भीष्म साहनी

भीष्म साहनी की जीवनी

भीष्म साहनी की जीवनी, साहित्य, बाल साहित्य, भाषा शैली, विशेष तथ्य एवं संपूर्ण जानकारी

पूरा नाम- भीष्म साहनी

जन्म-8 अगस्त, 1915 ई.

जन्म भूमि-रावलपिण्डी (वर्तमान पाकिस्तान)

मृत्यु-11 जुलाई, 2003

मृत्यु स्थान-दिल्ली

पिता- हरबंस लाल साहनी

माता- लक्ष्मी देवी

पत्नी-शीला

कर्म-क्षेत्र-साहित्य

विषय-कहानी, उपन्यास, नाटक, अनुवाद।भाषा-हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत, पंजाबी

भीष्म साहनी जीवनी साहित्य : रचनाएं

भीष्म साहनी के कहानी संग्रह

भाग्य रेखा-1953

चीफ़ की दावत-1956

पहला पाठ-1957

अपने अपने बच्चे-1957

भटकती राख-1966

पटरियाँ-1973

‘वाङचू’-1978

शोभायात्रा-1981

निशाचर-1983

मेरी प्रिय कहानियाँ

अहं ब्रह्मास्मि

अमृतसर आ गया

इन्द्रजाल

पाली- 1989

डायन-1998

खून का रिश्ता

भीष्म साहनी जीवनी साहित्य
भीष्म साहनी जीवनी साहित्य

भीष्म साहनी के उपन्यास

झरोखे-1967 (निम्न मध्यवर्गीय परिवार की दुःख पीड़ाओं का अंकन)

कड़ियाँ-1970 (पुरुष प्रधान समाज में स्त्री के हिस्से आनेवाली पीड़ाओं और अत्याचारों का अंकन)

तमस-1973 (पंजाब विभाजन पर)

बसन्ती-1980 (यह उपन्यास महानगरीय जीवन की खोखली चमक-दमक पर आधारित)

मायादास की माड़ी-1988

कुन्ती-1993

नीलू ,निलीमा, निलोफर-2000

भीष्म साहनी के नाटक संग्रह (साहनी जी ने कुल छह नाटक लिखे)

हानूस-1977 (इसकी रचना चेकोस्लोवाकिया की पृष्ठभूमि पर की गई है।)

कबिरा खड़ा बाज़ार में-1981 (महान संत कबीर के जीवन के आधार पर मध्यकालीन भारत के समाज में विद्यमान विद्रूपता को अभिव्यक्त किया है।)

माधवी-1984 (महाभारत की कथा के एक अंश को आधार बनाया गया है। यह ययाति की पुत्री माधवी के जीवन की कथा है।)

मुआवज़े-1993 (सांप्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर लिखा गया है)

आलमगीर-1996 (औरंगजेब के चरित्र पर आधारित)

मेरा रंग दे बसंती चोला-1999 (जलियांवाला बाग हत्याकांड पर आधारित नाटक)

भीष्म साहनी के बाल साहित्य

गुलेल का खेल

वापसी

अनुवाद : टालस्टाय के उपन्यास ‘रिसरेक्शन’ सहित लगभग दो दर्जन रूसी पुस्तकों का सीधे रूसी से हिंदी में अनुवाद

भीष्म साहनी की आत्मकथाएं

बलराज माई ब्रदर्स

आज के अतीत

भीष्म साहनी के पुरस्कार एवं सम्मान

साहित्य अकादमी पुरस्कार-1975

लेखक शिरोमणि पुरस्कार-1975

सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार-1983

पद्मभूषण-1998

भीष्म साहनी संबंधी विशेष तथ्य

‘तमस’ उपन्यास के लिए इनको 1975 ई.मे साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ| इसी उपन्यास पर फिल्म भी बनी है

‘आलमगीर’ और ‘रंग दे बसंती चोला’ इनके मात्र दस्तावेजी नाटक बनकर रह गए थे।

भारत विभाजन के बाद ये अमृतसर आकर रहने लगे।

इनके भाई बलराज साहनी बॉलीवुड में फिल्म अभिनेता रहे।

भीष्म साहनी ने भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा) में भी काम किया। बाद में अमृतसर में अध्यापक पद पर काम किया|

ये दिल्ली विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर भी रहे|

साहनी प्रगतिशील लेखक संघ और अफ्रो-एशियाई लेखक संघ से भी जुड़े रहे|

भीष्म साहनी ने 1965 से दो साल तक ‘नयी कहानी पत्रिका’ का संपादन किया|

भीष्म साहनी की जीवनी, साहित्य, बाल साहित्य, भाषा शैली, विशेष तथ्य एवं संपूर्ण जानकारी

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार

दिविक रमेश

दिविक रमेश : आधुनिक काल के साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार दिविक रमेश की जीवनी, संपूर्ण साहित्य, भाषा शैली, कविताएं, आलोचना, संपादन, सम्मान एवं पुरस्कार आदि की पूरी जानकारी

दिविक रमेश की जीवनी

दिविक रमेश जी का वास्तविक नाम रमेश शर्मा है।

आपका जन्म 28 अगस्त, 1946 को किराड़ी, दिल्ली में हुआ था।

विधाएँ : कविता, बाल-साहित्य, शोध एवं आलोचना

दिविक रमेश का साहित्य

दिविक रमेश की कविताएं

गेहूँ घर आया है

खुली आँखों में आकाश

रास्ते के बीच

छोटा-सा हस्तक्षेप

हल्दी-चावल और अन्य कविताएँ

बाँचो लिखी इबारत

वह भी आदमी तो होता है

फूल तब भी खिला होता

दिविक रमेश के काव्य नाटक

खण्ड-खण्ड अग्नि

दिविक रमेश द्वारा आलोचना

नए कवियों के काव्य-शिल्प सिद्धांत

संवाद भी विवाद भी

कविता के बीच से

साक्षात त्रिलोचन

दिविक रमेश के बाल साहित्य

101 बाल कविताएँ

समझदार हाथी : समझदार चींटी (136 कविताएँ)

हँसे जानवर हो हो हो

कबूतरों की रेल

बोलती डिबिया

देशभक्त डाकू

बादलों के दरवाजे

शेर की पीठ पर

ओह पापा

गोपाल भांड के किस्से

त से तेनालीराम

ब से बीरबल

बल्लूहाथी का बालघर (बाल-नाटक)

दिविक रमेश द्वारा संपादन

निषेध के बाद

हिन्दी कहानी का समकालीन परिवेश

बालकृष्ण भट्ट

प्रतापनारायण मिश्र

आंसांबल

दिशाबोध

दूसरा दिविक

दिविक रमेश के सम्मान एवं पुरस्कार

गिरिजाकुमार माथुर स्मृति पुरस्कार

सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, दिल्ली

हिंदी अकादमी का साहित्यिक कृति पुरस्कार

साहित्यकार सम्मान बाल तथा साहित्य पुरस्कार

एन.सी.ई.आर.टी. का राष्ट्रीय बाल साहित्य पुरस्कार

बालकनजी बारी इंटरनेशनल का राष्ट्रीय नेहरू बाल साहित्य अवार्ड

इंडो-रशियन लिटरेरी क्लब, नई दिल्ली का सम्मान

अनुवाद के लिए भारतीय अनुवाद परिषद, दिल्ली का द्विवागीश पुरस्कार

श्रीमती रतन शर्मा बाल-साहित्य पुरस्कार

दिविक रमेश जी की सबसे प्रसिद्ध कविता ‘माँ गाँव में है’

माँ गाँव में है (काव्य)

चाहता था
आ बसे माँ भी
यहाँ, इस शहर में।
पर माँ चाहती थी
आए गाँव भी थोड़ा साथ में
जो न शहर को मंजूर था न मुझे ही।

न आ सका गाँव
न आ सकी माँ ही
शहर में।
और गाँव
मैं क्या करता जाकर!
पर देखता हूँ
कुछ गाँव तो आज भी ज़रूर है
देह के किसी भीतरी भाग में
इधर उधर छिटका, थोड़ा थोड़ा चिपका।

माँ आती
बिना किए घोषणा
तो थोड़ा बहुत ही सही
गाँव तो आता ही न
शहर में।
पर कैसे आता वह खुला खुला दालान, आंगन
जहाँ बैठ चारपाई पर
माँ बतियाती है
भीत के उस ओर खड़ी चाची से, बहुओं से।
करवाती है मालिश
पड़ोस की रामवती से।

सुस्ता लेती हैं जहाँ
धूप का सबसे खूबसूरत रूप ओढ़कर
किसी लोक गीत की ओट में।
आने को तो
कहाँ आ पाती हैं वे चर्चाएँ भी
जिनमें आज भी मौजूद हैं खेत, पैर, कुएँ और धान्ने।
बावजूद कट जाने के कॉलोनियाँ
खड़ी हैं जो कतार में अगले चुनाव की
नियमित होने को।
और वे तमाम पेड़ भी
जिनके पास
आज भी इतिहास है
अपनी छायाओं के।

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आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार

डॉ॰राही मासूम रज़ा

डॉ॰राही मासूम रज़ा : आधुनिक काल के साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार डॉ॰राही मासूम रज़ा की जीवनी, संपूर्ण साहित्य, भाषा शैली, कविताएं, उपन्यास, निबंध, आलोचना, संपादन, सम्मान एवं पुरस्कार आदि की पूरी जानकारी

डॉ॰राही मासूम रज़ा की जीवनी : डॉ॰राही मासूम रज़ा जीवनी साहित्य

जन्म:-1 सितंबर, 1927

गाजीपुर जिले के गंगौली गांव, उत्तर प्रदेश

मृत्यु:-15 मार्च 199

कार्यक्षेत्र:-साहित्य, गीत

भाषा:-हिन्दी, उर्दु

काल:-आधुनिक

विधा:-फिल्मी गीत, उपन्यास, जीवनी, कहानी, पटकथा

डॉ॰राही मासूम रजा का साहित्य :

डॉ॰राही मासूम रजा के कविता संग्रह

मै एक फेरीवाला

मौजे सबा

रक्से -मय

अजनबी शहर-अजनबी रास्ते

नया साल

मौजे गुल

डॉ॰राही मासूम रजा के उपन्यास

धा गाँव, 1966 ( गाजीपुर जिले के गंगोली गांव के सैयद मुसलमानों की कथा)

टोपी शुक्ला ,1969 ( हिंदू-मुस्लिम समस्या पर)

हिम्मत जौनपुरी ,1969 ( गाजीपुर जिले के एक मुसलमान की कथा)

ओस की बूंद ,1970 ( हिंदू-मुस्लिम धार्मिक उन्माद का का चित्रण)

दिल एक सादा कागज़ ,1973 ( पाकिस्तान में स्थांतरित भारतीय मुसलमानों के मोहभंग की कथा)

सीन 75,1975 ( 1975 में लागू आपातकाल और जनजीवन पर पड़े प्रभाव का चित्रण)

कटरा बी आर्जू ,1978 ( इलाहाबाद के एक मोहल्ले में रहने वाले हिंदू मुस्लिम की कहानी)

असंतोष के दिन ,1986

मुहबत के सिवा

नीम का पेड़

डॉ॰राही मासूम रजा के जीवनी साहित्य

छोटे आदमी की बड़ी कहानी ( 1965 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए ‘वीर अब्दुल हामिद’ की जीवनी)

डॉ॰राही मासूम रजा के निबंध संग्रह

हिन्दी में सिनेमा और संस्कृति

लगता है बेकार गये हम

खुदा हाफिज कहने का मोड़

डॉ॰राही मासूम रजा से संबंधी विशेष तथ्य : डॉ॰राही मासूम रज़ा जीवनी साहित्य

मुम्बई रहकर उन्होंने 300 फ़िल्मों की पटकथा और संवाद लिखे तथा दूरदर्शन के लिए 100 से अधिक धारावाहिक लिखे, जिनमें ‘महाभारत’ और ‘नीम का पेड़’ अविस्मरणीय हैं। इन्होंने प्रसिद्ध टीवी सीरियल महाभारत पटकथा भी लिखी है |

1979 में ‘मैं तुलसी तेरे आँगन की’ फ़िल्म के लिए फ़िल्म फ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संवाद पुरस्कार भी जीत चुके हैं।

पंक्ति

“वह उपन्यास वास्तव में मेरा एक सफर था। मैं ग़ाज़ीपुर की तलाश में निकला हूं लेकिन पहले मैं अपनी गंगोली में ठहरूंगा। अगर गंगोली की हक़ीक़त पकड़ में आ गयी तो मैं ग़ाज़ीपुर का एपिक लिखने का साहस करूंगा”।

आधुनिक काल के साहित्यकार डॉ॰राही मासूम रज़ा की जीवनी, संपूर्ण साहित्य, भाषा शैली, कविताएं, उपन्यास, निबंध, आलोचना, संपादन, सम्मान एवं पुरस्कार आदि की पूरी जानकारी

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार

रांगेय राघव (त्र्यंबक वीर राघवाचार्य)

रांगेय राघव (त्र्यंबक वीर राघवाचार्य) की जीवनी

आधुनिक काल के साहित्यकार रांगेय राघव के जीवन-परिचय के साथ-साथ हम इनके साहित्य, काव्य, उपन्यास, कहानी, भाषा शैली, पुरस्कार एवं अन्य तथ्य सहित पूरी जानकारी प्राप्त करेंगे।

पूरा नाम- तिरूमल्लै नंबकम् वीरराघव आचार्य (टी.एन.बी.आचार्य)

जन्म -17 जनवरी, 1923

जन्म भूमि- आगरा, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -12 सितंबर, 1962

मृत्यु स्थान- मुंबई, महाराष्ट्र

अभिभावक -श्री रंगनाथ वीर राघवाचार्य श्रीमती वन-कम्मा

पत्नी – सुलोचना

कर्म-क्षेत्र -उपन्यासकार, कहानीकार, कवि, आलोचक, नाटककार और अनुवादक

भाषा -हिन्दी, अंग्रेज़ी, ब्रज और संस्कृत

विद्यालय -सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा विश्वविद्यालय

शिक्षा -स्नातकोत्तर, पी.एच.डी

काल- आधुनिक काल (प्रगतिवादी युग)

रांगेय राघव जीवन-परिचय साहित्य
रांगेय राघव जीवन-परिचय साहित्य

रांगेय राघव की रचनाएं

जीवन-परिचय एवं साहित्य : रांगेय राघव के काव्य

अजेय खंडहर-1944 ( किस रचना को निम्न तीन शीर्षकों में बांटा गया है – 1. झंकार 2. ललकार 3. हुँकार)

पिघलते पत्थर-1946 (मुक्तक काव्य)

मेधावी-1947

राह के दीपक-1947

पांचाली-1955

रूपछाया

जीवन-परिचय एवं साहित्य : रांगेय राघव के उपन्यास

घरौंदा-1946

विषाद मठ

मुरदों का टीला (मोहनजोदड़ो का गणतंत्र)-1948

सीधा साधा रास्ता

हुजूर

चीवर-1951

प्रतिदान

अँधेरे के जुगनू (आंचलिक श्रेणी का उपन्यास )-1953

काका

उबाल

पराया

आँधी की नावें

अँधेरे की भूख

बोलते खंडहर

कब तक पुकारूँ (ब्रज के नटों के जीवन का वर्णन)

पक्षी और आकाश

बौने और घायल फूल

राई और पर्वत

बंदूक और बीन

राह न रुकी

जब आवेगी काली घटा-1958

छोटी सी बात

पथ का पाप

धरती मेरा घर

आग की प्यास

कल्पना

प्रोफेसर

दायरे

पतझर

आखिरी आवाज

रांगेय राघव के जीवनी प्रधान उपन्यास

डॉ. रांगेय राघव जी ने 1950 ई. के पश्चात् कई जीवनी प्रधान उपन्यास लिखे हैं, इनका पहला उपन्यास सन् 1951-1953 ई. के बीच प्रकाशित हुआ।

भारती का सपूत -जो भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की जीवनी पर आधारित है।

लखिमा की आंखें -जो विद्यापति के जीवन पर आधारित है।

मेरी भव बाधा हरो -जो बिहारी के जीवन पर आधारित है।

रत्ना की बात- जो तुलसी के जीवन पर आधारित है।

लोई का ताना -जो कबीर- जीवन पर आधारित है।

धूनी का धुंआं -जो गोरखनाथ के जीवन पर कृति है।

यशोधरा जीत गई (1954)-जो गौतम बुद्ध पर लिखा गया है।

देवकी का बेटा’ -जो कृष्ण के जीवन पर आधारित है।

रांगेय राघव के कहानी संग्रह

साम्राज्य का वैभव

देवदासी

समुद्र के फेन

अधूरी मूरत

जीवन के दाने

अंगारे न बुझे

ऐयाश मुरदे

इन्सान पैदा हुआ

पाँच गधे

एक छोड़ एक

रांगेय राघव की कहानियाँ

गदल ( राजस्थानी परिवेश से प्रेम की निगूढ़ अभिव्यक्ति)

रांगेय राघव के नाटक

स्वर्णभूमि की यात्रा

रामानुज

विरूढ़क

रांगेय राघव के रिपोर्ताज

तूफ़ानों के बीच

रांगेय राघव की आलोचनाएं

भारतीय पुनर्जागरण की भूमिका

भारतीय संत परंपरा और समाज

संगम और संघर्ष

प्राचीन भारतीय परंपरा और इतिहास

प्रगतिशील साहित्य के मानदंड

समीक्षा और आदर्श

काव्य यथार्थ और प्रगति

काव्य कला और शास्त्र

महाकाव्य विवेचन

तुलसी का कला शिल्प

आधुनिक हिंदी कविता में प्रेम और शृंगार

आधुनिक हिंदी कविता में विषय और शैली

गोरखनाथ और उनका युग

रांगेय राघव के सम्मान एवं पुरस्कार

हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार (1947)

डालमिया पुरस्कार (1954)

उत्तर प्रदेश शासन पुरस्कार (1957 तथा 1959)

राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार (1961)

महात्मा गाँधी पुरस्कार (1966)

रांगेय राघव संबंधी विशेष तथ्य

इन्हे हिंदी का शेक्सपीयर कहा जाता है|

प्रसिद्ध लेखक राजेंद्र यादव ने कहा है – ‘‘उनकी लेखकीय प्रतिभा का ही कमाल था कि सुबह यदि वे आद्यैतिहासिक विषय पर लिख रहे होते थे तो शाम को आप उन्हें उसी प्रवाह से आधुनिक इतिहास पर टिप्पणी लिखते देख सकते थे।”

दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक विभास चन्द्र वर्मा ने कहा कि आगरा के तीन ‘र‘ का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान है और ये हैं रांगेय राघव, रामविलास शर्मा और राजेंद्र यादव। वर्मा ने कहा कि रांगेय राघव हिंदी के बेहद लिक्खाड़ लेखकों में शुमार रहे हैं। उन्होंने क़रीब क़रीब हर विधा पर अपनी कलम चलाई और वह भी बेहद तीक्ष्ण दृष्टि के साथ।

उन्हें हिन्दी का पहला मसिजीवी क़लमकार भी कहा जाता है जिनकी जीविका का साधन सिर्फ़ लेखन था।

1942 में अकालग्रस्त बंगाल की यात्रा के बाद एक रिपोर्ताज लिखा- तूफ़ानों के बीच।

आधुनिक काल के साहित्यकार रांगेय राघव के जीवन-परिचय के साथ-साथ हम इनके साहित्य, काव्य, उपन्यास, कहानी, भाषा शैली, पुरस्कार एवं अन्य तथ्य सहित पूरी जानकारी प्राप्त की।

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार

यशपाल

यशपाल जीवन परिचय

यशपाल के जीवन परिचय और साहित्य की संपूर्ण जानकारी-

जन्म -3 दिसम्बर, 1903 ई.

जन्म भूमि – फ़िरोजपुर छावनी, पंजाब, भारत

मृत्यु -26 दिसंबर, 1976 ई.

अभिभावक- हीरालाल, प्रेमदेवी

कर्म-क्षेत्र -उपन्यासकार, लेखक, निबंधकार

नोट:- ये साम्यवादी या प्रगतिवादी उपन्यासकार है|

यशपाल साहित्य परिचय

यशपाल के जीवन परिचय और साहित्य की संपूर्ण जानकारी निम्न प्रकार है-

कहानी संग्रह

ज्ञानदान 1944 ई.

अभिशप्त 1944 ई.

तर्क का तूफ़ान 1943 ई.

भस्मावृत

चिनगारी 1946 ई.

वो दुनिया 1941 ई.

फूलों का कुर्ता 1949 ई.

धर्मयुद्ध 1950 ई.

उत्तराधिकारी 1951 ई.

चित्र का शीर्षक 1952 ई.

पिंजरे की उडान

उत्तमी की माँ

सच बोलने की भूल

तुमने क्यों कहा कि मैं सुन्दर हूँ

यशपाल की कहानियां : जीवन परिचय और साहित्य

चक्कर क्लब

परदा

आदमी और खच्चर

कुत्ते की पूँछ

यशपाल के उपन्यास : जीवन परिचय और साहित्य

दादा कामरेड 1941 ई.

देशद्रोही 1943 ई.

पार्टी कामरेड 1947 ई.

दिव्या 1945 ई.

मनुष्य के रूप 1949 ई.

अमिता 1956 ई.

झूठा सच-1960. (दो भाग प्रथम-1958, वतन और देश, द्वितीय-1960- देश का भविष्य)

मेरी तेरी उसकी बात-1974 (1942 की क्रांति पर आधारित)

अप्सरा का शाप 2010 ई.

यशपाल के निबंध संग्रह

न्याय का संघर्ष 1940 ई.

गाँधीवाद की शव परीक्षा-1941 ई.

चक्कर क्लब 1942 ई.

बात-बात में बात 1950 ई.

देखा, सोचा, समझा 1951 ई.

मार्क्सवाद

सिंहावलोकन -1951 (तीन खंड) आत्मकथा

संस्मरण – कुछ संस्मरण-1990

यशपाल के पुरस्कार व सम्मान

इनकी साहित्य सेवा तथा प्रतिभा से प्रभावित होकर रीवा सरकार ने ‘देव पुरस्कार’ (1955)

सोवियत लैंड सूचना विभाग ने ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ (1970)

हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ (1971)

भारत सरकार ने ‘पद्म भूषण’ की उपाधि प्रदान कर इनको सम्मानित किया है।

यशपाल संबंधी विशेष तथ्य

यह प्रगतिवादी उपन्यास परंपरा के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार माने जाते हैं।

झूठा सच देश विभाजन की त्रासदी पर आधारित इनका सर्वश्रेष्ट चर्चित उपन्यास है।

अपने उपन्यासों में इन्होंने नारी की समस्या को भी पूरी सहानुभूति से प्रस्तुत किया है।

इन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लिया ये सुखदेव और भगत सिंह के सहयोगी थे।क्रांतिकारी आंदोलन के कारण इन्हे जेल भी जाना पड़ा|

जेल से मुक्त होने के बाद इन्होंने ‘विप्लव’ मासिक पत्र निकाला।

इन्होने ‘पिंजरे की उड़ान’ और ‘वो दुनियाँ’ की कहानियाँ जेल में ही लिखी थी।

अंततः आशा है कि आपके लिए यशपाल का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय उपयोगी सिद्ध हुआ होगा।

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार

भारतेंदु हरिश्चंद्र

इसमें हम भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी और संपूर्ण साहित्य की जानकारी प्राप्त करेंगे जो प्रतियोगी परीक्षाओं एवं हिंदी साहित्य प्रेमियों हेतु ज्ञानवर्धक सिद्ध होने की आशा है।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी

पूरा नाम- बाबू भारतेन्दु हरिश्चंद्र

जन्म- 9 सितम्बर सन् 1850

जन्म भूमि- वाराणसी, उत्तर प्रदेश

मृत्यु- 6 जनवरी, सन् 1885

Note:- मात्र 35 वर्ष की अल्प आयु में ही इनका देहावसान हो गया था|

मृत्यु स्थान- वाराणसी, उत्तर प्रदेश

अभिभावक – बाबू गोपाल चन्द्र

कर्म भूमि वाराणसी

कर्म-क्षेत्र- पत्रकार, रचनाकार, साहित्यकार

उपाधी:- भारतेंदु

नोट:- डॉक्टर नगेंद्र के अनुसार उस समय के पत्रकारों एवं साहित्यकारों ने 1880 ईस्वी में इन्हें ‘भारतेंदु’ की उपाधि से सम्मानित किया|

Bhartendu Harishchandra
Bhartendu Harishchandra

भारतेंदु हरिश्चंद्र के सम्पादन कार्य

इनके द्वारा निम्नलिखित तीन पत्रिकाओं का संपादन किया गया:-

कवि वचन सुधा-1868 ई.– काशी से प्रकाशीत (मासिक,पाक्षिक,साप्ताहिक)

हरिश्चन्द्र चन्द्रिका- 1873 ई. (मासिक)- काशी से प्रकाशीत

आठ अंक तक यह ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ नाम से तथा ‘नवें’ अंक से इसका नाम ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ रखा गया|

हिंदी गद्य का ठीक परिष्कृत रूप इसी ‘चंद्रिका’ में प्रकट हुआ|

3. बाला-बोधिनी- 1874 ई. (मासिक)- काशी से प्रकाशीत – यह स्त्री शिक्षा सें संबंधित पत्रिका मानी जाती है|

भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएं

इनकी कुल रचनाओ की संख्या 175 के लगभग है-

नाट्य रचनाएं:-कुल 17 है जिनमे ‘आठ’ अनूदित एवं ‘नौ’ मौलिक नाटक है-

भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनूदित नाटक

विद्यासुंदर- 1868 ई.- यह संस्कृत नाटक “चौर पंचाशिका” के बंगला संस्करण का हिन्दी अनुवाद है|

रत्नावली- 1868 ई.- यह संस्कृत नाटिका ‘रत्नावली’ का हिंदी अनुवाद है|

पाखंड-विडंबन- 1872 ई.- यह संस्कृत में ‘कृष्णमिश्र’ द्वारा रचित ‘प्रबोधचन्द्रोदय’ नाटक के तीसरे अंक का हिंदी अनुवाद है|

धनंजय विजय- 1873 ई.- यह संस्कृत के ‘कांचन’ कवि द्वारा रचित ‘धनंजय विजय’ नाटक का हिंदी अनुवाद है

कर्पुरमंजरी- 1875 ई.- यह ‘सट्टक’ श्रेणी का नाटक संस्कृत के ‘काचन’ कवि के नाटक का अनुवाद|

भारत जननी- 1877 ई.- इनका गीतिनाट्य है जो संस्कृत से हिंदी में अनुवादित

मुद्राराक्षस- 1878 ई.- विशाखादत्त के संस्कृत नाटक का अनुवाद है|

दुर्लभबंधु-1880 ई.- यह अग्रेजी नाटककार ‘शेक्सपियर’ के ‘मर्चेट ऑव् वेनिस’ का हिंदी अनुवाद है|

Trik :- विद्या रत्न पाकर धनंजय कपुर ने भारत मुद्रा दुर्लभ की|

मौलिक नाटक- नौ

वैदिक हिंसा हिंसा न भवति- 1873 ई.- प्रहसन – इसमे पशुबलि प्रथा का विरोध किया गया है|

सत्य हरिश्चन्द्र- 1875 ई.- असत्य पर सत्य की विजय का वर्णन|

श्री चन्द्रावली नाटिका- 1876 ई. – प्रेम भक्ति का आदर्श प्रस्तुत किया गया है|

विषस्य विषमौषधम्- 1876 ई.- भाण- यह देशी राजाओं की कुचक्रपूर्ण परिस्थिति दिखाने के लिए रचा गया था|

भारतदुर्दशा- 1880 ई.- नाट्यरासक

नीलदेवी- 1881 ई.- गीतिरूपक

अंधेर नगरी- 1881 ई.- प्रहसन (छ: दृश्य) भ्रष्ट शासन तंत्र पर व्यंग्य किया गया है|

प्रेम जोगिनी- 1875 ई.– तीर्थ स्थानों पर होनें वाले कुकृत्यों का चित्रण किया गया है|

सती प्रताप- 1883 ई.यह इनका अधुरा नाटक है बाद में ‘ राधाकृष्णदास’ ने पुरा किया|

भारतेंदु हरिश्चंद्र की काव्यात्मक रचनाएं

इनकी कुल काव्य रचना 70 मानी जाती है जिनमे कुछ प्रसिद्ध रचनाएं:-

प्रेममालिका- 1871

प्रेमसरोवर-1873

प्रेमपचासा

प्रेमफुलवारी-1875

प्रेममाधुरी-1875

प्रेमतरंग

प्रेम प्रलाप

विनय प्रेम पचासा

वर्षा- विनोद-1880

गीत गोविंदानंद

वेणु गीत -1884

मधु मुकुल

बकरी विलाप

दशरथ विलाप

फूलों का गुच्छा- 1882

प्रबोधिनी

सतसई सिंगार

उत्तरार्द्ध भक्तमाल-1877

रामलीला

दानलीला

तन्मय लीला

कार्तिक स्नान

वैशाख महात्म्य

प्रेमाश्रुवर्षण

होली

देवी छद्म लीला

रानी छद्म लीला

संस्कृत लावनी

मुंह में दिखावनी

उर्दू का स्यापा

श्री सर्वोतम स्तोत्र

नये जमाने की मुकरी

बंदरसभा

विजय-वल्लरी- 1881

रिपनाष्टक

भारत-भिक्षा- 1881

विजयिनी विजय वैजयंति- 1882

नोट- इनकी ‘प्रबोधनी’ रचना विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की प्रत्यक्ष प्रेरणा देने वाली रचना है|

‘दशरथ विलाप’ एवं ‘फूलों का गुच्छा’ रचनाओं में ब्रजभाषा के स्थान पर ‘खड़ी बोली हिंदी’ का प्रयोग हुआ है|

इनकी सभी काव्य रचनाओं को ‘भारतेंदु ग्रंथावली’ के प्रथम भाग में संकलित किया गया है|

‘देवी छद्म लीला’, ‘तन्मय लीला’ आदि में कृष्ण के विभिन्न रूपों को प्रस्तुत किया गया है|

भारतेंदु हरिश्चंद्र के उपन्यास

हम्मीर हठ

सुलोचना

रामलीला

सीलावती

सावित्री चरित्र

भारतेंदु हरिश्चंद्र के निबंध

कुछ आप बीती कुछ जग बीती

सबै जाति गोपाल की

मित्रता

सूर्योदय

जयदेव

बंग भाषा की कविता

भारतेंदु हरिश्चंद्र के इतिहास ग्रंथ

कश्मीर कुसुम

बादशाह

विकिपीडिया लिंक- भारतेंदु हरिश्चंद्र

अंततः हम आशा करते हैं कि यह भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी और संपूर्ण साहित्य की जानकारी प्रतियोगी परीक्षाओं एवं हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए ज्ञानवर्धक होगी।

आदिकाल के साहित्यकार
आधुनिक काल के साहित्यकार