भगवती चरण वर्मा का जीवन परिचय
भगवती चरण वर्मा जीवन-परिचय, भगवती चरण वर्मा का साहित्य परिचय, कविताएं, रचनाएं, उपन्यास, पुरस्कार सम्मान, विशेष तथ्य
जन्म -30 अगस्त, 1903
जन्म भूमि- उन्नाव ज़िला, उत्तर प्रदेश
मृत्यु -5 अक्टूबर, 1981
विषय- उपन्यास, कहानी, कविता, संस्मरण, साहित्य आलोचना, नाटक, पत्रकार।
विद्यालय -इलाहाबाद विश्वविद्यालय
शिक्षा – बी.ए., एल.एल.बी.
प्रसिद्धि – उपन्यासकार
काल- आधुनिककाल
काव्यधारा- व्यक्ति चेतना प्रधान काव्यधारा या हालावाद
भगवती चरण वर्मा का साहित्य परिचय
भगवती चरण वर्मा की रचनाएं
उपन्यास
पतन (1928),
चित्रलेखा (1934),
तीन वर्ष,
टेढे़-मेढे रास्ते (1946)
अपने खिलौने (1957),
भूले-बिसरे चित्र (1959),
वह फिर नहीं आई,
सामर्थ्य और सीमा (1962),
थके पाँव,
रेखा,
सीधी सच्ची बातें,
युवराज चूण्डा,
सबहिं नचावत राम गोसाईं, (1970)
प्रश्न और मरीचिका, (1973)
धुप्पल,
चाणक्य
कहानी-संग्रह
मोर्चाबंदी
कविता-संग्रह
मधुकण (1932)
‘प्रेम-संगीत'(1937)
‘मानव’ (1940)
नाटक
वसीहत
रुपया तुम्हें खा गया
संस्मरण
अतीत के गर्भ से
विशेष तथ्य
‘मस्ती, आवेश एवं अहं ‘ उनकी कविताओं के केंद्र बिंदु माने जाते हैं|
उनकी रचनाएं 1917 ईस्वी से ही ‘प्रताप’ पत्र में प्रकाशित होने लगी थी|
इन्होने प्रताप पत्र का संपादन भी किया|
चित्रलेखा उपन्यास की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है-पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है ? इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नांबर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमश: सामंत बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नांबर की टिप्पणी है, ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।
पुरस्कार सम्मान : भगवती चरण वर्मा जीवन-परिचय
1961 में ‘भूले बिसरे चित्र’ उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरूस्कार से पुरूस्कृत किया गया।
वर्ष 1969 में इन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से अलंकृत किया गया।
आदरणीय वर्मा जी वर्ष 1978 में भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा के लिये चुने गये।
इन्हे पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
प्रसिद्ध पंक्तियां
“मैं मुख्य रूप से उपन्यासकार हूँ, कवि नहीं-आज मेरा उपन्यासकार ही सजग रह गया है, कविता से लगाव छूट गया है।”
“किस तरह भुला दूँ, आज हाय,
कल की ही तो बात प्रिये!
जब श्वासों का सौरभ पीकर,
मदमाती साँसें लहर उठीं,
जब उर के स्पन्दन से पुलकित
उर की तनमयता सिरह उठी,
मैं दीवाना तो ढूँढ रहा
हूँ वह सपने की रात प्रिये!
किस तरह भुला दूँ आज हाय
कल की ही तो है बात प्रिये!”