पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का जीवन परिचय, साहित्य परिचय, रचनाएं, उपन्यास, आत्मकथा, भाषा शैली, तात्विक समीक्षा, कहानियाँ, नाटक, एकांकी, आलोचना, निबंध, विशेष तथ्य

Pandeya Bechan Sharma Ugra
Pandeya Bechan Sharma Ugra

जीवन परिचय

जन्म- 1900

जन्म भूमि- मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश

मृत्यु- 1967

मृत्यु स्थान- दिल्ली

युग- प्रेमचंदयुगीन उपन्यासकार

साहित्य परिचय

रचनाएं

उपन्यास

घंटा,1924

चंद हसीनों के खतूत,1927

दिल्ली का दलाल,1927

बुधुआ की बेटी,1928

शराबी,1930

सरकार तुम्हारी आँखों में,1931

जीजीजी,1943

मनुष्यानंद,1955

कला का पुरस्कार,1955

कढ़ी में कोयला,1955

फागुन के दिन चार,1960

कहानियां

चिनगारियाँ,1923

शैतान मंडली,1924

इन्द्रधनुष,1927

बलात्कार,1927

चॉकलेट,1928

दोजख की आग,1929

निर्लज्जा,1929

सनकी अमीर

रेशमी

व्यक्तिगत

पंजाब की महारानी

उग्र का हास्य

नाटक

महात्मा ईसा,1922

उजबक

चुंबन,1937

डिक्टेटर,1937

गंगा का बेटा,1940

आवास,

अन्नदाता माधव महाराज महान्

एकांकी

अफजल वद्य

भाई मियां

चार बेचारे

आत्मकथा

अपनी खबर,1960 ( इस आतमकथा में इन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक 21 वर्षों की घटनाओं का वर्णन किया है)

आलोचना

तुलसीदास आदि अनेक आलोचनातमक निबंध।

निबंध

बुढापा

गाली

पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : विशेष तथ्य

इन्होंने ‘दलित या पतित वर्ग’ को अपने उपन्यास का विषय बनाया है |

ये ‘प्रेमचंद युग’ के सबसे बदनाम उपन्यासकार हुए। इन्होंने अपने उपन्यासों में समाज की बुराइयो को, उसकी नंगी सच्चाई को बिना लाग-लपट के बड़े साहस के साथ, किंतु सपाट बयानबाज़ी से प्रस्तुत किया।

बनारसी दास चतुर्वेदी ने इनके उपन्यासों को ‘घासलेटी साहित्य’ कहा है|

उन्होंने अयोध्या में रामलीला मंडली में ‘सीता’ का अभिनय अनेक बार किया था|

इन्होंने गोरखपुर से ‘स्वदेश’ नामक पत्रिका निकाली थी जिसके कारण इनको जेल भी जाना पड़ा था|

उग्र ने मतवाला, वीणा, स्वराज, विक्रम, संग्राम आदि पत्र/पत्रिकाओं का संपादन किया था|

इनकी प्रारंभिक कहानियां 1921 ईस्वी में ‘अष्टावक्र’ नाम से प्रकाशित हुई थी|

इनकी ‘उग्रता’ के प्रभाव को आलोचकों ने ‘उल्कापात’, ‘धूमकेतु’, ‘तूफान’ या ‘बवंडर’ की उपमा दी थी|

इन्हें प्रकृतिवादी कहानीकार कहा जाता है|

‘चिंगारियां’ कहानी संग्रह में इन्होंने अपनी विद्रोह है पूर्ण राष्ट्रीय चेतना को वाणी देने का प्रयास किया, जिसके फलस्वरूप यह कहानी संग्रह अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था|

ये बचपन से ही काव्यरचना करने लगे थे। अपनी किशोर वय में ही इन्होंने प्रियप्रवास की शैली में “ध्रुवचरित्” नामक प्रबंध काव्य की रचना कर डाली थी।

ये काशी के दैनिक “आज” में “ऊटपटाँग” शीर्षक से व्यंग्यात्मक लेख लिखा करते थे और अपना नाम रखा था “अष्टावक्र”।

उग्र जी की मित्रमंडली में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, जयशंकर प्रसाद, शिवपूजन सहाय, विनोदशंकर व्यास आदि प्रसिद्ध साहित्यकार थे।

उग्र शैली – व्यंजनाओं, लक्षणाओं और वक्रोक्तियों से समृद्ध भाषा के धनी ‘उग्र’ ने अरसा पहले कहानी को एक नई शैली दी थी, जिसे आदरपूर्वक ‘उग्र शैली’ कहा जाता है।

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