बालकृष्ण भट्ट Balkrishan Bhatt – हिंदी का स्टील
बालकृष्ण भट्ट Balkrishan Bhatt का जीवन परिचय, बालकृष्ण भट्ट का साहित्यिक परिचय, रचनाएं, निबंध, कहानी, उपन्यास, आलोचना, विशेष तथ्य
जीवन परिचय
जन्म- 3 जून, 1844
जन्म भूमि- इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु -20 जुलाई, 1914
अभिभावक- पंडित वेणी प्रसाद
कर्म-क्षेत्र -हिन्दी साहित्य
काल- भारतेंदु युग
भाषा -हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, बंगला और फ़ारसी।
प्रसिद्धि – नाटककार, पत्रकार, उपन्यासकार और निबन्धकार।
बालकृष्ण भट्ट का साहित्यिक परिचय
गद्य काव्य की रचना सर्वप्रथम बालकृष्ण भट्ट ने प्रारंभ की थी। इनसे पूर्व तक हिन्दी में गद्य काव्य का नितांत अभाव था।
इन्होंने लगभग 1000 निबंध लिखे।
इनके निबंधों में विषय वस्तु और शैली दोनों का वैविध्य मिलता है।
यह भारतेंदु युग के सर्वाधिक समर्थ निबंधकार है इन्होंने सामयिक समस्याओं पर अपनी लेखनी जमकर चलाई है।
रचनाएं
निबन्ध संग्रह
साहित्य सुमन
भट्ट निबन्धावली (दो भाग)
निबंध
बाल-विवाह
स्त्रियां और उनकी शिक्षा
राजा और प्रजा
कृषकों की दुरवस्था
अंग्रेजी शिक्षा और प्रकाश
हमारे नए सुशिक्षितों में परिवर्तन
देश सेवा का महत्व
महिला-स्वातंत्र्य
ईश्वर भी ठठोल है
चली सो चली
देवताओं से हमारी बातचीत
नई तरह का जनून
खटका
मेला-ठैला
वकील
सहानुभूति
आशा
इंग्लिश पढ़े तो बाबू होय
रोटी तो किस भांति कमा खाय मछंदर
आत्मनिर्भरता
माधुर्य
शब्द की आकर्षण शक्ति
चन्द्रोदय
मुग्ध माधुरी
कौलीन्य
जातपाँत
भिक्षावृत्ति
सुगृहिणी
हिन्दुस्तार के रसई
हाकिम और उनकी हिकमत
राजभक्ति और देशभक्त
व्यवस्था या कानून
हुक्का स्तवन
ग्राम्य जीवन
ढोल के भीतर पोल
खेल-वंदना
नवीन
ढोला
साहित्य सुमन
उपन्यास
रहस्य कथा – 1879
नूतन ब्रह्मचारी – 1886
सौ अजान एक सुजान – 1892
‘नूतन ब्रह्मचारी’ उपन्यास का नायक विनायक डाकूओं का हृदय परिवर्तन करता है।
‘सौ अजान एक सुजान’ में सत्संग के कारण एक बिगड़े हुए सेठ का सुधार हो जाता है।
उक्त दोनों उपन्यासों की रचना विद्यार्थियों एवं युवकों को नैतिक शिक्षा प्रदान करने के लक्ष्य से की गई थी।
नाटक
जैसा काम वैसा परिणाम (प्रहसन), 1877
नयी रोशनी का विष, 1884
नलदमयंती स्वयंवर, 1895
आचार विडम्बन, 1899
वेणुसंहार, 1909
वृहन्नला
बाल-विवाह (प्रहसन)
चंद्रसेन
रेल का विकट खेल (प्रहसन)
कलिराज की सभा (प्रहसन)
आलोचना
सच्ची सामालोचना
इन्होंने अपने हिंदी प्रदीप पत्र में सच्ची समालोचना शीर्षक से लाला श्रीनिवास दास द्वारा रचित ‘संयोगिता स्वयंवर’ नाटक की समालोचना प्रकाशित की थी।
इन्होंने ‘नीलदेवी व परीक्षा गुरु उपन्यास’ की आलोचना भी प्रकाशित की थी।
नोट- डॉक्टर गणपति चंद्र गुप्त के अनुसार ‘इनकी शैली में भावात्मकता, आत्मानुभूति एवं लेखक को सीधा संबोधित करने की प्रवर्ती मिलती है।’
हिंदी में आलोचना के प्रवर्तन का श्रेय ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र ‘को दिया जा सकता है तथा उनके द्वारा प्रवर्तित ‘समालोचना’ को आगे बढ़ाने का श्रेय ‘बद्रीनारायण चौधरी व बालकृषण भट्ट ‘को दिया जाता है।
अनुवाद
वेणीसंहार
मृच्छकटिक
पद्मावती।
बालकृष्ण भट्ट संबंधी विशेष तथ्य
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनको ‘हिंदी का स्टील’ कहा है।
इनको ‘हिंदी का मोंटेन’ कहा जाता हैं।
भट्ट जी ने 1872 ईस्वी में ‘हिंदी प्रदीप’ का संपादन प्रारंभ किया था तथा वे 33 वर्षों तक इसे निकालते रहे थे| इस पत्र के मुख्य पृष्ठ पर छपा रहता था- “शुभ सरस देश सनेह पूरित प्रकट ह्वै आनंद भरे।”
इन्होने ‘प्रेम-पुंज’ नामक एक पत्रिका का संपादन भी किया था।
ये भारतेंदु मंडल के लेखकों में सबसे वरिष्ठ लेखक माने जाते हैं।
उन्होंने अपनी रचनाओं में मुहावरेदार भाषा का सर्वाधिक प्रयोग किया है।
इन्होंने साहित्य को ‘जनसमूह के हृदय का विकास’ कहा है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार ये तीखी और झनझना देने वाली भाषा में खरी-खरी सुना देने वाले कवि माने जाते हैं।