन (जिनके अंतर्गत महिला कार्यकर्ता भी है), प्रशासन, आर्थिक विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा या सामाजिक कल्याण का अनुभव है:परन्तु उनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों में से प्रत्येक का कम से कम एक सदस्य होगा;

(ग) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट एक सदस्य-सचिव जो- (i) प्रबंध, संगठनात्मक संरचना व सामाजिक आदोलन के क्षेत्र में विशेषज्ञ है, या

  • (ii) ऐसा अधिकारी है जो संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का मदस्य है अथवा संप के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है और जिसके पास समुचित अनुभव है।

राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के अध्याय 2 की धारा 4 के अनुसारराष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि और सेवा की शर्तें-

  • (1) अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य तीन वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए पद धारण करेगा जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
  • (2) अध्यक्ष या कोई सदस्य (ऐसे सदस्य -सचिव से भिन्न जो संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य हैं अथवा संघ के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है।) केन्द्रीय सरकार को संबोधित लेख द्वारा किसी भी समय, यथास्थिति, अध्यक्ष या सदस्य का पद त्याग सकेगा।
  • (3) केन्द्रीय सरकार, किसी व्यक्ति कोउपधारा (2) में निर्दिष्ट अध्यक्ष या सदस्य के पद से हटा देगी यदि वह-

(क) पूर्णतया दिवालिया हो जाता है:

(ख) ऐसे किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया जायेऔर कारावास सेदण्डित किया जाता है जिसमें केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक पतन वाला हो।

(ग) विकृतचित्त का हो जाता है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है।

(घ) कार्य करने से इंकार करता है या कार्य करने में असमर्थ हो जाता है।

(ङ) आयोग में अनुपस्थित रहने की इजाजत लिए बिना आयोग के लगातार तीन अधिवशनों में अनुपस्थित रहताहै या

(च) केन्द्रीय सरकार की राय में, उसने अध्यक्ष या सदस्य के पद का इस प्रकार दुरुपयोग किया है कि ऐसे व्यक्ति का पद पर बना रहना लोकहित के लिए अहितकर है।

परन्तु

इस खंड के अधीन किसी व्यक्ति को तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति को इस विषय में सुनवाई का उचित अवसर नही दे दिया गया है।

  • (4) उपधारा (2) के अधीन वा अन्यथा होने वाली रिक्ति नए नामनिर्देशन द्वारा भरी जाएगी।
  • (5) अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते, और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तेंवेहोंगी जो विहित की जाए।

धारा 5. आयोग के अधिकारी और अन्य कर्मचारी

(1) केन्द्रीय सरकार, आयोग के लिए ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की व्यवस्था करेगी जो इस अधिनियम के अधीन आयोग के कार्यों का दक्षतापूर्ण पालन करने के लिए आवश्यक हों।

(2) आयोग के प्रयोजनों के लिए नियुक्त अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भते और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें ये होंगी जो विहित की जाएं।

धारा 6. वेतन और भत्तों का अनुवान में से संवाद किया जाना : राष्ट्रीय महिला आयोग

अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा प्रशासनिक व्यय, जिनके अन्तर्गत धारा 5 में निर्दिष्ट अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन भी हैं, धारा 11 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदत्त किए जाएंगे।

धारा 7. रिक्तियों आदि से आयोग की कार्यवाहियों का अविधिमान्य न होना-

आयोग का कोई भी कार्य या कार्यवाही आयोग में कोई रिक्ति विद्यमान होने या उसके गठन में त्रुटि होने के आधार पर ही प्रश्नगत या अविधिमान्य नहीं होगी।

धारा 8. आयोग की समितियां : राष्ट्रीय महिला आयोग

(1) आयोग ऐसी समितिया नियुक्त कर सकेगा जो ऐसे विशेष प्रश्नों पर विचार करने के लिए आवश्यक हो जो आयोग द्वारा समय-समय पर उठाए जाएं।

(2) आयोग को उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किसी समिति के सदस्यों के रूप में, ऐसे व्यक्तियों में से जो आयोग के सदस्य नहीं हैं, उतने व्यक्ति सहयोजित करने की शक्ति होगी जितने वह उचित समझे और इस प्रकार सहयोजित व्यक्तियों को समिति के अधिवेशनों में उपस्थित रहने तथा उसकी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार होगा किन्तु उन्हें मतदान का अधिकार नहीं होगा।

(3) इस प्रकार सहयोजित व्यक्ति समिति के अधिवेशनों में उपस्थित होने के लिए ऐसे भत्ते प्राप्त करने के हकदार होंगे जो विहित किए जाएं।

धारा 9. प्रक्रिया का बायोग द्वारा विनियमित किया जाना

(1) आयोग या उसकी समिति का अधिवेशन जब भी आवश्यक हो किया जाएगा और वह ऐसे समय और स्थान पर किया जाएगा जो अध्यक्ष ठीक समझे

(2) आयोग अपनी प्रक्रिया तथा अपनी समितियों की प्रक्रिया स्वयं विनियमित करेगा।

(3) आयोग के सभी आदेश और विनिश्चय सदस्य-सचिव द्वारा या इस निमित्त सदस्य-सचिव द्वारा सम्पक रूप से प्राधिकृत आयोग के किसी अन्य अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किए जाएंगे।

धारा 10. आयोग के कृत्य

  • राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के अध्याय 3 की धारा 10 के अनुसार (1)आयोग निम्नलिखित सभी या किन्तु कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात –

(क) महिलाओं के लिए संविधान और अन्य विधियों के अधीन उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण और परीक्षा करना:

(ख) उन रक्षोपायों के कार्यकरण के बारे में प्रति वर्ष, और ऐसे अन्य समयों पर जो आयोग ठीक समझे, केन्द्रीय सरकार को रिपोर्ट देना।

(ग) ऐसी रिपोटों में महिलाओं की दशा सुधारने के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा उन रक्षोपायों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिश करना।

(घ) संविधान और अन्य विधियों के महिलाओं को प्रभावित करने वाले विद्यमान उपबंधों का समय-समय पर पुनर्विलोकन करना और उनके संशोधनों की सिफारिश करना जिससे कि ऐसे विधानों में किसी कमी, अप्याप्तता या त्रुटियों को दूर करने के लिए उपचारी विधायी उपायों का सुझाव दिया जा सके।

(ङ) संविधान और अन्य विधियों के उपबंधों के महिलाओं से संबंधित अतिक्रमण के मामलों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना,

(च) निम्नलिखित से संबंधित विषयों पर शिकायतों की जांच करना और स्वपेरणा से ध्यान देना-

  1. महिला के अधिकारों का वचन:
  2. महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए और ममता तथा विकास का उद्देश्य प्राप्त करने के लिए भी अधिनियमित विधियों का क्रियान्वयन
  3. महिलाओं की कठिनाइयों को कम करने और उनका कल्याण सुनिश्चित करने तथा उनको अनुतोष उपलब्ध कराने के प्रयोजनार्थ नीतिगत विनिश्चयों, मार्गदर्शक सिद्धांतों या अनुदेशों का अनुपालन, और ऐसे विषयों से उद्भूत प्रश्नों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना

इसके अलावा

(छ) महिलाओं के विरुद्ध विभेद और अत्याचारों से उद्भूत विनिर्दिष्ट समस्याओं या स्थितियों का विशेष अध्ययन या अन्वेषण कराना और बाधाओं का पता लगाना जिससे कि उनको दूर करने की कार्य योजनाओं की सिफारिश की जा सके।

(ज) संवर्धन और शिक्षा गांधी अनुसंधान करना जिससे कि महिलाओं का सभी क्षेत्रों में सम्यक् प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उपायों का सुझाव दिया जा सके और उनकी उन्नति में अड़चन डालने के लिए उत्तरदायी कारणों का पता लगाना जैसे कि आवास और बुनियादी सेवाओं की प्राप्ति में कमी, उबाऊपन और उपजीविकाजन्य स्वास्थ्य परिसंकटों को कम करने के लिए और महिलाओं की उत्पादकता की वृद्धि के लिए सहायक सेवाओं और प्रौद्योगिकी की अपर्याप्तता।

(झ) महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और उन पर सलाह देना।

(ञ) संघ और किसी राज्य के अधीन महिलाओं के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।

(ट) किसी जेल, सुधार गृह, महिलाओं की संस्था या अभिरक्षा के अन्य स्थान का, जहां महिलाओं को बंदी के रूप में या अन्यथा रखा जाता है, निरीक्षण करना या करवाना, और उपचारी कार्रवाई के लिए, यदि आवश्यक हो, संबंधित प्राधिकारियों से बातचीत करना।

(ठ) बहुसंख्यक महिलाओं को प्रभावित करने वाले प्रश्नों से संबंधित मुकदमों के लिए धन उपलब्ध कराना

(ड) महिलाओं से संबंधित किसी बात के, और विशिष्टतया उन विभिन्न कठिनाइयों के बारे में जिनके अधीन महिलाएं कार्य करती है. सरकार को समय-समय पर रिपोर्ट देना;

(ढ) कोई अन्य विषय जिसे केन्द्रीय सरकार उसे निर्दिष्ट करे।

(2) केन्द्रीय सरकार,

उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट सभी रिपोर्टों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्षरखवाएगी और उनके साथ संघ से संबंधित सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश अस्वीकृत की गई हैं तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।

(3) जहां कोई ऐसी रिपोर्ट या उसका कोई भाग किसी ऐसे विषय में संबंधित है जिसका किसी राज्य सरकार से संबंध है यहाँ आयोग ऐसी रिपोर्ट याउसके भाग की एक प्रति उस राज्य सरकार को भेजेगा जो उसे राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगी और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गयी या की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिशें अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।

(4) आयोग को उपधारा

(1) के खंड (क) या खंड (च) के उपखंड (i) में निर्दिष्ट किसी विषय का अन्वेषण करते समय और विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों के संबंध में ने सभी शक्तियां होंगी जो वाद का विचारण करने वाले सिविल न्यायालय की हैं, अर्थात् –

(क) भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षाकरना।

(ख) किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना ,

(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना।

(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि की अपेक्षा करना

(ङ) साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना; और

(च) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाए।

धारा 11. वित्त, लेखे और लेखापरीक्षा

राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के अध्याय 4 की धारा 11 के अनुसार (1)केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान केन्द्रीय सरकार, संसद द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किए गए सम्यक विनियोग के पश्चात, आयोग को अनुदानों के रूप में ऐसी धनराशि का संदाय करेगी जो केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाने के लिए ठीक समझे।

(2) आयोग इस अधिनियम के अधीन कृत्यों का पालन करने के लिए उतनी धनराशि खर्च कर सकेगा जितनी वह ठीक समझे और वह धनराशि उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदेय व्यय माना जाएगा।

धारा 12. लेखे और संपरीक्षा

(1) आयोग, समुचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और लेखाओं का वार्षिक विवरण ऐसे प्ररूप में तैयार करेगा जो केन्द्रीय सरकार भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करके विहित करे।

(2) आयोग के सेवाओं की संपरीक्षा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक ऐसे अंतरालों पर करेगा जो उसने द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाए और उस परीक्षा के संबंध में उपगत कोई व्यय आयोग द्वारा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा।

(3) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और इस अधिनियम के अधीन आयोग के सेवाओं की परीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति को उस संपरीक्षा के संबंध में वही अधिकार और विशेषाधिकार तथा प्राधिकार होंगे जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को सरकारी लेखाओं की परीक्षा के संबंध में साधारणतया होते हैं और उसे विशिष्टतया बहियाँ, लेखा संबंधी वाउचरऔरअन्य दस्तावेज और कागज-पत्र पेश किए जाने की मांग करने और आयोग के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।

(4) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथाप्रमाणित आयोग का लेखा और साथ ही उस पर संपरीक्षा रिपोर्ट आयोग द्वारा केन्द्रीय सरकार को प्रतिवर्ष भेजी जाएगी।

धारा 13वार्षिक रिपोर्ट

  • आयोग, प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट,
  • जिसमें पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान उसके क्रियाकलापों का पूर्ण विवरण होगा,
  • ऐगे प्रण में और ऐसे समय पर,
  • जो विजित किया जाए, तैयार करेगा और उसकी एक प्रति केंद्रीय सरकार को भेजेगा।

धारा 14वार्षिक रिपोर्ट और संपरीक्षा रिपोर्ट का संसद के समक्ष रखा जाना

केन्द्रीय सरकार, वार्षिक रिपोर्ट, रिपोर्ट की प्राप्ति के पश्चात यथाशक्य संसदके प्रत्येक सदन के समक्ष रखवायेगी जिसके साथ उसमें अतर्विष्ट सिफारिशों पर जहा तक उनका संबंध केन्द्रीय सरकार से है, की गयी कार्रवाई और यदि कोई ऐसी सिफारिश अरस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृति के कारण का ज्ञापन और संपरीक्षा रिपोर्ट होगी।

प्रकीर्ण

धारा 15 आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों और कर्मचारिवृन्द का लोक सेवक होना-

योग का अध्यक्ष, उसके सदस्य, अधिकारी और अन्य कर्मचारी भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझे जाएंगे।

धारा 16. केन्द्रीय सरकार आयोग से परामर्श करेगी

केन्द्रीय सरकार, महिलाओं को प्रभावित करने वालेसभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर आयोग से परामर्श करेगी।

धारा 17. नियम बनाने की शक्ति : राष्ट्रीय महिला आयोग

(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वित करने के लिए नियम राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना,

ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात :-

(क) धारा 4 की उपधारा (5) के अधीन अध्यक्षों और सदस्यों को और धारा की उपधारा (2) के अधीन अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को देय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें

(2) धारा 8 की उपधारा (3) के अधीन सहयोजित व्यक्तियों द्वारा समिति के अधिवेशनों में उपस्थित होने के लिये भत्ते

(ग) धारा 10 की उपधारा (4) के खंड (च) के अधीन अन्य विषय;

(घ) वह प्रारूप जिसमें लेखाओं का वार्षिक विवरण धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन रखा जाएगा:

(ङ) वह प्रसंग जिसमें और वह समय जब वार्षिक रिपोर्ट धारा 13 के अधीन तैयार की जाएगी.

(च) कोई अन्य विषय जिसे विहित किया जाना अपेक्षित है या किया जाए।

(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया : राष्ट्रीय महिला आयोग

  • प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के सम्मुख जब वह सदन सत्र में हो,कुल तीसदिन की अवधि के लिए रखा जाएगा।
  • यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी।
  • यदि उस मास के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए तत्पश्चात वह ऐसेपरिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा।
  • यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाए कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् यह निष्प्रभावी हो जाएगा।
  • किन्तु निगम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभावी होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

स्रोत:- राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990

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दिसम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of December

दिसम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of December

परीक्षोपयोगी दृष्टि से दिसम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of December एवं सप्ताह की आवश्यक जानकारी आदि

दिसंबर के महत्वपूर्ण दिवस

दिसंबर के महत्वपूर्ण दिवस

तारीख (Date) महत्वपूर्ण दिवस (Important Day)
1 दिसंबरसीमा सुरक्षा बल दिवस (Border Security Force Day), विश्व एड्स दिवस (World AIDS Day)
2 दिसंबरविश्व कम्प्यूटर साक्षरता दिवस (World Computer Literacy Day), राष्ट्रीय प्रदूषण निवारण दिवस (National Pollution Prevention Day), अंतरराष्ट्रीय दासता उन्मूलन दिवस (International Day for the Abolition of Slavery)
3 दिसंबरकृषि शिक्षा दिवस (Agricultural Education Day), पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती (Former President Dr. Rajendra Prasad's birth anniversary), अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग जन दिवस (International Day of People with Disability)
5 दिसंबरविश्व मृदा दिवस (World Soil Day)
6 दिसंबरनागरिक सुरक्षा दिवस (Civil Defense Day), डाॅ. अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस (Dr. Ambedkar's Mahaparinirvan Diwas)
7 दिसंबरसशस्त्र बलों का झण्डा दिवस (Indian Armed Force Flag Day), अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन दिवस (International Civil Aviation Day)
9 दिसंबरअंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस (International Anti-Corruption Day)
10 दिसंबरविश्व मानवाधिकार दिवस (World Human Rights Day), प्रसारण का अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस (International Children's Day of Broadcasting)
11 दिसंबरअंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस (International Mountain Day) , यूनीसेफ स्थापना दिवस (UNICEF Day)
12 दिसंबरराष्ट्रीय युवा दिवस, अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य कवरेज दिवस
14 दिसंबरराष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस (National/Indian Energy Conservation Day)
15 दिसंबरअंतरराष्ट्रीय चाय दिवस (International Tea Day)
16 दिसंबरविजय दिवस (Vijay Divas)
17 दिसंबरराइट ब्रदर्स दिवस, पेंशनर्स दिवस
18 दिसंबरअंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस (International Migrants Day), भारतीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (National Minority Rights Day)
19 दिसंबरगोवा, दमन व दीव मुक्ति दिवस (Goa, Daman and Diu Liberation Day)
20 दिसंबरअंतरराष्ट्रीय मानव एकता दिवस (International Human Solidarity Day)
22 दिसंबरराष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day)
23 दिसंबरराष्ट्रीय किसान दिवस (National Farmer’s Day or Kisan Diwas)
24 दिसंबरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस (National Consumer Day)
25 दिसंबरराष्ट्रीय सुशासन दिवस (National Good Governance Day), महामना मदन मोहन मालवीय का जन्म दिवस (Birthday of Mahamana Madan Mohan Malaviya), क्रिसमस दिन (Christmas Day)
28 दिसंबरकांग्रेस पार्टी स्थापना दिवस (Congress Party Foundation Day)
31 दिसंबरनववर्ष की पूर्वसंध्या (New Year's Eve)
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