शिवपूजन सहाय की जीवनी

शिवपूजन सहाय की जीवनी

आचार्य शिवपूजन सहाय की जीवनी एवं इनके साहित्यिक परिचय में रचनाएं, कविताएं आदि के साथ-साथ पुरस्कार, प्रमुख कथन एवं विशेष तथ्य के बारे में जानेंगे।

जीवन परिचय

नाम- आचार्य शिवपूजन सहाय

जन्म― 9 अगस्त, 1893

जन्म भूमि शाहाबाद, बिहार

मृत्यु― 21 जनवरी, 1963

मृत्यु स्थान― पटना

बचपन का नाम― भोलानाथ

दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद आपने बनारस की अदालत में नकलनवीस की नौकरी की। बाद में वे हिंदी के अध्यापक बन गए।

कर्म-क्षेत्र― साहित्य, पत्रकारिता

विषय― गद्य, उपन्यास, कहानी

प्रसिद्धि― कहानीकार, पत्रकार, उपन्यासकार, सम्पादक

शिवपूजन सहाय के पुरस्कार एवं मान-सम्मान

पद्म भूषण (1960)

पटना नगर निगम द्वारा― ‘नागरिक सम्मान’

राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा― ‘वयोवृद्ध साहित्यिक सम्मान’

उपाधि― भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट् की मानद उपाधि

शिवपूजन सहाय की भाषा-शैली

इनकी भाषा बड़ी सहज रही है।

इन्होंने उर्दू शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से किया है और प्रचलित मुहावरों के संतुलित उपयोग द्वारा लोकरुचि का स्पर्श करने की चेष्टा की है।

कहीं-कहीं अलंकार प्रधान अनुप्रास बहुला भाषा का भी व्यवहार किया है और गद्य में पद्य की सी छटा उत्पन्न करने की चेष्टा की है।

भाषा के इस पद्यात्मक स्वरूप के बावजूद इनके गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है।

शैली ओज- गुण सम्पन्न है और यत्र तत्र उसमें व्यक्तित्व कला की विशेषताएँ उपलब्ध होती है।

शिवपूजन सहाय की जीवनी
शिवपूजन सहाय की जीवनी

साहित्यिक परिचय

रचनाएं

कथा एवं उपन्यास

वे दिन वे लोग – 1963

कहानी का प्लॉट – 1965

मेरा जीवन – 1985

स्मृतिशेष – 1994

हिन्दी भाषा और साहित्य – 1996

ग्राम सुधार – 2007

देहाती दुनिया – 1926 (हिंदी कक्षा 10 (NCERT) अनुसार हिंदी का सर्वप्रथम आंचलिक उपन्यास माना जाता है। स्मृति शैली पर आधारित हिंदी का सर्वप्रथम उपन्यास माना जाता है।)

विभूति – 1935

माता का आँचल

‘शिवपूजन रचनावली’ (चार खण्डों में, बिहार राष्ट्रीय भाषा परिषद्, पटना।)

सम्पादन कार्य

द्विवेदी अभिनन्दन ग्रन्थ – 1933

जयन्ती स्मारक ग्रन्थ – 1942

अनुग्रह अभिनन्दन ग्रन्थ – 1946

राजेन्द्र अभिननदन ग्रन्थ – 1950

आत्मकथा

रंगभूमि

समन्वय

मौजी

गोलमाल

जागरण

बालक

हिमालय

हिन्दी साहित्य और बिहार

संपादित पत्र-पत्रिकाएं

मारवाड़ी सुधार – 1921

मतवाला – 1923

माधुरी – 1924

समन्वय – 1925

मौजी – 1925

गोलमाल – 1925

जागरण – 1932

गंगा – 1931

बालक – 1934

हिमालय – 1946-47

साहित्य – 1950-62

शिवपूजन सहाय संबंधी विशेष तथ्य

शिवपूजन सहाय की ‘देहाती दुनिया’ (1926 ई.) प्रयोगात्मक चरित्र प्रधान औपन्यासिक कृति है। इसकी पहली पाण्डुलिपि लखनऊ के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में नष्ट हो गयी थी। उन्होंने दुबारा वही पुस्तक पुनः लिखकर प्रकाशित करायी, किन्तु उससे सहायजी को पूरा संतोष नहीं हुआ। अंतस की इस पीड़ा को व्यक्त करते हुए सहाय जी लिखते हैं- “पहले की लिखी हुई चीज़ कुछ और ही थी।”

हिंदी रचना संसार में जिस रचना को आंचलिक उपन्यास की उपमा दी जाती है, वह किसी अंचल विशेष की सभ्यता, संस्कृति, बोलचाल, भाषा और रहन-सहन पर आश्रित होती है।

शिवपूजन सहाय जी का ‘देहाती दुनिया शीर्षक उपन्यास हिंदी जगत् में जिसे आंचलिक उपन्यास की संज्ञा दी जाती है, वह किसी अंचल विशेष की सभ्यता, संस्कृति, बोलचाल, भाषा और रहन-सहन पर निर्भर होती है।

शिवपूजन सहाय जी का ‘देहाती दुनिया शीर्षक उपन्यास इस परिभाषा पर शत-प्रतिशत खरा उतरता है।

इसका प्रकाशन प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास ‘रंगभूमि’ से पहले हुआ था।

अतः ‘देहाती दुनिया’ में प्रेमचंद का प्रभाव खोजने का प्रयास करना बेकार है।

प्रमुख कथन : शिवपूजन सहाय की जीवनी

उपन्यास के प्रथम संस्करण की भूमिका में लेखक ने ‘देहात’ शब्द को स्पष्ट करते हुए लिखा है, “मैं ऐसे ठेठ देहात का रहनेवाला हूँ, जहाँ इस युग की नई सभ्यता का बहुत ही कम धुंधला प्रकाश पहुँचा है। वहाँ केवल दो ही चीजें प्रत्यक्ष देखने में आती हैं हैं- अज्ञानता का घोर अंधकार और दरिद्रता का तांडव नृत्य। वहाँ पर मैंने स्वयं जो देखा-सुना है, उसे यथाशक्ति ज्यों-का-त्यों अंकित कर दिया है। इसका एक शब्द भी मेरे दिमाग की उपज या मेरी मौलिक कल्पना नहीं है। यहाँ तक कि भाषा का प्रवाह भी मैंने ठीक वैसा ही रखा है, जैसा ठेठ देहातियों के मुख से सुना है।”

“आपकी गणना अपने समय के श्रेष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार के रूप में की गयी है। आपने साहित्य, भाषा, इतिहास, राजनीति, धर्म, नैतिकता आदि अनेक विषयों पर लेखनी चलायी। आप एक विचारशील लेखक हैं । आपके वैचरिक व्यक्तित्व में गहरा नैतिक भावबोध है जिसका आधार गांधीवादी आदर्शवादिता है। हिन्दी के प्रति आपके मन में प्रगाढ़ प्रेम है। ऐसा लगता है कि आपका मन हिन्दी प्रेम से ही रचा गया था। आपकी भाषा प्राणवाण और शैली सजीव है। आपके समस्त लेखन को देखकर ऐसा लगा है कि आपने देश और मानवहित की वेदी पर तिल-तिल आत्माहुति दी है।”― डॉ. रामचन्द्र तिवाड़ी

“आचार्य शिवपूजन सहाय गंगा की धारा की तरह लिखने वाले और गाँधी की वाणी बोलने वाले साहित्यकार थे। गंगा की धारा से संकेत उनकी शैली की निर्मलता तथा प्रवाहमयता की ओर है।” -डॉ. हरिहरनाथ द्विवेदी

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