सूर्य ग्रहण Surya Grahan

सूर्य ग्रहण Surya Grahan

सूर्य ग्रहण Surya Grahan का अर्थ, सूर्य ग्रहण का महत्त्व, सूर्य ग्रहण के दौरान सावधानियाँ, आंशिक वलयाकार एवं पूर्ण सूर्य ग्रहण, छाया व उपच्छाया आदि की जानकारी

ग्रहण का अर्थ

ग्रहण एक प्रकार की महत्त्वपूर्ण खगोलीय घटना है,

यह मुख्यतः तब घटित होती है जब एक खगोल-काय जैसे चंद्रमा अथवा ग्रह किसी अन्य खगोल-काय की छाया के बीच में आ जाता है।

पृथ्वी पर मुख्यतः दो प्रकार के ग्रहण होते हैं-

पहला सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) और दूसरा चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse)

सूर्य ग्रहण Surya Grahan का अर्थ

चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक कक्षा में घूमता है और उसी समय पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।

इस परिक्रमा के दौरान कभी-कभी चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है।

खगोलशास्त्र में इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।

इस दौरान सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता और पृथ्वी की सतह के कुछ हिस्से पर दिन में अँधेरा छा जाता है।

सूर्य ग्रहण तभी होता है जब चंद्रमा अमावस्या को पृथ्वी के कक्षीय समतल के निकट होता है।

चंद्र ग्रहण सदैव पूर्णिमा की रात को होता है, जबकि सूर्य ग्रहण अमावस्या की रात को होता है।

सूर्य ग्रहण मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-

  1. आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse)
  2. वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular Solar Eclipse)
  3. पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse)।

आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse)

जब चंद्रमा की परछाई सूर्य के पूरे भाग को ढकने की बजाय किसी एक हिस्से को ही ढके तब आंशिक सूर्य ग्रहण होता है।

इस दौरान सूर्य के केवल एक छोटे हिस्से पर अंधेरा छा जाता है।

वलयाकार सूर्य ग्रहण (Annular Solar Eclipse)

वलयाकार सूर्य ग्रहण की यह स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता है तथा इसका आकार छोटा दिखाई देता है।

इस दौरान चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह से ढक नहीं पाता है, और सूर्य एक अग्नि वलय (Ring of Fire) की भाँति प्रतीत होता है।

पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse)

पूर्ण सूर्य ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं,

इसके कारण पृथ्वी के एक भाग पर पूरी तरह से अँधेरा छा जाता है।

यह स्थिति तब बनती है जब चंद्रमा, पृथ्वी के निकट होता है।

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सूर्य ग्रहण अर्थ महत्त्व

सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के एक सीधी रेखा में होने के कारण, जो लोग पूर्ण सूर्य ग्रहण को देख रहे होते हैं वे इस चंद्रमा की छाया क्षेत्र के केंद्र में होते हैं।

छाया और उपच्छाया : सूर्य ग्रहण Surya Grahan

सूर्य ग्रहण की स्थिति में पृथ्वी पर चंद्रमा की दो परछाइयाँ बनती हैं

जिसमें से पहली को छाया (Umbra) और दूसरी को उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं।

छाया (Umbra):

इसका आकार पृथ्वी पर पहुँचते हुए काफी छोटा हो जाता है और इसके क्षेत्र में खड़े लोगों को ही पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।

उपच्छाया (Penumbra):

इसका आकार पृथ्वी पर पहुँचते हुए बड़ा होता जाता है और इसके क्षेत्र में खड़े लोगों को आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।

सूर्य ग्रहण का महत्त्व : सूर्य ग्रहण Surya Grahan

सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) सूर्य (Sun) की शीर्ष परत अर्थात कोरोना का अध्ययन करने हेतु काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं ।

इस प्रकार की खगोलीय घटनाओं को समझना काफी महत्त्वपूर्ण है,

क्योंकि ये पृथ्वी समेत सौर प्रणाली के शेष सभी हिस्सों को प्रभावित करते हैं।

सदियों पूर्व ग्रहण के दौरान चंद्रमा का अध्ययन कर वैज्ञानिकों ने यह पाया था कि पृथ्वी का आकार गोल है।

वैज्ञानिकों द्वारा चंद्रमा की सतह का विस्तार से अध्ययन करने के लिये ग्रहण का उपयोग किया जा रहा है।

सूर्य ग्रहण के दौरान सावधानियाँ : सूर्य ग्रहण Surya Grahan

पूर्ण सूर्य ग्रहण की अल्पावधि के दौरान जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है तो इस घटना के दौरान सूर्य को प्रत्यक्ष रूप से देखना हानिकारक नहीं होता है, हालाँकि यह अवधि इतनी अल्प होती है कि यह जानना कि कब सुरक्षा उपकरण का प्रयोग करना है और कब नहीं, यह काफी महत्त्वपूर्ण होता है।

इसके विपरीत आंशिक सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण को बिना उपयुक्त तकनीक तथा यंत्रों के नहीं देखा जाना चाहिये,

यह हमारी आँखों के लिये काफी नुकसानदायक होता है।

सूर्य ग्रहण को आँखों में बिना कोई उपकरण लगाए देखना खतरनाक साबित हो सकता है

जिससे स्थायी अंधापन या रेटिना में जलन हो सकती है जिसे सोलर रेटिनोपैथी (Solar Retinopathy) कहते हैं।

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