नाथ साहित्य ( Nath Sahitya ) एक परिचय
वज्रयानी सिद्धों के भोग प्रधान योग साधना की प्रतिक्रिया स्वरुप विकसित नाथ मत में जो साहित्य जन भाषा में लिखा है, हिंदी के नाथ साहित्य ( Nath Sahitya ) की सीमा में आता है। ‘ नाथ साहित्य एक परिचय ’ में हम जानेंगे-
सब नाथों में प्रथम आदिनाथ स्वयं शिव माने जाते हैं।
नाथ पंथ को चलाने वाले मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ थे।
गोरखनाथ द्वारा परिवर्तित योगी संप्रदाय को बारहपंथी भी कहा जाता है।
इस मत के योगी कान फड़वा कर मुद्रा धारण करते हैं, इसलिए इन्हें ‘कनफटा योगी’ या ‘भाकताफटा योगी’ भी कहा जाता है।
नाथों की संख्या – नाथ साहित्य ( Nath Sahitya ) एक परिचय
गोरक्ष सिद्धांत संग्रह के अनुसार नवनाथ-
1. नागार्जुन
2. जड़भरत
3. हरिश्चंद्र
4. सत्यनाथ
5. भीमनाथ
6. गोरक्षनाथ
7. चर्पटनाथ
8. जलंधरनाथ
9. मलयार्जुन
डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार के अनुसार नवनाथ-
1. आदिनाथ
2. मत्स्येंद्रनाथ
3. गोरखनाथ
4. गाहिणीनाथ
5. चर्पटनाथ (चरकानंद)
6. चौरंगीनाथ
7. ज्वालेंद्रनाथ
8. भर्तनाथ
9. गोपीचंदनाथ
संपूर्ण नाथ साहित्य गोरखनाथ के साहित्य पर आधारित है।
नाथ साहित्य संवाद रूप में है।
मत्स्येंद्रनाथ/मछेंद्रनाथ तथा गोरक्षनाथ/ गोरखनाथ सिद्धों में भी गिने जाते हैं।
मच्छिंद्रनाथ चौथे बौधित्सव अवलोकितेश्वर के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
नाथों की साधना ‘हठयोग’ की साधना है।
हठयोग के ‘सिद्ध सिद्धांत पद्धती’ ग्रंथ के अनुसार ‘ह’ का अर्थ ‘सूर्य’ तथा ‘ठ’ का अर्थ ‘चंद्रमा’ माना गया है।
गोरखनाथ ने ‘षट्चक्र पद्धति’ आरंभ की।
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने चौरंगीनाथ को पूरनभगत कहा है।
जलंधरनाथ बालनाथ के नाम से तथा नागार्जुन रसायनी के नाम से प्रसिद्ध थे।
नाथ पंथ का प्रभाव पश्चिमी भारत (राजपूताना, पंजाब) में था।
नाथ पंथ की विशेषताएं – नाथ साहित्य एक परिचय
बाह्याचार, कर्मकांड, तीर्थाटन, जात-पात, ईश्वर उपासना के बाह्य विधानों का विरोध।
अंतः साधना पर बल।
चित्त शुद्धि और सदाचार में विश्वास।
गुरू महिमा।
नारी निन्दा।
भोग-विलास की कड़ी निन्दा।
गृहस्थ के प्रति अनादर का भाव।
इंद्रिय निग्रह, वैराग्य, शून्य समाधि, नाड़ी साधना, कुंडलिनी जागरण, इंगला, पिंगला, सुषुम्ना, षट्चक्र इत्यादि की साधना पर बल दिया।
उलटबांसी, रहस्यात्मकता, प्रतीक और रूपकों का प्रयोग।
सधुकड़ी भाषा का प्रयोग।
जनभाषा का परिष्कार।
गोरखनाथ – नाथ साहित्य एक परिचय
नाथ पंथ और हठयोग के प्रवर्तक गोरखनाथ थे।
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गोरखनाथ के समय को लेकर विद्वानों में मतैक्य है—
राहुल सांकृत्यायन — 845 ई.
हजारीप्रसाद द्विवेदी — 9वीं शती
पीतांबरदत्त बड़थ्वाल — 11वीं शती
रामचंद्र शुक्ल, रामकुमार वर्मा — 13वीं शती
यह मत्स्येंद्रनाथ के शिष्य थे।
गोरखनाथ आदिनाथ शिव को अपना पहला गुरु मानते थे।
मिश्रबंधुओं ने गोरखनाथ को हिंदी का ‘पहला गद्य लेखक’ माना है।
गोरखनाथ का नाथ योग ही वामाचार का विरोधी शुद्ध योग मार्ग बना।
डॉ. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ के 14 ग्रंथों को प्रामाणिक मानकर उनकी वाणियों का संग्रह ‘गोरखवाणी’ (1930) शीर्षक से प्रकाशित करवाया। यह 14 ग्रंथ निम्नांकित हैं—
1. शब्द
2. पद
3. शिष्या दर्शन
4. प्राणसंकली
5. नरवैबोध
6. आत्मबोध
7. अभयमात्रा योग
8. पंद्रहतिथि
9. सप्तवार
10. मछिंद्र गोरखबोध
11. रोमावली
12. ज्ञान तिलक
13. ग्यान चौंतीसा
14. पंचमात्रा।
इनके संस्कृत भाषा में लिखे ग्रंथ हैं-
1. सिद्ध-सिद्धांत पद्धति
2. विवेक मार्तंड
3. शक्ति संगम तंत्र
4. निरंजन पुराण
5. वैराट पुराण
6. गोरक्षशतक
7. योगसिद्धांत पद्धति
8. योग चिंतामणि आदि।
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इनकी 28 पुस्तकों का उल्लेख किया है।
गोरखनाथ का मुख्य स्थान गोरखपुर है।
“शंकराचार्य के बाद इतना- प्रभावशाली और इतना महिमान्वित भारतवर्ष में दूसरा नहीं हुआ। भारतवर्ष के कोने-कोने में उनके अनुयायी आज भी पाये जाते हैं। भक्ति आंदोलन के पूर्व सबसे शक्तिशाली धार्मिक आंदोलन गोरखनाथ का भक्ति मार्ग ही था। गोरखनाथ अपने सबसे बड़े नेता थे।” —आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी।
मछेंद्रनाथ
यह जाति से मछुआरे थे।
मीननाथ, मीनानाथ, मीनपाल, मछेंद्रपाल आदि नामों से प्रसिद्ध हुए।
यह जालंधर नाथ के शिष्य तथा गोरखनाथ के गुरु थे।
मत्स्येंद्रनाथ वाममार्ग मार्ग पर चलने लगे तब गोरखनाथ ने इनका उद्धार किया।
मत्स्येंद्रनाथ की 4 पुस्तकें हैं।
उनके पदों का संकलन आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘नाथ सिद्धों की वाणियां’ शीर्षक से किया है।
“नाथ पंथ या नाथ संप्रदाय के सिद्धमत, सिद्धमार्ग, योगमार्ग, योग संप्रदाय, अवधूत मत, अवधूत संप्रदाय आदि नाम भी प्रसिद्ध है।” —आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी।
“गोरखनाथ के नाथ पंथ का मूल भी बौद्धों की यही वज्रयान शाखा है। चौरासी सिद्धों में गोरखनाथ गोरक्षपा भी गिन लिए गए हैं। पर यह स्पष्ट है कि उन्होंने अपना मार्ग अलग कर लिया।” —आ.शुक्ल।
‘गोरख जगायो जोग, भक्ति भगायो लोग’ —तुलसीदास।
नायक-नायिका भेद संबंधी रीतिकालीन काव्य-ग्रंथ
रीतिकालीन छंदशास्त्र संबंधी ग्रंथ