ज्वालामुखी Jwalamukhi – Volcano
ज्वालामुखी Jwalamukhi-Volcano क्या है? Jwalamukhi क्यों आता है? कैसे फटता है? प्रकार सुषुप्त ज्वालामुखी ज्वालामुखी का जन्म कैसे होता है?
ज्वालामुखी क्या है?
भूपर्पटी में वह छिद्र जिससे पिघले शैल पदार्थ, शैल के टुकड़े, राख, जलवाष्प तथा अन्य गर्म गैसें मन्द अथवा तीव्र गति से बाहर निकलते हैं, ज्वालामुखी कहलाते हैं। पदार्थों के बाहर निकलने की गति उद्गार की गति पर निर्भर करती है।
ज्वालामुखी उद्गार का मुख्य कारण मैग्मा और गर्म गैसों द्वारा भूपर्पटी पर डाला गया अत्याधिक दबाव है।
वह प्रक्रिया जिसके द्वारा ठोस, पिघले शैल व गैसे पृथ्वी के आंतरिक भागों से मुक्त होकर उसके धरातल पर आती हैं, ज्वालामुखी प्रक्रिया कहते हैं।
ज्वालामुखी पदार्थ यथा- शैल पदार्थ, शैल के टुकड़े, राख, जलवाष्प तथा अन्य गर्म गैसें छिद्र या द्वार के बाहर होकर प्रायः शंकु का आकार ग्रहण करते हैं। शंकु के ऊपर कीप के आकार का एक गड्ढा होता है जिसे क्रेटर कहते हैं।
उद्गार की बारम्बारता के आधार पर ज्वालामुखी तीन प्रकार के हैं-
जागृत या सक्रिय ज्वालामुखी
सुषुप्त या प्रसुप्त ज्वालामुखी
मृत या निष्क्रिय या शांत या विलुप्त ज्वालामुखी।
जागृत या सक्रिय ज्वालामुखी
सक्रिय ज्वालामुखी वे हैं जिनमें वर्तमान में क्या हाल वर्षों में उद्गार हो रहे हैं या हुए है।
प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी-
कोटोपैक्सी इक्वाडोर, ऑजस-डेल-सलादो- अर्जेंटीना व चिली की सीमा पर, माउंट एटना इटली में, माउंट अरेबस रोस द्वीप अंटार्कटिका में इंडोनेशिया में क्राकाटोआ, फिलीपाइन्स में मेयोन, हवाई द्वीप समूह में मोनालोआ भारत में बैरन द्वीप (भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है) तथा भूमध्य सागर (इटली) में स्ट्रॉमबोली (भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ) हैं।
सुषुप्त या प्रसुप्त ज्वालामुखी
प्रसुप्त ज्वालामुखी वे हैं जिनमें मानव इतिहास काल में कम से कम एक बार उद्गार हुआ है और जो वर्तमान में सक्रिय नहीं है।
जापान का फ्यूजियामा, अंडमान निकोबार द्वीप समूह का नारकोंडम द्वीप, इटली का विसुवियस तथा दक्षिण अमेरिका का कोटोपेक्सी प्रमुख प्रसुप्त ज्वालामुखी हैं।
मृत या निष्क्रिय या शांत या विलुप्त ज्वालामुखी:
विलुप्त ज्वालामुखी वे हैं जिनमें लंबे मानव इतिहास काल में उद्गार नहीं हुए हैं।
दक्षिण अमेरिका का एंकाकागुआ, म्यमार का माउंट पोपा, तंजानिया का किलिमंजारो, ईरान का देव मंद और कोह सुल्तान तथा इक्वेडोर का चिम्बारोजा।
ज्वालामुखी के उद्गार और धरातल पर विकसित आकृतियों के आधार पर ज्वालामुखी को निम्नलिखित प्रकारों में बांटा जा सकता है
शील्ड ज्वालामुखी (Shield volcanoes)
इसका लावा बहुत तरल होता है। ज्वालामुखियों से लावा फव्वारे के रूप में बाहर आता है और निकास पर एक शंकु (Cone) बनाता है, जो सिंडर शंकु (Cindar Cone) के रूप में विकसित होता है।
मिश्रित ज्वालामुखी
यह अत्यंत गाढ़ा लावा उगलते हैं। प्रायः ज्वालामुखी भीषण विस्फोट होते हैं।
ज्वालामुखी कुंड
यह पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विस्फोटक Volcano विस्फोट से यह स्वयं ही नीचे धंस जाते हैं और कुंड का निर्माण करते हैं अतः ज्वालामुखी कुंड कहलाते हैं।
बेसाल्ट प्रभाव क्षेत्र
यह वाॅल्केनो अत्यंत तरल लावा उगलते हैं। भारत का दक्कन ट्रैप वृहत बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र है।
मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी
इनका उद्गार महासागरों में होता है। यह श्रृंखला सत्तर हजार किलोमीटर से भी अधिक लंबी है।
विश्व में लगभग 500 वाॅल्केनो हैं।
ये तीन निश्चित पेटियों – प्रशांत महासागर को घेरनेवाली पेटी, मध्यवर्ती पर्वतीय पेटी तथा पूर्वी अफ्रीकी दरार घाटी में स्थित हैं।
विश्व में सर्वाधिक ज्वालामुखी इंडोनेशिया में है।
विश्व में अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी प्रशांत महासागरीय पेटी में स्थित है। इसे प्रशांत अग्नि वलय (फायर ऑफ रिंग पेसिफिक ओसियन) कहते हैं।
सर्वाधिक विनाशकारी ज्वालामुखी पीलियन प्रकार का वाॅल्केनो होता है। जैसे क्राकाटाओ ज्वालामुखी पीलियन प्रकार का ज्वालामुखी है जो जावा तथा सुमात्रा के मध्य स्थित है।
भूगर्भ में मेग्मा के जमाव से बनने वाली स्थल आकृतिया
लैकोलिथ (Lacoliths) या उत्तल–
मेग्मा के गुंबदाकार जमाव को लेकोलिथ कहते हैं।
कर्नाटक के पठार में ग्रेनाइट चट्टानों की बनी ये चट्टाने लैकोलिथ व बैथोलिथ के अच्छे उदाहरण हैं।
लैपोलिथ (Lapolith) या अवतल–
मैग्मा के प्याली/तश्तरीनुमा जमाव को लैपोलिथ कहते हैं।
फैकोलिथ (phacolith) या लहरदार–
मैग्मा के लहरदार जमाव को फैकोलिथ कहते हैं।
बैथोलिथ (Batholiths)-
यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है।
ये ग्रेनाइट के बने पिंड हैं।
इन्हें बैथोलिथ कहा जाता है जो मैग्मा भंडारों के जमे हुए भाग हैं।
मैग्मा का वृहद लेकिन अनियमित जमाव बेथोलिथ कहलाता है।
डाइक-
जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर यह इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की भाँति संरचना बनाता है।
यही श्चित संरचना डाइक कहलाती है।
मैग्मा के स्तंभनुमा जमाव को डाइक कहते हैं।
पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र तथा ज्वालामुखी उद्गार से बने दक्कन ट्रेप के विकास में डाइक उद्गार की वाहक समझी जाती हैं।
सिल (sills)-
मैग्मा का क्षेतिजीय परतनुमा मोटा जमाव सिल कहलाता है।
स्टॉक-
यह आंतरिक प्रकार है।
शीट-
सिल से पतला जमाव शीट कहलाता है।
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