रघुवीर सहाय जीवन परिचय

रघुवीर सहाय जीवन परिचय

रघुवीर सहाय जीवन परिचय – साहित्यिक परिचय – काव्य संवेदना – भाषा शैली – काव्य भाषा – काव्य विशेषता – रचनाएं – काव्यधारा – पुरस्कार एवं सम्मान

  • जन्म -9 दिसंबर, 1929
  • जन्म भूमि- लखनऊ, उत्तर प्रदेश
  • मृत्यु -30 दिसंबर, 1990
  • मृत्यु स्थान -दिल्ली
  • पत्नी- विमलेश्वरी सहाय
  • कर्म-क्षेत्र -लेखक, कवि, पत्रकार, सम्पादक, अनुवादक
  • भाषा- हिन्दी, अंग्रेज़ी
  • विद्यालय- लखनऊ विश्वविद्यालय
  • शिक्षा -एम. ए. (अंग्रेज़ी साहित्य)
  • काल- आधुनिक काल
  • युग- प्रयोगवाद युग (दुसरा सप्तक-1951 के कवि)

साहित्यिक परिचय : रघुवीर सहाय जीवन परिचय

रचनाएं

कविता संग्रह

दूसरा सप्तक

सीढ़ियों पर धूप में (प्रथम)

आत्महत्या के विरुद्ध, 1967

लोग भूल गये हैं, 1982

मेरा प्रतिनिधि

हँसो हँसो जल्दी हँसो (आपातकाल सें संबंधित कविताओं का संग्रह)

कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ, 1989

एक समय था

कहानी संग्रह

रास्ता इधर से है

जो आदमी हम बना रहे है

नाटक

बरनन वन (शेक्सपियर द्वारा रचित’मैकबेथ’ नाटक का अनुवाद)

निबंध संग्रह

दिल्ली मेरा परदेस

लिखने का कारण

ऊबे हुए सुखी

वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे

भँवर लहरें और तरंग

पत्र-पत्रिकाओं में लेखन और संपादन

रघुवीर सहाय ‘नवभारत टाइम्स’, दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। ‘दिनमान’ पत्रिका के 1969 से 1982 तक प्रधान संपादक रहे।

उन्होंने 1982 से 1990 तक स्वतंत्र लेखन किया।

पुरस्कार एवं सम्मान : रघुवीर सहाय जीवन परिचय

साहित्य अकादमी पुरस्कार,1984 (लोग भूल गए हैं)

प्रसिद्ध पंक्तियां : रघुवीर सहाय जीवन परिचय

“तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्‍थर ये चट्टानें
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती का हम जानें
सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्‍यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने”

“राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है.”

“पतझर के बिखरे पत्तों पर चल आया मधुमास,
बहुत दूर से आया साजन दौड़ा-दौड़ा
थकी हुई छोटी-छोटी साँसों की कम्पित
पास चली आती हैं ध्वनियाँ
आती उड़कर गन्ध बोझ से थकती हुई सुवास”

“निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे”

आदिकाल के साहित्यकार

भक्तिकाल के प्रमुख साहित्यकार

आधुनिक काल के साहित्यकार