मैथिल कोकिल विद्यापति Maithil Kokil Vidyapati
मैथिल कोकिल विद्यापति Maithil Kokil Vidyapati जीवन-परिचय, उपाधियाँ, रचनाएँ, विद्यापति श्रृंगारिक या भक्त कवि, प्रमुख पंक्तियां, प्रमुख कथन
जीवन-परिचय : मैथिल कोकिल विद्यापति Maithil Kokil Vidyapati
विद्यापति के जीवन के संबंध में विद्वानों में पर्याप्त मत भेद है। विद्वानों ने शोध और खोजों से जो रूप रेखा बताई है, वह उनकी रचनाओं में प्राप्त अन्तःसाक्ष्यों और अन्य साक्ष्यों या किंवदंतियों पर आधारित है। रचनाओं में प्राप्त इन्हीं संकेतों और बहि:साक्ष्य के आधार पर विद्यापति का जीवन चरित्र इस प्रकार था-
जन्म आदि
कवि शेखर, विद्यापति को बिहार और बंगाल में ही नहीं, संपूर्ण हिंदी-क्षेत्र में असाधारण लोकप्रियता प्राप्त हुई, किंतु दुर्भाग्यवश उनके जीवन-मरण-काल के संबंध में विद्वज्जन एकमत नहीं हैं-
डॉ जयकांत मिश्र ने उनका जन्म 1350 ई. में,
डॉ. सुभद्र झा ने 1352 में,
महामहोपाध्याय पं. हरप्रसाद शास्त्री ने 1357 ई. में,
डॉ.नागेन्द्र नाथ गुप्त ने 1358 ई. में,
डॉ.बाबूराम सक्सेना ने अनुमानतः 1360 ई. में,
डॉ.उमेश मिश्र ने 1368 ई. में और
डॉ.विमानबिहारी मजूमदार ने 1380 ई. में माना है।
मृत्यु
डॉ.सुभद्र झा ने उनका मरणकाल 1448 ई.,
डॉ.जयकांत मिश्र ने 1450 ई.,
डॉ.विमानबिहारी मजूमदार ने 1460 ई. के लगभग और
डॉ. उमेश मिश्र ने 1475 ई. माना है। अतः यह कहा जा सकता है कि विद्यापति 1350 ई. से 1460 ई. के मध्य विद्यमान थे।
वंश परम्परा
विद्यापति के पूर्वजों का परिचय तत्कालीन शिलालेखों, ताम्रपत्रों और पंजी प्रबन्धों से प्राप्त होता है। इनका समस्त कुल पूर्वज विद्वता से परिपूर्ण था, तथा सभी ने किसी न किसी ग्रंथ का प्रणयन किया था।
डा. सुभद्र झा ने लिखा है- “विद्वानों के ऐसे यशस्वी परिवार में कवि विद्यापति का जन्म हुआ जो अपने परम्परागत विद्या ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था।”
कवि कुल शेखर विद्यापति के पूर्वज मैथिल ब्राह्मण थे। इनके मूल वंश का नाम विसईबार था। इनके पूर्वज अपने आश्रयदाताओं के यहां उच्च पदों पर आसीन रहे हैं, अतः इनके पूर्वजों को ठाकुर की उपाधि प्राप्त हुई।
विद्यापति के वंश के आदि पुरुष विश्व प्रसिद्ध कथा पंचतंत्र के लेखक पंडित विष्णु शर्मा थे। कवि की वंशावली इस प्रकार से है-
राज्याश्रय
विद्यापति के पूर्वजों का मिथिला के राजाओं से अच्छा संबंध था।
विद्यापति का अधिकांश जीवन मिथिला के राजाओं के आश्रय में बीता।
सभी राजाओं और रानियों ने विद्यापति का खूब आदर किया। परंतु राजा शिवसिंह से विद्यापति का घनिष्ठ संबंध रहा। विद्यापति शिवसिंह को साक्षात नारायण और रानी लक्ष्मी देवी (लखिमा देवी) को लक्ष्मी मानते थे।
शिवसिंह ने विद्यापति को विपसी ग्राम दिया। इसके अतिरिक्त विद्यापति ओइनवार वंशीय राजा देवी सिंह, कीर्ति सिंह तथा भैरवसिंह के राजाश्रय में रहे।
विद्यापति की उपाधियाँ: मैथिल कोकिल विद्यापति Maithil Kokil Vidyapati
कवि विद्यापति में अद्भुत कवित्व शक्ति थी, जिससे मुग्ध होकर लोगों ने उन पर उपाधियों की वर्षा की।
कीर्ति सिंह के शासनकाल में वे अल्पवयस्क होने के कारण ‘खेलन कवि’ के नाम से प्रसिद्ध रहे।
राजा शिवसिंह ने उन्हे “अभिनवजयदेव’ और “महाराज पंडित” की उपाधियाँ प्रदान की।
इन उपाधियों के अतिरिक्त उन्हे “सुकवि कंठहार, राजपंडित, सरस कवि, कवि रत्न, कवि शेखर, नवकविशेखर, कवि कंठहार, सुकवि, नवजयदेव आदि उपाधियाँ भी प्राप्त हुई।
काव्य प्रतिभा एवं सरस वर्णन से ओत प्रोत होकर बादशाह नसरत शाह ने विद्यापति को “कवि शेखर’ की उपाधि प्रदान की।
रचनाएँ
विद्यापति संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, मैथिली, ब्रजबुलि, बंगला और हिंदी के महापंडित थे। उन्होंने संस्कृत में कई ग्रंथ लिखे। इनकी रचनाएँ संस्कृत, अवहट्ट और मैथिली भाषाओं में प्राप्त होती है। रचनाओं का विवरण इस प्रकार है-
संस्कृत की रचनाएँ
भूपरिक्रमा
पुरुषपरीक्षा
लिखनावली
शैव सर्वस्वसार
शैवसर्वस्वसार-प्रमाणभूत पुराणसंग्रह
गंगावाक्यावली
विभागसार
दानवाक्यावली
दुर्गाभक्तितरंगिणी
गया पत्तलक
वर्षकृत्य
मफिमंजरी
अवहट्ट की रचनाएँ
कीर्तिलता
कीर्तिपताका
मैथिली की रचनाएँ
पदावली
गोरक्ष विजय (नाटक)
विद्यापति श्रृंगारिक या भक्त कवि
भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में श्रृंगारिक काव्य पदावली की रचना करने के कारण कुछ विद्वान इन्हें श्रृंगारिक कवि समझते हैं तो कुछ विद्वान इन्हें भक्त कवि समझते हैं। विद्यापति के श्रृंगारिक या भक्त कवि होने पर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद विद्यमान है यह मतभेद इस प्रकार हैं-
श्रृंगारिक कवि मानने वाले विद्वान
महामहोपाध्याय पंडित हरप्रसाद शास्त्री
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
सुभद्र झा
डॉ रामकुमार वर्मा
रामवृक्ष बेनीपुरी
भक्त कवि मानने वाले विद्वान
बाबू बृज नंदन सहाय
बाबू श्याम सुंदर दास
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
रहस्यवादी कवि मानने वाले विद्वान
जॉर्ज ग्रियर्सन
डॉ नागेंद्र नाथ गुप्त
जनार्दन मिश्र
विद्यापति की प्रमुख पंक्तियां
“देसिल बअना सब जन मिट्ठा। तें तैं सन जंपओ अवहट्ठा।”
“रज्ज लुद्ध असलान बुद्धि बिक्कम बले हारल। पास बइसि बिसवासि राय गयनेसर मारल ॥”
“मारत राणरोल पडु, मेइरि हा हा सद्द हुअ।सुरराय नयर नरअर-रमणी बाम नयन पप्फुरिअ धुअ॥”
“कतहुँ तुरुक बरकर। बार जाए ते बेगार धर॥धरि आनय बाभन बरुआ। मथा चढाव इ गाय का चरुआ।हिन्दू बोले दूरहि निकार। छोटउ तुरुका भभकी मार।”
“जइ सुरसा होसइ मम भाषा।जो जो बन्झिहिसो करिहि पसंसा॥”
“जाति अजाति विवाह अधम उत्तम का पारक।”
“पुरुष कहाणी हौं कहौं जसु पंत्थावै पुन्नु।”
“बालचंद विज्जावहू भाषा।दुहु नहि लग्गइ दुज्जन हासा॥”
“खने खने नयन कोन अनुसरई।खने खने वसंत धूलि तनु भरई।”
” सुधामुख के विहि निरमल बाला।अपरूप रूप मनोभव-मंगल, त्रिभुवन विजयी माला॥
“सरस वसंत समय भला पावलि दछिन पवन वह धीरे, सपनहु रूप बचन इक भाषिय मुख से दूरि करु चीरे॥”
विद्यापति के लिए प्रमुख कथन
‘जातीय कवि’ -डॉ बच्चन सिंह
‘श्रृंगार रस के सिद्ध वाक् कवि’ -आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
‘आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गए हैं उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने गीत गोविंद को अध्यात्मिक संकेत बताया है वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी’ -आचार्य शुक्ल
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
महामहोपाध्याय पंडित हरप्रसाद शास्त्री ने विद्यापति को पंचदेव उपासक माना है।
हिंदी में सर्वप्रथम विशुद्ध गेयपद लिखने का श्रेय विद्यापति को है।
विद्यापति हिंदी के प्रथम कृष्ण भक्त कवि हैं तथा कृष्ण गीति परंपरा का प्रवर्तक माना जाता है।
यह शैव मतानुयायी थे।
सर्वप्रथम जाॅर्ज ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक मैथिली क्रिस्टोपैथी में पदावली को भक्ति परक रचना माना है।
डॉ रामकुमार वर्मा ने पदावली की श्रृगारिक्ता की तुलना खजुराहो के मंदिर से की है।
निराला ने पदावली के श्रृंगारिक पदों की मादकता को नागिन की लहर कहा है।
कीर्ति लता की रचना भृंग-भृंगी संवाद के रूप में हुई है।
स्रोत
- विद्यापति-शिव प्रसादसिंह
- विद्यापति-विमानबिहारी मजूमदार
- विद्यापति के सुभाषित–कमल नारायण झा ‘कमलेश’
- विद्यापति पदावली डॉ. नागेंद्र नाथ गुप्त
- हिंदी साहित्य का इतिहास – डॉ नगेंद्र
- हिंदी साहित्य का इतिहास – आचार्य शुक्ल
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