अगस्त के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of August

अगस्त के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of August

अगस्त के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of August | January to December important days | जनवरी से दिसंबर तक के महत्वपूर्ण दिवस


1 से 7 अगस्त – विश्व स्तनपान सप्ताह (World Breastfeeding Week)

प्रति वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा (रक्षाबन्धन के दिन) – संस्कृत दिवस (Sanskrit Day )

August का पहला शुक्रवार (First Friday of August) – अंतरराष्ट्रीय बीयर दिवस (International Beer Day)

अगस्त का पहला रविवार (First Sunday of August) – अंतरराष्ट्रीय मैत्री दिवस (International Friendship Day)

अगस्त का तीसरा शनिवार (Third Saturday of August) – मधुमक्खी जागरुकता दिवस (Honey Bee Awareness Day)


4 अगस्त | अगस्त के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of August

अमेरिकी तट रक्षक दिवस (U.S. Coast Guard Day)

6 अगस्त-

हिरोशिमा दिवस (Hiroshima Day)

7 अगस्त-

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Hand-loom Day)

9 अगस्त-

नागासाकी दिवस (Nagasaki Day)

अगस्त क्रांति दिवस (August Revolution day)

विश्व आदिवासी कल्याण दिवस (World Tribal Welfare Day)

विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of the World’s Indigenous Peoples)

10 अगस्त-

अंतरराष्ट्रीय जैव-ईंधन दिवस (International Bio-Fuel Day)

राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (National Deworming Day) (वर्ष में दो बार – 10 फरवरी व 10 अगस्त को)

विश्व शेर दिवस (World Lion Day)

12 अगस्त | अगस्त के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of August

डाॅ. विक्रम ए. साराभाई का जन्मदिवस (2019 को 100वीं वर्षगाँठ) (Dr. Vikram A. Sarabhai’s Birthday)

अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस (International Youth Day)

विश्व हाथी दिवस (World Elephant Day)

13 अगस्त-

बाएं हाथ वालों (खब्बू) का अंतरराष्ट्रीय दिवस – (International Left Hander’s Day)

14 अगस्त-

पाकिस्तान स्वतंत्रता दिवस (Youm-e-Azadi (Pakistan Independence Day))

15 अगस्त

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Important Days of August अगस्त के महत्त्वपूर्ण दिवस

भारत का स्वतंत्रता दिवस (Independence Day of India)

द. कोरिया, कांगो गणराज्य व बहरीन का स्वतंत्रता दिवस (Independence Day of South Korea, Republic of Congo and Bahrain)

बांग्लादेश का राष्ट्रीय शोक दिवस (National Mourning Day of Bangladesh)

17 अगस्त-

इंडोनेशियाई स्वतंत्रता दिवस (Indonesian Independence Day)

19 अगस्त-

विश्व फोटोग्राफी दिवस (World Photography Day)

विश्व मानवीय दिवस (World Humanitarian Day)

अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस (Afghanistan Independence Day)

20 अगस्त-

सद्भावना दिवस (पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती) (Sadbhavna Divas (Former Prime Minister Rajiv Gandhi’s birth anniversary))

विश्व मच्छर दिवस (ब्रिटिश चिकित्सक सर रोनाल्ड रास की स्मृति में। इन्होंने 1897 में मलेरिया रोग होने का कारण बताया) (World Mosquito Day)

20 अगस्त-

भारतीय अक्षय ऊर्जा दिवस (Indian Akshay Urja Day)

21 अगस्त-माह

सुंदरवन दिवस (Sundervan Divas)

अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस (International Senior Citizens Day)

आतंकवाद ग्रस्तों को श्रद्धांजलि का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Tribute to Terrorist Victims)

23 अगस्त-

दास व्यापार और इसके उन्मूलन के स्मरण के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day for the Remembrance of the Slave Trade and its Abolition)

स्टालिनवाद और नाजीवाद के पीड़ितों के लिए उनकी याद में यूरोपीय दिवस (European Day of Remembrance for Victims of Stalinism and Nazism)

26 अगस्त-

महिला समानता दिवस (Women’s Equality Day)

मदर टेरेसा जयन्ती (Mother Teresa Birthday)

29 अगस्त-

राष्ट्रीय खेल दिवस (हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिवस) – National Sports Day (Birthday of Hockey Magician Major Dhyanchand)

परमाणु परीक्षण के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day Against Nuclear Testing)

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Important Days of August अगस्त के महत्त्वपूर्ण दिवस

30 अगस्त-

राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस (Small Industry Day)

31 अगस्त-

हरि मर्देका (मलेशिया राष्ट्रीय दिवस)-Hari Merdeka (Malaysia National Day)

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जुलाई के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July

जुलाई के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July

जुलाई के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July | परीक्षोपयोगी दृष्टि से आवश्यक जानकारी | Important Days & Week of July


July का पहला शनिवार – अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस (International Cooperative Day)

जुलाई का चौथा रविवार- राष्ट्रीय अभिभावक दिवस (National Parent’s Day)

1 से 7 जुलाई तक – वन महोत्सव सप्ताह


1 जुलाई-

राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (National Doctor’s Day) (राष्ट्र के प्रसिद्ध चिकित्सक, समाजसेवी एवं स्वतंत्रता सेनानी डाॅ. बिधान चन्द्र राय का जन्मदिन तथा पुण्यतिथि)

राष्ट्रीय डाक कर्मचारी दिवस (National Postal Worker Day

भारतीय स्टेट बैंक स्थापना दिवस (State Bank of India Foundation Day)

चार्टर्ड एकांउटेंट दिवस (Chartered Accountant Day)

कनाडा दिवस (Canada day)

अंतरराष्ट्रीय मजाक दिवस (International Joke Day)

1 July National Doctor's Day
1 July National Doctor’s Day

2 जुलाई-

विश्व यूएफओ दिवस (World UFO Day)

विश्व खेल पत्रकार दिवस (World Sports Journalists Day)

3 जुलाई | जुलाई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July

विश्व समुद्री पक्षी दिवस (World Seabirds Day)

3 July Word Seabird Day
3 July Word Seabird Day

4 जुलाई-

संयुक्त राज्य अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस (United States Independence Day)

6 जुलाई-

विश्व जूनोसिस दिवस (World Zoonoses Day)

अंतरराष्ट्रीय चुम्बन दिवस (International Kissing Day)

7 जुलाई-

वैश्विक क्षमा दिवस (Global Forgiveness Day)

विश्व चॉकलेट दिवस (World Chocolate Day)

11 जुलाई-

विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day)

11 July Word Population Day
11 July Word Population Day

12 जुलाई-

पेपर बैग डे (Paper Bag Day)

अंतरराष्ट्रीय मलाला दिवस (International Malala day)

13 जुलाई-

सिलाई मशीन दिवस (Sewing Machine Day)

14 जुलाई-

फ्रांस का राष्ट्रीय दिवस (National day of France)

15 जुलाई-

विश्व युवा कौशल दिवस (World Youth Skills Day)

17 जुलाई-

विश्व इमोजी दिवस (World Emoji Day)

विश्व अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस (World international justice day)

18 जुलाई-

अंतरराष्ट्रीय नेल्सन मंडेला दिवस (International Nelson Mandela Day)

18 July International Nelson Mandela Day
18 July International Nelson Mandela Day

19 जुलाई-

बैंक राष्ट्रीयकरण दिवस (Bank Nationalization Day)

22 जुलाई

राष्ट्रीय आम दिवस (National Mango Day)

पाई स्वीकृति दिवस (Pi Approximation Day)

23 जुलाई-

राष्ट्रीय प्रसारण दिवस (National Broadcast Day)

24 जुलाई-

आयकर दिवस (Income Tax Day)

राष्ट्रीय थर्मल इंजीनियर दिवस (National Thermal Engineer Day)

26 जुलाई-

कारगिल विजय दिवस (Kargil Victory Day)

अंतरराष्ट्रीय मैंग्रोव दिवस (International Mangrove Day)

जुलाई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस Important Days of July

जुलाई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस Important Days of July

27 जुलाई-

पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि (Dr. A.P.J. Abdul Kalam’s death anniversary)

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27 July APJ Abdul Kalaam

28 जुलाई-

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस (World Nature Conservation Day)

विश्व हैपेटाइटिस दिवस (World Hepatitis Day)

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जुलाई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July

29 जुलाई-

अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day)

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29 July International Tiger Day जुलाई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस Important Days of July

30 जुलाई-

मैत्री का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Friendship)

31 जुलाई-

शहीद-ए-आजम उधम सिंह जी का शहीदी दिवस (Martyrdom Day of Shaheed-e-Azam Udham Singh)

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दिसम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of December

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग : संगठन तथा कार्य

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का परिचय, इतिहास, कार्य, अर्थ, संगठन, मुख्य प्रभाग, सदस्यों की पदावधि आदि की पूर्ण जानकारी

“ईश्वर द्वारा निर्मित हवा पानी की तरह सब चीजों पर सबका समान अधिकार होना चाहिए”महात्मा गांधी

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का परिचय

मानवाधिकारों की रक्षा के लिए विश्व में अनेक संगठन कार्य कर रहे हैं।

विभिन्न देशों ने मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए अपने अपने संविधान में प्रावधान किए हैं तथा ऐसे आयोगों की स्थापना की है,

जो उन देशों के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सकें।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन 12 अक्टूबर, 1993 को संसद के एक अधिनियम,

नामतः मानव  अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993(मानव अधिकार (संशोधन) अधिनियम 2006 द्वारा संशोधित) द्वारा हुआ था।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन 1991 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु आयोजित राष्ट्रीय संस्थानों की प्रथम अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किए गये तथा 20 दिसंबर 1993 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 48/134 संकल्प में पृष्ठांकित किए गए पेरिस सिद्धांतों के अनुसार है इस अधिनियम को अधिनियमित करने का कारण मानव अधिकारों का बेहतर संरक्षण एवं संवर्द्धन था।

यह एक ऐसा संस्थान है जो न्यायपालिका का अनुपूरक है और

देश में लोगों के सांविधिक रूप से निहित मानव अधिकारों की रक्षा एवं संवर्द्धन में लगा हुआ है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का अर्थ

अधिनियम के अनुसार मानव अधिकार का अर्थ है

संविधान द्वारा गारंटीकृत या अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविधान में सन्निहित और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय जीवन, स्वतंत्रता, समानता और व्यक्ति विशेष की गरिमा संबंधी अधिकार।

अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाओं का अर्थ

अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाओं का अर्थ है सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाएं: आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाएं: महिलाओं के प्रति होने वाले हर प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन संबंधी अभिसमय; बच्चों के अधिकार संबंधी अभिसमय और हर प्रकार के नृजातीय भेदभाव का उन्मूलन संबंधी अभिसमय। भारत सरकार ने वर्ष 1979 में सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदा और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार संबंधी अंतर्राष्ट्रीय पारस्परिक संविदा को स्वीकार किया था

महिलाओं के प्रति भेदभाव का उन्मूलन

भारत सरकार ने वर्ष 1993 में महिलाओं के प्रति होने वाले हर प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन संबंधी अभिसमय, वर्ष 1991 में बच्चों के अधिकार संबंधी अभिसमय और वर्ष 1968 में हर प्रकार के नृजातीय भेदभाव का उन्मूमलन संबंधी अभिसमय की अभिपुष्टि की।

यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि भारतीय संविधान उन सभी बिन्दुओं को ध्यान में रखता है जिनका उल्लेख उपरोक्त संविदाओं में किया गया है।

सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदा और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदा में उल्लिखित कई अधिकार भारतीय नागरिकों को उसी समय उपलब्ध हो गए थे जब भारत स्वतंत्र हुआ था क्योंकि यह अधिकार प्रमुख रुप से संविधान के भाग I और भाग IV में मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत जैसे शीर्ष के तहत दिए गए हैं।

भारत की चिंता का मूर्त रूप

आयोग को स्वतंत्रता, कार्य करने की स्वायत्तता और व्यापक अधिदेश उपलब्ध कराना निर्विवादित रूप से मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की सबसे बड़ी ताकत रही है, जो कि पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्था के गठन और उचित कार्यकरण के लिए आवश्यक है।

भारत का राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के संबंध में भारत की चिंता का मूर्त रूप है।

अपने अस्तित्व से लेकर अब तक भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अनुभव ने यह दर्शाया है कि इसकी संरचना, नियुक्ति प्रक्रिया, अन्वेषण संबंधी शक्तियां, कार्यों का व्यापक विस्तार तथा विशेषज्ञ प्रभाग एवं स्टॉफ से संबंधित स्वतंत्रता और मजबूती, सांविधिक अपेक्षताओं द्वारा गारंटीकृत है।

आयोग का संगठन

आयोग में एक अध्यक्ष, चार पूर्णकालिक सदस्य तथा चार मनोनीत सदस्य हैं।

संविधि में आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति के लिए अर्हता निर्धारित की गई है।

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 3 के अनुसार

(1)”भारत सरकार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के रूप में जानी जाने वाली एक संस्था का, इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में, तथा उसे समनुदेशित कार्यों को निष्पादित करने के लिए गठन करेगी।

(2) राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की संरचना में निम्नलिखित होंगे-

अध्यक्ष

जो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति रहा है।

किंतु मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसारअध्यक्ष पद के लिए उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी योग्य होंगे

एक सदस्य

जो उच्चतम न्यायालय का सदस्य है, या सदस्य रहा है;

एक सदस्य जो उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीशहै, या मुख्यन्यायाधीश रहा है।

दो सदस्य

जिनकी नियुक्ति उन व्यक्तिों में से की जाएगी जिन्हेमानव अधिकारों से संबंधित मामलों का ज्ञान हो,उसका व्यावहारिकअनुभव हो।

किंतु मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार ऐसे सदस्यों की संख्या तीन होगी जिनमें काम से कम एक महिला सदस्य अवश्य हो

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 किधारा 12 के खण्डों (ख) से (ग) में विनिर्दिष्ट कार्यों के निर्वहन के लिए-

(NMC) राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग

(NCSC) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति

(NCST) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग

(NCW) राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्षों

के अतिरिक्तमानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार

(NCBC) राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष

बाल अधिकार संरक्षण आयोग का अध्यक्ष

दिव्यांगों के लिए मुख्य आयुक्त को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य समझा जायेगा।

अतः राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्यों तथा सातमनोनित सदस्यों से होता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा अध्यक्ष, भारत सरकार के गृह मंत्रालय के प्रभारी मंत्री. लोकसभा तथा राज्य सभा में विपक्ष के नेता तथा राज्य सभा के उपसभापति से गठित एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

परन्तु उच्चतम न्यायालय के किसीवर्तमान न्यायाधीश या उच्च न्यायालय केवर्तमान मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किये बिना नही की जा सकती।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति के लिए चयन समिति

  • प्रधानमंत्रीअध्यक्ष
  • लोक सभा का अध्यक्षसदस्य
  • भारत सरकार के गृह मंत्रालय का मंत्री प्रभारीसदस्य
  • लोकसभा में विपक्ष का नेतासदस्य
  • राज्यसभा में विपक्ष का नेतासदस्य
  • राज्यसभा का उपसभापतिसदस्य

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का मुख्यालय तथा बैठकें

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 3 (5) के अनुसार आयोग का मुख्यालय दिल्ली में होगा तथा भारत सरकार की पूर्व अनुमति से भारत के किसी भी अन्य स्थान पर कार्यालय स्थापित किया जा सकता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (प्रक्रिया)विनियम 1994 के विनियम 3 के अनुसार

आयोग कि बैठकें दिल्ली स्थित कार्यालय में संपन्न होगी।

राष्ट्रीय-मानव अधिकार आयोग (प्रक्रिया) विनियम 1994 के विनियम 4 के अनुसार

यदि आयोग आवश्यक और उचित समझे तो आयोग अपनी बैठक भारत में अन्य किसी भी स्थान पर कर सकता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (प्रक्रिया) विनियम 1994 के विनियम 20 के अनुसारअध्यक्ष से पूर्व अनुमति प्राप्त कर यदि कोई सदस्य मुख्यालय से इतर किस स्थान पर कार्य कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में अधिनियम के अंतर्गत जांच के संबंध में पक्षकारों की सुनवाई हो तो आयोग के कम से कम दो सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होगी।

सदस्यों की पदावधि

  1. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 6 (1) के अनुसार अध्यक्ष के रूप में नियुक्त व्यक्ति उस दिनांक से जिसको वह अपना पद धारित करता है से पांच वर्ष की अवधि के लिये अथवा सत्तर वर्ष की आयु तक पद पर बना रहेगा।
    किंतु मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले होतक का होगातथा वह 5 वर्ष के लिए पुनः नियुक्ति का पात्र भी होगा

2. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 6 (2) के अनुसार सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति उस दिनांक से जिसको वह अपना पद धारित करता है से, पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद पर रहेगा तथा पाँच वर्षों की दूसरी अवधि के लिए पुन: नियुक्ति हेतु पात्र होगा।मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले होतक का होगा परन्तु यह कि कोई भी सदस्य सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त (पूर्ण) करने के बाद पद को धारण नहीं करेगा।

3. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 6 (3) के अनुसार,

कोई भी व्यक्ति आयोग का अध्यक्ष या सदस्य रह जाने के बाद भारतसरकार अथवा

किसी राज्य सरकार के अधीन आगे और नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों का पद त्याग या पदच्युति

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 5 में आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को पदच्युत करने से संबंधित उपबंध किए गए हैं-

अध्यक्ष या कोई सदस्य राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।

धारा 5 की उपधारा 1 के अनुसार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर पदच्युतकियाजा सकता है-

  • सिद्ध कदाचार/दुर्व्यवहार।
  • अक्षमता के आधार पर।

उक्त प्रकार से पदच्युत किये जाने से पूर्व राष्ट्रपति द्वारा-

  • उच्चतम न्यायालय को निर्देशित किया जाएगा।
  • विहित प्रक्रिया द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा मामले की जांच की जाएगी।
  • जांच की रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।
  • जांच रिपोर्ट में अध्यक्ष या सदस्य के विरुद्ध सिद्ध कदाचार/दुर्व्यवहार अथवा
    अक्षमता सिद्ध होने पर राष्ट्रपति उन्हें पदच्युत कर सकता है।

धारा 5 की उपधारा 2 के अनुसार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर पदच्युतकियाजा सकता है-

I. दिवालिया घोषित कर दिया गया हो।

II. किसी लाभ के पद पर हो विकृत चित्त हो या सक्षम न्यायालय द्वारा इस प्रकार घोषित कर दिया गया हो।

III.  मानसिक और शारीरिक दुर्बलता के कारण पद पर बने रहने के अयोग्य हो गया हो।

IV. किसी ऐसे अपराध के लिए जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक अपराध के लिए जो

राष्ट्रपति की राय में नैतिक पतन वाला हो दोष सिद्ध हो गया हो और उसे कारागार की सजा दे दी गयी हो।

जांच से संबधित शक्तियां

आयोग का मुख्य कार्यकारी अधिकारी महासचिव होता है।

जो भारत सरकार के सचिव स्तर का अधिकारी होता है।

आयोग का सचिवालय, महासचिव के सम्पूर्ण दिशानिर्देशों के तहत कार्य करता है।

आयोग को कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर, 1908 के अंतर्गत वे सभी शक्तियां प्राप्त है जो सिविल कोर्ट किसी वाद के विचारण के समय अपनाता है, विशेष रूप से गवाहों की उपस्थिति हेतु समन करने तथा हाजिर करने तथा शपथ पर उनकी जांच करने हलफनामे पर साक्ष्य प्राप्त करने किसी पब्लिक रिकॉर्ड को मांगने अथवा किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से उनकी प्रति मांगने तथा निर्धारित किए गए किसी अन्य मामले के संबंध में उल्लंघन के मामले में आयोग संबद्ध सरकार से उपचारी उपाय करने तथा पीड़ित अथवा मृतक के निकटतम संबंधी को मुआवजा देने के लिए कहता है तथा लोक सेवकों को उनके दायित्व एवं बाध्यताओं की भी याद दिलाता है।

मामले के अनुसार यह अभियोजन हेतु कार्यवाही प्रारम्भ करता है

अथवा संबद्ध व्यक्तियों के विरुद्ध जो भी उचित कार्यवाही हो करने का निदेश देता है।

गंभीर मामलों में स्वतः संज्ञान लेना एक ऐसी अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता जिसका यह अधिकतम उपयोग करता है,

ऐसा यह समाचार-पत्रों तथा मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर करता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के कार्य

आयोग का अधिदेश बहुत व्यापक हैं। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 12 में दिए गए आयोग के कार्य निम्नानुसार हैं-

स्वप्रेरणा से या किसी पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा या किसी न्यायालय के निदेश पर आयोग को प्रस्तुत की गई याचिका पर

(1) मानव अधिकारों का अतिक्रमण या दुष्प्रेरण किए जाने की, या

(2) ऐसे अतिक्रमण के रोकने में किसी लोकसेवक द्वारा की गई उपेक्षा की शिकायत के बारे में जांच करना।

किसी न्यायालय के समक्ष लंबित किसी कार्यवाही में, जिसमें मानव अधिकारों के उल्लंघन का कोई आरोप शामिल है,

उस न्यायालय के अनुमोदन से हस्तक्षेप करना।

तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में निहित किसी बात के होते हुए भी

राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन किसी जेल या किसी अन्य संस्था का,

जहां व्यक्ति उपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनों के लिए निरुद्ध या दाखिल किए जाते हैं,

वहां के संवासियों के जीवन की परिस्थितियों का अध्ययन करने हेतु और

इस संबंध में सरकार को सिफारिश करने हेतु वहां का दौरा करना।

मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा उपबंधित रक्षोपायों का पुनर्विलोकन करना और उनके प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करना।

*आतंकवाद के कारनामे सहित ऐसे कारकों की पुनरीक्षा करना जो मानव अधिकारों के उपभोग में विघ्न डालती है और समुचित उपचारी उपायों की सिफारिश करना।

मानव अधिकारों से संबंधित संधियों तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों का अध्ययन करना और

उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सिफारिश करना।

मानव अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसे बढ़ावा देना।

समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकारों संबंधी जानकारी का

प्रसार करना और प्रकाशनों, मीडिया, गोष्ठियों और अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से

इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षोपायों के प्रति जागरूकता का संवर्द्धन करना।

मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठनों और संस्थानों के प्रयासों को प्रोत्साहित करना।

ऐसे अन्य कार्य करना, जो मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए इसके द्वारा आवश्यक समझा जाए।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के प्रभाग

आयोग के पांच प्रभाग है, वे हैं-

(i) विधि प्रभाग

(ii) अन्वेषण प्रभाग

(iii) नीति अनुसंधान, परियोजना तथा कार्यक्रम प्रभाग,

(iv) प्रशिक्षण प्रभाग, तथा

(v) प्रशासनिक प्रभाग।

विधि प्रभाग:

आयोग का विधि प्रभाग पीड़ित अथवा उसकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई मानव अधिकार उल्लंघन की शिकायतों पर अथवा हिरासतीय मृत्यु, हिरासत में बलात्कार, पुलिस कार्रवाई में मौत के संबंध में संबंधित प्राधिकारियों से सूचना प्राप्त होने पर दर्ज लगभग 1 लाख मामलों का पंजीकरण तथा निपटारा करता है।

प्रभाग को पुलिस/न्यायिक हिरासत में मौत, रक्षा/अर्द्ध सैनिक बलों की हिरासत में मौत के संबंध में भी सूचना प्राप्त होती है।

आयोग में प्राप्त सभी शिकायतों को एक डायरी सं. दी जाती है तथा उसके बाद शिकायत प्रबंधन एवं सूचना प्रणाली (सी.एम.आई.एस.) सॉफ्टवेयर, जिसे विशेष रूप से इसी उद्देश्य के लिए बनाया गया है, का प्रयोग करके उनकी छानबीन की जाती है तथा प्रक्रिया शुरू की जाती है।

शिकायत का पंजीकरण करने के पश्चात् उन्हें आयोग के समक्ष उसके निर्देशों के लिए रखा जाता है तथा उसके अनुसार, प्रभाग द्वारा उन मामलों में अनुवर्ती कार्रवाई की जाती है, जब तक उनका अंतिम रूप से निपटारा नहीं हो जाता।

विधि प्रभाग

महत्वपूर्ण प्रकृति के मामलों को पूर्ण आयोग द्वारा उठाया जाता है तथा पुलिस हिरासत अथवा पुलिस कार्रवाई में मौत से संबंधित मामलों पर खंड पीठों द्वारा विचार किया जाता है।

कुछ मामलों पर खुली अदालती सुनवाई में आयोग की बैठकों में विचार किया जाता है यह प्रभाग लंबित शिकायतों के निपटान में तेजी लाने तथा मानव अधिकार के मुद्दों पर राज्य प्राधिकारियों को संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से राज्य की राजधानियों मेंशिविर बैठकों का भी आयोजन करता रहा है।

आयोग देश में अनुसूचित जातियों पर होने वाले अत्याचार के संबंध में खुली सुनवाई भी आयोजित कर रहा है कि अनुसूचित जातियों के प्रभावित व्यक्तियों से सीधे सम्पर्क स्थापित हो सके।

आयोग मानव अधिकारों की बेहतर सुरक्षा और संवर्द्धन के लिए उसे संदर्भित विभिन्न विधेयकों/ प्रारूप विधानों पर भी अपनी राय/विचार देता है।

बढ़ता समन्वय

विधि प्रभाग ने एन.एच.आर.सी. एण्ड एचआरडी” ‘बढ़ता समन्वय’ नामक एक पुस्तक का प्रकाशन किया है। इस प्रश्न को समाज के विभिन्न वर्गों से उत्साहवर्धक फीडबैक प्राप्त हो रहे हैं। मानव अधिकार संरक्षण जो एचआरडी से संपर्क करते हैं, उनके लिए एचआरडी (i) मोबाइल न. (ii) फैक्स न.  तथा (iii) ई-मेल: hrd-nhrc@nic-in के जरिए 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं।

इस प्रभाग का मुख्य अधिकारी रजिस्ट्रार (विधि) है, जिसकी सहायता के लिए प्रजेटिंग अधिकारी, एक संयुक्त रजिस्ट्रार तथा कई उप रजिस्ट्रार, सहायक रजिस्ट्रार, अनुभाग अधिकारी तथा अन्य सचिवालय स्टाफ होते है।

अन्वेषण प्रभाग

अन्वेषण प्रभाग का मुखिया पुलिस महानिदेशक की श्रेणी का अधिकारी होता है। इसमें एक उप-महानिरीक्षक एवं तीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हैं। प्रत्येक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अन्वेषण अधिकारियों (इसमें उप अधीक्षक एवं निरीक्षक शामिल है) के समूह का मुखिया है। अन्वेषण अनुभाग के कार्य बहुमुखी हैं जिनका विवरण नीचे दिया गया है।

स्थल निरीक्षण

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की ओर से पूरे देश में मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों का स्थल निरीक्षण तथा उचित कार्यवाही की संस्तुति करता है। अन्वेषण अनुभाग द्वारा किए गए स्थल निरीक्षण से न केवल आयोग के समक्ष सत्य प्रस्तुत होता है बल्कि इससे सभी संबंधितों-शिकायतकर्ताओं, लोक सेवकों आदि को एक संदेश भी जाता है आयोग स्थल निरीक्षण का आदेश विभिन्न लोक प्राधिकारियों को भिन्न-भिन्न मामलों जैसे पुलिस द्वारा अवैध नजरबन्दी, अतिरिक्त न्यायिक हत्या तथा अस्पतालों में सुविधाओं की कमी जिससे मौतों को रोका जा सकता हो. देता है। स्थल निरीक्षण से आम जनता के बीच विश्वास में बढ़ोतरी होती है तथा मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के प्रति उनका विश्वास भी बढ़ता है। अन्वेषण अनुभाग मामलों के मॉनिटरिंग के अलावा मामलों में परामर्श/विश्लेषण, जहां भी किया जाए, अपनी टिप्पणी एवं सुझाव भी देता है।

अभिरक्षा में मौतआयोग द्वारा राज्य प्राधिकारियों के लिए जारी दिशा-निर्देश के अनुसार अभिरक्षा (चाहे वह पुलिस अथवा न्यायिक अभिरक्षा हो) में हुई मौत के मामले में आयोग को 24 घण्टे के भीतर सूचित करना अपेक्षित है। इसके अतिरिक्त, यह प्रभाग पुलिस तथा न्यायिक अभिरक्षा में मौत के साथ-साथ पुलिस मुठभेड़ों में हुई मौतों के संबंध में राज्य प्राधिकारियों से प्राप्त सूचनाओं तथा रिपोटों का विश्लेषण करता है। अन्वेषण अनुभव इस प्रकार की सूचनाओं को प्राप्त करके रिपोर्ट का विश्लेषण मानव अधिकारों के उल्लंघन होने का पता लगाने के लिए करता है। अपने विश्लेषण को अधिक व्यवसायिक एवं उचित बनाने की दिशा में अन्वेषण अनुभाग राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के फॉरेंसिक विशेषज्ञों के पैनल की मदद लेता है।

तथ्य अन्वेषण मामले

अन्वेषण अनुभाग विभिन्न प्राधिकारियों से मामले में तथ्य अन्वेषण रिपोर्ट जैसा कि आयोग द्वारा निर्देशित हो, की मांग करता है अन्वेषण अनुभाग आयोग को यह बताने में सहायता करने के लिए कि क्या कोई मानव अधिकार उल्लंघन हुआ है अथवा नहीं इन रिपोर्टों का गहनता से विश्लेषण करता है। ऐसे मामले जहां प्राप्त रिपोर्ट भ्रामक अथवा वास्तविक नहीं है, आयोग इन पर भी स्थल निरीक्षण का आदेश देता है।

प्रशिक्षण

अन्वेषण अनुभाग के अधिकारी मानव अधिकार साक्षरता एवं मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु उपलब्ध सुरक्षा उपायों की जागरुकता फैलाने के लिए जहां भी उन्हें आमंत्रित किया जाता है उन प्रशिक्षण संस्थानों एवं अन्य मंचों में व्याख्यान देते हैं।

रैपिड एक्शन सेल

वर्ष 2007 से अन्वेषण अनुभाग आयोग में रैपिड एक्शन सेल बनाने के लिए प्रयासरत है। आर.ए.सी. मामलों के तहत अन्वेषण अनुभाग उन मामलों पर विचार करता है जो अतितत्काल प्रकृति के हों जैसे अगले ही दिन बाल विवाह होने की संभावना हो: शिकायतकर्ता को यह भय हो कि उसके रिश्तेदार अथवा दोस्त को पुलिस द्वारा उठाकर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया जाएगा आदि। समग्र रूप से इस प्रकार के मामले अन्वेषण अनुभव आयोग द्वारा तत्काल अनुवर्तन हेतु उठाता है। इसमें प्राधिकारियों/ शिकायतकर्ताओं से तथ्य प्राप्त करने शिकायतकर्ता को विभिन्न प्राधिकारियों का संदर्भ देने तथा त्वरित रूप से उनके जवाब भेजने के लिए कहने के लिए उनसे टेलीफोन पर व्यक्तिगत रूप से बात करना भी शामिल है।

केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु वाद-विवाद प्रतियोगिताः

मानव अधिकारों की जागरुकता एवं इनके प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु अन्वेषण अनुभाग नियमित रूप से वर्ष 1996 से प्रतिवर्ष वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करता आ रहा है। यही नहीं वर्ष 2004 से, जैसा कि माननीय अध्यक्ष द्वारा निदेश दिया गया था, पूरे देश में सी.ए.पी.एफ. की बड़ी संख्या में भागीदारी हेतु अंतिम प्रतियोगिता के लिए रनअप के रूप में जोनवार वाद-विवाद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। जोनल प्रतियोगिताओं के दौरान चुनी गई टीम को सेमीफाइनल तथा फाइनल राउण्ड के लिए केन्द्र में आयोजित प्रतियोगिता के लिए चुना जाता है। प्रतिवर्ष इसमें अभूतपूर्व प्रतिभागिता एवं वाद-विवाद का सर्वोत्तम स्तर देखने को मिलता है।

राज्य पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु वाद-विवाद प्रतियोगिता पुलिस आज उनके दायित्वों के निर्वहन में मानव अधिकारों के सिद्धांतों को मानने के लिए कर्तव्य बाधित है। मानव अधिकारों के दृष्टिकोण से पुलिस बल में निम्न एवं मध्य स्तर अत्यधिक प्रभावित है क्योंकि वे अपने दायित्वों का निर्वहन करते समय प्रत्यक्ष रूप आम जनता के संपर्क में आते हैं। वर्ष 2004 से राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अन्वेषण अनुभाग द्वारा पुलिस कार्मिकों के बीच मानव अधिकार जागरूकता के स्तर को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है जिसकेलिए राज्य पुलिस बल कार्मिकों के लिए वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित करने हेतु राज्य/संघ शासित क्षेत्र को आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान करता है। वर्तमान में आयोग राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों को वाद-विवाद प्रतियोगिता के आयोजन हेतु 15000/- की राशि प्रदान करता है।

नजरबंदी के स्थानों का दौराः

जेलों एवं अन्य संस्थानों जहां लोगों को उपचार, सुधार अथवा संरक्षण के उद्देश्य से नजरबंद अथवा

बंद करके रखा जाता है, उनमें जीवन-यापन की दशाओं से संबंधित बड़ी संख्या में शिकायतें प्राप्त होती है।

अन्वेषण अनुभाग के जांच अधिकारी जब भी आयोग द्वारा निर्देश दिया जाता है,

विभिन्न राज्यों में जेलो एवं अन्य संस्थानों का दौरा करते हैं तथा

विशेष आरोपों के संबंध में तथ्य प्रस्तुत करने के लिए अथवा कैदियों की सामान्य दशाओं अथवा

मानव अधिकारों पर आधारित संवासियों की दशाओं जिस पर

आयोग द्वारा अनुवर्तन आवश्यक हो, से संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

नीति अनुसंधान परियोजना तथा कार्यक्रम प्रभाग

नीति अनुसंधान परियोजना तथा कार्यक्रम प्रभाग (पी.आर.पी.एंड पी). मानव अधिकारों पर अनुसंधान करता है तथा उनका प्रचार करता है तथा महत्त्वपूर्ण मानव अधिकार मुद्दों पर सम्मेलन, सेमिनार तथा कार्यशालाएं आयोजित करता है।

जब कभी भी आयोग, अपनी सुनवाई. कार्रवाईयों या अन्यथा इस निर्णय पर पहुंचता है कि

कोई विशेष विषय महत्त्वपूर्ण है, तो उसे पी.आर.पी. एण्ड पी. प्रभाग द्वारा संचालित किए जाने वाले

एक परियोजना/कार्यक्रम में परिवर्तित कर दिया जाता है।

इसके अतिरिक्त, यह प्रभाग मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु प्रचलित नीतियों,

कानूनों, संधियों तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों की परीक्षा करता है।

यह प्रभाग, केन्द्र, राज्य तथा संघ शासित क्षेत्र के प्राधिकारियों द्वारा कार्यान्वित की जा रही

आयोग की सिफारिशों की मॉनीटरिंग में सहायता करता है।

यह प्रभाग, मानव अधिकार साक्षरता के विस्तार तथा मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए

उपलब्ध सुरक्षापायों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने में भी प्रशिक्षण प्रभाग की सहायता करता है।

प्रभाग का कार्य संयुक्त सचिव (प्रशिक्षण एवं अनुसंधान) तथा

संयुक्त सचिव (कार्यक्रम एवं प्रशासन), एक निदेशक/संयुक्त निदेशक,

एक वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी, अनुसंधान परामर्श, अनुसंधान एसोसिएट,

अनुसंधान सहायक तथा अन्य सचिवालय स्टॉफ द्वारा देखा जाता है।

प्रशिक्षण प्रभाग

समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकार साक्षरता का विस्तार करने के लिए उत्तरदायी है।

अतः यह प्रभाग मानव अधिकारों के विभिन्न मुद्दों के बारे में

राज्य के विभिन्न सरकारी अधिकारियों तथा कार्यकर्ताओं तथा राज्य की एजेंसियों,

गैर सरकारी अधिकारियों, सिविल सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों तथा

विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देता है और उन्हें सुग्राही बनाता है।

इसके लिए यह प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थानों/पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों के साथ सहयोग करता है इसके अलावा यह प्रभाग, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए इन्टर्नशिप प्रोग्राम भी आयोजित करता है प्रभाग का अध्यक्ष एक संयुक्त सचिव (प्रशिक्षण एवं अनुसंधान) होता है जिसकी सहायता के लिए वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी (प्रशि.). एक सहायक तथा अन्य सचिवालय स्टाफ होता है।

प्रशिक्षण प्रभाग के तहत समन्वय अनुभाग, अंतरराष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों सहित सभी अंतरराष्ट्रीय मामलों की देख रेख करता है।

इसके अलावा यह विभिन्न राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों में शिविर आयोग बैठकों/ जन सुनवाई के साथ समन्वय करता है आयोग के वार्षिक कार्यों अर्थात स्थापना दिवस औरमानव अधिकार दिवस (10 दिसम्बर) का आयोजन करता है।

यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर आयोग के अध्यक्ष/सदस्यों/ वरिष्ठ अधिकारियों की यात्राओं के आयोजन के साथ-साथ प्रोटोकॉल कर्तव्यों का ध्यान रखने का भी कार्य करता है।

समन्वय अनुभाग में एक अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी, सहायक अनुसंधान परामर्शदाता और अन्य सचिवीय कर्मचारी होते हैं।

प्रशासनिक प्रभाग

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की स्थापना, प्रशासनिक एवं संबंधित जरूरतो को पूरा करता है।

इसके अलावा,

यह प्रभाग कार्मिकों, लेखों, पुस्तकालय तथा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अधिकारियों तथा

स्टाफ के सदस्यों की अन्य जरूरतों को भी पूरा करता है

प्रभाग का अध्यक्ष एक संयुक्त सचिव (कार्यक्रम एवं प्रशासन) होता है तथा

उसकी सहायता के लिए एक निदेशक/ उप सचिव, अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी तथा अन्य सचिवालयीय स्टॉफ होते हैं।

प्रशासनिक प्रभाग के तहत मीडिया एण्ड कम्यूनिकेशन यूनिट का कार्य प्रिंट एवं इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की गतिविधियों से संबंधित जानकारी का प्रचार करना है

यह प्रभाग मानव अधिकार नामक एक द्विभाषीय प्रकाशन करता है।

प्रकाशन एकक

आयोग की एक और महत्वपूर्ण इकाई है, जो आयोग के सभी प्रकाशनों को प्रस्तुत करने के लिए जिम्मेदार है।

वार्षिक रिपोर्ट, एन.एच.आर.सी. अंग्रेजी और

हिंदी पत्रिका नो योर राइट सीरीज इत्यादि इस प्रभाग द्वारा प्रकाशित कुछ प्रमुख प्रकाशन हैं।

इसके अलावा, यह प्रभाग सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत प्राप्त आवेदनों तथा अपीलों को भी देखता है।

Official Website- https://nhrc.nic.in/hi

विशेष बिन्दु

विशेष प्रतिवेदकों की नियुक्ति तथा कोर एवं विशेषज्ञ समूहों के गठन द्वारा आयोग की पहुंच में काफी विस्तार हुआ है।

आयोग ने अपने दायित्वों के निष्पादन के लिए पारदर्शी प्रणाली तथा प्रक्रियाएं तैयार की है।

आयोग ने विनियम तैयार करते हुए अपने काम-काज के प्रबंधन के लिए प्रक्रियाएं तैयार की हैं।

स्रोत:-

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के वार्षिक प्रतिवेदन, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019

इन्हें भी पढ़िए-

भारत का विधि आयोग (Law Commission, लॉ कमीशन)

मानवाधिकार (मानवाधिकारों का इतिहास)

मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग : संगठन तथा कार्य

भारतीय शिक्षा अतीत और वर्तमान

श्री सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के मतानुसार प्रांतीय भाषाओं और बोलियों का महत्व

COVID-19 and False Negative

COVID-19 and False Negative

COVID-19 and False Negative क्या है, के इंक्यूबेशन पीरियड, False Negative के कारण, False Negative के प्रभाव, False Negative के उपाय सावधानियां

COVID-19 क्या है?

वर्ष 2019 के अंतिम महीनों में चीन में एक नयेवायरस का पता चला

जिसके कारण चीन में अनेक लोग बीमार पड़े और कई सारे मौत की गोद में समा गये 2020 की शुरुआत में वायरस ने चीन में एक महामारी का रूप ले लिया

कुछ ही दिनों में विश्व के 200 से अधिक देशों में फैल गया यह कोरोनावायरस ही मनुष्य को कोविड-19 नामक बीमारी देता है

WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करता है।

वायरस का पहला हमला गले की कोशिकाओं पर होता है

इसके बाद वह श्वास नली और फेफड़ों पर हमला करता है और अपनी संख्या तेजी से बढ़ता है।

अधिकांश लोगों में बीमारी के जो लक्षण दिखाई देते हैं

अभी बुखार खांसी बदन दर्द गले में खराश और सिरदर्द आदि होते हैं

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोरोनावायरस से संक्रमित होने पर

88 प्रतिशत में बुखार,

68 प्रतिशत में खांसी,

38 प्रतिशत में थकान,

18 प्रतिशत में सांस लेने में तकलीफ,

14 प्रतिशत में बदन दर्द और सिरदर्द

11 प्रतिशत में ठंड लगना और 4 प्रतिशत में डायरिया के लक्षण दिखते हैं।

इंक्यूबेशन पीरियड

शरीर जब किसी वायरस के संपर्क में आता है तो तुरंत बीमारी के लक्षण दिखाई दे जाए ऐसा जरूरी नहीं है बीमारी के लक्षण दिखने में कुछ समय लगता है

अलग-अलग बीमारियों में यह समय सीमा अलग अलग होती है।

कोरोना के मामले में यह अवधि 14 दिन की है

अतः जो समय किसी बीमारी के लक्षण दिखने में लगता है उसे इंक्यूबेशन पीरियड कहा जाता है

इनकी इंक्यूबेशन पीरियड के दौरान भी संक्रमित व्यक्ति किसी को भी संक्रमित कर सकता है।

False Negative क्या है?

जिस प्रकार इंक्यूबेशन पीरियड के अंतर्गत COVID 19 के लक्षण देखने में समय लगता है

और अलग-अलग व्यक्ति में यह समय सीमा अलग अलग होती है,

उसी प्रकार इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि

जिस व्यक्ति के पहले परीक्षण में वायरस से संक्रमित होने के बाद भी किन्ही कारणों से परीक्षण में संक्रमित होने की पुष्टि नहीं होती है अर्थात टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आ सकती है इसी स्थिति को वैज्ञानिक भाषा में फॉल्स नेगेटिव कहा जाता है ऐसा व्यक्ति भी संक्रमण फैला सकता है।

False Negative के कारण

फॉल्स नेगेटिव परिणाम के कई कारण हो सकते हैं

जैसे परीक्षण के लिए जो नमूने लिए गए थे वे सही तरीके से नए लिए गए हो नमूने सही लिए गए हों

परंतु परीक्षण सही तरीके से ने किया गया हो अथवा न हो पाया हो।

परीक्षण के लिए नमूना शरीर के जिस अंग से लिया गया हो उस समय वहां वायरस मौजूद ही नहीं हो

जैसे संक्रमण फेफड़ों में हो तथा नमूना नाक से लिया जाए तो संभव है कि परीक्षण का परिणाम नकारात्मक आये।

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि कोई भी लैब टेस्ट शत प्रतिशत सही नहीं हो सकता है।

कई अध्ययनों के अनुसार परीक्षण हेतु दिए गए प्रारंभिक नमूने सदैव सटीक परीक्षण प्रदान करने के लिए पर्याप्त आनुवंशिक पदार्थ एकत्र नहीं कर सकता

यह समस्या उन रोगियों के साथ होने की संभावना अधिक रहती है जिनमें परीक्षण के समय कोई लक्षण नहीं होता है।

फोन सेटिंग का एक कारण परीक्षा किट का दोषपूर्ण होना भी हो सकता है जिसके कारण परिणाम प्रभावित हो सकते हैं

जैसे भारत में कुछ राज्यों की शिकायत के बाद आई सी एम आर की जांच में 50 प्रतिशत टेस्ट किट को अमानक स्वीकार किया गया है।

परीक्षण करने वाला कितना प्रशिक्षित है तथा परीक्षण के दौरान गाइडलाइन का कितना पालन हुआ है जांच का परिणाम इस पर भी निर्भर करता है।

सैंपल लैब तक पहुंचने में लगने वाला समय परीक्षण के  परिणाम को प्रभावित कर सकता है।

False Negative का प्रभाव

फॉल्स नेगेटिव COVID 19 महामारी के संक्रमण का बहुत बड़ा वाहक है।

विशेषज्ञों के अनुसार लगभग 30 प्रतिशत लोग फॉल्स नेगेटिव के शिकार हो सकते हैं

और यह आंकड़ा इससे अधिक भी हो सकता है दुर्भाग्यवश हमारे पास इस संदर्भ में सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं है।

फॉल्स नेगेटिव के कारण संक्रमित व्यक्ति निश्चिंत हो जाता है

और लोगों से संपर्क करता रहता है जिससे संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

फॉल्स नेगेटिव परिणाम के कारण इस वैश्विक महामारी से लड़ने की चुनौती कड़ी होती जा रही है।

False Negative सावधानियां और उपाय

फॉल्स नेगेटिव परिणाम के कारण उत्पन्न विकट परिस्थिति से निपटने के लिए यह आवश्यक है कि नेगेटिव परिणाम के बावजूद रोगी से दूरी बनाए रखी जाए और समय-समय पर अगली जांच हो।

फॉल्स नेगेटिव के संबंध में अधिकाधिक शोध हों।

स्वास्थ्य कर्मियों को और अधिक प्रशिक्षण दिया जाए।

सैम्पल को लैब तक पहुंचाने का उचित प्रबंध हो।

नमूने लेने में किसी तरह की जल्दबाजी नहीं की जाए कोशिश की जाएगी जो अंग संक्रमित हैं वहीं से नमूना लिया जाए।

जांच के उपकरण और किट विश्वसनीय होनी चाहिए।

कोविड-19 वैश्विक महामारी से लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मियों पुलिस कर्मियों तथा अन्य कार्मिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि आने वाले चुनौतीपूर्ण समय मे सारी व्यवस्थाएँ सुचारू रूप से चलायी जा सकें।

कोविड-19 वैश्विक महामारी का सामना करने के लिए आने वाले समय में अधिक संसाधनों की आवश्यकता होगी

इसलिए सरकार को चाहिए कि वह सभी प्रकार के संसाधनों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करे।

स्रोत WHO, बी बी सी हिंदी, नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर, अमर उजाला

COVID-19 and False Negative

कोरोना वायरस शब्दावली

मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

मानव के अधिकार (मानवाधिकार) का अर्थ

मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास, उत्पत्ति, वर्गीकरण, विशेषताएं, विकास, तात्पर्य, मानवाधिकार क्या हैं? तथा इसके अतिरिक्त मानवाधिकारों की अन्य पूरी जानकारी

मानवाधिकार का सामान्य अर्थ मानव के अधिकार हैं अर्थात मानव के भी अधिकार जो नैसर्गिक हैं। मानवाधिकार से तात्पर्य है कि मानव के सभी अधिकार जो मानव होने के नाते उसे मिलने ही चाहिए मानवाधिकार कहलाते हैं। ये अधिकार मानव को जीवन जीने का अधिकार देते हैं। अपने जीवन को सुख में बनाने का अधिकार भी इन्हीं मानवाधिकारों से प्राप्त होता है। यह अधिकार प्रत्येक मानव के लिए होते हैं, किसी विशेष स्त्री या पुरुष अथवा किसी धर्म, संप्रदाय, जाति, वंश वर्ग, क्षेत्र, भाषा आदि के लिए नहीं। मानवाधिकार तो विश्वव्यापी है और यह सभी राष्ट्रों के सभी लोगों के लिए है। इन अधिकारों को प्राकृतिक अधिकार और जन्म अधिकार भी कहा जाता है।

पाश्चात्य विद्वान आर जे विंसेंट ने मानवाधिकारों को परिभाषित करते हुए लिखा है-

“मानवाधिकार भी अधिकार है जो प्रत्येक व्यक्ति को मानव होने के नाते प्राप्त होते हैं इन अधिकारों का आधार मानव स्वभाव में निहित है। ” (राय, अरूण, भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग : गठन कार्य एवं भावी परिदृश्य, पृ.सं. 11)

डेविड बेंथम एवं केबिन बॉयले के अनुसार

“मानवाधिकार एवं मूल स्वतंत्रता वे व्यक्तिगत अधिकार है, जो मानवीय आवश्यकताओं और क्षमताओं पर आधारित होते हैं।” (बीथम, डेविड एवं बॉयले, केबिन, लोकतंत्र 80 प्रश्न और उत्तर, पृ.सं. 10)

न्यायमूर्ति वी आर.कृष्ण अय्यर ने मानवाधिकारों की व्याख्या करते हुए कहा है कि

“ये वे अधिकार हैं जिनके बिना व्यक्तित्व का हनन और प्रतिष्ठा काविनाश हो जाता है। इन मौलिक स्वतंत्रताओं के छिन जाने या विकृति आ जाने से मानव के दैवीय गुणों का हास हो जाता है।”(चतुर्वेदी, डॉ. अरुण एवं लोढा, संजय, भारत में मानवाधिकार, पृ.सं. 61)

पुरुषोत्तम अग्रवाल ने मानवाधिकारों की परिभाषा इस प्रकार दी है-

“मानवाधिकार की समकालीन अवधारणा व्यक्तित्व के दार्शनिक विमर्श पर आधारित है। इसका अर्थ समाज की अवहेलना नहीं बल्कि यह है, कि किसी सामाजिक या राजनीतिक पहचान से परिभाषित होने से पहले हर मनुष्य व्यक्ति है और इस व्यक्तित्व की असहमति या उसकी अभिव्यक्ति के अंधाधुंध दमन का अधिकार किसी भी पहचान के राजनीतिक या सत्ता-तंत्र को नहीं होना चाहिए। (अग्रवाल, पुरूषोत्तम, तीसरा रूख, पृ.सं 6)

हेरोल्ड लास्की के अनुसार

“अधिकार मानव जीवन की ऐसी परिस्थितियाँ है जिसमें बिना सामान्यतः कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।”

मानवाधिकार को संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौम घोषणा के अनुसार “सभी मनुष्य समान अधिकार और स्वतंत्रता, जाति, रंग, भाषा, लिंग, धर्म, राजनीति या अन्य विचारधारा राष्ट्रीय या सामाजिक मूल सम्पत्ति जन्म या अन्य स्थितियों के किसी भेदभाव के बिना स्वतः मिल जाते है।”

द न्यू हिचंसन ट्वन्टीएथ सेन्चुरी इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार

“मानवाधिकारों में जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, शिक्षा और कानून के समक्ष समानता, आन्दोलन की स्वतंत्रता, धर्म, संगठन, सूचना तथा राष्ट्रीयता का अधिकार सम्मिलित है।”

भारतीय न्यायाधीश ए. के. गांगुली के अनुसार- ”मानवाधिकार आधारभूत स्वाभाविक अपरिवर्तनीय तथा अविच्छेद यानि जो हस्तांतरित न हो सके और जो कि वास्तविक रूप से मानव को जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाते है।”

मानवाधिकारों का इतिहास – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

विश्वव्यापी मानवाधिकारों का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। मानव जैसे-जैसे सभ्यता की ओर बढ़ता है, वैसे-वैसे ही वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत आ रहा है। मानवाधिकार के लिखित प्रमाण की बात की जाए तो हम पाते हैं, कि प्राचीन भारत में धर्म में मानवाधिकार संरक्षण धर्म को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। राजा और प्रजा दोनों धर्म से बंधे हुए थे। राजा धर्म के विरुद्ध आचरण नहीं कर सकता था। धर्म के अंतर्गत ही सभी प्रजा जनों के अधिकार सुरक्षित थे।ये श्लोक भारतीय मानवतावादी चिंतन की धुरी है-

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामाया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुख भाग्यवेत्।

 जो लिंगभेद हम देश और दुनिया में आज देखते हैं वह प्राचीन भारत में नहीं था। स्त्री को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे वे आदरणीय और शक्ति स्वरूपा मानी जाती थी। परिवार तथा समाज में नारी का स्थान सर्वोच्च माना जाता था-

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।”

अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं

समाज में नारी का स्थान उच्च और आदर्श माना जाता था माता का स्थान गुरु और पिता से भी ऊंचा माना गया है-

“दशाचार्यानुपाध्याय उपाध्यायान्पिता दश।

दश चैव पितॄन्माता सर्वा वा पृथिवीमपि।।

गौरवेणायिभवति नास्ति मातृ-समो गुरू।

माता गरीयसी यच्च तेनैतां मन्यते जनः।।”

मानवाधिकारों का इतिहास

प्राचीन भारतीय साहित्य यथा वेद वेदांग उपनिषद इत्यादि सभी में यह प्रमाण बड़ी पुष्टता से मिलता है कि स्त्रियों को सभी तरह के अधिकार प्राप्त थे, वे पुरुषों के समान ही शिक्षा प्राप्त करती थी उन्हें संपत्ति का भी अधिकार प्राप्त था याज्ञवल्क्य ऐसी प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने विधवा स्त्री को उसके पति की संपत्ति देने का समर्थन किया।

“पत्नी दुहितरश्चैव व पितरौ भ्रातरस्तथा।

तत्सुता गोत्रजा बन्धुशिष्यसब्रह्मचारिण।।

एषामभावे पूर्वस्य धनभागुत्तरोत्तरः ।

स्वर्यातस्य हयपुत्रस्य सर्वपणैष्वयं विधि।।”  (याज्ञवल्क्य स्मृति -1/135-36)

मानवाधिकारों का इतिहास

कई स्त्रियों का शस्त्र विद्या सीखने का उल्लेख भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में प्राप्त होता है। रामायण काल में राजा दशरथ की पत्नी केकैयी का देवासुर संग्राम में दशरथ के साथ भाग लेने का उल्लेख प्राप्त होता है। तो अनेक विदुषी स्त्रियों का वैदिक ऋचा लिखने का उल्लेख प्राप्त होता है। ऋग्वेद दशम मण्डल के 39, 40 वें सूक्त तपस्विनी ब्रह्मवादिनी घोषा के हैं और ऋग्वेद के 1.27.7 वे मंत्र की ऋषि रोमशा, 1.5.29 वें मंत्र की विश्वारा, 1.10.45 वें मंत्र की दृष्टा इन्द्राणी, 1.10.159 वें मंत्र की रचयिता ऋषि अपाला थीं। अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा ने पति के साथ ही सूक्त का दर्शन किया था। सूर्या भी एक ऋषिका थीं। बृहदारण्यक उपनिषद में वर्णित गार्गी-याज्ञवल्क्य संवाद इस बात की ओर संकेत करता है, कि प्राचीन भारत में स्त्रियां ज्ञान प्राप्त करने में पुरुषों से पीछे नहीं थी।

मानवाधिकारों का इतिहास

प्राचीन भारत में प्रजा को भी अनेकानेक अधिकार प्राप्त थे जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था अवश्य थी लेकिन उसके नियम इतने कड़े नहीं थे किसी के साथ भी ऊंच-नीच का व्यवहार नहीं किया जाता था रामायण काल में स्वयं राम ने निषादराज को अपने पास आसन देकर उसका सम्मान किया और शबरी के जूठे बेर खाकर जाति-पाती के बंधन को नकार दिया था।

बहुत से भीतर मानवाधिकारों की जड़ें बेबीलोनिया सभ्यता में दृष्टिगत होती है यूनानी दर्शकों सुकरात प्लेटो अरस्तु आदि सभी ने मानवाधिकारों का समर्थ किया है रोमन दार्शनिक सिसरो ने भी मानवाधिकारों को प्राकृतिक न्याय से जोड़कर देखा है।

मानव अधिकार समय – सारणी (बीसवीं सदी तक) – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

1215 – मैग्नाकार्टा का घोषणा पत्र ब्रिटेन के संबंधों के हितों में मानव अधिकारों की रक्षा से संबंधित था।

1679 – बन्दी प्रत्यक्षीकरण :
एक अंग्रेजी कानून जिसने व्यक्ति को स्वतंत्रता व मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और दण्ड से रक्षण प्रदान किया।

1689 – अधिकारों का विधेयक (बिल ऑफ राइट्स):
इन अधिकारों की घोषणा से अंग्रेजी राज्य में याचिका देने, मतदान, व्यक्तिगत स्वतंत्रता व न्यायिक कार्यवाही की गारंटी मिली।

1776 – युनाइटेड स्टेट्स स्वतंत्रता की घोषणा :
‘जीवन के अधिकार’ को पहली पुष्टि हुई जो बीसवीं सदी में पुन: प्रकट हुई। यह तथ्य स्थापित हुआ कि सत्ता शासित की सहमति पर आधारित है।

मानव अधिकार समय – सारणी

1789 – फ्रांस में मानव तथा नागरिक के अधिकारों की घोषणा में सर्वत्रता का दावा था व यह इस प्रकार को सभी घोषणाओं का आदर्श माना जाता है।

1791 – महिला व नारी नागरिक के अधिकारों की घोषणा का मसौदा ओलिम्पे डी गोजीस द्वारा तैयार किया गया जिसमें 1789 की घोषणा को महिलाओं के लिए लागू करने की बात की गयी। (ओलिम्प डी गोजिस – “यदि महिलाएं फांसी खा सकती है, तो मंच भी पा सकती ?”)

1793 – मानव तथा नागरिक के अधिकारों की घोषणा जिसमें अश्वेतों को भी स्वतंत्रता का अधिकार है, यह प्रस्थापित हुआ।
पहली बार आर्थिक व सामाजिक अधिकारों की बात हुई-शिक्षा का अधिकार, काम का अधिकार, सहायता का अधिकार।
मानव अधिकारों के उन्नयन के संदर्भ में ‘विद्रोह के अधिकार’ की बात की गयी।

1848 – दूसरे फ्रांसीसी गणराज्य का संविधान :
राज्य के सामाजिक जवाबदारियों की पुष्टि, नागरिकों द्वारा अधिकारों का दावा, जुड़ने व एकत्र होने की स्वतंत्रता, सभी के लिए मताधिकार, कॉलोनी में दास प्रथा समाप्ति, मुफ्त प्राथमिक शिक्षा वगैरह इसके मुख्य पहलू रहे।

1863 – स्विट्जरलैंड में हेनरी ड्यूनेन्ट द्वारा रेड क्रॉस की अन्तर्राष्ट्रीय समिति का गठन :
युद्ध में घायल की रक्षा पर जेनेवा में पहली सभा (1929 में इसमें युद्ध के बंदियों को भी शामिल किया गया)

मानव अधिकार समय – सारणी

1920 – राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने और शांति व सुरक्षा की गारंटी के लिए राष्ट्रों के संघ की उत्पत्ति।

1924 – बालकों के अधिकारों की घोषणा – इस प्रकार की यह पहली अन्तर्राष्ट्रीय घोषणा थी।

1945 – संयुक्त राष्ट्र का सनद (चार्टर) जिनसे मानव अधिकारों व मूल स्वतंत्रताओं को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्पित किया गया।

1945 – यूनेस्को का गठन।

1946 – न्यूरेमबर्ग ट्रायल : नाजी नेताओं को अन्तरराष्ट्रीय सैन्य न्यायाधिकरण द्वारा सुनवाई तथा दोष सिद्धि।

1948 – मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा – नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों का संयोग।

1950 – मानव अधिकारों व मूल स्वतंत्रताओं के रक्षण पर यूरोपीय सम्मेलन।

1952 – महिला के राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (संयुक्त राष्ट्र)।

1965 – सभी प्रकार के जातिगत भेदभाव की समाप्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (संयुक्त राष्ट्र)।

मानव अधिकार समय – सारणी

1971 – ‘फ्रांसीसी डॉक्टर’ मानवतावादी आन्दोलन की शुरुआत।

1972 – जातीयता के खिलाफ फ्रांसीसी कानून।

1974 – राज्यों के आर्थिक अधिकारों व जिम्मेदारियों पर अंतरराष्ट्रीय सनद।

1976 – 1948 की मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का आदर सुनिश्चित करने के लिए दो अंतरराष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र।

1979 – महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (संयुक्त राष्ट्र)- महिला पुरुष समानता के लिए परिवार एवं समाज में पुरुष की पारम्परिक भूमिका में बदलाव की जरूरत की पुष्टि हुई।

1984 – यातना की रोकथाम पर अंतरराष्ट्रीय सभा

मानव अधिकार समय – सारणी

1988 – सहायता लेने के अधिकार को मान्यता (आपदा की स्थिति में)

1990 – बालकों के अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सभा

1990 – मानवतावादी कॉरीडोर की जरूरत को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा का प्रस्ताव

1991 – मध्यस्थी के अधिकार को पहली बार आधार मिला (इराक के उदाहरण से)

1992 – मानवतावादी सहायता की रक्षा के लिए बल प्रयोग को मान्यता (बॉसनिया – हरजेगोविना के उदाहरण में)

1998 – स्थायी अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की स्थापना

(आभार : एक्सनएड द्वारा प्रकाशित रिसोर्स बुक ‘अ ह्यूमन राइट्स अप्रोच टू डेवेलपमेन्ट’)

उद्धृत:- दलित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए प्रवेशिका उन्नति विकास शिक्षण संगठन और UNDP 2012

अनुच्छेद-1

इसमें कहा गया है कि सभी मानव प्राणी स्वतंत्र उत्पन्न हुए है।

अतः वे अधिकारों तथा महत्ता के क्षेत्र में समान हैं।

उनमें विवेक तथा चेतना है। अतः उनको नेतृत्व की भावना से कार्य करना चाहिये।

अनुच्छेद-2

प्रत्येक व्यक्ति समस्त अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त करने का अधिकारी है।

अनुच्छेद-3

जीवन तथा स्वतंत्रता का अधिकार।

अनुच्छेद-4

दासता तथा दास व्यापर का निषेध ।

अनुच्छेद-5

अमानवीय व्यवहार तथा यातना का निषेध ।

अनुच्छेद-6

प्रत्येक व्यक्ति को सर्वत्र विधि के समक्ष व्यक्ति के रूप में मान्यता का अधिकार है

अनुच्छेद-7

सभी व्यक्ति विधि के समक्ष समान हैं और किसी विभेद के बिना विधि के समान संरक्षण के हकदार हैं।

सभी व्यक्ति इस घोषणा के अतिक्रमण में विभेद के विरूद्ध और ऐसे विभेद के उद्दीपन के विरूद्ध समान संरक्षण के हकदार है।

अनुच्छेद-8

प्रत्येक व्यक्ति को संविधान या विधि द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों का अतिक्रमण करने वाले कार्यों के विरूद्ध समक्ष राष्ट्रीय अधिकरणों द्वारा प्रभावी उपचार का अधिकार है।

अनुच्छेद-9

किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से गिरफ्तार, विरूद्ध या निवासित नहीं किया जायेगा।

अनुच्छेद-10

प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों और बाध्यताओं के और उसके विरुद्ध आपराधिक आरोप के अवधारणा में पूर्णतया समाज के रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष अधिकरण द्वारा सार्वजनिक सुनवाई का हकदार है।

अनुच्छेद-11 (मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास)

(i) ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिस पर दण्डित अपराध का आरोप है।
यह अधिकार है कि तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक कि उसे लोक विचारण में जिसमें उसे अपने प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक सभी गारंटिया प्राप्त हो विधि के अनुसार दोष सिद्ध नहीं कर दिया जाता।

(ii) किसी भी व्यक्ति को ऐसे कार्य या लोप के कारण जो किए जाने के समय राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अधीन दांडिक अपराध नहीं था किसी दाण्डिक अपराध को दोषी निर्धारित नहीं किया जायेगा।
उस शक्ति से अधिक शक्ति अधिरोपित नहीं की जायेगी, जो उस समय लागू थी जब अपराध किया गया था।

अनुच्छेद-12

किसी भी व्यक्ति की एकांतता, कुटुम्ब धारा पत्र व्यवहार के साथ मनमाना हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा

उसके सम्मान व ख्याति पर प्रहार नहीं किया जायेगा।

प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे हस्तक्षेप या प्रहार के विरूद्ध विधि के संरक्षण का अधिकार है।

अनुच्छेद-13

(i) प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक राज्य की सीमाओं के भीतर संचरण और निवास की स्वतंत्रता का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश को या किसी भी देश को छोड़ने और अपने देश में वापस आने का अधिकार है।

अनुच्छेद-14

विश्राम स्थल प्राप्त करने का अधिकार *

अनुच्छेद-15

(i) प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार है।

(ii) किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से न तो उसकी राष्ट्रीयता से और न राष्ट्रीयता परिवर्तित करने के अधिकार से वंचित किया जायेगा।

अनुच्छेद-16

(i) वयस्क पुरूषों व स्त्रियों को मूल वंश, राष्ट्रीयता या धर्म के कारण किसी भी सीमा के बिना विवाह करने और कुटुंब स्थापित करने का पूर्ण अधिकार है।
वे विवाह के विषय में, विवाहित जीवनकाल में और उसके विघटन पर समान अधिकारों के हकदार है।

(ii) विवाह के इच्छुक पक्षकारों को स्वतंत्र और पूर्ण सम्मति से ही विवाह किया जायेगा।

(iii) कुटुंब समाज की नैसर्गिक और प्राथमिक सामाजिक इकाई है और इसे समाज एवं राज्य द्वारा संरक्षण का हकदार है।

अनुच्छेद-17

सम्पत्ति रखने का अधिकार।

अनुच्छेद-18

विचार, अन्तरात्मा तथा धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार।

अनुच्छेद-19

अभिव्यक्ति तथा सम्मति प्रकट करने का अधिकार।

अनुच्छेद-20

शान्तिपूर्ण ढंग से सभा व संघ बनाने का अधिकार।

अनुच्छेद-21 (मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास)

(i) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश की सरकार में सीधे या स्वतंत्रतापूर्वक चुने गये प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेने का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को अपनी देश की लोक सेवा में समान पहुंच का अधिकारहै।

अनुच्छेद-22

सामाजिक सुरक्षा का अधिकार।

अनुच्छेद-23

(i) प्रत्येक व्यक्ति को कार्य करने का,
नियोजन के स्वतंत्र चयन का,
कार्य की न्यायोचित और अनुकूल दशाओं का एवं बेरोजगारी के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को किसी विभेद के बिना समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार है।

(iii) प्रत्येक व्यक्ति को जो कार्य करता है ऐसे न्यायोचित और अनूकूल पारिश्रमिक का अधिकार है।

(iv) प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों के संरक्षण के लिए ट्रेड यूनियन बनाने और उनमें सम्मिलित होने का अधिकार है।

अनुच्छेद-24

प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है,

जिसके अंतर्गत कार्य के घंटों की युक्तियुक्त सीमा और समय-समय पर वेतन सहित अवकाश का भी प्रावधान है।

अनुच्छेद-25

(i) प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवन स्तर पर अधिकार है जो स्वयं उसके और उसके कुटुम्ब के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त है जिसक अन्तर्गत भोजन,रूग्णता, असक्तता, वैधव्य, वृद्धावस्था या उसके नियंत्रण के बाहर परिस्थितयों में जीवन यापन के अभाव की दशा में सुरक्षा का अधिकार है।

(ii) मातृत्व और बाल्यकाल विशेष देखभाल और सहायता के हकदार हैं।

सभी बच्चे चाहे उनका जन्म विवाहित या अविवाहित जीवनकाल में हुआ हो, समान सामाजिक सुरक्षा प्राप्त करेंगे।

अनुच्छेद-26

शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, कम से कम प्राथमिक और मौलिक स्तर पर शिक्षा निःशुल्क होगी।

अनुच्छेद-27

विभिन्न कलाओं में आनंद लेने का अधिकार तथा वैज्ञानिक विज्ञापनों में भाग लेना आदि।

अनुच्छेद-28

इस घोषणा पत्र में वर्णित अधिकारों व स्वतंत्रताओं को पूर्ण रूप से प्राप्त किया जा सकता है।

अनुच्छेद-29

इसमें उन दायित्वों का विवेचन किया गया है जिनका व्यक्ति को अपने समुदाय के प्रति निर्वाह करना है।

अनुच्छेद-30

इसमें कहा गया है कि कोई भी राष्ट्र इन अधिकारों की विवेचना अपने दृष्टिकोण से नहीं करेगा वरन् इसमें निहित अधिकारों को प्रदान करने के लिए कार्य करेगा।

इस प्रकार उपरोक्त घोषणा पत्र को सभी राष्ट्र व प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण आत्मीय निष्ठा के साथ पालन करे तो भारतीय “वसुधैवकुटुम्बकम” की भावना सम्पूर्ण विश्व में साकार हो और व्याप्त वैमनस्य, रंगभेद, क्षेत्रवाद व आतंकवादसमूल नष्ट हो जाए और विश्व एक आदर्श समाज में परिवर्तित हो जायेगा।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवाधिकार-संरक्षण के प्रयास: (मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास)

संघ द्वारा मानवाधिकारों के विकास के लिये समय-समय पर अनेक कदम उठाये गये हैं।
इनमें से कुछ प्रमुख प्रयास हैं-

25 जून, सन् 1945 को संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये गये एवं अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना हुई।

21 जून, सन् 1946 को आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा मानवाधिकार आयोग तथा महिलाओं की प्रस्थिति पर आयोग की स्थापना हुई।

9 दिसम्बर, सन् 1948 को महासभा द्वारा नरसंहार के अपराध की रोकथाम एवं दण्ड देने के संबंध में नरसंहार अभिसमय स्वीकृत हुआ।
वह 1951 से लागू हुआ।

संरक्षण के प्रयास

10 दिसम्बर, सन् 1948 को महासभा द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा स्वीकृत हुई।

12 अगस्त सन् 1949 को युद्ध में घायल सैनिक, जनसामान्य और कैदियों के कल्याण से संबंधित सहमति पत्र पर राजनीतिक सम्मेलन हुआ और यह सन् 1950 से लागू हुआ।

दिसम्बर, सन् 1952 को महासभा द्वारा महिाओं के राजनीतिक अधिकार संबंधी सहमति पत्र स्वीकृत हुआ।
जो सन् 1954 से लागू हुआ।

नवम्बर सन् 1954 को महासभा द्वारा बच्चों के अधिकार संबंधी घोषणा’ स्वीकृत हुयी।

1 अगस्त, सन् 1956 को आर्थिक व सामाजिक परिषद द्वारा सदस्य राष्ट्रो से प्रति 3 वर्ष पर मानवाधिकार संबंधी प्रतिवेदन लेने का निर्णय लिया।

दिसम्बर, सन् 1965 को महासभा द्वारा ‘सभी प्रकार के नस्लभेद प्रकारों के उन्मूलन संबंधी सहमति पत्र को स्वीकृत हुआ जो सन् 1969 से लागू हुआ।

संरक्षण के प्रयास

16 दिसम्बर, सन् 1966 को महासभा द्वारा नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों संबंधी अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा एवं आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा घोषित हुयी।
यह सन् 1976 से प्रभावी हुई।

6 जून, सन् 1967 को आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा मानवाधिकार आयोग तथा अल्पसंख्यकों की भेदभाव से सुरक्षा के लिये बने उप-आयोग को मानवाधिकार हनन के मामलों की जाँच का अधिकार दिया गया ।

7 नवम्बर, सन् 1967 को महासभा द्वारा महिलाओं के विरूद्ध भेदभाव की समाप्ति की घोषणा स्वीकृत हुई।

13 मई 1968 को मानवाधिकार से संबंधित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में तेहरान घोषणा’ हुई।

26 नवम्बर, सन् 1968 को महासभा द्वारा ऐसे युद्ध अपराधों की वैधानिकता की क्रियान्विति न करने की घोषणा हुई जो कि मानवता के विरुद्ध हो।
यह घोषणा सन् 1970 से लागू हुई।

संरक्षण के प्रयास

11 दिसम्बर सन् 1969 को महासभा द्वारा सामाजिक प्रगति और विकास संबंधी घोषणा की स्वीकृति प्राप्त हुई।

30 नवम्बर 1973 को महासभा द्वारा समस्त प्रकार के रंगभेद संबंधी अपराधों की समाप्ति तथा दण्ड के लिये अंतरराष्ट्रीय सहमति पत्र स्वीकृत हुआ। यह सन् 1976 से प्रभावी हुआ।

9 दिसम्बर, सन् 1975 को महासभा द्वारा सभी व्यक्तियों को क्रूरता, अमानवीयता तथा प्रताड़ना से बचने के लिये घोषणा स्वीकृत हुई।

23 मार्च 1976 को नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों संबंधी. अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा तथा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय बिल पारित हुआ।

18 दिसम्बर सन् 1979 को महासभा द्वारा महिलाओं से भेदभाव के सभी प्रकारों के उन्मूलन संबंधी सहमति पत्र (सीडॉ) स्वीकृत हुआ।

25 नवम्बर सन् 1979 को महासभा द्वारा धर्म या विश्वास पर आधारित भेदभाव तथा असहिष्णुता के उन्मूलन संबंधी घोषणा स्वीकृत हुयी।

10 दिसम्बर सन् 1984 को महासभा द्वारा यातना, क्रूरता तथा अमानवीयता के विरूद्ध सहमति पत्र स्वीकृत हुआ।

संरक्षण के प्रयास

28 मई सन् 1985 को आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर समिति स्थापित हुयी।

4 दिसंबर 1986 को महासभा द्वारा विकास के अधिकार की घोषणा स्वीकृत हुई।

9 दिसम्बर सन् 1988 को महासभा द्वारा सभी व्यक्तियों को किसी भी प्रकार की नजरबदी तथा कैद से बचाने संबंधी सिद्धान्त स्वीकृत हुए।

24 मई, 1989 को आर्थिक तथा सामाजिक परिषद द्वारा अवैधानिक स्वेच्छाचारी तथा विलंबित दण्ड से संबंधित प्रभावी सुरक्षा एवं जांच संबंधी सिद्धान्त स्वीकृत हुए।

20 नवम्बर 1989 को महासभा द्वारा बच्चों के अधिकारों से संबंधित एक सहमति पत्र स्वीकृत हुआ। यह सन् 1990 से प्रभावी हुआ।

18 दिसम्बर 1990 को महासभा द्वारा देशांतर गमन करने वाले श्रमिकों तथा उनके परिजनों के अधिकारों की रक्षा संबंधी अंतरराष्ट्रीय सहमति पत्र स्वीकृत हुआ।

संरक्षण के प्रयास

18 दिसम्बर 1992 को महासभा द्वारा जातीय धार्मिक तथा भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों संबंधी घोषणा स्वीकृत हुई।

22 मई 1993 को सुरक्षा परिषद द्वारा 1991 से यूगोस्लाविया में अंतरराष्ट्रीय मानवता करे कानून के उल्लंघन के मामलों के क्रम में अंतरराष्ट्रीय दण्ड न्यायाधिकरण की स्थापना हुई।

25 जून 1993 को मानवाधिकारों पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में वियना घोषणा एवं कार्य योजना प्रस्तुत हुई।

20 दिसम्बर 1993 को महासभा द्वारा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्तका पद सृजित हुआ।

5 अप्रैल 1994 को जोस आयचला लासो (एक्वाडोर निवासी) संयुक्त राष्ट्रमानवाधिकार आयोग के प्रथम आयुक्त बने।

8 नवम्बर 1994 को सुरक्षा परिषद द्वारा 1994 को रवाडा में हुये नरसंहार तथा मानवता करे कानूनों के उल्लंघन को रोकने के क्रम में एक न्यायाधिकरण की स्थापना हुई।

संरक्षण के प्रयास

23 दिसम्बर 1994 को महासभा द्वारा 1995 से 2004 तक की समयावधि को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार शिक्षा दशक के रूप में मनाये जाने की घोषणा हुई।

12 सितम्बर 1997 को मैरी रॉबिन्सन (आयरलैण्ड) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की द्वितीय आयुक्त बनी।

17 जुलाई 1998 को महादेव का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुआ तथा रोम में अन्तर्राष्ट्रीय दण्ड न्यायालय की स्थापना हुयी। इसकी पीठ हेग में है। (कटारिया सुरेंद्र,मानवाधिकार सभ्य समाज एवं पुलिस पृ. सं. 20-22 )

मानवाधिकारोंके संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ से इतर किए गए प्रयास एवं संगठन

1969 – सेंट जॉन्स कोस्टारिका अमेरिकी राज्यों के संगठन (OAS) के तत्वावधान में मानवाधिकारों का अमेरिकी अभिसमय  स्वीकार किया गया

जून 1981 – नैरोबी (केन्या) में अफ्रीकी एकता संगठन की अगुवाई में मानव तथा जन अधिकारों के अफ्रीकी चार्टर को अंगीकृत किया गया

जून 1993- वियना में मानवाधिकारों पर विश्व सम्मेलन (वियनाघोषणा)

अन्य महत्वपूर्ण संगठन – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

वर्ल्ड फ्रेंड्स ऑफ अर्थ . एम्सटर्डम , 1871

सेव द चिल्ड्रन फंड , लंदन , 1919

इन्टरनेशनल कमीशन फार ज्यूरिस्ट्स, 1952

एमनेस्टी इंटरनेशनल लंदन 1962 |

माइनारिटी राइट्स ग्रुप लंदन 1965 ।

सरवाइवल इंटरनेशनल , 1969 ।

ह्यूमन राइट्स वाच , न्यूयार्क , 1978, आदि।

भारतीय संविधान में मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु किए गए उपबंध – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

भारतीय संविधानवेत्ताओं नेभारतीय लोगों के अधिकारों के बारे मेंविशेष रुप से ध्यान रखाऔर भारतीय संविधान में मानवाधिकारों के लिए अनेक उपबंध किए गए हैं संविधान के अनुच्छेद 14 से 30में सभी भारतीय नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारदिए गए हैंइन प्रावधानों से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान निर्माताओं ने भारत की महान सभ्यता और संस्कृति को जीवंत रखते हुए मानव मात्र के कल्याण के लिए संवैधानिक प्रावधानों को लागू किया है-

अनुच्छेद 14 से 18 हर नागरिक को सभी क्षेत्रों में समानता का अधिकार प्रदान करते हैं-

अनुच्छेद 1

विधि के समक्ष समता का उल्लेख किया गया है।

सभी नागरिक कानून की नजर में समान हैं।

किसी व्यक्ति के साथ सिर्फ इसलिए अलग व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि
वह गरीब या अमीर है, शक्तिशाली या कमजोर है, महिला है या पुरुष है या किसी विशेष जाति का है।

अनुच्छेद 15

किसी भी व्यक्ति से धर्म, जाति, वर्ण, लिंग या जन्म स्थान केआधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 16

राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति में सभी को अवसरों की समानता होगी।

धर्म, वंश, जाति, उद्भव, जन्म स्थान, निवास पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 17

अस्पृश्यता समाप्ति की बात की गई है।

अस्पृश्यता के कारण किसी को अयोग्य घोषित करना दण्डनीय अपराध है।

अनुच्छेद 18

सभी उपाधियों का अंत किया गया है।

सेना या शिक्षा सम्बन्धी सम्मान के अलावा कोई उपाधि प्रदान नहीं की जाएगी और
विदेशी राज्य से कोई भेंट, उपलब्धि या पद, राष्ट्र की सहमति के बिना स्वीकार नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 19 से 22 नागरिक की वाक् तथा जीवन स्वातंत्र्य के अधिकार से सम्बन्धित हैं – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

अनुच्छेद 19

सभी नागरिकों को बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, शांतिपूर्ण तरीके से सम्मेलन करने की, संगम या संघ बनाने की तथा भारत में कहीं भी निर्यात आने-जाने अथवा निवास करने की स्वतंत्रता है।

हर नागरिक कोई भी आजीविका अपनाने या कारोबार करने के लिए स्वतंत्र है।

इन स्वतंत्रताओं पर रोक तभी लग सकती है जब वे देश की शांति व अखण्डता को भंग करती हों अथवा सार्वजनिक नैतिकता, स्वास्थ्य आदि के खिलाफ हों।

अत: लोग संगठन बना सकते हैं, सामूहिक विरोध व हड़ताल कर सकते हैं, सम्मेलन आयोजित कर सकते हैं और सरकार की आलोचना भी कर सकते हैं।

अनुच्छेद 20

यह अनुच्छेद अपराधों के लिए दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण प्रदान करता है।

एक व्यक्ति प्रवृत्त विधि के अनुसार ही दोषी ठहराया जा सकता है तथा उसे कानून में लिखे अनुसार ही सजा दी जा सकती है।

किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जा सकता।

अभियुक्त को स्वयं के विरूद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहींकिया जा सकता।

अनुच्छेद 21

हर नागरिक को जीवन व दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार है जिसे विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से ही वंचित किया जा सकता है।

संविधान के 86वें संशोधन के द्वारा 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों को नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है।

अनुच्छेद 22 – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारण से अवगत होने, विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा करने का अधिकार है।

कुछ संयोगों को छोड़कर, गिरफ्तारी से चौबीस घंटे की अवधि में गिरफ्तार व्यक्ति को निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना जरूरी है।

अनुच्छेद 23 और 24

नागरिक को शोषण के विरूद्ध अधिकार प्रदान करते हैं जिनमें मानव का दुर्व्यापार, बेगार, बलात्श्रम व बाल मजदूरी शामिल हैं।

अनुच्छेद 25 से 28

धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार से सम्बन्धित हैं।

ये हर नागरिक को अपने धर्म को मानने, आचरण व प्रचार करने की स्वतंत्रता देते हैं।

अनुच्छेद 29 और 30

अल्पसंख्यक वर्गों के संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धित हितों का संरक्षण करते हैं।

अनुच्छेद 32

अन्य अधिकारों के रक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।

यह नागरिकों को संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान करता है।

भारत द्वारा अनुसमर्थित अंतरराष्ट्रीय मानक – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

मानवाधिकार की सार्वभौमिक उद्घोषणा 1948

नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सभा 1966

आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सभा 1966

सभी प्रकार के जातीय भेदभाव उन्मूलन पर अअंतरराष्ट्रीय सभा 1965

महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अंतरराष्ट्रीय सभा 1979

बालकों के अधिकारों पर सभा 1989

अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्थान सभा संख्या 29 – बंधक मजदूरी सभा 1930, अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्थान सभा संख्या 111 – रोजगार में भेदभाव 1958, अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्थान सभा संख्या 107 – देशज लोकसभा 1957

अंतत – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

भारत में मानवाधिकारों के संरक्षण का मुख्य सैद्धान्तिक आधार सन् 1993 के मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम में निहित है यह कानून संविधान के अनुच्छेद 51 के अंतर्गत दिए गए निर्देशों के अनुकरण में और वियना सम्मेलन में दिए गए भारत के वचन को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।

संविधान में प्रदान मूलभूत अधिकारों को सहयोग करने वाले कई कानून हैं।

(आभार:- दलित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए प्रवेशिका, उन्नति विकास शिक्षण संगठन और UNDP 2012)

 

उपर्युक्त विवेचन स्पष्ट हो जाता है कि मानवाधिकारों की जड़े अत्यंत गहरी है।

वैदिक सभ्यता और उससे भी पहले भारत में मानव अधिकारों का विशेष ध्यान रखा जाता था, और धर्म में मानव अधिकार सुरक्षित रहते थे भारत के बाहर भी विश्व के अनेक देशों में मानव अधिकारों के बारे में व्यापक जानकारी मिलती है और वर्तमान समय में मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए अनेक संस्थाएं प्रयासरत हैं।

अनेक के देशों में ऐसे सांविधानिक उपबंध किए गए हैं जिनसे मानव अधिकारों को सुरक्षित और सुरक्षित रखा जा सके, लेकिन इसके बाद भी अनेक लोग इनका उल्लंघन करने का प्रयास भी करते हैं। ऐसी स्थिति में मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर अभी और प्रयास करने की आवश्यकता है। (आभार:-हम इस आलेख की मौलिकता का दवा नहीं करते हैं इस आलेख के लेखन में अनेक पुस्तकों एवं शोध प्रबंधों का उपयोग किया गया है हम उन सभी पुस्तकों के लेखकों और शोधार्थियों का हार्दिक आभार प्रकट करते हैं जिनसे हमें सहयोग प्राप्त हुआ)

 

इन्हें भी पढ़िए-

भारत का विधि आयोग (Law Commission, लॉ कमीशन)

मानवाधिकार (मानवाधिकारों का इतिहास)

मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग : संगठन तथा कार्य

भारतीय शिक्षा अतीत और वर्तमान

श्री सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के मतानुसार प्रांतीय भाषाओं और बोलियों का महत्व

हाइकु कविता (Haiku)

हाइकु कविता (Haiku)

हायकु काव्य छंद का इतिहास, अर्थ, हायकु विधा, हायकु कविता कोश, हायकु काव्य शैली, क्षेत्र, भारतीय और जापानी हायकु सहित अन्य पूरी जानकारी

कविता का कैनवास विश्वव्यापी है।

ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु कविता का क्षेत्र है।

विश्व की अलग-अलग भाषाओं में कविता रचना की अलग-अलग शैलियां और छंद हैं,

परंतु बहुत कम शैलियां या छंद ऐसे हैं जो विश्वव्यापी हुए हैं।

किसी छंद के वैश्वीकरण के लिए उस छंद में विश्व की अन्य भाषाओं में ढलने की क्षमता और प्रभावोत्पादकता होनी चाहिए।

हाइकु जापानी भाषा का एक ऐसा ही छंद है, जिसका प्रसार विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है।

हाइकु के संबंध में कतिपय विद्वानों के मत इस प्रकार हैं-

हायकु काव्य छंद इतिहास
हायकु काव्य छंद इतिहास

(धर्मयुग, 16 अक्टूबर 1966) उद्धृत हाइकु दर्पण के अनुसार

“हाइकु का जन्म जापानी संस्कृति की परम्परा, जापानी जनमानस और सौन्दर्य चेतना में हुआ और वहीं पला है। हाइकु में अनेक विचार-धाराएँ मिलती हैं- जैसे बौद्ध-धर्म (आदि रूप, उसका चीनी और जापानी परिवर्तित रूप, विशेष रूप से जेन सम्प्रदाय) चीनी दर्शन और प्राच्य-संस्कृति। यह भी कहा जा सकता है कि एक “हाइकु” में इन सब विचार-धाराओं की झाँकी मिल जाती है या “हाइकु” इन सबका दर्पण है।”

प्रो० नामवर सिंह[ हाइकु पत्र, 1 फरवरी 1978, उद्धृत हाइकु दर्पण के अनुसार

“Haiku एक संस्कृति है, एक जीवन-पद्धति है।

तीन पंक्तियों के लघु गीत अपनी सरलता, सहजता, संक्षिप्तता के लिए जापानी-साहित्य में विशेष स्थान रखते हैं।

इसमें एक भाव-चित्र बिना किसी टिप्पणी के, बिना किसी अलंकार के प्रस्तुत किया जाता है, और यह भाव-चित्र अपने आप में पूर्ण होता है।”

हाइकु की पहचान

हाइकु मूलतः जापानी छन्द है।

जापानी हाइकु में वर्ण-संख्या और विषय दोनों के बंधन रहे हैं।

हाइकु की मोटी पहचान 5-7-5 के वर्णक्रम की तीन पक्तियों की सत्रह-वर्णी कविता के रूप में है और इसी रूप में वह विश्व की अन्य भाषाओं में भी स्वीकारा गया है।

महत्त्व वर्ण-गणना का इतना नहीं जितना आकार की लघुता का है। यही लघुता इसका गुण भी बनती है और यही इसकी सीमा भी।

जापानी में वर्ण स्वरान्त होते हैं, हृस्व “अ” होता नहीं।

5-7-5 के क्रम में एक विशिष्ट संगीतात्मकता या लय कविता में स्वयं आ जाती है।

तुक का आग्रह नहीं है।

अनुभूति के क्षण की वास्तविक अवधि एक निमिष, एक पल अथवा एक प्रश्वास भी हो सकती है, अतः अभिव्यक्ति की सीमा उतने ही शब्दों तक है जो उस क्षण को उतार पाने के लिए आवश्यक है।

यह भी कहा गया है कि एक साधारण नियमित साँस की लम्बाई उतनी ही होती है, जितनी में सत्रह वर्ण सहज ही बोले जा सकते हैं।

कविता की लम्बाई को एक साँस के साथ जोड़ने की बात के पीछे उस बौद्ध-चिन्तन का भी प्रभाव हो सकता है, जिसमें क्षणभंगुरता पर बल है। -प्रोफेसर सत्यभूषण वर्मा (“हाइकु”भारतीय हाइकु क्लब का लघु पत्र), अगस्त- 1978, सम्पादक- डा० सत्यभूषण वर्मा, से साभार) उद्धृत हाइकु दर्पण

भारत में हायकु

पिछले कुछ वर्षों में हाइकु ने हिंदी में भी अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करवाई है।

पहले पहल हाइकु कविता अनुवाद के माध्यम से हिंदी पाठकों के सामने आयी।

रवींद्रनाथ टैगोर तथा सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ने अपनी जापान यात्रा से लौटकर जापानी हाइकु कविता का अनुवाद किया।

कविवर रवींद्रनाथ टैगोर तथा अज्ञेय से प्रभावित होकर हिंदी के अनेक कवियों ने जापानी हाइकु कविता पर अपने हाथ आजमाएं।

हाइकु कविता को भारत में लाने का श्रेय महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर को जाता है।

“भारतीय भाषाओं में रवींद्र नाथ ठाकुर ने जापान यात्रा से लौटने के पश्चात 1919 ईस्वी में जापान यात्री में हाइकु की चर्चा करते हुए बांग्ला में दो कविताओं के अनुवाद प्रस्तुत किए यह कविताएं थी-

     पुरोनो पुकुर

     ब्यांगेर लाफ

     जलेर शब्द

तथा

     पचा डाल

     एकटा को

     शरत्काल

दोनों अनुवाद शब्दिक हैं और बाशो की प्रसिद्ध कविताओं के हैं।”(प्रो. सत्यभूषण वर्मा, जापानी कविताएँ, पृष्ठ-29)

हाइकु कविता का इतिहास

हाइकु कविता का इतिहास अत्यंत पुराना है।

यदि जापानी साहित्येतिहास के अध्ययनमें हम पाते हैं कि हाइकु कविता की रचना सैकड़ों वर्ष पूर्व जापान में हो रही थी।

इसके प्रारंभिक कवि यामजाकी सोकान (1465-1553) और आराकीदा मोरिताके (1472-1549) थे 17 वीं शताब्दी में मृतप्राय हो चुकी हाइकु कविता को मात्सूनागा तोईतोकु (1570-1653) ने नवजीवन प्रदान किया।

उन्होंने हाइकु कि तोईतोकु धारा का प्रवर्तन किया।

बाशो और उनका युग

जापानी हाइकु की प्रतिष्ठा को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाने और उसका सर्वांगीण विकास करने का श्रेय प्रसिद्ध कवि मात्सुओ बाशो (1644-1694) को जाता है।

लगभग चालीस वर्ष के छोटे से जीवन काल में ही उन्होंने जापानी साहित्य की इतनी सेवा कर दी कि 17वीं शताब्दी के मध्य से 18 वीं शताब्दी के मध्य के जापानी साहित्येतिहास के कालखंड को बाशो युग कहा जाता है।

बाशो ने हाइकु कविता के लिए अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि “जिसने जीवन में तीन से पांच हाइकु रच डालें वह हाइकु कवि है जिसने दस हाइकु की रचना कर डाली वह महाकवि है।” (प्रो. सत्यभूषण वर्मा, जापानी कविताएँ, पृष्ठ-22)

जापानी काव्यशास्त्र के अनुसार बाशो के काव्य मैं मुख्यतः तीन प्रवृत्तियां मिलती है-

अकेलेपन की स्थिति अर्थात वाबि।

अकेलेपन की स्थिति से उत्पन्न संवेदना परक अनुभूति अर्थात साबि।

सहज अभिव्यक्ति अर्थात करीमि।

1686 ईस्वी में बाशो ने अपने सबसे प्रसिद्ध हाइकु की रचना की-

ताल पुराना

कूदा दादुर

पानी का स्वर

(अनुवाद प्रो. सत्यभूषण वर्मा, जापानी हाइकु और आधुनिक हाइकु कविता पृष्ठ-15)

बुसोन और बुसोन का युग

इस युग के श्रेष्ठ हाइकुकार बुसोन हुए हैं, जो कि प्रख्यात चित्रकार भी थे।

डॉ सत्यभूषण वर्मा ने बाशो और बुसोन को जापानी काव्य गगन के सूर्य और चंद्रमा कहा है

इस्सा

बुसोन के बाद जापानी हाइकु साहित्य में प्रमुख का नाम कोबायाशी इस्सा का आता है। इनकी कविताएं जीवन के अधिक निकट है।

शिकि

शिकि पर बुसोन का अधिक प्रभाव था।

इसने बाशो की आलोचना की तथा मित्रों के सहयोग से ‘हाइकाइ’ नामक हाइकु पत्रिका निकाली।

शिकि ने  नयी कविता और उपन्यासों की भी रचना की।

इनकी एक अन्य हाइकु पत्रिका होतोतोगिसु ने जापानी हाइकु कविता को नया आधार और नयी दिशा दी।

इसके बाद बदलते परिवेश और विचारधाराओं के साथ-साथ हाइकु में भी परिवर्तन आए।

नित नए प्रयोग इस कविता में होने लगे।

डॉ. सत्य भूषण वर्मा के अनुसार 1957 ईस्वी में जापान में लगभग 50 मासिक हाइकु पत्रिका में प्रकाशित हो रही थी।……… प्रत्येक पत्रिका के हर अंक में कम से कम 1500 हाइकु रचनाएं थी।(प्रो. सत्यभूषण वर्मा, जापानी हाइकु और आधुनिक हाइकु कविता पृष्ठ-28)

डॉ. शैल रस्तोगी के कथनानुसार

“….छठे दशक के आसपास चुपचाप प्रविष्ट होने वाली इस जापानी काव्य-विधा ने हिंदी कविता में अपना प्रमुख स्थान बना लिया है और कविता के क्षेत्र में एक युगांतर प्रस्तुत किया। अकविता, विचार कविता, बीट कविता, ताजी कविता, ठोस कविता आदि अनेक काव्यांदोलनों के बीच पल्लवित और पुष्पित होती इस काव्य-शैली ने हिंदी कवियों को बड़ी शिद्दत से विमोहित किया; जिससे साहित्य में हाइकु-लेखन को एक सुदृढ़ परंपरा पड़ी और हिंदी कविता जापान से आने वाले रचना प्रभाव से खिल उठी।”

हाइकु कविता के विकास में अमूल्य योगदान

1956 से 1959 ईस्वी के कालखंड में अज्ञेय द्वारा रचित एवं अनूदित व कविताओं के संग्रह ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ से हिंदी में हाइकु कविता का श्रीगणेश माना जाता है।

अज्ञेय के इस संग्रह में 27 अनूदित और कुछ मौलिक हाइकु संकलित है।

डॉ. प्रभा शर्मा के अनुसार “सन् 1967 ईस्वी में प्रकाशित श्रीकांत वर्मा के कविता संग्रह  ‘माया दर्पण’ में शब्द संयम और मिताक्षरता, बिम्बात्मकता और चित्रात्मकता से युक्त कविताएं संग्रहित हैं, जो हाइकु की पूर्वपीठिका स्वीकार की जानी चाहिए।”

‘आधुनिक हिंदी कविता और विदेशी काव्य रूप’ में डॉ एस नारायण ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक लिखा है कि “डॉ प्रभाकर माचवे ने भी जापान में अपने प्रवास काल में लगभग 250  हाइकुओं के अनुवाद किये।”

डॉ सत्यभूषण वर्मा का मत है कि “हाइकु को एक आंदोलन के रूप में उठाने का प्रयत्न रीवा के आदित्य प्रताप सिंह ने किया।उन्होंने हाइकु और सेनर्यु (व्यंग्य प्रधान हाइकु) के नाम से ढेरों कविताएं लिखी और लिखवायी है।”

इसके साथ-साथ अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने भी हाइकु कविता के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया है।

हाइकु कविता का शिल्प सौंदर्य

प्रत्येक भाषा की अपनी रचना शैली होती है, जो दूसरी भाषाओं से पृथक होती है।

सभी भाषाएं ध्वनि विधान, शब्द विधान, स्वर-व्यंजन, उच्चारण, पद क्रम, काल, लिंग, वचन, कारक, क्रिया आदि सभी दृष्टियों में एक दूसरे से सर्वथा भिन्न-भिन्न और विशिष्ट होती हैं।

इन विशेषताओं के कारण ही सभी भाषाओं में काव्य शैलियों भी अलग-अलग होती है।

जापानी और हिंदी दोनों ही भाषाओं में हाइकु कविता का काव्य रूप मुक्तक ही रहा है

यह सर्वविदित है कि हाइकु कविता जापानी भाषा से हिंदी में आई है।

हिंदी में जिस प्रकार इसे एक छंद के रूप में अपनाया गया है, उसी प्रकार इसके शिल्प को भी अपना लिया गया है

हाइकु के शिल्प पर हिंदी में कई प्रश्न हैं, उन प्रश्नों के उत्तर जाने से पहले जापानी तथा हिंदी में हाइकु के शिल्प को समझ लेना आवश्यक है।

प्राचीन काल से ही जापानी मुक्तक काव्य में तीन शैलियां प्रचलित रही है-

ताँका (5 पंक्तियाँ तथा 5,7,5,7,7 वर्णक्रम)

सेदोका (6 पंक्तियाँ तथा 5,7,7,5,7,7 वर्णक्रम)

चोका (पंक्तियाँ अनिश्चित तथा 5,7,5,7 वर्णक्रम)

यह तीनों शैलियां 5-7 संख्या की ओंजि (लघ्वोच्चारणकाल घटक) पर आधारित है।

डॉ. सत्यभूषण वर्मा ने हाइकु भारती पत्रिका में ओंजि को लेकर अपना मत इस प्रकार दिया है- “जापानी लिपि मूलतः चीन की भावाक्षर लिपि से विकसित हुई है; जिसे हिन्दी में सामान्यतः चित्रलिपि कहा जाता है।

अंग्रेजी में इन भावाक्षरों को ‘इडियोग्राफ’ कहा गया है | भावाक्षर किसी ध्वनि को नहीं, एक पूरे शब्द के भाव या अर्थ को व्यक्त करता है|

भारतीय लिपियाँ ध्वनि मूलक हैं जिनमें शब्द को लिखित ध्वनि-चिह्नों में बदलकर उससे अर्थ ग्रहण किया जाता है|

चीनी और जापानी लिपियाँ अर्थमूलक हैं, जिनमें शब्द के लिखित रूप सीधे अर्थ को व्यक्त कर देते हैं।

एक ही भावाक्षर प्रसंग और अन्य भावाक्षर के संयोग से अनेक प्रकार से पढ़ा या उच्चरित किया जा सकता है|

जापानी भावाक्षर को ‘कांजि’ कहा जाता है।

कालांतर में जापान ने चीनी भावाक्षर लिपि को जापानी भाषा की प्रकृति के अनुरूप ढालने के प्रयत्न में इन्हीं भावाक्षरों में अपनी ध्वनि मूलक लिपियों का विकास किया जो ‘हीरागाना और ‘काताकाना’ कहलायीं|

आज की जापानी में ‘कांजि’, ‘हीरागाना’ और ‘काताकाना’ तीनों लिपियों का एक साथ मिश्रित प्रयोग होता है|

रोमन अक्षरों में लिखी गयी जापानी के लिये ‘रोमाजि’ शब्द का प्रयोग होता है|

किसी भी लिखित प्रतीक चिह्न को जापानी में ‘जि’ कहा जाता है|

वह कोई भावाक्षर भी हो सकता है, कानाक्षर भी अथवा कोई अंक भी|

‘ओन’ का अर्थ है ध्वनि, इस प्रकार ‘ओं’ का सीधा सा अर्थ हुआ ध्वनि-चिन्ह जो वर्णया अक्षर का ही पर्याय हो सकता है|” -(उद्धृत डॉ भगवतशरण अग्रवाल हाइकु काव्य विश्वकोश पृष्ठ 19)

ओन, ओंजि एवं सिलेबल्स (Syllables) तथा हायकु कविता का अनुवाद

चूंकि हिंदी में प्रारंभिक हाइकु कविता अनुवाद के माध्यम से आई है।

अनुवाद दो तरह से हुआ पहला- जापानी से सीधे हिंदी में अनुवाद।

दूसरा- जापानी से अंग्रेजी में अनुवाद और पुनः अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद।

इसलिए यह समझना होगा कि जापानी भाषा में जो ओन है,

वह अंग्रेजी और हिंदी में क्या होगा या अंग्रेजी और हिंदी में उसका समानार्थी क्या होगा।

जापानी में जिसे ओन कहा जाता है उसे अंग्रेजी में सिलेबल्स (Syllables) तथा हिंदी में अक्षर कहा जाता है

लेकिन प्रख्यात हाइकुकार डॉ भगवतशरण अग्रवाल उक्त मत से कुछ कम ही सहमत हैं।

इस संबंध में वे लिखते हैं “अनेक समीक्षकों ने ओंजि का अंग्रेजी पर्याय सिलेबल्स माना है जो गलत है।

वास्तव में इसका अंग्रेजी पर्याय मोरा है फिर भी इस संदर्भ में मोरा के स्थान पर सिलेबल्स ही अधिक प्रचलित है।

हिंदी के भाषा वैज्ञानिकों ने सिलेबल्स का पर्याय अक्षर को माना है।”

भले ही विद्वतजन और आलोचक ओन या ओंजि  का अंग्रेजी पर्याय सिलेबल्स और हिंदी पर्याय अक्षर करें;

परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रत्येक भाषा की बनावट अलग अलग होती है,

इसलिए यह कहना संगत नहीं होगा कि जापानी में लिखे हाइकु में जितने ओन या ओंजि होंगे,

अंग्रेजी में उतने ही सिलेबल्स और हिंदी में उतने ही अक्षर होंगे।

जापानी हाइकु कविता में 17 ओन या ओंजि होते हैं, लेकिन यह देखने में आया है,

कि अंग्रेजी के 12 सिलेबल्स में जापानी के लगभग 17 ओन या ओंजि पूरे हो जाते हैं

लेकिन अंग्रेजी हाइकुकार 17 सिलेबल्स का प्रयोग करते हैं।

हाइकु के शिल्प

हाइकु के शिल्प के संबंध में डॉ भगवतीशरण अग्रवाल लिखते हैं ”हाइकु के शिल्प के संबंध में एक दो और बातें मुझे कहनी है-

प्रथम तो यह कि जापानी काव्य में अक्षरों को नहीं  ओन या ओंजि अर्थात अंग्रेजी में मोरा जिसका हिंदी पर्याय लघ्वोच्चारणकाल है को मान्यता मिली है”

रामेश्वर कम्बोज ‘हिमांशु’ ने जापानी हाइकु और हिन्दी में हाइकु की संरचना में वर्ण या अक्षर गणना को लेकर निम्नलिखित वर्णन किया है

“इस तकनीकी शब्दावली के बाद हाइकु के लिए अक्षर, वर्ण या जापानी भाषा का शब्द ग्रहण करें तो परस्पर पर्याय की समानता तलाशना मुश्किल है|

अक्षर के लिए निकटतम शब्द syllable है लेकिन जापानी में इसके लिए कुछ समतुल्य ‘on’ है,

पूरी तरह पर्याय नहीं; क्योंकि जापानी में ‘on’ का अर्थ syllable से थोड़ा कम है|

जैसे – haibun अंग्रेज़ी में दो अक्षर हैं- हाइ-बन परन्तु जापानी में चार अक्षर या चार ‘on’ हैं -(ha-i-bu-n)-हा-इ-ब-न |”

रामेश्वर कम्बोज ‘हिमांशु ने हिंदी में हाइकु की गणना को स्पष्ट करते हुए कहा है कि”हिन्दी की भाषा वैज्ञानिक शब्दावली में इसे 5-7-5 वर्ण का छन्द कहा जाना चाहिए, न कि 5-7-5 अक्षर का छन्द|

इसका कारण है कि हिन्दी में अक्षर का अर्थ है – वह वाग्ध्वनि जो एक ही स्फोट में उच्चरित हो|

उदहारण के लिए कमला= कम-ला=२, धरती=धर-ती=२, मखमल= मख- मल=२, करवट= कर-वट=२,पानी=पा-नी=२, अपनाना = अप – ना – ना = ३, चल= १, सामाजिक= सा-मा-जिक=३ (ये अक्षर=गणना दी गई है) आ,न , ओ हिन्दी मे वर्ण भी हैं, एक ही स्फोट में बोले जाते हैं -अक्षर भी हैं और सार्थक भी हैं (आ-आना क्रिया का रूप , न निषेध के अर्थ में, ओ-पुकारने के अर्थ में , जैसे ओ भाई! इसी तरह गाना आदि भी हैं।]

हिन्दी हाइकु के सन्दर्भ में

हिन्दी हाइकु के सन्दर्भ में कमला-क-म-ला-3, धरती-ध-र-ती-3, मखमल-म-ख-म-ल-4, करवट- क-र-ब-ट-4 पानी=पा-नी=2, अपनाना=अ-प-ना-ना=4, चल=च-ल=2 सामाजिक= सा-मा-जि-क=4 वर्ण गिने जाएँगेहाइकु के बारे में सीधा और सरल शास्त्रीय नियम है – 5-7-5 = 17 वर्ण (स्वर या स्वरयुक्तवर्ण) न कि अक्षर जैसा कि असावधानीवश लिख दिया जाता है।“

इस मत पर आधारित अनेक उदाहरण हैं;

जिनसे यह मत पुष्ट होता है कि हिंदी हाइकु में 5,7,5 के क्रम में 17 वर्णों का छंद विधान हाइकु है न कि अक्षर क्रम का जैसे-

दीपोत्सव-सा

हम सबका

रिश्ता जगमगाए

 

शीत के दिनों

सर्प-सी फुफकारें

चलें हवाएँ

 

घास-सी बढ़ी

गुलाब-सी खिलती

बेटी डराती

हाइकु तुकांत और अतुकांत दोनों ही हो सकते हैं, हिंदी में दोनों प्रकार के हाइकु लिखे गए हैं।

शिल्प के अंतर्गत छंद यति,  गति, तुक के अतिरिक्त

अलंकार, शब्द-शक्ति, बिंब विधान, प्रतीक विधान, मिथक आदि सभी शिल्प गत विशेषताओं से युक्त होता है हाइकु।

हाइकु (Haiku) कविता

संख्यात्मक गूढार्थक शब्द

मुसलिम कवियों का कृष्णानुराग

श्री सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के मतानुसार प्रांतीय भाषाओं और बोलियों का महत्व

अतः हमें आशा है कि आपको यह जानकारी बहुत अच्छी लगी होगी। इस प्रकार जी जानकारी प्राप्त करने के लिए आप https://thehindipage.com पर Visit करते रहें।

जून के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of June

जून माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of June

जून माह के महत्त्वपूर्ण दिवस एवं सप्ताह | Important Days and Week of June | National International Important Days of June | Important Days


June का तीसरा रविवार – फादर्स डे


1 जून | जून माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of June

विश्व अभिभावक दिवस (Global Day of Parents)

विश्व दुग्ध दिवस (World Milk Day)

2 जून | जून माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of June

तेलंगाना दिवस (Telangana Day)

International Sex Workers Day

3 जून-

विश्व साइकिल दिवस (World Cycle Day)

3 June World Environment Day
3 June World Cycle Day

4 जून-

आक्रमण के शिकार हुए मासूम बच्चों का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Innocent Children Victims of Aggression)

5 जून

विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day)

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5 June World Environment Day

7 जून-

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस (World Food Safety Day)

अंतरराष्ट्रीय लेवल क्राॅसिंग अवेयरनेस डे (International Level Crossing Awareness Day)

8 जून-

विश्व समुद्र दिवस (World Oceans Day)

विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस (Brain Tumor Day)

8 June World Ocean Day
8 June World Ocean Day

9 जून-

शहीद बिरसा मुण्डा की पुण्यतिथि

Coral Triangle Day

10 जून-

विश्व नेत्रदान दिवस (World Eye Donation Day)

10 June World Eye Donation Day
10 June World Eye Donation Day

12 जून-

विश्व बालश्रम निषेध दिवस (Anti Child Labor Day)

13 जून-

सिलाई मशीन दिवस (Sewing Machine Day)

अंतरराष्ट्रीय धवलता दिवस (Albinism Awareness Day)

14 जून-

विश्व रक्तदाता दिवस (World Blood Donor Day)

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जून माह के महत्त्वपूर्ण दिवस Important Days of June

15 जून –

वैश्विक पवन दिवस (Global Wind Day)

विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस (World Elder Abuse Awareness Day)

17 जून-

मरुस्थलीय एवं अनावृष्टि की रोकथाम हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day for Prevention of Desertification and Drought)

18 जून-

गोवा क्रांति दिवस (Goa Revolution Day)

स्वपरायण गौरव दिवस(Autistic Pride Day)

अंतरराष्ट्रीय पिकनिक दिवस (International Picnic Day)

19 जून-

संघर्ष में यौन हिंसा के उन्मूलन हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day for the Elimination of Sexual Violence in Conflict)

विश्व सिकल सेल जागरूकता दिवस (World Sickle Cell Awareness Day)

विश्व सौहार्द दिवस (World Sauntering Day)

20 जून-

विश्व शरणार्थी दिवस (World Refugee Day)

21 जून-

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (International Yoga Day)

विश्व संगीत दिवस (Music Day)

विश्व जलराशि विज्ञान दिवस (World Hydrography Day)

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21 June International Yoga Day

23 जून-

संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा दिवस (United Nations Public Service Day)

अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस (International widow’s day)

अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक दिवस (International Olympic Day)

25 जून-

अंतरराष्ट्रीय नाविक दिवस (International Sailor’s Day)

26 जून-

मादक द्रव्यों के दुरुपयोग एवं अवैध व्यापार विरोधी अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day Against Substance Abuse and Illicit Trade)

अत्याचार के पीड़ितों के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day in Support of Victims of Torture)

29 जून-

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस (National Statistics Day) (भारत के महान सांख्यिकीवेत्ता पी.सी. महालनोबिस का जन्मदिवस)

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29 June National Statistics Day

30 जून

हूल/संथाल क्रांति दिवस (दादाभाई नौरोजी की मृत्यु) (Hool/Santhal Revolutionary Day)

विश्व क्षुद्रग्रह दिवस (World Asteroid Day)

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जून माह के महत्त्वपूर्ण दिवस Important Days of June

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अप्रैल के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of April

मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of May

जून के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of June

जुलाई के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July

अगस्त के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of August

सितम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of September

अक्टूबर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of October

नवम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of November

दिसम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of December

मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of May

मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of May

मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of May | Important Days and Week of May | National International Days of June | Important Days


May का प्रथम रविवार – विश्व हास्य दिवस (World Laughter Day)

May का प्रथम मंगलवार – विश्व अस्थमा दिवस (World Asthma Day)

मई का दूसरा रविवार – मदर्स डे (Mother’s Day)

मई और अक्टूबर के दूसरे शनिवार को (वर्ष में दो बार) – विश्व प्रवासी पक्षी दिवस (World Migratory Birds Day)


1 मई | मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of May

महाराष्ट्र दिवस, गुजरात दिवस (Maharashtra Day, Gujarat Day)

अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस (International Labor Day)

2 मई | मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of May

श्री हित हरिवंशचंद्र जयंती (Shri Hit Harivanschandra Jayanti)

विश्व टूना (एक प्रकार की मछली) दिवस (World Tuna Day)

3 मई | मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of May

विश्व प्रैस स्वतंत्रता दिवस (World Press Freedom Day)

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा दिवस (International Energy Day)

4 मई –

कोयला खदान दिवस (Coal Miners’ Day)

अंतरराष्ट्रीय अग्निशमन दिवस (International Firefighters’ Day)

5 मई-

अंतरराष्ट्रीय सूर्य दिवस (International Sunny Day)

अंतरराष्ट्रीय दाई दिवस (International Midwives’ Day)

7 मई-

सीमा सड़क संगठन का स्थापना दिवस (Raising Day of Border Roads Organization)

विश्व एथलेटिक्स दिवस (World Athletic Day)

8 मई-

अंतरराष्ट्रीय थैलीसिमिया दिवस (International Thalissemia day)

विश्व रेडक्राॅस एण्ड क्रिसेंट दिवस (World Red Cross and Crescent Day)

10 मई-

विश्व लूपस दिवस (World Loops Day)

11 मई-

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (National Technology Day)

12 मई-

अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day)

13 मई-

राष्ट्रीय एकीकरण दिवस (National Integration Day)

14 मई-

स्थानिक पक्षी दिवस (Endemic Bird Day)

15 मई-

अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस (International Day of Family)

16 मई-

शांति से एक साथ रहने का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day Living Together in Peace)

राष्ट्रीय डेंगू दिवस (National Dengue Day)

अंतरराष्ट्रीय प्रकाश दिवस (International Day of Light)

सिक्किम स्थापना दिवस (Sikkim Foundation Day)

17 मई-

विश्व दूरसंचार और सूचना समाज दिवस (World Telecommunication and Information Society Day)

विश्व उच्च रक्तचाप दिवस (World Hypertension Day)

होमोफोबिया, ट्रांसफोबिया और बायोफोबिया के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day Against Homophobia, Trans-phobia and Bi-phobia)

18 मई-

अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस (International Museum Day)

विश्व एड्स टीका दिवस (World AIDS Vaccine Day)

पोखरण परमाणु विस्फोट दिवस (Pokhran Atomic Explosion Day)

20 मई-

विश्व मधुमक्खी दिवस (World Honey Bee Day)

विश्व मेट्रोलॉजी (माप विद्या) दिवस (World Meteorology Day)

21 मई-

अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस (International Tea Day)

राष्ट्रीय आंतकवाद निरोधक दिवस (National Anti-Terrorism Day)

संवाद और विकास के लिए सांस्कृतिक विविधता के लिए विश्व दिवस (World Day for Cultural Diversity for Dialogue and Development)

22 मई-

अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (World Biological diversity Day)

23 मई-

विश्व कछुआ दिवस (World Turtle Day)

अंतरराष्ट्रीय तिब्बत मुक्ति दिवस (International Tibet Liberation Day)

24 मई-

राष्ट्रमंडल दिवस (Commonwealth Day)

25 मई-

विश्व थायरायड दिवस (World Thyroid Day)

अंतरराष्ट्रीय गुमशुदा बाल दिवस (International Missing Children’s Day)

26 मई-

राष्ट्रीय धातु दिवस (National Metal Day)

27 मई-

पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि (Former Prime Minister Pt. Jawaharlal Nehru’s Death Anniversary)

28 मई-

वीर सावरकर जयंती (Veer Savarkar Jayanti)

महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए कार्रवाई का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Action for Women’s Health)

विश्व भूख दिवस (World Hunger Day)

29 मई-

अंतरराष्ट्रीय मांउट एवरेस्ट दिवस (International Mount Everest Day)

संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकों के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day for United Nations Peacekeepers)

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मई माह के महत्त्वपूर्ण दिवस Important Days of May

30 मई-

हिन्दी पत्रकारिता दिवस (Hindi Journalism Day)

31 मई-

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस (World Anti-Tobacco Day)

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भारत का विधि आयोग

भारत का विधि आयोग (Low Commission)

विधि संबंधी विषयों पर महत्त्वपूर्ण परामर्श देने के लिए सरकार आवश्यकतानुसार आयोग नियुक्त करती है; इन्हें विधि आयोग (Law Commission, लॉ कमीशन) कहते हैं। स्वतन्त्र भारत में अब तक 22 विधि आयोग बन चुके हैं। 22वें विधि आयोग के गठन हेतु केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने 19 फरवरी, 2020 को अनुमति प्रदान कर दी है, इस विधि आयोग का कार्याकाल भारत के राजपत्र में गठन के आदेश के प्रकाशन की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिये होगा

भारत के विधि आयोग का इतिहास

प्रथम विधि आयोग (First Law Commission)

भारत में प्रथम विधि आयोग का गठन स्वतंत्रता से पूर्व किया गया था

ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में 1833 का चार्टर एक्ट के अंतर्गत 1834 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में मैकाले की सिफारिश पर भारत के पहले विधि आयोग का गठन किया गया था।

विधि एवं सांविधानिक इतिहास में इसका विशेष महत्त्व है।

प्रारंभ में विधि आयोग में चार सदस्य थे- लार्ड मैकाले, कैमरॉन, विलियम एंडरसन तथा मैक लियाड थे।

आयोग में अधिक-से अधिक पाँच सदस्य हो सकते थे। 1837 में मिलेट इसके पाँचवें सदस्य बने थे।

प्रथम विधि आयोग का उद्देश्य थे-

(1) न्यायालय एवं न्यायालयों की कार्यप्रणाली में क्या-क्या सुधार लाया जाए, इस संबंध में सुझाव देना।
(2) न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र एवं शक्तियों की जाँच करना।
(3) भारत में प्रचलित सभी विधियों-दीवानी, फौजदारी, लिखित एवं परंपरागत की जाँच पड़ताल करना।
(4) नियमों, परिनियमों, अधिनियमों आदि में परिवर्तन, परिवर्तन, संशोधन आदि के बारे में सुझाव देना।
(5) पुलिस विभाग की वास्तविक स्थिति की जाँच कर उनमें सुधार के उपाय सुझाना।

प्रथम विधि आयोग ने दंड संहिता आलेख भी (Draft of Indian Penal Code) तैयार किया, भारत का सिविल लॉ उस समय अव्यवस्थित था। उस पर दी गई गई रिपोर्ट, जिसे देशीय विधि (Lex Loci) रिपोर्ट नाम दिया गया, अत्यधिक महत्त्वपूर्ण मानी गयी।

द्वितीय विधि आयोग (Second Law Commission)

भारत के दूसरे विधि आयोग का गठन भी स्वतंत्रता से पूर्व हुआ।

1853 ईस्वी के चार्टर एक्ट के अंतर्गत द्वितीय विधि आयोग की स्थापना 29 नवंबर, 1853 को अंग्रेज न्यायाधीश जॉन रामिली की अध्यक्षता में की गयी। इस विधि आयोग में 8 सदस्य थे, इस आयोग को प्रथम विधि आयोग के द्वारा दिए गए सुझावों की जांच करने का कार्य सौंपा गया इस आयोग ने चार रिपोर्ट प्रस्तुत की जिनके अंतर्गत-

(i) अपनी प्रथम रिपोर्ट में आयोग ने फोर्ट विलियम स्थित सर्वोच्च न्यायालय एवं सदर दीवानी और निजामत अदालतों के एकीकरण का सुझाव दिया।

(ii) प्रक्रियात्मक विधि की संहिताएँ तथा योजनाएँ प्रस्तुत कीं।

(iii) इसी प्रकार पश्चिमोत्तर प्रांतों और मद्रास तथा बंबई प्रांतों के लिए भी तृतीय और चतुर्थ रिपोर्ट में योजनाएँ बनायी गयी फलस्वरूप 1859 ई. में दीवानी व्यवहार संहिता एवं लिमिटेशन एक्ट, 1860 में भारतीय दंडसंहिता एवं 1861 में आपराधिक व्यवहार संहिता बनी।

1861 ई. में ही भारतीय उच्च न्यायालय विधि पारित हुई।

1861 में दीवानी संहिता उच्च न्यायालयों पर लागू कर दी गयी।

अपनी द्वितीय रिपोर्ट में आयोग ने दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता को संहिताबद्ध करने की सिफ़ारिश की।यह सुझाव भी दिया कि हिंदुओें और मुसलमानों के वैयक्तिक कानून को स्पर्श करना बुद्धिमत्तापूर्ण न होगा।

इस आयोग का कार्यकाल केवल तीन वर्ष रहा।

तृतीय विधि आयोग (Third Law Commission)

तीसरे भारतीय विधि आयोग का गठन 2 दिसंबर, 1861 ई. में जान रामिली की ही अध्यक्षता में हुआ। और नियुक्ति का आधार द्वितीय विधि आयोग द्वारा तय समय सीमा में अपने कार्य को पूरा न करना माना गया था।
इसके सम्मुख मुख्य समस्या थी मौलिक दीवानी विधि के संग्रह का प्रारूप बनाना। तृतीय विधि आयोग की नियुक्ति भारतीय विधि के संहिताकरण की ओर प्रथम पद था।

आयोग ने कुल सात रिपोर्टें दीं-

प्रथम रिपोर्ट ने आगे चलकर भारतीय दाय विधि 1865 का रूप लिया।

द्वितीय रिपोर्ट में अनुबंध विधि का प्रारूप था।

तृतीय में भारतीय परक्राम्यकरण विधि का प्रारूप।

चतुर्थ में विशिष्ट अनुतोष विधि का प्रारूप।

पंचम में भारतीय साक्ष्य विधि का प्रारूप।

षष्ठ में संपत्ति हस्तांतरण विधि का प्रारूप प्रस्तुत किया गया था।

सप्तम एवं अंतिम रिपोर्ट आपराधिक संहिता के संशोधन के विषय में थी।

आपका मुख्य काम भारत के लिए सैद्धान्तिकी दीवानी विधि को अंग्रेजी विधि के आधार पर तैयार करना था। आयोग के सुझावों एवं रिपोर्टों के आधार पर निम्नलिखित मुख्य अधिनियम पास किए गए थे-

दि रेलिजस एंडाउमेंट्स ऐक्ट 1863
भारत कंपनी अधिनियम 1866
दि जनरल क्लाजेज एक्ट 1868
विवाह विच्छेद अधिनियम 1869
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 उपर्युक्त सभी अधिनियम एच.एस. मैन तथा जे.एफ. स्टीफेन के कार्यकाल में पास हुए थे। स्टीफेन के बाद लार्ड हाय हाउस विधि सदस्य नियुक्त हुए थे। इनके कार्यकाल में विशिष्ट अनुताप अधिनियम 1877 (Specifie Rcl Cf At) बना था। इन्हीं के कार्यकाल में निम्नलिखित सैद्धांतिक विधियों को संहिताबद्ध करने का सुझाव रखा गया था-
न्यास विधि (Trust)

सुख भोगविधि (Eascments)

जलोढ़ और बाढ़ से संबंधित विधि (Alluvion and Diuvition)

मालिक और नौकर से संबंधित विधि

परक्राम्य विलेख (Negotiable Instrument) से संबंधित विधि

अचल संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित विधि।

चतुर्थ विधि आयोग (Fourth Law Commission)

ब्रिटिश भारत में ‘चतुर्थ विधि आयोग’ की स्थापना 11 फरवरी, 1879 को की गई।

इस आयोग में तीन सदस्य थे।

आयोग का मुख्य कार्य तृतीय विधि आयोग द्वारा प्रस्तावित विधियों की जाँच करना तथा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।

आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप भारतीय विधान मंडल ने निम्नलिखित विधियों को पास किया था-

परक्राम्य विलेख अधिनियम, 1881
प्रोबेट एंड एडमिनिस्ट्रेशन ऐक्ट 1881
न्याय अधिनियम, 1882
संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम1882
सुखाधिकार अधिनियम 1882

1912 ई. में चार ऐक्ट पास किए गए थे-

सहकारी समिति अधिनियम
पागलपन (Linuty) अधिनियम
भविष्य बीमा समिति अधिनियम
भारतीय जीवन बीमा कंपनी अधिनियम

चतुर्थ विधि आयोग की समाप्ति के साथ ही ब्रिटिश काल में विधि आयोगों द्वारा संहिताकरण का युग समाप्त हो गया।

शेष काल (14 अगस्त, 1947) तक में विधायन कार्य मुख्य रूप से भारत सरकार के विधायी विभाग द्वारा किया गया।

स्वतंत्र भारत में 19 नवंबर, 1954 ई. को लोकसभा में एक गैर-सरकारी प्रस्ताव के अंतर्गत एक विधि-आयोग बनाने की सिफारिश की,

सरकार द्वारा इसे स्वीकार करते हुए 5 अगस्त, 1955 ई. को तात्कालिक विधि मंत्री सी.सी. विश्वास ने लोकसभा में विधि आयोग की नियुक्ति की घोषणा की थी।

इस आयोग को पंचम विधि आयोग कहा जाता है।

श्री मोतीलाल चिमणलाल सीतलवाड़ इसके चेयरमैन थे और इसमें 11 सदस्य थे।

इसके समक्ष दो मुख्य कार्य रखे गए।

एक तो न्याय शासन का सर्वतोमुखी पुनरवलोकन और उसमें सुधार हेतु आवश्यक सुझाव,

दूसरा प्रमुख केंद्रीय विधियों का परीक्षण कर उन्हें आधुनिक अवस्था में उपयुक्त बनाने के लिए आवश्यक संशोधन प्रस्तुत करना।

भारतीय विधि आयोग, एक गैर-सांविधिक निकाय और गैर वैधानिक निकाय है।

यह भारत सरकार के आदेश से गठित एक कार्यकारी निकाय है।

इसका प्रमुख कार्य है, कानूनी सुधारों हेतु कार्य करना।

22 वां विधि आयोग (22nd Law Commission)

देश के 22वें विधि आयोग के गठन हेतु केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने 19 फरवरी, 2020 को अनुमति प्रदान कर दी है। इसका कार्यकाल भारत के राजपत्र में गठन के आदेश के प्रकाशन की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिए होगा। इस संबंध में जारी एक संक्षिप्त अधिसूचना में कहा गया है-

‘‘आधिकारिक गजट में इस आदेश के प्रकाशन की तिथि से लेकर तीन साल की अवधि के लिए भारत के 22वें विधि आयोग के गठन को राष्ट्रपति की मंजूरी दी जाती है।’’
इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता वाले 21वें विधि आयोग (Law Commission) का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया था।

22वे विधि आयोग में निम्नलिखित शामिल होंगे-

(i) एक पूर्णकालिक अध्यक्ष (सामान्यता उच्चतम न्यायालय का कोई सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का कोई सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होता है।)
(ii) सदस्य सचिव सहित चार पूर्ण कालिक सदस्य।
(iii) कानूनी मामलों के विभाग के सचिव (पदेन सदस्य)।
(iv) सचिव, विधायी विभाग के सचिव (पदेन सदस्य)।
(v) अधिकतम पाँच अंशकालिक सदस्य।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की 19 फरवरी की बैठक में लिए गए निर्णय के तहत यह आयोग निम्नलिखित कार्य करेगा।

(i) यह ऐसे कानूनों की पहचान करेगा, जिनकी अब तक कोई आवश्यकता नहीं है,जो अब अप्रासंगिक है और जिन्हें तुरन्त निरस्त किया जा सकता है।

(ii) डायरेक्टिव प्रिंसीपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी के प्रकाश में मौजूदा कानूनों की जाँच करना तथा सुधार के तरीकों के सुझाव देना और नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए आवश्यक कानूनों के बारे में सुझाव देना तथा संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना।

(iii) विधि और न्याय प्रशासन से संबंधित किसी भी विषय पर विचार करना और सरकार को अपने विचारों से अवगत कराना, जो इसे विधि और न्याय मंत्रालय के माध्यम से सरकार द्वारा सान्द्रण किया गया हो।

(iv) विधि और न्याय मंत्रालय के माध्यम से सरकार द्वारा अग्रेषित किसी बाहरी देश को अनुसधान उपलब्ध कराने के अनुरोध पर विचार करना।

(v) गरीब लोगों की सेवा में कानून और कानूनी प्रक्रिया का उपयोग करने के लिए आवश्यक उपाय करना।

(vi) सामान्य महत्त्व के केन्द्रीय अधिनियमों को संशोधित करना ताकि उन्हें सरल बनाया जा सके और विसंगतियों, संदिग्धताओं और असमानता को दूर किया जा सके। अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने से पहले आयोग नोडल मंत्रालय/विभागों तथा ऐसे अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करेगा, जिन्हें आयोग इस उद्देश्य के लिए आवश्यक समझे उपर्युक्त के अतिरिक्त यह आयोग केन्द्र सरकार द्वारा इसे सौंपे गए या स्वतः संज्ञान पर विधि में अनुसंधान करने व उसमें सुधार करने, प्रक्रियाओं में देरी को समाप्त करने मामलों को तेजी से घटाने, अभियोग की लागत कम करने के लिए न्याय आपूर्ति प्रणालियों में सुधार लाने के लिए अध्ययन और अनुसंधान भी करेगा।

 

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कोरोना वायरस शब्दावली

कोरोना वायरस की शब्दावली

COVID COrona VIrus Disease | कोरोना वायरस की शब्दावली | कोविड-19 (COVID-19) | नोवेल कोरोनावायरस | आइसोलेशन | सोशल डिस्टेंसिंग | लॉकडाउन आदि

(COVID – COrona VIrus Disease)

कोविड-19 वैश्विक महामारी तेजी से फैल रही है। समय के साथ-साथ इस पर काबू पा लिया जाएगा। दुनिया भर में इस पर अनेक शोध हो रहे हैं। वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की फौज इसका अंत करने का प्रयास कर रही है। जैसे-जैसे महामारी विश्व में फैली है वैसे वैसे ही इससे संबंधित नये-नये शब्द हमारे सामने आए हैं, जिन्हें कोरोना की पारिभाषिक शब्दावली कहा जा रहा है।

दिसंबर 2019 से पहले जिन शब्दों का हमारे लिए कोई खास महत्त्व नहीं था, आज वही शब्द हमारे लिए महत्त्वपूर्ण हो गये हैं और सभी की जुबान पर चढ़ गए हैं। इनमें से कई शब्द आपस में मिलते जुलते हैं परंतु अर्थ अलग-अलग है तो कई शब्दों के अर्थ भी मिलते जुलते हैं, परंतु सूक्ष्म अंतर लिए हुए हैं। आम से लेकर खास तक सभी लोग इन सभी शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं लेकिन सभी के पास इन का अर्थ और मिलते जुलते शब्दों के अर्थ का अंतर नहीं है। आज हम ऐसे ही कुछ शब्दों के बारे में जानेंगे और उनके अर्थ और उनके अंतर को समझेंगे।

1 नोवेल कोरोनावायरस

नोवेल कोरोनावायरस कई प्रकार के वायरस का एक समूह है। ऐसे वायरस होते हैं जो मानव के श्वसन तंत्र में संक्रमण पैदा करते हैं। वायरस का उत्पत्ति स्थल चीन के हुबेई प्रांत के वुहान के शहर की सी-फूड मार्केट को माना जाता है। नये वायरस में लगभग 70 प्रतिशत जीनोम कोरोनावायरस से मिलते हैं।

कोरोना वायरस के प्रकार

कोरोनावायरस सामान्यतः निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-

  1. 229E अल्फा कोरोनावायरस (Alpha Coronavirus)
  2. NL63 अल्फा कोरोनावायरस (Alpha Coronavirus)
  3. OC43 बीटा कोरोनावायरस (Beta Coronavirus)
  4. HKU1 बीटा कोरोनावायरस (Beta Coronavirus

चार सामान्य कोरोनावायरस के अतिरिक्त निम्नलिखित दो विशिष्ट कोरोनावायरस होते हैं-

कोरोनावायरस-मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome-MERS)

कोरोनावायरस-सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS)

कोरोनावायरस मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome- MERS CoV):

पहली बार MERS Cov का संक्रमण वर्ष 2012 में सऊदी अरब में देखा गया था।

इस कारण इस वायरस को मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस (MERS CoV) कहा जाता है।

MERS Cov से प्रभावित अधिकतर रोगियों में बुखार, जुकाम और श्वसन समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस (Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS CoV):

SARS CoV से पहली बार वर्ष 2002 में दक्षिण चीन के ग्वांगडोंग प्रांत (Guangdong Province) में मानव में संक्रमण पाया गया।

SARS CoV से प्रभावित अधिकतर रोगियों में इन्फ्लूएंज़ा, बुखार, घबराहट, वात-रोग, सिरदर्द, दस्त, कंपन जैसी समस्याएँ पाई जाती हैं।

2 कोविड-19 (COVID-19)

नोवेल कोरोना वायरस से उत्पन्न बीमारी को कोविड-19 नाम दिया गया है। WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करता है।

नोवेल-कोरोना वायरस और कोविड-19 में अंतर

नोवेल कोरोनावायरस कोरोना नामक वायरस समूह का एक वायरस है। कोरोनावायरस नाम से एक नहीं अपितु अनेक वायरस है जिनमें से नोवेल कोरोनावायरस अभी तक ज्ञात वायरसों में सबसे नया वायरस है, जो सर्दी जुकाम जैसी साधारण बीमारी से लेकर मृत्यु तक का कारण बन सकता है।
कोविड-19 कोरोनावायरस से फैलने वाली बीमारी है जिससे लोगों में बुखार, खांसी, बदन दर्द, सिर दर्द, गले में खराश आदि लक्षण दिखाई देते हैं। सामान्य लगने वाले ये रोग इंसान को मौत तक पहुंचा सकते हैं।

3 महामारी : COVID COrona VIrus Disease

महामारी शब्द का प्रयोग उस रोग के लिए किया जाता है

जो एक ही समय में विश्व के अनेक देशों में फैल रहा हो।

किसी रोग के लिए उक्त परिभाषा तब दी जाती है

जब वह संक्रमणकारी बीमारी बहुत तेज गति से कई देशों में लोगों के बीच फैलती है।

एपिडेमिक

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने शुरुआत में कोरोना वायरस को एपिडेमिक घोषित किया था।

एपिडेमिक का हिंदी में अर्थ एक क्षेत्र विशेष तक ही सीमित रहने वाली बीमारी होता है।

पैनडेमिक

पैनडेमिक बीमारी की वह स्थिति है जिसमें में बीमारी का विस्तार तेजी से एक देश से दूसरे देश तक होता है।

इसका अर्थ एक ही बीमारी से दुनिया के कई देश संक्रमित हो जाएं।

इसलिए कोरोना वायरस को डब्लूएचओ ने बाद में पैनडेमिक घोषित कर दिया।

4 इंक्यूबेशन पीरियड

शरीर जब किसी वायरस के संपर्क में आता है तो तुरंत बीमारी के लक्षण दिखाई दे जाए ऐसा जरूरी नहीं है।

बीमारी के लक्षण दिखने में कुछ समय लगता है अलग-अलग बीमारियों में यह समय सीमा अलग अलग होती है।

कोरोना के मामले में यह अवधि 14 दिन की है

अतः जो समय किसी बीमारी के लक्षण दिखने में लगता है उसे इंक्यूबेशन पीरियड कहा जाता है

इनकी इंक्यूबेशन पीरियड के दौरान भी संक्रमित व्यक्ति किसी को भी संक्रमित कर सकता है।

5 फॉल्स नेगेटिव

जिस प्रकार इंक्यूबेशन पीरियड के अंतर्गत कोरोना 19 के लक्षण देखने में समय लगता है और अलग-अलग व्यक्ति में यह समय सीमा अलग अलग होती है उसी प्रकार इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि जिस व्यक्ति के पहले परीक्षण में वायरस से संक्रमित होने के बाद भी किन्ही कारणों से परीक्षण में संक्रमित होने की पुष्टि नहीं होती है अर्थात टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आ सकती है इसी स्थिति को वैज्ञानिक भाषा में फॉल्स नेगेटिव कहा जाता है ऐसा व्यक्ति भी संक्रमण फैला सकता है। फॉल्स नेगेटिव की स्थिति बहुत खतरनाक स्थिति होती है क्योंकि इसमें संक्रमित लोगों की वास्तविक स्थिति का पता नहीं चल पाता है और एक विस्फोटक स्थिति उत्पन्न हो सकती है इस स्थिति में वायरस को काबू पाना बड़ा मुश्किल हो जाता है।

6 फॉल्स पॉजिटिव

फॉल्स पॉजिटिव फॉल्स नेगेटिव के बिल्कुल विपरीत स्थिति होती है

इस स्थिति में व्यक्ति कोरोनावायरस से संक्रमित न होने पर भी टेस्ट के परिणाम में वह संक्रमित आ जाता है।

7 क्वॉरेंटीन

क्वॉरेंटाइन की स्थिति में संदिग्ध व्यक्ति घर में एक अलग कमरे में रहता है

उस कमरे में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं जाता है।

परिवार के सदस्य या अन्य किसी भी व्यक्ति से वह संदिग्ध व्यक्ति कोई संपर्क नहीं रखता है।

संदिग्ध व्यक्ति का प्रयोग किया गया स्नानघर, शौचालय, बर्तन, कपड़े तथा अन्य सामग्री के नियमित सफाई की जाती है तथा

कोई दूसरा व्यक्ति इसका प्रयोग नहीं करता है।

8 आइसोलेशन

आइसोलेशन की स्थिति में संक्रमित व्यक्ति को अलग कमरे में रखा जाता है।

परिवार के लोग या कोई भी बाहरी व्यक्ति संक्रमित व्यक्ति से संपर्क नहीं कर सकता है।

संक्रमित व्यक्ति द्वारा प्रयोग की गई वस्तुएं अन्य व्यक्तियों के द्वारा प्रयोग में नहीं लायी जाती है।

क्वॉरेंटीन और आइसोलेशन में अंतर

क्वॉरेंटाइन के अंतर्गत संदिग्ध व्यक्ति को अलग रखा जाता है जबकि आइसोलेशन के अंतर्गत संक्रमित व्यक्ति को अलग रखा जाता है।

आइसोलेशन के अंतर्गत संक्रमित व्यक्ति को घर में आइसोलेटेड किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त अस्पताल या अन्य आइसोलेशन सेंटर में भी उसे रखा जा सकता है।

सेल्फ क्वॉरेंटीन और सेल्फ आइसोलेशन

सेल्फ क्वॉरेंटीन या सेल्फआइसोलेशन वह स्थिति है जिसमें संदिग्ध या संक्रमित व्यक्ति स्वयं ही स्वयं को क्वॉरेंटाइन या आइसोलेट कर लेता है।

9 सोशल डिस्टेंसिंग

सोशल डिस्टेंसिंग का सीधा और सरल अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से कम से कम एक मीटर की दूरी अवश्य बनाए रखें यदि संभव हो तो इसका पालन घर में भी किया जाए अन्यथा सार्वजनिक स्थलों पर तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य रूप से हो तथा भीड़ इकट्ठा न की जाए सोशल डिस्टेंसिंग से वायरस की कड़ी को तोड़ा जा सकता है और महामारी पर काबू पाया जा सकता है।

10 लॉकडाउन

लॉकडाउन एक आपातकालीन प्रोटोकॉल या व्यवस्था है जो सरकार द्वारा किसी महामारी आपदा या अन्य विकट परिस्थिति में लागू की जाती है।
महामारी अधिनियम 1897 के तहत लॉकडाउन को लागू किया जाता है। जब केंद्र और राज्य सरकार को ये विश्वास हो जाए कि कोई बड़ा संकट या महामारी देश या राज्य में आ चुकी है और सभी नागरिकों की जान को इससे खतरा हो सकता है तब इसको लागू किया जाता है। महामारी अधिनियम 1897 की धारा 2 राज्य सरकार को कुछ महत्वपूर्ण शक्तियां प्रदान करती है, जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकारें बीमारी की रोकथाम के लिए अस्थायी रूप से कोई नियम बना सकती हैं।

लॉकडाउन में आवश्यक सेवाओं जैसे पुलिस, अग्निशमन, मेडिकल, पैरामेडिकल, बस टर्मिनल, बस स्टैंड, सुरक्षा सेवाएं, पोस्टल सेवाएं, पेट्रोल पंप, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, टेलीकॉम एवं इंटरनेट सेवाएं, बैंक, एटीएम, पानी, बिजली, नगर निगम, मीडिया, डिलीवरी, ग्रॉसरी और दूध आदि सेवाओं को लॉकडाउन से छूट दी गई है ताकि अव्यवस्था ना फैले।

11 पेशेंट 31

पेशेंट 31 शब्द दक्षिण कोरिया से आया है

दक्षिण कोरिया में 20 जनवरी 2020 को पहला कोरोना संक्रमित व्यक्ति मिला था।

दक्षिण कोरिया में संक्रमित पाए गए पहले 30 पेशेंट ने शुरू से ही डॉक्टर की सलाह को माना और अपने आपको आइसोलेट कर लिया

तथा संक्रमण को आगे फैलने से लगभग रोक दिया था।

दक्षिण कोरिया में कोरोनावायरस से संक्रमित 31 वां पेशेंट मिला वह एक 61 वर्षीय महिला थी

जिसने किसी तरह की कोई सावधानी नहीं बरती और ना ही खुद को आइसोलेट किया तथा सबसे से मिलती रही।

दक्षिण कोरिया सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार इस दौरान वह महिला लगभग 1160 लोगों के संपर्क में आयी।

फरवरी 2020 के दूसरे सप्ताह तक आते-आते दक्षिण कोरिया में संक्रमितों का आंकड़ा बहुत बड़ा हो चुका था।

बढ़े हुए संक्रमितों के आंकड़े की जिम्मेदारी इसी 31 वी पेशेंट को माना गया है।

इस शब्द का इस्तेमाल किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिए होता है

जिसने संक्रमित होने के बावजूद कई लोगों से सम्पर्क किया हो,

और इस वजह से वायरस को काफी फैला दिया हो।

12 हर्ड इम्युनिटी (Herd immunity) : COVID COrona VIrus Disease

हर्ड (Herd) शब्द का अर्थ होता है झुंड, समूह, यूथ आदि।

जब लोगों का एक बड़ा समूह किसी संक्रामक बीमारी से प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है, तो उसे हर्ड इम्युनिटी कहा जाता है।

ये शब्द सिर्फ संक्रामक रोगों के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रतिरोधक क्षमता का विकास किसी प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने वाली वैक्सीन के कारण हो सकता है

अथवा किसी संक्रामक बीमारी से व्यक्ति संक्रमित हो और ठीक होने के बाद उसका शरीर इम्यूनिटी विकसित कर सकता है।

COVID COrona VIrus Disease | कोरोना वायरस की शब्दावली | कोविड-19 (COVID-19) | नोवेल कोरोनावायरस | आइसोलेशन | सोशल डिस्टेंसिंग | लॉकडाउन आदि

स्रोत – newsnetwork

COVID-19 and False Negative

कोरोना वायरस शब्दावली

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