वचन Vachan

वचन Vachan

वचन Vachan की परिभाषा paribhasha | अर्थ arth | वचन के प्रकार prakar | vachan ke bhed | vachan parivartan ke niyam | vachan ke udaharan

परिभाषा paribhasha – वचन Vachan

व्याकरण में वचन का अर्थ संख्या से लिया जाता है। वह, जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द की संख्या का बोध होता है उसे वचन कहते हैं।

वचन Vachan के प्रकार

(i) एकवचन (Ek Vachan)

(ii) बहुवचन (Bahu Vachan)

vachan kise kahate hain, vachan ki paribhasha, वचन किसे कहते हैं, वचन की परिभाषा, vachan ke prakar, वचन के प्रकार, वचन का अर्थ, vachan ke bhed, vachan ki paribhasha aur bhed, vachan ki paribhasha udaharan sahit, vachan ke udaharan, वचन के उद्देश्य, vachan ke niyam, vachan parivartan ke niyam
Vachan

(i) एकवचन

विकारी पद के जिस रूप से किसी एक संख्या का बोध होता है, उसे एकवचन कहते हैं।

जैसे राम, लड़का, मेरा, काली, जाती आदि।

हिन्दी में निम्न शब्द सदैव एक वचन में ही प्रयुक्त होते हैं-

सोना, चाँदी, लोहा, स्टील, पानी, दूध, जनता, आग, आकाश, घी, सत्य, झूठ, मिठास, प्रेम, मोह, सामान, ताश, सहायता, तेल, वर्षा जल, क्रोध, क्षमा

(ii) बहुवचन

विकारी पद के जिस रूप से किसी की एक से अधिक संख्या का बोध होता है, उसे बहुवचन कहते हैं।

जैसे लड़के, तुम्हारे, काले, जाते हैं।

हिन्दी में निम्न शब्द सदैव बहुवचन में ही प्रयुक्त होते हैं, यथा –

आँसू, होश, दर्शन, हस्ताक्षर, प्राण, भाग्य, दाम, समाचार, बाल, लोग होश, हाल-चाल, आदरणीय व्यक्ति हेतु प्रयुक्त शब्द आप,।

वचन Vachan परिवर्तन parivartan ke niyam

हिन्दी व्याकरण अनुसार एकवचन शब्दों को बहुवचन में परिवर्तित करने हेतु कतिपय नियमों का उपयोग किया जाता है। यथा –

1. शब्दांत ‘आ’ को ‘ए में बदलकर-

कमरा – कमरे

लड़का – लड़के

बस्ता – बस्ते

बेटा – बेटे

पपीता – पपीते

रसगुल्ला – रसगुल्ले

2. शब्दान्त ‘अ’ को ‘एँ’ में बदलकर

पुस्तक – पुस्तकें

दाल – दालें

राह – राहें

दीवार – दीवारें

सड़क – सड़कें

कलम – कलमें

3. शब्दांत में आये ‘आ’ के साथ ‘एँ’ जोड़कर

बाला – बालाएँ

कविता – कविताएँ

कथा – कथाएँ

4. शब्दांत ‘ई’ वाले शब्दों के अन्त में ‘इयाँ’ लगाकर

दवाई – दवाइयाँ

लड़की – लड़कियाँ

साड़ी – साडियाँ

नदी – नदियाँ

स्त्री – स्त्रियाँ

खिड़की – खिड़कियाँ

5. स्त्रीलिंग शब्द के अन्त में आए ‘या’ को ‘याँ’ में बदलकर

चिड़िया – चिड़ियाँ

डिबिया – डिबियाँ

गुड़िया – गुड़ियाँ

6. स्त्रीलिंग शब्द के अन्त में आए ‘उ, ऊ’ के साथ ‘ऐँ’ लगाकर

वधू – वधुएँ

वस्तु – वस्तुएँ

बहू – बहुएँ

7. ‘इ, ई’ स्वरान्त वाले शब्दों के साथ ‘यों’ लगाकर तथा ई की मात्रा को इ में बदलकर

जाति – जातियों

रोटी – रोटियों

अधिकारी – अधिकारियों

लाठी – लाठियों

नदी – नदियों

गाड़ी – गाड़ियों

8. एकवचन शब्द के साथ, जन, गण, वर्ग, वृन्द, हर, मण्डल, परिषद् आदि लगाकर : वचन Vachan

गुरु – गुरुजन

अध्यापक – अध्यापकगण

लेखक – लेखकवृन्द

युवा – युवावर्ग

भक्त – भक्तजन

खेती – खेतिहर

मंत्री – मंत्रिमंडल

9. याकारांत ( ऊनवाचक ) संज्ञाओं के अंत में केवल चन्द्रबिन्दु लगाया जाता है, जैसे-

लुटिया – लुटियाँ

बुढ़िया – बुढियाँ

डिबिया – डिबियाँ

गुड़िया – गुड़ियाँ

खटिया – खटियाँ

विशेष : वचन Vachan

1. सम्बोधन शब्दों में ‘ओं’ न लगा कर ‘ओ’ की मात्रा ही लगानी चाहिए यथा बहनो ! मित्रो! बच्चो ! साथियो! भाइयो!

2. पारिवारिक संबंधवाचक, उपनामवाचक, और प्रतिष्ठा वाचक आकारांत पुल्लिंग शब्दों का रूप दोनों वचनों में एक ही, रहता है; जैसे, काका-काका, आजा-आजा, मामा-मामा, लाला-लाला, इत्यादि, किन्तु भानजा, भतीजा व साला से भानजे, भतीजे व साले शब्द बनते हैं।

3. विभक्ति रहित आकारान्त से भिन्न पुल्लिंग शब्द कभी भी परिवर्तित नहीं होते। जैसे बालक, फूल, अतिथि, हाथी, व्यक्ति, कवि, आदमी, सन्न्यासी, साधु, पशु, जन्तु, डाकू, उल्लू, लड्डू, रेडियो, फोटो, मोर, शेर, पति, साथी, मोती, गुरु, शत्रु, भालू, आलू, चाकू

4. विदेशी शब्दों के हिन्दी में बहुवचन हिन्दी भाषा के व्याकरण के अनुसार बनाए जाने चाहिए। जैसे स्कूल से स्कूलें न कि स्कूल्स, कागज से कागजों न कि कागजात।

5. भगवान के लिए या निकटता सूचित करने के लिए ‘तू’ का प्रयोग किया जाता है। जैसे – हे ईश्वर! तू बड़ा दयालु है।

6. निम्न शब्द सदैव एक वचन में ही प्रयुक्त होते हैं। जैसे- जनता, वर्षा, हवा, आग

7. ईकारांत और ऊकारांत शब्दों को बहुवचन बनाने पर ‘ई’ का ‘इ’ तथा ‘ऊ’ का ‘उ’ हो जाता है। जैसे-

स्त्री – स्त्रियाँ

देवी – देवियाँ

नदी – नदियाँ

दवाई – दवाइयाँ

हिन्दू – हिन्दुओं

लू – लुएँ

8. आदर प्रकट करने के लिए बहुवचन का प्रयोग होता है-

गुरु जी आ रहे हैं।

बड़े बाबू नियमों के पक्के हैं।

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

वचन

समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

लिंग Ling in Hindi | शब्द रूपांतरण | विकारक

लिंग Ling in Hindi | शब्द रूपांतरण | विकारक

परिभाषा

विकारी शब्दों (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया) में विकार उत्पन्न करने वाले कारकों को विकारक कहते हैं। लिंग, वचन, कारक, काल तथा वाच्य से शब्द के रूप में परिवर्तन होता है। लिंग Ling in Hindi | शब्द रूपांतरण | विकारक | लिंग का अर्थ | लिंग Ling के प्रकार | पुल्लिंग स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों की पहचान

लिंग का अर्थ

व्याकरण के अन्तर्गत लिंग उसे कहते हैं, जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द के स्त्री या पुरुष जाति का होने का बोध होता है।लिंग शब्द का अर्थ होता है चिन्ह या पहचान।

लिंग Ling के प्रकार

हिन्दी भाषा में लिंग दो प्रकार के होते हैं –

(i) पुल्लिंग : जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द की पुरुष जाति का बोध होता है, उसे पुल्लिंग कहते हैं। जैसे – रमेश, डॉक्टर, मेरा, लाल, आत।

(ii) स्त्रीलिंग : जिसके द्वारा किसी विकारी शब्द की स्त्री जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे सीता, अध्यापिका, मेरी, काली, आती।

लिंग की पहचान | लिंग Ling in Hindi

लिंग की पहचान शब्दों के व्यवहार से होती है। कुछ शब्द सदा पुल्लिंग रहते हैं तो कुछ शब्द सदा स्त्रीलिंग। कुछ शब्द परम्परा के कारण पुल्लिग या स्त्री लिंग में प्रयुक्त होते हैं।

1. पुल्लिंग संज्ञा शब्दों की पहचान –

(अ) प्राणिवाचक पुल्लिंग संज्ञाएँ – पुरुष, आदमी, मनुष्य, लड़का, शेर, चीता, हाथी कुत्ता, घोड़ा, बैल बन्दर, पशु, खरगोश गैण्डा, मेंढक, साँप मच्छर, तोता मोर कबूतर, कौवा उल्लू, खटमल, कौआ।

(आ) अप्राणिवाचक पुल्लिंग संज्ञा – निम्न संज्ञाएँ सादैव पुल्लिग ही प्रयुक्त होती है-

(अ) पर्वतों के नाम – हिमालय, विनया अरावली कला आल्पस।

(आ) महीनों के नाम – भारतीय महीनों तथा अंग्रेजी महीनों के नाम जैसे – चैत्र वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, मार्च

(इ) दिन या वारों के नाम – सोमवार मंगलवार, शनिवार।

(ई) देशों के नाम – भारत, अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, (अपवाद – श्रीलंका – स्त्रीलिंग)

(उ) ग्रहों के नाम – सूर्य, चंद्रमा, मंगल, शुक्र, राहु केतु, अरुण,

(ऊ) धातुओं के नाम – सोना, ताम्बा, पीतल, लोहा (अपवाद – चाँदी – स्त्रीलिंग)

(ऋ) वृक्षों के नाम – नीम, बरगद, बबूल, आम, पीपल, अशोक (अपवाद – इमली – स्त्रीलिंग)

(ए) अनाजों के नाम – चावल, गेहूं, बाजरा, जौ, (अपवाद – ज्वार – स्त्रीलिंग)

(ऐ) द्रव पदार्थों के नाम – तेल, घी, दूध, शर्बत, मक्खन, पानी। (अपवाद – लस्सी, चाय – स्त्रीलिंग)

(ओ) समय सूचक नाम – क्षण, सेकण्ड मिनट, घण्टा, दिन, सप्ताह पक्ष, माह, अपवाद – रात, सायं, सन्ध्या. दोपहर – स्त्रीलिंग)

(औ) वर्णमाला के वर्ण – स्वर तथा क से ह तक व्यंजन, (अपवाद – इ, ई, ऋ)

(क) समुद्रों के नाम – हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर

(ख) मूल्यवान पत्थर, रत्नों के नाम – हीरा, पुखराज, नीलम, पत्ना, मोती, माणिक्य (अपवाद – मणि, लाल)

(ग) शरीर के अंगों के नाम – सिर, बाल, नाक, कान, दाँत, गाल, हाथ, पैर, ओठ, मुँह (अपवाद – गर्दन, जीभ, आँख, नाक, हड्डी, अंगुली)

(घ) देवताओं के नाम – इन्द्र, यम, वरुण, ब्रह्मा, विष्णु, महेश।

(च) आपा, आव, आवा, आर. अ. अन, ईय, एरा, त्व, दान, पन, य, खाना वाला आदि प्रत्यय युक्त शब्द। यथा बुढ़ापा, चुनाव, पहनावा, सुनार, न्याय, दर्शन, पूजनीय, चचेरा, देवता, फूलदान, बचपन, सौन्दर्य, डाकखाना, दूधवाला।

(छ) ख, ज, न, त्र के अन्तवाले शब्द : जैसे सुख, जलज, नयन.

2. स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों की पहचान

(क) तिथियों के नाम – प्रथमा, द्वितीया, एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा।

(ख) भाषाओं के नाम – हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, जापानी, मलयालम।

(ग) लिपियों के नाम – देवनागरी, रोमन गुरुमुखी, अरबी, फारसी।

(घ) बोलियों के नाम – ब्रज, भोजपुरी, हरियाणवी, अवधी।

(च) नदियों के नाम – गंगा, गोदावरी, व्यास, ब्रह्मपुत्र।

(छ) नक्षत्रों के नाम – रोहिणी, अश्विनी, भरणी।

(ज) देवियों के नाम – दुर्गा, रमा, उमा।

(झ) महिलाओं के नाम – आशा, शबनम, सीता।

(ट) लताओं के नाम – अमर बेल, मालती, तोरई।

(ठ) किराने के नाम – लौंग, इलायची, सुपारी, जावित्री, केसर, दालचीनी, इत्यादि। अपवाद – तेजपात, कपूर, इत्यादि।

(ड) भोजनों के नाम – पूरी, कचौरी, खीर, दाल, रोटी, तरकारी, खिचड़ी, कढ़ी, इत्यादि । अपवाद – भात, रायता, हलुआ, मोहनभोग, इत्यादि।

(ढ) अनुकरण-वाचक शब्द, जैसे – झकझक, बड़बड़, झझट, इत्यादि

(त) आ, आई, आइन, आनी, आवट, आहट, इया, ई, त, ता, ति, आदि प्रत्यय युक्त शब्द। यथा- छात्रा, मिठाई, ठकुराइन, नौकरानी, सजावट, राहट गुडिया, गरीबी, ताकत, मानवता, नीति।

लिंग परिवर्तन के कतिपय नियम

1. शब्दान्त ‘अ’ को ‘आ’ में बदलकर –

छात्र – छात्रा

वृद्ध – वृद्ध

सुत – सुता

पूज्य – पूज्या

भवदीय – भवदीया

अनुज – अनुजा

2. शब्दान्त ‘अ’ को ‘ई’ में बदलकर

देव – देवी

पुत्र – पुत्री

गोप – गोपी

ब्राह्मण – ब्राह्मणी

मेंढ़क – मेंढ़की

दास – दासी

3. शब्दान्त ‘आ’ को ‘ई’ में बदलकर

नाना – नानी

लड़का – लड़की

घोड़ा – घोड़ी

बेटा – बेटी

रस्सा – रस्सी

चाचा – चाची

4.शब्दांत ‘आ’ को ‘इया’ में बदलकर

चुहा – चुहिया

कुत्ता – कुतिया

डिब्बा – डिबिया

बेटा – बिटिया

लोटा – लुटिया

5. शब्दांत प्रत्यय ‘अक’ को ‘इका’ में बदलकर

बालक – बालिका

लेखक – लेखिका

नायिका – नायिका

पाठक – पाठक

गायक – गायिका

विधायक – विधायिका

6. ‘आनी प्रत्यय लगाकर

देवर – देवरानी

चौधरी – चौधरानी

सेठ-सेठानी

भव – भवानी

जेठ – जेठानी

7. नी प्रत्यय लगाकर

शेर – शेरनी

मोर – मोरनी

जाट – जाटनी

सिंह – सिंहनी

ऊंट – ऊंटनी

भील – भीलनी

8. शब्दान्त में ई के स्थान पर ‘इनी-लगाकर

हाथी – हथिनी

तपस्वी – तपस्विनी

स्वामी – स्वामिनी

9. ‘इन’ प्रत्यय लगाकर

माली – मालिन

चमार – चमारिन

धोबी – धोबिन

नाई – नाइन

कुम्हार – कुम्हारिन

सुनार – सुनारिन

10. ‘आइन’ प्रत्यय लगाकर

चौधरी – चौधराइन

ठाकुर – ठकुराइन

मुंशी – मुंशियाइन

11. शब्दान्त ‘वान’ के स्थान पर ‘वती’ लगाकर

गुणवान – गुणवती

पुत्रवान – पुत्रवती

बलवान – बलवती

भगवान – भगवती

भाग्यवान – भाग्यवती

सत्यवान – सत्यवती

12. शब्दान्त ‘मान’ के स्थान पर ‘मती’ लगाकर

श्रीमान् – श्रीमती

बुद्धिमान – बुद्धिमती

आयुष्मान् – आयुष्मती

13. शब्दान्त ‘ता’ के स्थान पर ‘त्री’ लगाकर

कर्ता – कर्त्री

नेता – नेत्री

दाता – दात्री

14. शब्द के पूर्व में ‘मादा’ शब्द लगाकर

खरगोश – मादा खरगोश

भेड़िया – मादा भेड़िया

भालू – मादा भालू

15. भिन्न रूप वाले कतिपय शब्द

कवि – कवयित्री

वर – वधू

विद्वान – विदुषी

वीर – वीरांगना

मर्द – औरत

दुल्हा – दुल्हन

राजा – रानी

नर – नारी

पुरुष – स्त्री

साधु – साध्वी

बैल – गाय

भाई – भाभी/बहन

बादशाह – बेगम

युवक – युवती

ससुर – सास

विशेष

1. सर्वनाम में लिंग के आधार पर कोई परिवर्तन नहीं होता है।

2. निम्न पदवाची शब्दों में भी लिंग परिवर्तन नहीं होता- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, डॉक्टर, मैनेजर, प्रिंसिपल।

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

समुच्चयबोधक अव्यय शब्द

लिंग (व्याकरण)

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

विस्मयादिबोधक अव्यय Vismayadibodhak Avyay

भाषा व्याकरण

वचन

समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

विस्मयादिबोधक अव्यय Vismayadibodhak Avyay

विस्मयादिबोधक अव्यय | Vismayadibodhak Avyay

विस्मयादिबोधक अव्यय | Vismayadibodhak Avyay | अव्यय किसे कहते हैं | अव्यय के प्रकार | विस्मयादिबोधक अव्यय | परिभाषा एवं प्रकार

प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं।

विकारी(Vikari Shabad)

विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं।

विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

अविकारी या अव्यय शब्द (Avikari Shabad)

अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है।

ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं।

अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं।

विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

विस्मयादिबोधक अव्यय (Vismayadibodhak Avyay)

वे अव्यय शब्द जिनका वाक्य से तो कोई संबंध नहीं रहता है, परन्तु वे वक्ता के हर्ष, शोक, विस्मय, तिरस्कार आदि भावों को सूचित करते हैं, विस्मयादिबोधक अव्यय शब्द कहलाते हैं। जैसे –

वाह ! कितना सुन्दर दृश्य है?

हाय, अब मैं क्या करूं?

छि: छि, तुम इतने गिर जाओगे, इसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी।

आहा, हम मैच जीत गये।

जी हाँ, मैं जरूर आऊँगा।

Vismayadibodhak Avyay से प्रकट होने वाले मनोविकारों के आधार पर इनके निम्न सात भेद माने जाते है

1. हर्षबोधक – अहा, वाह-वाह, धन्य-धन्य, शाबास, क्या खूब, क्या कहने, जय, जयति आदि।

2. शोकबोधक – हाय-हाय, हे राम, बाप-रे-बाप, आह, ऊह, हा-हा, त्राहि-त्राहि, तोबा-तोबा, दैया-दैया आदि।

3. आश्चर्यबोधक- वाह, हैं, ऐं, ओहो, यह क्या, क्या, आदि।

4. अनुमोदन बोधक – ठीक, आह, अच्छा, शाबास, हाँ-हाँ आदि।

5. तिरस्कार बोधक – छि:छि, हट, अरे, दूर, धिक्, अरे, चुप, धत्त तेरे कि आदि।

6. स्वीकार बोधक – जी हाँ, अच्छा जी, ठीक-ठीक, बहुत अच्छा, हाँ, जी आदि।

7. सम्बोधन बोधक – अरे, रे, अजी, लो, जी, हे, हो आदि।

स्रोत – हिन्दी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

विस्मयादिबोधक अव्यय Vismayadibodhak Avyay

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

भाषा व्याकरण

वचन

समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

समुच्चयबोधक अव्यय शब्द | Samuchaya Bodhak Avyay

समुच्चयबोधक अव्यय शब्द | Samuchaya Bodhak Avyay

समुच्चयबोधक अव्यय शब्द | Samuchaya Bodhak Avyay | समुच्चयबोधक अव्यय के प्रकार | samuchaya bodhak avyay ke bhed | samuchaya bodhak avyay bhed

प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं –

विकारी

विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

अविकारी या अव्यय शब्द

अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है। ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं। विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

 Samuchay Bodhak Avyay

Samuchay Bodhak Avyay

समुच्चयबोधक अव्यय शब्द | Samuchaya Bodhak Avyay

वे अव्यय शब्द जो ( क्रिया की विशेषता न बतलाकर ) एक वाक्य का संबंध दूसरे वाक्य से मिलाता है उसे समुच्चय-बोधक अव्यय कहते हैं, जैसे, और, यदि, तो, क्योकि, इसलिए ।

समुच्चयबोधक अव्यय के प्रकार

समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय

जिन अव्यय शब्दों के द्वारा मुख्य वाक्यों को जोड़ा जाता है, वे समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय शब्द कहलाते हैं। ये पुनः चार प्रकार के हो जाते हैं।

(क) संयोजक – और, व, एवं, तथा आदि।

(ख) विभाजक – या, वा, अथवा, कि, किंवा, नहीं तो, क्या-क्या, न…..न, कि, चाहे..चाहे, नहीं तो, अपितु आदि।

(ग) विरोधदर्शक – किन्तु, परन्तु, लेकिन, अगर, मगर, पर, बल्कि, वर आदि।

(घ) परिणाम दर्शक – इसलिए, सौ. अतः: अतएव आदि।

व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय |

जिन अव्यय शब्दों के द्वारा एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित उपवाक्य जोड़े जाते हैं, उन्हें व्यधिकरण समुच्चय बोधक अव्यय शब्द कहते हैं। ये भी पुनः चार प्रकार के हो जाते हैं –

(क) कारणवाचक – क्योंकि, जोकि, चूँकि, इसलिए, इस कारण आदि।

(ख) उद्देश्यवाचक – कि, जो, ताकि, जिससे कि आदि।

(ग) संकेतवाचक – जो-तो, यदि-तो, यद्यपि-तथापि, चाहे-परन्तु आदि।

(घ) स्वरूपवाचक – अर्थात्, याने, मानो आदि।

स्रोत – हिंदी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

समुच्चयबोधक अव्यय शब्द

लिंग (व्याकरण)

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

विस्मयादिबोधक अव्यय Vismayadibodhak Avyay

भाषा व्याकरण

वचन

समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

सम्बन्ध सूचक Sambandh Suchak अव्यय

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay | परिभाषा | भेद | उदाहरण | संबंध सूचक किसे कहते हैं | सम्बन्ध सूचक अव्यय के वाक्य प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं।

विकारी (Vikari Shabad)

विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

अविकारी या अव्यय शब्द (Avikari Shabad)

अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है। ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं। विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

सम्बन्ध सूचक Sambandh Suchak अव्यय

वे अव्यय शब्द जो किसी संज्ञा शब्द (अथवा संज्ञा के समान उपयोग में आनेवाले शब्द) के आगे आकर उसका संबंध वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ स्थापित करते हैं उसे संबंध सूचक कहते हैं। जैसे –

पानी के बिना जीवन नहीं है।

धन के बिना किसी का काम नही चलता।

रमेश दूर तक गया।

दिन भर घूमना अच्छा नहीं होता।

इन वाक्य में ‘बिना’, ‘तक’ और ‘भर’ सबंधसूचक हैं।

‘बिना’ पद ‘धन’ संज्ञा का संबंध ‘चलता’ क्रिया से मिलाता है।

‘तक’, ‘रमेश’ का संबंध ‘गया’ से मिलाता है;

‘भाग’, ‘दिन’ का संबंध ‘घूमना’ क्रियार्थक संज्ञा के साथ जोड़ता है।

कतिपय कालवाचक और स्थानवाचक अव्यय क्रियाविशेपण भी होते हैं और संबंधसूचक भी – जब वे स्वतंत्र रूप से क्रिया की विशेषता बताते हैं तब उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं, परंतु जब उनका प्रयोग संज्ञा के साथ होता है तब वे संबंधसूचक कहलाते हैं। जैसे-

शिष्य यहाँ रहता है। (क्रिया विशेषण)

शिष्य गुरु के यहाँ रहता है। (संबंध सूचक)

वह काम पहले करना चाहिए। (क्रिया विशेषण)

यह काम जाने से पहले करना चाहिए। (संबंध सूचक)

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay के भेद

(1) प्रयोग के आधार पर
(2) अर्थ के आधार पर
(3) व्युत्पत्ति के आधार पर

(1) प्रयोग के अनुसार सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

प्रयोग के अनुसार संबंधसूचक दो प्रकार के होते हैं-

(अ) संबद्ध संबंधसूचक- संज्ञा की विभक्तियों के आगे आते हैं, जैसे, धन के बिना, नर की नाई, पूजा से पहले, इत्यादि।

(आ) अनुबद्ध संबंधसूचक- संज्ञा के विकृत रूप के साथ आते हैं, जैसे, किनारे तक, सखियों सहित, कटोरा भर, पुत्रों समेत, लड़के सरिखा, इत्यादि।

(2) अर्थ के अनुसार सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

इनका वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है –

कालवाचक – आगे, पीछे, वाद, पहले, पूर्व, अनंतर, पश्चात्, उपरांत, लगभग।

स्थानवाचक – आगे, पीछं, ऊपर, नीचे, तले, सामनं, रूबरू, पास, निकट, समीप, नज़दीक, यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर, भीतर।

दिशावाचक – ओर, तरफ, पार, आर पार, आसपास, प्रति।

साधन वाचक – द्वारा, जरिया, हाथ, मारफत, वल, करके, जवानी, सहारे।

हेतुवाचक – लिए, निमित्त, वास्ते, हेतु, हित, खातिर, कारण, सबवे, मारे।

विषयवाचक – बाबत, निस्वत, विषय, नाम (नामक), लेखे, जान, भरोसे, मद्धे।

व्यतिरेकवाचक – सिवा (सिवा), अलावा, बिना, बगैर, अतिरिक्त, रहित।

विनिमय वाचक – पलटे, बदले, जगह, एवज, संती।

सादृश्य वाचक – समान, सम (कविता में), तरह, भाँति, नाई, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, देखा-देखी, सरिता, सा, ऐसा, जैसा।

विरोधवाचक – विरुद्ध, खिलाफ, उलटा, विपरीत।

सहचारण वाचक – सग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, अधीन, वश।

संग्रहवाचक – तक, लौं, पर्यंत, सुद्धा, भर, मात्र।

तुलनावाचक – अपेक्षा, बनिस्बत, आगे, सामने ।

[विशेष – ऊपर की सूची में जिन शब्दों को कालवाचक संबंधसूचक लिखा है वे किसी किसी प्रसंग में स्थानवाचक अथवा दिशावाचक भी होते है। इसी प्रकार और भी कई एक संबंध सूचक अर्थ के अनुसार एक से अधिक वर्गों में आ सकते हैं।]

(3) व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

व्युत्पत्ति के अनुसार संबंध सूचक दो प्रकार के हैं-

(1) मूल संबंध सूचक – हिंदी में मूल संबंध सूचक बहुत कम हैं, जैसे, बिना, पर्यंत, नाई, पूर्वक, इत्यादि।

(2) यौगिक सबधसूचक – किसी संज्ञा, विशेषण, क्रिया, क्रियाविशेषण आदि से बनते हैं, जैसे –

संज्ञा से – पलटे, वास्ते, और, अपेक्षा, नाम, लेखे, विषय, मारफत, इत्यादि।

विशेपण से – तुल्य, समान, उलटा, जबानी, सरीखा, योग्य, जैसा, ऐसा, इत्यादि।

क्रिया विशेषण से – ऊपर, भीतर, यहाँ, वाहन, पास, परे, पीछे, इत्यादि।

क्रिया से – लिये, मारे, करके, जान।

स्रोत – हिंदी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

लिंग (व्याकरण)

सम्बन्ध सूचक अव्यय Sambandh Suchak Avyay

विस्मयादिबोधक अव्यय Vismayadibodhak Avyay

भाषा व्याकरण

वचन

समास

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan | kriya visheshan ke bhed | kriya visheshan kise kahate hain | kriya visheshan in hindi| क्रिया विशेषण

प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं।
(i) विकारी शब्द

(ii) अविकारी या अव्यय शब्द

(i) विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

Kriya Visheshan
Kriya Visheshan

(ii) अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है।

ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं।

अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं। विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

जिस अव्यय से क्रिया की कोई विशेषता जानी जाती है उसे क्रिया-विशेषण कहते हैं,

जैसे- यहाँ, वहाँ, जल्दी, धीरे, अभी, बहुत, कम, इत्यादि।

क्रिया-विशेषणों का वर्गीकरण तीन आधारों पर हो सकता है

(1) प्रयोग के आधार पर

(2) रूप के आधार पर

(3) अर्थ के आधार पर

प्रयोग के आधार पर क्रिया-विशेषण

प्रयोग के आधार पर क्रिया-विशेषण तीन प्रकार के होते हैं-

(1) साधारण क्रिया-विशेषण

(2) संयोजक क्रिया-विशेषण

(3) अनुवद्ध क्रिया-विशेषण

(1) साधारण क्रिया-विशेषण – जिन क्रिया-विशेषणो का प्रयोग किसी वाक्य मे स्वतंत्र होता है उन्हें साधारण क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे –

“हाय ! अब मैं क्या करुं!”

“बेटा, जल्दी आओ।“

“वह साँप कहाँ गया?”

(2) संयोजक क्रिया-विशेषण – जिनका संबंध किसी उपवाक्य के साथ रहता है उन्हें संयोजक क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे-

“जब राम ही नहीं तो मैं ही जी के क्या करूँगा।

“जहाँ अभी रेगिस्तान है वहां पर किसी समय सागर था।

(3) अनुबद्ध क्रिया-विशेषण – वे क्रिया विशेषण जिनका प्रयोग अवधारणा के लिए किसी भी शब्द-भेद के साथ हो सकता है; जैसे –

“यह तो किसी ने धोखा ही दिया है ।”

“मैंने उसे देखा तक नहीं।”

“आपके आने भर की देरी है।”

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

(2) रूप के आधार पर क्रिया-विशेषण रूप के अनुसार क्रिया-विशेषण तीन प्रकार के होते हैं –

(1) मूल क्रिया-विशेषण

(2) यौगिक क्रिया-विशेषण

(3) स्थानीय क्रिया-विशेषण

(1) मूल क्रिया-विशेषण- जो क्रिया-विशेषण किसी दूसरे शब्द से नहीं बनते वे मूल क्रिया-विशेषण कहलाते है, जैसे. ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं, इत्यादि। अन्य उदाहरण –

वह ठीक सामने खड़ा है।

वह दूर चला गया है।

अचानक वर्षा होने लगी।

(2) यौगिक क्रिया-विशेषण – जो क्रिया-विशेषण दूसरे शब्दों में प्रत्यय या शब्द जोडने से बनते हैं उन्हें यौगिक क्रिया-विशेषण कहते हैं।

वे नीचे लिखे शब्द-भेदो से बनते हैं-

(अ) संज्ञा से – सवेरा, मन से, क्रमश, आगे, रात को, प्रेम पूर्वक, दिन-भर, रात-तक, इत्यादि ।

(आ) सर्वनाम से – यहाँ, वहाँ, अब, जब, जिससे, इसलिए, तिस पर, इत्यादि।

(इ) विशेषण से – धीरे, चुपके, भूले से, इतने मे, सहज मे, पहले, दूसरे, ऐसे, वैसे, इत्यादि ।

(ई) धातु से – आते, करते, देखते हुए, चाहे, लिये, मानो वैठे हुए, इत्यादि।

(उ) अव्यय से – यहाँ तक, कब का, ऊपर को, झट से, वहाँ पर, इत्यादि।

(ऊ) क्रिया- विशेषणों के साथ निश्चय जनाने के लिये बहुधा ई या ही लगाते हैं, जैसे – अब-अभी, यहाँ-यहीं, आते-आते ही, पहले-पहले ही, इत्यादि।

(3) स्थानीय क्रिया-विशेषण

वे शब्द-भेद जो बिना किसी रूपांतर के क्रिया- विशेषण के समान उपयोग मे आते हैं उन्हें स्थानीय क्रिया-विशेषण कहते हैं।

ये शब्द किसी विशेष स्थान ही मे क्रिया-विशेषण होते हैं; जैसे –

(अ) संज्ञा-

“तुम मेरी मदद खाक करोगे।”

“वह अपना सिर पढेगा!”

(आ) सर्वनाम-

“गुरु जी तो वे आते हैं ।”

“तुम मुझे क्या मारोगे।”

“तुम्हे यह बात कौन कठिन है।”

(इ) विशेषण-

“राकेश उदास बैठा है।“

“बंदर कैसा कूदा।”

“सब लोग सोये पड़े थे।”

“चोर पकड़ा हुआ आया।”

“हमने इतना पुकारा।”

(ई) पूर्वकालिक कृदंत-

“तुम दौड़कर चलते हो।”

“शेर उठकर भागा।”

(3) अर्थ के आधार पर क्रिया विशेषण

अर्थ के अनुसार क्रियाविशेषण के नीचे लिखे चार भेद होते है –

(1) स्थानवाचक क्रियाविशेषण

(2) कालवाचक क्रियाविशेषण

(3) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण

(4) रीतिवाचक क्रियाविशेषण।

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

(1) स्थानवाचक क्रियाविशेषण के दो भेद हैं-

1-स्थितिवाचक

2-दिशावाचक ।

(1) स्थिति वाचक – यहाँ, वहाँ, जहाँ, कहाँ, तहाँ, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, तले, सामने, साथ, बाहर, भीतर, पास (निकट, समीप), सर्वत्र, अन्यत्र, इत्यादि।

(2) दिशावाचक – इधर, उधर, किधर, जिधर, दूर, परे, अलग, दाहिने, बाएँ, आर-पार, इस तरफ, उस जगह, चारों ओर, इत्यादि।

(2) कालवाचक क्रियाविशेषण तीन प्रकार के होते हैं

(1) समयवाचक, (2) अवधिवाचक, (3) पौनः पुन्य वाचक

(1) समयवाचक- आज, कल, परसों, तरसों, नरसों, अब, जब, कब, तब, अभी, कभी, जभी, तभी, फिर, तुरंत, सर्वे, पहले, पीछे, प्रथम, निदान, आखिर, इतने मे, इत्यादि ।

(2) विधिवाचक – आजकल, नित्य, सदा, सतत (कविता मे ), निरतर, अवतक, कभी कभी, कभी न कभी, अब भी, लगातार, दिन भर, कब का, इतनी देर, इत्यादि।

(3) पौनः पुन्यवाचक – बार-बार (बारम्बार), बहुधा ( अकसर ), प्रतिदिन (हररोज़), घड़ी-घड़ी, कई बार, पहले-फिर, एक-दूसरे-तीसरे-इत्यादि, हरबार, हरदफे, इत्यादि।

क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

(3) परिमाणवाचक क्रिया विशेषण – जिन शब्दों के द्वारा अनिश्चित संख्या या परिमाण का बोध होता है। ये पाँच प्रकार के होते हैं-

(अ) अधिकताबोधक – बहुत, अति, बड़ा, भारी, बहुतायत से, बिल्कुल, सर्वथा, निरा, खूब, पूर्णतया, निपट, अत्यत, अतिशय, इत्यादि।

(आ) न्यूनताबोधक – कुछ, लगभग, थोडा, टुक, अनुमान, प्राय., ज़रा, किंचित्, इत्यादि ।

(इ) पर्याप्त वाचक – केवल, बस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बराबर, ठीक, अस्तु, इति, इत्यादि ।

(ई) तुलनावाचक – अधिक, कम, इतना, उतना, जितना, कितना, बढ़कर, और, इत्यादि।

(उ) श्रेणी वाचक – थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम से, बारी-बारी से, तिल तिल, एक-एक करके, यथाक्रम, इत्यादि ।

रीतिवाचक क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

रीतिवाचक क्रियाविशेषण की संख्या अंनत है। ये मुख्यतः सात प्रकार के होते हैं–

(अ) प्रकार बोधक- ऐसे, वैसे, कैसे, जैसे-तैसे, मानों, यथा-तथा, धीरे, अचानक, सहसा, अनायास, वृथा, सहज, साक्षात्, मेत, सेंतमेंत, योही, हौले, पैदल, जैसे-तैसे, स्वयं, परस्पर, आपही आप एक-साथ, एकाएक, मन से, ध्यान-पूर्वक, सदेह, सुखेन, रीत्यनुसार, क्योंकर, यथाशक्ति, हँसकर, फटाफट, तडतड, फटसे, उलटा, येन-केन-प्रकारेण, अकस्मात्, किंवा, प्रत्युत।

(आ) निश्चय बोधक – अवश्य, सही, सचमुच, निःसंदेह, बेशक, जरूर, अलबत्ता, मुख्य-करके, विशेष-करके, यथार्थ में, वस्तुतः, दरअसल।

(इ) अनिश्चय बोधक – कदाचित् (शायद), बहुत करके, यथा-संभव ।

(ई) स्वीकार बोधक – हाँ, जी, ठीक, सच ।

(उ) कारण बोधक – इसलिए, क्यों, काहे को।

(ऊ) निषेध बोधक – न, नहीं, मत ।

(ऋ) अवधारणा बोधक – को, ही, मात्र, भर, तक, साथ।

संस्कृत क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

पूर्वक – ध्यान-पूर्वक, प्रेम-पूर्वक, इत्यादि।

वश – विधि-वश, भय-वश ।

इन (आ) – सुखेन, येन-केन-प्रकारेण, मनसा-वाचा-कर्मणा ।

या – कृपया, विशेषतया ।

अनुसार – रीत्यनुसार, शक्त्यनुसार ।

तः – स्वभावतः, वस्तुतः, स्वत: ।

दा – सर्वदा, सदा, यदा, कदा।

धा – बहुधा, शतधा, नवधा।

श: – क्रमशः, अक्षरशः।

त्र – एकत्र, सर्वत्र, अन्यत्र।

था – सर्वथा, अन्यथा।

वत – पूर्ववत्, तद्वत।

चित् – कदाचित्, किचित्।

मात्र – पति-मात्र, नाम-मात्र, लेश-मात्र।

हिंदी क्रिया विशेषण Kriya Visheshan

ता, ते – दौडता, करता, बोलता, चलते, आते

ए – बैठा, भागा, लिए, उठाए. बैठे, चढ़े।

को – इधर को, दिन को, रात को, अंत को

से – धर्म से, मन से, प्रेम से, इधर से, तब से।

में – संक्षेप मे, इतने में, अंत में।

का – सवेरे का, कल का।

तक – आज तक, यहां तक, रात तक, घर तक।

कर, करके – दौडकर, उठकर, देखकर के, धर्म करके, भक्ति करके, क्योंकर।

भर – रातभर, पलभर, दिनभर।

नीचे लिखे प्रत्ययों और शब्दों से सार्वनामिक क्रियाविशेषण बनते हैं-

ए – ऐसे, कैसे, जैसे, जैसे, तैसे, थोड़े।

हाँ – यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, तहाँ।

धर – इधर, उधर, जिधर, किधर।

यो – यो, त्यों, ज्यो, क्यों।

लिए – इसलिए, जिसलिए, किसलिए।

ब – अब, तब, कब, जब।

स्रोत – हिंदी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

क्रिया Kriya

क्रिया Kriya

क्रिया शब्द के उदाहरण | क्रिया Kriya की परिभाषा, क्रिया के भेद, क्रिया किसे कहते हैं? अकर्मक क्रिया, सकर्मक क्रिया, क्रिया की पहचान का अचूक सूत्र : क्रिया परिभाषा भेद उदाहरण

परिभाषा

वे शब्द, जिनके द्वारा किसी कार्य का करना या होना पाया जाता है उन्हें क्रिया पद कहते हैं।

संस्कृत में क्रिया रूप को धातु कहते हैं, हिन्दी में उन्हीं के साथ ना लग जाता है जैसे लिख से लिखना, हँस से हँसना।

भेद

कर्म, प्रयोग तथा संरचना के आधार पर क्रिया के विभिन्न भेद किए जाते हैं –

1. कर्म के आधार पर क्रिया Kriya

कर्म के आधार पर क्रिया के मुख्यतः दो भेद किए जाते हैं (i) अकर्मक क्रिया (ii) सकर्मक क्रिया।

अकर्मक क्रिया

वे क्रियाएँ जिनके साथ कर्म प्रयुक्त नहीं होता तथा क्रिया का प्रभाव वाक्य के प्रयुक्त कर्त्ता पर पड़ता है, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे- कुत्ता भौंकता है।
सीता हँसती है।
गीता सोती है।
बालक रोता है।
आदमी बैठा है।

क्रिया परिभाषा भेद उदाहरण
क्रिया परिभाषा भेद उदाहरण

कुछ और अकर्मक क्रिया ऐसी हैं, जिनका प्रायः कभी कभी अकेले कर्त्ता से पूर्णतया प्रकट नहीं होता। कर्ता के विषय में पूर्ण विधान होने के लिए इन क्रियाओं के साथ कोई संज्ञा या विशेषण आता है। इन क्रियाओं को अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं और जो शब्द इनका आशय पूरा करने के लिए आते हैं उन्हें पूर्ति कहते हैं। “होना”, “रहना,” “बनना,” “दिखना”, “निकलना”, “ठहरना इत्यादि अपूर्ण अर्मक क्रियाएँ हैं। उदा०–“लड़का चतुर है।” साधु चोर निकला।” “नौकर वीर रहा ।” “आप मेरे मित्र ठहरे।” “यह मनुष्य विदेशी दिखता है। इन वाक्यों मे “चतुर”, “चोर”, “बीमार” आदि शब्द पूत्ति हैं।

सकर्मक क्रिया

वे क्रियाएँ, जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त कर्ता पर न पड़ कर कर्म पर पड़ता है। अर्थात् वाक्य में क्रिया के साथ कर्म भी प्रयुक्त हो, उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे- राम दूध पी रहा है।
सीता खाना बना रही है।

सकर्मक क्रिया के दो उपभेद किये जाते हैं

(अ) एक कर्मक क्रिया

जब वाक्य में क्रिया के साथ एक कर्म प्रयुक्त हो तो उसे एककर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे- विपिन खेल कर रहा है।

(आ) द्विकर्मक क्रिया

जब वाक्य में क्रिया के साथ दो कर्म प्रयुक्त हुए हों तो उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे – अध्यापक जी छात्रों को हिन्दी पढ़ा रहे हैं। इस वाक्य में पढ़ा रहे हैं क्रिया के साथ छात्रों एवम् हिन्दी दो कर्म प्रयुक्त हुए है अतः पढ़ा रहे हैं द्विकर्मक क्रिया है।

2. प्रयोग तथा संरचना के आधार पर क्रिया Kriya

वाक्य में क्रियाओं का प्रयोग कहाँ किया जा रहा है किस रूप में किया जा रहा है, इसके आधार पर भी क्रिया के निम्न भेद होते हैं

(I) सामान्य क्रिया

जब किसी वाक्य में एक ही क्रिया का प्रयोग हुआ हो, उसे सामान्य क्रिया कहते हैं। जैसे –

सुरेश जाता है।

मीता आई।

(ii) संयुक्त क्रिया

जो क्रिया दो या दो से अधिक भिन्नार्थक क्रियाओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे

चंपा ने खाना बना लिया।

राज ने पत्र लिख लिया।

(iii) प्रेरणार्थक क्रिया

वे क्रियाएँ, जिन्हें कर्ता स्वयं न करके दूसरों को क्रिया करने के लिए प्रेरित करता है, उन क्रियाओं को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे–

राहुल, विवेक से पत्र लिखवाता है।

अनीता, सविता से पानी मंगवाती है।

(iv) पूर्वकालिक क्रिया

जब किसी वाक्य में दो क्रियाएँ प्रयुक्त हुई हों तथा उनमें से एक क्रिया दूसरी क्रिया से पहले सम्पन्न हुई हो तो पहले सम्पन्न होने वाली क्रिया पूर्व कालिक क्रिया कहलाती है। जैसे-

धर्मेन्द्र पढ़कर सो गया।

यहाँ सोने से पूर्व पढ़ने का कार्य हो गया अतः पढ़कर क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाएगी। (किसी मूल धातु के साथ कर लगाने से पूर्वकालिक क्रिया बनती है।)

(V) नाम धातु क्रिया

वे क्रिया पद, जो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि से बनते है, उन्हें नामधातु क्रिया कहते हैं।

जैसे-रंगना, लजाना, अपनाना, गरमाना, चमकाना, गुदगुदाना।

(vi) कृदन्त क्रिया

वे क्रिया पद जो क्रिया शब्दों के साथ प्रत्यय लगने पर बनते हैं, उन्हें कृदन्त क्रिया पद कहते हैं जैसे

चल से चलना, चलता, चलकर।

लिख से लिखना, लिखता, लिखकर।

(vii) सजातीय क्रिया

वे क्रियाएँ, जहाँ कर्म तथा क्रिया दोनों एक ही धातु से बनकर साथ प्रयुक्त होती हैं। जैसे-भारत ने लड़ाई लड़ी।

(viii) सहायक क्रिया

किसी भी वाक्य में मूल क्रिया की सहायता करने वाले पद को सहायक क्रिया कहते है। जैसे-अरविन्द पढ़ता है। राजु ने अपनी पुस्तक मेज पर रख दी है। उक्त वाक्यों में है तथा दी है सहायक क्रिया हैं।

3. काल के अनुसार क्रिया Kriya

जिस काल में कोई क्रिया होती है, उस काल के नाम के आधार पर क्रिया का भी नाम रख देते हैं। अतः काल के अनुसार क्रिया तीन प्रकार की होती है

(i) भूतकालिक क्रिया

क्रिया का वह रूप, जिसके द्वारा बीते समय में (भूतकाल में) कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है। जैसे-

सुनीता गयी।
सौरभ खेल रहा था।

(ii) वर्तमानकालिक क्रिया

क्रिया का वह रूप जिसके द्वारा वर्तमान समय में कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है। जैसे-

प्रदीप खाना खाता है।

पूजा खाना बना रही है।

(iii) भविष्यत्कालिक क्रिया

क्रिया का वह रूप जिसके द्वारा आने वाले समय में कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है। जैसे –

मिताली कल जयपुर जायेगी।

रमेश विद्यालय जायेगा।

अकर्मक-सकर्मक क्रिया Kriya की पहचान का अचूक सूत्र

1 क्रिया से पहले क्या शब्द लगाकर प्रश्न बनाते हैं, यदि उत्तर आए तो वह क्रिया सकर्मक क्रिया होती है अन्यथा क्रिया अकर्मक होती है।

जैसे- लोग रामायण पढ़ते हैं।

उक्त वाक्य में पढ़ते हैं क्रिया पद है यदि इससे पहले क्या शब्द लगाकर एक प्रश्न बना लिया जाए तो प्रश्न बनेगा क्या पढ़ते हैं? तो इस प्रश्न का उत्तर हमें रामायण प्राप्त होता है इसलिए पढ़ने की क्रिया का फल लोग पद पर न पड़कर रामायण पर पड़ता है, इसलिए यहां क्रिया सकर्मक क्रिया है और रामायण इस वाक्य में कर्म पद है।

2 यदि क्या शब्द लगाकर प्रश्न करने पर प्रत्यक्ष उत्तर नहीं आता है लेकिन कोई काल्पनिक उत्तर आए तो भी क्रिया सकर्मक होगी।

यदि उत्तर में कर्ता ही प्राप्त होता है तो क्रिया सकर्मक नहीं होगी।

विद्यार्थी पढ़ते हैं।

उक्त वाक्य में क्रिया के साथ क्या लगाकर प्रश्न बनायें तो प्रश्न का कोई प्रत्यक्ष उत्तर नहीं प्राप्त होता है,

परन्तु इसका काल्पनिक उत्तर प्राप्त हो सकता है। अतः यहाँ पर सकर्मक क्रिया है।

3 प्रकृति द्वारा होने वाली क्रिया अथवा स्वतः होने वाली क्रियाएं सदैव अकर्मक होती है अथवा

जिस क्रिया का कोई कर्ता नहीं होता वह सदैव अकर्मक क्रिया होती है। जैसे-

फूल खिलता है।

उक्त वाक्य में जब क्या पद लगाकर प्रश्न बनाया जाएगा तो प्रश्न बनेगा क्या खिलता है?

वहां पर हमें इसका उत्तर प्राप्त नहीं होता है।

यदि हम इस प्रश्न का उत्तर फूल करेंगे तो फूल स्वयं कर्ता है कर्म नहीं है और दूसरी बात कि यह स्वतः होने वाली क्रिया है,

फूल स्वयं खिल रहा है, अतः यहां अकर्मक क्रिया होगी।

अन्य उदाहरण

बूंद-बूंद से घड़ा भरता है।
उक्त वाक्य में भी यदि क्या पद लगाकर प्रश्न बनाया जाए तो प्रश्न बनेगा क्या भरता है?

और इसका सीधा सा उत्तर मिलता है घड़ा भरता है।

परंतु घड़ा स्वतः भर रहा है उसको भरने वाला अर्थात उसका कोई कर्ता नहीं है

अतः स्वतः होने वाली क्रिया अकर्मक क्रिया होगी।

यदि इसी वाक्य को यह कर दिया जाए राम बूंद-बूंद से घड़ा भरता है।

तब राम इसका कर्ता हो जाएगा।

उस स्थिति में यह क्रिया सकर्मक क्रिया हो जाएगी।

कुछ क्रियाएँ प्रयोग के अनुसार सकर्मक और अकर्मक दोनो होती हैं, जैसे, खुजलाना, भरना, लजाना, भूलना, घिसना, बदलना, ऐठना, ललचाना, घबराना, इत्यादि । उदा०

“मेरे हाथ खुजलाते हैं ।” – अकर्मक क्रिया

“उसका बदन खुजलाकर उसकी सेवा करने में उसने कोई कसर नहीं की।” – सकर्मक क्रिया

“खेल-तमाशे की चीजें देखकर भोले भाले आदमिया का जी ललचाता है।” – अकर्मक क्रिया

“राकेश अपने सामान की खरीदारी के लिये मोहन को ललचाता है।” – सकर्मक क्रिया

“बूंद बूंद करके तालाब भरता है ।” – अकर्मक क्रिया

“प्यारी ने ऑँखें भरके कहा।” – सकर्मक क्रिया

“गेहूं पिसता है।“ – अकर्मक क्रिया

“गेहूं पीसता है।“ – सकर्मक क्रिया

इनको उभय-विध धातु कहते हैं।

स्रोत – हिन्दी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

क्रिया

विशेषण Visheshan

विशेषण Visheshan

विशेषण Visheshan | visheshan ke bhed | visheshan | kise kahate hain | paribhasha | visheshan in hindi | prakar | परिभाषा | विशेषण के उदाहरण

प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं।
(i) विकारी (Vikari Shabad)

(ii) अविकारी या अव्यय शब्द (Avikari Shabad)

(i) विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

(ii) अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है।

ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं। विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

विशेषण Visheshan

परिभाषा: वे शब्द, जो किसी संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बतलाते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं। जैसे-

नीला-आकाश

छोटी लड़की

दुबला आदमी

कुछ पुस्तकें

में क्रमशः नीला, छोटी, दुबला, कुछ पद विशेषण हैं, जो आकाश लड़की, आदमी पुस्तकें आदि संज्ञाओं की विशेषता का बोध कराते हैं।

अतः विशेषता बतलाने वाले शब्द विशेषण कहलाते हैं वहीं वह विशेषण पद जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाता है उसे विशेष्य कहते हैं उक्त उदाहरणों में आकाश, लड़की आदमी पुस्तकें आदि पद विशेष्य कहलायेंगे।

विशेषण संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित करता है

इस उक्ति का अर्थ यह है कि विशेषण रहित संज्ञा से जितनी वस्तुओं का बोध होता है उनकी संख्या विशे षण के योग से कम हो जाती ।

“दो शब्द से जितने प्राणियों का बोध होता है उसके प्राणियों का बोध “काला घोड़ा,” शब्दों से नहीं होता है।

“घोड़ा” शब्द जितना व्यापक है उतना “काला घोड़ा” शब्द नहीं है।

“घोड़ा” शब्द की व्याप्ति ( विस्तार ) “काला” शब्द से मर्यादित (संकुचित ) होती है; अर्थात “घोड़ा” शब्द अधिक प्राणियों का बोधक है और “काला घोड़ा” शब्द उससे कम प्राणियों का बोधक है।

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार

विशेषण Visheshan के प्रकार

विशेषण मुख्यतः 5 प्रकार के होते हैं – पंडित कामता प्रसाद गुरु ने विशेषण के तीन भेद स्वीकार किए हैं-

1 सार्वनामिक विशेषण

2 गुणवाचक विशेषण

3 संख्यावाचक विशेषण

1. गुणवाचक विशेषण : वे शब्द, जो किसी संज्ञा या सर्वनाम के गुण, दोष, रूप, रंग, आकार, स्वभाव, दशा आदि का बोध कराते हैं, उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे-

काल- नया, पुराना, ताजा, भूत, वर्तमान, भविष्य, प्राचीन, अगला, पिछला, मौसमी, आगामी, टिकाऊ, इत्यादि ।

स्थान – लंबा, चौड़ा, ऊँचा, नीचा, गहरा, सीधा, सकरा, तिरछा, भीतरी, बाहरी, ऊजड़, स्थानीय, इत्यादि।

आकार – गोल, चौकोर सुडौल, समान, पोला, सुंदर, नुकीला, इत्यादि ।

रंग – लाल, पीला, नीला, हरा, सफेद, काला, बैंगनी, सुनहरी, चमकीला, धुंधला, फीका, इत्यादि ।

दशा – दुबला, पतला, मोटा, भारी, पिघला, गाढ़ा, पीला, सूखा, घना, गरीब, उद्योग, पालतू , रोगी, इत्यादि।

गुण – भला, बुरा, उचित, अनुचित, सच, झूठ, पापी, दानी, न्यायी, दुष्ट, सीधा, शांत, इत्यादि ।

2. संख्यावाचक विशेषण

वे विशेषण, जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित, अनिश्चित संख्या, क्रम या गणना का बोध कराते हैं उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।

ये भी दो प्रकार के होते हैं- एक वे जो निश्चित संख्या का बोध कराते हैं तथा दूसरे वे जो अनिश्चित संख्या का बोध कराते हैं जैसे-

(i) निश्चित संख्यावाचक

निश्चित संख्यावाचक विशेषण से वस्तुओं की निश्चित संख्या का बोध होता है; जैसे, एक लड़का, पच्चीस रुपये, दसवाँ भाग, दूना मोल, पाँचों इंद्रियाँ, हर आदमी, इत्यादि।

निश्चित संख्या-वाचक विशेपणों के पाँच भेद हैं-

(अ) गणनावाचक – एक, दो, तीन।

(आ) क्रमवाचक – पहला, दूसरा।

(इ) आवृत्तिवाचक – दोगुना, चौगुना।

(द) समुदाय वाचक – दोनों तीनों, चारों।

(य) प्रत्येक बोधक – “हर घड़ी”, ” हर एक आदमी”, “प्रति जन्म”, “प्रत्येक बालक, “हर आठवें दिन”, इत्यादि।

(ii) अनिश्चय संख्यावाचक – कई, कुछ, सब, बहुत, थोड़े।

3. परिमाण वाचक विशेषण

वे विशेषण, जो किसी पदार्थ की निश्चित या अनिश्चित मात्रा, परिमाण, नाप या तौल आदि का बोध कराते है, उन्हें परिमाण वाचक विशेषण कहते हैं।

इसके भी दो उपभेद किए जा सकते हैं यथा-

(i) निश्चित परिमाण वाचक : दो मीटर, पाँच किलो, सात लीटर।

(ii) अनिश्चित परिमाण वाचक : थोड़ा, बहुत, कम, ज्यादा, अधिक, जरा-सा, सब आदि।

4. संकेतवाचक विशेषण

वे सर्वनाम शब्द, जो विशेषण के रूप में किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन्हें संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जैसे-

(i) इस गेंद को मत फेको।

(ii) उस पुस्तक को पढ़ो।

(iii) वह कौन गा रही है?

वाक्यों में इस, उस वह आदि शब्द संकेतवाचक विशेषण हैं।

5. व्यक्तिवाचक विशेषण

वे विशेषण, जो व्यक्तिवाचक संज्ञा से बनकर अन्य संज्ञा या सर्वनाम की विशेषण बतलाते हैं उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे-

जोधपुरी जूती, बनारसी साड़ी, कश्मीरी सेब, बीकानेरी भुजिए वाक्यों में जोधपुरी, बनारसी, कश्मीरी, बीकानेरी शब्द व्यक्तिवाचक विशेषण है।

विशेष : कतिपय विद्वान एक और प्रकार विभाग वाचक विशेषण का भी उल्लेख करते हैं। जैसे- प्रत्येक हर एक आदि।

विशेषण Visheshan की अवस्थाएँ

गुणवाचक विशेषण की तुलनात्मक स्थिति को अवस्था कहते हैं। अवस्था के तीन प्रकार माने गये हैं-

(i) मूलावस्था – जिसमें किसी संज्ञा या सर्वनाम की सामान्य स्थिति का बोध होता है। जैसे- राम अच्छा लड़का है।

(ii) उत्तरावस्था – जिसमें दो संज्ञा या सर्वनाम की तुलना की जाती है। जैसे-अशोक रमेश से अच्छा है।

(iii) उत्तमावस्था – जिसमें दो से अधिक संज्ञा या सर्वनामों की तुलना करके, एक को सबसे अच्छा या बुरा बतलाया जाता है वहाँ उत्तमावस्था होती है। जैसे – राम सबसे अच्छा है। सीता सुन्दरतम लड़की है।

अवस्था परिवर्तन : मूलावस्था के शब्दों में तर तथा तम प्रत्यय लगा कर या शब्द के पूर्व शाम से अधिक, या सबसे अधिक शब्दों का प्रयोग कर क्रमशः उत्तरावस्था एवं उत्तमावस्था में प्रयुक्त किया जाता है, जैसे-

मूलावस्था   उत्तरावस्था    उत्तमावस्था
उच्च              उच्चतर           उच्चतम
तीव्र               तीव्रतर            तीव्रतम
अच्छा            से अच्छा         सबसे अच्छा
ऊँचा             से ऊँचा           सबसे ऊँचा

विशेष

सार्वनामिक विशेषण Visheshan तथा सर्वनाम में अंतर

पुरुषवाचक और निजवाचक सर्वनामों को छोड़कर शेष सर्वनामों का प्रयोग विशेषण के समान होता है।

जब ये शब्द अकेले आते हैं, तब सर्वनाम होते हैं और जब इनके साथ संज्ञा आती है तब ये विशेषण होते हैं; जैसे-

“नौकर आया है ; वह बाहर खड़ा है।”

इस वाक्य में ‘वह’ सर्वनाम है; क्योंकि वह “नौकर” संज्ञा के बदले आया है।

“वह नौकर नही आया यहाँ “वह” विशेषण है; क्योकि “वह” “नौकर” संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित करता है।

अर्थात् उसका आश्रय बताता है।

इसी तरह “किसी को बुलाओ” और “किसी ब्राह्मण को बुलाओ “- इन दोनो वाक्यो में “किसी” क्रमशः सर्वनाम और विशेषण है।

विशेष्य

विशेषण के योग से जिस संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित होती है उस संज्ञा को विशेष्य कहते हैं;

जैसे, “ठंडी हवा चली” – इस वाक्य में ‘ठंडी’ विशेषण और ‘हवा’ विशेष्य है।

विशेष्य (उद्देश्य) विशेषण और विधेय विशेषण

व्यक्तिवाचक संज्ञा के साथ जो विशेषण आता है वह उस संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित नहीं करता, जैसे-

पतिव्रता सीता

प्रतापी भोज

दयालु ईश्वर

इन उदाहरणों में विशेषण संज्ञा के अर्थ को केवल स्पष्ट करते हैं।

“पतिव्रता सीता” वही व्यक्ति है जो ‘सीता है।

इसी प्रकार “भोज” और प्रतापी भोज एक ही व्यक्ति के नाम हैं।

किसी शब्द का अर्थ स्पष्ट करने के लिये जो शब्द आते हैं वे समानाधिकरण कहाते है।

ऊपर के वाक्यों में “पतिव्रता,” “प्रतापी” और “दयालु” समानाधिकरण विशेषण हैं।

विशेषण Visheshan

जातिवाचक संज्ञा के साथ उसका साधारण धर्म सूचित करनेवाला विशेषण समानाधिकरण होता है; जैसे-

मूक पशु, अबोध बच्चा, काला कौआ, ठंढी बर्फ, इत्यादि ।

इन उदाहरणो में विशेषणों के कारण संज्ञा की व्यापकता कम नही होती ।

(क) विशेष्य के साथ विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है-

(1) संज्ञा के साथ, (2) क्रिया के साथ।

पहले प्रयोग को विशेष्य (उद्देश्य) – विशेषण और दूसरे को विधेय-विशेषण कहते हैं।

विशेष्य – विशेषण विशेष्य (संज्ञा) के साथ और विधेय-विशेषण क्रिया के साथ आता है, जैसे-

ऐसी सुडौल चीज कहीं नहीं बन सकती।

हमे तो संसार सूना देख पडता है।

(ख) विधेय-विशेषण समानाधिकरण होता है, जैसे-

“यह ब्राह्मण चपल है।”

इस वाक्य में ‘यह शब्द के कारण “ब्राह्मण” संज्ञा की व्यापकता घटती है, परतु “चपल” पद उस व्यापकता को और कम नहीं करता।

उससे ब्राह्मण के विषय मे केवल एक नई बात ‘चपलता’ जानी जाती है।

(उद्धृत – हिन्दी व्याकरण – पं. कामत गुरु)

विशेषण Visheshan की रचना

संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया तथा अव्यय शब्दों के साथ प्रत्यय के मेल से विशेषण पद बन जाता है।

(I) संज्ञा से विशेषण बनाना :

प्यार – प्यारा

समाज – सामाजिक

पुष्प – पुष्पित

स्वर्ण – स्वर्णिम

जयपुर – जयपुरी

धन – धनी

भारत – भारतीय

रंग – रंगीला

श्रद्धा – श्रद्धालु

चाचा – चचेरा

विष – विषैला

बुद्धि – बुद्धिमान

गुण – गुणवान

दूर – दूरस्थ।

(ii) सर्वनाम से विशेषण :

यह – ऐसा

जो – जैसा

मैं – मेरा

तुम – तुम्हारा

वह – वैसा

कौन – कैसा।

(iii) क्रिया से विशेषण :

भागना – भगोड़ा

लड़का – लड़की

लूटना – लुटेरा।

(iv) अव्यय से विशेषण :

आगे – आगे

पीछे – पिछला

बाहर – बाहरी

स्रोत – हिन्दी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

सर्वनाम Sarvanam

सर्वनाम Sarvanam

सर्वनाम Sarvanam | परिभाषा | भेद | प्रकार | उदाहरण | सर्वनाम किसे कहते हैं | सर्वनाम शब्द | पुरुषवाचक | निजवाचक | सर्वनाम के प्रश्न

परिभाषा

सर्वनाम शब्द का अर्थ है- सब का नाम।

वाक्य में संज्ञा की पुनरुक्ति को दूर करने के लिए संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं जैसे- सीता विद्यालय जाती है।

वह वहाँ पढ़ती है।

पहले वाक्य में सीता’ तथा विद्यालय शब्द संज्ञा है, दूसरे वाक्य में सीता के स्थान पर वह तथा विद्यालय के स्थान पर वहाँ शब्द प्रयुक्त हुए है।

अतः वह और वहाँ शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त हुए है इसलिए इन्हे सर्वनाम कहते हैं।

sarvanam ke bhed, sarvanam ki paribhasha, सर्वनाम के भेद, sarvanam kise kehte hain, sarvanam in hindi, सर्वनाम के प्रकार, sarvanam shabd, sarvanam ka arth, sarvanam ka example, sarvanam ka matlab, सर्वनाम का शाब्दिक अर्थ, sarvanam ke kitne bhed hote hain, sarvanam ke udaharan, sarvanam ke bhed ki paribhasha, sarvanam ke bhed aur unki paribhasha, sarvanam ke bhed ke udaharan, sarvanam vyakaran
सर्वनाम Sarvanam

सर्वनाम Sarvanam के भेद

पुरुषवाचक सर्वनाम

जिन सर्वनामों का प्रयोग बोलने वाले सुनने वाले या अन्य किसी व्यक्ति के स्थान पर किया जाता है, उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते है।

पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं –

(1) उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम

वे सर्वनाम शब्द जिनका प्रयोग बोलने वाला व्यक्ति स्वयं अपने लिए करता है। जैसे – हम, मुझे, मेरा, हमारा, हमें आदि।

(2) मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम

वे सर्वनाम शब्द, जो सुनने वाले के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं।

जैसे- तू, तुम, तुझे, तुम्हें, तेरा, आप, आपका, आपको आदि।

(हिन्दी में अपने से बड़े या आदरणीय व्यक्ति के लिए तुम की अपेक्षा आप सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है।)

(3) अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम

वे सर्वनाम, जिनका प्रयोग बोलने तथा सुनने वाले व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए प्रयुक्त करते हैं।

जैसे– यह, वह, वे, उन्हें, उसे, इसे, उसका इसका आदि।

निश्चयवाचक सर्वनाम Sarvanam

वे सर्वनाम, जो किसी निश्चित वस्तु का बोध कराते है, उन्हें निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे- यह, वह, वे, इस, उस. ये आदि। जैसे-

वह आपकी पुस्तक है, वाक्य में वह पद निश्चयवाचक सर्वनाम है।

इसी प्रकार “यह मेरा घर है” में यह पद निश्चय वाचक सर्वनाम है।

अनिश्चयवाचक सर्वनाम

वे सर्वनाम शब्द, जिनसे किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति का बोध नहीं होता बल्कि अनिश्चय की स्थिति बनी रहती है, उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे-

कोई जा रहा है।

वह कुछ खा रहा है।

किसी ने कहा था।

वाक्यों में कोई, कुछ, किसी पद अनिश्चयवाचक सर्वनाम हैं।

प्रश्नवाचक सर्वनाम

वे सर्वनाम, जो प्रश्न का बोध कराते हैं या वाक्य को प्रश्नवाचक बना देते हैं, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे-

कौन गाना गा रही है?

वह क्या लाया?

किसकी पुस्तक पड़ी है?

उक्त वाक्यों में कौन, क्या, किसकी पद प्रश्नवाचक सर्वनाम है।

सम्बन्धवाचक सर्वनाम

सर्वनाम, जो दो पृथक-पृथक बातों के स्पष्ट सम्बन्ध को व्यक्त करते है, उन्हें सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे-जो- वह, जो-सो, जिसकी-उसकी. जितना-उतना, आदि सम्बन्ध वाचक सर्वनाम है। उदाहरणार्थ-

जो पढ़ेगा सो पास होगा।

जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा।

निजवाचक सर्वनाम Sarvanam

ये सर्वनाम, जिन्हें बोलने वाला कर्ता स्वयं अपने लिए प्रयुक्त करता है, उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं।

आप अपना, स्वयं, खुद आदि निजवाचक सर्वनाम है।

मैं अपना खाना बना रहा हूँ।

तुम अपनी पुस्तक पढो।

आदि वाक्यों में अपना, अपनी पद निजवाचक सर्वनाम है।

सर्वनाम Sarvanam की सही पहचान

‘आप’ शब्द में सही सर्वनाम

प्रयोग के आधार पर ‘आप’ शब्द में तीन सर्वनाम हो सकते हैं

अत: सही सर्वनाम की पहचान के लिए निम्नलिखित सूत्र अत्यंत उपयोगी है-

मध्यम पुरुषवाचक

यदि ‘आप’ शब्द तू/तुम के आदर रूप में प्रयुक्त होता है तो निश्चय ही वह श्रोता के लिए प्रयुक्त होगा अतः वहाँ यह मध्यमपुरुषवाचक सर्वनाम माना जाता है। जैसे– आप आराम कीजिए।

आप कहाँ जा रहे हैं?

आप क्या खाना पसंद करेंगे?

उपर्युक्त सभी उदाहरणों में आप पद श्रोता के लिएआदर सूचक रूप में ही प्रयुक्त हुआ है,

अतः यहां मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम माना जाएगा।

अन्य पुरुषवाचक

यदि ‘आप’ शब्द का प्रयोग किसी व्यक्ति विशेष का परिचय करवाने के अर्थ में किया जाता है तो वहाँ यह ‘अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम’ माना जाता है।

जैसे– भगत सिंह क्रांतिकारी युवक थे, आपने ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ का नारा बुलंद किया।

उपर्युक्त उदाहरण में भगत सिंह के लिए प्रयुक्त आपने शब्द भगत सिंह के परिचय के रूप में प्रयुक्त हुआ है, अतः यहां अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम माना जाएगा।

इस प्रकार के परिचयात्मक रूप में यदि आप शब्द का प्रयोग किया जाता है और वह व्यक्ति जिस का परिचय दिया जा रहा है वह वहां उपस्थित हो तो भी आप शब्द का प्रयोग अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम ही माना जाएगा। क्योंकि जिस व्यक्ति का परिचय दिया जा रहा है, भले ही वह वहां उपस्थित हो परंतु वह उस बातचीत में शामिल नहीं है। बातचीत में शामिल केवल वक्ता और श्रोता ही है। वह व्यक्ति बातचीत को सुनने के बावजूद भी उस बातचीत का अंग नहीं माना जाता,अतः ऐसी स्थिति में वहां अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम ही माना जाता है।

निजवाचक

यदि ‘आप’ शब्द अपनेपन को प्रकट करता है तो वहाँ वह निजवाचक सर्वनाम माना जाता है।

निजवाचक “आप” का प्रयोग नीचे लिखे अर्थों में होता है-

(अ) किसी संज्ञा या सर्वनाम के उदाहरण के लिए, जैसे

“मैं आप वहीं से आया हूँ ।”

“बनते कभी हम आप योगी।”

(आ) दूसरे व्यक्ति के निराकरण के लिए, जैसे –

(अ) “श्रीकृष्ण जी ने ब्राह्मण को विदा किया और आप चलने का विचार करने लगे।”

(आ) “वह अपने को सुधार रहा है।”

(इ) अवधारणा के अर्थ में “आप” के साथ कभी कभी “ही” जोड़ देते हैं, जैसे, “मैं तो आपही आती थी।”

“वह अपने पात्र के सम्पूर्ण गुण अपने ही में भरे हुए अनुमान करने लगता है।”

(ई) कभी-कभी “आप” के साथ उसका रूप “अपना” जोड़ देते हैं –

जैसे, “किसी दिन मैं आप अपने को न भूल जाऊँ ।

“क्या वह अपने आप झुका है ?”

“राजपूत वीर अपने आपको भूल गये।”

(उ) “आप” शब्द कभी-कभी वाक्य में अकेला आता है और अन्य पुरुष का बोधक होता है; जैसे-

आप कुछ उपार्जन किया ही नहीं, जो था वह नाश हो गया।”

(ऊ) सर्व-साधारण के अर्थ में भी “आप” आता है-

जैसे आप भला तो जग भला ।” (कहावत)

“अपने से बड़ों का आदर करना उचित है।”

ऋ) “आप” के बदले व उसके साथ बहुधा “खुद” (उर्दू), “स्वयं वा स्वतः” (संस्कृत) का प्रयोग होता है। स्वयं, स्वतः और खुद हिंदी में अव्यय हैं और इनका प्रयोग बहुधा क्रिया विशेषण के समान होता है। आदरसूचक ‘आप’ के साथ द्विरुक्ति के निवारण के लिए इनमें से किसी एक का प्रयोग करना आवश्यक है; जैसे-

आप खुद यह बात समझ सकते हैं।”

“हम आज अपने आपको भी हैं स्वयं भूले हुए ।”

महाराज स्वतः वहाँ गये थे।”

(ए) कभी-कभी “आप” के साथ निज (विशेषण) संज्ञा के समान आता है; पर इसका प्रयोग केवल संबंध-कारक में होता है। जैसे, “हम तुम्हें एक अपने निज के काम मे भेजा चाहते हैं ।

(ऐ) “आप” शब्द का रूप “आपस“, “परस्पर” के अर्थ मे आता है। इसका प्रयोग केवल संबंध और अधिकरण-कारकों मे होता है; जैसे-

“एक दूसरे की राय आपस में नहीं मिलती।”

आपस की फूट बुरी होती है।”

(ओ) “आपही”, “अपने आप”, “आपसे आप” और “आपही आप का अर्थ “मन से” या “स्वभाव से” होता है और इनका प्रयोग क्रिया विशेषण-वाक्यांश के समान होता है, जैसे-

“ये मानवी यंत्र आपही आप घर बनाने लगे।” (उद्धृत –पं. कामताप्रसाद गुरु)

अन्य उदाहरण-

वह आप ही आ जायेगा।

मैं अपने-आप चला जाऊंगा।

यह/वह/वे शब्दों में पहचान : सर्वनाम Sarvanam

यह/वह/वे का प्रयोग भी प्राय: दो सर्वनामों में किया जाता है अत: सही सर्वनाम की पहचान के लिए निम्नलिखित सूत्र बहुत उपयोगी है। अगर

वह/वे अन्य पुरुष के रूप में तब आते हैं, जब वह/वे का प्रयोग वक्ता या श्रोता से इतर किसी अन्य व्यक्ति के लिए किया जाता है। जैसे-

वह (कृष्ण) तो गवार ग्वाला है।

वे (कालिदास) असामान्य वैयाकरण थे।

क्या अच्छा होता जो वह इस काम को कर जाते।

वह सौदागर की सब दुकान को अपने घर ले जाना चाहता है।

(ध्यातव्य है कि वह/वे अन्य पुरुष के रूप में तब प्रयुक्त होता है जब वह वह किसी व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हो न कि किसी पदार्थ या वस्तु के लिए।)

यदि यह/वह/वे के तुरन्त बाद कोई अन्य शब्द आए तथा उसके बाद ‘संकेतित’ पदार्थ/वस्तु वाक्य में प्रयुक्त हो रहा है तो वहाँ यह/वह/वे शब्दों को निश्चयवाचक सर्वनाम में मानना चाहिए। जैसे-

वह मेरी पुस्तक है।

यह किसकी साइकिल है।

वे सूखे पेड़ कौन ले गया।

उक्त सभी उदाहरणों में यह, वह, वे पद निश्चित वस्तुओं की ओर संकेत कर रहे हैं, अतः यहां निश्चयवाचक माना जाएगा।

(यदि यह, वह,वे शब्दों के तुरंत बाद कोई संज्ञा शब्द आ जाए और वह उन संज्ञा शब्दों की विशेषता प्रकट करें तो वहां संकेतवाचक विशेषण माना जाएगा इसकी विस्तृत चर्चा विशेषण प्रकरण के अंतर्गत की जाएगी।)

इन्हें भी अवश्य पढ़िए

सर्वनाम

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

संज्ञा Sangya

संज्ञा Sangya

संज्ञा Sangya की परिभाषा, संज्ञा के भेद, संज्ञा के उदाहरण, प्रकार, संज्ञा की पहचान, हिंदी व्याकरण में संज्ञा संपूर्ण जानकारी सहित परीक्षोपयोगी तथ्य

प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं।

(i) विकारी (Vikari Shabad)

(ii) अविकारी या अव्यय शब्द (Avikari Shabad)

(i) विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

(ii) अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है। ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं। अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं। विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

संज्ञा Sangya की परिभाषा

परिभाषा

किसी प्राणी, वस्तु स्थान, भाव अवस्था, गुण या दशा के नाम को संज्ञा कहते हैं। जैसे राम, नदी, आगरा, स्वतंत्रता, बचपन, मिठास, खटास आदि।

संज्ञा Sangya के भेद

संज्ञा मुख्यतः तीन प्रकार की होती है

(1) व्यक्तिवाचक संज्ञा (2) जातियाचक संज्ञा (3) भाववाचक संज्ञा

(1) व्यक्तिवाचक संज्ञा Sangya

व्यक्ति विशेष, वस्तु विशेष अथवा स्थान विशेष के नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है। जैसे

व्यक्ति विशेष : जय, गौतम, रमेश, नीलेश।

वस्तु विशेष : रामायण, रविपंखा, उषामशीन।

स्थान विशेष : बीकानेर, गंगा, मीनाक्षी मंदिर, हिमालय।

व्यक्तिवाचक संज्ञा में रहने वाले शब्दों की पहचान

(i)  व्यक्तियों के नाम

(ii) दिशाओं के नाम

(iii) देशों के नाम

(iv) पहाड़ों के नाम

(v) समुद्रों के नाम

(vi) नदियों के नाम

(vii) दिनों के नाम

(viii) महीनों के नाम

(ix) पुस्तकों के नाम

(x) समाचार पत्रों के नाम

(xi) त्योहारों/उत्सवों के नाम

(xii) नगरों के नाम

(xiii) सड़कों के नाम

(xiv) चौकों के नाम

(xv) ऐतिहासिक युद्धों के नाम

(xvi) राष्ट्रीय जातियों के नाम

कतिपय परिस्थितियों में व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्द भी जातिवाचक संज्ञा के रूप में स्वीकार किए जाते हैं

व्यक्तिवाचक संज्ञा का कोई शब्द जब अपने साथ अन्य नामों का भी बोध कराता है तो वहाँ जातिवाचक संज्ञा मानी जाती है- जैसे

समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है।

उक्त उदाहरण में नेपोलियन शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा का उदाहरण है परंतु यहाँ अन्य नामो का बोध कराने के कारण यह जातिवाचक संज्ञा माना गया है।

अन्य उदाहरण –

कलियुग के भीम

कविता हमारे घर की लक्ष्मी है

देश में जयचन्दों की कमी नहीं है।

तीसरे उदाहरण में ‘लक्ष्मी’ संज्ञा जातिवाचक है, क्योंकि उससे विष्णु की स्त्री का बोध नहीं होता, किंतु लक्ष्मी के समान एक गुणवती स्त्री का बोध होता है। इसी प्रकार   ‘भीम’ भी जातिवाचक संज्ञा हैं। “गुप्तों की शक्ति क्षीण होने पर यह स्वतंत्र हो गया था”। इस वाक्य में “गुप्तों” शब्द से अनेक व्यक्तियों का बोध होने पर भी वह नाम व्यक्तिवाचक संज्ञा है, क्योंकि इससे किसी व्यक्ति के विशेष धर्म का बोध नहीं होता, किंतु कुछ व्यक्तियोंके एक विशेष समूह का बोध होता है। (उद्धृत – हिंदी व्याकरण पंडित कामताप्रसाद गुरु पृ. सं. 80)

(2) जातिवाचक संज्ञा Sangya

जिस संज्ञा से किसी प्राणी, वस्तु अथवा स्थान की जाति या पूरे वर्ग का बोध होता है, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे –

प्राणी : मानव, लड़का, घोड़ी, मोर, फौज, भीड़।

वस्तु : पुस्तक, पंखा, चाय, साबुन, सोना,पर्वत, गेंहूँ।

स्थान : नदी, गांव, विद्यालय।

जातिवाचक संज्ञा में रहने वाले शब्दों की पहचान-

I. पदों के नाम- राष्ट्रपति, सभापति, जिलाधीश, तहसीलदार, प्रधानाचार्य, अध्यापक।

II. व्यवसाय के नाम- डाॅक्टर, वकील, मजदूर आदि।

III. सामाजिक संबंधों के नाम- दादा, दादी, भाई, पिताजी, माताजी आदि।

IV. प्राकृतिक आपदाओं के नाम- आँधी, तूफान, भूकम्प आदि।

V. फर्नीचर के नाम- मेज, कुर्सी, चारपाई आदि।

कतिपय परिस्थितियों में जातिवाचक संज्ञा शब्द भी व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में स्वीकार किए जाते हैं

जब कोई जातिवाचक संज्ञा शब्द किसी व्यक्ति विशेष के अर्थ में रूढ़ हो जाता है तो वहाँ व्यक्तिवाचक संज्ञा मानी जाती है। कुछ जातिवाचक संज्ञाओं का प्रयोग व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के समान होता है।

जैसे-

पुरी = जगन्नाथ

देवी = दुर्गा

दाऊ = बलराम

संवत् = विक्रमी संवत् इत्यादि ।

इसी वर्ग में वे शब्द शामिल हैं जो मुख्य नामों के बदले उपनाम के रूप में आते हैं। जैसे-

सितारे – हिंद = राजा शिवप्रसाद

भारतेन्दु = बाबू हरिश्चन्द्र

गुसाईजी = गोस्वामी तुलसीदास इत्यादि।

बहुत सी योगरूढ़ संज्ञा, जैसे, गणेश, हनुमान, हिमालय, गोपाल, इत्यादि मूल में जातिवाचक संज्ञाएँ हैं, परंतु अब इनका प्रयोग जातिवाचक अर्थ में प्रायः नहीं होता। (उद्धृत – हिंदी व्याकरण पंडित कामताप्रसाद गुरु पृ. सं. 80-81)

अन्य उदाहरण –

नेताजी ने जय हिंद का नारा दिया।

उक्त उदाहरण में नेताजी शब्द जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत है। क्योंकि नेताजी शब्द का अपने सामान्य अर्थ में कोई भी नेताजी हो सकते हैं, परंतु उक्त वाक्य में ऐसा नहीं है।यहां नेताजी शब्द सुभाषचंद्र बोस के लिए रूढ़ हो गया है, अतः यहां नेताजी शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा माना जाएगा।

बापू ने आजादी के लिए चरखा चलाया।

सरदार ने देश को संगठित किया।

देश हमें प्राणों से प्यारा है।

(3) भाववाचक संज्ञा Sangya

किसी भाव. अवस्था, गुण अथवा दशा के नाम को भाववाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसे-सुख, दु:ख, बचपन, जवानी, तरुणाई, बुढा़पा,  सुन्दरता, आजादी, गुलामी, स्वतंत्रता, मिठास, खटास।

कतिपय परिस्थितियों में भाववाचक संज्ञा शब्द भी जातिवाचक संज्ञा के रूप में स्वीकार किए जाते हैं

कभी-कभी भाववाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के समान होता है, जैसे-

“उसके आगे सब निरादर है”।

इस वाक्य में “निरादर” शब्द से”निरादर-योग्य ‘स्त्री’ का बोध होता है ।

“ये सब कैसे अच्छे पहिरावे है”।

यहाँ “पहनावे” का अर्थ बहुत करके“पहनने के वस्त्र” है ।

(उद्धृत – हिंदी व्याकरण पंडित कामताप्रसाद गुरु पृ. सं. 81)

सामान्य परिस्थितियों में भाववाचक संज्ञा का प्रयोग  एकवचन में ही होता है। परंतु यदि भाववाचक संज्ञा को बहुवचन में प्रयुक्त कर दिया जाये तो वहाँ पर जातिवाचक संज्ञा मानी जाती है।

अब तो दूरियाँ भी नजदीकियाँ बन गयी हैं।

आजकल चोरियाँ बहुत हो रही हैं।

सबकी प्रार्थनाएँ व्यर्थ नहीं जायेंगी।

उक्त उदाहरणों में दूरियां, नज़दीकियां, चोरियां,प्रार्थनाएं आदि विशेषण शब्द है, परंतु बहुवचन में प्रयुक्त होने के कारण जातिवाचक संज्ञा माने गए हैं।

विशेष: कुछ विद्वान अंग्रेजी व्याकरण की नकल करते हुए हिन्दी में भी संज्ञा के निम्नलिखित दो भेद और मानते हैं

(1) समुदायवाचक संज्ञा Sangya (Collective Noun)-

जिन संज्ञा शब्दों से व्यक्तियों, वस्तुओं आदि के समूह का बोध हो, उन्हें समुदायवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे –

(अ) व्यक्तियों का समूह- भीड़, कक्षा, दल, सभा, सेना, फौज, जत्था, सम्मेलन, गिरोह, संगोष्टी मंडली, टीम, दल, वृन्द।

(ब) वस्तुओं का समूह- गुच्छा, मंडल, झुण्ड, ढेर, कुंज, आगार।

(2) द्रव्यवाचक संज्ञा Sangya (Material Noun)-

जिन संज्ञा शब्दों से किसी धातु, द्रव्य आदि पदार्थों का बोध हो, उन्हें द्रव्य वाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-

तेल, सोना, चाँदी, चावल, घी, पीतल, गेहूँ, कोयला, लकड़ी आदि।

किन्तु हिन्दी में उक्त दोनों भेद जाति-वाचक संज्ञा के अन्तर्गत आते है।

भाववाचक संज्ञा बनाना –

जातिवाचक संज्ञा, सर्वनाम विशेषण, क्रिया तथा कुछ अव्यय पदों के साथ प्रत्यय के मेल से भाववाचक संज्ञा बनती हैं। तथा –

1- संज्ञा से भाववाचक संज्ञा –

  • ता प्रत्यय के मेल से

मानव-मानवता

मित्र-मित्रता

प्रभु-प्रभुता

पशु-पशुता

  • त्व प्रत्यय के मेल से

पशु-पशुत्व

कवि- कवित्व

गुरु- गुरुत्व

मनुष्य– मनुष्यत्व

  • पन प्रत्यय के मेल से

लड़का-लड़कपन

बच्चा – बचपन

  • अ प्रत्यय के मेल से

शिशु-शैशव

गुरु-गौरव

वैभव – वैभव

  • इ प्रत्यय के मेल से

भक्त-भक्ति।

  • ई प्रत्यय के मेल से

नौकर – नौकरानी

चोर-चोरी

  • आपा प्रत्यय के मेल से

बूढ़ा – बुढ़ापा

बहन – बहनापा

2- सर्वनाम से भाववाचक संज्ञा :

(अ) त्व  प्रत्यय के मेल से –

अपना-अपनत्व

निज – निजत्व

स्व-स्वत्व

(आ) पन प्रत्यय के मेल से –

अपना – अपनापन

पराया – परायापन

कार प्रत्यय के मेल से –

अहं – अहंकार

(इ)स्व  प्रत्यय के मेल से –

सर्व – सर्वस्व

3- विशेषण से भाववाचक संज्ञा :

(अ) आई प्रत्यय के मेल से –

साफ – सफाई

अच्छा – अच्छाई

बुरा – बुराई

(आ) आस प्रत्यय के मेल से –

खट्टा – खटास

मीठा – मिठास

(इ) ता प्रत्यय के मेल से –

उदार – उदारता

वीर – वीरता

सरल – सरलता

(ई) य प्रत्यय के मेल से –

मधुर – माधुर्य

सुन्दर – सौन्दर्य

स्वस्थ – स्वास्थ्य

(उ) पन प्रत्यय के मेल से –

खट्टा – खट्टापन

पीला – पीलापन

(ऊ) त्व प्रत्यय के मेल से –

वीर – वीरत्व।

(ए) ई प्रत्यय के मेल से –

लाल – लाली

4. क्रिया से भाववाचक संज्ञा :

(अ) अ प्रत्यय के मेल से –

खेलना – खेल

लूटना – लूट,

जीतना-जीत।

(आ) ई प्रत्यय के मेल से –

हँसना-हँसी

(इ) आई प्रत्यय के मेल से –

चढ़ना-चढ़ाई

पढ़ना-पढ़ाई

लिखना-लिखाई

(ई) आवट प्रत्यय के मेल से –

बनाना – बनावट

थका – थकावट

लिखना – लिखावट

(उ) आव प्रत्यय के मेल से –

चुनना – चुनाव

(ऊ) आहट प्रत्यय के मेल से –

घबराना – घबराहट

गुनगुनाना – गुनगुनाहट

(ए) न प्रत्यय के मेल से –

लेना-देना – लेन-देन

खाना-खान।

5- अव्यय से भाववाचक संज्ञा

(अ) ई प्रत्यय के मेल से –

भीतर – भीतरी

ऊपर – ऊपरी

दूर – दूरी

(आ) य प्रत्यय के मेल से –

समीप – सामीप्य

(इ) इक प्रत्यय के मेल से –

परस्पर – पारस्परिक

व्यवहार -व्यावहारिक

(ई) ता प्रत्यय के मेल से –

निकट – निकटता

शीघ – शीघ्रता

इन्हें भी अवश्य पढ़िए-

संज्ञा

विशेषण

क्रिया विशेषण

कारक

स्वर सन्धि

व्यंजन संधि

विसर्ग सन्धि

Social Share Buttons and Icons powered by Ultimatelysocial