अरस्तु का विरेचन सिद्धांत (Catharsis theory of Aristotle)
यह आर्टिकल अरस्तु का विरेचन सिद्धांत (Catharsis theory of Aristotle) जानने के लिए महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।
यूनानी मूल शब्द ‘कथार्सिस’ (Catharsis) का हिंदी रूपांतरण विरेचन शब्द है।
उक्त दोनों शब्द अपनी-अपनी भाषाओं में चिकित्सा शास्त्र के परिभाषिक शब्द है।
विरेचन का अर्थ
‘विरेचन’ का शाब्दिक अर्थ– रेचन, दस्त, अतिसार, प्रवाहिका, साफ हो जाना, खाली होना आदि है।
साहित्य अथवा काव्य कला के संदर्भ में विरेचन का अर्थ है- दूषित विचारों का निष्कासन या शुद्धि।
वस्तुतः विरेचन का अर्थ बाह्य विकारों की उत्तेजना और उसके शमन के द्वारा मन की शुद्धि और शांति है।
भारतीय विद्वानों का मत
डॉ. नगेंद्र- “मनोविकारों का उद्रेक और उसके शमन से उत्पन्न मनःशांति विरेचन है।”
डॉ.बच्चन सिंह- “अरस्तु के अनुसार प्रेक्षकों को आनंद की अनुभूति करना त्रासदी का प्रयोजन है इस दृष्टि से विरेचन सिद्धांत पर भारतीय काव्यशास्त्र के रस सिद्धांत के निकट है।”
डॉ. गणपति चंद्रगुप्त- “विरेचन एक अपूर्ण सिद्धांत है जो केवल दुखांत रचनाओं पर ही लागू होता है किंतु अरस्तु के व्याख्याता इसे परिपूर्ण सिद्धांत के रूप में ग्रहण करके व्याख्या करने का प्रयास करते हैं।”
विरेचन की विशेषताएं
विरेचन और द्रवण त्रासदी द्वारा ही हो सकता है।
घटनाओं तथा नायक के चयन में बड़ी सावधानी अपेक्षित है।
इसके लिए भय और करुणा के भाव के सम्यक नियोजन और प्रदर्शन आवश्यक है।
विरेचन से अरस्तु का अभिप्राय मनोविकारों के उद्रेक और उसके शमन से उत्पन्न मनःशांति तक ही सीमित माना है, जो उचित है।- डॉ. नगेंद्र
विरेचन सिद्धांत : विविध व्याख्या
1. धर्मपरक व्याख्या-
यह विरेचन सिद्धांत की सर्वप्रथम व्याख्या है।
प्रोफेसर गिलबर्ट मर्रे इस प्रकार की व्याख्या करने वाले प्रमुख व्याख्याकार हैं।
डॉ. नगेंद्र के अनुसार “यूनान की धार्मिक संस्थाओं में बाह्य विकारों द्वारा आंतरिक विकारों की शांति उनके शमन का उपाय अरस्तु को ज्ञात था और संभव है वहां से उन्हें विरेचन सिद्धांत की प्रेरणा मिली।”
प्राचीन यूनान में दीयोन्युसथ नामक देवता से संबद्ध उत्सव अपने आप में एक तरह की शुद्धि का प्रकार था।
इस उत्सव में उन्मादकारी संगीत का प्रयोग किया जाता था, उसे सुनकर सुप्त अवांछित मनोविकार शमित हो जाया करते थे।
2. नीतिपरक व्याख्या-
काश्नेई, रेसीन वारनेज आदि ने विरेचन का नीतिपरक अर्थ किया है।
उनके अनुसार मनोविकारों की उत्तेजना द्वारा विभिन्न अंतर्वृत्तियों का समन्वय या मन की शांति और परिष्कृति ही विरेचन है।
डॉ नगेंद्र के अनुसार “विरेचन से अरस्तु का अभिप्राय मनोविकारों के उद्रेक और उसके शमन से उत्पन्न मनःशांति तक ही सीमित माना है जो उचित है।”
3. चिकित्सापरक व्याख्या-
वर्जिज, डेचेज के अनुसार रेचक द्वारा उदर की शुद्धि होती है, उसी प्रकार त्रासदी का विरेचन मन को शुद्ध करता है।
वह त्रास और करुणा को बहिर्गत करता हुआ दर्शकों को विशेष प्रकार की शांति की अनुभूति कराता है।
4. कलापरक/सौंदर्यपरक व्याख्या-
प्रो. बूचर के अनुसार “त्रासदी का कार्य केवल करुणा एवं त्रास के लिए अभिव्यक्ति का माध्यम प्रस्तुत करना नहीं है बल्कि उन्हें एक सुनिश्चित कलात्मक परितोष प्रदान करना है। उन्हें कला के माध्यम से ढालकर परिष्कृत तथा स्पष्ट करना है।
भारतीय काव्यशास्त्र एवं विरेचन सिद्धांत
अनेक आलोचनाओं के बाद भी अरस्तु का विरेचन सिद्धांत अत्यंत उपयोगी है।
विरेचन सिद्धांत की तुलना अभिनवगुप्त के अभिव्यक्तिवाद से की जाती है।
अभिनवगुप्ता तथा अरस्तु दोनों ने ही रसास्वादन अथवा काव्यानंद के मूल में वासनाओं (मानसिक मल) के रेचन की बात स्वीकार की है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल प्रदेश की मुक्त अवस्था के रूप में विरेचन का ही अनुसरण करते हैं।