सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa प्रथम हिन्दी कवि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व, जीवन परिचय, रचनाएं, भाषा शैली, 84 सिद्धों के नाम एवं प्रमुख कथन
हिंदी साहित्य का आरंभिक कवि सरहपा को माना जाता है।
यह 84 सिद्धों में प्रथम माने जाते हैं।
सरहपा के बारे में चर्चा करने से पहले सिद्ध संप्रदाय की संक्षिप्त जानकारी आवश्यक है।
सामान्य रूप से जब कोई साधक साधना में प्रवीण हो जाता है और विलक्षण सिद्धियां प्राप्त कर लेता है तथा उन सिद्धियों से चमत्कार दिखाता है, उसे सिद्ध कहते हैं।
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लगभग आठवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म से सिद्ध संप्रदाय का विकास हुआ था।
बहुत संप्रदाय विघटित होकर दो शाखाओं- हीनयान तथा महायान में बँट गया।
कालांतर में महायान पुनः दो उपशाखाओं में विभाजित हुआ-
(क) वज्रयान
(ख) सहजयान
इन्हीं शाखाओं के अनुयाई साधकों को सिद्ध कहा गया है।
वज्रयानियों का केंद्र श्री पर्वत रहा है।
सिद्धों के समय को लेकर विद्वानों में मतभेद है।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने सिद्धों का समय सातवीं शताब्दी स्वीकार किया है।
डॉ रामकुमार वर्मा ने इनका समय संवत् 797 से 1257 तक माना है।
जबकि आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनका समय दसवीं शताब्दी स्वीकार किया है।
सिद्धों की संख्या
संख्या 84 मानी जाती है।
तंत्र साधना में 84 का गूढ़ तांत्रिक अर्थ तथा विशेष महत्व होता है।
योग तथा तंत्र में आसन भी 84 माने गए हैं।
84 सिद्धों का संबंध 84 लाख योनियों से भी माना जाता है।
काम शास्त्र में 84 आसन भी स्वीकार किए गए हैं।
हिंदी साहित्य कोश के अनुसार 12 राशियों तथा 7 नक्षत्रों का गुणनफल भी 84 होता है।
उस समय प्रत्येक संप्रदाय 84 की संख्या को महत्व देता था।
सिद्धों का 84 ही होने का कोई पुष्ट प्रमाण नहीं मिलता है।
डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा उपलब्ध करवाई गई 84 सिद्धों की सूची इस प्रकार है-
संख्या
(1) लुइपा – कायस्थ, (2) लीलापा, (3) विरूपा, (4) डोम्बिपा – क्षत्रिय, (5) शबरपा- क्षत्रिय, (6) सरहपा – ब्राह्मण, (7) कंकालीपा – शूद्र, (8) मीनपा- मछुआ, (9) गोरक्षपा, (10) चोरंगिपा – राजकुमार, (11) वीणापा – राजकुमार, (12) शान्तिपा – ब्राह्मण, (13) तंतिपा तँतवा, (14) चमारिपा – चर्मकार, (15) खड्गपा – शूद्र, (16) नागार्जुन – ब्राह्मण, (17) कण्हपा – कायस्थ, (18) कर्णरिपा, (19) थगनपा – शूद्र, (20) नारोपा – ब्राह्मण,
(21) शलिपा – शूद्र, (22) तिलोपा-ब्राह्मण, (23) छत्रपा-शूद्र, (24) भद्रपा- ब्राह्मण, (25) दोखंधिपा, (26) अजोगिपा – गृहपति, (27) कालपा, (28) धम्मिपा – धोबी, (29) कंकणपा – राजकुमार, (30) कमरिपा, (31) डेंगिपा – ब्राह्मण, (32) भदेपा, (33) तंधेपा – शूद्र, (34) कुक्कुरिपा – ब्राह्मण, (35) कुचिपा – शूद्र, (36) धर्मपा – ब्राह्मण, (37) महीपा – शूद्र, (38) अचितपा – लकड़हारा, (39) भलहपा क्षत्रिय, (40) नलिनपा, (41) भुसुकिपा – राजकुमार,
(42) इन्द्रभूति – राजा, (43) मेकोपा – वणिक्, (44) कुठालिपा, (45) कमरिपा – लोहार, (46) जालंधरपा – ब्राह्मण, (47) राहुलपा- शूद्र(48) मेदनीपा(49) धर्वरिपा, (50) धोकरिपा – शूद्र, (51) पंकजपा – ब्राह्मण, (52) घंटापा – क्षत्रिय, (53) जोगीपा डोम, (54) चेकुलपा- शूद्र, (55) गुंडरिपा – चिड़मार, (56) लुचिकपा – ब्राह्मण, (57) निर्गुणपा – शूद्र, (58) जयानन्त – ब्राह्मण, (59) चर्पटीपा – कहार, (60) चम्पकपा, (61) भिखनपा – शूद्र, (62) भलिपा – कृष्ण घृत वणिक्, (63) कुमरिपा, (64) चवरिपा, (65) मणिभद्रा – (योगिनी) गृहदासी, (66) मेखलापा (योगिनी) गृहपति कन्या, (67) कनपलापा (योगिनी) गृहपति कन्या, (68) कलकलपा – शूद्र, (69) कंतालीपा – दर्जी, (70) धहुलिपा – शूद्र, (71) उधलिपा – वैश्य, (72) कपालपा – शूद्र, (73) किलपा – राजकुमार,(74) सागरपा–राजा(75) सर्वभक्षपा – शूद्र, (76) नागबोधिपा- ब्राह्मण,(77) दारिकपा- राजा, (78) पुतुलिपा- शूद्र, (79) पनहपा- चमार, (80) कोकालिपा – राजकुमार, (81) अनंगपा -शूद्र, (82) लक्ष्मीकरा – (योगिनी) राजकुमारी, (83) समुदपा, (84) भलिपा – ब्राह्मण । सिद्धों के नाम के साथ आदर सूचक शब्द ‘पा’ जुड़ता है।
डॉ रामकुमार वर्मा सरहपा को हिंदी का प्रथम कवि स्वीकार करते हुए, उनकी कविता में हिंदी कविता के आदि रूप का अस्तित्व स्वीकार किया है। उनके मत से अन्य प्रमुख साहित्यकार भी सहमत नजर आते हैं।
प्रथम हिन्दी कवि-सिद्ध सरहपा व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सरहपा सिद्धों में प्रथम सिद्ध माने जाते हैं। इन्होंने ही सिद्ध संप्रदाय का प्रवर्तन किया।
कतिपय विद्वान मानते हैं कि सरहपा ने ही महामुद्रा साधना का प्रथम अभ्यास किया तथा इसमें सिद्धि प्राप्त की।
सरहपा के जन्म तथा मृत्यु के विषय में पर्याप्त जानकारी का अभाव है लेकिन कुछ साक्ष्यों के आधार पर उनके समय का अनुमान लगाया जाता है।
डॉ राहुल सांकृत्यायन के मतानुसार सरहपा आठवीं शताब्दी (769) के लगभग वर्तमान थे।
डॉ ग्रियर्सन, शिव सिंह सेंगर, मिश्र बंधु,चंद्रधर शर्मा गुलेरी, हजारी प्रसाद द्विवेदी तथा डॉ रामकुमार वर्मा राहुल जी से दूर तक सहमत हैं।
सरहपा के कई नाम सरोरुह, वज्र, सरोवज्र, पद्म, पद्मवज्र तथा राहुलभद्र आदि मिलते हैं।
सिद्धि प्राप्त करने से पूर्व इनका नाम राहुल भद्रथा, बाद में सरहपा हुआ।
तिब्बत में प्रचलित के किंवदंती के अनुसार सरहपा का जन्म उड़ीसा में हुआ था।
डॉ राहुल सांकृत्यायन ‘दोहाकोश’ की भूमिका में सरहपा का जन्म स्थान राज्ञी नामक गांव को माना है, परंतु वर्तमान में इस नाम का कोई गांव नहीं है।
विद्वानों का मत है कि यह गांव शायद बिहार के भागलपुर के आस-पास रहा होगा।
इन्हे वेद वेदांगों में बचपन से ही विशेष रुचि थी।
मध्यप्रदेश में इन्होंने त्रिपिटकों का अध्ययन किया और बौद्ध धर्म में दीक्षित होकर नालंदा आ गए, वहां से महाराष्ट्र पहुंचे और महामुद्रा योग में सिद्धि प्राप्त कर सिद्ध कहलाए।
सरहपा और उनके समकालीन साहित्य पर अनेक विद्वानों ने शोध कार्य किया है जिनमें मिशेल, हरमन याकोबी, चन्द्रमोहन घोष, महामहोपाध्याय पण्डित विधुशेखर शास्त्री, महामहोपाध्याय पं. हरप्रसाद शास्त्री, डॉ. प्रबोधचन्द्र बागची, मुनि जिनविजय, डॉ शहीदुल्ला, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन आदि मुख्य हैं।
इनके प्रयासों से ही आज इस काल का साहित्य थोड़ा बहुत हमें उपलब्ध है।
सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa की रचनाएं
सरहपा ने लगभग 32 ग्रंथों की रचना कीजिनमें से दोहाकोश इनकी श्रेष्ठ रचना मानी जाती है।
दोहाकोश की भूमिका में राहुल सांकृत्यायन ने 7 कृतियों की एक सूची दी है, जिन्हें सरहपा की रचनाएं कहा जा सकता है।
इसके अतिरिक्त दोहाकोश की भूमिका में ही राहुल जी ने सरहपा की संभावित 16 अन्य कविताओं की सूची भी दी है।
सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa के लिए प्रमुख कथन
“आज की भाषा में अबनार्मल प्रतिभा के धनी थे मूड आने पर वह कुछ गुनगुनाने लगते। शायद उन्होंने स्वयं इन पदों को लेखबद्ध नहीं किया। यह काम उनके साथ रहने वाले सरह के भक्तों ने किया। यही कारण है, जो ‘दोहा-कोश के छन्दों के क्रम और संख्या में इतना अन्तर मिलता है। सरह जैसे पुरुष से यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि वह अपनी धर्म की दूकान चलाएगा, पर, आगे वह चली और खूब चली, इसे कहने की आवश्यकता नहीं।” –महापंडित राहुल सांकृत्यायन
“जब उन्हें वहाँ का जीवन दमघोंटू लगने लगा, तो उन्होंने सब कुछ को लात मारी, भिक्षुओं का बाना छोड़ा, अपनी नहीं, किसी दूसरी छोटी जाति की तरुणी को लेकर खुल्लमखुल्ला सहजयान का रास्ता पकड़ा।” –महापंडित राहुल सांकृत्यायन
“सिद्ध-सामंत युग की कविताओं की सृष्टि आकाश में नहीं हुई है वे हमारे देश की ठोस धरती की उपज हैं। इन कवियों ने जो खास-खास शैली भाव को लेकर कविताएँ की, वे देश की तत्कालीन परिस्थितियों के कारण ही।” –महापंडित राहुल सांकृत्यायन
“आक्रोश की भाषा का पहला प्रयोग सरहपा में ही दिखाई देता है।“ –डॉ. बच्चन सिंह
सरहपा की प्रमुख पंक्तियाँ–
- पंडिअ सअल सत्त बक्खाणइ। देहहि रुद्ध बसंत न जाणइ।
अमणागमण ण तेन विखंडिअ। तो विणिलज्जइ भणइ हउँ पंडिय।।
- जहि मन पवन संचरइ, रवि ससि नाहि पवेश।
तहि वत चित्त विसाम करु, सरेहे कहिअ उवेश।।
- घोर अधारे चंदमणि जिमि उज्जोअ करेइ।
परम महासुह एषु कणे दुरिअ अशेष हरेइ।।
प्रथम हिन्दी कवि-सिद्ध सरहपा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व, जीवन परिचय, रचनाएं, भाषा शैली, 84 सिद्धों के नाम एवं प्रमुख कथन के बारे में जानकारी
स्रोत पुस्तकें–
दोहकोश
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर (हिंदी)की पाठ्य सामग्री
हिंदी साहित्य का इतिहास- डॉ नगेंद्र
हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास – डॉ बच्चन सिंह
हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली (खंड 3)
इन्हें भी अवश्य पढें-
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