नवम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of November

नवम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of November

नवम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of November एवं सप्ताह की परीक्षोपयोगी दृष्टि से आवश्यक जानकारी आदि

नवम्बर के महत्वपूर्ण दिन

नवम्बर के महत्वपूर्ण दिन

दिनांक दिन महत्व
धनतेरस के दिन (धनवंतरी जयंती) राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस
नवम्बर के तीसरे रविवार को सड़क यातायात पीड़ितों की याद के लिए विश्व दिवस
नवम्बर के तीसरे गुरुवार को विश्व दर्शन दिवस
14 से 20 नवम्बर राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह (नैशनल बुक ट्रस्ट द्वारा)
19 से 25 नवम्बर विश्व धरोहर सप्ताह
1 नवम्बर हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व केरल के स्थापना दिवस, विश्व शाकाहारी दिवस, सेना उड्डयन दिवस
2 नवम्बर पत्रकारों के खिलाफ अपराधों के लिए प्रतिरोध को समाप्त करने करने का अंतरराष्ट्रीय दिवस
5 नवम्बर विश्व सुनामी जागरूकता दिवस
6 नवम्बर युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में शोषण और पर्यावरण को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस
7 नवम्बर राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस, शिशु सुरक्षा दिवस
8 नवम्बर अंतरराष्ट्रीय रेडियोलाॅजी दिवस
9 नवम्बर विश्व विधिक सेवा दिवस, उत्तराखंड स्थापना दिवस
10 नवम्बर शांति एवं विकास के लिए विश्व विज्ञान दिवस, सार्वजनिक परिवहन दिवस
11 नवम्बर राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्मदिन), प्रथम विश्व युद्ध समाप्ति स्मरण दिवस
12 नवम्बर अंतरराष्ट्रीय पक्षी दिवस, विश्व निमोनिया दिवस, लोक सेवा प्रसारण दिवस
13 नवम्बर विश्व दया (कृपा) दिवस
14 नवम्बर विश्व ऊर्जा संरक्षण दिवस, बाल दिवस (जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिन), विश्व मधुमेह दिवस
15 नवम्बर झारखंड स्थापना दिवस, भगवान बिरसा मुंडा जयंती
16 नवम्बर राष्ट्रीय प्रैस दिवस, अंतरराष्ट्रीय असहिष्णुता दिवस
17 नवम्बर अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस, विश्व मिर्गी रोग दिवस
19 नवम्बर विश्व शौचालय दिवस, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म दिवस, अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस, राष्ट्रीय एकता दिवस
20 नवम्बर सार्वभौमिक बाल दिवस, अफ्रीका का औद्योगिकीकरण दिवस
21 नवम्बर विश्व टेलीविजन दिवस, विश्व मत्स्यिकी दिवस, वर्ल्ड हैलो दिवस
24 नवम्बर विश्व जैव विविधता संरक्षण दिवस, एनसीसी (नैशनल कैडेट कोर) स्थापना दिवस
25 नवम्बर अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस, विश्व गैर शाकाहारी (मांसाहार) दिन
26 नवम्बर संविधान दिवस/राष्ट्रीय विधि दिवस, राष्ट्रीय दुग्ध दिवस (श्वेत क्रांति (अर्थात् दुग्ध उत्पादन) के जनक डाॅ. वर्गीज कुरियन का जन्मदिन)
29 नवम्बर फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकांत का अंतरराष्ट्रीय दिवस
30 नवम्बर राष्ट्रीय ध्वज दिवस

अक्टूबर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of October

अक्टूबर माह के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of October

अक्टूबर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of October | अक्टूबर माह के महत्त्वपूर्ण दिवस, सप्ताह की परीक्षोपयोगी दृष्टि से आवश्यक जानकारी

अक्टूबर के महत्वपूर्ण दिन

अक्टूबर के महत्वपूर्ण दिन

दिनांक दिन महत्व
धनतेरस के दिन (धनवंतरी जयंती) राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस
अक्टूबर का प्रथम सोमवार विश्व पर्यावास दिवस अधिक जानकारी
अक्टूबर का प्रथम शनिवार जर्मन एकता दिवस
October का दूसरा शनिवार विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस
अक्टूबर और मई के दूसरे शनिवार को (वर्ष में दो बार) विश्व प्रवासी पक्षी दिवस
October का द्वितीय बृहस्पतिवार विश्व दृष्टि दिवस
1 - 7 अक्टूबर वन्य प्राणी सप्ताह
4-10 अक्टूबर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष सप्ताह
6-12 अक्टूबर सूचना अधिकार सप्ताह
9-15 अक्टूबर विश्व डाक सप्ताह
29 अक्टूबर से 3 नवम्बर सतर्कता जागरूकता सप्ताह
1 अक्टूबर राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस, भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का जन्मदिवस, विश्व वृद्धजन दिवस, अंतरराष्ट्रीय काॅफी दिवस, विश्व शाकाहारी दिवस, चीन का राष्ट्रीय दिवस
2 अक्टूबर लाल बहादुर शास्त्री जयंती & महात्मा गांधी जयंती, अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस
3 अक्टूबर विश्व प्राकृतिक दिवस
4 अक्टूबर विश्व पशु कल्याण दिवस
5 अक्टूबर विश्व शिक्षक दिवस
6 अक्टूबर विश्व वन्य प्राणी दिवस
8 अक्टूबर भारतीय वायु सेना दिवस
9 अक्टूबर विश्व डाक दिवस या विश्व डाकघर दिवस
10 अक्टूबर भारतीय डाक दिवस
11 अक्टूबर लोकनायक जयप्रकाश नारायण जयंती, अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस
12 अक्टूबर विश्व आर्थराइटिस दिवस
13 अक्टूबर आपदा न्यूनीकरण हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस
14 अक्टूबर विश्व मानक दिवस
15 अक्टूबर विश्व विद्यार्थी दिवस (डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में), विश्व हाथ धुलाई दिवस, अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस, World white cane day (Guiding the blind), गर्भावस्था और शिशु हानि स्मरण दिवस
16 अक्टूबर विश्व खाद्य दिवस, नैशनल सुरक्षा गार्डस का स्थापना दिवस
17 अक्टूबर अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस
20 अक्टूबर विश्व सांख्यिकी दिवस, विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस, राष्ट्रीय एकता दिवस
21 अक्टूबर आजाद हिन्द सरकार स्थापना दिवस, विश्व आयोडीन न्यूनता निवारण दिवस, पुलिस स्मृति दिवस, जलवायु परिवर्तन का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
23 अक्टूबर Mole Day (Special Number in Chemistry)
24 अक्टूबर विश्व पोलियो दिवस, संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थापना दिवस, विश्व सूचना विकास दिवस
27 अक्टूबर ऑडियो विजुअल हेरिटेज के लिए विश्व दिवस
28 अक्टूबर अंतरराष्ट्रीय एनिमेशन दिवस
30 अक्टूबर विश्व मितव्यय दिवस
31 अक्टूबर राष्ट्रीय एकता दिवस (लौहपुरुष वल्लभभाई पटेल का जन्मदिवस), इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि, विश्व शहर दिवस, हेलोवीन दिवस

सितम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of September

सितम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of September

सितम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of September एवं सप्ताह की परीक्षोपयोगी दृष्टि से आवश्यक जानकारी आदि के साथ पूरे वर्ष के दिवस

सितम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of September

सितम्बर के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of September

तारीख (Date) महत्त्वपूर्ण दिवस (Important Day)
1 से 7 सितम्बरराष्ट्रीय पोषण सप्ताह (National Nutrition Week)
सितम्बर के अंतिम बृहस्पतिवारविश्व समुद्री दिवस (World Maritime Day)
सितम्बर का चौथा शनिवारविश्व गर्भनिरोधक दिवस (World Contraception Day)
सितम्बर का चौथा रविवारविश्व नदी दिवस (World River Day)
1 सितम्बरजीवन बीमा निगम का स्थापना दिवस (Foundation Day of Life Insurance Corporation)
2 सितम्बरविश्व नारियल दिवस (World Coconut Day)
3 सितम्बरभूमिगत जल संरक्षण दिवस (Underground Water Conservation Day), गगनचुंबी दिवस (Skyscraper Day)
5 सितम्बरशिक्षक दिवस (Teacher's Day), अंतरराष्ट्रीय डे आफ चैरिटी (International Day of Charity)
7 सितम्बरब्राजील का स्वतंत्रता दिवस (Brazilian Independence Day)
8 सितम्बरअंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस (International Literacy Day), विश्व फिजिकल थैरेपी दिवस (World Physical Therapy Day), विश्व सफाई दिवस (World Cleanup Day)
9 सितम्बरहिमालय दिवस (Himalaya Diwas)
10 सितम्बरविश्व आत्महत्या निवारण दिवस (World Suicide Prevention Day)
14 सितम्बरहिन्दी दिवस (Hindi Divas), विश्व प्राथमिक चिकित्सा दिवस (World First Aid Day), विश्व बन्धुत्व एवं क्षमायाचना दिवस (World Brotherhood and Apology Day)
15 सितम्बरअभियन्ता दिवस (Engineers Day), अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस (International Day of Democracy)
16 सितम्बरविश्व ओजोन दिवस (World Ozone Day), संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day for Conservation)
17 सितम्बरप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जन्म-दिवस (Prime Minister Narendra Modi's Birthday), विश्व रोगी सुरक्षा दिवस (World Patient Safety Day)
18 सितम्बरविश्व जल निगरानी दिवस (World Water Monitoring Day)
21 सितम्बरविश्व शांति दिवस (World Peace Day), अंतरराष्ट्रीय तटीय सफाई दिवस (International Coastal Cleanup Day), शून्य उत्सर्जन दिवस (Zero Emissions Day), विश्व अल्जाइमर दिवस (World Alzheimer Day)
22 सितम्बरविश्व गेंडा दिवस (World Rhino Day), रोज़ डे (Rose Day - Welfare of Cancer Patients)
23 सितम्बरसांकेतिक भाषाओं का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Sign Languages)
25 सितम्बरअंत्योदय दिवस (Antyodaya Day), विश्व फार्मासिस्ट दिवस (World Pharmacist Day)
26 सितम्बरसीएसआईआर स्थापना दिवस (CSIR Foundation Day), विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस (World Environmental Health Day), परमाणु हथियारों के पूर्णतः उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day for the Complete Elimination of Nuclear Weapons), बधिर दिवस (Day of the Deaf)
27 सितम्बरविश्व पर्यटन दिवस (World Tourism Day)
28 सितम्बरसरदार भगत सिंह जयंती (Sardar Bhagat Singh Birthday), विश्व रेबीज दिवस (World Rabies Day), सूचना के सर्वजन तक पहुंच के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day for Access to Public Information)
29 सितम्बरविश्व हृदय दिवस (World Heart Day)
30 सितम्बरअंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस (International Translation Day)

मुस्लिम कवियों का कृष्ण-प्रेम Muslim Kaviyon ka Krishan Prem

मुस्लिम कवियों का कृष्ण-प्रेम Muslim Kaviyon ka Krishan Prem

मुस्लिम कवियों में कृष्ण-प्रेम Muslim Kaviyon ka Krishan Prem में आसक्त रसखान, रहीम, ताज बीवी, बेगम शीरी, शेख आलम, मौलाना आजाद अजीमाबादी, हजरत नफीस, मिया वाहिद अली, अहमद खां राणा, रशीद, मिया नजीर एवं जफर अली आदि हैं। आज हम जानेंगे मुस्लिम कवियों का कृष्ण-प्रेम के बारे में।

कृष्ण के उदार, चंचल, माखनचोर, छलिया रूप का वर्णन अनगिनत कवियों ने किया है मध्यकालीन सगुण भक्ति के आराध्य देवताओं में भगवान श्री कृष्ण का स्थान सर्वोपरि है।

कन्हैया भारतीय पुराण और इतिहास दोनों में सर्वाधिक वर्णित भी हुए है जो विद्वान महाभारत को इतिहास की घटना मानते है, वे भारतीय इतिहास का सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति कृष्ण को ही ठहराते है।(1)

कान्हा के इसी रसिया, छलिया, प्रेमी तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व ने ना केवल हिन्दु जाति को अपने मोहपाश में बंद किया वरन् मुस्लिम कवियों ने भी उनकी ‘लाम’ पर मुग्ध हो कर इस्लाम खोया है।

माखनचोर पर अपना सब कुछ वारने वाले ऐसे एक नहीं अनेक कवि हुए है।

मुस्लिम कवियों का कृष्ण-प्रेम
मुस्लिम कवियों का कृष्ण-प्रेम

कृष्ण के रूप सौन्दर्य का जादू केवल राधा रानी या गोपियों के सिर चढ़ कर बोला हो ऐसा नहीं है।

रूप सौन्दर्य और प्रेम पाश तो वो मय है जिसने मुस्लिम देवियों को भी प्रेम रस से सराबोर करके मदमस्त कर दिया है।

कृष्ण की ‘लाम’(2) पर अनेक कवियों ने अपने हृदय हारे है, तो अनेक कवियों ने अपना तन-मन दोनों न्यौछावर किया है।

‘लाम’ ने उनके अनुपम सौन्दर्य में चार चाँद लगाये है तो उनकी इस ‘लाम’ ने मुसलमान कवियों का इस्लाम ही छीन लिया है भूपाल की बेगम शीरी जिन्हें कृष्ण की इस ‘लाम’ ने काफिर बना दिया।

मुस्लिम कवियों का कृष्ण-प्रेम Muslim Kaviyon ka Krishan Prem : काफिर बनने की कहानी सुनते है उन्हीं की जुबानी

‘‘काफिर किया मुझको तिरी इस जुल्फ ने काफिर
इस ‘लाम’ ने खोया तिरे, इस्लाम हमारा’’(3)

कृष्ण का रूप माधुर्य शीरी को ऐसा रास आया की वो उसके लिए काफिर हो गई।

ऐसी ही कृष्ण के प्रेम में पगी एक कवयित्री है ताज बेगम

ताज बेगम के बारे में परस्पर अलग-अलग मत प्राप्त होते है आपके 1595(4) में वर्तमान होने का अनुमान है।

इनकी कविताओं में पंजाबी पुट तथा पंजाबी शब्दों की बाहुल्यता को देखते हुए मिश्रबन्धु उन्हें पंजाब अथवा आसपास की स्वीकृत करते हैं।

मिश्र बंधु विनोद में ताज के कई पद भी संकलित है।

एक जनश्रुति के अनुसार ताज दिल्ली की रहने वाली मुगल शहजादी थी।(5)

स्वामी पारसनाथ सरस्वती के आलेख के अनुसार ताज का पूरा नाम ‘ताज बीवी’ था और वे बादशाह शाहजहां की अत्यंत प्रिय बेगम थी लेकिन जितना प्रेम शाहजहाँ ताज से करते थे।

उससे कहीं ज्यादा प्रेम ताज से करती थी उन्होंने लिखा है-

सुनो दिजानी मांडे दिल की कहानी तुम
दस्त ही बिकानी बदनामी भी सहूँगी मैं

देव पूजा ठानी हौ निवाज हूँ भूलानी, तजे
कलमा कुरान सारे गुननि गहूँगी मै।

सांवरा सलोना सिरताज सिर कुल्हे दिये
तेरे नेह दाग में निदाघहै दहूँगी मै

नंद के फरजंद! कुरबान ‘ताज’ सूरत पै
हौ तो तुरकानी हिन्दुआनी है रहूँगी मै(6)

स्वामी पारसनाथ सरस्वती के ‘कल्याण’ में प्रकाशित आलेख में उक्त पद पंजाबी बाहुल्य शब्दावली युक्त प्राप्त होता है।

ताज

श्री बलदेव प्रसाद अग्रवाल के अनुसार ‘ताज’ करौली निवासी थी।

श्री अग्रवाल के अनुसार ताज नहा धोकर मंदिर में भगवान के नित्य दर्शन के पश्चात ही भोजन ग्रहण करती थी।

एक दिन वैष्णवों ने उन्हें मुसलमान होने के कारण विधर्मी मान, मंदिर में दर्शन करने से रोक दिया इससे ताज उस दिन निराहार रह मंदिर के आंगन में ही बैठी रही और कृष्ण के नाम का जाप करती रही।

जब रात हो गई तब ठाकुर जी स्वयं मनुष्य के रूप में, भोजन का थाल लेकर पधारे और कहने लगे तुझे आज थोड़ा सा भी प्रसाद नहीं मिला, ले अब खा।

कल प्रातः काल जब वैष्णव आवें तो उनसे कहना कि तुम लोगों ने मुझे कल ठाकुर जी के दर्शन और प्रसाद का सौभाग्य नहीं दिया।

इससे रात को ठाकुर जी स्वयं मुझे प्रसाद दे गये है और तुम लोगों के लिए संदेश भी दे गये हैं कि ताज को परम वैष्णव समझो।

इसके दर्शन और प्रसाद ग्रहण करने में रुकावट मत डालो।

प्रातःकाल जब वैष्णव आये तब ताज ने सारी घटना कह सुनाई ताज के सामने भोजन का थाल देखकर अत्यन्त चकित हुए वे सभी वैष्णव ताज के पैरों पर गिरकर क्षमा प्रार्थना करने लगे।

तब से ताज मंदिर में पहले दर्शन करती तथा सारे वैष्णव उसके बाद में दर्शन करते।(7)

‘दस्त की बिकानी, बदनामी भी सहूंगी मैं’

‘दस्त की बिकानी, बदनामी भी सहूंगी मैं’ कि घोषणा करने वाली ताज की तुलना मीरा से सहज ही की जा सकती है।

मीरा ने भी ‘लोक-लाज खोई’ कह कर तात्कालिक समाज की मानसिकता को उजागर किया है।

मीरां और ताज दोनों की कन्हैया की प्रेम दीवानी है।

एक ने लोक लाज खोई है तो दुसरी बदनामी सहने को तैयार है परन्तु मीरा को जहां अपनो से प्रताड़ित होना पड़ा है वहीं ताज को पीड़ा देने वाला सारा समाज है।

इसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल है।

मीरा की पीड़ा शायद इस कारण अधिक है क्योंकि उनको पीड़ा पहुँचाने का काम करने वाले उनके परिवार के ही लोग है।

इसलिए ये कष्ट उनके लिए भारी मानसिक आघात लिये हुए है।

मीरां को केवल परिजनों से ही संघर्ष करना पड़ा परन्तु ताज का संघर्ष मीरां से व्यापक है।

क्योंकि उसे तो घर और बाहर दोनों से संघर्ष करना पड़ा है।

तात्कालिक समाज में जब हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य अपनी चरम सीमा पर था उस समय इस तरह से किसी अन्य धर्म की उपासना करना वास्तव में अंगारों पर चलना था।

परिवार में परिजनों का विरोध और ताने सहना बाहर समाज के कटाक्ष और उपेक्षा का शिकार होना एक स्त्री के लिए कितना भयावह हो सकता है।

उसे तो केवल उसे भोगने वाली वो औरत ही बता सकती है।

कन्हैया के छैल छबीले रूप

ताज के पदों को पढ़ कहीं भी ऐसा आभाष नहीं होता कि उस सामाजिक, धार्मिक, मानसिक प्रताड़ता का रजकणांश भी विपरीत प्रभाव हुआ है।

हाँ ये जरुर कहा जा सकता है कि इस प्रताड़ना से उनका कान्हा के प्रति अनुराग और बढ़ता गया तथा काव्य में निखार आता गया है।

कन्हैया के छैल छबीले रूप पर अपना सब कुछ कुरबान करने वाली ताज उन्हें ही अपना साहब मानती है-
छैल जो छबीला सब रंग में रंगीला बड़ा
चित का अड़ीला सब देवताओं में न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक मोती सेत सो है, कान
कुण्डल मनमोहे, मुकुट सीस धारा है।।
दुष्ट जन मारे, संत जन रखवारे ‘ताज’
चित हितवारे प्रेम प्रीतिकार वारा है।
नंन्दजू को प्यारा, जिन कंस को पछारा
वृन्दावन वारा कृष्ण साहेब हमारा है।।

 

ताज के हृदय मे अपने बांके छैल छबीले कृष्ण कन्हैया के लिए कितनी आस्था है।

ये उनके पदो से सहज ही सामने आत है।

अपने प्राण प्यारे नंद दुलारे कृष्ण कन्हैया के प्रेम में बुत परस्ती भी करने को तैयार है।

चित का अड़ीला उनका गोपाल सब देवताओं में न्यारा है जिसके लिए ये मुगलानी हिन्दुआनी हो गई थी।

‘बदनामी भी सहूंगी मैं’ कि घोषणा करने वाली ताज ने वास्तव में कितने कष्ट सहे होंगे इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।

मुस्लिम कवियों के राधा-कृष्ण, सीता राम आदि के प्रति प्रेम से उन्हें किन कष्टों को सहन करना पड़ा होता।

इस बात का अनुमान आधुनिक रसखान (जिनका वास्तविक नाम ‘रशीद’ लुप्त हो गया जिनके नाम पर रायबरेली में मार्ग है) के कवि एवं लेखक पुत्र इफ्तिखार अहमद खां ‘राना’ से लेखक आलोचक डाॅ. रामप्रसाद मिश्र की बातचीत से लगाया जा सकता है।

‘राजा’ के अनुसार- उन्हें राम तुलसी प्रेमी होने के कारण कठिनाई होती है। फिर भी रहीम, रसखान, ताज बेगम, नजीर अकबराबादी इत्यादी की परम्परा जीवंत है।(8)

राधा के वल्लभ

जगत के खेवनहार श्रीहरि ने पापी से पापी पर भी अपनी कृपा की है और उन्हें इस संसार सागर से उबारा राधा के वल्लभ ताज के भी वल्लभ प्राण प्यारे प्रियतम हो गये है जो उनको इस संसार की मझधार से पार लगाने वाले है-

ध्रुव से, प्रहलाद, गज, ग्राह से अहिल्या देखि,
सौरी और गीध थौ विभीषन जिन तारे हैं।

पापी अजामील, सूर तुलसी रैदास कहूँ,
नानक, मलूक, ‘ताज’ हरिही के प्यारे हैं।

धनी, नामदेव, दादु सदना कसाई जानि,
गनिका, कबीर, मीरां सेन उर धारे हैं।

जगत की जीवन जहान बीच नाम सुन्यौ,
राधा के वल्लभ, कृष्ण, वल्लभ हमारे हैं।(9)

शेख की कविताओं में भावों की उत्कृष्टता

ताज कृष्ण प्रेम में काफिर होने वाली पहली या आखिरी मुस्लिम औरत नहीं इनके अलावा शेख नामक रंगरेजिन भी है जो कृष्ण की भक्त थी।

ये आलम की पत्नी थी और कपड़े रंगने का काम किया करती थी।

आलम पहले ब्रह्मण थे परन्तु बाद में शेख से प्रेम होने के कारण मुस्लिम हो गये।

हुआ यूं की एक बार आलम ने अपनी पगड़ी शेख को रंगने के लिए दी तो उस पगड़ी के एक छोर मंे एक कागज का टुकड़ा बंधा हुआ था।

जिसमें दोहे का एक चरण लिखा हुआ था शेख ने उसी कागज पर दोहे को पूरा कर दिया और कागज वैसी ही वापिस बांध दिया और रंगी हुई पगड़ी आलम को दे दी।

अपने दोहे की पूर्ति देखकर आलम रंगरेजिन शेख की कला पर मोहित हो गया और दोनों में प्रेम हो गया फलस्वरूप आलम ने इस्लाम कबूल कर लिया शेख और आलम दोनों मिलकर कविताएं करते थे।

 

शेख की कविताओं में भावों की उत्कृष्टता विद्यमान है।

राधारानी जो सौन्दर्य वर्णन शेख ने किया है, उस उत्कृष्टता तक पहुंचने में बड़े बड़े कवि पीछे छूट गये है।

शेख उस अलौकिक अनुपम और शब्दातीत सौन्दर्य का जो शब्द चित्र रचा है वह कदाचित किसी साधारण कवि के वश कि बात नहीं है-

सनिचित चाहे जाकी किंकिनी की झंकार
करत कलासी सोई गति जु विदेह की

शेख भनि आजू है सुफेरि नही काल्ह जैसी
निकसी है राधे की निकाई निधि नेह की

फूल की सी आभा सब सोभा ले सकेलि धरी
फलि ऐहै लाल भूलि जैसे सुधि गेह की

कोटि कवि पचै तऊ बारनिन पावै कवि
बेसरि उतारे छवि बेसरि बेह की(10)

श्रीहरि से सहायता की गुहार

ताज कि तरह ही शेख को भी अपने बंशी बजैया, रास रचैया पार लगैया-कृष्ण कन्हैया पर अटूट विश्वास है कवयित्री श्रीहरि से सहायता की गुहार करती है-

‘सीता सत रखवारे तारा हूँ के गुनतारे
तेरे हित गौतम के तिरियाऊ तरी है

हौ हूं दीनानाथ हौ अनाथ पति साथ बिनु
सुनत अनाधिनि के नाथ सुधि करी है

डोले सुर आसन दुसासन की ओर देखि।
अंचल के ऐंचत उधारी और धरी है।

एक तै अनेक अंग धाई संत सारी संग
तरल तरंग भरी गंग सी है ढरी है।’(11)

सनातन धर्म के प्रति समर्पण : मुस्लिम कवियों का कृष्ण-प्रेम Muslim Kaviyon ka Krishan Prem

इस्लाम में अवतारवाद में विश्वास नहीं किया जाता है।

लेकिन उक्त पद में शेख ने कृष्ण को अनेक रूप स्वीकार किये है।

यहां ईश्वर के अनेक रूपों को स्वीकार करने यह सिद्ध हो जाता है कि शेख भले ही मुस्लिम हो लेकिन पूरी तरह से अपने आप को भारतीय मान्यताओं तथा सनातन धर्म के प्रति समर्पित कर लिया है।

चूंकि आलम और शेख रीतिकालीन कवि है इसलिए उनके काव्य पर रीतिकालीन छाप स्पष्ट देखी जा सकती है शेख के मुक्तकों में राधाकृष्ण के प्रेम और विरह के चित्र अधिक प्राप्त होते है।

इन्होंने स्थान-स्थान पर राधा के सौन्दर्य, उनके नाज-नखरे तथा वियोग की स्थिति को चित्रित किया है।

शेख का वर्णन बड़ा ही उम्दा किस्म का है।

 

काव्य के स्थान के अनुसार देखे तो निश्चित रूप से उन्हें उच्च स्थान दिया जा सकता है।

जो कदाचित् कुछ भक्तिकालीन कवियों को भी दुर्लभ है।

ऋतु वर्णन में भी शेख का काव्य उच्च कोटी का है-

‘‘घोर घटा उमड़ी चहूं ओर ते ऐसे में मान न की जे अजानी
तू तो विलम्बति है बिन काज बड़े बूंदन आवत पानी

सेख कहै उठि मोहन पै चलि को सब रात कहोगी कहानी
देखुरी ये ललिता सुलता अब तेऊ तमालन सो लपटानी’’(12)

उच्च कोटी के कवि शेख

शेख की तरह आलम भी उच्च कोटी के कवि थे कविताओं में प्रायः कृष्ण के हर रूप का वर्णन बड़ा ही हृदयहारी बन पड़ा है।

कृष्ण को साधने वाले अनेक कवियों में मौलाना आजाद आजीमाबादी का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।

कृष्ण भक्ति से सराबोर इस कवि को कृष्ण से आगे कृष्ण से अलग कुछ सूझता ही नहीं।

इन्हें कृष्ण की बांसुरी में वो आग नजर आती है जो सारे जहां को रोशन किये हुए है।

ये प्रेम की ठण्डी आग है जिसमें कवि भी जल रहा है।

कन्हैया तो उनके हृदय में बसा हुआ है उसे खोजने के लिए काशी मथुरा जाने की दरकार नहीं है-

‘बजाने वाले के है करिश्में
जो आप है महज बेखुदी में

न राग में है न रंग में है
जो आग है उसकी बांसुरी में है

हुआ न गाफिल रही तलासी
गया न मथुरा गया न काशी

मै क्यों कही की खाक उड़ता
मेरा कन्हैया तो है मुझी में’(13)

रसखान : मुस्लिम कवियों का कृष्ण-प्रेम Muslim Kaviyon ka Krishan Prem

रसखान वास्तव में रस की खान है।

कृष्ण की जैसी भक्ति और काव्य रचना रसखान ने की है वह ऊँचाई विरले कवि ही प्राप्त कर सके हैं।

‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता’ के अनुसार रसखान दिल्ली में निवास करते थे।

उनकी प्रीति एक साहुकार के पुत्र से थी।

उनकी यह आसक्ति वैष्णव भक्तों के प्रोत्साहन से कृष्ण भक्ति में परिवर्तित हो गई।

वैष्णवों द्वारा प्रदत कृष्ण चित्र लिये ये दिल्ली से ब्रज प्रदेश पहुंचे।

कृष्ण दर्शन की लालसा में अनेक मंदिरों की खाक छानते रहे।

अंततः गोविन्द कुण्ड में श्री नाथ जी के मंदिर में भक्त वत्सल भगवान कृष्ण ने इन्हें दर्शन दिये।

तदुपरान्त स्वामी विट्ठलनाथ जी ने अपने मंदिर में रसखान को बुलाया और वहीं वे कृष्ण लीला गान करते हुऐ कृष्ण भक्ति में निष्णात हुए।

इनके जन्म और मृत्यु के बारे में पर्याप्त मतभेद विद्यमान है।

रसखान उस ‘अनिवार’ प्रेम पंथ के यात्री है जो कमल तन्तु से भी कोमल और तलवार की धार से भी तेज जितना ही सीधा उतना ही टेढ़ा है।

 

‘‘कमल तन्तु सौ क्षीणहर कठिन खड़ग को धार
अति सूधो टेढो बहुर प्रेम पंथ अनिवार’’(15)

रसखान प्रेम का सुन्दर विस्तृत चित्रण करते हुए कहते है कि प्रेम वह नहीं है।

जिसमें दो मन मिलते है प्रेम वह है जिसमें दो शरीर एक हो जाए अर्थात् अपना शरीर अपना न होकर कृष्ण का हो जाये और कृष्ण का शरीर अपना हो जाये।

यही प्रेम की परिभाषा रसखान ने दी है-

‘‘दो मन इक होते सुन्यो पै वह प्रेम न आहि
होई जबै इै तन इक सोई प्रेम कहाइ।’’(16)

रसखान का अद्वैत प्रेम

इस प्रकार रसखान ने प्रेम अद्वैत को स्वीकारा है।

जिसमें दो का कोई स्थान नहीं है। आपका कृष्ण प्रेम जगत विख्यात है कृष्ण के प्रेम में रसखान वो सब कुछ बनना चाहते है जिसका संबंध किसी ना किसी रूप में कृष्ण से रहा है।

रसखान का प्रेम निश्छल है निर्विकार है।

जिसमें केवल विशुद्ध अपनापा है लाग लपेट के लिए कोई स्थान नहीं है।

‘‘मानुष हौ तो वही रसखानि, बसौ ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन।’’लिखकर रसखान ने अपनी इच्छाओं को जग जाहिर किया है।

जीवन के प्रत्येक रूप में वे श्रीकृष्ण का सामीप्य ही चाहते है।

गोपी बनकर गायों को वन-वन चराना चाहते है।

कृष्ण की मोरपंख का मुकुट और गुंज की माला धारण करना चाहते है।

वो श्री कृष्ण का हर स्वांग कर लेना चाहते है-

‘‘मोर पंख सिर उपर राखिहौ, गुंज की माला गरे पहिरौंगी
ओढि पीताम्बर ले लकुटी बन गोधन ग्वारिन संग फिरोगी

भाव तो ओहि मेरो रसखानि, सो तेरे किये स्वांग करोंगी
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरान धरौंगी।’’(17)

मौलाना आजाद अजीमाबादी

कृष्ण की जिस बांसुरी में मौलाना आजाद अजीमाबादी को आग नजर आ रही थी।

वही बांसुरी रसखान की गोपियों के लिए सब कामों में बाधा पहुंचाती है।

कही वह सौतन की तरह जी सांसत में लाती है तो गोपिका जल का मटका तक नहीं भर पाती है।

उनके मन में यही होता है कि सारे बांस कट जाये ना रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी

‘‘जल की न घट गरै मग की न पग धरें
घर की न कछु करै बैठी भरै साँसुरी
एकै सुनि लौट गई एकै लोट पोट भई
एक निके दृगन निकसि आये आँसुरी
कहै रसनायक सो ब्रज वनितानि विधि
बधिक कहाये हाय हुई कुल होंसुरी
करिये उपाय बांस डारिये कटाय’’(18)

रसखान का साहित्यिक पक्ष

नहि उपजैगो बाँस नाहि बाजै फेरि बाँसुरी।

रसखान का साहित्यिक पक्ष बहुत ऊँचा है तो इनकी भक्ति भी उच्च कोटि की है।

यकीनन हिन्दी साहित्य का कृष्ण भक्ति काव्य रसखान के बिना अधूरा है।

कृष्ण की बाल लीला वर्णन की तुलना सूर के बाललीला वर्णन से सहज ही की जा सकती है-

धूरी भरे अति सोहत स्याम जू
तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी

खेलत खात फिरे अंगना पग
पैंजनियां कटि पीरी कछौटी

बा छवि को ‘रसखानि’ विलोकति
बारत काम कला निज कोटी

काग के भाग बड़े सजनी
हरि हाथ सौ ले गयो माखन रोटी(19)

धूल से भरे रसखान के बालकृष्ण किसी भी तरह से सूर के बाल गोपाल से कम नहीं है।

सिर पर बनी सुन्दर चोटी बताती है कि सूर के कृष्ण चोटी बढाने के लिए बार-बार दूध पीते है।

अपनी मैया से बार-बार पूछते है- ‘मैया कबहूं बढेगी चोटी पर अजहूं है छोटी’

यह चोटी रसखान तक आते-आते बड़ी हो चुकी है।

उनके सुन्दर रूप पर वे रसखान कामदेव की करोड़ो कलाएं न्यौछावर करने को तैयार है।

रहीम की भाषाशैली : मुस्लिम कवियों का कृष्ण-प्रेम Muslim Kaviyon ka Krishan Prem

‘रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून
पानी गये ना ऊबरे मोती मानस चून’’

ऐसा अमर काव्य रचने वाले अब्र्दुरहीम खानखाना बाबर के विश्वस्त साथी और अकबर के संरक्षक बैरम खां के पुत्र थे।

रहीम बहुभाषाविद् थे।

अरबी, फारसी, तुर्की, संस्कृत आदि भाषाओं पर रहीम का अच्छा अधिकार था।

रहीम को साहित्य का जितना ज्ञान था उतने ही कुशल वे सेनानायक भी थे।

उन्होंने कई युद्धों में भाग लिया और विजय प्राप्त की।

हिन्दी साहित्य की अमर निधि माने जाने वाले रहीम के दोहे आम जन में लोकोक्ति की तरह काम में लिये जाते है।

भक्ति और नीति का अमर काव्य रचने वाले रहीम ने युद्धों से समय निकाल कर साहित्य साधना की है।

कहा जाता है कि इनके पास अपार धन था दानी प्रवृत्ति होने के कारण सारा धन समाप्त हो गया।

फलस्वरूप इनका अंतिम समय बड़े कष्ट में बीता अमीरी में साथ देने वाले मित्रों ने मुँह मोड़ लिया लेकिन रहीम को इसका कोई दुःख नहीं था।

 

उन्हें तो बस अपने कृष्ण कन्हैा पर भरोसा था-

‘रहीम को ऊ का करै, ज्वारी चोर लबार
जा के राखनहार है माखन चाखन हार।’(20)

रहीम को जुआरी चोर से कोई भय नहीं है।

उनके रखवाले तो स्वयं माखन चोर कृष्ण है।

रहीम को चकोर रूपी मन रात दिन कृष्ण रूपी चंद्रमा को निहारता है।

उनका मन ठीक उसी तरह से कृष्ण में रम चुका है।

जैसे चकोर का मन चाँद में लगता है-

‘‘तै रहीम मन अपनो कीनो चारो चकोर
निसि बासर लाग्यो रहे कृष्ण चंद की ओर’’(21)

हजरत नफीस

हजरत नफीस को तो कन्हाई की आँखे और मुखड़ा इतना पसंद है कि बस उसे ही देखना चाहते है-

‘कन्हैया की आँखें, हिरण सी नसीली कन्हैया की शोखी, कली-सी रसीली’’

मिया वाहिद अली

मिया वाहिद अली को नंदलाल की ऐसी लगन लगी है कि वे दुनिया छोडने को उतारू है।

कृष्ण की मुस्कान, मुरली की तान, उनकी चाल कंचन की भाल धनुष जैसे सुन्दर नयनों पर वाहिद अपनी लगन लगाये रखना चाहता है-

‘‘सुन्दर सुजान पर मंद मुस्कान पर
बांसुरी की तान पर ठौरन ठगी रहे

मूरति बिसाल पर कंचन की माल पर
खजन सी चाल पर खौरन सजी रहे

भौंहे धनु मैनपर लोने जुग नैन पर
प्रेम भरे बैन पर ‘वाहिद’ पगी रहे

चंचल से तन पर साँवरे बदन पर
नंद के ललन पर लगन लगी रहे।’’(22)

मिया नजीर

आगरा के प्रसिद्ध कवि मिया नजीर का कृष्ण प्रेम बड़ा ही बेनजीर है।

मुरली की धुन ने उनको बेसुध किया।

कान्हा की बाँसुरी की धुन ऐसी है नर-नारी रिसी मुनी सब यह जयहरि जय हरि कह उठे है-

‘‘कितने तो मुरली धुन से हो गये धुनी
कितनों की खुधि बिसर गयी, जिस जिसने धुन सुनी
क्या नर से लेकर नारिया, क्यारिसी और मुनी

तब कहने वाले कह उठे, जय जय हरि हरि
ऐसी बजाई कृष्ण कन्हाइया ने बांसुरी’’(23)

मौलाना जफर अली साहब

सच्चिदानंद स्वरूप श्रीकृष्ण की महिमा, उदारता तथा रूपमाधुरी के वर्णन अगणित मुस्लमान कवियों ने भी किया है।

आधुनिक मुस्लिम कवियों ने भी अनेक ऐसे कवि हुये हैं जिनको श्रीकृष्ण के प्रति अथाह प्रेम है।

अनेक मुसलमान गायक वादक और अभिनेता बिना किसी भेदभाव के कृष्ण के पुजारी है।

पंजाब के मौलाना जफर अली साहब की आरजू भी अब सुन ले-

‘‘अगर कृष्ण की तालीम आम हो जाये
तो काम फितनगारो का तमाम हो जाये

मिट जाये ब्राह्मण और शेख का झगड़ा
जमाना दोनो घरों का गुलाम हो जाये

विदेशी की लड़ाई की छज्जी उड़ जाए
जहाँ पर तेग दुदुम का तमाम हो जाये

वतन की खाक से जर्रा बन जाए चांद
बुलंद इस कदर उसका मुकाम हो जाये

है इस तराने में बांसुरी की गूंज
खुदा करे वह मकबूल आम हो जाए’’(24)

अंततः

कृष्ण भक्ति में रमने वाले ये कवि तो कुछ उदाहरण मात्र है।

इनके अलावा ऐसे सैकड़ों कवि और कवयित्रियां है जिन्होंने कृष्ण से प्रेम किया है।

हिन्दी साहित्य के खजाने में अपना हिस्सा दान किया है।

ऐसे लेखक और कवि वर्तमान संकीर्ण और धार्मिक उन्माद के वातावरण में समन्वय स्थापित करने का काम करते है।

इन कवियों ने बिना किसी लाग लपेट के कृष्ण को अपना आराध्य माना है।

उन्मुक्त भाव से कृष्ण भक्ति करके धार्मिक सहिष्णुता का परिचय दिया है।

आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक भारतेन्दु हरिश्चंद्र का यह कथन उचित प्रतीत होता है कि- ‘‘इन मुस्लमान हरिजजन पै कोटिक हिन्दु वारियै’’

संदर्भ ग्रंथ-

(1)हिन्दी साहित्य का इतिहास, संपादक- डाॅ. नगेन्द्र, प्रकाशक-मयूर पेपर बेक्स, नोएडा
(2)‘लाम’ (ل ) उर्दू का एक अक्षर होता है। जिसकी शक्ल इस प्रकार होती है की पहले एक सीधी खड़ी लकीर खींचकर उसके नीचे के सीरे को बांये तरफ गोलाई के साथ उपर थोड़ा ले जाकर छोड़ दिया जाता है। उसकी शक्ल लगभग बालों की लटों (ل ) की जैसी हो जाती है।
(3)मुस्लिम कवियों का कृष्ण काव्य, बलदेव प्रसाद अग्रवाल, प्रकाशक- बलदेव प्रसाद अग्रवाल एंड संस अजमेर
(4)शिव सिंह सरोज के अनुसार 1652 वि., मिश्र बंधु विनोद के देवीप्रसाद द्वारा अनुमानित 1700 वि. (1643 ई.) का उल्लेख मिलता है।
(5)सानुबंध- मासिक उन्नाव, दिस. 1987 ई. के अंक में बनवारीलाल वैश्य कृत लेख ‘ताज का कृष्णानुराग’

(6)गीताप्रेस-गोरखपुर से प्रकाशित ‘कल्याण’पत्रिका का अंक भाग संख्या 28 (www.ramkumarsingh.com से प्राप्त आलेख के अनुसार)
(7)मुस्लिम कवियों का कृष्णकाव्य- बलदेव प्रसाद अग्रवाल एंड संस, अजमेर
(8)हिन्दी साहित्य का वस्तुनिष्ठ इतिहास- डाॅ. रामप्रसाद मिश्र, प्रकाशक- सतसाहित्य भंडार, नई दिल्ली।
(9)मुस्लिम कवियों का कृष्णकाव्य- बलदेव प्रसाद अग्रवाल, प्रकाशक- बलदेव प्रसाद अग्रवाल एण्ड संस, अजमेर।
(10)वही
(11)वही
(12)वही
(13)मुस्लिम कवियों की कृष्ण भक्ति- स्वामी पारसनाथ तिवाड़ी, कल्याण पत्रिका, गीताप्रेस गोरखपुर
(14)दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता
(15)रसखान रचनावली- विद्यानिवास मिश्र, प्रकाशक- वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
(16)वही
(17)वही
(18)वही
(19)वही
(20)हिन्दी साहित्य का वस्तुनिष्ठ इतिहास- डाॅ. रामप्रसाद मिश्र, सतसाहित्य भंडार, नई दिल्ली।
(21)वही
(22)स्वामी पारसनाथ सरस्वती- कल्याण पत्रिका, गीताप्रेस गोरखपुर
(23)वही
(24)वही

हाइकु (Haiku) कविता

संख्यात्मक गूढार्थक शब्द

मुसलिम कवियों का कृष्णानुराग

श्री सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के मतानुसार प्रांतीय भाषाओं और बोलियों का महत्व

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मानवाधिकार आयोग Human Rights – राज्य मानव अधिकार आयोग

राज्य मानव अधिकार आयोग – Human Rights

मानवाधिकार आयोग Human Rights | इतिहास, गठन, मुख्यालय, स्थापना, आयोग के सदस्य | राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग | Manvadhikar Aayog

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग एवं राज्य स्तर पर राज्य मानव अधिकार आयोग को स्थापित करने की व्यवस्था है।

अधिनियम के अध्याय 5 की धारा 21 से 29 तक मेंराज्य मानवाधिकार आयोग के गठन शक्तियां एवं कार्यों का विस्तृत वर्णन किया गया है।

राजस्थान की राज्य सरकार ने दिनांक 18 जनवरी 1999 को एक अधिसूचना जारी कर राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन किया, यह आयोग मार्च 2000 से क्रियाशील हो गया था।

आयोग में मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के प्रावधानों के अनुसार एक पूर्णकालिक अध्यक्ष तथा चार सदस्यों का प्रावधान है।

राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन (धारा 21) : मानवाधिकार आयोग Human Rights

(1) कोई राज्य सरकार, इस अध्याय के अधीन राज्य आयोग को प्रदत शक्तियों का प्रयोग करने के लिए और सौपे गए कृत्यों का पालन करने के लिए एक निकाय का गठन कर सकेगी जिसका नाम…………………(राज्य का नाम) मानव अधिकार आयोग होगा।

(2) राज्य आयोग ऐसी तारीख से, जो राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, निम्नलिखित से मिलकर बनेगा, अर्थात् –

(क) एक अध्यक्ष, जो किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति रहा है। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसारअध्यक्ष पद के लिए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ उच्चन्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी योग्य होंगे

(ख) एक सदस्य, जो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है. या राज्य में जिला न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है, और जिसे जिला न्यायाधीश के रूप में कम से कम सात वर्ष का अनुभव है,

(ग) एक सदस्य, जो ऐसे व्यक्तियों में से नियुक्त किया जाएगा जिन्हें मानव अधिकारों से संबंधित विषयों का ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है,

(3) एक सचिव होगा, जो राज्य आयोग का मुख्य कार्यपालक अधिकारी होगा और वह राज्य आयोग की ऐसी शक्तियों का प्रयोग है और ऐसे कृत्यों का निर्वहन करेगा, जो राज्य आयोग उसे प्रत्यायोजित करे।

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2006 के अनुसार राजस्थान में राजस्थान मानव अधिकार आयोग की सदस्य संख्या एक अध्यक्ष तथा दो पूर्णकालिक सदस्यों को मिलाकर कुल तीन सदस्य है

(4) राज्य आयोग का मुख्यालय ऐसे स्थान पर होगा जो राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे।

(5) कोई राज्य आयोग केवल संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 2 और सूची 3 में प्रगणित प्रविष्टियों में से किसी से संबंधित विषयों की बाबत मानव अधिकारों के अतिक्रमण किए जाने की जांच कर सकेगा:

परन्तु

यदि किसी ऐसे विषय के बारे में आयोग द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन सम्यक रूप से गठित किसी अन्य आयोग द्वारा पहले से ही जांच की जा रही है तो राज्य आयोग उक्त विषय के बारे में जांच नहीं करेगा।

राज्य आयोग उस तारीख से जिसको मानव अधिकारों काअतिक्रमण गठित करने वाले कार्य का किया जाना अभिकथित है एक वर्ष की समाप्ति के पश्चात किसी विषय की जाँच नहीं करेगा (अर्थात एक वर्ष से अधिक पुराने मामले की जाँच नही करेगा)।

(6) दो या दो से अधिक राज्य सरकार, राज्य आयोग के अध्यक्ष या सदस्य की सहमति से, यथास्थिति, ऐसे अध्यक्ष या सदस्य को साथ-साथ अन्य राज्य आयोग का सदस्य नियुक्त कर सकेगी यदि ऐसा अध्यक्ष या सदस्य ऐसी नियुक्ति के लिए सहमति देता है।

परन्तु उस राज्य की बाबत जिसके लिए, यथास्थिति, सामान्य अध्यक्ष या सदस्य या दोनों नियुक्त किए जाने है इस धारा के अधीन की गई प्रत्येक नियुक्ति धारा 22 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट समिति की सिफारिशें अभिप्राप्त करने के पश्चात् की जाएगी।

राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति (धारा 22) : मानवाधिकार आयोग Human Rights

(1) राज्यपाल अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करेगाः

परन्तु इस उपधारा के अधीन प्रत्येक नियुक्ति ऐसी समिति की सिफारिशें प्राप्त होने के पश्चात् की जाएगी, जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगी, अर्थात् :

(क) मुख्य मंत्री – अध्यक्ष

(ख) विधान सभा का अध्यक्ष – सदस्य

(ग) उस राज्य का गृहमंत्री – सदस्य

(घ) विधानसभा में विपक्ष का नेता – सदस्य :

( जहां किसी राज्य में विधान परिषद है, वहा उस परिषद् का सभापति और उस परिषद में विपक्ष का नेता भी समिति के सदस्य होंगे )

शपथ-  राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को शपथ राज्य उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश दिलाता है

आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों का पद त्याग या पदच्युति

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 अध्याय 5 की धारा 23 में राज्य आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को पदच्युत करने से संबंधित उपबंध किए गए हैं-

विशेषराज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है परंतु उन्हें पद से हटाने की शक्ति केवल राष्ट्रपति के पास होती है।

(1) अध्यक्ष या कोई सदस्य राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।

(1क) उपधारा (2) के अनुसार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर पदच्युतकियाजा सकता है-

सिद्ध कदाचार/दुर्व्यवहार।

अक्षमता के आधार पर।

उक्त प्रकार से पदच्युत किये जाने से पूर्व राष्ट्रपति द्वारा-

उच्चतम न्यायालय को निर्देशित किया जाएगा।

विहित प्रक्रिया द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा मामले की जांच की जाएगी।

जांच की रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।

जांच रिपोर्ट में अध्यक्ष या सदस्य के विरुद्ध सिद्ध कदाचार/दुर्व्यवहार अथवा अक्षमता सिद्ध होने पर राष्ट्रपति उन्हें पदच्युत कर सकता है।

(2) उपधारा (1क) के अनुसार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर पदच्युतकियाजा सकता है-

दिवालिया घोषित कर दिया गया हो।

किसी लाभ के पद पर हो विकृत चित्त हो या सक्षम न्यायालय द्वारा इस प्रकार घोषित कर दिया गया हो।

मानसिक और शारीरिक दुर्बलता के कारण पद पर बने रहने के अयोग्य हो गया हो।

किसी ऐसे अपराध के लिए जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक अपराध के लिए जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक पतन वाला हो दोष सिद्ध हो गया हो और उसे कारागार की सजा दे दी गयी हो।

राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि (धारा 24) : मानवाधिकार आयोग Human Rights

(1) अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया कोई व्यक्ति, अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक या सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक, इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करेगा। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले होतक का होगा तथा वह 5 वर्ष के लिए पुनः नियुक्ति का पात्र भी होगा

(2) सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया कोई व्यक्ति, अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक अपना पद धारण करेगा तथा पांच वर्ष की और अवधि के लिए पुनर्नियुक्ति का पात्र होगा। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले होतक का होगा

परन्तु यह कि कोई भी सदस्य सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त (पूर्ण) करने के बाद पद को धारण नहीं करेगा।

(3) अध्यक्ष या कोई सदस्य, अपने पद पर न रह जाने पर, किसी राज्य की सरकार के अधीन या भारत सरकार के अधीन किसी भी और नियोजन का पात्र नहीं होगा।

कतिपय परिस्थितियों में सदस्य का अध्यक्ष के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन

अध्यक्ष की मृत्यु, पदत्याग या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्ति की दशा में राज्यपाल, अधिसूचना द्वारा, सदस्यों में से किसी एक सदस्य को अध्यक्ष के रूप में तब तक कार्य करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा जब तक ऐसी रिक्ति को भरने के लिए नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो जाती।

जब अध्यक्ष छुट्टी पर अनुपस्थिति के कारण या अन्य कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तब सदस्यों में से एक ऐसा सदस्य, जिसे राज्यपाल, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त प्राधिकृत करे, उस तारीख तक अध्यक्ष के कृत्यों का निर्वहन करेगा जिस तारीख को अध्यक्ष अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है।

राज्य आयोगों के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के निबन्धन और शर्ते (धारा 26) : मानवाधिकार आयोग Human Rights

अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शतें ऐसी होंगी, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाएं:

परन्तु अध्यक्ष किसी सदस्य के वेतन और भत्तों में तथा सेवा के अन्य निबंधनों और शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

राज्य आयोग के अधिकारी और अन्य कर्मचारिवृन्द (धारा 27)

(1) राज्य सरकार, आयोग को-

(क) राज्य सरकार के सचिव की पंक्ति से अनिम्न पक्ति का एक अधिकारी, जो राज्य आयोग का सचिव होगा।

(ख) ऐसे अधिकारी के अधीन, जो पुलिस महानिरीक्षक की पक्ति से नीचे का न हो, ऐसे पुलिस और अन्वेषण कर्मचारिवृन्द तथा ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारिवृन्द, जो राज्य आयोग के कृत्यों का दक्षतापूर्ण पालन करने के लिए आवश्यक हो, उपलब्ध कराएगी।

(2) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए जाए. राज्य आयोग, ऐसे अन्य प्रशासनिक, तकनीकी और वैज्ञानिक कर्मचारिवृन्द नियुक्त कर सकेगा, जो यह आवश्यक समझे।

(3) उपधारा (2) के अधीन नियुक्त अधिकारियों और अन्य कर्मचारिवृन्द के वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तें ऐसी होगी, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए।

राज्य आयोग की वार्षिक और विशेष रिपोर्ट (धारा 28) : मानवाधिकार आयोग Human Rights

(1) राज्य आयोग, राज्य सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा

(2) राज्य सरकार, राज्य आयोग की वार्षिक और विशेष रिपोर्ट को

राज्य आयोग की सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए

प्रस्तावित कार्रवाई के ज्ञापन सहित और सिफारिशों की अस्वीकृति के कारणों सहित,

यदि कोई हो, जहां राज्य विधान-मंडल दो सदनों से मिलकर बनता है

वहां प्रत्येक सदन के समक्ष,

या जहां ऐसा विधान-मंडल एक सदन से मिलकर बनता है वहां उस सदन के समक्ष, रखवाएगी।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से संबंधित कतिपय उपबंधों का राज्य आयोगों को लागू होना (धारा 29)

धारा 9, धारा 10, धारा 12, धारा 13, धारा 14, धारा 15, धारा 16, धारा 17 और धारा 18 के उपबंध राज्य आयोग को लागू होंगे और वे निम्नलिखित उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे, अर्थात्

(क) “आयोग’ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे “राज्य आयोग के प्रति निर्देश हैं,

(ख) धारा 10 की उपधारा (3) में, “महासचिव” शब्द के स्थान पर “सचिव’ शब्द रखा जाएगा.

(ग) धारा 12 के खंड (च) का लोप किया जाएगा,

(घ) धारा 17 के खंड (6) में से “केन्द्रीय सरकार या किसी” शब्दों का लोप किया जाएगा।

पूछे जाने वाले प्रश्न : मानवाधिकार आयोग Human Rights

राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग:

राजस्थान में मानव अधिकारों के प्रभावी संरक्षण के लिए किए जा रहे कार्यों का बोध राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग के क्रिया-कलापों से होता है।

इसका गठन मार्च 1999 में हुआ था मार्च 2000 में आयोग क्रियाशील हुआ।

मानव अधिकार क्या हैं? 

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 2(घ) के अनुसार ‘‘मानवअधिकारों’’ से तात्पर्य संविधान द्वारा प्रत्याभूत अथवा अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं में अन्‍तर्निहित उन अधिकारों से है जो जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा से आशय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 16 दिसम्बर,1966 को अभिस्वीकृत, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्रसंविदा से है।

राज्य आयोग के कार्य एवं उसमें निहित शक्तियां : राज्य मानव अधिकार आयोग

आयोग निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का निष्पादन करेगा, अर्थात्-

(क) स्वप्रेरणा से या किसी पीड़ित या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा उसे प्रस्तुत याचिका पर

(1) मानव अधिकारों के उल्लंघन या उसके अपशमन की, या

(2) किसी लोक सेवक द्वारा उसउल्लंघन को रोकने में उपेक्षा की शिकायत की जांच करेगा,

(ख) किसी न्यायालय के समक्ष लम्बित मानव अधिकारों के उल्लंघन के किसी अभिकथन वाली किसी कार्यवाही में उस न्यायालय की अनुमति से हस्तक्षेप करेगा,

(ग) राज्य सरकार को सूचना देने के अध्यधीन,

राज्य सरकार के नियन्त्रणाधीन किसी जेल या किसी अन्य संस्था का,

जहॉं पर उपचार,सुधार या संरक्षण के प्रयोजनार्थ व्यक्तियों को निरूद्ध किया जाता है या

रखा जाता है निवास करने वालों की जीवन दशाओं का अध्ययन करने एवं

उस पर सिफारिशें करने के लिए निरीक्षण करेगा,

(घ) मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी कानून द्वारा या उसके अधीन प्रावहित सुरक्षाओं का पुनर्वालोकन करेगा तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिशें करेगा,

(ड) उन कारकों का, जिसमें उग्रवाद के कृत्य भी हैं,

मानव अधिकारों के उपयोग में बाधा डालते हैं,

पुनरावलोकन करेगा एवं उपयुक्त उपचारात्मक उपायों की सिफारिश करेगा,

(च) मानव अधिकारों ने क्षेत्र में अनुसंधान एवं उसे प्रोन्नत करेगा

(छ) समाज के विभिन्न खण्डों में मानव अधिकार साक्षरता का प्रसार करेगा तथा प्रकाशकों,

साधनों (मीडिया) सेमीनारों एवं अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से

इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध सुरक्षाओं के प्रति जागरूकता को विकसित करेगा,

(ज) मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठनों एव संस्थाओं के प्रयत्नों को प्रोत्साहन देगा,

(झ) ऐसे अन्य कृत्य करेगा जिन्हें वह मानव अधिकारों के संवर्धन के लिए आवश्यक समझेगा।

आयोग में निहित जांच से संबंधित शक्तियां : मानवाधिकार आयोग Human Rights

अधिनियम के अंतर्गत किसी शिकायत की जांच करते समय आयोग को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत निम्नलिखित मामलों में, सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी:-

(क) गवाहों को सम्मन जारी करके बुलाने तथा उन्हें हाजिरी हेतु बाध्य करने एवं उन्हें शपथ दिलाकर परखने के लिए,

(ख) किसी दस्तावेज का पता लगाने और उसको प्रस्तुत करने के लिए,

(ग) शपथ पत्र पर गवाही देने के लिए,

(घ) किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से किसी सरकारी अभिलेख अथवा उसकी प्रतिलिपि की मांग करने के लिए,

(ड) गवाहियों तथा दस्तावेजों की जॉंच हेतु कमीशन जारी करने के लिए,

(च) निर्धारित किए गए किसी अन्य मामले के लिए।

क्या आयोग के पास अपना अन्वेषण दल है?

जी हॉं। मानव अधिकारों के हनन से संबंधित शिकायतों की जांच करने के लिए आयोग के पास अपना अन्वेषण दल है।

अधिनियम के अंतर्गत आयोग को इस बात की भी छू प्राप्त है कि वह राज्य सरकार के किसी अधिकारी अथवा अभिकरण की सेवाओं का उपयोग कर सके।

क्या आयोग स्वायत्तशासी निकाय है? 

जी हॉं। आयोग की स्वायतत्ता इसके सदस्यों की नियुक्त के ढंग,

उनके कार्यकाल की स्थिरता और सवैधानिक गारंटी,

उनको दी गर्इ पदवी और आयोग के लिए,

जिसमें अन्वेषण अभिकरण भी शामिल है,

स्टाफ की नियुक्ति का तरीका,

कर्मचारियों का दायित्व और उनके कार्य-निष्पादन से स्वयं स्पष्‍ट होता हो जाती है।

आयोग की वित्तीय स्‍वायत्तता का वर्णन अधिनियम की धारा 33 में किया गया है।

अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित एक समिति जिसमें विधान सभा के अध्यक्ष,

गृहमंत्री एवं विधान सभा के विपक्ष के नेता है सदस्य हैं कि अनुशंसा पर राज्यपाल द्वारा की जाती है।

आयोग द्वारा शिकायतों की जाँच किस प्रकार से की जाती है? 

मानव अधिकारों के हनन से संबंधित शिकायतों की जाँच करते समय

आयोग राज्य सरकार अथवा उनके अधीन किसी अन्य प्राधिकरण

अथवा संगठन से निर्दिष्टतारीख तक आयोग को सूचना या रिपोर्ट प्राप्त नहीं होती तो

वह अपनी ओर से स्वयं शिकायत की जाँच कर सकता है।

दूसरी और ऐसी सूचना या रिपोर्ट प्राप्त होने पर आयोग यदि संतुष्ट हो जाता है कि

अब आगे कोर्इ जाँच करने की जरूरत नहीं है

अथवा संबंधित राज्य सरकार या प्राधिकारी द्वारा अपेक्षित जाँच शुरू कर दी गई है तो वह,

आम तौर से, ऐसी शिकायत पर आगे जाँच नहीं करेगा तथा तदनुसार शिकायतकर्ता को तत्संबंधी कार्रवाई की सूचना दे देगा।

जाँच के बाद आयोग क्या कार्रवाई कर सकता है?

जाँच पूरी होने के पश्चात् आयोग निम्नलिखित में से कोई भी कार्रवाई कर सकता है:

(1) जाँच से आयोग को जहाँ यह पता चलता है कि लोक सेवक द्वारा मानव अधिकारों का हनन किया गया है अथवा उसने ऐसे हनन को रोकने की उपेक्षा की है तो ऐसी स्थिति मे आयोग राज्य अथवा प्राधिकारी को संबंधित व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के खिलाफ अभियोजन अथवा ऐसी अन्य कार्रवाई शुरू करने की, जो उचित हो, अनुशंसा कर सकता है,

(2) आयोग उच्चतम न्यायालय या संबंधित उच्च न्यायालय से ऐसे निर्देशों,

आदेशों अथवा रिपोर्टों के लिए,

जो भी वह न्यायालय आवश्यक समझें, अनुरोध कर सकता है,

(3) आयोग पीड़ित व्यक्ति अथवा उसके परिवार के सदस्यों को,

जिसे भी आयोग आवश्यक समझे,

राज्य सरकार अथवा प्राधिकारी से अंतरिम सहायता तत्काल देने की अनुशंसा कर सकता है।

शिकायत किस भाषा में की जा सकती है?

शिकायतें हिन्दी, अंग्रेजी अथवा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किसी भाषा में भेजी जा सकती है।

शिकायतें अपने आप में पूर्ण होनी चाहिए। शिकायतों के लिए कोई फीस नहीं ली जाती।

आयोग जब भी आवश्यक समझे आरोपों के समर्थन में और अधिक सूचना भेजने तथा शपथ-पत्र दाखिल करने की मांग कर सकता है।

स्वविवेक से तार तथा फैक्स द्वारा भेजी गर्इ शिकायतें भी स्वीकार कर सकता है।

आयोग द्वारा किसी प्रकार की शिकायतों पर कार्रवाई नहीं की जाती?

आमतौर से निम्नलिखित प्रकार की शिकायतों पर आयोग द्वारा कार्रवार्इ नहीं की जाती:

(क) ऐसी घटनाएं जिनकी शिकायतें उनके घटित होने के एक साल बाद की गई हों,

(ख) ऐसे मामले जो न्यायालय में विचाराधीन हों,

(ग) ऐसी शिकायतें भी, जो अस्पष्ट, बिना नाम अथवा छद्म नाम से की गई हों,

(घ) ऐसी शिकायतें जो ओछेपन की परिचाय कहों,

(ड) ऐसी शिकायतें जो सेना से सम्बन्धित मामलों के बारे में हो।

(च) यदि किसी शिकायत पर अन्य सक्षम आयोग द्वारा पूर्व में ही कार्यवाही आरम्भ की जा चुकी हो।

(छ) ऐसी शिकायत जो मूलरूप से किसी अन्य आयोग/अधिकारी/प्राधिकारी को संबोधित की गई हो

आयोग द्वारा प्राधिकारी/राज्य सरकार को भेजी गई रिपोर्ट/अनुशंसाओं के बारे में उनका क्या दायित्व है?

आयोगद्वारा प्राधिकारी/राज्य सरकार को भेजी गई सामान्य प्रकार की शिकायतों पर अपनी टिप्पणी की गई कार्रवाई की सूचना आयोग का एक महीने के भीतर भेजनी होती है

आयोग के अब तक कार्यों का केन्द्र बिन्दु (फोकस) क्या है?

आयोगके कार्य क्षेत्र में सभी प्रकार के वे मानव अधिकार आते हैं जिनमें नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।

आयोग हिरासत में हुई मौतों, बलात्कार, उत्पीड़न, पुलिस और जेलों में ढांचागत सुधार, सुधार गृहों, मानसिक अस्पतालों की हालत सुधारने के मामलों पर विशेष ध्यान दे रहा है।

समाज के सबसे अधिक कमजोर वर्ग के लोगों के अधिकारों का संरक्षण करने की दृष्टि से,

14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को आवश्यक तथा निशुल्क शिक्षा प्रदान करने,

गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करने,

माताओं और बच्चों के कल्याण हेतु प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की,

आयोग ने सिफारिशें की हैं।

समानता और न्याय का हनन कर,

नागरिकों के खिलाफ किए जा रहे अत्याचारों,

विस्थापित हुए लोगों की समस्याएं और भूख के कारण लोगों की मौंतें,

बाल श्रमिकों का शोषण, बाल वेश्यावृत्ति,

महिलाओं के अधिकारों आदि पर आयोग ने अपना ध्यान केन्द्रित किया है।

आयोग द्वारा शुरू किए गए अन्य प्रमुख कार्य:

अपनी व्यापक रूप से बढ़ती हुई जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए आयोग ने शिकायतों की जॉंच के अलावा निम्नलिखित कार्यों को भी अपने हाथ में लिया है

नागरिक स्वतंत्रताएं : मानवाधिकार आयोग Human Rights

(1) पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के अधिकार के दुरूपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश।

(2) जिला मुख्यालय में ‘‘मानव अधिकार प्रकोष्‍ठ’’ की स्थापना।

(3)हिरासत में हुई मौतों, बलात्कार और मानवीय उत्पीड़न को रोकने के उपाय।

(4) व्यवस्थागत सुधार 1- पुलिस, 2- जेल, 3- नजर बन्दी केन्द्र।

(5) माताओं में अल्परक्तता और बच्चों में जन्मजात मानसिक अपंगता की रोकथाम।

(6) एचआईवी/एड्स से पीड़ित लोगों के मानव अधिकार।

(7) मानसिक अस्पतालों की गुणवत्ता में सुधार

(8) हाथ से मैला ढोने की प्रथा समाप्त करने के लिए प्रयास।

(9) गैर-अधिसूचत और खानाबदोश जनजातियों के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए सिफारिशें करना।

(10) जनस्वास्थ्य प्रदूषण नियंत्रण, खाद्य पदार्थो में मिलावट की रोकथाम, औषधियों में मिलावट व अवधिपार औषधियों पर रोक।

(11) धर्म, जाति, उपजाति आदि के बहिष्कार के मामलात

(12) मानव अधिकारों की शिक्षा का प्रसार और अधिकारों के प्रति जागरूकता में वृद्धि।

क्या आप चाहतें हैं कि आपके परिवाद/शिकायत पर आयोग द्वारा शीघ्र प्रभावी कार्यवाही हो? 

यदि हां तो कृपया अपने परिवाद/शिकायत में यथा सम्भव निम्न सूचना अवश्य अंकित करें:-

(क) पीडित व्यक्ति का नाम, पिता/पति का नाम, जाति, निवास का पता-गांव/शहर, डाकघर, पुलिस थाना जिले सहित।

(ख) जिस व्यक्ति/अधिकारी/कार्यालय के विरूद्व शिकायत, उसका पूरा विवरण।

(ग) शिकायत/घटना/उत्पीड़न का पूरा विवरण (घटना, स्थान, तारीख, महीना वर्ष सहित)

(घ) घटना की पुष्टि करने वाले साक्षियों के नाम-पता, यदि ज्ञात हो तो

(ड) घटना की पुष्टि में दस्तावेजी सबूत, यदि कोई हो तो,

(च) यदि किसी अन्य अधिकारी/कार्यालय/मंत्रालय को शिकायत भेजी हो तो उसका नाम एवं उस पर यदि कोई कार्यवाही हुई हो तो उसका विवरण।

(छ) क्या आपने पूर्व में इस आयोग या राष्ट्रीय आयोग में इस विषय में शिकायत की हैं , यदि हां तो उसका विवरण एवं परिणाम।

(ज) क्या इस मामले में किसी फौजदारी/दीवानी/राजस्व अदालत में या विभागीय कोई कार्यवाही हुई या लंबित है , हां तो उसका विवरण। (उद्धृत– पूछे जाने वाले प्रश्न http://rahe.rajasthan.gov.in)

स्रोत:-

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2006, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019

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मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2019

मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2019

मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2019 के प्रमुख संशोधन, राष्ट्रीय राज्य मानव अधिकार आयोग का संगठन, कार्यकाल, शक्तियां संघ शासित क्षेत्र

प्रमुख संशोधन

1- राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का संगठनात्मक ढांचा

(क) मूल अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का अध्यक्ष केवल सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हो सकता है। संशोधन के बाद उच्चतम न्यायालय का कोई भी पूर्व न्यायाधीश आयोग का अध्यक्ष हो सकता है।
(ख) मूल अधिनियम में ऐसे दो पूर्णकालिक सदस्यों का प्रावधान था, जिन्हें मानव अधिकारों की व्यापक समझ हो। संशोधन के पश्चात ऐसे सदस्यों की संख्या तीन होगी जिनमें से एक सदस्य महिला सदस्य होना आवश्यक है।
(ग) मूल संविधान में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोगए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोगए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोगए राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष ही मानव अधिकार आयोग के सदस्य होते हैं। संशोधन के पश्चात राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोगए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष तथा दिव्यांगों के लिए मुख्य आयुक्त को भी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का सदस्य नियुक्त किया जा सकता है।

2- राज्य मानव अधिकार आयोग का संगठनात्मक ढांचा

मूल अधिनियम में राज्य मानव अधिकार आयोग का अध्यक्ष उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को ही नियुक्त किया जा सकता है।

संशोधन के पश्चात उच्च न्यायालय का कोई भी पूर्व न्यायधीश राज्य मानव अधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त हो सकता है।

3- कार्यकाल

मूल अधिनियम में राष्ट्रीय तथा राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु;

जो भी पहले होद्ध पूर्ण होने तक होता था।

संशोधन के पश्चात कार्यकाल 3 वर्ष या 70 वर्ष की आयु;

जो भी पहले हो, कर दिया गया है तथा अध्यक्ष पुनः नियुक्ति का पत्र भी होगा।

4- शक्तियां

मूल संविधान में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के महासचिव तथा राज्य मानव अधिकार आयोग के सचिव उनकी शक्तियों का उपयोग करते थे जो उन्हें सौंपी जाती थी। संशोधन के बाद महासचिव और सचिव अध्यक्ष के अधीन सभी प्रशासनिक एवं वित्तीय शक्तियों का उपयोग कर सकेंगे, किंतु इनमें न्यायिक शक्तियां शामिल नहीं है।

5 संघ शासित क्षेत्र

संशोधन के बाद संघ शासित क्षेत्र से संबंधित मामलों को केंद्र सरकार राज्य मानव अधिकार आयोग को सौंप सकती है,

किंतु संघ शासित क्षेत्र दिल्ली से संबंधित मामले राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा निपटाए जाएंगे।

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भारत का विधि आयोग (Law Commission, लॉ कमीशन)

मानवाधिकार (मानवाधिकारों का इतिहास)

मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग : संगठन तथा कार्य

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अगस्त के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of August

अगस्त के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of August

तारीख (Date) महत्त्वपूर्ण दिवस (Important Day)
1 से 7 अगस्तविश्व स्तनपान सप्ताह (World Breastfeeding Week)
श्रावण मास की पूर्णिमा (रक्षाबन्धन के दिन)संस्कृत दिवस (Sanskrit Day)
पहला शुक्रवारअंतरराष्ट्रीय बीयर दिवस (International Beer Day)
पहला रविवारअंतरराष्ट्रीय मैत्री दिवस (International Friendship Day)
तीसरा शनिवारमधुमक्खी जागरुकता दिवस (Honey Bee Awareness Day)
4 अगस्तअमेरिकी तट रक्षक दिवस (U.S. Coast Guard Day)
6 अगस्तहिरोशिमा दिवस (Hiroshima Day)
7 अगस्तराष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Hand-loom Day)
9 अगस्तनागासाकी दिवस (Nagasaki Day), विश्व आदिवासी कल्याण दिवस (World Tribal Welfare Day)
10 अगस्तअंतरराष्ट्रीय जैव-ईंधन दिवस (International Bio-Fuel Day), राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (National Deworming Day), विश्व शेर दिवस (World Lion Day)
12 अगस्तडाॅ. विक्रम साराभाई जयंती, अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस (International Youth Day), विश्व हाथी दिवस (World Elephant Day)
13 अगस्तअंतरराष्ट्रीय खब्बू दिवस (International Left Hander's Day)
14 अगस्तपाकिस्तान स्वतंत्रता दिवस (Pakistan Independence Day)
15 अगस्तभारत स्वतंत्रता दिवस (Independence Day of India)
17 अगस्तइंडोनेशिया स्वतंत्रता दिवस (Indonesian Independence Day)
19 अगस्तविश्व फोटोग्राफी दिवस (World Photography Day), विश्व मानवीय दिवस (World Humanitarian Day)
20 अगस्तसद्भावना दिवस (Sadbhavna Divas), विश्व मच्छर दिवस (World Mosquito Day), भारतीय अक्षय ऊर्जा दिवस (Indian Akshay Urja Day)
21 अगस्तअंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस (International Senior Citizens Day)
23 अगस्तदास व्यापार उन्मूलन दिवस (International Day for the Remembrance of the Slave Trade and its Abolition)
26 अगस्तमहिला समानता दिवस (Women's Equality Day), मदर टेरेसा जयन्ती (Mother Teresa Birthday)
29 अगस्तराष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports Day), परमाणु परीक्षण निषेध दिवस (International Day Against Nuclear Testing)
30 अगस्तराष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस (Small Industry Day)
31 अगस्तहरि मर्देका (Malaysia National Day)

जुलाई के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July

जुलाई के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July

जुलाई के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July | परीक्षोपयोगी दृष्टि से आवश्यक जानकारी | Important Days & Week of July

जुलाई के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July

जुलाई के महत्त्वपूर्ण दिवस | Important Days of July

तारीख (Date) महत्त्वपूर्ण दिवस (Important Day)
जुलाई का पहला शनिवारअंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस (International Cooperative Day)
जुलाई का चौथा रविवारराष्ट्रीय अभिभावक दिवस (National Parent's Day)
1 से 7 जुलाईवन महोत्सव सप्ताह
1 जुलाईराष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (National Doctor's Day), राष्ट्रीय डाक कर्मचारी दिवस (National Postal Worker Day), भारतीय स्टेट बैंक स्थापना दिवस (State Bank of India Foundation Day), चार्टर्ड एकांउटेंट दिवस (Chartered Accountant Day), कनाडा दिवस (Canada Day), अंतरराष्ट्रीय मजाक दिवस (International Joke Day)
2 जुलाईविश्व यूएफओ दिवस (World UFO Day), विश्व खेल पत्रकार दिवस (World Sports Journalists Day)
3 जुलाईविश्व समुद्री पक्षी दिवस (World Seabirds Day)
4 जुलाईसंयुक्त राज्य अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस (United States Independence Day)
6 जुलाईविश्व जूनोसिस दिवस (World Zoonoses Day), अंतरराष्ट्रीय चुम्बन दिवस (International Kissing Day)
7 जुलाईवैश्विक क्षमा दिवस (Global Forgiveness Day), विश्व चॉकलेट दिवस (World Chocolate Day)
11 जुलाईविश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day)
12 जुलाईपेपर बैग डे (Paper Bag Day), अंतरराष्ट्रीय मलाला दिवस (International Malala Day)
13 जुलाईसिलाई मशीन दिवस (Sewing Machine Day)
14 जुलाईफ्रांस का राष्ट्रीय दिवस (National Day of France)
15 जुलाईविश्व युवा कौशल दिवस (World Youth Skills Day)
17 जुलाईविश्व इमोजी दिवस (World Emoji Day), विश्व अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस (World International Justice Day)
18 जुलाईअंतरराष्ट्रीय नेल्सन मंडेला दिवस (International Nelson Mandela Day)
19 जुलाईबैंक राष्ट्रीयकरण दिवस (Bank Nationalization Day)
22 जुलाईराष्ट्रीय आम दिवस (National Mango Day), पाई स्वीकृति दिवस (Pi Approximation Day)
23 जुलाईराष्ट्रीय प्रसारण दिवस (National Broadcast Day)
24 जुलाईआयकर दिवस (Income Tax Day), राष्ट्रीय थर्मल इंजीनियर दिवस (National Thermal Engineer Day)
26 जुलाईकारगिल विजय दिवस (Kargil Victory Day), अंतरराष्ट्रीय मैंग्रोव दिवस (International Mangrove Day)
27 जुलाईपूर्व राष्ट्रपति डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि (Dr. A.P.J. Abdul Kalam's Death Anniversary)
28 जुलाईविश्व प्रकृति संरक्षण दिवस (World Nature Conservation Day), विश्व हैपेटाइटिस दिवस (World Hepatitis Day)
29 जुलाईअंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (International Tiger Day)
30 जुलाईमैत्री का अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day of Friendship)
31 जुलाईशहीद-ए-आजम उधम सिंह जी का शहीदी दिवस (Martyrdom Day of Shaheed-e-Azam Udham Singh)

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग : संगठन तथा कार्य

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का परिचय, इतिहास, कार्य, अर्थ, संगठन, मुख्य प्रभाग, सदस्यों की पदावधि आदि की पूर्ण जानकारी

“ईश्वर द्वारा निर्मित हवा पानी की तरह सब चीजों पर सबका समान अधिकार होना चाहिए”महात्मा गांधी

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का परिचय

मानवाधिकारों की रक्षा के लिए विश्व में अनेक संगठन कार्य कर रहे हैं।

विभिन्न देशों ने मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए अपने अपने संविधान में प्रावधान किए हैं तथा ऐसे आयोगों की स्थापना की है,

जो उन देशों के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सकें।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन 12 अक्टूबर, 1993 को संसद के एक अधिनियम,

नामतः मानव  अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993(मानव अधिकार (संशोधन) अधिनियम 2006 द्वारा संशोधित) द्वारा हुआ था।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन 1991 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु आयोजित राष्ट्रीय संस्थानों की प्रथम अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किए गये तथा 20 दिसंबर 1993 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 48/134 संकल्प में पृष्ठांकित किए गए पेरिस सिद्धांतों के अनुसार है इस अधिनियम को अधिनियमित करने का कारण मानव अधिकारों का बेहतर संरक्षण एवं संवर्द्धन था।

यह एक ऐसा संस्थान है जो न्यायपालिका का अनुपूरक है और

देश में लोगों के सांविधिक रूप से निहित मानव अधिकारों की रक्षा एवं संवर्द्धन में लगा हुआ है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का अर्थ

अधिनियम के अनुसार मानव अधिकार का अर्थ है

संविधान द्वारा गारंटीकृत या अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविधान में सन्निहित और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय जीवन, स्वतंत्रता, समानता और व्यक्ति विशेष की गरिमा संबंधी अधिकार।

अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाओं का अर्थ

अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाओं का अर्थ है सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाएं: आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाएं: महिलाओं के प्रति होने वाले हर प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन संबंधी अभिसमय; बच्चों के अधिकार संबंधी अभिसमय और हर प्रकार के नृजातीय भेदभाव का उन्मूलन संबंधी अभिसमय। भारत सरकार ने वर्ष 1979 में सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदा और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार संबंधी अंतर्राष्ट्रीय पारस्परिक संविदा को स्वीकार किया था

महिलाओं के प्रति भेदभाव का उन्मूलन

भारत सरकार ने वर्ष 1993 में महिलाओं के प्रति होने वाले हर प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन संबंधी अभिसमय, वर्ष 1991 में बच्चों के अधिकार संबंधी अभिसमय और वर्ष 1968 में हर प्रकार के नृजातीय भेदभाव का उन्मूमलन संबंधी अभिसमय की अभिपुष्टि की।

यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि भारतीय संविधान उन सभी बिन्दुओं को ध्यान में रखता है जिनका उल्लेख उपरोक्त संविदाओं में किया गया है।

सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदा और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदा में उल्लिखित कई अधिकार भारतीय नागरिकों को उसी समय उपलब्ध हो गए थे जब भारत स्वतंत्र हुआ था क्योंकि यह अधिकार प्रमुख रुप से संविधान के भाग I और भाग IV में मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत जैसे शीर्ष के तहत दिए गए हैं।

भारत की चिंता का मूर्त रूप

आयोग को स्वतंत्रता, कार्य करने की स्वायत्तता और व्यापक अधिदेश उपलब्ध कराना निर्विवादित रूप से मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की सबसे बड़ी ताकत रही है, जो कि पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्था के गठन और उचित कार्यकरण के लिए आवश्यक है।

भारत का राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के संबंध में भारत की चिंता का मूर्त रूप है।

अपने अस्तित्व से लेकर अब तक भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अनुभव ने यह दर्शाया है कि इसकी संरचना, नियुक्ति प्रक्रिया, अन्वेषण संबंधी शक्तियां, कार्यों का व्यापक विस्तार तथा विशेषज्ञ प्रभाग एवं स्टॉफ से संबंधित स्वतंत्रता और मजबूती, सांविधिक अपेक्षताओं द्वारा गारंटीकृत है।

आयोग का संगठन

आयोग में एक अध्यक्ष, चार पूर्णकालिक सदस्य तथा चार मनोनीत सदस्य हैं।

संविधि में आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति के लिए अर्हता निर्धारित की गई है।

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 3 के अनुसार

(1)”भारत सरकार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के रूप में जानी जाने वाली एक संस्था का, इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में, तथा उसे समनुदेशित कार्यों को निष्पादित करने के लिए गठन करेगी।

(2) राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की संरचना में निम्नलिखित होंगे-

अध्यक्ष

जो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति रहा है।

किंतु मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसारअध्यक्ष पद के लिए उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी योग्य होंगे

एक सदस्य

जो उच्चतम न्यायालय का सदस्य है, या सदस्य रहा है;

एक सदस्य जो उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीशहै, या मुख्यन्यायाधीश रहा है।

दो सदस्य

जिनकी नियुक्ति उन व्यक्तिों में से की जाएगी जिन्हेमानव अधिकारों से संबंधित मामलों का ज्ञान हो,उसका व्यावहारिकअनुभव हो।

किंतु मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार ऐसे सदस्यों की संख्या तीन होगी जिनमें काम से कम एक महिला सदस्य अवश्य हो

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 किधारा 12 के खण्डों (ख) से (ग) में विनिर्दिष्ट कार्यों के निर्वहन के लिए-

(NMC) राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग

(NCSC) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति

(NCST) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग

(NCW) राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्षों

के अतिरिक्तमानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार

(NCBC) राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष

बाल अधिकार संरक्षण आयोग का अध्यक्ष

दिव्यांगों के लिए मुख्य आयुक्त को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य समझा जायेगा।

अतः राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्यों तथा सातमनोनित सदस्यों से होता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा अध्यक्ष, भारत सरकार के गृह मंत्रालय के प्रभारी मंत्री. लोकसभा तथा राज्य सभा में विपक्ष के नेता तथा राज्य सभा के उपसभापति से गठित एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

परन्तु उच्चतम न्यायालय के किसीवर्तमान न्यायाधीश या उच्च न्यायालय केवर्तमान मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किये बिना नही की जा सकती।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति के लिए चयन समिति

  • प्रधानमंत्रीअध्यक्ष
  • लोक सभा का अध्यक्षसदस्य
  • भारत सरकार के गृह मंत्रालय का मंत्री प्रभारीसदस्य
  • लोकसभा में विपक्ष का नेतासदस्य
  • राज्यसभा में विपक्ष का नेतासदस्य
  • राज्यसभा का उपसभापतिसदस्य

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का मुख्यालय तथा बैठकें

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 3 (5) के अनुसार आयोग का मुख्यालय दिल्ली में होगा तथा भारत सरकार की पूर्व अनुमति से भारत के किसी भी अन्य स्थान पर कार्यालय स्थापित किया जा सकता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (प्रक्रिया)विनियम 1994 के विनियम 3 के अनुसार

आयोग कि बैठकें दिल्ली स्थित कार्यालय में संपन्न होगी।

राष्ट्रीय-मानव अधिकार आयोग (प्रक्रिया) विनियम 1994 के विनियम 4 के अनुसार

यदि आयोग आवश्यक और उचित समझे तो आयोग अपनी बैठक भारत में अन्य किसी भी स्थान पर कर सकता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (प्रक्रिया) विनियम 1994 के विनियम 20 के अनुसारअध्यक्ष से पूर्व अनुमति प्राप्त कर यदि कोई सदस्य मुख्यालय से इतर किस स्थान पर कार्य कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में अधिनियम के अंतर्गत जांच के संबंध में पक्षकारों की सुनवाई हो तो आयोग के कम से कम दो सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होगी।

सदस्यों की पदावधि

  1. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 6 (1) के अनुसार अध्यक्ष के रूप में नियुक्त व्यक्ति उस दिनांक से जिसको वह अपना पद धारित करता है से पांच वर्ष की अवधि के लिये अथवा सत्तर वर्ष की आयु तक पद पर बना रहेगा।
    किंतु मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले होतक का होगातथा वह 5 वर्ष के लिए पुनः नियुक्ति का पात्र भी होगा

2. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 6 (2) के अनुसार सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति उस दिनांक से जिसको वह अपना पद धारित करता है से, पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद पर रहेगा तथा पाँच वर्षों की दूसरी अवधि के लिए पुन: नियुक्ति हेतु पात्र होगा।मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले होतक का होगा परन्तु यह कि कोई भी सदस्य सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त (पूर्ण) करने के बाद पद को धारण नहीं करेगा।

3. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 6 (3) के अनुसार,

कोई भी व्यक्ति आयोग का अध्यक्ष या सदस्य रह जाने के बाद भारतसरकार अथवा

किसी राज्य सरकार के अधीन आगे और नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों का पद त्याग या पदच्युति

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 5 में आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को पदच्युत करने से संबंधित उपबंध किए गए हैं-

अध्यक्ष या कोई सदस्य राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।

धारा 5 की उपधारा 1 के अनुसार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर पदच्युतकियाजा सकता है-

  • सिद्ध कदाचार/दुर्व्यवहार।
  • अक्षमता के आधार पर।

उक्त प्रकार से पदच्युत किये जाने से पूर्व राष्ट्रपति द्वारा-

  • उच्चतम न्यायालय को निर्देशित किया जाएगा।
  • विहित प्रक्रिया द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा मामले की जांच की जाएगी।
  • जांच की रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।
  • जांच रिपोर्ट में अध्यक्ष या सदस्य के विरुद्ध सिद्ध कदाचार/दुर्व्यवहार अथवा
    अक्षमता सिद्ध होने पर राष्ट्रपति उन्हें पदच्युत कर सकता है।

धारा 5 की उपधारा 2 के अनुसार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर पदच्युतकियाजा सकता है-

I. दिवालिया घोषित कर दिया गया हो।

II. किसी लाभ के पद पर हो विकृत चित्त हो या सक्षम न्यायालय द्वारा इस प्रकार घोषित कर दिया गया हो।

III.  मानसिक और शारीरिक दुर्बलता के कारण पद पर बने रहने के अयोग्य हो गया हो।

IV. किसी ऐसे अपराध के लिए जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक अपराध के लिए जो

राष्ट्रपति की राय में नैतिक पतन वाला हो दोष सिद्ध हो गया हो और उसे कारागार की सजा दे दी गयी हो।

जांच से संबधित शक्तियां

आयोग का मुख्य कार्यकारी अधिकारी महासचिव होता है।

जो भारत सरकार के सचिव स्तर का अधिकारी होता है।

आयोग का सचिवालय, महासचिव के सम्पूर्ण दिशानिर्देशों के तहत कार्य करता है।

आयोग को कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर, 1908 के अंतर्गत वे सभी शक्तियां प्राप्त है जो सिविल कोर्ट किसी वाद के विचारण के समय अपनाता है, विशेष रूप से गवाहों की उपस्थिति हेतु समन करने तथा हाजिर करने तथा शपथ पर उनकी जांच करने हलफनामे पर साक्ष्य प्राप्त करने किसी पब्लिक रिकॉर्ड को मांगने अथवा किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से उनकी प्रति मांगने तथा निर्धारित किए गए किसी अन्य मामले के संबंध में उल्लंघन के मामले में आयोग संबद्ध सरकार से उपचारी उपाय करने तथा पीड़ित अथवा मृतक के निकटतम संबंधी को मुआवजा देने के लिए कहता है तथा लोक सेवकों को उनके दायित्व एवं बाध्यताओं की भी याद दिलाता है।

मामले के अनुसार यह अभियोजन हेतु कार्यवाही प्रारम्भ करता है

अथवा संबद्ध व्यक्तियों के विरुद्ध जो भी उचित कार्यवाही हो करने का निदेश देता है।

गंभीर मामलों में स्वतः संज्ञान लेना एक ऐसी अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता जिसका यह अधिकतम उपयोग करता है,

ऐसा यह समाचार-पत्रों तथा मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर करता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के कार्य

आयोग का अधिदेश बहुत व्यापक हैं। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 12 में दिए गए आयोग के कार्य निम्नानुसार हैं-

स्वप्रेरणा से या किसी पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा या किसी न्यायालय के निदेश पर आयोग को प्रस्तुत की गई याचिका पर

(1) मानव अधिकारों का अतिक्रमण या दुष्प्रेरण किए जाने की, या

(2) ऐसे अतिक्रमण के रोकने में किसी लोकसेवक द्वारा की गई उपेक्षा की शिकायत के बारे में जांच करना।

किसी न्यायालय के समक्ष लंबित किसी कार्यवाही में, जिसमें मानव अधिकारों के उल्लंघन का कोई आरोप शामिल है,

उस न्यायालय के अनुमोदन से हस्तक्षेप करना।

तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में निहित किसी बात के होते हुए भी

राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन किसी जेल या किसी अन्य संस्था का,

जहां व्यक्ति उपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनों के लिए निरुद्ध या दाखिल किए जाते हैं,

वहां के संवासियों के जीवन की परिस्थितियों का अध्ययन करने हेतु और

इस संबंध में सरकार को सिफारिश करने हेतु वहां का दौरा करना।

मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा उपबंधित रक्षोपायों का पुनर्विलोकन करना और उनके प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करना।

*आतंकवाद के कारनामे सहित ऐसे कारकों की पुनरीक्षा करना जो मानव अधिकारों के उपभोग में विघ्न डालती है और समुचित उपचारी उपायों की सिफारिश करना।

मानव अधिकारों से संबंधित संधियों तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों का अध्ययन करना और

उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सिफारिश करना।

मानव अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसे बढ़ावा देना।

समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकारों संबंधी जानकारी का

प्रसार करना और प्रकाशनों, मीडिया, गोष्ठियों और अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से

इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षोपायों के प्रति जागरूकता का संवर्द्धन करना।

मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठनों और संस्थानों के प्रयासों को प्रोत्साहित करना।

ऐसे अन्य कार्य करना, जो मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए इसके द्वारा आवश्यक समझा जाए।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के प्रभाग

आयोग के पांच प्रभाग है, वे हैं-

(i) विधि प्रभाग

(ii) अन्वेषण प्रभाग

(iii) नीति अनुसंधान, परियोजना तथा कार्यक्रम प्रभाग,

(iv) प्रशिक्षण प्रभाग, तथा

(v) प्रशासनिक प्रभाग।

विधि प्रभाग:

आयोग का विधि प्रभाग पीड़ित अथवा उसकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई मानव अधिकार उल्लंघन की शिकायतों पर अथवा हिरासतीय मृत्यु, हिरासत में बलात्कार, पुलिस कार्रवाई में मौत के संबंध में संबंधित प्राधिकारियों से सूचना प्राप्त होने पर दर्ज लगभग 1 लाख मामलों का पंजीकरण तथा निपटारा करता है।

प्रभाग को पुलिस/न्यायिक हिरासत में मौत, रक्षा/अर्द्ध सैनिक बलों की हिरासत में मौत के संबंध में भी सूचना प्राप्त होती है।

आयोग में प्राप्त सभी शिकायतों को एक डायरी सं. दी जाती है तथा उसके बाद शिकायत प्रबंधन एवं सूचना प्रणाली (सी.एम.आई.एस.) सॉफ्टवेयर, जिसे विशेष रूप से इसी उद्देश्य के लिए बनाया गया है, का प्रयोग करके उनकी छानबीन की जाती है तथा प्रक्रिया शुरू की जाती है।

शिकायत का पंजीकरण करने के पश्चात् उन्हें आयोग के समक्ष उसके निर्देशों के लिए रखा जाता है तथा उसके अनुसार, प्रभाग द्वारा उन मामलों में अनुवर्ती कार्रवाई की जाती है, जब तक उनका अंतिम रूप से निपटारा नहीं हो जाता।

विधि प्रभाग

महत्वपूर्ण प्रकृति के मामलों को पूर्ण आयोग द्वारा उठाया जाता है तथा पुलिस हिरासत अथवा पुलिस कार्रवाई में मौत से संबंधित मामलों पर खंड पीठों द्वारा विचार किया जाता है।

कुछ मामलों पर खुली अदालती सुनवाई में आयोग की बैठकों में विचार किया जाता है यह प्रभाग लंबित शिकायतों के निपटान में तेजी लाने तथा मानव अधिकार के मुद्दों पर राज्य प्राधिकारियों को संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से राज्य की राजधानियों मेंशिविर बैठकों का भी आयोजन करता रहा है।

आयोग देश में अनुसूचित जातियों पर होने वाले अत्याचार के संबंध में खुली सुनवाई भी आयोजित कर रहा है कि अनुसूचित जातियों के प्रभावित व्यक्तियों से सीधे सम्पर्क स्थापित हो सके।

आयोग मानव अधिकारों की बेहतर सुरक्षा और संवर्द्धन के लिए उसे संदर्भित विभिन्न विधेयकों/ प्रारूप विधानों पर भी अपनी राय/विचार देता है।

बढ़ता समन्वय

विधि प्रभाग ने एन.एच.आर.सी. एण्ड एचआरडी” ‘बढ़ता समन्वय’ नामक एक पुस्तक का प्रकाशन किया है। इस प्रश्न को समाज के विभिन्न वर्गों से उत्साहवर्धक फीडबैक प्राप्त हो रहे हैं। मानव अधिकार संरक्षण जो एचआरडी से संपर्क करते हैं, उनके लिए एचआरडी (i) मोबाइल न. (ii) फैक्स न.  तथा (iii) ई-मेल: hrd-nhrc@nic-in के जरिए 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं।

इस प्रभाग का मुख्य अधिकारी रजिस्ट्रार (विधि) है, जिसकी सहायता के लिए प्रजेटिंग अधिकारी, एक संयुक्त रजिस्ट्रार तथा कई उप रजिस्ट्रार, सहायक रजिस्ट्रार, अनुभाग अधिकारी तथा अन्य सचिवालय स्टाफ होते है।

अन्वेषण प्रभाग

अन्वेषण प्रभाग का मुखिया पुलिस महानिदेशक की श्रेणी का अधिकारी होता है। इसमें एक उप-महानिरीक्षक एवं तीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हैं। प्रत्येक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अन्वेषण अधिकारियों (इसमें उप अधीक्षक एवं निरीक्षक शामिल है) के समूह का मुखिया है। अन्वेषण अनुभाग के कार्य बहुमुखी हैं जिनका विवरण नीचे दिया गया है।

स्थल निरीक्षण

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की ओर से पूरे देश में मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों का स्थल निरीक्षण तथा उचित कार्यवाही की संस्तुति करता है। अन्वेषण अनुभाग द्वारा किए गए स्थल निरीक्षण से न केवल आयोग के समक्ष सत्य प्रस्तुत होता है बल्कि इससे सभी संबंधितों-शिकायतकर्ताओं, लोक सेवकों आदि को एक संदेश भी जाता है आयोग स्थल निरीक्षण का आदेश विभिन्न लोक प्राधिकारियों को भिन्न-भिन्न मामलों जैसे पुलिस द्वारा अवैध नजरबन्दी, अतिरिक्त न्यायिक हत्या तथा अस्पतालों में सुविधाओं की कमी जिससे मौतों को रोका जा सकता हो. देता है। स्थल निरीक्षण से आम जनता के बीच विश्वास में बढ़ोतरी होती है तथा मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के प्रति उनका विश्वास भी बढ़ता है। अन्वेषण अनुभाग मामलों के मॉनिटरिंग के अलावा मामलों में परामर्श/विश्लेषण, जहां भी किया जाए, अपनी टिप्पणी एवं सुझाव भी देता है।

अभिरक्षा में मौतआयोग द्वारा राज्य प्राधिकारियों के लिए जारी दिशा-निर्देश के अनुसार अभिरक्षा (चाहे वह पुलिस अथवा न्यायिक अभिरक्षा हो) में हुई मौत के मामले में आयोग को 24 घण्टे के भीतर सूचित करना अपेक्षित है। इसके अतिरिक्त, यह प्रभाग पुलिस तथा न्यायिक अभिरक्षा में मौत के साथ-साथ पुलिस मुठभेड़ों में हुई मौतों के संबंध में राज्य प्राधिकारियों से प्राप्त सूचनाओं तथा रिपोटों का विश्लेषण करता है। अन्वेषण अनुभव इस प्रकार की सूचनाओं को प्राप्त करके रिपोर्ट का विश्लेषण मानव अधिकारों के उल्लंघन होने का पता लगाने के लिए करता है। अपने विश्लेषण को अधिक व्यवसायिक एवं उचित बनाने की दिशा में अन्वेषण अनुभाग राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के फॉरेंसिक विशेषज्ञों के पैनल की मदद लेता है।

तथ्य अन्वेषण मामले

अन्वेषण अनुभाग विभिन्न प्राधिकारियों से मामले में तथ्य अन्वेषण रिपोर्ट जैसा कि आयोग द्वारा निर्देशित हो, की मांग करता है अन्वेषण अनुभाग आयोग को यह बताने में सहायता करने के लिए कि क्या कोई मानव अधिकार उल्लंघन हुआ है अथवा नहीं इन रिपोर्टों का गहनता से विश्लेषण करता है। ऐसे मामले जहां प्राप्त रिपोर्ट भ्रामक अथवा वास्तविक नहीं है, आयोग इन पर भी स्थल निरीक्षण का आदेश देता है।

प्रशिक्षण

अन्वेषण अनुभाग के अधिकारी मानव अधिकार साक्षरता एवं मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु उपलब्ध सुरक्षा उपायों की जागरुकता फैलाने के लिए जहां भी उन्हें आमंत्रित किया जाता है उन प्रशिक्षण संस्थानों एवं अन्य मंचों में व्याख्यान देते हैं।

रैपिड एक्शन सेल

वर्ष 2007 से अन्वेषण अनुभाग आयोग में रैपिड एक्शन सेल बनाने के लिए प्रयासरत है। आर.ए.सी. मामलों के तहत अन्वेषण अनुभाग उन मामलों पर विचार करता है जो अतितत्काल प्रकृति के हों जैसे अगले ही दिन बाल विवाह होने की संभावना हो: शिकायतकर्ता को यह भय हो कि उसके रिश्तेदार अथवा दोस्त को पुलिस द्वारा उठाकर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया जाएगा आदि। समग्र रूप से इस प्रकार के मामले अन्वेषण अनुभव आयोग द्वारा तत्काल अनुवर्तन हेतु उठाता है। इसमें प्राधिकारियों/ शिकायतकर्ताओं से तथ्य प्राप्त करने शिकायतकर्ता को विभिन्न प्राधिकारियों का संदर्भ देने तथा त्वरित रूप से उनके जवाब भेजने के लिए कहने के लिए उनसे टेलीफोन पर व्यक्तिगत रूप से बात करना भी शामिल है।

केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु वाद-विवाद प्रतियोगिताः

मानव अधिकारों की जागरुकता एवं इनके प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु अन्वेषण अनुभाग नियमित रूप से वर्ष 1996 से प्रतिवर्ष वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करता आ रहा है। यही नहीं वर्ष 2004 से, जैसा कि माननीय अध्यक्ष द्वारा निदेश दिया गया था, पूरे देश में सी.ए.पी.एफ. की बड़ी संख्या में भागीदारी हेतु अंतिम प्रतियोगिता के लिए रनअप के रूप में जोनवार वाद-विवाद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। जोनल प्रतियोगिताओं के दौरान चुनी गई टीम को सेमीफाइनल तथा फाइनल राउण्ड के लिए केन्द्र में आयोजित प्रतियोगिता के लिए चुना जाता है। प्रतिवर्ष इसमें अभूतपूर्व प्रतिभागिता एवं वाद-विवाद का सर्वोत्तम स्तर देखने को मिलता है।

राज्य पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु वाद-विवाद प्रतियोगिता पुलिस आज उनके दायित्वों के निर्वहन में मानव अधिकारों के सिद्धांतों को मानने के लिए कर्तव्य बाधित है। मानव अधिकारों के दृष्टिकोण से पुलिस बल में निम्न एवं मध्य स्तर अत्यधिक प्रभावित है क्योंकि वे अपने दायित्वों का निर्वहन करते समय प्रत्यक्ष रूप आम जनता के संपर्क में आते हैं। वर्ष 2004 से राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अन्वेषण अनुभाग द्वारा पुलिस कार्मिकों के बीच मानव अधिकार जागरूकता के स्तर को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है जिसकेलिए राज्य पुलिस बल कार्मिकों के लिए वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित करने हेतु राज्य/संघ शासित क्षेत्र को आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान करता है। वर्तमान में आयोग राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों को वाद-विवाद प्रतियोगिता के आयोजन हेतु 15000/- की राशि प्रदान करता है।

नजरबंदी के स्थानों का दौराः

जेलों एवं अन्य संस्थानों जहां लोगों को उपचार, सुधार अथवा संरक्षण के उद्देश्य से नजरबंद अथवा

बंद करके रखा जाता है, उनमें जीवन-यापन की दशाओं से संबंधित बड़ी संख्या में शिकायतें प्राप्त होती है।

अन्वेषण अनुभाग के जांच अधिकारी जब भी आयोग द्वारा निर्देश दिया जाता है,

विभिन्न राज्यों में जेलो एवं अन्य संस्थानों का दौरा करते हैं तथा

विशेष आरोपों के संबंध में तथ्य प्रस्तुत करने के लिए अथवा कैदियों की सामान्य दशाओं अथवा

मानव अधिकारों पर आधारित संवासियों की दशाओं जिस पर

आयोग द्वारा अनुवर्तन आवश्यक हो, से संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

नीति अनुसंधान परियोजना तथा कार्यक्रम प्रभाग

नीति अनुसंधान परियोजना तथा कार्यक्रम प्रभाग (पी.आर.पी.एंड पी). मानव अधिकारों पर अनुसंधान करता है तथा उनका प्रचार करता है तथा महत्त्वपूर्ण मानव अधिकार मुद्दों पर सम्मेलन, सेमिनार तथा कार्यशालाएं आयोजित करता है।

जब कभी भी आयोग, अपनी सुनवाई. कार्रवाईयों या अन्यथा इस निर्णय पर पहुंचता है कि

कोई विशेष विषय महत्त्वपूर्ण है, तो उसे पी.आर.पी. एण्ड पी. प्रभाग द्वारा संचालित किए जाने वाले

एक परियोजना/कार्यक्रम में परिवर्तित कर दिया जाता है।

इसके अतिरिक्त, यह प्रभाग मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु प्रचलित नीतियों,

कानूनों, संधियों तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों की परीक्षा करता है।

यह प्रभाग, केन्द्र, राज्य तथा संघ शासित क्षेत्र के प्राधिकारियों द्वारा कार्यान्वित की जा रही

आयोग की सिफारिशों की मॉनीटरिंग में सहायता करता है।

यह प्रभाग, मानव अधिकार साक्षरता के विस्तार तथा मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए

उपलब्ध सुरक्षापायों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने में भी प्रशिक्षण प्रभाग की सहायता करता है।

प्रभाग का कार्य संयुक्त सचिव (प्रशिक्षण एवं अनुसंधान) तथा

संयुक्त सचिव (कार्यक्रम एवं प्रशासन), एक निदेशक/संयुक्त निदेशक,

एक वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी, अनुसंधान परामर्श, अनुसंधान एसोसिएट,

अनुसंधान सहायक तथा अन्य सचिवालय स्टॉफ द्वारा देखा जाता है।

प्रशिक्षण प्रभाग

समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकार साक्षरता का विस्तार करने के लिए उत्तरदायी है।

अतः यह प्रभाग मानव अधिकारों के विभिन्न मुद्दों के बारे में

राज्य के विभिन्न सरकारी अधिकारियों तथा कार्यकर्ताओं तथा राज्य की एजेंसियों,

गैर सरकारी अधिकारियों, सिविल सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों तथा

विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देता है और उन्हें सुग्राही बनाता है।

इसके लिए यह प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थानों/पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों के साथ सहयोग करता है इसके अलावा यह प्रभाग, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए इन्टर्नशिप प्रोग्राम भी आयोजित करता है प्रभाग का अध्यक्ष एक संयुक्त सचिव (प्रशिक्षण एवं अनुसंधान) होता है जिसकी सहायता के लिए वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी (प्रशि.). एक सहायक तथा अन्य सचिवालय स्टाफ होता है।

प्रशिक्षण प्रभाग के तहत समन्वय अनुभाग, अंतरराष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों सहित सभी अंतरराष्ट्रीय मामलों की देख रेख करता है।

इसके अलावा यह विभिन्न राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों में शिविर आयोग बैठकों/ जन सुनवाई के साथ समन्वय करता है आयोग के वार्षिक कार्यों अर्थात स्थापना दिवस औरमानव अधिकार दिवस (10 दिसम्बर) का आयोजन करता है।

यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर आयोग के अध्यक्ष/सदस्यों/ वरिष्ठ अधिकारियों की यात्राओं के आयोजन के साथ-साथ प्रोटोकॉल कर्तव्यों का ध्यान रखने का भी कार्य करता है।

समन्वय अनुभाग में एक अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी, सहायक अनुसंधान परामर्शदाता और अन्य सचिवीय कर्मचारी होते हैं।

प्रशासनिक प्रभाग

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की स्थापना, प्रशासनिक एवं संबंधित जरूरतो को पूरा करता है।

इसके अलावा,

यह प्रभाग कार्मिकों, लेखों, पुस्तकालय तथा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अधिकारियों तथा

स्टाफ के सदस्यों की अन्य जरूरतों को भी पूरा करता है

प्रभाग का अध्यक्ष एक संयुक्त सचिव (कार्यक्रम एवं प्रशासन) होता है तथा

उसकी सहायता के लिए एक निदेशक/ उप सचिव, अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी तथा अन्य सचिवालयीय स्टॉफ होते हैं।

प्रशासनिक प्रभाग के तहत मीडिया एण्ड कम्यूनिकेशन यूनिट का कार्य प्रिंट एवं इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की गतिविधियों से संबंधित जानकारी का प्रचार करना है

यह प्रभाग मानव अधिकार नामक एक द्विभाषीय प्रकाशन करता है।

प्रकाशन एकक

आयोग की एक और महत्वपूर्ण इकाई है, जो आयोग के सभी प्रकाशनों को प्रस्तुत करने के लिए जिम्मेदार है।

वार्षिक रिपोर्ट, एन.एच.आर.सी. अंग्रेजी और

हिंदी पत्रिका नो योर राइट सीरीज इत्यादि इस प्रभाग द्वारा प्रकाशित कुछ प्रमुख प्रकाशन हैं।

इसके अलावा, यह प्रभाग सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत प्राप्त आवेदनों तथा अपीलों को भी देखता है।

Official Website- https://nhrc.nic.in/hi

विशेष बिन्दु

विशेष प्रतिवेदकों की नियुक्ति तथा कोर एवं विशेषज्ञ समूहों के गठन द्वारा आयोग की पहुंच में काफी विस्तार हुआ है।

आयोग ने अपने दायित्वों के निष्पादन के लिए पारदर्शी प्रणाली तथा प्रक्रियाएं तैयार की है।

आयोग ने विनियम तैयार करते हुए अपने काम-काज के प्रबंधन के लिए प्रक्रियाएं तैयार की हैं।

स्रोत:-

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के वार्षिक प्रतिवेदन, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019

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मानवाधिकार का सामान्य अर्थ मानव के अधिकार हैं अर्थात मानव के भी अधिकार जो नैसर्गिक हैं। मानवाधिकार से तात्पर्य है कि मानव के सभी अधिकार जो मानव होने के नाते उसे मिलने ही चाहिए मानवाधिकार कहलाते हैं। ये अधिकार मानव को जीवन जीने का अधिकार देते हैं। अपने जीवन को सुख में बनाने का अधिकार भी इन्हीं मानवाधिकारों से प्राप्त होता है। यह अधिकार प्रत्येक मानव के लिए होते हैं, किसी विशेष स्त्री या पुरुष अथवा किसी धर्म, संप्रदाय, जाति, वंश वर्ग, क्षेत्र, भाषा आदि के लिए नहीं। मानवाधिकार तो विश्वव्यापी है और यह सभी राष्ट्रों के सभी लोगों के लिए है। इन अधिकारों को प्राकृतिक अधिकार और जन्म अधिकार भी कहा जाता है।

पाश्चात्य विद्वान आर जे विंसेंट ने मानवाधिकारों को परिभाषित करते हुए लिखा है-

“मानवाधिकार भी अधिकार है जो प्रत्येक व्यक्ति को मानव होने के नाते प्राप्त होते हैं इन अधिकारों का आधार मानव स्वभाव में निहित है। ” (राय, अरूण, भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग : गठन कार्य एवं भावी परिदृश्य, पृ.सं. 11)

डेविड बेंथम एवं केबिन बॉयले के अनुसार

“मानवाधिकार एवं मूल स्वतंत्रता वे व्यक्तिगत अधिकार है, जो मानवीय आवश्यकताओं और क्षमताओं पर आधारित होते हैं।” (बीथम, डेविड एवं बॉयले, केबिन, लोकतंत्र 80 प्रश्न और उत्तर, पृ.सं. 10)

न्यायमूर्ति वी आर.कृष्ण अय्यर ने मानवाधिकारों की व्याख्या करते हुए कहा है कि

“ये वे अधिकार हैं जिनके बिना व्यक्तित्व का हनन और प्रतिष्ठा काविनाश हो जाता है। इन मौलिक स्वतंत्रताओं के छिन जाने या विकृति आ जाने से मानव के दैवीय गुणों का हास हो जाता है।”(चतुर्वेदी, डॉ. अरुण एवं लोढा, संजय, भारत में मानवाधिकार, पृ.सं. 61)

पुरुषोत्तम अग्रवाल ने मानवाधिकारों की परिभाषा इस प्रकार दी है-

“मानवाधिकार की समकालीन अवधारणा व्यक्तित्व के दार्शनिक विमर्श पर आधारित है। इसका अर्थ समाज की अवहेलना नहीं बल्कि यह है, कि किसी सामाजिक या राजनीतिक पहचान से परिभाषित होने से पहले हर मनुष्य व्यक्ति है और इस व्यक्तित्व की असहमति या उसकी अभिव्यक्ति के अंधाधुंध दमन का अधिकार किसी भी पहचान के राजनीतिक या सत्ता-तंत्र को नहीं होना चाहिए। (अग्रवाल, पुरूषोत्तम, तीसरा रूख, पृ.सं 6)

हेरोल्ड लास्की के अनुसार

“अधिकार मानव जीवन की ऐसी परिस्थितियाँ है जिसमें बिना सामान्यतः कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।”

मानवाधिकार को संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौम घोषणा के अनुसार “सभी मनुष्य समान अधिकार और स्वतंत्रता, जाति, रंग, भाषा, लिंग, धर्म, राजनीति या अन्य विचारधारा राष्ट्रीय या सामाजिक मूल सम्पत्ति जन्म या अन्य स्थितियों के किसी भेदभाव के बिना स्वतः मिल जाते है।”

द न्यू हिचंसन ट्वन्टीएथ सेन्चुरी इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार

“मानवाधिकारों में जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, शिक्षा और कानून के समक्ष समानता, आन्दोलन की स्वतंत्रता, धर्म, संगठन, सूचना तथा राष्ट्रीयता का अधिकार सम्मिलित है।”

भारतीय न्यायाधीश ए. के. गांगुली के अनुसार- ”मानवाधिकार आधारभूत स्वाभाविक अपरिवर्तनीय तथा अविच्छेद यानि जो हस्तांतरित न हो सके और जो कि वास्तविक रूप से मानव को जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाते है।”

मानवाधिकारों का इतिहास – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

विश्वव्यापी मानवाधिकारों का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। मानव जैसे-जैसे सभ्यता की ओर बढ़ता है, वैसे-वैसे ही वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत आ रहा है। मानवाधिकार के लिखित प्रमाण की बात की जाए तो हम पाते हैं, कि प्राचीन भारत में धर्म में मानवाधिकार संरक्षण धर्म को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। राजा और प्रजा दोनों धर्म से बंधे हुए थे। राजा धर्म के विरुद्ध आचरण नहीं कर सकता था। धर्म के अंतर्गत ही सभी प्रजा जनों के अधिकार सुरक्षित थे।ये श्लोक भारतीय मानवतावादी चिंतन की धुरी है-

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामाया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुख भाग्यवेत्।

 जो लिंगभेद हम देश और दुनिया में आज देखते हैं वह प्राचीन भारत में नहीं था। स्त्री को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे वे आदरणीय और शक्ति स्वरूपा मानी जाती थी। परिवार तथा समाज में नारी का स्थान सर्वोच्च माना जाता था-

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।”

अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं

समाज में नारी का स्थान उच्च और आदर्श माना जाता था माता का स्थान गुरु और पिता से भी ऊंचा माना गया है-

“दशाचार्यानुपाध्याय उपाध्यायान्पिता दश।

दश चैव पितॄन्माता सर्वा वा पृथिवीमपि।।

गौरवेणायिभवति नास्ति मातृ-समो गुरू।

माता गरीयसी यच्च तेनैतां मन्यते जनः।।”

मानवाधिकारों का इतिहास

प्राचीन भारतीय साहित्य यथा वेद वेदांग उपनिषद इत्यादि सभी में यह प्रमाण बड़ी पुष्टता से मिलता है कि स्त्रियों को सभी तरह के अधिकार प्राप्त थे, वे पुरुषों के समान ही शिक्षा प्राप्त करती थी उन्हें संपत्ति का भी अधिकार प्राप्त था याज्ञवल्क्य ऐसी प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने विधवा स्त्री को उसके पति की संपत्ति देने का समर्थन किया।

“पत्नी दुहितरश्चैव व पितरौ भ्रातरस्तथा।

तत्सुता गोत्रजा बन्धुशिष्यसब्रह्मचारिण।।

एषामभावे पूर्वस्य धनभागुत्तरोत्तरः ।

स्वर्यातस्य हयपुत्रस्य सर्वपणैष्वयं विधि।।”  (याज्ञवल्क्य स्मृति -1/135-36)

मानवाधिकारों का इतिहास

कई स्त्रियों का शस्त्र विद्या सीखने का उल्लेख भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में प्राप्त होता है। रामायण काल में राजा दशरथ की पत्नी केकैयी का देवासुर संग्राम में दशरथ के साथ भाग लेने का उल्लेख प्राप्त होता है। तो अनेक विदुषी स्त्रियों का वैदिक ऋचा लिखने का उल्लेख प्राप्त होता है। ऋग्वेद दशम मण्डल के 39, 40 वें सूक्त तपस्विनी ब्रह्मवादिनी घोषा के हैं और ऋग्वेद के 1.27.7 वे मंत्र की ऋषि रोमशा, 1.5.29 वें मंत्र की विश्वारा, 1.10.45 वें मंत्र की दृष्टा इन्द्राणी, 1.10.159 वें मंत्र की रचयिता ऋषि अपाला थीं। अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा ने पति के साथ ही सूक्त का दर्शन किया था। सूर्या भी एक ऋषिका थीं। बृहदारण्यक उपनिषद में वर्णित गार्गी-याज्ञवल्क्य संवाद इस बात की ओर संकेत करता है, कि प्राचीन भारत में स्त्रियां ज्ञान प्राप्त करने में पुरुषों से पीछे नहीं थी।

मानवाधिकारों का इतिहास

प्राचीन भारत में प्रजा को भी अनेकानेक अधिकार प्राप्त थे जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था अवश्य थी लेकिन उसके नियम इतने कड़े नहीं थे किसी के साथ भी ऊंच-नीच का व्यवहार नहीं किया जाता था रामायण काल में स्वयं राम ने निषादराज को अपने पास आसन देकर उसका सम्मान किया और शबरी के जूठे बेर खाकर जाति-पाती के बंधन को नकार दिया था।

बहुत से भीतर मानवाधिकारों की जड़ें बेबीलोनिया सभ्यता में दृष्टिगत होती है यूनानी दर्शकों सुकरात प्लेटो अरस्तु आदि सभी ने मानवाधिकारों का समर्थ किया है रोमन दार्शनिक सिसरो ने भी मानवाधिकारों को प्राकृतिक न्याय से जोड़कर देखा है।

मानव अधिकार समय – सारणी (बीसवीं सदी तक) – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

1215 – मैग्नाकार्टा का घोषणा पत्र ब्रिटेन के संबंधों के हितों में मानव अधिकारों की रक्षा से संबंधित था।

1679 – बन्दी प्रत्यक्षीकरण :
एक अंग्रेजी कानून जिसने व्यक्ति को स्वतंत्रता व मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और दण्ड से रक्षण प्रदान किया।

1689 – अधिकारों का विधेयक (बिल ऑफ राइट्स):
इन अधिकारों की घोषणा से अंग्रेजी राज्य में याचिका देने, मतदान, व्यक्तिगत स्वतंत्रता व न्यायिक कार्यवाही की गारंटी मिली।

1776 – युनाइटेड स्टेट्स स्वतंत्रता की घोषणा :
‘जीवन के अधिकार’ को पहली पुष्टि हुई जो बीसवीं सदी में पुन: प्रकट हुई। यह तथ्य स्थापित हुआ कि सत्ता शासित की सहमति पर आधारित है।

मानव अधिकार समय – सारणी

1789 – फ्रांस में मानव तथा नागरिक के अधिकारों की घोषणा में सर्वत्रता का दावा था व यह इस प्रकार को सभी घोषणाओं का आदर्श माना जाता है।

1791 – महिला व नारी नागरिक के अधिकारों की घोषणा का मसौदा ओलिम्पे डी गोजीस द्वारा तैयार किया गया जिसमें 1789 की घोषणा को महिलाओं के लिए लागू करने की बात की गयी। (ओलिम्प डी गोजिस – “यदि महिलाएं फांसी खा सकती है, तो मंच भी पा सकती ?”)

1793 – मानव तथा नागरिक के अधिकारों की घोषणा जिसमें अश्वेतों को भी स्वतंत्रता का अधिकार है, यह प्रस्थापित हुआ।
पहली बार आर्थिक व सामाजिक अधिकारों की बात हुई-शिक्षा का अधिकार, काम का अधिकार, सहायता का अधिकार।
मानव अधिकारों के उन्नयन के संदर्भ में ‘विद्रोह के अधिकार’ की बात की गयी।

1848 – दूसरे फ्रांसीसी गणराज्य का संविधान :
राज्य के सामाजिक जवाबदारियों की पुष्टि, नागरिकों द्वारा अधिकारों का दावा, जुड़ने व एकत्र होने की स्वतंत्रता, सभी के लिए मताधिकार, कॉलोनी में दास प्रथा समाप्ति, मुफ्त प्राथमिक शिक्षा वगैरह इसके मुख्य पहलू रहे।

1863 – स्विट्जरलैंड में हेनरी ड्यूनेन्ट द्वारा रेड क्रॉस की अन्तर्राष्ट्रीय समिति का गठन :
युद्ध में घायल की रक्षा पर जेनेवा में पहली सभा (1929 में इसमें युद्ध के बंदियों को भी शामिल किया गया)

मानव अधिकार समय – सारणी

1920 – राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने और शांति व सुरक्षा की गारंटी के लिए राष्ट्रों के संघ की उत्पत्ति।

1924 – बालकों के अधिकारों की घोषणा – इस प्रकार की यह पहली अन्तर्राष्ट्रीय घोषणा थी।

1945 – संयुक्त राष्ट्र का सनद (चार्टर) जिनसे मानव अधिकारों व मूल स्वतंत्रताओं को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्पित किया गया।

1945 – यूनेस्को का गठन।

1946 – न्यूरेमबर्ग ट्रायल : नाजी नेताओं को अन्तरराष्ट्रीय सैन्य न्यायाधिकरण द्वारा सुनवाई तथा दोष सिद्धि।

1948 – मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा – नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों का संयोग।

1950 – मानव अधिकारों व मूल स्वतंत्रताओं के रक्षण पर यूरोपीय सम्मेलन।

1952 – महिला के राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (संयुक्त राष्ट्र)।

1965 – सभी प्रकार के जातिगत भेदभाव की समाप्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (संयुक्त राष्ट्र)।

मानव अधिकार समय – सारणी

1971 – ‘फ्रांसीसी डॉक्टर’ मानवतावादी आन्दोलन की शुरुआत।

1972 – जातीयता के खिलाफ फ्रांसीसी कानून।

1974 – राज्यों के आर्थिक अधिकारों व जिम्मेदारियों पर अंतरराष्ट्रीय सनद।

1976 – 1948 की मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का आदर सुनिश्चित करने के लिए दो अंतरराष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र।

1979 – महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (संयुक्त राष्ट्र)- महिला पुरुष समानता के लिए परिवार एवं समाज में पुरुष की पारम्परिक भूमिका में बदलाव की जरूरत की पुष्टि हुई।

1984 – यातना की रोकथाम पर अंतरराष्ट्रीय सभा

मानव अधिकार समय – सारणी

1988 – सहायता लेने के अधिकार को मान्यता (आपदा की स्थिति में)

1990 – बालकों के अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सभा

1990 – मानवतावादी कॉरीडोर की जरूरत को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा का प्रस्ताव

1991 – मध्यस्थी के अधिकार को पहली बार आधार मिला (इराक के उदाहरण से)

1992 – मानवतावादी सहायता की रक्षा के लिए बल प्रयोग को मान्यता (बॉसनिया – हरजेगोविना के उदाहरण में)

1998 – स्थायी अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की स्थापना

(आभार : एक्सनएड द्वारा प्रकाशित रिसोर्स बुक ‘अ ह्यूमन राइट्स अप्रोच टू डेवेलपमेन्ट’)

उद्धृत:- दलित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए प्रवेशिका उन्नति विकास शिक्षण संगठन और UNDP 2012

अनुच्छेद-1

इसमें कहा गया है कि सभी मानव प्राणी स्वतंत्र उत्पन्न हुए है।

अतः वे अधिकारों तथा महत्ता के क्षेत्र में समान हैं।

उनमें विवेक तथा चेतना है। अतः उनको नेतृत्व की भावना से कार्य करना चाहिये।

अनुच्छेद-2

प्रत्येक व्यक्ति समस्त अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त करने का अधिकारी है।

अनुच्छेद-3

जीवन तथा स्वतंत्रता का अधिकार।

अनुच्छेद-4

दासता तथा दास व्यापर का निषेध ।

अनुच्छेद-5

अमानवीय व्यवहार तथा यातना का निषेध ।

अनुच्छेद-6

प्रत्येक व्यक्ति को सर्वत्र विधि के समक्ष व्यक्ति के रूप में मान्यता का अधिकार है

अनुच्छेद-7

सभी व्यक्ति विधि के समक्ष समान हैं और किसी विभेद के बिना विधि के समान संरक्षण के हकदार हैं।

सभी व्यक्ति इस घोषणा के अतिक्रमण में विभेद के विरूद्ध और ऐसे विभेद के उद्दीपन के विरूद्ध समान संरक्षण के हकदार है।

अनुच्छेद-8

प्रत्येक व्यक्ति को संविधान या विधि द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों का अतिक्रमण करने वाले कार्यों के विरूद्ध समक्ष राष्ट्रीय अधिकरणों द्वारा प्रभावी उपचार का अधिकार है।

अनुच्छेद-9

किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से गिरफ्तार, विरूद्ध या निवासित नहीं किया जायेगा।

अनुच्छेद-10

प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों और बाध्यताओं के और उसके विरुद्ध आपराधिक आरोप के अवधारणा में पूर्णतया समाज के रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष अधिकरण द्वारा सार्वजनिक सुनवाई का हकदार है।

अनुच्छेद-11 (मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास)

(i) ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिस पर दण्डित अपराध का आरोप है।
यह अधिकार है कि तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक कि उसे लोक विचारण में जिसमें उसे अपने प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक सभी गारंटिया प्राप्त हो विधि के अनुसार दोष सिद्ध नहीं कर दिया जाता।

(ii) किसी भी व्यक्ति को ऐसे कार्य या लोप के कारण जो किए जाने के समय राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अधीन दांडिक अपराध नहीं था किसी दाण्डिक अपराध को दोषी निर्धारित नहीं किया जायेगा।
उस शक्ति से अधिक शक्ति अधिरोपित नहीं की जायेगी, जो उस समय लागू थी जब अपराध किया गया था।

अनुच्छेद-12

किसी भी व्यक्ति की एकांतता, कुटुम्ब धारा पत्र व्यवहार के साथ मनमाना हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा

उसके सम्मान व ख्याति पर प्रहार नहीं किया जायेगा।

प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे हस्तक्षेप या प्रहार के विरूद्ध विधि के संरक्षण का अधिकार है।

अनुच्छेद-13

(i) प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक राज्य की सीमाओं के भीतर संचरण और निवास की स्वतंत्रता का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश को या किसी भी देश को छोड़ने और अपने देश में वापस आने का अधिकार है।

अनुच्छेद-14

विश्राम स्थल प्राप्त करने का अधिकार *

अनुच्छेद-15

(i) प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार है।

(ii) किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से न तो उसकी राष्ट्रीयता से और न राष्ट्रीयता परिवर्तित करने के अधिकार से वंचित किया जायेगा।

अनुच्छेद-16

(i) वयस्क पुरूषों व स्त्रियों को मूल वंश, राष्ट्रीयता या धर्म के कारण किसी भी सीमा के बिना विवाह करने और कुटुंब स्थापित करने का पूर्ण अधिकार है।
वे विवाह के विषय में, विवाहित जीवनकाल में और उसके विघटन पर समान अधिकारों के हकदार है।

(ii) विवाह के इच्छुक पक्षकारों को स्वतंत्र और पूर्ण सम्मति से ही विवाह किया जायेगा।

(iii) कुटुंब समाज की नैसर्गिक और प्राथमिक सामाजिक इकाई है और इसे समाज एवं राज्य द्वारा संरक्षण का हकदार है।

अनुच्छेद-17

सम्पत्ति रखने का अधिकार।

अनुच्छेद-18

विचार, अन्तरात्मा तथा धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार।

अनुच्छेद-19

अभिव्यक्ति तथा सम्मति प्रकट करने का अधिकार।

अनुच्छेद-20

शान्तिपूर्ण ढंग से सभा व संघ बनाने का अधिकार।

अनुच्छेद-21 (मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास)

(i) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश की सरकार में सीधे या स्वतंत्रतापूर्वक चुने गये प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेने का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को अपनी देश की लोक सेवा में समान पहुंच का अधिकारहै।

अनुच्छेद-22

सामाजिक सुरक्षा का अधिकार।

अनुच्छेद-23

(i) प्रत्येक व्यक्ति को कार्य करने का,
नियोजन के स्वतंत्र चयन का,
कार्य की न्यायोचित और अनुकूल दशाओं का एवं बेरोजगारी के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को किसी विभेद के बिना समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार है।

(iii) प्रत्येक व्यक्ति को जो कार्य करता है ऐसे न्यायोचित और अनूकूल पारिश्रमिक का अधिकार है।

(iv) प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों के संरक्षण के लिए ट्रेड यूनियन बनाने और उनमें सम्मिलित होने का अधिकार है।

अनुच्छेद-24

प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है,

जिसके अंतर्गत कार्य के घंटों की युक्तियुक्त सीमा और समय-समय पर वेतन सहित अवकाश का भी प्रावधान है।

अनुच्छेद-25

(i) प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवन स्तर पर अधिकार है जो स्वयं उसके और उसके कुटुम्ब के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त है जिसक अन्तर्गत भोजन,रूग्णता, असक्तता, वैधव्य, वृद्धावस्था या उसके नियंत्रण के बाहर परिस्थितयों में जीवन यापन के अभाव की दशा में सुरक्षा का अधिकार है।

(ii) मातृत्व और बाल्यकाल विशेष देखभाल और सहायता के हकदार हैं।

सभी बच्चे चाहे उनका जन्म विवाहित या अविवाहित जीवनकाल में हुआ हो, समान सामाजिक सुरक्षा प्राप्त करेंगे।

अनुच्छेद-26

शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, कम से कम प्राथमिक और मौलिक स्तर पर शिक्षा निःशुल्क होगी।

अनुच्छेद-27

विभिन्न कलाओं में आनंद लेने का अधिकार तथा वैज्ञानिक विज्ञापनों में भाग लेना आदि।

अनुच्छेद-28

इस घोषणा पत्र में वर्णित अधिकारों व स्वतंत्रताओं को पूर्ण रूप से प्राप्त किया जा सकता है।

अनुच्छेद-29

इसमें उन दायित्वों का विवेचन किया गया है जिनका व्यक्ति को अपने समुदाय के प्रति निर्वाह करना है।

अनुच्छेद-30

इसमें कहा गया है कि कोई भी राष्ट्र इन अधिकारों की विवेचना अपने दृष्टिकोण से नहीं करेगा वरन् इसमें निहित अधिकारों को प्रदान करने के लिए कार्य करेगा।

इस प्रकार उपरोक्त घोषणा पत्र को सभी राष्ट्र व प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण आत्मीय निष्ठा के साथ पालन करे तो भारतीय “वसुधैवकुटुम्बकम” की भावना सम्पूर्ण विश्व में साकार हो और व्याप्त वैमनस्य, रंगभेद, क्षेत्रवाद व आतंकवादसमूल नष्ट हो जाए और विश्व एक आदर्श समाज में परिवर्तित हो जायेगा।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवाधिकार-संरक्षण के प्रयास: (मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास)

संघ द्वारा मानवाधिकारों के विकास के लिये समय-समय पर अनेक कदम उठाये गये हैं।
इनमें से कुछ प्रमुख प्रयास हैं-

25 जून, सन् 1945 को संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये गये एवं अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना हुई।

21 जून, सन् 1946 को आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा मानवाधिकार आयोग तथा महिलाओं की प्रस्थिति पर आयोग की स्थापना हुई।

9 दिसम्बर, सन् 1948 को महासभा द्वारा नरसंहार के अपराध की रोकथाम एवं दण्ड देने के संबंध में नरसंहार अभिसमय स्वीकृत हुआ।
वह 1951 से लागू हुआ।

संरक्षण के प्रयास

10 दिसम्बर, सन् 1948 को महासभा द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा स्वीकृत हुई।

12 अगस्त सन् 1949 को युद्ध में घायल सैनिक, जनसामान्य और कैदियों के कल्याण से संबंधित सहमति पत्र पर राजनीतिक सम्मेलन हुआ और यह सन् 1950 से लागू हुआ।

दिसम्बर, सन् 1952 को महासभा द्वारा महिाओं के राजनीतिक अधिकार संबंधी सहमति पत्र स्वीकृत हुआ।
जो सन् 1954 से लागू हुआ।

नवम्बर सन् 1954 को महासभा द्वारा बच्चों के अधिकार संबंधी घोषणा’ स्वीकृत हुयी।

1 अगस्त, सन् 1956 को आर्थिक व सामाजिक परिषद द्वारा सदस्य राष्ट्रो से प्रति 3 वर्ष पर मानवाधिकार संबंधी प्रतिवेदन लेने का निर्णय लिया।

दिसम्बर, सन् 1965 को महासभा द्वारा ‘सभी प्रकार के नस्लभेद प्रकारों के उन्मूलन संबंधी सहमति पत्र को स्वीकृत हुआ जो सन् 1969 से लागू हुआ।

संरक्षण के प्रयास

16 दिसम्बर, सन् 1966 को महासभा द्वारा नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों संबंधी अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा एवं आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा घोषित हुयी।
यह सन् 1976 से प्रभावी हुई।

6 जून, सन् 1967 को आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा मानवाधिकार आयोग तथा अल्पसंख्यकों की भेदभाव से सुरक्षा के लिये बने उप-आयोग को मानवाधिकार हनन के मामलों की जाँच का अधिकार दिया गया ।

7 नवम्बर, सन् 1967 को महासभा द्वारा महिलाओं के विरूद्ध भेदभाव की समाप्ति की घोषणा स्वीकृत हुई।

13 मई 1968 को मानवाधिकार से संबंधित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में तेहरान घोषणा’ हुई।

26 नवम्बर, सन् 1968 को महासभा द्वारा ऐसे युद्ध अपराधों की वैधानिकता की क्रियान्विति न करने की घोषणा हुई जो कि मानवता के विरुद्ध हो।
यह घोषणा सन् 1970 से लागू हुई।

संरक्षण के प्रयास

11 दिसम्बर सन् 1969 को महासभा द्वारा सामाजिक प्रगति और विकास संबंधी घोषणा की स्वीकृति प्राप्त हुई।

30 नवम्बर 1973 को महासभा द्वारा समस्त प्रकार के रंगभेद संबंधी अपराधों की समाप्ति तथा दण्ड के लिये अंतरराष्ट्रीय सहमति पत्र स्वीकृत हुआ। यह सन् 1976 से प्रभावी हुआ।

9 दिसम्बर, सन् 1975 को महासभा द्वारा सभी व्यक्तियों को क्रूरता, अमानवीयता तथा प्रताड़ना से बचने के लिये घोषणा स्वीकृत हुई।

23 मार्च 1976 को नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों संबंधी. अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा तथा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय बिल पारित हुआ।

18 दिसम्बर सन् 1979 को महासभा द्वारा महिलाओं से भेदभाव के सभी प्रकारों के उन्मूलन संबंधी सहमति पत्र (सीडॉ) स्वीकृत हुआ।

25 नवम्बर सन् 1979 को महासभा द्वारा धर्म या विश्वास पर आधारित भेदभाव तथा असहिष्णुता के उन्मूलन संबंधी घोषणा स्वीकृत हुयी।

10 दिसम्बर सन् 1984 को महासभा द्वारा यातना, क्रूरता तथा अमानवीयता के विरूद्ध सहमति पत्र स्वीकृत हुआ।

संरक्षण के प्रयास

28 मई सन् 1985 को आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर समिति स्थापित हुयी।

4 दिसंबर 1986 को महासभा द्वारा विकास के अधिकार की घोषणा स्वीकृत हुई।

9 दिसम्बर सन् 1988 को महासभा द्वारा सभी व्यक्तियों को किसी भी प्रकार की नजरबदी तथा कैद से बचाने संबंधी सिद्धान्त स्वीकृत हुए।

24 मई, 1989 को आर्थिक तथा सामाजिक परिषद द्वारा अवैधानिक स्वेच्छाचारी तथा विलंबित दण्ड से संबंधित प्रभावी सुरक्षा एवं जांच संबंधी सिद्धान्त स्वीकृत हुए।

20 नवम्बर 1989 को महासभा द्वारा बच्चों के अधिकारों से संबंधित एक सहमति पत्र स्वीकृत हुआ। यह सन् 1990 से प्रभावी हुआ।

18 दिसम्बर 1990 को महासभा द्वारा देशांतर गमन करने वाले श्रमिकों तथा उनके परिजनों के अधिकारों की रक्षा संबंधी अंतरराष्ट्रीय सहमति पत्र स्वीकृत हुआ।

संरक्षण के प्रयास

18 दिसम्बर 1992 को महासभा द्वारा जातीय धार्मिक तथा भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों संबंधी घोषणा स्वीकृत हुई।

22 मई 1993 को सुरक्षा परिषद द्वारा 1991 से यूगोस्लाविया में अंतरराष्ट्रीय मानवता करे कानून के उल्लंघन के मामलों के क्रम में अंतरराष्ट्रीय दण्ड न्यायाधिकरण की स्थापना हुई।

25 जून 1993 को मानवाधिकारों पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में वियना घोषणा एवं कार्य योजना प्रस्तुत हुई।

20 दिसम्बर 1993 को महासभा द्वारा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्तका पद सृजित हुआ।

5 अप्रैल 1994 को जोस आयचला लासो (एक्वाडोर निवासी) संयुक्त राष्ट्रमानवाधिकार आयोग के प्रथम आयुक्त बने।

8 नवम्बर 1994 को सुरक्षा परिषद द्वारा 1994 को रवाडा में हुये नरसंहार तथा मानवता करे कानूनों के उल्लंघन को रोकने के क्रम में एक न्यायाधिकरण की स्थापना हुई।

संरक्षण के प्रयास

23 दिसम्बर 1994 को महासभा द्वारा 1995 से 2004 तक की समयावधि को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार शिक्षा दशक के रूप में मनाये जाने की घोषणा हुई।

12 सितम्बर 1997 को मैरी रॉबिन्सन (आयरलैण्ड) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की द्वितीय आयुक्त बनी।

17 जुलाई 1998 को महादेव का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुआ तथा रोम में अन्तर्राष्ट्रीय दण्ड न्यायालय की स्थापना हुयी। इसकी पीठ हेग में है। (कटारिया सुरेंद्र,मानवाधिकार सभ्य समाज एवं पुलिस पृ. सं. 20-22 )

मानवाधिकारोंके संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ से इतर किए गए प्रयास एवं संगठन

1969 – सेंट जॉन्स कोस्टारिका अमेरिकी राज्यों के संगठन (OAS) के तत्वावधान में मानवाधिकारों का अमेरिकी अभिसमय  स्वीकार किया गया

जून 1981 – नैरोबी (केन्या) में अफ्रीकी एकता संगठन की अगुवाई में मानव तथा जन अधिकारों के अफ्रीकी चार्टर को अंगीकृत किया गया

जून 1993- वियना में मानवाधिकारों पर विश्व सम्मेलन (वियनाघोषणा)

अन्य महत्वपूर्ण संगठन – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

वर्ल्ड फ्रेंड्स ऑफ अर्थ . एम्सटर्डम , 1871

सेव द चिल्ड्रन फंड , लंदन , 1919

इन्टरनेशनल कमीशन फार ज्यूरिस्ट्स, 1952

एमनेस्टी इंटरनेशनल लंदन 1962 |

माइनारिटी राइट्स ग्रुप लंदन 1965 ।

सरवाइवल इंटरनेशनल , 1969 ।

ह्यूमन राइट्स वाच , न्यूयार्क , 1978, आदि।

भारतीय संविधान में मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु किए गए उपबंध – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

भारतीय संविधानवेत्ताओं नेभारतीय लोगों के अधिकारों के बारे मेंविशेष रुप से ध्यान रखाऔर भारतीय संविधान में मानवाधिकारों के लिए अनेक उपबंध किए गए हैं संविधान के अनुच्छेद 14 से 30में सभी भारतीय नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारदिए गए हैंइन प्रावधानों से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान निर्माताओं ने भारत की महान सभ्यता और संस्कृति को जीवंत रखते हुए मानव मात्र के कल्याण के लिए संवैधानिक प्रावधानों को लागू किया है-

अनुच्छेद 14 से 18 हर नागरिक को सभी क्षेत्रों में समानता का अधिकार प्रदान करते हैं-

अनुच्छेद 1

विधि के समक्ष समता का उल्लेख किया गया है।

सभी नागरिक कानून की नजर में समान हैं।

किसी व्यक्ति के साथ सिर्फ इसलिए अलग व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि
वह गरीब या अमीर है, शक्तिशाली या कमजोर है, महिला है या पुरुष है या किसी विशेष जाति का है।

अनुच्छेद 15

किसी भी व्यक्ति से धर्म, जाति, वर्ण, लिंग या जन्म स्थान केआधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 16

राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति में सभी को अवसरों की समानता होगी।

धर्म, वंश, जाति, उद्भव, जन्म स्थान, निवास पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 17

अस्पृश्यता समाप्ति की बात की गई है।

अस्पृश्यता के कारण किसी को अयोग्य घोषित करना दण्डनीय अपराध है।

अनुच्छेद 18

सभी उपाधियों का अंत किया गया है।

सेना या शिक्षा सम्बन्धी सम्मान के अलावा कोई उपाधि प्रदान नहीं की जाएगी और
विदेशी राज्य से कोई भेंट, उपलब्धि या पद, राष्ट्र की सहमति के बिना स्वीकार नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 19 से 22 नागरिक की वाक् तथा जीवन स्वातंत्र्य के अधिकार से सम्बन्धित हैं – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

अनुच्छेद 19

सभी नागरिकों को बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, शांतिपूर्ण तरीके से सम्मेलन करने की, संगम या संघ बनाने की तथा भारत में कहीं भी निर्यात आने-जाने अथवा निवास करने की स्वतंत्रता है।

हर नागरिक कोई भी आजीविका अपनाने या कारोबार करने के लिए स्वतंत्र है।

इन स्वतंत्रताओं पर रोक तभी लग सकती है जब वे देश की शांति व अखण्डता को भंग करती हों अथवा सार्वजनिक नैतिकता, स्वास्थ्य आदि के खिलाफ हों।

अत: लोग संगठन बना सकते हैं, सामूहिक विरोध व हड़ताल कर सकते हैं, सम्मेलन आयोजित कर सकते हैं और सरकार की आलोचना भी कर सकते हैं।

अनुच्छेद 20

यह अनुच्छेद अपराधों के लिए दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण प्रदान करता है।

एक व्यक्ति प्रवृत्त विधि के अनुसार ही दोषी ठहराया जा सकता है तथा उसे कानून में लिखे अनुसार ही सजा दी जा सकती है।

किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जा सकता।

अभियुक्त को स्वयं के विरूद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहींकिया जा सकता।

अनुच्छेद 21

हर नागरिक को जीवन व दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार है जिसे विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से ही वंचित किया जा सकता है।

संविधान के 86वें संशोधन के द्वारा 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों को नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है।

अनुच्छेद 22 – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारण से अवगत होने, विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा करने का अधिकार है।

कुछ संयोगों को छोड़कर, गिरफ्तारी से चौबीस घंटे की अवधि में गिरफ्तार व्यक्ति को निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना जरूरी है।

अनुच्छेद 23 और 24

नागरिक को शोषण के विरूद्ध अधिकार प्रदान करते हैं जिनमें मानव का दुर्व्यापार, बेगार, बलात्श्रम व बाल मजदूरी शामिल हैं।

अनुच्छेद 25 से 28

धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार से सम्बन्धित हैं।

ये हर नागरिक को अपने धर्म को मानने, आचरण व प्रचार करने की स्वतंत्रता देते हैं।

अनुच्छेद 29 और 30

अल्पसंख्यक वर्गों के संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धित हितों का संरक्षण करते हैं।

अनुच्छेद 32

अन्य अधिकारों के रक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।

यह नागरिकों को संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान करता है।

भारत द्वारा अनुसमर्थित अंतरराष्ट्रीय मानक – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

मानवाधिकार की सार्वभौमिक उद्घोषणा 1948

नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सभा 1966

आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सभा 1966

सभी प्रकार के जातीय भेदभाव उन्मूलन पर अअंतरराष्ट्रीय सभा 1965

महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अंतरराष्ट्रीय सभा 1979

बालकों के अधिकारों पर सभा 1989

अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्थान सभा संख्या 29 – बंधक मजदूरी सभा 1930, अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्थान सभा संख्या 111 – रोजगार में भेदभाव 1958, अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्थान सभा संख्या 107 – देशज लोकसभा 1957

अंतत – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

भारत में मानवाधिकारों के संरक्षण का मुख्य सैद्धान्तिक आधार सन् 1993 के मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम में निहित है यह कानून संविधान के अनुच्छेद 51 के अंतर्गत दिए गए निर्देशों के अनुकरण में और वियना सम्मेलन में दिए गए भारत के वचन को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।

संविधान में प्रदान मूलभूत अधिकारों को सहयोग करने वाले कई कानून हैं।

(आभार:- दलित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए प्रवेशिका, उन्नति विकास शिक्षण संगठन और UNDP 2012)

 

उपर्युक्त विवेचन स्पष्ट हो जाता है कि मानवाधिकारों की जड़े अत्यंत गहरी है।

वैदिक सभ्यता और उससे भी पहले भारत में मानव अधिकारों का विशेष ध्यान रखा जाता था, और धर्म में मानव अधिकार सुरक्षित रहते थे भारत के बाहर भी विश्व के अनेक देशों में मानव अधिकारों के बारे में व्यापक जानकारी मिलती है और वर्तमान समय में मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए अनेक संस्थाएं प्रयासरत हैं।

अनेक के देशों में ऐसे सांविधानिक उपबंध किए गए हैं जिनसे मानव अधिकारों को सुरक्षित और सुरक्षित रखा जा सके, लेकिन इसके बाद भी अनेक लोग इनका उल्लंघन करने का प्रयास भी करते हैं। ऐसी स्थिति में मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर अभी और प्रयास करने की आवश्यकता है। (आभार:-हम इस आलेख की मौलिकता का दवा नहीं करते हैं इस आलेख के लेखन में अनेक पुस्तकों एवं शोध प्रबंधों का उपयोग किया गया है हम उन सभी पुस्तकों के लेखकों और शोधार्थियों का हार्दिक आभार प्रकट करते हैं जिनसे हमें सहयोग प्राप्त हुआ)

 

इन्हें भी पढ़िए-

भारत का विधि आयोग (Law Commission, लॉ कमीशन)

मानवाधिकार (मानवाधिकारों का इतिहास)

मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग : संगठन तथा कार्य

भारतीय शिक्षा अतीत और वर्तमान

श्री सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के मतानुसार प्रांतीय भाषाओं और बोलियों का महत्व

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