माखनलाल चतुर्वेदी Makhanlal Chaturvedi
माखनलाल चतुर्वेदी Makhanlal Chaturvedi का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कविताएं, रचनाएं, रचनावली, भाषा शैली, भाव पक्ष, भारतीय आत्मा, व्यक्तित्व एवं कृतित्व आदि।
जीवन परिचय
जन्म – 4 अप्रैल, 1889 ई. जन्म भूमि – बावई, मध्य प्रदेश
मृत्यु – 30 जनवरी, 1968 ई.
पिता का नाम- नन्दलाल चतुर्वेदी
उपनाम-एक भारतीय आत्मा
कर्म-क्षेत्र – कवि, लेखक, पत्रकार, अध्यापक
विषय- कविता, नाटक, ग्रंथ, कहानी
भाषा- हिन्दी, संस्कृत
काल- आधुनिक काल
युग- छायावादी युग ( राष्ट्रीय चेतना प्रधान काव्य धारा)
प्रसिद्धि – स्वतंत्रता सेनानी
साहित्यिक परिचय
रचनाएं : माखनलाल चतुर्वेदी Makhanlal Chaturvedi
काव्य रचनाएं : माखनलाल चतुर्वेदी Makhanlal Chaturvedi
हिमकिरीटिनी – 1943
हिम तरंगिणी – 1949
माता – 1951
समर्पण – 1956
युग चरण – 1956
वेणु लो गूंजे धरा – 1960
पुष्प की अभिलाषा (कविता)
मरण ज्वार – 1963
बिजुली काजल आँज रही – 1964
धूम्रवलय-1981
नाटक
कृष्णार्जुन युद्ध – 1918
निबंध : माखनलाल चतुर्वेदी Makhanlal Chaturvedi
साहित्य देवता – 1943
अमीर इरादे-गरीब इरादे – 1960
माखनलाल चतुर्वेदी संबंधी विशेष तथ्य
एक भारतीय आत्मा इनकी रचनाओं में स्वतंत्रता की चेतना के साथ देश के लिए त्याग और बलिदान की भावना मिलती है इसलिए इन्हें एक भारतीय आत्मा कहा जाता है|
आपके द्वारा प्रभा, कर्मवीर एवं प्रताप नामक तीन पत्रों का संपादन कार्य किया गया था|
कर्मवीर पत्र तो राष्ट्रीय जागरण का अग्रदूत माना जाता है|
आप का संपूर्ण साहित्य माखनलाल चतुर्वेदी रचनावली के 10 खंडों में संकलित है|
माखनलाल चतुर्वेदी के पुरस्कार एवं मान-सम्मान
1955 में उनके काव्य संग्रह हिमतरंगिणी के लिये उन्हें हिन्दी के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार की स्थापना होने पर हिन्दी साहित्य के लिए प्रथम पुरस्कार दादा को हिमतरंगिनी के लिए प्रदान किया गया।
पुष्प की अभिलाषा और अमर राष्ट्र जैसी ओजस्वी रचनाओं के लिए माखनलाल चतुर्वेदी को सागर विश्वविद्यालय ने 1959 में डी.लिट्. की मानद उपाधि से विभूषित किया।
1963 में हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा देव पुरस्कार माखनलालजी को हिम किरीटिनी के लिए दिया गया।
भारत सरकार ने 1963 में पद्मभूषण से अलंकृत किया।
मध्यप्रदेश शासन की ओर से 16-17 जनवरी 1965 को खंडवा में एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी के नागरिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।
10 सितंबर 1967 को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलालजी ने यह अलंकरण लौटा दिया।
भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय इन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है।