नामवर सिंह

नामवर सिंह जीवन परिचय

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जन्म:-28 जुलाई, 1926,जीयनपुर, चंदौली जिला

उत्तर प्रदेश

मृत्यु:-19 फरवरी 2019,नयी दिल्ली

भाषा:-हिन्दी

काल:-आधुनिक

विधा:-आलोचना, शोध, निबन्ध

विषय:-अपभ्रंश भाषा एवं साहित्य, छायावाद, नयी कविता, नयी कहानी

उन्होंने हिन्दी साहित्य में एम॰ए॰ व पी-एच॰डी॰ करने के पश्चात् बनारस हिन्दू विश्‍वविद्यालय में अध्यापन किया।

इसके बाद सागर विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया। बाद में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में काफी समय तक अध्यापन कार्य किया।

अवकाश प्राप्त करने के बाद भी वे उसी विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केन्द्र में इमेरिट्स प्रोफेसर रहे।

नामवर सिंह हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू, बाङ्ला एवं संस्कृत भाषा भी जानते थे।

19 फरवरी 2019 की रात्रि में नयी दिल्ली स्थित एम्स में उनका निधन हो गया।

नामवर सिंह का साहित्य : नामवर सिंह जीवन परिचय

साहित्यिक आन्दोलन-प्रगतिशील आन्दोलन

नामवर सिंह की रचनाएं

निबंध अथवा आलोचना

बक़लम ख़ुद – 1951ई०(संग्रह)

हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग-1952

छायावाद :इतिहास और आलोचना – 1954

आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ – 1962

कहानी : नयी कहानी – 1964

कविता के नये प्रतिमान – 1968

दूसरी परम्परा की खोज – 1982

वाद विवाद संवाद – 1989

आलोचक के मुख से-2005

साक्षात्कार

कहना न होगा – 1994

बात बात में बात – 2006

सम्मुख – 2012

साथ साथ – 2012

पत्र-संग्रह

काशी के नाम – 2006

तुम्हारा नामवर

सम्पादित पुस्तकें : नामवर सिंह जीवन परिचय

संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो – 1952 (आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के साथ)

पुरानी राजस्थानी – 1955 (मूल लेखक- डाॅ० एल.पी.तेस्सितोरी; अनुवादक – नामवर सिंह)

चिन्तामणि भाग-3 (1983)

कार्ल मार्क्स : कला और साहित्य चिन्तन (अनुवादक- गोरख पांडेय)

नागार्जुन : प्रतिनिधि कविताएँ

मलयज की डायरी (तीन खण्डों में)

आधुनिक हिन्दी उपन्यास भाग-2

रामचन्द्र शुक्ल रचनावली (सह सम्पादक – आशीष त्रिपाठी)

पत्र-पत्रिका संपादन

इन्होंने 1965 से 1967 तक जनयुग (साप्ताहिक) और 1967 से 1990 तक आलोचना (त्रैमासिक) नामक दो हिन्दी पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।

पुरस्कार एवं सम्मान : नामवर सिंह जीवन परिचय

साहित्य अकादमी पुरस्कार – 1971″कविता के नये प्रतिमान” के लिए

शलाका सम्मान हिंदी अकादमी, दिल्ली की ओर से

‘साहित्य भूषण सम्मान’ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से

महावीरप्रसाद द्विवेदी सम्मान – 21 दिसम्बर 2010

शब्दसाधक शिखर सम्मान – 2010

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

कवि जानकी वल्लभ शास्त्री

कवि जानकी वल्लभ शास्त्री

कवि जानकी वल्लभ शास्त्री का जीवन परिचय, जानकी वल्लभ शास्त्री की रचनाएं, जानकी वल्लभ शास्त्री के काव्य संग्रह एवं कविताएं, मेघगीत कविता

जीवन परिचय

जन्म -5 फरवरी 1916

जन्म भूमि- गया, बिहार

मृत्यु -7 अप्रैल 2011

मृत्यु स्थान – मुज़फ्फरपुर, बिहार

पिता- रामानुग्रह शर्मा

पत्नी – छाया देवी

कर्म-क्षेत्र -साहित्य

भाषा- हिन्दी

प्रसिद्धि – कवि, लेखक

जानकी वल्लभ शास्त्री की रचनाएं

जानकी वल्लभ शास्त्री के काव्य संग्रह एवं कविताएं

बाललता

अंकुर

उन्मेष

रूप-अरूप

तीर-तरंग

शिप्रा

अवन्तिका

मेघगीत

गाथा

प्यासी-पृथ्वी

संगम

उत्पलदल

चन्दन वन

शिशिर किरण

हंस किंकिणी

सुरसरी

गीत

वितान

धूपतरी

बंदी मंदिरम्‌

नाटक

देवी

ज़िन्दगी

आदमी

नील-झील

उपन्यास

एक किरण : सौ झांइयां

दो तिनकों का घोंसला

अश्वबुद्ध

कालिदास

चाणक्य शिखा (अधूरा)

कहानी संग्रह

कानन

अपर्णा

लीला कमल

सत्यकाम

बांसों का झुरमुट

ग़ज़ल संग्रह

सुने कौन नग़मा

महाकाव्य

राधा

संस्मरण

अजन्ता की ओर

निराला के पत्र

स्मृति के वातायन

नाट्य सम्राट पृथ्वीराज कपूर

हंस-बलाका

कर्म क्षेत्रे मरु क्षेत्र

अनकहा निराला

ललित निबंध

मन की बात

जो न बिक सकीं

विशेष तथ्य

जानकी वल्लभ शास्त्री का पहला गीत ‘किसने बांसुरी बजाई’ बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रो. नलिन विमोचन शर्मा ने उन्हें प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी के बाद पांचवां छायावादी कवि कहा है|

इनकी प्रथम रचना ‘गोविन्दगानम्‌’ है |

निराला ही उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं।

पुरस्कार, सम्मान एवं उपाधियाँ

राजेंद्र शिखर पुरस्कार,

भारत भारती पुरस्कार,

शिव सहाय पूजन पुरस्कार

प्रसिद्ध पंक्तियाँ

सब अपनी अपनी कहते है।
कोई न किसी की सुनता है,
नाहक कोई सिर धुनता है।
दिल बहलाने को चल फिर कर,
फिर सब अपने में रहते है।

सबके सिर पर है भार प्रचुर,
सबका हारा बेचारा उर
अब ऊपर ही ऊपर हँसते,
भीतर दुर्भर दुख सहते है।

ध्रुव लक्ष्य किसी को है न मिला,
सबके पथ में है शिला शिला
ले जाती जिधर बहा धारा,
सब उसी ओर चुप बहते हैं।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय

जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय | कविताएं | कहानियाँ | रचनाएं | नाटक | भाषा शैली | कामायनी | आलोचना दृष्टि | कहानियाँ |

जन्म- 30 जनवरी, 1889 ई., वाराणसी, उत्तर प्रदेश

मृत्यु—15 नवम्बर, सन् 1937

भावना-प्रधान कहानी लेखक। काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है

प्रसाद शाश्वत चेतना जब श्रेय ज्ञान को मूल चारुत्व में ग्रहण करती है, तब काव्य का सृजन होता है।

जयशंकर प्रसाद काव्य में आत्मा की संकल्पनात्मक मूल अनुभूति की मुख्यधारा रहस्यवाद है।

प्रसाद आधुनिक युग का रहस्यवाद उसी प्राचीन आनन्दवादी रहस्यवाद का स्वभाविक विकास है।

जयशंकर प्रसाद कला स्व को कलन करने या रूपायित करने का माध्यम है।

प्रसाद सर्वप्रथम छायावादी रचना ‘खोलो द्वार’ 1914 ई. में इंदु में प्रकाशित हुई।

हिंदी में ‘करुणालय’ द्वारा गीत नाट्य का भी आरंभ किया।

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय

नाटक और रंगमंच – प्रसाद ने एक बार कहा था “रंगमंच नाटक के अनुकूल होना चाहिये न कि नाटक रंगमंच के अनुकूल।”

जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय
जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय

रचनाएँ

जयशंकर प्रसाद की आरम्भिक रचनाएँ यद्यपि ब्रजभाषा में मिलती हैं।

प्रसाद की ही प्रेरणा से 1909 ई. में उनके भांजे अम्बिका प्रसाद गुप्त के सम्पादकत्व में “इन्दु” नामक मासिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ हुआ।

काव्य संग्रह

‘प्रेम पथिक’ का ब्रजभाषा स्वरूप सबसे पहले ‘इन्दू’ (1909 ई.) में प्रकाशित हुआ था

‘चित्राधार’ (1918, अयोध्या का उद्धार, वनमिलन और प्रेमराज्य तीन कथाकाव्य इसमें संगृहीत हैं।)

‘झरना’ (1918, छायावादी शैली में रचित कविताएँ इसमें संगृहीत)

‘कानन कुसुम’ है (1918, खड़ीबोली की कविताओं का प्रथम संग्रह है)

आँसू’ (1925 ई.) ‘आँसू’ एक श्रेष्ठ गीतिकाव्य है।

‘महाराणा का महत्त्व’ (1928) 1914 ई. में ‘इन्दु’ में प्रकाशित हुआ था। यह भी ‘चित्राधार’ में संकलित था, पर 1928 ई. में इसका स्वतन्त्र प्रकाशन हुआ। इसमें महाराणा प्रताप की कथा है।

लहर (1933, मुक्तक रचनाओं का संग्रह)

कामायनी (1935, महाकाव्य)

नाटक

सज्जन (1910 ई., महाभारत से)

कल्याणी-परिणय (1912 ई., चन्द्रगुप्त मौर्य, सिल्यूकस, कार्नेलिया, कल्याणी)

‘करुणालय’ (1913, 1928 स्वतंत्र प्रकाशन, गीतिनाट्य, राजा हरिश्चन्द्र की कथा) इसका प्रथम प्रकाशन ‘इन्दु’ (1913 ई.) में हुआ।

प्रायश्चित् (1013, जयचन्द, पृथ्वीराज, संयोगिता)

राज्यश्री (1914)

विशाख (1921)

अजातशत्रु (1922)

जनमेजय का नागयज्ञ (1926)

कामना (1927)

स्कन्दगुप्त (1928, विक्रमादित्य, पर्णदत्त, बन्धवर्मा, भीमवर्मा, मातृगुप्त, प्रपंचबुद्धि, शर्वनाग, धातुसेन (कुमारदास), भटार्क, पृथ्वीसेन, खिंगिल, मुद्गल,कुमारगुप्त, अननतदेवी, देवकी, जयमाला, देवसेना, विजया, तमला,रामा,मालिनी, स्कन्दगुप्त)

एक घूँट (1929, बनलता, रसाल, आनन्द, प्रेमलता)

चन्द्रगुप्त (1931, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, सिकन्दर, पर्वतेश्वर, सिंहरण, आम्भीक, अलका, कल्याणी, कार्नेलिया, मालविका, शकटार)

ध्रुवस्वामिनी (1933, चन्द्रगुप्त, रामगुप्त, शिखरस्वामी, पुरोहित, शकराज, खिंगिल, मिहिरदेव, ध्रुवस्वामिनी, मंदाकिनी, कोमा)

गीतिनाट्य- ‘करुणालय’ (1913, 1928 स्वतंत्र प्रकाशन, गीतिनाट्य, राजा हरिश्चन्द्र की कथा)

कहानी संग्रह : जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

ग्राम (1910, प्रथम कहानी)

छाया (1912, प्रथम कहानी-संग्रह, 6 कहानियाँ)—ग्राम, चन्दा, रसिया बालम, मदन-मृणालिनी, तानसेन। छाया के दूसरे संस्करण (1918) में छह कहानियाँ शामिल की गई हैं— शरणागत, सिकन्दर की शपथ, चित्तौर का उद्धार, अशोक, जहाँआरा और ग़ुलाम

प्रतिध्वनि (1926, 15 कहानियाँ)—प्रसाद, गूदड़भाई, गुदड़ी के लाल, अघोरी के लाल, पाप की पराजय, सहयोग, पत्थर की पुकार, फस पार का योगी, करुणा की विजय, खंडहर की लिपि, कलावती की शिक्षा, चक्रवर्ती की स्तम्भ, दुखिया, प्रतिमा, प्रलय।

आकाशदीप (1929, 19 कहानियाँ)—आकाशद्वीप, ममता, स्वर्ग के खंडहर, सुनहला साँप, हिमालय का पथिक, भिखारिन, प्रतिध्वनि, कला, देवदासी, समुद्रसंतरण, बैरागी, बंजारा, चूड़ीवाला, अपराधी, प्रणय-चिह्न, रूप की छाया, ज्योतिष्मती, रमला और बिसाती।

आँधी (1929, 11 कहानियाँ)—आँधी, मधुआ, दासी, घीसू, बेड़ी, व्रतभंग, ग्रामगीत, विजया, अमिट स्मृति, नीरा और पुरस्कार।

इन्द्रजाल (1936, 14 कहानियाँ)— इन्द्रजाल, सलीम, छोटा जादूगर, नूरी, परिवर्तन, सन्देह, भीख में, चित्रवाले पत्थर, चित्रमन्दिर, ग़ुण्डा, अनबोला, देवरथ, विराम चिह्न और सालवती।

उपन्यास

कंकाल (1929, पात्र : श्रीचन्द, देवनिरंजन, मंगलदेव, बाथम, कृष्णशरण, विजय, किशोरी, यमुना, तारा, घंटी, लतिका, माला)

तितली (1934, पात्र : मधुबन, रामनाथ, तितली, राजकुमारी, इन्द्रदेव, श्यामदुलारी, माधुरी, शैला)

इरावती (1934 अपूर्ण, पात्र : बृहस्पतिमित्र, पुष्यमित्र, अग्निमित्र, खारवेल, कालिन्दी, इरावती, मणिमाला, धनदत्त, आनन्द)

उर्वशी (1906)

बभ्रुवाहन (1907)

चित्रांगदा।

निबन्ध

काव्य-कला और अन्य निबन्ध (1939, कुल 8 निबन्ध)

‘आँसू’ और ‘कामायनी’ आपके छायावादी कवित्व के परिचायक हैं। छायावादी काव्य की सभी विशेषताएँ आपकी रचनाओं में प्राप्त होती हैं।

काव्यक्षेत्र में प्रसाद की कीर्ति का मूलाधार ‘कामायनी’ है। मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर संयोजित किया गया है।

कहानियाँ

तानसेन

चंदा

ग्राम

रसिया बालम

शरणागत

सिकंदर की शपथ

चित्तौड़-उद्धार

अशोक

गुलाम

जहाँआरा

मदन-मृणालिनी

प्रसाद

गूदड़ साईं

गुदड़ी में लाल

अघोरी का मोह

पाप की पराजय

सहयोग

पत्थर की पुकार

उस पार का योगी

करुणा की विजय

खंडहर की लिपि

कलावती की शिक्षा

चक्रवर्ती का स्तंभ

दुखिया

प्रतिमा

प्रलय

आकाशदीप

ममता

स्वर्ग के खंडहर में

सुनहला साँप

हिमालय का पथिक

भिखारिन

प्रतिध्वनि

कला

देवदासी

समुद्र-संतरण

वैरागी

बनजारा

चूड़ीवाली

अपराधी

प्रणय-चिह्न

रूप की छाया

ज्योतिष्मती

रमला

बिसाती

आँधी

मधुआ

दासी

घीसू

बेड़ी

व्रत-भंग

ग्राम-गीत

विजया

अमिट स्मृति

नीरा

पुरस्कार

इंद्रजाल

सलीम

छोटा जादूगर

नूरी

परिवर्तन

संदेह

भीख में

चित्रवाले पत्थर

चित्र-मंदिर

गुंडा

अनबोला

देवरथ

विराम-चिह्न

सालवती

उर्वशी

बभ्रुवाहन

ब्रह्मर्षि

पंचायत

कामायनी

कामायनी (1935 ई.) – यह प्रसाद जी की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। यह एक प्रबंध काव्य है जिसमें आदि पुरुष मनु की जीवन गाथा का वर्णन किया गया है। कामायनी के बारे में पूरा जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए- कामायनी महाकाव्य की जानकारी

विशेष तथ्य : जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय

प्रसाद जी छायावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं।

प्रसाद जी को छायावाद का ‘ब्रह्मा’ कहा जाता है।

इलाचंद्र जोशी एवं गणपति चंद्र गुप्त ने इन को ‘छायावाद का जनक माना’ है।

कुछ आलोचक प्रसाद जी को ‘झारखंडी कवि’ भी कहते हैं।

प्रसाद जी प्रारंभ में ‘कलाधर’ के नाम से ब्रज भाषा में रचना कार्य करते थे।

‘उर्वशी’ प्रसाद जी के गद्य-पद्य मय रचना (चंपू काव्य) है।

कुछ आलोचकों ने प्रसाद जी को पुरातन पंथी कहा है, क्योंकि उन्होंने साहित्य सृजन में भारतीय संस्कृति, ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को आधार बनाया है।

प्रसाद जी द्वारा रचित ‘करुणालय’ हिंदी का प्रथम गीतिनाट्य माना जाता है।

1909 ई. में ‘इन्दु’ पत्रिका के संपादन के साथ इनकी साहित्य यात्रा आरंभ हुई, जो कामायनी तक अनवरत चलती रही।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय

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पूरा नाम- कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना

जन्म- 6 जनवरी, 1932

जन्म भूमि- मैनपुरी, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -27 जनवरी, 2007 (75 वर्ष)

मृत्यु स्थान- फरीदाबाद, हरियाणा

कर्म-क्षेत्र – उपन्यासकार, लेखक, आलोचक, फ़िल्म पटकथा लेखक

भाषा- हिंदी

आन्दोलन- नई कहानी आन्दोलन ( समांतर कहानी या आम आदमी की कहानी आंदोलन)

पुरस्कार-उपाधि-
2005 में पद्मभूषण,
2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कितने पाकिस्तान)

प्रसिद्धि -उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया।

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना का साहित्य

कमलेश्वर की रचनाएं

कहानी संग्रह : कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय

मांस का दरिया

बयान

समग्र कहानियां -2002 (इस कहानी में इनकी 1946 से 1997 के बीच रचित 111 कहानियों का संकलन है)

देस-परदेश-2004

कस्बे का राजा

हम पैसा

खोई हुई दिशाएं

यह अकेले अपने दम पर सामांतर कहानी को आगे बढ़ाने वाले कहानीकार माने जाते हैं|

समांतर कहानी का प्रचार प्रसार सारिका पत्रिका 1974-75 के माध्यम से हुआ|

कमलेश्वर ने अकहानीवादी कहानीकारों की उच्छृंखल भोगवादी प्रवृत्तियों का विरोध करते हुए ‘धर्म युग’ पत्रिका में ‘अय्यास प्रेतों का विद्रोह’ शीर्षक से एक लेखमाला प्रकाशित करते हुए अकहानीकारों की तीव्र आलोचना की थी|

कहानियाँ

कमलेश्वर ने तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ हैं-

भटके हुए लोग ( शरणार्थी समस्या पर आधारित कहानी)

राजा निरबंसिया

मांस का दरिया

नीली झील

तलाश

बयान

नागमणि

अपना एकांत

आसक्ति

ज़िंदा मुर्दे

जॉर्ज पंचम की नाक

मुर्दों की दुनिया

कस्बे का आदमी

देवी की मां

बचपन में जो लिखा नहीं जाता

एक रुकी हुई जिंदगी

खोई हुई दिशाएं

उपन्यास

( प्रयोगवादी या आधुनिकताबोधवादी उपन्यासकार)

एक सड़क सत्तावन गलियाँ -1961

डाक बंगला-1962

लौटे हुए मुसाफ़िर-1963

तीसरा आदमी-1964

समुद्र में खोया हुआ आदमी-1965

काली आँधी

आगामी अतीत-1976

सुबह…दोपहर…शाम-1982

रेगिस्तान-1988

वही बात

एक और चंद्रकांता

कितने पाकिस्तान-2000 (2003 साहित्य अकादमी पुरस्कार)

नाटक

अधूरी आवाज़

रेत पर लिखे नाम

हिंदोस्ता हमारा

आत्मकथा

जलती हुई नदी

जो मैने जिया

यादों के चिराग

संस्मरण

अपनी निगाह में-1982

संपादन

अपने जीवनकाल में अलग-अलग समय पर उन्होंने सात पत्रिकाओं का संपादन किया –

विहान-पत्रिका (1954)

नई कहानियाँ-पत्रिका (1958-66)

सारिका-पत्रिका (1957-78)

कथायात्रा-पत्रिका (1978-79)

गंगा-पत्रिका(1984-88)

इंगित-पत्रिका (1961-68)

श्रीवर्षा-पत्रिका (1979-80)

अखबारों में भूमिका

वे हिन्दी दैनिक `दैनिक जागरण’ में 1990 से 1992 तक तथा ‘दैनिक भास्कर’ में 1997 से लगातार स्तंभलेखन का काम करते रहे।’

पटकथा एवं संवाद : कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय

कमलेश्वर ने 99 फ़िल्मों के संवाद, कहानी या पटकथा लेखन का काम किया। कुछ प्रसिद्ध फ़िल्मों के नाम हैं-

सौतन की बेटी(1989)-संवाद

लैला(1984)- संवाद, पटकथा

यह देश (1984) -संवाद

रंग बिरंगी(1983) -कहानी

सौतन(1983)- संवाद

साजन की सहेली(1981)- संवाद, पटकथा

राम बलराम (1980)- संवाद, पटकथा

मौसम(1974)- कहानी

आंधी (1974)- उपन्यास

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय

उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय, साहित्य परिचय, उपेन्द्रनाथ अश्क की एकांकी, नाटक, भाषा शैली, संक्षिप्त परिचय, लेखक परिचय, एकांकी, कविताएं

जन्म -14 दिसम्बर, 1910

जन्म भूमि- जालंधर, पंजाब

मृत्यु -19 जनवरी, 1996

अभिभावक – पण्डित माधोराम

पत्नी -कौशल्या अश्क

भाषा:- हिन्दी

काल:- आधुनिक काल (समष्टि चेतना प्रधान काव्य के कवि)

विधा:- गद्य और पद्य

विषय:- कविता, कहानी, उपन्यास

उपेन्द्रनाथ अश्क का साहित्य परिचय

उपेन्द्रनाथ अश्क की एकांकी : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

इनके द्वारा रचित एकांकियों को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-

(1) सामाजिक व्यंग्यात्मक एकांकी-

पापी ,1937

लक्ष्मी का स्वागत ,1938

मोहब्बत ,1938

क्रॉसवर्ड पहेली ,1939

अधिकार का रक्षक ,1938

आपस का समझोता 1939

स्वर्ग की झलक 1939

विवाह के दिन 1939

जोंक,1939

(2) सांकेतिक एवं प्रतीकात्मक एकांकी-

चरवाहे 1942

चिलमन 1942

खिड़की 1942

चुंबक 1942

मैमुना 1942

देवताओं की छाया में 1940

चमत्कार 1943

सुखी डाली 1943

अंधी गली 1954

साहब को जुकाम है

पक्का गाना

(3)मनोवैज्ञानिक एकांकी/प्रहसन-

आदिमार्ग 1947

अंजो दीदी 1954

भंवर 1950

कैसा साब कैसी आया

पर्दा उठाओ-पर्दा गिराओ 1951

बतसिया 1952

सयाना मालिक 1952

जीवनसाथी 1952

एकांकी संग्रह-

छह एकांकी

पच्चीस श्रेष्ठ एकांकी

कविताएं

विदा (1917, प्रथम कविता)

एक दिन आकाश ने कहा,

प्रातःदीप,

दीप जलेगा,

बरगद की बेटी,

उर्म्मियाँ,

रिजपर

अजगर और चाँदनी

उपन्यास: उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

सितारों का खेल,1937 (पहला उपन्यास)

गिरती दीवारें, 1947

गर्म राख,1952

बड़ी-बड़ी आँखे,1954

पत्थर-अल-पत्थर-1957

शहर में घूमता आईना, 1963

बाँधों न नाव इस ठाँव,1964

एक नन्ही किंदील,1969

कहानी संग्रह

सत्तर श्रेष्ठ कहानियां,

जुदाई की शाम के गीत,

काले साहब,

पिंजरा,

कहानियां

निशानियाँ

दो धारा

मुक्त

देशभक्त

कांगड़ा का तेली

डाची

आकाशचारी

टेबुल लैंड

नाटक : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

जय-पराजय,1937

छठा बेटा,1940

कैद,1945

उड़ान,1946 (मुक्त हवा में सांस लेती नारी का चित्रण)

भंवर,1950

पैंतरे,1952

अंजो दीदी,1954 (मशीनीकरण/यंत्रीकरण के कारण टुटते परिवार का हृदयस्पर्शी चित्रण)

अंधी गली-1954

अलग-अलग रास्ते,1954

लौटता हुआ दिन,

बड़े खिलाडी,

स्वर्ग की झलक,

सूखी डाली

तौलिए

आत्मकथा

पाँचवा खंड

चेहरे अनेक

संस्मरण : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

रेखाएँ और चित्र,1955

मण्टो मेरा दुश्मन,1956 (निबंध)

ज्यादा अपनी कम परायी,1959

उर्दू के बेहतरीन संस्मरण,1962 (संपादन)

फिल्मी जीवन की झलकियाँ

आलोचना : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

अन्वेषण की सहयात्रा,

हिन्दी कहानी: एक अन्तरंग परिचय

विशेष तथ्य : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

प्रेमचंद जी की तरह इन्होंने भी प्रारंभ में ‘उर्दू’ में लेखन कार्य किया था।

इन्होंने ‘भूचाल’ नामक साप्ताहिक पत्र का संपादन किया था।

कुछ दिनों तक इन्होने ऑल इंडिया रेडियो और फिल्म जगत् में भी काम किया था।

बच्चन सिंह के अनुसार अश्क हिंदी के पहले नाटककार हैं, जिनका ध्यान रंगमंच की ओर गया।

नगेंद्र के अनुसार यह पहले ऐसे नाटककार हैं जिन्होंने हिंदी नाटक को रोमांस के कटघरे से निकालकर आधुनिक भाव बोध के साथ जोड़ा।

उर्दू के सफल लेखक उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ ने मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। 1933 में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह ‘औरत की फितरत’ की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी।

आदिकाल के साहित्यकार

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भगवती चरण वर्मा

भगवती चरण वर्मा का जीवन परिचय

भगवती चरण वर्मा जीवन-परिचय, भगवती चरण वर्मा का साहित्य परिचय, कविताएं, रचनाएं, उपन्यास, पुरस्कार सम्मान, विशेष तथ्य

जन्म -30 अगस्त, 1903

जन्म भूमि- उन्नाव ज़िला, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -5 अक्टूबर, 1981

विषय- उपन्यास, कहानी, कविता, संस्मरण, साहित्य आलोचना, नाटक, पत्रकार।

विद्यालय -इलाहाबाद विश्वविद्यालय

शिक्षा – बी.ए., एल.एल.बी.

प्रसिद्धि – उपन्यासकार

काल- आधुनिककाल

काव्यधारा- व्यक्ति चेतना प्रधान काव्यधारा या हालावाद

भगवती चरण वर्मा का साहित्य परिचय

भगवती चरण वर्मा की रचनाएं

उपन्यास

पतन (1928),

चित्रलेखा (1934),

तीन वर्ष,

टेढे़-मेढे रास्ते (1946)

अपने खिलौने (1957),

भूले-बिसरे चित्र (1959),

वह फिर नहीं आई,

सामर्थ्य और सीमा (1962),

थके पाँव,

रेखा,

सीधी सच्ची बातें,

युवराज चूण्डा,

सबहिं नचावत राम गोसाईं, (1970)

प्रश्न और मरीचिका, (1973)

धुप्पल,

चाणक्य

कहानी-संग्रह

मोर्चाबंदी

कविता-संग्रह

मधुकण (1932)

‘प्रेम-संगीत'(1937)

‘मानव’ (1940)

नाटक

वसीहत

रुपया तुम्हें खा गया

संस्मरण

अतीत के गर्भ से

विशेष तथ्य

‘मस्ती, आवेश एवं अहं ‘ उनकी कविताओं के केंद्र बिंदु माने जाते हैं|

उनकी रचनाएं 1917 ईस्वी से ही ‘प्रताप’ पत्र में प्रकाशित होने लगी थी|

इन्होने प्रताप पत्र का संपादन भी किया|

चित्रलेखा उपन्यास की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है-पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है ? इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नांबर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमश: सामंत बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नांबर की टिप्पणी है, ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।

पुरस्कार सम्मान : भगवती चरण वर्मा जीवन-परिचय

1961 में ‘भूले बिसरे चित्र’ उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरूस्कार से पुरूस्कृत किया गया।

वर्ष 1969 में इन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से अलंकृत किया गया।

आदरणीय वर्मा जी वर्ष 1978 में भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा के लिये चुने गये।

इन्हे पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

प्रसिद्ध पंक्तियां

“मैं मुख्य रूप से उपन्यासकार हूँ, कवि नहीं-आज मेरा उपन्यासकार ही सजग रह गया है, कविता से लगाव छूट गया है।”
“किस तरह भुला दूँ, आज हाय,
कल की ही तो बात प्रिये!
जब श्वासों का सौरभ पीकर,
मदमाती साँसें लहर उठीं,
जब उर के स्पन्दन से पुलकित
उर की तनमयता सिरह उठी,
मैं दीवाना तो ढूँढ रहा
हूँ वह सपने की रात प्रिये!
किस तरह भुला दूँ आज हाय
कल की ही तो है बात प्रिये!”

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हरिवंश राय बच्चन Harivansh Rai Bachchan

हरिवंश राय बच्चन Harivansh Rai Bachchan

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Harivansh Rai Bachchan
Harivansh Rai Bachchan

जीवन परिचय

जन्म- 27 नवम्बर 1907 इलाहाबाद, आगरा, ब्रितानी भारत (अब उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु -18 जनवरी 2003 (उम्र 95) मुम्बई, महाराष्ट्र,

अभिभावक – प्रताप नारायण श्रीवास्तव, सरस्वती देवी

पति/पत्नी – श्यामा बच्चन, तेजी सूरी

संतान- अमिताभ बच्चन, अजिताभ बच्चन

उपजीविका- कवि, लेखक, प्राध्यापक

भाषा- अवधी, हिन्दी

काल- आधुनिक काल, छायावादी युग (व्यक्ति चेतना प्रधान काव्यधारा या हालावाद )

हालावाद के प्रवर्तक

हरिवंश राय बच्चन का साहित्यिक योगदान

इस विषय में कोई दो राय नहीं है कि छायावादोत्तर गीति काव्य में बच्चन का श्रेष्ठ स्थान है।

बच्चन को इस पंक्ति का अग्रिम सूत्रधार माना जायेगा। बच्चन की कविता की सबसे बड़ी पूंजी है ‘अनुभूति’ उसके क्षीण होते उनकी कविता नंगी हो जाती है। क्योंकि अनुभूति की रिक्तता को कल्पना के फूलों और चिन्तन की छूपछांही की जाली से ढकने की कला से वह अनभिज्ञ हैं। यही कारण है कि उनकी रचनाएं शुद्ध गीतों में लक्षित की जा सकती है।

शुद्धता के सभी तत्व, व्यैक्तिकता, भावान्विति , संगीतात्मकता टेक, छन्द – विधान लय गीत सा उतार – चढ़ाव इत्यादि आलोच्य कवि के गीतों में गठित है।

अपने सर्वश्रेष्ठ गीतों के आधार पर ही बच्चन का स्थान हमारी पीढ़ी के कवियों में बहुत ऊँचा है।

छायावाद के कल्पनावैभव और अलंकृत बिम्ब – विधान से बच्चन के गीत बहुत दूर रहे हैं।

बच्चन की कल्पना का स्वर्ण – महल अनुभूति की दृढ़ – नींव पर स्थित है। कवि के अप्रस्तुत – किसान , बिम्ब , प्रतीक आदि का मुख्य कारण अनुभूति और कल्पना का अमूल्य सहयोग है।

बच्चन जी के गीतों में प्रत्येक प्राणी के हृदय का सागर – मन्थन ही स्वर पा है। उनके गीत जीवन संघर्ष की कुंभीपाल ज्वाला से तपकर एक दम खरे गीतों में अवश्यकतानुसार गया निकले है, कि उनका प्रभाव हिन्दी जगत पर अभूतपूर्व है।

परम्परागत और नवीन दोनों प्रकार के उपमानों का भी बड़ा सुन्दर समायोजन प्रस्तुत किया गया है। इसी कारण बच्चन की प्रतिभा का परिणाम इतना अधिक है कि समय के पन्नों से वह मिट नहीं सकेगें, इतिहास की कूर यवनिका उसकी ज्योति को मलिन करने में असमर्थ रहेगी।

हरिवंश राय बच्चन की रचनाएं

कविता संग्रह : हरिवंश राय बच्चन Harivansh Rai Bachchan

तेरा हार (1929),(प्रथम)

मधुशाला (1935),

मधुबाला (1936),

मधुकलश (1937),

निशा निमंत्रण (1938),

एकांत संगीत (1939),

आकुल अंतर (1943),

सतरंगिनी (1945),

हलाहल (1946),

बंगाल का अकाल (1946),

खादी के फूल (1948),

सूत की माला (1948),

मिलन यामिनी (1950),

प्रणय पत्रिका (1955),

धार के इधर उधर (1957),

आरती और अंगारे (1958),

बुद्ध और नाचघर (1958),

त्रिभंगिमा (1961),

चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962),

दो चट्टानें (1965),

बहुत दिन बीते (1967),

कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968),

उभरते प्रतिमानों के रूप (1969),

जाल समेटा (1973)

आत्मकथाएं

क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969),

नीड़ का निर्माण फिर (1970),

बसेरे से दूर (1977),

दशद्वार से सोपान तक (1985)

विविध रचनाएं

बचपन के साथ क्षण भर (1934),

खय्याम की मधुशाला (1938),(अग्रजी के प्रसिद्ध कवि ‘ फिट्जेराल्ड’ कृत अंग्रेजी अनुवाद के आधार पर अनुवाद किया है)

सोपान (1953),

मैकबेथ (1957),

जनगीता (1958),

ओथेलो (1959),

उमर खय्याम की रुबाइयाँ (1959),

कवियों के सौम्य संत: पंत (1960),

आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि: सुमित्रानंदन पंत (1960),

आधुनिक कवि (1961),

नेहरू: राजनीतिक जीवनचित्र (1961),

नये पुराने झरोखे (1962),

अभिनव सोपान (1964)

चौसठ रूसी कविताएँ (1964)

नागर गीत (1966),

बचपन के लोकप्रिय गीत (1967)

डब्लू बी यीट्स एंड औकल्टिज़्म (1968)

मरकट द्वीप का स्वर (1968)

हैमलेट (1969)

भाषा अपनी भाव पराये (1970)

पंत के सौ पत्र (1970)

प्रवास की डायरी (1971)

किंग लियर (1972)

टूटी छूटी कड़ियाँ (1973)

मेरी कविताई की आधी सदी (1981)

सोहं हंस (1981)

आठवें दशक की प्रतिनिधी श्रेष्ठ कवितायें (1982)

मेरी श्रेष्ठ कविताएँ (1984)

आ रही रवि की सवारी

बच्चन रचनावली के नौ खण्ड (1983)

पुरस्कार एवं सम्मान : हरिवंश राय बच्चन Harivansh Rai Bachchan

इनकी कृति ‘दो चट्टाने’ को 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया गया था।

इन्हे 1968 में ही सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

बिड़ला फाउण्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिये उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था।

बच्चन को भारत सरकार द्वारा 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

हरिवंश राय बच्चन संबंधी विशेष तथ्य

यह मूलतः आत्मानुभूति के कवि माने जाते हैं|

इनको ‘क्षयी रोमांस का कवि’ भी कहा जाता है|

इनको 1966 ई. में राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया गया था|

सन 1932 ई. में इन्होंने अपना प्रारंभिक साहित्यिक जीवन ‘पायोनियर’ के संवाददाता के रूप में प्रारंभ किया था।

हरिवंश राय बच्चन Harivansh Rai Bachchan की भाषा शैली व काव्य शैली

“बच्चन जी की लोकप्रियता और सफलता का बहुत कुछ श्रेय उनकी सहज सीधी भाषा और शैली को है जो अनेक जटिल संवेदनाओं को भी बिलकुल सीधे और साफ रूप से अत्यन्त ही प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने में समर्थ हैं।”

मूर्धन्य आलोचक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और राष्ट्रकवि दिनकर आदि हिन्दी साहित्य के निर्विवाद विद्वानों ने बच्चन की भाषा के विषय में ऐसे ही विचार व्यक्त किये हैं।

छायावादी कवि ने लाक्षणिक वक्ता से भाषा को दुरूह बना दिया था, बच्चन जी ने ही उसे इस वक्र भंगिमा से बचाया।

छायावादी गीतों की अपेक्षा बच्चन की भाषा अधिक संयोगावस्था में है और छायावादोत्तर गीतों की भाषा वियोगावस्था और जनसाधारण के अत्यन्त निकट है।

भाव की दृष्टि से भी हिन्दी साहित्य को बच्चन की देन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त शैली की सरलता और माधुर्य की दृष्टि से भी हिन्दी कविता को बच्चन ने सबल बनाया है।

छायावादोत्तर गीतों की भाषा में शब्द-समाहार शक्ति अद्भुत है।

भाषा शैली व काव्य शैली

छायावादोत्तर काव्य में पर्यायों का प्रयोग बहुत कम हुआ है।

सच तो यह है कि “बच्चन ” ने ही “भाषा” का अपना स्कूल चलाया, कवि के अनुसार – “शब्दों के सबसे बड़े पारखी कान हैं आँख तो शब्दों के चिन्ह भर देखती है, पर शब्द और चिन्हों में उतना ही अंतर है, जितना की लिपि (नोटेशन) और संगीत में” वैसे कवि की भाषा में ओज, प्रसाद, माधुर्य तीनों प्रकार के गुणों के शब्द शामिल हैं परन्तु प्राधानता प्रसाद गुण की रही है उन्होंने भावाभिव्यक्ति के आधार पर नूतन शब्द-समाहार शक्ति का आदर्श पथ निर्मित किया है।

प्रतीकों की भाँति बच्चन जी ने अपने काव्य में बिम्बों का भी सफल प्रयोग किया है।

जिनका संवेदन तत्व पाठक के मन पर तत्काल प्रभाव छोड़ता है।

कवि बच्चन निराशा, अपराजेय, जिजीविषा के बीच, नियति के विरूद्ध, समाज के विरुद्ध अग्निपथ के ओजस्वी कवि के रूप में प्रतिपल आगे ही बढ़ने की शपथ खा, शाश्वत मानव के सफल- विफल महासंघर्ष को सांस्कृतिक, सामाजिक राजनीतिक एवं आर्थिक आवरण से मुक्त कर, उसके मूल रूप को बिम्बात्मक रूप में सफलतापूर्वक व्यक्त करते हैं।

काव्य गीतों में प्रतीकों के प्रयोग के बारे में कवि बच्चन की धारणा है -“कि जब कवि की तीव्रतम भावनाएं अभिव्यक्त होने के लिए व्यग होती हैं। तब एक अर्थी अथवा दो अर्थी भी शब्द उसका साथ देने को तैयार नहीं होते, उसे प्रतीकों का सहारा लेना ही पड़ता है।”

प्रमुख पंक्तिया

“जो बसे हैं, वे उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से, पर किसी उजड़े हुए को फिर से बसाना कब मना है?”
“है चिता की राख कर में, माँगती सिन्दूर दुनियाँ”- व्यक्तिगत दुनिया का इतना सफल, सहज साधारणीकरण दुर्लभ है।”

“मृदु भावों के अंगूरों की
आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से
आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा,
फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत
करती मेरी मधुशाला।।”

“मौन रात इस भांति कि जैसे, कोई गत वीणा पर बज कर,
अभी-अभी सोई खोई-सी, सपनों में तारों पर सिर धर
और दिशाओं से प्रतिध्वनियाँ, जाग्रत सुधियों-सी आती हैं,”

“हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं –
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!”

“इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,”

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार

अटल बिहारी वाजपेयी – Atal Bihari Vajpayi

अटल बिहारी वाजपेयी – Atal Bihari Vajpayi 

अटल बिहारी Atal Bihari वाजपेयी जीवन-परिचय, जीवनी, राजनैतिक जीवन, कार्यकाल, प्रमुख कार्य व योगदान, के कविता संग्रह, शिक्षा, पुरस्कार एवं सम्मान

जीवन परिचय

जन्म – 25 दिसंबर 1924 (ग्वालियर, मध्य प्रदेश)।

मृत्यु – अगस्त 16, 2018 (उम्र 93) एम्स दिल्ली (सायं 5 बजे) नई दिल्ली।

भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह

अटल बिहारी वाजपेयी की शिक्षा

एम.ए. (राजनीति शास्त्र) – डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर (यूपी)

अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन परिचय
अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन परिचय

तीन बार का प्रधानमंत्री कार्यकाल

प्रथम काल (मई 1996 में 13 दिनों के लिए)

द्वितीय काल (मार्च 1998 में 13 महीनों के लिए, एनडीए)

तृतीय काल (अक्टूबर 1999 से 2004, एनडीए)

(पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद दूसरे राजनेता जो लगातार दो बार देश के प्रधानमंत्री चुने गए।)

अटल बिहारी Atal Bihari वाजपेयी का राजनैतिक जीवन

भारतीय जनसंघ के शीर्ष संस्थापकों में से एक तथा 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे।

सन् 1952 – पहला असफल लोकसभा चुनाव लड़ा।

सन् 1957 – जनसंघ प्रत्याशी के रूप में पहली लोकसभा जीत, बलरामपुर, जिला गोण्डा (उत्तर प्रदेश)।

1957 से 1977 – जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे।

सन् 1977 से 1979 – विदेश मन्त्री (मोरारजी भाई देसाई की सरकार में)।

6 अप्रैल 1980 – भारतीय जनता पार्टी (अध्यक्ष)।

प्रमुख कार्य व योगदान

11 व 13 मई 1998 – पाँच सफल परमाणु परीक्षण, पोखरण (राजस्थान)।

19 फरवरी 1999 – ‘सदा-ए-सरहद’ (दिल्ली – लाहौर बस सेवा)।

वर्ष 1999 – कारगिल युद्ध विजय।

उड़ीसा के सबसे गरीब क्षेत्र हेतु सात सूत्री गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया।

एक सदी से भी ज्यादा पुराने “कावेरी जल विवाद” का निपटारा किया।

उपलब्धि ओर कीर्तिमान : अटल बिहारी Atal Bihari

देश के एकमात्र राजनेता जो चार राज्यों के छः लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके थे।

पहले भारतीय नेता (विदेशमंत्री) जिन्होनें संयुक्त राष्ट्र महासंघ को हिन्दी भाषा में संबोधित किया।

वर्ष 2004 – भारत उदय (इण्डिया शाइनिंग) का नारा दिया।

राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीयवादी पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।

लोकसभा में उनके वक्तव्य अमर बलिदान नाम से संग्रहित है।

पुरस्कार व सम्मान

1992 : पद्म विभूषण

1994 : लोकमान्य तिलक पुरस्कार

1994 : श्रेष्ठ सासंद पुरस्कार

2014 : भारतरत्न से सम्मानित

प्रसिद्ध काव्य संग्रह

मेरी इक्यावन कविताएं।

अटल बिहारी वाजपेयी

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या-आधुनिक भारत के निर्माता

सरदार वल्लभ भाई पटेल : भारतीय लौहपुरूष

सुंदर पिचई – सफलताओं के पर्याय

डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

मेजर ध्यानचंद

नागार्जुन

नागार्जुन का जीवन परिचय

नागार्जुन का जीवन परिचय, नागार्जुन का साहित्यिक परिचय, नागार्जुन की रचनाएं, नागार्जुन की काव्य संवेदना और काव्य प्रवृत्तियां

मूल (वास्तविक) नाम- वैद्यनाथ मिश्र

अन्य नाम – नागार्जुन, यात्री

नोट:- 1936 ईस्वी में श्रीलंका में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने एवं बौद्ध भिक्षु बन जाने पर इनका नाम नागार्जुन पड़ा| ये श्रीलंका में बौद्ध धर्म के ‘विद्यालंकार परिवेण’ में तीन वर्ष तक रहे थे|

जन्म- 30 जून, 1911

जन्म भूमि- मधुबनी ज़िला, बिहार

मृत्यु -5 नवंबर, 1998

मृत्यु स्थान- दरभंगा ज़िला, बिहार

पिता- गोकुल मिश्र

पत्नी – अपराजिता देवी

कर्म-क्षेत्र -कवि, लेखक, उपन्यासकार

युग- प्रगतिवादी युग

नागार्जुन का साहित्यिक परिचय

नागार्जुन की रचनाएं

युगधारा 1953

सतरंगे पंखों वाली 1959

प्यासी पथराई आंखे 1962

तालाब की मछलियां

तुमने कहा था 1980

खिचड़ी विप्लव देखा हमने 1980

हजार-हजार बाहों वाली 1981

भस्मांकुर (खंडकाव्य)

एसे भी हम क्या-ऐसी भी तुम क्या

पुरानी जूतियों का कोरस 1983

रत्नगर्भ

काली माई

रवींद्र के प्रति

बादल को घिरते देखा है (कविता)

प्रेत का बयान

आओ रानी हम ढोएं पालकी

वे और तुम

आकाल और उसके बाद

सिंदूर तिलांकित भाल (कविता)

आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने

मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा

तुम्हारी दंतुरित मुस्कान (कविता)

इस गुब्बारे की छाया में-1989

ओम मंत्र

भुल जाओ पुराने सपनें

उपन्यास

‘रतिनाथ की चाची’ (1948 ई.)

‘बलचनमा’ (1952 ई.)

‘नयी पौध’ (1953 ई.)

‘बाबा बटेसरनाथ’ (1954 ई.)

‘दुखमोचन’ (1957 ई.)

‘वरुण के बेटे’ (1957 ई.)

उग्रतारा

कुंभीपाक

पारो

आसमान में चाँद तारे

मैथिली रचनाएं

हीरक जयंती (उपन्यास)

पत्रहीन नग्न गाछ (कविता-संग्रह)

बाल साहित्य

कथा मंजरी भाग-1

कथा मंजरी भाग-2

मर्यादा पुरुषोत्तम

विद्यापति की कहानियाँ

व्यंग्य

अभिनंदन

निबंध संग्रह

अन्न हीनम क्रियानाम

बांग्ला रचनाएँ

मैं मिलिट्री का पुराना घोड़ा (हिन्दी अनुवाद)

सम्मान और पुरस्कार

नागार्जुन को साहित्य अकादमी पुरस्कार से, उनकी ऐतिहासिक मैथिली रचना ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए 1969 में सम्मानित गया था।

उन्हें साहित्य अकादमी ने 1994 में साहित्य अकादमी फेलो के रूप में भी नामांकित कर सम्मानित किया था।

विशेष तथ्य : नागार्जुन का जीवन परिचय

नागार्जुन मैथिली भाषा में ‘यात्री’ के नाम से कविता लिखते थे|

किसी अंधविश्वास के कारण बचपन में इनका नाम ‘ढ़क्कन’ रखा गया था|

लोग इन्हें प्यार से ‘बाबा’ भी कहते थे|

उन्होंने इंदिरा गांधी की राजनीति को केंद्र बनाकर एवम् उन पर अनेक आरोप लगाकर कविताएं लिखी थी|

यह व्यंग्य में माहिर है इसलिए इन्हें ‘आधुनिक कबीर’ भी कहा जाता है|

इन्होंने प्रगतिवादी काव्यधारा को जन-जन के अभाव व आकांक्षाओं से जोड़कर उसे जन जागरण की कविता बना दिया था|

इनके द्वारा ‘दीपक’ नामक पत्रिका का संपादन कार्य किया गया था

यह जन्म से कवि, प्रकृति से घुमक्कड़ एवं विचारों से मूलतः मार्कसवादी माने जाते हैं|

नागार्जुन ने अपनी भाषा में ‘ठेठ ग्रामीण शैली के मुहावरो’ का प्रयोग किया है|

इनकी मृत्यु के बाद ‘सोमदेव’ तथा ‘शोभाकांत’ के संपादन में इनकी एक लंबी कविता ‘भूमिजा’ प्रकाशित हुई थी|

इनका संपूर्ण कृतित्व ‘नागार्जुन रचनावली’ के ‘सात’ खंडों में प्रकाशित है|

कवि आलोक धन्‍वा ने नागार्जुन की रचनाओं को संदर्भित करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में आज़ादी की लड़ाई की अंतर्वस्‍तु शामिल है।

नागार्जुन ने कविताओं के जरिए कई लड़ाईयाँ लडीं।

वे एक कवि के रूप में ही महत्‍वपूर्ण नहीं है अपितु नए भारत के निर्माता के रूप में दिखाई देते हैं।

“नागार्जुन जैसा प्रयोगधर्मा कवि कम ही देखने को मिलता है, चाहे वे प्रयोग लय के हों, छंद के हों, विषयवस्तु के हों।”- नामवर सिंह

प्रसिद्ध पंक्तियां : नागार्जुन का जीवन परिचय

“खिचड़ी विप्लव देखा हमने
भोगा हमने क्रांति विलास
अब भी खत्म नहीं होगा क्या
पूर्णक्रांति का भ्रांति विलास।”

” काम नहीं है, दाम नहीं है
तरुणों को उठाने दो बंदूक
फिर करवा लेना आत्मसमर्पण”

“पांच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया, बाकी बच गए चार
चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश निकाला मिला एक को, बाकी बच गए तीन
तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच गए दो
दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया एक गद्दी से, बाकी बच गया एक
एक पूत भारतमाता का, कंधे पर था झंडा
पुलिस पकड़ कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा !”

“कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक काली कुत्तिया, सोई उसके पास ||”

” बदला सत्य, अहिंसा बदली, लाठी-गोली डंडे है कानूनों की सड़ी लाश पर प्रजातंत्र के झंडे हैं|”

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार

कामायनी महाकाव्य Kamayani Mahakavya की जानकारी

कामायनी महाकाव्य Kamayani Mahakavya की जानकारी

कामायनी महाकाव्य Kamayani Mahakavya की जानकारी, कामायनी के सर्ग, कामायनी के मुख्य छंद, कामायनी की प्रतीक योजना, आलोचकों के कथन।

जयशंकर प्रसाद द्वारा प्रसिद्ध महाकाव्य कामायनी का संक्षिप्त परिचय।

कामायनी महाकाव्य की जानकारी
कामायनी महाकाव्य की जानकारी

कामायनी के सर्ग

सर्ग – 15

सबसे छोटा – चिंता सर्ग

सबसे बड़ा- आनंद सर्ग

सर्गों का क्रम

चिंता, आशा, श्रद्धा, काम, वासना, लज्जा, कर्म, ईर्ष्या, इडा, स्वप्न, संघर्ष, निर्वेद, दर्शन, रहस्य, आनंद

कामायनी के मुख्य छंद

मुख्य छंद – तोटक/ताटंक

सर्गों में विशेष छंद

आल्हा छंद – चिंता सर्ग आशा सर्ग स्वप्न सर्ग निर्वेद सर्ग

लावनी छंद – रहस्य सर्ग इडा सर्ग श्रद्धा सर्ग काम सर्ग लज्जा सर्ग

रोला छंद – संघर्ष सर्ग

सखी छंद – आनन्द सर्ग

रूपमाला छंद – वासना सर्ग

कामायनी की प्रतीक योजना

मनु – मन

श्रद्धा – हृदय (रागात्मक बुद्धि)

इड़ा – बुद्धि (व्यावसायिक बुद्धि)

कुमार – मानव

वृषभ (बैल) – धर्म

कैलास मानसरोवर – मोक्ष स्थान

आकुलि–किरात – आसुरी शक्ति

कामायनी के विशेष तथ्य

कामायनी पर प्रसाद को मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार मिला है।

काम गोत्र में जन्म लेने के कारण श्रद्धा को कामायनी कहा गया है।

प्रसाद ने कामायनी में आदि पुरुष मनु की कथा के साथ साथ युगीन समस्याओं पर प्रकाश डाला है।

कामायनी का अंगीरस शांत रस है।

कामायनी-दर्शन- प्रत्यभिज्ञावाद (शैव दर्शन)

कामायनी की कथा का आधार ऋग्वेद,छांदोग्य उपनिषद् ,शतपथ ब्राहमण तथा श्रीमद्भागवत है।

घटनाओं का चयन शतपथ ब्राह्मण से किया गया है।

कामायनी की पूर्व पीठिका- ‘कामना’ (नाटक), ‘प्रेमपथिक’ है।

‘उर्वशी’ कामायनी की श्रद्धा का पूर्व संस्करण  है।

कामायनी का हृदय ‘लज्जा’ सर्ग है।

‘लज्जा सर्ग’ को कामायनी का ‘हृदय स्थल’ नामवर सिंह ने कहा।

‘आनंद सर्ग’ को कामामनी का ‘हृदय स्थल’ मुक्तिबोध ने कहा।

कामायनी के नामकरण की प्रेरणा, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ से मिली।

कामामनी के ‘चिंता सर्ग’ का कुछ अंश 1928 ई. में ‘सुधा’ पत्रिका में प्रकाशित हो गये थे।

कामायनी के उद्देश्य

समरसतावाद – आनन्दवाद की स्थापना है।
(जयशंकर प्रसाद ‘एक घूँट’ में भी कामायनी से पूर्व आनंदवाद की प्रतिष्ठा कर चुके थे।)

कामायनी पर आलोचकों के कथन जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए

कामायनी पर लिखे गये ग्रन्थ

जयशंकर प्रसाद – नन्द दुलारे वाजपेयी

कामायनी एक पुनर्विचार – मुक्तिबोध

कामायनी का पुनर्मूल्यांकन – रामस्वरुप चतुर्वेदी

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