लेखक प्रताप नारायण मिश्र
लेखक प्रताप नारायण मिश्र का जीवन परिचय, प्रताप नारायण मिश्र का साहित्यिक परिचय, प्रताप नारायण मिश्र के निबंध, रचनाएं, कविताएं
प्रताप नारायण मिश्र का जीवन परिचय
जन्म- 24 सितम्बर, 1856
जन्म स्थान- बैजेगांव,जिला- उन्नाव, उत्तर प्रदेश
मृत्यु- 6 जुलाई, 1894
अभिभावक – पण्डित संकटादीन
काल- आधुनिक काल (भारतेंदु युग के कवि)
भाषा- हिन्दी, उर्दू, बंगला, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और संस्कृत।
प्रसिद्धि – लेखक, कवि, पत्रकार, निबन्धकार, नाटककार।
प्रताप नारायण मिश्र का साहित्यिक परिचय
रचनाएं
काव्य
कानपुर माहात्म्य
तृप्यन्ताम्
तारापति पचीसी
दंगल खण्ड
प्रार्थना शतक
प्रेम पुष्पावली
फाल्गुन माहात्म्य
ब्रैडला स्वागत
मन की लहर
युवराज कुमार स्वागतन्ते
लोकोक्ति शतक
शोकाश्रु
श्रृंगार विलास
श्री प्रेम पुराण
होली है
दीवाने
बरहमन
रसखान शतक
बुढ़ापा
प्रताप लहरी
हिंदी की हिमायत
नवरात्र के पद
उपर्युक्त रचनाओं में से ‘तृप्यन्ताम्’, ‘तारापति पचीसी’, ‘प्रेम पुष्पावली’, ‘ब्रैडला स्वागत’, ‘मन की लहर’, ‘युवराजकुमार स्वागतन्तें’, ‘शोकाश्रु’, ‘प्रेम पुराण’ तथा ‘होली’ ‘प्रताप नारायण मिश्र कवितावली’ में संगृहीत हैं।
नाटक
कलि कौतुक (रूपक) 1886 – पाखंडियो एवं दुराचारियों से दुर रहने के लिए प्रेरित करने वाला नाटक
गो-संकट – 1886
जुआरी खुआरी (प्रहसन, अपूर्ण)
हठी हमीर – अलाउद्दीन की रणथम्भौर पर चढ़ाई का वृत्तांत लेकर लिखा गया नाटक ‘संगीत शाकुन्तल’ (‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ के आधार पर रचित गीति रूपक), -लावनी के ढंग पर गाने योग्य खड़ी बोली में पदबद्ध नाटक
भारत दुर्दशा (रूपक) 1902
कलि प्रभाव (गीतिरूपक)
दूध का दूध और पानी का पानी (भाण, अपूर्ण)।
उपन्यास (अनूदित)
अमरसिंह
इन्दिरा
कपाल कुंडला
देवी चौधरानी
युगलांगुलीय
राजसिंह राधारानी
नोट- इनके सभी उपन्यास प्रसिद्ध कथाकार बंकिम चन्द्र के उपन्यासों के अनुवाद हैं।
कहानी (अनूदित)
कथा बाल संगीत
कथा माला
चरिताष्टक
प्रताप नारायण मिश्र के निबंध
धोखा
खुशामद
बात
दाँत
भौं
नारी
मुच्छ
परीक्षा
ह
द
समझदार की मौत
मनोयोग
पेट
नाक
वृद्ध
दान
जुआ
अपव्यय
नास्तिक
ईश्वर की मूर्ति
सोने का डंडा
टेढ़ जान शंका
सब काहू
धूरे क लताँ विनै
कनातन क डौल बाँधे
होली है अथवा होरी है
आँसू
लक्ष्मी
रुचि
विश्वास
- प्रेम बाण के सैलानी
‘प्रताप नारायण ग्रंथावली भाग एक’ – इसमें मिश्र जी के लगभग 200 निबन्ध संगृहीत हैं।
आत्मकथा
प्रताप चरित्र (अपूर्ण) – यह प्रताप नारायण ग्रंथावली भाग एक में संकलित है।
जीवनी
आर्यचरितामृत-1884 – बंगला से हिंदी मे अनुदित
यात्रावृत
विलायतयात्रा – हिंदी प्रदीप पत्र मेम नवंबर-1897 में प्रकाशित
प्रताप नारायण मिश्र संबंधी विशेष तथ्य
उन्होंने ब्राह्मण नामक पत्रिका (1883 ई.,मासिक पत्रिका,कानपुर से) का संपादन कार्य किया था|
अपने ब्राह्मण पत्रिका के ग्राहकों से चंदा मांगते मांगते थक जाने पर इन्हें कभी इन शब्दों से यात्रा करनी पड़ी थी- “आठ मास बीते जजमान| अब तौं करौ दच्छिना दान||”
किसी नाटक में अभिनय करने के लिए उन्होंने अपने पिता से मूंछ मुंडवाने की आज्ञा भी ली थी|
अपनी ‘हरगंग’ कविता के कारण इनको सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई|
यह हिंदी के बड़े हिमायती थे| ‘हिंदी- हिंदू- हिंदुस्तान’ का नारा इनके द्वारा ही दिया गया था|
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार यह सहज चटुल शैली के पुरस्कर्ता माने जाते हैं|
यह कानपुर की साहित्यक संस्था ‘रसिक समाज’ से भी जुड़े हुए थे|
इन्होंने ‘लावणी व आल्हा’ जैसी लोक प्रचलित शैलियों का भी काव्य में प्रयोग किया था|
आचार्य रामचंद्र शुकल ने इनको ‘हिंदी का एडिसन’ कहा है|
मिश्र जी की भारतेन्दु हरिश्चन्द्र में अनन्य श्रद्धा थी। वह स्वयं को उनका शिष्य कहते थे तथा देवता के समान उनका स्मरण करते थे। भारतेन्दु जैसी रचना शैली, विषयवस्तु और भाषागत विशेषताओं के कारण ही प्रताप नारायण मिश्र को ‘प्रतिभारतेन्दु’ या ‘द्वितीयचन्द्र’ आदि कहा जाने लगा था।