महादेवी वर्मा Mahadevi Verma

महादेवी वर्मा Mahadevi Verma का जीवन परिचय

महादेवी वर्मा Mahadevi Verma का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, महादेवी वर्मा की रचनाएं, कविताएं, काव्य संग्रह, भाषा शैली, निबंध, बाल साहित्य

जन्म- 26 मार्च, 1907, फ़र्रुख़ाबाद

पिता- गोविंद प्रसाद

निधन- 11 सितम्बर, 1987, प्रयागराज

आधुनिक साहित्य की मीरा

महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय

महादेवी वर्मा की रचनाएं

रेखाचित्र

अतीत के चलचित्र (1941)

स्मृति की रेखाएँ (1943)

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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

संस्मरण

पथ के साथी (1956, अपने अग्रज समकालीन साहित्यकारों पर)

मेरी परिवार (1972, पशु-पक्षियों पर)

संस्मरण (1983)

ललित निबंध

क्षणदा (1956)

चुने हुए भाषणों का संग्रह

संभाषण (1974)

कहानियाँ

गिल्लू

निबन्ध

विवेचनात्मक गद्य (1942)

श्रृंखला की कड़ियाँ (1942, भारतीय नारी की विषम परिस्थितियों पर)

साहित्यकार की आस्था और अन्य निबन्ध (1962, सं. गंगा प्रसाद पांडेय, महादेवी का काव्य-चिन्तन)

संकल्पिता (1969)

भारतीय संस्कृति के स्वर (1984)।

चिन्तन के क्षण

युद्ध और नारी

नारीत्व का अभिशाप

सन्धिनी

आधुनिक नारी

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न

सामाज और व्यक्ति

संस्कृति का प्रश्न

हमारा देश और राष्ट्रभाषा

कविता संग्रह : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

नीहार (1930)

रश्मि (1932)

नीरजा (1934)

सांध्यगीत (1935)

यामा (1940)

दीपशिखा (1942)

सप्तपर्णा (1960, अनूदित)

संधिनी (1965)

नीलाम्बरा (1983)

आत्मिका (1983)

दीपगीत (1983)

प्रथम आयाम (1984)

अग्निरेखा (1990)

पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)

परिक्रमा

गीतपर्व

पुनर्मुद्रित संकलन
(निम्नलिखित संकलनों में महादेवी वर्मा की नयी कवितायें नहीं हैं, बल्कि पुराने संकलनों को ही नयी भूमिकाओं के साथ पुनर्मुद्रित किया गया है।)

यामा (1940)

हिमालय (1960)

दीपगीत (1983)

नीलाम्बरा (1983)

आत्मिका (1983)

गीतपर्व

परिक्रमा

संधिनी

स्मारिका

पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)

बाल साहित्य

ठाकुर जी भोले हैं

आज खरीदेंगे हम ज्वाला

बंगाल के अकाल के समय 1943 में इन्होंने एक काव्य संकलन प्रकाशित किया था और बंगाल से सम्बंधित “बंग भू शत वंदना” नामक कविता भी लिखी थी। इसी प्रकार चीन के आक्रमण के प्रतिवाद में हिमालय (1960) नामक काव्य संग्रह का संपादन किया था।

पुरस्कार और सम्मान : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

1934 ‘नीरजा’ पर ‘सेक्सरिया पुरस्कार

1942 ‘ द्विवेदी पदक’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)

1943 ‘मंगला प्रसाद पुरस्कार’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)

1943 ‘ भारत भारती पुरस्कार’, (‘स्मृति की रेखाओं’ के लिये)

1944 ‘यामा’ कविता संग्रह के लिए

1952 उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत

1956 ‘पद्म भूषण’

1979 साहित्य अकादमी फैलोशिप (पहली महिला)

1982 काव्य संग्रह ‘यामा’ (1940) के लिये ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’

1988 ‘पद्म विभूषण’ (मरणोपरांत)

विशेष तथ्य : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

सन् 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना की और पं. इलाचंद्र जोशी के सहयोग से ‘साहित्यकार’ का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ मासिक की भी संपादक रहीं।

हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘ रंगवाणी नाट्य संस्था’ की भी स्थापना की।

इन्हे ‘वेदना की कवयित्री’ एवं ‘आधुनिक युग की मीरां‘ नाम से भी पुकारा जाता है|

ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रचार्य रही हैं।

रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा- “छायावाद कहे जाने वाले कवियों मे महादेवी जी ही रहस्यवाद के भीतर रही है।”

इनको छायावाद साहित्य की ‘शक्ति (दुर्गा)’ कहा जाता है।

कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।

महादेवी वर्मा कवयित्री और गद्य लेखिका, साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं।

महादेवी वर्मा कृत ‘सप्तपर्णा’ में ऋग्वेद के मंत्रों का हिन्दी काव्यानुवाद संकलित है।

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने महादेवी वर्मा के काव्य संकलन ‘नीहार’ की भूमिका सन् 1930 ई. में लिखी थी।

महादेवी वर्मा की ब्रजभाषा और आरंभिक खड़ी बोली की कविताओं का संकलन 1984 ई. में ‘प्रथम आयाम’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

कवयित्री महादेवी वर्मा को बौद्ध दर्शन से प्रभावित रहस्यवादी कवयित्री के रूप में स्वीकार किया जाता है।

इनके सबसे प्रिय प्रतीक बादल और दीपक हैं।

महादेवी वर्मा द्वारा रचित प्रमुख पंक्तियाँ

सौन्दर्य परिचय -स्निग्ध खंड है और सत्य विस्मय भरा अखण्ड।

कवि का दर्शन जीवन के प्रति उसकी आस्था का दूसरा नाम है।

आस्था मानव के युगान्तर से प्राप्त दार्शनिक लक्ष्य पर केन्द्रित रागात्मक दृष्टि है।

काव्य या कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है।

‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुडी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।’’

छायावाद तो करुणा की छाया में सौन्दर्य के माध्यम से व्यक्त होने वाला भावात्मक सर्ववाद ही रहा है और उसी रूप में उसकी उपयागिता है।

“मां से पूजा और आरती के समय सुने सूर, तुलसी तथा मीरा आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। मां से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पडौस की एक विधवा वधू के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र् लिखे थे जो उस समय की पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए थे। व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है।”

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

मन्नू भंडारी Mannu Bhandari

मन्नू भंडारी Mannu Bhandari जीवन परिचय

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जन्म -3 अप्रेल, 1931

जन्म भूमि – भानपुरा नगर, मध्य प्रदेश

बचपन का नाम- महेंद्र कुमारी (लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम को चुना)

पिता- सुखसम्पत राय भंडारी

पति- राजेन्द्र यादव

काल- आधुनिक काल

युग- प्रयोगवादी या आधुनिकताबोधवादी युग

नई कहानी-नगरबोध के कहानीकार

मन्नू भंडारी Mannu Bhandari का साहित्य

रचनाएं

कहानी संग्रह

मैं हार गई (1957)

एक प्लेट सैलाब (1968)

तीन निगाहों की एक तस्वीर (1968)

यही सच है (1966)

त्रिशंकु

रेत की दीवार

श्रेष्ठ कहानियाँ

कहानियां : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari

रेत की दीवार

मैं हार गई 1957

तीन निगाहों की एक तस्वीर 1968

यही सच है 1966

त्रिशंकु

बंद दरवाजों का साथ

रानी मां का चबूतरा

अलगाव

अकेली

एक प्लेट का सैलाब-1968

कृषक

आँखों देखा झूठ

नायक खलनायक विदूषक
इन की कहानियां मुख्यतः प्रेम त्रिकोण पर आधारित है

उपन्यास : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari

आपका बंटी-1971

महाभोज

स्वामी

एक इंच मुस्कान (राजेंद्र यादव के साथ सह लेखन)

कलवा

फ़िल्म पटकथाए

रजनीगंधा

निर्मला

स्वामी

दर्पण

नाटक

बिना दीवारों का घर (1965)

रजनी दर्पण

महाभोज का नाट्य रूपान्तरण (1982)

आत्मकथा

एक कहानी यह भी (2007)

प्रौढ़ शिक्षा के लिए- सवा सेर गेहूं (1993) (प्रेमचन्द की कहानी का रूपान्तरण)

पुरस्कार एवं सम्मान : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari

हिंदी अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान (बिहार सरकार)

भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता सम्मान

राजस्थान संगीत नाटक अकादमी सम्मान

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार

भारतीय भाषा परिषद (भारतीय भाषा परिषद), कोलकाता, 1982

काला-कुंज सन्मान (पुरस्कार), नई दिल्ली, 1982

भारतीय संस्कृत संसद कथा समरोह (भारतीय संस्कृत कथा कथा), कोलकाता, 1983

बिहार राज्य भाषा परिषद (बिहार राज्य भाषा परिषद), 1991

राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, 2001- 02

महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी (महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी), 2004

हिंदी अकादमी, दिलीली शालका सन्मैन, 2006- 07

मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन (मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन), भवभूति अलंकरण, 2006- 07

के.के. बिड़ला फाउंडेशन ने उन्हें अपने काम के लिए 18 वें व्यास सम्मान के साथ प्रस्तुत किया, एह कहानी यहे भी, एक आत्मकथात्मक उपन्यास

व्यास सम्मान (2008)

विशेष तथ्य : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari

राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया उनका उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ पढ़े-लिखे और आधुनिकता पसंद लोगों की दुखभरी प्रेमगाथा है।

इनकी ‘यही सच है’ कृति पर आधारित ‘रजनीगंधा फ़िल्म’ ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई थी।

आम आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को उकेरने वाले उनके उपन्यास ‘महाभोज’ पर आधारित नाटक खूब लोकप्रिय हुआ था।

“मैनें उन चीजों पर लिखा है जो या तो मेरे साथ हुईं हैं या किसी भी तरह से मेरे अनुभव का हिस्सा रहीं हैं एक कथाकार को नई चीजों के बारे में भी लिखना चाहिए लेकिन मैं अपने ही अनुभवों को कहानी में ढालकर तसल्ली कर लेती थी| फिर भी मैं यही कहूंगी कि एक अच्छा कथाकार एक परिचित यथार्थ को भी नए सिरे से, नए कोण से पेश कर सकता है|” – मन्नू भंडारी

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निर्मल वर्मा

निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय

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जन्म -3 अप्रॅल, 1929, शिमला

मृत्यु -25 अक्तूबर, 2005, दिल्ली

पिता- नंद कुमार वर्मा

कर्म-क्षेत्र – साहित्य

भाषा -हिन्दी

विद्यालय – सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली

शिक्षा -एम.ए. (इतिहास)

काल-आधुनिक काल

अकहानी आन्दोलन के प्रवर्तक-1960

प्रयोगवादी या आधुनिकताबोधवादी उपन्यासकार

साहित्यिक परिचय

रचनाएं

उपन्यास

वे दिन (1964)

लाल टीन की छत (1974)

एक चिथड़ा सुख (1979)

रात का रिपोर्टर (1989)

अंतिम अरण्य (2000)

कहानी संग्रह

परिंदे (1959)

जलती झाड़ी (1965)

पिछली गर्मियों में (1968)

बीच बहस में (1973)

मेरी प्रिय कहानियाँ (1973)

कव्वे और काला पानी (1983)

सूखा तथा अन्य कहानियाँ (1995)

ग्यारह लंबी कहानियां-2000 (प्रतिनिधि कहनी संग्रह)

एक दिन का मेहमान

संपूर्ण कहानियाँ (2005)

कहानियाँ : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय

परिंदे

लंदन की एक रात

कुत्ते की मौत

लवर्स

बुख़ार

सुबह की सैर

कव्वे और काला पानी

सूखा

डायरी व यात्रा-संस्मरण

चीड़ों पर चाँदनी (1963)

हर बारिश में (1970)

धुँध से उठती धुन (1977)

रिपोर्ताज

प्राग: एक स्वप्न

निबंध : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय

शब्द और स्मृति (1976)

संस्कृति, समय और भारतीय उपन्यास

कला, मिथक और यथार्थ

परंपरा और इतिहास बोध

रचना की जरूरत

साहित्य में प्रसंगिकता का प्रश्न

रेणु :समग्र मानवीय दृष्टि

अज्ञेय: आधुनिकता की पीड़ा

हमारे समय का नायक

हर बारिश में-1970

कला का जोखिम (1981)

ढलान से उतरते हुए (1985)

भारत और यूरोप : प्रतिश्रुति के क्षेत्र (1991)

इतिहास स्मृति आकांक्षा (1991)

शताब्दी के ढलते वर्षों में (1995)

दूसरे शब्दों में (1995)

अन्त और आरम्भ (2001)

साहित्य का आत्मकथ्य-(2005)

सर्जनापथ के सहयात्री-(2006)

नाटक

तीन एकान्त (1976)

वीक एण्ड

धूप का एक टुकड़ा

डेढ़ इंच ऊपर

अनुवाद

कुप्रिन की कहानियाँ (1955)

रोमियो जूलियट और अँधेरा (1962)

झोंपड़ीवाले (1966)

बाहर और परे (1967)

बचपन (1970)

आर यू आर (1972)

पुरस्कार और सम्मान : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय

1999 में साहित्य में सम्पूर्ण योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।

2002 में भारत सरकार की ओर से साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण दिया गया।

निर्मल वर्मा को मूर्तिदेवी पुरस्कार (1995)

साहित्य अकादमी पुरस्कार (1985) (कौवे और काला पानी कहानी पर)

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

विशेष तथ्य : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय

निर्मल वर्मा की कहानी ‘माया दर्पण’ पर 1973 में फ़िल्म बनी जिसे सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म का पुरस्कार मिला।

बीबीसी द्वार इनपर डाक्यूमेंट्री फिल्म प्रसारित हुई थी |

हैडिलबर्ग विश्वविद्यालय दक्षिण एशिया के निमंत्रण पर ‘भारत और यूरोप प्रतिश्रुति के क्षेत्र’ व्याख्यानमाला में निर्मल ने एक नई स्थापना रखी थी। कहा कि भारत और यूरोप दो ध्रुवों का नाम है। एक दूसरे से जुड़ कर भी ये दो अलग वास्तविकताएं हैं जिनको खींच कर या सिकोड़ कर मिलाया नहीं जा सकता।

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पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का जीवन परिचय, साहित्य परिचय, रचनाएं, उपन्यास, आत्मकथा, भाषा शैली, तात्विक समीक्षा, कहानियाँ, नाटक, एकांकी, आलोचना, निबंध, विशेष तथ्य

Pandeya Bechan Sharma Ugra
Pandeya Bechan Sharma Ugra

जीवन परिचय

जन्म- 1900

जन्म भूमि- मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश

मृत्यु- 1967

मृत्यु स्थान- दिल्ली

युग- प्रेमचंदयुगीन उपन्यासकार

साहित्य परिचय

रचनाएं

उपन्यास

घंटा,1924

चंद हसीनों के खतूत,1927

दिल्ली का दलाल,1927

बुधुआ की बेटी,1928

शराबी,1930

सरकार तुम्हारी आँखों में,1931

जीजीजी,1943

मनुष्यानंद,1955

कला का पुरस्कार,1955

कढ़ी में कोयला,1955

फागुन के दिन चार,1960

कहानियां

चिनगारियाँ,1923

शैतान मंडली,1924

इन्द्रधनुष,1927

बलात्कार,1927

चॉकलेट,1928

दोजख की आग,1929

निर्लज्जा,1929

सनकी अमीर

रेशमी

व्यक्तिगत

पंजाब की महारानी

उग्र का हास्य

नाटक

महात्मा ईसा,1922

उजबक

चुंबन,1937

डिक्टेटर,1937

गंगा का बेटा,1940

आवास,

अन्नदाता माधव महाराज महान्

एकांकी

अफजल वद्य

भाई मियां

चार बेचारे

आत्मकथा

अपनी खबर,1960 ( इस आतमकथा में इन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक 21 वर्षों की घटनाओं का वर्णन किया है)

आलोचना

तुलसीदास आदि अनेक आलोचनातमक निबंध।

निबंध

बुढापा

गाली

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : विशेष तथ्य

इन्होंने ‘दलित या पतित वर्ग’ को अपने उपन्यास का विषय बनाया है |

ये ‘प्रेमचंद युग’ के सबसे बदनाम उपन्यासकार हुए। इन्होंने अपने उपन्यासों में समाज की बुराइयो को, उसकी नंगी सच्चाई को बिना लाग-लपट के बड़े साहस के साथ, किंतु सपाट बयानबाज़ी से प्रस्तुत किया।

बनारसी दास चतुर्वेदी ने इनके उपन्यासों को ‘घासलेटी साहित्य’ कहा है|

उन्होंने अयोध्या में रामलीला मंडली में ‘सीता’ का अभिनय अनेक बार किया था|

इन्होंने गोरखपुर से ‘स्वदेश’ नामक पत्रिका निकाली थी जिसके कारण इनको जेल भी जाना पड़ा था|

उग्र ने मतवाला, वीणा, स्वराज, विक्रम, संग्राम आदि पत्र/पत्रिकाओं का संपादन किया था|

इनकी प्रारंभिक कहानियां 1921 ईस्वी में ‘अष्टावक्र’ नाम से प्रकाशित हुई थी|

इनकी ‘उग्रता’ के प्रभाव को आलोचकों ने ‘उल्कापात’, ‘धूमकेतु’, ‘तूफान’ या ‘बवंडर’ की उपमा दी थी|

इन्हें प्रकृतिवादी कहानीकार कहा जाता है|

‘चिंगारियां’ कहानी संग्रह में इन्होंने अपनी विद्रोह है पूर्ण राष्ट्रीय चेतना को वाणी देने का प्रयास किया, जिसके फलस्वरूप यह कहानी संग्रह अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था|

ये बचपन से ही काव्यरचना करने लगे थे। अपनी किशोर वय में ही इन्होंने प्रियप्रवास की शैली में “ध्रुवचरित्” नामक प्रबंध काव्य की रचना कर डाली थी।

ये काशी के दैनिक “आज” में “ऊटपटाँग” शीर्षक से व्यंग्यात्मक लेख लिखा करते थे और अपना नाम रखा था “अष्टावक्र”।

उग्र जी की मित्रमंडली में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, जयशंकर प्रसाद, शिवपूजन सहाय, विनोदशंकर व्यास आदि प्रसिद्ध साहित्यकार थे।

उग्र शैली – व्यंजनाओं, लक्षणाओं और वक्रोक्तियों से समृद्ध भाषा के धनी ‘उग्र’ ने अरसा पहले कहानी को एक नई शैली दी थी, जिसे आदरपूर्वक ‘उग्र शैली’ कहा जाता है।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय, निराला का साहित्यिक परिचय, निराला की रचनाएं, पुस्तकें, भाषा शैली

पूरा नाम – सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

अन्य नाम- निराला

जन्म- 21 फ़रवरी, 1896. (NCERT Book 1899 )

(11 जनवरी, 1921 ई. को पं. महावीर प्रसाद को लिखे अपने पत्र में निराला जी ने अपनी उम्र 22 वर्ष बताई है। रामनरेश त्रिपाठी ने कविता कौमुदी के लिए सन् 1926 ई. के अन्त में जन्म सम्बंधी विवरण माँगा तो निराला जी ने माघ शुक्ल 11 सम्वत 1953 (1896) अपनी जन्म तिथि लिखकर भेजी। यह विवरण निराला जी ने स्वयं लिखकर दिया था)

जन्म भूमि – मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)

मृत्यु -15 अक्टूबर, सन् 1961

मृत्यु स्थान- प्रयाग, भारत

अभिभावक- पं. रामसहाय

पत्नी- मनोहरा देवी

कर्म-क्षेत्र – साहित्यकार

प्रसिद्धि- कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार

काल- आधुनिक काल (छायवादी युग)

आन्दोलन-प्रगतिवाद

सूर्यकान्त त्रिपाठी का साहित्यिक परिचय

निराला की रचनाएं

कविता संग्रह

अनामिका-1923, द्वितीय भाग,1938

परिमल 1930,

गीतिका 1936,

सरोज स्मृति 1935,

राम की शक्ति पुजा,1936

द्वितीय अनामिका1938 (अनामिका के दूसरे भाग में सरोज सम़ृति और राम की शक्ति पूजा जैसे प्रसिद्ध कविताओं का संकलन है।)

तुलसीदास 1938,

कुकुरमुत्ता 1942,

अणिमा 1943,

बेला 1946,

नये पत्ते 1946,

अर्चना 1950,

आराधना 1953,

गीत कुंज 1954, द्वितीय भाग,1959 ई.

सांध्यकाकली,

राग-विराग
– निराला की सर्वपर्थम कविता- जूही की कली 1916 ई.
नोट:- रामविलास शर्मा के मतानुसार इनकी सर्वप्रथम कविता ‘भारत माता की वंदना’ (1920 ई.) मानी जाती है|
– ‘अनामिका’ एवं ‘परिमल’ कविता संग्रह में इनकी प्रकृति प्रेम, सौंदर्य चित्रण एवं रहस्यवाद संबंधी कविताओं को संकलित किया गया है| ‘परिमल’ काव्य संग्रह में इनकी निम्न कविताओं को संग्रहित किया गया है-

जूही की कली

संध्या-सुंदरी

बादल-राग

विधवा

भिक्षुक

दिन

बहू

आधिवासे

पंचवटी प्रसंग

काव्य संबंधी विशेष तथ्य

नोट-‘परिमल’ मैं छायावाद के साथ-साथ प्रगतिवाद के तत्व भी विद्यमान है|

‘परिमल’ की भूमिका में वे लिखते हैं- “मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छन्दों के शासन से अलग हो जाना है।

जिस तरह मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह दूसरों के प्रतिकूल आचरण नहीं करता, उसके तमाम कार्य औरों को प्रसन्न करने के लिए होते हैं फिर भी स्वतंत्र। इसी तरह कविता का भी हाल है।”

‘जूही की कली‘ कविता में प्रकृति के माध्यम से माननीय भावनाओं की अभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावोत्पादक रूप में हुई है|

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय

काव्य संबंधी विशेष तथ्य

‘गीतिका‘ रचना में कवि ने अपनी भावनाओं को संगीत के स्वरों में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है|

तुलसीदास– यह निराला जी का श्रेष्ठ प्रबंधात्मक काव्य है जिसमें कवि ने गोस्वामी तुलसीदास के माध्यम से भारतीय परंपरा के गौरवशाली मूल्यों की प्रतिष्ठा का प्रयास किया है इसमें तुलसीदास द्वारा अपनी पत्नी रत्नावली से मिलने के लिए उनके पीहर चले जाने पर पत्नी द्वारा फटकार लगाए जाने पर गृहस्थ जीवन को त्याग कर राम उपासना में लीन होने की घटना का वर्णन किया गया है|

इसी रचना के लेखन के कारण यह माना जाता है कि ये तुलसीदास को अपना सर्व प्रिय कवि मानते थे|

सरोज स्मृति:– यह एक शोक गीत है जिसे कवि ने अपनी 18 वर्षीय पुत्री सरोज की करुण स्मृति में लिखा था इसे ‘हिंदी साहित्य संसार का सर्वाधिक प्रसिद्ध शोकगीत कहा जाता है’ इस में वात्सल्य एवं करुण दोनों रसों का अद्भुत सामजस्य दृष्टिगोचर होता है|

राम की शक्ति पूजा:– यह एक लघु प्रबंधात्मक काव्य है जिसमें निराला का ओज अपनी पूर्ण शक्ति के साथ प्रस्फुटित हुआ है इस रचना पर ‘कृतिवास रामायण’ का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है यह शक्ति काव्य जिजीविषा एवं राष्ट्रीय चेतना की कविता है|

कुकुरमुत्ता- इसमें कवि ने पूंजीवादियों पर तीखा व्यंग्य किया है इसमें कवि ने संस्कृत शब्दावली का प्रयोग नहीं कर के ‘उर्दू’ व ‘अंग्रेजी’ के शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया है इसमें कवि ने सर्वहारा वर्ग की प्रशंसा और धनवानों की घोर निंदा की है|

नये पत्ते:- इसमें कवि की सात व्यंग्य प्रधान कविताओं का संग्रह किया गया है|

उपन्यास

अप्सरा, 1931

अलका, 1931

प्रभावती,1936,

निरुपमा, 1936

कुल्ली भाट,

बिल्लेसुर बकरिहा,1942

चोटी की पकड़,1946

काले कारनामे,1950

चमेली

अश्रृंखल

कहानी संग्रह

लिली,

चतुरी चमार,

सुकुल की बीवी-1941,

सखी,

देवी।

निबंध

रवीन्द्र कविता कानन, (आलोचना)

प्रबंध पद्म,

प्रबंध प्रतिमा,

चाबुक,

चयन,

संघर्ष (ये सभी इनके निबंध संग्रह है)

पुराण कथा- महाभारत

अनुवाद

आनंद मठ,

विष वृक्ष,

कृष्णकांत का वसीयतनामा,

कपालकुंडला,

दुर्गेश नन्दिनी,

राज सिंह,

राजरानी,

देवी चौधरानी,

युगलांगुल्य,

चन्द्रशेखर,

रजनी,

श्री रामकृष्ण वचनामृत,

भारत में विवेकानंद तथा राजयोग का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद

कार्यक्षेत्र : सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय

निराला जी ने 1918 से 1922 तक महिषादल राज्य की सेवा की। उसके बाद संपादन स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया।

इन्होंने 1922 से 23 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय’ का संपादन किया।

1923 के अगस्त से ‘मतवाला’ के संपादक मंडल में काम किया।

इनके इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय और वहाँ से निकलने वाली मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे।

इन्होंने 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य भी किया।

ये जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।

इन्होंने कहानियाँ उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है।

विशेष तथ्य

हिंदी साहित्य जगत में निराला के लिए ‘महाप्राण’ शब्द का प्रयोग भी किया जाता है गंगा प्रसाद पांडेय ने ‘महाप्राण निराला’ आलोचना पुस्तक लिखकर यह नाम प्रदान किया था|

यह हिंदी कविता को छंदों की परिधि से मुक्त करने वाले कवि माने जाते हैं ,अर्थात इनको ‘मुक्तक छंद’ का प्रवर्तक भी कहा जाता है|
नोट:- मुक्तक छंद को ‘केंचुआ’ या ‘रबर’ छंद भी कहते हैं|

इनको छायावाद, प्रगतिवाद एवं प्रयोगवाद इन तीनों आंदोलनों का पथ प्रदर्शक भी कहा जाता है|

ये छायावाद के ‘रुद्र (महेश)’ माने जाते है|

यह विवेकानंद जी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे|

द्विवेदी कालीन कवियों में इनको सर्वाधिक विरोध का सामना करना पड़ा था|

रविवार को जन्म लेने के कारण सर्वप्रथम इन का मूल नाम ‘सूर्य कुमार‘ रखा गया था जिसे सन 1917-18 ईस्वी में बदलकर इन्होंने ‘सूर्यकांत’ कर दिया था|

प्रसिद्ध ऐतिहासिक लेख ‘भावों की भिडंत’ यह लेख बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ द्वारा संपादित ‘प्रभा’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था जिसमें यह सिद्ध किया गया था कि निराला की बहुत सी कविताएं रवींद्रनाथ ठाकुर की कविताओं की नकल है इस लेख में तात्कालिक साहित्य जगत में हलचल मचा दी थी|

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

नामवर सिंह

नामवर सिंह जीवन परिचय

नामवर सिंह का जीवन परिचय, नामवर सिंह का साहित्य, रचनाएं, नामवर सिंह की आलोचना दृष्टि, नामवर सिंह की आलोचना पद्धति, सामान्य परिचय, जीवनी

जन्म:-28 जुलाई, 1926,जीयनपुर, चंदौली जिला

उत्तर प्रदेश

मृत्यु:-19 फरवरी 2019,नयी दिल्ली

भाषा:-हिन्दी

काल:-आधुनिक

विधा:-आलोचना, शोध, निबन्ध

विषय:-अपभ्रंश भाषा एवं साहित्य, छायावाद, नयी कविता, नयी कहानी

उन्होंने हिन्दी साहित्य में एम॰ए॰ व पी-एच॰डी॰ करने के पश्चात् बनारस हिन्दू विश्‍वविद्यालय में अध्यापन किया।

इसके बाद सागर विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया। बाद में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में काफी समय तक अध्यापन कार्य किया।

अवकाश प्राप्त करने के बाद भी वे उसी विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केन्द्र में इमेरिट्स प्रोफेसर रहे।

नामवर सिंह हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू, बाङ्ला एवं संस्कृत भाषा भी जानते थे।

19 फरवरी 2019 की रात्रि में नयी दिल्ली स्थित एम्स में उनका निधन हो गया।

नामवर सिंह का साहित्य : नामवर सिंह जीवन परिचय

साहित्यिक आन्दोलन-प्रगतिशील आन्दोलन

नामवर सिंह की रचनाएं

निबंध अथवा आलोचना

बक़लम ख़ुद – 1951ई०(संग्रह)

हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग-1952

छायावाद :इतिहास और आलोचना – 1954

आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ – 1962

कहानी : नयी कहानी – 1964

कविता के नये प्रतिमान – 1968

दूसरी परम्परा की खोज – 1982

वाद विवाद संवाद – 1989

आलोचक के मुख से-2005

साक्षात्कार

कहना न होगा – 1994

बात बात में बात – 2006

सम्मुख – 2012

साथ साथ – 2012

पत्र-संग्रह

काशी के नाम – 2006

तुम्हारा नामवर

सम्पादित पुस्तकें : नामवर सिंह जीवन परिचय

संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो – 1952 (आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के साथ)

पुरानी राजस्थानी – 1955 (मूल लेखक- डाॅ० एल.पी.तेस्सितोरी; अनुवादक – नामवर सिंह)

चिन्तामणि भाग-3 (1983)

कार्ल मार्क्स : कला और साहित्य चिन्तन (अनुवादक- गोरख पांडेय)

नागार्जुन : प्रतिनिधि कविताएँ

मलयज की डायरी (तीन खण्डों में)

आधुनिक हिन्दी उपन्यास भाग-2

रामचन्द्र शुक्ल रचनावली (सह सम्पादक – आशीष त्रिपाठी)

पत्र-पत्रिका संपादन

इन्होंने 1965 से 1967 तक जनयुग (साप्ताहिक) और 1967 से 1990 तक आलोचना (त्रैमासिक) नामक दो हिन्दी पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।

पुरस्कार एवं सम्मान : नामवर सिंह जीवन परिचय

साहित्य अकादमी पुरस्कार – 1971″कविता के नये प्रतिमान” के लिए

शलाका सम्मान हिंदी अकादमी, दिल्ली की ओर से

‘साहित्य भूषण सम्मान’ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से

महावीरप्रसाद द्विवेदी सम्मान – 21 दिसम्बर 2010

शब्दसाधक शिखर सम्मान – 2010

आदिकाल के साहित्यकार

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कवि जानकी वल्लभ शास्त्री

कवि जानकी वल्लभ शास्त्री

कवि जानकी वल्लभ शास्त्री का जीवन परिचय, जानकी वल्लभ शास्त्री की रचनाएं, जानकी वल्लभ शास्त्री के काव्य संग्रह एवं कविताएं, मेघगीत कविता

जीवन परिचय

जन्म -5 फरवरी 1916

जन्म भूमि- गया, बिहार

मृत्यु -7 अप्रैल 2011

मृत्यु स्थान – मुज़फ्फरपुर, बिहार

पिता- रामानुग्रह शर्मा

पत्नी – छाया देवी

कर्म-क्षेत्र -साहित्य

भाषा- हिन्दी

प्रसिद्धि – कवि, लेखक

जानकी वल्लभ शास्त्री की रचनाएं

जानकी वल्लभ शास्त्री के काव्य संग्रह एवं कविताएं

बाललता

अंकुर

उन्मेष

रूप-अरूप

तीर-तरंग

शिप्रा

अवन्तिका

मेघगीत

गाथा

प्यासी-पृथ्वी

संगम

उत्पलदल

चन्दन वन

शिशिर किरण

हंस किंकिणी

सुरसरी

गीत

वितान

धूपतरी

बंदी मंदिरम्‌

नाटक

देवी

ज़िन्दगी

आदमी

नील-झील

उपन्यास

एक किरण : सौ झांइयां

दो तिनकों का घोंसला

अश्वबुद्ध

कालिदास

चाणक्य शिखा (अधूरा)

कहानी संग्रह

कानन

अपर्णा

लीला कमल

सत्यकाम

बांसों का झुरमुट

ग़ज़ल संग्रह

सुने कौन नग़मा

महाकाव्य

राधा

संस्मरण

अजन्ता की ओर

निराला के पत्र

स्मृति के वातायन

नाट्य सम्राट पृथ्वीराज कपूर

हंस-बलाका

कर्म क्षेत्रे मरु क्षेत्र

अनकहा निराला

ललित निबंध

मन की बात

जो न बिक सकीं

विशेष तथ्य

जानकी वल्लभ शास्त्री का पहला गीत ‘किसने बांसुरी बजाई’ बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रो. नलिन विमोचन शर्मा ने उन्हें प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी के बाद पांचवां छायावादी कवि कहा है|

इनकी प्रथम रचना ‘गोविन्दगानम्‌’ है |

निराला ही उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं।

पुरस्कार, सम्मान एवं उपाधियाँ

राजेंद्र शिखर पुरस्कार,

भारत भारती पुरस्कार,

शिव सहाय पूजन पुरस्कार

प्रसिद्ध पंक्तियाँ

सब अपनी अपनी कहते है।
कोई न किसी की सुनता है,
नाहक कोई सिर धुनता है।
दिल बहलाने को चल फिर कर,
फिर सब अपने में रहते है।

सबके सिर पर है भार प्रचुर,
सबका हारा बेचारा उर
अब ऊपर ही ऊपर हँसते,
भीतर दुर्भर दुख सहते है।

ध्रुव लक्ष्य किसी को है न मिला,
सबके पथ में है शिला शिला
ले जाती जिधर बहा धारा,
सब उसी ओर चुप बहते हैं।

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भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय

जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय | कविताएं | कहानियाँ | रचनाएं | नाटक | भाषा शैली | कामायनी | आलोचना दृष्टि | कहानियाँ |

जन्म- 30 जनवरी, 1889 ई., वाराणसी, उत्तर प्रदेश

मृत्यु—15 नवम्बर, सन् 1937

भावना-प्रधान कहानी लेखक। काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है

प्रसाद शाश्वत चेतना जब श्रेय ज्ञान को मूल चारुत्व में ग्रहण करती है, तब काव्य का सृजन होता है।

जयशंकर प्रसाद काव्य में आत्मा की संकल्पनात्मक मूल अनुभूति की मुख्यधारा रहस्यवाद है।

प्रसाद आधुनिक युग का रहस्यवाद उसी प्राचीन आनन्दवादी रहस्यवाद का स्वभाविक विकास है।

जयशंकर प्रसाद कला स्व को कलन करने या रूपायित करने का माध्यम है।

प्रसाद सर्वप्रथम छायावादी रचना ‘खोलो द्वार’ 1914 ई. में इंदु में प्रकाशित हुई।

हिंदी में ‘करुणालय’ द्वारा गीत नाट्य का भी आरंभ किया।

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय

नाटक और रंगमंच – प्रसाद ने एक बार कहा था “रंगमंच नाटक के अनुकूल होना चाहिये न कि नाटक रंगमंच के अनुकूल।”

जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय
जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय

रचनाएँ

जयशंकर प्रसाद की आरम्भिक रचनाएँ यद्यपि ब्रजभाषा में मिलती हैं।

प्रसाद की ही प्रेरणा से 1909 ई. में उनके भांजे अम्बिका प्रसाद गुप्त के सम्पादकत्व में “इन्दु” नामक मासिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ हुआ।

काव्य संग्रह

‘प्रेम पथिक’ का ब्रजभाषा स्वरूप सबसे पहले ‘इन्दू’ (1909 ई.) में प्रकाशित हुआ था

‘चित्राधार’ (1918, अयोध्या का उद्धार, वनमिलन और प्रेमराज्य तीन कथाकाव्य इसमें संगृहीत हैं।)

‘झरना’ (1918, छायावादी शैली में रचित कविताएँ इसमें संगृहीत)

‘कानन कुसुम’ है (1918, खड़ीबोली की कविताओं का प्रथम संग्रह है)

आँसू’ (1925 ई.) ‘आँसू’ एक श्रेष्ठ गीतिकाव्य है।

‘महाराणा का महत्त्व’ (1928) 1914 ई. में ‘इन्दु’ में प्रकाशित हुआ था। यह भी ‘चित्राधार’ में संकलित था, पर 1928 ई. में इसका स्वतन्त्र प्रकाशन हुआ। इसमें महाराणा प्रताप की कथा है।

लहर (1933, मुक्तक रचनाओं का संग्रह)

कामायनी (1935, महाकाव्य)

नाटक

सज्जन (1910 ई., महाभारत से)

कल्याणी-परिणय (1912 ई., चन्द्रगुप्त मौर्य, सिल्यूकस, कार्नेलिया, कल्याणी)

‘करुणालय’ (1913, 1928 स्वतंत्र प्रकाशन, गीतिनाट्य, राजा हरिश्चन्द्र की कथा) इसका प्रथम प्रकाशन ‘इन्दु’ (1913 ई.) में हुआ।

प्रायश्चित् (1013, जयचन्द, पृथ्वीराज, संयोगिता)

राज्यश्री (1914)

विशाख (1921)

अजातशत्रु (1922)

जनमेजय का नागयज्ञ (1926)

कामना (1927)

स्कन्दगुप्त (1928, विक्रमादित्य, पर्णदत्त, बन्धवर्मा, भीमवर्मा, मातृगुप्त, प्रपंचबुद्धि, शर्वनाग, धातुसेन (कुमारदास), भटार्क, पृथ्वीसेन, खिंगिल, मुद्गल,कुमारगुप्त, अननतदेवी, देवकी, जयमाला, देवसेना, विजया, तमला,रामा,मालिनी, स्कन्दगुप्त)

एक घूँट (1929, बनलता, रसाल, आनन्द, प्रेमलता)

चन्द्रगुप्त (1931, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, सिकन्दर, पर्वतेश्वर, सिंहरण, आम्भीक, अलका, कल्याणी, कार्नेलिया, मालविका, शकटार)

ध्रुवस्वामिनी (1933, चन्द्रगुप्त, रामगुप्त, शिखरस्वामी, पुरोहित, शकराज, खिंगिल, मिहिरदेव, ध्रुवस्वामिनी, मंदाकिनी, कोमा)

गीतिनाट्य- ‘करुणालय’ (1913, 1928 स्वतंत्र प्रकाशन, गीतिनाट्य, राजा हरिश्चन्द्र की कथा)

कहानी संग्रह : जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

ग्राम (1910, प्रथम कहानी)

छाया (1912, प्रथम कहानी-संग्रह, 6 कहानियाँ)—ग्राम, चन्दा, रसिया बालम, मदन-मृणालिनी, तानसेन। छाया के दूसरे संस्करण (1918) में छह कहानियाँ शामिल की गई हैं— शरणागत, सिकन्दर की शपथ, चित्तौर का उद्धार, अशोक, जहाँआरा और ग़ुलाम

प्रतिध्वनि (1926, 15 कहानियाँ)—प्रसाद, गूदड़भाई, गुदड़ी के लाल, अघोरी के लाल, पाप की पराजय, सहयोग, पत्थर की पुकार, फस पार का योगी, करुणा की विजय, खंडहर की लिपि, कलावती की शिक्षा, चक्रवर्ती की स्तम्भ, दुखिया, प्रतिमा, प्रलय।

आकाशदीप (1929, 19 कहानियाँ)—आकाशद्वीप, ममता, स्वर्ग के खंडहर, सुनहला साँप, हिमालय का पथिक, भिखारिन, प्रतिध्वनि, कला, देवदासी, समुद्रसंतरण, बैरागी, बंजारा, चूड़ीवाला, अपराधी, प्रणय-चिह्न, रूप की छाया, ज्योतिष्मती, रमला और बिसाती।

आँधी (1929, 11 कहानियाँ)—आँधी, मधुआ, दासी, घीसू, बेड़ी, व्रतभंग, ग्रामगीत, विजया, अमिट स्मृति, नीरा और पुरस्कार।

इन्द्रजाल (1936, 14 कहानियाँ)— इन्द्रजाल, सलीम, छोटा जादूगर, नूरी, परिवर्तन, सन्देह, भीख में, चित्रवाले पत्थर, चित्रमन्दिर, ग़ुण्डा, अनबोला, देवरथ, विराम चिह्न और सालवती।

उपन्यास

कंकाल (1929, पात्र : श्रीचन्द, देवनिरंजन, मंगलदेव, बाथम, कृष्णशरण, विजय, किशोरी, यमुना, तारा, घंटी, लतिका, माला)

तितली (1934, पात्र : मधुबन, रामनाथ, तितली, राजकुमारी, इन्द्रदेव, श्यामदुलारी, माधुरी, शैला)

इरावती (1934 अपूर्ण, पात्र : बृहस्पतिमित्र, पुष्यमित्र, अग्निमित्र, खारवेल, कालिन्दी, इरावती, मणिमाला, धनदत्त, आनन्द)

उर्वशी (1906)

बभ्रुवाहन (1907)

चित्रांगदा।

निबन्ध

काव्य-कला और अन्य निबन्ध (1939, कुल 8 निबन्ध)

‘आँसू’ और ‘कामायनी’ आपके छायावादी कवित्व के परिचायक हैं। छायावादी काव्य की सभी विशेषताएँ आपकी रचनाओं में प्राप्त होती हैं।

काव्यक्षेत्र में प्रसाद की कीर्ति का मूलाधार ‘कामायनी’ है। मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर संयोजित किया गया है।

कहानियाँ

तानसेन

चंदा

ग्राम

रसिया बालम

शरणागत

सिकंदर की शपथ

चित्तौड़-उद्धार

अशोक

गुलाम

जहाँआरा

मदन-मृणालिनी

प्रसाद

गूदड़ साईं

गुदड़ी में लाल

अघोरी का मोह

पाप की पराजय

सहयोग

पत्थर की पुकार

उस पार का योगी

करुणा की विजय

खंडहर की लिपि

कलावती की शिक्षा

चक्रवर्ती का स्तंभ

दुखिया

प्रतिमा

प्रलय

आकाशदीप

ममता

स्वर्ग के खंडहर में

सुनहला साँप

हिमालय का पथिक

भिखारिन

प्रतिध्वनि

कला

देवदासी

समुद्र-संतरण

वैरागी

बनजारा

चूड़ीवाली

अपराधी

प्रणय-चिह्न

रूप की छाया

ज्योतिष्मती

रमला

बिसाती

आँधी

मधुआ

दासी

घीसू

बेड़ी

व्रत-भंग

ग्राम-गीत

विजया

अमिट स्मृति

नीरा

पुरस्कार

इंद्रजाल

सलीम

छोटा जादूगर

नूरी

परिवर्तन

संदेह

भीख में

चित्रवाले पत्थर

चित्र-मंदिर

गुंडा

अनबोला

देवरथ

विराम-चिह्न

सालवती

उर्वशी

बभ्रुवाहन

ब्रह्मर्षि

पंचायत

कामायनी

कामायनी (1935 ई.) – यह प्रसाद जी की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। यह एक प्रबंध काव्य है जिसमें आदि पुरुष मनु की जीवन गाथा का वर्णन किया गया है। कामायनी के बारे में पूरा जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए- कामायनी महाकाव्य की जानकारी

विशेष तथ्य : जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय

प्रसाद जी छायावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं।

प्रसाद जी को छायावाद का ‘ब्रह्मा’ कहा जाता है।

इलाचंद्र जोशी एवं गणपति चंद्र गुप्त ने इन को ‘छायावाद का जनक माना’ है।

कुछ आलोचक प्रसाद जी को ‘झारखंडी कवि’ भी कहते हैं।

प्रसाद जी प्रारंभ में ‘कलाधर’ के नाम से ब्रज भाषा में रचना कार्य करते थे।

‘उर्वशी’ प्रसाद जी के गद्य-पद्य मय रचना (चंपू काव्य) है।

कुछ आलोचकों ने प्रसाद जी को पुरातन पंथी कहा है, क्योंकि उन्होंने साहित्य सृजन में भारतीय संस्कृति, ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को आधार बनाया है।

प्रसाद जी द्वारा रचित ‘करुणालय’ हिंदी का प्रथम गीतिनाट्य माना जाता है।

1909 ई. में ‘इन्दु’ पत्रिका के संपादन के साथ इनकी साहित्य यात्रा आरंभ हुई, जो कामायनी तक अनवरत चलती रही।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय, कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना का साहित्य, कमलेश्वर की रचनाएं, कमलेश्वर के कहानी संग्रह, फिल्मी पटकथा

पूरा नाम- कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना

जन्म- 6 जनवरी, 1932

जन्म भूमि- मैनपुरी, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -27 जनवरी, 2007 (75 वर्ष)

मृत्यु स्थान- फरीदाबाद, हरियाणा

कर्म-क्षेत्र – उपन्यासकार, लेखक, आलोचक, फ़िल्म पटकथा लेखक

भाषा- हिंदी

आन्दोलन- नई कहानी आन्दोलन ( समांतर कहानी या आम आदमी की कहानी आंदोलन)

पुरस्कार-उपाधि-
2005 में पद्मभूषण,
2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कितने पाकिस्तान)

प्रसिद्धि -उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया।

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना का साहित्य

कमलेश्वर की रचनाएं

कहानी संग्रह : कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय

मांस का दरिया

बयान

समग्र कहानियां -2002 (इस कहानी में इनकी 1946 से 1997 के बीच रचित 111 कहानियों का संकलन है)

देस-परदेश-2004

कस्बे का राजा

हम पैसा

खोई हुई दिशाएं

यह अकेले अपने दम पर सामांतर कहानी को आगे बढ़ाने वाले कहानीकार माने जाते हैं|

समांतर कहानी का प्रचार प्रसार सारिका पत्रिका 1974-75 के माध्यम से हुआ|

कमलेश्वर ने अकहानीवादी कहानीकारों की उच्छृंखल भोगवादी प्रवृत्तियों का विरोध करते हुए ‘धर्म युग’ पत्रिका में ‘अय्यास प्रेतों का विद्रोह’ शीर्षक से एक लेखमाला प्रकाशित करते हुए अकहानीकारों की तीव्र आलोचना की थी|

कहानियाँ

कमलेश्वर ने तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ हैं-

भटके हुए लोग ( शरणार्थी समस्या पर आधारित कहानी)

राजा निरबंसिया

मांस का दरिया

नीली झील

तलाश

बयान

नागमणि

अपना एकांत

आसक्ति

ज़िंदा मुर्दे

जॉर्ज पंचम की नाक

मुर्दों की दुनिया

कस्बे का आदमी

देवी की मां

बचपन में जो लिखा नहीं जाता

एक रुकी हुई जिंदगी

खोई हुई दिशाएं

उपन्यास

( प्रयोगवादी या आधुनिकताबोधवादी उपन्यासकार)

एक सड़क सत्तावन गलियाँ -1961

डाक बंगला-1962

लौटे हुए मुसाफ़िर-1963

तीसरा आदमी-1964

समुद्र में खोया हुआ आदमी-1965

काली आँधी

आगामी अतीत-1976

सुबह…दोपहर…शाम-1982

रेगिस्तान-1988

वही बात

एक और चंद्रकांता

कितने पाकिस्तान-2000 (2003 साहित्य अकादमी पुरस्कार)

नाटक

अधूरी आवाज़

रेत पर लिखे नाम

हिंदोस्ता हमारा

आत्मकथा

जलती हुई नदी

जो मैने जिया

यादों के चिराग

संस्मरण

अपनी निगाह में-1982

संपादन

अपने जीवनकाल में अलग-अलग समय पर उन्होंने सात पत्रिकाओं का संपादन किया –

विहान-पत्रिका (1954)

नई कहानियाँ-पत्रिका (1958-66)

सारिका-पत्रिका (1957-78)

कथायात्रा-पत्रिका (1978-79)

गंगा-पत्रिका(1984-88)

इंगित-पत्रिका (1961-68)

श्रीवर्षा-पत्रिका (1979-80)

अखबारों में भूमिका

वे हिन्दी दैनिक `दैनिक जागरण’ में 1990 से 1992 तक तथा ‘दैनिक भास्कर’ में 1997 से लगातार स्तंभलेखन का काम करते रहे।’

पटकथा एवं संवाद : कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय

कमलेश्वर ने 99 फ़िल्मों के संवाद, कहानी या पटकथा लेखन का काम किया। कुछ प्रसिद्ध फ़िल्मों के नाम हैं-

सौतन की बेटी(1989)-संवाद

लैला(1984)- संवाद, पटकथा

यह देश (1984) -संवाद

रंग बिरंगी(1983) -कहानी

सौतन(1983)- संवाद

साजन की सहेली(1981)- संवाद, पटकथा

राम बलराम (1980)- संवाद, पटकथा

मौसम(1974)- कहानी

आंधी (1974)- उपन्यास

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय

उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय, साहित्य परिचय, उपेन्द्रनाथ अश्क की एकांकी, नाटक, भाषा शैली, संक्षिप्त परिचय, लेखक परिचय, एकांकी, कविताएं

जन्म -14 दिसम्बर, 1910

जन्म भूमि- जालंधर, पंजाब

मृत्यु -19 जनवरी, 1996

अभिभावक – पण्डित माधोराम

पत्नी -कौशल्या अश्क

भाषा:- हिन्दी

काल:- आधुनिक काल (समष्टि चेतना प्रधान काव्य के कवि)

विधा:- गद्य और पद्य

विषय:- कविता, कहानी, उपन्यास

उपेन्द्रनाथ अश्क का साहित्य परिचय

उपेन्द्रनाथ अश्क की एकांकी : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

इनके द्वारा रचित एकांकियों को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-

(1) सामाजिक व्यंग्यात्मक एकांकी-

पापी ,1937

लक्ष्मी का स्वागत ,1938

मोहब्बत ,1938

क्रॉसवर्ड पहेली ,1939

अधिकार का रक्षक ,1938

आपस का समझोता 1939

स्वर्ग की झलक 1939

विवाह के दिन 1939

जोंक,1939

(2) सांकेतिक एवं प्रतीकात्मक एकांकी-

चरवाहे 1942

चिलमन 1942

खिड़की 1942

चुंबक 1942

मैमुना 1942

देवताओं की छाया में 1940

चमत्कार 1943

सुखी डाली 1943

अंधी गली 1954

साहब को जुकाम है

पक्का गाना

(3)मनोवैज्ञानिक एकांकी/प्रहसन-

आदिमार्ग 1947

अंजो दीदी 1954

भंवर 1950

कैसा साब कैसी आया

पर्दा उठाओ-पर्दा गिराओ 1951

बतसिया 1952

सयाना मालिक 1952

जीवनसाथी 1952

एकांकी संग्रह-

छह एकांकी

पच्चीस श्रेष्ठ एकांकी

कविताएं

विदा (1917, प्रथम कविता)

एक दिन आकाश ने कहा,

प्रातःदीप,

दीप जलेगा,

बरगद की बेटी,

उर्म्मियाँ,

रिजपर

अजगर और चाँदनी

उपन्यास: उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

सितारों का खेल,1937 (पहला उपन्यास)

गिरती दीवारें, 1947

गर्म राख,1952

बड़ी-बड़ी आँखे,1954

पत्थर-अल-पत्थर-1957

शहर में घूमता आईना, 1963

बाँधों न नाव इस ठाँव,1964

एक नन्ही किंदील,1969

कहानी संग्रह

सत्तर श्रेष्ठ कहानियां,

जुदाई की शाम के गीत,

काले साहब,

पिंजरा,

कहानियां

निशानियाँ

दो धारा

मुक्त

देशभक्त

कांगड़ा का तेली

डाची

आकाशचारी

टेबुल लैंड

नाटक : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

जय-पराजय,1937

छठा बेटा,1940

कैद,1945

उड़ान,1946 (मुक्त हवा में सांस लेती नारी का चित्रण)

भंवर,1950

पैंतरे,1952

अंजो दीदी,1954 (मशीनीकरण/यंत्रीकरण के कारण टुटते परिवार का हृदयस्पर्शी चित्रण)

अंधी गली-1954

अलग-अलग रास्ते,1954

लौटता हुआ दिन,

बड़े खिलाडी,

स्वर्ग की झलक,

सूखी डाली

तौलिए

आत्मकथा

पाँचवा खंड

चेहरे अनेक

संस्मरण : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

रेखाएँ और चित्र,1955

मण्टो मेरा दुश्मन,1956 (निबंध)

ज्यादा अपनी कम परायी,1959

उर्दू के बेहतरीन संस्मरण,1962 (संपादन)

फिल्मी जीवन की झलकियाँ

आलोचना : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

अन्वेषण की सहयात्रा,

हिन्दी कहानी: एक अन्तरंग परिचय

विशेष तथ्य : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

प्रेमचंद जी की तरह इन्होंने भी प्रारंभ में ‘उर्दू’ में लेखन कार्य किया था।

इन्होंने ‘भूचाल’ नामक साप्ताहिक पत्र का संपादन किया था।

कुछ दिनों तक इन्होने ऑल इंडिया रेडियो और फिल्म जगत् में भी काम किया था।

बच्चन सिंह के अनुसार अश्क हिंदी के पहले नाटककार हैं, जिनका ध्यान रंगमंच की ओर गया।

नगेंद्र के अनुसार यह पहले ऐसे नाटककार हैं जिन्होंने हिंदी नाटक को रोमांस के कटघरे से निकालकर आधुनिक भाव बोध के साथ जोड़ा।

उर्दू के सफल लेखक उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ ने मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। 1933 में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह ‘औरत की फितरत’ की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

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