रीतिकालीन छंदशास्त्र संबंधी ग्रंथ

रीतिकालीन छंदशास्त्र संबंधी ग्रंथ

रीतिकाल में काव्यशास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथों की रचना हुई। यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के विभिन्न अंगों को लेकर लिखे गए। इनमें से कुछ ग्रंथ सर्वांग निरूपक ग्रंथ थे जबकि कुछ विशेषांग निरूपक थे। इस आलेख में रीतिकालीन छंदशास्त्र संबंधी ग्रंथ की जानकारी।

विशेषांग निरूपक ग्रंथों में ध्वनि संबंधी ग्रंथ, रस संबंधी ग्रंथ, अलंकार संबंधी ग्रंथ, छंद शास्त्र संबंधी ग्रंथ, इत्यादि ग्रंथों का प्रणयन हुआ।

छंद ― छंदशास्त्र की व्यवस्थित परंपरा का सूत्रपात छंदशास्त्र के प्रवर्त्तक पिगलाचार्य के छंद सूत्र’ (ई. पू. 200 के लगभग) से माना जाता है।

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रीतिकालीन छंदशास्त्र संबंधी ग्रंथ

रीतिकालीन हिन्दी के छंदशास्त्र संबंधी ग्रंथ

1. छंदमाला – केशवदास (हिंदी में छंदशास्त्र की प्रथम रचना)

2. वृत्तकौमुदी / छंदसार (पिंगल-संग्रह) – मतिराम

3. छंदविचार (17वीं श.ई. पूर्वा.) – चिंतामणि

4. वृत्तविचार (1671 ई.)- सुखदेव

5. छंदविलास या श्रीनाग पिंगल- (1703 ई.) – माखन

6. छंदोर्णव (1742 ई.) – भिखारीदास

7. छंदसार (1772 ई.) – नारायणदास

8. वृत्तविचार (1799 ई.) दशरथ

9. वृत्ततरंगिणी (1816 ई.) रामसहाय

10. वृत्तचंद्रिका (1801 ई.) कलानिधि

11. छंदसारमंजरी (1801 ई.) पद्माकर

12 पिंगलप्रकाश (1801 ई.) नंदकिशोर

13. छंदोमंजरी (1883 ई.) गदाधर भट्ट

14. छंदप्रभाकर (1922 ई.) जगन्नाथ प्रसाद भानु

15. रसपीयूषनिधि (1737 ई.) सोमनाथ

16. शब्दरसायन – देव

17. फजल अली प्रकाश फजल

आधुनिक युग के छंदशास्त्रीय ग्रंथ

18. पिंगलसार – नारायण प्रसाद

19. पद्म रचना – रामनरेश त्रिपाठी

20. नवीन पिंगल – अवध उपाध्याय

21. छंदशिक्षा – परमेश्वरानंद

22 पिंगल पीयूष – परमानंद शास्त्री

23. हिंदी छंद प्रकाश – रघुनंदन शास्त्री

रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ

पर्यायवाची शब्द (महा भण्डार)

रीतिकाल के राष्ट्रकवि भूषण का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय

अरस्तु और अनुकरण

कल्पना अर्थ एवं स्वरूप

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

संस्मरण और रेखाचित्र

कामायनी के विषय में कथन

कामायनी महाकाव्य की जानकारी

अलंकार निरूपक रीतिकालीन ग्रंथ

अलंकार निरूपक रीतिकालीन ग्रंथ

रीतिकाल में काव्यशास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथों की रचना हुई। यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के विभिन्न अंगों को लेकर लिखे गए। इनमें से कुछ ग्रंथ सर्वांग निरूपक ग्रंथ थे जबकि कुछ विशेषांग निरूपक थे। इस आलेख में अलंकार निरूपक रीतिकालीन ग्रंथ की पूरी जानकारी प्राप्त करेंगे।

विशेषांग निरूपक ग्रंथों में ध्वनि संबंधी ग्रंथ, रस संबंधी ग्रंथ, अलंकार संबंधी ग्रंथ, छंद शास्त्र संबंधी ग्रंथ, इत्यादि ग्रंथों का प्रणयन हुआ।

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अलंकार निरूपक रीतिकालीन ग्रंथ

1. कविप्रिया और रसिकप्रिया ― केशवदास ―

‘कविप्रिया’ में अलंकारों का वर्गीकरण प्रमुख रूप से हुआ है। इसका उद्देश्य काव्य-संबंधी ज्ञान प्रदान करना था अलंकारवादी कवि केशव ने अलंकार का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कहा था कि भूषण बिनु न विराजई कविता, वनिता मित्त।

2. भाषाभूषण ― जसवंत सिंह ―

इसमें अलंकारों का लक्षण और उदाहरण 212 दोहों में वर्णित हुआ है। भाषाभूषण की शैली चंद्रालोक की शैली है।

3. अलंकार पंचाशिका (1690 ई.), ललितललाम ― मतिराम ―

अलंकार पंचाशिका कुमायूँ-नरेश उदोतचंद्र के पुत्र ज्ञानचंद्र के लिए लिखी गई थी जबकि ललितललाम बूँदी नरेश भावसिंह की प्रशंसा में सं. 1716 से 45 के बीच लिखा गया। जिसके क्रम व लक्षण को शिवराज भूषण में अक्षरश: अपनाया गया है।

अलंकार निरूपक रीतिकालीन ग्रंथ

4. शिवराज-भूषण ―

भूषण आलंकारिक कवि कहे जाते हैं। इसके पीछे ‘शिवराज-भूषण’ (1653 ई.) रचना है, जो आलंकारिक है।

5. रामालंकार, रामचंद्रभूषण, रामचंद्रामरण (1716 ई. के आसपास) ― गोप ―

गोप विरचित तीनों रचनाएँ चंद्रालोक की पद्धति पर विरचित हैं।

6. अलंकार चंद्रोदय (1729 ई. रचनाकाल) रसिक सुमति ―

इसका आधार ग्रंथ कुवलयानंद है।

7. कर्णाभरण (1740 ई. रचनाकाल) ― गोविन्द ―

इसकी रचना भाषाभूषण की शैली पर हुई है।

8. कविकुलकण्ठाभरण ― दुलह ―

‘कविकुलकण्ठाभरण’ का आधार ग्रंथ चंद्रलोक एवं कुवलयानंद है।

9. भाषाभरण (रचनाकाल 1768 ई) ― बैरीसाल ―

इस ग्रंथ का आधार कुवलयानंद एवं इसकी वर्णन-पद्धति भाषाभूषण के समान है।

10. चेतचंद्रिका (स. 1840-1870 शुक्लजी के अनुसार) ― गोकुलनाथ

11. पद्माभरण ― पद्माकर ―

पद्माकर द्वारा रचित ‘पद्माभरण’ के आधार चंद्रालोक, भाषाभूषण, कविकुलकण्ठाभरण और भाषाभरण इत्यादि रचनाएँ है।

12. याकूब खां का रसभूषण 1718 ई. एवं शिवप्रसाद का रसभूषण 1822 ई ―

अलंकार और रस दोनों के लक्षण और उदाहरण प्रस्तुत किये गए हैं।

13. काव्यरसायन ― देव का ‘काव्यरसायन’ ग्रंथ एक प्रसिद्ध आलंकारिक ग्रंथ है।

14. अन्य ग्रंथ ― अलंकार गंगा (श्रीपति)

कंठाभूषण (भूपति)

अलंकार रत्नाकर (बंशीधर)

अलंकार दीपक (शंभुनाथ)

अलंकार दर्पण (गुमान मिश्र, हरिनाथ रतन, रामसिंह)

अलंकार मणिमंजरी (ऋषिनाथ)

काव्याभरण (चंदन)

नरेंद्र भूषण (भाण)

फतेहभूषण (रतन)

अलंकार चिंतामणि (प्रतापसाहि)

अलंकार आभा (चतुर्भुज)

अलंकार प्रकाश (जगदीश) इत्यादि।

आधुनिक युग के आलंकारिक-ग्रंथ

1. रामचंद्र भूषण (1890 ई.) लछिराम

2. जसोभूषण / जसवंत भूषण (1950 ई.) ― कविराजा मुरारिदान

3. काव्य प्रभाकर – जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’

4. भारती भूषण-अर्जुनदास केडिया

5. अलंकार मंजरी / मंजूषा – कन्हैयालाल पोद्दार

6. साहित्य परिजात (1940) – पं. शुकदेव बिहारी मिश्र और भतीजे प्रतापनारायण

7. काव्य दर्पण ― रामदहिन मिश्र ― पाश्चात्य अलंकारों – मानवीकरण, ध्वन्यर्थ व्यंजना, विशेषण-विपर्यय को स्वीकार किया।

रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ

पर्यायवाची शब्द (महा भण्डार)

रीतिकाल के राष्ट्रकवि भूषण का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय

अरस्तु और अनुकरण

कल्पना अर्थ एवं स्वरूप

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

संस्मरण और रेखाचित्र

कामायनी के विषय में कथन

कामायनी महाकाव्य की जानकारी

रीतिकाल के रस ग्रंथ

रीतिकाल के रस ग्रंथ

रीतिकाल में काव्यशास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथों की रचना हुई। यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के विभिन्न अंगों को लेकर लिखे गए। इनमें से कुछ ग्रंथ सर्वांग निरूपक ग्रंथ थे जबकि कुछ विशेषांग निरूपक थे। इस आलेख में जानेंगे रीतिकाल के रस ग्रंथ की पूरी जानकारी।

विशेषांग निरूपक ग्रंथों में ध्वनि संबंधी ग्रंथ, रस संबंधी ग्रंथ, अलंकार संबंधी ग्रंथ, छंद शास्त्र संबंधी ग्रंथ, इत्यादि ग्रंथों का प्रणयन हुआ।

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रीतिकाल के रस ग्रंथ

1. रसिकप्रिया ― केशवदास प्रथम रसवादी आचार्य है

इनकी ‘रसिकप्रिया’ एक प्रसिद्ध रस ग्रंथ है।

2. सुंदर श्रृंगार , 1631 ई. ― सुंदर कवि ―

शाहजहाँ के दरबारी कवि सुंदर ने श्रृंगार रस और नायिका भेद का वर्णन इसमें किया है।

3. श्रृंगार मंजरी ― चिंतामणि ―

हिंदी नायिका-भेद के ग्रंथों में ‘श्रृंगार मंजरी’ का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। ‘कविकुलकल्पतरु’ इनकी रसविषयक रचना है। इस ग्रंथ में उन्होंने अपना उपनाम मनि (श्रीमनि) का प्रयोग 60 बार किया है।

4. सुधानिधि 1634 ई. ― तोष ―

रसवादी आचार्य तोष निधि ने 560 छंदों में रस का निरूपण (सुधानिधि 1634 ई.) सरस उदाहरणों के साथ किया है।

5. रसराज ― मतिराम ―

इस ग्रंथ में नायक-नायिका भेद रूप में श्रृंगार का बड़ा सुंदर वर्णन हुआ है।

6. भावविलास, भवानीविलास, काव्यरसायन― देव ―

देव ने केवल श्रृंगार रस को सब रसों का मूल माना है, जो सबका मूल है। इन्होंने सुख का रस शृंगार को माना। काव्य रसायन में 9 रसों का विवेचन भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर हुआ है।

7. रसिक रसाल 1719 ई. ― कुमारमणि भट्ट

8. रस प्रबोध 1798 सं. (1741 ई.) रसलीन ―

इनकी रसनिरूपण संबंधित रचना ‘रसप्रबोध’ में 1115 दोहो में रस का वर्णन है। रसलीन का मूल नाम सैयद गुलाब नबी था।

रीतिकालीन रस ग्रंथ

9. रसचंद्रोदय (विनोद चंदोद्रय दूसरा नाम) ― उदयनाथ कवीन्द्र

10. रस सारांश, श्रृंगार निर्णय ― दास

11. रूप विलास ― रूपसाहि

12. रसिक विलास (1770 ई.) ― समनेस

13. श्रृंगार शिरोमणि (1800 ई.) ― यशवंत सिंह

14. रसनिवास (1782 ई.) ― रामसिंह

15. पद्माकर – ‘जगद्विनोद’ काव्यरसिकों और अभ्यासियों के लिए कंठहार है।

इसकी रचना इन्होंने महाराज प्रतापसिंह के पुत्र जगतसिंह के नाम पर की थी।

16. रसिकगोविन्दानन्दघन ― रसिक गोविंद – काव्यशास्त्र विषयक इनका एकमात्र ग्रंथ है।

17. नवरस तरंग ― बेनी प्रवीन ―

इनका ‘नवरस तरंग’ सबसे प्रसिद्ध श्रृंगार-ग्रंथ है, जिसे शुक्ल ने मनोहर ग्रंथ कहा है। श्रृंगारभूषण, नानाराव प्रकाश-बेनी की अन्य कृतियाँ है।

18. रसिकनंद, रसरंग ― ग्वाल ―

शुक्लर्जी ने लिखा है कि – ‘रीतिकाल की सनक इनमें इतनी अधिक थी कि इन्हे ‘यमुनालहरी’ नामक देवस्तुति में भी नवरस और षड्ऋतु सुझाई पड़ी है।’

19. महेश्वरविलास ― लछिराम ―

महेश्वरविलास नवरस और नायिका-भेद पर आधारित रचना है।

20. रसकुसुमाकर (1894 ई.) ― प्रतापनारायण सिंह –

अयोध्या के महाराज प्रतापनारायण सिंह की ‘रसकुसुमाकर में श्रृंगार रस का सुंदर विवेचन मिलता है।

21. रसकलस (1931 ई.) ― अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ―

हरिऔध की ‘रसकलस’ रचना रीति-परंपरा पर रस-संबंधी एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। हरिऔधजी ने अदभुत रस के अंतर्गत रहस्यवाद की गणना की है। यह इस ग्रंथ की नवीनता है।

रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ

पर्यायवाची शब्द (महा भण्डार)

रीतिकाल के राष्ट्रकवि भूषण का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय

अरस्तु और अनुकरण

कल्पना अर्थ एवं स्वरूप

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

संस्मरण और रेखाचित्र

कामायनी के विषय में कथन

कामायनी महाकाव्य की जानकारी

रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ

रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ

रीतिकाल में काव्यशास्त्र से संबंधित अनेक ग्रंथों की रचना हुई। यह ग्रंथ काव्यशास्त्र के विभिन्न अंगों को लेकर लिखे गए। इनमें से कुछ ग्रंथ सर्वांग निरूपक ग्रंथ से थे जबकि कुछ विशेषांग निरूपक थे। रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ।

विशेषांग निरूपक ग्रंथों में ध्वनि संबंधी ग्रंथ, रस संबंधी ग्रंथ, अलंकार संबंधी ग्रंथ, छंद शास्त्र संबंधी ग्रंथ, इत्यादि ग्रंथों का प्रणयन हुआ।

रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ
रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ

1. कुलपति ― रस रहस्य (1670 ई.) ―

हिंदी रीतिशास्त्र के अंतर्गत ध्वनि के सर्वप्रथम आचार्य कुलपति मिश्र माने जाते हैं।

2. देव ― काव्यरसायन (1743 ई.) ―

देव ने ‘काव्यरसायन’ नामक ध्वनि-सिद्धांत निरूपण संबंधित ग्रंथ लिखा। इसका आधार ध्वन्यालोक ग्रंथ है। इसी ग्रंथ में अभिधा और लक्षणा का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए लिखा- “अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लक्षणालीन ।
अधम व्यंजना रस कुटिल, उलटी कहत नवीन।” ( काव्य रसायन)

3. सूरति मिश्र ― काव्य सिद्धांत (18वीं सदी का उतरार्द्ध) ―

इस ग्रंथ पर मम्मट के काव्यप्रकाश का प्रभाव है। इनका काव्य-संबंधी परिभाषा निजी एवं वैशिष्ट्यपूर्ण है।

4. कुमारमणि भट्ट ― रसिक रसाल (1719 ई.) ―

यह काव्यशास्त्र का एक श्रेष्ठ ग्रंथ है।

5. श्रीपति ― काव्यसरोज (1720 ई.) –

यह मम्मट के काव्यप्रकाश पर आधारित ग्रंथ है।

रीतिकाल के ध्वनि ग्रंथ

6. सोमनाथ ― रसपीयूषनिधि (1737 ई.) ―

सोमनाथ ने भरतपुर के महाराज बदनसिंह हेतु रसपीयूषनिधि की रचना की थी।

7. भिखारीदास ― काव्यनिर्णय (1750 ई.)

इसमें 43 प्रकार की ध्वनियों का निरूपण हुआ है।

8. जगत सिंह ― साहित्य सुधानिधि, (1801 ई.) ―

भरत, भोज, मम्मट, जयदेव, विश्वनाथ, गोविन्दभट्ट, भानुदत्त, अप्पय दीक्षित इत्यादि आचार्यों के ग्रंथों का आधार लेकर यह ग्रंथ सृजित हुआ है।

9. रणधीर सिंह ― काव्यरत्नाकर ―

‘काव्यप्रकाश’ और ‘चंद्रलोक’ के आधार पर तथा कुलपति के रस रहस्य’ ग्रंथ का आदर्श ग्रहणकर ‘काव्यरत्नाकर’ की रचना हुई।

रीतिकालीन ध्वनि ग्रंथ

10. प्रताप साहि ― व्यंग्यार्थ कौमुदी ―

यह व्यंग्यार्थ प्रकाशक ग्रंथ है, जिसमें ध्वनि की महत्ता प्रतिपादित हुई है।

11. रामदास ― कविकल्पद्रुम, (1844 ई.) ―

रामदास ने ध्वनि विषयक ग्रंथ ‘कविकल्पद्रुम’ या ‘साहित्यसार लिखा।

12. लछिराम रावणेश्वर ― कल्पतरु (1890) ―

लछिराम ने गिद्धौर नरेश महाराज रावणेश्वर प्रसाद सिंह के प्रसन्नार्थ 1890 ई. में ध्वनि विषयक रावणेश्वर कल्पतरु’ लिखा।

13. कन्हैयालाल पोद्दार ― रसमंजरी ―

यह ‘रस’ से संबंधित रचना है परन्तु इसका ढाँचा ‘ध्वनि’ पर निर्मित हुआ है। यह रचना गद्य में है जबकि इसके उदाहरण पद्यमय है। इस ग्रंथ पर मम्मट के ‘काव्यप्रकाश’ का प्रभाव है।

14. रामदहिन मिश्र ― काव्यालोक ―

यह आधुनिक काल का एक काव्यशास्त्रीय ग्रंथ है।

15. जगन्नाथ प्रसाद भानु ― काव्यप्रभाकर ―

यह आधुनिक काल का एक काव्यशास्त्रीय ग्रंथ है जिसकी रचना 1910 ई. में हुई।

रीतिकाल की पूरी जानकारी

पर्यायवाची शब्द (महा भण्डार)

रीतिकाल के राष्ट्रकवि भूषण का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय

अरस्तु और अनुकरण

कल्पना अर्थ एवं स्वरूप

राघवयादवीयम् ग्रन्थ

भाषायी दक्षता

हालावाद विशेष

संस्मरण और रेखाचित्र

कामायनी के विषय में कथन

कामायनी महाकाव्य की जानकारी

रीतिकाल की पूरी जानकारी – कवि, रचनाएं, प्रकार, वर्गीकरण, विशेषताएं

रीतिकाल की पूरी जानकारी

इस आलेख में रीतिकाल की पूरी जानकारी एवं कवि तथा रचनाएं, प्रमुख काव्य धाराएं, रीतिकाल का वर्गीकरण तथा विशेषताएं पढेंगे।

रीतिकाल का नामकरण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल को रीतिकाल क्यों कहा जाता है?

हिंदी साहित्य का उत्तर मध्यकाल (1643 ई. – 1842ई. तक लगभग) जिसमें सामान्य रूप से श्रृंगार परक लक्षण ग्रंथों की रचना हुई है रीतिकाल कहलाता है।

नामकरण की दृष्टि से रीतिकाल के संबंध में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है–

अलंकृत काल— मिश्र बंधु

रीतिकाल— आचार्य शुक्ल

कलाकाल— डॉ रामकुमार वर्मा

कलाकाल— डॉ रमाशंकर शुक्ल प्रसाद

श्रृंगारकाल— पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र

रीतिकाल की पूरी जानकारी
रीतिकाल की पूरी जानकारी

सर्वमान्य मान्यता के अनुसार रीतिकाल नाम उपयुक्त है।

सामान्य के संस्कृत के लक्षण ग्रंथों का अनुसरण करके हिंदी में भी रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्ति, रीति, गुण, दोष, ध्वनि, वक्रोक्ति आदि का वर्णन किया गया इसे ही रीतिकाल कहा जाता है।

रीतिकाल के प्रवर्तक कवि एवं काव्य धाराएं

रीतिकाल का वर्गीकरण

रीतिकाल को कितने भागों में बांटा गया है?

रीतिकाल कितने प्रकार के होते हैं?

रीतिकाल के उदय के कारण

अपने आश्रय दाताओं की रुचि के कारण रीतिकालीन साहित्य का उदय हुआ— आचार्य शुक्ल

संस्कृत साहित्य के लक्षण ग्रंथों से प्रेरित होकर विधि साहित्य लिखा गया था— आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

दरबारी संस्कृति होने के कारण कभी हताश और निराश हो गए थे अतः अपनी निराशा को दूर करने के लिए रीति साहित्य का उदय हुआ— डॉ. नगेंद्र

रीतिकाल के पतन के कारण

मंगल की भावना का भाव।

चमत्कार की अतिशयता।

श्रृंगार की अतिशयता।

रीतिकालीन काव्य की प्रवृत्तियां : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीति निरूपण की प्रवृत्ति

काव्य में साहित्य के विविध अंगों पर (रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्ति, गुण, दोष, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति, काव्य लक्षण, काव्य हेतु, काव्य प्रयोजन प्रकाश डाला जाता है वह रीति निरूपण प्रवृत्ति होती है। इसके दो प्रकार हैं—

सर्वांग निरूपण प्रवृत्ति– उपर्युक्त सभी अंगों की विवेचना करना।

विशिष्टांग निरूपण प्रवृत्ति― रस, छंद, अलंकार इन तीनों अथवा किसी एक अंग की विवेचना करना।

श्रृंगार निरुपण― श्रृंगारिक रीतिकाव्य का प्राण है

वीर काव्य तथा राज प्रशस्ति

भक्ति की प्रवृत्ति

नीति

लक्षण ग्रंथों की प्रधानता

कवि तथा आचार्य बनाने की प्रवृत्ति

आलंकारिकता

नारी के प्रति भोगवती दृष्टिकोण

आश्रय दाताओं की प्रशंसा

ब्रजभाषा की प्रधानता

मुक्तक काव्य शैली का प्रधान्य

रीतिकालीन कवियों का वर्गीकरण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल के प्रमुख लक्षण : रीतिकाल की पूरी जानकारी

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा रीतिकालीन कवियों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है―

रीतिबद्ध कवि।

रीतिसिद्ध कवि।

रीतिमुक्त कवि।

रीतिबद्ध कवि

इस वर्ग में वे कवि आते हैं जो रीति के बंधन में बंधे हुए थे और जिन्होंने रीति परंपरा का अनुसरण कर लक्षण ग्रंथों की रचना की।

इस वर्ग के प्रमुख कवियों में चिंतामणि त्रिपाठी, केशवदास, देव, मंडन मिश्र, मतिराम, सुरति मिश्र, कुलपति मिश्र, पद्माकर, भिखारी दास ग्वाल आदि कवि आते हैं।

डॉ नगेंद्र ने इन्हें रीतिकार या आचार्य कवि कहा है।

रीतिबद्ध काव्य की प्रमुख विशेषताएं

रस, छंद, अलंकार आदि तीन आधारों पर लक्षण ग्रंथों की रचना।

कवियों में कवित्व और आचार्यत्व दोनों गुण।

शास्त्र प्रधान काव्य।

पांडित्य के पूर्ण काव्य।

श्रृंगार रस की प्रधानता मांसल श्रृंगार वर्णन।

ब्रजभाषा का प्राधान्य।

मुक्तक शैली।

अलंकारों की प्रधानता।

अंगीरस― श्रृंगार।

रीतिसिद्ध कवि

इस वर्ग में भी कभी आते हैं जिन्होंने रीति ग्रंथों की रचना न करके उसके अनुसार उत्कृष्ट काव्य की रचना की है।

इस वर्ग के प्रमुख कवियों में बिहारी हैं, अन्य कवि पजनेश, रसनिधि, बेनी प्रवीण, निवाज, हटी जी, कृष्ण कवि आदि हैं।

डॉ. नगेंद्र ने इन्हें रीतिबद्ध कवि कहा है

रीतिसिद्ध काव्य की प्रमुख विशेषताएं

श्रृंगार रस की प्रधानता।

भक्ति एवं नीति।

प्रकृति वर्णन।

ब्रजभाषा का माधुर्य।

मुक्तक शैली।

अलंकारों की प्रधानता।

अंगीरस― श्रृंगार।

रीतिमुक्त कवि : रीतिकाल की पूरी जानकारी

वे कवि जिन्होंने न ही तो लक्षण ग्रंथ रखें और न ही उनके नियमों के अनुसार काव्य रचना की, अपितु वे अपनी स्वतंत्र मनोवृति के अनुसार काव्य सृजन करते थे, रीतिमुक्त कवि कहलाए। घनानंद, आलम, बोधा, ठाकुर, द्विज देव आदि प्रमुख रीतिमुक्त कवि है।

रीतिमुक्त काव्य की प्रमुख विशेषताएं

रीतिमुक्त काव्य अनुभूतिप्रवण आत्मप्रधान एवं व्यक्तिपरक काव्य है।

इन कवियों का प्रेम एकांतिक, अनन्यता, तन्मयता आदि संपूर्ण भावों से ओतप्रोत है।

इस काव्य की मूल संवेदना प्रेम है जो वासनात्मक, मांसल और पंकिल न होकर हृदय की अनुभूति और उदात्त भावना पर आधारित है।

रीतिमुक्त कवियों का प्रेम व्यथा प्रधान है, संयोग में भी वियोग की कसक है।

प्रेम की पीर और विरहानुभूति रीतिमुक्त काव्यधारा की आत्मा है।

रीतिमुक्त कवियों ने नारी सौंदर्य का चित्रण स्वस्थ मानसिकता और परिष्कृत रुचि के साथ किया है।

ब्रजभाषा का प्रयोग ।

आत्मपरक मुक्तक शैली।

लोकोक्ति-मुहावरों का प्रयोग।

कवित्त, सवैया, दोहा आदि छंद।

श्रृंगार रस की प्रधानता― श्रृंगार का उदात्त रूप।

प्रेम की पीर का चित्रण।

कृष्ण लीला का प्रभाव।

अलंकारों की प्रधानता।

रीति काव्य का प्रवर्तक : रीतिकाल की पूरी जानकारी

इस संबंध में दो मत प्रचलित है―

डॉ श्याम सुंदर दास और डॉ नगेंद्र केशवदास को रीतिकाल का प्रवर्तक मानते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ला चिंतामणि त्रिपाठी को रीतिकाल का प्रवर्तक कवि स्वीकार करते हैं।

“इसमें संदेह नहीं है कि रीति काव्य का सम्यक समावेश पहले पहल आचार्य केशव ने ही किया………….. पर केशव के 50 वर्षों के पश्चात रीति ग्रंथों की अखंड परंपरा चिंतामणि त्रिपाठी से चली और वह भी एक भिन्न आदर्श के साथ अतः रीतिकाल का आरंभ चिंतामणि त्रिपाठी से मारना चाहिए।” आ. शुक्ल

सर्वमान्य मत के अनुसार केशव ही रीतिकाल के प्रवर्तक कवि हैं।

“हिंदी रीति निरूपण परंपरा का आरंभ कृपाराम की ‘हित तरंगिणी’ से ही माना जाना चाहिए।”― डॉ नगेंद्र

पर्यायवाची शब्द (महा भण्डार)

रीतिकाल के राष्ट्रकवि भूषण का जीवन परिचय एवं साहित्य परिचय

अरस्तु और अनुकरण

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