ब्रजभाषा साहित्य Brajbhasha Sahitya का विकास
ब्रजभाषा साहित्य Brajbhasha Sahitya का विकास, ब्रजभाषा का व्याकरण, ब्रजभाषा के प्रमुख ग्रंथ, ब्रजभाषा के प्रसिद्ध लेखक
काव्यभाषा के रूप में ब्रजभाषा का विकास : ब्रजभाषा साहित्य Brajbhasha Sahitya
पश्चिमी हिंदी बोलियों की प्रतिनिधि बोली ब्रजभाषा है। जिसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है।
18वीं सदी से पूर्व यह पिंगल तथा भाखा नाम से प्रसिद्ध थी।
शूरसेन (मथुरा, अलीगढ़ और आगरा) का दूसरा नाम ब्रजमडल है अतः यहाँ की भाषा ब्रजभाषा है।
विकास- ब्रजभाषा का विकास 1000 ई के आसपास हुआ।
ब्रजभाषा ओकार बहुला भाषा है। जैसे – पहिलो, दूजो। बुंदेली और ब्रजभाषा में घनिष्ठ संबंध है।
ब्रजभाषा की सबसे प्राचीन ज्ञात कृति अग्रवाल कवि विरचित ‘प्रद्युम्न चरित’ (1354 ई.) है
सूरदास जी से पूर्व ब्रजभाषा के कवियों में विष्णुदास सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हुए हैं।
काव्यभाषा के रूप में शुद्ध ब्रजभाषा के प्रथम कवि अमीर खुसरो (1253-1325 ई) माने जाते हैं।
ब्रजभाषा को साहित्यिक रूप देने और साहित्य के चर्मोत्कर्ष पर पहुंचाने में सूर एवं नंददास ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ब्रजभाषा के प्रथम महान् कवि सूरदास माने जाते हैं तो काव्य-भाषा के माधुर्य की दृष्टि से नंददास सर्वोपरि हैं।
भाषा विकास की दृष्टि से रीतिकाल ब्रजभाषा का ‘स्वर्णकाल’ कहलाता है।
आधुनिक युग में भारतेंदु हरिश्चंद्र, जगन्नाथ दास रत्नाकर, सत्यनारायण कविरत्न ने ब्रजभाषा के पुनरुद्धार का प्रयास किया। ये तीनों आधुनिक ब्रजभाषा काव्य के बृहत्त्रयी है।
ब्रजभाषा के संबंध में प्रसिद्ध कथन
ब्रजभाषा का जो माधुर्य हम सूरसागर में पाते हैं, वहीं माधुर्य हम गीतावली और श्रीकृष्ण गीतावली में भी पाते है।- रामचंद्र शुक्ल
सूरदास की रचना में संस्कृत की कोमलकांत पदावली और अनुप्रासों की वह विचित्र योजना नहीं है, जो गोस्वामीजी की रचना में है।- रामचंद्र शुक्ल
सूरसागर रचना इतनी प्रगल्भ और कलापूर्ण है कि आगे आने वाले कवियों की श्रृंगार और वात्सल्य की उक्तियाँ सूर की जूठी-सी जान पडती हैं।- रामचंद्र शुक्ल
घनानंद की सी विशुद्ध सरस और शक्तिशाली ब्रजभाषा लिखने में और कोई कवि समर्थ नहीं हुआ। प्रेममार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा जबांदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ।- रामचन्द्र शुक्ल
लाक्षणिक मूर्तिमत्ता और प्रयोग-वैचित्र्य की जो छटा घनानंद में दिखाई पड़ी. वह फिर आधुनिक काल में ही देखी गई। -रामचन्द्र शुक्ल
पद्माकर की भाषा बहुत ही चलती, स्वाभाविक और साफ सुथरी है।- रामचन्द्र शुक्ल
सुंदरदास की ब्रजभाषा साहित्यिक, सरस और काव्य की मँजी हुई ब्रजभाषा है।- रामचन्द्र शुक्ल
लोकोक्तियों के मधुर उपयोग के लिए शुक्लजी ने ठाकुर की भाषा की प्रशंसा की है।
ब्रजनाथ ने घनानंद को ब्रजभाषा प्रवीण कहा है।
कल्पना की समाहार शक्ति एवं भाषा की समाहार शक्ति की दृष्टि से बिहारी ब्रजभाषा का सामर्थ्य आचार्य शुक्ल ने भी स्वीकार किया है।
ब्रजभाषा की प्रसिद्ध रचनाएँ
प्रद्युम्नचरित (1354 ई.) -अग्रवाल कवि
स्वर्गारोहण (1435 ई.) रुक्मिणी मंगल, महाभारत, स्नेह लीला (भ्रमरगीत)- विष्णुदास
वैताल पचीसी (1489 ई.)- मानिक कवि
छिताईवार्ता (1590 ई.)- नारायण दास
गीताभाषा (1500 ई)- मेघनाथ
लखमन सेन पद्मावती कथा (1459 ई)- दामों
मधुमालती- चतुर्भुजदास (प्रेमाख्यानक हिंदू कवि)
सूरसागर सूरसारावली, साहित्यलहरी – सूरदास
विनयपत्रिका (1653 संवत) कविताबली, गीतावली, कृष्णगीतावली- तुलसीदास
सुजान रसखान, प्रेमवारिका (रचना 1614 ई., दामलीला, अष्टयाम- रसखान
सुदामाचरित (1601) नरोत्तमदास
रामचंद्रिका (1601 है)- केशवदारा 13. रसकलश (1931 ई.)- हरिऔध
उद्धवशतक (1931 ई.), हरिश्चंद्र, गंगावतरण (1927 ई)- जगन्नाथदास रत्नाकर
हृदयतरंग (संपादक-बनारसी दास चतुर्वेदी) सत्यनारायण कविरत्न
कालक्रमानुसार हिन्दी में आत्मकथाएं
‘रासो’ शब्द की व्युत्पत्ति – विभिन्न मत
भारत का स्वर्णिम अतीत : तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय