कवि जानकी वल्लभ शास्त्री

कवि जानकी वल्लभ शास्त्री

कवि जानकी वल्लभ शास्त्री का जीवन परिचय, जानकी वल्लभ शास्त्री की रचनाएं, जानकी वल्लभ शास्त्री के काव्य संग्रह एवं कविताएं, मेघगीत कविता

जीवन परिचय

जन्म -5 फरवरी 1916

जन्म भूमि- गया, बिहार

मृत्यु -7 अप्रैल 2011

मृत्यु स्थान – मुज़फ्फरपुर, बिहार

पिता- रामानुग्रह शर्मा

पत्नी – छाया देवी

कर्म-क्षेत्र -साहित्य

भाषा- हिन्दी

प्रसिद्धि – कवि, लेखक

जानकी वल्लभ शास्त्री की रचनाएं

जानकी वल्लभ शास्त्री के काव्य संग्रह एवं कविताएं

बाललता

अंकुर

उन्मेष

रूप-अरूप

तीर-तरंग

शिप्रा

अवन्तिका

मेघगीत

गाथा

प्यासी-पृथ्वी

संगम

उत्पलदल

चन्दन वन

शिशिर किरण

हंस किंकिणी

सुरसरी

गीत

वितान

धूपतरी

बंदी मंदिरम्‌

नाटक

देवी

ज़िन्दगी

आदमी

नील-झील

उपन्यास

एक किरण : सौ झांइयां

दो तिनकों का घोंसला

अश्वबुद्ध

कालिदास

चाणक्य शिखा (अधूरा)

कहानी संग्रह

कानन

अपर्णा

लीला कमल

सत्यकाम

बांसों का झुरमुट

ग़ज़ल संग्रह

सुने कौन नग़मा

महाकाव्य

राधा

संस्मरण

अजन्ता की ओर

निराला के पत्र

स्मृति के वातायन

नाट्य सम्राट पृथ्वीराज कपूर

हंस-बलाका

कर्म क्षेत्रे मरु क्षेत्र

अनकहा निराला

ललित निबंध

मन की बात

जो न बिक सकीं

विशेष तथ्य

जानकी वल्लभ शास्त्री का पहला गीत ‘किसने बांसुरी बजाई’ बहुत लोकप्रिय हुआ।

प्रो. नलिन विमोचन शर्मा ने उन्हें प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी के बाद पांचवां छायावादी कवि कहा है|

इनकी प्रथम रचना ‘गोविन्दगानम्‌’ है |

निराला ही उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं।

पुरस्कार, सम्मान एवं उपाधियाँ

राजेंद्र शिखर पुरस्कार,

भारत भारती पुरस्कार,

शिव सहाय पूजन पुरस्कार

प्रसिद्ध पंक्तियाँ

सब अपनी अपनी कहते है।
कोई न किसी की सुनता है,
नाहक कोई सिर धुनता है।
दिल बहलाने को चल फिर कर,
फिर सब अपने में रहते है।

सबके सिर पर है भार प्रचुर,
सबका हारा बेचारा उर
अब ऊपर ही ऊपर हँसते,
भीतर दुर्भर दुख सहते है।

ध्रुव लक्ष्य किसी को है न मिला,
सबके पथ में है शिला शिला
ले जाती जिधर बहा धारा,
सब उसी ओर चुप बहते हैं।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय

जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय | कविताएं | कहानियाँ | रचनाएं | नाटक | भाषा शैली | कामायनी | आलोचना दृष्टि | कहानियाँ |

जन्म- 30 जनवरी, 1889 ई., वाराणसी, उत्तर प्रदेश

मृत्यु—15 नवम्बर, सन् 1937

भावना-प्रधान कहानी लेखक। काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है

प्रसाद शाश्वत चेतना जब श्रेय ज्ञान को मूल चारुत्व में ग्रहण करती है, तब काव्य का सृजन होता है।

जयशंकर प्रसाद काव्य में आत्मा की संकल्पनात्मक मूल अनुभूति की मुख्यधारा रहस्यवाद है।

प्रसाद आधुनिक युग का रहस्यवाद उसी प्राचीन आनन्दवादी रहस्यवाद का स्वभाविक विकास है।

जयशंकर प्रसाद कला स्व को कलन करने या रूपायित करने का माध्यम है।

प्रसाद सर्वप्रथम छायावादी रचना ‘खोलो द्वार’ 1914 ई. में इंदु में प्रकाशित हुई।

हिंदी में ‘करुणालय’ द्वारा गीत नाट्य का भी आरंभ किया।

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय

नाटक और रंगमंच – प्रसाद ने एक बार कहा था “रंगमंच नाटक के अनुकूल होना चाहिये न कि नाटक रंगमंच के अनुकूल।”

जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय
जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय

रचनाएँ

जयशंकर प्रसाद की आरम्भिक रचनाएँ यद्यपि ब्रजभाषा में मिलती हैं।

प्रसाद की ही प्रेरणा से 1909 ई. में उनके भांजे अम्बिका प्रसाद गुप्त के सम्पादकत्व में “इन्दु” नामक मासिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ हुआ।

काव्य संग्रह

‘प्रेम पथिक’ का ब्रजभाषा स्वरूप सबसे पहले ‘इन्दू’ (1909 ई.) में प्रकाशित हुआ था

‘चित्राधार’ (1918, अयोध्या का उद्धार, वनमिलन और प्रेमराज्य तीन कथाकाव्य इसमें संगृहीत हैं।)

‘झरना’ (1918, छायावादी शैली में रचित कविताएँ इसमें संगृहीत)

‘कानन कुसुम’ है (1918, खड़ीबोली की कविताओं का प्रथम संग्रह है)

आँसू’ (1925 ई.) ‘आँसू’ एक श्रेष्ठ गीतिकाव्य है।

‘महाराणा का महत्त्व’ (1928) 1914 ई. में ‘इन्दु’ में प्रकाशित हुआ था। यह भी ‘चित्राधार’ में संकलित था, पर 1928 ई. में इसका स्वतन्त्र प्रकाशन हुआ। इसमें महाराणा प्रताप की कथा है।

लहर (1933, मुक्तक रचनाओं का संग्रह)

कामायनी (1935, महाकाव्य)

नाटक

सज्जन (1910 ई., महाभारत से)

कल्याणी-परिणय (1912 ई., चन्द्रगुप्त मौर्य, सिल्यूकस, कार्नेलिया, कल्याणी)

‘करुणालय’ (1913, 1928 स्वतंत्र प्रकाशन, गीतिनाट्य, राजा हरिश्चन्द्र की कथा) इसका प्रथम प्रकाशन ‘इन्दु’ (1913 ई.) में हुआ।

प्रायश्चित् (1013, जयचन्द, पृथ्वीराज, संयोगिता)

राज्यश्री (1914)

विशाख (1921)

अजातशत्रु (1922)

जनमेजय का नागयज्ञ (1926)

कामना (1927)

स्कन्दगुप्त (1928, विक्रमादित्य, पर्णदत्त, बन्धवर्मा, भीमवर्मा, मातृगुप्त, प्रपंचबुद्धि, शर्वनाग, धातुसेन (कुमारदास), भटार्क, पृथ्वीसेन, खिंगिल, मुद्गल,कुमारगुप्त, अननतदेवी, देवकी, जयमाला, देवसेना, विजया, तमला,रामा,मालिनी, स्कन्दगुप्त)

एक घूँट (1929, बनलता, रसाल, आनन्द, प्रेमलता)

चन्द्रगुप्त (1931, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, सिकन्दर, पर्वतेश्वर, सिंहरण, आम्भीक, अलका, कल्याणी, कार्नेलिया, मालविका, शकटार)

ध्रुवस्वामिनी (1933, चन्द्रगुप्त, रामगुप्त, शिखरस्वामी, पुरोहित, शकराज, खिंगिल, मिहिरदेव, ध्रुवस्वामिनी, मंदाकिनी, कोमा)

गीतिनाट्य- ‘करुणालय’ (1913, 1928 स्वतंत्र प्रकाशन, गीतिनाट्य, राजा हरिश्चन्द्र की कथा)

कहानी संग्रह : जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

ग्राम (1910, प्रथम कहानी)

छाया (1912, प्रथम कहानी-संग्रह, 6 कहानियाँ)—ग्राम, चन्दा, रसिया बालम, मदन-मृणालिनी, तानसेन। छाया के दूसरे संस्करण (1918) में छह कहानियाँ शामिल की गई हैं— शरणागत, सिकन्दर की शपथ, चित्तौर का उद्धार, अशोक, जहाँआरा और ग़ुलाम

प्रतिध्वनि (1926, 15 कहानियाँ)—प्रसाद, गूदड़भाई, गुदड़ी के लाल, अघोरी के लाल, पाप की पराजय, सहयोग, पत्थर की पुकार, फस पार का योगी, करुणा की विजय, खंडहर की लिपि, कलावती की शिक्षा, चक्रवर्ती की स्तम्भ, दुखिया, प्रतिमा, प्रलय।

आकाशदीप (1929, 19 कहानियाँ)—आकाशद्वीप, ममता, स्वर्ग के खंडहर, सुनहला साँप, हिमालय का पथिक, भिखारिन, प्रतिध्वनि, कला, देवदासी, समुद्रसंतरण, बैरागी, बंजारा, चूड़ीवाला, अपराधी, प्रणय-चिह्न, रूप की छाया, ज्योतिष्मती, रमला और बिसाती।

आँधी (1929, 11 कहानियाँ)—आँधी, मधुआ, दासी, घीसू, बेड़ी, व्रतभंग, ग्रामगीत, विजया, अमिट स्मृति, नीरा और पुरस्कार।

इन्द्रजाल (1936, 14 कहानियाँ)— इन्द्रजाल, सलीम, छोटा जादूगर, नूरी, परिवर्तन, सन्देह, भीख में, चित्रवाले पत्थर, चित्रमन्दिर, ग़ुण्डा, अनबोला, देवरथ, विराम चिह्न और सालवती।

उपन्यास

कंकाल (1929, पात्र : श्रीचन्द, देवनिरंजन, मंगलदेव, बाथम, कृष्णशरण, विजय, किशोरी, यमुना, तारा, घंटी, लतिका, माला)

तितली (1934, पात्र : मधुबन, रामनाथ, तितली, राजकुमारी, इन्द्रदेव, श्यामदुलारी, माधुरी, शैला)

इरावती (1934 अपूर्ण, पात्र : बृहस्पतिमित्र, पुष्यमित्र, अग्निमित्र, खारवेल, कालिन्दी, इरावती, मणिमाला, धनदत्त, आनन्द)

उर्वशी (1906)

बभ्रुवाहन (1907)

चित्रांगदा।

निबन्ध

काव्य-कला और अन्य निबन्ध (1939, कुल 8 निबन्ध)

‘आँसू’ और ‘कामायनी’ आपके छायावादी कवित्व के परिचायक हैं। छायावादी काव्य की सभी विशेषताएँ आपकी रचनाओं में प्राप्त होती हैं।

काव्यक्षेत्र में प्रसाद की कीर्ति का मूलाधार ‘कामायनी’ है। मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर संयोजित किया गया है।

कहानियाँ

तानसेन

चंदा

ग्राम

रसिया बालम

शरणागत

सिकंदर की शपथ

चित्तौड़-उद्धार

अशोक

गुलाम

जहाँआरा

मदन-मृणालिनी

प्रसाद

गूदड़ साईं

गुदड़ी में लाल

अघोरी का मोह

पाप की पराजय

सहयोग

पत्थर की पुकार

उस पार का योगी

करुणा की विजय

खंडहर की लिपि

कलावती की शिक्षा

चक्रवर्ती का स्तंभ

दुखिया

प्रतिमा

प्रलय

आकाशदीप

ममता

स्वर्ग के खंडहर में

सुनहला साँप

हिमालय का पथिक

भिखारिन

प्रतिध्वनि

कला

देवदासी

समुद्र-संतरण

वैरागी

बनजारा

चूड़ीवाली

अपराधी

प्रणय-चिह्न

रूप की छाया

ज्योतिष्मती

रमला

बिसाती

आँधी

मधुआ

दासी

घीसू

बेड़ी

व्रत-भंग

ग्राम-गीत

विजया

अमिट स्मृति

नीरा

पुरस्कार

इंद्रजाल

सलीम

छोटा जादूगर

नूरी

परिवर्तन

संदेह

भीख में

चित्रवाले पत्थर

चित्र-मंदिर

गुंडा

अनबोला

देवरथ

विराम-चिह्न

सालवती

उर्वशी

बभ्रुवाहन

ब्रह्मर्षि

पंचायत

कामायनी

कामायनी (1935 ई.) – यह प्रसाद जी की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। यह एक प्रबंध काव्य है जिसमें आदि पुरुष मनु की जीवन गाथा का वर्णन किया गया है। कामायनी के बारे में पूरा जानने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए- कामायनी महाकाव्य की जानकारी

विशेष तथ्य : जयशंकर प्रसाद जीवन-परिचय साहित्यिक-परिचय

प्रसाद जी छायावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं।

प्रसाद जी को छायावाद का ‘ब्रह्मा’ कहा जाता है।

इलाचंद्र जोशी एवं गणपति चंद्र गुप्त ने इन को ‘छायावाद का जनक माना’ है।

कुछ आलोचक प्रसाद जी को ‘झारखंडी कवि’ भी कहते हैं।

प्रसाद जी प्रारंभ में ‘कलाधर’ के नाम से ब्रज भाषा में रचना कार्य करते थे।

‘उर्वशी’ प्रसाद जी के गद्य-पद्य मय रचना (चंपू काव्य) है।

कुछ आलोचकों ने प्रसाद जी को पुरातन पंथी कहा है, क्योंकि उन्होंने साहित्य सृजन में भारतीय संस्कृति, ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को आधार बनाया है।

प्रसाद जी द्वारा रचित ‘करुणालय’ हिंदी का प्रथम गीतिनाट्य माना जाता है।

1909 ई. में ‘इन्दु’ पत्रिका के संपादन के साथ इनकी साहित्य यात्रा आरंभ हुई, जो कामायनी तक अनवरत चलती रही।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय, कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना का साहित्य, कमलेश्वर की रचनाएं, कमलेश्वर के कहानी संग्रह, फिल्मी पटकथा

पूरा नाम- कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना

जन्म- 6 जनवरी, 1932

जन्म भूमि- मैनपुरी, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -27 जनवरी, 2007 (75 वर्ष)

मृत्यु स्थान- फरीदाबाद, हरियाणा

कर्म-क्षेत्र – उपन्यासकार, लेखक, आलोचक, फ़िल्म पटकथा लेखक

भाषा- हिंदी

आन्दोलन- नई कहानी आन्दोलन ( समांतर कहानी या आम आदमी की कहानी आंदोलन)

पुरस्कार-उपाधि-
2005 में पद्मभूषण,
2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कितने पाकिस्तान)

प्रसिद्धि -उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया।

कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना का साहित्य

कमलेश्वर की रचनाएं

कहानी संग्रह : कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय

मांस का दरिया

बयान

समग्र कहानियां -2002 (इस कहानी में इनकी 1946 से 1997 के बीच रचित 111 कहानियों का संकलन है)

देस-परदेश-2004

कस्बे का राजा

हम पैसा

खोई हुई दिशाएं

यह अकेले अपने दम पर सामांतर कहानी को आगे बढ़ाने वाले कहानीकार माने जाते हैं|

समांतर कहानी का प्रचार प्रसार सारिका पत्रिका 1974-75 के माध्यम से हुआ|

कमलेश्वर ने अकहानीवादी कहानीकारों की उच्छृंखल भोगवादी प्रवृत्तियों का विरोध करते हुए ‘धर्म युग’ पत्रिका में ‘अय्यास प्रेतों का विद्रोह’ शीर्षक से एक लेखमाला प्रकाशित करते हुए अकहानीकारों की तीव्र आलोचना की थी|

कहानियाँ

कमलेश्वर ने तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ हैं-

भटके हुए लोग ( शरणार्थी समस्या पर आधारित कहानी)

राजा निरबंसिया

मांस का दरिया

नीली झील

तलाश

बयान

नागमणि

अपना एकांत

आसक्ति

ज़िंदा मुर्दे

जॉर्ज पंचम की नाक

मुर्दों की दुनिया

कस्बे का आदमी

देवी की मां

बचपन में जो लिखा नहीं जाता

एक रुकी हुई जिंदगी

खोई हुई दिशाएं

उपन्यास

( प्रयोगवादी या आधुनिकताबोधवादी उपन्यासकार)

एक सड़क सत्तावन गलियाँ -1961

डाक बंगला-1962

लौटे हुए मुसाफ़िर-1963

तीसरा आदमी-1964

समुद्र में खोया हुआ आदमी-1965

काली आँधी

आगामी अतीत-1976

सुबह…दोपहर…शाम-1982

रेगिस्तान-1988

वही बात

एक और चंद्रकांता

कितने पाकिस्तान-2000 (2003 साहित्य अकादमी पुरस्कार)

नाटक

अधूरी आवाज़

रेत पर लिखे नाम

हिंदोस्ता हमारा

आत्मकथा

जलती हुई नदी

जो मैने जिया

यादों के चिराग

संस्मरण

अपनी निगाह में-1982

संपादन

अपने जीवनकाल में अलग-अलग समय पर उन्होंने सात पत्रिकाओं का संपादन किया –

विहान-पत्रिका (1954)

नई कहानियाँ-पत्रिका (1958-66)

सारिका-पत्रिका (1957-78)

कथायात्रा-पत्रिका (1978-79)

गंगा-पत्रिका(1984-88)

इंगित-पत्रिका (1961-68)

श्रीवर्षा-पत्रिका (1979-80)

अखबारों में भूमिका

वे हिन्दी दैनिक `दैनिक जागरण’ में 1990 से 1992 तक तथा ‘दैनिक भास्कर’ में 1997 से लगातार स्तंभलेखन का काम करते रहे।’

पटकथा एवं संवाद : कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना जीवन-परिचय

कमलेश्वर ने 99 फ़िल्मों के संवाद, कहानी या पटकथा लेखन का काम किया। कुछ प्रसिद्ध फ़िल्मों के नाम हैं-

सौतन की बेटी(1989)-संवाद

लैला(1984)- संवाद, पटकथा

यह देश (1984) -संवाद

रंग बिरंगी(1983) -कहानी

सौतन(1983)- संवाद

साजन की सहेली(1981)- संवाद, पटकथा

राम बलराम (1980)- संवाद, पटकथा

मौसम(1974)- कहानी

आंधी (1974)- उपन्यास

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय

उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय, साहित्य परिचय, उपेन्द्रनाथ अश्क की एकांकी, नाटक, भाषा शैली, संक्षिप्त परिचय, लेखक परिचय, एकांकी, कविताएं

जन्म -14 दिसम्बर, 1910

जन्म भूमि- जालंधर, पंजाब

मृत्यु -19 जनवरी, 1996

अभिभावक – पण्डित माधोराम

पत्नी -कौशल्या अश्क

भाषा:- हिन्दी

काल:- आधुनिक काल (समष्टि चेतना प्रधान काव्य के कवि)

विधा:- गद्य और पद्य

विषय:- कविता, कहानी, उपन्यास

उपेन्द्रनाथ अश्क का साहित्य परिचय

उपेन्द्रनाथ अश्क की एकांकी : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

इनके द्वारा रचित एकांकियों को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-

(1) सामाजिक व्यंग्यात्मक एकांकी-

पापी ,1937

लक्ष्मी का स्वागत ,1938

मोहब्बत ,1938

क्रॉसवर्ड पहेली ,1939

अधिकार का रक्षक ,1938

आपस का समझोता 1939

स्वर्ग की झलक 1939

विवाह के दिन 1939

जोंक,1939

(2) सांकेतिक एवं प्रतीकात्मक एकांकी-

चरवाहे 1942

चिलमन 1942

खिड़की 1942

चुंबक 1942

मैमुना 1942

देवताओं की छाया में 1940

चमत्कार 1943

सुखी डाली 1943

अंधी गली 1954

साहब को जुकाम है

पक्का गाना

(3)मनोवैज्ञानिक एकांकी/प्रहसन-

आदिमार्ग 1947

अंजो दीदी 1954

भंवर 1950

कैसा साब कैसी आया

पर्दा उठाओ-पर्दा गिराओ 1951

बतसिया 1952

सयाना मालिक 1952

जीवनसाथी 1952

एकांकी संग्रह-

छह एकांकी

पच्चीस श्रेष्ठ एकांकी

कविताएं

विदा (1917, प्रथम कविता)

एक दिन आकाश ने कहा,

प्रातःदीप,

दीप जलेगा,

बरगद की बेटी,

उर्म्मियाँ,

रिजपर

अजगर और चाँदनी

उपन्यास: उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

सितारों का खेल,1937 (पहला उपन्यास)

गिरती दीवारें, 1947

गर्म राख,1952

बड़ी-बड़ी आँखे,1954

पत्थर-अल-पत्थर-1957

शहर में घूमता आईना, 1963

बाँधों न नाव इस ठाँव,1964

एक नन्ही किंदील,1969

कहानी संग्रह

सत्तर श्रेष्ठ कहानियां,

जुदाई की शाम के गीत,

काले साहब,

पिंजरा,

कहानियां

निशानियाँ

दो धारा

मुक्त

देशभक्त

कांगड़ा का तेली

डाची

आकाशचारी

टेबुल लैंड

नाटक : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

जय-पराजय,1937

छठा बेटा,1940

कैद,1945

उड़ान,1946 (मुक्त हवा में सांस लेती नारी का चित्रण)

भंवर,1950

पैंतरे,1952

अंजो दीदी,1954 (मशीनीकरण/यंत्रीकरण के कारण टुटते परिवार का हृदयस्पर्शी चित्रण)

अंधी गली-1954

अलग-अलग रास्ते,1954

लौटता हुआ दिन,

बड़े खिलाडी,

स्वर्ग की झलक,

सूखी डाली

तौलिए

आत्मकथा

पाँचवा खंड

चेहरे अनेक

संस्मरण : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

रेखाएँ और चित्र,1955

मण्टो मेरा दुश्मन,1956 (निबंध)

ज्यादा अपनी कम परायी,1959

उर्दू के बेहतरीन संस्मरण,1962 (संपादन)

फिल्मी जीवन की झलकियाँ

आलोचना : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

अन्वेषण की सहयात्रा,

हिन्दी कहानी: एक अन्तरंग परिचय

विशेष तथ्य : उपेन्द्रनाथ अश्क जीवन-परिचय एकांकी

प्रेमचंद जी की तरह इन्होंने भी प्रारंभ में ‘उर्दू’ में लेखन कार्य किया था।

इन्होंने ‘भूचाल’ नामक साप्ताहिक पत्र का संपादन किया था।

कुछ दिनों तक इन्होने ऑल इंडिया रेडियो और फिल्म जगत् में भी काम किया था।

बच्चन सिंह के अनुसार अश्क हिंदी के पहले नाटककार हैं, जिनका ध्यान रंगमंच की ओर गया।

नगेंद्र के अनुसार यह पहले ऐसे नाटककार हैं जिन्होंने हिंदी नाटक को रोमांस के कटघरे से निकालकर आधुनिक भाव बोध के साथ जोड़ा।

उर्दू के सफल लेखक उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ ने मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। 1933 में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह ‘औरत की फितरत’ की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

भगवती चरण वर्मा

भगवती चरण वर्मा का जीवन परिचय

भगवती चरण वर्मा जीवन-परिचय, भगवती चरण वर्मा का साहित्य परिचय, कविताएं, रचनाएं, उपन्यास, पुरस्कार सम्मान, विशेष तथ्य

जन्म -30 अगस्त, 1903

जन्म भूमि- उन्नाव ज़िला, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -5 अक्टूबर, 1981

विषय- उपन्यास, कहानी, कविता, संस्मरण, साहित्य आलोचना, नाटक, पत्रकार।

विद्यालय -इलाहाबाद विश्वविद्यालय

शिक्षा – बी.ए., एल.एल.बी.

प्रसिद्धि – उपन्यासकार

काल- आधुनिककाल

काव्यधारा- व्यक्ति चेतना प्रधान काव्यधारा या हालावाद

भगवती चरण वर्मा का साहित्य परिचय

भगवती चरण वर्मा की रचनाएं

उपन्यास

पतन (1928),

चित्रलेखा (1934),

तीन वर्ष,

टेढे़-मेढे रास्ते (1946)

अपने खिलौने (1957),

भूले-बिसरे चित्र (1959),

वह फिर नहीं आई,

सामर्थ्य और सीमा (1962),

थके पाँव,

रेखा,

सीधी सच्ची बातें,

युवराज चूण्डा,

सबहिं नचावत राम गोसाईं, (1970)

प्रश्न और मरीचिका, (1973)

धुप्पल,

चाणक्य

कहानी-संग्रह

मोर्चाबंदी

कविता-संग्रह

मधुकण (1932)

‘प्रेम-संगीत'(1937)

‘मानव’ (1940)

नाटक

वसीहत

रुपया तुम्हें खा गया

संस्मरण

अतीत के गर्भ से

विशेष तथ्य

‘मस्ती, आवेश एवं अहं ‘ उनकी कविताओं के केंद्र बिंदु माने जाते हैं|

उनकी रचनाएं 1917 ईस्वी से ही ‘प्रताप’ पत्र में प्रकाशित होने लगी थी|

इन्होने प्रताप पत्र का संपादन भी किया|

चित्रलेखा उपन्यास की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है-पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है ? इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नांबर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमश: सामंत बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नांबर की टिप्पणी है, ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।

पुरस्कार सम्मान : भगवती चरण वर्मा जीवन-परिचय

1961 में ‘भूले बिसरे चित्र’ उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरूस्कार से पुरूस्कृत किया गया।

वर्ष 1969 में इन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से अलंकृत किया गया।

आदरणीय वर्मा जी वर्ष 1978 में भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा के लिये चुने गये।

इन्हे पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

प्रसिद्ध पंक्तियां

“मैं मुख्य रूप से उपन्यासकार हूँ, कवि नहीं-आज मेरा उपन्यासकार ही सजग रह गया है, कविता से लगाव छूट गया है।”
“किस तरह भुला दूँ, आज हाय,
कल की ही तो बात प्रिये!
जब श्वासों का सौरभ पीकर,
मदमाती साँसें लहर उठीं,
जब उर के स्पन्दन से पुलकित
उर की तनमयता सिरह उठी,
मैं दीवाना तो ढूँढ रहा
हूँ वह सपने की रात प्रिये!
किस तरह भुला दूँ आज हाय
कल की ही तो है बात प्रिये!”

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार

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