राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग : संगठन तथा कार्य

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का परिचय, इतिहास, कार्य, अर्थ, संगठन, मुख्य प्रभाग, सदस्यों की पदावधि आदि की पूर्ण जानकारी

“ईश्वर द्वारा निर्मित हवा पानी की तरह सब चीजों पर सबका समान अधिकार होना चाहिए”महात्मा गांधी

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का परिचय

मानवाधिकारों की रक्षा के लिए विश्व में अनेक संगठन कार्य कर रहे हैं।

विभिन्न देशों ने मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए अपने अपने संविधान में प्रावधान किए हैं तथा ऐसे आयोगों की स्थापना की है,

जो उन देशों के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सकें।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन 12 अक्टूबर, 1993 को संसद के एक अधिनियम,

नामतः मानव  अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993(मानव अधिकार (संशोधन) अधिनियम 2006 द्वारा संशोधित) द्वारा हुआ था।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन 1991 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु आयोजित राष्ट्रीय संस्थानों की प्रथम अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किए गये तथा 20 दिसंबर 1993 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 48/134 संकल्प में पृष्ठांकित किए गए पेरिस सिद्धांतों के अनुसार है इस अधिनियम को अधिनियमित करने का कारण मानव अधिकारों का बेहतर संरक्षण एवं संवर्द्धन था।

यह एक ऐसा संस्थान है जो न्यायपालिका का अनुपूरक है और

देश में लोगों के सांविधिक रूप से निहित मानव अधिकारों की रक्षा एवं संवर्द्धन में लगा हुआ है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का अर्थ

अधिनियम के अनुसार मानव अधिकार का अर्थ है

संविधान द्वारा गारंटीकृत या अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविधान में सन्निहित और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय जीवन, स्वतंत्रता, समानता और व्यक्ति विशेष की गरिमा संबंधी अधिकार।

अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाओं का अर्थ

अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाओं का अर्थ है सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाएं: आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदाएं: महिलाओं के प्रति होने वाले हर प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन संबंधी अभिसमय; बच्चों के अधिकार संबंधी अभिसमय और हर प्रकार के नृजातीय भेदभाव का उन्मूलन संबंधी अभिसमय। भारत सरकार ने वर्ष 1979 में सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदा और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार संबंधी अंतर्राष्ट्रीय पारस्परिक संविदा को स्वीकार किया था

महिलाओं के प्रति भेदभाव का उन्मूलन

भारत सरकार ने वर्ष 1993 में महिलाओं के प्रति होने वाले हर प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन संबंधी अभिसमय, वर्ष 1991 में बच्चों के अधिकार संबंधी अभिसमय और वर्ष 1968 में हर प्रकार के नृजातीय भेदभाव का उन्मूमलन संबंधी अभिसमय की अभिपुष्टि की।

यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि भारतीय संविधान उन सभी बिन्दुओं को ध्यान में रखता है जिनका उल्लेख उपरोक्त संविदाओं में किया गया है।

सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदा और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार संबंधी अंतरराष्ट्रीय पारस्परिक संविदा में उल्लिखित कई अधिकार भारतीय नागरिकों को उसी समय उपलब्ध हो गए थे जब भारत स्वतंत्र हुआ था क्योंकि यह अधिकार प्रमुख रुप से संविधान के भाग I और भाग IV में मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत जैसे शीर्ष के तहत दिए गए हैं।

भारत की चिंता का मूर्त रूप

आयोग को स्वतंत्रता, कार्य करने की स्वायत्तता और व्यापक अधिदेश उपलब्ध कराना निर्विवादित रूप से मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की सबसे बड़ी ताकत रही है, जो कि पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्था के गठन और उचित कार्यकरण के लिए आवश्यक है।

भारत का राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के संबंध में भारत की चिंता का मूर्त रूप है।

अपने अस्तित्व से लेकर अब तक भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अनुभव ने यह दर्शाया है कि इसकी संरचना, नियुक्ति प्रक्रिया, अन्वेषण संबंधी शक्तियां, कार्यों का व्यापक विस्तार तथा विशेषज्ञ प्रभाग एवं स्टॉफ से संबंधित स्वतंत्रता और मजबूती, सांविधिक अपेक्षताओं द्वारा गारंटीकृत है।

आयोग का संगठन

आयोग में एक अध्यक्ष, चार पूर्णकालिक सदस्य तथा चार मनोनीत सदस्य हैं।

संविधि में आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति के लिए अर्हता निर्धारित की गई है।

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 3 के अनुसार

(1)”भारत सरकार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के रूप में जानी जाने वाली एक संस्था का, इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में, तथा उसे समनुदेशित कार्यों को निष्पादित करने के लिए गठन करेगी।

(2) राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की संरचना में निम्नलिखित होंगे-

अध्यक्ष

जो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति रहा है।

किंतु मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसारअध्यक्ष पद के लिए उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी योग्य होंगे

एक सदस्य

जो उच्चतम न्यायालय का सदस्य है, या सदस्य रहा है;

एक सदस्य जो उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीशहै, या मुख्यन्यायाधीश रहा है।

दो सदस्य

जिनकी नियुक्ति उन व्यक्तिों में से की जाएगी जिन्हेमानव अधिकारों से संबंधित मामलों का ज्ञान हो,उसका व्यावहारिकअनुभव हो।

किंतु मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार ऐसे सदस्यों की संख्या तीन होगी जिनमें काम से कम एक महिला सदस्य अवश्य हो

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 किधारा 12 के खण्डों (ख) से (ग) में विनिर्दिष्ट कार्यों के निर्वहन के लिए-

(NMC) राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग

(NCSC) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति

(NCST) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग

(NCW) राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्षों

के अतिरिक्तमानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार

(NCBC) राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष

बाल अधिकार संरक्षण आयोग का अध्यक्ष

दिव्यांगों के लिए मुख्य आयुक्त को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य समझा जायेगा।

अतः राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्यों तथा सातमनोनित सदस्यों से होता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा अध्यक्ष, भारत सरकार के गृह मंत्रालय के प्रभारी मंत्री. लोकसभा तथा राज्य सभा में विपक्ष के नेता तथा राज्य सभा के उपसभापति से गठित एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

परन्तु उच्चतम न्यायालय के किसीवर्तमान न्यायाधीश या उच्च न्यायालय केवर्तमान मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किये बिना नही की जा सकती।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति के लिए चयन समिति

  • प्रधानमंत्रीअध्यक्ष
  • लोक सभा का अध्यक्षसदस्य
  • भारत सरकार के गृह मंत्रालय का मंत्री प्रभारीसदस्य
  • लोकसभा में विपक्ष का नेतासदस्य
  • राज्यसभा में विपक्ष का नेतासदस्य
  • राज्यसभा का उपसभापतिसदस्य

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का मुख्यालय तथा बैठकें

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 3 (5) के अनुसार आयोग का मुख्यालय दिल्ली में होगा तथा भारत सरकार की पूर्व अनुमति से भारत के किसी भी अन्य स्थान पर कार्यालय स्थापित किया जा सकता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (प्रक्रिया)विनियम 1994 के विनियम 3 के अनुसार

आयोग कि बैठकें दिल्ली स्थित कार्यालय में संपन्न होगी।

राष्ट्रीय-मानव अधिकार आयोग (प्रक्रिया) विनियम 1994 के विनियम 4 के अनुसार

यदि आयोग आवश्यक और उचित समझे तो आयोग अपनी बैठक भारत में अन्य किसी भी स्थान पर कर सकता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (प्रक्रिया) विनियम 1994 के विनियम 20 के अनुसारअध्यक्ष से पूर्व अनुमति प्राप्त कर यदि कोई सदस्य मुख्यालय से इतर किस स्थान पर कार्य कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में अधिनियम के अंतर्गत जांच के संबंध में पक्षकारों की सुनवाई हो तो आयोग के कम से कम दो सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होगी।

सदस्यों की पदावधि

  1. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 6 (1) के अनुसार अध्यक्ष के रूप में नियुक्त व्यक्ति उस दिनांक से जिसको वह अपना पद धारित करता है से पांच वर्ष की अवधि के लिये अथवा सत्तर वर्ष की आयु तक पद पर बना रहेगा।
    किंतु मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले होतक का होगातथा वह 5 वर्ष के लिए पुनः नियुक्ति का पात्र भी होगा

2. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 6 (2) के अनुसार सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति उस दिनांक से जिसको वह अपना पद धारित करता है से, पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद पर रहेगा तथा पाँच वर्षों की दूसरी अवधि के लिए पुन: नियुक्ति हेतु पात्र होगा।मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अनुसार सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु जो भी पहले होतक का होगा परन्तु यह कि कोई भी सदस्य सत्तर वर्ष की आयु प्राप्त (पूर्ण) करने के बाद पद को धारण नहीं करेगा।

3. मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 कि धारा 6 (3) के अनुसार,

कोई भी व्यक्ति आयोग का अध्यक्ष या सदस्य रह जाने के बाद भारतसरकार अथवा

किसी राज्य सरकार के अधीन आगे और नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों का पद त्याग या पदच्युति

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 5 में आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को पदच्युत करने से संबंधित उपबंध किए गए हैं-

अध्यक्ष या कोई सदस्य राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।

धारा 5 की उपधारा 1 के अनुसार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर पदच्युतकियाजा सकता है-

  • सिद्ध कदाचार/दुर्व्यवहार।
  • अक्षमता के आधार पर।

उक्त प्रकार से पदच्युत किये जाने से पूर्व राष्ट्रपति द्वारा-

  • उच्चतम न्यायालय को निर्देशित किया जाएगा।
  • विहित प्रक्रिया द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा मामले की जांच की जाएगी।
  • जांच की रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।
  • जांच रिपोर्ट में अध्यक्ष या सदस्य के विरुद्ध सिद्ध कदाचार/दुर्व्यवहार अथवा
    अक्षमता सिद्ध होने पर राष्ट्रपति उन्हें पदच्युत कर सकता है।

धारा 5 की उपधारा 2 के अनुसार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर पदच्युतकियाजा सकता है-

I. दिवालिया घोषित कर दिया गया हो।

II. किसी लाभ के पद पर हो विकृत चित्त हो या सक्षम न्यायालय द्वारा इस प्रकार घोषित कर दिया गया हो।

III.  मानसिक और शारीरिक दुर्बलता के कारण पद पर बने रहने के अयोग्य हो गया हो।

IV. किसी ऐसे अपराध के लिए जो राष्ट्रपति की राय में नैतिक अपराध के लिए जो

राष्ट्रपति की राय में नैतिक पतन वाला हो दोष सिद्ध हो गया हो और उसे कारागार की सजा दे दी गयी हो।

जांच से संबधित शक्तियां

आयोग का मुख्य कार्यकारी अधिकारी महासचिव होता है।

जो भारत सरकार के सचिव स्तर का अधिकारी होता है।

आयोग का सचिवालय, महासचिव के सम्पूर्ण दिशानिर्देशों के तहत कार्य करता है।

आयोग को कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर, 1908 के अंतर्गत वे सभी शक्तियां प्राप्त है जो सिविल कोर्ट किसी वाद के विचारण के समय अपनाता है, विशेष रूप से गवाहों की उपस्थिति हेतु समन करने तथा हाजिर करने तथा शपथ पर उनकी जांच करने हलफनामे पर साक्ष्य प्राप्त करने किसी पब्लिक रिकॉर्ड को मांगने अथवा किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से उनकी प्रति मांगने तथा निर्धारित किए गए किसी अन्य मामले के संबंध में उल्लंघन के मामले में आयोग संबद्ध सरकार से उपचारी उपाय करने तथा पीड़ित अथवा मृतक के निकटतम संबंधी को मुआवजा देने के लिए कहता है तथा लोक सेवकों को उनके दायित्व एवं बाध्यताओं की भी याद दिलाता है।

मामले के अनुसार यह अभियोजन हेतु कार्यवाही प्रारम्भ करता है

अथवा संबद्ध व्यक्तियों के विरुद्ध जो भी उचित कार्यवाही हो करने का निदेश देता है।

गंभीर मामलों में स्वतः संज्ञान लेना एक ऐसी अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता जिसका यह अधिकतम उपयोग करता है,

ऐसा यह समाचार-पत्रों तथा मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर करता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के कार्य

आयोग का अधिदेश बहुत व्यापक हैं। मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 12 में दिए गए आयोग के कार्य निम्नानुसार हैं-

स्वप्रेरणा से या किसी पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा या किसी न्यायालय के निदेश पर आयोग को प्रस्तुत की गई याचिका पर

(1) मानव अधिकारों का अतिक्रमण या दुष्प्रेरण किए जाने की, या

(2) ऐसे अतिक्रमण के रोकने में किसी लोकसेवक द्वारा की गई उपेक्षा की शिकायत के बारे में जांच करना।

किसी न्यायालय के समक्ष लंबित किसी कार्यवाही में, जिसमें मानव अधिकारों के उल्लंघन का कोई आरोप शामिल है,

उस न्यायालय के अनुमोदन से हस्तक्षेप करना।

तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में निहित किसी बात के होते हुए भी

राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन किसी जेल या किसी अन्य संस्था का,

जहां व्यक्ति उपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनों के लिए निरुद्ध या दाखिल किए जाते हैं,

वहां के संवासियों के जीवन की परिस्थितियों का अध्ययन करने हेतु और

इस संबंध में सरकार को सिफारिश करने हेतु वहां का दौरा करना।

मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा उपबंधित रक्षोपायों का पुनर्विलोकन करना और उनके प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करना।

*आतंकवाद के कारनामे सहित ऐसे कारकों की पुनरीक्षा करना जो मानव अधिकारों के उपभोग में विघ्न डालती है और समुचित उपचारी उपायों की सिफारिश करना।

मानव अधिकारों से संबंधित संधियों तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों का अध्ययन करना और

उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सिफारिश करना।

मानव अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसे बढ़ावा देना।

समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकारों संबंधी जानकारी का

प्रसार करना और प्रकाशनों, मीडिया, गोष्ठियों और अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से

इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षोपायों के प्रति जागरूकता का संवर्द्धन करना।

मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठनों और संस्थानों के प्रयासों को प्रोत्साहित करना।

ऐसे अन्य कार्य करना, जो मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए इसके द्वारा आवश्यक समझा जाए।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के प्रभाग

आयोग के पांच प्रभाग है, वे हैं-

(i) विधि प्रभाग

(ii) अन्वेषण प्रभाग

(iii) नीति अनुसंधान, परियोजना तथा कार्यक्रम प्रभाग,

(iv) प्रशिक्षण प्रभाग, तथा

(v) प्रशासनिक प्रभाग।

विधि प्रभाग:

आयोग का विधि प्रभाग पीड़ित अथवा उसकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई मानव अधिकार उल्लंघन की शिकायतों पर अथवा हिरासतीय मृत्यु, हिरासत में बलात्कार, पुलिस कार्रवाई में मौत के संबंध में संबंधित प्राधिकारियों से सूचना प्राप्त होने पर दर्ज लगभग 1 लाख मामलों का पंजीकरण तथा निपटारा करता है।

प्रभाग को पुलिस/न्यायिक हिरासत में मौत, रक्षा/अर्द्ध सैनिक बलों की हिरासत में मौत के संबंध में भी सूचना प्राप्त होती है।

आयोग में प्राप्त सभी शिकायतों को एक डायरी सं. दी जाती है तथा उसके बाद शिकायत प्रबंधन एवं सूचना प्रणाली (सी.एम.आई.एस.) सॉफ्टवेयर, जिसे विशेष रूप से इसी उद्देश्य के लिए बनाया गया है, का प्रयोग करके उनकी छानबीन की जाती है तथा प्रक्रिया शुरू की जाती है।

शिकायत का पंजीकरण करने के पश्चात् उन्हें आयोग के समक्ष उसके निर्देशों के लिए रखा जाता है तथा उसके अनुसार, प्रभाग द्वारा उन मामलों में अनुवर्ती कार्रवाई की जाती है, जब तक उनका अंतिम रूप से निपटारा नहीं हो जाता।

विधि प्रभाग

महत्वपूर्ण प्रकृति के मामलों को पूर्ण आयोग द्वारा उठाया जाता है तथा पुलिस हिरासत अथवा पुलिस कार्रवाई में मौत से संबंधित मामलों पर खंड पीठों द्वारा विचार किया जाता है।

कुछ मामलों पर खुली अदालती सुनवाई में आयोग की बैठकों में विचार किया जाता है यह प्रभाग लंबित शिकायतों के निपटान में तेजी लाने तथा मानव अधिकार के मुद्दों पर राज्य प्राधिकारियों को संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से राज्य की राजधानियों मेंशिविर बैठकों का भी आयोजन करता रहा है।

आयोग देश में अनुसूचित जातियों पर होने वाले अत्याचार के संबंध में खुली सुनवाई भी आयोजित कर रहा है कि अनुसूचित जातियों के प्रभावित व्यक्तियों से सीधे सम्पर्क स्थापित हो सके।

आयोग मानव अधिकारों की बेहतर सुरक्षा और संवर्द्धन के लिए उसे संदर्भित विभिन्न विधेयकों/ प्रारूप विधानों पर भी अपनी राय/विचार देता है।

बढ़ता समन्वय

विधि प्रभाग ने एन.एच.आर.सी. एण्ड एचआरडी” ‘बढ़ता समन्वय’ नामक एक पुस्तक का प्रकाशन किया है। इस प्रश्न को समाज के विभिन्न वर्गों से उत्साहवर्धक फीडबैक प्राप्त हो रहे हैं। मानव अधिकार संरक्षण जो एचआरडी से संपर्क करते हैं, उनके लिए एचआरडी (i) मोबाइल न. (ii) फैक्स न.  तथा (iii) ई-मेल: hrd-nhrc@nic-in के जरिए 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं।

इस प्रभाग का मुख्य अधिकारी रजिस्ट्रार (विधि) है, जिसकी सहायता के लिए प्रजेटिंग अधिकारी, एक संयुक्त रजिस्ट्रार तथा कई उप रजिस्ट्रार, सहायक रजिस्ट्रार, अनुभाग अधिकारी तथा अन्य सचिवालय स्टाफ होते है।

अन्वेषण प्रभाग

अन्वेषण प्रभाग का मुखिया पुलिस महानिदेशक की श्रेणी का अधिकारी होता है। इसमें एक उप-महानिरीक्षक एवं तीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हैं। प्रत्येक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अन्वेषण अधिकारियों (इसमें उप अधीक्षक एवं निरीक्षक शामिल है) के समूह का मुखिया है। अन्वेषण अनुभाग के कार्य बहुमुखी हैं जिनका विवरण नीचे दिया गया है।

स्थल निरीक्षण

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की ओर से पूरे देश में मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों का स्थल निरीक्षण तथा उचित कार्यवाही की संस्तुति करता है। अन्वेषण अनुभाग द्वारा किए गए स्थल निरीक्षण से न केवल आयोग के समक्ष सत्य प्रस्तुत होता है बल्कि इससे सभी संबंधितों-शिकायतकर्ताओं, लोक सेवकों आदि को एक संदेश भी जाता है आयोग स्थल निरीक्षण का आदेश विभिन्न लोक प्राधिकारियों को भिन्न-भिन्न मामलों जैसे पुलिस द्वारा अवैध नजरबन्दी, अतिरिक्त न्यायिक हत्या तथा अस्पतालों में सुविधाओं की कमी जिससे मौतों को रोका जा सकता हो. देता है। स्थल निरीक्षण से आम जनता के बीच विश्वास में बढ़ोतरी होती है तथा मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के प्रति उनका विश्वास भी बढ़ता है। अन्वेषण अनुभाग मामलों के मॉनिटरिंग के अलावा मामलों में परामर्श/विश्लेषण, जहां भी किया जाए, अपनी टिप्पणी एवं सुझाव भी देता है।

अभिरक्षा में मौतआयोग द्वारा राज्य प्राधिकारियों के लिए जारी दिशा-निर्देश के अनुसार अभिरक्षा (चाहे वह पुलिस अथवा न्यायिक अभिरक्षा हो) में हुई मौत के मामले में आयोग को 24 घण्टे के भीतर सूचित करना अपेक्षित है। इसके अतिरिक्त, यह प्रभाग पुलिस तथा न्यायिक अभिरक्षा में मौत के साथ-साथ पुलिस मुठभेड़ों में हुई मौतों के संबंध में राज्य प्राधिकारियों से प्राप्त सूचनाओं तथा रिपोटों का विश्लेषण करता है। अन्वेषण अनुभव इस प्रकार की सूचनाओं को प्राप्त करके रिपोर्ट का विश्लेषण मानव अधिकारों के उल्लंघन होने का पता लगाने के लिए करता है। अपने विश्लेषण को अधिक व्यवसायिक एवं उचित बनाने की दिशा में अन्वेषण अनुभाग राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के फॉरेंसिक विशेषज्ञों के पैनल की मदद लेता है।

तथ्य अन्वेषण मामले

अन्वेषण अनुभाग विभिन्न प्राधिकारियों से मामले में तथ्य अन्वेषण रिपोर्ट जैसा कि आयोग द्वारा निर्देशित हो, की मांग करता है अन्वेषण अनुभाग आयोग को यह बताने में सहायता करने के लिए कि क्या कोई मानव अधिकार उल्लंघन हुआ है अथवा नहीं इन रिपोर्टों का गहनता से विश्लेषण करता है। ऐसे मामले जहां प्राप्त रिपोर्ट भ्रामक अथवा वास्तविक नहीं है, आयोग इन पर भी स्थल निरीक्षण का आदेश देता है।

प्रशिक्षण

अन्वेषण अनुभाग के अधिकारी मानव अधिकार साक्षरता एवं मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु उपलब्ध सुरक्षा उपायों की जागरुकता फैलाने के लिए जहां भी उन्हें आमंत्रित किया जाता है उन प्रशिक्षण संस्थानों एवं अन्य मंचों में व्याख्यान देते हैं।

रैपिड एक्शन सेल

वर्ष 2007 से अन्वेषण अनुभाग आयोग में रैपिड एक्शन सेल बनाने के लिए प्रयासरत है। आर.ए.सी. मामलों के तहत अन्वेषण अनुभाग उन मामलों पर विचार करता है जो अतितत्काल प्रकृति के हों जैसे अगले ही दिन बाल विवाह होने की संभावना हो: शिकायतकर्ता को यह भय हो कि उसके रिश्तेदार अथवा दोस्त को पुलिस द्वारा उठाकर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया जाएगा आदि। समग्र रूप से इस प्रकार के मामले अन्वेषण अनुभव आयोग द्वारा तत्काल अनुवर्तन हेतु उठाता है। इसमें प्राधिकारियों/ शिकायतकर्ताओं से तथ्य प्राप्त करने शिकायतकर्ता को विभिन्न प्राधिकारियों का संदर्भ देने तथा त्वरित रूप से उनके जवाब भेजने के लिए कहने के लिए उनसे टेलीफोन पर व्यक्तिगत रूप से बात करना भी शामिल है।

केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु वाद-विवाद प्रतियोगिताः

मानव अधिकारों की जागरुकता एवं इनके प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु अन्वेषण अनुभाग नियमित रूप से वर्ष 1996 से प्रतिवर्ष वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करता आ रहा है। यही नहीं वर्ष 2004 से, जैसा कि माननीय अध्यक्ष द्वारा निदेश दिया गया था, पूरे देश में सी.ए.पी.एफ. की बड़ी संख्या में भागीदारी हेतु अंतिम प्रतियोगिता के लिए रनअप के रूप में जोनवार वाद-विवाद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। जोनल प्रतियोगिताओं के दौरान चुनी गई टीम को सेमीफाइनल तथा फाइनल राउण्ड के लिए केन्द्र में आयोजित प्रतियोगिता के लिए चुना जाता है। प्रतिवर्ष इसमें अभूतपूर्व प्रतिभागिता एवं वाद-विवाद का सर्वोत्तम स्तर देखने को मिलता है।

राज्य पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु वाद-विवाद प्रतियोगिता पुलिस आज उनके दायित्वों के निर्वहन में मानव अधिकारों के सिद्धांतों को मानने के लिए कर्तव्य बाधित है। मानव अधिकारों के दृष्टिकोण से पुलिस बल में निम्न एवं मध्य स्तर अत्यधिक प्रभावित है क्योंकि वे अपने दायित्वों का निर्वहन करते समय प्रत्यक्ष रूप आम जनता के संपर्क में आते हैं। वर्ष 2004 से राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अन्वेषण अनुभाग द्वारा पुलिस कार्मिकों के बीच मानव अधिकार जागरूकता के स्तर को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है जिसकेलिए राज्य पुलिस बल कार्मिकों के लिए वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित करने हेतु राज्य/संघ शासित क्षेत्र को आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान करता है। वर्तमान में आयोग राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों को वाद-विवाद प्रतियोगिता के आयोजन हेतु 15000/- की राशि प्रदान करता है।

नजरबंदी के स्थानों का दौराः

जेलों एवं अन्य संस्थानों जहां लोगों को उपचार, सुधार अथवा संरक्षण के उद्देश्य से नजरबंद अथवा

बंद करके रखा जाता है, उनमें जीवन-यापन की दशाओं से संबंधित बड़ी संख्या में शिकायतें प्राप्त होती है।

अन्वेषण अनुभाग के जांच अधिकारी जब भी आयोग द्वारा निर्देश दिया जाता है,

विभिन्न राज्यों में जेलो एवं अन्य संस्थानों का दौरा करते हैं तथा

विशेष आरोपों के संबंध में तथ्य प्रस्तुत करने के लिए अथवा कैदियों की सामान्य दशाओं अथवा

मानव अधिकारों पर आधारित संवासियों की दशाओं जिस पर

आयोग द्वारा अनुवर्तन आवश्यक हो, से संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

नीति अनुसंधान परियोजना तथा कार्यक्रम प्रभाग

नीति अनुसंधान परियोजना तथा कार्यक्रम प्रभाग (पी.आर.पी.एंड पी). मानव अधिकारों पर अनुसंधान करता है तथा उनका प्रचार करता है तथा महत्त्वपूर्ण मानव अधिकार मुद्दों पर सम्मेलन, सेमिनार तथा कार्यशालाएं आयोजित करता है।

जब कभी भी आयोग, अपनी सुनवाई. कार्रवाईयों या अन्यथा इस निर्णय पर पहुंचता है कि

कोई विशेष विषय महत्त्वपूर्ण है, तो उसे पी.आर.पी. एण्ड पी. प्रभाग द्वारा संचालित किए जाने वाले

एक परियोजना/कार्यक्रम में परिवर्तित कर दिया जाता है।

इसके अतिरिक्त, यह प्रभाग मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु प्रचलित नीतियों,

कानूनों, संधियों तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों की परीक्षा करता है।

यह प्रभाग, केन्द्र, राज्य तथा संघ शासित क्षेत्र के प्राधिकारियों द्वारा कार्यान्वित की जा रही

आयोग की सिफारिशों की मॉनीटरिंग में सहायता करता है।

यह प्रभाग, मानव अधिकार साक्षरता के विस्तार तथा मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए

उपलब्ध सुरक्षापायों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने में भी प्रशिक्षण प्रभाग की सहायता करता है।

प्रभाग का कार्य संयुक्त सचिव (प्रशिक्षण एवं अनुसंधान) तथा

संयुक्त सचिव (कार्यक्रम एवं प्रशासन), एक निदेशक/संयुक्त निदेशक,

एक वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी, अनुसंधान परामर्श, अनुसंधान एसोसिएट,

अनुसंधान सहायक तथा अन्य सचिवालय स्टॉफ द्वारा देखा जाता है।

प्रशिक्षण प्रभाग

समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकार साक्षरता का विस्तार करने के लिए उत्तरदायी है।

अतः यह प्रभाग मानव अधिकारों के विभिन्न मुद्दों के बारे में

राज्य के विभिन्न सरकारी अधिकारियों तथा कार्यकर्ताओं तथा राज्य की एजेंसियों,

गैर सरकारी अधिकारियों, सिविल सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों तथा

विद्यार्थियों को प्रशिक्षण देता है और उन्हें सुग्राही बनाता है।

इसके लिए यह प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थानों/पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों के साथ सहयोग करता है इसके अलावा यह प्रभाग, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए इन्टर्नशिप प्रोग्राम भी आयोजित करता है प्रभाग का अध्यक्ष एक संयुक्त सचिव (प्रशिक्षण एवं अनुसंधान) होता है जिसकी सहायता के लिए वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी (प्रशि.). एक सहायक तथा अन्य सचिवालय स्टाफ होता है।

प्रशिक्षण प्रभाग के तहत समन्वय अनुभाग, अंतरराष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों सहित सभी अंतरराष्ट्रीय मामलों की देख रेख करता है।

इसके अलावा यह विभिन्न राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों में शिविर आयोग बैठकों/ जन सुनवाई के साथ समन्वय करता है आयोग के वार्षिक कार्यों अर्थात स्थापना दिवस औरमानव अधिकार दिवस (10 दिसम्बर) का आयोजन करता है।

यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर आयोग के अध्यक्ष/सदस्यों/ वरिष्ठ अधिकारियों की यात्राओं के आयोजन के साथ-साथ प्रोटोकॉल कर्तव्यों का ध्यान रखने का भी कार्य करता है।

समन्वय अनुभाग में एक अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी, सहायक अनुसंधान परामर्शदाता और अन्य सचिवीय कर्मचारी होते हैं।

प्रशासनिक प्रभाग

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की स्थापना, प्रशासनिक एवं संबंधित जरूरतो को पूरा करता है।

इसके अलावा,

यह प्रभाग कार्मिकों, लेखों, पुस्तकालय तथा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अधिकारियों तथा

स्टाफ के सदस्यों की अन्य जरूरतों को भी पूरा करता है

प्रभाग का अध्यक्ष एक संयुक्त सचिव (कार्यक्रम एवं प्रशासन) होता है तथा

उसकी सहायता के लिए एक निदेशक/ उप सचिव, अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी तथा अन्य सचिवालयीय स्टॉफ होते हैं।

प्रशासनिक प्रभाग के तहत मीडिया एण्ड कम्यूनिकेशन यूनिट का कार्य प्रिंट एवं इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की गतिविधियों से संबंधित जानकारी का प्रचार करना है

यह प्रभाग मानव अधिकार नामक एक द्विभाषीय प्रकाशन करता है।

प्रकाशन एकक

आयोग की एक और महत्वपूर्ण इकाई है, जो आयोग के सभी प्रकाशनों को प्रस्तुत करने के लिए जिम्मेदार है।

वार्षिक रिपोर्ट, एन.एच.आर.सी. अंग्रेजी और

हिंदी पत्रिका नो योर राइट सीरीज इत्यादि इस प्रभाग द्वारा प्रकाशित कुछ प्रमुख प्रकाशन हैं।

इसके अलावा, यह प्रभाग सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत प्राप्त आवेदनों तथा अपीलों को भी देखता है।

Official Website- https://nhrc.nic.in/hi

विशेष बिन्दु

विशेष प्रतिवेदकों की नियुक्ति तथा कोर एवं विशेषज्ञ समूहों के गठन द्वारा आयोग की पहुंच में काफी विस्तार हुआ है।

आयोग ने अपने दायित्वों के निष्पादन के लिए पारदर्शी प्रणाली तथा प्रक्रियाएं तैयार की है।

आयोग ने विनियम तैयार करते हुए अपने काम-काज के प्रबंधन के लिए प्रक्रियाएं तैयार की हैं।

स्रोत:-

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के वार्षिक प्रतिवेदन, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019

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भारत का विधि आयोग (Low Commission)

विधि संबंधी विषयों पर महत्त्वपूर्ण परामर्श देने के लिए सरकार आवश्यकतानुसार आयोग नियुक्त करती है; इन्हें विधि आयोग (Law Commission, लॉ कमीशन) कहते हैं। स्वतन्त्र भारत में अब तक 22 विधि आयोग बन चुके हैं। 22वें विधि आयोग के गठन हेतु केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने 19 फरवरी, 2020 को अनुमति प्रदान कर दी है, इस विधि आयोग का कार्याकाल भारत के राजपत्र में गठन के आदेश के प्रकाशन की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिये होगा

भारत के विधि आयोग का इतिहास

प्रथम विधि आयोग (First Law Commission)

भारत में प्रथम विधि आयोग का गठन स्वतंत्रता से पूर्व किया गया था

ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में 1833 का चार्टर एक्ट के अंतर्गत 1834 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में मैकाले की सिफारिश पर भारत के पहले विधि आयोग का गठन किया गया था।

विधि एवं सांविधानिक इतिहास में इसका विशेष महत्त्व है।

प्रारंभ में विधि आयोग में चार सदस्य थे- लार्ड मैकाले, कैमरॉन, विलियम एंडरसन तथा मैक लियाड थे।

आयोग में अधिक-से अधिक पाँच सदस्य हो सकते थे। 1837 में मिलेट इसके पाँचवें सदस्य बने थे।

प्रथम विधि आयोग का उद्देश्य थे-

(1) न्यायालय एवं न्यायालयों की कार्यप्रणाली में क्या-क्या सुधार लाया जाए, इस संबंध में सुझाव देना।
(2) न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र एवं शक्तियों की जाँच करना।
(3) भारत में प्रचलित सभी विधियों-दीवानी, फौजदारी, लिखित एवं परंपरागत की जाँच पड़ताल करना।
(4) नियमों, परिनियमों, अधिनियमों आदि में परिवर्तन, परिवर्तन, संशोधन आदि के बारे में सुझाव देना।
(5) पुलिस विभाग की वास्तविक स्थिति की जाँच कर उनमें सुधार के उपाय सुझाना।

प्रथम विधि आयोग ने दंड संहिता आलेख भी (Draft of Indian Penal Code) तैयार किया, भारत का सिविल लॉ उस समय अव्यवस्थित था। उस पर दी गई गई रिपोर्ट, जिसे देशीय विधि (Lex Loci) रिपोर्ट नाम दिया गया, अत्यधिक महत्त्वपूर्ण मानी गयी।

द्वितीय विधि आयोग (Second Law Commission)

भारत के दूसरे विधि आयोग का गठन भी स्वतंत्रता से पूर्व हुआ।

1853 ईस्वी के चार्टर एक्ट के अंतर्गत द्वितीय विधि आयोग की स्थापना 29 नवंबर, 1853 को अंग्रेज न्यायाधीश जॉन रामिली की अध्यक्षता में की गयी। इस विधि आयोग में 8 सदस्य थे, इस आयोग को प्रथम विधि आयोग के द्वारा दिए गए सुझावों की जांच करने का कार्य सौंपा गया इस आयोग ने चार रिपोर्ट प्रस्तुत की जिनके अंतर्गत-

(i) अपनी प्रथम रिपोर्ट में आयोग ने फोर्ट विलियम स्थित सर्वोच्च न्यायालय एवं सदर दीवानी और निजामत अदालतों के एकीकरण का सुझाव दिया।

(ii) प्रक्रियात्मक विधि की संहिताएँ तथा योजनाएँ प्रस्तुत कीं।

(iii) इसी प्रकार पश्चिमोत्तर प्रांतों और मद्रास तथा बंबई प्रांतों के लिए भी तृतीय और चतुर्थ रिपोर्ट में योजनाएँ बनायी गयी फलस्वरूप 1859 ई. में दीवानी व्यवहार संहिता एवं लिमिटेशन एक्ट, 1860 में भारतीय दंडसंहिता एवं 1861 में आपराधिक व्यवहार संहिता बनी।

1861 ई. में ही भारतीय उच्च न्यायालय विधि पारित हुई।

1861 में दीवानी संहिता उच्च न्यायालयों पर लागू कर दी गयी।

अपनी द्वितीय रिपोर्ट में आयोग ने दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता को संहिताबद्ध करने की सिफ़ारिश की।यह सुझाव भी दिया कि हिंदुओें और मुसलमानों के वैयक्तिक कानून को स्पर्श करना बुद्धिमत्तापूर्ण न होगा।

इस आयोग का कार्यकाल केवल तीन वर्ष रहा।

तृतीय विधि आयोग (Third Law Commission)

तीसरे भारतीय विधि आयोग का गठन 2 दिसंबर, 1861 ई. में जान रामिली की ही अध्यक्षता में हुआ। और नियुक्ति का आधार द्वितीय विधि आयोग द्वारा तय समय सीमा में अपने कार्य को पूरा न करना माना गया था।
इसके सम्मुख मुख्य समस्या थी मौलिक दीवानी विधि के संग्रह का प्रारूप बनाना। तृतीय विधि आयोग की नियुक्ति भारतीय विधि के संहिताकरण की ओर प्रथम पद था।

आयोग ने कुल सात रिपोर्टें दीं-

प्रथम रिपोर्ट ने आगे चलकर भारतीय दाय विधि 1865 का रूप लिया।

द्वितीय रिपोर्ट में अनुबंध विधि का प्रारूप था।

तृतीय में भारतीय परक्राम्यकरण विधि का प्रारूप।

चतुर्थ में विशिष्ट अनुतोष विधि का प्रारूप।

पंचम में भारतीय साक्ष्य विधि का प्रारूप।

षष्ठ में संपत्ति हस्तांतरण विधि का प्रारूप प्रस्तुत किया गया था।

सप्तम एवं अंतिम रिपोर्ट आपराधिक संहिता के संशोधन के विषय में थी।

आपका मुख्य काम भारत के लिए सैद्धान्तिकी दीवानी विधि को अंग्रेजी विधि के आधार पर तैयार करना था। आयोग के सुझावों एवं रिपोर्टों के आधार पर निम्नलिखित मुख्य अधिनियम पास किए गए थे-

दि रेलिजस एंडाउमेंट्स ऐक्ट 1863
भारत कंपनी अधिनियम 1866
दि जनरल क्लाजेज एक्ट 1868
विवाह विच्छेद अधिनियम 1869
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 उपर्युक्त सभी अधिनियम एच.एस. मैन तथा जे.एफ. स्टीफेन के कार्यकाल में पास हुए थे। स्टीफेन के बाद लार्ड हाय हाउस विधि सदस्य नियुक्त हुए थे। इनके कार्यकाल में विशिष्ट अनुताप अधिनियम 1877 (Specifie Rcl Cf At) बना था। इन्हीं के कार्यकाल में निम्नलिखित सैद्धांतिक विधियों को संहिताबद्ध करने का सुझाव रखा गया था-
न्यास विधि (Trust)

सुख भोगविधि (Eascments)

जलोढ़ और बाढ़ से संबंधित विधि (Alluvion and Diuvition)

मालिक और नौकर से संबंधित विधि

परक्राम्य विलेख (Negotiable Instrument) से संबंधित विधि

अचल संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित विधि।

चतुर्थ विधि आयोग (Fourth Law Commission)

ब्रिटिश भारत में ‘चतुर्थ विधि आयोग’ की स्थापना 11 फरवरी, 1879 को की गई।

इस आयोग में तीन सदस्य थे।

आयोग का मुख्य कार्य तृतीय विधि आयोग द्वारा प्रस्तावित विधियों की जाँच करना तथा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।

आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप भारतीय विधान मंडल ने निम्नलिखित विधियों को पास किया था-

परक्राम्य विलेख अधिनियम, 1881
प्रोबेट एंड एडमिनिस्ट्रेशन ऐक्ट 1881
न्याय अधिनियम, 1882
संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम1882
सुखाधिकार अधिनियम 1882

1912 ई. में चार ऐक्ट पास किए गए थे-

सहकारी समिति अधिनियम
पागलपन (Linuty) अधिनियम
भविष्य बीमा समिति अधिनियम
भारतीय जीवन बीमा कंपनी अधिनियम

चतुर्थ विधि आयोग की समाप्ति के साथ ही ब्रिटिश काल में विधि आयोगों द्वारा संहिताकरण का युग समाप्त हो गया।

शेष काल (14 अगस्त, 1947) तक में विधायन कार्य मुख्य रूप से भारत सरकार के विधायी विभाग द्वारा किया गया।

स्वतंत्र भारत में 19 नवंबर, 1954 ई. को लोकसभा में एक गैर-सरकारी प्रस्ताव के अंतर्गत एक विधि-आयोग बनाने की सिफारिश की,

सरकार द्वारा इसे स्वीकार करते हुए 5 अगस्त, 1955 ई. को तात्कालिक विधि मंत्री सी.सी. विश्वास ने लोकसभा में विधि आयोग की नियुक्ति की घोषणा की थी।

इस आयोग को पंचम विधि आयोग कहा जाता है।

श्री मोतीलाल चिमणलाल सीतलवाड़ इसके चेयरमैन थे और इसमें 11 सदस्य थे।

इसके समक्ष दो मुख्य कार्य रखे गए।

एक तो न्याय शासन का सर्वतोमुखी पुनरवलोकन और उसमें सुधार हेतु आवश्यक सुझाव,

दूसरा प्रमुख केंद्रीय विधियों का परीक्षण कर उन्हें आधुनिक अवस्था में उपयुक्त बनाने के लिए आवश्यक संशोधन प्रस्तुत करना।

भारतीय विधि आयोग, एक गैर-सांविधिक निकाय और गैर वैधानिक निकाय है।

यह भारत सरकार के आदेश से गठित एक कार्यकारी निकाय है।

इसका प्रमुख कार्य है, कानूनी सुधारों हेतु कार्य करना।

22 वां विधि आयोग (22nd Law Commission)

देश के 22वें विधि आयोग के गठन हेतु केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने 19 फरवरी, 2020 को अनुमति प्रदान कर दी है। इसका कार्यकाल भारत के राजपत्र में गठन के आदेश के प्रकाशन की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिए होगा। इस संबंध में जारी एक संक्षिप्त अधिसूचना में कहा गया है-

‘‘आधिकारिक गजट में इस आदेश के प्रकाशन की तिथि से लेकर तीन साल की अवधि के लिए भारत के 22वें विधि आयोग के गठन को राष्ट्रपति की मंजूरी दी जाती है।’’
इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता वाले 21वें विधि आयोग (Law Commission) का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया था।

22वे विधि आयोग में निम्नलिखित शामिल होंगे-

(i) एक पूर्णकालिक अध्यक्ष (सामान्यता उच्चतम न्यायालय का कोई सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का कोई सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होता है।)
(ii) सदस्य सचिव सहित चार पूर्ण कालिक सदस्य।
(iii) कानूनी मामलों के विभाग के सचिव (पदेन सदस्य)।
(iv) सचिव, विधायी विभाग के सचिव (पदेन सदस्य)।
(v) अधिकतम पाँच अंशकालिक सदस्य।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की 19 फरवरी की बैठक में लिए गए निर्णय के तहत यह आयोग निम्नलिखित कार्य करेगा।

(i) यह ऐसे कानूनों की पहचान करेगा, जिनकी अब तक कोई आवश्यकता नहीं है,जो अब अप्रासंगिक है और जिन्हें तुरन्त निरस्त किया जा सकता है।

(ii) डायरेक्टिव प्रिंसीपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी के प्रकाश में मौजूदा कानूनों की जाँच करना तथा सुधार के तरीकों के सुझाव देना और नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए आवश्यक कानूनों के बारे में सुझाव देना तथा संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना।

(iii) विधि और न्याय प्रशासन से संबंधित किसी भी विषय पर विचार करना और सरकार को अपने विचारों से अवगत कराना, जो इसे विधि और न्याय मंत्रालय के माध्यम से सरकार द्वारा सान्द्रण किया गया हो।

(iv) विधि और न्याय मंत्रालय के माध्यम से सरकार द्वारा अग्रेषित किसी बाहरी देश को अनुसधान उपलब्ध कराने के अनुरोध पर विचार करना।

(v) गरीब लोगों की सेवा में कानून और कानूनी प्रक्रिया का उपयोग करने के लिए आवश्यक उपाय करना।

(vi) सामान्य महत्त्व के केन्द्रीय अधिनियमों को संशोधित करना ताकि उन्हें सरल बनाया जा सके और विसंगतियों, संदिग्धताओं और असमानता को दूर किया जा सके। अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने से पहले आयोग नोडल मंत्रालय/विभागों तथा ऐसे अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करेगा, जिन्हें आयोग इस उद्देश्य के लिए आवश्यक समझे उपर्युक्त के अतिरिक्त यह आयोग केन्द्र सरकार द्वारा इसे सौंपे गए या स्वतः संज्ञान पर विधि में अनुसंधान करने व उसमें सुधार करने, प्रक्रियाओं में देरी को समाप्त करने मामलों को तेजी से घटाने, अभियोग की लागत कम करने के लिए न्याय आपूर्ति प्रणालियों में सुधार लाने के लिए अध्ययन और अनुसंधान भी करेगा।

 

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