मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

मानव के अधिकार (मानवाधिकार) का अर्थ

मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास, उत्पत्ति, वर्गीकरण, विशेषताएं, विकास, तात्पर्य, मानवाधिकार क्या हैं? तथा इसके अतिरिक्त मानवाधिकारों की अन्य पूरी जानकारी

मानवाधिकार का सामान्य अर्थ मानव के अधिकार हैं अर्थात मानव के भी अधिकार जो नैसर्गिक हैं। मानवाधिकार से तात्पर्य है कि मानव के सभी अधिकार जो मानव होने के नाते उसे मिलने ही चाहिए मानवाधिकार कहलाते हैं। ये अधिकार मानव को जीवन जीने का अधिकार देते हैं। अपने जीवन को सुख में बनाने का अधिकार भी इन्हीं मानवाधिकारों से प्राप्त होता है। यह अधिकार प्रत्येक मानव के लिए होते हैं, किसी विशेष स्त्री या पुरुष अथवा किसी धर्म, संप्रदाय, जाति, वंश वर्ग, क्षेत्र, भाषा आदि के लिए नहीं। मानवाधिकार तो विश्वव्यापी है और यह सभी राष्ट्रों के सभी लोगों के लिए है। इन अधिकारों को प्राकृतिक अधिकार और जन्म अधिकार भी कहा जाता है।

पाश्चात्य विद्वान आर जे विंसेंट ने मानवाधिकारों को परिभाषित करते हुए लिखा है-

“मानवाधिकार भी अधिकार है जो प्रत्येक व्यक्ति को मानव होने के नाते प्राप्त होते हैं इन अधिकारों का आधार मानव स्वभाव में निहित है। ” (राय, अरूण, भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग : गठन कार्य एवं भावी परिदृश्य, पृ.सं. 11)

डेविड बेंथम एवं केबिन बॉयले के अनुसार

“मानवाधिकार एवं मूल स्वतंत्रता वे व्यक्तिगत अधिकार है, जो मानवीय आवश्यकताओं और क्षमताओं पर आधारित होते हैं।” (बीथम, डेविड एवं बॉयले, केबिन, लोकतंत्र 80 प्रश्न और उत्तर, पृ.सं. 10)

न्यायमूर्ति वी आर.कृष्ण अय्यर ने मानवाधिकारों की व्याख्या करते हुए कहा है कि

“ये वे अधिकार हैं जिनके बिना व्यक्तित्व का हनन और प्रतिष्ठा काविनाश हो जाता है। इन मौलिक स्वतंत्रताओं के छिन जाने या विकृति आ जाने से मानव के दैवीय गुणों का हास हो जाता है।”(चतुर्वेदी, डॉ. अरुण एवं लोढा, संजय, भारत में मानवाधिकार, पृ.सं. 61)

पुरुषोत्तम अग्रवाल ने मानवाधिकारों की परिभाषा इस प्रकार दी है-

“मानवाधिकार की समकालीन अवधारणा व्यक्तित्व के दार्शनिक विमर्श पर आधारित है। इसका अर्थ समाज की अवहेलना नहीं बल्कि यह है, कि किसी सामाजिक या राजनीतिक पहचान से परिभाषित होने से पहले हर मनुष्य व्यक्ति है और इस व्यक्तित्व की असहमति या उसकी अभिव्यक्ति के अंधाधुंध दमन का अधिकार किसी भी पहचान के राजनीतिक या सत्ता-तंत्र को नहीं होना चाहिए। (अग्रवाल, पुरूषोत्तम, तीसरा रूख, पृ.सं 6)

हेरोल्ड लास्की के अनुसार

“अधिकार मानव जीवन की ऐसी परिस्थितियाँ है जिसमें बिना सामान्यतः कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।”

मानवाधिकार को संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौम घोषणा के अनुसार “सभी मनुष्य समान अधिकार और स्वतंत्रता, जाति, रंग, भाषा, लिंग, धर्म, राजनीति या अन्य विचारधारा राष्ट्रीय या सामाजिक मूल सम्पत्ति जन्म या अन्य स्थितियों के किसी भेदभाव के बिना स्वतः मिल जाते है।”

द न्यू हिचंसन ट्वन्टीएथ सेन्चुरी इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार

“मानवाधिकारों में जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, शिक्षा और कानून के समक्ष समानता, आन्दोलन की स्वतंत्रता, धर्म, संगठन, सूचना तथा राष्ट्रीयता का अधिकार सम्मिलित है।”

भारतीय न्यायाधीश ए. के. गांगुली के अनुसार- ”मानवाधिकार आधारभूत स्वाभाविक अपरिवर्तनीय तथा अविच्छेद यानि जो हस्तांतरित न हो सके और जो कि वास्तविक रूप से मानव को जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाते है।”

मानवाधिकारों का इतिहास – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

विश्वव्यापी मानवाधिकारों का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। मानव जैसे-जैसे सभ्यता की ओर बढ़ता है, वैसे-वैसे ही वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत आ रहा है। मानवाधिकार के लिखित प्रमाण की बात की जाए तो हम पाते हैं, कि प्राचीन भारत में धर्म में मानवाधिकार संरक्षण धर्म को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। राजा और प्रजा दोनों धर्म से बंधे हुए थे। राजा धर्म के विरुद्ध आचरण नहीं कर सकता था। धर्म के अंतर्गत ही सभी प्रजा जनों के अधिकार सुरक्षित थे।ये श्लोक भारतीय मानवतावादी चिंतन की धुरी है-

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामाया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुख भाग्यवेत्।

 जो लिंगभेद हम देश और दुनिया में आज देखते हैं वह प्राचीन भारत में नहीं था। स्त्री को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे वे आदरणीय और शक्ति स्वरूपा मानी जाती थी। परिवार तथा समाज में नारी का स्थान सर्वोच्च माना जाता था-

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।”

अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं

समाज में नारी का स्थान उच्च और आदर्श माना जाता था माता का स्थान गुरु और पिता से भी ऊंचा माना गया है-

“दशाचार्यानुपाध्याय उपाध्यायान्पिता दश।

दश चैव पितॄन्माता सर्वा वा पृथिवीमपि।।

गौरवेणायिभवति नास्ति मातृ-समो गुरू।

माता गरीयसी यच्च तेनैतां मन्यते जनः।।”

मानवाधिकारों का इतिहास

प्राचीन भारतीय साहित्य यथा वेद वेदांग उपनिषद इत्यादि सभी में यह प्रमाण बड़ी पुष्टता से मिलता है कि स्त्रियों को सभी तरह के अधिकार प्राप्त थे, वे पुरुषों के समान ही शिक्षा प्राप्त करती थी उन्हें संपत्ति का भी अधिकार प्राप्त था याज्ञवल्क्य ऐसी प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने विधवा स्त्री को उसके पति की संपत्ति देने का समर्थन किया।

“पत्नी दुहितरश्चैव व पितरौ भ्रातरस्तथा।

तत्सुता गोत्रजा बन्धुशिष्यसब्रह्मचारिण।।

एषामभावे पूर्वस्य धनभागुत्तरोत्तरः ।

स्वर्यातस्य हयपुत्रस्य सर्वपणैष्वयं विधि।।”  (याज्ञवल्क्य स्मृति -1/135-36)

मानवाधिकारों का इतिहास

कई स्त्रियों का शस्त्र विद्या सीखने का उल्लेख भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में प्राप्त होता है। रामायण काल में राजा दशरथ की पत्नी केकैयी का देवासुर संग्राम में दशरथ के साथ भाग लेने का उल्लेख प्राप्त होता है। तो अनेक विदुषी स्त्रियों का वैदिक ऋचा लिखने का उल्लेख प्राप्त होता है। ऋग्वेद दशम मण्डल के 39, 40 वें सूक्त तपस्विनी ब्रह्मवादिनी घोषा के हैं और ऋग्वेद के 1.27.7 वे मंत्र की ऋषि रोमशा, 1.5.29 वें मंत्र की विश्वारा, 1.10.45 वें मंत्र की दृष्टा इन्द्राणी, 1.10.159 वें मंत्र की रचयिता ऋषि अपाला थीं। अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा ने पति के साथ ही सूक्त का दर्शन किया था। सूर्या भी एक ऋषिका थीं। बृहदारण्यक उपनिषद में वर्णित गार्गी-याज्ञवल्क्य संवाद इस बात की ओर संकेत करता है, कि प्राचीन भारत में स्त्रियां ज्ञान प्राप्त करने में पुरुषों से पीछे नहीं थी।

मानवाधिकारों का इतिहास

प्राचीन भारत में प्रजा को भी अनेकानेक अधिकार प्राप्त थे जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था अवश्य थी लेकिन उसके नियम इतने कड़े नहीं थे किसी के साथ भी ऊंच-नीच का व्यवहार नहीं किया जाता था रामायण काल में स्वयं राम ने निषादराज को अपने पास आसन देकर उसका सम्मान किया और शबरी के जूठे बेर खाकर जाति-पाती के बंधन को नकार दिया था।

बहुत से भीतर मानवाधिकारों की जड़ें बेबीलोनिया सभ्यता में दृष्टिगत होती है यूनानी दर्शकों सुकरात प्लेटो अरस्तु आदि सभी ने मानवाधिकारों का समर्थ किया है रोमन दार्शनिक सिसरो ने भी मानवाधिकारों को प्राकृतिक न्याय से जोड़कर देखा है।

मानव अधिकार समय – सारणी (बीसवीं सदी तक) – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

1215 – मैग्नाकार्टा का घोषणा पत्र ब्रिटेन के संबंधों के हितों में मानव अधिकारों की रक्षा से संबंधित था।

1679 – बन्दी प्रत्यक्षीकरण :
एक अंग्रेजी कानून जिसने व्यक्ति को स्वतंत्रता व मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और दण्ड से रक्षण प्रदान किया।

1689 – अधिकारों का विधेयक (बिल ऑफ राइट्स):
इन अधिकारों की घोषणा से अंग्रेजी राज्य में याचिका देने, मतदान, व्यक्तिगत स्वतंत्रता व न्यायिक कार्यवाही की गारंटी मिली।

1776 – युनाइटेड स्टेट्स स्वतंत्रता की घोषणा :
‘जीवन के अधिकार’ को पहली पुष्टि हुई जो बीसवीं सदी में पुन: प्रकट हुई। यह तथ्य स्थापित हुआ कि सत्ता शासित की सहमति पर आधारित है।

मानव अधिकार समय – सारणी

1789 – फ्रांस में मानव तथा नागरिक के अधिकारों की घोषणा में सर्वत्रता का दावा था व यह इस प्रकार को सभी घोषणाओं का आदर्श माना जाता है।

1791 – महिला व नारी नागरिक के अधिकारों की घोषणा का मसौदा ओलिम्पे डी गोजीस द्वारा तैयार किया गया जिसमें 1789 की घोषणा को महिलाओं के लिए लागू करने की बात की गयी। (ओलिम्प डी गोजिस – “यदि महिलाएं फांसी खा सकती है, तो मंच भी पा सकती ?”)

1793 – मानव तथा नागरिक के अधिकारों की घोषणा जिसमें अश्वेतों को भी स्वतंत्रता का अधिकार है, यह प्रस्थापित हुआ।
पहली बार आर्थिक व सामाजिक अधिकारों की बात हुई-शिक्षा का अधिकार, काम का अधिकार, सहायता का अधिकार।
मानव अधिकारों के उन्नयन के संदर्भ में ‘विद्रोह के अधिकार’ की बात की गयी।

1848 – दूसरे फ्रांसीसी गणराज्य का संविधान :
राज्य के सामाजिक जवाबदारियों की पुष्टि, नागरिकों द्वारा अधिकारों का दावा, जुड़ने व एकत्र होने की स्वतंत्रता, सभी के लिए मताधिकार, कॉलोनी में दास प्रथा समाप्ति, मुफ्त प्राथमिक शिक्षा वगैरह इसके मुख्य पहलू रहे।

1863 – स्विट्जरलैंड में हेनरी ड्यूनेन्ट द्वारा रेड क्रॉस की अन्तर्राष्ट्रीय समिति का गठन :
युद्ध में घायल की रक्षा पर जेनेवा में पहली सभा (1929 में इसमें युद्ध के बंदियों को भी शामिल किया गया)

मानव अधिकार समय – सारणी

1920 – राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने और शांति व सुरक्षा की गारंटी के लिए राष्ट्रों के संघ की उत्पत्ति।

1924 – बालकों के अधिकारों की घोषणा – इस प्रकार की यह पहली अन्तर्राष्ट्रीय घोषणा थी।

1945 – संयुक्त राष्ट्र का सनद (चार्टर) जिनसे मानव अधिकारों व मूल स्वतंत्रताओं को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्पित किया गया।

1945 – यूनेस्को का गठन।

1946 – न्यूरेमबर्ग ट्रायल : नाजी नेताओं को अन्तरराष्ट्रीय सैन्य न्यायाधिकरण द्वारा सुनवाई तथा दोष सिद्धि।

1948 – मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा – नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों का संयोग।

1950 – मानव अधिकारों व मूल स्वतंत्रताओं के रक्षण पर यूरोपीय सम्मेलन।

1952 – महिला के राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (संयुक्त राष्ट्र)।

1965 – सभी प्रकार के जातिगत भेदभाव की समाप्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (संयुक्त राष्ट्र)।

मानव अधिकार समय – सारणी

1971 – ‘फ्रांसीसी डॉक्टर’ मानवतावादी आन्दोलन की शुरुआत।

1972 – जातीयता के खिलाफ फ्रांसीसी कानून।

1974 – राज्यों के आर्थिक अधिकारों व जिम्मेदारियों पर अंतरराष्ट्रीय सनद।

1976 – 1948 की मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का आदर सुनिश्चित करने के लिए दो अंतरराष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र।

1979 – महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (संयुक्त राष्ट्र)- महिला पुरुष समानता के लिए परिवार एवं समाज में पुरुष की पारम्परिक भूमिका में बदलाव की जरूरत की पुष्टि हुई।

1984 – यातना की रोकथाम पर अंतरराष्ट्रीय सभा

मानव अधिकार समय – सारणी

1988 – सहायता लेने के अधिकार को मान्यता (आपदा की स्थिति में)

1990 – बालकों के अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सभा

1990 – मानवतावादी कॉरीडोर की जरूरत को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा का प्रस्ताव

1991 – मध्यस्थी के अधिकार को पहली बार आधार मिला (इराक के उदाहरण से)

1992 – मानवतावादी सहायता की रक्षा के लिए बल प्रयोग को मान्यता (बॉसनिया – हरजेगोविना के उदाहरण में)

1998 – स्थायी अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की स्थापना

(आभार : एक्सनएड द्वारा प्रकाशित रिसोर्स बुक ‘अ ह्यूमन राइट्स अप्रोच टू डेवेलपमेन्ट’)

उद्धृत:- दलित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए प्रवेशिका उन्नति विकास शिक्षण संगठन और UNDP 2012

अनुच्छेद-1

इसमें कहा गया है कि सभी मानव प्राणी स्वतंत्र उत्पन्न हुए है।

अतः वे अधिकारों तथा महत्ता के क्षेत्र में समान हैं।

उनमें विवेक तथा चेतना है। अतः उनको नेतृत्व की भावना से कार्य करना चाहिये।

अनुच्छेद-2

प्रत्येक व्यक्ति समस्त अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त करने का अधिकारी है।

अनुच्छेद-3

जीवन तथा स्वतंत्रता का अधिकार।

अनुच्छेद-4

दासता तथा दास व्यापर का निषेध ।

अनुच्छेद-5

अमानवीय व्यवहार तथा यातना का निषेध ।

अनुच्छेद-6

प्रत्येक व्यक्ति को सर्वत्र विधि के समक्ष व्यक्ति के रूप में मान्यता का अधिकार है

अनुच्छेद-7

सभी व्यक्ति विधि के समक्ष समान हैं और किसी विभेद के बिना विधि के समान संरक्षण के हकदार हैं।

सभी व्यक्ति इस घोषणा के अतिक्रमण में विभेद के विरूद्ध और ऐसे विभेद के उद्दीपन के विरूद्ध समान संरक्षण के हकदार है।

अनुच्छेद-8

प्रत्येक व्यक्ति को संविधान या विधि द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों का अतिक्रमण करने वाले कार्यों के विरूद्ध समक्ष राष्ट्रीय अधिकरणों द्वारा प्रभावी उपचार का अधिकार है।

अनुच्छेद-9

किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से गिरफ्तार, विरूद्ध या निवासित नहीं किया जायेगा।

अनुच्छेद-10

प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों और बाध्यताओं के और उसके विरुद्ध आपराधिक आरोप के अवधारणा में पूर्णतया समाज के रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष अधिकरण द्वारा सार्वजनिक सुनवाई का हकदार है।

अनुच्छेद-11 (मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास)

(i) ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिस पर दण्डित अपराध का आरोप है।
यह अधिकार है कि तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक कि उसे लोक विचारण में जिसमें उसे अपने प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक सभी गारंटिया प्राप्त हो विधि के अनुसार दोष सिद्ध नहीं कर दिया जाता।

(ii) किसी भी व्यक्ति को ऐसे कार्य या लोप के कारण जो किए जाने के समय राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अधीन दांडिक अपराध नहीं था किसी दाण्डिक अपराध को दोषी निर्धारित नहीं किया जायेगा।
उस शक्ति से अधिक शक्ति अधिरोपित नहीं की जायेगी, जो उस समय लागू थी जब अपराध किया गया था।

अनुच्छेद-12

किसी भी व्यक्ति की एकांतता, कुटुम्ब धारा पत्र व्यवहार के साथ मनमाना हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा

उसके सम्मान व ख्याति पर प्रहार नहीं किया जायेगा।

प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे हस्तक्षेप या प्रहार के विरूद्ध विधि के संरक्षण का अधिकार है।

अनुच्छेद-13

(i) प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक राज्य की सीमाओं के भीतर संचरण और निवास की स्वतंत्रता का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश को या किसी भी देश को छोड़ने और अपने देश में वापस आने का अधिकार है।

अनुच्छेद-14

विश्राम स्थल प्राप्त करने का अधिकार *

अनुच्छेद-15

(i) प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार है।

(ii) किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से न तो उसकी राष्ट्रीयता से और न राष्ट्रीयता परिवर्तित करने के अधिकार से वंचित किया जायेगा।

अनुच्छेद-16

(i) वयस्क पुरूषों व स्त्रियों को मूल वंश, राष्ट्रीयता या धर्म के कारण किसी भी सीमा के बिना विवाह करने और कुटुंब स्थापित करने का पूर्ण अधिकार है।
वे विवाह के विषय में, विवाहित जीवनकाल में और उसके विघटन पर समान अधिकारों के हकदार है।

(ii) विवाह के इच्छुक पक्षकारों को स्वतंत्र और पूर्ण सम्मति से ही विवाह किया जायेगा।

(iii) कुटुंब समाज की नैसर्गिक और प्राथमिक सामाजिक इकाई है और इसे समाज एवं राज्य द्वारा संरक्षण का हकदार है।

अनुच्छेद-17

सम्पत्ति रखने का अधिकार।

अनुच्छेद-18

विचार, अन्तरात्मा तथा धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार।

अनुच्छेद-19

अभिव्यक्ति तथा सम्मति प्रकट करने का अधिकार।

अनुच्छेद-20

शान्तिपूर्ण ढंग से सभा व संघ बनाने का अधिकार।

अनुच्छेद-21 (मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास)

(i) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश की सरकार में सीधे या स्वतंत्रतापूर्वक चुने गये प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेने का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को अपनी देश की लोक सेवा में समान पहुंच का अधिकारहै।

अनुच्छेद-22

सामाजिक सुरक्षा का अधिकार।

अनुच्छेद-23

(i) प्रत्येक व्यक्ति को कार्य करने का,
नियोजन के स्वतंत्र चयन का,
कार्य की न्यायोचित और अनुकूल दशाओं का एवं बेरोजगारी के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति को किसी विभेद के बिना समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार है।

(iii) प्रत्येक व्यक्ति को जो कार्य करता है ऐसे न्यायोचित और अनूकूल पारिश्रमिक का अधिकार है।

(iv) प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों के संरक्षण के लिए ट्रेड यूनियन बनाने और उनमें सम्मिलित होने का अधिकार है।

अनुच्छेद-24

प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है,

जिसके अंतर्गत कार्य के घंटों की युक्तियुक्त सीमा और समय-समय पर वेतन सहित अवकाश का भी प्रावधान है।

अनुच्छेद-25

(i) प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवन स्तर पर अधिकार है जो स्वयं उसके और उसके कुटुम्ब के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त है जिसक अन्तर्गत भोजन,रूग्णता, असक्तता, वैधव्य, वृद्धावस्था या उसके नियंत्रण के बाहर परिस्थितयों में जीवन यापन के अभाव की दशा में सुरक्षा का अधिकार है।

(ii) मातृत्व और बाल्यकाल विशेष देखभाल और सहायता के हकदार हैं।

सभी बच्चे चाहे उनका जन्म विवाहित या अविवाहित जीवनकाल में हुआ हो, समान सामाजिक सुरक्षा प्राप्त करेंगे।

अनुच्छेद-26

शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, कम से कम प्राथमिक और मौलिक स्तर पर शिक्षा निःशुल्क होगी।

अनुच्छेद-27

विभिन्न कलाओं में आनंद लेने का अधिकार तथा वैज्ञानिक विज्ञापनों में भाग लेना आदि।

अनुच्छेद-28

इस घोषणा पत्र में वर्णित अधिकारों व स्वतंत्रताओं को पूर्ण रूप से प्राप्त किया जा सकता है।

अनुच्छेद-29

इसमें उन दायित्वों का विवेचन किया गया है जिनका व्यक्ति को अपने समुदाय के प्रति निर्वाह करना है।

अनुच्छेद-30

इसमें कहा गया है कि कोई भी राष्ट्र इन अधिकारों की विवेचना अपने दृष्टिकोण से नहीं करेगा वरन् इसमें निहित अधिकारों को प्रदान करने के लिए कार्य करेगा।

इस प्रकार उपरोक्त घोषणा पत्र को सभी राष्ट्र व प्रत्येक व्यक्ति पूर्ण आत्मीय निष्ठा के साथ पालन करे तो भारतीय “वसुधैवकुटुम्बकम” की भावना सम्पूर्ण विश्व में साकार हो और व्याप्त वैमनस्य, रंगभेद, क्षेत्रवाद व आतंकवादसमूल नष्ट हो जाए और विश्व एक आदर्श समाज में परिवर्तित हो जायेगा।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवाधिकार-संरक्षण के प्रयास: (मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास)

संघ द्वारा मानवाधिकारों के विकास के लिये समय-समय पर अनेक कदम उठाये गये हैं।
इनमें से कुछ प्रमुख प्रयास हैं-

25 जून, सन् 1945 को संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये गये एवं अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना हुई।

21 जून, सन् 1946 को आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा मानवाधिकार आयोग तथा महिलाओं की प्रस्थिति पर आयोग की स्थापना हुई।

9 दिसम्बर, सन् 1948 को महासभा द्वारा नरसंहार के अपराध की रोकथाम एवं दण्ड देने के संबंध में नरसंहार अभिसमय स्वीकृत हुआ।
वह 1951 से लागू हुआ।

संरक्षण के प्रयास

10 दिसम्बर, सन् 1948 को महासभा द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा स्वीकृत हुई।

12 अगस्त सन् 1949 को युद्ध में घायल सैनिक, जनसामान्य और कैदियों के कल्याण से संबंधित सहमति पत्र पर राजनीतिक सम्मेलन हुआ और यह सन् 1950 से लागू हुआ।

दिसम्बर, सन् 1952 को महासभा द्वारा महिाओं के राजनीतिक अधिकार संबंधी सहमति पत्र स्वीकृत हुआ।
जो सन् 1954 से लागू हुआ।

नवम्बर सन् 1954 को महासभा द्वारा बच्चों के अधिकार संबंधी घोषणा’ स्वीकृत हुयी।

1 अगस्त, सन् 1956 को आर्थिक व सामाजिक परिषद द्वारा सदस्य राष्ट्रो से प्रति 3 वर्ष पर मानवाधिकार संबंधी प्रतिवेदन लेने का निर्णय लिया।

दिसम्बर, सन् 1965 को महासभा द्वारा ‘सभी प्रकार के नस्लभेद प्रकारों के उन्मूलन संबंधी सहमति पत्र को स्वीकृत हुआ जो सन् 1969 से लागू हुआ।

संरक्षण के प्रयास

16 दिसम्बर, सन् 1966 को महासभा द्वारा नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों संबंधी अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा एवं आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा घोषित हुयी।
यह सन् 1976 से प्रभावी हुई।

6 जून, सन् 1967 को आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा मानवाधिकार आयोग तथा अल्पसंख्यकों की भेदभाव से सुरक्षा के लिये बने उप-आयोग को मानवाधिकार हनन के मामलों की जाँच का अधिकार दिया गया ।

7 नवम्बर, सन् 1967 को महासभा द्वारा महिलाओं के विरूद्ध भेदभाव की समाप्ति की घोषणा स्वीकृत हुई।

13 मई 1968 को मानवाधिकार से संबंधित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में तेहरान घोषणा’ हुई।

26 नवम्बर, सन् 1968 को महासभा द्वारा ऐसे युद्ध अपराधों की वैधानिकता की क्रियान्विति न करने की घोषणा हुई जो कि मानवता के विरुद्ध हो।
यह घोषणा सन् 1970 से लागू हुई।

संरक्षण के प्रयास

11 दिसम्बर सन् 1969 को महासभा द्वारा सामाजिक प्रगति और विकास संबंधी घोषणा की स्वीकृति प्राप्त हुई।

30 नवम्बर 1973 को महासभा द्वारा समस्त प्रकार के रंगभेद संबंधी अपराधों की समाप्ति तथा दण्ड के लिये अंतरराष्ट्रीय सहमति पत्र स्वीकृत हुआ। यह सन् 1976 से प्रभावी हुआ।

9 दिसम्बर, सन् 1975 को महासभा द्वारा सभी व्यक्तियों को क्रूरता, अमानवीयता तथा प्रताड़ना से बचने के लिये घोषणा स्वीकृत हुई।

23 मार्च 1976 को नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों संबंधी. अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा तथा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय बिल पारित हुआ।

18 दिसम्बर सन् 1979 को महासभा द्वारा महिलाओं से भेदभाव के सभी प्रकारों के उन्मूलन संबंधी सहमति पत्र (सीडॉ) स्वीकृत हुआ।

25 नवम्बर सन् 1979 को महासभा द्वारा धर्म या विश्वास पर आधारित भेदभाव तथा असहिष्णुता के उन्मूलन संबंधी घोषणा स्वीकृत हुयी।

10 दिसम्बर सन् 1984 को महासभा द्वारा यातना, क्रूरता तथा अमानवीयता के विरूद्ध सहमति पत्र स्वीकृत हुआ।

संरक्षण के प्रयास

28 मई सन् 1985 को आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर समिति स्थापित हुयी।

4 दिसंबर 1986 को महासभा द्वारा विकास के अधिकार की घोषणा स्वीकृत हुई।

9 दिसम्बर सन् 1988 को महासभा द्वारा सभी व्यक्तियों को किसी भी प्रकार की नजरबदी तथा कैद से बचाने संबंधी सिद्धान्त स्वीकृत हुए।

24 मई, 1989 को आर्थिक तथा सामाजिक परिषद द्वारा अवैधानिक स्वेच्छाचारी तथा विलंबित दण्ड से संबंधित प्रभावी सुरक्षा एवं जांच संबंधी सिद्धान्त स्वीकृत हुए।

20 नवम्बर 1989 को महासभा द्वारा बच्चों के अधिकारों से संबंधित एक सहमति पत्र स्वीकृत हुआ। यह सन् 1990 से प्रभावी हुआ।

18 दिसम्बर 1990 को महासभा द्वारा देशांतर गमन करने वाले श्रमिकों तथा उनके परिजनों के अधिकारों की रक्षा संबंधी अंतरराष्ट्रीय सहमति पत्र स्वीकृत हुआ।

संरक्षण के प्रयास

18 दिसम्बर 1992 को महासभा द्वारा जातीय धार्मिक तथा भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों संबंधी घोषणा स्वीकृत हुई।

22 मई 1993 को सुरक्षा परिषद द्वारा 1991 से यूगोस्लाविया में अंतरराष्ट्रीय मानवता करे कानून के उल्लंघन के मामलों के क्रम में अंतरराष्ट्रीय दण्ड न्यायाधिकरण की स्थापना हुई।

25 जून 1993 को मानवाधिकारों पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में वियना घोषणा एवं कार्य योजना प्रस्तुत हुई।

20 दिसम्बर 1993 को महासभा द्वारा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्तका पद सृजित हुआ।

5 अप्रैल 1994 को जोस आयचला लासो (एक्वाडोर निवासी) संयुक्त राष्ट्रमानवाधिकार आयोग के प्रथम आयुक्त बने।

8 नवम्बर 1994 को सुरक्षा परिषद द्वारा 1994 को रवाडा में हुये नरसंहार तथा मानवता करे कानूनों के उल्लंघन को रोकने के क्रम में एक न्यायाधिकरण की स्थापना हुई।

संरक्षण के प्रयास

23 दिसम्बर 1994 को महासभा द्वारा 1995 से 2004 तक की समयावधि को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार शिक्षा दशक के रूप में मनाये जाने की घोषणा हुई।

12 सितम्बर 1997 को मैरी रॉबिन्सन (आयरलैण्ड) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की द्वितीय आयुक्त बनी।

17 जुलाई 1998 को महादेव का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुआ तथा रोम में अन्तर्राष्ट्रीय दण्ड न्यायालय की स्थापना हुयी। इसकी पीठ हेग में है। (कटारिया सुरेंद्र,मानवाधिकार सभ्य समाज एवं पुलिस पृ. सं. 20-22 )

मानवाधिकारोंके संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ से इतर किए गए प्रयास एवं संगठन

1969 – सेंट जॉन्स कोस्टारिका अमेरिकी राज्यों के संगठन (OAS) के तत्वावधान में मानवाधिकारों का अमेरिकी अभिसमय  स्वीकार किया गया

जून 1981 – नैरोबी (केन्या) में अफ्रीकी एकता संगठन की अगुवाई में मानव तथा जन अधिकारों के अफ्रीकी चार्टर को अंगीकृत किया गया

जून 1993- वियना में मानवाधिकारों पर विश्व सम्मेलन (वियनाघोषणा)

अन्य महत्वपूर्ण संगठन – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

वर्ल्ड फ्रेंड्स ऑफ अर्थ . एम्सटर्डम , 1871

सेव द चिल्ड्रन फंड , लंदन , 1919

इन्टरनेशनल कमीशन फार ज्यूरिस्ट्स, 1952

एमनेस्टी इंटरनेशनल लंदन 1962 |

माइनारिटी राइट्स ग्रुप लंदन 1965 ।

सरवाइवल इंटरनेशनल , 1969 ।

ह्यूमन राइट्स वाच , न्यूयार्क , 1978, आदि।

भारतीय संविधान में मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु किए गए उपबंध – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

भारतीय संविधानवेत्ताओं नेभारतीय लोगों के अधिकारों के बारे मेंविशेष रुप से ध्यान रखाऔर भारतीय संविधान में मानवाधिकारों के लिए अनेक उपबंध किए गए हैं संविधान के अनुच्छेद 14 से 30में सभी भारतीय नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारदिए गए हैंइन प्रावधानों से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान निर्माताओं ने भारत की महान सभ्यता और संस्कृति को जीवंत रखते हुए मानव मात्र के कल्याण के लिए संवैधानिक प्रावधानों को लागू किया है-

अनुच्छेद 14 से 18 हर नागरिक को सभी क्षेत्रों में समानता का अधिकार प्रदान करते हैं-

अनुच्छेद 1

विधि के समक्ष समता का उल्लेख किया गया है।

सभी नागरिक कानून की नजर में समान हैं।

किसी व्यक्ति के साथ सिर्फ इसलिए अलग व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि
वह गरीब या अमीर है, शक्तिशाली या कमजोर है, महिला है या पुरुष है या किसी विशेष जाति का है।

अनुच्छेद 15

किसी भी व्यक्ति से धर्म, जाति, वर्ण, लिंग या जन्म स्थान केआधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 16

राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति में सभी को अवसरों की समानता होगी।

धर्म, वंश, जाति, उद्भव, जन्म स्थान, निवास पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 17

अस्पृश्यता समाप्ति की बात की गई है।

अस्पृश्यता के कारण किसी को अयोग्य घोषित करना दण्डनीय अपराध है।

अनुच्छेद 18

सभी उपाधियों का अंत किया गया है।

सेना या शिक्षा सम्बन्धी सम्मान के अलावा कोई उपाधि प्रदान नहीं की जाएगी और
विदेशी राज्य से कोई भेंट, उपलब्धि या पद, राष्ट्र की सहमति के बिना स्वीकार नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 19 से 22 नागरिक की वाक् तथा जीवन स्वातंत्र्य के अधिकार से सम्बन्धित हैं – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

अनुच्छेद 19

सभी नागरिकों को बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, शांतिपूर्ण तरीके से सम्मेलन करने की, संगम या संघ बनाने की तथा भारत में कहीं भी निर्यात आने-जाने अथवा निवास करने की स्वतंत्रता है।

हर नागरिक कोई भी आजीविका अपनाने या कारोबार करने के लिए स्वतंत्र है।

इन स्वतंत्रताओं पर रोक तभी लग सकती है जब वे देश की शांति व अखण्डता को भंग करती हों अथवा सार्वजनिक नैतिकता, स्वास्थ्य आदि के खिलाफ हों।

अत: लोग संगठन बना सकते हैं, सामूहिक विरोध व हड़ताल कर सकते हैं, सम्मेलन आयोजित कर सकते हैं और सरकार की आलोचना भी कर सकते हैं।

अनुच्छेद 20

यह अनुच्छेद अपराधों के लिए दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण प्रदान करता है।

एक व्यक्ति प्रवृत्त विधि के अनुसार ही दोषी ठहराया जा सकता है तथा उसे कानून में लिखे अनुसार ही सजा दी जा सकती है।

किसी व्यक्ति को एक अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जा सकता।

अभियुक्त को स्वयं के विरूद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहींकिया जा सकता।

अनुच्छेद 21

हर नागरिक को जीवन व दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार है जिसे विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से ही वंचित किया जा सकता है।

संविधान के 86वें संशोधन के द्वारा 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों को नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है।

अनुच्छेद 22 – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारण से अवगत होने, विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा करने का अधिकार है।

कुछ संयोगों को छोड़कर, गिरफ्तारी से चौबीस घंटे की अवधि में गिरफ्तार व्यक्ति को निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना जरूरी है।

अनुच्छेद 23 और 24

नागरिक को शोषण के विरूद्ध अधिकार प्रदान करते हैं जिनमें मानव का दुर्व्यापार, बेगार, बलात्श्रम व बाल मजदूरी शामिल हैं।

अनुच्छेद 25 से 28

धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार से सम्बन्धित हैं।

ये हर नागरिक को अपने धर्म को मानने, आचरण व प्रचार करने की स्वतंत्रता देते हैं।

अनुच्छेद 29 और 30

अल्पसंख्यक वर्गों के संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धित हितों का संरक्षण करते हैं।

अनुच्छेद 32

अन्य अधिकारों के रक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।

यह नागरिकों को संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान करता है।

भारत द्वारा अनुसमर्थित अंतरराष्ट्रीय मानक – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

मानवाधिकार की सार्वभौमिक उद्घोषणा 1948

नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सभा 1966

आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सभा 1966

सभी प्रकार के जातीय भेदभाव उन्मूलन पर अअंतरराष्ट्रीय सभा 1965

महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अंतरराष्ट्रीय सभा 1979

बालकों के अधिकारों पर सभा 1989

अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्थान सभा संख्या 29 – बंधक मजदूरी सभा 1930, अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्थान सभा संख्या 111 – रोजगार में भेदभाव 1958, अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्थान सभा संख्या 107 – देशज लोकसभा 1957

अंतत – मानवाधिकार : अर्थ एवं इतिहास

भारत में मानवाधिकारों के संरक्षण का मुख्य सैद्धान्तिक आधार सन् 1993 के मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम में निहित है यह कानून संविधान के अनुच्छेद 51 के अंतर्गत दिए गए निर्देशों के अनुकरण में और वियना सम्मेलन में दिए गए भारत के वचन को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।

संविधान में प्रदान मूलभूत अधिकारों को सहयोग करने वाले कई कानून हैं।

(आभार:- दलित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए प्रवेशिका, उन्नति विकास शिक्षण संगठन और UNDP 2012)

 

उपर्युक्त विवेचन स्पष्ट हो जाता है कि मानवाधिकारों की जड़े अत्यंत गहरी है।

वैदिक सभ्यता और उससे भी पहले भारत में मानव अधिकारों का विशेष ध्यान रखा जाता था, और धर्म में मानव अधिकार सुरक्षित रहते थे भारत के बाहर भी विश्व के अनेक देशों में मानव अधिकारों के बारे में व्यापक जानकारी मिलती है और वर्तमान समय में मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए अनेक संस्थाएं प्रयासरत हैं।

अनेक के देशों में ऐसे सांविधानिक उपबंध किए गए हैं जिनसे मानव अधिकारों को सुरक्षित और सुरक्षित रखा जा सके, लेकिन इसके बाद भी अनेक लोग इनका उल्लंघन करने का प्रयास भी करते हैं। ऐसी स्थिति में मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर अभी और प्रयास करने की आवश्यकता है। (आभार:-हम इस आलेख की मौलिकता का दवा नहीं करते हैं इस आलेख के लेखन में अनेक पुस्तकों एवं शोध प्रबंधों का उपयोग किया गया है हम उन सभी पुस्तकों के लेखकों और शोधार्थियों का हार्दिक आभार प्रकट करते हैं जिनसे हमें सहयोग प्राप्त हुआ)

 

इन्हें भी पढ़िए-

भारत का विधि आयोग (Law Commission, लॉ कमीशन)

मानवाधिकार (मानवाधिकारों का इतिहास)

मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2019

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग : संगठन तथा कार्य

भारतीय शिक्षा अतीत और वर्तमान

श्री सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के मतानुसार प्रांतीय भाषाओं और बोलियों का महत्व