संघ लोक सेवा आयोग

संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission)

ऐतिहासिक परिदृश्य

सन् 1855 तक भारतीय ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए सिविल सेवकों की भर्ती कम्पनी के उच्चाधिकारियों द्वारा कि जाती थी
और इसके बाद में उन्हें लंदन के हेलीबरी कॉलेज में प्रशिक्षण दे कर भारत भेजा जाता था।

भारत में, योग्यता आधारित आधुनिक सिविल सेवा की अवधारणा 1854 में ब्रिटिश संसद कीलॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता वाली प्रवर समिति की रिपोर्ट के बाद स्पष्ट हुई।

रिपोर्ट में यह अनुशंसा की गई थी कि
भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की संरक्षण आधारित प्रणाली के स्थान पर प्रतियोगी परीक्षा के द्वारा प्रवेश के साथ योग्यता आधारित स्थायी सिविल सेवा प्रणाली लागू की जानी चाहिए।

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इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु, 1854 में लंदन में सिविल सेवा आयोग की स्थापना की गई तथा
प्रतियोगी परीक्षाएं 1855 में प्रारम्भ की गयी।

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प्रारम्भ में भारतीय सिविल सेवा के लिए परीक्षाओं का आयोजन सिर्फ लंदन में किया जाता था।
जिसके लिए अधिकतम आयु 23 वर्ष तथा न्यूनतम आयु 18 वर्ष थी।
पाठ्यक्रम इस प्रकार निर्धारित किया जाता था कि उसमें सर्वाधिक अंक यूरोपियन क्लासिकी
के थे जिससे भारतीय अभ्यर्थियों के लिए ये परीक्षाएं कठिन हो जाती थी।
परंतु फिर भी, रवीन्द्रनाथ टैगोर के भाई सत्येन्द्र नाथ टैगोर पहले भारतीय थे,
जिन्होंने 1864 में, सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्त की।

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तीन वर्ष पश्चात 4 अन्य भारतीयों ने भी सफलता प्राप्त की।
ब्रिटिश सरकार नहीं चाहती थी कि बड़ी संख्या में भारतीय इन परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करेंऔर भारतीय सिविल सेवा में प्रवेश करें।

अगले 50 वर्षों तक, भारतीयों ने इंग्लैंड के साथ-साथ भारत में भी परीक्षाएं आयोजित करने हेतु निवेदन किया
परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली।

प्रथम विश्व युद्ध तथा मान्टेग्यूचैम्सफोर्ड सुधारों के पश्चात1922 से भारतीय सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन भारत में भी होने लगा, सबसे पहले इलाहाबाद में तथा बाद में फेडरल लोक सेवा आयोग की स्थापना के साथ ही दिल्ली में भी इन परीक्षाओं का आयोजन आरम्भ हुआ।

लंदन में हो रही परीक्षा का आयोजन सिविलसेवा आयोग ही कर रहा था।
इसी प्रकार, स्वतंत्रतापूर्व भारतीय (शाही) पुलिस के उच्चाधिकारियों की नियुक्ति सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा प्रतियोगिता-परीक्षा के माध्यम से की जाती थी।

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सेवा के लिए इस तरह की प्रथमखुली प्रतियोगिता का आयोजन जून 1893, में
इंगलैंड में हुआ तथा 10 श्रेष्ठ उम्मीदवारों को परीवीक्षाधीन सहायक पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया।

शाही पुलिस में भारतीयों का प्रवेश 1920 के बाद ही आरम्भ हुआ तथा
बाद के वर्षों में सेवा हेतु परीक्षाओं का आयोजन इंगलैंड तथा भारत दोनों ही जगह होने लगा।
इस्लिंग्टन आयोग तथा ली आयोग की घोषणा तथा सिफारिशों के बावजूद पुलिस सेवा के भारतीयकरण की गति बहुत धीमी थी।

1931 तक पुलिस अधीक्षकों के कुलपदों के 20% पर ही भारतीय नियुक्त थे।
तथापि, सुयोग्य यूरोपियन उम्मीदवारों के उपलब्ध न होने के कारण 1939 के बाद से और अधिक भारतीयों को भारतीय पुलिस में नियुक्त किया गया ।

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1864 में तात्कालिक ब्रिटिश भारतीय सरकार ने शाही वन विभाग की शुरुआत की
तथा 1867 में शाही वन सेवा का गठन किया गया।

1920 में, यह निश्चय किया गया कि शाही वन सेवा के लिए आगामी भर्ती इंगलैंड तथा भारत में सीधी भर्ती तथा
भारत में प्रांतीय सेवा से पदोन्नति द्वारा की जाएगी।

स्वतंत्रता के पश्चात, अखिल भारतीय सेवा अधिनियम 1951 के तहत 1966 में भारतीय वनसेवा की स्थापना की गई।

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1887 में, एटचीन्सन आयोग ने नए पैटर्न पर सेवाओं के पुनर्गठन की सिफारिश की तथा सेवाओं को शाही,
प्रांतीय तथा अधीनस्थ- तीन वर्गों में बांटा।

शाही सेवाओं के भर्ती तथा नियंत्रण प्राधिकारी ‘सेक्रेटरी ऑफ स्टेट थे।
प्रारम्भ में, इन सेवाओं हेतु ज्यादातर ब्रिटिश उम्मीदवार ही भर्ती किए जाते थे।

प्रांतीय सेवाओं के लिए नियुक्ति तथा नियंत्रण प्राधिकारी संबंधित प्रांतीय सरकार थी,
जिसने भारत सरकार के अनुमोदन से इन सेवाओं के लिए नियम बनाए।

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भारत के अधिनियम 1919, पारित होने के साथ ही भारत के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट की अध्यक्षता में संचालित शाही सेवाएं दो भागों- अखिल भारतीय सेवाएं तथा केन्द्रीय सेवाएं में बंट गई।

केन्द्रीय सेवाओं का संबंध केन्द्र सरकार के सीधे नियंत्रण वाले मामलों से था।
केन्द्रीय सचिवालय के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण सेवाएं थी- रेलवे सेवाएं, भारतीय डाक तथा तार सेवातथा शाही सीमा शुल्क सेवा।

इनमें से कुछ के लिए, सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ही नियुक्तियां करते थे,
परंतु ज्यादातर मामलों में इनके सदस्य भारत सरकार द्वारा नियुक्त तथा  नियंत्रित किए गए ।

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भारत में लोक सेवा आयोग का उद्गम भारतीय संवैधानिक सुधारों पर भारत सरकार के 5 मार्च, 1919 की प्रथम विज्ञप्ति में पाया जाता है।

अधिनियम की धारा 96(सी) में भारत में लोक सेवा आयोग की स्थापना की व्यवस्था है
जो “भारत में लोक सेवाओं के लिए भर्ती तथा नियंत्रण संबंधी ऐसे प्रकार्यों को वहन करेगा
जो उसे परिषद में सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा निर्दिष्ट नियमावली के अंतर्गत सौंपे जाएंगे।”

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भारत सरकार अधिनियम, 1919 के पारित होने के बाद, स्थापित होने वाले निकाय के कार्यों तथा तंत्र को लेकर विभिन्न स्तरों पर लम्बे समय तक पत्राचार होने के बावजूद निकाय की स्थापना को लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ।

बाद में यह विषय भारत में उच्च सिविल सेवाओं पर बने रॉयल आयोग (जिसे ली आयोग भी कहते हैं) को भेज दिया गया।

ली आयोग ने, 1924 में अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की कि भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अंतर्गत विचार किए गए सांविधिक लोक सेवा आयोग की स्थापना बिना किसी देरी के की जाए।

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भारत सरकार अधिनियम, 1919 की धारा 96(सी) के प्रावधानों तथा लोक सेवा आयोग की जल्द स्थापना को लेकर ली आयोग द्वारा 1924 में की गई जोरदार सिफारिशों के बाद भी भारत में पहली बार लोक सेवा आयोग की स्थापना 1 अक्तूबर, 1926 को की गई।

इसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त 4 सदस्य भी थे।
यूनाइटेड किंगडम के गृह सिविल सेवा के एक सदस्य,
रॉस बार्कर आयोग के प्रथम अध्यक्ष बने।

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भारत सरकार अधिनियम, 1919 में लोक सेवा आयोग के कार्यों का उल्लेख नहीं था,
परंतु इसके कार्य भारत सरकार अधिनियम, 1919 की धारा 96(सी) की उपधारा (2) के अंतर्गत बनाई गई लोक सेवा आयोग (प्रकार्य) नियमावली, 1926 द्वारा विनियमित थे।

इसके अतिरिक्त, भारत सरकार अधिनियम, 1935 में फेडरेशन के लिए लोक सेवा आयोग तथा प्रत्येक प्रांत अथवा प्रांतों के समूहों के लिए प्रांतीय लोक सेवा आयोग पर विचार किया गया।

अतः, भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल, 1937 से प्रभावी होने के साथ ही लोक सेवा आयोग, फेडरल लोक सेवा आयोग बन गया ।

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26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान के प्रारंभ के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 378 के खंड(l) के आधार पर फेडरल लोक सेवा आयोग, संघ लोक सेवा आयोग के रूप में पहचाना जाने लगा था फेडरल लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य बन गए।

संघ लोक सेवा आयोग का परिचय

संघ लोकसेवा आयोग एक संवैधानिक संस्‍था है,
जिसे प्रतियोगिता परीक्षाओं के आयोजन के साथ-साथ साक्षात्‍कार के माध्‍यम से चयन करने,
पदोन्‍नति पर नियुक्‍ति तथा प्रतिनियुक्‍ति पर स्‍थांनातरण के लिए अधिकारियों की उपयुक्‍तता के बारे में सलाह देने,
विभिन्‍न सेवाओं में भर्ती की पद्धति से संबंधित सभी मामलों में सरकार को परामर्श देने,
भर्ती नियम बनाने और संशोधन करने,
विभिन्‍न सिविल सेवाओं से संबंधित अनुशासनिक मामलें,
असाधारण पेंशन प्रदान करने संबंधी विविध मामले,
विधिक व्‍यय आदि की प्रतिपूर्ति,
भारत के महामहिम राष्ट्रपति महोदय द्वारा भेजे गए किसी मामले पर सरकार को सलाह देने और किसी राज्‍य के राज्यपाल द्वारा अनुरोध किए जाने पर उस राज्‍य में किसी या सभी आवश्‍यकताओं को महामहिम राष्‍ट्रपति महोदय के अनुमोदन के पश्‍चात पूरा करने का दायित्‍व सौंपा गया है।

 

अपने संवैधानिक दायित्‍वों को पूरा करने के लिए आयोग की सहायता के लिए अधिकारी/कर्मचारी होते है,
जिन्‍हें सामान्‍यत: आयोग के सचिवालय के रूप में जाना जाता है एवं जिसके प्रधान सचिव महोदय होते है।

आयोग की प्रशासनिक शाखा को आयोग के माननीय अध्‍यक्ष महोदय/  सदस्‍यों तथा अन्‍य अधिकारियों/ कर्मचारियों के वैयक्‍तिक मामले देखने के साथ-साथ आयोग सचिवालय के कार्य की व्‍यवस्‍था करने का दायित्‍व सौंपा गया है।

संघ लोक सेवा आयोग का गठन

अनुच्छेद– 315 (संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग)

संविधान का अनुच्छेद 315 संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के लिए एक लोक सेवा आयोग का प्रावधान करता है।

दो या अधिक राज्य यह करार कर सकेंगे कि राज्यों के उस समूह के लिए एक ही लोक सेवा आयोग होगा और यदि इस आशय का संकल्प उन राज्यों में से प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के सदन द्वारा या जहाँ दो सदन हैं, वहाँ प्रत्येक सदन द्वारा पारित कर दिया जाता है तो संसद उन राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विधि द्वारा संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग की (जिसे इस अध्याय में संयुक्त आयोग कहा गया है) नियुक्ति का उपबंध कर सकेगी।

अनुच्छेद– 316 (सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि)

लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति,
यदि वह संघ आयोग या संयुक्त आयोग है तो,
राष्ट्रपति द्वारा और, यदि वह राज्य आयोग है तो,
राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएगी परंतु प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से यथाशक्य निकटतम आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी-अपनी नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कम से कम दस वर्ष तक पद धारण कर चुके हैं और उक्त दस वर्ष की अवधि की संगणना करने में इस संविधान के प्रारंभ से पहले की ऐसी अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण किया है।

यदि आयोग के अध्‍यक्ष का पद रिक्त हो जाता है या यदि कोई ऐसा अध्‍यक्ष अनुपस्थिति के कारण या अन्य कारण से अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है तो,
यथास्थिति, जब तक रिक्त पद पर खंड (1) के अधीन नियुक्त कोई व्यक्ति उस पद का कर्तव्य भार ग्रहण नहीं कर लेता है या
जब तक अध्‍यक्ष अपने कर्तव्यों को फिर से नहीं संभाल लेता है
तब तक आयोग के अन्य सदस्यों में से ऐसा एक सदस्य,
जिसे संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में उस राज्य का राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उन कर्तव्यों का पालन करेगा।

लोक सेवा आयोग का सदस्य, अपने पद ग्रहण की तारीख से छह वर्ष की अवधि तक या संघ आयोग की दशा में पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक और राज्य आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में बासठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करेगा।

परंतु–

लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति को और राज्य आयोग की दशा में राज्य के राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;

लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को, अनुच्छेद 317 के खंड (1) या खंड (3) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा।

कोई व्यक्ति जो लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में पद धारण करता है,
अपनी पदावधि की समाप्ति पर उस पद पर पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।

विशेष

संघ लोकसेवा आयोग के सदस्य पद ग्रहण की तिथि को 6 वर्ष की अवधि तक या
संघ आयोग की दशा में पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक और राज्य आयोग या
संयुक्त आयोग की दशा में बासठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करेगा।

इन नियुक्त सदस्यों की सेवा की शर्ते उनके कार्याकाल में अपरिवर्तनीय रहेंगी।

किसी सदस्य को केवल कदाचार के लांछन के आधार पर ही सर्वोच्च न्यायालय के परामर्श की प्राप्ति के उपरान्त राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकेगा।

संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या

संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या समय-समय पर परिवर्तित होती रहती है।

1974-75 में संघ लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष और 8 सदस्य थे। 1981-82 में एक अध्यक्ष और 7 सदस्य थे।

वर्तमान में (17/06/2019 की स्‍थिति के अनुसार) आयोग में एक अध्यक्ष और 10 सदस्य हैं।

अनुच्छेद– 317 (लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया जाना और निलंबित किया जाना)

खंड (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए,
लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष या किसी अन्य सदस्य को केवल कदाचार के आधार पर किए गए राष्ट्रपति के ऐसे आदेश से उसके पद से हटाया जाएगा जो उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति द्वारा निर्देश किए जाने पर उस न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 145 के अधीन इस निमित्त विहित प्रक्रिया के अनुसार की गई जाँच पर,
यह प्रतिवेदन किए जाने के पश्चात्‌ किया गया है कि, यथास्थिति,
अध्‍यक्ष या ऐसे किसी सदस्य को ऐसे किसी आधार पर हटा दिया जाए।

आयोग के अध्‍यक्ष या किसी अन्य सदस्य को,
जिसके संबंध में खंड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय को निर्देश किया गया है, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में राज्यपाल उसके पद से तब तक के लिए निलंबित कर सकेगा जब तक राष्ट्रपति ऐसे निर्देश पर उच्चतम न्यायालय का प्रतिवेदन मिलने पर अपना आदेश पारित नहीं कर देता है।

खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, यदि लोक सेवा आयोग का, यथास्थिति, अध्‍यक्ष या कोई अन्य सदस्य –

I दिवालिया न्याय निर्णीत किया जाता है, या

Il अपनी पदावधि में अपने पद के कर्तव्यों के बाहर किसी सवेतन नियोजन में लगता है, या

III राष्ट्रपति की राय में मानसिक या शारीरिक शैथिल्य के कारण अपने पद पर बने रहने के लिए अयोग्य है, तो राष्ट्रपति, अध्‍यक्ष या ऐसे अन्य सदस्य को आदेश द्वारा पद से हटा सकेगा।

यदि लोक सेवा आयोग का अध्‍यक्ष या कोई अन्य सदस्य,
निगमित कंपनी के सदस्य के रूप में और कंपनी के अन्य सदस्यों के साथ सम्मिलित रूप से अन्यथा, उस संविदा या करार से,
जो भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा या निमित्त की गई या किया गया है,
किसी प्रकार से संपृक्त या हितबद्ध है या हो जाता है या उसके लाभ या उससे उद्‌भूत किसी फायदे या उपलब्धि में भाग लेता है तो वह
खंड (1) के प्रयोजनों के लिए कदाचार का दोषी समझा जाएगा।

अनुच्छेद– 318 (आयोग  के  सदस्यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति)

संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में उस राज्य का राज्यपाल विनियमों द्वारा –

आयोग के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों का अवधारण कर सकेगा; और

आयोग के कर्मचारिवृंद के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों के संबंध में उपबंध कर सकेगा:
परंतु लोकसेवा आयोग के सदस्य की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात्‌  उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद– 319 (आयोग  के सदस्यों द्वारा  ऐसे  सदस्य   रहने  पर  पद  धारण करने  के  संबंध  में  प्रतिषेध)

पद पर न रह जाने पर–

लोक सेवा आयोग का अध्‍यक्ष भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी भी और नियुक्ति का पात्र नहीं होगा;

राज्य लोक सेवा आयोग का अध्‍यक्ष संघ लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में अथवा किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा; लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष से भिन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष के रूप में या किसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा,
किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा;

किसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष से भिन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष या किसी अन्य सदस्य के रूप में अथवा उसी या किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा,
किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।

अनुच्छेद– 320 (आयोग के कार्य)

संविधान के अनुच्छेद 320 के अंतर्गत,
अन्‍य बातों के साथ-साथ सिविल सेवाओं तथा पदों के लिए भर्ती संबंधी सभी मामलों में आयोग का परामर्श लिया जाना अनिवार्य होता है।
संविधान के अनुच्छेद 320 के अंतर्गत आयोग के प्रकार्य इस प्रकार हैं:

संघ के लिए सेवाओं में नियुक्‍ति हेतु परीक्षा आयोजित करना

2. साक्षात्‍कार द्वारा चयन से सीधी भर्ती

प्रोन्‍नति/ प्रतिनियुक्‍ति/ आमेलन द्वारा अधिकारियों की नियुक्‍ति

सरकार के अधीन विभिन्‍न सेवाओं तथा पदों के लिए भर्ती नियम तैयार करना तथा उनमें संशोधन

विभिन्‍न सिविल सेवाओं से संबंधित अनुशासनिक मामले

भारत के राष्‍ट्रपति द्वारा आयोग को प्रेषित किसी भी मामले में सरकार को परामर्श देना

अनुच्छेद– 321 (लोक सेवा आयोगों के कृत्यों का विस्तार करने की शक्ति)

यथास्थिति, संसद द्वारा या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाया गया कोई अधिनियम संघ लोकसेवा आयोग या राज्य लोकसेवा आयोग द्वारा संघ की या राज्य की सेवाओं के संबंध में और किसी स्थानीय प्राधिकारी या विधि द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या किसी लोक संस्था की सेवाओं के संबंध में भी अतिरिक्त कृत्यों के प्रयोग के लिए उपबंध कर सकेगा।

अनुच्छेद– 322 (लोकसेवा आयोगों के व्यय)

संघ या राज्य लोकसेवा आयोग के व्यय,
जिनके अंतर्गत आयोग के सदस्यों या कर्मचारिवृंद को या उनके संबंध में संदेय कोई वेतन,
भत्ते और पेंशन हैं,
यथास्थिति, भारत की संचित निधि या राज्य की संचित निधि पर भारित होंगे।

अनुच्छेद-323 (लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन)

  1. संघ आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर उन मामलों के संबंध में,
    यदि कोई हों,
    जिनमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई थी,
    ऐसी अस्वीकृति के कारणों को सपष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन की प्रति संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।
  2. राज्य आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राज्य के राज्यपाल को आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और संयुक्त आयोग का यह कर्तव्य होगा कि ऐसे राज्यों में से प्रत्येक के, जिनकी आवश्यकताओं की पूर्ति संयुक्त आयोग द्वारा की जाती है, राज्यपाल को उस राज्य के संबंध में आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और दोनों में से प्रत्येक दशा में ऐसा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर, राज्यपाल उन मामलों के संबंध में,
    यदि कोई हों,
    जिनमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई थी,
    ऐसी अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन की प्रति
    राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा।

सचिवालय

भारत के संघ लोक सेवा आयोग के सचिवालय में निम्नलिखित पदाधिकारी होते हैं:

 

सचिव………….. 1

उपसचिव…….….2

अवर सचिव….…15

उपविभागीय अधिकारी….40

इस प्रकार कुल मिलाकर लगभग 58 पदाधिकारी आयोग की प्रबन्ध व्यवस्था एवं कार्य संचालन करते हैं।

 

स्रोत:

  1. भारत का संविधान- रजत जयंती संस्करण, विधि एवं न्याय

मंत्रालय, भारत सरकार

  1. राजव्यवस्था- डॉ. एम लक्ष्मीकांत

इन्हें भी अवश्य पढिए-

राष्ट्रीय महिला आयोग National Women Commission

 

राष्ट्रीय महिला आयोग

राष्ट्रीय महिला आयोग (National Women Commission)

राष्ट्रीय महिला आयोग का इतिहास, गठन, अध्यक्ष, सदस्य, पदावधि, सेवा की शर्तें, वेतन-भत्ते, रिक्तियां, समितियां, कृत्य एवं नियम बनाने की शक्तियां आदि का विस्तृत विवरण

यत्रनार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।

मनुस्मृति ३/५६ ।।

  • जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ नारी की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है, वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
  • नारी के प्रति सम्मान की भावना युगो युगो से भारतीय संस्कृति में विद्यमान है परंतु आधुनिकता की चकाचौंध में नारी के सम्मान को भूल गए महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं वैश्विक प्रस्थिति को उचित दिशा एवं दशा देने हेतु संसद 1990 में महिलाओं का राष्ट्रीय आयोग अधिनियम पारित किया ।
  • इस अधिनियम को राष्ट्र की सम्मति 30 अगस्त को प्राप्त हुयी थी।
  • अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार 31 जनवरी 1992 को राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना हुई।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग का प्रमुख उद्देश्य महिलाओं के सांविधानिक एवं कानूनी संरक्षण में सुधार, कानूनी उपचार का प्रबन्ध, कल्याणकारी सुविधाएँ प्रदान करना तथा महिलाओं को प्रभावित करने वाली सभी सरकारी नीतियों में सरकार को सुझाव देना है ।

राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के अध्याय 2 की धारा 3 के अनुसार राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन-

  • (I) केन्द्रीय सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग के नाम में बात एक निकाय का गठन करेगी जो इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और समनुदिष्ट कृत्या का पालन करेगा।
  • (2) यह आयोग निम्नलिखित से मिलकर बनेगा-

(क) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट एक अध्यक्ष, जो महिलाओं के हित के लिए समर्पित हो;

(ख) केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसे योग्य, सत्यनिष्ठ और प्रतिनिष्ठित व्यक्तियों में से नामनिर्दिष्ट पाँच सदस्य जिन्हें विधि या विधान, व्यवसाय संघ आंदोलन, महिलाओं की नियोजन सम्भाव्यताओं की वृद्धि के लिए समर्पित उद्योग या संगठन के प्रबंध, स्वैच्छिक महिला संगठन (जिनके अंतर्गत महिला कार्यकर्ता भी है), प्रशासन, आर्थिक विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा या सामाजिक कल्याण का अनुभव है:परन्तु उनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों में से प्रत्येक का कम से कम एक सदस्य होगा;

(ग) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट एक सदस्य-सचिव जो- (i) प्रबंध, संगठनात्मक संरचना व सामाजिक आदोलन के क्षेत्र में विशेषज्ञ है, या

  • (ii) ऐसा अधिकारी है जो संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का मदस्य है अथवा संप के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है और जिसके पास समुचित अनुभव है।

राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के अध्याय 2 की धारा 4 के अनुसारराष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि और सेवा की शर्तें-

  • (1) अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य तीन वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए पद धारण करेगा जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
  • (2) अध्यक्ष या कोई सदस्य (ऐसे सदस्य -सचिव से भिन्न जो संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य हैं अथवा संघ के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है।) केन्द्रीय सरकार को संबोधित लेख द्वारा किसी भी समय, यथास्थिति, अध्यक्ष या सदस्य का पद त्याग सकेगा।
  • (3) केन्द्रीय सरकार, किसी व्यक्ति कोउपधारा (2) में निर्दिष्ट अध्यक्ष या सदस्य के पद से हटा देगी यदि वह-

(क) पूर्णतया दिवालिया हो जाता है:

(ख) ऐसे किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराया जायेऔर कारावास सेदण्डित किया जाता है जिसमें केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक पतन वाला हो।

(ग) विकृतचित्त का हो जाता है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है।

(घ) कार्य करने से इंकार करता है या कार्य करने में असमर्थ हो जाता है।

(ङ) आयोग में अनुपस्थित रहने की इजाजत लिए बिना आयोग के लगातार तीन अधिवशनों में अनुपस्थित रहताहै या

(च) केन्द्रीय सरकार की राय में, उसने अध्यक्ष या सदस्य के पद का इस प्रकार दुरुपयोग किया है कि ऐसे व्यक्ति का पद पर बना रहना लोकहित के लिए अहितकर है।

परन्तु

इस खंड के अधीन किसी व्यक्ति को तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति को इस विषय में सुनवाई का उचित अवसर नही दे दिया गया है।

  • (4) उपधारा (2) के अधीन वा अन्यथा होने वाली रिक्ति नए नामनिर्देशन द्वारा भरी जाएगी।
  • (5) अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते, और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तेंवेहोंगी जो विहित की जाए।

धारा 5. आयोग के अधिकारी और अन्य कर्मचारी

(1) केन्द्रीय सरकार, आयोग के लिए ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की व्यवस्था करेगी जो इस अधिनियम के अधीन आयोग के कार्यों का दक्षतापूर्ण पालन करने के लिए आवश्यक हों।

(2) आयोग के प्रयोजनों के लिए नियुक्त अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भते और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें ये होंगी जो विहित की जाएं।

धारा 6. वेतन और भत्तों का अनुवान में से संवाद किया जाना : राष्ट्रीय महिला आयोग

अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा प्रशासनिक व्यय, जिनके अन्तर्गत धारा 5 में निर्दिष्ट अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन भी हैं, धारा 11 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदत्त किए जाएंगे।

धारा 7. रिक्तियों आदि से आयोग की कार्यवाहियों का अविधिमान्य न होना-

आयोग का कोई भी कार्य या कार्यवाही आयोग में कोई रिक्ति विद्यमान होने या उसके गठन में त्रुटि होने के आधार पर ही प्रश्नगत या अविधिमान्य नहीं होगी।

धारा 8. आयोग की समितियां : राष्ट्रीय महिला आयोग

(1) आयोग ऐसी समितिया नियुक्त कर सकेगा जो ऐसे विशेष प्रश्नों पर विचार करने के लिए आवश्यक हो जो आयोग द्वारा समय-समय पर उठाए जाएं।

(2) आयोग को उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किसी समिति के सदस्यों के रूप में, ऐसे व्यक्तियों में से जो आयोग के सदस्य नहीं हैं, उतने व्यक्ति सहयोजित करने की शक्ति होगी जितने वह उचित समझे और इस प्रकार सहयोजित व्यक्तियों को समिति के अधिवेशनों में उपस्थित रहने तथा उसकी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार होगा किन्तु उन्हें मतदान का अधिकार नहीं होगा।

(3) इस प्रकार सहयोजित व्यक्ति समिति के अधिवेशनों में उपस्थित होने के लिए ऐसे भत्ते प्राप्त करने के हकदार होंगे जो विहित किए जाएं।

धारा 9. प्रक्रिया का बायोग द्वारा विनियमित किया जाना

(1) आयोग या उसकी समिति का अधिवेशन जब भी आवश्यक हो किया जाएगा और वह ऐसे समय और स्थान पर किया जाएगा जो अध्यक्ष ठीक समझे

(2) आयोग अपनी प्रक्रिया तथा अपनी समितियों की प्रक्रिया स्वयं विनियमित करेगा।

(3) आयोग के सभी आदेश और विनिश्चय सदस्य-सचिव द्वारा या इस निमित्त सदस्य-सचिव द्वारा सम्पक रूप से प्राधिकृत आयोग के किसी अन्य अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किए जाएंगे।

धारा 10. आयोग के कृत्य

  • राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के अध्याय 3 की धारा 10 के अनुसार (1)आयोग निम्नलिखित सभी या किन्तु कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात –

(क) महिलाओं के लिए संविधान और अन्य विधियों के अधीन उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण और परीक्षा करना:

(ख) उन रक्षोपायों के कार्यकरण के बारे में प्रति वर्ष, और ऐसे अन्य समयों पर जो आयोग ठीक समझे, केन्द्रीय सरकार को रिपोर्ट देना।

(ग) ऐसी रिपोटों में महिलाओं की दशा सुधारने के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा उन रक्षोपायों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिश करना।

(घ) संविधान और अन्य विधियों के महिलाओं को प्रभावित करने वाले विद्यमान उपबंधों का समय-समय पर पुनर्विलोकन करना और उनके संशोधनों की सिफारिश करना जिससे कि ऐसे विधानों में किसी कमी, अप्याप्तता या त्रुटियों को दूर करने के लिए उपचारी विधायी उपायों का सुझाव दिया जा सके।

(ङ) संविधान और अन्य विधियों के उपबंधों के महिलाओं से संबंधित अतिक्रमण के मामलों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना,

(च) निम्नलिखित से संबंधित विषयों पर शिकायतों की जांच करना और स्वपेरणा से ध्यान देना-

  1. महिला के अधिकारों का वचन:
  2. महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने के लिए और ममता तथा विकास का उद्देश्य प्राप्त करने के लिए भी अधिनियमित विधियों का क्रियान्वयन
  3. महिलाओं की कठिनाइयों को कम करने और उनका कल्याण सुनिश्चित करने तथा उनको अनुतोष उपलब्ध कराने के प्रयोजनार्थ नीतिगत विनिश्चयों, मार्गदर्शक सिद्धांतों या अनुदेशों का अनुपालन, और ऐसे विषयों से उद्भूत प्रश्नों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना

इसके अलावा

(छ) महिलाओं के विरुद्ध विभेद और अत्याचारों से उद्भूत विनिर्दिष्ट समस्याओं या स्थितियों का विशेष अध्ययन या अन्वेषण कराना और बाधाओं का पता लगाना जिससे कि उनको दूर करने की कार्य योजनाओं की सिफारिश की जा सके।

(ज) संवर्धन और शिक्षा गांधी अनुसंधान करना जिससे कि महिलाओं का सभी क्षेत्रों में सम्यक् प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उपायों का सुझाव दिया जा सके और उनकी उन्नति में अड़चन डालने के लिए उत्तरदायी कारणों का पता लगाना जैसे कि आवास और बुनियादी सेवाओं की प्राप्ति में कमी, उबाऊपन और उपजीविकाजन्य स्वास्थ्य परिसंकटों को कम करने के लिए और महिलाओं की उत्पादकता की वृद्धि के लिए सहायक सेवाओं और प्रौद्योगिकी की अपर्याप्तता।

(झ) महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और उन पर सलाह देना।

(ञ) संघ और किसी राज्य के अधीन महिलाओं के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।

(ट) किसी जेल, सुधार गृह, महिलाओं की संस्था या अभिरक्षा के अन्य स्थान का, जहां महिलाओं को बंदी के रूप में या अन्यथा रखा जाता है, निरीक्षण करना या करवाना, और उपचारी कार्रवाई के लिए, यदि आवश्यक हो, संबंधित प्राधिकारियों से बातचीत करना।

(ठ) बहुसंख्यक महिलाओं को प्रभावित करने वाले प्रश्नों से संबंधित मुकदमों के लिए धन उपलब्ध कराना

(ड) महिलाओं से संबंधित किसी बात के, और विशिष्टतया उन विभिन्न कठिनाइयों के बारे में जिनके अधीन महिलाएं कार्य करती है. सरकार को समय-समय पर रिपोर्ट देना;

(ढ) कोई अन्य विषय जिसे केन्द्रीय सरकार उसे निर्दिष्ट करे।

(2) केन्द्रीय सरकार,

उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट सभी रिपोर्टों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्षरखवाएगी और उनके साथ संघ से संबंधित सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश अस्वीकृत की गई हैं तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।

(3) जहां कोई ऐसी रिपोर्ट या उसका कोई भाग किसी ऐसे विषय में संबंधित है जिसका किसी राज्य सरकार से संबंध है यहाँ आयोग ऐसी रिपोर्ट याउसके भाग की एक प्रति उस राज्य सरकार को भेजेगा जो उसे राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगी और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गयी या की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिशें अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।

(4) आयोग को उपधारा

(1) के खंड (क) या खंड (च) के उपखंड (i) में निर्दिष्ट किसी विषय का अन्वेषण करते समय और विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों के संबंध में ने सभी शक्तियां होंगी जो वाद का विचारण करने वाले सिविल न्यायालय की हैं, अर्थात् –

(क) भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षाकरना।

(ख) किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना ,

(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना।

(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि की अपेक्षा करना

(ङ) साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना; और

(च) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाए।

धारा 11. वित्त, लेखे और लेखापरीक्षा

राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के अध्याय 4 की धारा 11 के अनुसार (1)केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान केन्द्रीय सरकार, संसद द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किए गए सम्यक विनियोग के पश्चात, आयोग को अनुदानों के रूप में ऐसी धनराशि का संदाय करेगी जो केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाने के लिए ठीक समझे।

(2) आयोग इस अधिनियम के अधीन कृत्यों का पालन करने के लिए उतनी धनराशि खर्च कर सकेगा जितनी वह ठीक समझे और वह धनराशि उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदेय व्यय माना जाएगा।

धारा 12. लेखे और संपरीक्षा

(1) आयोग, समुचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और लेखाओं का वार्षिक विवरण ऐसे प्ररूप में तैयार करेगा जो केन्द्रीय सरकार भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करके विहित करे।

(2) आयोग के सेवाओं की संपरीक्षा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक ऐसे अंतरालों पर करेगा जो उसने द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाए और उस परीक्षा के संबंध में उपगत कोई व्यय आयोग द्वारा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा।

(3) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और इस अधिनियम के अधीन आयोग के सेवाओं की परीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति को उस संपरीक्षा के संबंध में वही अधिकार और विशेषाधिकार तथा प्राधिकार होंगे जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को सरकारी लेखाओं की परीक्षा के संबंध में साधारणतया होते हैं और उसे विशिष्टतया बहियाँ, लेखा संबंधी वाउचरऔरअन्य दस्तावेज और कागज-पत्र पेश किए जाने की मांग करने और आयोग के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।

(4) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथाप्रमाणित आयोग का लेखा और साथ ही उस पर संपरीक्षा रिपोर्ट आयोग द्वारा केन्द्रीय सरकार को प्रतिवर्ष भेजी जाएगी।

धारा 13वार्षिक रिपोर्ट

  • आयोग, प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट,
  • जिसमें पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान उसके क्रियाकलापों का पूर्ण विवरण होगा,
  • ऐगे प्रण में और ऐसे समय पर,
  • जो विजित किया जाए, तैयार करेगा और उसकी एक प्रति केंद्रीय सरकार को भेजेगा।

धारा 14वार्षिक रिपोर्ट और संपरीक्षा रिपोर्ट का संसद के समक्ष रखा जाना

केन्द्रीय सरकार, वार्षिक रिपोर्ट, रिपोर्ट की प्राप्ति के पश्चात यथाशक्य संसदके प्रत्येक सदन के समक्ष रखवायेगी जिसके साथ उसमें अतर्विष्ट सिफारिशों पर जहा तक उनका संबंध केन्द्रीय सरकार से है, की गयी कार्रवाई और यदि कोई ऐसी सिफारिश अरस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृति के कारण का ज्ञापन और संपरीक्षा रिपोर्ट होगी।

प्रकीर्ण

धारा 15 आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों और कर्मचारिवृन्द का लोक सेवक होना-

योग का अध्यक्ष, उसके सदस्य, अधिकारी और अन्य कर्मचारी भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझे जाएंगे।

धारा 16. केन्द्रीय सरकार आयोग से परामर्श करेगी

केन्द्रीय सरकार, महिलाओं को प्रभावित करने वालेसभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर आयोग से परामर्श करेगी।

धारा 17. नियम बनाने की शक्ति : राष्ट्रीय महिला आयोग

(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वित करने के लिए नियम राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना,

ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात :-

(क) धारा 4 की उपधारा (5) के अधीन अध्यक्षों और सदस्यों को और धारा की उपधारा (2) के अधीन अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को देय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें

(2) धारा 8 की उपधारा (3) के अधीन सहयोजित व्यक्तियों द्वारा समिति के अधिवेशनों में उपस्थित होने के लिये भत्ते

(ग) धारा 10 की उपधारा (4) के खंड (च) के अधीन अन्य विषय;

(घ) वह प्रारूप जिसमें लेखाओं का वार्षिक विवरण धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन रखा जाएगा:

(ङ) वह प्रसंग जिसमें और वह समय जब वार्षिक रिपोर्ट धारा 13 के अधीन तैयार की जाएगी.

(च) कोई अन्य विषय जिसे विहित किया जाना अपेक्षित है या किया जाए।

(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया : राष्ट्रीय महिला आयोग

  • प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के सम्मुख जब वह सदन सत्र में हो,कुल तीसदिन की अवधि के लिए रखा जाएगा।
  • यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी।
  • यदि उस मास के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए तत्पश्चात वह ऐसेपरिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा।
  • यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाए कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् यह निष्प्रभावी हो जाएगा।
  • किन्तु निगम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभावी होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

स्रोत:- राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990

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