Computer History Timeline (Part-01)

Computer History Timeline – कम्प्यूटर इतिहास टाईम लाइन (Part-01)

Computer History Timeline | अबेकस | एल्गोरिदम | कैलकुलेटर | नेपियर बोन्स | स्लाइड रूल | पास्‍कलीन | पंच कार्ड | चार्ल्स बैबेज डिफरेंशियल इंजन

परिचय

1822 में चार्ल्स बैबेज द्वारा बनाया गया पहला मैकेनिकल कंप्यूटर वास्तव में ऐसा नहीं था, जो आज का कंप्यूटर है। जैसे जैसे समय बीतता गया तकनीक और अधिक विकसित होती गई और उसका स्‍वरूप हमारे सामने है। आने वाले समय और अधिक विकसित होगा। कम्‍प्‍यूटर क्षेत्र में कब किसने क्‍या योगदान दिया आइए जानते हैं

30,000 ई.पू. ऐसा माना जाता है कि यूरोप में पैलियोलिथिक लोग हड्डियों, हाथी दांत और पत्थर पर निशान निशान बनाकर कोई रिकॉर्ड रखते थे।

3500 ई.पू. लेखन का पहला सबूत मिलता है।

Computer History Timeline
Computer History Timeline

3400 ई.पू. मिस्र के लोगों ने 10 की संख्‍या के लिए एक प्रतीक बनाया ताकि बड़ी बड़ी गणनाएं आसानी से हो सकें।

3000 ई.पू. मिस्र में सबसे पहले हाइरोग्लिफ़िक अंक का उपयोग किया जाता है।

अबेकस

2600 ई.पू. चीन ने अबेकस का आविष्‍कार किया।

Computer History

1000 ई.पू. एंटीकाइथेरा सिस्‍टम को बनाया गया।

300 ई.पू. यूक्लिड नामक गणितज्ञ ने यूनानियों की 13 पुस्‍तकों को प्रस्‍तुत किया जो गणितीय ज्ञान को संक्षेप मं प्रस्‍तुत करती हैं।

300 ई.पू. यूक्लिड ने यूक्लिडियन एल्गोरिथम बनाया, जिसे पहला एल्गोरिदम माना जाता है। उनके गणित और ज्यामिति आज भी पढ़ाए जाते हैं।

300 ई.पू. आज के अबेकस जैसा हाथ अबेकस बना।

260 ई.पू. माया गणित की आधार -20 प्रणाली विकसित करती है, जो शून्य का परिचय देती है।

1000 A.D. गार्बर्ट डी’रिलैक के नाम का एक चर्चमैन जो बाद में पोप सिल्वेस्टर II बनता  है, यूरोप में अबेकस और हिंदू-अरबी गणित के महत्‍व को समझाते हैं।

1440 जोहान्स गुटेनबर्ग ने अपने पहले प्रिंटिंग प्रेस गुटेनबर्ग प्रेस के विकास को पूरा किया।

1492 लियोनार्डो दा विंसी 13 अंकों के cog-wheeled adder वाले योजक का डायग्राम बनाया।

1500 में लियोनार्डी दा विंची ने एक यांत्रिक कैलकुलेटर का आविष्कार किया।

1605 में फ्रांस के बेकन ने एक संदेश लिखने वाले ए बी के संदेशों को सांकेतिक शब्दों में बदलने के लिए एक साइफर बेकेनियन सिफर का उपयोग किया।

1613 “कंप्यूटर” शब्द पहली बार 1613 में इस्तेमाल किया गया।

1617 जॉन नेपियर ने हाथी दांत से “नेपियर बोन्स” नामक एक प्रणाली शुरू की, जो अंकों का जोड, घटाव व गुणा कर सकता थी।

1621 में विलियम मस्ट्रेड ने सर्कुलर स्लाइड रूल का आविष्कार किया गया।

1623 में जर्मनी के विल्हेम स्किकार्ड ने पहली यांत्रिक गणना मशीन बनाई। यह मशीन नेपियर बोंस की तरह हड्डियों द्वारा बनाई गई।

1632 में कैम्ब्रिज के विलियम मस्टर्ड ने स्‍लाइड रूल जैसा एक उपकरण बनाने के लिए दो गंटर नियमों को संयोजित किया।

1642 में फ्रांस के ब्‍लेज पास्कल पास्‍कलीन नामक यंत्र बनाया जो गणनाएं कर सकता था।

1671 गॉटफ्रीड लीबनिज़ ने स्टेप रेकनर बनाया जो स्‍क्‍वेयर रूट को गुणा, भाग व मूल्‍यांकन करता था।

1679 में गॉटफ्रीड लीबनिज बाइनरी अंकगणित की खोज की। बाइनरी में प्रत्येक संख्या को केवल 0 और 1 द्वारा दर्शाया जा सकता है।

1725 को फ्रांस में बेसिल बाउचॉन ने एक लूम का आविष्कार किया जिसमें एक छिद्रित पेपर टेप रोल का उपयोग किया गया था, जिसे बाद में 1728 में उनके सहायक जीन-बैप्टिस्ट फाल्कन ने पंच कार्ड का उपयोग करने के लिए अपग्रेड किया। यह पूरी तरह से स्वचालित नहीं था।

1801 में फ्रांसिस जोसेफ-मैरी जैक्वार्ड ने पहली बार जैक्वार्ड लूम का प्रदर्शन किया।

1804 फ्रांसिस जोसेफ मैरी जैक्वार्ड ने पूरी तरह से स्‍वचालित लूम को पूरा किया जो पंच कार्ड द्वारा क्रमानुसार आदेश प्राप्‍त करता था।

1820 में चार्ल्स जेवियर थॉमस डी कॉलमार ने अरिथोमीटर नामक पहली व्यावसायिक रूप से सफल गणना मशीन बनाई।

यह न केवल जोड़,  बल्कि घटाव, गुणा और भाग भी कर सकता था।

1822 की शुरुआत में, चार्ल्स बैबेज ने डिफरेंशियल इंजन विकसित करना शुरू किया, जिसमें पहला मैकेनिकल प्रिंटर शामिल था।

1823 में बैरन जोन्स जैकब बर्ज़ेलियस ने सिलिकॉन निर्मित सीआई की खोज की, जो आज के आईसी (एकीकृत सर्किट) का मूल घटक है।

1832 में कोर्साकोव ने पहली बार जानकारी स्टोरज के लिए के लिए पंच कार्ड का उपयोग किया।

1836 को शेमूएल मोर्स और अल्फ्रेड वेल ने एक कोड विकसित करना शुरू किया जिसे मोर्स कोड कहा गया।

इसमें अंग्रेजी वर्णमाला और दस अंकों के अक्षरों का प्रतिनिधित्व करने के लिए विभिन्न संख्याओं का उपयोग किया।

1837 में चार्ल्स बैबेज ने पहली बार एनालिटिकल इंजन बनाया, जो कि कंप्यूटर को मेमोरी के रूप में पंच कार्ड और कंप्यूटर को प्रोग्राम करने का एक तरीका था।

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1845 इज़्रेल स्टाफ़ेल ने वारसॉ में औद्योगिक प्रदर्शनी में स्टाफ़ के कैलकुलेटर का प्रदर्शन किया।

1854 ऑगस्टस डेमोरोन और जॉर्ज बोले ने तार्किक कार्यों के एक सेट को व्‍यवहारिक रूप दिया।

1860 में 29 फरवरी को हरमन होलेरिथ का जन्म हुआ।

1868 में क्रिस्टोफर शोल्स ने एक टाइपराइटर के लिए QWERTY लेआउट कीबोर्ड का उपयोग किया और 14 जुलाई 1868 को इसका पेटेंट ले लिया।

1877 को संयुक्त राज्य अमेरिका के एमिल बर्लिनर ने माइक्रोफोन का आविष्कार किया।

1878 में कीबोर्ड रेमिंग्टन नंबर 2 टाइपराइटर कुंजी रखने वाला पहला कीबोर्ड 1878 में पेश किया गया था।

1884 में हरमन होलेरिथ ने द होलेरिथ इलेक्ट्रिक टेबुलेटिंग सिस्टम बनाया।

1889 में हरमन होलेरिथ ने सबसे पहले अपने डॉक्टरेट थीसिस में टेबुलेटिंग मशीन का वर्णन किया।

1890 में हरमन होलेरिथ ने मशीनों से अमेरिकी जनगणना के लिए पंच कार्डों द्वारा रिकॉर्ड करने और संग्रहीत करने के लिए एक प्रणाली विकसित की और एक कंपनी गठित की जिसे आज आईबीएम के नाम से जाना जाता है।

1893 में पहला अंडरवुड टाइपराइटर का आविष्कार किया गया।

1896 में हर्मन होलेरिथ ने टैबुलेटिंग मशीन कंपनी शुरू की।

कंपनी बाद में प्रसिद्ध कंप्यूटर कंपनी आईबीएम (इंटरनेशनल बिजनेस मशीन) बन गई।

1904 को एप्‍पल macOS का युग शुरू हुआ।

1904 में ही जॉन एंब्रोज फ्लेमिंग ने एडिसन के डायोड वैक्यूम ट्यूबों के साथ प्रयोग किया और पहला वाणिज्यिक डायोड वैक्यूम ट्यूब बनाया।

1907 में ली डी फ्रॉस्ट ने वैक्यूम ट्यूब ट्रायोड के लिए पेटेंट दायर किया।

बाद में इस पेटेंट को बाद में पहले इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर में इलेक्ट्रॉनिक स्विच के रूप में उपयोग किया है।

1907 आईबीएम ने 11 अक्टूबर 1907 को अपने पहले अमेरिकी पेटेंट के लिए दायर किया।

कम्प्यूटर इतिहास टाईम लाइन – Computer History Timeline (Part – 01)

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समास Samas

समास Samas

समास विग्रह | समास के प्रश्न | samas ke udaharan | परिभाषा paribhasha और उसके भेद bhed | प्रकार prakar

परिभाषा

समास शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है छोटा-रूप। अतः जब दो या दो से अधिक पद अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर जो छोटा रूप बनाते हैं, उसे समास, सामासिक पद या समस्त पद कहते हैं।

जैसे- रसोई के लिए घर शब्दों में से ‘के लिए’ विभक्ति का लोप करने पर नया पद बना रसोई घर, जो एक सामासिक पद है। किसी समस्त पद या सामासिक पद को उसके विभिन्न पदों एवं विभक्ति सहित पृथक करने की क्रिया को समास का विग्रह कहते हैं, जैसे-

विद्यालय – विद्या के लिए आलय

माता-पिता – माता और पिता

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Samas

समास Samas के भेद bhed | प्रकार prakar

समास मुख्य रूप से छह प्रकार के होते हैं परंतु पदों की प्रधानता के आधार पर समास चार प्रकार के माने गए हैं-

पदों की प्रधानता के आधार पर समास-

1 प्रथम पद की प्रधानता – अव्ययीभाव समास

2 उत्तर प्रद की प्रधानता – तत्पुरुष समास

3 दोनों पदों की प्रधानता – द्वंद्व समास

4 किसी भी पद की प्रधानता नहीं – बहुव्रीहि समास

समास Samas के मुख्य छः प्रकार

1. अव्ययीभाव समास

2. तत्पुरूष समास

3. द्वन्द्व समास

4. कर्मधारय समास

5. द्विगु समास

6. बहुव्रीहि समास

1. अव्ययीभाव समास Samas

अव्ययीभाव समास में प्रायः
(i) पहला पद प्रधान होता है।
(ii) पहला पद या संपूर्ण पद अव्यय होता है।

इसमें मुख्यतः निम्नलिखित अव्यय आते हैं- आ, उप, अति, यथा, यावत्, निर्, बा, बे, भर

जैसे –

आमरण = मरण तक

उपस्थिति = समीप उपस्थित

आबालवृद्ध = बाल से लेकर वृद्ध तक

अनुबंध = बंधन के साथ

अनुहरि = हरि के समीप

अनुशासन = शासन के साथ

अनुगंग = गंगा के समीप

नियंत्रण = पूर्णतः यंत्रण

भरपेट = पेट भर कर

निकम्मा = काम रहित

निपूता = पूत रहित

भरसक = सक भर

भरमार = पूरी मार

भरपाई = पूरी पाई

भरपूर = पूरा पूर

यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार।

यथाशीघ्र = जितना शीघ्र हो

यथाक्रम = क्रम के अनुसार

यथाविधि = विधि के अनुसार

यथावसर = अवसर के अनुसार

यथेच्छा = इच्छा के अनुसार

प्रतिदिन = प्रत्येक दिन/ दिन-दिन/ हर दिन

प्रत्येक = एक-एक / प्रति एक /हर एक

प्रत्यक्ष = अक्षि के आगे

बाकायदा = कायदे के साथ

बेधड़क = बिना धड़कन के

बेईमान = बिना ईमान के

(iii) यदि एक पद की पुनरावृत्ति हो और दोनों पद मिलकर अव्यय की तरह प्रयुक्त हो, वहाँ भी अव्ययीभाव समास होता है। यथा–

नगर-नगर = प्रत्येक नगर

गांव-गांव = प्रत्येक गांव

ढाणी-ढाणी = प्रत्येक ढाणी

मोहल्ला-मोहल्ला = प्रत्येक मोहल्ला

गली-गली = प्रत्येक गली

घर-घर = प्रत्येक घर

बच्चा-बच्चा = प्रत्येक बच्चा

पल-पल = प्रत्येक पल

वर्ष-वर्ष = प्रत्येक वर्ष

मिनट-मिनट = प्रत्येक मिनट

घंटा-घंटा = प्रत्येक घंटा

(iv) एक जैसे दो पदों के बीच में ‘म,ही,न’ में से कोई आए

भागमभाग = निरंतर भागना

खुल्लमखुल्ला = एकदम खुला

तमजूत = निरंतर जूते मारना

लूटमलूट = निरंतर लूटना

काम ही काम = केवल काम

नाम ही नाम = केवल नाम

रुपया ही रुपया = केवल रुपया

मैं ही मैं = केवल मैं

कभी न कभी = निश्चित कभी

कहीं न कहीं = निश्चित कहीं

किसी न किसी = निश्चित किसी

कोई न कोई = निश्चित कोई

कुछ न कुछ = निश्चित कुछ

(v) एक जैसे दो पद मिलकर नया पद बनाएं और वह अव्यय हो तो अव्ययीभाव समास होता है। यथा-

बातोंबात = बात ही बात में

हाथोंहाथ = हाथ ही हाथ में

दिनोंदिन = दिन ही दिन में

बीचोंबीच = बीच ही बीच में/ठीक बीच में

धड़ाधड़ = धड़-धड़ के साथ

खटाखट = खट-खट के साथ

एकाएक = एक के बाद एक

बारंबार = बार के बाद बार

सटासट = सट-सट के बाद

(vi) नाम पूर्व पद और उत्तर पद संज्ञा हो तो अव्ययीभाव समास होता है। यथा –
उत्तर पद में निम्नलिखित अव्यय आते हैं-

अर्थ, अनुसार, भर, उपरांत, पूर्वक

(क) अर्थ

सेवार्थ = सेवा के लिए

ज्ञानार्थ = ज्ञान के लिए

धर्मार्थ = धर्म के लिए

प्रयोजनार्थ = प्रयोजन के लिए

उपयोगार्थ = उपयोग के लिए

दर्शनार्थ = दर्शन के लिए

भोजनार्थ = भोजन के लिए

दानार्थ = दान के लिए

हितार्थ = हित के लिए

(ख) अनुसार

इच्छानुसार = इच्छा के अनुसार

आवश्यकतानुसार = आवश्यकता के अनुसार

योग्यतानुसार = योग्यता के अनुसार

कथनानुसार = कथन के अनुसार

नियमानुसार = नियम के अनुसार

तदनुसार = तत् के (उसके)अनुसार

धर्मानुसार = धर्म के अनुसार

(ग) भर

जीवनभर = संपूर्ण जीवन

सप्ताहभर = पूरा सप्ताह

उम्रभर = पूरी उम्र

वर्षभर = पूरा वर्ष

दिनभर = पूरा दिन

(घ) उपरांत

विवाहोपरांत = विवाह के उपरांत

मृत्यूपरांत = मृत्यु के उपरांत

जन्मोपरांत = जन्म के उपरांत

मरणोपरांत = मरने के उपरांत

तदुपरांत = तत् के (उसके) उपरांत

(च) पूर्वक

ध्यानपूर्वक = ध्यान के साथ

सुखपूर्वक = सुख के साथ

कुशलपूर्वक = कुशलता के साथ

नियमपूर्वक = नियम के साथ

सावधानीपूर्वक = सावधानी के साथ

विवेकपूर्वक = विवेक के साथ

श्रद्धापूर्वक = श्रद्धा के साथ

कृपापूर्वक = कृपा के साथ

(vii) संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभव समास Samas होते हैं। यथा –

अटूट = न टूट/टूटा

अनिच्छुक = न इच्छुक

नगण्य = न गण्य

2. तत्पुरुष समास Samas

तत्पुरुष समास Samas में दूसरा पद (उत्तर पद) प्रधान होता है अर्थात् विभक्ति का लिंग, वचन दूसरे पद के अनुसार होता है।

पं. कामता प्रसाद गुरु के अनुसार-तत्पुरुष समास के मुख्य दो भेद हैं-
(1) व्याधिकरण तत्पुरुष
(2) समानाधिकरण तत्पुरुष

(1) व्यधिकरण तत्पुरुष- जिस तत्पुरुष समास Samas में पूर्वपद तथा उत्तर पद को विभक्तियाँ या परसर्ग पृथक् पृथक् होते हैं वहाँ व्यधिकरण या तत्पुरुष समास Samas होता है। हिंदी में इन्हें कारकानुसार अभिहित किया जाता है, यथा-

(क) कर्म तत्पुरुष

(ख) करण तत्पुरुष

(ग) सम्प्रदान तत्पुरुष

(घ) अपादान तत्पुरुष

(च) संबंध तत्पुरुष

(छ) अधिकरण तत्पुरुष

कर्ता और संबोधन को छोड़कर शेष छह कारकों की विभक्तियों के अर्थ में तत्पुरुष समास होता है। तत्पुरुष समास में बहुधा दोनों पद संज्ञा या पहला पद संज्ञा और दूसरा विशेषण होता है।

पं.कामता प्रसाद गुरु द्वारा तत्पुरुष समास का वर्गीकरण इस प्रकार किया है-

कारक चिह्नों के आधार पर तत्पुरुष के भेद-

कारक चिह्नों के आधार पर तत्पुरुष के 6 भेद है जो निम्नलिखित हैं-

(क) कर्म तत्पुरुष (को)

नेत्र सुखद = नेत्रों को सुखद

वन-गमन = वन को गमन

जेब कतरा = जेब को कतरने वाला

प्राप्तोदक = उदक को प्राप्त

चिड़ीमार = चिड़ियों को मारने वाला

परलोक गमन = परलोक को गमन

कठफोड़ = काठ को फोड़ने वाला

मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला

विकासोन्मुख = विकास को उन्मुख

मरणातुर = मरण को आतुर

(ख) करण तत्पुरुष (से/के द्वारा)

ईश्वर-प्रदत्त = ईश्वर से प्रदत्त

तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित

दयार्द्र = दया से आर्द्र

रत्न जड़ित = रत्नों से जड़ित

हस्तलिखित = हस्त (हाथ) से लिखित

प्रेमातुर = प्रेम से आतुर

प्रेमांध = प्रेम से अंधा

मदांध = मद से अंधा

तुलसी विरचित = तुलसी द्वारा विरचित मनमौजी = मन से मौजी

मुंहमांगा = मुंह से मांगा

माघ प्रणीत = माघ के द्वारा प्रणीत

विरहा कुल = विरह से आकुल

जयपुर = जयसिंह के द्वारा बसाया पुर

(ग) सम्प्रदान तत्पुरुष (को, के लिए)

कृष्णार्पण = कृष्ण को अर्पण

शिवार्पण = शिव को अर्पण

हवन-सामग्री = हवन के लिए सामग्री विद्यालय = विद्या के लिए आलय

गुरु-दक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा

बलि-पशु = बलि के लिए पशु

अनाथालय = अनाथों के लिए आलय

कारावास = करा के लिए आवास

आवेदन पत्र = आवेदन के लिए पत्र

हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी

रंगमंच = रंग के लिए मंच

रणभूमि = रण के लिए भूमि

डाक गाड़ी = डाक के लिए गाड़ी

(घ) अपादान तत्पुरुष (‘से’ अलग होने के अर्थ में)

ऋण-मुक्त = ऋण से मुक्त

पदच्युत = पद से च्युत

मार्ग भ्रष्ट = मार्ग से भ्रष्ट

धर्म-विमुख = धर्म से विमुख

देश-निकाला = देश से निकाला

पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट

विद्याहीन = विद्या से हीन

जात बाहर = जात से बाहर

पद दलित = पद से दलित

रोगमुक्त = रोग से मुक्त

कर्तव्यविमुख = कर्तव्य से विमुख

पदच्युत = पद से च्युत

ऋणमुक्त = ऋण से मुक्त

जन्मांध = जन्म से अंधा

(च) सम्बन्ध तत्पुरुष (का, के, की)

मंत्री-परिषद = मंत्रियों की परिषद

प्रेम-सागर = प्रेम का सागर

राजमाता = राजा की माता

अमचूर = आम का चूर्ण

रामचरित = राम का चरित

लखपति = लाखों का पति

सूर्योदय = सूर्य का उदय

स्वर्ण किरण = स्वर्ण की किरण

मध्याह्न = अहन् का मध्य

मृगछौना = मृग का छौना

देहदान = देह का दान

गोदान = गो का दान

कन्यादान = कन्या का दान

राष्ट्रोत्थान = राष्ट्र का उत्थान

पशु-बलि = पशु की बलि

राजप्रासाद = राजा का प्रासाद

सिंह शावक = सिंह का शावक

कठपुतली = काठ की पुतली

पनघट = पानी का घाट

पनवाड़ी = पान की वाड़ी

(छ) अधिकरण तत्पुरुष (में, पे, पर)

वनवास = वन में वास

ध्यान-मग्न = ध्यान में मग्न

घृतान्न = घृत में पक्का अन्न

कवि पुंगव = कवियों में पुंगव (श्रेष्ठ)

ध्यान-मग्न = ध्यान में मग्न

नराधम = नरों में अधम

नर श्रेष्ठ = नरों में श्रेष्ठ

बटमार = बट में मारने वाला

हरफ़नमौला = हर (प्रत्येक) फ़न (कला) में मौला (निपुण)

पुरुषोत्तम = पुरुषों में उत्तम

आप बीती = आप पर बीती

जीव दया = जीवों पर दया

घुड़सवार = घोड़े पर सवार

अश्वारूढ़ = अश्व पर आरूढ़

अश्वारोहन = अश्व पर आरोहण

अश्मारोहण = अश्म पर आरोहण

आत्म केंद्रित = आत्म पर केंद्रित

आत्मविश्वास = आत्म पर विश्वास

आत्मनिर्भर = आत्म पर निर्भर

पदारूढ = पद पर आरूढ़

पलाधारित = पल पर आधारित

भाषाधिकार = भाषा पर अधिकार

व्यधिकरण तत्पुरुष समास के अन्य भेद पं. कामता प्रसाद गुरु के अनुसार व्यधिकरण तत्पुरुष समास के कारक के अलावा अन्य भेद निम्नांकित है
(क) अलुक् (ख) अपपद (ग) नज् ( घ) प्रादि

(क) अलुक् समास Samas

जिस व्यधिकरण समास में पहले पद की विभक्ति का लोप नहीं होता, उसे अलुक् तत्पुरुष समास कहते हैं। इस समास में विभक्ति चिह्न ज्यों के त्यों बने रहते हैं। विभक्ति का लोप न होना अलुक् है। यथा-

युधिष्ठिर – युद्ध में स्थिर रहने वाला। इस उदाहरण में- ‘युद्ध’ की जगह ‘युधि’ हो गया है अर्थात् ‘में’ चिह्न मिल गया है। इसी तरह तीर्थंकर – तीर्थों को करने वाला। इसमें पहला पद ‘तीर्थम्’ है अर्थात् संस्कृत के कर्म कारक की विभक्ति ‘म्’ उपस्थित है, अत: ‘तीर्थंकर’ अलुक् तत्पुरुष है।

अलुक् तत्पुरुष के उदाहरण इस प्रकार हैं

समस्त पद समास

अंतेवासी – अंतः में (समीप) वास करने वाला

खेचर – ख (आकाश) में विचरण करने वाला

आत्मनेपद – आत्मन् के लिए प्रयुक्त पद

धनंजय – धनं (कुबेर) को जय करने वाला

धुरंधर – धुरी को धारण करने वाला

परस्मैपद – पर के लिए प्रयुक्त पद

परमेष्ठी – परम (आकाश) में स्थिर रहने वाला

भयंकर – भय को करने वाला

प्रलयंकर – प्रलय को करने वाला

मनसिज – मनसि (मन) में जन्म लेने वाला (कामदेव)

मृत्युंजय – मृत्यु को जय करने वाला

वसुंधरा – वसुओं को धारण करने वाली

सरसिज – सरसि (तालाब) में जन्म लेने वला (कमल)

वनेचर – वन में विचरण करने वाला

वाचस्पति – वाचः (वाणी) का पति

विश्वम्भर – विश्वं (विश्व को) भरने वाला

शुभंकर – शुभ को करने वाला

बृहस्पति – बृहत् है जो पति

(ख) उपपद तत्पुरुष समास Samas

जब तत्पुरुष समास का दूसरा पद ऐसा कृदंत होता है जिसका स्वतंत्र उपयोग नहीं हो सकता, तब उस समास को उपपद समास कहते हैं।

जैसे- ग्रंथकार, तटस्थ, जलद, उरग, कृतघ्न, कृतज्ञ, नृप।

जलधर, पापहर, जलचर प्राणी उपपद समास नहीं हैं, क्योकि इनमें जो धर, हर और चर कृदंत हैं उनका प्रयोग अन्यत्र स्वतंत्रतापूर्वक होता है।

उदाहरण-

अंबुद – अंबु जल को देने वाला

अंबुधि – अंबु को धारण करने वाला

कृतज्ञ – कृत को मानने वाला

कृतघ्न – कृत को ना मानने वाला

कष्टप्रद – कष्ट को प्रदान करने वाला

कठफोड़वा – काठ को फोड़ने वाला

कुंभकार – कुंभ को करने वाला है

खग – ख (आकाश) में गमन करने वाला

चर्मकार – चर्म का कार्य करने वाला

चित्रकार – चित्र को बनाने वाला

जलद – जल को देने वाला

जलज – जल में जन्म लेने वाला

जलधि – जल को धारण करने वाला

(ग) नञ् तत्पुरूष समास Samas

अभाव या निषेध के अर्थ में शब्दों के पूर्व ‘अ’ या ‘अन्’ लगाने से जो तत्पुरुष बनता है उसे नञ् तत्पुरुष कहते हैं।

अनिच्छुक – न इच्छुक

अनाश्रित – बिना आश्रय के

अनुपयुक्त – उपयुक्तता से रहित

अनशन – भोजन से रहित

अनश्वर – न नश्वर

अनदेखा – न देखा हुआ

अनभिज्ञ – न अभिज्ञ

अनादि – न आदि

अनचाहा – न चाहा हुआ

अनजान – न जाना हुआ

असत्य – न सत्य

अनबन – न बनना

अमर – न मरने वाला

अजन्मा – न जन्म लेने वाला

अकारण – न कारण

अनिष्ट – न इष्ट

अडिग – न डिगने वाला

अजर – न बूढ़ा होने वाला

अटल – न टलने वाला

असंभव – न संभव

अकाल – न काल (समय ठीक नहीं होना)

अचेतन – न चेतन

अचल – न चल

अज्ञान – न ज्ञान

असभ्य – न सभ्य

अप्रिय – न प्रिय

अमोघ – न मोघ

अनंत – न अंत

अतृप्त – न तृप्त

अगोचर – न गोचर

अविकृत -न विकृत

अमंगल – न मंगल

नगण्य – न गण्य

नापसंद – न पसंद

नालायक – न लायक

नाजायज – न जायज

विशेष- नञ् तत्पुरूष समास के उदाहरण अव्ययीभाव समास में भी मिल जाते हैं, परंतु यदि प्रश्न के चार विकल्प में नञ् तत्पुरुष समास नहीं दिया हुआ है तो ही अव्ययीभाव समास का विकल्प सही होगा।

(घ) प्रादि तत्पुरूष समास

पंडित कामता प्रसाद गुरु के अनुसार “जिस तत्पुरुष समास के प्रथम स्थान में उपसर्ग आता है उसे संस्कृत व्याकरण में प्रादि समास कहते हैं।”
जिस समस्त पद में प्र, परा, अप आदि उपसर्ग पूर्व पद में हो उसे प्रादि तत्पुरुष कहते हैं।

अतिवृष्टि – अधिक वृष्टि

उपदेश – उप (छोटा) देश

प्रगति – प्रथम गति

प्रतिध्वनी – ध्वनि के बाद ध्वनि

प्रतिबिंब – बिम्ब के समान बिम्ब

प्रतिमूर्ति – किसी आकृति की नकल

प्रत्युपकार – उपकार से बदले किया गया उपकार

प्रपर्ण – जिसके सभी पत्ते झड़ चुके हो

3. समानाधिकरण तत्पुरुष अथवा कर्मधारय समास Samas

पं.कामता प्रसाद गुरु के अनुसार- “जिस तत्पुरुष समास के विग्रह में दोनों पदों के साथ एक ही (कर्ता कारक की) विभक्ति आती है. उसे समानाधिकरण तत्पुरुष अथवा कर्मधारय समास कहते है।”

पं.कामता प्रसाद गुरु के अनुसार- “समानाधिकरण तत्पुरुष के विग्रह में उसके दोनों शब्दों में एक ही विभक्ति लगती है। समानाधिकरण तत्पुरुष का प्रचलित नाम कर्मधारय है और यह कोई अलग समास नहीं है, किन्तु तत्पुरुष का केवल एक उपभेद है।”

जिस समस्त पद का उत्तर पद प्रधान हो तथा दोनों पदों में विशेषण विशेष्य अथवा उपमान उपमेय का संबंध हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

इस समास की निम्नांकित विशेषताएँ स्पष्ट होती है।

(1) समस्त पद का उत्तर पद प्रधान होता है।

(2) पूर्व पद मुख्यत: विशेषण होता है और जिसके दोनों पद विग्रह करके कर्ता कारक में ही रखे जाते हैं।

(3) कभी कर्मधारय के दोनों ही पद संज्ञा या दोनों ही पद विशेषण होते है। कभी-कभी पूर्वपद संज्ञा और उत्तर पद विशेषण होता है।

(4) इस समास में उपमान-उपमेय, उपमेय-उपमान, विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण-विशेषण, का प्रयोग होता है। दोनों ही पद प्रायः एक ही विभक्ति (कर्ता कारक) में प्रयुक्त होते हैं।

पंडित कामता प्रसाद गुरु के अनुसार कर्मधारय समास के मुख्य दो भेद माने गए हैं –

(1) विशेषता वाचक

(2) उपमान वाचक

(1) विशेषता वाचक- पंडित कामता प्रसाद गुरु के अनुसार इसके निम्नलिखित सात भेद होते हैं-

(क) विशेषण पूर्व पद

(ख) विशेषणोत्तर पद

(ग) विशेषणोभय पद

(घ) विषय पूर्वपद/विशेष्य पूर्व पद

(ङ) अव्यय पूर्व पद

(च) संख्या पूर्व पद

(छ) मध्यपद लोपी

(क) विशेषण-पूर्वपद- जिसमें प्रथम पद विशेषण होता है-

महाजन = महान है जो जन

पीतांबर = पीत है जो अंबर

शुभागमन = शुभ है जो आगमन

नीलकमल = नील है जो कमल

सद्गुण = सत् है जो गुण

पूर्णेन्दु = पूर्ण है जो इंदू

परमानंद = परम है जो आनंद

नीलगाय = नील है जो गाय

काली मिर्च = काली है जो मिर्च

मझधार = मझ (बीच में) है जो धारा

तलघर = तल में है जो घर

खड़ी-बोली = खड़ी है जो बोली

सुंदरलाल = सुंदर है जो लाल

पुच्छल तारा = पूछ वाला है जो तारा

भलामानस = भला है जो मनुष्य

काला पानी = काला है जो पानी

छुट भैया = छोटा है जो भैया

(ख) विशेषणोत्तर पद- जिसका दूसरा पद विशेषण होता है-

जन्मांतर (अंतर=अन्य)=जन्म है जो अंतर

पुरुषोत्तम = पुरुषों में है जो उत्तम

नराधम = नरों में है जो अधम

मुनिवर = मुनियों में है जो वर (श्रेष्ठ)

(पिछले तीन शब्दों का विग्रह दूसरे प्रकार से करने से ये तत्पुरुष हो जाते हैं; जैसे, पुरुषों में उत्तम = पुरुषोत्तम।)

प्रभुदयाल = प्रभु है जो दयाल

रामदीन = राम है जो दीन

रामकृपाल = राम है जो कृपाल

रामदयाल = राम है जो दयाल

शिवदयाल = शिव है जो दयाल

(ग) विशेषणोभय पद- जिसमें दोनों पद विशेषण होते हैं-

नीलपीत = जो नील है जो पीत है

शीतोष्ण = जो शीत है जो उष्ण है

श्यामसुंदर = जो श्याम है जो सुंदर है

शुद्धाशुद्ध = जो शुद्ध है जो अशुद्ध है

मृदु-मंद = जो मृदु है जो मंद है

लाल-पीला = जो लाल है जो पीला है

भला-बुरा = जो भला है जो बुरा है

ऊँच-नीच = जो नील है जो पीत है

खट-मिट्ठा = जो खट्टा है जो मीठा है

बडा-छोटा = जो बड़ा है जो छोटा है

मोटा ताजा = जो मोटा है जो ताजा है

सख्त-सुस्त = जो सख्त है जो सुस्त है

नेक-बद = जो नेक है जो बद है

कम-बेस = जो कम है जो बेस है

(घ) विषय पूर्वपद/विशेष्य पूर्व पद-

धर्मबुद्धि = धर्म है यह बुद्धि (धर्म- विषयक बुद्धि )

विंध्य-पर्वत = विंध्य नामक पर्वत

(ङ) अव्यय पूर्वपद- जिस समस्त पद में पूर्व पद अव्यय हो अव्यय पूर्वपद कर्मधारय समास कहलाता है-

दुर्वचन = दुर् (बुरे)है जो वचन

निराशा = निर् (दूर) है जो आशा

सहयोग = सह है जो योग

अधमरा = आधा है जो मरा हुआ

दुकाल = दु (बुरा) है जो काल

(च) संख्या पूर्व पद-जिस कर्मधारय समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और जिससे समुदाय (समाहार) का बोध होता है उसे संख्या पूर्व पद कर्मधारय कहते हैं। को संस्कृत व्याकरण में द्विगु कहते हैं।

(द्विगु समास का विस्तृत वर्णन आगे किया गया है)

(छ) मध्यमपदलोपी

जिस समास में पहले पद फा संबंध दूसरे पद से बताने वाला शब्द अध्याहृत (लुप्त) रहता है उस समास को मध्यमपदलोपी अथवा लुप्त-पद समास कहते हैं-

घृतान्न = घृत मिश्रित अन्न

पर्णशाला = पर्णनिर्मित शाला

छायातरु = छाया-प्रधान तरु

देव-ब्राह्मण = देवीपूजक ब्राह्मण

दही-बडा = दही में डूबा हुआ बडा

गुड़म्बा = गुड़ में उबाला आम

गुड़धानी = गुड़ मिली हुई धानी

तिलचाँवली = तिल मिश्रित चावल

गोबरगणेश = गोबर से निर्मित गणेश

जेबघड़ी = जेब में रखी जाने वाली घड़ी

पनकपड़ा = पानी छानने का कपड़ा

गीदड़भभकी = गीदड़ जैसी भभकी

(2) उपमान वाचक कर्मधारय

पंडित कामताप्रसाद गुरु के अनुसार उपमान वाचक कर्मधारय के चार भेद हैं-

(क) उपमान-पूर्वपद

जिस वस्तु की उपमा देते हैं उसका वाचक शब्द जिस समास के आरम्भ में आता है उसे उपमान-पूर्व पद समास कहते हैं-

चंद्रमुख = चंद्र सरीखा मुख/चंद्र के समान है जो मुख

घनश्याम = घन सरीखा श्याम/घन के समान है जो श्याम

वज्रदेह = वज्र सरीखी देह/वज्र के समान है जो देह

प्राण-प्रिय = प्राण सरीखा प्रिय/प्राण के समान है जो प्रिय

सिंधु-हृदय = सिंधु सरीखा हृदय/सिंधु के समान है जो हृदय

राजीवलोचन = राजीव सरीखे लोचन/राजीव के समान है जो लोचन

(ख) उपमानोत्तर पद

जिस समस्त पद में उपमान उत्तर पद में तथा उपमेय पूर्व पद में होता है उसे उपमानोत्तर पद समास कहते हैं। समस्त पद का विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच में ‘रूपी’ शब्द का प्रयोग किया जाता है बहुधा ऐसे पद रूपक अलंकार के उदाहरण होते हैं-

चरण-कमल = कमल रूपी चरण

राजर्षि = ऋषि रूपी राजा

पाणिपल्लव = पल्लव रूपी पाणि

क्रोधाग्नि = क्रोध रूपी अग्नि

विरह सागर = विरह रूपी सागर

भवसागर = भव रूपी सागर

पुरुष सिंह = सिंह रूपी पुरुष

कीर्ति लता = लता रूपी कीर्ति

देह लता = देह रूपी लता

मुखारविंद = अरविंद रूपी मुख

वचनामृत = अमृत रूपी वचन

(ग) अवधारणा पूर्वपद

जिस समास में पूर्वपद के अर्थ पर उत्तर पद का अर्थ अवलंवित होता है उसे अवधारणा पूर्वपद कर्मधारय कहते हैं।

जैसे- गुरुदेव = गुरु ही देव अथवा गुरु-रूपी देव

कर्म-बंध = कर्म ही बंधन/कर्म रूपी बंधन

पुरुष-रत्न = पुरुष ही रत्न/पुरुष रूपी रत्न

धर्म-सेतु = धर्म ही सेतु/धर्म रूपी सेतु

बुद्धि-बल = बुद्धि ही बल/बुद्धि रूपी बल

स्त्री-धन = स्त्री ही धन/स्त्री रूपी धन

(घ) अवधारणोत्तरपद

जिस समास में दूसरे पद के अर्थ पर पहले पद का अर्थ अवलंबित रहता है उसे अवधारणोत्तर पद कहते हैं।

जैसे- साधु-समाज-प्रयाग ( साधु-समाज-रूपी प्रयाग ) इस उदाहरण में दूसरे शब्द ‘प्रयाग के अर्थ पर प्रथम शब्द साधु-समाज का अर्थ अवलंबित है।

इन सबके अतिरिक्त कर्म-धारय समास में वे रंग-वाचक विशेषण भी आते है जिनके साथ अधिकता के अर्थ में उनका समानार्थी कोई विशेषण या संज्ञा जोड़ी जाती है। जैसे-

लाल-सुर्ख = लाल है जो सुर्ख

काला-भुजंग = काला है जो भुजंग

फक-उजला = फ़क है जो उजला

पीत-शाटिका = पीत है जो शाटिका

गोरा-गट = गोरा है जो गट (अत्यंत)

काला-कट = काला है जो कट (अत्यंत)

4. द्विगु समास Samas

पंडित कामताप्रसाद गुरु ने इस समास को संख्या पूर्व पद समास कहा है

पंडित कामताप्रसाद गुरु के अनुसार “जिस कर्मधारय समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और जिससे समुदाय (समाहार) का बोध होता है उसे संख्या पूर्व पद कर्मधारय कहते हैं। इसी समास को संस्कृत व्याकरण में द्विगु कहते हैं।”

(कभी-कभी द्वितीय पद भी संख्यावाची होने पर द्विगु समास माना जाता है)

त्रिभुवन = तीन भुवनों का समाहार

त्रैलोक्य = तीनो लोकों का समाहार

चतुष्पदी = चार पदों का समाहार

पंचवटी = पाँच वटों का समाहार

त्रिकाल = तीन कालों का समाहार

अष्टाध्यायी = आठ अध्यायों का समाहार

पंसारी = पाँच सेरों का समाहार

दोपहर= दो पहरों का समाहार

चौमासा = चार मासों का समाहार

सतसई = सात सौ सइयों (पदों) का समाहार

चौराहा = चार राहों का समाहार

अठवाड़ा = आठ वारों का समाहार

छदाम = छह दामों का समाहार

चौघड़िया = चार घड़ियों का समाहार

दुपट्टा = दो पट्टों (वस्त्रों) का समाहार

दुअन्नी = दो आनों (भारतीय मुद्रा का एक प्राचीन रूप) का समाहार

संपादकद्वय – दो संपादकों का समाहार

लेखकद्वय – दो लेखकों का समाहार

संकलनत्रेय – तीन संकलनों का समाहार (एकांकी के संदर्भ में)

(विशेष अर्थ में प्रयुक्त संख्यावाची शब्द में बहुव्रीहि समास माना जाता है।)

5. द्वन्द्व समास Samas

जिस समस्त पद में उभय पद (दोनों पद) प्रधान होते हैं उसे द्वंद्व समास कहते हैं।

पंडित कामता प्रसाद गुरु के अनुसार- “जिस समास मे सब पद अथवा उनका समाहार प्रधान रहता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं।” द्वंद्व समास तीन प्रकार का होता है-

1 इतरेतर द्वंद्व
2 समाहार द्वंद्व
3 वैकल्पिक द्वन्द्व

(1) इतरेतर-द्वंद्व

जिस समास के सभी पद “और” समुच्चय-बोधक से जुड़े हुए हो, पर इस समुच्चयबोधक का लोप हो, उसे इतरेतर द्वंद्व कहते हैं।

तरेतर द्वन्द्व में ऐसे संख्यावाची शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है जिनके दोनों ही पद संख्या का बोध कराते हैं। जैसे-

राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण

ऋषि-मुनि = ऋषि और मुनि

कंद-मूल-फल = कंद और मूल और फल

गाय-बैल = गाय और बैल

भाई-बहिन = भाई और बहन

बेटा-बेटी = बेटा और बेटी

घटी-बढ़ी = घटी और बड़ी

नाक-कान = नाक और कान

सुख-दु:ख = सुख और दु:ख

माँ-बाप = मां और बाप

चिट्ठी-पाती = चिट्ठी और पाती

तेतालीस = तीन और चालीस

पच्चीस = पाँच और बीस

पचपन = पाँच और पचास

(अ) इस समास में हिंदी की समस्त द्रव्यवाचक संज्ञाएँ एकवचन में प्रयुक्त होती हैं। यदि दोनों पद मिलकर प्राय: एक ही वस्तु सूचित करते है, तो भी एकवचन में आते हैं। जैसे-

दाल-रोटी = दाल और रोटी

इकतीस = एक और तीस

दुःख-सुख = दुख और सुख

घी-गुड़ = घी और गुड़

खान-पान = खान और पान

दाल-भात = दाल और भात

तन-मन-धन = तन और मन और धन

पेड़-पौधे = पेड़ और पौधे

फल-फूल = फल और फूल

बत्तीस = दो और तीस

बाप-दादा = बाप और दादा

बेटा-बेटी = बेटा और बेटी

बारह = दो और दस

बाईस = दो और बीस

भाई-बहन = भाई और बहन

भीम अर्जुन = भीम और अर्जुन

माँ-बाप = मां और बाप

यश-अपयश = यश और अपयश

राजा-रंक = राजा और रंक

राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण

राम-कृष्ण = राम और कृष्ण

राम-बलराम = राम और बलराम

(शेष द्वन्द्व-समास बहुधा बहुवचन में आते हैं)

(आ) एक ही लिंग के शब्द से बने समास का लिंग मूल लिंग ही रहता है, परंतु भिन्न- भिन्न लिंगों के शब्दों में बहुधा पुल्लिंग होता है; और कभी-कभी अंतिम और कभी-कभी प्रथम शब्द का भी लिंग आता है। जैसे-

गाय-बैल (पु.)

नाक-कान (पु.)

घी-शक्कर (पु.)

दूध-रोटी ( स्त्री.)

चिट्ठी-जाती ( स्त्री.)

भाई- बहन (पु.)

माँ-बाप (पु.)

(2) समाहार-द्वंद्व

जिस द्वंद्व समास Samas से उसके पदों के अर्थ के अतिरिक्त उसी प्रकार का और भी अर्थ सूचित हो उसे समाहार-द्वंद्व कहते हैं। जैसे- आहार-निद्रा-भय = केवल आहार, निद्रा और भय ही नही, किंतु प्राणियों के सब धर्म

सेठ-साहूकार = सेठ और साहूकारों के सिवा और और भी दूसरे धनी लोग

इस समास का विग्रह करते समय ‘आदि’ (बहुधा सजीव के साथ), ‘इत्यादि’ (बहुधा निर्जीव के साथ) शब्दों का प्रयोग किया जाता है-

भूल-चूक = भूल चूक इत्यादि

हाथ-पाँव = हाथ पांव इत्यादि

दाल-रोटी = दाल रोटी इत्यादि

रुपया-पैसा = रुपया पैसा इत्यादि

देव-पितर = देव पितर आदि

हिंदी में समाहार द्वद्व की संख्या बहुत है और उसके नीचे लिखे भेद हो सकते हैं

(क) प्रायः एक ही अर्थ के पदों के मेल से बने हुए शब्द

कपड़े-लत्ते = कपड़े लत्ते इत्यादि

बासन-बर्तन = बासन बर्तन इत्यादि

मार-पीट = मारपीट इत्यादि

लूट-मार = लूटमार इत्यादि

चाल-चलन = चाल चलन इत्यादि

घास-फूस = घास फूस इत्यादि

दिया-बत्ती = दीया बत्ती इत्यादि

चमक-दमक = चमक दमक इत्यादि

हृष्ट-पुष्ट = हष्ट पुष्ट इत्यादि

कंकर-पत्थर = कंकर पत्थर इत्यादि

बोल-चाल = बोलचाल इत्यादि

दान-धर्म = दान धर्म इत्यादि

साग-पात = साग पात इत्यादि

भला-चंगा = भला चंगा इत्यादि

कूड़ा-कचरा = कूड़ा कचरा इत्यादि

भूत-प्रेत = भूत प्रेत इत्यादि

बाल-बच्चा = बाल बच्चा इत्यादि

मेल-मिलाप = मेल मिलाप इत्यादि

मंत्र-जंत्र = मंत्र तंत्र इत्यादि

मोटा-ताजा = मोटा ताजा इत्यादि

कील-कांटा = कील कांटा इत्यादि

काम-काज = कामकाज इत्यादि

जीव-जन्तु = जीव जंतु इत्यादि

इस प्रकार के सामासिक शब्दों में कभी-कभी एक शब्द हिन्दी और दूसरा उर्दू रहता है; जैसे-

धन-दौलत = धन इत्यादि/धन-दौलत इत्यादि

जी-जान = जी इत्यादि/जी-जान इत्यादि

मोटा-ताजा = मोटा इत्यादि/मोटा-ताजा इत्यादि

चीज वस्तु = चीज इत्यादि/चीज वस्तु इत्यादि

तन-बदन = तन इत्यादि/तन-बदन इत्यादि

कागज-पत्र = कागज इत्यादि/कागज-पत्र इत्यादि

रीति-रसम = रीति इत्यादि/रीति-रसम इत्यादि

बैरी-दुश्मन = बैरी इत्यादि/बैरी-दुश्मन इत्यादि

भाई -बिरादर = भाई इत्यादि/भाई-बिरादर इत्यादि

(ख ) मिलते-जुलते अर्थ के पदों के मेल से बने हुए शब्द

अन्न-जल = अन्न इत्यादि/अन्न-जल इत्यादि

पान-फूल = पान इत्यादि/ पान-फूल इत्यादि

आचार-विचार = आचार इत्यादि/आचार-विचार इत्यादि

गोला-बारूद = गोला इत्यादि/गोला-बारूद इत्यादि

खाना-पीना = खाना इत्यादि खाना-पीना इत्यादि

मोल-तोल = मोल इत्यादि मोल-तोल इत्यादि

जंगल-झाड़ी = जंगल इत्यादि जंगल-झाड़ी इत्यादि

जैसा-तैसा = जैसा-तैसा इत्यादि

कुरता-टोपी = कुरता इत्यादि/ कुरता-टोपी इत्यादि

घर-द्वार = घर इत्यादि/ घर-द्वार इत्यादि

नाच-रंग = नाच इत्यादि/ नाच-रंग इत्यादि

पान-तमाखु = पान इत्यादि/ पान-तमाखु इत्यादि

दिन-दोपहर = दिन इत्यादि/ दिन-दोपहर इत्यादि

नोन-तेल = नोन इत्यादि/ नोन-तेल इत्यादि

सांप-बिच्छू = सांप इत्यादि/ सांप-बिच्छू इत्यादि

(ग ) परस्पर विरुद्ध अर्थवाले पदों का मेल

आगा-पीछा = आगे इत्यादि/ आगा-पीछा इत्यादि

लेन-देन = लेन-देन इत्यादि

चढ़ा-उतरी = चढ़ा-उतरी इत्यादि

कहा-सुनी = कहा-सुनी इत्यादि

विशेष- इस प्रकार के कोई-कोई विशेषणोभयपद भी पाये जाते हैं । जब इनका प्रयोग संज्ञा के समान होता है तब ये द्वद्व होते हैं, और जब ये विशेषण के समान आते हैं तब कर्मधारय होते हैं।

लँगड़ा-लूला = लँगड़ा इत्यादि/लँगड़ा-लूला इत्यादि (कर्मधारय)
लँगड़ा-लूला = लँगड़ा और लूला (द्वंद्व)

भूखा-प्यासा = भूखा इत्यादि/भूखा-प्यासा इत्यादि (कर्मधारय)
भूखा-प्यासा = भूखा और प्यासा (द्वंद्व)

जैसा-तैसा = जैसा इत्यादि/ जैसा-तैसा इत्यादि (कर्मधारय)
जैसा-तैसा = जैसा और तैसा (द्वंद्व)

नंगा-उघारा = नंगा इत्यादि/ नंगा-उघारा इत्यादि (कर्मधारय)
नंगा-उघारा = नंगा और उघारा (द्वंद्व)

ऊँचा-पूरा = ऊँचा इत्यादि/ ऊँचा-पूरा इत्यादि (कर्मधारय)
ऊँचा-पूरा = ऊँचा और पूरा (द्वंद्व)

भरा-पूरा = भरा इत्यादि/ भरा-पूरा इत्यादि (कर्मधारय)
भरा-पूरा = भरा और पूरा (द्वंद्व)

(घ) ऐसे समास जिनमें एक शब्द सार्थक और दूसरा शब्द अर्थहीन, अप्रचलित अथवा पहले का समानुप्रास हो। जैसे-

आमने-सामने = सामने इत्यादि

आस-पास = पास इत्यादि

अड़ोस-पड़ोस = पड़ोस इत्यादि

बातचीत = बातचीत इत्यादि

देख-भाल = देखना इत्यादि

दौड़-धूप = दौड़ इत्यादि

भीड़-भाड = भीड़ इत्यादि

अदला-बदली = बदली इत्यादि

चाल-ढाल = चाल इत्यादि

काट-कूट = काटना इत्यादि

विशेष- (i) अनुप्रास के लिए जो पद लाया जाता है उसके आदि में दूसरे (मुख्य) पद का स्वर रखकर उस (मुख्य) पद के शेष भाग को पुनरुक्त कर देते हैं। जैसे-

ढेरे-एरे

घोड़ा-सोड़ा

कपड़े-अपड़े

उलटा सुलटा

गवार-सँवार

मिठाई-सिठाई

पान-वान

खत-वत

कागज-वागज

(ii) कभी-कभी पूरा पद पुनरुक्त होता है और कभी प्रथम पद के अंत में ‘आ’ और दूसरे पद के अंत में ‘ई’ कर देते हैं।

काम-काम

भागा-भाग

देखा देखी

तड़तड़ी

देखा-भाली

(3) वैकल्पिक द्वंद्व

जब दो पद “या”, “अथवा” आदि विकल्पसूचक समुच्चयबोधक के द्वारा मिले हों और उस समुच्चय- बोधक का लोप हो जाय, तब उन पदों के समास को वैकल्पिक द्वंद्व कहते हैं। इस समास मे बहुधा परस्पर-विरोधी पदों का मेल होता है। जैसे-

जात-कुजात = जात या कुजात

पाप-पुण्य = पाप या पुण्य

धर्माधर्म = धर्म या अधर्म

ऊँचा-नीचा = ऊँचा या नीचा

थोडा-बहुत = थोडा या बहुत

भला-बुरा = भला या बुरा

विशेष- पंडित कामताप्रसाद गुरु के अनुसार दो-तीन, नौ-दस, बीस-पच्चीस, आदि अनिश्चित गणनावाचक सामासिक विशेषण कभी-कभी संज्ञा के समान प्रयुक्त होते हैं। उस समय उन्हें वैकल्पिक द्वंद्व कहना उचित है।

मैं दो-चार को कुछ नहीं समझता।

आठ-दस = आठ या दस

तीस-पैंतीस = तीस या पैंतीस

साठ-सत्तर = साठ या सत्तर

पाँच-सात = पाँच या सात

6. बहुब्रीहि समास Samas

जिस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता और जो अपने पदों से भिन्न किसी संज्ञा का विशेषण होता है उसे बहुब्रीहि समास Samas कहते हैं।

जैसे- चंद्रमौलि = चद्र है सिर पर जिसके अर्थात शिव

शशिशेखर = शशि (चंद्रमा) है शेखर पर जिसके अर्थात शिव

मन्मथ = मन को मथने वाला अर्थात कामदेव

आजानुबाहु = जिसकी बाहु जानुओं (घुटनों) तक है वह अर्थात राम

कनफटा = कान हैं फटे जिसके – एक नाथ सम्प्रदाय

कपोतग्रीव = कबूतर की तरह ग्रीवा है जिसकी वह

कलानाथ = कलाओं का है नाथ जो अर्थात् चन्द्रमा

चालू पुर्जा = चालू है पुर्जा जो अर्थात चालाक व्यक्ति

चारपाई = चार है पैर पाए जिसके अर्थात पलंग

चक्षुश्रवा = चक्षु (आँख) ही है श्रवा (कान) अर्थात साँप

चतुर्मास = चार मासों का समूह विशेष अर्थात् जैनियों का विशेष महीना

चहुमुखी = चार है मुख जिसके अर्थात् समग्र/संपूर्ण विकास

चौपाई = चार है पैर (पाए) जिसमें अर्थात् पलंग

छत्तीसगढ़ = छत्तीसगढ़ है जिसमें अर्थात् एक राज्य विशेष का

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समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

काल Kal

काल Kal

काल Kal की परिभाषा भेद उदाहरण

परिभाषा

व्याकरण में क्रिया के होने वाले समय को काल कहते हैं।

काल Kal के भेद

प्रकार – काल तीन प्रकार के होते हैं।

1. भूतकाल (Bhootkaal)
2. वर्तमान काल (Vartamaan Kaal)
3. भविष्यत् काल (Bhavishya Kaal)

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भूतकाल

वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के जिस रूप से बीते समय (भूत) में क्रिया का होना पाया जाता है अर्थात् क्रिया के व्यापार की समाप्ति बतलाने वाले रूप को भूतकाल कहते हैं।
भूतकाल के 6 उपभेद किये जाते हैं –

(i) सामान्यभूत –

जब क्रिया के व्यापार की समाप्ति सामान्य रूप से बीते हुए समय में होती है, किन्तु इससे यह बोध नहीं होता कि क्रिया समाप्त हुए थोड़ी देर हुई है या अधिक वहाँ सामान्य भूत होता है। जैसे-

कुसुम घर गयी।

अविनाश ने गाना गाया।

राम ने पुस्तक पढी।

(ii) आसन्न भूत –

क्रिया के जिस रूप से यह प्रकट होता है कि क्रिया का व्यापार अभी-अभी कुछ समय पूर्व ही समाप्त हुआ है, वहाँ आसन्न भूत होता है। अतः सामान्य भूत के क्रिया रूप के साथ है/हैं के योग से आसन्न भूत का रूप बन जाता है। यथा-

कुसुम घर गयी है।

अविनाश ने गाना गाया है।

(iii) पूर्ण भूत –

क्रिया के जिस रूप से यह प्रकट होता है कि क्रिया का व्यापार बहुत समय पूर्व समाप्त हो गया था। अतः सामान्य भूत क्रिया के साथ था, थी, थे, लगने से काल पूर्ण भूत बन जाता है, किन्तु थी के पूर्व ही रहती है ईं नहीं। यथा-

भूपेन्द्र सिरोही गया था।

नीता ने खाना बनाया था।

(iv) अपूर्ण भूत

क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि उसका व्यापार भूतकाल में अपूर्ण रहा अर्थात् निरन्तर चल रहा था तथा उसकी समाप्ति का पता नहीं चलता है, वहाँ अपूर्ण भूत होता है। इसमें धातु (क्रिया) के साथ रहा था, रही थी, रहे थे या ता था, ती थी, ते थे, आदि आते हैं।
हेमन्त पुस्तक पढ़ता था।
वर्षा गाना गा रही थी।

(v) संदिग्ध भूत –

क्रिया के जिस भूतकालिक रूप से उसके कार्य व्यापार होने के विषय में संदेह प्रकट हो, उसे संदिग्ध भूत कहते हैं। सामान्य भूत की क्रिया के साथ होगा, होगी, होंगे लगने से संदिग्ध भूत का रूप बन जाता है। जैसे-

राम गया होगा।

सीता खाना बना रही होगी।

(vi) हेतुहेतुमद्भूत –

भूतकालिक क्रिया का वह रूप जिससे भूतकाल में होने वाली क्रिया का होना किसी दूसरी क्रिया के होने पर अवलम्बित हो, वहाँ हेतुहेतुमद् भूत होता है। इस रूप में दो क्रियाओं का होना आवश्यक है तथा क्रिया के साथ ता, ती, ते, ती लगता है। जैसे-

यदि महेन्द्र पढ़ता तो उत्तीर्ण होता।

युद्ध होता तो गोलियाँ चलती।

वर्तमान काल : काल Kal

क्रिया के जिस रूप से वर्तमान समय में क्रिया का होना पाया जाये, उसे वर्तमान काल कहते हैं। वर्तमान काल के 5 भेद माने जाते हैं

(i) सामान्य वर्तमान –

जब क्रिया के व्यापार के सामान्य रूप से वर्तमान समय में होना प्रकट हो, वहाँ सामान्य वर्तमान काल होता है। इसमें धातु (क्रिया) के साथ ता है, ती है, ते हैं आदि आते हैं। जैसे-

अंकित पुस्तक पढ़ता है।
गर्मी गाना गाती है।

(ii) अपूर्ण वर्तमान –

जब क्रिया के व्यापार के पूर्ण होने अर्थात् क्रिया के चलते रहने का बोध होता है, वहाँ अपूर्ण वर्तमान काल होता है। इसमें धातु (क्रिया) के साथ रहा है, रही है, रहे हैं आदि आते हैं। जैसे-

प्रशान्त खेल रहा है।
सरोज गीत गा रही है।

(iii) संदिग्ध वर्तमान :

जब क्रिया के वर्तमान काल में होने पर संदेह हो, वहाँ संदिग्ध वर्तमान काल होता है। इसमें क्रिया के साथ ता, ती, ते के साथ होगा, होगी, होंगे का भी प्रयोग होता है। जैसे-
अभी खेत में काम करता होगा।
राम पत्र लिखता होगा।

(iv) संभाव्य वर्तमान –

जिस क्रिया से वर्तमान काल की अपूर्ण क्रिया की संभावना या आशंका व्यक्त हो, वहाँ संभाव्य वर्तमान काल होता है। जैसे-
शायद आज पिताजी आते हैं।
मुझे डर है कि कहीं कोई हमारी बात सुनता न हो।

(V) आज्ञार्थ वर्तमान –

क्रिया के व्यापार के वर्तमान समय में ही चलाने की आज्ञा का बोध कराने वाला रूप आज्ञार्थ वर्तमान काल कहलाता है। यथा –
राधा, तू नाच।
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भविष्यत् काल : काल Kal

क्रिया के जिस रूप से आने वाले समय में (भविष्य में) होना पाया जाता है, उसे भविष्यत काल कहते हैं! भविष्यत् काल के तीन भेद किए जाते हैं

(i) सामान्य भविष्यत् :

क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में सामान्य रूप में होने का बोध हो, उसे सामान्य भविष्यत् काल कहते हैं। इसमें क्रिया (धातु) के अन्त में एगा, एगी, एंगे आदि लगते हैं। यथा –
लीला नृत्य प्रतियोगिता में भाग लेगी।

(ii) सम्भाव्य भविष्यत् –

क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में होने की संभावना का पता चले. वहाँ सम्भाव्य भविष्यत् काल होता है। इसमें क्रिया के साथ ए, ऐ, ओ, ऊँ का योग होता है। यथा
कदाचित आज भूपेन्द्र आए।
वे शायद जयपुर जाएँ।

(iii) आज्ञार्थ भविष्यत् –

किसी क्रिया व्यापार के आगामी समय में पूर्ण करने की आज्ञा प्रकट करने वाले रूप को आज्ञार्थ भविष्यत् काल कहते है। इसमें क्रिया के साथ इएगा लगता है। जैसे-

आप वहाँ अवश्य जाइएगा।

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काल

वचन Vachan

वचन Vachan

वचन Vachan की परिभाषा paribhasha | अर्थ arth | वचन के प्रकार prakar | vachan ke bhed | vachan parivartan ke niyam | vachan ke udaharan

परिभाषा paribhasha – वचन Vachan

व्याकरण में वचन का अर्थ संख्या से लिया जाता है। वह, जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द की संख्या का बोध होता है उसे वचन कहते हैं।

वचन Vachan के प्रकार

(i) एकवचन (Ek Vachan)

(ii) बहुवचन (Bahu Vachan)

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Vachan

(i) एकवचन

विकारी पद के जिस रूप से किसी एक संख्या का बोध होता है, उसे एकवचन कहते हैं।

जैसे राम, लड़का, मेरा, काली, जाती आदि।

हिन्दी में निम्न शब्द सदैव एक वचन में ही प्रयुक्त होते हैं-

सोना, चाँदी, लोहा, स्टील, पानी, दूध, जनता, आग, आकाश, घी, सत्य, झूठ, मिठास, प्रेम, मोह, सामान, ताश, सहायता, तेल, वर्षा जल, क्रोध, क्षमा

(ii) बहुवचन

विकारी पद के जिस रूप से किसी की एक से अधिक संख्या का बोध होता है, उसे बहुवचन कहते हैं।

जैसे लड़के, तुम्हारे, काले, जाते हैं।

हिन्दी में निम्न शब्द सदैव बहुवचन में ही प्रयुक्त होते हैं, यथा –

आँसू, होश, दर्शन, हस्ताक्षर, प्राण, भाग्य, दाम, समाचार, बाल, लोग होश, हाल-चाल, आदरणीय व्यक्ति हेतु प्रयुक्त शब्द आप,।

वचन Vachan परिवर्तन parivartan ke niyam

हिन्दी व्याकरण अनुसार एकवचन शब्दों को बहुवचन में परिवर्तित करने हेतु कतिपय नियमों का उपयोग किया जाता है। यथा –

1. शब्दांत ‘आ’ को ‘ए में बदलकर-

कमरा – कमरे

लड़का – लड़के

बस्ता – बस्ते

बेटा – बेटे

पपीता – पपीते

रसगुल्ला – रसगुल्ले

2. शब्दान्त ‘अ’ को ‘एँ’ में बदलकर

पुस्तक – पुस्तकें

दाल – दालें

राह – राहें

दीवार – दीवारें

सड़क – सड़कें

कलम – कलमें

3. शब्दांत में आये ‘आ’ के साथ ‘एँ’ जोड़कर

बाला – बालाएँ

कविता – कविताएँ

कथा – कथाएँ

4. शब्दांत ‘ई’ वाले शब्दों के अन्त में ‘इयाँ’ लगाकर

दवाई – दवाइयाँ

लड़की – लड़कियाँ

साड़ी – साडियाँ

नदी – नदियाँ

स्त्री – स्त्रियाँ

खिड़की – खिड़कियाँ

5. स्त्रीलिंग शब्द के अन्त में आए ‘या’ को ‘याँ’ में बदलकर

चिड़िया – चिड़ियाँ

डिबिया – डिबियाँ

गुड़िया – गुड़ियाँ

6. स्त्रीलिंग शब्द के अन्त में आए ‘उ, ऊ’ के साथ ‘ऐँ’ लगाकर

वधू – वधुएँ

वस्तु – वस्तुएँ

बहू – बहुएँ

7. ‘इ, ई’ स्वरान्त वाले शब्दों के साथ ‘यों’ लगाकर तथा ई की मात्रा को इ में बदलकर

जाति – जातियों

रोटी – रोटियों

अधिकारी – अधिकारियों

लाठी – लाठियों

नदी – नदियों

गाड़ी – गाड़ियों

8. एकवचन शब्द के साथ, जन, गण, वर्ग, वृन्द, हर, मण्डल, परिषद् आदि लगाकर : वचन Vachan

गुरु – गुरुजन

अध्यापक – अध्यापकगण

लेखक – लेखकवृन्द

युवा – युवावर्ग

भक्त – भक्तजन

खेती – खेतिहर

मंत्री – मंत्रिमंडल

9. याकारांत ( ऊनवाचक ) संज्ञाओं के अंत में केवल चन्द्रबिन्दु लगाया जाता है, जैसे-

लुटिया – लुटियाँ

बुढ़िया – बुढियाँ

डिबिया – डिबियाँ

गुड़िया – गुड़ियाँ

खटिया – खटियाँ

विशेष : वचन Vachan

1. सम्बोधन शब्दों में ‘ओं’ न लगा कर ‘ओ’ की मात्रा ही लगानी चाहिए यथा बहनो ! मित्रो! बच्चो ! साथियो! भाइयो!

2. पारिवारिक संबंधवाचक, उपनामवाचक, और प्रतिष्ठा वाचक आकारांत पुल्लिंग शब्दों का रूप दोनों वचनों में एक ही, रहता है; जैसे, काका-काका, आजा-आजा, मामा-मामा, लाला-लाला, इत्यादि, किन्तु भानजा, भतीजा व साला से भानजे, भतीजे व साले शब्द बनते हैं।

3. विभक्ति रहित आकारान्त से भिन्न पुल्लिंग शब्द कभी भी परिवर्तित नहीं होते। जैसे बालक, फूल, अतिथि, हाथी, व्यक्ति, कवि, आदमी, सन्न्यासी, साधु, पशु, जन्तु, डाकू, उल्लू, लड्डू, रेडियो, फोटो, मोर, शेर, पति, साथी, मोती, गुरु, शत्रु, भालू, आलू, चाकू

4. विदेशी शब्दों के हिन्दी में बहुवचन हिन्दी भाषा के व्याकरण के अनुसार बनाए जाने चाहिए। जैसे स्कूल से स्कूलें न कि स्कूल्स, कागज से कागजों न कि कागजात।

5. भगवान के लिए या निकटता सूचित करने के लिए ‘तू’ का प्रयोग किया जाता है। जैसे – हे ईश्वर! तू बड़ा दयालु है।

6. निम्न शब्द सदैव एक वचन में ही प्रयुक्त होते हैं। जैसे- जनता, वर्षा, हवा, आग

7. ईकारांत और ऊकारांत शब्दों को बहुवचन बनाने पर ‘ई’ का ‘इ’ तथा ‘ऊ’ का ‘उ’ हो जाता है। जैसे-

स्त्री – स्त्रियाँ

देवी – देवियाँ

नदी – नदियाँ

दवाई – दवाइयाँ

हिन्दू – हिन्दुओं

लू – लुएँ

8. आदर प्रकट करने के लिए बहुवचन का प्रयोग होता है-

गुरु जी आ रहे हैं।

बड़े बाबू नियमों के पक्के हैं।

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वचन

समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

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लिंग Ling in Hindi | शब्द रूपांतरण | विकारक

लिंग Ling in Hindi | शब्द रूपांतरण | विकारक

परिभाषा

विकारी शब्दों (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया) में विकार उत्पन्न करने वाले कारकों को विकारक कहते हैं। लिंग, वचन, कारक, काल तथा वाच्य से शब्द के रूप में परिवर्तन होता है। लिंग Ling in Hindi | शब्द रूपांतरण | विकारक | लिंग का अर्थ | लिंग Ling के प्रकार | पुल्लिंग स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों की पहचान

लिंग का अर्थ

व्याकरण के अन्तर्गत लिंग उसे कहते हैं, जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द के स्त्री या पुरुष जाति का होने का बोध होता है।लिंग शब्द का अर्थ होता है चिन्ह या पहचान।

लिंग Ling के प्रकार

हिन्दी भाषा में लिंग दो प्रकार के होते हैं –

(i) पुल्लिंग : जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द की पुरुष जाति का बोध होता है, उसे पुल्लिंग कहते हैं। जैसे – रमेश, डॉक्टर, मेरा, लाल, आत।

(ii) स्त्रीलिंग : जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द की स्त्री जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे सीता, अध्यापिका, मेरी, काली, आती।

लिंग की पहचान | लिंग Ling in Hindi

लिंग की पहचान शब्दों के व्यवहार से होती है। कुछ शब्द सदा पुल्लिंग रहते हैं तो कुछ शब्द सदा स्त्रीलिंग। कुछ शब्द परम्परा के कारण पुल्लिग या स्त्री लिंग में प्रयुक्त होते हैं।

1. पुल्लिंग संज्ञा शब्दों की पहचान –

(अ) प्राणिवाचक पुल्लिंग संज्ञाएँ – पुरुष, आदमी, मनुष्य, लड़का, शेर, चीता, हाथी कुत्ता, घोड़ा, बैल बन्दर, पशु, खरगोश गैण्डा, मेंढक, साँप मच्छर, तोता मोर कबूतर, कौवा उल्लू, खटमल, कौआ।

(आ) अप्राणिवाचक पुल्लिंग संज्ञा – निम्न संज्ञाएँ सादैव पुल्लिग ही प्रयुक्त होती है-

(अ) पर्वतों के नाम – हिमालय, विनया अरावली कला आल्पस।

(आ) महीनों के नाम – भारतीय महीनों तथा अंग्रेजी महीनों के नाम जैसे – चैत्र वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, मार्च

(इ) दिन या वारों के नाम – सोमवार मंगलवार, शनिवार।

(ई) देशों के नाम – भारत, अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, (अपवाद – श्रीलंका – स्त्रीलिंग)

(उ) ग्रहों के नाम – सूर्य, चंद्रमा, मंगल, शुक्र, राहु केतु, अरुण,

(ऊ) धातुओं के नाम – सोना, ताम्बा, पीतल, लोहा (अपवाद – चाँदी – स्त्रीलिंग)

(ऋ) वृक्षों के नाम – नीम, बरगद, बबूल, आम, पीपल, अशोक (अपवाद – इमली – स्त्रीलिंग)

(ए) अनाजों के नाम – चावल, गेहूं, बाजरा, जौ, (अपवाद – ज्वार – स्त्रीलिंग)

(ऐ) द्रव पदार्थों के नाम – तेल, घी, दूध, शर्बत, मक्खन, पानी। (अपवाद – लस्सी, चाय – स्त्रीलिंग)

(ओ) समय सूचक नाम – क्षण, सेकण्ड मिनट, घण्टा, दिन, सप्ताह पक्ष, माह, अपवाद – रात, सायं, सन्ध्या. दोपहर – स्त्रीलिंग)

(औ) वर्णमाला के वर्ण – स्वर तथा क से ह तक व्यंजन, (अपवाद – इ, ई, ऋ)

(क) समुद्रों के नाम – हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर

(ख) मूल्यवान पत्थर, रत्नों के नाम – हीरा, पुखराज, नीलम, पत्ना, मोती, माणिक्य (अपवाद – मणि, लाल)

(ग) शरीर के अंगों के नाम – सिर, बाल, नाक, कान, दाँत, गाल, हाथ, पैर, ओठ, मुँह (अपवाद – गर्दन, जीभ, आँख, नाक, हड्डी, अंगुली)

(घ) देवताओं के नाम – इन्द्र, यम, वरुण, ब्रह्मा, विष्णु, महेश।

(च) आपा, आव, आवा, आर. अ. अन, ईय, एरा, त्व, दान, पन, य, खाना वाला आदि प्रत्यय युक्त शब्द। यथा बुढ़ापा, चुनाव, पहनावा, सुनार, न्याय, दर्शन, पूजनीय, चचेरा, देवता, फूलदान, बचपन, सौन्दर्य, डाकखाना, दूधवाला।

(छ) ख, ज, न, त्र के अन्तवाले शब्द : जैसे सुख, जलज, नयन.

2. स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों की पहचान

(क) तिथियों के नाम – प्रथमा, द्वितीया, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा।

(ख) भाषाओं के नाम – हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, जापानी, मलयालम।

(ग) लिपियों के नाम – देवनागरी, रोमन गुरुमुखी, अरबी, फारसी।

(घ) बोलियों के नाम – ब्रज, भोजपुरी, हरियाणवी, अवधी।

(च) नदियों के नाम – गंगा, गोदावरी, व्यास, ब्रह्मपुत्र।

(छ) नक्षत्रों के नाम – रोहिणी, अश्विनी, भरणी।

(ज) देवियों के नाम – दुर्गा, रमा, उमा।

(झ) महिलाओं के नाम – आशा, शबनम, सीता।

(ट) लताओं के नाम – अमर बेल, मालती, तोरई।

(ठ) किराने के नाम – लौंग, इलायची, सुपारी, जावित्री, केसर, दालचीनी, इत्यादि। अपवाद – तेजपात, कपूर, इत्यादि।

(ड) भोजनों के नाम – पूरी, कचौरी, खीर, दाल, रोटी, तरकारी, खिचड़ी, कढ़ी, इत्यादि । अपवाद – भात, रायता, हलुआ, मोहनभोग, इत्यादि।

(ढ) अनुकरण-वाचक शब्द, जैसे – झकझक, बड़बड़, झझट, इत्यादि

(त) आ, आई, आइन, आनी, आवट, आहट, इया, ई, त, ता, ति, आदि प्रत्यय युक्त शब्द। यथा- छात्रा, मिठाई, ठकुराइन, नौकरानी, सजावट, राहट गुडिया, गरीबी, ताकत, मानवता, नीति।

लिंग परिवर्तन के कतिपय नियम

1. शब्दान्त ‘अ’ को ‘आ’ में बदलकर –

छात्र – छात्रा

वृद्ध – वृद्ध

सुत – सुता

पूज्य – पूज्या

भवदीय – भवदीया

अनुज – अनुजा

2. शब्दान्त ‘अ’ को ‘ई’ में बदलकर

देव – देवी

पुत्र – पुत्री

गोप – गोपी

ब्राह्मण – ब्राह्मणी

मेंढ़क – मेंढ़की

दास – दासी

3. शब्दान्त ‘आ’ को ‘ई’ में बदलकर

नाना – नानी

लड़का – लड़की

घोड़ा – घोड़ी

बेटा – बेटी

रस्सा – रस्सी

चाचा – चाची

4.शब्दांत ‘आ’ को ‘इया’ में बदलकर

चुहा – चुहिया

कुत्ता – कुतिया

डिब्बा – डिबिया

बेटा – बिटिया

लोटा – लुटिया

5. शब्दांत प्रत्यय ‘अक’ को ‘इका’ में बदलकर

बालक – बालिका

लेखक – लेखिका

नायिका – नायिका

पाठक – पाठक

गायक – गायिका

विधायक – विधायिका

6. ‘आनी प्रत्यय लगाकर

देवर – देवरानी

चौधरी – चौधरानी

सेठ-सेठानी

भव – भवानी

जेठ – जेठानी

7. नी प्रत्यय लगाकर

शेर – शेरनी

मोर – मोरनी

जाट – जाटनी

सिंह – सिंहनी

ऊंट – ऊंटनी

भील – भीलनी

8. शब्दान्त में ई के स्थान पर ‘इनी-लगाकर

हाथी – हथिनी

तपस्वी – तपस्विनी

स्वामी – स्वामिनी

9. ‘इन’ प्रत्यय लगाकर

माली – मालिन

चमार – चमारिन

धोबी – धोबिन

नाई – नाइन

कुम्हार – कुम्हारिन

सुनार – सुनारिन

10. ‘आइन’ प्रत्यय लगाकर

चौधरी – चौधराइन

ठाकुर – ठकुराइन

मुंशी – मुंशियाइन

11. शब्दान्त ‘वान’ के स्थान पर ‘वती’ लगाकर

गुणवान – गुणवती

पुत्रवान – पुत्रवती

बलवान – बलवती

भगवान – भगवती

भाग्यवान – भाग्यवती

सत्यवान – सत्यवती

12. शब्दान्त ‘मान’ के स्थान पर ‘मती’ लगाकर

श्रीमान् – श्रीमती

बुद्धिमान – बुद्धिमती

आयुष्मान् – आयुष्मती

13. शब्दान्त ‘ता’ के स्थान पर ‘त्री’ लगाकर

कर्ता – कर्त्री

नेता – नेत्री

दाता – दात्री

14. शब्द के पूर्व में ‘मादा’ शब्द लगाकर

खरगोश – मादा खरगोश

भेड़िया – मादा भेड़िया

भालू – मादा भालू

15. भिन्न रूप वाले कतिपय शब्द

कवि – कवयित्री

वर – वधू

विद्वान – विदुषी

वीर – वीरांगना

मर्द – औरत

दुल्हा – दुल्हन

राजा – रानी

नर – नारी

पुरुष – स्त्री

साधु – साध्वी

बैल – गाय

भाई – भाभी/बहन

बादशाह – बेगम

युवक – युवती

ससुर – सास

विशेष

1. सर्वनाम में लिंग के आधार पर कोई परिवर्तन नहीं होता है।

2. निम्न पदवाची शब्दों में भी लिंग परिवर्तन नहीं होता- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, डॉक्टर, मैनेजर, प्रिंसिपल।

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समुच्चयबोधक अव्यय शब्द

लिंग (व्याकरण)

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

विस्मयादिबोधक अव्यय Vismayadibodhak Avyay

भाषा व्याकरण

वचन

समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

विस्मयादिबोधक अव्यय Vismayadibodhak Avyay

विस्मयादिबोधक अव्यय | Vismayadibodhak Avyay

विस्मयादिबोधक अव्यय | Vismayadibodhak Avyay | अव्यय किसे कहते हैं | अव्यय के प्रकार | विस्मयादिबोधक अव्यय | परिभाषा एवं प्रकार

प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं।

विकारी(Vikari Shabad)

विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं।

विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

अविकारी या अव्यय शब्द (Avikari Shabad)

अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है।

ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं।

अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं।

विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

विस्मयादिबोधक अव्यय (Vismayadibodhak Avyay)

वे अव्यय शब्द जिनका वाक्य से तो कोई संबंध नहीं रहता है, परन्तु वे वक्ता के हर्ष, शोक, विस्मय, तिरस्कार आदि भावों को सूचित करते हैं, विस्मयादिबोधक अव्यय शब्द कहलाते हैं। जैसे –

वाह ! कितना सुन्दर दृश्य है?

हाय, अब मैं क्या करूं?

छि: छि, तुम इतने गिर जाओगे, इसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी।

आहा, हम मैच जीत गये।

जी हाँ, मैं जरूर आऊँगा।

Vismayadibodhak Avyay से प्रकट होने वाले मनोविकारों के आधार पर इनके निम्न सात भेद माने जाते है

1. हर्षबोधक – अहा, वाह-वाह, धन्य-धन्य, शाबास, क्या खूब, क्या कहने, जय, जयति आदि।

2. शोकबोधक – हाय-हाय, हे राम, बाप-रे-बाप, आह, ऊह, हा-हा, त्राहि-त्राहि, तोबा-तोबा, दैया-दैया आदि।

3. आश्चर्यबोधक- वाह, हैं, ऐं, ओहो, यह क्या, क्या, आदि।

4. अनुमोदन बोधक – ठीक, आह, अच्छा, शाबास, हाँ-हाँ आदि।

5. तिरस्कार बोधक – छि:छि, हट, अरे, दूर, धिक्, अरे, चुप, धत्त तेरे कि आदि।

6. स्वीकार बोधक – जी हाँ, अच्छा जी, ठीक-ठीक, बहुत अच्छा, हाँ, जी आदि।

7. सम्बोधन बोधक – अरे, रे, अजी, लो, जी, हे, हो आदि।

स्रोत – हिन्दी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

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विस्मयादिबोधक अव्यय Vismayadibodhak Avyay

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

भाषा व्याकरण

वचन

समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

समुच्चयबोधक अव्यय शब्द | Samuchaya Bodhak Avyay

समुच्चयबोधक अव्यय शब्द | Samuchaya Bodhak Avyay

समुच्चयबोधक अव्यय शब्द | Samuchaya Bodhak Avyay | समुच्चयबोधक अव्यय के प्रकार | samuchaya bodhak avyay ke bhed | samuchaya bodhak avyay bhed

प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं –

विकारी

विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

अविकारी या अव्यय शब्द

अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है। ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं। विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

 Samuchay Bodhak Avyay

Samuchay Bodhak Avyay

समुच्चयबोधक अव्यय शब्द | Samuchaya Bodhak Avyay

वे अव्यय शब्द जो ( क्रिया की विशेषता न बतलाकर ) एक वाक्य का संबंध दूसरे वाक्य से मिलाता है उसे समुच्चय-बोधक अव्यय कहते हैं, जैसे, और, यदि, तो, क्योकि, इसलिए ।

समुच्चयबोधक अव्यय के प्रकार

समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय

जिन अव्यय शब्दों के द्वारा मुख्य वाक्यों को जोड़ा जाता है, वे समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय शब्द कहलाते हैं। ये पुनः चार प्रकार के हो जाते हैं।

(क) संयोजक – और, व, एवं, तथा आदि।

(ख) विभाजक – या, वा, अथवा, कि, किंवा, नहीं तो, क्या-क्या, न…..न, कि, चाहे..चाहे, नहीं तो, अपितु आदि।

(ग) विरोधदर्शक – किन्तु, परन्तु, लेकिन, अगर, मगर, पर, बल्कि, वर आदि।

(घ) परिणाम दर्शक – इसलिए, सौ. अतः: अतएव आदि।

व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय |

जिन अव्यय शब्दों के द्वारा एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित उपवाक्य जोड़े जाते हैं, उन्हें व्यधिकरण समुच्चय बोधक अव्यय शब्द कहते हैं। ये भी पुनः चार प्रकार के हो जाते हैं –

(क) कारणवाचक – क्योंकि, जोकि, चूँकि, इसलिए, इस कारण आदि।

(ख) उद्देश्यवाचक – कि, जो, ताकि, जिससे कि आदि।

(ग) संकेतवाचक – जो-तो, यदि-तो, यद्यपि-तथापि, चाहे-परन्तु आदि।

(घ) स्वरूपवाचक – अर्थात्, याने, मानो आदि।

स्रोत – हिंदी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

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समुच्चयबोधक अव्यय शब्द

लिंग (व्याकरण)

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

विस्मयादिबोधक अव्यय Vismayadibodhak Avyay

भाषा व्याकरण

वचन

समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

सम्बन्ध सूचक Sambandh Suchak अव्यय

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay | परिभाषा | भेद | उदाहरण | संबंध सूचक किसे कहते हैं | सम्बन्ध सूचक अव्यय के वाक्य प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं।

विकारी (Vikari Shabad)

विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

अविकारी या अव्यय शब्द (Avikari Shabad)

अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है। ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं। विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

सम्बन्ध सूचक Sambandh Suchak अव्यय

वे अव्यय शब्द जो किसी संज्ञा शब्द (अथवा संज्ञा के समान उपयोग में आनेवाले शब्द) के आगे आकर उसका संबंध वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ स्थापित करते हैं उसे संबंध सूचक कहते हैं। जैसे –

पानी के बिना जीवन नहीं है।

धन के बिना किसी का काम नही चलता।

रमेश दूर तक गया।

दिन भर घूमना अच्छा नहीं होता।

इन वाक्य में ‘बिना’, ‘तक’ और ‘भर’ सबंधसूचक हैं।

‘बिना’ पद ‘धन’ संज्ञा का संबंध ‘चलता’ क्रिया से मिलाता है।

‘तक’, ‘रमेश’ का संबंध ‘गया’ से मिलाता है;

‘भाग’, ‘दिन’ का संबंध ‘घूमना’ क्रियार्थक संज्ञा के साथ जोड़ता है।

कतिपय कालवाचक और स्थानवाचक अव्यय क्रियाविशेपण भी होते हैं और संबंधसूचक भी – जब वे स्वतंत्र रूप से क्रिया की विशेषता बताते हैं तब उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं, परंतु जब उनका प्रयोग संज्ञा के साथ होता है तब वे संबंधसूचक कहलाते हैं। जैसे-

शिष्य यहाँ रहता है। (क्रिया विशेषण)

शिष्य गुरु के यहाँ रहता है। (संबंध सूचक)

वह काम पहले करना चाहिए। (क्रिया विशेषण)

यह काम जाने से पहले करना चाहिए। (संबंध सूचक)

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay के भेद

(1) प्रयोग के आधार पर
(2) अर्थ के आधार पर
(3) व्युत्पत्ति के आधार पर

(1) प्रयोग के अनुसार सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

प्रयोग के अनुसार संबंधसूचक दो प्रकार के होते हैं-

(अ) संबद्ध संबंधसूचक- संज्ञा की विभक्तियों के आगे आते हैं, जैसे, धन के बिना, नर की नाई, पूजा से पहले, इत्यादि।

(आ) अनुबद्ध संबंधसूचक- संज्ञा के विकृत रूप के साथ आते हैं, जैसे, किनारे तक, सखियों सहित, कटोरा भर, पुत्रों समेत, लड़के सरिखा, इत्यादि।

(2) अर्थ के अनुसार सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

इनका वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है –

कालवाचक – आगे, पीछे, वाद, पहले, पूर्व, अनंतर, पश्चात्, उपरांत, लगभग।

स्थानवाचक – आगे, पीछं, ऊपर, नीचे, तले, सामनं, रूबरू, पास, निकट, समीप, नज़दीक, यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर, भीतर।

दिशावाचक – ओर, तरफ, पार, आर पार, आसपास, प्रति।

साधन वाचक – द्वारा, जरिया, हाथ, मारफत, वल, करके, जवानी, सहारे।

हेतुवाचक – लिए, निमित्त, वास्ते, हेतु, हित, खातिर, कारण, सबवे, मारे।

विषयवाचक – बाबत, निस्वत, विषय, नाम (नामक), लेखे, जान, भरोसे, मद्धे।

व्यतिरेकवाचक – सिवा (सिवा), अलावा, बिना, बगैर, अतिरिक्त, रहित।

विनिमय वाचक – पलटे, बदले, जगह, एवज, संती।

सादृश्य वाचक – समान, सम (कविता में), तरह, भाँति, नाई, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, देखा-देखी, सरिता, सा, ऐसा, जैसा।

विरोधवाचक – विरुद्ध, खिलाफ, उलटा, विपरीत।

सहचारण वाचक – सग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, अधीन, वश।

संग्रहवाचक – तक, लौं, पर्यंत, सुद्धा, भर, मात्र।

तुलनावाचक – अपेक्षा, बनिस्बत, आगे, सामने ।

[विशेष – ऊपर की सूची में जिन शब्दों को कालवाचक संबंधसूचक लिखा है वे किसी किसी प्रसंग में स्थानवाचक अथवा दिशावाचक भी होते है। इसी प्रकार और भी कई एक संबंध सूचक अर्थ के अनुसार एक से अधिक वर्गों में आ सकते हैं।]

(3) व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

व्युत्पत्ति के अनुसार संबंध सूचक दो प्रकार के हैं-

(1) मूल संबंध सूचक – हिंदी में मूल संबंध सूचक बहुत कम हैं, जैसे, बिना, पर्यंत, नाई, पूर्वक, इत्यादि।

(2) यौगिक सबधसूचक – किसी संज्ञा, विशेषण, क्रिया, क्रियाविशेषण आदि से बनते हैं, जैसे –

संज्ञा से – पलटे, वास्ते, और, अपेक्षा, नाम, लेखे, विषय, मारफत, इत्यादि।

विशेपण से – तुल्य, समान, उलटा, जबानी, सरीखा, योग्य, जैसा, ऐसा, इत्यादि।

क्रिया विशेषण से – ऊपर, भीतर, यहाँ, वाहन, पास, परे, पीछे, इत्यादि।

क्रिया से – लिये, मारे, करके, जान।

स्रोत – हिंदी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

लिंग (व्याकरण)

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

विस्मयादिबोधक अव्यय Vismayadibodhak Avyay

भाषा व्याकरण

वचन

समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan | kriya visheshan ke bhed | kriya visheshan kise kahate hain | kriya visheshan in hindi| क्रिया विशेषण

प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं।
(i) विकारी शब्द

(ii) अविकारी या अव्यय शब्द

(i) विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

Kriya Visheshan
Kriya Visheshan

(ii) अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है।

ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं।

अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं। विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

जिस अव्यय से क्रिया की कोई विशेषता जानी जाती है उसे क्रिया-विशेषण कहते हैं,

जैसे- यहाँ, वहाँ, जल्दी, धीरे, अभी, बहुत, कम, इत्यादि।

क्रिया-विशेषणों का वर्गीकरण तीन आधारों पर हो सकता है

(1) प्रयोग के आधार पर

(2) रूप के आधार पर

(3) अर्थ के आधार पर

प्रयोग के आधार पर क्रिया-विशेषण

प्रयोग के आधार पर क्रिया-विशेषण तीन प्रकार के होते हैं-

(1) साधारण क्रिया-विशेषण

(2) संयोजक क्रिया-विशेषण

(3) अनुवद्ध क्रिया-विशेषण

(1) साधारण क्रिया-विशेषण – जिन क्रिया-विशेषणो का प्रयोग किसी वाक्य मे स्वतंत्र होता है उन्हें साधारण क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे –

“हाय ! अब मैं क्या करुं!”

“बेटा, जल्दी आओ।“

“वह साँप कहाँ गया?”

(2) संयोजक क्रिया-विशेषण – जिनका संबंध किसी उपवाक्य के साथ रहता है उन्हें संयोजक क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे-

“जब राम ही नहीं तो मैं ही जी के क्या करूँगा।

“जहाँ अभी रेगिस्तान है वहां पर किसी समय सागर था।

(3) अनुबद्ध क्रिया-विशेषण – वे क्रिया विशेषण जिनका प्रयोग अवधारणा के लिए किसी भी शब्द-भेद के साथ हो सकता है; जैसे –

“यह तो किसी ने धोखा ही दिया है ।”

“मैंने उसे देखा तक नहीं।”

“आपके आने भर की देरी है।”

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

(2) रूप के आधार पर क्रिया-विशेषण रूप के अनुसार क्रिया-विशेषण तीन प्रकार के होते हैं –

(1) मूल क्रिया-विशेषण

(2) यौगिक क्रिया-विशेषण

(3) स्थानीय क्रिया-विशेषण

(1) मूल क्रिया-विशेषण- जो क्रिया-विशेषण किसी दूसरे शब्द से नहीं बनते वे मूल क्रिया-विशेषण कहलाते है, जैसे. ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं, इत्यादि। अन्य उदाहरण –

वह ठीक सामने खड़ा है।

वह दूर चला गया है।

अचानक वर्षा होने लगी।

(2) यौगिक क्रिया-विशेषण – जो क्रिया-विशेषण दूसरे शब्दों में प्रत्यय या शब्द जोडने से बनते हैं उन्हें यौगिक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

वे नीचे लिखे शब्द-भेदो से बनते हैं-

(अ) संज्ञा से – सवेरा, मन से, क्रमश, आगे, रात को, प्रेम पूर्वक, दिन-भर, रात-तक, इत्यादि ।

(आ) सर्वनाम से – यहाँ, वहाँ, अब, जब, जिससे, इसलिए, तिस पर, इत्यादि।

(इ) विशेषण से – धीरे, चुपके, भूले से, इतने मे, सहज मे, पहले, दूसरे, ऐसे, वैसे, इत्यादि ।

(ई) धातु से – आते, करते, देखते हुए, चाहे, लिये, मानो वैठे हुए, इत्यादि।

(उ) अव्यय से – यहाँ तक, कब का, ऊपर को, झट से, वहाँ पर, इत्यादि।

(ऊ) क्रिया- विशेषणों के साथ निश्चय जनाने के लिये बहुधा ई या ही लगाते हैं, जैसे – अब-अभी, यहाँ-यहीं, आते-आते ही, पहले-पहले ही, इत्यादि।

(3) स्थानीय क्रिया-विशेषण

वे शब्द-भेद जो बिना किसी रूपांतर के क्रिया- विशेषण के समान उपयोग मे आते हैं उन्हें स्थानीय क्रिया-विशेषण कहते हैं।

ये शब्द किसी विशेष स्थान ही मे क्रिया-विशेषण होते हैं; जैसे –

(अ) संज्ञा-

“तुम मेरी मदद खाक करोगे।”

“वह अपना सिर पढेगा!”

(आ) सर्वनाम-

“गुरु जी तो वे आते हैं ।”

“तुम मुझे क्या मारोगे।”

“तुम्हे यह बात कौन कठिन है।”

(इ) विशेषण-

“राकेश उदास बैठा है।“

“बंदर कैसा कूदा।”

“सब लोग सोये पड़े थे।”

“चोर पकड़ा हुआ आया।”

“हमने इतना पुकारा।”

(ई) पूर्वकालिक कृदंत-

“तुम दौड़कर चलते हो।”

“शेर उठकर भागा।”

(3) अर्थ के आधार पर क्रिया विशेषण

अर्थ के अनुसार क्रियाविशेषण के नीचे लिखे चार भेद होते है –

(1) स्थानवाचक क्रियाविशेषण

(2) कालवाचक क्रियाविशेषण

(3) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण

(4) रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

(1) स्थानवाचक क्रियाविशेषण के दो भेद हैं-

1-स्थितिवाचक

2-दिशावाचक ।

(1) स्थिति वाचक – यहाँ, वहाँ, जहाँ, कहाँ, तहाँ, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, तले, सामने, साथ, बाहर, भीतर, पास (निकट, समीप), सर्वत्र, अन्यत्र, इत्यादि।

(2) दिशावाचक – इधर, उधर, किधर, जिधर, दूर, परे, अलग, दाहिने, बाएँ, आर-पार, इस तरफ, उस जगह, चारों ओर, इत्यादि।

(2) कालवाचक क्रियाविशेषण तीन प्रकार के होते हैं

(1) समयवाचक, (2) अवधिवाचक, (3) पौनः पुन्य वाचक

(1) समयवाचक- आज, कल, परसों, तरसों, नरसों, अब, जब, कब, तब, अभी, कभी, जभी, तभी, फिर, तुरंत, सर्वे, पहले, पीछे, प्रथम, निदान, आखिर, इतने मे, इत्यादि ।

(2) विधिवाचक – आजकल, नित्य, सदा, सतत (कविता मे ), निरतर, अवतक, कभी कभी, कभी न कभी, अब भी, लगातार, दिन भर, कब का, इतनी देर, इत्यादि।

(3) पौनः पुन्यवाचक – बार-बार (बारम्बार), बहुधा ( अकसर ), प्रतिदिन (हररोज़), घड़ी-घड़ी, कई बार, पहले-फिर, एक-दूसरे-तीसरे-इत्यादि, हरबार, हरदफे, इत्यादि।

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

(3) परिमाणवाचक क्रिया विशेषण – जिन शब्दों के द्वारा अनिश्चित संख्या या परिमाण का बोध होता है। ये पाँच प्रकार के होते हैं-

(अ) अधिकताबोधक – बहुत, अति, बड़ा, भारी, बहुतायत से, बिल्कुल, सर्वथा, निरा, खूब, पूर्णतया, निपट, अत्यत, अतिशय, इत्यादि।

(आ) न्यूनताबोधक – कुछ, लगभग, थोडा, टुक, अनुमान, प्राय., ज़रा, किंचित्, इत्यादि ।

(इ) पर्याप्त वाचक – केवल, बस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बराबर, ठीक, अस्तु, इति, इत्यादि ।

(ई) तुलनावाचक – अधिक, कम, इतना, उतना, जितना, कितना, बढ़कर, और, इत्यादि।

(उ) श्रेणी वाचक – थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम से, बारी-बारी से, तिल तिल, एक-एक करके, यथाक्रम, इत्यादि ।

रीतिवाचक क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

रीतिवाचक क्रियाविशेषण की संख्या अंनत है। ये मुख्यतः सात प्रकार के होते हैं–

(अ) प्रकार बोधक- ऐसे, वैसे, कैसे, जैसे-तैसे, मानों, यथा-तथा, धीरे, अचानक, सहसा, अनायास, वृथा, सहज, साक्षात्, मेत, सेंतमेंत, योही, हौले, पैदल, जैसे-तैसे, स्वयं, परस्पर, आपही आप एक-साथ, एकाएक, मन से, ध्यान-पूर्वक, सदेह, सुखेन, रीत्यनुसार, क्योंकर, यथाशक्ति, हँसकर, फटाफट, तडतड, फटसे, उलटा, येन-केन-प्रकारेण, अकस्मात्, किंवा, प्रत्युत।

(आ) निश्चय बोधक – अवश्य, सही, सचमुच, निःसंदेह, बेशक, जरूर, अलबत्ता, मुख्य-करके, विशेष-करके, यथार्थ में, वस्तुतः, दरअसल।

(इ) अनिश्चय बोधक – कदाचित् (शायद), बहुत करके, यथा-संभव ।

(ई) स्वीकार बोधक – हाँ, जी, ठीक, सच ।

(उ) कारण बोधक – इसलिए, क्यों, काहे को।

(ऊ) निषेध बोधक – न, नहीं, मत ।

(ऋ) अवधारणा बोधक – को, ही, मात्र, भर, तक, साथ।

संस्कृत क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

पूर्वक – ध्यान-पूर्वक, प्रेम-पूर्वक, इत्यादि।

वश – विधि-वश, भय-वश ।

इन (आ) – सुखेन, येन-केन-प्रकारेण, मनसा-वाचा-कर्मणा ।

या – कृपया, विशेषतया ।

अनुसार – रीत्यनुसार, शक्त्यनुसार ।

तः – स्वभावतः, वस्तुतः, स्वत: ।

दा – सर्वदा, सदा, यदा, कदा।

धा – बहुधा, शतधा, नवधा।

श: – क्रमशः, अक्षरशः।

त्र – एकत्र, सर्वत्र, अन्यत्र।

था – सर्वथा, अन्यथा।

वत – पूर्ववत्, तद्वत।

चित् – कदाचित्, किचित्।

मात्र – पति-मात्र, नाम-मात्र, लेश-मात्र।

हिंदी क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

ता, ते – दौडता, करता, बोलता, चलते, आते

ए – बैठा, भागा, लिए, उठाए. बैठे, चढ़े।

को – इधर को, दिन को, रात को, अंत को

से – धर्म से, मन से, प्रेम से, इधर से, तब से।

में – संक्षेप मे, इतने में, अंत में।

का – सवेरे का, कल का।

तक – आज तक, यहां तक, रात तक, घर तक।

कर, करके – दौडकर, उठकर, देखकर के, धर्म करके, भक्ति करके, क्योंकर।

भर – रातभर, पलभर, दिनभर।

नीचे लिखे प्रत्ययों और शब्दों से सार्वनामिक क्रियाविशेषण बनते हैं-

ए – ऐसे, कैसे, जैसे, जैसे, तैसे, थोड़े।

हाँ – यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, तहाँ।

धर – इधर, उधर, जिधर, किधर।

यो – यो, त्यों, ज्यो, क्यों।

लिए – इसलिए, जिसलिए, किसलिए।

ब – अब, तब, कब, जब।

स्रोत – हिंदी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

क्रिया Kriya

क्रिया Kriya

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परिभाषा

वे शब्द, जिनके द्वारा किसी कार्य का करना या होना पाया जाता है उन्हें क्रिया पद कहते हैं।

संस्कृत में क्रिया रूप को धातु कहते हैं, हिन्दी में उन्हीं के साथ ना लग जाता है जैसे लिख से लिखना, हँस से हँसना।

भेद

कर्म, प्रयोग तथा संरचना के आधार पर क्रिया के विभिन्न भेद किए जाते हैं –

1. कर्म के आधार पर क्रिया Kriya

कर्म के आधार पर क्रिया के मुख्यतः दो भेद किए जाते हैं (i) अकर्मक क्रिया (ii) सकर्मक क्रिया।

अकर्मक क्रिया

वे क्रियाएँ जिनके साथ कर्म प्रयुक्त नहीं होता तथा क्रिया का प्रभाव वाक्य के प्रयुक्त कर्त्ता पर पड़ता है, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे- कुत्ता भौंकता है।
सीता हँसती है।
गीता सोती है।
बालक रोता है।
आदमी बैठा है।

क्रिया परिभाषा भेद उदाहरण
क्रिया परिभाषा भेद उदाहरण

कुछ और अकर्मक क्रिया ऐसी हैं, जिनका प्रायः कभी कभी अकेले कर्त्ता से पूर्णतया प्रकट नहीं होता। कर्ता के विषय में पूर्ण विधान होने के लिए इन क्रियाओं के साथ कोई संज्ञा या विशेषण आता है। इन क्रियाओं को अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं और जो शब्द इनका आशय पूरा करने के लिए आते हैं उन्हें पूर्ति कहते हैं। “होना”, “रहना,” “बनना,” “दिखना”, “निकलना”, “ठहरना इत्यादि अपूर्ण अर्मक क्रियाएँ हैं। उदा०–“लड़का चतुर है।” साधु चोर निकला।” “नौकर वीर रहा ।” “आप मेरे मित्र ठहरे।” “यह मनुष्य विदेशी दिखता है। इन वाक्यों मे “चतुर”, “चोर”, “बीमार” आदि शब्द पूत्ति हैं।

सकर्मक क्रिया

वे क्रियाएँ, जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त कर्ता पर न पड़ कर कर्म पर पड़ता है। अर्थात् वाक्य में क्रिया के साथ कर्म भी प्रयुक्त हो, उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे- राम दूध पी रहा है।
सीता खाना बना रही है।

सकर्मक क्रिया के दो उपभेद किये जाते हैं

(अ) एक कर्मक क्रिया

जब वाक्य में क्रिया के साथ एक कर्म प्रयुक्त हो तो उसे एककर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे- विपिन खेल कर रहा है।

(आ) द्विकर्मक क्रिया

जब वाक्य में क्रिया के साथ दो कर्म प्रयुक्त हुए हों तो उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे – अध्यापक जी छात्रों को हिन्दी पढ़ा रहे हैं। इस वाक्य में पढ़ा रहे हैं क्रिया के साथ छात्रों एवम् हिन्दी दो कर्म प्रयुक्त हुए है अतः पढ़ा रहे हैं द्विकर्मक क्रिया है।

2. प्रयोग तथा संरचना के आधार पर क्रिया Kriya

वाक्य में क्रियाओं का प्रयोग कहाँ किया जा रहा है किस रूप में किया जा रहा है, इसके आधार पर भी क्रिया के निम्न भेद होते हैं

(I) सामान्य क्रिया

जब किसी वाक्य में एक ही क्रिया का प्रयोग हुआ हो, उसे सामान्य क्रिया कहते हैं। जैसे –

सुरेश जाता है।

मीता आई।

(ii) संयुक्त क्रिया

जो क्रिया दो या दो से अधिक भिन्नार्थक क्रियाओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे

चंपा ने खाना बना लिया।

राज ने पत्र लिख लिया।

(iii) प्रेरणार्थक क्रिया

वे क्रियाएँ, जिन्हें कर्ता स्वयं न करके दूसरों को क्रिया करने के लिए प्रेरित करता है, उन क्रियाओं को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे–

राहुल, विवेक से पत्र लिखवाता है।

अनीता, सविता से पानी मंगवाती है।

(iv) पूर्वकालिक क्रिया

जब किसी वाक्य में दो क्रियाएँ प्रयुक्त हुई हों तथा उनमें से एक क्रिया दूसरी क्रिया से पहले सम्पन्न हुई हो तो पहले सम्पन्न होने वाली क्रिया पूर्व कालिक क्रिया कहलाती है। जैसे-

धर्मेन्द्र पढ़कर सो गया।

यहाँ सोने से पूर्व पढ़ने का कार्य हो गया अतः पढ़कर क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाएगी। (किसी मूल धातु के साथ कर लगाने से पूर्वकालिक क्रिया बनती है।)

(V) नाम धातु क्रिया

वे क्रिया पद, जो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि से बनते है, उन्हें नामधातु क्रिया कहते हैं।

जैसे-रंगना, लजाना, अपनाना, गरमाना, चमकाना, गुदगुदाना।

(vi) कृदन्त क्रिया

वे क्रिया पद जो क्रिया शब्दों के साथ प्रत्यय लगने पर बनते हैं, उन्हें कृदन्त क्रिया पद कहते हैं जैसे

चल से चलना, चलता, चलकर।

लिख से लिखना, लिखता, लिखकर।

(vii) सजातीय क्रिया

वे क्रियाएँ, जहाँ कर्म तथा क्रिया दोनों एक ही धातु से बनकर साथ प्रयुक्त होती हैं। जैसे-भारत ने लड़ाई लड़ी।

(viii) सहायक क्रिया

किसी भी वाक्य में मूल क्रिया की सहायता करने वाले पद को सहायक क्रिया कहते है। जैसे-अरविन्द पढ़ता है। राजु ने अपनी पुस्तक मेज पर रख दी है। उक्त वाक्यों में है तथा दी है सहायक क्रिया हैं।

3. काल के अनुसार क्रिया Kriya

जिस काल में कोई क्रिया होती है, उस काल के नाम के आधार पर क्रिया का भी नाम रख देते हैं। अतः काल के अनुसार क्रिया तीन प्रकार की होती है

(i) भूतकालिक क्रिया

क्रिया का वह रूप, जिसके द्वारा बीते समय में (भूतकाल में) कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है। जैसे-

सुनीता गयी।
सौरभ खेल रहा था।

(ii) वर्तमानकालिक क्रिया

क्रिया का वह रूप जिसके द्वारा वर्तमान समय में कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है। जैसे-

प्रदीप खाना खाता है।

पूजा खाना बना रही है।

(iii) भविष्यत्कालिक क्रिया

क्रिया का वह रूप जिसके द्वारा आने वाले समय में कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है। जैसे –

मिताली कल जयपुर जायेगी।

रमेश विद्यालय जायेगा।

अकर्मक-सकर्मक क्रिया Kriya की पहचान का अचूक सूत्र

1 क्रिया से पहले क्या शब्द लगाकर प्रश्न बनाते हैं, यदि उत्तर आए तो वह क्रिया सकर्मक क्रिया होती है अन्यथा क्रिया अकर्मक होती है।

जैसे- लोग रामायण पढ़ते हैं।

उक्त वाक्य में पढ़ते हैं क्रिया पद है यदि इससे पहले क्या शब्द लगाकर एक प्रश्न बना लिया जाए तो प्रश्न बनेगा क्या पढ़ते हैं? तो इस प्रश्न का उत्तर हमें रामायण प्राप्त होता है इसलिए पढ़ने की क्रिया का फल लोग पद पर न पड़कर रामायण पर पड़ता है, इसलिए यहां क्रिया सकर्मक क्रिया है और रामायण इस वाक्य में कर्म पद है।

2 यदि क्या शब्द लगाकर प्रश्न करने पर प्रत्यक्ष उत्तर नहीं आता है लेकिन कोई काल्पनिक उत्तर आए तो भी क्रिया सकर्मक होगी।

यदि उत्तर में कर्ता ही प्राप्त होता है तो क्रिया सकर्मक नहीं होगी।

विद्यार्थी पढ़ते हैं।

उक्त वाक्य में क्रिया के साथ क्या लगाकर प्रश्न बनायें तो प्रश्न का कोई प्रत्यक्ष उत्तर नहीं प्राप्त होता है,

परन्तु इसका काल्पनिक उत्तर प्राप्त हो सकता है। अतः यहाँ पर सकर्मक क्रिया है।

3 प्रकृति द्वारा होने वाली क्रिया अथवा स्वतः होने वाली क्रियाएं सदैव अकर्मक होती है अथवा

जिस क्रिया का कोई कर्ता नहीं होता वह सदैव अकर्मक क्रिया होती है। जैसे-

फूल खिलता है।

उक्त वाक्य में जब क्या पद लगाकर प्रश्न बनाया जाएगा तो प्रश्न बनेगा क्या खिलता है?

वहां पर हमें इसका उत्तर प्राप्त नहीं होता है।

यदि हम इस प्रश्न का उत्तर फूल करेंगे तो फूल स्वयं कर्ता है कर्म नहीं है और दूसरी बात कि यह स्वतः होने वाली क्रिया है,

फूल स्वयं खिल रहा है, अतः यहां अकर्मक क्रिया होगी।

अन्य उदाहरण

बूंद-बूंद से घड़ा भरता है।
उक्त वाक्य में भी यदि क्या पद लगाकर प्रश्न बनाया जाए तो प्रश्न बनेगा क्या भरता है?

और इसका सीधा सा उत्तर मिलता है घड़ा भरता है।

परंतु घड़ा स्वतः भर रहा है उसको भरने वाला अर्थात उसका कोई कर्ता नहीं है

अतः स्वतः होने वाली क्रिया अकर्मक क्रिया होगी।

यदि इसी वाक्य को यह कर दिया जाए राम बूंद-बूंद से घड़ा भरता है।

तब राम इसका कर्ता हो जाएगा।

उस स्थिति में यह क्रिया सकर्मक क्रिया हो जाएगी।

कुछ क्रियाएँ प्रयोग के अनुसार सकर्मक और अकर्मक दोनो होती हैं, जैसे, खुजलाना, भरना, लजाना, भूलना, घिसना, बदलना, ऐठना, ललचाना, घबराना, इत्यादि । उदा०

“मेरे हाथ खुजलाते हैं ।” – अकर्मक क्रिया

“उसका बदन खुजलाकर उसकी सेवा करने में उसने कोई कसर नहीं की।” – सकर्मक क्रिया

“खेल-तमाशे की चीजें देखकर भोले भाले आदमिया का जी ललचाता है।” – अकर्मक क्रिया

“राकेश अपने सामान की खरीदारी के लिये मोहन को ललचाता है।” – सकर्मक क्रिया

“बूंद बूंद करके तालाब भरता है ।” – अकर्मक क्रिया

“प्यारी ने ऑँखें भरके कहा।” – सकर्मक क्रिया

“गेहूं पिसता है।“ – अकर्मक क्रिया

“गेहूं पीसता है।“ – सकर्मक क्रिया

इनको उभय-विध धातु कहते हैं।

स्रोत – हिन्दी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

क्रिया