राज्य मानव अधिकार आयोग – Human Rights
मानवाधिकार आयोग Human Rights | इतिहास, गठन, मुख्यालय, स्थापना, आयोग के सदस्य | राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग | Manvadhikar Aayog
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग एवं राज्य स्तर पर राज्य मानव अधिकार आयोग को स्थापित करने की व्यवस्था है।
अधिनियम के अध्याय 5 की धारा 21 से 29 तक मेंराज्य मानवाधिकार आयोग के गठन शक्तियां एवं कार्यों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
राजस्थान की राज्य सरकार ने दिनांक 18 जनवरी 1999 को एक अधिसूचना जारी कर राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन किया, यह आयोग मार्च 2000 से क्रियाशील हो गया था।
आयोग में मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के प्रावधानों के अनुसार एक पूर्णकालिक अध्यक्ष तथा चार सदस्यों का प्रावधान है।
राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन (धारा 21) : मानवाधिकार आयोग Human Rights
(1) कोई राज्य सरकार, इस अध्याय के अधीन राज्य आयोग को प्रदत शक्तियों का प्रयोग करने के लिए और सौपे गए कृत्यों का पालन करने के लिए एक निकाय का गठन कर सकेगी जिसका नाम…………………(राज्य का नाम) मानव अधिकार आयोग होगा।
(2) राज्य आयोग ऐसी तारीख से, जो राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे, निम्नलिखित से मिलकर बनेगा, अर्थात् –
(क) एक अध्यक्ष, जो किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति रहा है। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसारअध्यक्ष पद के लिए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ उच्चन्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी योग्य होंगे।
(ख) एक सदस्य, जो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है. या राज्य में जिला न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है, और जिसे जिला न्यायाधीश के रूप में कम से कम सात वर्ष का अनुभव है,
(ग) एक सदस्य, जो ऐसे व्यक्तियों में से नियुक्त किया जाएगा जिन्हें मानव अधिकारों से संबंधित विषयों का ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है,
(3) एक सचिव होगा, जो राज्य आयोग का मुख्य कार्यपालक अधिकारी होगा और वह राज्य आयोग की ऐसी शक्तियों का प्रयोग है और ऐसे कृत्यों का निर्वहन करेगा, जो राज्य आयोग उसे प्रत्यायोजित करे।
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2006 के अनुसार राजस्थान में राजस्थान मानव अधिकार आयोग की सदस्य संख्या एक अध्यक्ष तथा दो पूर्णकालिक सदस्यों को मिलाकर कुल तीन सदस्य है
(4) राज्य आयोग का मुख्यालय ऐसे स्थान पर होगा जो राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे।
(5) कोई राज्य आयोग केवल संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 2 और सूची 3 में प्रगणित प्रविष्टियों में से किसी से संबंधित विषयों की बाबत मानव अधिकारों के अतिक्रमण किए जाने की जांच कर सकेगा:
परन्तु
यदि किसी ऐसे विषय के बारे में आयोग द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन सम्यक रूप से गठित किसी अन्य आयोग द्वारा पहले से ही जांच की जा रही है तो राज्य आयोग उक्त विषय के बारे में जांच नहीं करेगा।
राज्य आयोग उस तारीख से जिसको मानव अधिकारों काअतिक्रमण गठित करने वाले कार्य का किया जाना अभिकथित है एक वर्ष की समाप्ति के पश्चात किसी विषय की जाँच नहीं करेगा (अर्थात एक वर्ष से अधिक पुराने मामले की जाँच नही करेगा)।
(6) दो या दो से अधिक राज्य सरकार, राज्य आयोग के अध्यक्ष या सदस्य की सहमति से, यथास्थिति, ऐसे अध्यक्ष या सदस्य को साथ-साथ अन्य राज्य आयोग का सदस्य नियुक्त कर सकेगी यदि ऐसा अध्यक्ष या सदस्य ऐसी नियुक्ति के लिए सहमति देता है।
परन्तु उस राज्य की बाबत जिसके लिए, यथास्थिति, सामान्य अध्यक्ष या सदस्य या दोनों नियुक्त किए जाने है इस धारा के अधीन की गई प्रत्येक नियुक्ति धारा 22 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट समिति की सिफारिशें अभिप्राप्त करने के पश्चात् की जाएगी।
राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति (धारा 22) : मानवाधिकार आयोग Human Rights
(1) राज्यपाल अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करेगाः
परन्तु इस उपधारा के अधीन प्रत्येक नियुक्ति ऐसी समिति की सिफारिशें प्राप्त होने के पश्चात् की जाएगी, जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगी, अर्थात् :
(क) मुख्य मंत्री – अध्यक्ष
(ख) विधान सभा का अध्यक्ष – सदस्य
(ग) उस राज्य का गृहमंत्री – सदस्य
(घ) विधानसभा में विपक्ष का नेता – सदस्य :
( जहां किसी राज्य में विधान परिषद है, वहा उस परिषद् का सभापति और उस परिषद में विपक्ष का नेता भी समिति के सदस्य होंगे )
शपथ- राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को शपथ राज्य उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश दिलाता है
आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों का पद त्याग या पदच्युति
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 अध्याय 5 की धारा 23 में राज्य आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को पदच्युत करने से संबंधित उपबंध किए गए हैं-
विशेष– राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है परंतु उन्हें पद से हटाने की शक्ति केवल राष्ट्रपति के पास होती है।
(1) अध्यक्ष या कोई सदस्य राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।
(1क) उपधारा (2) के अनुसार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर पदच्युतकियाजा सकता है-
सिद्ध कदाचार/दुर्व्यवहार।
अक्षमता के आधार पर।
उक्त प्रकार से पदच्युत किये जाने से पूर्व राष्ट्रपति द्वारा-
उच्चतम न्यायालय को निर्देशित किया जाएगा।
विहित प्रक्रिया द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा मामले की जांच की जाएगी।
जांच की रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।
जांच रिपोर्ट में अध्यक्ष या सदस्य के विरुद्ध सिद्ध कदाचार/दुर्व्यवहार अथवा अक्षमता सिद्ध होने पर राष्ट्रपति उन्हें पदच्युत कर सकता है।
(2) उपधारा (1क) के अनुसार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर पदच्युतकियाजा सकता है-
दिवालिया घोषित कर दिया गया हो।
किसी लाभ के पद पर हो विकृत चित्त हो या सक्षम न्यायालय द्वारा इस प्रकार घोषित कर दिया गया हो।
मानसिक और शारीरिक दुर्बलता के कारण पद पर बने रहने के अयोग्य हो गया हो।
किसी ऐसे अपराध के लिए जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक अपराध के लिए जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक पतन वाला हो दोष सिद्ध हो गया हो और उसे कारागार की सजा दे दी गयी हो।
राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि (धारा 24) : मानवाधिकार आयोग Human Rights
(1) अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया कोई व्यक्ति, अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक या सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक, इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करेगा। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले होतक का होगा तथा वह 5 वर्ष के लिए पुनः नियुक्ति का पात्र भी होगा
(2) सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया कोई व्यक्ति, अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक अपना पद धारण करेगा तथा पांच वर्ष की और अवधि के लिए पुनर्नियुक्ति का पात्र होगा। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले होतक का होगा।
परन्तु यह कि कोई भी सदस्य सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त (पूर्ण) करने के बाद पद को धारण नहीं करेगा।
(3) अध्यक्ष या कोई सदस्य, अपने पद पर न रह जाने पर, किसी राज्य की सरकार के अधीन या भारत सरकार के अधीन किसी भी और नियोजन का पात्र नहीं होगा।
कतिपय परिस्थितियों में सदस्य का अध्यक्ष के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन
अध्यक्ष की मृत्यु, पदत्याग या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्ति की दशा में राज्यपाल, अधिसूचना द्वारा, सदस्यों में से किसी एक सदस्य को अध्यक्ष के रूप में तब तक कार्य करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा जब तक ऐसी रिक्ति को भरने के लिए नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो जाती।
जब अध्यक्ष छुट्टी पर अनुपस्थिति के कारण या अन्य कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तब सदस्यों में से एक ऐसा सदस्य, जिसे राज्यपाल, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त प्राधिकृत करे, उस तारीख तक अध्यक्ष के कृत्यों का निर्वहन करेगा जिस तारीख को अध्यक्ष अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है।
राज्य आयोगों के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के निबन्धन और शर्ते (धारा 26) : मानवाधिकार आयोग Human Rights
अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शतें ऐसी होंगी, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाएं:
परन्तु अध्यक्ष किसी सदस्य के वेतन और भत्तों में तथा सेवा के अन्य निबंधनों और शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
राज्य आयोग के अधिकारी और अन्य कर्मचारिवृन्द (धारा 27)
(1) राज्य सरकार, आयोग को-
(क) राज्य सरकार के सचिव की पंक्ति से अनिम्न पक्ति का एक अधिकारी, जो राज्य आयोग का सचिव होगा।
(ख) ऐसे अधिकारी के अधीन, जो पुलिस महानिरीक्षक की पक्ति से नीचे का न हो, ऐसे पुलिस और अन्वेषण कर्मचारिवृन्द तथा ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारिवृन्द, जो राज्य आयोग के कृत्यों का दक्षतापूर्ण पालन करने के लिए आवश्यक हो, उपलब्ध कराएगी।
(2) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए जाए. राज्य आयोग, ऐसे अन्य प्रशासनिक, तकनीकी और वैज्ञानिक कर्मचारिवृन्द नियुक्त कर सकेगा, जो यह आवश्यक समझे।
(3) उपधारा (2) के अधीन नियुक्त अधिकारियों और अन्य कर्मचारिवृन्द के वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तें ऐसी होगी, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए।
राज्य आयोग की वार्षिक और विशेष रिपोर्ट (धारा 28) : मानवाधिकार आयोग Human Rights
(1) राज्य आयोग, राज्य सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा
(2) राज्य सरकार, राज्य आयोग की वार्षिक और विशेष रिपोर्ट को
राज्य आयोग की सिफारिशों पर की गई या की जाने के लिए
प्रस्तावित कार्रवाई के ज्ञापन सहित और सिफारिशों की अस्वीकृति के कारणों सहित,
यदि कोई हो, जहां राज्य विधान-मंडल दो सदनों से मिलकर बनता है
वहां प्रत्येक सदन के समक्ष,
या जहां ऐसा विधान-मंडल एक सदन से मिलकर बनता है वहां उस सदन के समक्ष, रखवाएगी।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से संबंधित कतिपय उपबंधों का राज्य आयोगों को लागू होना (धारा 29)
धारा 9, धारा 10, धारा 12, धारा 13, धारा 14, धारा 15, धारा 16, धारा 17 और धारा 18 के उपबंध राज्य आयोग को लागू होंगे और वे निम्नलिखित उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे, अर्थात्
(क) “आयोग’ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे “राज्य आयोग के प्रति निर्देश हैं,
(ख) धारा 10 की उपधारा (3) में, “महासचिव” शब्द के स्थान पर “सचिव’ शब्द रखा जाएगा.
(ग) धारा 12 के खंड (च) का लोप किया जाएगा,
(घ) धारा 17 के खंड (6) में से “केन्द्रीय सरकार या किसी” शब्दों का लोप किया जाएगा।
पूछे जाने वाले प्रश्न : मानवाधिकार आयोग Human Rights
राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग:
राजस्थान में मानव अधिकारों के प्रभावी संरक्षण के लिए किए जा रहे कार्यों का बोध राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग के क्रिया-कलापों से होता है।
इसका गठन मार्च 1999 में हुआ था मार्च 2000 में आयोग क्रियाशील हुआ।
मानव अधिकार क्या हैं?
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 2(घ) के अनुसार ‘‘मानवअधिकारों’’ से तात्पर्य संविधान द्वारा प्रत्याभूत अथवा अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं में अन्तर्निहित उन अधिकारों से है जो जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा से आशय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 16 दिसम्बर,1966 को अभिस्वीकृत, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्रसंविदा से है।
राज्य आयोग के कार्य एवं उसमें निहित शक्तियां : राज्य मानव अधिकार आयोग
आयोग निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का निष्पादन करेगा, अर्थात्-
(क) स्वप्रेरणा से या किसी पीड़ित या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा उसे प्रस्तुत याचिका पर
(1) मानव अधिकारों के उल्लंघन या उसके अपशमन की, या
(2) किसी लोक सेवक द्वारा उसउल्लंघन को रोकने में उपेक्षा की शिकायत की जांच करेगा,
(ख) किसी न्यायालय के समक्ष लम्बित मानव अधिकारों के उल्लंघन के किसी अभिकथन वाली किसी कार्यवाही में उस न्यायालय की अनुमति से हस्तक्षेप करेगा,
(ग) राज्य सरकार को सूचना देने के अध्यधीन,
राज्य सरकार के नियन्त्रणाधीन किसी जेल या किसी अन्य संस्था का,
जहॉं पर उपचार,सुधार या संरक्षण के प्रयोजनार्थ व्यक्तियों को निरूद्ध किया जाता है या
रखा जाता है निवास करने वालों की जीवन दशाओं का अध्ययन करने एवं
उस पर सिफारिशें करने के लिए निरीक्षण करेगा,
(घ) मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी कानून द्वारा या उसके अधीन प्रावहित सुरक्षाओं का पुनर्वालोकन करेगा तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिशें करेगा,
(ड) उन कारकों का, जिसमें उग्रवाद के कृत्य भी हैं,
मानव अधिकारों के उपयोग में बाधा डालते हैं,
पुनरावलोकन करेगा एवं उपयुक्त उपचारात्मक उपायों की सिफारिश करेगा,
(च) मानव अधिकारों ने क्षेत्र में अनुसंधान एवं उसे प्रोन्नत करेगा
(छ) समाज के विभिन्न खण्डों में मानव अधिकार साक्षरता का प्रसार करेगा तथा प्रकाशकों,
साधनों (मीडिया) सेमीनारों एवं अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से
इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध सुरक्षाओं के प्रति जागरूकता को विकसित करेगा,
(ज) मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठनों एव संस्थाओं के प्रयत्नों को प्रोत्साहन देगा,
(झ) ऐसे अन्य कृत्य करेगा जिन्हें वह मानव अधिकारों के संवर्धन के लिए आवश्यक समझेगा।
आयोग में निहित जांच से संबंधित शक्तियां : मानवाधिकार आयोग Human Rights
अधिनियम के अंतर्गत किसी शिकायत की जांच करते समय आयोग को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत निम्नलिखित मामलों में, सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी:-
(क) गवाहों को सम्मन जारी करके बुलाने तथा उन्हें हाजिरी हेतु बाध्य करने एवं उन्हें शपथ दिलाकर परखने के लिए,
(ख) किसी दस्तावेज का पता लगाने और उसको प्रस्तुत करने के लिए,
(ग) शपथ पत्र पर गवाही देने के लिए,
(घ) किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से किसी सरकारी अभिलेख अथवा उसकी प्रतिलिपि की मांग करने के लिए,
(ड) गवाहियों तथा दस्तावेजों की जॉंच हेतु कमीशन जारी करने के लिए,
(च) निर्धारित किए गए किसी अन्य मामले के लिए।
क्या आयोग के पास अपना अन्वेषण दल है?
जी हॉं। मानव अधिकारों के हनन से संबंधित शिकायतों की जांच करने के लिए आयोग के पास अपना अन्वेषण दल है।
अधिनियम के अंतर्गत आयोग को इस बात की भी छू प्राप्त है कि वह राज्य सरकार के किसी अधिकारी अथवा अभिकरण की सेवाओं का उपयोग कर सके।
क्या आयोग स्वायत्तशासी निकाय है?
जी हॉं। आयोग की स्वायतत्ता इसके सदस्यों की नियुक्त के ढंग,
उनके कार्यकाल की स्थिरता और सवैधानिक गारंटी,
उनको दी गर्इ पदवी और आयोग के लिए,
जिसमें अन्वेषण अभिकरण भी शामिल है,
स्टाफ की नियुक्ति का तरीका,
कर्मचारियों का दायित्व और उनके कार्य-निष्पादन से स्वयं स्पष्ट होता हो जाती है।
आयोग की वित्तीय स्वायत्तता का वर्णन अधिनियम की धारा 33 में किया गया है।
अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित एक समिति जिसमें विधान सभा के अध्यक्ष,
गृहमंत्री एवं विधान सभा के विपक्ष के नेता है सदस्य हैं कि अनुशंसा पर राज्यपाल द्वारा की जाती है।
आयोग द्वारा शिकायतों की जाँच किस प्रकार से की जाती है?
मानव अधिकारों के हनन से संबंधित शिकायतों की जाँच करते समय
आयोग राज्य सरकार अथवा उनके अधीन किसी अन्य प्राधिकरण
अथवा संगठन से निर्दिष्टतारीख तक आयोग को सूचना या रिपोर्ट प्राप्त नहीं होती तो
वह अपनी ओर से स्वयं शिकायत की जाँच कर सकता है।
दूसरी और ऐसी सूचना या रिपोर्ट प्राप्त होने पर आयोग यदि संतुष्ट हो जाता है कि
अब आगे कोर्इ जाँच करने की जरूरत नहीं है
अथवा संबंधित राज्य सरकार या प्राधिकारी द्वारा अपेक्षित जाँच शुरू कर दी गई है तो वह,
आम तौर से, ऐसी शिकायत पर आगे जाँच नहीं करेगा तथा तदनुसार शिकायतकर्ता को तत्संबंधी कार्रवाई की सूचना दे देगा।
जाँच के बाद आयोग क्या कार्रवाई कर सकता है?
जाँच पूरी होने के पश्चात् आयोग निम्नलिखित में से कोई भी कार्रवाई कर सकता है:
(1) जाँच से आयोग को जहाँ यह पता चलता है कि लोक सेवक द्वारा मानव अधिकारों का हनन किया गया है अथवा उसने ऐसे हनन को रोकने की उपेक्षा की है तो ऐसी स्थिति मे आयोग राज्य अथवा प्राधिकारी को संबंधित व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के खिलाफ अभियोजन अथवा ऐसी अन्य कार्रवाई शुरू करने की, जो उचित हो, अनुशंसा कर सकता है,
(2) आयोग उच्चतम न्यायालय या संबंधित उच्च न्यायालय से ऐसे निर्देशों,
आदेशों अथवा रिपोर्टों के लिए,
जो भी वह न्यायालय आवश्यक समझें, अनुरोध कर सकता है,
(3) आयोग पीड़ित व्यक्ति अथवा उसके परिवार के सदस्यों को,
जिसे भी आयोग आवश्यक समझे,
राज्य सरकार अथवा प्राधिकारी से अंतरिम सहायता तत्काल देने की अनुशंसा कर सकता है।
शिकायत किस भाषा में की जा सकती है?
शिकायतें हिन्दी, अंग्रेजी अथवा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किसी भाषा में भेजी जा सकती है।
शिकायतें अपने आप में पूर्ण होनी चाहिए। शिकायतों के लिए कोई फीस नहीं ली जाती।
आयोग जब भी आवश्यक समझे आरोपों के समर्थन में और अधिक सूचना भेजने तथा शपथ-पत्र दाखिल करने की मांग कर सकता है।
स्वविवेक से तार तथा फैक्स द्वारा भेजी गर्इ शिकायतें भी स्वीकार कर सकता है।
आयोग द्वारा किसी प्रकार की शिकायतों पर कार्रवाई नहीं की जाती?
आमतौर से निम्नलिखित प्रकार की शिकायतों पर आयोग द्वारा कार्रवार्इ नहीं की जाती:
(क) ऐसी घटनाएं जिनकी शिकायतें उनके घटित होने के एक साल बाद की गई हों,
(ख) ऐसे मामले जो न्यायालय में विचाराधीन हों,
(ग) ऐसी शिकायतें भी, जो अस्पष्ट, बिना नाम अथवा छद्म नाम से की गई हों,
(घ) ऐसी शिकायतें जो ओछेपन की परिचाय कहों,
(ड) ऐसी शिकायतें जो सेना से सम्बन्धित मामलों के बारे में हो।
(च) यदि किसी शिकायत पर अन्य सक्षम आयोग द्वारा पूर्व में ही कार्यवाही आरम्भ की जा चुकी हो।
(छ) ऐसी शिकायत जो मूलरूप से किसी अन्य आयोग/अधिकारी/प्राधिकारी को संबोधित की गई हो
आयोग द्वारा प्राधिकारी/राज्य सरकार को भेजी गई रिपोर्ट/अनुशंसाओं के बारे में उनका क्या दायित्व है?
आयोगद्वारा प्राधिकारी/राज्य सरकार को भेजी गई सामान्य प्रकार की शिकायतों पर अपनी टिप्पणी की गई कार्रवाई की सूचना आयोग का एक महीने के भीतर भेजनी होती है
आयोग के अब तक कार्यों का केन्द्र बिन्दु (फोकस) क्या है?
आयोगके कार्य क्षेत्र में सभी प्रकार के वे मानव अधिकार आते हैं जिनमें नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।
आयोग हिरासत में हुई मौतों, बलात्कार, उत्पीड़न, पुलिस और जेलों में ढांचागत सुधार, सुधार गृहों, मानसिक अस्पतालों की हालत सुधारने के मामलों पर विशेष ध्यान दे रहा है।
समाज के सबसे अधिक कमजोर वर्ग के लोगों के अधिकारों का संरक्षण करने की दृष्टि से,
14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को आवश्यक तथा निशुल्क शिक्षा प्रदान करने,
गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करने,
माताओं और बच्चों के कल्याण हेतु प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की,
आयोग ने सिफारिशें की हैं।
समानता और न्याय का हनन कर,
नागरिकों के खिलाफ किए जा रहे अत्याचारों,
विस्थापित हुए लोगों की समस्याएं और भूख के कारण लोगों की मौंतें,
बाल श्रमिकों का शोषण, बाल वेश्यावृत्ति,
महिलाओं के अधिकारों आदि पर आयोग ने अपना ध्यान केन्द्रित किया है।
आयोग द्वारा शुरू किए गए अन्य प्रमुख कार्य:
अपनी व्यापक रूप से बढ़ती हुई जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए आयोग ने शिकायतों की जॉंच के अलावा निम्नलिखित कार्यों को भी अपने हाथ में लिया है
नागरिक स्वतंत्रताएं : मानवाधिकार आयोग Human Rights
(1) पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के अधिकार के दुरूपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश।
(2) जिला मुख्यालय में ‘‘मानव अधिकार प्रकोष्ठ’’ की स्थापना।
(3)हिरासत में हुई मौतों, बलात्कार और मानवीय उत्पीड़न को रोकने के उपाय।
(4) व्यवस्थागत सुधार 1- पुलिस, 2- जेल, 3- नजर बन्दी केन्द्र।
(5) माताओं में अल्परक्तता और बच्चों में जन्मजात मानसिक अपंगता की रोकथाम।
(6) एचआईवी/एड्स से पीड़ित लोगों के मानव अधिकार।
(7) मानसिक अस्पतालों की गुणवत्ता में सुधार
(8) हाथ से मैला ढोने की प्रथा समाप्त करने के लिए प्रयास।
(9) गैर-अधिसूचत और खानाबदोश जनजातियों के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए सिफारिशें करना।
(10) जनस्वास्थ्य प्रदूषण नियंत्रण, खाद्य पदार्थो में मिलावट की रोकथाम, औषधियों में मिलावट व अवधिपार औषधियों पर रोक।
(11) धर्म, जाति, उपजाति आदि के बहिष्कार के मामलात
(12) मानव अधिकारों की शिक्षा का प्रसार और अधिकारों के प्रति जागरूकता में वृद्धि।
क्या आप चाहतें हैं कि आपके परिवाद/शिकायत पर आयोग द्वारा शीघ्र प्रभावी कार्यवाही हो?
यदि हां तो कृपया अपने परिवाद/शिकायत में यथा सम्भव निम्न सूचना अवश्य अंकित करें:-
(क) पीडित व्यक्ति का नाम, पिता/पति का नाम, जाति, निवास का पता-गांव/शहर, डाकघर, पुलिस थाना जिले सहित।
(ख) जिस व्यक्ति/अधिकारी/कार्यालय के विरूद्व शिकायत, उसका पूरा विवरण।
(ग) शिकायत/घटना/उत्पीड़न का पूरा विवरण (घटना, स्थान, तारीख, महीना वर्ष सहित)
(घ) घटना की पुष्टि करने वाले साक्षियों के नाम-पता, यदि ज्ञात हो तो
(ड) घटना की पुष्टि में दस्तावेजी सबूत, यदि कोई हो तो,
(च) यदि किसी अन्य अधिकारी/कार्यालय/मंत्रालय को शिकायत भेजी हो तो उसका नाम एवं उस पर यदि कोई कार्यवाही हुई हो तो उसका विवरण।
(छ) क्या आपने पूर्व में इस आयोग या राष्ट्रीय आयोग में इस विषय में शिकायत की हैं , यदि हां तो उसका विवरण एवं परिणाम।
(ज) क्या इस मामले में किसी फौजदारी/दीवानी/राजस्व अदालत में या विभागीय कोई कार्यवाही हुई या लंबित है , हां तो उसका विवरण। (उद्धृत– पूछे जाने वाले प्रश्न http://rahe.rajasthan.gov.in)
स्रोत:-
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2006, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019
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