‘कोरोना’ का प्रकोप चल रहा है। पूरे देश में लाॅकडाउन का चौथा चरण शुरू हो गया है। आज धर्मपत्नी ने ‘टिक-टाॅक’ पर रेसिपी देखकर मुझसे कहा, ‘‘आज भटूरे बनाकर खिलाऊँगी।’’ उसकी यह बात सुनकर मेरे भी मुँह में पानी आ गया और मैंने भी आवेग में आकर कहा, ‘‘मैं भी आज इस रेसिपी बनाने में तुम्हारा हाथ बंटाता हूँ।’’
अब हमने भटूरे बनाने का कार्यक्रम का श्रीगणेश किया। धर्मपत्नी ने मैदा गूंथकर तेल गर्म किया। वह चकला-बेलन पर भटूरे बेलकर कड़ाही में भरे गर्म तेल में डालने लगी और मैंने तलने का काम शुरू किया।
अब बनने लगे तरह-तरह के भटूरे। कोई भटूरा तो फूलकर इतना गोल हो गया कि बाकी भटूरों से हलग हस्ती बनाकर बैठा है। कोई भटूरा इतना पिचक गया कि उसे कितना ही फुलाने का प्रयत्न करें, फूलना ही नहीं चाहता, शायद इस मोह-माया के संसार से विरक्त हो गया है।
कोई भटूरा तला नहीं है कच्चा रह गया है, यूँ लग रहा है दुनियादारी में इसकी पार कैसे पड़ेगी? कोई भटूरा इतना जल गया है कि स्वाद में कड़वा हो गया है, जो भी खाता है बाहर थूक देता है। कोई भटूरा एकदम छोटा रह गया है, अब बड़े-बड़े भटूरों के बीच असहज अनुभव कर रहा है। कोई भटूरा इतना गर्म है कि किसी को छूने भी नहीं दे रहा है। कोई बेचारा इतना ठण्डा है कि खाने में स्वाद ही नहीं आ रहा।
कोई भटूरा इतना कड़क हो गया है कि आम इंसान के बस की बात नहीं कि उसका एक कौर भी तोड़कर खाले। कोई इतना नरम कि हर कोई उसे तोड़कर खा ले।
खैर, इन तरह-तरह के भटूरों को देखकर मैं आजकल के लोगों के बारे में सोच रहा था कि इतने में धर्मपत्नी ने कहा, ‘‘भटूरे ठण्डे हो जाएंगे, अभी खा लो, नहीं तो स्वादिष्ट नहीं रहेंगे।’’
मैंने आनन्दपूर्वक छोले-भटूरे खाये। लाॅकडाउन में घर के अंदर बना होटल जैसा खाना खाकर मन तृप्त हो गया और मैंने छोले-भटूरों के लिए धर्मपत्नी को धन्यवाद दिया। धर्मपत्नी भी प्रशंसा पाकर खुश हो गई।
विज्ञान तथा प्रकृति (Science and Nature) भौतिक विज्ञान के व्याख्याता राजमीत ‘इंसां’ द्वारा रचित प्रसिद्ध रचनाएं।
प्रकृति एक ऐसा शब्द जो मानव जीवन का आधार है, मानव जीव का पूरक है, मानव जीवन की कल्पना भी प्रकृति के बिना असंभव है। इन सब बातों को समेकित रूप में कहा जा सकता है कि मानव भी प्रकृति का ही एक अंश है या यूं कहें कि मानव भी प्रकृति ही है। अब बर्फ को भला पानी से अलग कैसे कर सकते हैं? पानी से ही बर्फ का अस्तित्व है या यूं कहें कि बर्फ भी असल में पानी ही है।
प्रकृति की परिभाषा क्या है?
अब बात आती है कि प्रकृति की परिभाषा क्या है? प्रकृति को यदि हम निहारने बैठें तो किसी भी स्थूल या सूक्ष्म को प्रकृति से अलग नहीं किया जा सकता। भले बात करें वायु की, भले जल की, भले प्रकाश, अन्न, मिट्टी की, भले पक्षियों, जीव-जंतुओं की, भले कीड़े-मकौड़ों की, भले पहाड़ों, नदियों, चट्टानों की, भले ग्रह-नक्षत्र, सूर्य, पृथ्वी, चाँद, तारों की, भले अणु-परमाणु की, भले किसी बैक्टीरिया, वायरस, जीवाणु की, ये सब प्रकृति के ही अंश है।
मेरे मतानुसार ‘‘इस ब्रह्माण्ड में हमारे चारों ओर जो भी हमें देख, सुन या महसूस कर सकते हैं तथा जो भी हम देख, सुन या महसूस नहीं भी कर सकते वह सब प्रकृति है, और हम स्वयं भी प्रकृति ही हैं।’’
अब सवाल आता है कि यह प्रकृति कहाँ से आयी, किसने बनायी, तो इसका जवाब आज तक विज्ञान को तो मिला नहीं है, परंतु हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों, ऋषि-मुनियों ने इस प्रकृति की रचना करने वाले को परमात्मा, ईश्वर, गाॅड, खुदा, रब्ब, अदृश्य शक्ति, प्रकाश पुंज इत्यादि नामों से संबोधित किया है।
विज्ञान तथा प्रकृति Science and Nature : विज्ञान का अर्थ या परिभाषा
अब बात आती है मानव और प्रकृति के संबंध की। जैसा कि बताया जा चुका है कि मानव प्रकृति पर पूरी तरह निर्भर है। मानव की एक और बड़ी विशेषता है कि वह हमेशा अपने आसपास की चीजों, वातावरण का निरीक्षण जरूर करता है और फिर उसका अध्ययन कर उससे फायदा लेने की कोशिश करता है। मानव की इसी जिजीविषा ने ‘विज्ञान’ को जन्म दिया है। विज्ञान की एक सर्वसामान्य सी परिभाषा जो प्रचलित है, और वह सही भी है कि ‘‘प्रकृति का क्रमबद्ध, तार्किक और प्रयोगों से प्रमाणित अध्ययन ही विज्ञान है।’’
आज हम विज्ञान की बात करें तो विज्ञान का आधार अध्ययन है। मनुष्य की प्रत्येक गतिविधि जो उसके जीवन जीने को सरलता प्रदान करती है तथा आवश्यक है, विज्ञान है। एक मनुष्य सब कुछ होते हुए भी नंगे पाँव सड़क पर पैदल चल रहा है तथा दूसरे ने चप्पल पहन रखी है तो दूसरा व्यक्ति विज्ञान की समझ रखने वाला कहा जाएगा।
विज्ञान तथा प्रकृति Science and Nature : लाभ या नुकसान
वर्तमान में विज्ञान के जितने भी आविष्कारों पर नजर दौड़ायें तो सबका आधार प्रकृति ही है, चाहे वह छोटा आविष्कार हो या बड़ा। मानव ने प्रकृति को ही समझा, प्रकृति से ही संसाधन जुटाए तथा प्रकृति के इसी अध्ययन से आविष्कार कर डाले। अब यह आविष्कार मानव को लाभ पहुंचा रहें हैं या नुकसान, यह बात हम बाद में करेंगे।
आज भले हम सुई को देखें या पानी के जहाज को, घर में लगे पंखे को या एसी को, या सड़क पर दौड़ती कार को, मोबाइल को, एक्स-रे मशीन को देखें या ओवर हैड प्रोजेक्टर को, चन्द्रयान को देखें या सोलर ऊर्जा से चलने वाले उपकरणों को, सब प्रकृति का ही अध्ययन है और प्रकृति से ही बने हैं।
विज्ञान तथा प्रकृति Science and Nature : विकास या विनाश
भौतिकी, रसायन, खगोलिकी, जीव विज्ञान, भूगोल आदि विज्ञान की यह सब शाखाएं प्रकृति के ही अलग-अलग रूपों का अध्ययन है। एक तरफ विज्ञान के ये आविष्कार मानव जाति को एक नया आयाम या सुविधाएं प्रदान कर रहें हैं तो दूसरी ओर विनाश का भी कारण बन रहे हैं। आविष्कार तो आविष्कार है, अब यह हमारे लिए लाभप्रद होगा या हानिकारक यह निर्भर करता है उस आविष्कारक और उसका उपयोग करने वाले मानव की प्रकृति पर। बस यहाँ भी बात प्रकृति की ही आ जाती है। नाभिकीय ऊर्जा से भले बिजली उत्पादन कर देश का विकास कर लो या फिर परमाणु बम बनाकर सृष्टि का विनाश, यह निर्भर करता है मानव प्रकृति पर।
विज्ञान ने मनुष्य जाति को बहुत कुछ दिया है और दे रही है। बेहतर हो, हम विज्ञान का उपयोग मानव जाति के कल्याण के लिए करें। विज्ञान के आविष्कारों से हम उस प्रकृति को और बेहतर बनायें जिस प्रकृति से यह विज्ञान आया है और जो प्रकृति हमारा आधार है। यह सब तभी संभव है जब हम सबकी प्रकृति सकारात्मक रहे।