विशेषण Visheshan
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प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं।
(i) विकारी (Vikari Shabad)
(ii) अविकारी या अव्यय शब्द (Avikari Shabad)
(i) विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।
(ii) अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है।
ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं। विस्तृत विवरण इस प्रकार है-
विशेषण Visheshan
परिभाषा: वे शब्द, जो किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं। जैसे-
नीला-आकाश
छोटी लड़की
दुबला आदमी
कुछ पुस्तकें
में क्रमशः नीला, छोटी, दुबला, कुछ पद विशेषण हैं, जो आकाश लड़की, आदमी पुस्तकें आदि संज्ञाओं की विशेषता का बोध कराते हैं।
अतः विशेषता बतलाने वाले शब्द विशेषण कहलाते हैं वहीं वह विशेषण पद जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाता है उसे विशेष्य कहते हैं उक्त उदाहरणों में आकाश, लड़की आदमी पुस्तकें आदि पद विशेष्य कहलायेंगे।
विशेषण संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित करता है
इस उक्ति का अर्थ यह है कि विशेषण रहित संज्ञा से जितनी वस्तुओं का बोध होता है उनकी संख्या विशे षण के योग से कम हो जाती ।
“दो शब्द से जितने प्राणियों का बोध होता है उसके प्राणियों का बोध “काला घोड़ा,” शब्दों से नहीं होता है।
“घोड़ा” शब्द जितना व्यापक है उतना “काला घोड़ा” शब्द नहीं है।
“घोड़ा” शब्द की व्याप्ति ( विस्तार ) “काला” शब्द से मर्यादित (संकुचित ) होती है; अर्थात “घोड़ा” शब्द अधिक प्राणियों का बोधक है और “काला घोड़ा” शब्द उससे कम प्राणियों का बोधक है।
विशेषण Visheshan के प्रकार
विशेषण मुख्यतः 5 प्रकार के होते हैं – पंडित कामता प्रसाद गुरु ने विशेषण के तीन भेद स्वीकार किए हैं-
1 सार्वनामिक विशेषण
2 गुणवाचक विशेषण
3 संख्यावाचक विशेषण
1. गुणवाचक विशेषण : वे शब्द, जो किसी संज्ञा या सर्वनाम के गुण, दोष, रूप, रंग, आकार, स्वभाव, दशा आदि का बोध कराते हैं, उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे-
काल- नया, पुराना, ताजा, भूत, वर्तमान, भविष्य, प्राचीन, अगला, पिछला, मौसमी, आगामी, टिकाऊ, इत्यादि ।
स्थान – लंबा, चौड़ा, ऊँचा, नीचा, गहरा, सीधा, सकरा, तिरछा, भीतरी, बाहरी, ऊजड़, स्थानीय, इत्यादि।
आकार – गोल, चौकोर सुडौल, समान, पोला, सुंदर, नुकीला, इत्यादि ।
रंग – लाल, पीला, नीला, हरा, सफेद, काला, बैंगनी, सुनहरी, चमकीला, धुंधला, फीका, इत्यादि ।
दशा – दुबला, पतला, मोटा, भारी, पिघला, गाढ़ा, पीला, सूखा, घना, गरीब, उद्योग, पालतू , रोगी, इत्यादि।
गुण – भला, बुरा, उचित, अनुचित, सच, झूठ, पापी, दानी, न्यायी, दुष्ट, सीधा, शांत, इत्यादि ।
2. संख्यावाचक विशेषण
वे विशेषण, जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित, अनिश्चित संख्या, क्रम या गणना का बोध कराते हैं उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।
ये भी दो प्रकार के होते हैं- एक वे जो निश्चित संख्या का बोध कराते हैं तथा दूसरे वे जो अनिश्चित संख्या का बोध कराते हैं जैसे-
(i) निश्चित संख्यावाचक
निश्चित संख्यावाचक विशेषण से वस्तुओं की निश्चित संख्या का बोध होता है; जैसे, एक लड़का, पच्चीस रुपये, दसवाँ भाग, दूना मोल, पाँचों इंद्रियाँ, हर आदमी, इत्यादि।
निश्चित संख्या-वाचक विशेपणों के पाँच भेद हैं-
(अ) गणनावाचक – एक, दो, तीन।
(आ) क्रमवाचक – पहला, दूसरा।
(इ) आवृत्तिवाचक – दोगुना, चौगुना।
(द) समुदाय वाचक – दोनों तीनों, चारों।
(य) प्रत्येक बोधक – “हर घड़ी”, ” हर एक आदमी”, “प्रति जन्म”, “प्रत्येक बालक, “हर आठवें दिन”, इत्यादि।
(ii) अनिश्चय संख्यावाचक – कई, कुछ, सब, बहुत, थोड़े।
3. परिमाण वाचक विशेषण
वे विशेषण, जो किसी पदार्थ की निश्चित या अनिश्चित मात्रा, परिमाण, नाप या तौल आदि का बोध कराते है, उन्हें परिमाण वाचक विशेषण कहते हैं।
इसके भी दो उपभेद किए जा सकते हैं यथा-
(i) निश्चित परिमाण वाचक : दो मीटर, पाँच किलो, सात लीटर।
(ii) अनिश्चित परिमाण वाचक : थोड़ा, बहुत, कम, ज्यादा, अधिक, जरा-सा, सब आदि।
4. संकेतवाचक विशेषण
वे सर्वनाम शब्द, जो विशेषण के रूप में किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन्हें संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जैसे-
(i) इस गेंद को मत फेको।
(ii) उस पुस्तक को पढ़ो।
(iii) वह कौन गा रही है?
वाक्यों में इस, उस वह आदि शब्द संकेतवाचक विशेषण हैं।
5. व्यक्तिवाचक विशेषण
वे विशेषण, जो व्यक्तिवाचक संज्ञा से बनकर अन्य संज्ञा या सर्वनाम की विशेषण बतलाते हैं उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे-
जोधपुरी जूती, बनारसी साड़ी, कश्मीरी सेब, बीकानेरी भुजिए वाक्यों में जोधपुरी, बनारसी, कश्मीरी, बीकानेरी शब्द व्यक्तिवाचक विशेषण है।
विशेष : कतिपय विद्वान एक और प्रकार विभाग वाचक विशेषण का भी उल्लेख करते हैं। जैसे- प्रत्येक हर एक आदि।
विशेषण Visheshan की अवस्थाएँ
गुणवाचक विशेषण की तुलनात्मक स्थिति को अवस्था कहते हैं। अवस्था के तीन प्रकार माने गये हैं-
(i) मूलावस्था – जिसमें किसी संज्ञा या सर्वनाम की सामान्य स्थिति का बोध होता है। जैसे- राम अच्छा लड़का है।
(ii) उत्तरावस्था – जिसमें दो संज्ञा या सर्वनाम की तुलना की जाती है। जैसे-अशोक रमेश से अच्छा है।
(iii) उत्तमावस्था – जिसमें दो से अधिक संज्ञा या सर्वनामों की तुलना करके, एक को सबसे अच्छा या बुरा बतलाया जाता है वहाँ उत्तमावस्था होती है। जैसे – राम सबसे अच्छा है। सीता सुन्दरतम लड़की है।
अवस्था परिवर्तन : मूलावस्था के शब्दों में तर तथा तम प्रत्यय लगा कर या शब्द के पूर्व शाम से अधिक, या सबसे अधिक शब्दों का प्रयोग कर क्रमशः उत्तरावस्था एवं उत्तमावस्था में प्रयुक्त किया जाता है, जैसे-
मूलावस्था उत्तरावस्था उत्तमावस्था
उच्च उच्चतर उच्चतम
तीव्र तीव्रतर तीव्रतम
अच्छा से अच्छा सबसे अच्छा
ऊँचा से ऊँचा सबसे ऊँचा
विशेष
सार्वनामिक विशेषण Visheshan तथा सर्वनाम में अंतर
पुरुषवाचक और निजवाचक सर्वनामों को छोड़कर शेष सर्वनामों का प्रयोग विशेषण के समान होता है।
जब ये शब्द अकेले आते हैं, तब सर्वनाम होते हैं और जब इनके साथ संज्ञा आती है तब ये विशेषण होते हैं; जैसे-
“नौकर आया है ; वह बाहर खड़ा है।”
इस वाक्य में ‘वह’ सर्वनाम है; क्योंकि वह “नौकर” संज्ञा के बदले आया है।
“वह नौकर नही आया यहाँ “वह” विशेषण है; क्योकि “वह” “नौकर” संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित करता है।
अर्थात् उसका आश्रय बताता है।
इसी तरह “किसी को बुलाओ” और “किसी ब्राह्मण को बुलाओ “- इन दोनो वाक्यो में “किसी” क्रमशः सर्वनाम और विशेषण है।
विशेष्य
विशेषण के योग से जिस संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित होती है उस संज्ञा को विशेष्य कहते हैं;
जैसे, “ठंडी हवा चली” – इस वाक्य में ‘ठंडी’ विशेषण और ‘हवा’ विशेष्य है।
विशेष्य (उद्देश्य) विशेषण और विधेय विशेषण
व्यक्तिवाचक संज्ञा के साथ जो विशेषण आता है वह उस संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित नहीं करता, जैसे-
पतिव्रता सीता
प्रतापी भोज
दयालु ईश्वर
इन उदाहरणों में विशेषण संज्ञा के अर्थ को केवल स्पष्ट करते हैं।
“पतिव्रता सीता” वही व्यक्ति है जो ‘सीता है।
इसी प्रकार “भोज” और प्रतापी भोज एक ही व्यक्ति के नाम हैं।
किसी शब्द का अर्थ स्पष्ट करने के लिये जो शब्द आते हैं वे समानाधिकरण कहाते है।
ऊपर के वाक्यों में “पतिव्रता,” “प्रतापी” और “दयालु” समानाधिकरण विशेषण हैं।
विशेषण Visheshan
जातिवाचक संज्ञा के साथ उसका साधारण धर्म सूचित करनेवाला विशेषण समानाधिकरण होता है; जैसे-
मूक पशु, अबोध बच्चा, काला कौआ, ठंढी बर्फ, इत्यादि ।
इन उदाहरणो में विशेषणों के कारण संज्ञा की व्यापकता कम नही होती ।
(क) विशेष्य के साथ विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है-
(1) संज्ञा के साथ, (2) क्रिया के साथ।
पहले प्रयोग को विशेष्य (उद्देश्य) – विशेषण और दूसरे को विधेय-विशेषण कहते हैं।
विशेष्य – विशेषण विशेष्य (संज्ञा) के साथ और विधेय-विशेषण क्रिया के साथ आता है, जैसे-
ऐसी सुडौल चीज कहीं नहीं बन सकती।
हमे तो संसार सूना देख पडता है।
(ख) विधेय-विशेषण समानाधिकरण होता है, जैसे-
“यह ब्राह्मण चपल है।”
इस वाक्य में ‘यह शब्द के कारण “ब्राह्मण” संज्ञा की व्यापकता घटती है, परतु “चपल” पद उस व्यापकता को और कम नहीं करता।
उससे ब्राह्मण के विषय मे केवल एक नई बात ‘चपलता’ जानी जाती है।
(उद्धृत – हिन्दी व्याकरण – पं. कामत गुरु)
विशेषण Visheshan की रचना
संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया तथा अव्यय शब्दों के साथ प्रत्यय के मेल से विशेषण पद बन जाता है।
(I) संज्ञा से विशेषण बनाना :
प्यार – प्यारा
समाज – सामाजिक
पुष्प – पुष्पित
स्वर्ण – स्वर्णिम
जयपुर – जयपुरी
धन – धनी
भारत – भारतीय
रंग – रंगीला
श्रद्धा – श्रद्धालु
चाचा – चचेरा
विष – विषैला
बुद्धि – बुद्धिमान
गुण – गुणवान
दूर – दूरस्थ।
(ii) सर्वनाम से विशेषण :
यह – ऐसा
जो – जैसा
मैं – मेरा
तुम – तुम्हारा
वह – वैसा
कौन – कैसा।
(iii) क्रिया से विशेषण :
भागना – भगोड़ा
लड़का – लड़की
लूटना – लुटेरा।
(iv) अव्यय से विशेषण :
आगे – आगे
पीछे – पिछला
बाहर – बाहरी
स्रोत – हिन्दी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु