क्रिया विशेषण Kriya Visheshan
क्रिया विशेषण Kriya Visheshan | kriya visheshan ke bhed | kriya visheshan kise kahate hain | kriya visheshan in hindi| क्रिया विशेषण
प्रयोग के आधार पर हिन्दी में शब्दों के दो भेद किए जाते हैं।
(i) विकारी शब्द
(ii) अविकारी या अव्यय शब्द
(i) विकारी शब्द वे शब्द होते हैं, जिनका रूप लिंग, वचन, कारक और काल के अनुसार परिवर्तित हो जाता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं विकारी शब्दों में समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।
(ii) अविकारी या अव्यय शब्द वे शब्द होते हैं, जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार कोई विकार उत्पन्न नहीं होता अर्थात् इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है।
ऐसे शब्दों को अविकारी या अव्यय शब्द कहते हैं।
अविकारी शब्दों में क्रियाविशेषण, सम्बन्धबोधक अव्यय, समुच्चय बोधक अव्यय तथा विस्मयादिबोधक अव्यय आदि शब्द आते हैं। विस्तृत विवरण इस प्रकार है-
क्रिया विशेषण Kriya Visheshan
जिस अव्यय से क्रिया की कोई विशेषता जानी जाती है उसे क्रिया-विशेषण कहते हैं,
जैसे- यहाँ, वहाँ, जल्दी, धीरे, अभी, बहुत, कम, इत्यादि।
क्रिया-विशेषणों का वर्गीकरण तीन आधारों पर हो सकता है
(1) प्रयोग के आधार पर
(2) रूप के आधार पर
(3) अर्थ के आधार पर
प्रयोग के आधार पर क्रिया-विशेषण
प्रयोग के आधार पर क्रिया-विशेषण तीन प्रकार के होते हैं-
(1) साधारण क्रिया-विशेषण
(2) संयोजक क्रिया-विशेषण
(3) अनुवद्ध क्रिया-विशेषण
(1) साधारण क्रिया-विशेषण – जिन क्रिया-विशेषणो का प्रयोग किसी वाक्य मे स्वतंत्र होता है उन्हें साधारण क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे –
“हाय ! अब मैं क्या करुं!”
“बेटा, जल्दी आओ।“
“वह साँप कहाँ गया?”
(2) संयोजक क्रिया-विशेषण – जिनका संबंध किसी उपवाक्य के साथ रहता है उन्हें संयोजक क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे-
“जब राम ही नहीं तो मैं ही जी के क्या करूँगा।
“जहाँ अभी रेगिस्तान है वहां पर किसी समय सागर था।
(3) अनुबद्ध क्रिया-विशेषण – वे क्रिया विशेषण जिनका प्रयोग अवधारणा के लिए किसी भी शब्द-भेद के साथ हो सकता है; जैसे –
“यह तो किसी ने धोखा ही दिया है ।”
“मैंने उसे देखा तक नहीं।”
“आपके आने भर की देरी है।”
क्रिया विशेषण Kriya Visheshan
(2) रूप के आधार पर क्रिया-विशेषण – रूप के अनुसार क्रिया-विशेषण तीन प्रकार के होते हैं –
(1) मूल क्रिया-विशेषण
(2) यौगिक क्रिया-विशेषण
(3) स्थानीय क्रिया-विशेषण
(1) मूल क्रिया-विशेषण- जो क्रिया-विशेषण किसी दूसरे शब्द से नहीं बनते वे मूल क्रिया-विशेषण कहलाते है, जैसे. ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं, इत्यादि। अन्य उदाहरण –
वह ठीक सामने खड़ा है।
वह दूर चला गया है।
अचानक वर्षा होने लगी।
(2) यौगिक क्रिया-विशेषण – जो क्रिया-विशेषण दूसरे शब्दों में प्रत्यय या शब्द जोडने से बनते हैं उन्हें यौगिक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
वे नीचे लिखे शब्द-भेदो से बनते हैं-
(अ) संज्ञा से – सवेरा, मन से, क्रमश, आगे, रात को, प्रेम पूर्वक, दिन-भर, रात-तक, इत्यादि ।
(आ) सर्वनाम से – यहाँ, वहाँ, अब, जब, जिससे, इसलिए, तिस पर, इत्यादि।
(इ) विशेषण से – धीरे, चुपके, भूले से, इतने मे, सहज मे, पहले, दूसरे, ऐसे, वैसे, इत्यादि ।
(ई) धातु से – आते, करते, देखते हुए, चाहे, लिये, मानो वैठे हुए, इत्यादि।
(उ) अव्यय से – यहाँ तक, कब का, ऊपर को, झट से, वहाँ पर, इत्यादि।
(ऊ) क्रिया- विशेषणों के साथ निश्चय जनाने के लिये बहुधा ई या ही लगाते हैं, जैसे – अब-अभी, यहाँ-यहीं, आते-आते ही, पहले-पहले ही, इत्यादि।
(3) स्थानीय क्रिया-विशेषण
वे शब्द-भेद जो बिना किसी रूपांतर के क्रिया- विशेषण के समान उपयोग मे आते हैं उन्हें स्थानीय क्रिया-विशेषण कहते हैं।
ये शब्द किसी विशेष स्थान ही मे क्रिया-विशेषण होते हैं; जैसे –
(अ) संज्ञा-
“तुम मेरी मदद खाक करोगे।”
“वह अपना सिर पढेगा!”
(आ) सर्वनाम-
“गुरु जी तो वे आते हैं ।”
“तुम मुझे क्या मारोगे।”
“तुम्हे यह बात कौन कठिन है।”
(इ) विशेषण-
“राकेश उदास बैठा है।“
“बंदर कैसा कूदा।”
“सब लोग सोये पड़े थे।”
“चोर पकड़ा हुआ आया।”
“हमने इतना पुकारा।”
(ई) पूर्वकालिक कृदंत-
“तुम दौड़कर चलते हो।”
“शेर उठकर भागा।”
(3) अर्थ के आधार पर क्रिया विशेषण
अर्थ के अनुसार क्रियाविशेषण के नीचे लिखे चार भेद होते है –
(1) स्थानवाचक क्रियाविशेषण
(2) कालवाचक क्रियाविशेषण
(3) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
(4) रीतिवाचक क्रियाविशेषण।
क्रिया विशेषण Kriya Visheshan
(1) स्थानवाचक क्रियाविशेषण के दो भेद हैं-
1-स्थितिवाचक
2-दिशावाचक ।
(1) स्थिति वाचक – यहाँ, वहाँ, जहाँ, कहाँ, तहाँ, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, तले, सामने, साथ, बाहर, भीतर, पास (निकट, समीप), सर्वत्र, अन्यत्र, इत्यादि।
(2) दिशावाचक – इधर, उधर, किधर, जिधर, दूर, परे, अलग, दाहिने, बाएँ, आर-पार, इस तरफ, उस जगह, चारों ओर, इत्यादि।
(2) कालवाचक क्रियाविशेषण तीन प्रकार के होते हैं
(1) समयवाचक, (2) अवधिवाचक, (3) पौनः पुन्य वाचक
(1) समयवाचक- आज, कल, परसों, तरसों, नरसों, अब, जब, कब, तब, अभी, कभी, जभी, तभी, फिर, तुरंत, सर्वे, पहले, पीछे, प्रथम, निदान, आखिर, इतने मे, इत्यादि ।
(2) विधिवाचक – आजकल, नित्य, सदा, सतत (कविता मे ), निरतर, अवतक, कभी कभी, कभी न कभी, अब भी, लगातार, दिन भर, कब का, इतनी देर, इत्यादि।
(3) पौनः पुन्यवाचक – बार-बार (बारम्बार), बहुधा ( अकसर ), प्रतिदिन (हररोज़), घड़ी-घड़ी, कई बार, पहले-फिर, एक-दूसरे-तीसरे-इत्यादि, हरबार, हरदफे, इत्यादि।
क्रिया विशेषण Kriya Visheshan
(3) परिमाणवाचक क्रिया विशेषण – जिन शब्दों के द्वारा अनिश्चित संख्या या परिमाण का बोध होता है। ये पाँच प्रकार के होते हैं-
(अ) अधिकताबोधक – बहुत, अति, बड़ा, भारी, बहुतायत से, बिल्कुल, सर्वथा, निरा, खूब, पूर्णतया, निपट, अत्यत, अतिशय, इत्यादि।
(आ) न्यूनताबोधक – कुछ, लगभग, थोडा, टुक, अनुमान, प्राय., ज़रा, किंचित्, इत्यादि ।
(इ) पर्याप्त वाचक – केवल, बस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बराबर, ठीक, अस्तु, इति, इत्यादि ।
(ई) तुलनावाचक – अधिक, कम, इतना, उतना, जितना, कितना, बढ़कर, और, इत्यादि।
(उ) श्रेणी वाचक – थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम से, बारी-बारी से, तिल तिल, एक-एक करके, यथाक्रम, इत्यादि ।
रीतिवाचक क्रिया विशेषण Kriya Visheshan
रीतिवाचक क्रियाविशेषण की संख्या अंनत है। ये मुख्यतः सात प्रकार के होते हैं–
(अ) प्रकार बोधक- ऐसे, वैसे, कैसे, जैसे-तैसे, मानों, यथा-तथा, धीरे, अचानक, सहसा, अनायास, वृथा, सहज, साक्षात्, मेत, सेंतमेंत, योही, हौले, पैदल, जैसे-तैसे, स्वयं, परस्पर, आपही आप एक-साथ, एकाएक, मन से, ध्यान-पूर्वक, सदेह, सुखेन, रीत्यनुसार, क्योंकर, यथाशक्ति, हँसकर, फटाफट, तडतड, फटसे, उलटा, येन-केन-प्रकारेण, अकस्मात्, किंवा, प्रत्युत।
(आ) निश्चय बोधक – अवश्य, सही, सचमुच, निःसंदेह, बेशक, जरूर, अलबत्ता, मुख्य-करके, विशेष-करके, यथार्थ में, वस्तुतः, दरअसल।
(इ) अनिश्चय बोधक – कदाचित् (शायद), बहुत करके, यथा-संभव ।
(ई) स्वीकार बोधक – हाँ, जी, ठीक, सच ।
(उ) कारण बोधक – इसलिए, क्यों, काहे को।
(ऊ) निषेध बोधक – न, नहीं, मत ।
(ऋ) अवधारणा बोधक – को, ही, मात्र, भर, तक, साथ।
संस्कृत क्रिया विशेषण Kriya Visheshan
पूर्वक – ध्यान-पूर्वक, प्रेम-पूर्वक, इत्यादि।
वश – विधि-वश, भय-वश ।
इन (आ) – सुखेन, येन-केन-प्रकारेण, मनसा-वाचा-कर्मणा ।
या – कृपया, विशेषतया ।
अनुसार – रीत्यनुसार, शक्त्यनुसार ।
तः – स्वभावतः, वस्तुतः, स्वत: ।
दा – सर्वदा, सदा, यदा, कदा।
धा – बहुधा, शतधा, नवधा।
श: – क्रमशः, अक्षरशः।
त्र – एकत्र, सर्वत्र, अन्यत्र।
था – सर्वथा, अन्यथा।
वत – पूर्ववत्, तद्वत।
चित् – कदाचित्, किचित्।
मात्र – पति-मात्र, नाम-मात्र, लेश-मात्र।
हिंदी क्रिया विशेषण Kriya Visheshan
ता, ते – दौडता, करता, बोलता, चलते, आते
ए – बैठा, भागा, लिए, उठाए. बैठे, चढ़े।
को – इधर को, दिन को, रात को, अंत को
से – धर्म से, मन से, प्रेम से, इधर से, तब से।
में – संक्षेप मे, इतने में, अंत में।
का – सवेरे का, कल का।
तक – आज तक, यहां तक, रात तक, घर तक।
कर, करके – दौडकर, उठकर, देखकर के, धर्म करके, भक्ति करके, क्योंकर।
भर – रातभर, पलभर, दिनभर।
नीचे लिखे प्रत्ययों और शब्दों से सार्वनामिक क्रियाविशेषण बनते हैं-
ए – ऐसे, कैसे, जैसे, जैसे, तैसे, थोड़े।
हाँ – यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, तहाँ।
धर – इधर, उधर, जिधर, किधर।
यो – यो, त्यों, ज्यो, क्यों।
लिए – इसलिए, जिसलिए, किसलिए।
ब – अब, तब, कब, जब।
स्रोत – हिंदी व्याकरण – पं. कामताप्रसाद गुरु