जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय | कविताएं | कहानियाँ | रचनाएं | नाटक | भाषा शैली | कामायनी | आलोचना दृष्टि | कहानियाँ |
जन्म- 30 जनवरी, 1889 ई., वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु—15 नवम्बर, सन् 1937
भावना-प्रधान कहानी लेखक। काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है।
प्रसाद शाश्वत चेतना जब श्रेय ज्ञान को मूल चारुत्व में ग्रहण करती है, तब काव्य का सृजन होता है।
जयशंकर प्रसाद काव्य में आत्मा की संकल्पनात्मक मूल अनुभूति की मुख्यधारा रहस्यवाद है।
प्रसाद आधुनिक युग का रहस्यवाद उसी प्राचीन आनन्दवादी रहस्यवाद का स्वभाविक विकास है।
जयशंकर प्रसाद कला स्व को कलन करने या रूपायित करने का माध्यम है।
प्रसाद सर्वप्रथम छायावादी रचना ‘खोलो द्वार’ 1914 ई. में इंदु में प्रकाशित हुई।
हिंदी में ‘करुणालय’ द्वारा गीत नाट्य का भी आरंभ किया।
जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय
नाटक और रंगमंच – प्रसाद ने एक बार कहा था “रंगमंच नाटक के अनुकूल होना चाहिये न कि नाटक रंगमंच के अनुकूल।”
जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय
रचनाएँ
जयशंकर प्रसाद की आरम्भिक रचनाएँ यद्यपि ब्रजभाषा में मिलती हैं।
प्रसाद की ही प्रेरणा से 1909 ई. में उनके भांजे अम्बिका प्रसाद गुप्त के सम्पादकत्व में “इन्दु” नामक मासिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ हुआ।
काव्य संग्रह
‘प्रेम पथिक’ का ब्रजभाषा स्वरूप सबसे पहले ‘इन्दू’ (1909 ई.) में प्रकाशित हुआ था
‘चित्राधार’ (1918, अयोध्या का उद्धार, वनमिलन और प्रेमराज्य तीन कथाकाव्य इसमें संगृहीत हैं।)
‘झरना’ (1918, छायावादी शैली में रचित कविताएँ इसमें संगृहीत)
‘कानन कुसुम’ है (1918, खड़ीबोली की कविताओं का प्रथम संग्रह है)
आँसू’ (1925 ई.) ‘आँसू’ एक श्रेष्ठ गीतिकाव्य है।
‘महाराणा का महत्त्व’ (1928) 1914 ई. में ‘इन्दु’ में प्रकाशित हुआ था। यह भी ‘चित्राधार’ में संकलित था, पर 1928 ई. में इसका स्वतन्त्र प्रकाशन हुआ। इसमें महाराणा प्रताप की कथा है।
गीतिनाट्य- ‘करुणालय’ (1913, 1928 स्वतंत्र प्रकाशन, गीतिनाट्य, राजा हरिश्चन्द्र की कथा)
कहानी संग्रह : जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय
ग्राम (1910, प्रथम कहानी)
छाया (1912, प्रथम कहानी-संग्रह, 6 कहानियाँ)—ग्राम, चन्दा, रसिया बालम, मदन-मृणालिनी, तानसेन। छाया के दूसरे संस्करण (1918) में छह कहानियाँ शामिल की गई हैं— शरणागत, सिकन्दर की शपथ, चित्तौर का उद्धार, अशोक, जहाँआरा और ग़ुलाम
प्रतिध्वनि (1926, 15 कहानियाँ)—प्रसाद, गूदड़भाई, गुदड़ी के लाल, अघोरी के लाल, पाप की पराजय, सहयोग, पत्थर की पुकार, फस पार का योगी, करुणा की विजय, खंडहर की लिपि, कलावती की शिक्षा, चक्रवर्ती की स्तम्भ, दुखिया, प्रतिमा, प्रलय।
आकाशदीप (1929, 19 कहानियाँ)—आकाशद्वीप, ममता, स्वर्ग के खंडहर, सुनहला साँप, हिमालय का पथिक, भिखारिन, प्रतिध्वनि, कला, देवदासी, समुद्रसंतरण, बैरागी, बंजारा, चूड़ीवाला, अपराधी, प्रणय-चिह्न, रूप की छाया, ज्योतिष्मती, रमला और बिसाती।
‘आँसू’ और ‘कामायनी’ आपके छायावादी कवित्व के परिचायक हैं। छायावादी काव्य की सभी विशेषताएँ आपकी रचनाओं में प्राप्त होती हैं।
काव्यक्षेत्र में प्रसाद की कीर्ति का मूलाधार ‘कामायनी’ है। मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर संयोजित किया गया है।
कहानियाँ
तानसेन
चंदा
ग्राम
रसिया बालम
शरणागत
सिकंदर की शपथ
चित्तौड़-उद्धार
अशोक
गुलाम
जहाँआरा
मदन-मृणालिनी
प्रसाद
गूदड़ साईं
गुदड़ी में लाल
अघोरी का मोह
पाप की पराजय
सहयोग
पत्थर की पुकार
उस पार का योगी
करुणा की विजय
खंडहर की लिपि
कलावती की शिक्षा
चक्रवर्ती का स्तंभ
दुखिया
प्रतिमा
प्रलय
आकाशदीप
ममता
स्वर्ग के खंडहर में
सुनहला साँप
हिमालय का पथिक
भिखारिन
प्रतिध्वनि
कला
देवदासी
समुद्र-संतरण
वैरागी
बनजारा
चूड़ीवाली
अपराधी
प्रणय-चिह्न
रूप की छाया
ज्योतिष्मती
रमला
बिसाती
आँधी
मधुआ
दासी
घीसू
बेड़ी
व्रत-भंग
ग्राम-गीत
विजया
अमिट स्मृति
नीरा
पुरस्कार
इंद्रजाल
सलीम
छोटा जादूगर
नूरी
परिवर्तन
संदेह
भीख में
चित्रवाले पत्थर
चित्र-मंदिर
गुंडा
अनबोला
देवरथ
विराम-चिह्न
सालवती
उर्वशी
बभ्रुवाहन
ब्रह्मर्षि
पंचायत
कामायनी
कामायनी (1935 ई.) – यह प्रसाद जी की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। यह एक प्रबंध काव्य है जिसमें आदि पुरुष मनु की जीवन गाथा का वर्णन किया गया है। कामायनी के बारे में पूरा जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए- कामायनी महाकाव्य की जानकारी ।
विशेष तथ्य : जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय
प्रसाद जी छायावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं।
प्रसाद जी को छायावाद का ‘ब्रह्मा’ कहा जाता है।
इलाचंद्र जोशी एवं गणपति चंद्र गुप्त ने इन को ‘छायावाद का जनक माना’ है।
कुछ आलोचक प्रसाद जी को ‘झारखंडी कवि’ भी कहते हैं।
प्रसाद जी प्रारंभ में ‘कलाधर’ के नाम से ब्रज भाषा में रचना कार्य करते थे।
‘उर्वशी’ प्रसाद जी के गद्य-पद्य मय रचना (चंपू काव्य) है।
कुछ आलोचकों ने प्रसाद जी को पुरातन पंथी कहा है, क्योंकि उन्होंने साहित्य सृजन में भारतीय संस्कृति, ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को आधार बनाया है।
प्रसाद जी द्वारा रचित ‘करुणालय’ हिंदी का प्रथम गीतिनाट्य माना जाता है।
1909 ई. में ‘इन्दु’ पत्रिका के संपादन के साथ इनकी साहित्य यात्रा आरंभ हुई, जो कामायनी तक अनवरत चलती रही।
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पूरा नाम- कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना
जन्म- 6 जनवरी, 1932
जन्म भूमि- मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु -27 जनवरी, 2007 (75 वर्ष)
मृत्यु स्थान- फरीदाबाद, हरियाणा
कर्म-क्षेत्र – उपन्यासकार, लेखक, आलोचक, फ़िल्म पटकथा लेखक
भाषा- हिंदी
आन्दोलन- नई कहानी आन्दोलन ( समांतर कहानी या आम आदमी की कहानी आंदोलन)
पुरस्कार-उपाधि-
2005 में पद्मभूषण,
2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कितने पाकिस्तान)
प्रसिद्धि -उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया।
कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना का साहित्य
कमलेश्वर की रचनाएं
कहानी संग्रह : कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय
मांस का दरिया
बयान
समग्र कहानियां -2002 (इस कहानी में इनकी 1946 से 1997 के बीच रचित 111 कहानियों का संकलन है)
देस-परदेश-2004
कस्बे का राजा
हम पैसा
खोई हुई दिशाएं
यह अकेले अपने दम पर सामांतर कहानी को आगे बढ़ाने वाले कहानीकार माने जाते हैं|
समांतर कहानी का प्रचार प्रसार सारिका पत्रिका 1974-75 के माध्यम से हुआ|
कमलेश्वर ने अकहानीवादी कहानीकारों की उच्छृंखल भोगवादी प्रवृत्तियों का विरोध करते हुए ‘धर्म युग’ पत्रिका में ‘अय्यास प्रेतों का विद्रोह’ शीर्षक से एक लेखमाला प्रकाशित करते हुए अकहानीकारों की तीव्र आलोचना की थी|
कहानियाँ
कमलेश्वर ने तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ हैं-
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जन्म -14 दिसम्बर, 1910
जन्म भूमि- जालंधर, पंजाब
मृत्यु -19 जनवरी, 1996
अभिभावक – पण्डित माधोराम
पत्नी -कौशल्या अश्क
भाषा:- हिन्दी
काल:- आधुनिक काल (समष्टि चेतना प्रधान काव्य के कवि)
विधा:- गद्य और पद्य
विषय:- कविता, कहानी, उपन्यास
उपेन्द्रनाथ अश्क का साहित्य परिचय
उपेन्द्रनाथ अश्क की एकांकी : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी
इनके द्वारा रचित एकांकियों को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-
(1) सामाजिक व्यंग्यात्मक एकांकी-
पापी ,1937
लक्ष्मी का स्वागत ,1938
मोहब्बत ,1938
क्रॉसवर्ड पहेली ,1939
अधिकार का रक्षक ,1938
आपस का समझोता 1939
स्वर्ग की झलक 1939
विवाह के दिन 1939
जोंक,1939
(2) सांकेतिक एवं प्रतीकात्मक एकांकी-
चरवाहे 1942
चिलमन 1942
खिड़की 1942
चुंबक 1942
मैमुना 1942
देवताओं की छाया में 1940
चमत्कार 1943
सुखी डाली 1943
अंधी गली 1954
साहब को जुकाम है
पक्का गाना
(3)मनोवैज्ञानिक एकांकी/प्रहसन-
आदिमार्ग 1947
अंजो दीदी 1954
भंवर 1950
कैसा साब कैसी आया
पर्दा उठाओ-पर्दा गिराओ 1951
बतसिया 1952
सयाना मालिक 1952
जीवनसाथी 1952
एकांकी संग्रह-
छह एकांकी
पच्चीस श्रेष्ठ एकांकी
कविताएं
विदा (1917, प्रथम कविता)
एक दिन आकाश ने कहा,
प्रातःदीप,
दीप जलेगा,
बरगद की बेटी,
उर्म्मियाँ,
रिजपर
अजगर और चाँदनी
उपन्यास: उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी
सितारों का खेल,1937 (पहला उपन्यास)
गिरती दीवारें, 1947
गर्म राख,1952
बड़ी-बड़ी आँखे,1954
पत्थर-अल-पत्थर-1957
शहर में घूमता आईना, 1963
बाँधों न नाव इस ठाँव,1964
एक नन्ही किंदील,1969
कहानी संग्रह
सत्तर श्रेष्ठ कहानियां,
जुदाई की शाम के गीत,
काले साहब,
पिंजरा,
कहानियां
निशानियाँ
दो धारा
मुक्त
देशभक्त
कांगड़ा का तेली
डाची
आकाशचारी
टेबुल लैंड
नाटक : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी
जय-पराजय,1937
छठा बेटा,1940
कैद,1945
उड़ान,1946 (मुक्त हवा में सांस लेती नारी का चित्रण)
भंवर,1950
पैंतरे,1952
अंजो दीदी,1954 (मशीनीकरण/यंत्रीकरण के कारण टुटते परिवार का हृदयस्पर्शी चित्रण)
अंधी गली-1954
अलग-अलग रास्ते,1954
लौटता हुआ दिन,
बड़े खिलाडी,
स्वर्ग की झलक,
सूखी डाली
तौलिए
आत्मकथा
पाँचवा खंड
चेहरे अनेक
संस्मरण : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी
रेखाएँ और चित्र,1955
मण्टो मेरा दुश्मन,1956 (निबंध)
ज्यादा अपनी कम परायी,1959
उर्दू के बेहतरीन संस्मरण,1962 (संपादन)
फिल्मी जीवन की झलकियाँ
आलोचना : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी
अन्वेषण की सहयात्रा,
हिन्दी कहानी: एक अन्तरंग परिचय
विशेष तथ्य : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी
प्रेमचंद जी की तरह इन्होंने भी प्रारंभ में ‘उर्दू’ में लेखन कार्य किया था।
इन्होंने ‘भूचाल’ नामक साप्ताहिक पत्र का संपादन किया था।
कुछ दिनों तक इन्होने ऑल इंडिया रेडियो और फिल्म जगत् में भी काम किया था।
बच्चन सिंह के अनुसार अश्क हिंदी के पहले नाटककार हैं, जिनका ध्यान रंगमंच की ओर गया।
नगेंद्र के अनुसार यह पहले ऐसे नाटककार हैं जिन्होंने हिंदी नाटक को रोमांस के कटघरे से निकालकर आधुनिक भाव बोध के साथ जोड़ा।
उर्दू के सफल लेखक उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ ने मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। 1933 में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह ‘औरत की फितरत’ की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी।
भगवती चरण वर्मा जीवन-परिचय, भगवती चरण वर्मा का साहित्य परिचय, कविताएं, रचनाएं, उपन्यास, पुरस्कार सम्मान, विशेष तथ्य
जन्म -30 अगस्त, 1903
जन्म भूमि- उन्नाव ज़िला, उत्तर प्रदेश
मृत्यु -5 अक्टूबर, 1981
विषय- उपन्यास, कहानी, कविता, संस्मरण, साहित्य आलोचना, नाटक, पत्रकार।
विद्यालय -इलाहाबाद विश्वविद्यालय
शिक्षा – बी.ए., एल.एल.बी.
प्रसिद्धि – उपन्यासकार
काल- आधुनिककाल
काव्यधारा- व्यक्ति चेतना प्रधान काव्यधारा या हालावाद
भगवती चरण वर्मा का साहित्य परिचय
भगवती चरण वर्मा की रचनाएं
उपन्यास
पतन (1928),
चित्रलेखा (1934),
तीन वर्ष,
टेढे़-मेढे रास्ते (1946)
अपने खिलौने (1957),
भूले-बिसरे चित्र (1959),
वह फिर नहीं आई,
सामर्थ्य और सीमा (1962),
थके पाँव,
रेखा,
सीधी सच्ची बातें,
युवराज चूण्डा,
सबहिं नचावत राम गोसाईं, (1970)
प्रश्न और मरीचिका, (1973)
धुप्पल,
चाणक्य
कहानी-संग्रह
मोर्चाबंदी
कविता-संग्रह
मधुकण (1932)
‘प्रेम-संगीत'(1937)
‘मानव’ (1940)
नाटक
वसीहत
रुपया तुम्हें खा गया
संस्मरण
अतीत के गर्भ से
विशेष तथ्य
‘मस्ती, आवेश एवं अहं ‘ उनकी कविताओं के केंद्र बिंदु माने जाते हैं|
उनकी रचनाएं 1917 ईस्वी से ही ‘प्रताप’ पत्र में प्रकाशित होने लगी थी|
इन्होने प्रताप पत्र का संपादन भी किया|
चित्रलेखा उपन्यास की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है-पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है ? इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नांबर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमश: सामंत बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नांबर की टिप्पणी है, ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।
पुरस्कार सम्मान : भगवती चरण वर्मा जीवन-परिचय
1961 में ‘भूले बिसरे चित्र’ उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरूस्कार से पुरूस्कृत किया गया।
वर्ष 1969 में इन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से अलंकृत किया गया।
आदरणीय वर्मा जी वर्ष 1978 में भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा के लिये चुने गये।
इन्हे पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
प्रसिद्ध पंक्तियां
“मैं मुख्य रूप से उपन्यासकार हूँ, कवि नहीं-आज मेरा उपन्यासकार ही सजग रह गया है, कविता से लगाव छूट गया है।” “किस तरह भुला दूँ, आज हाय, कल की ही तो बात प्रिये! जब श्वासों का सौरभ पीकर, मदमाती साँसें लहर उठीं, जब उर के स्पन्दन से पुलकित उर की तनमयता सिरह उठी, मैं दीवाना तो ढूँढ रहा हूँ वह सपने की रात प्रिये! किस तरह भुला दूँ आज हाय कल की ही तो है बात प्रिये!”