सूरदास का जीवन परिचय

सूरदास का जीवन परिचय

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जन्मकाल- 1478 ई. (1535 वि.)

जन्मस्थान- सीही ग्राम ( नगेन्द्र के अनुसार) आधुनिक शौधों के अनुसार इनका जन्म स्थान मथुरा के निकट ‘रुनकता’ नामक ग्राम माना गया है।

मृत्युकाल- 1583 ई. (1640 वि.) पारसोली गाँव में

सूरदास के जन्म स्थान के संबंध में विद्वानों में मतभेद है आचार्य शुक्ल, डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी, बाबू श्यामसुंदर दास के अनुसार इनका जन्म और रुनकता का गऊघाट है, जबकि डॉ नगेंद्र, गणपति चंद्रगुप्त तथा वार्ता साहित्य के अनुसार सूरदास जी का जन्म स्थान सीही है।

सूरदास जी के बारे में जानकारी का प्रमुख स्रोत चौरासी वैष्णवन की वार्ता है।

गुरु का नाम- वल्लभाचार्य

गुरु से भेंट- 1509-10 ई. में (पारसोली नामक गाँव में)

काव्य भाषा- ब्रज

सूरदास का साहित्यिक परिचय

सूरदास की रचनाएं

डॉक्टर दीन दयालु गुप्त के अनुसार सूरदास जी की 25 रचनाएं हैं।

नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के 16 ग्रंथों का उल्लेख है।

सूरसागर

यह सूरदास की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है।

इसका मुख्य उपजीव्य (आधार स्रोत) श्रीमद् भागवतपुराण के दशम स्कंद का 46 वां व 47 वां अध्याय माना जाता है।

भागवत पुराण की तरह इस का विभाजन भी ‘बारह स्कंधो’ में किया गया है।

इसके दसवें स्कंद में सर्वाधिक पद रचे गए है।

सूरसागर के 400 पदों का संपादन आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘भ्रमरगीत सार’ नाम से किया है

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है-” सूरसागर किसी चली आती हुई गीती काव्य परंपरा का, चाहे वह मौखिक ही रही हो, पूर्ण विकास सा प्रतीत होता है।”

नगेन्द्र ने इस रचना को ‘अन्योक्ति’ एवं ‘उपालम्भ काव्य’ कहकर पुकारा है।

साहित्यलहरी

यह नायिका भेद और अलंकार से संबंधित 118 दृष्ट कूट पदों (लक्ष्मण के साथ उदाहरण देना) का ग्रंथ है।

यह इनका रीतिपरक यह माना जाता है|

इसमें दृष्टकूट पदों में राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है।

अलंकार निरुपण दृष्टि से भी इस ग्रंथ का अत्यधिक महत्त्व माना जाता है।

साहित्य लहरी की रचना सूर्य नंद दास को नायिका भेद की शिक्षा देने के लिए की थी यह ग्रंथ अनुपलब्ध है।

सूरसारावली

यह इनकी विवादित या अप्रमाणिक रचना मानी जाती है।

इसमें ज्ञान वैराग्य में भक्ति से संबंधित वर्णन मिलता है 1107 संतों की इस रचना में संसार को होली का रूपक माना गया है।

विशेष तथ्य

सूरदास जी को ‘ खंजननयन, भावाधिपति, वात्सल्य रस सम्राट, जीवनोत्सव का कवि, पुष्टिमार्ग का जहाज’ आदि नामों से भी जाना जाता है।

आचार्य रामचंद्र शुकल ने इनको-‘वात्सल्य रस सम्राट’ व ‘जीवनोत्सव का कवि’ कहा है।

गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने इनकी मृत्यु पर ‘ पुष्टिमार्ग का जहाज’ कहकर पुकारा था।

इनकी मृत्यु पर उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था- ” पुष्टिमार्ग को जहाज जात है सो जाको कछु लेना होय सो लेउ।”

हिंदी साहित्य जगत में ‘भ्रमरगीत’ परंपरा का समावेश सूरदास द्वारा ही किया हुआ माना जाता है।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह चंदबरदाई के वंशज कवि माने गए हैं।

आचार्य शुक्ल ने कहा है- “सूरदास की भक्ति पद्धति का मेरुदंड पुष्टीमार्ग ही है।”

सूर साहित्य गीतिकाव्य है।

सूरदास जी ने भक्ति पद्धति के 11 रूपों का वर्णन किया है।

हिंदी साहित्य जगत में सूरदास जी सूर्य के समान, तुलसीदास जी चंद्रमा के समान, केशव दास जी तारे के समान तथा अन्य सभी कवि जुगनुओं (खद्योत) के समान यहां-वहां प्रकाश फैलाने वाले माने जाते हैं| यथा:-
“सूर सूर तुलसी ससि, उडूगन केशवदास|
और कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करत प्रकाश।”

सूर के भाव चित्रण में वात्सल्य भाव को श्रेष्ठ कहा जाता है।

विद्वानों के कथन-

“सूर्य अपनी आंखोंसे वात्सल्य का कोना कोना छान आए हैं।”- आचार्य शुक्ल

“जब दूर अपने विषय का वर्णन करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे दौड़ा करता है, अपमाओं की बाढ़ आ जाती है, रूपकों की वर्षा होने लगती है, संगीत के प्रवाह में कवि स्वयं बह जाता है।” आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

“वात्सल्य और श्रंगार के क्षेत्र का जितना अधिक उद्घाटन सूर ने बंद आंखों से किया है उतना किसी कवि ने नहीं किया।” आचार्य शुक्ल

‘महाकवि सूरदास’ नामक आलोचना – आ. नंददुलारे वाजपेयी

‘सूर साहित्य’ – आ. हजारीप्रसाद द्विवेदी

‘त्रिवेणी’ (जायसी तुलसी सूर पर आलोचनात्मक ग्रंथ) – आचार्य रामचंद्र शुक्ल

आदिकाल के प्रमुख साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक-काल के साहित्यकार