जैन साहित्य ( Jain Sahitya ) की जानकारी
जैन साहित्य ( Jain Sahitya ) की जानकारी – जैन साहित्य ( Jain Sahitya ) की विशेषताएं, प्रमुख जैन कवि एवं आचार्य, जैन साहित्य का वर्गीकरण एवं जैन साहित्य की रास परंपरा आदि के बारे में इस पोस्ट में विस्तृत जानकारी मिलेगी।
हिंदी कविता के माध्यम से पश्चिम क्षेत्र (राजस्थान, गुजरात) दक्षिण क्षेत्र में जैन साधु ने अपने मत का प्रचार किया।
जैन कवियों की रचनाएं आचार, रास, फागु, चरित आदि विभिन्न शैलियों में प्राप्त होती है।
- ‘आचार शैली’ के जैन काव्यों में घटनाओं के स्थान पर उपदेशत्मकथा को प्रधानता दी गई है।
- फागु और चरितकाव्य शैली की सामान्यता के लिए प्रसिद्ध है।
- ‘रास’ शब्द संस्कृत साहित्य में क्रीड़ा और नृत्य से संबंधित था।
- भरत मुनि ने इसे ‘क्रीडनीयक’ कहा है।
- अभिनव गुप्त ने ‘रास’ को एक प्रकार का रूपक बना है।
- ‘रास’ शब्द लोकजीवन में श्रीकृष्ण की लीलाओं के लिए रूढ़ हो गया था, जो आज भी प्रचलित है।
- जैन साधुओं ने ‘रास’ को एक प्रभावशाली रचना शैली का रूप प्रदान किया।
- जैन तीर्थंकरों के जीवन चरित्र तथा विष्णु अवतारों की कथा जैन आदर्शों के आवरण में ‘रास’ नाम से पद्यबद्ध की गई।
‘रास’ परंपरा से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
- ‘रिपुदारणरास’ (संस्कृत भाषा) (डॉ. दशरथ ओझा ने इसका समय 905 ई. माना है।) – ‘रास’ परंपरा का प्राचीनतम ग्रंथ
- ‘उपदेशरसायनरास’ – ‘रास’ परंपरा का अपभ्रंश में प्रथम ग्रंथ
- ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ (1184 ई) – ‘रास’ परंपरा का हिंदी में प्रथम ग्रंथ
- ‘संदेश रासक’ (यह ग्रंथ जैन साहित्य से संबंधित नहीं बल्कि जन काव्य है।) – ‘रास’ परंपरा का प्रथम धर्मेतर रास ग्रंथ
- शालिभद्र सूरि-II – ‘रास’ परंपरा का हिंदी का प्रथम ऐतिहासिक रास ‘पंचपांडव चरित रास (1350 ई.)
जैन मत संबंधी रचनाएँ दो तरह की हैं
प्रायः दोहों में रचित ‘मुक्तक काव्य’ में अंतस्साधना, धर्म सम्मत व्यवहार व आचरण, उपदेश, नीति कर्मकांड, वर्ण व्यवस्था आदि से संबंधित खंडन मंडन की प्रवृत्ति पायी जाती है।
जैन तीर्थंकरों तथा पौराणिक जैन साधकों की प्रेरणादायी जीवन कथा या लोक प्रचलित हिंदू कथाओं को आधार बनाकर जैन मत का प्रचार करने के लिये ‘चरित काव्य’ आदि लिखे गए हैं।
कृष्ण काव्य को जैन साहित्य में ‘हरिवंश पुराण’ कहा गया है।
जैन साहित्य ( Jain Sahitya ) की विशेषताएं
- वर्ण्य विषय की विविधता (अलौकिकता के आवरण में प्रेमकथा, नीति, भक्ति इत्यादि)।
- बाह्यचारों (कर्मकाण्ड़ रूढ़ियों तथा परम्पराओं) का विरोध।
- चित्त शुद्धि पर बल।
- घटनाओं के स्थान पर उपदेशत्मकता का प्राधान्य।
- उपदेश मूलकता।
- शांत रस की प्रधानता।
- काव्य रूपों में विविधता (आचार, रास, फागु, चरित विविध शैलियां)।
- आदिकाल का सबसे प्रामाणिक और विश्वसनीय साहित्य।
- धार्मिक होने पर भी साहित्यिकता अक्षुण्ण है।
- तत्कालीन स्थितियों का यथार्थ चित्रण।
- आत्मानुभूति पर विश्वास।
- छंद वैविध्य (कड़वक, पट्पदी, चतुष्पदी, धत्ता बदतक, अहिल्य, बिलसिनी, स्कन्दक, दुबई, रासा, दोहा, उल्लाला, सोरठा, चउपद्य आदि )।
- अलंकार योजना (अर्थालंकारों में रूपक, उत्प्रेक्षा, व्यक्तिरेक, उल्लेख, अनन्वय, निदर्शना, विरोधाभास, स्वभावोक्ति, भ्रान्ति, सन्देह आदि शब्दालंन्कारों में श्लेष, यमक, और अनुप्रास की बहुलता है।)।
प्रमुख जैन कवि एवं आचार्य
आचार्य देव सेन
इनकी प्रमुख रचना ‘श्रावकाचार’ (933 ई.) है।
‘श्रावकाचार’ 250 दोहों का एक खंडकाव्य है, जिसमें श्रावकधर्म (गृहस्थ धर्म) का वर्णन है।
‘श्रावकाचार’ को हिंदी का प्रथम ग्रंथ माना जाता है।
अन्य रचनाएं
नयचक्र (लघुनयचक्र) ― सबसे प्रसिद्ध रचना
वृहद्नयचक्र (यह मूलतः दोहाबंध (अपभ्रंश भाषा) में था, किंतु बाद में माइल्ल धवल ने गाथाबंध (प्राकृत भाषा) में कर दिया।)
दर्शन सार
आराधना सार
तत्व सार
भाव संग्रह
सावयधम्म दोहा
शालिभद्र सूरि
शालिभद्र सूरि ने 1184 ईस्वी में ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ नामक ग्रंथ की रचना की।
यह 205 छंदों का खंडकाव्य है, जिसमें भगवान ऋषभ के पुत्र भरतेश्वर तथा बाहुबली के युद्ध का वर्णन है।
इसका संपादन मुनि जिनविजय ने किया है
मुनि जिनविजय ने ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ को जैन साहित्य की रास परंपरा का प्रथम ग्रंथ माना है।
शालिभद्र सूरि के ‘बुद्धि रास’ का संग्रह उनके शिष्य सिवि ने किया था।
शालिभद्र सूरि को गणपति चंद्रगुप्त ने हिंदी का प्रथम कवि माना है।
आसगु कवि
इनके द्वारा 1200 ई. में जालौर में ‘चंदनबाला रास’ नामक 35 छंदों के लघु खंडकाव्य की रचना की गई।
‘चंदनबाला रास’ चंपा नगरी के राजा दधिवाहन की पुत्री चंदनबाला की करुण कथा वर्णित है।
कथा के अंत में चंदनबाला का उद्धार भगवान महावीर द्वारा किया गया वर्णित है।
अंगीरस — करुण।
अन्य रचना — जीव दया रास।
जिनधर्मसूरि
इन्होंने 1209 ईस्वी में ‘स्थूलिभद्र रास’ नामक ग्रंथ की रचना की।
इस ग्रंथ में स्थूलिभद्र तथा कोशा नामक वेश्या की प्रेम कथा वर्णित है।
कोशा वेश्या के पास भोगलिप्त रहने वाले स्थूलिभद्र को कवि ने जैन धर्म की दीक्षा लेने के बाद मोक्ष का अधिकारी सिद्ध किया है।
इसकी भाषा अपभ्रंश प्रभावित हिंदी है।
सुमति गणि
सुमति गणि ने 1213 ई. में ‘नेमिनाथ रास’ की रचना की।
58 छंदों की इस रचना में नेमिनाथ तथा कृष्ण का वर्णन है।
इसकी भाषा अपभ्रंश प्रभावित राजस्थानी हिंदी है।
विजयसेन सूरि
उन्होंने 1231 ई. में ‘रेवंतगिरिरास’ नामक ग्रंथ लिखा।
इस ग्रंथ में नेमिनाथ की प्रतिमा तथा रेवंतगिरी नामक तीर्थ का वर्णन है।
विनयचंद्र सूरि
इनकी रचना ‘नेमिनाथ चउपई’ है।
चौपाई छंद में ‘बारहमासा’ का वर्णन इसी ग्रंथ से आरंभ माना जाता है।
अन्य रास काव्य एवं कवि
- आबूरास (1232 ई.)— पल्हण
- गय सुकुमार रास (14वीं शती) — देल्हण
- पुराण-सार — चंद्रमुनि
- योगसार — योगचंद्र मुनि
फागु काव्य
- ‘फागु’ बसंत ऋतु, होली आदि के अवसर पर गाया जाने वाला मादक गीत होता है।
- सर्वाधिक प्राचीन फागु-ग्रंथ जिनचंद सूरि कृत ‘जिनचंद सूरि फागु’ (1284 ई.) को माना जाता है। इसमें 25 छंद हैं।
- ‘स्थूलिभद्र फागु’ को इस काव्य परंपरा का सर्वाधिक सुंदर ग्रंथ माना गया है।
- ‘विरह देसावरी फागु‘ व ‘श्रीनेमिनाथ फागु‘ राजशेखर सूरि कृत इसी परंपरा के अन्य प्रसिद्ध ग्रंथ हैं।
- ‘बसंतविलास फागु’ धर्मेतर फागु ग्रंथ है।
जैन-साहित्य का वर्गीकरण
(1) चरित काव्य—
1. पउमचरिउ / पदमचरित, रिट्टणेमिचरिउ — स्वयंभू
2. तिरसठी महापुरिस गुणालंकार, जसहर चरिउ, णयकुमार चरिउ — पुष्पदंत
3 भविसयत्तकहा — घनपाल (11 वीं शती)
4 जम्बुसामि चरिउ — वीर (1019 ई.)
5. करकंड चरिउ — कनकामर मुनि (1065 ई.)
6. पास चरिउ / पार्श्वचरित — पद्मकीर्ति (1077 ई.)
7. पदमश्री चरित — घाहिल (1134 ई.)
8. सुदंसण चरिउ — नयनन्दी मुनि (1553 ई.)
(2) मुक्तक काव्य
1. परमात्म प्रकाश — योगीन्दु (10वीं शती )
2. योगसार — योगीन्दु (10वीं शती)
3 सावय धम्म दोहा, श्रावकाचार — देवसेन (990 वि.)
4. पाहुड़ दोहा — रामसिंह (10-11वीं शती)
5. वैराग्यसार — सुप्रभाचार्य (11-12वीं शती)
6. भावना संधि प्रकरण — जयदेवमुनि (11वीं शती)
7. कालस्वरूप कुलक उपदेश रसायन चाचरि — जिनदत्त सूरि (1131-1220)
8. संयम मंजरी — महेश्वर सूरि (1561 वि.)
9. कछूलीरास प्रज्ञातिलक (1306 ई.)
10. गयसुकुमालरास — दल्हण (14वीं शती)
11. जिनपद्मसूरि पट्टाभिषेक रास — सारमूर्ति (1333 ई.)
(3) जैन रास-काव्य
1. भरतेश्वर बाहुबली रास — शालिमद्रसूरि 1184 ई.
2. बुद्धिरास — शालिभद्रसूरि 1200 ई. –
3. चंदबालारास — आसगु 1200 ई.
4. जीवनदयारास — आसगु 1200 ई.
5. स्थूलिमद्ररास — जिनधर्मसूरि – 1209
6. रेवतगिरिरास — विजयसेन सूरि
7. आबूरास — पल्हण 1232 ई.
8. नेमिनाथरास — सुमतिगणि 1213 ई.
(4) जैन फागु-काव्य
1. जिनचंदसूरि फागु — जिनदत्त सूरी 1285 ई. यह (सबसे प्राचीन फागु है।)
2. सिरिथूलिभद्द (स्थूलिभद्र) फागु — जिनपद्म सूरि (1333 ई.)
3. नेमिनाथ फागु — राजशेखर सूरि (1348 ई.)
4. जम्बूस्वामी फागु — रचनाकाल एवं रचयिता अज्ञात
5. बसंतविलास फागु — रचयिता अज्ञात (1350 ई.) श्रृंगार रस का प्राधान्य।
5. अन्य
1. जय तिहुअण — अभयदेव सूरि
2. पुराण सार — चंद्रमुनि
3. संघपट्टक — जिन वल्लभ सूरि
4. कुमार पाल प्रतिबोध — सोमप्रभ सूरि
5. नेमिनाथ फाग — राजशेखर सूरि
6. जम्मू स्वामी रासा — धर्मसूरि
7. संघपति समरा रासा — अबदेव सूरि
8. उपदेश रसायन — जिनदत्त सूरि (80 पद्यो की इस रचना में 29 मात्राओं वाला रासक छंद प्रयुक्त हुआ है।)
नायक-नायिका भेद संबंधी रीतिकालीन काव्य-ग्रंथ
रीतिकालीन छंदशास्त्र संबंधी ग्रंथ
इस विषय पर आपने बहुत ही सुंदर पूर्वक व्याख्या की है और पढ़ने के बाद मुझे काफी ज्यादा अच्छा अनुभव मिला
BAHUT ACCHA NICE
Sir aapka content nahi khulta h ab