अवधी भाषा Avadhi Bhasha का विकास व रचनाएं
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काव्य भाषा के रूप में अवधी का उदय और विकास
अवधी अर्धमगधी अपभ्रंश से विकसित है।
यह पूर्वी हिंदी बोली की यह प्रतिनिधि बोली है। इसके अन्य नाम – कोसली, पूरबिया, बैंसवाड़ी है।
भाषा के रूप में अवधी भाषा का प्रथम स्पष्ट उल्लेख सर्वप्रथम ‘खालिकबारि’ (अमीर खुसरो) तथा दूसरा प्रयोग ‘उक्तिव्यक्तिप्रकरण’ (दामोदर शर्मा) में मिलता है।
‘उक्तिव्यक्तिप्रकरण’ में 9-13वीं सदी की बोलियों के नमूने को कोसली तथा अपभ्रष्ट कहा गया है।
कोसली का उल्लेख ‘कुवलयमाला’ (9वी सदी) ग्रंथ में मिलता है
कोसल प्रदेश (लखीमपुरी, खेरी, बहराइच, गोडा. बाराबंकी लखनक, सीतापुर, उन्नाव, फैजाबाद, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली ) की बोली होने कारण कोसली नामकरण हुआ है।
बैंसवाड़ा अवध का एक भाग मात्र होने के कारण इसका नामकरण बैसवाड़ी हुआ।
अवधी का प्रथम ज्ञात काव्य ‘लोरकहा’ या ‘चंदायन’ (मुल्ला दाऊद,1979 ई) है।
जायसी अवधी के प्रथम कवि हैं, जिनके ग्रंथ ‘पद्मावत’ में अवधी अपने ठेठ रूप में प्रयुक्त होने के उपरांत भी अभिव्यंजना की दृष्टि से अत्यन्त सशक्त है।
तुलसीदास हिंदी के एकमात्र कवि हैं, जिन्होंने ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं में साधिकार लिखा है।
सूफी काव्य की भाषा प्रायः अवधी है। शुक्लजी के अनुसार अनुराग बासुरी की भाषा सभी सूफी रचनाओं में बहुत अधिक संस्कृत गर्भित है।
शुक्लजी नूर मुहम्मद को सूफी काव्य-परंपरा का अंतिम कवि मानते हैं।
अवधी की प्रसिद्ध रचनाएँ
चंदायन (1370)- मुल्ला दाऊद
हरिचरित (1400 ई. के बाद) -लालदास
रामजन्म (15वीं सदी का अंतिम चरण) सूरजदास
सत्यवती कथा (1501) – ईश्वरदास
मृगावती (1503) – कुतुबन
पद्मावत (1527-1540), अखरावट, आखिरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा (चित्रावत) मसलानामा – जायसी
मधुमालती (1545-) मंझन
बरवै रामायण, रामललानहछू (पूर्वी अवधी) – तुलसी
जानकी मंगल, पार्वती मंगल (पश्चिमी अवधी)- तुलसी
रामचरितमानस (1576 ) (बैसवाड़ी अवधी)- तुलसीदास
अवध विलास- लालदास
सीतायन – रामप्रियाशरण
अवध सागर – जानकी रसिकशरण
रामाश्वमेघ – मधुसूदनदास
कवितावली, रामायण, रामचरित – रामचरणदास
भावनापचीसी, समय प्रबंच, माधुरी प्रकाश – कृपाराम प्रेमप्रधान
सियाराम रसमंजरी- जानकी चरण
बरवै नायिका भेद (1600 ई.) रहीम
चित्रावली (1613 ई.) – उसमान
रसरतन (1618 ई.) – पुहकर
ज्ञानदीप (1619 ई.) – शेखनबी
कनकावती, कामलता, मधुकर, मालती, रतनावती छीता- न्यामत खाँ (जानकवि) (1659-1707) (21 प्रेमाख्यानक काव्य, कुल रचनाएँ 70)
पुहुपावती (1669 ई.)- दुखहरन दास
पुहुपावती (1725)- हुसैन अली
हंस जवाहिर (1736 ई.) – कासिमशाह
इंद्रावती- (1744)- नूर मुहम्मद
अनुराम बांसुरी (1764), नल दमन (1764-65)- नूर मुहम्मद
युसूफ जुलेखा- (1790) शेख निसार
अखरावटी, प्रेमचिनगारी (19वीं सदी का पूर्वाद्ध) शाह नजफ सलोनी
नूरजहाँ (1905)- ख्वाजा अहमद
माया प्रेम रस (1915)- शेख रहीम
प्रेम दर्पण (1917)- कवि नसीर
रामध्यान मंजरी- अग्रदास
अष्टयाम- नाभादास
हनुमन्नाटक- हृदयराम
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‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत
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