सुमित्रानंदन पंत

सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय

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Sumitranandan Pant
Sumitranandan Pant

मूल नाम – गुसाईं दत्त

जन्म- 20 मई 1900

जन्म भूमि- कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत

मृत्यु -28 दिसंबर, 1977

मृत्यु स्थान -इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

कर्म भूमि- इलाहाबाद

कर्म-क्षेत्र – अध्यापक, लेखक, कवि

विषय- गीत, कविताएँ

भाषा -हिन्दी

विद्यालय -जयनारायण हाईस्कूल, म्योर सेंट्रल कॉलेज

काल- आधनिक काल (छायवादी युग)

आंदोलन- रहस्यवाद व प्रगतिवाद

सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय

कविता संग्रह / खंडकाव्य:- पंत जी द्वारा रचित काव्य को मुख्यतः निम्न चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:-

1. छायावादी रचनाएं(1918-1943)

उच्छ्वास (1920)

ग्रन्थि (1920)

पल्लव (1926)

वीणा (1927, 1918-1919 की कविताएँ संकलित)

गुंजन (1932)

2. प्रगतिवादी रचनाएं(1935-1945)

युगांत (1936)
युगवाणी (1938)
ग्राम्‍या (1940)

3. अरविंद दर्शन से प्रभावित रचनाएं (1946-1948)[अंतश्चेतनावादी युग]

स्वर्णकिरण (1947)
स्वर्णधूलि (1947)
उत्तरा (1949)
युगपथ (1949)

4.मानवतावादी (अाध्यात्मिक) रचनाएं (1949 ई. के बाद) [नव मानवता वादी युग]

अतिमा (1955)

वाणी (1957)

चिदंबरा (1958)

पतझड़ (1959)

कला और बूढ़ा चाँद (1959)

लोकायतन (1964, महाकाव्य)(दो खंड एवं सात अध्यायों मे विभक्त)

गीतहंस (1969)

सत्यकाम (1975, महाकाव्य)

पल्लविनी

स्वच्छंद (2000)

मुक्ति यज्ञ

युगांतर

तारापथ

मानसी

सौवर्ण

अवगुंठित

मेघनाद वध

चुनी हुई रचनाओं के संग्रह

युगपथ (1949)

चिदंबरा (1958)

पल्लविनी

स्वच्छंद (2000)

काव्य-नाटक/काव्य-रूपक

ज्योत्ना (1934)

रजत-शिखर (1951)

शिल्पी (1952)

आत्मकथात्मक संस्मरण

साठ वर्ष : एक रेखांकन (1963)

आलोचना

गद्यपथ (1953)

शिल्प और दर्शन (1961)

छायावाद : एक पुनर्मूल्यांकन (1965)

कहानियाँ

पाँच कहानिय़ाँ (1938)

उपन्यास

हार (1960)

अनूदित रचनाओं के संग्रह

मधुज्वाल (उमर ख़ैयाम की रुबाइयों का फारसी से हिन्दी में अनुवाद)

संयुक्त संग्रह

खादी के फूल / सुमित्रानंदन पंत और बच्चन का संयुक्त काव्य-संग्रह

पत्र-संग्रह

पंत के सौ पत्र (1970, सं. बच्चन)

पत्रकारिता

1938 में उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक प्रगतिशील मासिक पत्र निकाला।

पुरस्कार व सम्मान

1960 ‘कला और बूढ़ा चांद’ पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’

1961 ‘पद्मभूषण’ हिंदी साहित्य की इस अनवरत सेवा के लिए

1968 ‘चिदम्बरा’ नामक रचना पर ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’

‘लोकायतन’ पर ‘सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार’

विशेष तथ्य

पंत जी की सर्वप्रथम कविता- गिरजे का घंटा 1916

छायावाद का ‘घोषणा पत्र ‘(मेनिफेस्टो) पंत द्वारा रचित ‘पल्लव’ रचना की भूमिका को कहा जाता है|

पंत की सर्वप्रथम छायावादी रचना -उच्छ्वास 1920

युगांत रचना पंत जी के छायावादी दृष्टिकोण की अंतिम रचना मानी जाती है|

युगवाणी रचना में पंत जी ने प्रगतिवाद को ‘युग की वीणा’ बतलाया है|

पंत को छायावाद का विष्णु कहा जाता है|

आचार्य नंददुलारे वाजपेयी इनको छायावाद का प्रवर्तक मानते हैं|

रामचंद्र शुक्ल इनको छायावाद का प्रतिनिधि कवि मानते हैं|

रोला इनका सर्वप्रिय प्रिय छंद माना जाता है|

प्रकृति के कोमल पक्ष अत्यधिक वर्णन करने के कारण इन को प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा जाता है|

महर्षि अरविंद दवारा रचित ‘भागवत जीवन’ से यह इतने प्रभावित हुए थे कि उनकी जीवन दशा ही बदल गई|

इन्हे ‘रावणार्यनुज’ भी कहा जाता है|

यह अपनी सूक्ष्म कोमल कल्पना के लिए अधिक प्रसिद्ध है मूर्त पदार्थों के लिए अमूर्त उपमान देने की परंपरा पंत जी के द्वारा ही प्रारंभ की हुई मानी जाती है|

पंतजी भाषा के प्रति बहुत सचेत थे उनकी रचनाओं में प्रकृति की जादूगरी जिस भाषा में अभिव्यक्त हुई है उसे समय पंत ‘चित्र भाषा(बिबात्मक भाषा)’ की संज्ञा देते हैं|

प्रसिद्ध पंक्तियां

– “मुझे छोड़ अनगढ़ जग में तुम हुई अगोचर,
भाव-देह धर लौटीं माँ की ममता से भर !
वीणा ले कर में, शोभित प्रेरणा-हंस पर,
साध चेतना-तंत्रि रसौ वै सः झंकृत कर
खोल हृदय में भावी के सौन्दर्य दिगंतर !”

– “सुन्दर है विहग सुमन सुन्दर, मानव तुम सबसे सुन्दरतम।
वह चाहते हैं कि देश, जाति और वर्गों में विभाजित मनुष्य की केवल एक ही पहचान हो – मानव।”

-छोडो़ द्रुमों की मृदु छाया, तोडो प्रकृति की भी माया|
बाले तेरे बाल-जाल में, कैसे उलझा दूँ लोचन||”

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार