रामचन्द्र शुक्ल Ramchandra Shukla

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Aachrya Ramchandra Shukla 

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Aachrya Ramchandra Shukla जीवन-परिचय साहित्य परिचय निबंध संग्रह आलोचना ग्रंथ भाषा शैली हिंदी साहित्य काल विभाजन

जीवन-परिचय

जन्म- 4 अक्टूबर, 1884

जन्म भूमि – अगोना, बस्ती ज़िला, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -1941 ई.

अभिभावक- पं. चंद्रबली शुक्ल

कर्म भूमि- वाराणसी

कर्म क्षेत्र- साहित्यकार, निबंध सम्राट, आलोचक, लेखक

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Aachrya Ramchandra Shukla जीवन-परिचय साहित्य परिचय निबंध संग्रह आलोचना ग्रंथ भाषा शैली हिंदी साहित्य काल विभाजन
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

साहित्य परिचय

रचनाएं

कहानी

ग्याहर वर्ष का समय,1903 ई (सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित)

आलोचना ग्रंथ

जायसी ग्रंथावली 1925

भ्रमरगीतसार 1926

हिंदी साहित्य का इतिहास,1929

काव्य में रहस्यवाद-1929

रस मीमांसा (सैद्धान्तिक समीक्षा)

महाकवि सूरदास (व्यावहारिक समीक्षा)

विश्व प्रपंच (दर्शन)

गोस्वामी तुलसीदास,1933

साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद

रसात्मक बोध के विविध रूप

निबंध

चिंतामणि (चार खण्ड)

इनके समस्त निबंधों को चिंतामणि के दो भागों में संकलित किया गया था चिंतामणि का प्रथम भाग 1939 वह द्वितीय भाग 1945 ईसवी में प्रकाशित हुआ था। वर्तमान में इसके चार खंड उपलब्ध हैं।

चिंतामणि के प्रथम भाग में संकलित निबंध (सत्रह)

भाव या मनोविकार

उत्साह

श्रद्धा- भक्ति

करुणा

लज्जा और ग्लानि

लोभ और प्रीति

घृणा

ईर्ष्या

भय

क्रोध

कविता क्या है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

तुलसी का भक्ति मार्ग

‘मानस’ की धर्म भूमि

काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था

साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद (आलोचना विद्या)

रसात्मक बोध के विविध रूप (आलोचना विद्या)

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भाग दो में

प्राकृतिक दृश्य

काव्य में रहस्यवाद

काव्य में अभिव्यंजनावाद

चिंतामणि को पहले ‘विचार-विथि’ नाम से प्रकाशित करवाया गया था।

चिंतामणि रचना के लिए इनको ‘देव पुरस्कार’ प्राप्त हुआ था।

ये हिंदी में ‘कलात्मक निबंधों’ के जनम दाता माने जाते हैं।

इनको ‘निबंध सम्राट’ के नाम से जाना जाता है।

चिंतामणि भाग-3 (1983 ई.)

इसके संपादक डॉ. नामवरसिंह हैं। इस कृति में कुल 21 निबंध है।

चिंतामणि भाग-4 (2002 ई.)

इसके संपादक डॉ. कुसुम चतुर्वेदी और डॉ. ओमप्रकाश सिंह है। इस रचना में कुल 47 निबंध है।

इतिहास ग्रंथ

हिंदी साहित्य का इतिहास

(सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य का सर्वप्रथम परंपरागत इतिहास)

रचनाकाल- 1929 ई.

प्रकाशक- नागरी प्रचारणी सभा, काशी

जनवरी, 1929 में यह पुस्तक ‘नागरी प्रचारणी सभा, काशी’ द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘हिंदी शब्दसागर की भूमिका’ (‘हिंदी साहित्य का विकास’ नाम से) के रूप में प्रकाशित हुई थी।

इसी वर्ष के मध्य में उस भूमिका के आरंभ एवं अंत में बहुत सी बातें बढ़ाकर आचार्य शुक्ल ने इसे स्वतंत्र पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया।

1940 ईस्वी में इसका परिवर्तित एवं संशोधित संस्करण प्रकाशित करवाया गया।

(हिंदी शब्द सागर के निर्माण में निम्न तीन विद्वानों का योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है- बाबू श्यामसुंदर दास, रामचंद्र शुक्ल, रामचंद्र वर्मा)

‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ ग्रंथ की प्रमुख विशेषताएं : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीवन-परिचय

सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन की परंपरा का विकास आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा ही किया गया।

इस पुस्तक में लगभग 1000 कवियों के जीवन चरित्र का विवेचन किया गया है|

कवियों की संख्या की अपेक्षा उनके साहित्यिक मूल्यांकन को महत्व प्रदान किया गया है अर्थात हिंदी साहित्य के विकास में विशेष योगदान देने वाले कवियों को ही इसमें शामिल किया गया है कम महत्व वाले कवियों को इसमें जगह नहीं मिली है।

इसमें प्रत्येक काल या शाखा की सामान्य प्रवृत्तियों का वर्णन कर लेने के बाद उससे संबंध प्रमुख कवियों का वर्णन किया गया है।

कवियों के काव्य निरुपण में आधुनिक समालोचनात्मक दृष्टिकोण को अपनाया गया है।

कवियों एवं लेखकों की रचना शैली का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है।

उस युग में आने वाले अन्य कवियों का विवरण उसके बाद फुटकल खाते में दिया गया है।

केदारनाथ पाठक ने इस रचना के लेखन में शुक्ल जी को अपूर्व सहयोग प्रदान किया था।

इस रचना के लेखन में शुक्ल जी ने निम्न रचनाओं से विशेष साहित्य सामग्री ग्रहण की थी-

मिश्रबंधु विनोद- मिश्रबंधु

हिंदी कोविद् रत्नमाला- श्यामसुंदरदास

कविता कौमुदी- रामनरेश त्रिपाठी

ब्रजमाधुरी सार- वियोगी हरी

काल विभाजन : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीवन-परिचय

आचार्य शुक्ल ने हिंदी साहित्य के 900 वर्षों के इतिहास को निम्न चार सुस्पष्ट काल खंडों में वर्गीकृत किया है, जो आज तक भी लगभग सभी इतिहासकारों द्वारा मान्य किया जा रहा है, यथा-

वीरगाथाकाल (आदिकाल)- वि.स. 1050 से वि.स. 1375 तक ( 993-1318 ई.)
वीरगाथाकाल के दो भाग-

(I) अपभ्रंस काल या प्राकृताभाषा हिंदी काल (1050-1200 वि.)
(II) वीरगाथाकाल (1200-1375 वि.)

पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल)- वि.स. 1375 से वि.स. 1700 (1318-1643 ई)

उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल)- वि.स. 1700 से वि.स. 1900 तक (1643-1843 ई.)

गद्य काल (आधुनिक काल)-वि.स. 1900 सें वि.स 1984 (1843-1927 ई.)

रामचंद्र शुक्ल ने वीरगाथा काल के नामकरण के लिए निम्न 12 ग्रंथों का आधार लिया था-

विजयपाल रासो

हम्मीर रासो

पृथ्वीराज रासो

परमाल रासो

बिसलदेव रासो

खुमान रासो

कीर्ति लता

कीर्तिपताका

विद्यापति की पदावली

जयचंदप्रकाश

जयमयंकजसचंद्रिका

खुसरो की पहेलियां

विशेष तथ्य : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जीवन-परिचय

सन् 1909 से 1910 ई. के लगभग वे ‘हिन्दी शब्द सागर’ के सम्पादन में सहायक के रूप में काशी आ गये, यहीं पर काशी नागरी प्रचारिणी सभा के विभिन्न कार्यों को करते हुए उनकी प्रतिभा चमकी।

‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का सम्पादन भी उन्होंने कुछ दिनों तक किया था।

सन् 1937 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए एवं इस पद पर रहते हुए ही सन् 1941 ई. में उनकी श्वास के दौरे में हृदय गति बन्द हो जाने से मृत्यु हो गई।

शुक्ल जी ने हिंदी साहित्य का पहला क्रमबद्ध इतिहास तैयार किया और साहित्यक आलोचना की पद्धति विकसित की।

चिंतन और विश्लेषण परक निबंधकार के रूप में भी उनका स्थान शीर्ष पर है।

कविता, नाटक, कहानी आदि सर्जनात्मक विद्याओं में भी उनका उल्लेखनीय योगदान है।

गोस्वामी तुलसीदास, जायसी ग्रंथावली एवं भ्रमरगीत सार इन तीनों ग्रंथों की भूमिका त्रिवेणी में संकलित है।

त्रिवेणी में तीन महाकवियों सूरदास तुलसीदास और जायसी की समीक्षाएँ प्रस्तुत की हैं।

‘काव्य में रहस्यवाद’ इनकी सर्वप्रथम सैद्धांतिक आलोचना मानी जाती है।

‘रस मीमांसा’ रचना में इन्होंने सिद्धांत के विभिन्न पक्षों की नई व्याख्या प्रस्तुत की है।

जिन्होंने आलोचना के तीनों रूपों सैद्धांतिक, व्यावहारिक एवं ऐतिहासिक पर अपनी लेखनी चलाई है।

शुक्ल ने भूषण की भाषा की आलोचना की है।

“काव्य में रहस्यवाद” निबंध पर इन्हें हिंदुस्तानी एकेडमी से 500 रुपये का पुरस्कार।

‘चिंतामणि’ पर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा 1200 रुपये का मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।

“काव्य में रहस्यवाद” निबंध पर इन्हें हिन्दुस्तानी अकादमी से 500 रुपये का तथा चिंतामणि पर हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग द्वारा 1200 रुपये का मंगला प्रशाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।

शुक्ल ने जोसेफ़ एडिसन के ‘प्लेजर्स ऑफ़ इमेजिनेशन’ का ‘कल्पना का आनन्द’ नाम से एवं राखलदास वन्द्योपाध्याय के ‘शशांक’ उपन्यास का भी हिन्दी में रोचक अनुवाद किया।

विशेष तथ्य

रामचन्द्र शुक्ल ने ‘जायसी ग्रन्थावली’ तथा ‘बुद्धचरित’ की भूमिका में क्रमश: अवधी तथा ब्रजभाषा का भाषा-शास्त्रीय विवेचन करते हुए उनका स्वरूप भी स्पष्ट किया है।

उन्होंने सैद्धान्तिक समीक्षा पर लिखा, जो उनकी मृत्यु के पश्चात् संकलित होकर ‘रस मीमांसा’ नाम की पुस्तक में विद्यमान है तथा तुलसी, जायसी की ग्रन्थावलियों एवं ‘भ्रमर गीतसार’ की भूमिका में लम्बी व्यावहारिक समीक्षाएँ लिखीं, जिनमें से दो ‘गोस्वामी तुलसीदास ‘ तथा ‘महाकवि सूरदास ‘ अलग से पुस्तक रूप में भी प्रकाशित हैं।

दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी ‘विश्व प्रपंच’ पुस्तक उपलब्ध है। यह पुस्तक ‘रिडल ऑफ़ दि युनिवर्स’ का अनुवाद है, पर उसकी लम्बी भूमिका शुक्ल जी के द्वारा किया गया मौलिक प्रयास है।

उन्होंने ‘आलम्बनत्व धर्म का साधारणीकरण’ माना।

काव्य शैली के क्षेत्र में उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थापना ‘बिम्ब ग्रहण’ को श्रेष्ठ मानने सम्बन्धी है।

शुक्ल ने काव्य को कर्मयोग एवं ज्ञानयोग के समकक्ष रखते हुए ‘भावयोग’ कहा, जो मनुष्य के हृदय को मुक्तावस्था में पहुँचाता है।

वे कविताएँ भी लिखते थे। उनका एक काव्य संग्रह ‘मधुस्रोत’ है।

शुक्ल जी ‘हिंदी शब्दसागर’ के सहायक संपादक नियुक्त किए गए। ‘हिंदी शब्दसागर’ के प्रधान संपादक श्यामसुंदर दास थे। ‘हिंदी शब्दसागर’ का प्रकाशन 11 खंडों में हुआ।

शुक्ल जी ने ‘शब्दसागर की भूमिका’ के लिए ‘हिंदी साहित्य का विकास’ लिखा उसी तरह श्यामसुंदर दास ने ‘हिंदी भाषा का विकास’ लिखा। श्यामसुंदर दास की यह इच्छा थी कि दोनों भूमिकाएँ संयुक्त रूप से प्रकाशित हों और लेखक के रूप में दोनों का नाम छपे। शुक्ल जी ने इसका घोर विरोध किया। यह कहा जाता है कि सभा में लाठी के बल पर रात में अयोध्यासिंह उपाध्याय ने जाकर इतिहास पर शुक्ल जी का नाम छपवाया।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

रघुवीर सहाय जीवन परिचय

रघुवीर सहाय जीवन परिचय

रघुवीर सहाय जीवन परिचय – साहित्यिक परिचय – काव्य संवेदना – भाषा शैली – काव्य भाषा – काव्य विशेषता – रचनाएं – काव्यधारा – पुरस्कार एवं सम्मान

  • जन्म -9 दिसंबर, 1929
  • जन्म भूमि- लखनऊ, उत्तर प्रदेश
  • मृत्यु -30 दिसंबर, 1990
  • मृत्यु स्थान -दिल्ली
  • पत्नी- विमलेश्वरी सहाय
  • कर्म-क्षेत्र -लेखक, कवि, पत्रकार, सम्पादक, अनुवादक
  • भाषा- हिन्दी, अंग्रेज़ी
  • विद्यालय- लखनऊ विश्वविद्यालय
  • शिक्षा -एम. ए. (अंग्रेज़ी साहित्य)
  • काल- आधुनिक काल
  • युग- प्रयोगवाद युग (दुसरा सप्तक-1951 के कवि)

साहित्यिक परिचय : रघुवीर सहाय जीवन परिचय

रचनाएं

कविता संग्रह

दूसरा सप्तक

सीढ़ियों पर धूप में (प्रथम)

आत्महत्या के विरुद्ध, 1967

लोग भूल गये हैं, 1982

मेरा प्रतिनिधि

हँसो हँसो जल्दी हँसो (आपातकाल सें संबंधित कविताओं का संग्रह)

कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ, 1989

एक समय था

कहानी संग्रह

रास्ता इधर से है

जो आदमी हम बना रहे है

नाटक

बरनन वन (शेक्सपियर द्वारा रचित’मैकबेथ’ नाटक का अनुवाद)

निबंध संग्रह

दिल्ली मेरा परदेस

लिखने का कारण

ऊबे हुए सुखी

वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे

भँवर लहरें और तरंग

पत्र-पत्रिकाओं में लेखन और संपादन

रघुवीर सहाय ‘नवभारत टाइम्स’, दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। ‘दिनमान’ पत्रिका के 1969 से 1982 तक प्रधान संपादक रहे।

उन्होंने 1982 से 1990 तक स्वतंत्र लेखन किया।

पुरस्कार एवं सम्मान : रघुवीर सहाय जीवन परिचय

साहित्य अकादमी पुरस्कार,1984 (लोग भूल गए हैं)

प्रसिद्ध पंक्तियां : रघुवीर सहाय जीवन परिचय

“तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्‍थर ये चट्टानें
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती का हम जानें
सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्‍यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने”

“राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है.”

“पतझर के बिखरे पत्तों पर चल आया मधुमास,
बहुत दूर से आया साजन दौड़ा-दौड़ा
थकी हुई छोटी-छोटी साँसों की कम्पित
पास चली आती हैं ध्वनियाँ
आती उड़कर गन्ध बोझ से थकती हुई सुवास”

“निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे”

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar जीवन परिचय – साहित्यिक परिचय – रचनाएं – कहानियाँ – एकांकी – नाटक – बाल साहित्य – भाषा शैली – पुरस्कार एवं सम्मान

जीवन परिचय

अन्य नाम – विष्णु दयाल

जन्म -21 जून, 1912

जन्म भूमि- मीरापुर, ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश

मृत्यु -11 अप्रैल, 2009

मृत्यु स्थान -नई दिल्ली (प्रभाकर जी ने अपनी वसीयत में मृत्यूपरांत अपने संपूर्ण अंगदान करने की इच्छा व्यक्त की थी। इसीलिए उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया, बल्कि उनकी पार्थिव देह को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया।)

अभिभावक -दुर्गा प्रसाद (पिता), महादेवी (माता)

पत्नी – सुशीला

काल: -आधुनिक काल

विधा: -गद्य

विषय:- कहानी, उपन्यास, नाटक

साहित्यिक परिचय

रचनाएं : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

कविता संग्रह

चलता चला जाऊँगा

कहानी संग्रह

‘संघर्ष के बाद’

‘धरती अब भी धूम रही है’

‘मेरा वतन’,

‘खिलौने’, 1981

‘एक और कुंती’,1985

‘जिन्दगी: एक रिहर्सल’ 1986

‘आदि और अन्त’,

‘एक आसमान के नीचे’,

‘अधूरी कहानी’,

‘कौन जीता कौन हारा’,

‘तपोवन की कहानियाँ’,

‘पाप का घड़ा’,

‘मोती किसके’

एक कहानी का जन्म

रहमान का बेटा

जिंदगी के थपेड़े

सफर के साथी

खंडित पूजा

साँचे और कला

पुल टूटने से पहले

आपकी कृपा

उपन्यास

(ऐतिहासिक/व्यक्तिवादी उपन्यासकार)

‘ढलती रात’,

‘स्वप्नमयी’,

‘अर्द्धनारीश्वर’, 1992 (इस उपन्यास पर 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला)

‘होरी’,

‘कोई तो’,

‘निशिकान्त’, 1955

‘तट के बंधन’,

‘स्वराज्य की कहानी’

‘संकल्प-1993

तट के बंधन

दर्पण का व्यक्ति

परछाई

कोई तो

आत्मकथा

‘क्षमादान’ और ‘पंखहीन’ नाम से उनकी आत्मकथा 3 भागों में राजकमल प्रकाशन से 2004 में प्रकाशित हो चुकी है।

‘पंछी उड़ गया’, 2004

‘मुक्त गगन में’ 2004

नाटक : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

‘समाधि’,

‘सत्ता के आर-पार’, 1981

‘नवप्रभात’,

‘डॉक्टर’,

‘लिपस्टिक की मुस्कान’,

अब और नही,

टूट्ते परिवेश,

गान्धार की भिक्षुणी और

‘रक्तचंदन’,

‘युगे युगे क्रान्ति’,

‘बंदिनी’

‘श्वेत कमल’
– ‘डॉक्टर’ एक मनोवैज्ञानिक सामाजिक नाटक है,जिसमें डॉ. अनीला के संदर्भ में भावना और नैतिक कर्तव्य का संघर्ष दिखाया गया है |
-‘बंदिनी’ प्रभात कुमार मुखोपाध्याय द्वारा रचित कहानी ‘देवी’ का नाट्य रूपान्तरण है|

एकांकी

प्रकाश और परछाई,

इंसान,

बारह एंकाकी,

क्या वह दोषी था,

दस बजे रात,

ये रेखाएँ ये दायरे,

ऊँचा पर्वत गहरा सागर

जीवनी : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

आवारा मसीहा (नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने से शरच्चंद्र पर आवारा मसीहा नामक जीवनी लिखी। इसे लिखने में 14 वर्ष का समय लगा। यह जीवनी 1974 में प्रकाशित हुई। इसके 3 भाग है-

दिशांत

दिशा की खोज

दिशा हारा

अमर शहीद भगत सिंह

सरदार वल्लभभाई पटेल

काका कालेलकर संस्मरण : जाने-अनजाने

कुछ शब्द : कुछ रेखाएँ

यादों की तीर्थयात्रा

मेरे अग्रज : मेरे मीत

समांतर रेखाएँ

मेरे हमसफर

राह चलते-चलते

निबंध

जन-समाज और संस्कृति : एक समग्र दृष्टि

क्या खोया क्या पाया

बाल साहित्य : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

मोटेलाल

कुंती के बेटे

रामू की होली

दादा की कचहरी

जब दीदी भूत बनी

जीवन पराग

बंकिमचंद्र

अभिनव एकांकी

स्वराज की कहानी

हड़ताल

जादू की गाय

घमंड का फल

नूतन बाल एकांकी

हीरे की पहचान

मोतियों की खेती

पाप का घड़ा

गुड़िया खो गई

ऐसे-ऐसे

तपोवन की कहानियाँ

खोया हुआ रतन

बापू की बातें

हजरत उमर

बद्रीनाथ

कस्तूरबा गांधी

ऐसे थे सरदार

हमारे पड़ोसी

मन के जीते जीत

कुम्हार की बेटी

शंकराचार्य

यमुना की कहानी

रवींद्रनाथ ठाकुर

मैं अछूत हूँ

एक देश एक हृदय

मानव अधिकार

नागरिकता की ओर

यात्रा वृतान्त

ज्योतिपुन्ज हिमालय

जमुना गंगा के नैहर में

पुरस्कार एवं सम्मान : विष्णु प्रभाकर Vishnu Prabhakar

मूर्तिदेवी पुरस्कार

साहित्य अकादमी पुरस्कार

सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार

पद्म भूषण

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कविताएं, कहानियाँ, काव्य विशेषताएं, भाषा शैली, पुरस्कार एवं सम्मान

जीवन परिचय

जन्म- 7 मार्च 1911 कुशीनगर, देवरिया, उत्तर प्रदेश, भारत

मृत्यु- 4 अप्रैल 1987 दिल्ली, भारत

उपनाम- अज्ञेय

बचपन का नाम- सच्चा

ललित निबंधकार नाम- कुट्टिचातन

रचनाकार नाम- अज्ञेय (जैनेन्द्र-प्रेमचंद द्वारा दिया गया)

पिता- पंडित हीरानन्द शास्त्री

माता- कांति देवी

कार्यक्षेत्र- कवि, लेखक

भाषा- हिन्दी

काल- आधुनिक काल

विधा- कहानी, कविता, उपन्यास, निबंध

विषय- सामाजिक, यथार्थवादी

आन्दोलन- नई कविता, प्रयोगवाद

1930 से 1936 तक इनका जीवन विभिन्न जेलों में कटा।

1943 से 1946 ईसवी तक सेना में नौकरी की।

आपने क्रांतिकारियों के लिए बम बनाने का कार्य भी किया और बम बनाने के अपराध में जेल गए।

इसके बाद उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी की।

सन् 1971-72 में जोधपुर विश्वविद्यालय में ‘तुलनात्मक साहित्य’ के प्रोफेसर।

1976 में छह माह के लिए हइडेलबर्ग जर्मनी के विश्वविद्यालय में अतिथि प्रोफेसर।

इनका जीवन यायावरी एवं क्रांतिकारी रहा जिसके कारण वह किसी एक व्यवस्था में बंद कर नहीं रह सके।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय | Sachchidanand Heeranand Vatsyayan Ageya | जीवन परिचय | साहित्यिक परिचय, रचनाएं, कविताएं, कहानियाँ, काव्य विशेषताएं, भाषा शैली, पुरस्कार एवं सम्मान
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

साहित्यिक परिचय

कलिष्ट शब्दों का प्रयोग करने के कारण आचार्य शुक्ल ने इन्हें  ‘कठिन गद्य का प्रेत’ कहा है। 

इनको व्यष्टि चेतना का कवि भी कहा जाता है।

‘हरी घास पर क्षणभर’ इनकी प्रौढ़ रचना मानी जाती है इसमें बुलबुल श्यामा, फुदकी, दंहगल, कौआ जैसे विषयों को लेकर कवि ने अपनी अनुभूति का परिचय दिया है।

इंद्रधनुष रौंदे हुएचना में नए कवियों की भावनाओं को अभिव्यक्त किया गया है।

उनका लगभग समग्र काव्य सदानीरा (दो खंड) नाम से संकलित हुआ है।

इन्होंने गधे जैसे जानवर को भी काव्य का विषय बनाया।

इनके काव्य की मूल प्रवृतियां आत्म-स्थापन या अपने आपको को थोपने की रही है अर्थात इन्होंने स्वयं का गुणगान करके दूसरों को तुच्छ सिद्ध करने का प्रयास किया है।

इनकी कविताओं में प्रकृति, नारी, कामवासना आदि विभिन्न विषयों का निरूपण हुआ है किंतु वहां भी यह अपनी ‘अहं और दंभ ‘को छोड़ नहीं पाए हैं।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : रचनाएं

कविता संग्रह

भग्नदूत 1933,

चिन्ता 1942,

इत्यलम्1946,

हरी घास पर क्षण भर 1949,

बावरा अहेरी 1954,

इंद्रधनुष रौंदे हुए 1957,

अरी ओ करुणा प्रभामय 1959,

आँगन के पार द्वार 1961,

कितनी नावों में कितनी बार (1967),

क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970),

सागर मुद्रा (1970),

पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974),

महावृक्ष के नीचे (1977),

नदी की बाँक पर छाया (1981),

प्रिज़न डेज़ एण्ड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में,1946)

रूपाम्बरा,

सावन मेघ,

अन्तर्गुहावासी (कविता),

ऐसा कोई घर आपने देखा है- 1986

असाध्य वीणा कविता चीनी (जापानी) लोक कथा पर आधारित है, जो ‘ओकाकुरा’ की पुस्तक ‘दी बुक ऑफ़ टी’ में ‘टेमिंग ऑफ द हार्प’ शीर्षक से संग्रहित है। यह एक लम्बी रहस्यवादी कविता है जिस पर जापान में प्रचलित बौद्धों की एक शाखा जेन संप्रदाय के ‘ध्यानवाद’ या ‘अशब्दवाद’ का प्रभाव परिलक्षित होता है। यह कविता अज्ञेय के काव्य संग्रह ’आँगन के पार द्वार’ (1961) में संकलित है। आँगन के पार द्वार कविता के तीन खण्ड है –
1. अंतः सलिला
2. चक्रान्त शिला
3. असाध्य वीणा

कहानियाँ

विपथगा 1937,

परम्परा 1944,

कोठरीकी बात 1945,

शरणार्थी 1948,

जयदोल 1951

उपन्यास

शेखर एक जीवनी- प्रथम भाग 1941, द्वितीय भाग 1944

नदी के द्वीप 1951

अपने – अपने अजनबी 1961

यात्रा वृतान्त

अरे यायावर रहेगा याद? 1943

एक बूँद सहसा उछली 1960

निबंध संग्रह

सबरंग,

त्रिशंकु, 1945

आत्मनेपद, 1960

आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य,

आलवाल,

भवन्ती 1971 (आलोचना)

अद्यतन 1971 (आलोचना)

संस्मरण

स्मृति लेखा

डायरियां

भवंती

अंतरा

शाश्वती

नाटक

उत्तरप्रियदर्शी

संपादित ग्रंथ

आधुनिक हिन्दी साहित्य (निबन्ध संग्रह) 1942

तार सप्तक (कविता संग्रह) 1943

दूसरा सप्तक (कविता संग्रह)1951

नये एकांकी 1952

तीसरा सप्तक (कविता संग्रह), सम्पूर्ण 1959

रूपांबरा 1960

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : पत्र पत्रिकाओं का संपादन

विशाल भारत (कोलकता से)

सैनिक (आगरा से)

दिनमान (दिल्ली)

प्रतीक (पत्रिका) (इलाहाबाद)

नवभारत टाईम्स

1973-74 में जयप्रकाश नारायण के अनुरोध पर ‘एवरी मेंस वीकली’ का संपादन।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा कहे गए प्रमुख कथन

‘‘प्रयोगवादी कवि किसी एक स्कूल के कवि नहीं हैं, सभी राही हैं, राही नहीं, राह के अन्वेषी हैं।’’ -तार सप्तक की भूमिका में

‘‘प्रयोगवाद का कोई वाद नहीं है, हम वादी नहीं रहे, नहीं हैं। न प्रयोग अपने आप में इष्ट या साध्य है। इस प्रकार कविता का कोई वाद नहीं।’’ -दूसरा सप्तक की भूमिका में

‘‘प्रयोग दोहरा साधन है।’’

‘‘प्रयोगशील कवि मोती खोजने वाले गोताखोर हैं।’’

‘‘हमें प्रयोगवादी कहना उतना ही गलत है, जितना कहना कवितावादी।’’

‘‘काव्य के प्रति एक अन्वेषी का दृष्टिकोण ही उन्हें (तार सप्तक के कवियों को) समानता के सूत्र में बांधता है।’’

‘‘प्रयोगशील कविता में नये सत्यों, कई यथार्थताओं का जीवित बोध भी है, उन सत्यों के साथ नये रागात्मक संबंध भी और उनको पाठक या सहृदय तक पहुँचाने यानी साधारणीकरण की शक्ति है।’’

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय : पुरस्कार एवं सम्मान

आंगन के पार द्वार रचना के लिए इनको 1964 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।

‘कितनी नावों में कितनी बार’ रचना के लिए इनको 1978 ईस्वी में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।

1979 में ज्ञानपीठ पुरस्कार राशि के साथ अपनी राशि जोड़कर ‘वत्सल निधि’ की स्थापना।

1983 में यूगोस्लाविया के कविता-सम्मान गोल्डन रीथ से सम्मानित।

1987 में ‘भारत-भारती’ सम्मान की घोषणा।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय संबंधी विशेष तथ्य

प्रयोगवाद के प्रवर्तन का श्रेय अज्ञेय को है।

अज्ञेय अस्तित्ववाद में आस्था रखने वाले कवि हैं।

अज्ञेय को प्रयोगवाद तथा नयी कविता का शलाका पुरुष भी कहा जाता है।

असाध्य वीणा एक लंबी कविता है। इसका मूल भाव अहं का विसर्जन है।

असाध्य वीणा चीनी लोक कथा ‘टेमिंग आफ द हाॅर्प’ की भारतीय परिवेश में प्रस्तुति है।

‘एक चीड़ का खाका’ जापानी छंद हायकू में लिखा हुआ है।

‘बावरा अहेरी’ की प्रारंभिक पंक्तियों पर फारसी के प्रसिद्ध कवि उमर खैय्याम की रूबाइयों का प्रभाव माना जाता है।

‘बावरा अहेरी’ इनके जीवन दर्शन को प्रतिबिंबित करने वाली रचना है।

‘असाध्य वीणा’ कविता में मौन भी है अद्वैत भी है यह इनकी प्रतिनिधि कविता मानी जाती है यह कविता जैन बुद्धिज्म पर आधारित मानी जाती है।

प्रयोगवाद का सबसे ज्यादा विरोध करने वाले अज्ञेय ही थे।
डाॅ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इनको ‘‘बीसवीं सदी का बाणभट्ट’’ कहा है।

जैनेंद्र के उपन्यास ‘त्यागपत्र’ का ‘दि रिजिग्नेशन’ नाम से अंग्रेजी अनुवाद किया।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

महादेवी वर्मा Mahadevi Verma

महादेवी वर्मा Mahadevi Verma का जीवन परिचय

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जन्म- 26 मार्च, 1907, फ़र्रुख़ाबाद

पिता- गोविंद प्रसाद

निधन- 11 सितम्बर, 1987, प्रयागराज

आधुनिक साहित्य की मीरा

महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय

महादेवी वर्मा की रचनाएं

रेखाचित्र

अतीत के चलचित्र (1941)

स्मृति की रेखाएँ (1943)

महादेवी वर्मा Mahadevi Verma का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, महादेवी वर्मा की रचनाएं, कविताएं, काव्य संग्रह, भाषा शैली, निबंध, बाल साहित्य
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

संस्मरण

पथ के साथी (1956, अपने अग्रज समकालीन साहित्यकारों पर)

मेरी परिवार (1972, पशु-पक्षियों पर)

संस्मरण (1983)

ललित निबंध

क्षणदा (1956)

चुने हुए भाषणों का संग्रह

संभाषण (1974)

कहानियाँ

गिल्लू

निबन्ध

विवेचनात्मक गद्य (1942)

श्रृंखला की कड़ियाँ (1942, भारतीय नारी की विषम परिस्थितियों पर)

साहित्यकार की आस्था और अन्य निबन्ध (1962, सं. गंगा प्रसाद पांडेय, महादेवी का काव्य-चिन्तन)

संकल्पिता (1969)

भारतीय संस्कृति के स्वर (1984)।

चिन्तन के क्षण

युद्ध और नारी

नारीत्व का अभिशाप

सन्धिनी

आधुनिक नारी

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न

सामाज और व्यक्ति

संस्कृति का प्रश्न

हमारा देश और राष्ट्रभाषा

कविता संग्रह : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

नीहार (1930)

रश्मि (1932)

नीरजा (1934)

सांध्यगीत (1935)

यामा (1940)

दीपशिखा (1942)

सप्तपर्णा (1960, अनूदित)

संधिनी (1965)

नीलाम्बरा (1983)

आत्मिका (1983)

दीपगीत (1983)

प्रथम आयाम (1984)

अग्निरेखा (1990)

पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)

परिक्रमा

गीतपर्व

पुनर्मुद्रित संकलन
(निम्नलिखित संकलनों में महादेवी वर्मा की नयी कवितायें नहीं हैं, बल्कि पुराने संकलनों को ही नयी भूमिकाओं के साथ पुनर्मुद्रित किया गया है।)

यामा (1940)

हिमालय (1960)

दीपगीत (1983)

नीलाम्बरा (1983)

आत्मिका (1983)

गीतपर्व

परिक्रमा

संधिनी

स्मारिका

पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)

बाल साहित्य

ठाकुर जी भोले हैं

आज खरीदेंगे हम ज्वाला

बंगाल के अकाल के समय 1943 में इन्होंने एक काव्य संकलन प्रकाशित किया था और बंगाल से सम्बंधित “बंग भू शत वंदना” नामक कविता भी लिखी थी। इसी प्रकार चीन के आक्रमण के प्रतिवाद में हिमालय (1960) नामक काव्य संग्रह का संपादन किया था।

पुरस्कार और सम्मान : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

1934 ‘नीरजा’ पर ‘सेक्सरिया पुरस्कार

1942 ‘ द्विवेदी पदक’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)

1943 ‘मंगला प्रसाद पुरस्कार’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)

1943 ‘ भारत भारती पुरस्कार’, (‘स्मृति की रेखाओं’ के लिये)

1944 ‘यामा’ कविता संग्रह के लिए

1952 उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत

1956 ‘पद्म भूषण’

1979 साहित्य अकादमी फैलोशिप (पहली महिला)

1982 काव्य संग्रह ‘यामा’ (1940) के लिये ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’

1988 ‘पद्म विभूषण’ (मरणोपरांत)

विशेष तथ्य : महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

सन् 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना की और पं. इलाचंद्र जोशी के सहयोग से ‘साहित्यकार’ का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ मासिक की भी संपादक रहीं।

हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘ रंगवाणी नाट्य संस्था’ की भी स्थापना की।

इन्हे ‘वेदना की कवयित्री’ एवं ‘आधुनिक युग की मीरां‘ नाम से भी पुकारा जाता है|

ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रचार्य रही हैं।

रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा- “छायावाद कहे जाने वाले कवियों मे महादेवी जी ही रहस्यवाद के भीतर रही है।”

इनको छायावाद साहित्य की ‘शक्ति (दुर्गा)’ कहा जाता है।

कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।

महादेवी वर्मा कवयित्री और गद्य लेखिका, साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं।

महादेवी वर्मा कृत ‘सप्तपर्णा’ में ऋग्वेद के मंत्रों का हिन्दी काव्यानुवाद संकलित है।

अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने महादेवी वर्मा के काव्य संकलन ‘नीहार’ की भूमिका सन् 1930 ई. में लिखी थी।

महादेवी वर्मा की ब्रजभाषा और आरंभिक खड़ी बोली की कविताओं का संकलन 1984 ई. में ‘प्रथम आयाम’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

कवयित्री महादेवी वर्मा को बौद्ध दर्शन से प्रभावित रहस्यवादी कवयित्री के रूप में स्वीकार किया जाता है।

इनके सबसे प्रिय प्रतीक बादल और दीपक हैं।

महादेवी वर्मा द्वारा रचित प्रमुख पंक्तियाँ

सौन्दर्य परिचय -स्निग्ध खंड है और सत्य विस्मय भरा अखण्ड।

कवि का दर्शन जीवन के प्रति उसकी आस्था का दूसरा नाम है।

आस्था मानव के युगान्तर से प्राप्त दार्शनिक लक्ष्य पर केन्द्रित रागात्मक दृष्टि है।

काव्य या कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है।

‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुडी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।’’

छायावाद तो करुणा की छाया में सौन्दर्य के माध्यम से व्यक्त होने वाला भावात्मक सर्ववाद ही रहा है और उसी रूप में उसकी उपयागिता है।

“मां से पूजा और आरती के समय सुने सूर, तुलसी तथा मीरा आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। मां से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पडौस की एक विधवा वधू के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र् लिखे थे जो उस समय की पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए थे। व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है।”

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

मन्नू भंडारी Mannu Bhandari

मन्नू भंडारी Mannu Bhandari जीवन परिचय

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जन्म -3 अप्रेल, 1931

जन्म भूमि – भानपुरा नगर, मध्य प्रदेश

बचपन का नाम- महेंद्र कुमारी (लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम को चुना)

पिता- सुखसम्पत राय भंडारी

पति- राजेन्द्र यादव

काल- आधुनिक काल

युग- प्रयोगवादी या आधुनिकताबोधवादी युग

नई कहानी-नगरबोध के कहानीकार

मन्नू भंडारी Mannu Bhandari का साहित्य

रचनाएं

कहानी संग्रह

मैं हार गई (1957)

एक प्लेट सैलाब (1968)

तीन निगाहों की एक तस्वीर (1968)

यही सच है (1966)

त्रिशंकु

रेत की दीवार

श्रेष्ठ कहानियाँ

कहानियां : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari

रेत की दीवार

मैं हार गई 1957

तीन निगाहों की एक तस्वीर 1968

यही सच है 1966

त्रिशंकु

बंद दरवाजों का साथ

रानी मां का चबूतरा

अलगाव

अकेली

एक प्लेट का सैलाब-1968

कृषक

आँखों देखा झूठ

नायक खलनायक विदूषक
इन की कहानियां मुख्यतः प्रेम त्रिकोण पर आधारित है

उपन्यास : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari

आपका बंटी-1971

महाभोज

स्वामी

एक इंच मुस्कान (राजेंद्र यादव के साथ सह लेखन)

कलवा

फ़िल्म पटकथाए

रजनीगंधा

निर्मला

स्वामी

दर्पण

नाटक

बिना दीवारों का घर (1965)

रजनी दर्पण

महाभोज का नाट्य रूपान्तरण (1982)

आत्मकथा

एक कहानी यह भी (2007)

प्रौढ़ शिक्षा के लिए- सवा सेर गेहूं (1993) (प्रेमचन्द की कहानी का रूपान्तरण)

पुरस्कार एवं सम्मान : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari

हिंदी अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान (बिहार सरकार)

भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता सम्मान

राजस्थान संगीत नाटक अकादमी सम्मान

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार

भारतीय भाषा परिषद (भारतीय भाषा परिषद), कोलकाता, 1982

काला-कुंज सन्मान (पुरस्कार), नई दिल्ली, 1982

भारतीय संस्कृत संसद कथा समरोह (भारतीय संस्कृत कथा कथा), कोलकाता, 1983

बिहार राज्य भाषा परिषद (बिहार राज्य भाषा परिषद), 1991

राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, 2001- 02

महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी (महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी), 2004

हिंदी अकादमी, दिलीली शालका सन्मैन, 2006- 07

मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन (मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन), भवभूति अलंकरण, 2006- 07

के.के. बिड़ला फाउंडेशन ने उन्हें अपने काम के लिए 18 वें व्यास सम्मान के साथ प्रस्तुत किया, एह कहानी यहे भी, एक आत्मकथात्मक उपन्यास

व्यास सम्मान (2008)

विशेष तथ्य : मन्नू भंडारी Mannu Bhandari

राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया उनका उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ पढ़े-लिखे और आधुनिकता पसंद लोगों की दुखभरी प्रेमगाथा है।

इनकी ‘यही सच है’ कृति पर आधारित ‘रजनीगंधा फ़िल्म’ ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई थी।

आम आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को उकेरने वाले उनके उपन्यास ‘महाभोज’ पर आधारित नाटक खूब लोकप्रिय हुआ था।

“मैनें उन चीजों पर लिखा है जो या तो मेरे साथ हुईं हैं या किसी भी तरह से मेरे अनुभव का हिस्सा रहीं हैं एक कथाकार को नई चीजों के बारे में भी लिखना चाहिए लेकिन मैं अपने ही अनुभवों को कहानी में ढालकर तसल्ली कर लेती थी| फिर भी मैं यही कहूंगी कि एक अच्छा कथाकार एक परिचित यथार्थ को भी नए सिरे से, नए कोण से पेश कर सकता है|” – मन्नू भंडारी

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निर्मल वर्मा

निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय

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जन्म -3 अप्रॅल, 1929, शिमला

मृत्यु -25 अक्तूबर, 2005, दिल्ली

पिता- नंद कुमार वर्मा

कर्म-क्षेत्र – साहित्य

भाषा -हिन्दी

विद्यालय – सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली

शिक्षा -एम.ए. (इतिहास)

काल-आधुनिक काल

अकहानी आन्दोलन के प्रवर्तक-1960

प्रयोगवादी या आधुनिकताबोधवादी उपन्यासकार

साहित्यिक परिचय

रचनाएं

उपन्यास

वे दिन (1964)

लाल टीन की छत (1974)

एक चिथड़ा सुख (1979)

रात का रिपोर्टर (1989)

अंतिम अरण्य (2000)

कहानी संग्रह

परिंदे (1959)

जलती झाड़ी (1965)

पिछली गर्मियों में (1968)

बीच बहस में (1973)

मेरी प्रिय कहानियाँ (1973)

कव्वे और काला पानी (1983)

सूखा तथा अन्य कहानियाँ (1995)

ग्यारह लंबी कहानियां-2000 (प्रतिनिधि कहनी संग्रह)

एक दिन का मेहमान

संपूर्ण कहानियाँ (2005)

कहानियाँ : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय

परिंदे

लंदन की एक रात

कुत्ते की मौत

लवर्स

बुख़ार

सुबह की सैर

कव्वे और काला पानी

सूखा

डायरी व यात्रा-संस्मरण

चीड़ों पर चाँदनी (1963)

हर बारिश में (1970)

धुँध से उठती धुन (1977)

रिपोर्ताज

प्राग: एक स्वप्न

निबंध : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय

शब्द और स्मृति (1976)

संस्कृति, समय और भारतीय उपन्यास

कला, मिथक और यथार्थ

परंपरा और इतिहास बोध

रचना की जरूरत

साहित्य में प्रसंगिकता का प्रश्न

रेणु :समग्र मानवीय दृष्टि

अज्ञेय: आधुनिकता की पीड़ा

हमारे समय का नायक

हर बारिश में-1970

कला का जोखिम (1981)

ढलान से उतरते हुए (1985)

भारत और यूरोप : प्रतिश्रुति के क्षेत्र (1991)

इतिहास स्मृति आकांक्षा (1991)

शताब्दी के ढलते वर्षों में (1995)

दूसरे शब्दों में (1995)

अन्त और आरम्भ (2001)

साहित्य का आत्मकथ्य-(2005)

सर्जनापथ के सहयात्री-(2006)

नाटक

तीन एकान्त (1976)

वीक एण्ड

धूप का एक टुकड़ा

डेढ़ इंच ऊपर

अनुवाद

कुप्रिन की कहानियाँ (1955)

रोमियो जूलियट और अँधेरा (1962)

झोंपड़ीवाले (1966)

बाहर और परे (1967)

बचपन (1970)

आर यू आर (1972)

पुरस्कार और सम्मान : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय

1999 में साहित्य में सम्पूर्ण योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।

2002 में भारत सरकार की ओर से साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण दिया गया।

निर्मल वर्मा को मूर्तिदेवी पुरस्कार (1995)

साहित्य अकादमी पुरस्कार (1985) (कौवे और काला पानी कहानी पर)

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

विशेष तथ्य : निर्मल वर्मा का जीवन-परिचय

निर्मल वर्मा की कहानी ‘माया दर्पण’ पर 1973 में फ़िल्म बनी जिसे सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म का पुरस्कार मिला।

बीबीसी द्वार इनपर डाक्यूमेंट्री फिल्म प्रसारित हुई थी |

हैडिलबर्ग विश्वविद्यालय दक्षिण एशिया के निमंत्रण पर ‘भारत और यूरोप प्रतिश्रुति के क्षेत्र’ व्याख्यानमाला में निर्मल ने एक नई स्थापना रखी थी। कहा कि भारत और यूरोप दो ध्रुवों का नाम है। एक दूसरे से जुड़ कर भी ये दो अलग वास्तविकताएं हैं जिनको खींच कर या सिकोड़ कर मिलाया नहीं जा सकता।

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आधुनिक काल के साहित्यकार

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का जीवन परिचय, साहित्य परिचय, रचनाएं, उपन्यास, आत्मकथा, भाषा शैली, तात्विक समीक्षा, कहानियाँ, नाटक, एकांकी, आलोचना, निबंध, विशेष तथ्य

Pandeya Bechan Sharma Ugra
Pandeya Bechan Sharma Ugra

जीवन परिचय

जन्म- 1900

जन्म भूमि- मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश

मृत्यु- 1967

मृत्यु स्थान- दिल्ली

युग- प्रेमचंदयुगीन उपन्यासकार

साहित्य परिचय

रचनाएं

उपन्यास

घंटा,1924

चंद हसीनों के खतूत,1927

दिल्ली का दलाल,1927

बुधुआ की बेटी,1928

शराबी,1930

सरकार तुम्हारी आँखों में,1931

जीजीजी,1943

मनुष्यानंद,1955

कला का पुरस्कार,1955

कढ़ी में कोयला,1955

फागुन के दिन चार,1960

कहानियां

चिनगारियाँ,1923

शैतान मंडली,1924

इन्द्रधनुष,1927

बलात्कार,1927

चॉकलेट,1928

दोजख की आग,1929

निर्लज्जा,1929

सनकी अमीर

रेशमी

व्यक्तिगत

पंजाब की महारानी

उग्र का हास्य

नाटक

महात्मा ईसा,1922

उजबक

चुंबन,1937

डिक्टेटर,1937

गंगा का बेटा,1940

आवास,

अन्नदाता माधव महाराज महान्

एकांकी

अफजल वद्य

भाई मियां

चार बेचारे

आत्मकथा

अपनी खबर,1960 ( इस आतमकथा में इन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक 21 वर्षों की घटनाओं का वर्णन किया है)

आलोचना

तुलसीदास आदि अनेक आलोचनातमक निबंध।

निबंध

बुढापा

गाली

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : विशेष तथ्य

इन्होंने ‘दलित या पतित वर्ग’ को अपने उपन्यास का विषय बनाया है |

ये ‘प्रेमचंद युग’ के सबसे बदनाम उपन्यासकार हुए। इन्होंने अपने उपन्यासों में समाज की बुराइयो को, उसकी नंगी सच्चाई को बिना लाग-लपट के बड़े साहस के साथ, किंतु सपाट बयानबाज़ी से प्रस्तुत किया।

बनारसी दास चतुर्वेदी ने इनके उपन्यासों को ‘घासलेटी साहित्य’ कहा है|

उन्होंने अयोध्या में रामलीला मंडली में ‘सीता’ का अभिनय अनेक बार किया था|

इन्होंने गोरखपुर से ‘स्वदेश’ नामक पत्रिका निकाली थी जिसके कारण इनको जेल भी जाना पड़ा था|

उग्र ने मतवाला, वीणा, स्वराज, विक्रम, संग्राम आदि पत्र/पत्रिकाओं का संपादन किया था|

इनकी प्रारंभिक कहानियां 1921 ईस्वी में ‘अष्टावक्र’ नाम से प्रकाशित हुई थी|

इनकी ‘उग्रता’ के प्रभाव को आलोचकों ने ‘उल्कापात’, ‘धूमकेतु’, ‘तूफान’ या ‘बवंडर’ की उपमा दी थी|

इन्हें प्रकृतिवादी कहानीकार कहा जाता है|

‘चिंगारियां’ कहानी संग्रह में इन्होंने अपनी विद्रोह है पूर्ण राष्ट्रीय चेतना को वाणी देने का प्रयास किया, जिसके फलस्वरूप यह कहानी संग्रह अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था|

ये बचपन से ही काव्यरचना करने लगे थे। अपनी किशोर वय में ही इन्होंने प्रियप्रवास की शैली में “ध्रुवचरित्” नामक प्रबंध काव्य की रचना कर डाली थी।

ये काशी के दैनिक “आज” में “ऊटपटाँग” शीर्षक से व्यंग्यात्मक लेख लिखा करते थे और अपना नाम रखा था “अष्टावक्र”।

उग्र जी की मित्रमंडली में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, जयशंकर प्रसाद, शिवपूजन सहाय, विनोदशंकर व्यास आदि प्रसिद्ध साहित्यकार थे।

उग्र शैली – व्यंजनाओं, लक्षणाओं और वक्रोक्तियों से समृद्ध भाषा के धनी ‘उग्र’ ने अरसा पहले कहानी को एक नई शैली दी थी, जिसे आदरपूर्वक ‘उग्र शैली’ कहा जाता है।

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भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय, निराला का साहित्यिक परिचय, निराला की रचनाएं, पुस्तकें, भाषा शैली

पूरा नाम – सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

अन्य नाम- निराला

जन्म- 21 फ़रवरी, 1896. (NCERT Book 1899 )

(11 जनवरी, 1921 ई. को पं. महावीर प्रसाद को लिखे अपने पत्र में निराला जी ने अपनी उम्र 22 वर्ष बताई है। रामनरेश त्रिपाठी ने कविता कौमुदी के लिए सन् 1926 ई. के अन्त में जन्म सम्बंधी विवरण माँगा तो निराला जी ने माघ शुक्ल 11 सम्वत 1953 (1896) अपनी जन्म तिथि लिखकर भेजी। यह विवरण निराला जी ने स्वयं लिखकर दिया था)

जन्म भूमि – मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)

मृत्यु -15 अक्टूबर, सन् 1961

मृत्यु स्थान- प्रयाग, भारत

अभिभावक- पं. रामसहाय

पत्नी- मनोहरा देवी

कर्म-क्षेत्र – साहित्यकार

प्रसिद्धि- कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार

काल- आधुनिक काल (छायवादी युग)

आन्दोलन-प्रगतिवाद

सूर्यकान्त त्रिपाठी का साहित्यिक परिचय

निराला की रचनाएं

कविता संग्रह

अनामिका-1923, द्वितीय भाग,1938

परिमल 1930,

गीतिका 1936,

सरोज स्मृति 1935,

राम की शक्ति पुजा,1936

द्वितीय अनामिका1938 (अनामिका के दूसरे भाग में सरोज सम़ृति और राम की शक्ति पूजा जैसे प्रसिद्ध कविताओं का संकलन है।)

तुलसीदास 1938,

कुकुरमुत्ता 1942,

अणिमा 1943,

बेला 1946,

नये पत्ते 1946,

अर्चना 1950,

आराधना 1953,

गीत कुंज 1954, द्वितीय भाग,1959 ई.

सांध्यकाकली,

राग-विराग
– निराला की सर्वपर्थम कविता- जूही की कली 1916 ई.
नोट:- रामविलास शर्मा के मतानुसार इनकी सर्वप्रथम कविता ‘भारत माता की वंदना’ (1920 ई.) मानी जाती है|
– ‘अनामिका’ एवं ‘परिमल’ कविता संग्रह में इनकी प्रकृति प्रेम, सौंदर्य चित्रण एवं रहस्यवाद संबंधी कविताओं को संकलित किया गया है| ‘परिमल’ काव्य संग्रह में इनकी निम्न कविताओं को संग्रहित किया गया है-

जूही की कली

संध्या-सुंदरी

बादल-राग

विधवा

भिक्षुक

दिन

बहू

आधिवासे

पंचवटी प्रसंग

काव्य संबंधी विशेष तथ्य

नोट-‘परिमल’ मैं छायावाद के साथ-साथ प्रगतिवाद के तत्व भी विद्यमान है|

‘परिमल’ की भूमिका में वे लिखते हैं- “मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छन्दों के शासन से अलग हो जाना है।

जिस तरह मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह दूसरों के प्रतिकूल आचरण नहीं करता, उसके तमाम कार्य औरों को प्रसन्न करने के लिए होते हैं फिर भी स्वतंत्र। इसी तरह कविता का भी हाल है।”

‘जूही की कली‘ कविता में प्रकृति के माध्यम से माननीय भावनाओं की अभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावोत्पादक रूप में हुई है|

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय

काव्य संबंधी विशेष तथ्य

‘गीतिका‘ रचना में कवि ने अपनी भावनाओं को संगीत के स्वरों में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है|

तुलसीदास– यह निराला जी का श्रेष्ठ प्रबंधात्मक काव्य है जिसमें कवि ने गोस्वामी तुलसीदास के माध्यम से भारतीय परंपरा के गौरवशाली मूल्यों की प्रतिष्ठा का प्रयास किया है इसमें तुलसीदास द्वारा अपनी पत्नी रत्नावली से मिलने के लिए उनके पीहर चले जाने पर पत्नी द्वारा फटकार लगाए जाने पर गृहस्थ जीवन को त्याग कर राम उपासना में लीन होने की घटना का वर्णन किया गया है|

इसी रचना के लेखन के कारण यह माना जाता है कि ये तुलसीदास को अपना सर्व प्रिय कवि मानते थे|

सरोज स्मृति:– यह एक शोक गीत है जिसे कवि ने अपनी 18 वर्षीय पुत्री सरोज की करुण स्मृति में लिखा था इसे ‘हिंदी साहित्य संसार का सर्वाधिक प्रसिद्ध शोकगीत कहा जाता है’ इस में वात्सल्य एवं करुण दोनों रसों का अद्भुत सामजस्य दृष्टिगोचर होता है|

राम की शक्ति पूजा:– यह एक लघु प्रबंधात्मक काव्य है जिसमें निराला का ओज अपनी पूर्ण शक्ति के साथ प्रस्फुटित हुआ है इस रचना पर ‘कृतिवास रामायण’ का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है यह शक्ति काव्य जिजीविषा एवं राष्ट्रीय चेतना की कविता है|

कुकुरमुत्ता- इसमें कवि ने पूंजीवादियों पर तीखा व्यंग्य किया है इसमें कवि ने संस्कृत शब्दावली का प्रयोग नहीं कर के ‘उर्दू’ व ‘अंग्रेजी’ के शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया है इसमें कवि ने सर्वहारा वर्ग की प्रशंसा और धनवानों की घोर निंदा की है|

नये पत्ते:- इसमें कवि की सात व्यंग्य प्रधान कविताओं का संग्रह किया गया है|

उपन्यास

अप्सरा, 1931

अलका, 1931

प्रभावती,1936,

निरुपमा, 1936

कुल्ली भाट,

बिल्लेसुर बकरिहा,1942

चोटी की पकड़,1946

काले कारनामे,1950

चमेली

अश्रृंखल

कहानी संग्रह

लिली,

चतुरी चमार,

सुकुल की बीवी-1941,

सखी,

देवी।

निबंध

रवीन्द्र कविता कानन, (आलोचना)

प्रबंध पद्म,

प्रबंध प्रतिमा,

चाबुक,

चयन,

संघर्ष (ये सभी इनके निबंध संग्रह है)

पुराण कथा- महाभारत

अनुवाद

आनंद मठ,

विष वृक्ष,

कृष्णकांत का वसीयतनामा,

कपालकुंडला,

दुर्गेश नन्दिनी,

राज सिंह,

राजरानी,

देवी चौधरानी,

युगलांगुल्य,

चन्द्रशेखर,

रजनी,

श्री रामकृष्ण वचनामृत,

भारत में विवेकानंद तथा राजयोग का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद

कार्यक्षेत्र : सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय

निराला जी ने 1918 से 1922 तक महिषादल राज्य की सेवा की। उसके बाद संपादन स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया।

इन्होंने 1922 से 23 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय’ का संपादन किया।

1923 के अगस्त से ‘मतवाला’ के संपादक मंडल में काम किया।

इनके इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय और वहाँ से निकलने वाली मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे।

इन्होंने 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य भी किया।

ये जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।

इन्होंने कहानियाँ उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है।

विशेष तथ्य

हिंदी साहित्य जगत में निराला के लिए ‘महाप्राण’ शब्द का प्रयोग भी किया जाता है गंगा प्रसाद पांडेय ने ‘महाप्राण निराला’ आलोचना पुस्तक लिखकर यह नाम प्रदान किया था|

यह हिंदी कविता को छंदों की परिधि से मुक्त करने वाले कवि माने जाते हैं ,अर्थात इनको ‘मुक्तक छंद’ का प्रवर्तक भी कहा जाता है|
नोट:- मुक्तक छंद को ‘केंचुआ’ या ‘रबर’ छंद भी कहते हैं|

इनको छायावाद, प्रगतिवाद एवं प्रयोगवाद इन तीनों आंदोलनों का पथ प्रदर्शक भी कहा जाता है|

ये छायावाद के ‘रुद्र (महेश)’ माने जाते है|

यह विवेकानंद जी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे|

द्विवेदी कालीन कवियों में इनको सर्वाधिक विरोध का सामना करना पड़ा था|

रविवार को जन्म लेने के कारण सर्वप्रथम इन का मूल नाम ‘सूर्य कुमार‘ रखा गया था जिसे सन 1917-18 ईस्वी में बदलकर इन्होंने ‘सूर्यकांत’ कर दिया था|

प्रसिद्ध ऐतिहासिक लेख ‘भावों की भिडंत’ यह लेख बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ द्वारा संपादित ‘प्रभा’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था जिसमें यह सिद्ध किया गया था कि निराला की बहुत सी कविताएं रवींद्रनाथ ठाकुर की कविताओं की नकल है इस लेख में तात्कालिक साहित्य जगत में हलचल मचा दी थी|

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

नामवर सिंह

नामवर सिंह जीवन परिचय

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जन्म:-28 जुलाई, 1926,जीयनपुर, चंदौली जिला

उत्तर प्रदेश

मृत्यु:-19 फरवरी 2019,नयी दिल्ली

भाषा:-हिन्दी

काल:-आधुनिक

विधा:-आलोचना, शोध, निबन्ध

विषय:-अपभ्रंश भाषा एवं साहित्य, छायावाद, नयी कविता, नयी कहानी

उन्होंने हिन्दी साहित्य में एम॰ए॰ व पी-एच॰डी॰ करने के पश्चात् बनारस हिन्दू विश्‍वविद्यालय में अध्यापन किया।

इसके बाद सागर विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया। बाद में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में काफी समय तक अध्यापन कार्य किया।

अवकाश प्राप्त करने के बाद भी वे उसी विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केन्द्र में इमेरिट्स प्रोफेसर रहे।

नामवर सिंह हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू, बाङ्ला एवं संस्कृत भाषा भी जानते थे।

19 फरवरी 2019 की रात्रि में नयी दिल्ली स्थित एम्स में उनका निधन हो गया।

नामवर सिंह का साहित्य : नामवर सिंह जीवन परिचय

साहित्यिक आन्दोलन-प्रगतिशील आन्दोलन

नामवर सिंह की रचनाएं

निबंध अथवा आलोचना

बक़लम ख़ुद – 1951ई०(संग्रह)

हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग-1952

छायावाद :इतिहास और आलोचना – 1954

आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ – 1962

कहानी : नयी कहानी – 1964

कविता के नये प्रतिमान – 1968

दूसरी परम्परा की खोज – 1982

वाद विवाद संवाद – 1989

आलोचक के मुख से-2005

साक्षात्कार

कहना न होगा – 1994

बात बात में बात – 2006

सम्मुख – 2012

साथ साथ – 2012

पत्र-संग्रह

काशी के नाम – 2006

तुम्हारा नामवर

सम्पादित पुस्तकें : नामवर सिंह जीवन परिचय

संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो – 1952 (आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के साथ)

पुरानी राजस्थानी – 1955 (मूल लेखक- डाॅ० एल.पी.तेस्सितोरी; अनुवादक – नामवर सिंह)

चिन्तामणि भाग-3 (1983)

कार्ल मार्क्स : कला और साहित्य चिन्तन (अनुवादक- गोरख पांडेय)

नागार्जुन : प्रतिनिधि कविताएँ

मलयज की डायरी (तीन खण्डों में)

आधुनिक हिन्दी उपन्यास भाग-2

रामचन्द्र शुक्ल रचनावली (सह सम्पादक – आशीष त्रिपाठी)

पत्र-पत्रिका संपादन

इन्होंने 1965 से 1967 तक जनयुग (साप्ताहिक) और 1967 से 1990 तक आलोचना (त्रैमासिक) नामक दो हिन्दी पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।

पुरस्कार एवं सम्मान : नामवर सिंह जीवन परिचय

साहित्य अकादमी पुरस्कार – 1971″कविता के नये प्रतिमान” के लिए

शलाका सम्मान हिंदी अकादमी, दिल्ली की ओर से

‘साहित्य भूषण सम्मान’ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से

महावीरप्रसाद द्विवेदी सम्मान – 21 दिसम्बर 2010

शब्दसाधक शिखर सम्मान – 2010

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