सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय, निराला का साहित्यिक परिचय, निराला की रचनाएं, पुस्तकें, भाषा शैली

पूरा नाम – सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

अन्य नाम- निराला

जन्म- 21 फ़रवरी, 1896. (NCERT Book 1899 )

(11 जनवरी, 1921 ई. को पं. महावीर प्रसाद को लिखे अपने पत्र में निराला जी ने अपनी उम्र 22 वर्ष बताई है। रामनरेश त्रिपाठी ने कविता कौमुदी के लिए सन् 1926 ई. के अन्त में जन्म सम्बंधी विवरण माँगा तो निराला जी ने माघ शुक्ल 11 सम्वत 1953 (1896) अपनी जन्म तिथि लिखकर भेजी। यह विवरण निराला जी ने स्वयं लिखकर दिया था)

जन्म भूमि – मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)

मृत्यु -15 अक्टूबर, सन् 1961

मृत्यु स्थान- प्रयाग, भारत

अभिभावक- पं. रामसहाय

पत्नी- मनोहरा देवी

कर्म-क्षेत्र – साहित्यकार

प्रसिद्धि- कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार

काल- आधुनिक काल (छायवादी युग)

आन्दोलन-प्रगतिवाद

सूर्यकान्त त्रिपाठी का साहित्यिक परिचय

निराला की रचनाएं

कविता संग्रह

अनामिका-1923, द्वितीय भाग,1938

परिमल 1930,

गीतिका 1936,

सरोज स्मृति 1935,

राम की शक्ति पुजा,1936

द्वितीय अनामिका1938 (अनामिका के दूसरे भाग में सरोज सम़ृति और राम की शक्ति पूजा जैसे प्रसिद्ध कविताओं का संकलन है।)

तुलसीदास 1938,

कुकुरमुत्ता 1942,

अणिमा 1943,

बेला 1946,

नये पत्ते 1946,

अर्चना 1950,

आराधना 1953,

गीत कुंज 1954, द्वितीय भाग,1959 ई.

सांध्यकाकली,

राग-विराग
– निराला की सर्वपर्थम कविता- जूही की कली 1916 ई.
नोट:- रामविलास शर्मा के मतानुसार इनकी सर्वप्रथम कविता ‘भारत माता की वंदना’ (1920 ई.) मानी जाती है|
– ‘अनामिका’ एवं ‘परिमल’ कविता संग्रह में इनकी प्रकृति प्रेम, सौंदर्य चित्रण एवं रहस्यवाद संबंधी कविताओं को संकलित किया गया है| ‘परिमल’ काव्य संग्रह में इनकी निम्न कविताओं को संग्रहित किया गया है-

जूही की कली

संध्या-सुंदरी

बादल-राग

विधवा

भिक्षुक

दिन

बहू

आधिवासे

पंचवटी प्रसंग

काव्य संबंधी विशेष तथ्य

नोट-‘परिमल’ मैं छायावाद के साथ-साथ प्रगतिवाद के तत्व भी विद्यमान है|

‘परिमल’ की भूमिका में वे लिखते हैं- “मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छन्दों के शासन से अलग हो जाना है।

जिस तरह मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह दूसरों के प्रतिकूल आचरण नहीं करता, उसके तमाम कार्य औरों को प्रसन्न करने के लिए होते हैं फिर भी स्वतंत्र। इसी तरह कविता का भी हाल है।”

‘जूही की कली‘ कविता में प्रकृति के माध्यम से माननीय भावनाओं की अभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावोत्पादक रूप में हुई है|

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय

काव्य संबंधी विशेष तथ्य

‘गीतिका‘ रचना में कवि ने अपनी भावनाओं को संगीत के स्वरों में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है|

तुलसीदास– यह निराला जी का श्रेष्ठ प्रबंधात्मक काव्य है जिसमें कवि ने गोस्वामी तुलसीदास के माध्यम से भारतीय परंपरा के गौरवशाली मूल्यों की प्रतिष्ठा का प्रयास किया है इसमें तुलसीदास द्वारा अपनी पत्नी रत्नावली से मिलने के लिए उनके पीहर चले जाने पर पत्नी द्वारा फटकार लगाए जाने पर गृहस्थ जीवन को त्याग कर राम उपासना में लीन होने की घटना का वर्णन किया गया है|

इसी रचना के लेखन के कारण यह माना जाता है कि ये तुलसीदास को अपना सर्व प्रिय कवि मानते थे|

सरोज स्मृति:– यह एक शोक गीत है जिसे कवि ने अपनी 18 वर्षीय पुत्री सरोज की करुण स्मृति में लिखा था इसे ‘हिंदी साहित्य संसार का सर्वाधिक प्रसिद्ध शोकगीत कहा जाता है’ इस में वात्सल्य एवं करुण दोनों रसों का अद्भुत सामजस्य दृष्टिगोचर होता है|

राम की शक्ति पूजा:– यह एक लघु प्रबंधात्मक काव्य है जिसमें निराला का ओज अपनी पूर्ण शक्ति के साथ प्रस्फुटित हुआ है इस रचना पर ‘कृतिवास रामायण’ का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है यह शक्ति काव्य जिजीविषा एवं राष्ट्रीय चेतना की कविता है|

कुकुरमुत्ता- इसमें कवि ने पूंजीवादियों पर तीखा व्यंग्य किया है इसमें कवि ने संस्कृत शब्दावली का प्रयोग नहीं कर के ‘उर्दू’ व ‘अंग्रेजी’ के शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया है इसमें कवि ने सर्वहारा वर्ग की प्रशंसा और धनवानों की घोर निंदा की है|

नये पत्ते:- इसमें कवि की सात व्यंग्य प्रधान कविताओं का संग्रह किया गया है|

उपन्यास

अप्सरा, 1931

अलका, 1931

प्रभावती,1936,

निरुपमा, 1936

कुल्ली भाट,

बिल्लेसुर बकरिहा,1942

चोटी की पकड़,1946

काले कारनामे,1950

चमेली

अश्रृंखल

कहानी संग्रह

लिली,

चतुरी चमार,

सुकुल की बीवी-1941,

सखी,

देवी।

निबंध

रवीन्द्र कविता कानन, (आलोचना)

प्रबंध पद्म,

प्रबंध प्रतिमा,

चाबुक,

चयन,

संघर्ष (ये सभी इनके निबंध संग्रह है)

पुराण कथा- महाभारत

अनुवाद

आनंद मठ,

विष वृक्ष,

कृष्णकांत का वसीयतनामा,

कपालकुंडला,

दुर्गेश नन्दिनी,

राज सिंह,

राजरानी,

देवी चौधरानी,

युगलांगुल्य,

चन्द्रशेखर,

रजनी,

श्री रामकृष्ण वचनामृत,

भारत में विवेकानंद तथा राजयोग का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद

कार्यक्षेत्र : सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जीवन-परिचय

निराला जी ने 1918 से 1922 तक महिषादल राज्य की सेवा की। उसके बाद संपादन स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया।

इन्होंने 1922 से 23 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय’ का संपादन किया।

1923 के अगस्त से ‘मतवाला’ के संपादक मंडल में काम किया।

इनके इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय और वहाँ से निकलने वाली मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे।

इन्होंने 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य भी किया।

ये जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।

इन्होंने कहानियाँ उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है।

विशेष तथ्य

हिंदी साहित्य जगत में निराला के लिए ‘महाप्राण’ शब्द का प्रयोग भी किया जाता है गंगा प्रसाद पांडेय ने ‘महाप्राण निराला’ आलोचना पुस्तक लिखकर यह नाम प्रदान किया था|

यह हिंदी कविता को छंदों की परिधि से मुक्त करने वाले कवि माने जाते हैं ,अर्थात इनको ‘मुक्तक छंद’ का प्रवर्तक भी कहा जाता है|
नोट:- मुक्तक छंद को ‘केंचुआ’ या ‘रबर’ छंद भी कहते हैं|

इनको छायावाद, प्रगतिवाद एवं प्रयोगवाद इन तीनों आंदोलनों का पथ प्रदर्शक भी कहा जाता है|

ये छायावाद के ‘रुद्र (महेश)’ माने जाते है|

यह विवेकानंद जी को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे|

द्विवेदी कालीन कवियों में इनको सर्वाधिक विरोध का सामना करना पड़ा था|

रविवार को जन्म लेने के कारण सर्वप्रथम इन का मूल नाम ‘सूर्य कुमार‘ रखा गया था जिसे सन 1917-18 ईस्वी में बदलकर इन्होंने ‘सूर्यकांत’ कर दिया था|

प्रसिद्ध ऐतिहासिक लेख ‘भावों की भिडंत’ यह लेख बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ द्वारा संपादित ‘प्रभा’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था जिसमें यह सिद्ध किया गया था कि निराला की बहुत सी कविताएं रवींद्रनाथ ठाकुर की कविताओं की नकल है इस लेख में तात्कालिक साहित्य जगत में हलचल मचा दी थी|

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